November 24, 2011

नशा शराब में होता तो नाचती बोतल - - - - - - mangopeople

                                                                नशा शराब में होता तो नाचती बोतल क्या खूब लिखा है लिखने वाले ने पता नहीं लिखने वाला शराब और नशा  से कितना परिचित था पर जिसने भी लिखा है शराब पीने वालो को उसकी वकालत करने के लिए एक अच्छी लाइन दे  दी थी | शराबियो ( भाई शराब पीने वालो को शराबी ही कहेंगे न कितनी मात्रा में पीता है इस बात से क्या फर्क पड़ता है यदि आप के पास कोई और शब्द हो तो बताइए ) और उनसे सहानुभूति रखने वालो में हड़कंप मचा है सब अन्ना के शराबियो को पीट कर शराब छुड़ाने वाले बयान डरे है और उन्हें खुद के पीटे जाने का डर सता रहा है | सभी लगे है अपने अपने स्तर पर इस बात का विरोध करने में , कल को देश के युवराज के इस बयान पर की ,  मायावती सरकार किसानो की जमीने सस्ते में खरीद कर बिल्डरों को दे देती है और किसानो को दिए पैसे को वापस हड़पने के लिए उन किसानो के गांव में शराब का ठेका खोल देती है , पर जोरदार ताली बजाने वाले आज दुखी है परेशान है की हमारे युवराज के उठाये मुद्दों को कोई और हड़प रहा है और गरीबो के बीच से शराब हटाने की बात कहा रहा है न केवल कह रहा है बल्कि शराबियो के पीट पीट कर सुधार देने का दावा भी कर रहा है | लो जी हमारे मुद्दे कोई कैसे हड़प सकता है ये काम तो बस हमारा है हमने जनलोकपाल बिल का मुद्दा लोकपाल को एक अलग संवैधानिक  दर्जा देने की बात कर हड़पने और गड़पने का प्रयास किया असफल हो गया कोई बात नहीं पर ये हडपने का काम बस हमारा है हमें ही शोभा देता है |
                                       शराब और नशा  प्रेमी दुखी है अब क्या अन्ना हमारी पिटाई करके हमसे शराब छुड़वा देंगे क्या कही ऐसा न हो की अन्ना के भ्रष्टाचार के मुद्दे पर परिवार को होश और जोश में ला दिया था कही वो भी शराब का विरोध न करने लगे और शुरुआत घर से विरोध करने का न करने लगे | बड़ी मुश्किल से बीबी बच्चो को समझा कर रखा है की एक पैग शराब तो डाक्टर भी लेने को कहता है ( कम्बखत आज तक ऐसा कहने वाला डाक्टर मुझे मिला नहीं आप के पास उसका पता हो तो बताइयेगा )  शराब  तो  हम  बेचारे   ??? कभी खुशी, कभी गम, कभी थकान उतारने, कभी बोरियत मिटाने और कभी कुछ भी खास न होने की वजह से इस का सहारा लेते हैं." ( चुराई गई लाइन है काहे की हमें शराब पीने के कारणों का नहीं पता था :)) )  इसमे कोई बुराई नहीं है | बुराई तो तब है जब पत्निया, बेटिया और बहुए इन कारणों को बता कर एक पैग मारने की जिद करने लगे | शराब पीने का अच्छा और महान काम बस पुरुषो के लिए ही अच्छा है जब ये काम नारी करे तो वो बुराई और गलत बन जाता है | पीना तो छोडिये कोई महिला सेलेब्रेटी शराब बनाने वाली कंपनी के किसी भी उत्पाद का विज्ञापन भी करे तो वो गलत है पर हम अपने पीने पिलाने का हर जगह प्रचार प्रसार करते रहे तो वो सही है | वैसे महिलाओ का पीना भी सभी के लिए गलत नहीं है बस वो पुरुषो के कहने पर उनकी इच्छा पर उनकी इजाजत पर हो , वो खुद किसी की मर्जी इच्छा इजाजत की जरुरत समझते हो या नहीं किन्तु महिलाओ को इसकी जरुरत पड़ेगी | कभी समाज, सामाजिक स्तर, सामाजिक मेल मिलाप के नाम पर तो कभी बस कोई और नहीं मिला तो पति का साथ देने के नाम पर ही पत्निया शुरुआत कर सकती है या उन्हें इजाजत मिलती है या कभी कभी उन्हें मजबूर किया जाता है | किन्तु यही दृश्य उलटा हो पति न पिये और पत्नी की इच्छा हो तो वो नहीं कर सकती क्योकि शराब एक गन्दी चीज है ये स्वास्थ के लिए अच्छी नहीं है क्योकि महिलाए कोमल नाजुक होती है उन्हें माँ बनना है ( एक रिसर्च के अनुसार अल्कोहल पुरुषो के पिता बनने के सामर्थ को बहुत नुकशान पहुंचा रहा है , अब इसका लिंक न मगियेगा मेरे पास नहीं है खोजना है खुद खोज लीजिये  मानना है मानिये नहीं तो मत मानिये ) ब्ला ब्ला ब्ला | बहुत पहले टीवी पर एक रिपोर्ट देखी थी गांव के एक मजदूर पति पत्नी से बात की जा रही थी , पति से पूछा गया की भाई तुम शराब क्यों पीते हो मजदूरी करते हो सारे पैसे शराब में क्यों उड़ा देते हो तो उसका जवाब था की दिनभर मजदूरी करने के बाद शरीर इतना दुखता है की उसे भुलाने के लिए पीना पड़ता है , बगल में लगभग ५० साल की उसकी पत्नी ने तपाक से कहा की मजदूरी तो मै भी करती हूँ रोज तुम्हारे साथ , घर का काम और इतने साल बच्चो की भी देखभाल की है मैंने तो अपनी थकान मिटाने के लिए कभी शराब नहीं पी रिपोर्टर ने कहा जवाब दीजिये पति मुस्करा का रह गया | वैसे किसी के पास इसका जवाब हो और जवाब देने की हिम्मत हो ईमानदारी से तो हमें जरुर बताइयेगा जानने की इच्छा है :) |
                                                             सब कहेंगे की भाई ये तो गलत है गरीब को शराब का नशा नहीं करना चाहिए उसके पास पैसा नहीं है उसे अपने पैसे शराब में नहीं उड़ाना चाहिए | मतलब शराब में तो अब भी कोई खराबी नहीं है असल बुराई तो पैसा न होना है  जो पैसा हो तो जीतनी चाहो उतनी पीओ और पीने के बाद पत्नियों, माँ , बच्चे भाई बहन पडोसी , मित्र सभी को पीटो झगडा करो गरीब हो तो नाली में गिरो अमीर हो तो गाड़ी रास्ते में चल रहे,  फुटपाथ पर सोये लोगो पर चढ़ा दो  सब करो तुमको पूरी छुट है किन्तु शराबी को पीटने की बात मत करो ये तानाशाही है,  तुगलकी फरमान है,  तालिबानी ????( कल ही एक धर्म के भाई साहब इस शब्द पर आपत्ति कर रहे थे कहते है की हमारे धर्म में तो शराब हराम है कोई नहीं पीता है तो इस मामले में ये शब्द नकारात्मक रूप से क्यों प्रयोग किया जा रहा है बात तो सही लगाती है जी  ) सोच है हम सभी को इसका विरोध करना चाहिए |
                           शराब का नशा एक और जगह गलत हो जाता है वो तब जब ये हमारे बच्चे करे युवा करे तब ये गलत है गलत संस्कार है | युवाओ के ये नहीं करना चाहिए आज के युवाओ को शराब का लत पड़ गई है वो शराबी हो गए है वो बिगड़ गए है, युवा भटक गए है उन पर पश्चिमी संस्कृति का असर हो गया है उनमे बड़ो का लिहाज नहीं रहा है वो माँ बाप के पैसे उड़ा रहे है लेक्चर लेक्चर लेक्चर लेक्चर !!!! एक बात आज तक समझ नहीं आई जब थोड़ी मात्रा में शराब बुरी नहीं है , ये जोश को और बढ़ा देती है ये आन्नद देती है ये बुराई नहीं है तो पीने वाले परिवार के साथ मिल बैठ कर क्यों नहीं पीते कोई भी आन्नद सिर्फ खुद लेना और परिवार को उससे दूर रखना ये तो गलत बात है,  ठीक है भाई शारीरक रूप से आप सभी अलग है तो आप पटियाला पीजिये बीबी बच्चो को एक छोटा पैग बना कर दीजिये क्या बुराई है जितने ये आप के स्वस्थ पर असर करेगी उतना ही आप के बीबी बच्चो पर | कहते है जिस काम को पूरा परिवार मिल बैठ कर करे उसमे आन्नद दुगना हो जाता है पता नहीं क्यों लोग इस आन्नद को बढ़ाने से परहेज करते है कुछ लोग ये करते है और जीवन को भरपूर जीते है पर कुछ मिडिल क्लास भारतीय कभी भी अपनी वो मानसिकता नहीं छोड़ते है पता नहीं क्यों और पत्नी बच्चो को मना करते है | हम सभी समझदार है किसी को भी हमें ये बताने की जरुरत नहीं है कि एक स्वतंत्र देश में हमें शराब पीनी चाहिए की नहीं, ये हमारी मर्जी है हमें जो ठीक लगेगा हम करेंगे | हा ये अलग बात है की ये स्वतत्र  देश , समझदारी आदि आदि बाते बस पुरुषो , पढेलिखे , पैसे वाले , उम्र में बड़े लोगो पर ही लागु होती है महिलाए , युवा और गरीब इन सब में नहीं आते है न वो स्वतंत्र है न समझदार और ना ही अपनी मर्जी से कुछ भी करने का हक़ रखते है  |
                        कभी कभी लगता है  सरकार महँगी अंग्रेजी बेचे तो समझ आता है भाई पैसे वाले ही उसे लेते है लेकिन सरकार सस्ती देशी क्यों बेचती है उसे कौन खरीदेगा,  गरीब न और गरीब कहा से लायेगा पैसा , वही घर चलाने के पैसे से शराब पियेगा और बीबी बच्चे भूखे मरेंगे | पर सरकार ये काम भी गरीबो  के हित में ही करती है यदि सरकार गरीबो का ध्यान न रखे और उन्हें अच्छी सस्ती देशी शराब न मुहैया कराये तो बेचारे ?? नकली शराब जहरीले शराब अवैध शराब पी पी के मर जायेंगे और सरकार उन्हें मारती नहीं है उन्हें तो सस्ती अच्छी देशी शराब दे कर बचाती है |  सरकार नकली जहरीली शराब को बनाने और बिकने से नहीं रोक सकती है थोडा मुश्किल काम है और सरकारे इस तरह के मुश्किल काम नहीं करती है और फिर उनसे सरकार के राजस्व का भी घाटा होता है बस स्थानीय पुलिस अबकारी अधिकारी और नेता को ही हफ्ता या फायदा मिलता है उस पर से गैरकानूनी जबकि सरकारी ठेका वही काम और फायदा क़ानूनी तौर पर कराती है ,  बोलिए है ना बिलकुल सालिड सही तर्क |
                                                                    इस मामले में बेचारे शराबी से ज्यादा तो नेता , टीवी चैनल  और पत्रकार दुखी है | बेचारे मनीष तिवारी :) ( अब बेचारा न कहे तो क्या कहे सार्वजनिक के साथ ही लिखित में आन्ना से माफ़ी मागनी पड़ी थी पार्टी के कारण ) शराब प्रेमियों के गम से गमजदा हो कर कह रहे है की भाई शराबियो को पीटने की बात होगी  तो आधे केरल, तीन-चौथाई आंध्र प्रदेश और अस्सी फ़ीसदी पंजाब को कोड़े (???? अन्ना का डंडा नेताओ के कान तक पहुंचते पहुंचते कोड़ा बन गया )  लगाने होंगे... | बताइए ये सब तो नेताओ के वोटर है हर पञ्च साल बाद इनमे से लगभग आधे शराब की एक बोतले के बदले में हमें पूरा देश सौप देते है,  यदि इनसे यही छुट गई और ये होश में आगये तो हमारा क्या होगा , हमारी शराब खोरी के लिए पैसा कहा से आयेगा शराब से सरकारी खजाने में आ रहे पैसे का क्या होगा | पत्रकार और चैनल वाले तो ऊपर से दुखी दिख रहे है भाई ये तो गलत है आप शराब पर कैसे पाबन्दी लगा सकते है हम में से ज्यादातर को मुफ्त की शराब पीने कि आदत है लोगो ने देना बंद कर दिया गलत मान कर तो हमारा क्या होगा | अन्ना ने तीस साल पहले  अपने गांव का किस्सा बताया है इसका अभी से विरोध करो क्या पता यहाँ जनलोकपाल बिल पास और  वहा फिर अन्ना की हर सामजिक बदलाव को लागु करवाने की हवा चल गई तो , तो फिर हम क्या करेंगे और वो सब छोडो सबसे बड़ी बात ये है की हमारे चैनल को  सरकार ने इतने करोड़ का विज्ञापन दिया है यदि अन्ना टीम का विरोध करती खबर बहस लगातार नहीं दिखाया तो कही वो सारे महंगे विज्ञापन हमसे छीन ना जाये भाई कुछ चैनलों के कर्ता धर्ता के दूसरे कई बिजनेस है उन पर असर ना डाले सरकार या कुछ के ऊपर सी बी आई जाँच चल रही है जो सरकार की चमचागिरी करने से बंद डब्बे में पड़ी है कही वो ना खुल जाये सरकारों का क्या भरोसा वो कुछ भी कर सकती है | टी आर पी के लालच में खूब अन्ना टीम को फुटेज दी है अब मौका है की जरा हिसाब बराबर किया जाये और टी आर पी तो इसमे भी अच्छी मिल रही है |  फिर ये जरुरी तो नहीं आदमी पर हमेशा पत्रिकारिता की हावी रहे आखित पत्रकार भी तो इन्सान ही है न कभी कभी पत्रिकारिता पर निजी विचार भी तो हावी हो सकते है और बेचारा कब तक सीधे खड़ा रहे कभी कभी तो एक तरफ झुक कर टेक तो लगाना ही पड़ता है |
                             
                      कही पर ये टिपण्णी की थी यहाँ भी दे रही हूँ |
                       इस महान ??? काम शुरुआत एन डी टीवी ने किया और अब इसमे सभी विद्वान् लोग शामिल हो गए है जान कर अच्छा लगा :) चैनल खुद ही लिए अन्ना के साक्षत्कार को तोड़ मरोड़ कर टीवी पर बहस का मुद्दा बना दिया | अन्ना ये बात देश भर के शराबियो के लिए नहीं कह रह थे वो साक्षात्कार में तीस साल पहले अपने गांव में किये गए सुधारो की बात कर रहे थे और उसी क्रम में बता रहे थे की उन्होंने शराब को अपने गांव से कैसे दूर किया | जिसमे कहा गया की गांव से शराब हटाने के बाद भी जब कोई बाहर से पी कर आता था तो पहले उसे तीन बार समझाया जाता था फिर मंदिर में ले जा कर भगवन की कसम खिलाई जाती थी और उसके बाद भी वो न माने तो मंदिर के सममाने वाले खम्बे से बांध कर पिटा जाता था बिलकुल उसी तरह जैसे एक माँ अपने बच्चे की गलती पर उसे मारती है सुधारने के लिए | ( एन डी टीवी के उस बहस में शाहनवाज हुसैन ने भी इस तरफ ध्यान दिलाया था की अन्ना अपने गांव की बात कर रहे है पूरे देश की नहीं ) और ये सब तब किया जाता था जब शराबी के घरवाले आ कर शिकायत करते थे | ये बात उन्होंने पहली बार नहीं कही है इसके पहले वो ये बात कई बार अपने कई साक्षात्कारो में कह चुके है | अब आप बातो को तोड़ मरोड़ कर सभी से ये कहे की आन्ना ने ये बात सभी शराबियो के लिए कही है तो निश्चित रूप से सभी इसका विरोध ही करेंगे | भूषण , किरण , अरिविंद के बाद उन्ही का नंबर था बदनाम करने के लिए कुछ नहीं मिला तो बातो को तोड़ मरोड़ कर पेश कर दिया | उन्होंने शराब का विरोध किया था और क्यों इसके पहले वो कई बार कह चुके है |

१ क्योकि गरीब अपने पैसे शराब में उड़ा देते थे

२ शराब के साथ ही कई और सामाजिक बुराइया गांव में आ गई थी जिन्हें दूर करने के लिए सबसे पहले शराब को दूर करना जरुरी था |

३ शराब बनाने वालो को भी उनका काम छोड़ने के बाद उन्हें नए काम करने के लिए सहायता भी की |

४ शराब से सबसे ज्यादा महिलाए परेशान थी और उन्होंने महाराष्ट्र में ये कानून बनवाया की यदि किसी गांव की अधिकांश महिलाए ये मांग करे की उनके गांव में शराब का ठेका न हो तो वहा से सरकारी शराब के ठेके को हटाना होगा |

                                           उन्होंने ये बात बस अपने गांव में किये काम के लिहाज से कही थी पूरे देश के सम्बन्ध में नहीं और किसी गांव में किये जा रहे सुधारो के लिए किये गए काम और देश के लिए कहे जा रही बात के फर्क को आप तो समझाते होंगे बस ऐसे ही तिल का ताड़ बन जाता है | मिडिया से तो कोई उम्मीद नहीं बची थी अब तो ब्लॉग जगत से भी कोई उम्मीद नहीं दिखती है लोग बिना पूरी बात जाने फटाफट अपनी प्रतिक्रिया देने लगते है | 
              बिलकुल सही कहा मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए बात केवल उनके मुद्दे तक ही रखना चाहिए, क्यों बार बार मुद्दों से अलग चीजो की बात की जाती है | क्या अन्ना ने कभी कहा है की वो शराब छोड़वाने के लिए पूरे देश के शराबियो के पिट पिट कर उनकी शराब छोड़वाने का काम करने वाले है यदि उन्होंने ऐसा कहा होता तो आप जरुर उन पर चर्चा करते किन्तु यहाँ उन्होंने ऐसा कुछ कहा भी नहीं है तो इस बात पर चर्चा क्यों वो भी बात को तोड़ मरोड़ कर किया जा रहा है | वो अपने गांव का तीस साल पुराना किस्सा बता रहे है वो भी सवाल पूछे जाने पर और उसे गलत तरीके से रख कर मुद्दों को बदलने का प्रयास किया जा रहा है क्यों | एक गांव में दो या चार लोगो को पीटने की घटना की तुलना आप पूरे देश में सत्ता के नशे में चूर हो कर किये गए कामो से कैसे कर सकते है | आप ने यदि वो साक्षात्कार ठीक से देखा हो तो अन्ना ने ये भी कहा है की हिंसा का सहारा नहीं लेना चाहिए ये गलत था सामजिक और क़ानूनी रूप दोनों से ही किन्तु ये करना पड़ा बिलकुल वैसे ही जैसे एक माँ अपने बच्चो को सुधारने के लिए करती है वो खुद अपने पहले के किये काम को गलत बता रहे है क्या संजय में इतनी हिम्मत थी , आज संजय जिन्दा होते तो जो कांग्रेसी उसे गलत बताते है उनमे भी उसे गलत कहने ही हिम्मत नहीं होती | कई नवो की सवारी अन्ना नहीं कर रहे है वो और उनकी टीम तो लगातार ये कह रही है की आज के समय में बात भ्रष्टाचार और लोकपाल के बारीकियो पर होना चाहिए पर सभी लगे है एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने में बेमतल के दुसरे मुद्दे उठाने में |