March 05, 2012

टिपण्णी जो पोस्ट ही बन गई - - - - -- mangopeople

                  

    लो जी लिखने बैठी थी तो टिपण्णी लेकिन इतनी लम्बी हो गई की एक पोस्ट ही बन जाये फिर मेरी बनिया बुद्धि ने कहा की इतनी मेहनत से टिपण्णी लिखी है बस एक ही व्यक्ति क्यों पढ़े अपनी पोस्ट बना कर डाल देती हूँ आम के आप गुठलियों के दाम मेरी पोस्ट पर पाठको की आवाजाही भी हो जाएगी थोड़ी टी आर पी भी मिल जाएगी  ।
                   टिपण्णी नारी  ब्लॉग  के  इस  पोस्ट  पर  दी  है  पूरा माजरा जानने के लिए तो उस पोस्ट पर ही जाना होगा क्योकि नारी ब्लॉग के कुछ कापी कर नहीं सकते :)




                
              जीतनी बनिया बुद्धि है उसी हिसाब से आप के सवालो का जवाब देने का प्रयास कर रही हूँ शायद मेरा जवाब आप की उच्च श्रेणी की बुद्धि के समझ में आ जाये ।
        मै भी नहीं मानती की ताजमहल से ले कर पिरामिड तक किसी का भी अस्तित्व नहीं है , क्योकि उन सब को मैंने निजी रूप से नहीं देखा है किसी और ने देखा है तो मुझे क्या जब मैंने नहीं देखा तो मेरे लिए दुनिया में उनका कोई भी अस्तित्व नहीं है कोई और कुछ भी बकता रहे मुझे क्या,  इस हिसाब से आप की बात सही है की आप ने टी वी पर नहीं दिखा तो उस घटना का कोई अस्तित्व नहीं है  :)
                                                             क्या निचली कोर्ट के फैसले किसी घटना को सही ये गलत साबित करने के लिए काफी है तो फिर तो रुचिका से ले कर जेसिका और मट्टू तक के केस में निचली अदालतों ने अपराधियों को बाइज्जत बरी कर दिया था तो क्या माना जाये वो सब निर्दोष थे और बाद में जो उपरी अदालतों ने फैसलों को पलटा वो सब चालबाजिया थी झूठ के बल पर केस जीते गएऔर इस तरह के हजारो केस होते है ।
                                 आप ने दहेज़ के बिना विवाह किया बहुत ही अच्छा काम किया सभी युवाओ को आप से प्रेरणा लेनी चाहिए किन्तु क्या आप के मना करने के बाद भी आप के ससुराल वालो ने आप को जबरजस्ती दहेज़ दे दिया था । निश्चित रूप से उन्होंने आप को उपहार के रूप में सामान लेने की पेशकश की होगी और आप के मना करने पर नहीं दिया होगा या आप ने दृढ़ता से मना कर दिया होगा । क्या आप को लगता है की लडके वाले दहेज़ न मागे और लड़की वाला जबरजस्ती लोगो को दहेज़ देता है ।
                         रही बात पैसे वाला लड़का खोजने की तो हर व्यक्ति अपनी लड़की के वर के  लिए दो चीजे ध्यान में रख कर चलता है एक तो दोनों परिवारों की सामजिक हैसियत एक बराबर हो और ये केवल बनिया परिवारों में ही नहीं होता है बल्कि समाज के हर तबके में यही रिवाज है की सम्बन्ध हमेसा अपने बराबर वालो से ही बनाया जाता है ( विवाह तो बहुत बड़ी चीज है कई जगह तो मित्रता का सम्बन्ध और परिचय तक बराबर वालो या खुद से बड़े सामाजिक हैसियत वालो से ही बनाया जाता है ) ये समाजका एक रूप है आप ख़राब कहे या अच्चा पर समाज में यही प्रचलित है । विवाह के लिए दूसरी बात होती है वर की योग्यता जिसे देखा कर कई बार लोग लडके से जुडी दूसरी बातो को अनदेखा कर देते है ।
                                                            आप की इस बात से कोई भी सहमत नहीं होगा की यदि कोई गरीब  लड़का दहेज़ न ले रहा हो तो किसी को भी अपनी लड़की का विवाह उससे कर देना चाहिए,  क्यों कर देना चाहिए किस आधार पर , बस इसलिए की वो दहेज़ नहीं ले रहा है विवाह का ये आधार नहीं होता है सबसे बड़ा आधार होता है की लड़का मानसिक , शारीरिक और आर्थिक रूप से विवाह से जुडी  जिम्मेदारियों को निभा सके । हर व्यक्ति देखेगा की दहेज़ तो नहीं ले रहा है कितु वह लड़की से विवाह करने के कितने योग्य है तीनो ही रूप में यदि योग्य हुआ तो कोई भी इंकार नहीं करता है जैसे की आप के ससुराल वालो ने अपनी लड़की से आप का विवाह किया । हम सभी तो सब्जी लेने भी जाते है तो सस्ता की जगह अच्छी सब्जी को महत्व देते है भले वो महँगी मिले तो फिर कोई भी अपनी लड़की के विवाह के लिए दहेज़ नहीं लेना कैसे आधार बना सकता है ।
                                                     रही बात पैसे वालो के घर शादी करने की या लड़की वालो के पैसे के बल पर लड़का खोजने की तो ये बात तो केवल पैसे वालो के घर होता है जरा माध्यम वर्ग और गरीब तबके की और देखिये जिसके घरो की लड़कियों के जन्म के साथ ही उसके दहेज़ की चिंता सर पर आ जाती है जन्म के साथ पैसा जुटा रहा पिता ये विवाह के समय देखता है की सालो से जुटाया पैसा भी विवाह के समय लड़को वालो की मांग के आगे कम पड़ रहा है चप्पले घिस जाती है उसकी एक लड़की के विवाह में फिर उनकी सोचिये जिनकी कई लड़किया होती है माध्यम वर्ग तो फिर भी मरते जीते कर लेता है गरीब तबके की हालत तो और बुरी है योग्य से अयोग्य लड़का भी भारी दहेज़ मांगता है उनके हैसियत के हिसाब से । माध्यम और गरीब घरो में तो घरो में महंगे सामान ही लडके के विवाह में मांगने के लिए छोड़ दिया जाता है । कोई भी माध्यम या गरीब वर्ग की लड़की का पिता आप को नहीं मिलेगा जो योग्य वर होने के बाद भी दहेज़ न लेने वाले लड़को को इंकार कर दे ।
                 अब आते है दहेज़ केस को साबित करने की तो कोई भी लड़की वाला ये सोच कर विवाह नहीं करता है की कल को उसकी लड़की को सताया जायेगा और दहेज़ माँगा जायेगा और मै इन पर केस करूँगा तो मुझे अभी से दहेज़ देने के सरे साबुत जुटा लेना चाहिए हा एक लिस्ट होती है सादे कागज पर उसे भी ज्यादा दिन संभाल कर नहीं रखा जाता है और न ही क़ानूनी रूप से उसका ज्यादा महत्व नहीं होता है । रही बात दहेज़ के पैसो को चेक या ड्राफ़ के रूप में देने की तो मै बस इतना ही कहूँगी हा हा हा हा हा हा हा इस बात पर मै बस हंस सकती हूँ :) ।
                  अब निशा के केस पर आते है वो ये केस किस आधार पर हारी मुझे नहीं पता है  मै कानून की जानकर नहीं हूँ किन्तु जब ये केस हुआ था तो तभी जानकारों ने बताया था की ये केस साबित करना बहुत ही मुश्किल होगा क्योकि भारतीय कानून के मुताबिक दहेज़ केस विवाह के बाद ही बन सकता है विवाह के पूर्व नहीं, जबकि निशा ने कहा है की मनीष के साथ  विवाह नहीं हुआ है और कुछ दिन बाद ही उसने दूसरा विवाह कर लिया था,  यदि अब वो कहती है की विवाह हुआ था तो उसकी दूसरी शादी गलत और अपराध साबित हो जायेगा और विवाह नहीं कहने पर मजबूत केस नहीं बनेगा । इसके साथ ही ये भी कहना चाहूंगी की कानून का दुरुपयोग आम लोग नहीं कानून के जानकर, क़ानूनी सलाह देने वाले और केस को अदालत में लड़ने वाले कर्त६ए है आप आदमी नहीं जनता की उसे इंसाफ के लिए किस धरा के तहत केस करना चाहिए वो तो कोई जानकारी ही बताता है हा एक दो केस जरुर हो सकते है जहा जबरजस्ती वकील को अपने बताये केस पर लड़ने को कहा जाता है ।
                          ९०% वाली बात मैंने इसलिए कही क्योकि जब आप कही पर कोई आंकड़े देते है तो आप को उसका स्रोत भी बताना चाहिए वरना "ज्यादातर" या " बहुत सारे " जैसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए । आप किस आधार पर कह रहे है की ९०% केस झूठे होते है ।
                                                              लड़कियों को विवाह ही नहीं करनी चाहिए ये क्या बात हुए ज्यादातर  नेता चोर है इसलिए वोट देने मत जाओ , ज्यादातर पुलिस वाले भ्रष्ट है तो कोई शिकायत पुलिस वाले के पास मत ले जाओ आदि आदि क्या समाज में इस तरह से रहा जाता है ऐसा नहीं होता है । लड़कियों के विवाह नहीं करना इस समस्या का समाधान नहीं है और ना ही उनके कमाने से ये समस्या जाएगी क्योकि दहेज़ कमाने वाली लड़कियों से भी माँगा जाता है ये बात आप टिपण्णी में दूसरो ने भी कही है ।
   " अमीर लडके से शादी करके लड़की मौज कर सके "
                निहायत ही घटिया और बकवास बात लिखी है आप ने ये "मौज" करना क्या होता है । लड़की वाले मोटी रकम दे कर अमीर लडके से अपनी लड़की की शादी करते है ये आप को ख़राब लगता है किन्तु अमीर हो कर भी  पैसा ले कर किसी से भी  शादी कर लेने वाला लड़का आप को अच्छा लगता है मुझे तो लगता है की ऐसे केस में यदि कोई घटिया है तो लड़का ही ज्यादा घटिया है , क्योकि लड़की का पिता तो जो कर रहा है वो अपनी बेटी के अच्छे और आर्थिक रूप से अच्छे भविष्य के लिए ऐसा कर रहा है ।
                                  और मैंने अपने बनिया और बनिया बिरादरी की बात इसलिए की क्योकि मै केवल अपने आस पास, अपने आँखों देखी  और करीब हुए घटनाओ के बारे में ही बताना चाह रही थी ना की समाज में बस प्रचलित किसी बात का दोहराने का प्रयास कर रही थी ताकि लोगो को लगे की मै सच बात कर रही हूँ ना की बस यु ही कोई आंकड़े फेक रही हूँ । हा पर जिस तरह आप ने उस पर अपने पैजामे से निकल कर  टिपण्णी की है उसके आप की सोच समझ और बुद्धि किस बिरादरी की है ये जरुर पता चला गया । आप की बिरादरी तो मुझे नहीं पता क्योकि बनिया कभी किसी की बिरादरी नहीं देखता है उसे तो बस अपना लाभ देखना है सामने कोई भी बिरादरी का जाति का व्यक्ति हो हा  आप की उच्च कोटी की बुद्धि से ही मुझे पता चला की अपना लाभ देखना तो केवल हम बनियों को ही आती है बाकि दुनिया तो संत होता है । :))))
                 

चलते चलते  
                        जब मुझे और मेरी बनिया बुद्धि और सोच का वाह वाही की गई तो सोचा जवाब में मै भी सामने वाले की बिरादरी की वाह वाही जरा अपने ढंग से कर दूँ  क्या है की दूसरो की जाति बिरादरी और आर्थिक स्थिति पर उंगली उठा कर कुछ कहने और सामने वाले को निचा दिखने में जितना आन्नद "मजा"  "मौज" आता है उसकी तो बात ही कुछ और होती है दिमाग में दो चार उनके नाम से झलक रहे जाति से दो चार वाह वाही सोच भी ली पर फिर मेरी बनिया सोच ने मुझसे कहा की उन्होंने मेरी बिरादरी के बारे में कुछ कहा फिर मै उनके बारे में कहूँगी फिर वो पलट के मेरे बारे में कहेंगे और मै उनके फिर ये सिलसिला लम्बा हो जायेगा और जब उसे जोड़ा घटाया तो पता चला की सौदा फायदे का नहीं घाटे का है समय अपने पास है नहीं बिटिया रानी ने महीनो पहले ही अपनी छुट्टियों के लिए मुझे बुक कर लिया था इसमे फंस गई तो उधर से नुकशान हो जायेगा तो ये सौदेबाजी यही छोड़ दी । क्योकि जिस काम में बनिए का फायदा ना हो वो नहीं करता है बाकि लोगो की तरह थोड़े ही की किसी को कुछ कहने के लिए,  अपने बुरे अनुभवों की खुन्नस निकालने के लिए , अपने संबंधियों को ब्लॉग पर सारे आप बेइज्जती करने के लिए अपना कीमती समय और दिमाग लगाये । कहते है की जहा फायदा ना हो वह तो गली देना क्या  थूकना भी नहीं चाहिए  :)))))
 

34 comments:

  1. अंशुमाला जी,
    जहाँ तक बात निशा के केस की हैं तो 2003 में क्या हुआ और क्या खबरों में दिखाया गया मुझे नहीं पता लेकिन जैसा कि आपकी टिप्पणियों से लग रहा हैँ और आपने माना भी कि इस केस के नतीजे पर पहुँचने के लिए अदालत ने किन तर्कों का सहारा लिया उससे आप अनभिज्ञ हैं तब इस पर ज्यादा कुछ कहना सही न होगा.हालाँकि दहेज के समान को लेकर आपने जो दलीलें दी हैं उसमें भी दम हैं हो सकता हैं कल को ये फैसला पलट जाए,इंतजार करते हैं.परंतु निवेदन हैं कि आगे जो कुछ मैं कहने जा रहा हूँ उसे आप निशा के केस से अलग करके देखें क्योंकि ये बहस उससे कहीं आगे बढ गई हैं.
    सबसे पहले तो आपकी टिप्पणी के जवाब में जिस तरह की भाषा का प्रयोग किया गया हैं उसका विरोध करता हूँ.जाति पर टिप्पणी तो ओर भी निंदनीय हैं.लेकिन अब दूसरे तथ्यों की बात करते हैं.आपको 90 प्रतिशत मामले झूठे बताए जाने पर आपत्ति हैं मैं भी मानता हूँ कि ये कुछ ज्यादा ही बढा चढाकर कहा जा रहा हैं लेकिन मैं आपके द्वारा 'कुछ मामले जरूर झूठे होते है' कहे जाने से भी सहमत नहीं.क्योकि ऐसे केसेज 'कुछ' ही नहीं होते बल्कि ज्यादातर मामले झूठे ही होते हैं.अब ये बात सुनने में चाहें जितनी बुरी लगे पर जो सच हैं वह तो हैं.

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  2. दूसरी बात यदि कोई ये कह रहा हैं कि ऐसे अधिकांश केस झूठे होते हैं तो इसका अर्थ ये नहीं हैं कि 'दहेज समस्या' को ही नकारा जा रहा हैं ऐसा कोई नहीं कह रहा.आमतौर पर ये बात महिलाओं का हर बात में विरोध करने वाले पुरुष भी नहीं कहते.आपने जिनकी टिप्पणी पर प्रतिक्रीया दी हैं उसे ध्यान से पढा हों तो उन्होने भी ये ही कहा हैं कि वास्तिविक अपराधियों का कुछ नहीं बिगडता.ये बात केवल दर्ज होने वाले केसेज के संबंध में कही जाती हैं कि ज्यादातर झूठ हैं.और केवल पुरुष ही नहीं कह रहे बल्कि महिलाएँ भी कह रही हैं.आप चाहे तो नेट पर ही कानून विशेषज्ञ महिलाओं की इस संबंध में नेट पर ही थोडा खोजें तो जान सकती हैं.जाहिर हैं ये लोग फौरी तौर पर ये बात नहीं कहेंगे और इस बारे में हम लोगों से बेहतर जानते होगें.महिला आयोग की एक पूर्व अध्यक्ष ने भी जयपुर में एक बार ऐसी ही बात कही थी कि इस कानून का व्यापक तौर पर दुरुपयोग हो रहा हैँ.सुप्रीम कोर्ट ने तो इसे एक बार कानूनी आतंकवाद तक कह दिया था(अब ये तय करना मुश्किल हैं कि 90 फीसदी केसों को झूठा बताना ज्यादा गलत हैं या कानूनी आतंकवाद की संज्ञा देना).लेकिन कुछ भी हो पर पर 'कुछ' मामले ही झूठे होते हैं इससे तो मैं भी सहमत नहीं.
    जारी...

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    1. ओह ये टिपण्णी छुट गई थी माफ़ कीजियेगा । "कुछ मामले झूठे होते है" का अर्थ है की कुछ मामले ही ऐसे होते है जिनमे दहेज़ केस न्याय के लिए नहीं बल्कि बस लडके वालो के परेशान करने के लिए सबक सिखाने के लिए की जाती है जैसे मैंने कहा है की कुछ मामले उस तरह का कोई अन्य कानून न होने के कारण किये गए जिनका अर्थ लड़केवालो को परेशान करना नहीं बल्कि विवाह को बचाना आदि कारण होते है । उनकी पूरी टिपण्णी पढ़िए और उसकी भाषा देखिये आप को समझ आ जायेगा की उनके मन में कितने पूर्वाग्रह भरा है वो तो अपने रिश्तेदार के बारे में भी कहने से नहीं चुके है जिसकी भाषा बहुत ही गलत है ।

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  3. इसके अलावा आपने जेसिका मट्टू वगेरह के मामलों का उदाहरण दिया हैं कि कैसे बडकी अदालत लोअर कोर्ट के फैसलों को पलट कर न्याय करती हैं.लेकिन अंशुमाला जी ये आधे बल्कि उससे भी कम सच को पूरा सच बनाकर दिखाने की तरह हैं.आपको ये दो तीन बहुचर्चित मामलों के बारे में याद हैं लेकिन जरा इसका भी हिसाब करें कि निचली अदालतों के ऐसे कितने ही फैसलों को उपरी अदालतों ने बरकरार भी रखा हैं जबकि उनके खिलाफ अपील की गई थी.ऐसा हजारों केसेस में रोज हो रहा हैं बल्कि कई बार तो निचली अदालतों की प्रशंसा भी की गई हैं(इसे निशा वाले केस के संदर्भ में न देखें).आपका कहना सही हैं कि सुबूतों के न होने का ये मतलब नहीं कि केस झूठा ही हैं लेकिन अगर कोई सुबुत नहीं मिला तो इसका मतलब ये भी तो नहीं हैं कि जो आरोप लगाये जा रहे हैं वे सब सही ही हों? मुझे भी कानूनों की कोई जानकारी नहीं हैं लेकिन इतना जरूर जानता हूँ कि दहेज विरोधी कानून में ख्याल ही इस बात का रखा गया हैं कि 'सबूतों के अभाव' जैसी दलील देकर कोई बच न पाएँ तभी तो इसका इतना दुरुपयोग हो रहा हैं.यहाँ ब्लॉग पर ही बहुत विषय के जानकार लोग हैं वो आपको बता देंगे कि दहेज प्रतारणा के आरोपों को साबित करना आजकल कोई मुश्किल नहीं हैं भले ही कोई सुबूत न हों.इसलिए कोर्ट केवल सुबुतों के अभावों में ही आरोपी को एकदम से बरी कर देती हों ऐसा मुझे तो नहीं लगता.

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  4. सजा कुसूर की मिलनी चाहिये न कि अमीर\गरीब, नर\नारी, हिन्दु\मुस्लिम या किसी और आधार पर।
    वैसे इस सारी बहस में " अमीर लडके से शादी करके लड़की मौज कर सके " ये संदीप का कहा हुआ है क्या? मैं देख नहीं पाया।
    चलते चलते का ’कहते हैं’ बहुत प्रैक्टिकल एप्रोच है। बहुत सी जगह बहुत कुछ कहा\लिखा जाता है लेकिन हर जगह कीमती समय और दिमाग लगाना व्यर्थ ही लगता है।

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    1. हा संजय जी ये शब्द संदीप जी ने ही लिखे है नारी ब्लॉग से कुछ कॉपी नहीं कर सकती थी इसलिए पूरी टिपण्णी यहाँ नहीं बता सकी उनकी पूरी टिपण्णी पढ़िए आप को पता चल जायेगा की वो कितने गुस्से में है लड़कीवालो के प्रति ।

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  5. ये बात तो कई बार सुन चुका हूँ कि वकील की सलाह पर केस लडके वालों को गलत केस बनाकर फँसा दिया होगा.ये तो कुछ ज्यादा ही मासूम तर्क लगता हैं.अगर वकील की ऐसी किसी सलाह को लडकी वाले मान भी लेते हैं तब भी वे दोषी तो कहलाएँगे ही.उन्हें तकनीकी जानकारी भले ही न हों जैसा कि किसी भी आम आदमी को कानून के बारे में नहीं पता होता लेकिन नतीजों के बारे में वकील भी बताता ही होगा क्योंकि वह भी आगे सवाल जवाबों से खुद को बचाकर रखेगा.सो यह सब मुझे इतना निर्दोष नहीं लगता.
    आपने अपने सटायर वाले खास अंदाज में पुरुषों पर निशाना साधा हैं कि कल घरेलू हिंसा कानून के भी 99 प्रतिशत केसों को पुरूषों द्वारा झूठा बताया जा सकता हैं.आपकी आशंका निर्मूल हैं क्योंकि घरेलू हिंसा कानून को बने भी एक लंबा समय पहले ही गुजर चुका हैं जब ये बना पहले ही साल दस हजार से ज्यादा पुरुषों ने जेल की हवा खाई लेकिन तब भी और आज भी किसीने नहीं कहा कि ऐसे 99 फीसदी मामले झूठे होते हैं न पुरुषों ने न महिलाओं ने और न न्यायालयों ने.हाँ कल को अगर सचमुच ऐसा होता हैं तो कह भी दिया जाएगा.
    मेरी भी टिप्पणियाँ कुछ ज्यादा ही हो रही हैं पर क्या करुँ आपने एक साथ इतने सारे बिंदु जो उठा दिए हैं.

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  6. आपकी पोस्ट पढ़ 'गुरु' फिल्म के क्लाइमेक्स में अभिषेक का डायलौग याद आ गया - "...तीस सेकण्ड का मुनाफा....."
    टिप्पणी के रूप से ही सही मगर आपने व्यावहारिक परिस्थितियों से अवगत कराया है.

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  7. wah re baniya buddhi..!! waise aapne jo bhi kaha... baato me dum hai!
    HOLI ki dheron shubhkamnayen...!

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  8. अंशुमाला जी -
    आपसे सहमत हूँ कि "अब आते है दहेज़ केस को साबित करने की तो कोई भी लड़की वाला ये सोच कर विवाह नहीं करता है की कल को उसकी लड़की को सताया जायेगा और दहेज़ माँगा जायेगा और मै इन पर केस करूँगा तो मुझे अभी से दहेज़ देने के सरे साबुत जुटा लेना चाहिए हा एक लिस्ट होती है सादे कागज पर उसे भी ज्यादा दिन संभाल कर नहीं रखा जाता है और न ही क़ानूनी रूप से उसका ज्यादा महत्व नहीं होता है । रही बात दहेज़ के पैसो को चेक या ड्राफ़ के रूप में देने की तो मै बस इतना ही कहूँगी हा हा हा हा हा हा हा इस बात पर मै बस हंस सकती हूँ :) ।"

    यह सारी बातें ही बकवास हैं - क्योंकि हम सभी जानते हैं कि हमारी क़ानून की प्रक्रिया किस तरह से अनेक मुजरिमों को मासूम साबित कर देती है | क़ानून का आधार ही "भले सौ कुसूरवार छूट जाएँ पर एक बेक़सूर को सजा न हो" होने से दरअसल होता यह है कि सौ कसूरवार तो खैर छूट ही जाते हैं, पर साथ ही अनेकों बेकसूरों को सजा भी होती है - अपरोक्ष या अपरोक्ष | हो सकता है निशा ने झूठ कहा हो, परन्तु संभावना बहुत कम लगती है | निचली अदालत में तो ९ साल लग गए - अब उस लड़की को झूठा साबित कर के उसकी और छीछालेदर की जा रही है, जो पहले ही शायद कितनी आहत है | क्या किया जाए - कुछ समझ नहीं आता |

    और फिर - यह "अमीर लड़के से शादी कर के मौज" वाली मानसिकता हमारे समाज में बड़ी गहरे तक पैठी हुई है | यही कहने वालों से यह पत्नी के बारे में / होने वाली पत्नी के बारे में इतना आसानी से पाच जाता है - बिलकुल normal सा - और यही उनकी माता जी के बारे में सोचने को भी कहा जाये - कि वे उनके पिता जी के अमीर होने से "मौज" कर रही हैं - तो शायद मरने मारने पर उतारू हो जाएँ :(

    जितनी जल्दी इस अदालत के निर्णय को सील लगाईं जा रही है कि निशा झूठी थी - क्या यही बात वे हर केस में स्वीकार करेंगी ?

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  9. राजन जी

    पहले तो ये समझना होगा की दहेज़ केस का अर्थ क्या है , कुछ समय पहले अदालत ने कह दिया की यदि विवाह के कुछ साल बाद पति अपने काम करने के लिए लड़की के घर वालो से पैसे मांगता है तो वो दहेज़ नहीं माना जायेगा ये जज की सोच है, किन्तु मेरी नजर में वो भी दहेज़ ही है, किसी भी समय यदि लड़की के घरवालो से जबरजस्ती दबाव बना कर मारपीट, ताने पर कर मानसिक रूप से परेशान कर के , विवाह तोड़ने या लड़की को छोड़ने या दूसरा विवाह आदि करने की धमकी दे कर पैसा मनगा जाता है तो वो दहेज़ ही है चाहे विवाह को २० वर्ष ही हो जाये क्या हम अपनी बहन बेटी के घर मुसीबत होने पर इस तरह से रिश्तेदार होने की आड़ में धमका के पैसे मंगाते है ? यदि कोई मांगता है तो वो अपराध की श्रेणी में आता है तो फिर इसे अपराध क्यों न माना जाये । हमारे भारतीय परिवारों का तो ये हाल है की साले ही शादी में भी दामाद को बड़ा उपहार चाहिए न दीजिये तो उसके लिए भी लड़की और उसके घरवालो को खरी खोटी सुनना पड़ता है या उनकी आर्थिक स्थिति का मजाक उड़ाया जाता है । आप कहते है की ज्यादातर केस झूठे है तो मै कहती हूँ की ज्यादातर दहेज़ केस तो अदालतों तक और पुलिस तक पहुंचते ही नहीं है ये तो उन्हें दहेज़ ले दे कर सुलझा लिए जाते है या लड़की जीवन भर उससे जुड़े कष्टों को सहती रहती है या विवाह सामाजिक रूप से टूट जाता है ।

    साथ ही मैंने नारी ब्लॉग में दी टिपण्णी में ये भी कहा है की दहेज़ को लेकर जो झूठे केस होते है उनमे से भी ज्यादातर का कारण भी ये था घरेलु हिंसा कानून पहले नहीं था जिसके कारण जब लड़की को किसी अन्य कारण से मारपीट जाता था, उसके साथ ख़राब व्यव्हार किया जाता था या घर से निकाल दिया जाता था या विवाह तोड़ने की धमकी दी जाती थी तो न्याय के लिए इन मामलों में लोगो के पास एक मात्र दहेज़ कानून ही था ( कानून की जानकर तो नहीं हूँ पर शायद सबसे ज्यादा प्रचलित यही कानून था ) जिसके तहत डरा कर विवाह को बचने या लड़की के साथ हो रहे ख़राब व्यव्हार को रोकने का या उसे न्याय दिलाने का प्रयास होता था । साधारण मारपीट आदि कानूनों में लड़की को न्याय मिलाने या उसका विवाह बचने का चांस काम ही होता । ( एक दो केस मैंने इस तरह के देखे है इसलिए बता रही हूँ )

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  10. कई जगह ये भी पढ़ा है की लड़की वाले पैसे वसूलते है तो मै बताऊ की मेरे काफी करीब की घटना थी । विवाह महीने भर भी नहीं चला क्योकि लड़का किसी और लड़की को पसंद करता था । लड़की मायके आ कर रहने लगी एक साल बाद तय हुआ की तलाक हो जाना चाहिए लड़की वालो ने दहेज़ में दी मोटी रकम मांगी कहा की बेटी का विवाह दुबारा करने के लिए उसकी जरुरत है और चुकी गलती लडके की है तो आप को तो हमारे बारात में खर्च पैसे भी देने चाहिए लडके वाले साफ मुकर गये । फिर वही हुआ जिसकी सलाह उनके वकील ने पहले ही दी थी दहेज़ केस और गुजारा भत्ते का केस । एक साल बाद बीच के लोगो ने मिल कर मामला सुलझाया और तय हुआ की कम से कम वो रकम तो लौटानी ही पड़गी जो नगद लिया था । तब मामला जा कर कोर्ट में सुलझा गया किन्तु यहाँ भी दोनों तरफ के वकीलों ने पूरा प्रयास किया की कोई समझौता न हो सके और कई कानूनों का डर भी दिखाया अंत में दूसरे वकीलों और करीबी लोगो के सहयोग से ये संभव हो सका ।

    तो कोर्ट में पहुँचाने वाले दहेज़ केस इस तह के भी होते है जिन्हें आप अपनी मर्जी से सच या झूठ कह सकते है ।

    देखियेगा जैसे जैसे घरेलु हिंसा कानून का फायदा लोगो को समझ आयेगा ( जिस तरह उसमे तुरंत मामला बना कर अदालत जाने की जगह समझा कर परिवार को बचाने, काउंसलिंग आदि की जाती है ऐसा मैंने सुना है ) उससे दहेज़ केस काम होंगे और न्याय के लिए लोग इस कानून का सहारा लेंगे अन्य इस तरह के मामलों में ।

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  11. उन केसों का उदहारण तो मैंने बस ये कहने के लिए दिया था की केस हार जाने का अर्थ ये नहीं होता है की हारने वाला गलत है और काम से काम इन केसों में लोगो को पता था की कौन सही है और कौन गलत दुसरे केसों में तो लोगो की अलग राय हो सकती थी और रही बात अदालतों का तो वहा का हाल ये है की जीतेगा वो जिसके पास माल ज्यादा होगा पुलिस और न्यायलय में बढ़ रहे भ्रष्टाचार से तो आज सभी परिचित है । और शायद आप की नजर नहीं पड़ी घरले हिंसा कानून के नाम पर पुरुषो को सताया जा रहा है झूठे केस बनाये जा रहे है ये सब तो ब्लॉग जगत में ही मैंने कई बार पढ़ा लिया है, अब ये मत कहियेगा की लिंक दीजिये :) इससे जुडी एक पोस्ट दीजिये आप को खुद ही जवाब मिल जायेगा ।

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  12. अंशुमाला जी,
    मेरी दूसरे नंबर की टिप्पणी गायब हैं.आप अपना स्पाम इनबॉक्स चेक कर उसे रिलीज करें.क्योंकि उसके बिना आपकी बातों का जवाब देना सही नहीं होगा.
    और हाँ...क्या आप विभिन्न ब्लॉगों पर कमेंट करते समय कमेंट सब्सक्राइब नहीं करती हैं???
    यानी कि कोई आपकी पुरानी टिप्पणी पर कुछ प्रतिक्रिया देता होगा तो आपको पता ही नहीं चलता होगा कि क्या कहा गया हैं?

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  13. भारत में ऐसा कोई क़ानून नहीं जिसका दुरुपयोग न हुआ हो. न्याय की स्थिति के बारे में कुछ भी लिखना ठीक नहीं. इन्वेस्टिगेटिंग आफिसर के हाथ में सब कुछ निर्भर करता है. मैंने ऐसे भी मामले देखे हैं जहाँ बिस्तर पर पड़ी लाचार सास को अंदर कर दिया गया और ऐसा भी देखा है कि अस्सी साल की वृद्धा ने अपनी बहू का सर फुडवा डाला और पुलिस ने कुछ नहीं किया. लाइमलाइट में आने का मतलब यह नहीं कि वह ठीक ही हो. हमारे यहाँ के हालात आपको पता ही हैं, सम्मानित कौन होता है, काम कौन करता है. लोगों के इंटरव्यू अखबारों में छपते हैं कि फला बड़ा कवि ह्रदय है और वास्ता रखने वाले जानते हैं कि बन्दा कितना बड़ा भ्रष्ट है.

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    1. आप ने सही कहा की कोई भी ऐसा कानून नहीं होगा जिसका दुरुपयोग न होता हो और भ्रष्टाचार भी मामलों को साबित करने पर असर डालता है किन्तु किसी अन्य कानून को हटाने ( टाडा, पोटा आदि को छोड़ कर ) उसके ९०% तक दुरुपयोग होने की बात नहीं की जाती है क्यों ।

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  14. मुझे तो आपको यहाँ देखकर अच्‍छा लग रहा है।

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    1. धन्यवाद अजित जी , अभी तो ज्यादातर कोई लिंक दे देता है तभी आ पाती हूँ उम्मीद है जून से नियमित हो जाउंगी फिर से ब्लॉग पर । यहाँ न आना लगता है की बहुत कुछ जानने से और बहुत कुछ कहने से छुट रहा है मुझसे, अपनी बात खुल कर कह देने की आदत वास्तव में बुरी आदत है जो ब्लॉग ने डाल दी है :)

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  15. गलत लड़की वाले या लडके वाले दोनों हो सकते हैं...... निसंदेह बीते कुछ सालों में लड़कीवाले भी कानून का गलत इस्तेमाल करने लगे हैं...भले ही यहसंख्या कम है पर है ज़रूर ...हाँ दहेज़ का लेनदेन या पैसे को लेकर अपना फायदा देखने की मानसिकता सिर्फ किसी एक समाज या जाति में ज्यादा या कम है यह नहीं मानती.....अब तो सभी अपना स्वार्थ साधने में जुटे हैं.....

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  16. मेरा सवाल हमेशा से एक ही रहा हैं की
    लड़की और उसके माता पिता इतने बिचारे क्यूँ हैं
    क्यूँ लड़की की शादी ही लड़की का जीवन पार लगाती हैं
    और कितनी पीढ़ी तक हम सब दहेज़ और दहेज़ विरोधी बातो एक दूसरे पर दोष रोपण करेगे
    दहेज़ लेना और देना दोनों अपराध हैं
    सजा का प्रावधान दोनों को हो
    और अगर लड़का और लड़की बालिग़ हैं तो दहेज़ लेने और देने के जुर्म में वो भी कानून सजा के हकदार हो
    कानून को सशक्त करना होगा ना की दहेज़ देने और लेने की मानसिकता पर पीढ़ी डर पीढ़ी बहस करनी होगी
    कन्या दान और दहेज़ लड़की को दोयम का दर्जा दिलवाते हैं और इसके लिये लड़कियों को पुरजोर तरीके से इसका बहिष्कार करना होगा फिर चाहे आगे आने वाले ५० साल तक लडकियां अविवाहित रहने का ही संकल्प क्यूँ ना कर ले
    कन्या भुंड ह्त्या का सबसे बड़ा कारण ये दहेज़ ही हैं इसको ख़तम करदो समाज में विसंगति कम होगी

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  17. रचना जी

    असल में देखे तो लड़की वाला और लडके वाला जैसी कोई श्रेणी होती ही नही है एक समय में जी लड़की वाला है वो लडके के विवाह में लडके वाला बन जाता है और वैसा ही व्यवहार करता है जैसा उसकी लड़की के विवाह में उसके साथ लडके वालो ने किया था । इसलिए देखा जाये तो यहाँ मजबूर और बेचारा जैसा कोई बात ही नहीं है सब एक जैसे ही है । किसी भी सामजिक समस्या को हम कभी भी कानून के द्वारा समाप्त नहीं कर सकते है हा उसके अति बुरे परिणामो को तो रोक सकते है पर उसे पूरी तरह से ख़त्म नहीं कर सकते है । विवाह न करना इसका हल नहीं है ये तो समस्या से मुंह चुराना है उसे अनदेखा करना है कभी कभी हमें जितने के लिए लम्बी लड़ाई लड़नी होती है और कुछ मौको पर घुटने भी टेकने होते है । कोई लड़की ये कह कर नहीं बैठ सकती है की मै विवाह करुँगी तो बिना दहेज़ के ही नहीं तो नहीं , इससे समज को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है या तो उसका विवाह अयोग्य व्यक्ति से होगा या फिर अविवाहित रह जाएगी ( और त्याग कर जीवन जीने में मेरा कोई विश्वास नहीं है , ) या फिर ये गजब का संयोग बने की कोई उसके विचारो से मेल खाता योग्य लड़का उसे मिले । उससे अच्छा ये होगा की हम समाज को सुधारने से पहले पहले अपने घर में शुरुआत करे प्रयास करे की हमारे घर में हमारे भाई के विवाह में माता पिता दहेज़ न ले कल को हमारे बच्चो का विवाह हो तो हम दहेज़ न ले जब खुद सुधरेंगे तो समाज अपने आप सुधरता चला जायेगा हा भले इसे सुधारने में ५० साल लगा जाये बस कम की दिशा और प्रयास सही दिशा में हो ।

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  18. अंशुमाला जी,
    स्वास्थय कारणों से जवाब देने में थोडा विलंब हो गया हैं इसके लिए माफी चाहता हूँ.खैर मेरी दूसरी टिप्पणी पढकर आपको थोडी ही सही ये आशवस्ति हुई होगी कि जो बात आप मुझे समझाना चाहती थी वो थोडी बहुत मैं भी समझता हूँ कि दहेज उत्पीडन की ज्यादातर शिकायतें दर्ज नहीं हो पाती हैं.लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी तो फिलहाल ये ही बताना समझता हूँ कि मैंने कही भी संदीप जी की भाषा या नीयत का समर्थन नहीं किया हैं.बस उनकी कही ऐक बात की ओर आपका ध्यान दिलाया था.और दहेज कानूनों के दुरुपयोग की बात जहाँ की जाती हैं वहाँ ये बात मैंने जरुर पढी या सुनी हैं कि असली अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं.बल्कि वो लोग लडकी वालों की मजबूरी का फायदा उठाकर ही ये सब करते हैं.और ऐसा मानकर वो कोई ऐहसान नहीं कर रहे हैं बल्कि दहेज उत्पीडन एक बहुत विकराल समस्या हैं इसे कोई झुठलाना चाहें तो भी नहीं झुठला सकता और फिर भी कोई ऐसा कर रहा हैं तो निश्चित ही वो गलत हैं.मेरा कहना सिर्फ इतना हैं कि संदीप जी और आप जो कह रहे हैं,सच्चाई उन दोनों के बीच में कहीं हैं यानी ज्यादातर मामले झूठे हैं जो गलत नीयत से दाखिल किये जाते हैं परंतु ये नब्बे प्रतिशत भी नहीं हो सकते.मुझे समझ नहीं आता इसमें ऐसी क्या गलत बात हो गई?हालाँकि एक जगह आपने भी थोडा उदार बनते हुए ये कहा हैं कि आपको ज्यादातर जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिये यदि आप ऐसा मानते हैं तो.बस वही मैंने किया है.
    जारी...

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  19. आप कह सकती हैं कि ज्यादातर केसेज के झूठे होने के संबंध में स्त्रोत दीजिए तो ये बात मैं भी आपसे पूछ सकता हूँ आपके पास अपनी दलीलों को सही साबित करने के लिए क्या प्रमाण हैं.क्योंकि आपने भी सभी झूठे साबित हुए केसों का अध्ययन तो नहीं ही किया होगा.बल्कि आप तो निशा वाले केस में भी अनभिज्ञता जाहिर कर रही हैं.आपने भी ऐसा होता होगा या वैसा होता होगा या ऐसा सुना हैं वाले अंदाज में कयास ही तो लगाए हैं.इस हिसाब से तो फिर आपकी किसी भी बात का कोई मतलब ही नहीं होना चाहिए.लेकिन फिर भी मैं तो कह रहा हूँ कि आपकी दलीलें कहीं से भी कमजोर माने जाने लायक नहीँ हैं न मेरे लिए न दूसरों के लिए.मेरे पास तो प्रामाणिक स्त्रोत भी हैं और आज्ञा दें तो पेश भी कर सकता हूँ लेकिन मैं खुद मानता हूँ कि नब्बे प्रतिशत या उससे ज्यादा का आंकडा विश्वसनीय नहीं हैं लेकिन निश्चित रूप से ये आँकडा इतना भी कम नहीं हैं जितना आपने बताया बल्कि ज्यादातर मामले लडके वालों से पैसे ऐंठने कोई पुरानी रंजिश निकालने या अपनी ही बेटी को ब्लेकमल कर(संबंध तोडने की धमकी) दामाद के खिलाफ करवाए गए जिनके मूल में ही लालच था.बहुत से केसेज में लडकी ने खुद ये बातें मानी हैं.कई केसेज में तो मारपीट वाली बात साबित करने के लिए नकली मेडिकल सर्टीफिकेट तक पकड में आए हैं.ऐसा नहीं हैं कि कोई सुबुत नहीं मिला और केस झूठा साबित हो गया बल्कि बहुत से केसेज में लडकी और उसके घरवालों के बयान के आधार पर ही ये तय किया जाता हैं कि केस दुर्भावना से प्रेरित होकर किया गया है.
    जारी...

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  20. @साथ ही मैंने नारी ब्लॉग में दी टिपण्णी में ये भी कहा है कि...
    हाँ हाँ पढी आपकी ये दलील भी और कुछ लोगों को पहले भी कहते हुए सुन चुका हूँ.लेकिन केवल इस बात से ही कोई केस झूठा साबित नहीं हो जाता.पत्नी को चाहे किसी भी कारण से मारा पीटा गया हो या अपमानित किया गया हो या घर से निकाला गया हो या किसी दूसरे कारण से उसका अपमान किया गया हो वह सब धारा 498 A के तहत दर्ज हो सकता हैं फिर चाहे उत्पीडन किसी भी करण से किया गया हो न कि केवल दहेज के मामले में.यह धारा पत्नी के मानसिक और शारीरिक उत्पीडन से संबंधित हैं फिर चाहें वह किसी भी कारण से की गई हो मेरी जानकारी सीमित हैं आप चाहें तो कानून के किसी जानकार से पूछ सकती हैं.और वैसे भी इसमें लडकी वाले चाहें जो आरोप लगा दें उन्हें कौनसा इनकी सत्यता साबित करनी होती हैं बल्कि ये तो लडके वालों की जिम्मेदारी होती हैं की वो खुद का बचाव कैसे करते हैं और कम से कम दहेज और यौन शोषण जैसे मामलों में आरोपों को सच साबित करने से ज्यादा उन्हें झूठ साबित करना मुश्किल होता हैं वर्ना कोर्ट तो मानकर ही चल रही हैं कि लडकी वाले सच कह रहे हैं.
    लेकिन यदि कुछ हुआ ही नहीं हैं और केस किसी ओर ही कारण से दायर कराया गया हैं तो वह झूठा साबित होगा ही.और यदि सुबुतों पर ही सारा जोर रहता तो मुझे नहीं लगता कि एक भी केस में कभी किसीको सजा हो पाती,यहाँ तक कि घरेलू हिंसा के तो किसी भी मामले में सजा नहीं हो पाती जबकि वहाँ भावनात्मक हिंसा जैसे अपराधों के लिए भी सजा होती हैं बल्कि फिर तो किसी कानून में ऐसे प्रावधान रखने का मतलब ही क्या था!
    इसीलिए मैंने कहा कि अदालतें केवल सुबुतों पर ही जोर नहीं देती.और रही बात पैसे और पावर के इस्तेमाल की तो वो दोनों ही पक्ष इस्तेमाल करते हैं फिर चाहें वो सही हों या गलत.
    जारी...

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  21. वैसे तो ये बात आपने भारतीय नागरिक जी को संबोधित करते हुए कही है लेकिन चूँकि आप पोस्ट लेखिका हैं और मैं रिसीविंग एंड पर खडा हूँ तो थोडा इस नाते आपके प्रत्युत्तर पर भी कुछ कहना चाहूँगा.
    आप खुद ही तो टाडा और पोटा जैसे उदाहरण (चाहें तो इसमें मकोका और अफस्पा भी जोड लें) देती हैं और खुद ही पूछती हैं कि बताओ और किस कानून के बारे में ऐसी बातें कही जा रही हैं.वैसे तो निर्दोषों के जेलों में कई सालों तक पडे रहने के मुद्दा पिछले कई सालों से मीडिया में छाया रहा हैं लेकिन निश्चित ही हालात दहेज विरोधी कानूनों जैसे तो बिल्कुल नहीं हैं.वर्ना आप ही बताइये कि कौनसा ऐसा कानून हैं जिसमें इतने अंधे प्रावधान हैं कि एक शिकायत के बल पर ही बच्चे बूढों औरतों किसीको भी बिना किसी जाँच पडताल के अन्दर कर दिया जाता हों,जिसमें जमानत का ही प्रावधान न हो जिसकी वजह से स्कूली बच्चों और दूर दराज के रिश्तेदारों को हिंसा का दोषी मान लिया जाता है,समाज से जुडे किस दूसरे कानून के दुरुपयोग को लेकर अदालतों,कानून विशेषज्ञों ने बार बार चिंता जताई है? यहाँ तक कि कई सरकारी और गैर सरकारी संगठनों द्वारा किए गये अध्ययनों में इसके व्यापक दुरुपयोग की बात सामने आई है.निर्दोष तो और भी मामलों में पकडे जाते हैं लेकिन ये अकेला ऐसा कानून हैं जिसके तहत फँसाए गए लाखों स्त्री पुरुषों ने आत्महत्या की हैं बल्कि कई परिवारों में तो सभी सदस्यों ने एक साथ ही आत्महत्या कर ली.आपको किसी दूसरे कानून और उसके दुरुपयोग के संबंध में ये सब समानताएँ दिखती हैं तो बताईये.
    वैसे इस कानून को हटाने नहीं बल्कि इसमें संशोधन की माँग की जा रही हैं.

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  22. और हाँ अंशुमाला जी,मैंने घरेलू हिंसा के बारे में जो कहा था,आपने पता नहीं कौनसा समीकरण बिठाकर उसका ये मतलब निकाल लिया हैं.हाँ 'कुछ' मामले घरेलू हिंसा के भी झूठे होते होते हैं जैसा कि किसी भी कानून के मामले में हो सकता हैं और लोग इसी अनुपात में इसकी चर्चा भी कर रहे है लेकिन दहेज विरोधी कानून की तरह इसका विरोध नहीं हो रहा है ओर न ही किसीने 99 फीसदी मामलों को झूठा बताया हैं.हाँ भविष्य में अदालतें या इस क्षेत्र से जुडे लोग कहते हैं कि इसमें भी ज्यादातर मामले झूठे है तो लोग इसकी भी उतनी ही ज्यादा चर्चा करेंगे जितनी आज धारा 498 ए की हो रही है.
    हालाँकि मैं तो पहले से ही इस घरेलू हिंसा कानून से जुडी एक बात को पसंद नहीं करता.चलिए ऐसा कानून बनाया गया हैं जिसमें घरेलू हिंसा के संदर्भ में 'पीडित' केवल महिलाओं को ही माना जा सकता हैं.लेकिन ये क्या बात हुई कि शिकायत भी केवल पुरुष सदस्यों के ही खिलाफ की जा सकती हैं.जबकि हिंसा तो कोई महिला भी दूसरी महिला के खिलाफ कर सकती है खासकर भावनात्मक हिंसा.पता नहीं अभी भी इसमें संसोधन किया गया हैं कि नहीं.अब इस तरह की बातों पर सवाल उठा दो तो महिलाओं को लगता हैं कि येल्लो जी हमें तो देख ही नहीं सकते.ऐसे तो फिर कोई कुछ कह ही नहीं पाएगा.कृप्या इसे संदीप जी का समर्धन मत मान लीजिएगा.वेसे भी मेंने उनकी पहली टिप्पणी से ही संदर्भ दिया था न कि आपके जवाब में दी गई बाद की टिप्पणियों से जिनकी भाषा बहुत खराब थी.

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  23. @ राजन जी

    मैंने ये कहा है जब आप प्रतिशत या किसी आंकड़े में बात करते है तब आप को श्रोत बताना होगा नहीं तो आंकड़े देने की जगह ज्यादातर जैसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए और ये बात तो कोई भी साबित नहीं कर सकता की कितने केस सच्चे है और कितने झूठे, न मै और न ही आप और न ही सरकार, क्योकि हम जानते है की केस जितना उसके सच या झूठ होने के सबूत नहीं होता है, हा हम अपने आस पास हो रही घटनाओ के देखते हुए अपनी राय बनाते है इसी कारण मैंने वहा बनिया लोगो की बात कही, मै कोई सुनी सुनाई बात नहीं करना चाहती थी बल्कि जो अपने आस पास देखा है वही कहा । रही बात निशा वाले केस की तो उस मामले में तो तभी टीवी पर साफ दिखा गया था की वो कितना सच है और फैसला मनीष के पक्ष में क्यों गया इसकी तकनिकी जानकारी मुझे नहीं है और कानून के प्रावधान के अनुसार केस निशा का जितना मुश्किल है ये भी मामला सामने आने पर ही बता दिया गया था ये बात भी मैंने अपने टिपण्णी में बता दी थी । दिया गया दहेज़ या शादी में खर्च पैसा भी मांग लो तो सभी को लडके वालो से पैसा वसूलना क्यों लगता है । फिर भी इस पर सहमत हूँ की झूठे केस होते है । जहा तक मेरी जानकारी है दहेज़ कानून में आसानी से जमानत हो जाती है बाकि तो जैसा आप ने कहा की कानून उसी का साथ देता है जिसका समाज में पहुँच और पैसा हो चाहे लड़की वाला हो या लड़केवाला कई बार तो केस के सच या झूठ से फर्क ही नहीं पड़ता है ।

    मुझे लगता है की आप दहेज़ कानून को कुछ ज्यादा ही बढ़ा चढ़ा रहे है उसका मुकाबला आप मकोका पोटा आदि से कर ही नहीं सकते है आप एक खास वर्ग से इस बारे में बात करे वो आप को इन कानूनों के खौफ के बारे में बताएँगे खौफ इतना की केंद्र के पास आज भी एक राज्य का कानून पड़ा है और वो उसे पास नहीं कर रहा है ।

    एक संस्था है पत्नी पीडितो की इसने तो कानून लागु होने से पहले ही इसके खिलाफ बोलना शुरू कर दिया था लिंक नहीं दे प् रही हूँ किन्तु इस कानून का पहला विरोध मैंने यहाँ ब्लॉग पर ही [पढ़ा जब कहा गया की इस केस से महिलाए पुरुषो को झूठा फंसा कर पैसे वसूलेंगी , उन्हें परेशान करेंगी वही सब जो आप ने दहेज़ कानून के लिए कहा है ।

    अंत में यही कहूँगी की ऐसे मामलों में हम वही बात करते है जो अपने आस पास देखते है और अनुभव करते है और अपने अनुभव के हिसाब से सोच बनाते है ।

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  24. अंशुमाला जी,ये जवाब देने में वैसे तो विषयांतर हो सकता हैं लेकिन फिर भी एक और कोशिश कर रहा हूँ वहीं मैंने देखा हैं कि ऐसी बहसों में जितनी ज्यादा सफाई दो उतनी ही गलतफहमियाँ सामने वाले को होती हैं पर यहाँ कहना भी जरूरी हैं.
    मैंने पत्नी पीडित संगठन की तरह सभी महिलाओं के लिए नहीं कहा हैं कि वो पैसों के लिए ऐसा करती बल्कि केवल उनके बारे में कहा हैं जो सचमुच ऐसा करती हैं और आपने टिप्पणी ध्यान से पढी हो तो मैंने इनके बारे में भी कहा हैं इन्हें इनके घरवालों द्वारा ब्लैकमेल किया जाता है(या भडकाया जाता हैं) दामाद के खिलाफ.जाहिर सी बात हैं इसमें पुरुष भी शामिल होते है.
    इस तरह के मामलों को गैर जमानती ही माना गया हैं.यानी जमानत होती हैं लेकिन एक बार जेल जाने के बाद ही.वही केवल एक शिकायत के बाद ही नामज़द लोगों को गिरफ्तार कर लिया जाता हैं फिर चाहे कोई बच्चा हो या बूढा.गिरफ्तारी से पहले कोई ट्रायल या तफ्तीश नहीं होती जबकि कई संगीन अपराधों में भी ऐसा नहीं होता.
    और किसी प्रस्तावित कानून के ही अच्छे बुरे पहलुओं की चर्चा हुआ करती हैं जबकि मीडिया में पहले ही इसके बारे में खबरें आने लगती हैं इसमें नया क्या है?पोटा,सूचना का अधिकार,लेकपाल जैसे कानूनों का विरोध बहुत से लोग पहले ही करने लगे थे जो इनके प्रावधानों से असहमत थे.हाल ही में प्रस्तावित सांप्रदायिक हिंसा निषेद बिल के दुरुपयोग की आशंका को लेकर इसका भी खूब विरोध हुआ हैं.हालाँकि कुछ अफवाहों के कारण भी ऐसा होता हैं.घरेलू हिंसा कानून के आने से पहले भी मीडिया और महिला संगठनों ने बेकार में बवाल खडा कर दिया था जबकि कानून में वो बातें थी ही नहीं.और उस समय केवल पुरुषों ने ही इसका विरोध नहीं किया था बल्कि मुझे याद हैं कुछ महिलाओं ने भी ये बात कही थी कि दहेज एक्ट की तरह इसका दुरुपयोग भी बहुत आसान हैं.हालाँकि कानून लागू होने के बाद फिर कभी इसकी कोई खास चर्चा नहीं हुई.

    निशा के मामले में मैं यही कहूँगा कि यदि निशा सच बोल रही हैं तो उसे न्याय मिलना ही चाहिए.

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    1. सबसे पहले की आप की किसी भी टिपण्णी से मुझे कोई गलत फहमी नहीं हुई है और न ही आप की कोई भी बात ऐसी लगी है जो गलत फहमी के लायक हो या उसका बुरा मन जाये मई आप की सभी बातो को काफी सकरात्मक रूप में ले रही हूँ । कई बार बहस करने का अर्थ ये भी होता है की आप के अपने विचार सोच तथ्य कितने सही है और दूसरो का नजरिया और सोच क्या है । कई बार ऐसी बहसों से अपने विचार नए सिरे से बनाने में या उनमे कुछ बदलाव लेन में भी मदद मिलती है इसलिए इस बारे में ज्यादा न सोचे और बस अपनी बात कहे :)

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    2. मै जान रही हूँ की आप सभी के बारे में नहीं कह रहे है कुछ लोगो के बारे में ही कह रहे है, मैंने तो बस कहा है की इस कानून का विरोध करने वाले भी है और आप को बता दू की पत्नी पीड़ित संगठन में महिलाए भी है मैंने विरोध के लिए महिला या पुरुष की बात नहीं की है बस विरोध करने वालो की बात की है।

      रही बात घरेलु हिंसा कानून की बात तो आप ने देखा होगा यही ब्लॉग जगत में कितने ही लोग कहते मिलेंगे की यदि पति क्रोध करता है तो पत्नी को शांत रहना चाहिए या पुरुष का तो स्वभाव ही क्रोधी होता है लोगो को उसे समझ कर शांत रहना चाहिए या उसे बर्दास्त करना चाहिए कुछ तो ऐसे ही लोग भी समाज में है जो मानते है की पति ने एक आध हाथ मार भी दिया तो उसमे क्या बुराई है पति उम्र में बड़ा है और आप की गलती पर आप को मार दिया तो क्या होता है या कोई मानसिक कष्ट दे रहा है तो सहना चाहिए उसके लिए क्या परिवार तोड़ने या पति को अपराधी मान पुलिस के पास जाने की क्या जरुरत है आदि आदि ऐसे लोग इसका विरोध कर रहे है और जल्द ही उन्हें उनका भी साथ मिलेगा जिन पर इस कानून के अन्दर केस चल रहा है फिर एक दिन इसका हल भी दहेज़ कानून की तरह ही होगा ।

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  25. अंशुमाला जी,
    आपकी इमेल आई डी मेरे पास नहीं है इसलिए यहाँ ये संदेश छोड़ रही हूँ .

    आपकी एक पोस्ट का जिक्र और उसका एक अंश मैने अपनी इस पोस्ट में शामिल किया है..

    http://rashmiravija.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html

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  26. सार्थक पोस्ट । मेरे पोस्ट पर आका इंतजार रहेगा । धन्यवाद .

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