December 12, 2010

लड़कियों पर एसिड अटैक क्या कानून काफी है इसे रोकने के लिए ?- - - - - - - - -mangopeople

आज कल महिलाओ पर तेजाब फेंकने की घटनाओं में काफी तेजी आई है | इसको देखते हुए केंद्र सरकार ने इसके खिलाफ सख्त कदम उठाने का विचार किया और गृह मंत्रालय ने इसके लिए भारतीय दंड सहिंता में संशोधन लाने का प्रस्ताव रखा है | प्रस्ताव के अनुसार तेजाब फेंकने वाले को दस साल की कैद और दस लाख रूपये जुर्माना लगाने का प्रावधान है | सरकार के काम की गति को देख कर हम अंदाजा लगा सकते है की आने वाले पांच छ सालों में ये कुछ संशोधनों के साथ तब आनन फानन में पास करा कर लागु कर दिया जायेगा जब इस अपराध का आकडा आसमान छूने लगेगा और यह रोज की बात हो जाएगी और महिला संगठन और कुछ एन जी ओ उस कानून को पास कराने के लिए आन्दोलन करेंगे हो हल्ला मचाएंगे  | तब तक ना जाने और कितनी लड़कियों का जीवन इस घटिया मानसिकता के कारण किये गये इस अपराध के कारण बर्बाद हो चूका होगा |
                                            पर क्या हम किसी लड़की पर तेजाब फेक कर उसको मौत से भी बदतर जीवन देने वालो को मात्र कड़ी सजा देने का कानून बना कर रोक सकते है | जी नहीं ये संभव नहीं है क्योंकि बिना इस कानून के भी आज की तारीख में भी ऐसा करने वालो पे हत्या का प्रयास का मुक़दमा चलता है (पर वास्तव में तो होना ये चाहिए की उस पर क्रूरता से हत्या करने का मुक़दमा चलना चाहिए ) जिसमे काफी कड़ी सजा का प्रावधान है ,लेकिन उसके बाद भी इस तरह की घटनाओं पर लगाम नहीं लग सकी है और ना ही अपराधियों में ( जो की वास्तव में कोई शातिर अपराधी नहीं बल्कि विकृत मानसिकता वाले आम लोग ही है ) कानून और पुलिस का कोई डर है |
कारण क्या है --- किसी लड़की या महिला पर तेजाब फेंकना पूरी तरह से बदला लेने की भावना से की जाती है | मनोवैज्ञानिक इसे सैडीज्म कहते है |  अभी तक इस तरह की घटनाओं में लड़की से एक तरफ़ा प्यार या लड़की द्वारा विवाह के प्रस्ताव को ठुकराया जाना या पर अपने साथी के चरित्र पर शक होने के कारण किया जाता है | ऐसा करने वाले लड़की को सबक सिखाने,उससे बदला लेने और "मेरी नहीं हुई तो किसी की नहीं होगी" जैसी ओछी मानसिकता के कारण ये करते है | ये विकृत दिमाग के वो लड़के है जो किसी लड़की द्वारा प्रेम प्रस्ताव या विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिये जाने को पचा नहीं पाते है या लड़की के चरित्र पर शक करते है की उसका संबंघ किसी और से भी है और किसी लड़की द्वारा किये इस कृत्य को अपने पुरुषवादी गुरुर का अपमान समझने लगते है | उसी अपमान का बदला लेने के लिए वो पूरी तरह से सोच समझ कर लड़की के चेहरे पर तेजाब फेक कर उसे विकृत बनाने का प्रयास करते है की इसी स्त्रियोचित व्यक्तित्व की निशानी  खूबसूरती के कारण ही इसने हमारे प्रस्ताव को ठुकराया है हम उसे ही बर्बाद कर देंगे | वो उसे जीवित रख कर उसका जीवन नरक बनाने का प्रयास करते है |
कानून काफी नहीं है ----- इस तरह के अपराधों को हम केवल कानून बना कर नहीं रोक सकते है या ये कहे  कि किसी भी सामाजिक समस्या को हम केवल कानून बना कर नहीं रोका सकते है | दहेज़ कानून , कन्या भ्रूण हत्या ,बाल विवाह और घरेलू हिंसा कानून बना कर हम पहले ही देख चुके है की इससे अपराध पर कोई लगाम नहीं कसा जा सका है | उसके बाद एक लड़की का तेजाब फेक कर उसे मौत से भी बदतर जीवन देने वाले के लिए क्या सिर्फ दस साल की कैद काफी है | किसी लड़की के लिए इस तरह की घटना मौत से भी बड़ी है ऐसा करने वालो पर तो हत्या का मुक़दमा चलाना चाहिए और उसे लड़की के जीवित रहने पर कम से कम आजीवन कारावास और उसकी मृत्यु होने पर उसी सीधे फाँसी की सजा का प्रावधान होना चाहिए | फिर कानून बना भर देने से काम नहीं चलता है ज़रुरी है कि उसे कड़ाई से लागू किया जाये अपराधी को जल्द से जल्द पकड़ा जाये और जल्द से जल्द उसे सजा भी दिलाई जा सके | जो हमारे देश के कानून व्यवस्था को देख कर मुमकिन नहीं लगता है की होगा | इसी कारण से इस तरह के अपराध दिन पर दिन और बढ़ते जा रहे है |
अपराध की मानसिकता पर चोट की जाये --------- फिर सवाल ये है कि इसे रोका कैसे जाये ? क्योकि कानून बना कर हम अपराधी को सजा तो दिला सकते है पर इसके साथ ही ये भी जरुरी है की इस तरह के अपराध दोहराए ना जाये किसी और लड़की के साद इस तरह का अपराध ना हो इसके लिए भी कुछ किया जाये | तो इसके लिए ज़रुरी है कि अपराध की मानसिकता पर चोट की जाये | अभी तक जो भी केस सामने आये है उन सभी में तेजाब फेंकने का एक मात्र सोच यही था की लड़की का चेहरा ख़राब करके उसके जीवन को बर्बाद कर दिया जाये उसे शारीरिक नुकसान के साथ ही एक बड़ा मानसिक चोट दिया जाये जिससे वो कभी भी बाहर ना आ सके और फिर कभी भी एक सामान्य जीवन ना जी सके दुनिया में कही भी रह कर | बस अपराधियों के इसी मकसद को पूरा नहीं होने देना है | इसके लिए ज़रुरी है की लड़की के पुराने चेहरे को प्लास्टिक सर्जरी द्वारा  फिर से उसे वापस दिया जाये | सरकार जो प्रस्ताव ला रही है उसमे भी दस लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है जो निश्चित रूप से लड़की के लिए होगा ताकि वो फिर से अपना इलाज करा सके | किंतु जब ये रकम ठीक से इलाज के लिए काम पड़े तब या जब   अपराधी इस जुर्माने को भर ही नहीं सकेगा तब | इसके लिए ज़रुरी है की सरकार अपनी तरफ से ये सुनिश्चित  करे कि जिस भी लड़की के साथ इस तरह की घटना होगी यदि अपराधी जुर्माने की या इलाज की रकम नहीं भर पाता है तो उसकी प्लास्टिक सर्जरी सरकार कराएगी और उसे वापस उसका पुराना चेहरा देगी | ये प्लास्टिक सर्जरी सरकारी अस्पतालों की में किया जा रहा मुफ्त कटे होठ का आपरेशन जैसा नहीं होना चाहिए, बल्कि उच्च तकनीक वाला आधुनिक सर्जरी होना चाहिए जिसमे लड़की को उसका चेहरा वापस उसे मिले ना कि सर्जरी के नाम पर बस चेहरे कि विभत्सता मिटाई जाये | ये करना ज़रुरी है क्योंकि अपराधी के तेजाब फेंकने का मकसद को ही पूरा नहीं होने देना है | जिससे इस तरह की कोई भी बात किसी के दिमाग में आती है तो उसे ये याद रहेगा की पकडे जाने पर ना केवल उसे कड़ी सजा मिलेगी बल्कि उसे भारी जुर्माना भी देना होगा और बाद में लड़की वापस से अपना चेहरा भी पा लेगी और उसका मकसद कामयाब नहीं होगा |
फंड कहा से आयेगा --------जी हा ये इलाज काफी महँगा होगा और इसके लिए फंड की समस्या होगी | ऐसे तो सरकारी खर्च पर विदेश जा कर इलाज करने वाले मंत्रियों के देश में फंड की समस्या तो नहीं होनी चाहिए फिर भी इसके लिए सरकार प्राइवेट सेक्टर, निजी एन जी ओ का भी साथ ले सकती है |  पाकिस्तान में इस तरह की एक एन जी ओ है जो महिलाओ के जले चेहरों की अच्छी प्लास्टिक सर्जरी करती है, मुफ्त में, भारत की एक महिला ने भी अपनी सर्जरी वहा जा कर कराई है | या  फिर महिला बाल कल्याण मंत्रालय के बजट से इसके लिए धन की व्यवस्था की जा सकती है | ऐसे तो मुझे लगता है की समाज को भी खुद आगे आकर इन मामलों में पीड़ित का इलाज में मदद करना चाहिए | यदि सरकार कुछ साल भी इस कार्य को पूरा करती है तो काफी सम्भावना है की इस तरह के अपराध में कमी आये और फिर उसे किसी धन की समस्या का सामना ही ना करना पड़े |
                    एसिड अटैक की तरह ही आज कल दिल्ली में ब्लेड मैन ने भी लड़कियों के बीच काफी आतंक मचा रखा है | अपराधी रहा चल रही किसी भी लड़की के चेहरे पर ब्लेड मार कर घायल कर देते है और दो लड़कियों की तो जान पर ही बन आई थी क्योंकि ब्लेड ने उनकी गर्दन पर एक बड़ा ज़ख्म दे दिया था | ये भी लड़कियों के चेहरे बिगाड़ने के मकसद से किया जा रहा है | अब इस तरह के अपराधियों को हम क्या कह सकते है निश्चित रूप से ये फ्रस्टेडेड लोग है जो अपनी खुन्नस मासूम लड़कियों पर निकाल रहे है |
                  कारण क्या है वही पुलिस की लापरवाही और लोगों में कानून का कोई डर नहीं है | हर आदमी जानता है कि ऐसे मामलों को पुलिस पहले दबाती है फिर लिपापोती करती है और जब पानी सर से ऊपर चला जाता है तब मीडिया के हल्ला मचाने पर कार्यवाही करने की खानापूर्ति करती है तब तक अपराधियों के हौसले और भी बुलंद हो चुके होते है |
                       काश की महिलाओ के ऊपर हो रहे इस तरह के एसिड और ब्लेड अटैक  जैसे अपराध की पहली घटना पर ही पुलिस तुरंत ही गंभीर कार्यवाही करे तो कई दूसरी लड़कियाँ इस तरह के अपराध की शिकार होने से बच सकती है |

18 comments:

  1. अजी हम तो कहते हैं...ऐसे लोगों को बीच सड़क पर गोली मार देनी चाहिए...
    काहे को पुलिस और काहे का केस...

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  2. कानून तो आजतक कितने बने पर लागू कहाँ होते हैं ..बनने से पहले तोड़ने वाले आ जाते हैं.कानून से कुछ नहीं होने वाला .जरुरत है जागरूकता की सही शिक्षा की और अपने कर्तव्यों को सही ढंग से पूरा करने की.ऐसे जुर्म करने वाले को ऐसी सजा दी जाये कि कोई दूसरा ऐसा करने की सोच भी न सके.

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  3. कानून ओर इलाज तो बाद की बाते हे, हमे ऎसा मोका आने ही नही देना चाहिये, हमे अपने बच्चो को अच्छॆ संस्कार देने चाहिये, ओर जनता को जागरुक होना चाहिये ऎसी घटना होने पर लडकी को तुरंत सहायता मिलनी चाहिये( तेजाब वाले स्थान को पानी से खुब धोना चाहिये ताकि उस का असर कम हो, फ़िर उस दोषी को पकड कर उसी जगह इतना मारा जाये कि वो मरे नही, लेकिन जिन्दो मै भी ना रहे बस एक दो ऎसे केस हो फ़िर देखो यह आशिक कहां जाते हे, किस मै हिम्मत होगी ऎसा कर्त करने कि. धन्यवाद

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  4. समस्या तो मानसिकता की है उसमे बदलाव होना बेहद ज़रूरी है...... कानून तो बहुत सी बातों को लेकर बने हुए हैं पर उन्हें तोड़ने के भी तो हज़ार रास्ते हैं ....... सोच और समझ में संवेदनशीलता आवश्यक है......

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  5. अंशुमाला जी,
    ऐसा माना जाता है कि विदेश नीति और दूसरे मामलों में भी डील करते समय सबसे ज्यादा मुश्किलात चीन के कूटनीतिज्ञों से निबटने में आती है, वजह उनका बाह्य व्यवहार है जो इतना भावशून्य होता है कि अन्दर दिमाग में क्या चल रहा है, अंदाज लगाना ही लगभग असंभव होता है। शायद यह वहाँ की सरकार की पालिसी का ही हिस्सा है, क्योंकि उनकी सरकार की हर कार्रवाई भी इसी पालिसी का हिस्सा लगती है। इसी चीन की सरकार ने कुछ साल पहले शायद बारह लोगों को सार्वजनिक रूप से फ़ांसी दी थी और उसका लाईव टेलीकास्ट भी किया था। ऐसे खुले प्रदर्शन का उद्देश्य एक ही था, ’संबंधित अपराध के दोषी इसी ट्रीटमेंट के हकदार हैं।’ वह अपराध बेशक आपकी पोस्ट में वर्णित अपराध वाला नहीं है, लेकिन मुद्दा निर्णयशक्ति का है।

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  6. - २-
    सिर्फ़ कानून बना देने से समस्या हल होती तो अपना देश रामराज्य बन चुका होता, कानून बनने के साथ उसका सामयिक क्रियान्वयन भी जरूरी है, ’justice shouldn't only be done, but it should seem to have been done also' खैर, इस विषय पर तो आपका भी यही मानना है।
    बात आती है, सामाजिक परिवर्तन, अपरध की मानसिकता में बदलाव लाने जैसी मांगों की, तो शेर सिंह याद आते हैं -
    ’आह को चाहिये एक उम्र असर होने तक, कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक’
    आप हमें ब्रूटल कहें, क्रूर कहें, आदिम जमाने के कहें - कुछ अपराध ऐसे हैं जिनकी सजा जंगल के कानून के हिसाब से सार्वजनिक रूप से और त्वरित मिलनी चाहिये ताकि ऐसा करने वालों को अपना हश्र आईने की तरह साफ़ दिखाई दे। फ़िर चलाते रहें अपने सुधार कार्यक्रम, जिनकी तब वैसे कोई जरूरत ही नहीं रहेगी। कितना आसान है दस बीस रुपये खर्च करके उम्र भर के लिये किसी के तन और मन को दागदार कर देना। सभ्य समाज वाला ट्रीटमेंट उन्हीं के साथ होना चाहिये, जो डिज़र्व करते हों और ऐसे घृणित अपराध करने वाले कतई डिज़र्विंग कैंडिडेट नहीं हैं। ऐसे मामलों में हमें जंगल के कानून में आस्था है।
    --

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  7. सच कहा जाये तो ऐसे लोगों के साथ भी वही व्यवहार किया जाना चाहिए जो वो दूसरो के साथ करते है उन्हें भी मारने के बजाये जीवित रख कर हर पल मारना चाहिए |

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  8. हमारे देखे बुनियादी रूप से हर अपराध के पीछे दोनों तरफ से एक साँझा प्रयास होता है. प्रयास प्रकट हो, या अप्रकट, होता साँझा ही है. कोई एक भी समझदारी से काम ले,तो उसे टाला जा सकता है. दास्ताँ लम्बी हो जाएगी, इस मसले पर कभी पूरा पोस्ट छापेंगे तबीयत से... बाकी आपकी खोपड़ी खूब चलती है हर मसलों पर, अच्छी विवेचना ;)
    लिखते रहिये ...

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  9. @ शेखर जी

    अपराधी भी तो यही सोच कर अपराध कर देता है की कहे की पुलिस और कहे का केस किसी को तो नियमों में काम करना ही पड़ेगा |


    @ शिखा जी

    सही कहा जो कानून है कई बार वही काफी होते है अपराध को रोकने के लिए बस उसे ठीक से और कड़ाई से लागू भर किया जाये |


    @ राज भाटिया जी

    आप सही कहा रहे है कही ना कही आज के युवा में संस्कारो की ही कमी है जो वो बदला लेने के लिए इतना भयानक कृत्य करने में भी नहीं हिचकते है | यदि भीड़ को न्याय करने का हक़ दे दिया तो न्याय काम अन्याय ज्यादा होने लगेगा खाप पंचायते ऐसी ही भीड़ ही तो है | जो हर मामले में खुद को कानून से ऊपर समझने लगती है |



    @ मोनिका जी

    धन्यवाद | मानसिकता में बदलाव कई अपराधों को रोक सकती है |

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  10. @ संजय जी

    जो काम चीन जैसी सरकार कर सकती है वो जनता द्वारा चुनी गई एक लोकताँत्रिक सरकार नहीं कर सकती है | ( चीन ने तो ९० के दशक में सांस्कृतिक स्वतंत्रता के नाम पर लोगों को बोलने की आज़ादी दी और उसके बाद जिस जिस ने मुँह खोला उन हज़ारों को मार दिया ) सत्ता हाथ में होने पर आप को और ज्यादा जिम्मेदार बनना पड़ता है सरकारें खाप पंचायतों की तरह निर्णय नहीं कर सकती है | ये ठीक है की न्याय होता भी दिखना चाहिए पर वो भी कानून के दायरे में ही होना चाहिए | यदि सरकार खुद कानून के दायरे में काम नहीं करेगी और उसके काम हिंसक और समाज को डराने वाले होंगे तो वो खुद जनता को ऐसा करने से कैसे रोक सकेगी | हर दूसरा आदमी दूसरे की जान लेता दिखेगा क्योंकि उसे लगेगा की उसके साथ अन्याय किया जा रहा है |

    सच कहु तो लगता है की हा वाकई कुछ लोगों के साथ सभ्यता से पेस आने की जरुरत नहीं है जैसे को तैसा वाली ही बात सही है पर हम ये भी जानते है की ये संभव नहीं है और इसके दूरगामी परिणाम अच्छे नहीं होंगे | आप को याद होगा की नागपुर में एक बस्ती की महिलाओ ने एक लोकल गुंडे बलत्कारी को कोर्ट में घुस कर मार डाला था | लोगों ने ऐसे ही वाह वही की थी पर उसके बाद अचानक से सभी ने यही करना सुरु कर दिया किसी की भैस चोरी हुई तो किसी की साईकिल और लोगों ने अपराधियों की या अपराध करने के सक भर से भीड़ ने लोगों को मार डालना शुरू कर दिया जिसमे एक १६ साल के किशोर भी था और एक गाव में तो लोगों ने एक साथ सात लोगों को चोर होने के सक में मार डाला था | अब बताइये क्या ये न्याय का तरीका है जंगली और क्रूर बनने के बाद हम अपनी हद तो याद रखते है पर भीड़ हर चीज की हद भूल जाता है |

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  11. @ शिवम जी

    वार्ता में मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद |


    @ देबू जी

    धन्यवाद | पर हमें याद रखना चाहिए की अब हम सभ्य हो गये है |


    @ मजाल जी

    धन्यवाद | हमें आप की पोस्ट का इंतजार रहेगा |

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  12. यह अपराध तो बाद में बनता है,पहले तो एक बीमारी ही है। जो व्‍यक्ति को इस हद तक सोचने को मजबूर कर देती है।

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  13. अंशुमाला जी, ये एक बेहद निम्‍न कोटि की मानसिकता है, जो मानसिक बीमारी के करीब ठहरती है। वैसे इसके विरूद्ध कानून तो सख्‍त बनाए जाने चाहिए, लेकिन इससे इतर भी सोचा विचारा जाना चाहिए कि इसके लिए और क्‍या क्‍या किया जा सकता है।

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  14. सुविचारों और सम्वेदनशीलता का प्रचार प्रसार ही एक मात्र साधन है ऐसी मानसिकताओं को समाज में कुछ कम करे।

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  15. शिखा वार्ष्णेय से सहमत हूँ , सजा ऐसी बर्बर दीजिये कि सुनकर इन हरामजादों कि हिम्मत ही न पड़े ...

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  16. भारत में कुछ summary system की ज़रूरत है. कानूनों का क्या है हज़ार बनवा लो, सज़ा हो तब न

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  17. कानून बना कर हम अपराधी को सजा तो दिला सकते है पर इसके साथ ही ये भी जरुरी है की इस तरह के अपराध दोहराए ना जाये किसी और लड़की के साथ इस तरह का अपराध ना हो इसके लिए भी कुछ किया जाये | तो इसके लिए ज़रुरी है कि अपराध की मानसिकता पर चोट की जाय
    सही बात है। अपराधी को सज़ी देने वाले कानूनों की कोई कमी नहीं है। कमी है को न्याय का निस्तारण करने वाले कानूनों की कमी की जहाँ गवाह, पुलिस, वकील, न्यायालय आदि संस्थाओं की अक्षमता के कारण अपराधी निरंतर बचते रहते हैं। साथ ही घर, बाहर, स्कूल, आदि हर जगह पर लोगों को (विशेषकर लडकियों को) इतना समझदार और सशक्त किया जाये कि वे ऐसे लोगों के खिलाफ खडे होकर समुचित और सम्यक कार्यवाही कर सकें। मिलते जुलते विषय पर कुछ विचार लिखे थे, यहाँ देखे जा सकते हैं: लड़कियों को कराते और लड़कों को ...

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