May 20, 2011

ऐसे लड़ेंगे हम आतंकवाद से और दाउद को लायेंगे पाकिस्तान से - - - - -mangopeople



                                                                      टीवी चैनलों पर हम सभी ने देखा होगा ग्राहकों को जागरुक करता सरकारी विज्ञापन " जागो ग्राहक जागो " बताया जाता है की किसी भी चीज को खरीदने से पहले उसकी एक्सपायरी डेड यानि उसको इस्तेमाल करने की आखरी तारीख जरुर देख ले, किन्तु  सरकार आम आदमी को तो जगाती रही पर जब उसकी बारी आई तो शायद खुद ही सो गई | देश की सबसे बड़ी "सरकारी" जाँच एजेंसी सी बी आई  १९९५ के पुरुलिया कांड के मुख्य आरोपी किम डेवी के प्रत्यर्पण के लिए कोपेनहेगन पहुची तो उसे पता चला की वो तो डेवी को ले जाने के लिए जो वारंट लाई है वो एक्सपायर हो चूका है |  इस बात की जानकारी भी उन महान अधिकारियो को खुद नहीं हुई उसकी जानकारी भी डेवी के वकील ने दी | खैर ऐसे वैसे कर तुरंत नया वारंट मगाया गया और वहा की आदालत में पेश किया गया |
                                    सरकार और उसकी जाँच एजेंसियों , सुरक्षा एजेंसियों की तरफ से की गई ये गलती तब बड़ी मामूली लगती है, जब हमें पता चलता है की पाकिस्तान को जो ५० अपराधियों ( भारत के मोस्ट वांटेड ) की लिस्ट दी जा रही है जिनके पाकिस्तान में होने की बात की जा रही है उस लिस्ट में भी बड़ी गड़बड़िया है | पहले तो उस लिस्ट में उस वजाहुल कमर खान का नाम सामने आया जो पहले ही पुलिस के द्वारा पकडे जाने के बाद जमानत पर रिहा है और रोज पुलिस स्टेशन जा कर हाजरी भी लगाता है |  अभी तक इतनी बड़ी गड़बड़ी के बारे में हमारे केन्द्रीय गृह मंत्री जी ठीक से सफाई भी नहीं दे पाए थे की अब उस मोस्ट वांटेड लिस्ट में शामिल एक और अपराधी फिरोज अब्दुल रशीद के बारे में कहा जा रहा है की वो तो मुंबई के आर्थर रोड जेल में कसाब के साथ ही बंद है | पहली गलती पर तो केंद्र और राज्य सरकारे एक दुसरे पर दोस मढ़ने लगी वो भी तब जब दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकारे है यदि अलग अलग पार्टी को होती तो इस बड़ी गड़बड़ी को भी राजनीतिक रंग दे दिया जाता और कभी पता ही नहीं चलता की गलती किसकी है | वैसे अधिकारिक रूप से तो अब भी ये नहीं पता चला है की गलती किसकी है और उसे क्या सजा दी जा रही है | किन्तु इन सभी के कारण जो देश की दुनिया के सामने किरकिरी हुई है उसके लिए किसे सजा दिया जाये |   दुनिया के आगे अक्सर हम ये रोना रोते है की अमेरिका से ज्यादा और पहले से तो हम आतंकवाद से पीड़ित है हम तो अपने पडोसी के द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के सताये हुए आदि आदि किन्तु जब इन सब रोने गाने के अलावा काम करने की बारी आती है तो हम ढंग से कागजी कार्यवाही तक नहीं कर पाते है और सपने अमेरिका जैसी कार्यवाही की देखते है | इस कारनामे के बाद क्या लगता है की दुनिया में कोई भी देश हमारे द्वारा पाकिस्तान पर लगाये गए किसी आरोप को गंभीरता से लेगी | क्योकि ये हमारी सुरक्षा और जाँच एजेंसियों द्वारा की गई कोई पहली गलती नहीं है  इसके पहले भी जब २६/११ के मामले में पाकिस्तान को कुछ अपराधियों के फिंगर प्रिंट दिए गए थे तब भी इसी प्रकार की गड़बड़ी की गई थी और दो व्यक्तियों के नाम पर एक ही व्यक्ति का फिंगर प्रिंट दे दिया गया था और उसके पहले भी इसी मामले में डी एन ए दिया गया था तब भी यही गड़बड़ी की गई थी | यानि हम इसे एक मामूली मानवीय भूल समझ कर माफ़ नहीं कर सकते है बल्कि ये सरकार की लापरवाही को दिखा रहा है उसका गंभीर न होना दिखा रहा है  जो बार बार दुहराया जा रहा है |
                                            इस सारे मामले को देख कर हम समझ सकते है की सरकार आतंकवाद से लड़ने को ले कर, २६/११ के मामले में पाकिस्तान से बातचित को लेकर और वहां पर आजाद घूम रहे भारत के  अपराधियों को यहाँ लाने को लेकर कितनी गंभीर है | उसका रवैया बिलकुल उस आम आदमी की तरह है जो सोचता है की खाली पिली होना कुछ है नहीं, दाउद क्या उसका कुत्ते का प्रत्यर्पण भी नहीं होने वाला है, फिजूल में मगज मारी काहे को की जा रही है | यानि सरकार खुद ये मान कर चल रही है की होना कुछ नहीं है बस कागजी खानापूर्ति और दिखावा करना है सो कैसे भी कर दो | अब शायद सभी को समझ में आ गया होगा की मुंबई के २६/११ के अपराधियों पर इतने दबाव और सबूत के बाद भी पाकिस्तान क्यों नहीं कार्यवाही कर रही है | जब हमारी सरकार का ही रवैया इतना ढीला ढाला है तो पाकिस्तान क्या खाक कार्यवाही करेगा  न तो पाकिस्तान के ऊपर और न ही अमेरिका के ऊपर सरकार ने ऐसा कोई दबाव डाला है की वो कार्यवाही के लिए मजबूर हो जाये  बस जनता को बेफकुफ़ बनाने के लिए सतही तौर पर खानापूर्ति की जा रही है | 
                                                        इसे लापरवाही की हद न कहा जाये तो क्या कहा जाये की सरकार को अपने यहाँ पकडे गये आतंकवादियों की कोई खबर नहीं है और दुनिया के सामने दावा ये कर रहे है की हमें पता है जी दाउद से लेकर हमारे सारे मोस्ट वांटेड पाकिस्तान में ही है | और आम आदमी सपने सजा रहा है की हमें भी अमेरिका की तरह पाकिस्तान में घुस कर अपने अपराधियों को मार देना चाहिए | अब सरकार के ये कारनामे देख कर सभी समझ गये होंगे की क्यों मनमोहन सिंह ने अमेरिका जैसी किसी भी कार्यवाही पाकिस्ताने में करने से इंकार कर दिया था | लो जी अपने देश के जेल में बंद अपराधियों का तो हमें पता ही नहीं है पाकिस्तान में कौन कहा छुपा बैठा है इस बात की जानकारी कहा से लायेंगे | अब तो शायद पाकिस्तान कहें की मनमोहन सिंह जी जरा ठीक से अपनी लिस्ट जाँच कर ले ५० में से दो तो आप को भारत में ही मिल गये जरा ध्यान से खोजिये बाकि ४८ भी वही मिल जायेंगे बेकार में हमें बदनाम किये जा रहे है और जिस दाउद को पकड़ने के लिए इतना मारा मारी कर रहे हो उसको पालने पोसने वाला और दाउद को इतना बड़ा बनाने वाला उसका  बाप ही तुम्हारे यहाँ मंत्री बना बैठा है |
                                                             ये सोच कर कोफ़्त होती है की अभी कुछ समय पहले तक हम लादेन के पाकिस्तान में छुपे होने, अमेरिका द्वारा वह घुस कर उसे मारने, पाकिस्तान को इस बारे में कोई जानकारी नहीं होने और सब होने के बाद अंत में पाकिस्तान की स्थिति पर हंस रहे थे उस पर दुनिया भर में चुटकुले बनाये जा रहे थे  और अब शायद पाकिस्तान में हमारे ऊपर चुटकुले बन रहे होंगे |
                                       
                                               ( वैसे मुझे तो अब सक सा हो रहा है की ये गलतिया वास्तव में लापरवाही से हो रही है या हमारी जाँच और सुरक्षा एजेंसियों यहाँ तक की सरकार में बैठा कोई जासूस साजिस तो नहीं कर रहा है, ताकि दुनिया में भारत की किरकिरी हो सके उसके दिए पक्के सबूतों पर भी कोई विश्वास न करे और पाकिस्तान पर लगाये भारत के सारे आरोपों को बस एक राजनीति समझ झुठला दिया जाये | पता नहीं क्या हो रहा है शायद ये भी हो सकता है )
                                                      

May 18, 2011

ये पुरुष का दुर्भाग्य है की वो माँ नहीं बनता - - - - - - - -mangopeople


 मैंने ये कहा था की माँ बनने के दौरान होने वाले कष्टों को देखते हुए हम कह सकते है की शायद पुरुष शौभाग्यशाली है जो उसे माँ नहीं बनना पड़ता और उन कष्टों से नहीं गुजरना पड़ता है जो एक नारी को सहना पड़ता है, किन्तु पुरुषो को कम से कम उन कष्टों के प्रति थोडा संवेदनशील होना चाहिए और माँ बन रही पत्नी को हर संभव मदद करनी चाहिए | आज इस पोस्ट में इस बात का जिक्र करुँगी की ये पुरुष का दुर्भाग्य है की वो माँ नहीं बन सकता, वो माँ बनने के बाद मिलने वाली ख़ुशी को नहीं पाता, जबकि बिना किसी कष्ट , दर्द, परेशानी के वो इसे पा सकता है |


                                               कुछ साल पहले पति और उनके मित्रो के साथ पिकनिक पर गई थी, मित्रो की मंडली में एक के सपुत्र आ कर उनकी गोद में बैठ गये वो बड़े फक्र से बताने लगे की वो अपने बेटे को अकेले अपने पास रख सकते है उसे माँ की जरुरत नहीं है | बताने लगे की कैसे दो बार उन्होंने अपने ढाई साल के बेटे को अकेले दो दिन तक अपने पास रखा, उसे माँ की याद ही नहीं आई और उन्होंने दो दिनों तक बड़े आराम से उसकी देखभाल की, उनकी सुन मेरे पति देव भी कहा चुप रहने वाले थे उन्होंने भी गर्व से सीना फुला कर कहा की मै भी अपनी बेटी को आराम से रख सकता हूँ, ( अभी तक अकेले रखने का मौका नहीं मिला है ) वो भी मेरी लाडली है और माँ के बैगेर भी मेरे पास रह सकती है | बाकियों ने सवाल किया खाना वाना भी खिला लेते हो और तुम्हारे साथ सो भी जाती है ये दो कम तो हम नहीं कर पाते |  दोनों मित्रो ने फिर एक बड़ी मुस्कान के साथ कहा की हा थोड़े नखरे तो खाने में करते है, वो तो माँ के साथ भी करते है, पर बाकि कोई परेशानी नहीं होती है हमारे बच्चे हमारे बड़े करीब है | फिर दुसरे मित्रो ने भी बताना शुरू किया की हा हमारे बच्चे भी आफिस से आने के बाद हमारे ही पास रहते है , हम उन्हें घुमा देते है हमारे साथ खेलते है और घंटो बात करते है |  पर जो गर्व, ख़ुशी, मुस्कान मेरे पतिदेव और उनके उस दुसरे मित्र के चेहरे पर थी वो किसी और के नहीं थी क्योकि उन्हें गर्व इस बात पर था की वो अपने बच्चो के लिए माँ के बराबर ही थे बच्चो के लिए उतने ही महत्वपूर्ण थे जितने की माँ और वो गर्व वो ख़ुशी उनके चेहरे पर अपने बच्चे के माँ बनने की थी ,भले पार्ट टाइम के लिए ही सही |  अपने  बच्चे की पूर्ण रूप से देखभाल उसके लालन पालन करने में जो आन्नद और उसके बदले में उन्हें बच्चे से जो प्यार और लाड मिल रह था वो उनके लिए एक अलग ही एहसास था जो कम से कम भारत में बहुत कम ही पिता को नसीब होता है वजह वही सोच  है की बच्चे पालने का काम माँ का है पिता का नही | इन के बीच एक मित्र और भी थे जिनकी बेटी पुरे समय अपनी माँ की गोद में ही चिपकी रही, वो बाकियों की बातो पर मुंह बिचकाते रहे और बीच बीच में ताने कसते रहे की ये "जनाने" काम उन्हें नहीं करने है, वो अलग बात है जब सभी के बच्चे अपने अपने पापा के साथ खेलने और झरने में नहाने में  मस्ती कर रहे थे तो उनके लाख बुलाने पर भी उनकी बेटी एक बार भी उनके पास नहीं आई और वो इस बात पर भी अपनी बेटी और पत्नी पर खीज रहे थे |

                                                           कई बार कुछ लोग ये भी कहते है की बच्चे हमारे पास आते ही नहीं आते है तो जल्द ही माँ के पास चले जाते है या उसका लगाव हमसे ज्यादा नहीं है या बच्चो की देखभाल जितने अच्छे से माँ कर सकती है पिता नहीं कर सकता इसलिए ये काम माँ को ही करना चाहिए | आप को बताऊ एक प्यार भरे स्पर्स को जितने अच्छे से एक बच्चा महसूस कर सकता है कोई और नहीं कर सकता इसलिए जब पिता बच्चे को एक बोझ की तरह गोद में ले कर चलता है (जैसे की पत्नी बेचारी बच्चे का इतना बोझ ले कर कैसे चल सकती है है सो मै ले लेता हूँ ) तो बच्चा जल्द ही ऐसे पिताओ के गोद से निकल कर माँ के पास चले जाते है  उन्हें पता होता है की कहा उन्हें प्यार से गोद में लिया जायेगा न की बोझा की तरह | बच्चा होना ही अपने आप में किसी को भी उसके प्रति लगाव पैदा कर सकता है किन्तु कुछ लोग इतने पाषाण होते है की उन्हें अपने बच्चे से भी कोई लगाव नहीं होता ( कई बार समझ नहीं आता की वो पिता बनते ही क्यों है शायद वो इस बारे में सोचते ही नहीं उनके लिए पिता बनना अपनी मर्दानगी दिखाने का एक साक्ष्य भर होता है ) अपने आस पास ही देखा है पत्नी को सख्त निर्देश होते है की मेरे आने से पहले बच्चे को सुला देना, रात को उसके रोने की आवाज नहीं आनी चाहिए मेरी नीद ख़राब होगी , उसकी नैपी गन्दी होते ही बदबू की शिकायत कर वह से भगा जाना | जी नहीं मै ये सब किसी पुरातन काल का वर्णन नहीं कर रही हूँ मै आज के समय की ही बात कर रही हूँ यदि आप ऐसे पिता नहीं है या आप के घर में ऐसे पिता नहीं है तो थोड़ी नजर ध्यान से आस पास घुमाइये आप को इस तरह के कई पिता आज भी मिल जायेंगे, बच्चे इनके लिए सदा के पे चिल्ल पो करने वाले मुसीबत ही होते है |
                        एक और आम सी बात प्रचलित है कि बच्चे की देखभाल जितने अच्छे से माँ कर सकती है पिता नहीं कर सकता | मुझे नहीं लगता है की कोई भी नारी ये गुण ले कर पैदा होती है यदि होती तो सभी नारी सभी बच्चो से वैसे ही जुड़ जाती जैसे की अपने बच्चो से, असल में तो ये एक प्रक्रिया है सबसे पहले तो हम दूसरी माँओ को देख कर ये सीखते जाते है और फिर माँ बनने के बाद जैसे जैसे हम बच्चे के साथ समय बिताते है उस पर ध्यान देते है उसकी हर हरकत पर नजर रखते है हम उसको उसकी जरूरतों को उसकी परेशानियों को अच्छे से समझने लगते है और ये काम कोई भी पुरुष अपने बच्चे से थोडा जुड़ाव रख समझ सकता है यदि उसमे थोडा धैर्य हो तो ये काम और भी आसन हो जाता है | जबकि होता ये है की बचपन से ही ये सुन सुन कर की बच्चे तो माँ को पालना है पिता कभी उससे जुड़ने की सोचता ही नहीं है या इस बारे में सोचता तक नहीं तो फिर कैसे उसमे ये गुण आयेंगे | मेरी बात वो कई पिता साबित कर सकते है जो अपने बच्चे की खुद देखभाल करते है उससे जुड़े है और उसकी हर परेशानी बात को समझते है |

                                                                                मुझे याद है जब मेरी बेटी के जन्म के १५ दिन बाद ही मैंने नाउन(  जो बच्चो को नहलाती है उसकी मालिश आदि करती है ) वाली को उसे नहलाने से मना कर दिया की अब मै ही इसे स्नान कराऊंगी, तो वो मुझसे शिकायत करने लगी की ये तो उसका हक़ है उसे ही करना चाहिए, तो मैंने कहा की मुझे तो एक ही बेटी होनी है उसके नहलाने मालिश करने उसे तैयार करने का आन्नद तो मुझे एक ही बार मिलेगा एक बार जो बड़ी हो गई तो फिर ये दिन लौट कर न आयेंगे फिर न होगी मेरी बेटी वापस छोटी तो मै कब इन सब चीजो का आन्नद लुंगी आखिर बेटी तो मेरी है उसकी देखभाल में मिलने वाली ख़ुशी पर पहला हम तो मेरा बनता है | उसके छोटे छोटे हाथो का पकड़ना उसकी नन्ही नन्ही उंगलियों को सहलाना उसके मासूम से चेहरे को घंटो तक देखते रहना, जब वो ठीक से बोल भी नहीं पाती थी तब भी उससे बाते करना और उसकी टूटी फूटी जबान को समझना उसे सीने से लगा थपकी दे सुलाना न जाने कितनी अनगिनत खुशिया है जो हम दोनों उसके साथ पा चुके है जो फिर कभी लौट कर नहीं आयेंगे जिन्हें याद कर के ही हम पति पत्नी का दिलो दिमाग आन्नद से भर जाता है समझ नहीं आता उसे पाने से कैसे कुछ लोग वंचित होना ठीक समझते है उसे मजबूरी एक बोझा एक काम मानते है उसे करने से भागते है | ऐसे पुरुषो को देख कर यही कहा जा सकता है की शायद ये पुरुष का दुर्भाग्य ही है की वो बिना किसी कष्ट के माँ बनने का मौका गवा देता है |

May 08, 2011

पुरुष शौभाग्यशाली है की वो माँ नहीं बन सकता या ये पुरुष का दुर्भाग्य है की वो माँ नहीं बनता - - - - - - - -mangopeople

दुनिया में माँ से महान कोई नहीं होता 
दुनिया में माँ के बराबर का दर्जा कोई नहीं ले सकता 
माँ जितना सहनशील और धैर्यवान कोई नहीं होता 
माँ नाम तो सृजन का है 
माँ से ही परिवार और देश बनता है 
हम कभी माँ की ममता का कर्ज नहीं उतार सकते है
आदि आदि आदि 

                                                      माँ की महानता को लेकर न जाने दुनिया में क्या क्या कहा गया है | यदि आप सभी से भी इस बारे में पूछा जाये तो सभी ये मानने में बिलकुल नहीं हिचकेंगे की माँ बनना एक बड़ी जिम्मेदारी है और ये एक कठिन कार्य है |
लेकिन मेरा मानना है की जितना कठिन और जिम्मेदारी भरा आप काम इसे मान रहे है वास्तव में ये उतनी बड़ी जिम्मेदारी और कठिन काम नहीं है अपने अनुभव से बता सकती हूँ , ये हमारी आप की सोच से कही ज्यादा कठिन काम है जिसका अंदाजा हम तब तक नहीं लगा सकते जब तक की हम स्वयं माँ नहीं बनते है | ज्यादातर महिलाये एक समय आने के बाद इसको समझ भी लेती है किन्तु पुरुष इस बात को कभी नहीं समझ पाते है क्योकि वो कभी माँ नहीं बन सकते है | कई बार मैंने इस बात का एहसास किया है की ज्यादातर पुरुष माँ बनने की कठिनाइयों के बारे में बात तो करते है किन्तु वास्तव में वो उसे समझते नहीं है उसका सम्मान नहीं करते है |

                                         " सारे दिन करती क्या हो घर में बैठ कर" , " एक बच्चा क्या आ गया बाकि काम से तो बिलकुल छुट्टी ही ले लिया है ", " एक घर एक बच्चा नहीं संभाल सकती ", " छोटे से बच्चे तक को नहीं संभाल सकती तो और क्या कर सकती हो ", " जन्म दे कर मुझ पर एहसान नहीं किया है ", " बस जन्म ही तो दिया है और किया क्या है मेरे लिए " इस तरह के न जाने कितने जुमले माँओ को बोला जाता है जिससे साफ लगता है की वास्तव में पुरुष सिर्फ कहने के लिए माँ की महिमा मंडन करता है दिल से उस बात को नहीं मानता या उस कठिनाई को नहीं समझता है | शायद इसी करना मुझे एक बार "नारी" ब्लॉग पर ये लिखा पढ़ने को मिल गया था की " भारतीय महिलाओ के लिए प्रसव पीड़ा वास्तव में पीड़ा न हो कर प्रसव आन्नद होता है " जी हा ये कथन एक पुरुष का था किन्तु वो एक बड़े पुरुष वर्ग की सोचा को दर्शा रहा था साफ था की वो तनिक भी इस दर्द और परेशानी को नहीं समझ रहे थे जो एक नारी को माँ बनते समय सहना पड़ता है | जवाब में मैंने भी  ये  टिपण्णी कर  दी 
                                       "अच्छा है की भगवान ने माँ बनने की शक्ति नारी को दी है यदि पुरुष को दी होती तो समाज में सेरोगेट बाप बनने का व्यापर शुरू हो गया होता लोग पैसे दे कर अपने बच्चे दूसरो से पैदा करवा रहे होते और कुछ दुसरे पुरुष "पैसे" के लिए ये कर रहे होते क्योकि प्रषव पीड़ा दो दूर की बात प्रेगनेंसी के पहले तीन महीनो की परेशानियों को भी वो झेल नहीं पाते और बच्चे पैदा करने का काम भी रेडीमेड बना देते | लेकिन फिर भी जो लोग इस तथा कथित प्रषव आनन्द का आन्नद लेना चाहते है तो उनको उसके पहले के आन्नदो का भी आन्नद लेना चाहिए | सुरुआत कीजिए की हर रोज खाना खाने से पहले नमक पानी का घोल पी लिजिए जब वमन आने लगे तो खाना खाने की कोशिश कीजिए हर रोज माई फेयर लेडी झूले के बीस चक्कर लगाइए जब आप को सारी दुनिया घुमती सी दिखे तो इसी अवस्था में सारे दिन काम कीजिए पैरो में दो दो किलो का वजन और पेट में चार से पांच किलो का वजन बांध कर सारे दिन काम कीजिए और फिर रात में उसी अवस्था में सोने की कोशिश कीजिए नीद आना दूर की बात कभी अभी तो इस अवस्था में किसी भी तरीके से लेटा भी नहीं जाता और पूरी रात एक आराम दायक अवस्था पाने में ही निकाल जाता है | ये सब कुछ नौ महीनो तक करिए फिर बताईये की किस किस को कितना आन्नद आया | प्रषव आन्नद का आनन्द कैसे लिया जाये ये तो मुसकिल है मेरे लिए बताना लेकिन उसके बाद बच्चो की देखभाल बता सकती हु सबसे पहले तो रोज रात में हर दो घंटे बाद का अलार्म लगा ले जब वो बजे तो उठ कर उसे बंद करे और फिर से दो घंटे बाद का अलार्म लगा दे जब तक आप वापस नीद के झोके में जायेंगे तब तक अलार्म दुबारा बज जायेगा ये क्रिया एक साल तक हर रात करे और सुबह बिलकुल फ्रेस मुड में उठिए| सिर्फ इतना ही कीजिए और फिर बताइये की कितना आन्नद आया | बाकि सारी परेशानिया छोड़ दे हफ्ते दस दिन में ही जो सिर्फ इन परेशानियों को झेल लेगा वो समझ जायेगा की पीड़ा और आन्नद में क्या अंतर है प्रषव पीड़ा को सहना तो दूर की बात है |"

May 03, 2011

अश्वाथामा मारा गया - - - - - - mangopeople

                                          अश्वाथामा मारा गया 
                                                               किन्तु हाथी

  जी हा सभी जानते है की आतंकवादी रूपी अश्वाथामा अजर अमर है वो कभी मर नहीं सकता है दुनिया में वो किसी न किसी रूप में मौजूद रहेगा | लादेन रूपी जो अश्वाथामा मारा गया है वो तो इस आतंकवाद के युद्ध में सिर्फ एक हाथी था जिसके मरने से इस युद्ध पर कुछ खास असर नहीं होने वाला है कम से कम हम भारतीयों के आतंकवाद के युद्ध के लिए तो ये ज्यादा महत्व नहीं रखता है | इसलिए जरुरी है की इस हाथी के मरने के शोर  में असली आतंकवाद रूपी अश्वाथामा को नहीं भूलना चाहिए, जैसे पांडव उसे भूल कर युद्ध को समाप्त समझ बैठे थे और उसके बाद उस अश्वथामा ने युद्ध नीति और धर्म के खिलाफ जा कर द्रौपती के पांच पुत्रो की हत्या कर दी थी और उत्तरा के गर्भ में पल रहे पांडव वंश की आखरी निशानी को भी समाप्त कर पांडव वंश को समाप्त करने का प्रयास किया था  |  आतंकवादी भी किसी धर्म या नीति को नहीं मानते है उनके लिए सब कुछ जायज है यदि उन्हें अपनी महत्वाकांक्षाओ को पूरा करने के लिए इस पुरे मानव वंश को भी नष्ट करना पड़े परमाणु युद्ध द्वारा तो वो उससे भी पीछे नहीं हटेंगे | इसलिए अब जरुरत इस बात की है की अपना ध्यान और इस युद्ध पर लगाया जाये ताकि बदले की कार्यवाही से बचा जा सके |
                                                       खुद अमेरिका के लिए भी ये हाथी ही होगा क्योकि पिछले दस सालो में नहीं लगता है की लादेन आतंकवाद को बढ़ाने में और अलकायदा के संचालन में उतना सक्रिय रहा होगा जितना की ९/११ के पहले था , असल में तो अल कायदा की कमान काफी पहले ही कई दुसरे आतंकवादियों के हाथ में चली गई थी और लादेन के मरने से उनके मनोबल तो गिर सकता है किन्तु जमीनी रूप से ज्यादा फर्क उन्हें नहीं पड़ेगा | इसलिए ये जरुरी है कि अमेरिका इसे आतंकवाद के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई का एक पड़ाव भर माने उससे ज्यादा कुछ नहीं | वैसे तो हम सभी जानते है की दुनिया को आतंकवाद से मुक्ति दिलाने के नाम पर आमेरिका अपनी निजी लड़ाई लड़ रहा है और उस नाम पर वो तेल का खेल भी खेल रहा है किन्तु हमें ये तो फायदा हुआ ही है की इन दस सालो में अलकायदा अमेरिका से ही लड़ने में व्यस्त था जिससे उसका ध्यान भारत और कश्मीर में हो रहे आतंकवाद से थोडा हटा था और कश्मीर में कुछ दुसरे पाकिस्तान परस्त गुट ही सक्रीय थे | यदि अलकायदा अमेरिका से उलझा नहीं होता तो शायद वो अपना सारा धन बल हथियार की ताकत भारत के लिखाफ लड़ने में लगा सकता था | साथ ही अमेरिका के पाकिस्तान में मौजूदगी के कारण वो अब जान चूका है की पाकिस्तान किस तरह भारत में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है खुद लादेन तक को अपने यहाँ पनाह दे रखा था वो इस बात को भले सार्वजनिक रूप से न माने क्योकि ये उसकी मजबूरी है वो उस पाकिस्तान के खिलाफ अभी कुछ नहीं कह और कर सकता जिसके बल पर वो अफगानिस्तान में टिका है और उसे पैसे दे कर उसके सैनिको से अपना युद्ध लड़वा रहा है किन्तु अब वो पाकिस्तान की वास्तविकता से अच्छे से परिचित है जो हमारे काम तब आएगा जब अमेरिका अफगानिस्तान से अपनी गर्दन बचा कर बाहर निकल जायेगा | तब तक तो हमें इस तमाशे को देखना ही पड़ेगा | 
                                                   मुझे नहीं लगता है की प्रत्यक्ष रूप से अमेरिका हमारी आतंकवाद से लड़ने में कोई मदद करेगा ये काम तो हमें ही करना होगा | अपने आतंकवाद की लड़ाई हमें ही लड़नी होगी क्योकि एक तो हमारे दुश्मन अलग अलग है वही हमारी और हमारे दुश्मनों की स्थिति दुनिया में अलग अलग है हम उस तरह से अपना युद्ध नहीं लड़ा सकते है जैसे की अमेरिका लड़ रहा है जहा अमेरिका आक्रमण नीति अपना रहा है क्योकि उसकी लड़ाई अविकसित सैन्य शक्ति में कमजोर देशो से है वही हम गुरिल्ला युद्ध जैसी स्थिति में फंसे है जहा हम पर छुप कर पीछे से वार किया जा रहा है हमारे दुश्मन सामने नहीं दिख रहा है | हम भले जानते हो की इसके पीछे कौन है किन्तु उसके खिलाफ हम सीधी लड़ाई नहीं लड़ सकते है वो अन्य देशो से कही ज्यादा सैन्य शक्ति में ताकतवर है और उसे दुनिया के दुसरे ताकतवर देशो और हमारे दुसरे दुश्मनों का साथ भी मिला है साथ ही हम अमेरिका जैसे आर्थिक और सैनिक ताकत भी नहीं रखते है | इसलिए हमें ये युद्ध रक्षात्मक रूप में लड़नी होगी मतलब हमें खुद की इन हमलो के प्रति सुरक्षित बनाना होगा इन हमलो को होने से पहले रोकना होगा अपनी सुरक्षा व्यवस्था और तगड़ी करनी होगी | जो हम अभी तक नहीं कर पाए है सबूत के तौर पर मुंबई हमला करने के लिए आतंकवादी बड़े आराम से समुंद्री रास्ते हमारे देश में घुस गए | जब हमारी सीमाओ का ये हाल है तो हम कैसे इस युद्ध को जितने का सोच सकते है या अमेरिका जैसे किसी सफलता की उम्मीद कर सकते है | 
                         अमेरिका ने तो दस सालो में दुसरे देश में घुस कर अपने दुश्मन को मार दिया और हम तो किसी आतंकवादी हमले का मुक़दमा ही तेरह सालो तक चलाते रहते है वो भी निचली आदालत में जैसे १९९३ के मुंबई हमलो का मुक़दमा | दुसरे मुकदमे का फैसला आ जाये तो उसे सजा देने में इतनी देर करते है जैसे अफजल गुरु और हद तो तब है जब बाहर से आ कर सरेआम लोगो को मारने वालो को जिसकी फोटो हर किसी ने देखी सब करते हुए उसके खिलाफ भी मुक़दमा दो साल तक चलता जा रहा है जैसे कसाब का मुक़दमा अभी भी अदालत में ही है | अब ये देखने के बाद क्या हम कह सकते है की हमें भी अमेरिका की तरह दुसरे देश में घुस कर अपने दुश्मनों को पकड़ लेना चाहिए या उन्हें मार देने चाहिए | जब हम अपने देश के अन्दर उनके खिलाफ कुछ नहीं कर पा रहे है तो किसी दुसरे देश में घुस कर उन्हें क्या खाक पकड़ेंगे |
                                कल टीवी पर देखा दुनिया के साथ ही भारत में भी इस बात की खुशिया मनाई जा रही है की लादेन मारा गया | लगा जैसे लोग खुद को धोखा देने का प्रयास कर रहे है की हम अपने देश के दुश्मनों का तो कुछ नहीं कर सकते अपने लिए हम इस तरह कोई ख़ुशी नहीं मना सकते तो कम से कम दूसरो के दुश्मनों को या अपने दूर के दुश्मन के मरने की ही ख़ुशी मना लेनी चाहिए | अब आम आदमी और कर भी क्या सकता है जिस देश की राजनीतिक इच्छा शक्ति इतनी कमजोर हो जिस देश के नेता मंत्री हर बात में वोट की राजनीति करते हो खबरों में बने रहने के लिए कुछ भी बकते हो उस देश की जनता कर क्या सकती है | दिग्विजय सिंह की बयान रूपी बेफकुफियो की लिस्ट काफी लम्बी है कल उन्होंने उस में एक और जोड़ ली ये कह कर की " कोई कितना बड़ा आतंकवादी क्यों न हो उसके मरने के बाद उसके अंतिम संस्कार में उसके धार्मिक रीति रिवाजो को पूरा किया जाना चाहिए |" ये हमारे देश के नेता है ये इनकी सोच है इस पुरे प्रकरण में इन्हें अपने मतलब की जो सबसे सही बात दिखी वो ये था की एक खूंखार आतंकवादी का धर्म और उसका रीति रिवाज | वास्तव में कहू तो दिग्विजय सिंह की ये बेफकुफिया बर्दास्त के बाहर होती जा रही है |