July 30, 2012

नकारात्मक सोच क्या वास्तम में गलत है- - - - - mangopeople

                                         
                         जब मै गर्भवती थी तो आखरी समय में कुछ ऐसी परेशानिया हो गई की डाक्टर ने कहा की अब सर्जरी कर बच्चे को जन्म दे देना ही ठीक है, सो हम सब अस्पताल जाने के एक दिन पहले सारी तैयारिया करने लगे उसी क्रम में मै अपनी सबसे छोट बहन को कुछ दिशा निर्देश दे रही थी, ये दिशा निर्देश तब के लिए थे यदि मुझे कुछ हो जाये तो ( हमारे देश में हर साल लाखो महिलाओ की बच्चो को जन्म देते समय मौत हो जाती है और उसमे से कुछ अस्पतालों में मरती है, मै कोई अमृत का घड़ा पी कर थोड़ी आई थी )  मेरी बेटी को कैसे रखा जाये और  उसके साथ क्या क्या किया जाये आदि आदि, जी नहीं उस समय न तो मै रो रा रही थी और न ही दुखी थी , मै कहते खुश थी और वो सुनते दुखी नहीं थी , लेकिन जब अचानक से माता जी ने हमारी बाते सुनी तो हैरान हो गई बोली, हे  भगवान कल तुम्हारी डिलेवरी है और कैसी अशुभ अशुभ बाते बोल रही हो शुभ शुभ अच्छा अच्छा बोलो,  हम दोनों बहने हंसने लगे , मैंने कहा की ये कोई फ़िल्मी जीवन नहीं है जहा आप के पास  मरने से पहले अपनी बात बोलने का मौका मिले ,फ़िल्मी स्टाइल में डाक्टर आपरेशन थियेटर से बाहर निकले और कहे मुबारक हो बेटी हुई है,( मुझे हमेसा से पता था की मुझे बेटी ही होगी ) लेकिन माँ की हालत बहुत ख़राब है शायद वो चंद घंटो की मेहमान है अब तो दवा नहीं दुआ की जरुरत है, सब भाग कर रोते मेरे पास आये और मै अपनी बेटी को परिवार को सौपते बोलू की मेरी मेरी मेरी  ...............मेरी बेटी का ख्याल रखना और टे, राम नाम सत्य |   ये तो असली जीवन है क्या पता की मै जब आपरेशन थियेटर में जाऊ तो वापस ही नहीं लौटू तब ये सारी बाते कौन बताएगा और कौन बतायेगा की मेरी बेटी की देखभाल कैसे करनी है उसे कैसा बनाना है आदि इत्यादी असली जीवन में मौत आप को आप का आखरी डायलाग बोलने का मौका नहीं देती है यहाँ तो पता ही नहीं होता है की कौन सा डायलाग आप का आखरी होने वाला है |  कई लोगो के लिए ऐसी सोच एक नकरात्मक सोच लग सकती है और कहेंगे की ये एक निराशावादी विचार है, किन्तु हमारे घर के लिए इस तरह की बातो में कुछ भी नया नहीं है खासकर हम बहनों के लिए तो कभी भी नहीं,  हम कभी भी ऐसी बाते करते समय ये नहीं सोचते है की ये नकारात्मक बाते है हमें तो ये आगे के लिए ली गई सावधानिया और बुरे समय के लिए हर समय तैयार रहने जैसा लगता है |
             
                                                 कई जगह पढ़ती सुनती हूँ की हम सभी को हमेसा सकरात्मक बाते करनी चाहिए उससे जीवन में उत्साह आता है उर्जा मिलती है जबकि नकारात्मक बाते हम में निराशा भर देते है, हमें काम करने से रोकते है , न केवल खुद सकरात्मक बाते करनी चाहिए बल्कि ऐसे लोगो से भी दूर रहना चाहिए जो की हर समय नकारात्मक बाते करते है , नकारात्मक उर्जा कभी भी हमें अच्छा फल नहीं देगी | किन्तु मै इस बात से बहुत ज्यादा सहमत नहीं हूँ मुझे तो लगता है की हर समय सकारात्मकता की बात करने वाले भी नकारात्मकता को कुछ ज्यादा ही नकारात्मक ढंग से लेते है | यदि आप वास्तव में ये मानते है की सकारात्मक बाते करे वैसा ही सोचे तो मुझे लगता है की आप को इस तरह की बातो को भी एक सकरात्मक ढंग से लेना चाहिए | मेरा तो मानना है की सकरात्मक व्यक्ति वो है जो हर गलत से गलत और बुरी से बुरी बात में से भी कुछ अच्छा निकाल ले | एक किस्सा गाँधी जी का पढ़ा था ( कितना सच है पता नहीं किन्तु अच्छा है ) की गाँधी जी पानी के जहाज से कही जा रहे थे रास्ते में जब वो डेक पर खड़े थे तो किसी अंग्रेज ने एक पेज पर उनके बारे में बुरा बुरा लिख कर उन्हें भेज दिया उन्होंने उसे पढ़ा उसमे से पिन निकाल कर अलग रख और पेज को जेब में डाल दिया जब उनके सहयोगियों ने पूछा की उसे रखा क्यों है फेक क्यों नहीं दिया, तो उन्होंने कहा की दूसरी तरफ का पेज सादा है वो मेरे लिखने के काम में आयेगा और पिन तो बहुत ही काम की चीज है इस जहाज पर ये कहा मिलती | असल में तो ये आप के ऊपर है की आप चीजो को कैसे ले रहे है , कही गई बातो को कैसे समझ रहे है | अक्सर हम सभी ( मेरा परिवार ) जब भी कोई नया काम करने के लिए जाते है तो उसकी बुरईयो और बाद में आ सकने वाली परेशानियों के बारे में पहले विमर्श करते है , या  काम संफल नहीं हुआ तो उसके बाद क्या करना है ये भी सोच लेते है , लोग कहते है की जिस काम को पहले ही मान लिया की ये संफल नहीं होगा तो फिर वो कैसे सफल होगा और जब पहले के लिए ही आत्मविश्वास नहीं है तो दूसरा भी कैसे होगा , या तुम लोग बुराई तो पहले देखते हो इस तरह तो कोई भी काम नहीं कर सकती हो या कोई भी व्यक्ति तुमको पसंद ही नहीं आयेगा | पर हमारी नकरात्मक सोच बड़ी सकरात्मक होती है हमारा मानना है की अच्छा हुआ तो बहुत अच्छा है किन्तु बुरा हुआ तो हम पहले से उसके लिए तैयार है और बुरा होने पर रोने, घबराने और निराश होने में अपना समय नहीं व्यर्थ करेंगे क्योकि हमारे पास पहले से ही एक प्लान बी भी तैयार रहता है , या कभी हम किसी चीज की बुराई देखते है तो हम ये सोचते है की इसमे ये बुराईया  है तो इनसे बचा कैसे जाये , इनका समाधान कैसे करे या उसका सामना कैसे करे ( कुछ चीजो, समस्याओ और लोगो की सोच का कोई समाधान नहीं होता है तब उनका सामना करना पड़ता है ), इस तरह तो हम चीजो को एक तरह से बुराई मुक्त कर देते है या कम से कम हानिकारक बना देते है  | हम खुद तक ही नहीं रुकते है जब दूसरे भी हम से किसी बारे में राय मंगाते है तो ज्यादातर हम उस चीजो से जुडी गलतियों बुराइयों और समस्याओ की तरफ ही लोगो का ध्यान पहले दिलाते है , मेरा मानना है की उस चीज की अच्छाई तो सामने वाला पहले ही देख चूका है तभी वो काम करने जा रहा है तो जब वो हमारी राय मांग रहा है तो ये हमारी जिम्मेदारी है की उससे जुडी समस्याओ को भी वो पहले समझ ले ताकि बाद में उसका नुकशान न हो,  कभी कभी लोग इस बात को समझ लेते है किन्तु कभी कभी होता ये है की जब वो व्यक्ति हर हाल में वो काम करना चाहता है और हमसे बस हामी भरवाने आता है तो उसे हमारी बाते नकरात्मक लगने लगती है | मै सोचती हूँ की किसी चीज के साथ जुडी अच्छी चीजे तो हमारे पास आने के बाद हमें मिल ही जाएँगी उसको लेकर पहले से ही ज्यादा बाते करने की जरुरत ही क्या है जब पास होंगी तो उपयोग भी होता रहेगा किन्तु किसी नुकशान से बचने के उपाय तो पहले ही सोच लेने चाहिए क्योकि उसके सर पर आ जाने के बाद कई बार आप कुछ भी नहीं कर पाते है सिवाए पछताने के और ये सोचने के की पहले ही इस बारे में क्यों नहीं सोचा | जबकि हर समय सकारात्मक कहने सुनने और सोचने की बाते कभी कभी इन्सान को हर सिक्के का एक ही पहलू देखने के लिए मजबूर कर देती है,  वो पहलू जो बस  अच्छा अच्छा है और ये सोच हमें असावधान बनाती है,  बुरे वक्त और बुरी चीजो के लिए तैयार नहीं होने देती है एकतरह से ये हमें आधा अँधा बना देती है जो सिर्फ अच्छा अच्छा देखता है और समस्याओ बुराइयों को नहीं देख पाता  है और कभी कभी तो इन्सान में अति आत्मविश्वास भर देता है | नतीजा ये होता है की जब हर समय अच्छा अच्छा सोचने वाले के साथ बुरा होता है तो वह अन्य की तुलना में कुछ ज्यादा ही दुखी हो जाता है और मै सफल ही होंगा का आत्म विश्वास ( असल में तो अति आत्मविश्वास ) से भरे व्यक्ति को असफलता हाथ लगती है तो वो कही ज्यादा निराश हो जाता है कभी कभी इतना की फिर कभी कामयाबी की सोचे ही नहीं खड़ा हो ही नहीं पाये , क्योकि उसे तो लगता है की उसने तो बड़े सकारात्मक ढंग से हर अच्छी सोच और इरादे से काम किया कही कुछ गलत था ही नहीं फिर भी सफलता नहीं मिली तो वो दुबारा कैसे मिलेगी , जबकि हर काम में थोड़ी नकारात्मकता असफल होने का डर आप को फिर से अपनी गलतियों की सुधार कर खड़े होने फिर से सफलता के लिए संघर्ष करने की हिम्मत देता है ( अब ये भी जरुरी नहीं है कि सभी के साथ ऐसा हो ही ) , ये व्यक्ति की सोच पर निर्भर है नकारात्मकता और बुराई से भागना हर समय सही हो ये भी ठीक नहीं है |
                                   
                                                 लोग अपने घरो में महाभारत का पाठ नहीं करते है क्योकि कहा जाता है की महाभारत का पाठ करने से घर में महाभारत होती है ये एक नकरात्मक पाठ होगा , जबकि मुझे लगता है की महाभारत का तो पाठ होना चाहिए और अंत में इस बात की शिक्षा खुल कर देनी चाहिए की पैसा , पद , गद्दी और राज्य का लालच इतना ख़राब होता है की १०० पुत्रो वाला वंश भी ख़त्म हो जाता है और एक पूरे वंशावली का नाश होने से किसी तरह बची थी ( यदि कृष्ण ने अश्वाथामा  का चलाया तीर अपने ऊपर न लिया होता तो उत्तर के गर्भ में ही उसके बच्चे की मृत्यु हो जाती और पांडव वंश का भी नाश हो जाता ),यहाँ देखना ये है की हमें सिखाना क्या है , बुराई दिखा कर हमें लोगो को उससे सावधान करना है उससे जुडी परेशानिया और हानियों से लोगो को परिचित करना है और सकरात्मकता का इतना ऊँचा मानदंड नहीं खड़ा करना चाहिए रामायण और पुरुषोत्तम राम की तरह की लोगो को लगे की ये मानदंड तो इतना ऊँचा है की हम उसे कभी छू ही नहीं सकते है तो वैसा बनने का प्रयास ही बेकार है हम तो बुरे ही भले है | कहने का अर्थ, तात्पर्य , मतलब,  यानि की ये है की सकारात्मकता और नकारात्मकता अपने आप में कुछ नहीं होती है ये आप की सोच है उसे अपने पर लेने का तरीका है जो उससे आप को लाभ या हानि कराती है |


अपडेट  :- कभी कभी आप के बारे में नकरात्मक खबरे आप का कितना फायदा कर देती है इसी का उदाहरण देखा टीवी पर,  परसों तक जो टीवी चैनल चीख रहे थे की अन्ना का आन्दोलन फ्लाप हो गया , अन्ना का जादू ख़त्म हो गया , अब लोग अन्ना के साथ नहीं आयेंगे , अन्ना के आन्दोलन से भीड़ नदारत, वो सारे टीवी चैनल कल से अन्ना के आन्दोलन में भीड़ को दिखा रहे है | असल में उन नकरात्मक खबरों ने उन लोगों में जोश भर दिया जो अभी तक काम , आलस जैसे अनेको कारण से बाहर निकल कर इस आन्दोलन से नहीं जुड़ रहे थे वो बाहर आ गये ।  यदि उनके बारे में कोई भी खबर ही नहीं दिखाई जाती तो शायद लोगों में ऐसा जोश नहीं आता ,यहाँ पर अन्ना के अन्दोअलन से जुडी नकारात्मक खबरों ने उन्हें फायदा पहुंचा दिया ।




चलते चलते
               कहा जाता है की हर समय इन्सान को शुभ शुभ बोलना चाहिए क्योकि दिन भर में एक बार माँ सरस्वती हमारी जबान पर बैठती है औरउस समय जो कहा जाये वो सच हो जाता है और वो कब बैठेंगी ये कोई नहीं जानता इसलिए हर समय शुभ बोलना चाहिए | एक बार हमारी माता जी मेरी बहनों के साथ लक्ष्मी पूजा के लिए माला बना रही थी उसमे खासियत ये थी की वहा हर काम १६ बार करना होता है यानि माला में १६ गुड़हल के फुल होंगे साथ में १६ दुप और १६ चावल के दाने हर फुल के साथ बांधे जायेंगे , पूजा भी १६ दिन करने होते है दूसरा दिन आखरी था रात का समय था और अचानक से बिजली चली गई और काफी देर तक नहीं आई थी , ये मुश्किल काम कम रोशनी में संभव नहीं था , माता जी ने विनती की की ये लक्ष्मी मैया माला बनाने के लिए बिजली दे दो , लो जी मुंह से निकला था और बिजली आ गई , माला फटाफट बनना शुरू हो गई और जैसे ही माला पूरी हुई बिजली चली गई , ये देखते ही मेरी दोनों बहनों ने सर ठोक लिया और कहा की माता जी इतने दिन पूजा किया पाठ किया और बदले में माँगा भी तो क्या बस माला बनाने तक के लिए बिजली अरे कुछ बड़ा मांग लेना था न |

शिक्षा :-  इस कथा से हमें ये शिक्षा मिलती है की बस शुभ बोलने से ही काम नहीं चलेगा जब भी बोलो तो कुछ बड़ा बोलो कुछ बड़े की मांग करो क्या पता कब सरस्वती मैया जबान पर विराजमान हो जाये |

तो जल्द ही मुझे पुलित्जर उसके बाद बुकर उसके बाद आस्कर और उसके बाद नोबेल शांति पुरुस्कार मिले ! सरस्वती मैया क्या आप ने सुना !!!
 

July 17, 2012

क्या माँ दुर्गा और काली के रूप को आप हिंसक मानते है - - - - - - -mangopeople

                  इस पोस्ट को हिंसा को बढ़ावा देने के रूप में न देखे किन्तु जरुरत पड़ने पर अपनी रक्षा में किसी पर हमला करने को मै हिंसा नहीं मानती हूँ |
                                    कबीर दास अपने एक दोहे में कहते है की दुनिया की सोच बड़ी उलटी होती है जो घटनी है उसे बढ़नी कहती है और जो चलती है उसे गाड़ी | मै इससे बिलकुल सहमत हूँ इसलिए पिछली पोस्ट उलटी लिखी थी ताकि लोग सीधी बात को समझ सके किन्तु लोगो की सोच भी बड़ी अजीब होती है, वो मान कर चलते है की सोचेंगे समझेंगे तो हम वही जो हम चाहते है आप चाहे सीधा लिखे या उलटा , सो आज सीधी बात करते है | आज भी बात  गुवाहाटी कांड की करुँगी पिछली पोस्ट पर ही उसे जारी लिखा था जान रही थी की हम किसी भी प्रकार से इस तरह की घटनाओ का विरोध करे किन्तु समाज में एक जो पुरुवादी सोच  ( पुरुषवादी सोच जब लिख जाता है तो बात बस पुरुष की नहीं पूरे समाज की होती है जिसमे हर वर्ग और लिंग के लोग शामिल है )  है हम उसे नहीं बदल सकते है  इसलिए जरुरी है की हम लड़कियों की सुरक्षा के लिए उठाये जा रहे कदमो की भी बात करे | ( अब ठीक है ना संजय जी )  पहले उन कदमो की बात करते है जो आम तौर पर एक परम्परावादी समाज किसी लड़की की सुरक्षा के लिए चाहता है | रात में आप घर से बाहर न निकालिये , सुन शान इलाको में आप मत जाइये , ऐसी जगहों पर आप कभी भी अकेले न जाये भरोसेमंद पुरुष को साथ रखे , इस तरह के कपडे न पहने जो लड़को को भड़काऊ लगे उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित करे , ( यदि मुझेसे कोई उपाय छुट गये हो तो याद दिला दे ) किन्तु ये उपाय भी कारगर नहीं है क्योकि  इस तरह की घटाने दिन के उजाले में भी होती है , लड़कियों को राह चलते रास्ते में गाड़ी में खीच लेना , या मुंबई में बिलकुल एक व्यस्त सड़क के बीच बने पुलिस केबिन में पुलिस वाले द्वारा बलत्कार जैसी घटनाओ के बारे में सभी ने सुना होगा | भीड़ भाड़ इलाको में तो और भी ज्यादा छेड़छाड़ की घटनाये होती है बसों में ट्रेनों में भीड़ भरे बाजार में  , पुरुषो को साथ रहने से कोई फायदा होगा कह नहीं सकते कुछ महीने पहले इस तरह की ही एक घटना में दो लडकिय अपने पुरुष मित्रो के साथ रात में घूम रही थी कुछ लोगो ने उन्हें छेड़ने लगे , उनके पुरुष मित्रो ने उसका विरोध किया तो वो और साथी ले आये और उन दोनों लड़को पर हमला कर दिया जिसमे से एक लडके की मौत हो गई और दूसरे की बड़ी मुश्किल से जान बची , इस तरह की घटनाये हर तरह की महिलाओ के साथ होता है चाहे उसने सलवार कमीज पहन रखी हो साड़ी पहनी हो या बुर्के में ही क्यों न हो सभी जगह होती है , कई बार हमें सुना है की गांवो में दबंगों ने महिला को निर्वस्त्र कर घुमाया , मुझे नहीं लगता है की उसने कोई भड़काऊ कपडे पहन रखे हो वहा भी वही महिला को अपमानित करने का सबसे आसान तरीका अपनाया जाता है उसे इस तरह सार्वजनिक जगहों पर निर्वस्त्र करना |  ये सभव नहीं है की लड़किया घर से बाहर निकले ही नहीं स्कुल कालेज बहुत सी जरुरी जगहों के लिए उन्हें हर हाल में घर से तो निकलना ही पड़ेगा | हा यदि आप इन कारणों से भी लड़की को घर से नहीं निकलना देना चाहते है तो उसके आगे मै कुछ नहीं कह सकती हूँ |  इसलिए जरुरी है की लड़कियों को इतना शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाया जाये की वो किसी अन्य से मदद मांगने और ऐसा कर रहे दुष्टों से माँ बहन की दुहाई देने की जगह खुद ऐसी परिस्थितयो से निपट सके कुछ हद तक उसे रोक सके उसका सामना कर सके |
                                                                                                    शारीरिक रूपों से लड़कियों को मजबूत बनाने के साथ साथ जरुरी है की लड़कियों को मानसिक रूप से भी मजबूत बनाया जाये | हम जिस देश में रहते है वहा नारी के साथ एक पवित्रता वाला कांसेप्ट चलता है मतलब की आप का शारीर ही आप का सब कुछ है किसी ने गलत इरादे से आप पर हाथ भी रख दिया तो आप अपवित्र हो जाएँगी | अब आप कहेंगे की इसमे क्या गलत है क्या हम किसी को भी कही भी हाथ लगाने दे | जो लड़किया है नारी है वो इस बात को अच्छे से जानती है जो नहीं है उनके लिए बताते है पहली बात की लड़कियों को उनके शारीर को ले कर इतना संवेदनशील बना दिया जाता है और समाज में तुम्हारे साथ ये हो सकता है वो हो सकता हा जैसी चीजो से इतना डरा दिया जाता है की किसी ने जरा सा गलत हाथ लगाया नहीं या कुछ भद्दी टिपण्णी की नहीं कि उनकी हिम्मत जवाब दे जाती है ,शरीर डर से कापने लगता है दिमाग काम करना बंद कर देता है , मन में विरोध की जगह डर की भावना घर कर जाती है,  इसने मुझे गलत छू लिया या अब ये मेरे साथ और गलत कर देगा , अब मै घर वालो को क्या बताउंगी ,  इस मानसिक स्थिति में तो कोई भी इन्सान सामने वाले का मुकाबला नहीं कर सकता है फिर किसी लड़की से क्या उम्मीद करे जो शारीरिक रूप से ज्यादातर ऐसा करने वालो से कमजोर होती है | हालत ये है की पुरुष क्या किसी महिला का भी मुकाबला करने की हालत में कई बार लड़किया नहीं होती है | महीने भर पहले की बात है लोकल ट्रेन से जा रही थी भीड़ कम थी और मेरा स्टेशन आने वाला था मै दरवाजे पर ही खड़ी थी साथ में कोई १४-१५ साल की चार लड़किया भी खड़ी थी शायद टियुशन जा रही थी उनके कंधो पर बैग था,  दो मेरे आगे थी तभी पीछे से खड़ी एक लड़की ने शरारत में धीरे से मेरे बगल से हाथ डाला और आगे खड़ी लड़की के कंधे पर थपकी दे झट हाथ पीछे कर लिया आगे वाली लड़की मुड़ी और मुझे देखने लगी मैंने  कुछ नहीं कहा उसने कुछ सेकेण्ड के लिए मुझे देखा और मारे डर के मम्मी मम्मी करने लगी उसका चेहरा बिलकुल डर गया और वो कस कर अपने बगल में खड़ी सहेली से लिपट गई, मुझे देख कर आश्चर्य हुआ की वो किस बात से डर रही है | मैंने कहा तुम क्यों डर रही हो उसकी सहेली ने भी पूछ तो उसने मराठी में कहा की इन्होने मुझे कंधे पर थपकी दी पीछे खड़ी उसकी सहेलियों ने हंसते हुए कहा की अरे वो तो मैंने किया था , मैंने उससे कहा की इसमे डरने की क्या बात है यदि मैंने ही तुमको थपकी दी उसकी सहेलिय भी इस बात पर उसे चिढाने लगी इतने में मेरा स्टेशन आ गया और मै उतर गई | मुझे आश्चर्य हो रह था की एक लड़की किसी महिला के थपकी देने भर से इतना डर जा रही है यदि मेरी जगह कोई पुरुष होता तो इसकी क्या हालत होती | विश्वास कीजिये हमारे देश की ज्यादातर आम लड़किया इस तरह की ही डरपोक होती है , हम उन्हें डरपोक बना देते है वो कई बार सामान्य सी परिस्थिति का भी का सामना नहीं कर पाती है तो किसी मुश्लिक परिस्थिति का क्या करेंगी | लड़को से दूर रहो वो ऐसे होते है वो वैसे होते है वो कुछ भी करेंगे तो उनका तो कुछ नहीं बिगड़ेगा हा तुम्हारी बेइज्जती जरुर हो जाएगी जैसी बात उन्हें लड़को से हर समय डरने की प्रेरणा दे देते है | फिर जब कभी भी उनके सामने इस तरह की घटना होती है तो वो पहले ही मान लेती है की वो मुकाबला कर ही नहीं सकती है वो उसे रोक नहीं सकती है अब ये सामने वाले के ऊपर है की वो हमारे साथ क्या करेगा
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                                                                              दूसरी बात है घर की इज्जत वाली, गुवाहाटी कांड हो या इस तरह का कोई अन्य कांड में मैंने देखा की लड़की उन लड़को से मुकाबला करने की जगह बस अपना चेहरा कैमरे में दिखाए जाने से बचाती है ,  वही दुनिया ने चेहरा देख लिया की तुम्हरे साथ क्या हुआ है तो तुम्हारा क्या होगा तुम्हारे माँ बाप की इज्जत चली जाएगी इसलिए जरुरी है की अपना चेहरा न दिखाओ भले तुम्हारे साथ कुछ भी हो जाये अपनी पहचान छुपाओ न की उनसे कोई मुकाबला करो पहली प्राथमिकता तुम्हारी यही है | ये ठीक है की इस तरह किसी भीड़ से एक अकेली लड़की का मुकाबला करना बड़ा मुस्किल काम है किन्तु बिलकुल ही आत्म समर्पण कर देना भी ठीक नहीं है | हम सदा अपनी बेटियों को शांत शौम्या नजरे नीचे कर सह कर घर चले आने की शिक्षा देते है | हम कभी उन्हें ये नहीं कहते है की किसी भी संकट के समय में जरुरत पड़े तो अपनी रक्षा में हमला करने से मत चुको,  हम कभी भी उनमे ये विश्वास क्यों नहीं पैदा करते है की वो स्वयं भी किसी घटना से निपटने में सक्षम है कम से कम किसी अपने या मददगार के आने तक उस घटना का सामना कर सकती है उसे रोक सकती है उसका मुकाबला कर सकती है और ये सब करके वो कुछ भी गलत नहीं कर रही है और उनका परिवार उनके खुद की रक्षा के लिए उठाये गये किसी भी कदमे उनके साथ है | इसलिए जरुरी है की लड़कियों को ऐसी घटनाओ के बाद ये न बताये की देखो ऐसे कपडे पहनने से ऐसे रात में निकालने से या इस जगह जाने से तुम्हारे साथ ये हो सकता है , ये कह कर उन्हें डराए नहीं उन्हें डरपोक न बनाये बल्कि उनमे विश्वास पैदा करे उससे  ये कहे की ऐसी स्थिति आने पर कभी भी डरो मत मुकाबला करो , जरुरत पड़ने पर हमला करो , क्योकि इस भीड़ में ज्यादातर भीड़ बहादुर होते है जो भीड़ की शक्ल में तो बड़े बहादुर बनते है किन्तु अकेले में इनकी इतनी हिम्मत भी नहीं होती है की वो एक चूहे को भी मार सके,  ज्यादातर बन्दर घुड़की दने वाले होते है जो सामने वाले ही हिम्मत जांचते है यदि आप पीछे जाते  तो उनकी हिम्मत बढ़ती है और जब आप हिम्मत से आगे बढ़ते है तो वो पीछे हट जाते है | मानसिक रूप से मजबूर बने घबराए या हडबडाये नहीं हर किसी के पास मोबाईल होता है तुरंत पुलिस को या जो सबसे करीब है उसे कॉल करके बुलाये और जरुरत पड़े तो अपनी आत्म रक्षा में तुरंत हमला बोल दे ( जब आप के पास वहा से भाग जाने का विकल्प न हो तब , जब आप ऐसे लोगो से घिर जाये तब )   किसी पर भी जो भी आप के हाथ में आये उसी से ऐसे समय पर हमला कर दे  आप का पर्स,  पेन, बालो के काटे से लेकर सड़क पर पड़ा पत्थर भी आप का हथियार बन सकता है | जब मै छोटी थी तो मेरे चाचा हम लोगो से एक बात बोलते थे (सभी के लिए)  की जब कभी भी कई लोग तुम पर हमला करे तो सभी से मुकाबला करने की जगह थोडा ध्यान दो और उनमे से जो सबसे कमजोर या डरपोक दिखे बस उसे पकड़ो और बेतहाशा धोना शुरू कर दो,  यहाँ पर सभी आप की ताकत देखना चाहते है पर ये नहीं देखते है की ताकत किसके खिलाफ प्रयोग किया जा रहा है उस कमजोर को जब आप बिना दाये बाये देखे कही भी पिटते है तो वो आप से डरता है और उस समय आप ताकतवर दिखते हो और ऐसे भीड़ के साथ बहादुरी दिखाने वाले डर जाते है और फिर उन्हें समझ में आता है की उसके बाद उनका नंबर भी लग सकता है ( आप ने देखा होगा दो चार मजनू लड़कियों को छेड़ते है जैसे ही लड़की पलट कर किसी एक को पकड़ती है बाकि वहा से भाग जाने में ही अपनी भलाई समझते है तब तो और भी जब लड़किया भी झुण्ड में हो )
                          
                           यहाँ पर शारीरिक मजबूती के साथ ही मानसिक मजबूती काम आती है जब आप इस बात की परवाह न करे की आप को कौन कहा मार रहा है पिट रहा है या आप के किस अंग को छू रहा है तो आप उस स्थिति से मुकाबला करने के लिए ज्यादा तैयार होते है | किन्तु होता क्या है की लड़किया कुछ भी हो जाये मुकाबला करने की जगह अपने चहरे या नीजि अंगो को छुए जाने से बचाने में लगी होती है जबकि ऐसा करने वाला आप के साथ ये करने की जिद पर आ जाये तो आप उसे बहुत मुश्लिक से ही रोक पाएंगी और जब वो भीड़ की शक्ल में हो तो शायद ये आप के लिए नामुमकिन हो जाता है , अच्छा हो अपने दोनों हाथो का प्रयोग उस पर हमला करने उसे पीटने में लगाये क्योकि दोनो ही स्थिति में आप अपने आप को छुए जाने को रोक नहीं सकती है जब आप मुकाबला नहीं करेंगी तो ये सब आप के साथ तब तक होता रहेगा जब तक वो चाहेंगे या जब तक कोई अन्य आप को आ कर वहा न बचाए जबकि जब आप मुकाबला करेंगी तो आप जल्दी से उस बुरी स्थिति से बाहर आ सकती है  | मुकाबला करने के लिए जरुरी ये भी है की हम पहले से ही अपनी बेटियों को कोमलान्गनी बनाने के बजाये थोडा शारीरिक रूप से भी मजबूत बनाये उन्हें अपनी सुरक्षा के आत्म रक्षा ट्रेनिग भी दिलवा दे बिलकुल वैसे ही जैसे आज भी लाखो लोग अपने बेटियों के पढ़ाने लिखाने से  लेकर सिलाई कटाई के स्कुलो में भेज देते है ताकि बुरे समय में काम आये | तो फिर किसी ऐसी संकट में अपनी रक्षा करने की ट्रेनिग क्यों न उन्हें दी जाये वो उसका कितना प्रयोग करती है या नहीं ये तो बाद की बात है किन्तु ऐसी कोई भी प्रशिक्षण उनमे आत्म विश्वास तो पैदा कर ही देगा | ये कभी न सोचे की आप के साथ या आप के घर की महिलाओ के साथ ये नहीं हो सकता है इस तरह की घटाने या इससे मिलती जुलती घटाने कभी भी कही भी किसी के साथ भी हो सकता है इसलिए ऐसे प्रशिक्षण केवल बेटियों के लिए नहीं उनकी माँ को भी दिया जाना चाहिए ( जब मै १२ वि में थी तो मै ताई- क्वांडू सीखती थी हमारे साथ एक १२ साल की लड़की और उसकी माँ भी सीखने आती थी )  जरुरी नहीं है की ये छेड़ छड कर रहे व्यक्ति के ऊपर ही काम आये चेन, पर्स खीच कर भाग रहे उच्चके को या घर में घुसे लुटेरे से बचने के भी काम आ सकता है आप हर समय अपने घर की महिलाओ के साथ उनकी सुरक्षा के लिए मौजूद नहीं हो सकते है | ये जरुरी नहीं है की इतना कुछ सीखने के बाद भी आप सुरक्षित हो ही जाएँगी किन्तु जितने उपायों से हम अपनी रक्षा कर सकते है उतनी तो हमें सिख ही लेनी चाहिए संभव है की आप से साथ घटी हटाना में अपराधी के पास कोई खतरनाक हथियार हो और आप कुछ न कर सके | जब लोग हथिहर बंद हो कर हमला करे तो फिर मै यही कह सकती हूँ की तब तो प्रेरणा लेने के लिए हमारे पास दो महिलाए है हरियाणा की है जिन्हें आप सब ने आमिर के शो सत्यमे जयते में देखा होगा, तब तो यही कहूँगी की जब समाज के पुरुषो की हिम्मत इतनी बढ़ जाये तो हम सभी को भी एक आटोमेटिक ............ के लाइसेंस के लिए आवेदन कर देना चाहिए |
बहुत सारे उपाय है इन जैसी घटनाओ से खुद को बचाने के लिए सभी दे , देखिये रश्मि जी ने भी एक उपाय सहशिक्षा का दिया है पता नहीं लडके इससे कितने सुधरेंगे और लड़कियों को समझेंगे पर ये कह सकती हूँ की लड़किया कम से कम लड़को से डरना उन्हें खुद से ज्यादा ताकतवर या काबिल होने की गलतफहमी से जरुर बाहर आजायेगी और किस तरह के लड़को को किस तरह से हैंडल करना है ये तो सिख ही जाएँगी |

चलते चलते

 मै धार्मिक महिला नहीं हूँ इस कारण मै देवी देवताओ को उस रूप में नहीं देखती जीस रूप में कोई अन्य देखता है यही कारण है की मै देवी देवताओ को एक सामाजिक जरुरत के कारण समाज द्वारा बनया गया मानती हूँ | इसी के तहत मै ये भी सोचती हूँ की जब संसार में पहले से ही देवी लक्ष्मी , सरस्वती के रूप में नारी के शांत रूप और सती तथा पार्वती के रूप में शक्ति रूप मौजूद था तो क्या कारण था की देवी दुर्गा का निर्माण किया गया  | संभव है की समाज ने इस बात की जरुरत समझी हो की नारी को और भी शक्तिशाली और थोडा हिंसक रूप में दिखाया जाये जिससे ये बात स्थापित हो सके की समाज की रक्षा या खुद की रक्षा के लिए नारी को अपना शौम्य, शांता ,संस्कारी, अहिंसक रूप त्याग देने की जरुरत महसूस हो तो वो आसानी से ये कर सके और समाज उसे मान्यता दे सके साथ ही बुरे लोग नारी से भी डर सके | फिर ये भी लगता है की जब दुर्गा जी पहले से ही मौजूद थी तो उनसे भी वीभत्स और रक्त पीने वाली काली का निर्माण क्यों किया गया शायद इस रूप में ये दर्शाना था की दुष्टों को जड़ से ख़त्म किया जाये , इस बार तो उनका संहार हो ही किन्तु इस तरह हो की वो दुबारा जन्म ही न ले सके,  दुष्टों दानवों का सम्पूर्ण विनाश करने की शक्ति भी नारी को दी गई शायद कारण ये रहा हो की जन्म देने वाली ही उसे जड़ से ख़त्म कर सकती है , ऐसे दुष्टों का दुबारा जन्म वो ही रोक सकती है साथ की दुर्गा जी के साथ माँ, ममता और दया का जो एक अंश बचा था उसे काली के रूप में बिलकुल भी ख़त्म कर दिया जाये या बहुत कम कर दिया जाये | यही कारण है की कई बार संकट के समय दुष्ट लोगो से खुद को और अपने परिवार को बचाने के लिए नारी से दुर्गा या काली का रूप धारण करने का आवाह्न किया जाता है और इसे कही से भी गलत और हिंसक नहीं माना जाता है | मुझे नहीं लगता है की कोई भी व्यक्ति  दुर्गा या काली के रूप में दानवों दुष्टों के विनाश को और समाज दुनिया को बचाने के लिए किये गये संहार को हिंसक मानता होगा | अब ये समाज को तय करना है की क्या वो हर नारी को दुर्गा या उससे भी वीभत्स काली के रूप में बदलने के लिए मजबूर करे या नहीं | ये एक आम महिला की आम सी नीजि राय और सोच है आप इससे विपरीत विचार भी रख सकते है |

July 13, 2012

गुवाहाटी मामले में पहले लड़की की असलियत जानिए फिर लड़को को कुछ कहिये - - - - -mangopeople

                                                                                          

                                                    गुवाहाटी में एक लड़की के साथ  क्या क्या हुआ सब ने देखा मुझे उसका विवरण देने की आवश्यकता नहीं है | बहुत से लोग जुबानी खर्च में लगे है कह रहे है की ऐसा करने वालो को कड़ी सजा होनी चाहिए आदि आदि किन्तु बिना सच्चाई को जाने जिसके मुंह में जो आये जा रहा है वो बके जा रहा है  | कितने है जो असलियत को जानते है शायद ही कोई हो,  मेरी ही तरह कईयो के मन में ये विचार आ रहे होंगे किन्तु बेचारे लोगो के डर से नहीं कह पा रहे है (बस अभी के लिए जब तक उस लड़की के प्रति लोगो के बेमतलब की सहानभूति उफान पर है) जब ये उफान ख़त्म होगा तो मेरी तरह कई विद्वान् लोग ये सवाल कर रहे होंगे |
                                                                          सबसे पहले सवाल ये है कि ये बताइये आप सब ने वीडियो में देखा होगा की ये रात की घटना है सोचिये की इतनी रात को कोई भले घर की लड़की घर से बाहर निकलती है और निकली भी तो क्या घर से अकेली निकलती है या कभी भी किसी "बार"  के आस पास नजर आती है,  बिलकुल भी नहीं किसी भी भले घर की लड़की जो अभी मात्र ११वि में पढ़ रही है ( मिडिया रिपोर्ट के अनुसार ) इनमे से ऐसा कोई भी काम नहीं करती है | फिर आप लोगो ने उसके कपडे देखे,  उसने किस तरह "बदन दिखाऊ", " भड़काऊ "  आधुनिक कपडे पहन रखे थे जो सीधे सीधे लड़को को आमंत्रित करने के लिए काफी थे | अब आप सोचिये की इस तरह के आधुनिक कपडे पहने रात में अकेली कोई लड़की किस दारू बार के पास जाएगी तो उसके साथ ये नहीं होगा तो और क्या होगा,  वो लड़की इसी के लायक थी , संभव तो ये भी है की उसने ही लड़को को ये सब करने के लिए उकसाया होगा वरना लड़को को क्या पड़ी थी की उससे छेड़खानी या मारपीट करने की | वीडियो को ध्यान से सुनिए उसमे हमारी संस्कृति हमारी परंपरा की रक्षा करने वाले लोग है जो लड़की से पूछ रहे है की  तुने शराब पी है , बोल शराब पीयेगी , बार में जाएगी , मतलब साफ है की लड़की ने शराब पी रखी है ( जब वो लडके पूछ रहे है तो जरुर पी रखी होगी वो बेमतलब का ये बात तो पूछेंगे नहीं ) अब सोचिये की कोई  अच्छी सभ्य लड़की कभी भी शराब पीयेगी या किसी बार में जाएगी,   पर क्या है की आज कल की लड़कियों को बराबरी के नाम पर पुरुषो की तरह ही शराब पीने बार , पब में जाने की आदत लग गई है तो ऐसी परम्पराव के खिलाफ जाने वाली हमारी महान संस्कृति को बदनाम करने वाली लड़कियों के साथ ऐसा ही होना चाहिए ताकि उन्हें सबक मिले की उन्हें ऐसा करने का अधिकार नहीं है ये सब बस पुरुषो के करने का काम है वो इसे नहीं कर सकती है | याद होगा कुछ साल पहले दिल्ली में भी इसी तरह एक महिला को सरेआम खूब पिटा गया था उसके ही मोहल्ले वालो ने क्योकि उसने अपने मकान मालिक पर बलात्कार का आरोप लगाया था और बाद में एक दिन सभी समाज के ठेकेदारों ने  मिल कर उस महिला को भी अच्छे से सबक सिखाया था सब ने कहा की महिला ने शराब पी रखी थी और महिलाओ का शराब पीना जुर्म है तो इस जुर्म की सब ने मिला कर खूब सबक सिखाया,  | कुछ समय पहले हिन्दू धर्म के ठेकेदारों ने भी बंगलोर में भी इसी तरह पब  में गई लड़कियों को ऐसे ही सबक सिखाया था हम सब ने देखा था | इस तरह की हर घटना के बाद लोग जुबानी जमा खर्च शुरू कर देते है चिल्ल पो करते है और फिर शांत हो जाते है पर इन चिल्ला पो मचने वालो को हमरी परम्परा संस्कृति की जरा भी चिंता नहीं है | जब तक लड़किया ठीक से सबक न सिखा ले उनके साथ ऐसा ही किया जाता रहना चाहिए |
                                                 ये भी संभव है की वो लडके लड़की के लिए अनजान हो ही नहीं मतलब की अभी कुछ समय पहले की घटना है अपने मित्रो के साथ जन्मदिन की पार्टी में गई लड़की के साथ उसके दोस्तों ने ही उसे शराब पिला कर बलात्कार किया था बाद में हमारी महानी खोजी पुलिस ने पता लगाया था असल में वो लड़की एक वेश्या थी भला कोई सभ्य  घर की  लड़की लड़को के साथ अकेले जा कर पार्टी करती  है या शराब पीती है या  लड़को को मित्र बनाती  है , असल में लड़की  और लड़को के साथ पैसे के लिए झगडा हुआ था और कोई बात नहीं हुई थी और इस तरह के धंधा करने वालो के साथ भी कोई बलात्कार होता है | संभव है की इस मामले में भी लड़की ही चरित्रहिन हो और लड़को को फ़साने का प्रयास किया हो और कामयाब नहीं हो पाई या उसने पैसे की ज्यादा मांग की हो या लड़को पर  इल्जाम लगाने लगी हो और तब उसे मात्र सबक सिखाने के लिए लड़को ने उसे दो चार हाथ मार दिया हो जिसे बढ़ा चढ़ा कर दिखाया जा रह है | कुछ समय पहले एक टीवी चैनल पर पुलिस वालो ने देश में हो रही सारी बलात्कार और छेड़ छड की घटनाओ की असलियत सभी को बताई थी की कोई भी सभ्य महिला या लड़की कभी भी अपने साथ हुए बलात्कार या छेड़छाड़ की रिपोर्ट पुलिस स्टेशन में लिखवाने नहीं आती है अरे भाई वो तो अपने इज्जत को यु सरे आम क्यों ख़राब करेगी वो तो सब छुपा कर घर में बैठ जाती है , जो भी इस तरह की घटनाओ की रिपोर्ट लिखाने पुलिस स्टेशन में आती है वो सभी अच्छे और सभ्य घरो की नहीं होती है उन्हें रिपोर्ट लिखवाने से फायदा होता है तभी आती है , वो मर्दों को फंसा कर पैसा ऐठना चाहती है इसलिए ही पुलिस के पास आती है | सोचिये कितना बड़ा सच उजागर किया था पुलिस ने और लोग है की इस तरह की घटनाओ पर लगते है लड़की के प्रति सहानभूति जताने और पुरुषो को गाली देने | लोगो की आदत है की बिना सोचे वो भावनाओ में बहने लगते है और कुछ भी कहने लगते है | अब जैसे बागपत की पंचायत ने एक सही और महान फैसला लिया है की अब उस गांव से कोई भी ४० वर्ष तक की महिला बाजार नहीं जाएगी , मोबाईल नहीं रखेगी सोचिये की यदि ये फैसला पहले ही सारे देश में लागु हो जाती तो कितना अच्छा होता तब तो ये घटना होती ही नहीं महिलाए अपने अपने घरो में सुरक्षित होती | जिस तरह चोर डाकू से बचा कर आप अपनी संपत्ति तिजोरी में रखते है उसी तरह लड़किया भी घर के पुरुषो की इज्जत है उसे बचाने के लिए पुरुषो को अपने अपने घरो की महिलाओ को घरो में ताला बंद कर रखना चाहिए | कुछ लोग हर बात में पुरुषो को गाली देने लगते है उन्हें भला बुरा कहते है किन्तु वो ये नहीं समझ पाते है की किसी स्त्री के प्रति किसी पुरुष का आकर्षित होना प्राकृतिक क्रिया है बनाने वाले ने ही उनके अन्दर ऐसा कैमिकल लोचा किया है की वो महिला के प्रति आकर्षित होंगे ही उसमे उनका कोई भी दोष नहीं है,  यदि मौका हो ,उद्दीपन हो, भड़काऊ तत्व हो तो कई "सभ्य" के दिलों में धड़कता पुरुष जानवर पैजामे से बाहर आएगा ही 
इसलिए मै तो कहती हूँ की लड़कियों को घरो में नहीं बल्कि घर के एक कमरे में बंद रखना चाहिए ताकि उन पर उनके भाइयो पिता चाचा मामा फूफा किसी भी पुरुष की नजर ना पड़े क्योकि प्राकृतिक नियम के अनुसार स्त्री को देखते ही पुरुषो के मन में उनके शिकार की भावना जगा जाएगी क्योकि बाहर तो उन्हें देखने तक के लिए लड़किया नहीं मिलेगी और घर में रह रही लड़किया भी तो स्त्री लिंग ही है ना  इसलिए अच्छा है की उन्हें सभी पुरुषो से दूर कमरों में बंद रखा जाये |  किन्तु लोग समझते नहीं है और पंचायतो के फैसलों को  भी बुरा कहने लगते है अब क्या जवाब है उनके पास , क्या अब भी आप को लगता है की पंचायत ने कोई गलत फैसला किया है | लोग नाहक इमोशनल होते है असल में तो ये घटना इस लायक है ही नहीं की इस पर चर्चा भी की जाये किन्तु "चर्चाए" हो रही है क्योकि  इन सब के लिए  पुलिस व्यवस्था जलील पत्रकार जिम्मेदार हैं और इसे मिठाई बनाकर प्रस्तुत करने वाले लोग |
                                                                   
चलिए यदि आखिर में हम मान भी ले की ठीक है लड़को ने जवानी को जोश में भड़काने के करण कुछ मारपीट कर दिया या लड़की को छू दिया ( अब लड़की को इतना भी छुई मुई होने की क्या जरुरत है ) तो क्या उन्हें आप मार ही डालेंगे क्या, कुछ लोग बार बार कड़ी सजा की पैरवी करते है,  किन्तु ये सही नहीं है हिंसा कभी भी किसी भी मर्ज का इलाज नहीं होता है हिंसा गलत बात है हर किसी को सुधरने का एक मौका तो मिलना ही चाहिए,  ना की उनको सजा दे कर उनका जीवन बर्बाद करना चाहिए | इन सभी लड़को को सुधरने का मौका देते हुए हम सभी को इन्हें माफ़ कर देना चाहिए ये बच्चे है और इन्होने "मात्र " "छोटी " सी "मुर्खता" की है जिसकी सजा की कोई जरुरत नहीं है माफ़ी बड़ी जीज है ये जरुर इन की पहली गलती होगी सौवी भी हो तो क्या आखिर गलती तो इन्सान से ही होती है याद रखिये माफ़ी देने वाला बड़ा होता है और उस लड़की से भी उम्मीद करती हूँ की वो अपने साथ हुए "छोटी मोटी" घटना को भूल कर उसे माफ़ कर देगी |
                                      जारी ..................................................

                                                                                   कुछ समय पहले रचना जी ने बताया था कि  सटायर को ब्लैक ह्यूमर भी कहा जाता है । पर अपनी पोस्ट को ये नाम देते डर लगा कही कालापन मुझ पर अपने अपमान का मुक़दमा न कर दे और रही बात ह्यूमर की तो हा ये हो सकता है तभी तो वो लडके लड़की के साथ ऐसा करते हँस रहे थे | वो करते हँस रहे थे आप पढ़ कर हँस लीजिये हमें तो नहीं आई ............


July 04, 2012

पीड़ित कौन और मांफी देने वाला कौन - - - - mangopeople

                                                                   
                                                                मुद्दे को ठीक से समझने के लिए उसे एक कहानी किस्से की तरह सुनाती हूँ, मान लीजिये की एक गांव क़स्बा शहर जैसा कुछ है, जहा सब एक दूसरे को जानते है जैसे की अपना ब्लॉग जगत है, कुछ वैसा ही, वहा कई तरह के लोग है ,उनमे एक ऐसा भी व्यक्ति है जिसकी आदत है चर्चा में बने रहने के लिए कुछ भी करने की,  सब उसकी बाते करे उसे देखे उसके लिए वो कुछ भी करता है , तो कभी बस अपने  आन्नद के लिए,  महिलाए उसके निशाने पर ज्यादा रहती है महिलाए के लिए अपने घर की छत पर चढ़ कर अश्लील टिप्पणिया करना उसके सबसे प्रमुख आदतों में एक थी , ये सबसे आसान तरीका है चर्चा में आने के लिए और मजे लेने के लिए तैयार कुछ लोगो को अपने पास बुलाने के लिए | कुछ लोगो को गलतफहमी थी की वो बड़े आदमी है ( अभी हाल में ही ननद की बेटी की शादी थी, गाने वाले लडके की तरफ किसी ने इशारा कर कहा बहुत बड़ा सिंगर है,  मैंने कहा वो आर्केस्ट्रा वाला,  तो उन्होंने कहा की अरे नहीं भाई टीवी पर एक प्रतियोगिता में आया था बड़ा सिंगर है,  मैंने कहा काहे का बड़ा आज भी शादियों के आर्केस्ट्रा में गा बजा रह है, तो जबाब मिला आर्केस्ट्रा मत कहिये बैंड  है | मतलब टीवी पर आने के बाद आदमी बड़ा हो जाता है और आर्केस्ट्रा बैंड बन जाता है ) कुछ एक लोग बड़ा आदमी है के कारण उन्हें कुछ कहते नहीं थे कुछ अपने मतलब के लिए उन्हें समय समय पर उकसा कर मजे लिया करते थे ( कई बार लोग खुद कई गिरी हुई हरकते नहीं कर पाते है तो ऐसे लोगो को सहारा लेते है अपना दामन भी साफ और खुद की खुन्नस भी निकल गई ) सालो तक उनकी यही हरकते रही लोगो को व्यक्तिगत टिप्पणी  करना उल जुलूल हरकते करना आदि आदि | एक दिन उनको ये एहसास  हुआ की इन हरकतों के कारण वो बड़े आदमी बस माने जाते है कुछ लोगो के लिए,  किन्तु उन्हें वो सम्मान नहीं मिलता है कोई पुरुस्कार नहीं मिलता है उनकी हरकते बीच में आ जाती है , तो उन्होंने सोच लिया की अब से वो ये सारी हरकते बंद कर देंगे ताकि उन्हें वो सब मिल सके और उन्होंने अपने घर की छत पर चढ़ चिल्लाना शुरू किया की पिछले किये की माफ़ी मांगता हूँ आगे से ऐसी कोई हरकत नहीं करूँगा सब लोग मांफ कर दे | उनका ऐसा कहना था की अचानक से उस समाज  ,जगत के बहुत से  विद्वान् बुद्धिजीवी और आम लोग  निकल कर बाहर आ गये और लगे उन्हें माफ़ करने,  उनकी माफ़ी की सराहना करने और ये बताने की उन्होंने माफ़ी मांग कर कितना बड़ा काम किया है अब तो वो महान लोगो में शामिल हो गये सब ने मिल कर उन्हें माफ़ कर दिया | किन्तु वो बेचारे सब बिलकुल आश्चर्य में पड़ गये जिनको उन्होंने सारा जीवन व्यक्तिगत टिप्पणिया की उन्हें परेसान किया महिलाओ से अश्लील बाते की , वो सोच में पड़ गये की इस व्यक्ति ने अपराध तो हमारे खिलाफ किया है तो ये माफ़ी देने वाले ये कौन लोग है , माफ़ी मांगने वाले ने तो इनके खिलाफ कोई अपराध किया ही नहीं है तो ये माफ़ी क्यों दे रहे है और ये बात भी समझ नहीं आती है जब अपराध करने वाले ने कुछ व्यक्ति विशेष लोगो के खिलाफ परोक्ष और अपरोक्ष रूप से अपराध किया है तो उसे माफ़ी उनसे मांगनी चाहिए या पूरे उस समाज से | बेचारे इस सोच में अपने सर के बाल नोच रहे थे और सोच रहे थे की आज वही लोग उस अपराधी को माफ़ी दे रहे है जो कभी भी अपराध के होते समय उसका विरोध करने नहीं आये आज अचानक से एक अपराधी को माफ़ करने कैसे चले आये |
                                                           
                                                            
                                                                         अब मुद्दा क्या है,  नहीं वो व्यक्ति या उनका व्यवहार मुद्दा नहीं है ( ऐसे लोग तो ध्यान देने के लायक भी नहीं होते है ) मुद्दा है अपराध और अपराधी के प्रति समाज का व्यवहार | क्या अनेक अपराध करने के बाद व्यक्ति माफ़ी मांग ले तो उससे उसका अपराध कम हो जाता है या उस व्यक्ति की पीड़ा कम हो जाती है जो उसके अपराध से पीड़ित है , क्या ये समाज का सही न्याय है की उस अपराधी को माफ़ कर दे | मुझे तो ये बात भी हास्यापद लगती है की अपराध किसी के प्रति और माफ़ी किसी और से , जिसका पूरे मामले से सम्बन्ध ही नहीं है वो कौन होता है माफ़ करने वाला, न्याय देने वाला अधिकारी भी अपराधी का दोष सिद्ध होने पर अपराध और कानून के मुताबिक सजा देता है माफ़ी नहीं , माफ़ी यदि कोई दे सकता है मेरी नजर में तो वो बस और बस पीडित ही हो सकता है | किन्तु वहा ये भी देखा जाना चाहिए की अपराध की प्रकृति क्या है कही ऐसा तो नहीं की किया गया अपराध उस व्यक्ति विशेष के साथ ही पूरे समाज को भी प्रभावित कर रहा है क्योकि फिर ऐसी जगह पर पीड़ित भी माफ़ी देने के लायक नहीं होता है |  इस तरह अपराधी को माफ़ कर दिया जाये तो समाज में दूसरे भी ये सोच कर अपराध करने लगेगे, अपने स्वार्थो के कारण की ठीक है बाद में माफ़ी मांग लेंगे तो सब माफ़ कर देंगे अभी तो अपने स्वार्थो की पूर्ति कर लो,  जिसे जो कहना है जिसके साथ जो करना है कर लो , समाज में इस तरह का सन्देश जाना कभी भी ठीक नहीं है | सजा का कई मायने होते है पहला की अपराधी को उसके किये की सजा मिले , दूसरा पीड़ित को न्याय मिले और तीसरा  समाज में अन्य को भी ये चेतावनी मिले की कोई भी इस तरह की हरकत दुबारा न करे , किन्तु किसी को भी माफ़ी दे कर हम समाज में क्या संदेस दे रहे है खासकर उन लोगो को जो अपराधी प्रवित्ति के है जो बार बार कई तरह के सामाजिक अपराध करते रहते है |  इस तरह के लोगो का समाज के माफ़ कर देने वाले रेवैये से मन बढ़ता है | माफ़ी देने वाले क्या कभी एक बार भी ये सोचते है की वो किस अधिकार से किसी को मांफी दे रहे है, क्या कभी वो देखते है की जिस व्यक्ति को पीड़ा पहुंचाई गई उसका क्या कहना है जुर्म करने वाले के प्रति, उस पर क्या बीती होगी जब उसे भला बुरा या अश्लील बाते कही गई थी , क्या वाकई माफ़ी मांगने वाले का अपराध इतना छोटा और कम है की उसे बिना विचार के ही तुरंत माफ़ कर दिया जाये , शायद नहीं,  वो विद्वानजन और बुद्धिजीवि लोग ये सोचने की जहमत नहीं उठाते होंगे,  उनके हिसाब से जबानी मांफी मांग लेना और उसे माफ़ कर देना ही बड़ी बात है और सभी बड़े होने की होड़ में शामिल हो जाते है | 
                                                                    

                                                                                    ये मुद्दा जितना छोटा आप सोच रहे है उतना है नहीं , क्योकि जो समाज की सोच और रवैया होता है वही सोच उसके कानून में भी झलकता है | सब ने खबर पढ़ी होगी की राष्ट्रपति ने ( तकनीकि रूप शायद इसके पीछे केंद्रीय गृह मंत्रालय है )  एक दो नहीं कुल ३५ फांसी की सजा पाये अपराधियों की सजा को मांफ करके आजीवन कारावास में बदल दिया | ये पढ़ कर घोर निराश हुई कि इन माफ़ी पाने वालो में वो अपराधी भी शामिल है जिसने एक छोटी सी मासूम बच्ची के साथ बलात्कार  कर उसकी हत्या कर दी थी और सामूहिक हत्याकांड को अंजाम देने वाले भी माफ़ी पा गये है यहाँ तक की ५ साल पहले ही अपनी प्राकृतिक मौत पा चूका अपराधी भी माफ़ी पा गया ( ये एक चुक हो सकती है ) | सोचिये उन परिवारों का जो सालो तक हमारी पेचीदा और लम्बे समय तक चलने वाली क़ानूनी लड़ाई को लड़ने के बाद अपने अपराधी को सजा दिला पाये थे अब वो कैसा महसूस कर रहे होंगे ,निश्चित रूप से खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे होंगे | उन्होंने अपराधी को सजा दिलाने के लिए तन मन और धन तीनो तरीके से बहुत कुछ सहा होगा तब कही जा कर उस अपराधी को सजा मिली होंगी किन्तु सरकार ने एक झटके में उन सभी के सारे संघर्ष पर पानी फेर दिया |  सरकारों को इस तरह के निर्णय लेने में जरा भी हिचक नहीं होती होगी क्योकि समाज का रवैया ये है की जब अपराधी अपने अपराध का प्रायश्चित करे उसकी माफ़ी मांगे तो उसे माफ़ कर देना चाहिए ( अब वो सारे लोग जो यहाँ वहा सामाजिक अपराधियों को अपनी तरफ से फटाफट माफ़ कर देते है इस पर सोचे की उन्होंने सही किया या गलत ) क्योकि माफ़ी मांगने वाला बड़ा होता है , महान होता है , उसे प्रायश्चित का सुधरने का मौका मिलना चाहिए आदि आदि आदि के ढेर सारे प्रवचन | सरकारों को पता है की समाज में उसके इन फैसलों से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कोई भी इनका विरोध नहीं करेगा, तो वो अपने सोच के हिसाब से जो चाहे निर्णय ले ले | अपनी सोच के हिसाब से इस  लिए कह रही हूँ क्योकि कानून के हिसाब से तो जो सजा उसे मिलनी चाहिए थी वो तो पहले ही उसे देश के सबसे बड़े न्यायाधीस ने दे दिया है ,  निश्चित रूप से सरकार का फैसला कानून की नजर से तो नहीं ही होता होगा ( जहा तक मेरी जानकारी है इसमे भी कोई क़ानूनी पक्ष है तो जानकर बताये  ) | सरकारे अपनी सोच के हिसाब से फैसले लेती होंगी और सरकार में बैठे लोग इस समाज से ही तो जाते है उनका फैसला भी समाज की सोच को ही दिखायेगा | यदि कोई समाज अपराध और अपराधियों के प्रति एक कड़ा रुख अपनाता है तो कभी भी सरकारे समाज की सोच के खिलाफ खासकर इस तरह के मामलों में नहीं जा सकती है | मै तो नीजि रूप से इस बात के भी खिलाफ हूँ की जब देश के सबसे बड़ी अदालत ने किसी व्यक्ति को उसके अपराध की देश के कानून के मुताबिक सजा दे दी है तो उसे कोई और माफ़ी दे , खासकर कानून से इतर जा कर, ( पता नहीं राष्ट्रपति से माफ़ी की अपील का कानून बना  ही क्यों है,  क्या उन्हें लगता है की इतना कानून का जानकर न्यायाधीश भी गलती कर सकता है या  अपराधियों को भी मानवीयता से देखना चाहिए , कम से कम फाँसी की सजा पाया अपराधी तो इस लायक नहीं ही होता है की उसके प्रति कोई मानवीयता दिखाई जाये |)   नतीजा क्या होगा की अब इस आधार पर उन सभी अपराधियों की हिम्मत बढ़ेगी जो इस तरह का अपराध कर चुके है और उनकी भी जो इस तरह के अपराध करने के बाद फायदे में रहेंगे ( अपने देश में संपत्ति, जाति, धर्म और यहाँ तक की इज्जत के नाम पर पूरे परिवार या कहे सामूहिक हत्याओ का इतिहास भी है और भविष्य में कई सम्भावनाये भी और महिलाओ के प्रति किये जा रहे अपराध की तो कोई गिनती है नहीं है  ) उनका तो मन इस तरह के माफियो से और भी बढेगा |  पर समाज और सरकारे इन बातो की परवाह नहीं करती है और न ही उन्हें उन मांफियो के परिणामो और पीडितो के दर्द से मतलब होता है वो अपनी मर्जी और अपने बेमतलब के तर्क से काम करती है |
                                                                               अब सवाल ये है की क्या समाज में सामाजिक,  व्यक्तिगत अपराध करने वालो को माफ़ ही नहीं किया जाये तो जवाब सीधा सा है की ये तो व्यक्ति की माफ़ी मांगने के तरीके से ही पता चला जाता है की उसकी असल मंसा क्या है खाकर सामाजिक अपराध करने वाले | जैसे उदहारण देती हूँ  जब अपराध किसी व्यक्ति के प्रति किया गया है नाम ले कर तब माफ़ी मंगाते समय व्यक्ति का नाम न ले कर केवल समाज से माफ़ी मांगी जाये तो शक होता है कि निश्चित रूप से अपराधी मांफी की जगह केवल समाज में अपना सम्मान पाने की इच्छा रखता है उसको कोई माफ़ी नहीं चाहिए और न ही वो अपने अपराध के प्रति जरा भी शर्मिंदा है और न उसे इस बात की जरा भी फ़िक्र है की उसके किये से उस व्यक्ति को कितनी पीड़ा पहुंची है | अपराधी सीधे समाज में उन लोगो से मांफी मांगता है जो उसे माफ़ कर देंगे, बड़ी आसानी से और उनकी माफ़ी पा कर अपराधी संतुष्ट भी हो जाये उसे जरा भी इस बात कि परवाह न हो कि उसे उन लोगो ने माफ़ किया की नहीं जिसके प्रति उसने अपराध किया है,जिन लोगो को उसने पीड़ा पहुंचाई है | तो ऐसे अपराधी मांफी के लायक नहीं होते है और उन्हें क्षमा कर हर तरह के सामाजिक अपराधो को बढ़ावा ही मिलता है समाज सुधरता नहीं है |