March 30, 2011

जीत मुबारक हो - - - - - - mangopeople

भारतीय टीम की सेमीफाइनल में जीत की सभी को ढेरो बधाईया | 
अब मुंबई वालो की बारी है |
 WELCOME TO MUMBAI TEEM INDIA 





खाली प्लेट क्यों है तो क्या आप लोगो के लिए बचाती सारी मै खा गई निचे एक बची है जल्दी से खा लीजिये नहीं तो वो भी मेरे ही पेट में जाएगी | फ़िलहाल आज तो पार्टी का आन्नद उठाने जा रही हूँ बाकि कल |




March 28, 2011

" MOTHER OF ALL MACH'S " खिलाडियों पर ये जानलेवा दबाव - - - - - - - - - mangopeople

                                        क्वार्टर फ़ाइनल मैच में अभी भारत को आस्ट्रेलिया के खिलाफ जितने के लिए २५ रन और बनाने थे तभी एक विदेशी कमेंटेटर ने कहा की अब ३० मार्च का सेमीफाइनल मैच होगा " MOTHER Of ALL MACH'S " यानी ये बात पुरे क्रिकेट जगत को पता है की भारत और पाकिस्तान के बीच कोई मैच और वो भी विश्व कप के सेमीफाइनल जैसे मैच का होने का क्या मतलब है | दोनों देशो में क्रिकेट को धर्म का दर्जा प्राप्त है और क्रिकेट यहाँ बस एक खेल न हो कर जूनून है और ये जूनून तब और सर चढ़ कर नाचने लगता है जब ये खेल इन दो देशो के बीच हो रहा हो और जब मैच विश्व कप का सेमीफाइनल हो तो फिर तो पूछिये ही मत फिर तो खेल खेल न हो कर जंग हो जाता है | जरा अखबारों की और न्यूज चैनलों की भाषा तो पढ़िए और सुनिये उनकी बोली जो इस जूनून को और ऊपर चढ़ा कर सातवे आसमान पर पहुंचा देता है " ये खेल नहीं ये युद्ध है " " इस जंग को हमें जितना ही है " और न जाने क्या क्या |  सच कहूँ तो इस समय मुझे भारत पाकिस्तान दोनों के खिलाडियों के ऊपर दया आ रही है | बेचारे किस तरह के भारी दबाव में जी रहे होंगे उस पर से मैच के बीच इतने ज्यादा दिनो का अंतर उन्हें और भी खलता होगा | रोज रोज टीवी अखबारों में इस मैच के दबावों, लोगो की उम्मीदों की खबरे देख पढ़ सुन उन्हें भी लगता होगा की अब बस कल ही मैच हो सब ख़त्म हो तब जा कर शांति मिले | इस समय तो उनका खाना पीना सोना जागना सब दुस्वार हो चूका होगा | बोलते समय भी सौ बार सोचते होंगे की कही कुछ ऐसा न बोल जाये जो कल को हम पर ही भारी पड़े या लोगो को हमारे हतोत्साहित , अति उत्साहित , अति आत्म विश्वास से लबरेज या दबाव में होने का एहसास न करा दे लोगो को बोलो तो बस ऐसा की हम सब शांत चित हो कर बिना किसी दबाव के बस मैच की तैयारी कर रहे है | एक बार इमरान खान का एक साक्षात्कार देखा था जिसमे वो बता रहे थे कि १९९२ के फ़ाइनल मैच के पहले आलू के बोरे उप्स मतलब इंजमाम को पेट दर्द होने लगा था वो बोले की मै समझ गया की वो झूठ बोल रहा है कई बार ऐसे अति दबाव वाले मैच के पहले कई युवा खिलाडी ये सोचने लगते है की काश हम बीमार पड़ जाये घायल हो जाये और ये मैच न खेलना पड़े | बेचारे सोचते होंगे की कम से कम हारने के बाद हम पर दोष नहीं आएगा, कि हम बेकार खेले या हमारी वजह से टीम हार गई और जीत गए तो पिछले मैचो में जो प्रदर्शन किया है उसका कुछ तो क्रेडिट मिल ही जायेगा | मै तो दाद देती हूँ खिलाडियों को जो इस भारी तनाव को सहते हुए खेलते है और जब कभी मैच के बीच कोई बुरी स्थिति आ जाती है तो उस समय खुद पर काबू रखते हुए अपने नर्वसनेस को दबाते हुए वो बल्ला या गेद थामे रहते है और अच्छा प्रदर्शन भी करते है या उसका प्रयास करते है | पिछले मैच में जब धोनी आउट हो गए तो लगा सब ख़त्म हुआ किन्तु जब युवराज और रैना टीम को जीत के करीब ले जाने लगे तो हर बाल पर जान हलक में आ जाती थी की कही ये दोनों आउट न हो जाये जब तक टीम जीत नहीं गई खुद पर कंट्रोल करना कितना मुश्किल हो जाता है जब हम देखने वालो का ये हाल है तो सोचिये की खेलने वाले का मैदान में क्या हाल होता होगा वो कैसे ये सब झेलते होंगे |
                                                    बेचारे दोनों टीमो के खिलाडियों की हालत तो युद्ध में जा रहे सैनिको जैसी होगी या ये कहूँ की उससे भी ज्यादा दवाब पूर्ण क्योकि सैनिक जीते या हारे उनकी आलोचना नहीं होती है और पूरा जोर लगाने के बाद भी हार जाये और मारे जाये, तो मरने के बाद शहीद का दर्जा मिलता है और हार को भी सम्मान की नजर से देखा जाता है | किन्तु यहा तो लोगो को हर हाल में जीत ही चाहिए हार के बारे में तो लोग सोच ही नहीं रहे है,  लोग तो खेल के बारे में भी नहीं सोच रहे है वो तो बस और बस जीत जाने के बारे में सोच रहे है, बाते कर रहे है | खिलाडी अपना जी जान लगा दे किन्तु उसके बाद भी हार जाये, आखिर है तो खेल ही एक को तो हराना ही पड़ेगा , तो यहाँ तो सिर्फ और सिर्फ आलोचना वो भी न सहने लायक ही मिलेगी  |  वैसे मैच टाई हो जाये तो कौन जीतेगा तो क्या लीग मैच के नंबर देखे जायेंगे या रन रेट, १९९९ के सेमीफाइनल की तरह, तो उस हिसाब से तो पाकिस्तान जीत जायेगा | यानि हम टाई में भी हार जायेंगे मतलब की भारतीयों को हर हाल में जितना ही है, लो भाई मै भी जीत की ही बात करने लगी
                                                          दोनों टीमो में से जो भी ये मैच हारेगा वो  उत्तेजित , आक्रोशित और अतिस्योक्ति पूर्ण अपनी आलोचना सुनने, पुतले जलाये जाने , विरोध प्रदर्शन होने , खिलाडियों के घरो पर पत्थरबाजी  के बाद एक बार जरुर ये सोचेगा की काश हम क्वार्टर फ़ाइनल में ही हार गए होते तो अच्छा होता क्योकि यहाँ पर सेमीफाइनल हारने का गम से बड़ा गम  भारत या पाकिस्तान से हारने का गम होगा साथ में बेभाव की पुरे देश की आलोचना भी झेलना पड़ेगा वो अलग ,पहले ही हार जाते तो बात सिर्फ हारने तक ही होती | वैसे टीम के हारने के बाद उसकी आलोचना करने का ये तरीका अभी तक दो देशो भारत और पाकिस्तान के लोगो के पास ही था किन्तु इस बार इसमे बांग्लादेश के लोगो ने भी बराबर साथ दिया बल्कि एक कदम और आगे चले गए और वेस्टइंडीज से हारने के बाद खिलाडी के घर पथराव कर घर में मौजूद उनकी माँ और बहन को भी घायल कर दिया | 
                             दुनिया जहान में किसी खेल के सौ दो सौ या  ज्यादा से ज्यादा हजार विशेषज्ञ होते है जो बारीकी से खेल का विश्लेषण करते है किन्तु हमारे यहाँ क्रिकेट के एक अरब से भी ज्यादा विशेषज्ञ है जो खेल और खिलाडी की ऐसे बाल की खाल निकालते है और ऐसे एक्सपर्ट कमेन्ट देते है की बड़ा से बड़ा खिलाडी भी खुद पर शक करने लगे | जो इस खेल को नहीं देखते है वो भी ये तो कमेंटे कर ही देत है की ये बकवास खेल है दुसरे खेल की तरफ कोई क्यों नहीं ध्यान देता है या लोग इस खेल को देखने में अपना समय क्यों बर्बाद करते है | मतलब वो खेल देख ये तो बता ही देता है की क्रिकेट से ज्यादा अच्छे दुसरे खेल है या काम है | आकडे देने वाले आकडे दे रहे है की हम तो विश्वकप में कभी पाकिस्तान से हारे ही नहीं है एक दो बार नहीं कुल चार बार पाकिस्तान को हराया है सो इस बार नहीं हराने का तो सवाल ही नहीं होता है पिछले आकडे हमारे साथ है | तो वो भूल जाते है की कोई भी खेल आकड़ो पर नहीं जीता या हारा जाता है पिछले को भूल जाइये क्योकि यदि आकड़ो से जीत और हार तय होती तो , तो हम आस्ट्रेलिया से जीतते ही नहीं क्योकि उसने हमें सात में से पांच बार हराया था और दुसरे हम इस बार विश्वकप नहीं जीत सकते क्योकि आकडे कहते है की मेजबान देश कभी भी कप नहीं जीतता है १९९६  में विश्वकप जितने वाली श्रीलंका सह मेजबान थी जैसे इस बार है | मतलब ये की जीतता तो वो है जो इन सारे दबावों को झेल कर उस एक दिन अच्छा खेल दिखाये | किसकी टीम मजबूत है किसकी टीम कमजोर है किसकी बैटिंग लाइन अच्छी है तो किसकी बोलिंग अच्छी है किसने पहले कैसा प्रदर्शन किया है ये सब मायने नहीं रखता है यदि रखता तो २००३ में हम सेमीफाइनल में केन्या जैसी टीम के साथ मैच नहीं खेलते |  यदि कुछ मायने रखता है तो वो है उस दिन का खिलाडियों का प्रदर्शन |
                                                                                   वैसे इतने सारे दबाव क्या कम थे खिलाडियों पर जो मनमोहन सिंह भी चले आ रहे है मैच देखने खुद तो आ ही रहे है लावा लश्कर ले कर साथ में जरदारी गिलानी को भी न्योता दे दिया क्या करेंगे ये लोग मैदान में बैठ कर ,
क्या कहा खिलाडियों का उत्साह बढ़ायेंगे ?
 हा हा हा हा
 जो हाल आज की तारीख में इन दोनों प्रधानमंत्रियो का अपने अपने देशो में है, मुझे तो लगता है खिलाडियों से हाथ मिलाते समय खिलाडी ही इन दोनों का उत्साह बढ़ायेंगे, सर जी घबराइये मत सोनिया मैडम है ना और गिलानी के लिए जनाब घबराइए नहीं अंकल सैम है ना जब तक खुदा मेहरबान तब तक गधे भी पहलवान |
                
 मेरी इच्छा ! मैच किसी भी टीम के लिए एक तरफ़ा जीत वाला ना हो मैच का रोमांच आखरी गेंद तक बना रहे | मेरे लिए तो अभी तक दोनों टीम का पलड़ा बराबर का है कोई भी जीत सकता है |
                                                            


चलते चलते 

              पाकिस्तानी मुल्लाओ ने अल्लाह को और भारतीय पंडितो ने भगवान को फोन लगाया और पूछा की यदि लोग पूछे की सेमी फ़ाइनल मैच कौन जीतेगा तो मै क्या जवाब दू तो भगवान और अल्लाह ने कहा कि कह दो " नो आइडिया सर जी " | 

 पाकिस्तान ने भारत को एक ख़ुफ़िया रिपोर्ट दी कि उन्हें पता चला है की भारत में होने वाले फ़ाइनल मैच पर आतंकवादी हमला करने वाले है और आतंकवादियों ने फ़ाइनल के १७ टिकट भी खरीद लिया है और पाकिस्तानियों ने  एक आतंकवादी को इस मामले में पकड़ा भी है | भारत हैरान की आखिर पाकिस्तान को क्या हो गया है वो भला हमसे ऐसी सुचनाये क्यों शेयर कर रहा है पहले तो ऐसी कोई सूचना नहीं थी, क्वार्टर फ़ाइनल मैच शुरू होने के बाद ये खबर अचानक कहा से आ गई | जवाब भारत को जल्द मिल गया जब रहमान मालिक ने पकडे गए आतंकवादी का बयान भारत को भेजा जिसमे आतंकवादी  कहता है कि "हजूर जो आतंकवादी टिकट ले कर मैच देखने जाने वाले है वो सब क्रिकेट के बड़े मुरीद है यदि फ़ाइनल में पाकिस्तान गया तो वो जेहाद भूल चुपचाप मैच का मजा लेंगे और अपनी टीम का उत्साह बढ़ाएंगे टिकट के पैसे वसूल कर घर आ जायेंगे किन्तु यदि पाकिस्तान फ़ाइनल में नहीं गया तो फिर मैच उनके किस काम का फिर तो उन्हें जेहाद ही याद आयेगा और वो आत्मघाती हमला कर देंगे | अब ये भारत तय कर ले की उसे सेमीफाइनल मैच जितना है या फ़ाइनल मैच शांति से पूरा करवाना है | "

             जब मनमोहन सिंह ने गिलानी और जरदारी को मैच देखने का न्योता भेजा , तो गिलानी सीधे हुजी के पास गए और उससे कहा की मैच देखने जरदारी जा रहे है उड़ा दो साले को वही पर वापस नहीं आना चाहिए  एक तीर से दो निशाने | फिर जरदारी हुजी के पास गए और कहा की मैच देखने मै गिलानी को भेज रहा हूँ उड़ा दो साले को वही पर वापस नहीं आना चाहिए एक तीर से दो निशाने | किन्तु अमेरिका से फोन आ गया की भाई भारत मैच देखने दोनों को जाना चाहिए ताकि दोनों देशो के बीच अच्छी बात हो सके | दोनों का आना तय हो गया अब पाकिस्तानी जनता हुजी के पास गई और कहा उड़ा तो दोनों सालो को वापस नहीं आना चाहियें दोनों के दोनों, भले हमें इसके लिए अपने ग्यारह बकरों की बलि देनी पड़े |

                        भारत सेमीफाइनल मैच हार गया दुसरे दिन पाकिस्तान के अखबारों में खबर छपी  " भारत को पाकिस्तानियों ने पीट विश्वकप से बाहर किया , अब कप हमारा है " और सारे पाकिस्तानी इस खबर को ऐसे पढ़ रहे ( उनके कान बज रहे है ६० साल अन्दर दबी इच्छा बाहर आ रही है ) है "  भारत को पाकिस्तानियों ने पीट कश्मीर से बाहर किया अब कश्मीर हमारा है " |
दिल बहलाने के लिए ख्याल अच्छा है |





March 25, 2011

महिलाओ के खिलाफ अपराध करने वाले बड़े अपराधियों को सजा की खबरे क्या हमारे यहाँ भी आएँगी - - - - mangopeople

इस्राइल के पूर्व राष्ट्रपति मोशे कात्साव को बलात्कार और यौन उत्पीड़न के अन्य मामलों में दोषी पाए जाने पर मंगलवार को सात साल जेल की सजा सुनाई गई। वह अब तक के सर्वोच्च इस्राइली पदाधिकारी हैं जिसे जेल भेजा गया है। जिला अदालत ने कात्साव को दो साल के प्रोबेशन के लिए भी भेज दिया और आदेश दिया कि वह 125000 इस्राइली शेकेल्स (करीब 35 हजार डॉलर) का हर्जाना दो पीडि़त महिलाओं को दें। इन महिलाओं की पहचान केवल 'एलेफ' और 'एल' के रूप में की गई है। एलेफ को 28 हजार और एल को 7 हजार अमेरिकी डॉलर दिए जाएंगे। यह सजा तीन में से दो न्यायाधीशों के पैनेल ने दी। कात्साव को दिसंबर, 2010 में बलात्कार, यौन उत्पीड़न, अशोभनीय व्यवहार का दोषी पाया गया था। यह मुकदमा 18 महीने चला। इसमें बताया गया कि कात्साव एक यौन शिकारी हैं जो अपनी महिला स्टाफ का नियमित रूप से यौन शोषण करते थे। कात्साव जब पर्यटन मंत्री थे, तो उन्होंने एलेफ से दो बार बलात्कार किया और जब वह प्रेजिडेंट थे तो उन्होंने दो और महिलाओं का यौन शोषण किया था।
                                                         क्या ऐसा कुछ हम कभी भारत के बारे में सोच सकते है कि किसी उच्च पद पर बैठे व्यक्ति को बलात्कार जैसे अपराध कि सजा हो , शायद सपने में भी नहीं | अभी हल में ही उत्तर प्रदेश में सत्तासीन पार्टी के कई माननीय लोग जो बस विधायक भर थे , इस मामले में आरोपित हुए और बड़ी मुश्किल से काफी हो हल्ला के बाद उन को गिरफ्तार किया जा सका | जब मात्र गिरफ़्तारी में इतनी परेशानी हुई तो आरोप को साबित कर पाना तो आप समझ ही सकते है की नामुमकिन है | फिर इनकी क्या बात करना ये तो कानून बनाने वाले माननीय लोग है, प्रियदर्शनी मट्टू केस में तो आरोपी के पिता बड़े आफिसर थे और रुचिका केस में खुद आरोपी एक बड़े ओहदे पर बैठा व्यक्ति था दोनों ही लगभग आरोपों से साफ बच कर निकल चुके थे वो भी सालो साल चले मुकदमे के बाद | भला हो मिडिया का जिन्होंने अपने प्रयास से इन्हें कुछ सजा दिलाई किन्तु उसके बाद भी प्रसाशन का पूरा लावा लश्कर आरोपियों को ही बचाने में जुटा था और अंत में दोनों को कड़ी सजा से बचा भी लिया | इन्हें भी छोडिये मामूली से लोग भी पैसे के दम पर डरा कर धमाका कर अपनी पहुँच दिखा कर ज्यादातर इन मामलों में बच कर निकल जाते है | 
                                                 तो ऐसे में सरकार के किसी सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति को इस मामले में सजा होने वो भी जेल की, हम कल्पना  में  भी  नहीं सोच सकते , वो भी मात्र १८ महीनो के अन्दर | ज्यादातर लोग इसके लिए दोषी अदालतों को देंगे की जहा मुक़दमा सालो साल चलता है या पुलिस को देंगे जो ठीक से जाँच नहीं करती है और पैसे रसूख के बल पर आरोपियों का साथ देती है | पर क्या वास्तव में समस्या सिर्फ यही है , क्या वास्तव में आरोपियों को सजा न मिल पाने का कारण सिर्फ तकनीकी समस्या है या कानून व्यवस्था की समस्या है | मुझे ऐसा नहीं लगता है, असल समस्या है हमारे समाज की सोच का है यहाँ पर ऐसे अपराध के पीड़ित को ही बड़ा अपराधी मान लिया जाता है और पहले उसे ही सक की नजर से देखा जाने लगता है | पुलिस स्टेशन में घुसते ही पीड़ित पर और उसकी मंसा पर इतने सवाल दाग दिए जाते है की मानसिक रूप से टूटी पीड़ित खुद आपराध बोध से ग्रस्त हो जाती है | 
                                                समाज की सोच क्या है " तुम्हारे साथ ही ऐसा कैसे हो गया ,दुनिया में और भी तो लड़किया है उनके साथ क्यों नहीं हो गया, जरुर तुमने समाज के बनाये नियमो को तोडा होगा ( याद है आधी रात को अपने काम से लौट रही एक पत्रकार की हत्या और लुट पर दिल्ली की मुख्यमंत्री ने उनके देर  रात घर से बाहर निकालने पर ही सवाल उठा दिया था ) यदि अपराधी पैसे वाला है , किसी उच्च पद पर है, राजनीतिज्ञ है ,या कोई सेलिब्रिटी है तो सीधे इसे साजिस, राजनीति , सामने वाले को फ़साने की नियत या पैसे और महत्वाकांक्षा के लिए खुद उसके पास जाने तक की शंका जाहिर कर दी जाती है जैसा शाहनी आहूजा केस में कुछ टीवी चैनलों ने ये दिखाना शुरू कर दिया की जिस नौकरानी के साथ बलात्कार हुआ वो शाहनी को पसंद करती थी क्योकि वो प्रसिद्ध फ़िल्मी सितारा था और अपनी इच्छा से बनाये गए शारीरिक सम्बन्ध को रेप का नाम दिया जा रहा है , रुचिका केस में इसे तब राजपूतो राठौर जाति के खिलाफ साजिस मान रुचिका और उसके परिवार के खिलाफ ही विरोध प्रदर्शन हुआ और राजनीति से जुड़े लोग तो इसे सीधे विपक्ष की साजिस करार दे मानाने से इंकार कर देते है | पुलिस स्टेशन में ही पीड़ित के कपडे लत्ते से ले कर उसके रहन सहने और काम धंधे पर ऐसे सवाल कर जीते जी उसके चरित्र का पोस्मार्टम कर दिया जाता है जैसे वो ही अपराधी हो |  
                               यहाँ होता ये है की जैसे ही पीड़ित ने किसी बड़े व्यक्ति या उससे आस पास से ले कर दूर का भी सम्बन्ध रखने वाले का नाम अपराधी के रूप में लेती है पुलिस तुरंत ही अपने हाथ खड़े कर लेती है और लगती है पीड़ित को ही कटघरे में खड़ा करना या मामले की लिपा पोती करने या उसे छुपाने | हालत ये है की जाँच एजेंसिया खुद ही पहले ही मान लेती है की इस मामले में कुछ नहीं हो सकता, आज हम जाँच करेंगे कल को ऊपर से दबाव आ जायेगा और सब बेकार जायेगा इससे अच्छा है कि मामला यही ख़त्म करने का प्रयास करो |  जैसे शाहिनी आहूजा केस में जाँच से जुड़े एक पुलिस वाले ने पहले ही कह दिया था की हमारे पास सब पुख्ता साबुत है बस पीड़ित अपनी बात पर अड़ा रहे , मतलब उसे अच्छे से पता था की पीड़ित समाज के निचले तबके से आती है और अपराधी समाज का जाना माना नाम है जो पीड़ित पर कल को हर तरह का दबाव डालेगा आरोप वापस लेने के लिए और अंत में हुआ भी वही ( जैसी की हर जगह खबर आ रही है की पीड़ित ने आरोप वापस ले लिया है ) किन्तु क्या जाँच एजेंसियों ने अपनी तरफ से ऐसा कोई भी प्रयास किया कि ये ना हो सके और रेप की शिकार लड़की बिना किसी दबाव के अपनी बात कहा सके जवाब नहीं में होगा तभी तो जो सक पुलिस वाले ने अपराध होने के हफ्ते भर बाद ही जाहिर कर दिया था वो कुछ समय बात सच हो गया | पुलिस को भी पता है कि ऐसे केस में क्या होता है किन्तु वो उसे रोकने और अपराधी को सजा दिलाने का प्रयास करने की जगह सब कुछ दोनों पक्षों पर ही छोड़ देता है जिससे इस तरह का अपराध करने वाले बड़े नाम बड़ी आसानी से बच कर निकला जाते है | 
                                            सिर्फ पुलिस क्या समाज के लोग भी बड़ा नाम आते ही इस तरह की घटनाओ को सक की नजर से देखने लगते है उन्हें भी ये सच कम साजिस ज्यादा लगती है | जब समाज की ( ज्यादातर लोगो की ) सोच ही यही होगी तो पुलिस जाँच एजेंसियों और खुद आपराधि इस बात से कैसे बच सकता है आखिर वो भी तो इस समाज का ही हिस्सा है अपराधी भी इस तरह के अपराध करने वक्त ये मान कर चलता है की उसका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता पहले तो अपनी इज्जत के डर से लड़की पुलिस में जाएगी ही नहीं क्योकि वो एक जाना माना नाम है और यदि वो गई भी तो अपने पैसे और पहुँच के बल पर इस सब से बड़ी आसानी से निकल जायेगा | 
                      इस लिए जरुरी है की पहले समाज की सोच बदले तभी अपराधियों में अपराध करने से पहले सजा का समाज के तिरष्कार का अपमान का डर होगा और वो ऐसा करने से पहले हजार बार सोचेगा साथ ही पुलिस पर भी राजनीतिक और उपरी दबाव कम हो और लोगो का न्याय दिलाने का दबाव ज्यादा हो ताकि वो निष्पक्ष रह कर जाँच कर सके और अपराधी को सजा दिलाने में अपना सहयोग कर सके | एक बार जब बलात्कार यौन शोषण जैसे मामलों में बड़े लोगो को सजा होने लगेगी तो इस तरह का अपराध करने वाले सभी के मन में कानून का डर होगा और अपराध में कमी आएगी | 

            

March 21, 2011

हमारा एक छोटा प्रयास इन्हें इनका बचपन लौटा सकता है - - - - - mangopeople



                                                                                                    हम सभी अकसर ये शिकायत करते है की हम ज्यादा काम करते है और घर या आफिस में किसी सुख सुविधा की कमी है तो हमें रोने का एक और बहाना मिल जाता है | जरा इन बच्चो को देखीये इनकी उम्र और इनके काम करने के माहौल को देखीये , जिस उम्र में इन बच्चो का पढ़ना लिखना चाहिए खेलना कूदना चाहिए दिन दुनिया की सभी चिन्ताओ से मुक्त हो जीवन जीना चाहिए तो ये बेचारे काम कर रहे है वो भी इस खतरनाक और घटिया वातावरण के बीच | देख कर दुःख होता है हम में से कई इन बच्चो को देखते होंगे उनके बारे में जानते होंगे पर करते कुछ भी नहीं " हम क्या कर सकते है ,बेचारे गरीब है ,बेचारे काम करते है तब खाना मिलाता है ,शिकायत करने से क्या फायदा हमारी सुनेगा कौन , एक बार इन्हें छुड़ा भी लिया तो क्या फायदा ये फिर से गरीबी के कारण इसी माहौल में आ जायेंगे" जैसे बहाने कर हम या तो इन्हें अनदेखा कर देते है या कुछ करने से पीछे हट जाते है |  कई बार हम में से कई लोगो को पता ही नहीं होता की हमें करना क्या है या हम इसकी कहा शिकायत करे | इनमे से एक मै भी हूँ मै स्वयम नहीं जानती की यदि मै किसी बाल मजदूर को देखू तो उसकी शिकायत कहा और किससे करू ( साथ में मेरा नाम भी सामने नहीं आये )पाठको से निवेदन है कि जिन्हें इस बारे में जानकारी हो वो अपनी जानकारी यहाँ दे दे या किसी एन जी ओ की जानकारी दे ( मै मुंबई में हूँ यदि यहाँ के किसी एन जी ओ की जानकारी दे तो और भी अच्छा होगा ) जो बाल मजदूरी के खिलाफ काम करती है और ऐसे बच्चो की देखभाल का भी इंतजाम करती हो | साथ ही सबसे निवेदन भी है कि यदि आप में से कोई भी बाल मजदुर को देखे खासकर जो किसी के यहाँ नौकरी कर रहे हो तो उसके मालिक को एक बार इसके लिए टोके और बताये की वो बाल मजदूरी करा कर गलत कर रहा है और उसकी सरकारी तंत्र में शिकायत भी करे | मुझे पता है की ये बहुत बड़ी समस्या है पर कहते है न की बूंद बूंद से घड़ा भरता है तो यदि एक एक आम व्यक्ति भी इस समस्या को हटाने के लिए अपना थोडा सा भी योगदान दे तो कुछ बच्चो को तो हम इस नारकीय जीवन से बचा ही सकते है | काफी जगह ये जागरूकता भी फैलाई जाती है की हमें उन सामानों का उपयोग नहीं करना चाहिए जो ऐसी जगहों पर बना हो जहा की बच्चे काम करते है किन्तु इससे उन बच्चो पर ज्यादा असर नहीं होगा बल्कि हो सकता है की उनका और भी शोषण हो और उनकी मजदूरी और भी कम कर दी जाये | पर मुझे नहीं लगता है की सर्फ़ ये करने से बाल मजदूरी कम होगी उसके लिए प्रत्यक्ष तौर पर इन बच्चो के लिए कुछ करना होगा | कम से कम एक फोन करके इसकी सूचना सही तंत्र तक पहुँचाने जैसा छोटा काम तो हम कर ही सकते है |




 














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March 04, 2011

मिडिल क्लास का जीवन पहले से बेहतर और दुष्कर हो गया है - - - - - - - mangopeople


    Mukesh Kumar Sinha said...
jo bhi ho, hame bas itna samajh aata hai ki ek aam bhartiya ab pahle se behtar jeendagi jee rahi hai:) aur agar aisa hai to kuchh to sarkar ne kiya hi hai..!! hai na ...:)                                                                                    प्रवीण शाह said... . . पर एक बात का जवाब आप ईमानदारी से दीजियेगा... क्या आपको नहीं लगता कि तमाम महंगाई, टैक्स, Government's Apathy आदि आदि के होहल्ले के बावजूद The Great Indian Middle Class के पास भारतीय इतिहास के किसी और दौर के मुकाबले आज ज्यादा स्पेयर पैसा है व वह और बेहतर जीवन जी रहा है।
                                                      मेरी पिछली पोस्ट  आह  बजट  ! वाह बजट !  पर मुकेश जी और प्रवीण शाह जी ने ये टिप्पणिया की थी उन दोनों ही लोगो का कहना था की आज के मिडिल क्लास का आदमी कल से बेहतर जीवन जी रहा है उसके पास कल के मुकाबले ज्यादा पैसा है | दोनों लोग की बात से मै सहमत हूँ  किन्तु उस बेहतर जीवन को हमेशा बेहतर बनाये रखने और आज की बढ़ चुकी जरूरतों को संभालने के लिए उसे कितनी मेहनत करनी पड़ रही है  वो भी देखनी चाहिए और ऐसा नहीं है की उस पर महंगाई का असर नहीं हो रहा है | बदलते सामाजिक और आर्थिक ढाचे ने उसके लिए कई नई जरुरी जरूरते पैदा कर दी है जिसे वह नजर अंदाज नहीं कर सकता है | आर्थिक उदारवाद और खुले बाजार  के दौर ने माध्यम श्रेणी परिवारों को भी सपने देखने और अपनी इच्छाओ को पूरा करने का मौका दिया किन्तु उसने इसकी कीमत भी वसूल ली |  इसी का नतीजा है की आज मिडिल क्लास को भी तीन श्रेणियों में बाट दिया गया है अपर मिडिल क्लास, मिडिल मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास | अब मिडिल क्लास में भी अमीरी और गरीबी का फर्क आ गया है | अपर मिडिल क्लास सपने देखता है उसे कर्ज ले कर पूरा करता है और सारा जीवन उस कर्ज को उतारता है | मिडिल मिडिल क्लास सपने देखता है कर्ज ले कर सपने पूरा करता है और अब कर्ज को उतारने में उसकी कमर टूटती जा रही है और जीवन की दूसरी जरूरते कर्ज के भेट चढ़ती जा रही है और तीसरा है लोअर मिडिल क्लास जिसे सपने देखने का हक़ तो मिल गया है किन्तु उनमे से कई वो पूरा ही नहीं कर पा रहा है और सारा जीवन बस उसे पूरा करने के लिए दौड़ लगाने में ही बिता देता है | पर एक सपना तो उसका भी पूरा हो रहा है " हमने संभाल रखा है आप के खास लम्हों को "  थैंक्यू रतन टाटा |                                                             पहले जो मिडिल क्लास नौकरी के दुसरे दौर में ही अपना घर या गाड़ी का सपना भी नहीं देख सकता था( खासकर बड़े शहरो में छोटे शहरो में लोगो के पास अक्सर पुश्तैनी घर हुआ करते थे )  वो फ़्लैट सिस्टम ( बड़े शहरो में ) और अफोर्डेबल गाडियों तथा आसानी से मिलते घर और गाड़ी के लिए कर्ज ने मिडिल क्लास के सपने को पूरा कर दिया किन्तु आज कुछ तो इस बढ़ती ई एम आई को झेल ले रहे है किन्तु कुछ के बस के बाहर होता जा रहा है | ई एम आई तो हर हाल में भरना ही है अब उसके लिए जीवन की दूसरी जरूरतों में कटौती करनी पड़ रही है तो कही पर पति पत्नी दोनों को ही न चाहते हुए बच्चे छोड़ कोल्हू के बैल की तरह काम में जुटे रहना पड़ रहा है | फिर घर को मेंटेन भी रखना है दुनिया जहान के टैक्स भी भरना है और बढ़ता ईधन का खर्च गाड़ी को कवर चढ़ा कर रखने के लिए या कम प्रयोग करने के लिए मजबूर किये जा रहा है |
           समय के साथ जीवन में कुछ नई जरूरते बढ़ती जा रही है | अब बेचारा मिडिल क्लास वाले का जीवन बेहतर हो गया है वो इलाज के लिए सरकारी अस्पताल में नहीं जाता या वहा की अव्यवस्था और स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता उसे ऐसा करने नही देती | प्राइवेट अस्पताल एक बड़ी बीमारी में एक ही बार में घर के सालो का बजट बिगाड़ देते है | उसके लिए हर साल हम सभी को अपनी और अपने परिवार की नजर उतार कर १० -१५ हजार मेडिकल इंसोरेंस को देना पड़ता है | उस पर से अब निजी अस्पतालों में इलाज को भी सर्विस टैक्स के दायरे में लाया जा रहा है  इससे तो इलाज और भी महंगा हो जायेगा जो मुझे नहीं लगता है की बीमे की रकम से भरी जा सकती है | अमिर पर इसका असर नहीं होगा गरीब हर हाल में सरकारी अस्पतालों के भरोसे ही रहेंगे तो इसका ज्यदा असर मिडिल क्लास पर ही पड़ेगा |
                     संयुक्त परिवार के प्रचलन अब ख़त्म होता जा रहा है और इसके साथ ही आदमी पर दो नई आर्थिक जिम्मेदारिया आ पड़ी है पहला तो है जीवन बीमा | जीवन तो पहले भी कभी भरोसे के लायक नहीं था पर अपने पीछे संयुक्त परिवार का भरोसा था किन्तु अब अपने परिवार की जिम्मेदारी मरने के बाद भी हमें ही लेनी है |  अब मिडिल क्लास अपनी मिडिल क्लास वाली सोच तो छोड़ नहीं सकता सो टर्म इंसोरेंस की जगह रेगुलर इंसोरेंस लेता है ताकि उसकी रकम डूबे नहीं बाद में मेच्योर हो उसे वापस मिल जाये सो एक बड़ी रकम बीमे की किस्ते भरने में चली जाती है  और अब सरकार बिमा को भी महंगा करने जा रही है | यदि मरे नहीं जिन्दा रह गए तो रिटायर्मेंट भी देखना है और बुढ़ापा भी तो उसकी जिम्मेदारी भी हमी पर है बच्चो का भरोसा नहीं कर सकते और सरकार की तरफ से कोई सामाजिक सुरक्षा का इतजाम नहीं है , फिर ये कंपनिया भी मजबूर कर देती है " सर उठा कर जियो " लो जी अब प्राइवेट जॉब वालो को एक मोटी रकम पेंशन प्लान में भी डालना है , वो भी इतनी की बुढ़ापे में बढे मेडिकल खर्च और आज की जीवन स्तर भी मेंटेन रहे |
                              विज्ञापन देखा है  " ये रह १८ साल बाद बंटी, उसकी गाड़ी और उसकी फ़ीस १० लाख रुँपये और फ़ीस की रकम सुन आ गई बाप को हार्ट अटैक " और भविष्य में इस हार्ट अटैक से बचना है तो उसका इंतजाम भी आज ही हमें करना होगा | जब आज की तारीख में स्कुलो की बढ़ती फ़ीस माँ बाप का सरदर्द बनी है, उच्च शिक्षा और बड़े कालेजो की फ़ीस आज ४-५ लाख है तो जरा अंदाजा लगाइए की आज से १५ से २० साल बाद फ़ीस क्या होगी जरा महंगाई का स्तर भी देखते चलियेगा और साथ में ये भी सोचते की तब तक शिक्षा का बाजारीकरण पूरी तरह से हो चूका होगा सरकार शिक्षा के क्षेत्र खास कर उच्च शिक्षा के क्षेत्र से लगभग बाहर होगी देश में निजी और विदेशी शिक्षा संस्थानों की भीड़ होगी जो कमाने के लिए शिक्षा संस्थान खोलेंगे | तो सोचिये की उनकी फ़ीस क्या होगी और उतनी फ़ीस के लिए आज से ही हमें अपनी आज की कमाई का एक बड़ा हिस्सा उसके लिए रखना होगा | भूल जाइये की जैसे हमरे माँ बाप ने हमसे कहा की जो करना है अपने पढाई के बल बूते करो वैसा हम अपने बच्चो से कह पाएंगे | बच्चे कहेंगे की हमें फला कोर्स करना है ( तब तक न जाने कौन कौन से नए नए कोर्स पढाई आ जाएगी  ) तो बस करना है भले उसके लिए वो सरकारी सस्ते कालेजो में प्रवेश न पा सके तो पेमेंट सिट भी दिलानी पड़ेगी | क्यों ? एक और नया विज्ञापन नहीं देखा है " की देश में लाखो कालेज है जहा से हर साल लाखो टॉपर बाहर निकालेंगे और फिर वो प्रतियोगिता करेंगे उच्च शिक्षा की कुछ हजार सीटो के लिए सब टापरों को सिट कहा से मिल पायेगी , तो आज से ही प्लान कीजिये "| यानि पेमेंट सिट के लिए भी आज से ही तैयारी कीजिये  और जिनके दो या तीन बच्चे है वो खुद ही हिसाब लगा ले |                                                      चलिए मान लिया की कुछ लोगो को अपने बच्चो को उच्च शिक्षा नहीं दिलानी है तो उनमे से ज्यादातर को बेटी के विवाह की चिंता होती है | तो वर्त्तमान में हमारे देश में विवाह में लेन देने, रस्मो रिवाज और अन्य समारोहों पर हो रहे खर्च को देखे तो उसके लिए भी उन्हें आज से ही बचत करनी होगी क्योकि भविष्य में ये खर्च भी आज के मुकाबले कई गुना ज्यादा होंगे और ये भी मान कर चलिए की तब तक कोई सामाजिक क्रांति नही आने वाली है जो आप को इन सामजिक खर्चो से बचा ले या आप खुद बचना नहीं चाहेंगे |                                                                                                     ये सब तो भविष्य के खर्चे है जिनके लिए हमें आज से बचत करनी है किन्तु सरकार ये सब बचत करने के लिए हमें कितनी छुट देती है सिर्फ एक लाख बीस हजार रुपये वो भी उन जगह इन्वेस्ट करने पर जहा हमारे पैसा ज्यादा नहीं बढ़ने वाले है और जो आज कुछ स्कीम है जो महंगाई की रफ़्तार से हमारे पैसे भी बढ़ा सकती है तो सुना है की उन मदों को अब २०१२ के नए टैक्स कोड प्रणाली लागु होने के बाद  हटा दिया जायेगा | यानि आज से १५-२० साल बाद या रिटायर्मेंट के बाद हमें जरुरत लाखो की होगी और हम उसके लिए पैसा इन्वेस्ट कर रहे होंगे उन जगहों पर जहा  हमें ८-९% प्रतिशत के दर से ब्याज कुछ बोनस के साथ मिलेगा | चलिए ये मान लेते है कि इनमे से कुछ चीजे चाहे तो कुछ लोग, जो सिर्फ वर्तमान में जीने में विश्वास रखते है, इसे नजर अंदाज  ( वैसे करना तो नहीं चाहिए ) कर सकते है , तो आज की जरूरते भी कहा कम है |                                                               हमारे बचपन में टीवी फ्रिज जैसी चीजे विलासिता की चीज होती थी आज झोपड़ो में भी मिल जायेंगे | कुछ साल पहले तक कंप्यूटर बस आफिसो में और अमीरों के बच्चो तक सिमित थे अब इनके दर्शन भी आप को हर मध्यम वर्गीय परिवारों में हो जायेगा इस तरह के सामानों से हमारा घर दिन पर दिन भरता जा रहा है और जो हर ८-१० साल बाद बदल जाता है नए ब्रांड नए आधुनिक माडल | कपडे भी अब ब्रांड के नीचे कहा पसंद आते है ब्रांडो की अच्छी फिटिंग और गुणवत्ता के आगे सस्ता तो मन भाता ही नहीं है अब वो भी महंगे कर दिए है सरकार ने ,अब उसे हमारा अच्छा पहनना भी नहीं भा रहा है | कपडे क्या खाने पीने के सजने सवरने सभी चीजो में ब्रांड, अच्छे से अच्छे ब्रांड के नीचे बात ही नहीं होती है |                                                                                                                              फिर बच्चो को अच्छे से अच्छे स्कुल में डालना है उनकी महँगी फ़ीस भी भरनी है किताब कॉपी का खर्च भी देखना है और स्कुलो के प्रोजेक्ट से लेकर साल भर होने वाले ढेरो चोचलो के खर्चो को भी उठाना है वो भी बिना किसी ना नुकुर के और सरकार जीवन के सबसे महत्वपूर्ण खर्चे के लिए हमें कितनी छुट देती है १२ हजार रुपल्ली की, सरकार ही जानती होगी की आज की तारीख में किस स्कुल की ट्यूशन फ़ीस इतनी है | फिर केवल स्कुल से कहा चलता है टियुशन भी चाहिए जो महानगरो में घंटो और विषयो के हिसाब से चार्ज करते है  कुछ बच्चो को तो एक साथ कई ट्यूशन दिलाने पड़ते है | फिर उनके हॉबीकोर्स के खर्चो को हम कैसे भूल सकते है आज सबको आलराउंडर जो बनना है |                                                                                                                                 गया वो जमाना जब दो चार महीने में एक बार हम घूमने के नाम पर किसी मंदिर या रिश्तेदार पहचान वाले के घर चले जाते थे आज तो वीकेंड मनाने का जमाना है हर शनिवार या रविवार घूमने का दिन होता है बच्चे घर में टिक ही नहीं सकते है और बाहर जाना है तो मैक्डी से लेकर पिज्जा वालो का धंधा भी तो हमें ही जमाना है बाहर नहीं भी गए तो क्या हुआ ये तो आपके दरवज्जे तक घंटी बजा कर दे जाते है और बच्चा बच्चा इनको आर्डर देना जनता है | और अब गर्मी की छुट्टिया दादी या नानी के घर नहीं बीतती है माध्यम वर्गीय परिवारों की, उन्हें भी दुनिया जहान देखना है भूल जाइये यात्रा के नाम पर बुढ़ापे में तीर्थ यात्रा के ज़माने को | "ट्रूली एशिया मलेशिया "  वाले सपने तो मिडिल क्लास नहीं देख सकता किन्तु " एम पी गजब है सबसे अलग है " या "गो गोवा"  वाला विज्ञापन तो उन्हें भी देश देखने की इच्छा तो जगा ही देता है |                                                                     मिडिल क्लास वाले है पढ़े लिखे है तो चाह कर भी चाइनीज सस्ते खिलौने अपने बच्चो को नहीं दे सकते है हमें पता है वो खतरनाक है तो फिर आ जाइये वही ब्रांडेड महंगे खिलौनों पर |  हम मिडिल क्लास वाले अब अपने बच्चो के कम से कम खिलौनों की फरमाइश पूरी करने में ज्यादा ना नुकुर नहीं करते और करना भी नहीं चाहते है | बच्चे और उनकी जरूरते अब हमारे जीवन में पहले के लोगो से कही ज्यादा अहमियत रखते है | मैंने देखा क्रिसमस और बाल दिवस पर एक नामी ब्रांड के खिलौनों की दुकान में इतनी भीड़ थी की लगा जैसे वो खिलौने मुफ्त में बाँट रहे थे सब पैरेंट्स अब बच्चो की जरूरतों के प्रति काफी मुखर हो चुके है |                                                           अब किस किस का जिक्र करे लिस्ट तो बहुत लम्बी है | हा ये ठीक है की आज मिडिल क्लास का जीवन पहले से बेहतर है किन्तु इसने उसे उसी बेहतर जीवन की आदत डाल दी है अब वो उससे नीचे नहीं आ सकता है अपनी जरूरते कम नहीं कर सकता है सपने देखना बंद नहीं कर सकता है किन्तु इस बेहतर जीवन का स्तर बनाये रखने के लिए और बढ़ी हुई जरूरतों को पूरा करना दिन पर दिन महंगा होता जा रहा है और इनको पूरा होने में थोड़ी सी भी कसर रह जाये तो वो उसे पहले से ज्यादा सताती है और उसे मजबूर दिखाती है |       

March 01, 2011

आह बजट ! वाह बजट ! - - - - - - - mangopeople


                                                                   
 स्पष्टिकरण :-  ये किसी आर्थिक जानकर के विचार नहीं है एक आम आदमी एक आम गृहणी के आम से विचार है जिसका वो आचार यहाँ सुखाने के लिए डाल रही है सो बाद में आचार खट्टे  है की शिकायत न करे आम के आचार को विचार कर खाये | मसाले में कोई तकनीकि कमी दिखाई दे तो अवश्य बताये |
                     

                  सुबह का अख़बार उठाया इस उम्मीद के साथ की जैसे पहले बजट के दुसरे दिन अखबारों की पहला समाचार होता था कि क्या क्या चीजे सस्ती हुई और क्या क्या चीजे महँगी, किन्तु अखबार में ये मुख्य समाचार नहीं था | याद होगा पहले एक पूरी लिस्ट होती थी जिसमे सस्ते हुए और मंहगे ही सामानों के नाम होते थे पर काफी समय से अब ये परम्परा बंद हो गई है | अब बजट को तकनीकि रूप से ऐसा बनाया जाता है की अब पहले की तरह आम आदमी पर इसका सीधे प्रभाव बजट के बाद ज्यादा नहीं पड़ता है और आम आदमी भी बजट की तरफ उतना टक टकी लगाये नहीं देखता है | अब बजट बजट न हो कर तकनीकी खेल ज्यादा हो गया है जिससे आम आदमी को अंग्रेजी में ( तकनीकि रूप से ) बेफकुफ़ बनाया जाता है | 
                                                                     अब जैसे रेल बजट को ही ले लीजिये अगर यु पी ए के आठ  सालो की बात करे तो ये खूब प्रचारित करवाया जाता है की टिकटों के दाम नहीं बढे पर क्या वास्तव में ऐसा है, नहीं; इसे बड़ी चालाकी से उन्होंने ऐसे किया की जो दिखाई नहीं देता है | जैसे कई मेल ट्रेनों को एक्सप्रेस घोषित कर दिया जाता है न सुविधाए बढ़ी न ही ट्रेन की गति पर इस एक्सप्रेस के नाम पर टिकटों में २० रुपये का तकनीकि इजाफा कर दिया गया जिसका पता आम आदमी को टिकट खरीदते समय चलता है | रिटर्न टिकट लेने पर अब हमको १० रुपये ज्यादा देना होता है तत्काल कोटे के नाम पर सामान्य टिकटों को महंगे दामो पर बेचा जाता है जबकि होना ये चाहिए की इसके लिए अलग से डिब्बे जोड़े जाये | इसे कहते है तकनीकि खेल कि प्रचारित तो ये किया की दाम नहीं बढ़ाये किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है | 
                                                          यही हाल आम बजट का भी है | कहने के लिए ये साल भर के लिए सरकार का लेखा जोखा है किन्तु वास्तव में अब कितनी चीजे सरकार के हाथ में रह गई है या ये कहे की खुद कितनी चीजे उसने अपने हाथ में रखी है  सब कुछ उसने तो भगवन भरोसे ( बाजार भरोसे ) छोड़ दिया है | तो अब उसके बजट का कोई ज्यादा मतलब भी नहीं रह गया है कुछ एक चीजो को छोड़ दे तो | अब पहले की तरह आर्थिक नीतिया बजट पेश होने तक नहीं रोकी जाती समय और जरुरत के अनुसार साल के बीच बीच में कुछ आर्थिक निर्णय सरकार लेती रहती है |  यही कारण है की बजट का अब बाजार पर भी उतना असर नहीं होता है की एका एक सभी सामान सस्ते हो गए या सामानों का दाम रातो रात बढ़ गया ,हा शेयर बाजार भले एक दिन कुछ ऊपर निचे होने की परम्परा निभाता है किन्तु वो भी अब परम्परा भर ही रह गई है |
        क्योकि अब चाहे पेट्रोल के दाम हो या अनाज, टीवी, फ्रिज आदि आदि किसी का भी दाम बढ़ने और घटने के लिए बजट का इंतजार नहीं किया जाता अब ये सब अंतराष्ट्रीय बाजार, भारतीय बाजार, उपभोक्ता की जरूरते आदि पर निर्भर हो गया है | अब पेट्रोल के दाम ही ले लीजिये पिछले दो साल में बजट तो दो बार पेश हुए किन्तु इनके दाम सात बार बढ़ा दिया गया, जबकि कभी ये केवल बजट में ही बढाया या घटाया जाता था | याद है बजट के दो दिन पहले से ही लोग अपनी गाडियों की टंकी फुल कराने लगते थे और कुछ महा चालक पेट्रोल पंप वाले तो बजट के एक दिन पहले बंद रखते थे क्योकि ये तो निश्चित ही होता था की दाम बढ़ेंगे और वो पुराने सस्ते ख़रीदे मॉल को बजट के दुसरे दिन मंहगे दाम पर बेचते थे , क्योकि बाकि चीजो के दाम भले बाद में बढ़ते थे किन्तु पेट्रोलियम पदार्थो के दाम आधी रात से ही लागु हो जाता था और यदि मेरी यादास्त सही है तो पहले बजट आज की तरह सुबह नहीं शाम को पेश किया जाता था  यानी बजट पेश होने के कुछ ही घंटो बाद दाम बढ़ जाते थे |
                     बजट के दुसरे दिन चाय पान की दुकानों पर वो जमघट और गहन चिन्तन मनन की किसके दाम बढ़ने से किसको क्या फायदा नुकसान हो रहा है और किसके घटने पर आम जनता को फायदा | लोग अपनी अपनी जरूरतों के हिसाब से बजट को अच्छा और बुरा कहते थे | महिलाओ के सबसे ज्यादा चिंता अपने गैस सिलेंडर के दाम की होती थी | पर कुछ चीजे तय होती थी जैसे की टीवी फ्रिज आदि के दाम लगभग हर बजट में कम होते थे और आम आदमी कहता की इसके दाम कम करने से क्या फायदा क्योकि ये चीजे तब सबकी जरुरत नहीं होती थी मतलब एक बार घर में टीवी या फ्रिज आ गया तो बीस साल की छुट्टी मानिये कितने भी ख़राब हो जाये ठोक पीट मैकेनिक के यहाँ भेज भेज कर चलाया या घिसा जाता था | पर अब तो पूछिये मत ख़राब होने तो दूर की बात अब तो ज्यादा पुरना होते ही या कोई नया माडल बाजार में आते ही लोग इन सामानों को बदल डालते है | 
                                          बजट में पहले सबसे दुखी होते थे पीने वाले क्योकि हर बजट के बाद उनके पैग का दाम बढ़ जाता था , बाकि लोग इससे खुश होते थे, हा हा और बढ़ाना चाहिए शराब सिगरेट आदि के दाम इन पर और टैक्स लगाना चाहिए ताकि पीने वाले पीना छोड़ दे | लेकिन न तो सरकार ने टैक्स बढ़ाना छोड़ा न पीने वालो ने पीना छोड़ा | सरकार इन पर टैक्स लगा कर जो पैसा कमाती है वो शराब सिगरेट को न पीने की हिदायत देने वाले विज्ञापनों, इससे होने वाले कैंसर आदि बीमारियों के इलाज और इन्हें पी पी कर गरीब हो चुके लोगो को सब्सिडी दे कर अनाज आदि देने और पी कर गाड़ी चलाने वाले से होने वाली दुर्घटनाओ पर खर्च कर देती है | 
                   चलिए हम लोग भी खुश हो लेते है सरकार ने हमें साल का २०६० रुपये का यानि महीने का १७१ रु का फायदा (????) पहुँचाया है क्या करे इसका मारे ख़ुशी के पार्टी कर ले , या  पता चला है कि पेट्रोलियम पदार्थो के दाम फिर से २-४ रु तक बढ़ने वाले है  यानी महीने के ५०० रु के लिए , सरकारी अस्पताल तो हमारे जाने लायक नहीं है प्राइवेट महंगे कर दिया तो उसके लिए, सब्जी और अनाज के दाम अब भी कम नहीं हुए महीने के १००० रु के लिए , दूध के दाम अभी फिर से तीन रु बढ़ गए महीने के ९० रु के लिए आदि आदि आदि पर खर्चने के लिए बचा लू |  सरकार खुद कह रही है की अगले साल महंगाई दर ८.५% रहेगी और टैक्स में छुट कितना दे रही है पता नहीं सरकार क्या हिसाब किताब लगाती है | वैसे तो हमारे ये भी नहीं बचने वाले है साल का वेतन बढ़ोतरी जो होगा तो उसके बाद तो हमारी तरफ और टैक्स ही निकलेगा | वैसे सरकार से ज्याद उम्मीद थी नहीं क्योकि जिस सरकार का मुखिया ये कहे की महंगाई है ही नहीं वो तो बस मिडिया का प्रोपेगेंडा है और हमारे वित्त मंत्री सब भगवान भरोसे छोड़ कर ये कहे की उनके पास अल्लाद्दीन का चिराग नहीं है जो महंगाई कम कर दे तो वो क्या कर सकते है |