March 31, 2010

आपने अपने बच्चो को क्या संस्कार दिया है

सुबह सुबह अखबार में दो खबरे पढने को मिली दोनों युवा पीढ़ी से जुडी थी पहली खबर थी की इम्तहान में पेपर अच्छे न होने के कारण फेल होने के डर से एक किशोर ने आत्हत्या कर ली अख़बारो में ऐसी खबरे अब आम हो गई है पढ़ और सुन कर दुख होता है लेकिन दूसरी खबर और चौकाने वाली और भयानक थी कि दोस्तों ने पैसे के लिए अपने ही दोस्त का अपहरण किया और उसके  घरवालो से फिरौती मागी पर फिरौती मिलने के बाद भी उसकी हत्या कर दी, निश्चित रूप से उन्हें अपने पहचाने जाने का डर था | दोनों ही खबरे आज के युवाओं के दो रूपों को दिखा रही थी | एक ओर तो कुछ युवा इतने कमजोर निकले की जीवन में अपनी पसंद की चीज न मिलने और एक स्कुल के परीक्षा में फेल होने का डर वो बर्दास्त नहीं कर पा रहे है और आत्महत्या जैसा कड़ोर कदम उठा ले रहे है | वो मानसिक रूप से इतने कमजोर है की वह जीवन की इतनी छोटी समस्या को भी हल नहीं कर पा रहे है | दुसरे वो युवा है जो जीवन में अपनी पसंद की चीज पाने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार है उनके लिए जीवन ऐसो आराम से जिने के लिए है और वो इसे पाने के लिए लुट और हत्या  जैसे जघन्य अपराध करने से भी नहीं हिचकते है | माथे पर बल तब और बढ़ जाता है जब पता चलता है की ये सभी युवा अच्छे घरो से है | ज्यादातर लोगों का मानन है कि इनके इस व्वहार का एक कारण  इनका पश्चिमी समाज का अंधाधुंन अनुसरण करना और भारतीय संस्कारो की कमी | किसी से इस पर राय मागिये  तो एक ही जवाब मिलेगा की आज की युवा पीढ़ी को टीवी फिल्मो और इंटरनेट ने बिगाड़ दिया है उनमे हमारे तरह संस्कार ही नहीं है भाई हमारे जीवन में भी काफी मुश्किले आई पर हम तो उनसे परेशान हो कर आत्महत्या करने नहीं चले गये या कई बार हमारी  जरूरते भी ज्यादा थी पर हम तो किसी का खून करने नहीं गये क्योकि हम मे संस्कार थे और हम जानते थी की क्या सही है और क्या गलत है | पर आज की पीढ़ी को देखिये इन्हे तो भारतीय संस्कृति और रीती रिवाज पिछड़ेपन की निशानी लगते है | आज भारत के युवाओ के बोल चाल खान पान पहनावे से लेकर विचारो (सिर्फ वो विचार जिनमे उनका फायदा हो )पसंद नापसंद को देखा कर हम अंदाजा लगा सकते है कि उन पर पश्चिमी सभ्यता (उनके अनुसार आधुनिक) का प्रभाव कितना ज्यादा है | ऐसे युवाओ कि कमी नहीं है जिनके अनुसार हर भारतीय परंपरा रुढ़िवादी है उनको मानना अन्धविश्वास है इनका कोई तर्क नहीं होता ये विज्ञानं से कोसो दूर है | अगर कुछ आधुनिक है तो पश्चिमी समाज वहां  काफी खुलापन है आजादी है पर भारतीय समाज में बंधन के सीवा कुछ नहीं है यहाँ व्यक्ति की आजादी नहीं होती है और  युवा पीढ़ी बध कर नहीं रहना चाहती है उसे तो खुलापन पसंद है आजादी पसंद है | अपनो से बड़े और बुजर्गो को हाय हलो  कहने वाले इस नई जनरेशन के लिए बड़े बुजर्गो के पाव छूना साल में एक दो बार किसी खास मौके की बात है नहीं तो जरुरत नहीं है अपने गुरु का आदर करने की वो जरुरत नहीं समझते सयुक्त परिवार में रहना या किसी तरह के आभाव में रहना उन्हें मंजूर नहीं है यहाँ तक की वो अपने माता पिता से भी आदरपूर्वक बात भी नहीं करते बाहर के लोगों कि तो बात ही छोडिये दूसरो कि मदत करना जैसी बाते तो इनके डीसनरी में ही नहीं होते  इस सो काल्ड न्यू जनरेशन का अपने पैरेंट्स से किसी बात को लेकर डिबेट या फाईट होना तो अब आम बात है  | उनके अनुसार समय के साथ सभी को बदलते रहना चाहिए  अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो आप दूसरो से पिछड़ जायेगे "माडन"नहीं कहलायेंगे |
            इस फैलती आधुनिक संस्क्रृति (बड़े बुड़ो के अनुसार अपसंस्कृति) से सबसे ज्यादा कोई परेशान है तो वो है माता पिता जिनके लिए बच्चो के पास न तो समय है और न ही सम्मान जिसकी उन्हें चाहत है |  वो इस हालत के लिए कभी टीवी फिल्मो और इंटरनेट को तो कभी आज के बदलते माहौल और समाज को दोषी बताते है |  पर क्या यही सच्चाई जी नहीं पूरी सच्चाई ये नहीं है इस पूरी बात में खुद को संस्कारवान होने कि दुहाई देने वाले माता पिता और पुरानी पीढ़ी बड़ी आसानी से अपनी गलती को छुपा रही है | वे कहते है कि हम बहुत संस्कारवान सबका सम्मान करने वाले है हमारे परिवार ने हमें हमेसा अच्छे संस्कार और सीख दी अब ऐसा कहने वाले आज के माता पिता और घर के बुजुर्ग भी बताये कि उन्होंने अपने घर के बच्चो का क्या सीख दी है क्या कभी उन्होंने अपने बच्चो को औपचारिक रूप से कोई संस्कार कोई भारतीय रीती रिवाज या हमारी सभ्यता के बारे में कुछ बताया है जवाब है नहीं शायद कभी नहीं | विश्व में कोई भी संस्कृति या रीती रिवाज  एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित करने से ही आगे बढती है पर आज हमारे समाज में खासकर बड़े शहरो में ये होना बंद हो गया है | आप सभी अपने आप से पूछिये कि आप में से कितने लोगों ने अपने बच्चो को सिखाया है कि हमें सभी बड़ो का आदर करना चाहिए, दूसरो कि मदद करना चाहिए, सुबह जल्दी उठाना चाहिए, झूठ बोलना चोरी करना गलत बात है ( जी हम जब छोटे थे तो ये 'पाप' होता था पर आज के ज़माने में अब ये पाप नहीं रहा सिर्फ गलत बात रह गई है ताकि मौका पड़ने पर हमें ये गलती करने कि छुट मिल सके और पकडे जाने पर गलती कि माफ़ी माग ले) आप को ये सारी बाते किताबी लग रही होगी (वैसे ये बाते आप को आज के बच्चो कि किताबो में भी नहीं मिलेंगी ) सोचेंगे कि अब कौन बेवकूफ ऐसी बाते अपने बच्चो से करता है ये हम करे भी तो बच्चे या तो उसे समझेगे नहीं या हम पर हेसेंगे | यदि आप ऐसा सोच रहे है तो आप बिलकुल गलत भी नहीं है एक ही तारीख में सोने और उठने वाले आधुनिकता कि दौड़ में शामिल माता पिता कैसे अपने बच्चो को जल्दी सोने और उठने कि शिक्षा दे सकते है ऐसा कहने पर बच्चे उन पर हसेंगे ही आफिस कि स्टेशनरी से लेकर टैक्स चुराने वाले पिता कैसे अपने बच्चो को चोरी न करने का ज्ञान दे सकता है बात बात में सहेलियों से लम्बी लम्बी हाकने वाली माँ कैसे अपने बच्चो को झूठ न बोलने की सीख दे सकती है | हम सभी आज उन्हें सीख तो देते है पर कुछ अलग तरह की  कि कैसे उन्हें दूसरो से अपना काम निकालना चाहिए ,जरुरत पड़ने पर झूठ बोलने से नहीं हिचकिचाना चाहिए सामने वाले की हैसियत देखा कर उसका सम्मान करना चाहिए दूसरो की सहायता तभी करना चाहिए जब उसमे हमारा फायदा हो  मौके  और समय कजे अनुसार बच्चो को ये सिख दी जाती है या बच्चे घर के लोगों को ऐसा करते देखा खुद ही सिख जाते है और हम सभी यह कह कर इसको सही ठहराते है की आज तो जमाना ही ऐसा है की यदि बच्चे ये सब न सीखे तो वह कभी आगे ही नहीं बढ़ पाएंगे और वो दब्बू बन जायेंगे | लेकिन जब यही बच्चे ये वव्हार अपने ही माता पिता या भाई बहन के साथ करते है तो उन्हें बुरा लगता है वो इसके लिए समाज और आज कल के माहौल को दोष देने लगते है | बात सिर्फ संस्कारो पर ख़त्म नहीं होती भारतीय रीती रिवाजो के प्रति नई पीढ़ी की अनभिज्ञता का कारण भी यही है | इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में समय किसके पास है  हम सभी को हर काम सॉर्ट कट में करने की आदत हो गई है चाहे वो पूजा पाठ तीज त्यौहार यह तक की शादी विवाह और अंतिम संस्कार में भी पुरे रीती रिवाजो से नहीं किया जाता सब कुछ  सॉर्ट कट में बेचारे बच्चे भी आधे अधूरे किसी रिवाज को क्या समझेंगे अगर बच्चे ने गलती से पूछ लिया की ये रस्म क्यों की जाती है या इस रिवाज का क्या मतलब है तो तो उसे १ ही जवाब मिलता है की बस ऐसे ही किया जाता है | अब ऐसे में युवा एक तो न हो रहे रिवाजो को जान ही नहीं पते और जो आधे अधूरे हो रहे है उनका मतलब उनको नहीं पता होता है ऐसे में उन्हें भारतीय परम्पराए अर्थहिन और बेमतलब लगे तो उसमे उनका क्या दोष है | इसी तरह धीरे धीरे एक एक करके अपनी परम्पराए और रीती रिवाजो को हम भूलते जाते है |  कोई भी सभ्यता संस्कृति तभी तक बची रहती है जब तक उसका हस्तांतरण होता रहता है |
             ये आप के ऊपर है की आप अपनी परम्पराव और रीतिरिवाजो को किस तरह युवा पीढ़ी को देते है  जैसे हम बड़े समझदारी से बता सकते है की भारतीय रिवाज भी विज्ञानं से दूर नहीं है हमारे पूर्वजो को भी मालूम था की किसी चीज से क्या फायदा है और किससे क्या नुकसान बस उन्हें शायद उसका कारण ठीक से नहीं पता था इस लिए वो उन बातो को दूसरो से करवाने और उन्हें करने से रोकने के लिए उस समय के हिसाब से लोगों को उसी तरह बताते थे जैसे उन्हें ये नहीं पता था की उगते सूरज से हमें विटामिन डी मिलाता है पर उगते सूरज का सेक लेने से हम सभी को फायदा होता है वो जानते थे इसलिए ही यहाँ सूर्य नमस्कार और उगते सूरज को जल देने की परम्परा बनी उसी तरह सूर्य ग्रहण के समय सूर्य को नंगी आखो से देखने से नुकसान से भी वह परिचित थे और दुसरो को ऐसा करने से रोकने के लिए शुभ अशुभ का हवाला देते थे | उन्हें बताये हा समय के साथ इनमे कुछ दकियानुसी बाते जुड़ती चले गई उन सभी चीजो को हमें मानाने की आवश्यकता नहीं है | यदि आप ये कहते है की खुद हमें ही नहीं मालूम की इन परम्पराव का क्या मतलब है या कहे की जी भारत की सारी परम्पराए है ही बेकार उनका कोई तर्क है ही नहीं उन्हें बस यु ही बना दिया गया है | तो निशचित रूप से आज की जनरेशन उसे अंधविश्वास से ज्यादा कुछ नहीं समझेगी |
   एक समय था जब बच्चो को ये बाते घर के बुजुर्ग औपचारिक रूपों से दे देते थे या बच्चे संयुक्त परिवार में रहते थे और अपने से बड़ो को देख कर संस्कारो को अपना लेते थे पर अब न तो संयुक्त परिवार रहा और शहरों के ज्यादातर घरो में या तो बुजुर्ग होते नहीं या होते भी है तो अब परिवार में उनका न तो पहले जैसा स्थान रहा और न भूमिका | तो आखिर आज की ये पीढ़ी संस्कार सीखेगी कहा से उसे कैसे पता चलेगा की कैसे उसे परिस्थितियों से लड़ना है उसके लिए क्या सही है और क्या गलत नैतिकता का क्या मतलब है और किसी त्यौहार पर हमें कौन से रीती रिवाज करने है और हमारी परम्परा क्या है | इसके बाद आप के पास दो ही रास्ते है या तो आज और अभी से अपने बच्चो को अपनी सभ्यता संस्कारो रीती  रिवाजो से औपचारिक रूप से परिचय करना शुरू कर दे या फिर अपने बिगड़ते बच्चो और युवाओ को या किसी अन्य को इसके लिए दोष देना बंद कर दे |

March 09, 2010

जी हम तो टैक्स बचाते है चुराते नहीं

 इस बार तो प्रणव दा ने हद ही कर दी लगा था कि बजट में पेट्रोल डीजल के दाम भले बढाने कि धोषणा कर दी गई हो पर शायद ये कुछ दिनों बाद सोनिया गाँधी की कृपा से या तो इसे वापस ले लिया जायेगा नहीं तो कम से कम इसमे कोई कमी तो कर ही दी जाएगी | पर ये क्या सोनिया ने तो हमारी सारी आशाओ पर तुषारपात  कर दिया और पेट्रोल डीजल के बड़े दामो को हरी झंडी दे दी | आस पास कोई चुनाव नही है अच्छा हो यदि हर साल मार्च अप्रैल में किसी न किसी राज्य में चुनाव हो इस तरह महगाई के बीच बजट में किसी चीज का दाम बढ़ाने से पहले दस हजार बार सोचेंगे  | अब बेचारे आम आदमी का क्या होगा एक तो पहले से ही महगाई की मार से मरे जा रहा था उस पर से पेट्रोलियम पदार्थो के दाम बढने से तो हर चीज के दाम और बढाने का दुकानदारो को वजह मिल जायेगा (वैसे उन्हें दाम बढाने के लिए किसी वजह की जरुरत नहीं है) | सही कहा गया है कि आम आदमी की कोई सुध नहीं लेता है | अब देखीये न प्रणव दा ने कहने के लिये तो आय कर में राहत दी है पर ये राहत मिल किसको रही है उन्हें जो ज्यादा कमाते है | साल के तीन लाख तक कमाने वाले को कोई फायदा ही नहीं है जिसे असल में इस राहत की जरुरत थी पर राहत मिल किसे रही है जो इससे ज्यादा और ज्यादा कमा रहा है | आखिर आम आदमी है कौन जो चार से आठ लाख सालाना कमाता है वो या जो तीन लाख से काम घर लता है वो | कहने के लिये तो ये आम बजट होता है पर आम आदमी से इसका कोई मतलब ही नहीं होता है |
      मंत्री जी कहते है कि देश के विकाश के लिये ये किया जा रहा है, विकाश के लिये पैसे की जरुरत है ( तो विकाश के घरवालो से मागो ना ) इसलिये हमारी जेब काटी जा रही है सीधे से नहीं पीछे से | अरे लेना है तो उन उद्यियोगपतियों से मागो जो फोर्ड पत्रिका के रईसों कि सूची में दिन पर दिन ऊपर चढ़ते जा रहें है, पुरे विश्व में बड़ी बड़ी कंपनिया खरीद रहे है, हम तो राशन की  दुकान से राशन भी नहीं खरीद पा रहे है | वो सब तो लाखो खर्च करके(सी ए को देकर) करोडो अरबो बचा लेते है पर एक नौकरीपेशा आम आदमी की तो ये हालत है कि पहले टैक्स कटता है फिर वेतन हाथ में आती है | वो चोरी कर करके दिन बार दिन और अमीर बनते जा रहे है और हम टैक्स भर भर कर आम आदमी ( आम आदमी का मतलब ही है गरीब बेचारा) बनते जा रहे है |
       ऊपरवाला जनता है जो हमने एक ढ़ेले कि टैक्स चोरी की हो अब जब ऊपरवाले का नाम लिया है तो थोड़ी ईमानदारी बरतनी चाहिए हा एक दो बार थोडा सा टैक्स बचाया है देखीये मै पहले ही कह दे रही हु की टैक्स बचाया है चोरी नहीं की है |
अरे भाई जहा से गहने खरीदे थे वो हमारे परचित है हम सात पुस्तो से वहा से गहने खरीद रहे है इस नाते उन्होंने सलाह दिया कि क्यों बेकार में पक्का रसीद बनवा रही है टैक्स देना पडेगा कच्चा रसीद बनवाइये टैक्स बच जायेगा तो हमने टैक्स बचा लिया इसमे कौन से बड़ी बात है कौन से हमने रईसों की तरह लाखो करोडो के गहने ख़रीदे थे , सरकार का ज्यादा कुछ नहीं गया | देखीये एक हाथ से जो थोडा बचाया वो दुसरे हाथ से भरवा भी दिया गाँव में पिताजी ने नया मकान खरीदा पुरे बीस लाख का और रजिस्ट्री कराने लगे सिर्फ पांच लाख की मैंने सीधा विरोध किया ये भी कोई बात हुई बीस का मकान और सिर्फ पांच की दिखा रहे है इतना टैक्स की चोरी ठीक नहीं है कम से कम छ: लाख तो दिखाइए ही, पड़ोस का घर भी इतने में ही गया है इससे कम दिखाया तो फस जायेगे जितना बचाया है उससे ज्यादा चले जायेगे | देखीये कई बार क्या होता है की टैक्स बचाना मजबूरी हो जाती है अब जब पिता जी ने घर लिया है तो उसके लिए फर्नीचर वगैरा तो लेना ही पड़ेगा भैया ने सीधा कह दिया की पापा चुप चाप  फर्नीचर लीजिये और घर चलिए रसीद पुर्जा के चक्कर में मत पड़िए बेकार में ऐट वैट भरना पड़ जायेगा फिर टैक्स ही भरते रहियेगा क्योकि फिर कुछ और खरीदने के लिए पैसा ही नहीं बचेगा | बात तो वह सही कह रहा है अब इस मजबूरी को तो सरकार को समझाना ही चाहिए |
        देखा हम तो फिर भी भले लोग है जितना हो सके टैक्स भरते रहते है (क्या करे मजबूरी है वेतन टैक्स काट कर ही मिलता है ) नहीं तो लोग टैक्स बचाने  (चुराने) के लिए क्या नहीं करते | अब हमारे पड़ोसी को ही ले लीजिये एन जी ओ चलाते है कोई ऐसा वैसा एन जी ओ नहीं है बाकायदा सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है | काफी अच्छी इनकम होती है और काम कुछ नहीं करना पड़ता है बस लोगों के सफ़ेद को काला करते है (ताकि दिखाई न दे) लोगों से दान लेते है और दो प्रतिशत काट के बाकि  पैसे वापस कर देते है | सुना है कभी कभी कुछ भलाई का काम भी करते है  कुछ गरीब बच्चो को पढ़ा देते है या गरीब महिलाओ को कुछ सिलाई वगैरा भी सिखा देते है | हमसे भी कितनी बार कहा की भाई साहब क्या खामखाह में वेतन से इतना टैक्स कटवा देते है आखीर हम और हमारी संस्था किस काम आयेगी | पर मैंने साफ मना कर दिया की मुझे इन चीजो में बिलकुल भी विश्वास नहीं है मैने उनकी संस्था को कोई दान नहीं दिया | पड़ोसी है उनका क्या भरोसा पड़ोसियों का काम ही जलना होता है क्या पता पैसे ले और वापस ही न करे तो, जितना टैक्स बचेगा नहीं उससे ज्यादा चला जायेगा | मै तो कोई दूसरा ज्यादा विश्वसनीय संस्था खोज रही हु जहा पैसे वापस मिलाने की गारंटी हो | हम जो भी काम करते है सोच समझ कर करते है और पहले ही कर लेते है | मेरे पति ने तो हमारा घर ही हमारे नाम पर लिया एक तो माहिला के नाम घर लेने पर ही कुछ कर में छुट मिल गई फिर हमारे उन्होंने कहा की घर तुम्हारे नाम रहा तो सारे जिंदगी तुम्हारे किरायेदार के रूप में रहूँगा और जो तुम्हे किराया दूंगा उस पर कर की बचत हो जाएगी | मेरे वो दूसरो की तरह नहीं है की खुद को किरायदार बताये और अपने मकान मालिक पत्नी,माँ या पिताजी को किराए का पैसा न दे महीने की पहली तारीख को मेरे बैंक खाते में किराया जमा कर देते है अजी उन्ही पैसो से तो घर चलता है |
           हम पत्नियों पर पतियों को किसी अन्य मामले में विश्वास और हमारा ख्याल हो न हो  पर उनकी साइड इनकम और इनवेस्टमेंट हमारे ही नाम होती है हमारा भविष्य सुरक्षित रखने के लिये (इसे ऐसे पढ़े अपने इंवेस्टमेंट से होने वाली इन्कम को सुरक्षित करने के लिए ) चाहे शेयर बाजार में पैसा लगाना हो या कोई बड़ी रकम फिक्सडिपोसिद करना हो या फिर कोई जमीन जायदाद खरीदना हो सारे इन्वेस्टमेंट  घर गृहस्थी में सारा जीवन गुजार देने वाली हम पत्नियों के नाम ही होता है | इस तरह शेयर बाजार में बढ़ा पैसा और मिलनेवाला ब्याज उनकी आय में नहीं जुड़ता है और न ही उस पर कर देना पड़ता है जरुरत हुई तो हमारे नाम भी रिटर्न फाइल कर दिया जाता है कुछ छोटा मोटा व्यापर दिखा कर, पर आय उतनी ही दिखाई जाती है कि कर न भरना पड़े |  
         अब सौ करोड़ से ऊपर की आबादी में से यदि एक हम कुछ टैक्स बचा भी लेते है तो क्या फर्क पड़ने वाला है | यदि एक बड़े घड़े में एक बूंद पानी हम न डाले तो कोई बड़ा फर्क नहीं होने वाला है | कहते है की देश के विकाश के लिये पैसे चाहिए अरे भाई जितना देते है उसमे ही कितना विकाश कर लिया है | बिजली सड़क पानी कौन सी हमारी समस्या हल हो गई है इन सब चीजो का हाल बेहाल है | ज्यादा दे भी दिया तो कोई भी फायदा नहीं होने वाला है सब नेताओ के भ्रष्टाचार के भेट चढ़ जायेगा | इससे अच्छा है इन पैसो से कुछ अपना विकाश किया जाये | देश के विकाश के लिए पैसे देने के लिए तो पुरा देश पड़ा है |