February 23, 2011

ऐसे ऐसे कैसे कैसे ये पति - - - - - - - mangopeople

 सौ देश के सौ पुरुष सौ तरह के हो सकते है किन्तु दुनिया के किसी भी कोने से पति को लाइए वो सब के सब एक ही तरह के होते है मतलब की पत्नी को लेकर उनकी सोच लगभग एक जैसी होगी पत्नी के साथ उनका व्यवहार बातचित लगभग एक सी होगी  | दुनिया के किसी भी कोने से किसी पत्नी से अपने पति की खराबिया बुरी आदते पूछिये सब मेल खाती होंगी बस संस्कृति और रहन सहन के तरीके के कारण दो चार इधर उधर हो सकती है नहीं तो सभी पत्नियों को एक सी समस्याए पतियों से होती है | कुछ खास का जिक्र यहाँ कर रही हूँ देखिये की आप के पति किस श्रेणी में आते है या आप किस श्रेणी के पति है |

प्यार का दावा करने वाले पति :- ज्यादातर पति दावा करते है की वो अपनी पत्नियों को बहुत प्यार करते है, करते है तो करते है , इसमे कहने की क्या जरुरत है ( खास कर अरेंज मैरिजवाले, वैसे लव मैरिज वालो की स्थिति भी कुछ साल बाद अरेंज मैरिज वालो जैसी ही हो जाती है या ये कहू कुछ ज्यादा ही बत्तर ) " सिर्फ एहसास है इसे रूह से महसूस करो " और ये वाला गाना उनकी टैग लाइन होती है | पर जिस पत्नी को इस एहसास को, कि उसका पति उसे बहुत प्यार करता है,  महसूस करना चाहिए उसकी रूह सारा जीवन उसे प्यार को बस ढूंढ़ते गुजर देती है पर वो मिलती नहीं |  जिस बेचारी को असल में प्यार को महसूस करना चाहिए वो उसे कभी ऐसा कर ही नहीं पाती | करे भी कैसे पति जब उसके साथ दो घडी बैठे तब ना सुबह का समय तो मान कर चलिए की शायद ही किसी को एक दुसरे के लिए समय हो आफिस से आने के बाद पति फ्रेस हो कर सीधा गली के नुक्कड़ पर दोस्तों के पास या जहा भी उनकी मंडली जमती हो कुछ तो आफिस के बाद मंडली जमा कर ही वापस घर आते है और कुछ परिवार के बाकि सदस्यों के साथ टीवी के पास या काम के मारो के पास आफिस का काम तो कुछ को विवाह के बाद भी एकांत से प्यार , अब तो टीवी के साथ निगोड़ी इंटरनेट भी है कभी सोसल नेटवर्किंग साइड तो कभी ब्लोगिंग | ब्लोगिंग से अपने विचार अनजाने को पहुंचा दिया दुसरो का सुन लिया पर पत्नी के विचारो से बिलकुल अनजान , नेटवर्किंग साइड पर अपना नेटवर्क खूब मजबूत कर लिया पर पत्नी को इनके नेटवर्क में कभी आती ही नहीं | जो पत्नी को कुछ कहना है तो अब सुबह सुबह मेरे पास समय नहीं है तुम्हारा रोना धोना  सुनने के लिए बाद में बताना , शाम को लो घर में अभी घुसा नहीं की तुम्हारा रोना धोना शुरू हो गया और रात में अब सोने के समय में अपना रोना धोना ले कर मत बैठ जाओ और छुट्टी के दिन में अब अपना ये सब लेकर सुरु मत हो जाओ मेरी छुट्टी ना बर्बाद करो | अब तो नरसिंह देव ही कोई बेला ( समय ) बता सकते है इन पतियों से बात करने का जो उन्हें हमेशा पत्नियों का रोना धोना लगता है | अब इन से क्या बात करे ???

बचत करने वाले पति  :-  पतियों की बड़ी शिकायत रहती है की पत्निया बड़ी फिजूल खर्च होती है पैसे बचत नहीं करती है |  " फलाने की पत्नी को देखो कितना बचत करती है सेल से ढूंढ़ ढूंढ़ कर सस्ते में सामान लाती है और एक तुम हो की ब्रांड के निचे बात ही नहीं करती हो तुम्हारे लिए तो महंगी चीज ही अच्छी होती है सस्ता मतलब बेकार | हर सामान के लिए मॉल भागोगी सामने की दुकान से कुछ भी नहीं लोगी जहा वही चीज सस्ते में मिल जाएगी  , कभी बचत भी किया करो" और जैसे ही पत्नी ने बचत की पति  " ये कौन से ब्रांड का डियो ले आई हो मै इस ब्रांड का नहीं लगता हु " पत्नी " अजी पहले तो यही लगाते थे ,एक पर एक फ्री मिल रहा था ले आई " पति " क्या सेल से उठा लाई हो तुम्हारा तो कोई क्लास ही नहीं है कहने के लिए मॉल में जाती हो पर ढंग का सामान नहीं लाती कुछ भी सेल से उठा लाती हो और ये शर्ट कहा से लाई हो " " जी सामने वाली दुकान से " " क्या वो सामने वाली फटेहाल सी दुकान से वहा से तो मै अपने लिए रुमाल भी न लू उसके पास कुछ ढंग का मिलाता भी है तुम भी कही से भी कुछ उठा लाती हो "| लो कल्लो बात अब इनके लिए क्या ख़रीदे ???

साफ सफाई पसंद पति  :- इस टाईप के पति को घर हमेशा साफ सुथरा दिखना चाहिए | साफ सुथरे घर में ये आफिस से आते ही अपना बैग सोफे पे फेका और वही पर जूता उतर कर छोड़ दिया मोजो को ऊतार कर जूते में नहीं डालेंगे उसे सामने सेंटर टेबल पर रख देंगे फिर बेडरूम में जा कर कपडे बिस्तर पर छोड़ फ्रेस होने बाथरूम में चले जायेंगे और बाहर आ कर कहेंगे ये घर की क्या हालत बना दी है जब देखो पूरा घर फैला रहता है यहाँ वहा सामान फैला पड़ा है घर को ढंग से रखना आता ही नहीं | कुछ थोड़े व्यवस्थि होते है और अपने फैलाए सामान को समेटना शुरू कर कहते है इस घर की हालत देखो यदि मै यहाँ वहा से सामान न समेटू घर ढंग से न रखु तो घर घर नहीं कूड़ा खाना लगेगा | अब इनको क्या कहे ???

भोजन पसंद पति :- पत्नी ने बड़े प्यार उनकी फेवरेट वाला संभार बनाया और पति देव पहला चम्मच मुहं में डालते ही " तुमको तो संभार बनाना ही नहीं आता है कितना सडा सा लगा रहा है उस दिन देखो मिसेस रेड्डी ने कितना अच्छा संभार बनाया था और उस दिन छोले भी कितना बेकार बने थी मिसेस भल्ला के हाथ के छोले की तो बता ही कुछ और है " और बेचारी पत्नी " जिस सांभर को तुम सडा हुआ कह रहे हो और छोलो को बेकार उसी दोनों की रेड्डी जी और भाल्ला जी तारीफ करते नहीं अघाते एक कटोरी भेजती हूँ दूसरी कटोरी मांग कर ले जाते है " | अब इनको क्या खिलाए ???

मैनर वाले पति :- ऐसे पतियों के साथ यदि पत्नी उनके बॉस या किसी अति खास व्यक्ति के साथ भोजन करने जाये तो उसे इतने टेबल मैनर बताये जांयेंगे की पत्नी को लगेगा की उससे बड़ा गावर तो कोई होगा ही नहीं शायद वो किसी जंगल से पकड़ कर आई है पर जब पत्नी कभी पति साथ कही बाहर खाने को जाये तो पति देव खाना सर्व होते ही बिना किसी की और देखे खुद खाना शुरू कर देंगे  चाहे किसी और के प्लेट में खाना सर्व भी नहीं हुआ हो खाना खाते समय बड़ा बड़ा मुंह खोल कर आवाज करते हुए ऐसे खायेंगे की सामने बैठा क्या बगल की सिट वाला भी मुड़ कर देखने लगे , खाने के बाद पेट पर हाथ फेर कर जोर का डकार मार देंगे, वो भी तब जब कभी सामने पत्नी की सहेलिया हो या वो रिश्तेदार हो जिनको पत्नियों ने अपने पति के मैनर वाला होने की शान बघारी हो | मुफ्त का टूथ पिक देख उस पर टूट पड़ेंगे और वही सबके सामने दांत साफ करना शुरू कर देंगे भले घर पर कभी खाने के बाद दांत न साफ करते हो  | नाक में उंगली डालना , छिकते, खासते और जम्हाही लेते समय हाथ न रखना, सबके सामने कही भी खुजली करना सुरु कर देना , बिना हाथ धोए खाने बैठ जाना और  तुर्रा ये की ये सब चोचले है इन्हें घर पर करने की जरुरत नहीं है घर तो आराम से रहने की जरुरत है और यही हरकते जब उनका देख कर बच्चे करे तो " कैसी माँ हो बच्चो को जरा भी ढंग के मैनर नहीं सिखाया है करती क्या हो " |  अब इनको क्या सिखाये ???

पत्नी की हिफाजत करने वाले पति :- ऐसे पति बड़े हिफाजती होते है अपनी पत्नी को बहार ले जाने में बड़ा डरते है, दोस्तों के साथ कही घूमने का कार्यक्रम बना या एक दिन के पिकनिक का, कुछ अपनी पत्नी समेत जायेंगे पर कुछ पत्नी हिफाजती पति पहला फर्ज निभाते हुए पत्नी को हर कष्टों से दूर करने का प्रयास करेंगे , अरे कही तुम बीमार पड़ गई तो, तुम वहा क्या करोगी बोर हो जाओगी ,  वहा बहुत चलना पड़ता है तुम नहीं चल पाओगी, इतनी ठंडी गर्मी तुम बर्दास्त नहीं कर पाओगी ,अरे बच्चा इतना छोटा है उसे लेकर कहा बेकार में परेशान होगी ,तुम थक जाओगी नाहक, यही घर पर आराम से रहो मै हो कर आता हूँ | फिर बेचारे पत्नी को न ले जा पाने का कष्ट सह नहीं पाते है और जब वहा दूसरो को अपनी पत्नियों के साथ नाचे गाते आन्नद उठाते देखते है तो अपना गम  दूसरो की पत्नियों के साथ ही नाच गा मिटाते है " क्या भाभी जी एक डांस मेरे साथ भी क्या डांस करती है आप " अपने बच्चे घर पर छोड़ कर आते है और दूसरो के बच्चो के साथ वहा बड़ा प्यार जताते है सबके फेवरेट अंकल बन जाते है |
                        ऐसे पति प्रकृति प्रेमी भी होते है जब बाकि अपने बीबी बच्चो के साथ फोटो ले कर अपनी यादो को समेटते है तो ये बेचारे अपने कैमरा में प्रकृति की सुन्दरता को ही कैद कर संतुष्ट होते है | पहाड़, झरना, नदी, नाला, समंदर, रेत बर्फ आदि आदि की फोटो लेते रहते है पर ये अन्य प्रकृति प्रेमियों से थोड़े अलग होते है इसलिए इनकी फोटो में प्रकृति के सुन्दर नजारों के साथ ही आप पाएंगे की फोटो के एक कोने में या कभी कभी बीच में ,तस्वीर की सुन्दरता बढ़ाने के लिए कोई सुन्दर सुकोमल महिला या लड़की अवश्य होती है जो गलती से अचानक से इनकी प्राकृतिक फोटो में आ जाती है | अब इनको कहा घुमाये ???

 पत्नी की सुनने वाले पति :-पत्नी जब टोक दे की फलाने बाजार मत जाओ यो आज बंद रहता है तो उसकी बात अनसुना कर चल देंगे जब उसकी बात सही निकलेगी तो कहेंगे की मै तो जनता ही था कि  नहीं मिलेगा बाजार बंद होगा तुम पहले ही टोक जो दी थी, तुम टोको और कोई काम हो जाये होई नहीं सकता और जब पत्नी न टोके तो पहले क्यों नहीं टोका की आज वो बाजार बंद होगा बेवजह उतनी दूर जा कर पैसा समय बर्बाद किया | पत्नी याद दिलाए की बिल आया है जमा कर दीजिये तो कहेंगे की अभी कल आया है न आज समय नहीं है बाद में याद दिलाना जमा कर दूंगा और दो चार बार याद दिलाने पर कहेंगे की क्या किसी चीज के पीछे पड़ गई हो बार बार एक चीज की रट लगा दी है कहा ना समय मिलेगा तो जमा कर दूंगा आखरी तारीख बीतने के बाद पत्नी पूछेगी की जमा कर दिया तो कहेंगे की पहले क्यों नहीं याद दिलाया अब बता रही हो आखरी तारीख बीतने के बाद, पत्नी उत्तर देगी जिस दिन आया था उसी दिन याद दिला दिया था, तो जवाब मिलेगा की दो चार बार याद दिलाना था ना | अब इनको क्या क्या याद दिलाए ???

गैजेट पसंद पति :- हा इन पतियों को गैजेट काफी पसंद होते है खास कर अपनी पत्नियों के मोबाईल | उन्हें अपने मोबाईल  से ज्यादा अपनी पत्नियों के मोबाईल  पसंद होते है उसके गेम, उनकी मोबाई से ली तस्वीरे आदि आदि और इस की आड़ में ये पत्नियों की आई गई काल से लेकर सारे सन्देश भी छान मारते है की उनके पीछे पत्नी ने किस किस से बात की और किस किस का कितना फोन आया और कौन कौन किस किस तरह के संदेस पत्नियों के पास भेज  रहा है | वैसे ऐसे लोग सिर्फ पत्नियों के नहीं अपनी सभी महिला रिश्तेदारों के और जान पहचान वाले खासकर महिलाओ के फोन इसी तरह खंगाल डालते है | ( इस बारे में अगली पोस्ट में और विस्तार से लिखूंगी फ़िलहाल के लिए इतना ही | )

 बच्चो से प्यार करने वाले पति :- ऐसे पतियों को बच्चो से बड़ा प्यार होता है जैसे विवाह के बाद पत्नी कहती है की वो अभी बच्चे नहीं चाहती पहले कुछ साल एक दुसरे को समझने और अपने कैरियर को देना चाहती है तो तुरंत ऐसे पतियों को बच्चे के प्रति बड़ा प्यार पैदा हो जाता है और शुरू हो जाता है बच्चे की रट की मुझे बच्चे बड़े प्यारे लगते है, मै तो अभी एक बच्चा चाहता हूँ, हमें लगता है की पहले हमें एक बच्चा कर लें चाहिए फिर आराम से दूसरी चीजो के बारे में सोचना चाहिए, कही हम देर करे तो कल को बच्चे के लिए हमें तरसना ना पड़े उनको देखो उन्होंने देर की तो उन्हें हुआ ही नही, या घर में सभी हमारे बच्चे के लिए इंतजार कर रहे है माँ पापा की आँखे अपने पोता पोती के लिए तरस रहे है ऐसा करो एक बच्चा कर लेते है माँ उसे देखेगी तुम आराम से अपने काम को देखना कोई परेशानी नहीं होगी आदि आदि | अब पहला बच्चा हो गया तो, अरे मेरी माँ उसकी कैसे देखभाल कर पायेगी वो इतने छोटे बच्चे को कैसे संभालेगी , बच्चे की देखभाल तुम ही करो माँ अपने बच्चे को जितने अच्छे से संभाल सकती है कोई और उसे नहीं कर सकता वगैराह वगैराह, लो निकल गए चार साल और | चार साल बाद एक बार फिर पत्नी की इच्छा ने अंगड़ाई ली और वो बोली मुझे लगता है की अब मुझे अपने काम करने के बारे में सोचना चाहिए अब हमारी बेटा \ बेटी स्कुल जा रहे है मै खाली हूँ तभी पति की दुसरे बच्चे की इच्छा अंगड़ाई लेने लगती है | मुझे लगता है की हमें दूसरा बच्चा कर लेना चाहिए ,क्या है न की एक बेटा \बेटी तो है इस बार बेटा \बेटी हो जाये तो परिवार एक तरह से पूरा हो जायेगा, घर में दो बच्चे तो होने ही चाहिए दोनों के कम्पनी मिलती है फिर पत्नी को दो बच्चे होने के सारे फायदे गिना दिए जाते है और घर में दूसरा बच्चा आ जाता है और चार साल की छुट्टी |
 इनमे से भी कुछ ऐसे होते है जो बच्चो को कितना प्यार करते है की पूछिये मत पत्नी को सीधा फरमान रहता है की मेरे आने से पहले उसे सुला देना , मेरे सामने इसकी चिल्ल पो नहीं होनी चाहिए, यदि बच्चे बड़े है तो बच्चो को पापा के घर आते ही उनके कमरे में न जाने का फरमाना सुना दिया जाता है या तो उन्हें उनके कमरे में चुप चाप रहने को कह दिया जाता है या फिर उन्हें घर से बाहर खेलने के लिए कहा दिया जाता है और खाने और सोने के समय ही आने के लिए कहा जाता है | उफ़ ये प्यारे पापा ???

               वैसे ये लिस्ट यही ख़त्म नहीं होती है अभी तो इसमे कई और बाते जुड़ सकती है जो मुझसे छुट गई है वो आप पाठक पूरा कर दे मै पोस्ट में जोड़ती जाउंगी |
 एक नई फिल्म आई है उसका एक संवाद पोस्ट पर बिलकुल ठीक बैठता है तो उसका जिक्र कर देती हूँ कि
 " दुनिया की हर पत्नी कभी न कभी , कभी न कभी अपने पति से हमेशा के लिए छुटकारे के बारे में जरुर सोचती है " |
 वैसे पूरी तरीके से नहीं ( मतलब वो तरीका नहीं अपनाती या सोचती जो फिल्म में दिखाया गया है और छुटकारा की सोच कुछ समय के लिए ही हो सकती है  ) पर कुछ हद तक तो मुझे लगता है प्रियंका डार्लिंग ठीक ही कह रही है | :)))


February 18, 2011

ये कौन सी श्रेणी की ईमानदारी है - - - - - mangopeople




                                                        सेठ जी की दुकान में चोरी हो गई सेठ जी परेशान जाँच कराई तो पता चला की चोर तो दुकान के कर्मचारी ही निकले जो रात में आ कर दुकान से सामान चोरी कर गए थे पता चला की इस काम में सभी कर्मचारी लगे थे सिवाए एक के वो था दुकान का चौकीदार | सेठ जी ने उसे बुला कर पूछा की तुम्हारे रहते चोरी कैसे हो गई | चौकीदार बोला जी ईमानदारी तो मेरे खून में है इसी कारण तो आप ने मुझे दुकान का चौकीदार बनाया था | मैंने देखा की ये लोग दुकान से चोरी कर रहे है मैंने इन्हें ऐसा न करने को कहा भी पर ये नहीं माने और फिर मुझे लगा की अपनी ही दुकान है ये ज्यादा नहीं चुरायेंगे पर मै इमानदार बना रहा दुकान मेरे सामने खुली पड़ी थी पर मैंने उसमे से एक पैसा हाथ नहीं लगाया ये मेरी ईमानदारी का सबूत है आप जितना दोषी मुझे समझ रहे है उतना मै हूँ नहीं | 
                                        
                                                            अब ये बताइए की इस तरह की ईमानदारी को आप किस श्रेणी में रखेंगे , ऐसे ईमानदार चौकीदार का क्या किया जाये क्या हमें ऐसे साफ सुथरे चरित्र वाले व्यक्ति को फिर से चौकीदार बना कर अपने देश की बागडोर सौप देनी चाहिए | देश के प्रधान मंत्री के बारे में बार बार ये कहा जाता है की वो काफी ईमानदार है साफ सुथरी छवि वाले है योग्य है , पर ऐसी ईमानदारी का क्या फायदा की वो भले खुद न कुछ गलत करे पर दूसरो को करता देख चुप रहे घोटाले होते रहे और वो इसे गठबंधन की मजबूरी बताते रहे | देश का प्रधान मंत्री जिस को पुरे देश की खबर होनी चाहिए वो  ये कहे की उसे तो पता ही नहीं की उसके मंत्री इतनी बड़ी गड़बड़ी कर रहे है | जिस के नेतृत्व में देश को काम करना चाहिए वो ये कहे की उसने तो कहा था पर उसके मंत्रियो ने उसकी बात सुनी ही नहीं तो वो क्या करे | मंत्री मंडल का निर्माण करना प्रधान मंत्री का विशेषाधिकार होता है वो अपने टीम का चुनाव कर देश पर साशन करता है और  वो ये कहे की कौन मंत्री बनेगा ये वो तय नहीं कर सकता है और गठबंधन की राजनीती की मजबूरी गिनाये की उसे तो हर हल में दूसरो का सुनना है तो आप क्या कहेंगे, क्या देश को ऐसे प्रधानमंत्री  के भरोसे होना चाहिए | क्या उस व्यक्ति को ईमानदार कहा जा सकता है जो भले खुद कोई गलत काम न करे पर सब होता देखता रहे | कम से कम मै इसे ईमानदारी की श्रेणी में नहीं रखती हूँ और मनमोहन सिंह को उतना ईमानदार नहीं मानती जितना की उनके लिए प्रचारित किया जाता है |
                                                                         
                                                              ये बात सभी जानते है की यदि आज मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री की गद्दी पर है तो उसकी वजह उनका सीधा साधा, ईमानदार होना, चुपचाप हुकुम के गुलाम की तरह काम करना , षडयंत्र ,गद्दी, जमीनी और तिकड़म की राजनिति से उनका दूर होना है, उनका योग्य होना नहीं क्योकि उनकी योग्यता सिर्फ आर्थिक मामलों में है जो देश के वित्त मंत्री बनने (?) की योग्यता है प्रधानमंत्री की नहीं | देश को चलाने के लिए जिस मजबूती ,कूटनीति और शातिर दिमाग की जरुरत है वो मनमोहन सिंह के पास नहीं है वो योग्यता कांग्रेस में कई दुसरे नेताओ के पास थी पर उन्हें सत्ता नहीं सौपी गई क्योकि किंग मेकर को एक ऐसे व्यक्ति की जरुरत थी जो कठपुतली की तरह उनके इशारो पर काम करे और युवराज  के परिपक्त होने तक ही उसे संभाले उनके लिए एक साफ सुथरा काँटों से रहित रास्ता बनाये, ना की कुछ समय बाद गद्दी को हथिया ले | अपनी पहली पारी में वो उनकी उम्मीदों पर पूरी तरह खरे उतरे और ईनाम के तौर पर उन्हें दूसरी पारी भी खेलने के लिए दे दी गई | ये इनाम कठपुतली बने रहने के लिए दी गई थी ना की कोई अच्छा काम करने के बदले |
                                        
                                      कल जिस प्रधानमंत्री को अमेरिका से परमाणु समझौते के मुद्दे पर गढ़बंधन को तोड़ने में कोई हिचक नहीं थी आज वही प्रधानमंत्री एक भ्रष्ट व्यक्ति को फिर से मंत्री बनाने पर सफाई देते है की ये गठबंधन की मजबूरी है मंत्री बनाना उनके हाथ में नहीं था | गठबंधन की राजनीति में कुछ मजबूरिय होती है सभी जानते है किन्तु ये सरकार बचाने और बनाने की मजबुरिया इतनी बड़ी भी नहीं होती की उन्हें देश हित से ऊपर रख कर जानबूझ कर एक ऐसे व्यक्ति को मंत्री बना दिया जाये जो पहले की देश को लाखो करोड़ का चुना लगा चूका हो और अपनी तिजोरिया भर चूका हो | प्रधानमंत्री का ये बयान तो ये दरशाता है की कल को वो जेल में बंद किसी अपराधी को भी मंत्री बनाने से नहीं हिचकेंगे बस उनकी सरकार बननी चाहिए | क्या ये ईमानदारी है अपने हित के लिए देश हित को भुला देने ईमानदारी है | इसको छोडिये कामनवेल्थ गेम्स में जो घोटाले हो रहे थे उन्हें नहीं रोक पाना और सब पता लगने के बाद भी कलमाड़ी को उनके पद से नहीं हटाने की क्या मज़बूरी थी यहाँ तो कोई गठबंधन की मज़बूरी नहीं थी फिर उन्हें हटाने में इतना समय क्यों ले लिया गया |
                                                २- जी घोटाले पर वो कहते है उन्हें कुछ पता ही नहीं की राजा इतनी बड़ी गड़बड़ी कर रहे है |  क्या ये सही है की देश के प्रधानमत्री को अपने मंत्रियो के कारनामे ही पता नहीं है जबकि ऐसे लोगो की कोई कमी नहीं है जो ये बात साबित कर चुके है की इस गड़बड़ी की शिकायत तुरंत ही प्रधानमंत्री को कर दी गई थी | आर्थिक मामलों के महान जानकर(?) हमारे प्रधानमंत्री ये नहीं जानते की मंहगाई कैसे काबू में किया जाये किसानो की आत्महत्याए कैसे रोकी जाये | ये मामले सिर्फ कृषि मंत्री के जिम्मे नहीं है (वैसे वो अपनी तरफ से पूरा प्रयास कर रहे थे और अपने बयानों से मंहगाई को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे ) ये सीधे सरकार की नीति से सम्बंधित है जिसके लिए प्रधानमंत्री जिम्मेदार है , पर आर्थिक मामलों के जानकर प्रधनमंत्री ने किया क्या कुछ भी नहीं सिवाए कोरे आश्वासनों के जो कभी पुरे नहीं हुए |  
                                                                             अब इसे देश की विडम्बना ना कहे तो क्या कहे जब देश का प्रधनमंत्री सबसे ईमानदार है तभी देश में घोटालो की लाइन लगी है एक घोटाले की खबर ख़त्म नहीं होती दूसरी सामने आ जाती है अब इसरो से जुड़ा घोटाला सामने आ गया है कहा जा रहा है की डील तो हुई थी किन्तु उसे लागु नहीं किया गया था इसलिए इसे घोटाला नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे "घेलुवा"  | ये सब देख कर तो यही कहना होगा की भगवान बचाए ऐसे ईमानदार प्रधानमंत्री से जिसके रहते इतने घोटाले हो रहे है और ईमानदारी का लेबल नहीं उतरता | जिस तरह कभी अटल जी एन डी ए के मुखौटा भर थे आज उसी तरह मनमोहन सिंह भी यु पी ए के मुखौटा बन गए है |



चलते चलते 
               सरकार विपक्ष के जेपीसी जाँच की मांग को नहीं मान रही है आप को क्या लगता है क्यों ?
 उसे सच सामने आने का डर है |
वो विपक्ष के आगे झुकाना नहीं चाहता |
वो विपक्ष के हाथ अपने अपराध का सबूत नहीं देना चाहता |
  नहीं जी ये बात नहीं है इसके पीछे एक अंधविश्वास है कि जिस भी सरकार ने जेपीसी की मांग मानी है अगली बार उसकी सरकार चली गई है | अब तक दो बार जेपीसी बनी है और उसे बनाने वाली सरकारे चली गई है | जिसमे एक बार तो खुद कांग्रेस की ही सरकार थी जब राजीव ने लगभग ४५ दिनों के हंगामे के बाद बोफोर्स पर जेपीसी बनाने की मांग मान ली थी और उसके बाद क्या हुआ सब जानते है | अब सुनने में आ रह है कि बजट सत्र में ये मांग मान ली जाएगी तो क्या मनमोहन सिंह के दिन पुरे होने वाले है .........





February 15, 2011

हम टैक्स बचाते है चुराते नहीं - - - - - - -mangopeople



                                                          मार्च आने वाला है सब लगे है अपना अपना टैक्स चुराने उप्स बचाने में कैसे कितना टैक्स बचा ले | नौकरी पेशा वालो में ज्यादातर तो पहले ही अपना अपना इंतजाम कर चुके है लेकिन अपना काम  धंधा करने वाले और नौकरी के अलावा साईड इनकम वाले पैसे ठिकाने लगने में लगे हुए है | मुझे लगता है की वो लोग बेफकुफी करते है, टैक्स बचाना ( चुराना ) कोई एक या दो महीने का काम नहीं है ये तो पूरे साल चलने वाली सतत गतिविधि है जो निरंतर चलते रहनी चाहिए ना की फ़रवरी में आ कर हड़बड़ी करनी चाहिए | टैक्स बचाऊ मौसम में मेरा एक प्रकाशित लेख फिर से प्रकाशित कर रही हूं कुछ संसोधनो के साथ ताकि जो बेचारा आम आदमी अब तक ये ना कर सका हो उसे कुछ उपाय पता चले अपने करो को बचाने के |

                                                                   बस बजट आने वाला है सभी की निगाहे बजट का बाट जो रही है जैसे की कोई जादू हो जायेगा और रातो रात महंगाई ख़त्म हो जाएगी जबकि दादा ने खुद कह दिया है की उनके पास कोई जादुई चिराग नहीं है जो मंहगाई कम कर दे फिर भी हम भारतीय हमेशा चमत्कार की आस लगाये बैठे रहते है | वैसे आम आदमी को मुझे नहीं लगाता है की कुछ मिलेगा पर हा इस बार कुछ ऐसा भी नहीं होने वाला है जिससे उसकी जेब ढिली होने की संभावना हो , नहीं जी प्रणव दादा को हमारी फिकर नहीं है जी उन्हें तो अपने राज्य में होने वाले चुनावों की फिकर है इसलिए लगता है की दादा और दीदी दोनों इस बार अपने अपने बजट में आम आदमी को कमर तो नहीं तोड़ेंगे |  अच्छा हो यदि हर साल मई जून  में किसी न किसी राज्य में चुनाव हो इस तरह महगाई के बीच बजट में किसी चीज का दाम बढ़ाने से पहले दस हजार बार सोचेंगे हमारे वित्त मंत्री लोग  | अब बेचारे आम आदमी का क्या होगा एक तो पहले से ही महगाई की मार से मरे जा रहा था उस पर से पेट्रोलियम पदार्थो के दाम लगातार बढने से तो हर चीज के दाम और बढाने का दुकानदारो को वजह मिल जाता है  (वैसे उन्हें दाम बढाने के लिए किसी वजह की जरुरत नहीं है) | सही कहा गया है कि आम आदमी की कोई सुध नहीं लेता है | अब देखीये न प्रणव दा ने पिछले साल कहने के लिये तो आय कर में राहत दी है पर ये राहत मिल किसको रही है उन्हें जो ज्यादा कमाते है | साल के तीन लाख तक कमाने वाले को कोई फायदा ही नहीं है जिसे असल में इस राहत की जरुरत थी पर राहत मिल किसे रही है जो इससे ज्यादा और ज्यादा कमा रहा है |  कहने के लिये तो ये आम बजट होता है पर आम आदमी से इसका कोई मतलब ही नहीं होता है |
 
                                                              आयकर विभाग कहता है की विकास  के लिये हमें आयकर और हर तरह का कर भरना चाहिए , विकास  के लिये पैसे की जरुरत है ( तो विकास  के घरवालो से मागो ना ) इसलिये हमारी जेब काटी जा रही है सीधे से नहीं पीछे से | अरे लेना है तो उन उद्यियोगपतियों से मागो जो फोर्ड पत्रिका के रईसों कि सूची में दिन पर दिन ऊपर चढ़ते जा रहें है, पुरे विश्व में बड़ी बड़ी कंपनिया खरीद रहे है, हम तो राशन की  दुकान से राशन भी नहीं खरीद पा रहे है | वो सब तो लाखो खर्च करके(सी ए को देकर) करोडो अरबो बचा लेते है पर एक नौकरीपेशा आम आदमी की तो ये हालत है कि पहले टैक्स कटता है फिर वेतन हाथ में आती है | वो चोरी कर करके दिन पर दिन और अमीर बनते जा रहे है और हम टैक्स भर भर कर आम आदमी ( आम आदमी का मतलब ही है गरीब बेचारा) बनते जा रहे है |
   
                                                 ऊपरवाला जनता है जो हमने एक ढ़ेले कि टैक्स चोरी की हो, अब जब ऊपरवाले का नाम लिया है तो थोड़ी ईमानदारी बरतनी चाहिए हा एक दो बार थोडा सा टैक्स बचाया है देखीये मै पहले ही कह दे रही हु की टैक्स बचाया है चोरी नहीं की है अरे भाई जहा से गहने खरीदे थे वो हमारे परचित है हम सात पुस्तो से वहा से गहने खरीद रहे है इस नाते उन्होंने सलाह दिया कि क्यों बेकार में पक्का रसीद बनवा रही है टैक्स देना पडेगा कच्चा रसीद बनवाइये टैक्स बच जायेगा तो हमने टैक्स बचा लिया इसमे कौन से बड़ी बात है कौन से हमने रईसों की तरह लाखो करोडो के गहने ख़रीदे थे , सरकार का ज्यादा कुछ नहीं गया |
                                       
                                              देखीये एक हाथ से जो थोडा बचाया वो दुसरे हाथ से भरवा भी दिया गाँव में पिताजी ने नया मकान खरीदा पुरे बीस लाख का और रजिस्ट्री कराने लगे सिर्फ पांच लाख की मैंने सीधा विरोध किया ये भी कोई बात हुई बीस का मकान और सिर्फ पांच की दिखा रहे है इतना टैक्स की चोरी ठीक नहीं है कम से कम छ: लाख तो दिखाइए ही, पड़ोस का घर भी इतने में ही गया है इससे कम दिखाया तो फंस जायेगे जितना बचाया है उससे ज्यादा चले जायेगे | देखीये कई बार क्या होता है की टैक्स बचाना मजबूरी हो जाती है अब जब पिता जी ने घर लिया है तो उसके लिए फर्नीचर वगैरा तो लेना ही पड़ेगा भैया ने सीधा कह दिया की पापा चुप चाप  फर्नीचर लीजिये और घर चलिए रसीद पुर्जा के चक्कर में मत पड़िए बेकार में ऐट वैट भरना पड़ जायेगा फिर टैक्स ही भरते रहियेगा क्योकि फिर कुछ और खरीदने के लिए पैसा ही नहीं बचेगा | बात तो वह सही कह रहा है अब इस मजबूरी को तो सरकार को समझाना ही चाहिए |
   
                                                                        देखा हम तो फिर भी भले लोग है जितना हो सके टैक्स भरते रहते है (क्या करे मजबूरी है वेतन टैक्स काट कर ही मिलता है ) नहीं तो लोग टैक्स बचाने  (चुराने) के लिए क्या नहीं करते | अब हमारे पड़ोसी को ही ले लीजिये एन जी ओ चलाते है कोई ऐसा वैसा एन जी ओ नहीं है बाकायदा सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है | काफी अच्छी इनकम होती है और काम कुछ नहीं करना पड़ता है बस लोगों के सफ़ेद को काला करते है (ताकि दिखाई न दे) लोगों से दान लेते है और दो प्रतिशत काट के बाकि  पैसे वापस कर देते है | सुना है कभी कभी कुछ भलाई का काम भी करते है  कुछ गरीब बच्चो को पढ़ा देते है या गरीब महिलाओ को कुछ सिलाई वगैरा भी सिखा देते है | हमसे भी कितनी बार कहा की भाई साहब क्या खामखाह में वेतन से इतना टैक्स कटवा देते है आखीर हम और हमारी संस्था किस काम आयेगी | पर मैंने साफ मना कर दिया की "मुझे इन चीजो में बिलकुल भी विश्वास नहीं है हम तो पुरा कर भरेंगे " मैने उनकी संस्था को कोई दान नहीं दिया | पड़ोसी है उनका क्या भरोसा पड़ोसियों का काम ही जलना होता है क्या पता पैसे ले और वापस ही न करे तो, जितना टैक्स बचेगा नहीं उससे ज्यादा चला जायेगा | मै तो कोई दूसरा ज्यादा विश्वसनीय संस्था खोज रही हु जहा पैसे वापस मिलाने की गारंटी हो |
                                                                     
                                            हम जो भी काम करते है सोच समझ कर करते है और पहले ही कर लेते है ई नहीं की बाद में अफसोस हो की ये पहले ही क्यों नहीं किया | मेरे पति ने तो हमारा घर ही हमारे नाम पर लिया एक तो माहिला के नाम घर लेने पर ही कुछ कर में छुट मिल गई फिर हमारे उन्होंने कहा की घर तुम्हारे नाम रहा तो सारे जिंदगी तुम्हारे किरायेदार के रूप में रहूँगा और जो तुम्हे किराया दूंगा उस पर कर की बचत हो जाएगी | मेरे वो दूसरो की तरह नहीं है की खुद को किरायदार बताये और अपने मकान मालिक पत्नी,माँ या पिताजी को किराए का पैसा न दे महीने की पहली तारीख को मेरे बैंक खाते में किराया जमा कर देते है अजी उन्ही पैसो से तो घर चलता है |
       
                                                                           हम पत्नियों पर पतियों को किसी अन्य मामले में विश्वास और हमारा ख्याल हो न हो  पर उनकी साइड इनकम और इनवेस्टमेंट हमारे ही नाम होती है हमारा भविष्य सुरक्षित रखने के लिये (इसे ऐसे पढ़े अपने इंवेस्टमेंट से होने वाली इन्कम को सुरक्षित करने के लिए ) चाहे शेयर बाजार में पैसा लगाना हो या कोई बड़ी रकम फिक्सडिपोसिद करना हो या फिर कोई जमीन जायदाद खरीदना हो सारे इन्वेस्टमेंट  घर गृहस्थी में सारा जीवन गुजार देने वाली हम पत्नियों के नाम ही होता है | इस तरह शेयर बाजार में बढ़ा पैसा और मिलनेवाला ब्याज उनकी आय में नहीं जुड़ता है और न ही उस पर कर देना पड़ता है जरुरत हुई तो हमारे नाम भी रिटर्न फाइल कर दिया जाता है कुछ छोटा मोटा काम दिखा कर, पर आय उतनी ही दिखाई जाती है कि कर न भरना पड़े |  
    
                                                                    अब सौ करोड़ से ऊपर की आबादी में से यदि एक हम कुछ टैक्स बचा भी लेते है तो क्या फर्क पड़ने वाला है | यदि एक बड़े घड़े में एक बूंद पानी हम न डाले तो कोई बड़ा फर्क नहीं होने वाला है | कहते है की देश के विकाश के लिये पैसे चाहिए अरे भाई जितना देते है उसमे ही कितना विकाश कर लिया है | बिजली सड़क पानी कौन सी हमारी समस्या हल हो गई है इन सब चीजो का हाल बेहाल है | ज्यादा दे भी दिया तो कोई भी फायदा नहीं होने वाला है सब नेताओ के भ्रष्टाचार के भेट चढ़ जायेगा | इससे अच्छा है इन पैसो से कुछ अपना विकाश किया जाये , देश के विकाश के लिए पैसे देने के लिए तो पुरा देश पड़ा है |  
        
 
 

February 08, 2011

राजनीतिक हत्याये कितना सच कितना झूठ ? - - - - - - mangopeople



                                                              अभी हाल में ही टीवी पर एक फिल्म देखी थी "राजनिती" देखने से पहले सोचा था की अच्छी राजनीतिक दांव पेंच दिखाया जायेगा ऐसी फिल्मे अच्छी लगती है, किन्तु फिल्म देख कर निराशा हुई क्योकि फिल्म में जिस तरह से एक के बाद एक राजनितिक हत्याए दिखाया जा रहा था कि कैसे लोग अपने विरोधियो की हत्या किये जा रहे थे वो सही और वास्तविक नहीं लगा | अपने विरोधियो की हत्या करना गैंगवार लगता है राजनिती नही वास्तविक राजनीति में ऐसा कम ही देखने में आता है की कोई अपने राजनितिक विरोधियो का एक के बाद एक हत्या करवाता चला जाये | हा लोग एक दूसरे पर झूठे सच्चे मुकदमे करते है सरकार में आने के बाद तरह तरह की जाँच करवाते है और सबूत हाथ में आने के बाद उसका राजनीतिक फायदा उठाते है समय समय पर उनका अप्रत्यक्ष सहयोग लेते है उन्हें हमेशा के लिए जेल में नहीं डालते या सजा नहीं दिलाते है | कई बार हमने देख होगा की इधर सरकार पर कोई संकट आया उधर मुलायम, मायावती ,लालू  और किसी भी छोटे मोटे विरोधियो पर सी बी आई कोई जाँच, मुक़दमा की कार्यवाही शुरू हो जाती है सरकार को समर्थन मिल जाता है और जाँच फिर से ठन्डे बस्ते में चली जाती है | अभी हाल में ही सी वी सी थामस के मुद्दे पर जो सुषम स्वराज मीडिया में बोल रही थी की वो सरकार के खिलाफ  हलफनामा देंगी वो बाद में चितम्बरम के एक फोन के बाद शांत हो जाती है यानी विपक्ष भी सरकार को किसी ऐसे मामले में नहीं फसाती की वो क़ानूनी पचड़े से बाहर  ही ना आ सके या तकनीकी रूप से उसमे बुरी तरह से फंस जाये |
                           ये देख कर साफ लगता है की सारे नेता एक दूसरे से अच्छे से मिले होते है और भले बाहर एक दूसरे की गलतियों, नीतियों पर उँगली उठा कर राजनीतिक फायदा उठाते हो पर एक दूसरे की हत्या करनी जैसी बाते थोडा गले नहीं उतरती है | अब पाकिस्तान में बेनजीर भुट्टो की हत्या में मुशर्रफ के खिलाफ भी मुक़दमा किया गया है उन्हें हत्या के षड्यंत्र में शामिल बताया जा रहा है | ये सुन कर समझ नहीं आता की सच क्या है क्या वाकई ऐसा है या पाकिस्तानी सरकार मुशर्रफ के पाकिस्तान लौटने और उनके राजनीतिक पार्टी बनाने से डर कर उनके खिलाफ ये सब कर रही है | अंत में होना कुछ भी नहीं है, ये करके शायद मुशर्रफ को पाकिस्तान आने से रोकने का प्रयास किया जा रहा है उन्हें गिरफ़्तारी का डर दिखाया जा रहा है | पाकिस्तान के लोगों की भावनाए भारत के लोगों से बहुत अलग नहीं होती है इस वास्तविकता से मुशर्रफ़ भी परिचित होंगे क्या वो इतना भी नहीं समझ सकते है की चुनावों के समय एक बड़े नेता की इस तरह हत्या लोगों में उनकी पार्टी के प्रति सहानभूति की लहर पैदा कर सकती है और अंत में हुआ भी वही| फिर किस किस नेता को मारते बेनजीर की तो हत्या हो गई क्या उसके बाद उनके लिए हालात बदले, बेनजीर नहीं तो किसी और नेता को तो गद्दी पर बैठना ही था | हालात ये है कि आज खुद निरवासित जीवन जी रहे है अपने देश आने की हिम्मत भी नहीं है | बेनजीर होती तो भी उनका यही हाल होना था |
                          ये केवल पाकिस्तान का मामला नहीं है भारत में हुए कई हत्याओ और मृत्यु के पीछे भी षडयंत्र की बात सामने आती रही है उनमे कितना सच है कितना झूठ पता नहीं | कही पढ़ा था की शास्त्री जी के रूस में मृत्यु को भी संदेह की नजर से देखा जाता है | अभी हाल ही में उनके मौत के मामले में सूचना के अधिकार के तहत कुछ जानकारिया मांगी गई तो वो नहीं दी गई और बताया गया की उनका कोई पोस्मार्टम नहीं हुआ था जिस पर काफी सवाल उठाये गए थे और उनकी प्राकृतिक मृत्यु पर संदेह जताया गया था | पता नहीं सच क्या है  फ़िलहाल तो उनका परिवार उसी कांग्रेस में है और उसे कोई परेशानी नहीं है |
                        इसी तरह सोनिया गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद भी जिस तरह से एक के बाद एक बड़े कांग्रेसी नेताओ की दुर्घटना में मौत हुई उसमे भी कुछ गड़बड़ी मानी जाती है जैसे राजेस पायलट की मौत एक सड़क दुर्घटना में और माधवराव सिंधिया की मौत प्लेन क्रैस में हुई | कहा जाता है की जिस प्लेन से सिंधिया की मौत हुई उसमे उनके साथ शीला दीक्षित और कुछ और बड़े नेता जाने वाले थे किन्तु बिल्कुल अंतिम समय पर वो नहीं गये और अकेले सिंधिया जी गये और उनकी मौत हो गई | ये बाते तो उनकी मौत के समय ही काफी फैली थी खुद मुझे भी इसमे सक होता था पर उतने विस्तार से जानकारी नहीं थी पर ब्लॉग जगत में आ कर  इस बारे में और विस्तार से पढ़ लिया | पर लगता नहीं कि ये सच कभी भी बाहर आयेगा कि ये मात्र अफवाह है या वाकई ऐसा है |
                     कभी कभी तो इन रहस्यमयी मौतों को लेकर ऐसी ऐसी बाते लोगो के बीच फ़ैल जाती है की एक बारगी सोचना पड़ जाता है की इन्सान आखिर क्या क्या सोचता है और राजनीति जगत को ले कर उसके मन में कितनी नकारात्मक बाते भरी है | जब संजय गाँधी की मृत्यु हुई थी तब मेरा जन्म भी नहीं हुआ था अतः ये तो नहीं पाता की उनकी मौत के बाद क्या क्या बाते खबरों में आई या फैली किन्तु बड़े होने के बाद लोगो के मुंह से सुना जो यहाँ तक कह जाते है की उनकी हत्या की गई थी और उसके पीछे इंदिरा जी थी जो उनके रवैये और अपनी सत्ता के उनकी तरफ खीचने से परेशान थी | यहाँ तक कह दिया गया की जब उनके मौत की खबर आई तो इंदिरा एयरपोर्ट गई और मृत संजय के हाथ से एक घडी निकाल ली असल में उसमे उनके स्विस बैंक का खाता नंबर और कोड था ( लो जी यदि आप से सोचते है की ये स्विस बैंक में ब्लैक मनी वाली बात आज की है तो ये आप की भूल है  उस ज़माने में भी स्विस बैंक और उसके खाते को लेकर इतनी बाते थे ) और बेचारी मेनका गाँधी के हाथ कुछ नहीं आया जो वहा पहुँचने में देर कर दी | मतलब ये की माँ और पत्नी वहा घडी के लिए गई थी उनको देखने के लिए नहीं |
                                 उफ़  ये सब सुन कर थोडा अजीब लगता है की राजनितिज्ञो के लिए लोगो के मन में कैसी कैसी भावनाए होती है लोग उनको कितना गिरा हुआ समझते है |  पता नहीं उन्हें इस बात की जानकारी है की नहीं की एक आम आदमी उन लोगो के बारे में कितना कुछ सोच जाता है |  ये बाते पहले बस सुनी सुनाई सी थी पर ब्लॉग जगत में कही लेख पढ़ा जिसमे बाकायदा सबूत भी दिए गए थे कुछ तकनीकी सवाल भी उठाये गए थे | उसी तरह पायलट और सिंधिया के मौत पर भी वहा काफी कुछ कहा गया था |
               मुझे लगता है की यदि कोई किसी को राजनीति से हटाना चाहता है तो उसके कई उपाय है और लोग उसे अपनाते भी है अपने विरोधियो को परास्त करने के लिए वो विरोधी चाहे दूसरी पार्टी के हो, सहयोगी पार्टी के हो, या अपने ही पार्टी के लोग है | आज उमा भारती , गोविन्दाचार्य , नटवर सिंह  , अमरसिंह जैसे कई बड़े नाम है जिनका एक समय राजनिती में बड़ा नाम था पर ये सब आज कहा है कोई नहीं जनता राजनीति के ये सब लगभग शून्य हो चुके है | सभी जानते है की इसके पीछे उनके विरोधियो का हाथ था | यहाँ तक की लोग अपने सहयोगी दलों से भी लोगों को निकलवा दिया जाता है सभी जानते है की शिव सेना से संजय निरुपम को बाहर का रास्ता बी जे पी नेता प्रमोद महाजन के कारण दिखाया गया था | इस तरह की लोगों की लिस्ट काफी लंबी है |
            ऐसा नहीं है की राजनीतिक हत्याए होती ही नहीं पर उनमे वो लोग ज्यादा शामिल होते है जो पहले से ही अपराधी प्रवित्ति के होते है और कई बार तो विरोधी होने के कारण नहीं बल्कि अपना राज छुपाने के लिए भी अपनो की हत्या कर दी जाती है  जैसे झारखण्ड के गुरु जी के ऊपर आज भी हत्या के केस में फंसे है | अब क्या कहा जाये की इसमे सच क्या है, वैसे भी हम जिस देश के वासी है वहा गद्दी के लिए अपनो की हत्याओं की पुरानी परम्परा है |

 चलते चलते 

             जब राजीव गाँधी की हत्या हुई थी तो सभी को सुबह अखबारों के जरिये ही पता चला था जिसने पढ़ा उसे ही आश्चर्य हुआ और कइयो को तो इस खबर पर विश्वास ही नहीं हुआ | उनकी मौत के कुछ दिनों बाद मेरे एक रिश्तेदार बिहार के छपरा से आये बताने लगे की जिस दिन छपरा में सभी को उनकी मौत के बारे में पता चला लोग विश्वास नहीं कर पा रहे थे तभी सभी जगह ये अफवा फ़ैल गई की असल में राजीव जिन्दा है और उनको अपने हत्या के षडयंत्र के बारे में पहले ही पता चला गया था इसलिए वो अमेरिका चले गए थे और अपनी जगह नकली राजीव वहा गए थे और उनकी हत्या हो गई राजीव किसी भी समय अमेरिका से विमान से भारत आ जायेंगे | वो दूरदर्शन का जमाना था और कार्यक्रम २४ घंटे नहीं आते थे एक निश्चित समय बाद कार्यक्रम नहीं आता और टीवी केवल झिलमिल करता था जिसे हम सभी कहते थे की बारिस हो रही है | इस खबर की पुष्टि को  देखने के लिए लोग पुरा दिन वहा पर टीवी खोल कर उसकी बारिस देखते रहे |
           


                                    
               

February 01, 2011

द्वन्द एक पश्चिम की नारी और एक भारतीय माँ - - - - - - - mangopeople


                                                     

                                          बात आज से सात साल पहले की है मेरी एक मित्र को गर्दन में बार बार दर्द होता था अक्सर हमें गलत तरीके से सोने या तकियों की वजह से हो जाता है वैसा ही, वो फिजियो थेरेपिस्ट के पास जा कर उसकी सिकाई करवाने लगी साथ ही उसकी बताई कसरत भी करने लगाई | जो बीमारी ये सब करने के बाद दस दिन में ही ठीक हो जानी चाहिए थी वो महीने भर तक ठीक नहीं हुई फिजियो थेरेपिस्ट थोडा शंकित होने लगा बोला आप का पुरा चेकअप करता हु और जैसे वो हथोडी से शरीर के कुछ खास बिन्दुओ पर मार मार कर चेकअप करते है करने लगा फिर बोला आप काफी हाइपर है क्या अक्सर आप को शारीरिक रूप से परेशानी होती है | तो मेरी मित्र ने बताया की नहीं वो काफी शांत स्वभाव की थी किन्तु तीन साल के बच्चे के कारण अभी थोड़ी चिडचिडापन आ गया है हा थोड़ी शारीरिक परेशानी अभी एक साल से हो रही है | डाक्टर ने कहा नहीं बात सिर्फ यही नहीं है आप क्या काम करती है उसने कहा फिलहाल कुछ नहीं बच्चे के कारण तीन साल से छोड़ दिया है पहले करती थी |  वो इंटीरियर डिजाइनर थी और आठ साल उसने ये काम किया और बच्चे होने के बाद छोड़ दिया | डाक्टर ने कहा की आप फिर से काम शुरू कर सकती है तो करे आप की समस्या मानसिक ज्यादा है शारीरिक कम | उसने घर आ कर मुझे ये बताया हमने मिल कर सौ खरी खोटी उस डाक्टर को सुनाई की फिजियो हो कर वो हमें मनोवैज्ञानिको की तरह सलाह दे रहा है इलाज नहीं कर सका तो बहाना मार रहा है | फिर भी मैंने अपने सहेली से कहा की अब तो बच्चा स्कुल जाता है तुम घर में ही एक दो काम क्यों नहीं ले लेती तुम्हारी बिल्डिंग में ही कई लोग घर रिन्यू करा रहे है उनसे बात करो और कुछ करो | एक साल बाद ही वो घर बैठ कर अपना काम करने लगी जितना समय मिलता बस उतना ही काम लेती और आराम से घर और अपना कैरियर संभालने लगी | साल भर बाद आ कर मुझसे कहने लगी की जानती हो उस फिजियो ने शायद सही कहा था, मेरी समस्या शारीरिक कम मानसिक ज्यादा थी अब मुझे बार बार वह गर्दन की समस्या नहीं होती है और मेरा चिड़चिड़ापन भी चला गया जो मै बच्चे के कारण समझती थी |
                             

                                                                         आप को भी सुन कर थोडा आश्चर्य होगा किन्तु ये सच है ये समस्या केवल मेरी मित्र की नहीं है बल्कि भारत की उन लाखो महिलाओ की है जो योग्यता और इच्छा होने के बाद भी परिवार बच्चे के लिए अपना काम बंद कर देती है | कुछ महिलाए है जो बच्चो को परिवार के अन्य सदस्यों के पास छोड़ कर या आया के पास छोड़ कर अपना काम जारी रखती है किन्तु कुछ है जो अपने बच्चो को दूसरो के भरोसे नहीं छोड़ना चाहती और खुद ही अपना कैरियर त्याग देती है | ऐसा नहीं है की वो घुट कर जी रही है या परिवार का दबाव है, वो खुद अपनी इच्छा से ये करती है किन्तु बच्चे के बड़े होने के साथ ही जब उन्हें थोडा समय मिलने लगता है तो उनके अंदर एक खीज एक गुस्सा धीरे धीरे पनपने लगता है अपने ही उस फैसले के खिलाफ जो उन्होंने अपनी ख़ुशी से लिया है  जिसको ज्यादातर महिलाए पहचान ही नहीं पाती है | बार बार  शारीरिक समस्या होना बात बात पर चिढाना हर बात को दिल से लेना कभी कभी गुमसुम हो जाना दूसरो पर चीखने चिल्लाने लगाना हर किसी को सक की नजर से देखना जैसे अनेक लक्षण सामने आते है इस अंदरूनी खीज और दर्द के कारण  | ये समस्या उनमे ज्यादा होती है जिनके लिए काम उनका जूनून होता है १० से ५ का नौकरी नहीं या जिन्होंने अपने काम के लिए विशेस योग्यता पाने के लिए खासी मेहनत की हो खूब पढाई की हो जैसे डाक्टर, इंजीनयर, आर्किटेक, वकील, अनेक है | काम के प्रति जुनून होने और मेहनत से पाई योग्यता जब बेकार जाती है तो अंदर ही अंदर एक दर्द पलने लगता है जिसे वो खुद ही नजर अंदाज करती चलती है |
             
                                                     मै कॉलेज में थी तो मेरी राजनीति शास्त्र की लेक्चरर ने एक बात कही थी |  ३४ की उम्र में उनका विवाह हुआ और ३५ में बच्चे , जे एन यु से गोल्ड मेडलिस्ट पीएच डी ,  लम्बा ना छोड़ने लायक कैरियर पर बच्चे की चिंता, इन सब के बीच जब वो हमें पढ़ाने आई तो बोली की रोज यहाँ आने से पहले मुझे खुद से एक युद्ध लड़ना पड़ता है युद्ध होता है एक पश्चिम की नारी और एक भारतीय माँ के बीच, मै दोनों को ही हारता नहीं देखना चाहती है और दोनों ही अपनी जगह सही है ,या तो दोनों रोज थोडा थोडा हारेंगी या ये रोज का द्वन्द एक दिन किसी एक की मौत के साथ बंद होगा | यही कारण है की ये समस्या एक भारतीय माँ के लिए बड़ी हो जाती है वो एक पश्चिम की नारी ( इसका अर्थ यहाँ नारी के अस्तित्व की पहचान बनाने से है ) तो बन गई है पर उसके अंदर की एक भारतीय माँ कही नहीं गई है और वो अपने बच्चे और परिवार को भी उतना ही या कहु थोडा ज्यादा महत्व देती है और जिंदगी एक मोड़ पर उसे दो में से एक चीज चुनने के लिए कह देती है | बच्चा और परिवार उसके लिए साँस लेने जैसा है तो उसका काम और कैरियर उसके लिए जीवन में पानी जैसा है और जीवन के एक मुकाम पर आ कर उन्हें दोनों में से एक चुनना पड़ता है | यानी उस महिला की मौत निश्चित है साँस लेना छोड़ा तो अभी मर जाएगी पानी छोड़ा तो कुछ दिन बाद मर जाएगी | माँ का अस्तित्व या खुद का अस्तित्व दोनों में से एक की मृत्यु तो होगी है |
                           आगे  पढ़ने के  लिए  यहाँ  जाये