March 09, 2010

जी हम तो टैक्स बचाते है चुराते नहीं

 इस बार तो प्रणव दा ने हद ही कर दी लगा था कि बजट में पेट्रोल डीजल के दाम भले बढाने कि धोषणा कर दी गई हो पर शायद ये कुछ दिनों बाद सोनिया गाँधी की कृपा से या तो इसे वापस ले लिया जायेगा नहीं तो कम से कम इसमे कोई कमी तो कर ही दी जाएगी | पर ये क्या सोनिया ने तो हमारी सारी आशाओ पर तुषारपात  कर दिया और पेट्रोल डीजल के बड़े दामो को हरी झंडी दे दी | आस पास कोई चुनाव नही है अच्छा हो यदि हर साल मार्च अप्रैल में किसी न किसी राज्य में चुनाव हो इस तरह महगाई के बीच बजट में किसी चीज का दाम बढ़ाने से पहले दस हजार बार सोचेंगे  | अब बेचारे आम आदमी का क्या होगा एक तो पहले से ही महगाई की मार से मरे जा रहा था उस पर से पेट्रोलियम पदार्थो के दाम बढने से तो हर चीज के दाम और बढाने का दुकानदारो को वजह मिल जायेगा (वैसे उन्हें दाम बढाने के लिए किसी वजह की जरुरत नहीं है) | सही कहा गया है कि आम आदमी की कोई सुध नहीं लेता है | अब देखीये न प्रणव दा ने कहने के लिये तो आय कर में राहत दी है पर ये राहत मिल किसको रही है उन्हें जो ज्यादा कमाते है | साल के तीन लाख तक कमाने वाले को कोई फायदा ही नहीं है जिसे असल में इस राहत की जरुरत थी पर राहत मिल किसे रही है जो इससे ज्यादा और ज्यादा कमा रहा है | आखिर आम आदमी है कौन जो चार से आठ लाख सालाना कमाता है वो या जो तीन लाख से काम घर लता है वो | कहने के लिये तो ये आम बजट होता है पर आम आदमी से इसका कोई मतलब ही नहीं होता है |
      मंत्री जी कहते है कि देश के विकाश के लिये ये किया जा रहा है, विकाश के लिये पैसे की जरुरत है ( तो विकाश के घरवालो से मागो ना ) इसलिये हमारी जेब काटी जा रही है सीधे से नहीं पीछे से | अरे लेना है तो उन उद्यियोगपतियों से मागो जो फोर्ड पत्रिका के रईसों कि सूची में दिन पर दिन ऊपर चढ़ते जा रहें है, पुरे विश्व में बड़ी बड़ी कंपनिया खरीद रहे है, हम तो राशन की  दुकान से राशन भी नहीं खरीद पा रहे है | वो सब तो लाखो खर्च करके(सी ए को देकर) करोडो अरबो बचा लेते है पर एक नौकरीपेशा आम आदमी की तो ये हालत है कि पहले टैक्स कटता है फिर वेतन हाथ में आती है | वो चोरी कर करके दिन बार दिन और अमीर बनते जा रहे है और हम टैक्स भर भर कर आम आदमी ( आम आदमी का मतलब ही है गरीब बेचारा) बनते जा रहे है |
       ऊपरवाला जनता है जो हमने एक ढ़ेले कि टैक्स चोरी की हो अब जब ऊपरवाले का नाम लिया है तो थोड़ी ईमानदारी बरतनी चाहिए हा एक दो बार थोडा सा टैक्स बचाया है देखीये मै पहले ही कह दे रही हु की टैक्स बचाया है चोरी नहीं की है |
अरे भाई जहा से गहने खरीदे थे वो हमारे परचित है हम सात पुस्तो से वहा से गहने खरीद रहे है इस नाते उन्होंने सलाह दिया कि क्यों बेकार में पक्का रसीद बनवा रही है टैक्स देना पडेगा कच्चा रसीद बनवाइये टैक्स बच जायेगा तो हमने टैक्स बचा लिया इसमे कौन से बड़ी बात है कौन से हमने रईसों की तरह लाखो करोडो के गहने ख़रीदे थे , सरकार का ज्यादा कुछ नहीं गया | देखीये एक हाथ से जो थोडा बचाया वो दुसरे हाथ से भरवा भी दिया गाँव में पिताजी ने नया मकान खरीदा पुरे बीस लाख का और रजिस्ट्री कराने लगे सिर्फ पांच लाख की मैंने सीधा विरोध किया ये भी कोई बात हुई बीस का मकान और सिर्फ पांच की दिखा रहे है इतना टैक्स की चोरी ठीक नहीं है कम से कम छ: लाख तो दिखाइए ही, पड़ोस का घर भी इतने में ही गया है इससे कम दिखाया तो फस जायेगे जितना बचाया है उससे ज्यादा चले जायेगे | देखीये कई बार क्या होता है की टैक्स बचाना मजबूरी हो जाती है अब जब पिता जी ने घर लिया है तो उसके लिए फर्नीचर वगैरा तो लेना ही पड़ेगा भैया ने सीधा कह दिया की पापा चुप चाप  फर्नीचर लीजिये और घर चलिए रसीद पुर्जा के चक्कर में मत पड़िए बेकार में ऐट वैट भरना पड़ जायेगा फिर टैक्स ही भरते रहियेगा क्योकि फिर कुछ और खरीदने के लिए पैसा ही नहीं बचेगा | बात तो वह सही कह रहा है अब इस मजबूरी को तो सरकार को समझाना ही चाहिए |
        देखा हम तो फिर भी भले लोग है जितना हो सके टैक्स भरते रहते है (क्या करे मजबूरी है वेतन टैक्स काट कर ही मिलता है ) नहीं तो लोग टैक्स बचाने  (चुराने) के लिए क्या नहीं करते | अब हमारे पड़ोसी को ही ले लीजिये एन जी ओ चलाते है कोई ऐसा वैसा एन जी ओ नहीं है बाकायदा सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है | काफी अच्छी इनकम होती है और काम कुछ नहीं करना पड़ता है बस लोगों के सफ़ेद को काला करते है (ताकि दिखाई न दे) लोगों से दान लेते है और दो प्रतिशत काट के बाकि  पैसे वापस कर देते है | सुना है कभी कभी कुछ भलाई का काम भी करते है  कुछ गरीब बच्चो को पढ़ा देते है या गरीब महिलाओ को कुछ सिलाई वगैरा भी सिखा देते है | हमसे भी कितनी बार कहा की भाई साहब क्या खामखाह में वेतन से इतना टैक्स कटवा देते है आखीर हम और हमारी संस्था किस काम आयेगी | पर मैंने साफ मना कर दिया की मुझे इन चीजो में बिलकुल भी विश्वास नहीं है मैने उनकी संस्था को कोई दान नहीं दिया | पड़ोसी है उनका क्या भरोसा पड़ोसियों का काम ही जलना होता है क्या पता पैसे ले और वापस ही न करे तो, जितना टैक्स बचेगा नहीं उससे ज्यादा चला जायेगा | मै तो कोई दूसरा ज्यादा विश्वसनीय संस्था खोज रही हु जहा पैसे वापस मिलाने की गारंटी हो | हम जो भी काम करते है सोच समझ कर करते है और पहले ही कर लेते है | मेरे पति ने तो हमारा घर ही हमारे नाम पर लिया एक तो माहिला के नाम घर लेने पर ही कुछ कर में छुट मिल गई फिर हमारे उन्होंने कहा की घर तुम्हारे नाम रहा तो सारे जिंदगी तुम्हारे किरायेदार के रूप में रहूँगा और जो तुम्हे किराया दूंगा उस पर कर की बचत हो जाएगी | मेरे वो दूसरो की तरह नहीं है की खुद को किरायदार बताये और अपने मकान मालिक पत्नी,माँ या पिताजी को किराए का पैसा न दे महीने की पहली तारीख को मेरे बैंक खाते में किराया जमा कर देते है अजी उन्ही पैसो से तो घर चलता है |
           हम पत्नियों पर पतियों को किसी अन्य मामले में विश्वास और हमारा ख्याल हो न हो  पर उनकी साइड इनकम और इनवेस्टमेंट हमारे ही नाम होती है हमारा भविष्य सुरक्षित रखने के लिये (इसे ऐसे पढ़े अपने इंवेस्टमेंट से होने वाली इन्कम को सुरक्षित करने के लिए ) चाहे शेयर बाजार में पैसा लगाना हो या कोई बड़ी रकम फिक्सडिपोसिद करना हो या फिर कोई जमीन जायदाद खरीदना हो सारे इन्वेस्टमेंट  घर गृहस्थी में सारा जीवन गुजार देने वाली हम पत्नियों के नाम ही होता है | इस तरह शेयर बाजार में बढ़ा पैसा और मिलनेवाला ब्याज उनकी आय में नहीं जुड़ता है और न ही उस पर कर देना पड़ता है जरुरत हुई तो हमारे नाम भी रिटर्न फाइल कर दिया जाता है कुछ छोटा मोटा व्यापर दिखा कर, पर आय उतनी ही दिखाई जाती है कि कर न भरना पड़े |  
         अब सौ करोड़ से ऊपर की आबादी में से यदि एक हम कुछ टैक्स बचा भी लेते है तो क्या फर्क पड़ने वाला है | यदि एक बड़े घड़े में एक बूंद पानी हम न डाले तो कोई बड़ा फर्क नहीं होने वाला है | कहते है की देश के विकाश के लिये पैसे चाहिए अरे भाई जितना देते है उसमे ही कितना विकाश कर लिया है | बिजली सड़क पानी कौन सी हमारी समस्या हल हो गई है इन सब चीजो का हाल बेहाल है | ज्यादा दे भी दिया तो कोई भी फायदा नहीं होने वाला है सब नेताओ के भ्रष्टाचार के भेट चढ़ जायेगा | इससे अच्छा है इन पैसो से कुछ अपना विकाश किया जाये | देश के विकाश के लिए पैसे देने के लिए तो पुरा देश पड़ा है |  
        
 
 

5 comments:

  1. मोहतरमा, कटाक्ष तो आपने नौकरी पेशा लोगों पर किया ही है. लेकिन उनके लिये क्या कहेंगी जो कई सालों तक ज़ीरो टैक्स कम्पनियां रहीं और जिनके लिये नेताओं और अफसरों ने मौका दिया.
    कामन मैन आज की तारीख में कुछ नहीं कर सकता क्योंकि उसके हाथ में कुछ नहीं है, जिन्हें वह चुनता है वही उसकी गर्दन पर छुरी चलाने का काम करते हैं, ऊपर से लोग आज कुछ ज्यादा ही पढ़ गये हैं, अपने छोटे से फायदे के लिये देश का बड़ा नुकसान करने से नहीं चूकते. लेकिन इस की भी पूरी जिम्मेदारी निजाम की है, जिसे चुना ही इसलिये जाता है कि वह भले-बुरे को देखकर उचित कार्रवाई कर सके.

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  2. मेरा कहना सिर्फ इतना है कि हम सभी को पहले अपनी गलतियों को देखना और उसे सुधारना चाहिए बाद में दूसरो पर उंगलिया उठाना चाहिए | आम आदमी यही सोचता है कि जब बड़े लोग करोडो अरबो का टैक्स चुराते है तो हमारे थोड़े से टैक्स बचाने से सरकारी खजाने पर क्या असर होगा पर वो भूल जाते है कि बूंद बूंद से घड़ा भरता है | साथ ही ये कोई जरुरी तो नहीं कि बड़े लोग टैक्स चुराते है इसलिए आम आदमी कि टैक्स चोरी को नजरंदाज कर दिया जाये जुर्म तो दोनों ही कर रहे है | सबसे बुरी बात तो ये है कि आम आदमी मानता ही नहीं कि वो टैक्स चोरी करता है वो इस चोरी को बचत कहता है | फिर बड़ी कंपनियों के लिए तो मैंने पहले ही लिखा है कि वो लाखो खर्च कर करोडो बचा लेते है |

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  3. जी आप ने सही कहा की लोगों में इस बात का एहसास ही नहीं है की वो कर बचा नहीं रहे है बल्कि चोरी कर रहे है | क्या करे जैसा आप ने कहा ये उनकी मज़बूरी है सयुक्त भरतीय परिवारों में कमाने वाला एक होता है और खाने वाले दस ऐसी महगाई में आम आदमी टैक्स चुराए नहीं तो घर कैसे चले |

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  4. हमारे देश की हर समस्या की जड़ ही यही है की हर आम आदमी यही सोचता है की एक अकेले मेरे करने से क्या होता है वो भूल जाते है की एक एक मिल कर ही सौ करोड़ बनते है सब अगर ऐसा ही सोचेंगे तो देश के विकाश के लिए सरकार के पास पैसे कहा सेआएंगे

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  5. अंशुमाला जी, आपने उपरोक्त पोस्ट में बहुत सही बात कहीं है. बूंद-बूंद से ही घड़ा भरता है. इनकम टैक्स तो एक बार भरा है मगर अपनी एड एजेंसी का सर्विस टैक्स अनेकों बार भर चूका हूँ. मगर अपनी हर चीज़ पक्के बिल के साथ खरीदता हूँ.
    # निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन:9868262751, 9910350461 email: sirfiraa@gmail.com, महत्वपूर्ण संदेश-समय की मांग, हिंदी में काम. हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है. हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें.हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है. नेत्रदान महादान आज ही करें. आपके द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है.

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