November 30, 2010

देखिये लालू का खास कंप्यूटर - - - - - -mangopeople

                      
    बिल गेट्स से लालू के आग्रह किया की उन्हें ऐसा कंप्यूटर बना के दे जिसमे अंग्रेजी नहीं उनकी भाषा में काम किया जा सके जो उनके समझ में आये | लालू के दोस्त बिल्लू ने उनके लिए खास उनकी भाषा में बना एक कंप्यूटर भेज दिया जरा आप भी उस कंप्यूटर के दर्शन करे |      











सभी फोटो ई मेल से प्राप्त हुई

November 29, 2010

यदि कोई व्यस्क सामग्री सीधे मेरे डैश बोर्ड पर आ जाये तो मै क्या करू , पाठक राय दे - - - - - - - mangopeople

                                 पूरा वाक्या क्या हुआ पढ़िये फिर अपनी राय दीजियेगा | चुकी मुझे घूमा फिर कर बात करना नहीं आता है और हर बात सीधे कहने कि आदत है तो यहाँ भी वही करने वाली हुं |  इसलिए यदि इस पोस्ट में किसी का नाम आ रहा है तो उसे व्यक्तिगत रूप से ना ले | चुकी इस तरह का मेरा पहला अनुभव है और बात को समझाने के लिए उनकी पोस्ट का नाम लिया जा रहा है | यदि इससे उन्हें किसी प्रकार की ठेस लगे तो आरम्भ में ही माफ़ी मांग ले रही हु | आशा है आप मेरे पूरे लेख को पढ़ कर मुझे समझेंगे |
 चुकी मैं ब्लॉग पर ऐसा कुछ नहीं करती की उसे अपने घर वालो से छुपाना पड़े इसलिए मैं उसे ना केवल अपने पति को दिखाती हुं बल्कि अपने भाई बहन और मम्मी को भी देखने के लिए भेजती रहती हुं चाहे मेरी पोस्ट हो या किसी और की या कोई अच्छी टिप्पणी | रविवार को अपने पति को अपनी पोस्ट के अलावा कुछ दूसरी अच्छी पोस्ट और टिप्पणियां दिखाने की आदत है | उसी के लिए कल जब अपना ब्लॉग खोला तो अपने डैश बोर्ड पर आये सभी ब्लॉग के पोस्ट में से एक ब्लॉग पर निहायती ही अश्लील फोटो लगी थी देख कर जितना मुझे आश्चर्य हुआ उतनी ही शर्मिंदगी भी हुई क्यों की मेरे पति मेरे साथ बैठे थे और वो देख रहे थे | उनके कहने से पहले ही मैंने कहा की ये बेफकुफी का काम किसका है देखती हुं अभी सब इसका विरोध करेंगे और इसे हटा लिया जायेगा | देखा ब्लॉग सामूहिक था और उस पर पोस्ट का लिंक था वहा गई वहा कोई कविता थी जिसको पढ़ने के बजाये मैंने सीधे टिप्पणियों की तरफ कर्सर घुमाया इस उम्मीद में की वहा विरोध का ढेर लगा होगा और उसे दिखा कर मैं पति देव के सामने ये बता सकूँ की किसी ने यु ही लगा दिया होगा सबके मना करने के बाद अब निकाल देगा थोड़ी ईज्जत तो बच जाये | लेकिन वहा निराशा ही हाथ लगी बस दो टिप्पणियां मिली फोटो पर आपत्ति दर्ज कराने वाली |   
                                                     वो सब देख कर बहुत अजीब लगा की अब तक जिस ब्लोगिंग को मैं अपने पति के सामने बहुत वैचारिक दिमागी विद्वानों वाली बात कह कर बड़ाई करती थी एक फोटो ने उस पर पानी फेर दिया था | मैं बार बार उनको सफाई देने लगी की नहीं यहाँ ऐसा नहीं होता है | उन्होंने ने कहा जाने दो इतना सफाई क्यों दे रही हो ये तुमने तो नहीं किया है हर जगह हर तरह के लोग होते है | मुझे शर्मिंदा और उलझन में देख कर उन्होंने ये बात तो कह दी पर मेरे मन से वो शर्मिंदगी गई नहीं | लग रहा था की उनके मन में ब्लॉग लेखन के प्रति जो सम्मान जनक स्थान बनाया था वो एक झटके में कही ख़त्म तो नहीं हो गया , थोड़ी खीज आ रही थी |
                               अब ऊपर लिखी बातों को एक तरफ रख दीजिये | मैं हमेशा से मानती रही हुं कि हम ब्लॉग पर कुछ भी लिख सकते है ये अपनी बात कहने का एक स्वतंत्र माध्यम है और आज भी उसी पर कायम हुं तो उस ब्लोगर ने अपने ब्लॉग पर जो किया वो उसे करने के लिए स्वतंत्र है मैं उस पर यहाँ कुछ नहीं कहने वाली हुं | लेकिन एक पाठक के नाते ये हमारे भी अधिकार है कि हम क्या पढ़ना चाहते है उस बारे में हमारे पास भी अधिकार हो | जैसे मैं अपनी बात करूँ तो मैं उन ब्लॉग पर नहीं जाति हुं जहा केवल धर्म का प्रचार या धार्मिक बात हो रही है ऐसे पोस्ट साफ दिख जाते है | मैं उनको ना तो पढ़ती हुं और ना ही उन्हें फालो करती हुं  | दूसरा है व्यस्क सामग्री और लेखन वाले ब्लॉग अभी तक मैंने तीन ब्लॉग इस तरह के देखे है पर पढ़ा नहीं है क्योंकि उस पर पहले ही गूगल द्वारा साफ चेतावनी दी जाति है कि यहाँ पर आप को क्या मिलने वाला है | लेकिन ऐसे ब्लॉग जिस पर इस तरह कि कोई चेतावनी नहीं दी गई है और हम उस के फालोवर बन जाते है यदि उस पर इस तरह की चीजें पोस्ट हो तो हम क्या कर सकते है | क्या ये ठीक नहीं होगा की इस तरह के खुल कर लिखने वालो को अपने ब्लॉग पर इस तरह की चेतावनी दी जाये की उस पर क्या प्रकाशित होने वाला है या उस पर व्यस्क चीजे भी प्रकाशित हो सकती है |
                         
                                              ये ठीक है की सभी अपने ब्लॉग पर कुछ भी लिखने और प्रकाशित करने के लिए आज़ाद है आप देख समझ कर उस ब्लॉग को खोलिए पर यहाँ तो ऐसा कुछ था ही नहीं मैंने तो अपना ब्लॉग ओपन किया था और मेरे ही डैश बोर्ड पर वो आ रहा था तो बोलिये मैं क्या कर सकती हुं | यदि लेखन अश्लील हो तो आप उसे दो लाइन पढ़ कर छोड़ सकते है नजर अंदाज़ कर सकते है पर फोटो तो सीधे आप के सामने हाज़िर हो जाता है आप उसे कैसे नजर अंदाज़ कर सकते है |
                                        
                                                मेरे लिए ये काफी डराने वाला अनुभव था क्योंकि मैं जब अपने मायके जाती हुं तो वहा भी सबके सामने अपना ब्लॉग ओपन करती हुं सबको दिखाती हु यदि कभी ऐसी कोई फोटो मेरे मम्मी पापा या छोटे भाई बहन के सामने आ जाये तो कितनी शर्म आएगी अपने ब्लोगिंग पर या कभी किसी सार्वजनिक इंटरनेट पार्लर में जा कर ये स्थिति सामने आई तो |                 
                        मैं यहाँ ये भाषणबाजी नहीं करुँगी की लोगो को क्या प्रकाशित करना चाहिए क्या नहीं ये उन्हें क्या लिखना चाहिए क्या नहीं | मेरा एक सामान्य सा सवाल है जिस पर आप सभी राय दे की क्या ये ठीक नहीं होगा की जो ब्लॉग स्वामी अपने ब्लॉग पर इस तरह की सामग्री प्रकाशित करना चाहता है उसे इस बात की पहले ही चेतावनी दे देनी चाहिए ताकि कोई फालोवर बनने से पहले समझ जाये की कौन सी सामग्री उसके डैश बोर्ड पर पहुचने वाली है | कम से कम ब्लॉग स्वामी ये तो कर ही सकते है कि ऐसी फोटो अपने ब्लॉग पर इतना पहले ना लगाये की वो सीधे डैश बोर्ड पर दिखने लगे | 
             
                           इसलिए सभी छोटे बड़े नए पुराने ब्लोगरो से निवेदन है की ये मुद्दे पर अपनी राय अवश्य दे भले एक दो लाइन की ही ताकि कम से कम मै अपने ब्लोगिंग को अपने घर में सम्मान दिला सकू |

 निवेदन ___  इस निवेदन को निवेदन के साथ आदेश भी समझे और केवल मेरे उठाये मुद्दे पर ही टिप्पणिया करे , अपनी निजी दोस्ती दुश्मनी दिखाने का मेरे ब्लॉग को लड़ाई का अड्डा ना बनाये | ऐसी टिप्पणिया हटा ली जाएँगी | इसलिए बिना कुछ गलत कहे मुद्दे पर टिप्पणिया दे |


       

November 25, 2010

हमारे लोकतंत्र के लिए यह एक शुभ संकेत है - - - - - - - - -mangopeople

सबसे पहले आप से अपना बिहार से जुड़ा अनुभव बताती हुं | बिहार का जिक्र हो और वहा के पहले के   ( अब का पता नहीं )  बदहाल सड़को को जिक्र ना हो ये नहीं हो सकता | हम अपने परिवार के साथ भुनेश्वर जा रहे थे सड़क के रास्ते से हम पहले भी सड़क के रास्ते काफी घूमते फिरते थे सो हम सब ने हमेशा की तरह पहले सारा प्लान बना लिया, चुकी हमें बिहार की सड़को का अंदाजा था सो तय हुआ था कि वहा पर तो गाड़ी ४० से ऊपर की स्पीड से नहीं चलेगी सो पहले से तय कर ले की रात में किस किस शहर में रुकना है | पर जब हम बिहार में प्रवेश किये तो पता चला की वहा तो आप २० की स्पीड से ऊपर चल ही नहीं सकते थे और इस तरह के रास्ते कई किलोमीटर तक होते थे | हमारा बनाया सारा प्लान बेकार हो गया हम रात तक उन शहरों तक पहुंच ही नहीं सके जहा पर हमने रुकने का सोचा था और हमें हाइवे पर बने एक गंदे से होटल में रात डर डर कर गुजरना पड़ा | ये था सड़को का हाल फिर कानून व्यवस्था का हाल देखिये |  वापसी के समय वही बात हुई रात एक बजे हमें पुलिस ने रोका और पूछ ताछ शुरू की और सीधा कहा की आप इतनी रात को बाहर क्यों है आप को पहले ही किसी शहर में रुक जाना था यहाँ इतनी रात को सड़क पर परिवार के साथ रहना ठीक नहीं है | धनबाद वहा से कुछ दूरी पर था हमने उन्हें बताया की हमारे रिश्तेदार वहा है हम उन्ही के घर रुकने वाले है ( ऐसा था नहीं ) इसलिए किसी और शहर में नहीं रुके | उसने कहा की आप तुरंत यहाँ से जितनी जल्दी हो धनबाद पहुचिये | बोलिये पुलिस को भी ये बाते कहनी पड़ रही थी ,वो लालू राज का समय था |

बिहार चुनावों में नितीश कुमार की जीत कोई अप्रत्याशित नहीं थी सभी को इसका अंदाजा था लेकिन शायद ही किसी को इतने बड़ी जीत का अंदाजा रहा होगा | कहा जा रहा है इसका कारण है उनके द्वारा बिहार में किया गया विकास कार्य और जनता ने उसी को वोट किया है | एक लम्बे समय से भारत में होने वाले हर चुनावों में जाति और धर्म एक बड़ा कारक रहा है | सारी चुनावी रणनीति इसी के आस पास बुनी जाती थी | पर अब ये बदल रहा है कई चुनावों में इसकी एक झलक दिख रही है मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ ,दिल्ली गुजरात ,आंध्रप्रदेश और अब बिहार में जनता ने जाति और धर्म से ऊपर उठ कर विकास के नाम पर वोट दिया है | जिन नेताओं ने काम किया प्रदेश का विकास किया वो लौट कर सत्ता में वापस आये और जो केवल जाति धर्म के आधार पर चुनावों में आये और काम कुछ नहीं किया वो सत्ता से बाहर हो गए जैसे की राजस्थान में |
ये हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए एक अच्छी खबर एक शुभ संकेत है | नहीं तो जाति और धर्म के समीकरण ने देश के विकास को काफी अवरुद्ध कर रख था | जनता को जाति और धर्म के नाम पर डरा डरा कर विकास के मुद्दों से ध्यान हटा दिया जाता था | कभी अगड़ी जातियों का डर दिखा कर कभी बहुसंख्यको का डर दिखा कर वोटों का ध्रुवीय करण किया जाता था और इसी गणित से, बिना काम किये ही लोग चुनाव जीत भी जाते थे |
पर कहते है ना की आप किसी को एक बार बेफकुफ़ बना सकते है  दो बार बना सकते है बार बार भी बना सकते है पर आप किसी को हमेशा बेफकुफ़ नहीं बना सकते है | अभी तक जनता बेफकुफ़ बनती रही पर अब उसे समझ  आ रहा है कि वो इन चक्करों में पड़ कर क्या खो रही थी अपना ही नहीं पूरे देश का नुकसान करा रही थी | पर अब नेताओं को समझ लेना चाहिए की जनता तो उनके सारे जाति धर्म वाले चक्करों से बाहर आ गई है और अब उन्हें प्रदेश और देश के विकास का काम करना ही पड़ेगा यदि वो दुबारा सत्ता में आना चाहते है तो | अब उनके गणित लोगों को समझ आने लगे है और लोग उनका हल भी जान गये है और अपने वोट देने की ताकत को भी पहचान गये है |

ये तो हुई जनता की बात पर क्या हमारे राजनीतिक दल और नेता इस जात पात और धर्म सम्प्रदाय की सोच से बाहर निकल पाए है शायद नहीं , तभी तो क्षेत्र देख कर उम्मीदवार खड़े किये गए  जिस क्षेत्र में जिस जाति के लोग ज्यादा है जिस धर्म के लोग ज्यादा है वहा पर उसी धर्म या जाति के लोगो को उम्मीदवार बनाया गया क्यों ? शायद हमारे नेता अभी इससे बाहर नहीं आ पाए है | चलिए उम्मीद करते है कि जनता ने अब नेताओ का ये भ्रम तोड़ दिया होगा की वो जनता को हमेसा बेफकुफ़ बना सकते है | जनता जरा सयानी होने लगी है और अब अपना हक़ लेना सिख रही है | हमारे लोकतंत्र के लिए यह एक शुभ संकेत है

एक बात नितीश जी के लिए कि पिछले पांच साल काम करके इन चुनावों को जितना बड़ा आसन काम था क्योकि उनके काम की और राज की तुलना लालू के किये कामो ( जो की उन्होंने कभी किया ही नहीं ) और उनके राज करने के तरीके ( जो उनको आता नहीं था ) से होती थी किन्तु अब उनकी तुलना और उनके किये काम की समीक्षा देश के अन्य राज्यों से होगी सो वो अब पहले से ज्यादा कमर कस कर तैयार हो जाये आने वाले पांच साल पिछले पांच साल से ज्यादा मुश्किल होने वाले है |

चलते  चलते  एक और मजेदार बात हुई एक तरफ इस बार महिलाओ को वोटिंग प्रतिशत पुरुषो से ज्यादा था दूसरी तरफ सबसे बड़ी और चर्चित महिला उम्मीदवार राबड़ी देवी दोनों जगहों से चुनाव हार गई | मतलब !!! अब मै क्या कहू आप खुद सोच ले अपनी समझ से |

November 23, 2010

हम सभी भ्रष्ट है ,एक री- पोस्ट - - - - - - -mangopeople

आज कल हम सभी में अचानक से एक बार फिर भ्रष्टाचार को लेकर एक नया जोश भर गया है और उसी जोश में हम नेताओं को जी भर के कोस रहे है पर क्या हमारा दामन इतना पाक साफ है की हम केवल उनको भ्रष्ट कह सके |
मेरी एक पुरानी पोस्ट का एक रिठेल क्या करे माहौल आज कल इसी का है |


 अपने देश में (और अपने पड़ोसी देशों में भी )अगर ये सवाल किया जाये की सबसे भ्रष्ट कौन है तो सबकी  उंगलिया नेताओं की तरफ ही उठेगी | हर आम आदमी देश  में व्याप्त भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद की जड़ नेताओं को ही मानता है | हमारे अनुसार इन नेताओं के किये भ्रष्टाचार का नतीजा हमारे और आप जैसे बेचारी, भोली भाली और ईमानदार आम जनता को भुगतना पड़ता है | हम सभी को लगता है कि यदि  नेता भ्रष्टाचार और परिवारवाद छोड़ दे  तो सारी समस्या ही समाप्त हो जाये पर क्या वास्तव में  ऐसा  है क्या वास्तव में हमारी और आप के जैसी  आम जनता भोलीभाली और  ईमानदार  है | चुनावों के  समय हम में से ज्यादातर अपना वोट अपने ही धर्म,जाती और बिरादरी के लोगो  को किस आधार पर देते है क्या  हमारी   सोच ये नहीं होती की धर्म जाती बिरादरी और प्रांत के नाम पर हम सभी कभी भी अपना काम नेताओं से आसानी से  करा सकते है और नेता अपने धर्म जाती के लोगों को फायदा पहुचने का काम करेगा| क्या ये सोच ईमानदार है क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है | जो आम आदमी हर समय नेताओं को कोसता रहता है वो खुद भी अपने निजी फायदे के लिए नेताओं के पास दौड़ा चला जाता है |  कोई टेंडर पास करना हो किसी घर  दुकान आदि का ग़ैरक़ानूनी नक्सा पास करना हो किसी वाजिब पुलिस केस से छूटने से लेकर बच्चों के स्कूलों में दाखिले तक के  लिए   नेताओं  से सिफारिसे  मागी  जाती  है | यहाँ  तक  की  लोग  अपने  पारिवारिक  विवाद और बँटवारे जैसे निजी झगड़ो में भी  नेताओं कि  नज़दीकियों का फायदा उठाते है, और ये सारे काम  किया जाता है  नेताओं  को  पैसा  दे  कर या फिर   उनसे  दूर या पास की जान पहचान  के बल  पर | क्या  इस तरह के निजी लाभ के लिए नेताओं  से काम  करना भाई भतीजावाद और भ्रष्टाचार को बढावा देना नहीं है क्या इसके लिये हम जिम्मेदार नहीं है |  नेताओं को भ्रष्ट और  खुद को ईमानदार बताने वाला हर आम इन्सान किसी विवाद  में फसने  पर और मुसीबत  में पड़ने  पर  यही  सोचता  है की  काश  हमारी   भी  किसी सांसद मंत्री  से  पहचान   होती   तो  हम  अपना  काम  आसानी  से  करा  लेते  या  विवाद  से  जल्दी  छुटकारा पा जाते |  ऐसा  नही   है  कि   हर  बार  लोग  ग़ैरक़ानूनी  काम  के  लिये   ही  नेताओं  के  पास  जाते  है  कई  बार  तो  क़ानूनी  रूप  से  ठीक  काम  के  लिये  भी किसी पोलिटीसियन  के  पास  महज  इस  लिये  चले  जाते  है  ताकि हमको कोई  परेशानी  न  हो  और हमारा काम  जल्द से जल्द हो जाये | जब हमारा काम हो जाये तब तो नेता अच्छा है नहीं तो भ्रष्ट है |
हम सोचते है कि यदि हम नेता होते तो हमेशा ईमानदारी से काम करते और सारा समय देश कि सेवा और आम जनता कि भलाई  में गुजार देते नेता तो आम आदमी होता नहीं इसलिए  वो हमारी परेशानी को नहीं समझता है |  तो सवाल उठता है कि क्या हर नेता खास बन कर ही पैदा होता है | मुँह में चाँदी का चम्मच ले कर पैदा हुआ लोगों को छोड़  दे तो राजनीति  में ऐसे लोगों की भी कोई कमी नहीं है जो कभी हम लोग जैसे आम आदमी ही थे और संघर्ष करके सत्ता के ऊँचे पायदान पर पहुचे | तो क्या वो सारे नेता दूसरे खानदानी (अर्थात जिसका  पूरा खानदान ही नेतागिरी करता हो दादा से लेकर पोता तक)  और पैसे वाले नेताओं से अलग है क्या वो भ्रष्टाचारी नहीं है वो भाई भतीजावाद नहीं करते | सभी करते है किसी में कोई फर्क नहीं है क्योंकि हम सभी अंदर से बेईमान है बस हम सभी  को मौका चाहिए  और मौका मिलते  ही सभी सिर्फ अपने निजी फायदे की बात सोचते है चाहे वो नेता हो या हमारे और आप जैसा  आम आदमी | इसलिए आगे से नेताओं सांसदों और मंत्रियोंकी  तरफ उँगली  उठाते समय ये ज़रूर ध्यान रखियेगा की खुद हमारी तीन उंगलिया हमारी ओर इशारा कर रही है | 
 हमारा देश महान सौ में से निन्यानबे बेईमान  

November 18, 2010

अमेरिका और उसकी नीतियाँ हम और हमारी नीतियाँ - - - - - - mangopeople

                     जैसा की उम्मीद थी अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के स्थाई सदस्यता की दावेदारी का समर्थन किये अभी हफ्ता भर भी नहीं हुआ की अमेरिका ने वही बात कहना शुरु कर दिया की सुरक्षा परिषद सुधारों पर जल्द कुछ होने वाला नहीं है | ये पहले से ही तय था की यही होने वाला है ओबामा ने भारत में जो कहा उसका लब्बो लुआब यही था की जब कभी जी हा जब कभी सुरक्षा परिषद के सदस्यों की संख्या बढाई जाएगी और सदस्यों को चुनने का समय आयेगा तो वो भारत का समर्थन करेगा अब उसने साफ कर दिया की पहले ऐसा कुछ होने तो दीजिये मतलब सुरक्षा परिषद के सदस्यों की संख्या बढ़ने तो दीजिये  तब ना आप का समर्थन करेंगे  यानी यह की ना नौ मन तेल होगा ना राधा गौने जईयना सुरक्षा परिषद के सुधारों को लागू ही नहीं होने देंगे तो समर्थन की नौबत ही नहीं आएगी |
अब इस बात पर बहुतों को गुस्सा आयेगा कि देखा एक बार फिर अमेरिका ने हमें बेफकुफ़ बनाया हमसे हजारों नौकरियाँ अपने देश के लिए ले गया और बदले में हमें दिया कोरा आश्वासन वो भी बाद में झूठा निकला |  वो केवल अपने बारे में ही सोचता है आतंकवाद के नाम पर वो अपनी निजी लड़ाई लड़ रहा है इसी आतंकवाद के नाम पर दो देशों को बर्बाद कर दिया है  दुनिया पर दादा गिरी करता है | उसकी नीति हमेशा से दोहरी रही है अपने लिए कुछ और और दूसरों के लिए कुछ और आदि आदि आदि | पर मुझे नहीं  लगता है कि उसकी नीतियाँ दोहरी है मेरे समझ से उसकी नीतियाँ सिर्फ उसके देश के हित में है | क्या दुनिया का कोई भी देश अपनी नीतियाँ दुनिया के हित को ध्यान में रख कर बनाता है यदि नहीं तो फिर अमेरिका से ये उम्मीद क्यों की जाये की वो दुनिया के हित सुख शांति को ध्यान में रख कर अपनी नीतियाँ बनाये | उसकी नीतियाँ अपने देश के विकास उन्नति और फायदे के लिए होंगी | अब ये तो हमारे देश के नीति निर्माताओ की गलती है कि हम अपने देश के हितानुसार अपनी नीतियाँ क्यों नहीं बना पाते है अब इस गलती के लिए हम अमेरिका को तो नहीं कह सकते है कि भायो हमारे नेता तो हमारे देश के लिए कुछ नहीं कर रहे है तू ही हमारे लिए कुछ कर |
                 
                    अब सवाल ये है की फिर वो दादा गिरी क्यों करता है दुनिया के हर मामलों में अपनी टाँग क्यों अडाता है हर जगह अपनी क्यों चलता है यदि वो ऐसा करता है तो उसे सभी कमजोर देशों के लिए कुछ करना चाहिए सिर्फ अपने फायदे वाले देशों के लिए ही कुछ क्यों करता है | तो निश्चित रूप से कोई भी देश अपने आप को सैनिक तकनीकी और कूटनीतिक रूप से ज्यादा शक्तिशाली इसीलिए बनाता है ताकि दुनिया के दूसरे देश उस पर बुरी नजर डालने की हिम्मत ना कर सके और इसकी चाहत तो सभी देश रखते है और अपने सामर्थ्य के हिसाब से खुद को शक्तिशाली बना रहे है | भारत को ही लीजिये हम ढाई बार पाकिस्तान से युद्ध लड़ चुके है क्या कहा ढाई का मतलब नहीं समझ आया पहला 65 दूसरा 71 और फिर करगिल | उम्मीद है करगिल  को भूले नहीं होंगे हमारे सैंकड़ो जवान शहीद हुए थे वो युद्ध था उसे घुसपैठ या झड़प की संज्ञा देने की भूल ना करे | पर अब सैनिक रूप से हम इतने सामर्थवान हो चुके है कि अब पाकिस्तान हम पर सीधे हमला करने की सोच भी नहीं सकता है पर हम अभी भी इस मामले में चीन से काफी पीछे है और निरंतर उसके बराबर बनने का प्रयास कर रहे है | रही बात दादा गिरी की तो जी ये इल्जाम तो दक्षिण एशिया में हम पर भी लगता है की हम सार्क देशों के ऊपर दादा गिरी करते है ७१ में हम पर भी आरोप लगा था कि हम दूसरे के आतंरिक मामलों में अपनी टाँग ( सैनिक ) अड़ा रहे है और अपने फायदे के लिए पाकिस्तान के दो टुकड़े करा दिया | वो अलग बात है की हम उसका उतना फायदा नहीं उठा पाते है और ना ही उस वर्चस्व को निरंतर बरकरार रख पाते है जितना की इसका फायदा अमेरिका उठा लेता है | हमने बांग्लादेश को पाकिस्तान से आज़ाद होने में सहायता की वहा के लोगो को पाकिस्तान के सैन्य जुल्मो से बचाया लेकिन आज स्थिति क्या है उसी बांग्लादेश में फिर से पाकिस्तान की घुसपैठ बढ़ गई है और हमारे ही खिलाफ वहा भी आतंकवादी गतिविधियाँ शुरू हो गई है | यही हाल धीरे धीरे हमारे एक और पड़ोसी नेपाल का भी होता जा रहा है | एक समय था जब हम दो सगे भाइयों की तरह थे वहा पर लोकतंत्र की स्थापना में हमारा भी योगदान था पर आज वहा क्या हो रहा है | इस बात से फर्क नहीं पड़ता की वो अब एक हिन्दू राष्ट्र ना हो कर धर्मनिरपेक्ष देश बना गया है लेकिन जिस तरह से वहा चीन का वर्चस्व बढ़ा रहा है वो हमारे लिए ठीक नहीं है | वहा के बाजार पर तो धीरे धीरे चीन ने कब्ज़ा जमा ही लिया था अब तो वहा चीनी हथियारों की भी पहुँच हो गई है और राजनीति में उनके दखल की ख़बरे अब आम हो गई है | क्या ये सही है की हमारे दो इतने क़रीबी पड़ोसी देशों में जो कभी हमारे काफी क़रीबी और मित्र हुआ करते थे वहा अब हमारे दो दुश्मन अपना वर्चस्व बढाते जा रहे है और हम चुप चाप उसे देख रहे है | आखिर क्यों हमने अपने उन पड़ोसी देशों को अपने हाथ से निकाल जाने दिया जिनसे हमारी सीमाएँ इतनी ज्यादा मिली हुई है और हमारे लिए उनसे दुश्मनी एक बड़ा खतरा बन सकती है | यही काम अमेरिका कितनी खूबी से करता है वो ना केवल किसी देश पर अपनी धौस जमतासिखना चाहिए ना की इसके लिए उसे उलाहना देना चाहिए | पर हमारे नेता  तो अपने देश के अन्दर ही  अपना वर्चस्व स्थापना में इतने व्यस्त रहते है की घर के बाहर क्या हो रहा है इसकी सोचने की उनको फ़ुरसत ही नहीं है |
  ओबामा ने इस बार कहा की भारत को हम बराबरी का दर्जा दे रहे है | हमारा बड़ा बाजार उनको ये कहने के लिए मजबूर कर रहा था ये हमारे हाथ में था कि हम इस का फायदा अपने देश के लिए कितना उठाते पर हम ऐसा नहीं कर सके तो ये गलती हमारे देश के नेताओं और उन अधिकारियों की है जो इस बराबरी के दर्जे का फायदा नहीं उठा सके इस दौरे के दौरान हुए सौदों में बराबरी का मुनाफ़ा नहीं कमा सके | इसके लिए हम अमेरिका को दोष नहीं दे सकते है | ये सौदे एक दिन में नहीं हुए होंगे इस पर महीनों पहले ही काम शुरू हो गया होगा ओबामा ने तो उन पर हस्ताक्षर की औपचारिकता भर निभाई होगी फिर क्यों नहीं हमारे नेता और अधिकारी अपने लिए कुछ फायदे का सौदा इस दौरे से निकाल पाये |  ये बात किसी से नहीं छुपी है की अमेरिका एक अच्छा व्यापारी भी है और वो अपने फायदे के लिए आप से हर तरह की सौदेबाजी कर सकता था क्यों हमने  केवल ओबामा के इस पूरे दौरे में अपने लिए केवल राजनीतिक और कूटनीतिक फायदे तक ही सीमित रखा क्यों नहीं हमने भी इससे कुछ आर्थिक फायदा उठाया | राजनीतिक और कूटनीतिक बयानबाज़ी का क्या हर्श होता है वो हमें एक हफ्ते बाद ही पता चल गया | वो शब्दों के जाल  ज्यादा होते है और उसमे काफी कंडीशन अप्लाई वाला फंडा होता है जो तुरंत नहीं समझ आता है | अच्छा होता की हम सब इस गलती के लिए अमेरिका को कोसने के बजाये अपने नीति निर्माताओ से सवाल करते |
 
       अब रही आतंकवाद की नीति तो मुझे ये दोहराने की अब जरुरत नहीं है की अमेरिका आतंकवाद के नाम पर अपनी निजी लड़ाई लड़ रहा है और उससे हम अपनी लड़ाई में किसी सहयोग की उम्मीद नहीं कर सकते है वो भी उस देश के खिलाफ तो कतई नहीं जो पैसे ले कर उसकी तरफ से लड़ रहा है उसका हर तरह से साथ दे रहा है | हमारे देश में फैला आतंकवाद हमारी समस्या है और इससे हमें खुद ही लड़ना है हम इसमे किसी और से मदद की अपील नहीं कर सकते है | बार बार ये सवाल भी उठाए जाते है की अमेरिका को पता है की पाकिस्तान ही भारत में आतंकवाद की जड़ है वही लश्कर हिज्ब्बुल जैसे आतंकवादी गुटों को पैदा करने और बनाने वाला है फिर उसके खिलाफ कुछ करता क्यों नहीं | हा ये सही है की अमेरिका को इन सब बातो की जानकारी है पर वो पाकिस्तान के खिलाफ जा कर क्यों काम करे जबकि उसे पता है की ये सारे संगठन से उसे कोई खतरा नहीं है उसका असली दुश्मन तो तालिबान है | क्या हम अपने सैनिक या किसी तरह की सैन्य मदद अमेरिका को तालिबान से लड़ने में करेंगे नहीं ना क्योंकि तालिबान आज हमारे लिए उतना बड़ा खतरा नहीं है जितना की कुछ अन्य गुट | हम एक काम कर सकते है वह है अफग़ानिस्तान में निर्माण और इस जैसे कुछ असैन्य काम में सहयोग वो हम कर रहे है पर उसमे भी हमारा स्वार्थ है हम नहीं चाहते ही एक बार फिर वहा पर पाकिस्तान की दख़लअंदाज़ी बढ़े जो हमारे लिए ठीक नहीं है  साथ ही हमारे रिश्ते अफगान सरकार से बेहतर हो | तो जब हम अमेरिका की उसकी लड़ाई में सांकेतिक मदद के अलावा कुछ नहीं कर सकते है तो हमारी लड़ाई में वो प्रत्यक्ष रूप से हमारी कैसे मदद कर सकता है |
               ऐसा नहीं है की अमेरिका के सारे नेता बड़े देश भक्त टाईप के है और देश के हित के अलावा कुछ सोचते ही नहीं है| दुनिया के हर देश के नेता भ्रष्टता से अछूते नहीं है | पूरा इराक युद्ध तेल का खेल था और इस खेल में बुश और उनके परिवार को से जुड़े तेल कंपनियों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ था | लेकिन उनके नेताओं और हमारे नेताओं में फर्क ये है की उनके नेता अपना हित + देश हित या देश हित + अपना हित की बात करते है पर हमारे यहाँ तो नेता हमारा हित +हमारा हित या फिर  हमारा हित + हमारे परिवार परिचित का हित  से आगे कभी बढ़ ही नहीं पाते है देश तो इसमे कही आता ही नहीं तो इसके लिए हम किसी और को दोषी नहीं ठहरा सकते है | अच्छा हो हम अमेरिका को हर बात में कोसने के बजाये सवाल अपने नेताओं पर उठाये और यदि हमें दुनिया में एक शक्तिशाली राष्ट्र बनना है तो सच में अमेरिका से थोड़ी कूटनीतिक थोड़ी व्यापार बुद्धि सीख लेनी चाहिए |
इस लेख को लिखने का ये अर्थ कतई नहीं है की अमेरिका जो कुछ भी कर रहा है वो उसके देश हित में है तो वो सही है या उसके सारे काम सही है | ये तो बस कुछ मुद्दों पर सोची गई एक सामान्य सी अलग सी सोच भर है और उनके और हमारे नीति निर्माताओ को फर्क दरसाना भर है | मैं इस मामले की कोई बड़ी जानकार नहीं हुं इसलिए लेख में सुधार की काफी सम्भावना है आप के विचार मेरे लेख और मुझे नई दिशा दे सकते है | इसलिए अमेरिका हाय हाय के अलावा कुछ विचार भी रखियेगा |

चलते चलते

एक बार एक भारतीय सांसद अमेरिका के सांसद (सीनेटर ) से मिलने अमेरिका गया वहा उसका शानदार फ़्लैट देख कर आश्चर्य में पड़ गया और पूछ बैठा की आप लोगो को इतना वेतन और सुख सुविधा मिलती है की आप ने इतना शानदार फ़्लैट बना लिया | अमेरिकी सांसद मुस्कराया और उसे अपनी खिड़की के पास ले गया और बोला की सामने वो सड़क देख रहे हो भारतीय  ने कहा हा देख रहा हुं अमेरिकी ने कहा उसके ऊपर बना ओवर ब्रिज देख रहे हो भारतीय ने कहा हा फिर अमेरिकी ने कहा १० % भारतीय वाह वाह करने लगा और उन्हें भारत आने का निमंत्रण दे कर भारत आ गया वही अमेरिकी सांसद भारत आ कर उसी सांसद के घर गया उनका शानदार बँगला देख कर तो वो घोर आश्चर्य में पड़ गया बोला क्या आप को इतना वेतन मिलता है की इतना शानदार बँगला बना लिया भारतीय सांसद मुस्कराया और उन्हें घर के पिछवाड़े की खिड़की के पास ले गया और बाहर दिखा कर कहा की वो बाहर सड़क और उस पर बना ओवर ब्रिज देख रहे हो  अमेरिका ने कहा की कहा है सड़क और ओवर ब्रिज तो भारतीय ने कहा १००% |

November 15, 2010

"शायद ज़िन्दगी बदल रही है" ये कौन रचनाकार है - - - - - - - - mangopeople



ये कविता मुझे मेरी भांजी ने कोलकाता से मेल किया मुझे बहुत अच्छी लगी सोचा आप लोगों से शेयर कर लू और मुझे ये भी पता चल जाये की ये कविता किसकी है | चुकी साहित्य से मेरा जुड़ाव नहीं है तो संभव है की ये किसी बड़े साहित्यकार की हो और मुझे पता ही ना हो  या हमारे किसी साथी ब्लॉगर की अगर आप को पता हो तो मुझे बताये |

  

प्रिय सखा:
                      
  शायद ज़िंदगी बदल रही है!!

जब मैं छोटा था, शायद दुनिया 
बहुत बड़ी हुआ करती थी.. 
मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल"
तक का वो रास्ता,  
क्या क्या नहीं था   
वहां,  
चाट के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले,  
सब कुछ,

अब वहां "मोबाइल शॉप", "वीडियो पार्लर" हैं,
फिर भी सब सुना है..

शायद अब दुनिया सिमट रही है...
/
/
/


जब मैं छोटा था,
शायद शामे बहुत लंबी हुआ करती थी.
मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे,  
घंटो उडा करता था, वो लंबी "साइकिल रेस",
वो बचपन के खेल,
वो हर शाम थक के चूर हो जाना,

अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है  
और सीधे रात हो जाती है.

शायद वक्त सिमट रहा है..

/
/


जब मैं छोटा था, शायद 
दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,

दिन भर वो हुजुम बनाकर खेलना,
वो दोस्तों के घर का खाना, वो लड़कियों की
बातें, वो साथ रोना,
 
अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है,
जब भी "ट्रैफिक सिग्नल" पे मिलते हैं "हाई" करते हैं,  
और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,

होली, दीवाली, जन्मदिन , नए साल 
 पर बस SMS जाते हैं
 
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..

/
/


जब मैं छोटा था,  
तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,

छुपन छुपाई, लंगडी टाँग, पोषम पा, कटते थे केक
 टिप्पी टीपी टाप.

अब इंटरनेट, ऑफ़िस, फिल्मस, से 
 फ़ुरसत ही नहीं मिलती..

शायद ज़िंदगी बदल रही है.
.
.
.


जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है.. 
 जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर
लिखा होता है.

"
मंज़िल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते "
.
.
.
जिंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है.

कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने मैं ही हैं.

अब बच गए इस पल मैं..

तमन्नाओ से भरे इस जिंदगी  
में हम सिर्फ भाग रहे हैं..

इस जिंदगी को जियो 
  की काटो



वाह वाह वाह बहुत ही अच्छी कविता पर सवाल एक है ये कौन रचनाकार है ?

कहते है की खोजने से तो भगवान भी मिल जाता है ये तो एक रचना ही थी प्रकाशित करने के एक घंटे बाद ही प्रकाश गोविन्द जी ने बता दिया की ये रचना पलक जी के ब्लॉग "ख्वाहिश " पर सात अगस्त को प्रकाशित हुई थी | प्रकाश गोविन्द जी आप का धन्यवाद |  मैंने पलक जी को इसकी जानकारी दे दी ये सोच कर कि ये उनकी रचना है लेकिन ये क्या पलक जी का कहना है की उन्हें भी ये कविता मेल से ही मिली थी ये उनकी भी नहीं है और उन्हें भी रचनाकार का पता नहीं है | यानी ये पहेली अभी भी नहीं सुलझी है की इस रचना का रचनाकार कौन है ?

November 11, 2010

इसे क्या कहे देश की व्यवस्था या अव्यवस्था - - - - - - mangopeople

दीवाली के बाद का दिन मेरे लिए अच्छा नहीं गया |  दीवाली के दूसरे दिन मेरी भाई और साथ आ रही मेरी फुफेरी बहन एक सड़क दुर्घटना के शिकार हो गये | एक सड़क दुर्घटना और उससे जुड़ी देश की चार व्यवस्थाए किस तरह की अव्यवस्था स्थापित करती है कि इसे शायद हमारे देश की व्यवस्था सिस्टम कहने के बजाये देश की अव्यवस्था कहे तो ज्यादा अच्छा होगा क्योंकि  यदि ये हमारी व्यवस्था है तो अव्यवस्था फिर किसे कहेंगे |
देश की अव्यवस्था नंबर दो है हमारे सरकारी अस्पताल और वहा के डाक्टर | दोनों को दुर्घटना के बाद कुछ लोगों ने तुरंत ही उन्हें सरकारी अस्पताल पहुँचाया | दोनों को जब सरकारी अस्पताल में लाया जाता है और उसके बीस मिनट बाद मेरे घरवाले वहा पहुँचाते है तब तक उस नरक के यमदूत उनका इलाज ( अस्पताल और डाक्टर कहना तो दोनों शब्दों को अपमानित करना होगा ) तो छोडिये उन्हें कोई प्राथमिक उपचार देने के बजाये दो बेहोश बच्चों से हिला हिला कर उनके नाम पूछने की कोशिश कर रहे थे | मुझे मालूम नहीं था की किसी घायल के इलाज करने में उसका नाम इतना सहायक होता है कि उसके जाने बिना उपचार संभव ही नहीं था या ये कहु की शायद नाम से इलाज की क्वालिटी निर्धारित होने वाली थी | इंतजार किया जा रहा था की कोई घर से आये कागजी कार्यवाही पूरी करे तब इलाज करने का एहसान उन पर किया जाये | घरवालों के आने के बाद भी जो मेरे बुआ फूफा थे से पहले फार्म भरने के लिए कहा गया बच्चों का इलाज तब भी शुरू नहीं हुआ और कुछ मिनटों बाद जब वहा मेरी छोटी बहन पहुंची तो स्वाभाविक रूप से पूरा दृश्य देख कर गुस्सा आने लगा और उसने डॉक्टरों पर  चिल्लाना शुरू कर दिया तो उसे कमरे से बाहर कर दिया गया | मैं पहले से जानती थी की सरकारी डॉक्टरों की आये दिन पिटाई क्यों होती है उस दिन उसे मेरे घरवालों ने उसे झेल भी लिया | मेरी छोटी बहन की जगह मेरा भाई होता या पापा तो उस दिन भी अपने इस महान काम के लिए कुछ और सरकारी डाक्टर पिट गये होते | उस समय उन दोनों को वहा से नहीं ले जाया जा सकता था जब तक की सभी को उनकी स्थिति के बारे में ठीक से ना पता चल जाये | जैसे ही वहा के डॉक्टरों ने अपना इलाज ख़त्म करके कहा की दोनों बिलकुल खतरे से बाहर है | बुआ की सहेली जो डाक्टर थी सारी रिपोर्ट देख कर बोली इन्हें हम आराम से प्राइवेट अस्पताल में ले जा सकते है तुरंत ही उन्हें एम्बुलेंस में डाल कर प्राइवेट अस्पताल की ओर रुख किया गया लेकिन उसके पहले सरकारी डॉक्टरों से ये लिखवाना पड़ा कि दोनों घायल फिट एन फ़ाइन है | निजी अस्पताल को  फोन पहले ही कर दिया गया था सबके पहुचने के पहले ही दरवाज़े पर ही डाक्टर वार्ड ब्वाय नर्स स्ट्रेचर के साथ मौजूद थे | उन्हें संभाल कर अस्पताल के अंदर ले गए लेकिन वहा पहले ही दस हजार रूपये एडवांस जमा करा लिए गये |  उससे कोई परेशानी तो नहीं हुई,  उस समय तो अच्छे से अच्छ इलाज चाहिए था चाहे वो जितने भी पैसे मांग लेते हम देने के लिए तैयार थे | लेकिन एक बात लगी की जिसके पास पैसा है वो यहाँ आ कर अपनी जान बचाये नहीं तो मरे उसी सरकारी अस्पताल के नरक में | मर गया तो उसकी बदकिस्मती बच गया तो उसकी खुशकिस्मती वरना सरकारी डाक्टर तो अपनी तरफ से हर संभव कोशिश कर देते है |
तीसरा नंबर है पुलिस अव्यवस्था का जी हा सदा आप के साथ वाली दिल्ली पुलिस उसने आते ही सबसे पहले उन लोगों को ही पकड़ा जो मेरे भाई बहन को ले कर वहा आये थे और लगा उनसे इस तरह पूछ ताछ करने कि जैसे उन्होंने ही दुर्घटना की हो फिर जिस दूसरी तरफ उसकी नजर गई वो थी मेरे भाई बहन की आयु और उनके बीच का रिश्ता भाई २६ साल का था और बहन ने अभी पिछले महीने ही अपना १८ वा जन्मदिन मनाया था | उम्र से भले दोनों बालिग थे पर दिल ओर दिमाग से दोनों का बचपना गया नहीं था | उसे बताया गया की दोनों फुफेरे भाई बहन है जिसको उसने मनाने से इंकार कर दिया चुकी मेरे मम्मी पापा और एक बहन उस समय बनारस आये हुए थे तो उस समय वहा हम सब में सबसे छोटी हमारी बहन ही मौजूद थी | लोगों को समझ  नहीं आया की वो किस बात पर सक कर रहा था वो सड़क दुर्घटना थी और उन दोनों को अनजान लोग अस्पताल ले कर आये थे और वहा सारी कहानी बताने के लिए मौजूद थे | वो वही नहीं रुका जब मेरे घरवाले दोनों को लेकर प्राइवेट अस्पताल  जाने लगे तो उसने साफ मना कर दिया की आप लोग नहीं जा सकते क्योंकि पहले मैं उन दोनों का बयान लूँगा | हमारी आंटी जो खुद डाक्टर थी ने जब उसे बताया की बच्चे तो अभी भी बेहोशी की हालत में है वो कोई बातचीत करने के हालत में नहीं है तो वो माना ही नहीं और अपनी जिप ला कर एम्बुलेंस के सामने खड़ा कर दिया और कहने लगा की सरकारी डाक्टर ने उन्हें फिट एन फ़ाइन घोषित किया है तो उन्हें बयान देना ही होगा | उसे समझाया गया की ये तो हमने ही लिखवाया है ताकि हम उसे किसी दूसरे निजी अस्पताल में ले जा सके वो साथ चल सकता है या फिर सभी के घर का पता नोट कर ले और घर पर आ सकता है पर वो मनाने को तैयार ही नहीं था | अब डाक्टर आंटी उससे झगड़ पड़ी कि जब मैं डाक्टर हुआ और मैं कह रही हुं की दोनों बच्चे इस हालत में नहीं है की बयान दर्ज करा सके तो आप क्यों नहीं मनाते | अंत में जमानत के तौर पर एक दूसरे आंटी के बेटे को उसके साथ वही छोड़ा गया तब उसने जाने की इजाज़त दी | चलिये मेरे भाई की हालत बहुत ज्यादा गंभीर नहीं थी लेकिन यही पर यदि कोई और मरीज़ होता जिसकी स्थित काफी गंभीर होती तो इतनी देर में तो उसकी जान  पर ही बन आती | पर इन सभी को इससे क्या मतलब है
 चौथी अव्यवस्था वो है जिसे हमारे देश में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है जी हा मीडिया इन सब के बीच वो कैसे पीछे रह सकता था | वो भी हॉस्पिटल के दरवाज़े पर मिल गया और शुरू हो गया अपने सवाल जवाब करने स्ट्रेचर पर जा रहे मेरे भाई बहन से | एक तो मेरी छोटी बहन पहले से ही एकदम डरी हुई थी और वो तो समझ ही नहीं पा रही थी की वो कहा है और क्यों है  और दोनों के दोनों दिमागी तौर पर हिले हुए थे | बीच बीच में जब होश में आ रहे थे तो उलटी सीधी हरकते करने लग रहे थे क्योंकि उनका दिमाग उस समय ठीक से काम ही नहीं कर रहा था | पर हमारे मीडिया वालो को क्या माइक घुसाए जा रहे थे दोनों के मुहँ में की क्या हुआ कैसे हुआ |  मेरे बुआ के लड़के ने उसे मना किया पर वो सुनने के तैयार ही नहीं था माइक और कैमरा लेकर चालू रहे | जबकि उसे मालूम था की की तीन दिनों तक न्यूज़ चैनलों पर नाश्ते खाने में ओबामा ही मिलने वाले है उसके उस रिपोर्ट का कुछ नहीं होने वाला फिर भी वो लगे रहे | उसे भी मेरे फुफेरे भाई ने धक्के मार कर भगाया |
  और अब नंबर आता है इस पूरी दुर्घटना की पहली कड़ी पहली अव्यवस्था वो है हम और आप आम आदमी | जी हा वो आम आदमी जो सड़क पर होने वाली ऐसी हर दुर्घटना का मुख्य कारण है उसकी लापरवाही और ट्रैफिक के नियम ना मानने की उसकी आदत | जहा मेरे भाई की बाइक से  दुर्घटना हुई उस जगह पर सड़क पर बने डीवाईडर को तोड़ कर एक यूटर्न लोगों द्वारा बना दिया गया था उसकी दो वजह थी एक तो सामने से एक पतली सी सड़क आ रही थी और उधर से आने वाले को सड़क के उस पार जाने के लिए पूरा सिग्नल पर जा कर टर्न ना लेना पड़े या दूसरे वजह ये भी हो सकती है कि उस गली के बगल में एक पेट्रोल पंप था और वहा आने वाले को पंप तक आने का सीधा रास्ता मिले किसी गाड़ी को दूर चौराहे तक जा कर मुड़ कर आने कि जरुरत ना पड़े | बदकिस्मती से मेरा भाई उसी यूटर्न के सामने से गुजार रहा था और एक ट्राली जो पानी का टैंकर ले कर जाती है यू टर्न लेते समय उसे टक्कर मार दी | एक आम लापरवाही जो सभी करते है वो लापरवाही मेरे भाई की तरफ से भी थी पीछे बैठी मेरी बहन ने हेलमेट नहीं लगाया था जो थोड़ी चोट उसके सर में लगी वो हेलमेट ना पहनने के कारण उसे लगी जबकि मेरे भाई को  गंभीर चोट लगने से उसी हेलमेट ने बचा ली उसके हेलमेट के तीन टुकड़े हो गये थे पर उसे सर में कोई चोट नहीं आई | ये अच्छी किस्मत थी की टक्कर लगते ही दोनों बाइक से उछल कर दूर जा गिरे वरना बाइक तो ट्राली के पहिये के नीचे पड़ी थी और उसकी बहुत बुरी हालत हो चुकी थी |
   यदि हम सभी ट्रैफिक के नियमों को ठीक से माने तो शायद सड़क दुर्घटनाएँ आधी हो जाये पर हम सभी को सारी जल्दी सड़क पर आने के बाद ही होती है | हर कोई शार्ट कट मारने में लगा होता है  हम क्यों नहीं समझ पाते की ये नियम हमारी सुरक्षा के लिए है फिर अपनी ही सुरक्षा से खिलवाड़ क्यों | इस तरह की हरकते करके हम अपने थोड़े से फायदे के लिए कितने लोगों के जान से खेलने लगते है | गलत यू टर्न हो या गलत स्पीड ब्रेकर पूरे देश में इसको लेकर ट्रैफिक पुलिस की तरफ से भी कोई गंभीरता नहीं दिखाई जाती है |

 देश की इन अव्यवस्थाओ को देख कर क्या लगता है की वास्तव में ये व्यवस्था कहलाने के लायक है | असल में इन्हें जिस काम के लिए बनाया गया है ये वही नहीं करती है | इन्हें लोगों की मदद सेवा और सहायता के लिए बनाया गया है पर ये तो लोगों को परेशान करने उन्हें मुसीबत में डालने का काम करती है आम आदमी को और असहाय बना देती है | क्या हम कभी भी इन अव्यवस्थाओ को वापस देश की व्यवस्था में बदल पाएंगे | मुझे तो कोई उम्मीद नहीं दिखती है | 

November 04, 2010

जब स्वयं लक्ष्मी जी आप से ये सवाल करेंगी तो आप क्या जवाब देंगे - - - - - -- mangopeople


 सोचिये की दीपावली का समय हो और आप पूरा घर दीप और फूलों से सजा कर दरवाज़े पर लक्ष्मी जी का इंतजार कर रहे हो और तभी लक्ष्मी जी आ जाती है लेकिन अपने साथ अपनी एक सहेली को भी ले आती है कुलक्ष्मी ( गरीबी दरिद्रता ) अब वो आप से पूछती है की बोलो की हम दोनों में ज्यादा अच्छा कौन लग रहा है | तुम्हारे जवाब से ही हम निर्णय लेंगे की कौन तुम्हारे घर रुकेगा और कौन वापस जायेगा | अब आप परेशान की जवाब क्या दे यदि कहा की लक्ष्मी जी अच्छी है तो कुलक्ष्मी जी नाराज़ हो जाएँगी और उनकी नाराज़गी कही भारी ना पड़ जाये और वह आप के घर में ही रहने का ना सोचने लगे कि तुमको मैं अच्छी नहीं लगती ना अब रहो मेरे साथ तब पता चलेगा | और यदि कहा की कुलक्ष्मी जी अच्छी है तो लक्ष्मी जी नाराज़ हो जाएँगी वो भी आप के लिए सही नहीं है | तो सोचिये क्या जवाब देंगे
सोचिये
सोचिये
जाने दीजिये ज्यादा दिमाग पर जोर ना दीजिये हम बता देते है |
सबसे पहले दोनों को आदर के साथ घर के अंदर बुलाइये और कहिये की देवी पहले विराजे जल पान करे सेवा का मौका दे और वो सब करने के बाद जब दोनों देवी जाने लगे तो कहिये की
हे देवी लक्ष्मी अब आप घर के अंदर प्रवेश कर रही थी तो बहुत अच्छी लगा रही थी और हे देवी कुलक्ष्मी जब अप मेरे घर से जा रही थी तो आप बहुत अच्छी लग रही थी |


आप सभी को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाये,
आप सभी के घर में लक्ष्मी का और दिमाग तथा विचारों में सरस्वती का वास हो ,
घर से धन की दरिद्रता दूर रहे और विचारों तथा दिमाग से द्वेष संकीर्ण विचारों की दरिद्रता दूर रहे |
  आप सभी को प्रकाश का ये पर्व शुभ रहे |
सभी चित्र गूगल के सौजन्य से 

November 03, 2010

ब्लॉग जगत का मेरे जन्मदिन की पार्टी में स्वागत है - - - - - - - mangopeople

                                                      हाय  हल्लो  नमस्ते  प्रणाम
आप सभी का मेरे जन्मदिन की पार्टी में स्वागत है | दुआ सलाम तो हो गया अब कर्सर घूमा कर टिप्पणी बाँक्स मत खोजिये पार्टी में आने का निमंत्रण दिया है तो पहले पार्टी का आनंद उठाइये गला सुख रहा होगा पता नहीं किस किस ब्लॉग से थके हारे आ रहे है सो पहले गले को तरावट दीजिये और कुछ ठंडा गरम लीजिये  |    











 हा तो अब आप सोच रहे होंगे की आज यानि तीन नवंबर को हमारा जन्मदिन है, जी नहीं हमारा जन्मदिन तीन नवंबर को नहीं है | मैं दुनिया के उन खास लोगो में शुमार हुं जिससे आप उनके जन्मदिन की तारीख पूछे तो वो कहते है जरा ठहरे कलैंडर देख कर बताते है | क्या करू  मेरा जन्मदिन हर साल अलग अलग तारीख को मनाया जाता है | असल में मेरा जन्म धनतेरस के दिन हुआ था, एक तो अपने माँ बाप की पहली संतान दूसरे लड़की उस पर से धनतेरस का शुभ दिन सबने कहा की घर में साक्षात लक्ष्मी जी का आगमन हुआ है और तय हुआ की मेरा जन्मदिन धनतेरस के दिन ही मनाया जायेगा हिंदी तारीख के अनुसार ना की अंग्रेजी तारीख के अनुसार | अब आप  समझ गये ना की मैं हिंदी की कितनी बड़ी सेवक हुं उसकी पक्षधर हुं की जन्मदिन भी बचपन से आज तक हिंदी तिथि के अनुसार ही मना रही हुं |
 अब आप पूछेंगे की वैसे मेरा जन्मदिन किस तारीख को पड़ता है | तो नहीं बताउंगी तारीख बताया तो लोग अभी मुझे कोई नम्बरी बना देंगे या कोई मेरी कुंडली ही बनाने लगे और ये देखने लगेंगे की कौन से ग्रह कहा बैठे है | मुझे उस ग्रह से कोई परेशानी नहीं है पर ब्लॉग जगत में आने के बाद जिस ग्रह से सबसे ज्यादा डर लगता है वो कुंडली में नहीं लोगों के दिमाग में बैठता है और वो है पूर्वाग्रह और पश्चिमाग्रह | पूर्वाग्रह वो जिससे ग्रसित होकर हम किसी भी विषय में एक तरफ़ा पोस्ट लिखते है और पश्चिमाग्रह वो जिससे ग्रसित हो कर हम किसी की पोस्ट पढ़ते है और उसमे सिवा गलती, बेफकुफी, नादानी, बकवास गिरी के  हमें और कुछ नजर ही नहीं आता है | ये तो शनि ग्रह से भी ज्यादा भयानक है जो किसी के दिमाग में बैठ गया तो फिर शायद सारी जिंदगी वहा से नहीं निकलता है और अपने साथ ही दूसरों को भी नुकसान पहुँचाता है | इसलिए तारीख को भूल जाइये , फिर क्या फर्क पड़ता है पार्टी तो आज दे दी ना तो उसका आनंद  लीजिये |
 अरे भाई मेरी बाते तो चलती रहेंगी कुछ जल पान वल्पान नाश्ता वास्ता भी करते चले काफी इंतज़ाम किया है जो पसंद हो खा ले जितना खाना हो खा ले |











                              



  कुछ लोगो की बाते मुझे थोड़ी अजीब लगती है कहते है की हमें जन्मदिन नहीं मनाना चाहिए क्योंकि ये ख़ुशी मनाने का नहीं दुखी होने का दिन है क्योंकि ये हमारी आयु में से एक साल कम कर रहा है | पर मुझे लगता है कि भाई जन्मदिन तो धूमधाम से मनाना चाहिए इसका अर्थ ये होता है की हमने अपने जीवन के एक और साल राजी ख़ुशी जी लिया वो सब पा लिया जो पाना चाहते थे ,वो सब किया जो करना चाहते थे तो आओ उसकी ख़ुशियाँ मनाये और ये कामना करे की हमारे जीवन का अगला साल इससे भी अच्छा गुज़रे | दोस्तों को भी इसीलिए बुलाते है की वो हमारे पिछले सफलताओं पर हमें बधाई दे और आने वाले दिनों के लिए शुभकामनाये | तो कुछ लोग ये भी कहते है की भाई ये भी कोई उम्र है जन्मदिन मनाने की तो उनसे पूछूंगी काहे भईया एक उम्र हो जाने के बाद आदमी जीना छोड़ देता है त्यौहार, ख़ुशियाँ मनाना छोड़ देता है, नहीं ना, तो जन्मदिन मनाना क्यों छोड़ दे | मैं तो बचपन से अपने घर में सभी का जन्मदिन अच्छे से मनाते हुए देखते आई हुं हम अपने संयुक्त परिवार में १२ महीनों में १५ जन्मदिन मनाया करते थे |

ओं हो आप भोजन के समय पार्टी में आये है और भूख लगी है और मैं कब से बक बक किये जा रही हुं | तो  ऐसे खाली हाथ ना बैठे रहे मेरी पार्टी है भोजन की भी व्यवस्था है  चलिए भोजन शुरू कीजिये बाते तो साथ में चलती रहेंगी | यहाँ हर तरह के भोजन है भारतीय भी और काँटीनेंटल भी, जानते है भाई ब्लॉग जगत में भारत के बाहर से भी हमारे मेहमान आये है इसलिए जो पसंद हो वो खाए |



















 हा तो ये वर्ष मेरे लिए खास रहा काफी समय बाद मुझे एक नई मित्र मंडली, ब्लॉग साथी और नए सहयोगी मिले है | यहाँ सब केवल मुझे जानते है मेरे नाम से जानते है जो मुझसे जुड़े है | तो भाई ब्लॉग जगत के इस नई  मित्र मंडली सहयोगियों और साथियों  के साथ एक शानदार पार्टी तो बनती ही है ना | कुछ से मित्रता और बढ़ाने के लिए तो कुछ से जान पहचान बनाने के लिए |
            अरे  मिठाईया तो ली ही नहीं खास बनारस से जलेबिया मंगाई है | कैलोरी की चिंता छोड़ दे आज दो ब्लॉग ज्यादा पढ़ लीजियेगा एक लाइन के बजाये चार लाइन की टिप्पणी दे दीजियेगा सारी कैलोरी खर्च हो जाएगी |












  ब्लॉग जगत मुझे परिवार जैसा नहीं लगता है  | मुझे लगता है परिवार के साथ बात करते समय काफी बंदिशे होती है कभी बड़ों के सामने झिझक तो कही छोटो का लिहाज जबकि मित्रों और सहयोगियों के साथ ये सब नहीं होता है | इसलिए मैं सभी को सहयोगी, मित्र, सह ब्लोगी के तौर पर देखती हुं |  बड़े यहाँ भी है उनके लिए सम्मान भी है पर यहाँ अपनी बात कहने की या उनसे सहमत या असहमत होने में कोई झिझक नहीं है छोटे भी है पर उनके साथ बात करने के लिए विषयों की बंदिशे नहीं है और ना ही ये आदेश की तुम छोटे हो चुप रहो | हर किसी को आज़ादी है अपनी बात कहने की और दूसरों से सहमत और असहमत होने की और मैं इस आज़ादी का पूरा फायदा उठाती हुं | हा कभी कदार खींचतान बहस झगड़ा हो जाता है ये तो हर जगह होता है इसी से तो पता चलता है की यहाँ पर बोलने की कितनी आज़ादी है | बात करने के लिए यहाँ पर विषयों की भी  कोई कमी नहीं है हम यहाँ धर्म ,राजनिती, कश्मीर ,जाति  जैसे कुछ छोटे मोटे मसलों से लेकर  ब्लॉग पर पाठक कम आ रहे है, टिप्पणियाँ कम आ रही है, उसके पास ज्यादा कैसे जा रही है, टिप्पणियाँ ज्यादा कैसे पाये जैसे कुछ बड़े-बड़े और गंभीर विषयों पर बात करते है विचार विमर्श करते है सीधे सीधे कहु तो एक दूसरे की टाँग खीचते है एक दूसरे की बैंड बजाते है |
                    अच्छा आप को देर हो रही है तो अब जन्मदिन की सबसे बड़ी रस्म कर लेते है,  केक काट कर  | सबसे पहले आँखें बंद करके कुछ विस कर लेती हुं फिर मोमबत्तिया बुझाती हुं  कहते है जो विस मांगो पूरी हो जाती है |----------
                                फु फु फु फु फ़ूऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊउ


बाप रे ये मोमबत्तिया बुझती ही नहीं शायद ऊपरवाला मेरी मुराद पूरी नहीं कर सकता है इसलिए ये बुझ नहीं रही है | समझ नहीं आ रह है की ऊपरवाला कमजोर हो गया है या ब्लॉगर ज्यादा ताक़तवर हो गया है मैंने तो बस इतना ही मागा था की सब ब्लॉगर को सम्मति दे भगवान | शायद ज्यादा भरी मांग लिया ये तो ऊपरवाला भी नहीं कर सकता है |  क्या कर सकते है छोडिये इन्हें केक काट लेते है |


                                                               
हा कब से देख रही हुं की मन ही मन बुदबुदा रहे है सोच रहे है की पुछू की नहीं या खुद ही अंदाजा लगा रहे है तो कहे देती हुं कि ख़बरदार किसी ने भी मेरी आयु पूछने की हिम्मत  की और हा मन में अंदाजे लगाने भी बंद कीजिये | अरे भाई मेरी लेखनी की उम्र देखिये मेरी छोडिये | मैं बताऊ, आप कभी भी मेरी उम्र का सही अंदाजा नहीं लगा सकते है | दूसरों को क्या कहूं खुद मैंने कई लोगो के उम्र का जो अंदाजा उनकी लेखनी के हिसाब से लगाया वो गलत निकला कोई मेरे अंदाज़ से ज्यादा तो कोई कम उम्र का निकला | इसलिए इस विषय को भूल जाइये |
  मुझे मुंबई में रहते काफी समय हो गया है पर मैं अभी भी अपने आप को बनारसी ही ज्यादा मानती हुं सो किसी बनारसी की पार्टी बिना बनारसी पान के ख़त्म हो सकती है क्या | तो लीजिये बनारस से मगाए खास पान और जिन्हें पान ना पसंद हो वो पचावन के लिए सौफ,मीठी सुपारी से काम चला ले |











आप लोग मेरी पार्टी में आये मुझे बड़ा अच्छा लगा कुछ लोगों से यहाँ मित्रता हो गई है कुछ के यहाँ रोज का आना जाना हो गया है तो  कुछ से जान पहचान हो गई है और बाकी कुछ से हो जाएगी धीरे धीरे | हा जाते जाते अपने रिटर्न गिफ्ट ले लीजिये जो पसंद हो |



और मेरा गिफ्ट नीचे टिप्पणी बॉक्स में रख दीजिये |                                   
क्या कहा मैंने सुना नहीं ?                                                                     
                               मज़ाक कर रहे है आप लोग |                                               
                              मुझे कुछ सरप्राइज देने वाले है |
                                             नहीं
                             मतलब की आप बिल्कुल गंभीर है |
                            आप सच में मेरे लिए कोई गिफ्ट नहीं लाये है |
                           अरे कुछ तो लाये होंगे ही एक बार सभी जेबे तो चैक कीजिये
नहीं लाये है कुछ भी, बस ऐसे ही खाली हाथ आ गए है मेरी पार्टी में क्या सोच कर की कॉपी पेस्ट कर देंगे तो लीजिए वही कर दीजिये उसमे भी मैं आप की मदद कर देती हुं |
             
            अंशुमाला जी आप को जन्मदिन की बधाई  |
                            आप को जन्मदिन मुबारक हो   
           अंशुमाला जी आप को जन्मदिन की हार्दिक बधाई |

         लीजिये जी कर लीजिये कॉपी और कर दीजिये पेस्ट टिप्पणी बाँक्स में |
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     सच कहु तो जन्मदिन एक मौका होता है अपने बचपन को याद करने का बेफिक्री और सारे तनावों से मुक्त उस बचपन  को याद करने का जो हमारे जीवन के सबसे अच्छे और खूबसूरत दिन होते है | जब हम छोटे होते है तो हमें बड़े होने की जल्दी होती है पर जब बड़े हो जाते है तो सोचते है की बड़े ही क्यों हुए काश छोटे ही रहते | एक विवाहित महिला के लिए विवाह के पहले का सारा जीवन ही उसके बचपन के ही दिन होते है और आज मैं उसे ही याद कर रही हुं | अब केक कटने के बाद ढेर सारी तालिया नहीं बजती है बस सारे दिन फोन की घंटी बजती है उसे ही तालिया समझ कर खुश हो लेती हु |
 लीजिये ये गाना सुनिये और मेरे साथ आप भी अपने बचपन को याद कीजिये |  मेरी पसंद के गानों में से एक है पर मैं इसे सुनने से हमेशा बचतीं हुं ,क्या करूँ जब भी सुनती हुं अपनी बेटी की भाषा में कहु तो कम्बख्त आँखों में प्याज लगने लगता है------------
        

           


खाने और गाने की सारी व्यवस्था
गूगल कैटरर ओर डेकोरेटर के सौजन्य से
पसंद आया तो सारी मेहनत मेरी यदि नहीं आया तो बता दीजियेगा नालायक को एक पैसे का पेमेंट नहीं करुँगी |