October 13, 2011

विरोध के दो तरीके , हमला , और राजनीतिक चालबाजिया - - - - - -mangopeople



                                                             कल एन डी टीवी पर विनोद दुआ प्रशांत भूषण पर हुए हमले की निंदा करते हुए कह रहे हे की विरोध के ये तरीके गलत है आप दूसरों को विचार भिन्नता के कारण पीट नहीं सकते है विरोध के तरीकों का विरोध करते हुए उन्होंने अन्ना और बाबा राम देव की भूख हड़तालो को भी विरोध करने के तरीकों को गलत बताया और कहा की सरकारों पर भीड़ का दबाव डाल कर आप काम नहीं करा सकते है इस तरह से आप दूसरों से अपनी बात नहीं मनवा सकते है | 
                                                       
                                                                 प्रशांत भूषण क्या किसी पर भी वैचारिक भिन्नता के कारण इस तरह हमला करना गलत है |  दूसरे क्या किसी के किसी बयान से आहत हो कर उस पर हमला कर देना उसे सरे आम पीट देना और किसी कानून की मांग के लिए , भ्रष्टाचार के ख़ात्मे और भ्रष्ट व्यवस्था को बदलने के लिए आम जनता द्वारा किसी तरह का आन्दोलन करना या सत्याग्रह करना , सरकार पर दबाव डालने को हम क्या एक श्रेणी का विरोध कह सकते है | मुझे उनकी कोई भी बात समझ नहीं आई जनता के किसी शांतिपूर्ण आन्दोलन को विरोध का गलत तरीका बताना समझ से परे है | क्या ये बुद्धिजीवी टाईप के लोग बताएँगे की यदि जनता को किसी बात का विरोध करना हो तो उसे कौन से तरीके से करना चाहिए | हड़ताल , तोड़ फोड़ सड़क जाम जैसे तरीके गलत है हम सभी उसका विरोध करते है इससे सरकार के साथ आम आदमी को भी परेशानी होती है किंतु यदि किसी स्थान पर लोग शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे है सत्याग्रह कर रहे है तो उसमे क्या बुराई है, क्या जनता वोट दे कर सरकारें बदलने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकती है,  वो भी करने के लिए उसे पञ्च साल का इतंजार करना होगा,  क्या तब तक उस सरकारों की हर ज़्यादती सहते रहना चाहिए और हाथ पर हाथ धरे चुपचाप बैठ कर अव्यवस्था को खुद को लुटता हुआ देखते रहना चाहिए | और तब क्या करना चाहिए जब सरकार बनाने वाली हर राजनीतिक पार्टी ही एक जैसी हो और सामान रूप से काम करती हो | तब तो जरुरत व्यवस्था परिवर्तन की ही आ जाती है और इसके लिए एक शांतिपूर्ण सत्याग्रह से अच्छा कौन सा तरीका हो सकता है | क्या उसे हम एक चर्चा के लिए भूखे असभ्य लोगो के हिंसक मार पीट के  तरीके से जोड़ सकते है बिल्कुल भी नहीं |  दुआ जी ये कहने का प्रयास कर रहे थे की जिस तरह अन्ना की टीम ने विरोध के गलत तरीक़े को अपनाया सरकार को ब्लैकमेल किया उस पर दबाव बना कर अपनी बात ज़बरदस्ती मनवाने का काम किया अब वही उनके साथ भी हो रहा है | उनसे भी दूसरे लोग ज़बरदस्ती अपनी बात मनवाने अपनी बात कहलवाने के लिए एक गलत तरीके का प्रयोग कर रहे है  जैसे के साथ तैसा हो रहा है | ऐसी बुद्धिजीवियों की सोच पर तरस ही खाया जा सकता है |
                                                         
                                                                  जहा तक बात प्रशांत भूषण के कश्मीर पर दिए बयान और उन पर हुए हमले की बात है तो ये राज तो अभी काफी अंदर है की पूरा मामला क्या है और शायद ही कभी बाहर आये | क्योंकि कहा नहीं जा सकता है की ये बस एक आम सी बात है या बिल्कुल सोच समझ कर की गई चालबाजी है ताकि अन्ना और उनकी टीम के मुद्दों से ध्यान हटा कर किसी और मुद्दे की तरफ लोगो का ध्यान खीचा जाये भ्रष्टाचार की जगह अन्य मुद्दों पर जनता को बहस करने के लिए मजबूर किया जाये  | ये बात किसी से ज्यादा छुपी नहीं है की प्रशांत भूषण की राय कश्मीर को ले कर क्या है वो अरूंधती के वकील भी है | ऐसे समय पर जब वो अन्ना टीम के बड़े सदस्यों में से एक है उनसे अन्ना के मुद्दे पर सवाल न करके कश्मीर के मसले पर सवाल किया गया क्या ये महज संयोग है ? ये सवाल उनसे ही क्यों किया गया अरविन्द , किरण आदि से ये सवाल क्यों नहीं किये गए ? प्रशांत ने कभी भी कश्मीर को पाकिस्तान को देने की बात नहीं कही किंतु हमलावर बार बार टीवी चैनलों से कह रहा था की उन्होंने कश्मीर पाकिस्तान को देने की बात की इसलिए उन पर हमला किया गया और वो अन्ना टीम के सदस्य है इसलिए ये बयान अन्ना का भी माना जाये या अन्ना से भी कश्मीर पर उनकी राय ली जाये | अन्ना को और उनकी टीम को जानबूझ कर कश्मीर से जोड़ा जा रहा है जिसका कोई मतलब ही नहीं है | 
             
                                                                         अन्ना टीम के कांग्रेस के विरोध में खड़े होने से पूरी कांग्रेस तिलमिलाई हुई है और उसे इसके पीछे आर आर एस , बीजेपी और कांग्रेस विरोधियों की चाल लग रही है और अन्ना टीम के साथ सबसे ज्यादा युवा शक्ति जुड़ीं है और ये सभी कश्मीर को लेकर बड़े संवेदनशील है और युवाओं को कश्मीर का नाम ले कर राष्ट्रवाद के नाम पर बड़ी आसानी से अन्ना टीम के खिलाफ भड़काया जा सकता है उनसे अलग किया जा सकता है | सरकार इस समय बुरी तरीके से भ्रष्टाचार के मुद्दे से घिरी हुई है एक तरफ अन्ना टीम है तो दूसरी तरफ अब तक सोई पड़ी हासिये पर जा चुकी विपक्ष है जो नींद से जाग गई है और मौके का फायदा उठाने के लिए अपने भाग्य से छिका टूटने का इंतजार कर रही है और हर तरफ से परेशान सरकार के लिए लोगो का ध्यान हटाने के लिए इससे अच्छा क्या मुद्दा होगा |
                                                                   इसलिए सभी से निवेदन है की दिखावे पर न जाये अपनी अक्ल लगाये बेकार के मुद्दों पर न उलझ जाये और न ही किसी के खिलाफ कुछ भी कहना शुरू कर दे अन्ना टीम का विरोध करने से पहले ये समझ ले की प्रशांत ने कल एक बात और कही थी की ये सिर्फ और सिर्फ उनका विचार है न की अन्ना टीम का और अन्ना टीम कश्मीर के लिए नहीं भ्रष्टाचार के लिए लड़ रही है और हमें उसी पर ध्यान केन्द्रित करना है |
                                         
                    जम्मू-कश्मीर को बल के ज़रिए देश में रखना हमारे लिए घातक होगा...देश की सारी जनता के लिए घातक होगा...सिर्फ वहां की जनता के लिए नहीं पूरे देश की जनता के हित में नहीं होगा...मेरी राय ये है कि हालात वहां नार्मलाइज़ करने चाहिए...आर्मी को वहां से हटा लेना चाहिए...आर्म्ड फोर्सेज़ स्पेशल पावर एक्ट को खत्म करना चाहिए...और कोशिश ये करनी चाहिए कि वहां की जनता हमारे साथ आए...अगर उसके बाद भी वो हमारे साथ नहीं है...अगर वहां की जनता फिर भी यही कहती है कि वो अलग होना चाहते हैं...मेरी राय ये है कि वहां जनमत संग्रह करा के उन्हें अलग होने देना चाहिए... खुशदीप  जी  के  ब्लॉग  से  लिया  बयान
                                   
                                                      प्रशांत भूषण का वो बयान जो उन्होंने वराणसी में दिया इसे हम इस तरीके से भी देख सकते है--- इस बयान में कभी भी कश्मीर को पाकिस्तान को देने की बात नहीं कही गई है   हा उन्हें आजाद करने की बात कही गई है किन्तु उसके पहले ताकत की जगह प्यार से उनके दिलो को जितने का प्रयास करने के लिए कहा गया उसके बाद भी यदि कश्मीरी अलग होना चाहे तो उन्हें अलग कर देने को कहा गया है वो भी इसलिए क्योकि ये कश्मीर के लिए ही नहीं पूरे देश के लिए घातक होता जा रहा है , वो भी तब जब जनमत संग्रह में बहुमत अलग होने का राय दे | और इस विषय में मेरी राय की हमें जनमत संग्रह की जरुरत ही नहीं है हमें आम लोगो के दिल जीत लेने तक काम करते ही जाना है कूटनीति से राजनीति करने वालो को हरा देना है उसके बाद किसी जनमत संग्रह की या उसे अलग करने की कोई बात ही नहीं बचेगी |


22 comments:

  1. आपने बिलकुल सही कहा है कि " दिखावे पर न जाएँ, अपनी अक्ल लगायें; बेकार के मुद्दों पर न उलझ जाएँ....."

    समस्या यही है कि लोग जो दिख रहा है उसकी सच्चाई जाने समझे बिना आवेश में निर्णय ले लेते हैं और भड़काने वाली शक्तियां उनकी इसी मानसिकता का लाभ उठती हैं.....

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  2. lesser said about them is better done

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  3. सब गोलमाल है.सच कहा अपनी बुद्धि पर भरोसा करें.

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  4. बहुत ही अच्छा लेख आपने सही कहा मुद्दों से भटकने की जगह मुद्दों पर ही अन्ना और देश को रहना चाहिए

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  5. राजनीति में तो हत्‍या और बेबस जनता पर रात को लाठीचार्ज भी कराया जाता है तो यह तो मामूली सी घटना है। यह मत भूलिए कि आज हिसार में चुनाव हो रहे हैं। कुछ न कुछ तो करना ही था।

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  6. दुर्भाग्यपूर्ण घटना किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता है , अच्छा आलेख

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  7. अंशुमाला जी,
    मारपीट की घटना निंदनीय.कश्मीर और जनमत संग्रह आदि पर अभी कुछ नहीं कहूँगा.इस बात से सहमत हूँ कि इस थकेले विवाद को अभी हवा नहीं देनी चाहिये.अच्छा लेख.

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  8. अजीत जी टिपण्णी एकदम सटीक है, मुझे भी यही लगता है ..... बेहतरीन विश्लेषण लिए आलेख

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  9. ...दिखावे पर न जाये अपनी अक्ल लगाये बेकार के मुद्दों पर न उलझ जाये और न ही किसी के खिलाफ कुछ भी कहना शुरू कर दे ...

    राजनीतिज्ञ ऐसे ही अवसरों की ताक में रहते हैं और विरोधी को जनता के सम्मुख नीचा दिखाना चाहते हैं...किसी भी मीडिया कर्मी की बातों पर भी सीधे विश्वास न करें...यहां बहुत कुछ गड़बड़ है।

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  10. जो दिखाई देता है, वो हमेशा सच नहीं होता.

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  11. विरोध का हिंसात्मक तरीका स्वीकार नहीं …
    … लेकिन , किसी को कोरा आदर्शवादी न हो कर यथार्थ राष्टवादी होना चाहिए । पाकिस्तान की विचारधारा को बल हरगिज़ नहीं देना चाहिए ।

    अंशुमाला जी
    श्रम और लगन से लिखे गए इस विवेचनात्मक आलेख के लिए आभार !


    आपको सपरिवार त्यौंहारों के इस सीजन सहित दीपावली की अग्रिम बधाई-शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  12. दिखावे पर न जाये अपनी अक्ल लगाये

    हमेशा की तरह बहुत अच्छा लेख

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  13. एक आम आदमी के द्वारा फ़ैलाई जा रही अफ़वाह और जिम्मेदार मीडिया द्वारा खबरों को सेंशेनल बनाकर फ़ैब्रिकेट करना या मैनेज करना दोनों एक ही दिशा में होने वाले काम हैं, बस प्रभाव का फ़र्क है। प्रिंट और विज़ुअल मीडिया द्वारा अर्धसत्यों को जब अनावश्यक हवा दी जाती है तो उसका प्रभाव बहुत व्यापक होता है।
    एक समय था जब अखबार और आकाशवाणी\दूरदर्शन विश्वसनीयता का पर्याय थे, और अभी..। उदारीकरण, निजीकरण भी अपने साथ साईड एफ़ैक्ट्स लेकर आते हैं, बेहतर है कि खुद भी दिमाग लगाया जाये लेकिन सवाल यही आता है कि एक आम आदमी कहाँ तक हर बात की जाँच करेगा? रामदेव, अन्ना, प्रशांत भूषण कोई दो दिन में तो कोई दो महीने या दो साल में भुला दिये जायेंगे लेकिन पेट की आग बुझाने से फ़ुर्सत मिले तो हर नागरिक हर खबर की तह तक जाये भी। यूँ भी सवा अरब लोगों से एक ही मेंटल लेवल की उम्मीद करना अजीब है।
    आम आदमी से ही हर बात की उम्मीद रखना, जैसा कि बहुत से लोग कहते हैं, जिम्मेदार लोगों को क्लीनचिट देना जैसा ही लगता है। आप तो फ़िर भी हर बात विस्तार से बताती हैं, अधिकतर जगह तो सिर्फ़ फ़तवे सुनाये और सुझाये जाते हैं।

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  14. वैसे व्‍यापक अर्थ में भ्रष्‍टाचार केवल पैसों का नहीं हो रहा है, विचारों का भी हो रहा है। मैं यह नहीं कहता कि प्रशांत भूषण जी ने जो कहा वह अन्‍ना टीम की राय है। लेकिन विचारों में भ्रष्‍टता या अस्‍पष्‍टता भी एक तरह का भ्रष्‍टाचार है। प्रशांत भूषण जी ने जो कहा उसमें आखिर गलत क्‍या है। हां उसकी टाइमिंग गलत हो सकती है। हर एक संवदेनशील नागरिक मेरे ख्‍याल से इसी तरह सोचता है। जो लोग इस मुददे को कट्टर राष्‍ट्रवाद के चश्‍मे से देखते हैं उनके लिए यह गलत हो सकता है। और हम सब जानते हैं कट्टरता कभी भी लाभदायक नहीं हो सकती।

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  15. @ संजय जी

    जरा मिडिया का सुविधा से बोलना देखिये परसों विनोद दुआ ने प्रसंत भूषण पर हुए हमले को बोलने की आजादी पर खतरा बताया न जाने क्या क्या कहा वही विनोद दुआ कल उसी चैनल पर कह रहे है की प्रशांत को कश्मीर पर ऐसा बोलने से पहले हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को उनकी सहादत को याद कर लेना था तो वो ये नहीं कह पाते आदि आदि | आश्चर्य हो रहा था ये वही चैनल है एन डी टीवी है जो कुछ महीनो पहले अरुंधती के बयान के बाद लगभग एक मुहीम चला रहा था कश्मीर को आजाद कर देने की न केवल अपने टीवी चैनल पर बल्कि फेसबुक आदि पर भी आज उसके शुर बदले हुए है कल तक अरुंधती को सपोर्ट करने वाले आज भूषण को गलत कह रहे थे शायद फेसबुक आदि जगहों पर मिले प्रतिसाद का फल था की उन्हें समझ आ गया की देश क्या चाहता है |

    वैसे आप की ये बात भी सही है की हर आम आदमी के एक ही मानसिक स्तर की उम्मीद नहीं कर सकते है पर इन सवा करोड़ में जो ज्यादा प्रतिक्रिया देते है दूसरो के विचारो को प्रभावित करते है कम से कम वो तो असली खबर को समझ ही सकते है और क्लीनचिट किसी को नहीं दिया जा रहा है सवाल ये है की प्रशांत के कश्मीर पर बोलने से फर्क ही क्या पड़ता है इस मामले में उनकी स्थान ही क्या है हम महत्व ही क्यों दे उनकी इस बात को |

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  16. राजेश जी

    सभी के अपने विचार है और उन्हें कहना भी चाहिए किन्तु ये भी लोगो को देखना चाहिए की आप किसी संवेदनशील मुद्दे पर कुछ कह रहे है या आप से कहलवाया जा रहा है |

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  17. सत्ता पक्ष के लिए मुद्दा वही सही है जो उसका वोट बैंक बढ़ाए। जिससे विपक्ष को फायदा हो,चाहे वह मुद्दा कितना ही सही क्यों न हो,उसे दबाना अथवा टालना बेहतर। टीम अन्ना के खिलाफ सरकार को अभी कोई ऐसा ठोस मुद्दा नहीं मिल सका है,जिसे समान शक्ति के साथ प्रचारित किया जा सके। तलाश जारी है।
    कश्मीर जैसे सामरिक रूप से संवेदनशील मु्द्दे के लिए जनमत-संग्रह एक घातक सुझाव है। जनमत-संग्रह प्रायः तात्कालिक भावनाओं को दर्शाते हैं और उनके आधार पर किए गए फैसले दूरगामी हितों के लिहाज से अविवेकपूर्ण साबित हो सकते हैं। जनमत-संग्रह ही अगर जन भावनाओं को जानने का माध्यम होता और जन भावनाओं के आधार पर ही सरकार चलायी जा सकती,तो दुनिया के कई देशों की भौगोलिक स्थिति वही नहीं होती जो आज है।

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  18. इस घटना पर क्या कहूँ.. खीझ कुछ कहने नहीं दे रही है..आज फिल्म अर्द्ध-सत्य में ओम पूरी द्वारा पढ़ी गयी एक कविता याद हो आई.. कविता दिलीप चित्र की:
    चक्रव्यूह से बाहर निकल
    मुक्त हो जाऊँ मैं चाहे फिर भी
    कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा इससे चक्रव्यूह की रचना में
    मर जाऊँ या मार डालूँ
    ख़त्म कर दिया जाऊँ या ख़ात्मा कर दूँ जान से
    असम्भव है इसका निर्णय

    सोया हुआ आदमी
    जब शुरू करता है चलना नींद में से उठकर
    तब वह देख ही नहीं पाऐगा दुबारा
    सपनों का संसार

    उस निर्णायक रोशनी में
    सब कुछ एक जैसा होगा क्या?
    एक पलड़े में नपुंसकता
    दूसरे पलड़े में पौरुष
    और तराजू के काँटे पर बीचों-बीच
    अर्धसत्य।

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  19. अच्छा पोस्ट.. वैसे प्रशांत भूषण जी को कश्मीर जैसे विवादित मुद्देपर ऐसा वक्तव्य देने की जरुरत क्या थी? बड़े लोगों..खासतौर पर सेलेब्रिटी लोगों को सोंच-समझ कर टिप्पणी करना चाहिए.

    विनोद दुआ प्रतिष्ठित पत्रकार हैं.. पर चैनल से जुड़े होने की मजबूरियां हो सकती है.

    कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग है, मेरे ख्याल से आप सभी एस विचार से सहमत होंगे. अन्ना की टीम को अपनी निजी छवि को छोडकर एकसाथ रहना चाहिए, भ्रस्टाचार-विरोध पर ही ध्यान केंद्रित रखें.. अभी उन्हें बहुत लड़ाई लड़नी है.

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  20. वैसे ये सवाल मेरे भी मन में आया था कि आखिर कश्मीर के बारे में प्रशांत भूषण से ही क्यों पूछा गया, और पूछा भी गया तो उसके जवाब में प्रशांत भूषण ने ऐसा क्यों कहा होगा।

    अंदर की बातें पता नहीं क्या हों, कैसे हों लेकिन यह सच ही सरकार तिलमिलाई हुई है भ्रष्टाचार के मुद्दे पर। ऐसे में कहां किस तरह का स्टैंड ले ले, किस तरह की कूटनीति चली जाय ये वही जानते होंगे।

    बहुत बेहतरीन तरीके से आपने मुद्दे के दूसरे पहलू की ओर भी ध्यानाकर्षित किया है। बढ़िया रहा इस पोस्ट को पढ़ना।

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  21. वही हो रहा है जिसके लिए मैंने आगाह किया था, सियासी तिकड़मों में फंसते जा रहे हैं अन्ना...

    जय हिंद...

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