September 04, 2010

नई दिल्ली की राजधानी क्या है ? क्या आप के टीचर ने आप को बताया है - - - - - - mangopeople

नई दिल्ली की राजधानी क्या है ?---------- जवाब दीजिए नहीं पता तो जवाब सुनिये चादनीचौक ,पुरानी दिल्ली ,नोएडा ,गुड़गाँव  चौक गये ये जवाब है  यूपी के गावों के प्राथमिक विद्यालयों में तैनात कुछ शिक्षकों के अब सोचिये की जब टीचर का ज्ञान इतना बढ़िया है तो वो बच्चों को क्या ज्ञान दे रहें होंगे | आप इस बात का संतोष मत करीये की आप का बच्चा तो अंग्रेजी मीडियम के प्राइवेट स्कूल में या किसी कान्वेंट में पढ़ रहा है | जरा पता कीजिए की स्कूल में शिक्षकों की शैक्षिक योग्यता क्या है कही आधे से ज्यादा कम शैक्षिक योग्यता के साथ बस टमप्रेरी जाब पर तो नहीं है | चलिए यदि ऐसा नहीं है तो क्या वो आप के बच्चों को ज्ञान दे रहे है या सिर्फ कोर्स पूरा करा रहे है | जानना मुश्किल  नहीं है बस अपने बच्चे से कोर्स के बाहर से कोई सामान्य ज्ञान की बात पूछ लीजिये जवाब मिल जायेगा की बच्चा स्कूल में क्या पढ़ रहा है |
  आज के नंबरों की गला काट स्पर्धा की हम सब आलोचना करते है और इसको आज की शिक्षा व्यवस्था का दोष मनाते है पर क्या वास्तव में ऐसा है | असल में ये व्यवस्था गुरु से टीचर बने इस वर्ग का कारनामा है | ये व्यवस्था उन टीचरों की देन है जिनका अपना ज्ञान कोर्स की किताब से आगे नहीं था पर वो टीचर बन गये क्योंकि ये सबसे आरामदायक , सबसे ज्यादा छुट्टियों वाला महिलाओ के लिए सबसे सुरक्षित ( ज्यादातर लोग ऐसा मानते है ) सुविधाजनक प्रोफेशन है | अब जब खुद इनका ज्ञान कम था तो वो बच्चों को क्या बताते सो इन्होंने एक काम किया की बच्चों का सारा ध्यान सिर्फ कोर्स की किताबों को पढ़ने और अच्छे नंबरों तक सीमित कर दिया | माँ बाप स्कूल प्रशासन सभी खुश हो गये की हमारे बच्चे अच्छे नंबर ला रहे है पर किसी ने भी इस बात को जानने का प्रयास नहीं किया की बच्चों को क्या ज्ञान दिया जा रहा है वो क्या सीख रहे है | टीचर खुश की चलो की अब बच्चे भी हमसे कोई ऐसा सवाल नहीं करेंगे जो हमें नहीं पता होगा | बच्चे भी खुश की चलो की अब कुछ समझने की जरुरत नहीं है बस रटो और अच्छे नंबर लाओ काम हो गया |  अब यही नंबरों की दौड़ गला काट स्पर्धा में बदल गई तो लगे है हम सब उसकी बुराई करने में |
हद तो तब हो गई की जब टीचरों ने अपना लक्ष्य सिर्फ कोर्स को पूरा कराने तक ही सीमित कर लिया अब तो उनको इस बात से भी मतलब नहीं रहा की जो वो पढ़ा रहे है वो बच्चों को समझ में भी आ रहा है या नहीं उन्होंने ने अपने हिसाब से किताब को ख़त्म किया और उनकी ज़िम्मेदारी ख़त्म हो गई बाकी बच्चे जाने और उनके माँ बाप जाने | इसके अलावा वो ये भी चाहते है की बच्चा वैसे ही याद रखे और सवालों को हल करे जैसा की उन्होंने बताया है | आप कभी अपने बच्चे को टीचर के बताये तरीके से अलग तरीके से गणित के सवाल हल करके भेज दे फिर देखे की टीचर की प्रतिक्रिया क्या होती है | उनका जवाब होगा "क्या मैंने जो बताया है वो तुमको समझ में नहीं आया " खुद को ज्यादा होशियार समझते हो अपना दिमाग  लगने की जरुरत नहीं है " " हा ये सही है पर मैंने जो तरीका बताया है वो ज्यादा आसान है " " नहीं मेरे तरीके से करो तभी ज्यादा नंबर आयेंगे " लीजिये जी इनमें से कोई जवाब सुनने के बाद तो किसी विद्यार्थी में हिम्मत नहीं होगी की टीचर के बताये तरीके के अलावा कोई तरीका अपना ले | कई बार तो टीचर कोर्स के विषय को भी अपनी सुविधानुसार पढ़ाते है | में आप को अपना एक अनुभव बताती हुं हम जब ११ में थे तो हमारी होम साइंस की टीचर ने महिलाओ के शारीरिक संरचना के पाठ को ये कहते हुए नहीं बढ़ाया  की  ये परीक्षा में नहीं आएगा इसे मत पढ़िए उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया की ये सब बेकार का पाठ है जबकि हम सब बच्चे नहीं थे और हम गर्ल्स स्कूल में थे तो भी उन्होंने इंकार कर दिया क्योंकि वो उसे पढ़ाने में असहज महसूस कर रही थी | इसी तरह जब मैं पत्रकारिता का कोर्स कर रही थी तो हमारे एक टीचर जो अपना सारा ज्ञान सारा समय अपने सारे सोर्स स्वार्थ भाव से विद्यापीठ की राजनिती में खर्च करते थे एक दिन वो गलती से हमारी क्लास में आ गये ( पूरे साल उन्होंने जितने क्लास हमारे लिए उसे उंगलियों पर गिना जा सकता था ) से एक सवाल पूछ बैठी जो था तो हमारे कोर्स से संबंधित पर व्यवहारिक ज्ञान से था ना कि किताब से तो उनका  जवाब था की जो परीक्षा के लिए जरूरी है वो पढ़ा लीजिये ऐसे ज्ञान के लिए तो पूरी उम्र पड़ी है | इतना अच्छा ज्ञान पा कर तो हम धन्य ही हो गये और हमें अपने पढ़ने का असली लक्ष्य मिल गया उस दिन |                                                   
                          पर आप को बताओ की कई ऐसे भी टीचर है जो वास्तव में कोर्स के उन हिस्सों को नहीं पढ़ाते है जिनमे से परीक्षाओ में सवाल नहीं आते है या बहुत कम आते है | अब क्या कहा जाये ऐसे टीचरों को वो अपने स्वार्थो के लिए बच्चों के ज्ञान उनकी सोच उनके आत्मविश्वास उनके भविष्य और देश के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे है | ऐसे ही शिक्षकों ने हमारे देश के गुरु शिष्य परंपरा को ख़त्म  कर दिया है अध्यापन को सिर्फ एक प्रोफेसन बना कर रख दिया है जिसका ख़ामियाज़ा हम सभी को भुगतना पड़ रहा है |
                                   एक अच्छा टीचर गुरु किसी बच्चे के जीवन में कितने बदलाव ला सकता है हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते है एक चाणक्य जैसे गुरु ने चन्द्र गुप्त जैसे सामान्य से इन्सान को हमारे इतिहास में एक उच्च स्थान दिला दिया ऐसे हजारों उदाहरण हमारी सभ्यता में है | अच्छा टीचर ना केवल छात्रों को ज्ञान देता है साथ ही उनको भविष्य की राह दिखता है उसमे एक नई सोच पैदा करता है उनका आत्मविश्वास बढ़ता है | आज मैं अपने ऐसे ही एक टीचर को प्रणाम कर रही हुं जिनके कारण मुझमे इतना आत्मविश्वास आया | डाक्टर  मुनमुन मजुमदार जे एन यू से गोल्ड मेडिलिस्ट ग्रेजुएशन में हमारी पोलटिक्स की टीचर जिन्होंने पहली बार हमें बताया की स्कूल कॉलेज में पढ़ाई का अर्थ सिर्फ कोर्स ख़त्म करना और परीक्षा में अच्छे नंबर लाना ही नहीं होता है उससे कही ज्यादा है उन्होंने हमेशा कोर्स के साथ ही राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय राजनिती के बार में हमें इतना ज्ञान दिया की उससे ना केवल हमारी जानकारी बढ़ी हमारा आत्मविश्वास बढ़ा और वो ज्ञान आज भी हमारे प्रोफेशन में काफी काम आता है साथ ही एक इच्छा जागृत की ज्यादा से ज्यादा जानकारी पाने की | ऐसे सभी गुरुओं टीचरों का हमारा नमन: |

19 comments:

  1. शानदार लेख ...... सही समय पर
    ... फिर से "मेंगो पीपल" [आम आदमी ] की सच्चाई उजागर करता हुआ

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  2. आपके अनुभवों ने मुझे अपने अध्यापको की याद दिला दी | आपने सही कहा है की एक अध्यापक बच्चो का भविष्य सुधार भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है |

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  3. ऐसे शिक्षको को ही शिक्षा की आवश्यकता है |

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  4. बेहद शानदार लेख

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  5. सार्थक और सराहनीय प्रस्तुती..शानदार विवेचना...वास्तव में शिक्षा का स्तर अब अशिक्षित से भी नीचे चला गया है ,इस देश के प्रधानमंत्री को भी अपनी पद की परी है बाकि साडी व्यवस्था जाय भाड़ में...

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  6. अंशुमाला जी आपने शानदार और जानदार लेख लिखा है. मैंने आपका पोलिओ की दवा पिलाने से डर रहे मुस्लिमों पर लिखा लेख भी पढ़ा था. आप वास्तव में ब्लॉग्गिंग माध्यम का अच्छा उपयोग कर रही हैं. मैं जब अपने ब्लॉग पर उल्टा सीधा लिखता हूँ तब भी आप अपनी टिप्पणियों से मेरी पोस्ट का स्तर ऊचा कर जाती हैं. इस सब के लिए धन्यवाद.

    अब आपके वर्तमान लेख की बात करू तो यही कहूँगा की मेरे पास ये जो इतना वक्त है ब्लॉग्गिंग करने का वो सब हमारे छिछकों की देन हैं. अगर मुझे अच्छे शिक्षक मिलते तो शायद मैं कहीं किसी लैब में कोई प्रयोग कर रहा होता या कहीं किसी मरीज का इलाज कर रहा होता क्योंकि जब मैं शिक्षा ग्रहण कर रहा था तब मैं ज्ञान के लिए पूरी तरह से अपने शिक्षकों पर निर्भर था जो की असल में छिछक थे अतः मैं अपना रास्ता भटक गया. असल में मेरे माता पिता पूरी तरह से निरक्षर थे. पर आज जब मेरे बच्चे पढ़ रहे हैं तो मैं इन व्यवस्था गुरुओं के सहारे बिलकुल भी नहीं हूँ. पर फिर भी दिल में उन मासूम बच्चों की चिंता रहती हैं जिनके पास मेरी ही तरह पढ़ने और सही राह दिखाने के लिए सिर्फ इन व्यवस्था गुरुओं का ही सहारा है..... क्या करें...

    आपका लेख शानदार है....कहीं ना कहीं मेरे दिल को छू गया....

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  7. विचार शून्य जी

    तारीफ के लिए शुक्रिया | मेरे अलावा काफी लोग है जो इस माध्यम का उपयोग कुछ उपयोगी कामो के लिए कर रहे है हम सभी का ये एक छोटा प्रयास है यदि इससे दो चार लोगों को भी फायदा हो रहा है तो लिखना सार्थक मानूगी | अच्छी टिप्पणिया तभी मिलती है जब अच्छा लिखा जाये |

    सरकार और शिक्षा संस्थाये सिर्फ क्वानटीटी पर ध्यान दे रही है क्वालिटी पर नहीं | ख़राब क्वालिटी की शिक्षा शिक्षा न देने के बराबर ही होती है | ख़राब शिक्षक द्वारा होने वाले नुकसान का दर्द आपकी तरह कइयो को है जिनकी वजह से उनकी भविष्य की राह बदल गई |
    मुझे याद है की एक बार आप ने भी अपने बच्चो के शिक्षको पर एक पोस्ट लिखी थी और कुछ इस तरह की ही चिंता जाहिर की थी |

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  8. ..
    गुरु ब्रम्हा , गुरु विष्णु, गुरु देवो माहेश्वर ,
    गुरु साक्षात पारब्रम्ह , तस्मै गुरुवे नमः।

    I agree with vichaar Shonya ji, You are a wonderful writer.

    With best wishes,
    Divya [zeal]
    ..

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  9. सही बात कह रही हैं आप। जबसे स्वास्थ्य एवम शिक्षा ’सेवा वर्ग’ की बजाय ’व्यापार वर्ग’ में शामिल हो गये हैं, प्राथमिकतायें बदल गई हैं। ज्ञानार्जन की जगह अंकार्जन अधिक महत्वपूर्ण हो गये हैं। लेकिन शिक्षकों के साथ अभिभावक वर्ग भी,बराबर का बल्कि ज्यादा जिम्मेदार है इस परिवर्तन का। मेरा बेटा शायद सैकंड क्लास में ही था, हम पी.टी.एम. में गये थे। उसकी टीचर से जब मैंने यह कहा कि अगर बच्चे में आप को कोई कमी दिखे तो उसे एक इंसान के रूप में सुधारना सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिये न कि इस रैट रेस का हिस्सा बनने के उद्देश्य से, वो बहुत हैरान हुई। कहने लगी कि पिछले कई साल में पहले पेरेंट्स आये हैं जो टीचर पर इतना ऐतबार कर रहे हैं, नहीं तो यहां तो हमेशा यही सुझाव और शिकायते आती हैं कि हमारे बच्चे को कुछ न कहा जाये और हमें हमारा बच्चा सिर्फ़ और सिर्फ़ टॉप पर चाहिये।
    हम बच्चों को डाक्टर, इंजीनियर तो बनाना चाहते हैं लेकिन इंसान बनना नहीं सिखा रहे हैं।
    मेरे कहने या न कहने से आपका लेखन सार्थन निरर्थक नहीं होने वाला है।
    आप जो कर रही हैं करती रहें, शुभकामनायें।

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  10. संजय जी

    आप ने सही कहा अंको की रेस की सुरुआत भले ही शिक्षको ने की हो पर उसे बढ़ावा देने का काम माँ बाप ने ही किया है | यदि उन्होंने इसका विरोध किया होता तो आज ये हमारे लिए समस्या नहीं बनता |

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  11. .
    .
    .
    अंशुमाला जी,

    सही लिखा आपने, आज शिक्षक वह लोग बन बैठे हैं जो किसी और चीज में कामयाब नहीं हो पाये...जबकि शिक्षक वह होना चाहिये जिसका Passion हो शिक्षा देना...She should be able to ignite the uninitiated, raw minds towards a cause...


    ...

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  12. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  13. apka lekh padhkar mujhe bhi ek kissa yaad aa gaya.jab main 8th me tha.is saal mujhe bhi teacher's day par teacher banne ka mauka mila.mujhe teacher banaakar 7th me bhej diya gaya science padhane ke liye.phir kya tha?wahaan ke bachchon khaskar ke ladkiyon ke oot pataang sawaal sunkar mera dimaag kharab ho gaya.tab maine bhi ye hi kaha ki inme se kuch bhi exams me nahi aane wala.jaan churrane ke liye maine ek bachche ko khada kiya aur use book(wo bhi science ki)me se jaan bujhkar sabse lamba chapter nikaalkar reading ke liye de diya.meri ummeed ke mutabik is bachche ne aisee kachua-chaap reading kee,ki ek chapter me hi pura aadha ghanta hi kha gaya.itne me period lag gaya tab kahi jaakar chain ki saana le saka.

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  14. lekin iska matlab ye nahi hai ki maine apke lekh ki ghambheerta ko nahi samjha.par pata nahi kyo aaj ye baat yaad aa hi gai. lekin mujhe lagta hai ki bahut se teacher aisa karte honge jaisa maine bachchon ke sath kiya :):)

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  15. राजन जी

    आप ने जो किया वो बचपन में किया एक दिन के लिए किया और आप शिक्षक भी नहीं थे निश्चित रूप से उससे किसी को कोई नुकसान भी नहीं हुआ | लेकिन यदि कोई शिक्षक ऐसा करे तो वो नुकसान देह है छात्रो के लिए | वैसे आप सही कह रहे है कुछ टीचर ऐसे भी होते है जो क्लास में सिर्फ किताब को पढ़ाते है या छात्रो से उसे पढ़ने के लिए कहते है | यदि किताबो को सिर्फ पढ़ कर ही बच्चे सब कुछ समझ सकते तो फिर टीचर की जरुरत ही क्या होती सब सिर्फ किताबो से ज्ञान पा लेते |

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  16. bahut hi sahi aur sateek vishay ko chuna hai aapne.....yehi halat hain.....shandar post ke liye aabhar

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  17. main jab bhi yaha aata hoon to mujhe bahut achha lagta hai ki koi hai jo aaj ki haqiqat se humlogo ko awgat karata hai....education ki yahi sthiti hamare bihar ki gaon mein bhi hai...kam se kam is cheej se to khilwad nahi karna chahiye..

    kisi ne kaha hai "bina siksha ke insaan bina punch wale jaanwar ke saman hai"

    sachmuch ye ek gambhir wisay hai...

    aapko aise lekho ke liye ek baar phir dhanywad anshumala ji...

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