December 27, 2013

चाय से ज्यादा केतली गर्म - - - - - -mangopeople




                                                                                बिटिया को जब भी दूध का ग्लास पकड़ाती हूँ तो , वो चीखती है की ग्लास इतना गर्म है की पकड़ा नहीं जा रहा है , दूध कितना गर्म होगा मै  उसे कैसे पी सकती हूँ और मै  उन्हें हर बार समझाती हूँ कि ग्लास के गर्म होने से दुध के गर्म होने का अंदाजा उसे नहीं लगाना चाहिए दूध गर्म नहीं है उससे ज्यादा ग्लास गर्म है :) । यही हाल हमारी राजनीतिक पार्टियो के समर्थको का है , नेता जितना नहीं बोलते है उससे कही ज्यादा उनके समर्थक बोल पड़ते है । इधर "आप" विधायक बिन्नी केजरीवाल के घर से मीटिंग छोड़ कर बाहर आये उधर समर्थक चिल्लाना शुरू कर दिए की कल पोल खोलने वाली पार्टी कि ही पोल उनके माननीय नेता जी खोलेंगे , दूसरे दिन मामला सुलटने के बाद बेचारे नेता जी को अपने ही समर्थको की बातो का जवाब नहीं देते बन पड रहा था , केजरीवाल ने अभी शपथ भी नहीं लिया किन्तु उनके समर्थक राम राज्य लाने के सपने दिखाने लगे है , चार राज्यो के  बुरी गत करने के बाद कांग्रेस और जीत की रथ पर सवार बीजेपी भी अपनी हार जीत  को भूल आगे की राजनीति में लग गई , नए समीकरण तलाशने लग गई किन्तु समर्थक आज भी वही अटके पड़े है और सोशल मिडिया में पानी पी पी कर " आप " को गालिया दे रहे है उसे घेरने का प्रयास कर रहे है । इधर राहुल उनसे कुछ सीखने की बात करते है , अपने नेताओ को "आप" की तरह जनता से जुड़ने की नसीहत देते है ,कांग्रेस उसे समर्थन दे रही है तो उधर कुछ उसके ही खिलाफ मोर्चे ले कर निकल रहे है और गिन गिन कर उनके वादे याद  दिला उन्हें पूरा होने के लिए असम्भव बता रहे है । सही भी है जब ६६ सालो में हम नहीं कर पाये तो ये क्या करेंगे, किन्तु वो नहीं कर पाएंगे उस बात पर भी पूरा विश्वास नहीं है , डर में है कि सच में पञ्च साल में पूरा न कर दे इसलिए पञ्च साल का भी समय देने को तैयार नहीं है कहते है की सब ६ महीने में ही कर के दिखा दीजिये नहीं तो आप फेल है। बीजेपी के शीर्ष नेता कब के विवादित मुद्दो को ठन्डे बक्से में डाल कर भूल गई है किन्तु समर्थको को उसका भान भी नहीं है , मोदी कहते है देवालय से पहले शौचालय , सही बात है देवालय जैसे मुद्दो से कही ज्यादा जरुरी हर घर तक विकास शिक्षा और प्राथमिक जरुरतो को पूरा करना है , नेता जानते है कि दिल्ली की कुर्सी का रास्ता विकास की रोड से जाता है सभी को ले कर चलने से मंजिल मिलती है ,न की किसी एक समुदाय को लेकर बोलने से ,आखिर वो इतने शीर्ष पर अपनी उसी काबलियत और बुद्धि से पहुंचे है  कि  कब क्या बोलना है और कब किन मुद्दो को गायब कर देना है ,  वो तो जम्मू भी जाते है तो कश्मीरी पंडितो पर एक लाईन भी नहीं बोलते है किन्तु समर्थक ये सब समझते ही नहीं है और ऐसी ऐसी बाते बाहर बोलते है उनसे उम्मीद करते है कि बेचारे नेता की छवि लाख चाहने प्रयास करने के बाद भी नहीं बदल पाती है । नेता वही सही और सफल है जो समय के साथ बदले और जनता के इच्छानुसार मुद्दे उठाये, कहते है की काठ की हांड़ी बार बार नहीं चढ़ती है , मझा नेता बार बार एक ही संवेदनशील और भावनात्मक मुद्दो को नहीं उठाता है ।  अब देखिये जिस मनरेगा ने गरीबो की भलाई वाली स्कीम ने यु पी ए को दूसरी बार चुनाव जिताया , वही दूसरी गरीबो की स्कीम भोजन का अधिकार और कैश ट्रांसफर उसे चार राज्यो में जीत क्या सम्मान जनक सीट भी नहीं दिला सकी , उसका भ्रष्टाचार सब स्कीम पर भारी पड़ा। बीजेपी भी जानती है की उसकी हिंदूवादी छवि न कभी उसे सरकार दिला पाई है और न आगे दिला पायेगी , वो उसे सीटे तो दिला सकती है किन्तु सत्ता नहीं , सही समय पर उसने अडवाणी को किनारे किया और वाजपेयी को आगे , मोदी ने सही समय पर सिखा और अपनी छवि विकास पुरुष की बना ली । किन्तु समर्थक राजनीति की इन हकीकतो को समझते नहीं है और उसी पुराणी छवि को पकड़ कर अपने ही नेता को मुसीबतो में डालते रहते है ।

                                               सोसल मिडिया हो या अन्य जगह दिल्ली और " आप " को लेकर ऐसी ऐसी राजनीतिक चालो का वर्णन है कि समझ नहीं आ रहा है की शिकारी कौन है और शिकार कौन , लगा बीजेपी सरकार बनाएगी किन्तु उसने " आप" की नैतिकता वाली चाल चल दी और गेंद " आप" के पाले में इस उम्मीद में डाल दी कि वो तो सरकार बनाएंगे नहीं ६ महीने विधान सभा स्थगित हो जायेगी फिर लोकसभा चुनावो के बाद कांग्रेसियो की अंतरात्मा जगा कर सरकार बना ली जायेगी  , लगे हाथ कांग्रेस ने भी समर्थन इस उम्मीद में दे दिया कि वो तो लेंगी ही नहीं हम दोनों चचेरे भाई उसे भगोड़ा घोषित कर देंगे और मामला फिलहाल लोकसभा चुनावो तक टाल देंगे और सरकार न बनाने पर "आप " वालो की जम कर खबर लेंगे ताकि वो लोकसभा चुनावो में ज्यादा कुछ न कर पाये , किन्तु हाय रे हाय जो " आप " वाले एक समय फसंते दिख रहे थे उन्होंने ने तो फिर से वोटिंग करा कर सरकार बनाने की ठान ली और अपने वादो को पूरा करने की भी , लो जी अब तो कांग्रेस और बीजेपी दोंनो की ही चाल उलटी पड़ती दिखने लगी , नतीजा दोनों की ही तल्खी और बढ़ गई " आप " के प्रति , बीजेपी के तो मुंह से निवाला चला गया , और अब कांग्रेस को डर है कि पिछले १५ सालो में जो खाया है दिल्ली में वो कही बाहर न आ जाये , जो थोड़ा बाहर आया है उससे तो ये हाल है जब और आयेगा तो आगे क्या होगा । अब दोनों उम्मीद लगाये बैठे है कि उनका तारण हार दिल्ली की बाबू ब्रिगेट करेगी , एक भी फाईल आगे नहीं बढ़ने देगी एक भी काम नहीं होने देगी , किन्तु उनकी इस उम्मीद पर भी तुषारपात होता दिख रहा है , अब खबर या अफवाहे जो भी आ रही है कि बाबू ब्रिगेट तो खुद ही अपनी जान बचाने में लगी है , कोई फाईले फड़वा रहा है तो कोई ट्रांसफर ले रहा है तो कोई आफिस में ताले लगा कर काम कर रहा है । एक हंसी मुझे तब आई थी जब टीवी चैनलो में मैंने अपने जीवन में पहली बार ( शायद दुसरो ने भी ) कांग्रेस और बीजेपी को गलबहिये करते एक दूसरे की पीठ थपथपाते और एक दूसरे की हा में हां मिलाते देखा लोकपाल के मुद्दे पर वो भी खुलम खुल्ला , चोरी छुपे तो दोनों ये करती ही आई थी , दूसरी हंसी अब आ रही है इस बाबू ब्रिगेट का हाल देख कर , मुझे कमल हासन की फ़िल्म इन्डियन याद आ रही है जिसमे वृद्ध स्वतंत्रता सेनानी बने थे और रिश्वतखोरो को सजा देते है उनका डर सब में इतना हो जाता है कि उनके जाने के बाद भी दूसरे लोग उनके जैसी बेल्ट पहन कर ही लोगो को डरा देते है ।


                                                                समझ नहीं आता की अरविन्द से लोगो को इतना डर और चिढ क्यों है क्यों उनकी पार्टी बनाने से दोनों बड़ी पार्टिया इतनी खीजे हुई है , शरद पवार , राजठाकरे , देवगौड़ा , जगन मोहन , येदुरप्पा , कल्याण सिंह , उमा भारती जैसे न जाने कितने लोगो ने पार्टी तोड़ कर या नई राजनीतिक दलो को खड़ा किया , सभी ने किसी न किसी का वोट काटा और राजनीति में अपने लिए जगह बनाई या हार कर ख़त्म हो गए , उनके लिए ये तल्खी कभी भी इन दो बड़ी पार्टियो ने नहीं दिखाई जो वो आज "आप " के लिए दिखा रही है । शायद ये पहला मौका है जब उन्हें लग रहा है कि " आप " राजनीति में उनके बनाये नियमो के तहत नहीं काम कर रही है , लोकतंत्र का जो रूप उन्होंने आज तक जनता में फैला दिया था  जिसमे से लोक ही गायब है " आप " फिर से उस लोकतंत्र में लोक को सामिल करके उनका खेल बिगाड़ रही है , वो राजनीति करने के तरीके को बदल रही है , वो आम लोगो में अपने अधिकारो के प्रति जागने की जो भावना बैठा रही है वो आगे उन्हें परेशान करने वाले है , वो उनमे से ही एक नहीं है , जो सत्ता पैसे ताकत के लिए हर तरीके से समझौते कर लेती है , ये जिद्दी लोगो का वो गुट है जो सच में कुछ बदलने का ठान के आई है । इतना विश्वास तो खुद मुझे भी नहीं है "आप " पार्टी पर ,मै  मानती हूँ कि अरविन्द और उनके आस पास के कुछ लोग बदलाव के मकसद से काम कर रहे है जिसमे सत्ता का लालच नहीं है , क्योकि वो खुद एक बड़ा पद जो काफी ताकतवर होता है को छोड़ कर आये है और जमीनी रूप से काफी काम किया है कित्नु जिस बदलाव की वो बात कर रहे है वो ये काम अकेले नहीं कर सकते है , समग्र विकाश के लिए और ऐसे लोग की फौज वो कहा से लायेंगे , उनकी पार्टी में लगभग सभी नए है जिनमे से कई तो सता की ताकत को कभी महसूस ही नहीं किया है , वो उसे त्यागते हुए कैसे अपनाएंगे । इसके लिए तो भारतीयो का डी एन ए ही बदलना पडेगा जो भ्रटाचार का नमक खा खा कर उसका आदि हो गया है :)) ।

                                            राजनीति के इस बिसात में राजनीतिज्ञो और बाबू के बाद नंबर आएगा आम लोगो का जो कटिया डाल कर बिजली लेते है , मीटर में गड़बड़ी करके बिल कम करते है , ट्रैफिक रूल नहीं मानते है ,  जो पुरे कागजात न होने के बाद भी चाहते है कि कुछ ले दे कर उनका काम हो जाये , जो सरकारी दफ्तरों की लम्बी लाइनो से बचने के लिए दलालो का सहारा लेते है , जो घर बैठे ही ड्राइविंग लाइसेंस ले लेना चाहते है , जो अपने घरो में अवैध निर्माण करते है , पानी का गलत कनेक्शन लेते है आदि आदि क्या वो आम आदमी सुधरने के लिए तैयार है , कही ऐसा न हो जो आम आदमी वोट दे कर अरविन्द को उस गद्दी पर बैठाया है वही उनकी कड़ाई से उब कर खुद ही उन्हें गद्दी से उतार दे या ये हो सकता है कि आम आदमी ने पिछले ६६ वर्षो से जो गलती की है , उसे फिर से न दोहराए , इन दलो को फिर से अपने मुद्दो से भागने न दे,  जो सुधर गए है उन्हें बिगड़ने न दे , अपने नेताओ पर नजर रखे , अपने अधिकारो के प्रति सजग रहे , सिर्फ वोट डी कर पञ्च साल के लिए अपने हाथ न कटा ले , अपने नेताओ से सवाल करता रहे और लोकतंत्र से फिर से लोक को गायब होने का मौका न दे । तो लोगो से निवेदन है कि अपना दिल और दिमाग खुला रखे राजनीति को राजनीति की तरह ही ले सही को सही ओए गलत को गलत कहे ।


चलते चलते

               कुछ्महिनो पहले एक ब्लॉग पर पढा की सभी न्यूज चैनल हिन्दू विरोधी है और बीजेपी की खबर नहीं दिखाते है , मैंने भी अपनी गन्दी आदत के अनुसार वहा टिप्पणी दे दिया की भाई कोई भी तीज त्यौहार हो या ग्रह नक्षत्र की गड़बड़ी हिंदी न्यूज चैनलो तो इन्ही खबरो से भरेपड़े है , १५ अगस्त को जब आँख खुली और टीवी खोला तो एक बार तो मै कन्फ्यूज ही हूँ गई लगा की मै  कोमा से बाहर आई हूँ , मोदी जी प्रधानमत्री बन गए है और भाषण दे रहे है हर न्यूज चैनल पर  भाषण सीधा आ रहा था , वो कही रैली करे और उसका सीधा प्रसारण ये चैनल न करे से तो सम्भव ही नहीं है और कितना प्रसारण चाहते है । भाई साहब नाराज हो गए कह दिया कि मुझे हिन्दू धर्म छोड़ देना चाहिए हिन्दू होने के लायक नहीं हूँ , और तो और मै  देश द्रोही हूँ गद्दार हूँ , तब से दुखी थी की कोई मोदी समर्थक मिल जाये और मुझे राष्ट्रभक्ति का सटिफिकेट दे दे नहीं तो कम से कम हिन्दू होने का तो देदे मै  दोनों से निकल बाहर हो गई हूँ किन्तु वो मिल नहीं रहा था , कारण आज पता चला कि मै तो कामरेड हूँ ;-) अपने लिए ये सम्बोधन सुन कर अच्छा लगा गर्व सा हुआ बिटिया कई बार पूछ चुकी है कि मै बड़ी हो कर क्या बनूँगी क्या बताऊ उन्हें कि कुछ नहीं बनी बस उसकी मम्मी भर हूँ , अब कह सकती हूँ कि मै कामरेड बन गई :) वैसे हद है यार दुनिया की खबर लेने के चक्कर में मुझे ये भी नहीं पता चला की मै  कब से नारीवादी के साथ कामरेड भी बन गई । ब्लॉग जगत में आ कर बहुत सारे तत्व ज्ञान अपने बारे में पता चल रहा है , पता नहीं अब तक कैसे जी रही थी । निवेदन है की बताये की ये कामरेड किस धर्म जाति और देश का निवासी होता है , अपने बारे में इतनी तो  जानकारी हो :))))


नोट :-चलते चलते की बात अपने ऊपर यु ही किये गए टिप्पणी को हँसने हँसाने के लिए मजाक में लिखी गई है उसे कटाक्ष का गम्भीरता से न ले , ऐसा मेरी सहज बुद्धि कहती है ;-)

                                       





December 10, 2013

रणनीति या मौके की नजाकत - - - - -mangopeople



                                        शायद ये हमारे भारतीय राजनीति  का ऐतिहासिक समय  है ,जो न तो आजादी के बाद से आज तक आया है और न ही आगे के ६०० सालो तक आयगा जब दो राजनीतिक  दल कुर्सी और सत्ता खुद लेने के लिए नहीं बल्कि उसे न लेने के लिए बहस कर रहे  है , ये शायद पहला मौका है जब  राजनीतिक  दल पक्ष की  जगह विपक्ष में बैठने के लिए लड़ रहे है , शायद ये पहला मौका है जब पक्ष में कोई है ही नहीं और विपक्ष के लिए दो दो पार्टिया खड़ी है । किन्तु जिस तरह इस संसार में कुछ भी स्थाई नहीं है उसी तरह ये समय काल और व्यवहार भी स्थाई नहीं है , निश्चित रूप से इस त्याग के पीछे ६ महीने बाद होने वाला लोकसभा चुनाव है , जिसमे सभी साफ सुथरे दिखाई देना चाहते है ,साथ में एक  डर और भी है , भले सीडी और स्टिंग के किंग जेल में है किन्तु उनके अर्जुन एकलव्य जैसे शिष्य बाहर है क्या पता सामने वाला बिकने की  जगह   सीडी बना रहा है , आखिर अभी लोकसभा चुनाव भी तो जीतने  है , जहा कांग्रेस को बी जे पी के खिलाफ कुछ ऐसे ही सबुत चाहिए जैसे एक बार उनके पास छत्तीसगड़ में अजित जोगी के खिलाफ था , और "आप" को भी बीजेपी के लिए वैसे ही अभियान चला कर जितना है जैसा उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ जीता है , भ्रष्टाचार के आरोप लगा कर । सो बीजेपी भी फूंक फूंक कर कदम रख रही है और एक राज्य में सरकार बनाने ,जो अंततः उसकी ही होने वाली है ,के  लिए वो अपने उस खेल में पानी नहीं फेरना चाहती है जो वो देश में सरकार बनाने के लिए खले रही है । ये बात " आप " भी जानती है सो वो भी चुचाप तमाशा देख रही है और अति उत्साहित मिडिया की जमात  की तरह व्यवहार नहीं कर रही है । इन दोनों के सामने कुछ साल पहले के बिहार राज्य का उदहारण भी है की कैसे त्रिशंकु विधान सभा को रात के २ बजे भंग किया गया और नितीश की सरकार नहीं बनने दी गई और परिणाम स्वरुप हुए चुनावो में नितीश को प्रचंड बहुमत मिल गया । मजेदार स्थिति है दोनों ही बड़ी पार्टी एक ही दाव खेल रही है , देखना होगा अंत में जीत किसके हाथ लगेगी , यदि दुबारा चुनाव हुए तो । "आप " चुप है कि जब एक साल में यहाँ आ गए तो ६ महीने और बिना किसी जिम्मेदारी ( सरकार चलाने ) के वो अपना सारा समय और ऊर्जा लोकसभा के चुनावो की  तैयारी और  दूसरे राज्यो में अपनी पहुंच को बढाने के लिए कर सकते है , और बीजेपी ये दिखाने की सोच रही है की देखिये कांग्रेस के विकल्प के लिए हम सही है सच्चे ईमानदार तीसरे विकल्प की  जरुरत ही क्या है ।

                                               " आप " इतने कम समय में दिल्ली में जो जगह बनाने में कामयाब रही है उसके लिए बधाई के पात्र किन्तु याद रखिये की सत्ता के बाहर रह कर सिद्धांतो और उसूलो की बात करना आसान है किन्तु जब सत्ता हाथ में आ जाये तो उस ताकत के साथ अपना व्यवहार सामान्य रखना आसान नहीं होता है , ये सत्ता की ताकत कइयो को अपने नशे के लपेटे में ले लेती है , और ये शुरू भी हो गया , जब उनके एक विधायक ने शानदार विजय जुलुस निकाल दिया ( जहा उनका हांरे कांग्रेसी विधायक से झगड़ा भी हो गया और उन पर हारे विधायक की पत्नी से छेड़छाड़ का केस भी दर्ज हो गया  ) हा बाद में मनीष सिसोदिया ने उन्हें ऐसा न करने के लिए कह दिया , किन्तु " आप " को ये बात ध्यान में रखनी होगी की हम सभी के खून में पारम्परिक  राजनीतिक दलो  ने ऐसी बातो को भर दिया है की हम उन आडम्बरो और ताकत प्रदर्शन को भी लोकतंत्र का हिस्सा मानने लगे है । अब उनके ऊपर और जिम्मेदारी आ गई है की खुद को आम आदमी कहने वाले और अब खास बन चुके ये लोग अपना व्यवहार भी आम आदमी जैसा ही रखे और उसी नैतिक मूल्यो और सिद्धांतो की बात पर कायम रहे , जिसके दम पर वो यहाँ आये है । कुछ को छोड़ दे तो आम भारतीय इस व्यवस्था परिवर्तन और सरकारो के बदले व्यवहार के लिए तैयार है ,गेंद अब उनके पाले में है , निभा ले गए तो बड़े बन जायेंगे नहीं निभा पाये तो उनका हाल भी बाकि विकल्प बन कर उभरी तीसरी शक्तियो जैसा ही होगा । वैसे " आप " की जीत ने पुराने राजनीतिक दलो पर ये दबाव तो बना ही दिया की भ्रष्टाचारी , बाहुबली और अपराधियो को टिकट देना अब उनके लिए आसान नहीं होगा और उन्हें चुनावो में साफ सुथरी छवि वाले उम्मीदवारो को खड़ा करना होगा । देखते है की कितने राजनीतिक दल इस सबक को सिखते है ।
                                                                 

                                  बीजेपी दुखी है वो तिन राज्यो में चुनाव जीत गई उसके बाद भी मिडिया का फोकस उन पर न हो कर आम आदमी पार्टी की तरफ है , दुखी होना लाजमी है , मोदी को मीडिया का सारा एटेंशन लेनी की आदत हो गई थी अब उसका फोकस बदलना दुखी कर रहा है , और डर भी पैदा कर रहा है की कही जो लहर ,हवा चलने की बात वो अपने लिए कर रहे थे , वो कही किसी और की तरफ से न बहने लगे । डरना भी चाहिए , क्योकि वो भी कांग्रेस का विकल्प बन कर , बदलाव की बात कर और खुद को डिफरेंट कह कर इस राजनीतिक मैदान में कूदे थे , और आज स्थिति ये है कि उनका भी कांग्रेसीकरण हो गया है , नतीजा आज फिर उन्ही बातो को कह कर कोई और भी मैदान में है जो उनका खेल बुरी तरह बिगाड़ सकता है । वो तो सोच बैठे थे की बिल्ली के भाग से छीका टुटा और लोकपाल आंदोलन में बढ़ चढ़ कर अपने लोगो को हिस्सा लेनी दिया उसे कांग्रेस विरोधी  आंदोलन बनाया , किन्तु पता न था कि एक दिन वही आंदोलन उनके खिलाफ भी चला  जायेगा ,बीजेपी के लिए तो ये भष्मासुर जैसा हो गया । वैसे चाहे तो वो अभी से सबक सिख सकती है वैसे उसने प्रयास भी शुरू कर दिया था , और दिल्ली  में हर्षवर्धन जैसे साफ दिखने वाले व्यक्ति को अपना मुख्यमंत्री घोषित करके लेकिन देर से , अब ये देरी उसे लोकसभा के चुनावो में नहीं करनी चाहिए और कम से कम तब तक के लिए ये अपने कांग्रेसी चोले को उतार कर उससे अलग दिखना शुरू कर देना चाहिए ताकि दोनों को एक ही तराजू में न तौला जा सके ।

                                                 कांग्रेस तो निश्चित रूप से इस समय शॉक की स्थिति में है और उसके लिए अब बहुत देर भी हो चुकी है न केवल ६ महीने बाद होने वाले आम चुनावो के लिए बल्कि उसके बाद होने वाले कुछ अन्य राज्य के चुनावो के लिए भी जहा उसकी ही सरकार है । ये ठीक है की आत्मविश्वास बनाये रखने के लिए हम सभी सामने खड़ी चुनौती को अनदेखा करते है और दिखाते है की कुछ है ही नहीं किन्तु सच में ऐसा नहीं मान बैठते है , यही पर कांग्रेस ने गलती कर दी उसने तो कहने के साथ ही ये मान भी लिया था की मोदी और अरविंद उसके लिए कुछ है ही नहीं , ये अहंकार उसे ले डूबा और आगे भी ले डूबेगा ये तय है । राहुल आज भी सिख ही रहे है , हद हो गई अब वो साल पहले बनी पार्टी से भी सिख रहे है, उनका ये रवैया उन्हें भी ले डूबेगा और जल्द ही कांग्रेसी प्रियंका प्रियंका के नारे लगाते दिखेंगे , अच्छा हो वो जल्द सिख कर उसे आजमाना शुरू करे और पुराने घाघ कांग्रेसियो को रिटायर करके कमान पूरी तरह से अपने हाथ में ले ताकि जो वो कहते है उसे अपनी पार्टी में लागु करवाने में उन्हें कोई परेशानी न हो और हर बार कांग्रेस के विकल्प के रूप में न कोई उभरे और न उसे राजनैतिक वनवास पर जाना पड़े। अच्छा होगा की २०१४ -१९ को छोड़ उन्हें अब २०२४ की तैयारी करनी चाहिए , कांग्रेस इससे ज्यादा सत्ता से दूर नहीं रहती है और हर बार की तरह पलट कर वापस आएगी , यदि बीजेपी ने खुद से कांग्रेस को बाहर नहीं निकाला , यदि अरविंद अपने सिद्धांतो पर नहीं टिके रहे तो ।


                      व्यक्ति पूजा शायद इंसानी स्वभाव है जिसे हम कभी भी नहीं बदल सकते है , आजादी से आज तक हम यही करते रहे है , हमेसा एक चहरे के पीछे भागते है , वैसे ये चलन हमारे देश तक ही सिमित नहीं है हाल हर जगह का यही है ।  चाहे नेहरु ,इन्दिरा हो या वाजपेयी ,मोदी या  जेपी और अब अरविंद , हम  अपने ढरे पर चल रहे है । ईमानदारी से हम बता सकते है की वोट उम्मीदवारो को नहीं अरविंद , शिवराज, वसुंधरा , रमन , मोदी और चुनाव चिन्हो को पड़े । हम  लोकतंत्र के उस मौजूदा रूप के लिए नहीं बने है जो इस समय देश में लागु है । इसे देखते हुई लगता है कि वाकई समय आ गया है की इस बात पर विचार किया जाये कि क्यों न जनता अपने प्रतिनिधियो के साथ ही अपने  प्रधानमत्री या मुख्यमंत्री का चुनाव  खुद ही करे न कि उसके चुने प्रतिनीधि जो की वास्तव में भी करते नहीं है , चुने गए प्रतिनीधि सदन के नेता का चुनाव करेंगे जैसी बाते केवल संविधान में लिखा भर है असल में क्या होता है ये हम सभी को पता है । जब जनता नेता और चुनाव चिन्हो को ही वोट देती है तो उसे ही ये अधिकार मिलना चाहिए की वही सीधे अपना सर्वोच्च नेता क्यों न चुने जैसे कई अन्य देशो में चुना जाता है , कम से कम आज दिल्ली में जैसी हालत है वो तो न होगी , चुनाव के बाद ही दूसरे चुनावो की बात होने लगी एक सरकार तो बन ही जायेगी और देश को उसके पसंद का नेता मिलेगा ।

                                   कहते है की एक झूठ बार बार बोला जाये तो वही सच बन जाता है , वही हाल हम भारतीयो का है । जोड़ तोड़, खरीद फरोख्त , दल बदल , मौका परस्ती , हर हाल में सत्ता की चाहते, उसूल सिद्धांत नैतिकता बेमतलब  और राजनीति में सब जायज है जैसी बाते हम इतना देखते आ रहे है की अब  हमें वो सब भी लोकतंत्र का ही एक हिस्सा लगने लगा है । आज कितने ही आराम से हम सब और मिडिया भी खुले आम ये बाते कर रहे है की कोई भी किसी से भी समर्थन ले ले कोई किसी को भी खरीद ले और सरकार बना ले , " आप " और बीजेपी  पार्टी की नैतिकता वाली बात तो हमें हजम ही नहीं हो रही है और लोग साफ कह रहे है कि ये क्या बकवास है चुपचाप सरकार बनाओ जो भी समर्थन दे , ये तो हाल है अपने देश का और बात करते है राजनैतिक व्यवस्था को बदलने की ।

चलते चलते 

                      बीजेपी को सरकार नहीं बनानी है उसे विपक्ष में बैठना है " आप " को भी सरकार नहीं बनानी है उसे भी विपक्ष में ही बैठना है और कांग्रेस सोच रही है कि  कम्बखत दोनों को विपक्ष में ही बैठना था तो मेरी सरकार ही क्या बुरी थी , मेरा ये हाल क्यों किया । 



                                           








November 27, 2013

पुरुषो का कोई चरित्र नहीं होता है ? - - - - -mangopeople

                                 


                                                            तेजपाल के बयान के बाद एक सवाल मन में उठा रहा है कि,  क्या पुरुषो का कोई चरित्र नहीं होता है । तेजपाल के ऊपर रेप के आरोप लगने के बाद उन्होंने अपने बचाव में ये घटिया दलील दी कि , हा जो लड़की कह रही है वो हुआ किन्तु जो भी हुआ वो सहमति से हुआ । सोचती हूँ की  हम किस तरह के समाज में रह रहे है जहा एक विवाहित पुरुष अपने से आधी आयु की लड़की , अपनी बेटी की मित्र और अपने मित्र की बेटी के साथ एक सार्वजनिक जगह पर इस तरह के सम्बन्ध बनाने को कितने आराम से स्वीकार कर रहा है , किस उम्मीद में की उसके इस बयान पर समाज उसके चरित्र पर कोई उंगलिया नहीं उठाएगा , उसे अपराधी नहीं माना जायेगा , नैतिकता के सवाल नहीं खड़े कियी जायेंगे और समाज में वो,  ये स्वीकार करने के बाद भी उसी तरह स्वीकारा जायेगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं है , क्योकि वो पुरुष है । क्या पुरुषो का कोई चरित्र ही नहीं होता मतलब चरित्र जैसी चीजे क्या उनसे जुडी हुई नहीं है ये मात्र महिलाओ के एक अंग जैसा है , जो पुरुषो में नहीं पाया जाता । अब कल्पना कीजिये की  कोई स्त्री इस बात को स्वीकारे तो समाज का क्या रवैया होगा , लोगो की सोच क्या होगी , हमारे भाषायी किताबो में ऐसी महिलाओ के लिए शब्दो की कमी नहीं है और आज से नहीं हमेसा से है , जबकि पुरुषो के लिए ये एक तरह का सामाजिक मान्यता प्राप्त सम्बन्ध जैसे है , जिसके कारण हर दूसरा आरोपी पुरुष यौन शोषण , बलात्कार के आरोप लगते ही ये घटिया दलील देने लगता है की दोनों के बिच जो हुआ वो सहमति से हुआ , यदि सामाजिक रूप से ऐसे सम्बन्धो को लेकर पुरुषो को ये छूट न मिली होती तो ऐस दलील देने से पहले भी आरोपी हजार बार सोचते ।


                                  अरुंधति राय का लेख पढ़ा जिसमे वो कहती है कि मै  अभी तक चुप थी क्योकि क्योकि एक गिरते हुए मित्र पर क्या वार करना , किन्तु अब जिस तरीके से लड़की पर फांसीवादीयो से मिल कर साजिश  करने , और सब कुछ सहमति से होने की बात कर दूसरी बार उस का रेप किया जा रहा है , तो अब चुप रहना मुश्किल है , और अब समय है की सच के साथ खड़ा हुआ जाये । मै  उनकी बात से सहमत हूँ  , ऐसे मामलो में पीड़ित के लिए शिकायत करने के बाद  दर्द , परेशानी और समस्याओ का एक नया और उससे भी बड़ा दौर शुरू होता है , जो उसने पहले सहा है और जिससे लड़ना ज्यादा कठिन होता है , जब पीड़ित के ही चरित्र पर उंगलिया उठाई जाने लगती है और आरोपी के सहयोगी ज्यादा सक्रिय हो जाते है , आरोपी को बचाने के लिए , इसलिए जरुरी है की ऐसे समय में चुप रह कर मौन सहयोग की जगह हम  सभी को खुल कर पीड़ित के पक्ष में खड़ा होना चाहिए , ताकि उसे भी लगे की एक ताकतवर और अमिर आरोपी के मुकाबले में उसे जन सहयोग मिला है , समाज में भी लोग है जो उस पर विश्वास  करते है और उसके साथ खड़े है ,ताकि उसकी हिम्मत न टूटे और वो आगे अपनी लड़ाई लड़ सके । मामला कोर्ट में है जांच हो रही है इसलिए इस पर क्या कहे जैसे बेकार के बहाने बनाने की जरुरत नहीं है , खुद तेजपाल की  स्वीकृति और एक के बाद एक तहलका से अलग होते कर्मचारियो की बढती लिस्ट खुद सच को बया कर रही है ।

                                                 इस केस से एक विचार और मन में आया है कि अक्सर हम कहते है कि जीतनी ज्यादा महिलाए लडकिया काम करने के लिए बाहर आयेंगी वो उतनी ज्यादा ही सुरक्षित होती जाएँगी  , समाज की लडकियो के प्रति सोच बदलेगी , पीड़ित लडकियो  की  ताकत बनेगी और दूसरे लडकियो में भी आत्मविश्वास पैदा करेंगी ,  अब तो ये सोच गलत सी लगती है ।  पीड़ित ने न्याय के लिए जिस सोमा चौधरी से शिकायत की वो एक बार भी उसके पक्ष में खड़ा होना तो दूर उन्होंने सच को ठीक से जानने का प्रयास और कोई भी उचित कार्यवाही ही नहीं की ,  बल्कि मामले को दबाने और लीपा पोती का प्रयास किया , वो चाहती तो किसी का भी पक्ष लिए बिना तटस्थ रह कर कमिटी बना जाँच उसके हाथ में दे देती किन्तु उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया और अपने मित्र ,गॉडफादर को बचाने के प्रयास करने लगी । इस प्रकरण से क्या समझा जाये  की भले ही स्त्री कितनी भी स्वतंत्र को जाये उंचाइयो को छू ले वो पुरुष सत्ता से टकराने से डरती है , उसके प्रभाव से बाहर नहीं आ पाती है  या उसका व्यवहार भी उन्ही आम घरेलु स्त्रियो सा होता है जो अपने बेटे, भाई ,पिता ,पति के बड़े से बड़े गलतियों को छुपाने का उसे बचाने का प्रयास करती है या उसका व्यवहार भी अन्य सामान्य लोगो की तरह होता है जो हर हाल में अपने अपनो का करीबियों का ही साथ देते है चाहे वो कितने भी गलत हो , या उनका व्यवहार उस समाज की तरह ही है जो हमेसा लडकियो को ही दोष देता है जो लडकियो को ऐसे मामले में चुप रहने, ज्यादा न बोलने और जो मिला उसमे ही संतुष्ट रहने की सलाह देता है । अब सोचिये की सोमा ने जो व्यवहार किया है उससे लड़किया का आत्मविश्वास कम नहीं होगा , जब उन्हें लगेगा की एक स्त्री हो कर भी वो किसी अन्य स्त्री की परेशानी उसके आरोपो की गम्भीरता को नहीं समझा उसको सच नहीं माना , क्या अब कोई भी लड़की अपने आफिस या कही भी यदि इस तरह की परेशानी से गुजरती है तो क्या वो कभी भी अपने महिला बाँस , महिला अधिकारी या अन्य महिला से इस बात की शिकायत करने की हिम्मत कर पायेगी ।शोमा ने इस प्रकरण में बहुत ही गलत उदाहरण सामने रखा है और वो भी तब जब उनके न जाने कितने ही इंटरव्यू हम देख चुके है जिसमे वो लडकियो के यौन शोषण , बलात्कार , छेड़छाड़ के खिलाफ बोलते हुए और उनके सुरक्षा की बात करती नजर आ चुकी है , यहा तक की वो उस सम्मलेन में भी इस विषय पर विचार विमर्स कर रही थी जहा पर लड़की के साथ ये सब हुआ ।

                                                              कुल मिला कर इस प्रकरण से समाज और लोगो के खोखलेपन को और उजागर ही किया है , बताया है की नैतिकता की बड़ी बड़ी बाते करने भर से कोई चरित्रवान नहीं हो जाता है , समाज का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहा लडकिया सुरक्षित है , समाज में किसी भी वर्ग की लड़की इस तरह के अपराध से सुरक्षित नहीं  है , अब वो समय आ गया है जब लडकियो को किसी भी व्यक्ति पर भरोषा नहीं करना चाहिए और अब जरुरत ये है की लडकिया  बिना किसी शर्म , लिहाज से इतनी जोर से प्रतिरोध  करे,  ऐसे कृत्य को न कहे की किसी भी व्यक्ति की हिम्मत आगे बढ़ने की न हो , वरना आप के हलके शब्द उसकी आयु और सम्बन्धो का लिहाज और आप की शर्म आरोपी को बाद में उसे आप की सहमति का नाम देने में देर नहीं लगेगी ।


चलते चलते 
               
                 पति ने पूछा ऐसे प्रकरणो में लडकिया जोरदार तरीके से तुरंत ही विरोध क्यों नहीं करती उसे पिट दे, उसकी आँख नाक फोड़ दे  , टीवी पर महाभारत आ रहा था , मैंने कहा की पांडवो के साथ क्या क्या नहीं हुआ कितना अपमान सहना  पड़ा किन्तु उसके बाद भी युद्ध भूमि में अर्जुन कमजोर पड  गए अपनो के सामने , एक लड़की के लिए ऐसी हरकत बहुत ही डराने वाला होता है और तब तो डर और भी बढ़ जता है जब सामने कोई अपना , कोई परचित या ऐसा व्यक्ति हो जिससे आप इस चीज की उम्मीद ही न करे , फिर उनके प्रति लिहाज और उसकी और आप की इज्जत और  इस बात का डर की कोई भी आप की बात का विश्वास नहीं करेगा की आप का अपना ही कोई आप के साथ ये कर सकता है या ये व्यक्ति आप के साथ ऐसा कर सकता है , साथ ही अपराधी की बड़ी आयु , आप का उससे सम्बन्ध और समाज में उसकी हैसियत भी प्रतिरोध को प्रतिक्रिया को प्रभावित करता है , किसी अनजान के प्रति हम जल्दी आक्रमक हो सकते है जबकि जानने वाले के प्रति हम आक्रमक नहीं हो पाते है ।   आरुषि केस में एक नौकर को अपनी बेटी के कमरे में देख कर जो आक्रमकता पिता तलवार ने दिखाई वही प्रतिक्रिया वो तब नहीं दे पाते यदि उसकी जगहा उनकी भतीजा , भांजा या परचित या संबंधी जैसा कोई होता , यहाँ तक की बेटी की जगह बेटे के कमरे में नौकरानी को देखते तब भी उनकी ये प्रतिक्रिया न होती , इसमे सम्बन्धो का लिहाज भी है , समाज का डर भी और स्त्री, पुरुष बेटी , बेटी  के बिच का फर्क भी ।                                   












                                             

                                                 

November 18, 2013

खेल, सचिन , राजनीति और भारतरत्न - - - - -mangopeople

 


कुछ खबरे

१- सचिन को राज्य सभा के लिए चुना गया ।
२- "सचिन मौजूदा ५ राज्यो के चुनावो में , कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार करेंगे " - कांग्रेस के कई बड़े नेता ।
३- सचिन का किसी भी चुनाव प्रचार में आने से इंकार ।
४- राजीव शुक्ला ने कहा की सोनिया जी ने सचिन को राज्यसभा के लिए चुना ।
५- २६ जनवरी २०१४ को सचिन को भारतरत्न देने की  सम्भावना ।
६- रिटायमेंट के साथ ही सचिन को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा ।

इस खबरो से आप को अंदाजा लग ही गया होगा की मामला क्या है

नहीं समझ आया दो और खबर

७ - लता जी ने मोदी की  तारीफ की
८- कांग्रेसी नेता ने लता जी से भारत रत्न वापस करने के लिए कहा  ।

इन खबरो के बाद कांग्रेस हाय हाय के नारे लगाने वालो के लिए भी दो खबर

९- अमर्त्य सेन ने मोदी को अयोग्य कहा
१० - बी जे पी नेता ने अमर्त्य सेन से भारतरत्न वापस लेने की बात कही ।


                                            लो जी भारत रत्न भारत सरकार की  नहीं कांग्रेस और बी जे पी की निजी बपौती है , जिसे वो देना चाहे दे और लेने वाला उनका गढ़ गुलाम हुआ जो आगे से उनकी स्तुति वंदना के सिवा और कुछ नहीं बोल सकता है , उनके खिलाफ और उनके विरोधी के पक्ष में तो बिलकुल भी नहीं । जीतनी जल्दबाजी सचिन को भारत रत्न देने की कि गई उससे तो साफ लगता है की २०१४ के चुनावो से पहली ये दे कर सचिन से उसकी कीमत मांगी जायेगी और क्या , ये बताने की जरुरत नहीं है । बिना सचिन से पूछे उनकी इजाजत लिए जिस तरह कांग्रेसी नेता कैमरो पर सचिन के अपने पक्ष में चुनाव प्रचार करने की बात कह रहे थे उससे साफ था कि , सचिन को राज्य सभा का सदस्य बना कर उन पर जैसे अहसान किया गया था और अब उसकी कीमत मांगी गई थी । जैसे सचिन ने कांग्रेस के राज्य सभा की सदस्य बनने की बात मान कर कांग्रेस की सदस्यता स्वीकार कर ली हो , जब बात नहीं बनी तो कीमत और बढ़ा दी गई , और  उसके पहले बताया गया सार्वजनिक रूप से कि कैसे राज्यसभा के लिए सोनिया जी ने सचिन का नाम सुझा कर उन पर एहसान किया , जैसे वो तो इस काबिल नहीं थे  । मुझे तो नहीं लगता की सचिन के पुरे कैरियर में कही भी राज्यसभा की  सदस्यता या भारतरत्न के बिना अधूरे थे , ये दो चीज उनके जीवन में नहीं होते तो भी उनके जीवन ,मान सम्मान , उपलब्धियों में , उनके चाहने वालो के प्यार में और उनके खले के मुरीद लोगो को एक रत्ती का भी कोई फर्क पड़ता,  । यदि भारत रत्न दिए जाने के नियमो में बदलाव किया किया गया तो ये उन पर एहसान नहीं था,  ये तो उनका खेल था , उनकी खेल की दुनिया में उपलब्धि थी जिसने ऐसा करने के लिए सरकार को मजबूर किया ।  वैसे दावे से तो ये नहीं कह सकती क्या पता यु पी  ए ने काफी पहले ही इस राजनीतिक लाभ को समझा हो और उसके तहत ही ये बदलाव किये गए हो ताकि चुनावी मौसम में कुछ फायदा इस से उठाया जा सके या सचिन को अपने पाले में लाया जा सके या कम से कम लता  जी की तरह विपक्ष की बढ़ाई  करने से तो रोक ही लिया जाये :)) । जब खेलो को भी भारत रत्न के पैमाने में शामिल करने की बात हुई तब से ही ये मुद्दा छाया था की पहले किस खिलाडी को भारत रत्न दिया जाये क्रिकेट के मौजूदा महान खिलाडी सचिन को या  फिर हाकी के जादूगर ध्यान चंद को  अंत में सब इस बात पर सहमत हुए कि जब दिया जाये तो दोनों को एक साथ ही दे दिया जाये बात बराबर की विवाद ख़त्म , किन्तु अब जब नाम सामने आये तो वहा ध्यानचंद का नाम ही नहीं था , कारण क्या ध्यान चंद को पुरुस्कार देने से कोई फायदा था , कोई चुनावी माइलेज मिल रहा था , क्या वो चुनावो में कांग्रेस के पक्ष में चुनाव प्रचार कर सकते थे , जवाब नहीं नहीं नहीं तो फिर काहे का पुरस्कार  ।  हम सभी जानते है की सरकारी पुरस्कारो और पदो  का वितरण कैसे और क्यों होता है और उसका पैमाना क्या होता है , भारत रत्न भी उससे अछूता नहीं है , इसमे भी राजनीतिक माइलेज के लिए खास लोगो को देने का आरोप लगता रहा है , और इसमे कोई भी राजनीतिक दल पीछे नहीं है , अब बी जे पी भी कांग्रेस की बुराई करते हुए खुद कांग्रेसगिरी पर उतर आई और कहा दिया कि जब हमारी सरकार आएगी तो अटल जी को सम्मान दिया जायेगा । जैसे भारतरत्न पुरस्कार न हुआ अंधे के हाथ लगी रेवड़ी हो गई ।


                             मामला केवल उस राजनीति तक नहीं सिमित है , उस राजनीति में जहा मामला सचिन को अपने लपेटे में ले लेने का , उन्हें पदो पर बिठा देने का , अपने पाले में ले लेने का है वही ,खेल की  राजनीति , खेल में हो रही राजनीति , खेल में हो रही पदो की राजनीति , खिलाड़ियो के चुनावो की  राजनीति आदि आदि से उन्हें दूर रखने का भी है । सोचिये कल्पना कीजिये जरा,  सचिन बी सी सी आई में आ जाये तो , राम राम राम श्रीनिवासन का क्या होगा,  पवार साहब का क्या होगा , खेल , खिलाडी से हो रही राजनीति का क्या होगा , खिलाड़ियो के चुनाव का क्या होगा , बी सी सी आई में आ रहे अरबो रुपये का क्या होगा , आई पी एल के नाम पर बी सी सी आई में बैठे लोग जो अरबो कमा रहे है पीछे से उसका क्या होगा , और टीमो के मालिक सट्टा लगा कर , खिलाड़ियो को भरमा कर जो कमा रहे है उसका क्या होगा । दृश्य बड़ा भयानक है , उससे तो अच्छा है कि सचिन को सीढी  से ऊपर चढ़ा दो और फिर नीचे से सीढ़ी हटा दो , भाई अब तुम बहुत ऊपर चले गए है ये छोट मोटे काम हम छोटे मोटे लोगो पर छोड़ दो । जैसे राजीनीति में किसी नेता को सक्रिय राजनीति से भगाने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति का ऊँचा पद दे दिया जाता है । खेल का भला होगा , किन्तु आज खेल और खिलाड़ियो के ठेकेदारो का क्या होगा उनकी तो दूकान बंद हो जायेगी , जो आज तक कहते रहे की भारतीय टीम भारत के लिए नहीं बी सी सी आई के लिए खेलती है , वो भारत की  नहीं बी सी सी आई की टीम है , जिन्होंने बी सी सी आई को हर पारदर्शिता से दूर रखा , उसके हर काम को गोपनीय बना दिया । , क्या होगा यदि सचिन वहा चले जाये ।

                                                  पर ऐसा कुछ नहीं होगा और होना भी नहीं चाहिए मै  कभी नहीं चाहूंगी की  सचिन आपनी सकरात्मक ऊर्जा इस गन्दी , घटिया गिरी हुई राजनीति में व्यर्थ करे ,जहा उन्हें कभी कुछ करने ही न दिया जाये और वो सारा समय व्यवस्था में फैली गन्दगी को ही साफ करने में बिता दे , एक ऐसी गन्दगी का ढेर जो उनके कद से भी बड़ा है जो उन्हें भी डूबा देगा जिसका कोई छोर नहीं है ,  अच्छा हो वो पहले के जैसे ही इन सब से दूर रहे , और अपनी ऊर्जा अपने ही जैसे महान खिलाड़ियो के निर्माण में लगाये , जो न केवल खेल में बल्कि व्यक्तित्व में भी उनकी उपलब्धियों और महानता को छुए और अपने खेल से लोगो को इतना मजबूर कर दे कि कोई उनके साथ कोई राजनीति , क्षेत्रवाद या भेदभाव न कर सके । किन्तु इस राजनीति से दूर रहना भी उनके लिए बहुत आसान नहीं होगा , सोचिये की सुप्रीमो के फरमान को अनसुना करने का क्या अंजाम होगा , अमिताभ से लेकर खेमका तक सैकड़ो उदाहरण पड़े है जब आप सरकारो की  बात नहीं मानते है  या उनके विरुद्ध जाते है , या दूसरे पीला में जाते है, तो आप के साथ क्या क्या हो सकता है , सारी  महानता उपलब्धिया धरी कि धरी रहा जाती है , वैसे भी हैम अपने महान लोगो को लाइम लाइट से जाते ही भुला देने में माहिर है ।

                                     सचिन ने अपने जीवन में कई मुश्किल दौर देखे है और उससे बहादुरी से बाहर भी आये है बिना अपनी गरिमा को गिराए , अब सचिन के लिए अपने जीवन का एक सबसे मुश्किल दौर देखना है और हम देखेंगे की सचिन उसे कितनी बहादुरी नम्रता और अपनी गरिमा को कायम रखते हुए सुलझाते है । और नेताओ से अपील की कृपया करके अपने फायदे के लिए देश के बड़े सम्मानो , पुरस्कारो और महान हस्तियों को इस्तेमाल न करे आप की तो कोई गरिमा नहीं है कम से कम उसकी गरिमा का तो ख्याल रखे ।


चलते चलते 

                     जब कालेज में थी तो मित्र ने कहा कि सचिन पर कुछ लिखो मैंने जवाब दिया मै कभी भी सचिन पर कुछ भी नहीं लिखूंगी , कारण ये कि एक तो उन पर बहुत कुछ लिखा गया है अब कुछ बाकि नहीं है लिखने के लिए , दूसरे जिस जगह वो है उसके लायक मेरे पास शब्द नहीं है , तीसरे कुछ चीजे बस महसूस करने के लिए होती है थोड़ी निजी टाइप भावना, सब कुछ शब्दो में लिख पाना और लिखा देना जरुरी नहीं है । पता न था की  एक दिन सचिन और राजनीति के कॉकटेल पर लिखूंगी , उफ़ ये राजनीति क्या न करवा दे । 

मुझे बड़ी खीज होती थी हमेसा जब लोग सचिन से हर बार सेंचुरी की उम्मीद करते थे ,उससे कम की तो बात ही नहीं होती थी , आखरी पारी में भी वही उम्मीद , लोग हद कर देते है । उनकी बिदाई वाले दिन फेसबुक पर लिखा कि  "  चलो सचिन आज से आप आजाद है १२१ करोड़ उम्मीदो से , उम्मीद है आप अब हजारो सचिन का निर्माण करेंगे देश के लिए "  लो फिर से सचिन से एक और उम्मीद :))) सच में हम सब कितने एक जैसे है । 














July 08, 2013

अब तो भगवान से भी नहीं होगा जी - - - - - - - -mangopeople




                                                                    अभी तक लगता था की ये देश भगवान भरोसे चलता था किन्तु उत्तराखंड त्रासदी के बाद लगने लगा की अब तो भगवन ने भी शायद अपने हाथ खड़े कर दिए है, भाई इतनी नालायकी तो हम से भी न झेली जाएगी , ठीक है सब मेरे भरोसे छोड़ दिया है, लेकिन मेरा हाल भी बुरा कर रखा है तुम लोगो ने , मै दुनिया के शोर शराबा मोह माया त्याग हिमालय में शन्ति के लिए आ बैठा था कभी कदार कुछ भक्त आते दर्शन पाते तृप्त हो चले जाते , लेकिन तुम लोगो ने तो मुझे भी अपनी कमाई का जरिया बना लिया , तीर्थ तो कब का पीछे छुटा मेरे हिमालय, मंदिर को भी पर्यटन की जगह बना डाला , कहा एक समय तीर्थ उनके लिए था जो सांसारिक जीवन में अपनी सारी जिम्मेदारिय निभा चुके है , जिनके पास करने के लिए कुछ नहीं है अब संसार में , तो वो शांति से मेरे ध्यान मान कर सकते है बिना पीछे किसी चिंता के मेरे दर्शन को आते लेकिन यहाँ तो बच्चे से लेकर जवान तक सभी चले आ रहे है , तो अब बस भक्त गण लीजिये अपनी जिम्मेदारी और भरोसा अब ये मेरे बस का नहीं । 

                                               बोध गया के हुए बम ब्लास्ट के बाद तो ये बात और भी सच लग रहा है कि  अब भगवान भी इस देश को नहीं कर सकता है ।  निकम्मेपन और नालायकी में हम से पीछे अब कोई न होगा । अभी तक नाटक होता था की जी कोई ख़ुफ़िया जानकारी नहीं है इसलिए कब कहा बम फट जाये कहना मुश्किल होता है , लो जी अब तो हर त्रासदी की पहले से खबर भी मिलने लगी यहाँ तक की भारी बारिस की खबरे भी पूर्व में दे दी जाती है , लेकिन ये हमारी सरकारों के कान है इसे बस राजनीति की आवाज ही सुनती और सुहाती है कुछ और न सुनाई देता है न दिखाई देता है , इस बार तो हद ही हो गई आतंकवादीयो के घुसने से लेकर  उनके नाम स्केच के साथ ब्लास्ट की जगह की जानकारी भी पहले से ही दे दी गई थी उसके बाद भी वही का वही हाल ,  यहाँ तक की पहले पकडे गए आतंकवादियों के बताये दो स्थानों में से एक हैदराबाद में पहले ही ब्लास्ट हो चुका है उसके बाद भी दूसरी जगह की सुरक्षा व्यवस्था पर कोई ध्यान नहीं दिया गया , अब और क्या चाहते है सूचना के नाम पर , क्या उन्हें आतंकवादी ला कर दिया जाये कि लो भाई  ये आतंकवादी है इसे पकड़ लो । कल टीवी पर खबर देख रही थी लिखा आ रहा था की सूत्रों के मुताबित आतंकवादियों ने हताशा में ये बम ब्लस्ट किये ????? कौन सी हताशा भाई जरा समझाइयेगा  , ये की इतनी सूचना के बाद भी भारतीय सुरक्षाकर्मी हमें पकड़ नहीं पाते है किसी ब्लास्ट को रोक नहीं पाते है , हर बार लोग मारे जाते है लेकिन इस भारतीय सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता है, किस बात की हताशा है इन आतंकवादियों को कि  उनके सभी योजनाए बड़े आराम से पूरी हो जा रही है उन्हें "शहीद" होने का मौका नहीं मिल रहा है , हद है खबर देने वाले एक बार भी सोचते है की वो क्या लिख रहे है या पैसा मिला या सनसनी फ़ैलाने के लिए जो ठीक लगा बस खबर चला दी । 

                                  उस पर से ये अक्ल के अंधे ख़ुफ़िया विभाग वालो को भी दिमाग नहीं है की खबर निकाली कहा से जाये , देखिये दिग्विजय सिंह बता रहे है की ब्लास्ट का कनेक्शन कहा से है , उनके पास ऐसी ऐसी खबरे होती है की मुझे लगता है की उनका अपना ख़ुफ़िया विभाग देश के ख़ुफ़िया विभाग से ज्यादा मजबूत और तेज है,  कई बार तो कुछ  होने के पहले ही उसके होने की जानकारी मिल जाती है । मुझे तो लगता है की अगली बार एन आई ए को बम स्थल पर जाँच करने की जगह इंतज़ार करना चाहिए की राजा साहब क्या क्लू देने वाले है , या उन्हें ही जा कर उनसे पूछ लेना चाहिए की आप के पास इस बम विस्फोट से जुडी कौन कौन सी जानकारी है , ताकि सही लोगो को पकड़ा जाये , ऐसा न हो की देश की चार एजेंसिया चार तरह के लोगो को पकडे और बाद में इस बात का झगडा हो की किसी की सूचना सही थी किसके पकडे गए लोग असली वाले आतंकवादी है , हरा आतंकवाद या भगवा आतंकावाद , या लाल आतंकवाद , रंग रंगीले देश का आतंकवाद भी बड़ा रंगीला है ।
                    

                                    अब आप को क्या लग रहा है की मामला यहाँ पर ही शांत हो जायेगा , याद रखिये हर नहले के बाद एक दहला भी आता है है , इंतजार कीजिये दूसरी तरफ से भी खबर आ रही होगी बिलकुल गुप्त खबर की वर्मा में बौद्धों ने मुस्लिमो पर जो अत्याचार किया है उसके बदले के लिए भारत में बौद्धों के ऊपर और उनके धर्म स्थल को निशाना बनाया गया है , अब ये न कहियेगा की कहा वर्मा और कहा भारत , याद नहीं है तो फिर से याद कर लीजिये की मुंबई में म्यांमार से कुछ तथा कथित दंगो में हजारो मुस्लिमो के बौद्धों के द्वारा मारे जाने की फोटो आने के बाद यहाँ मुंबई में कितना बवाल मचा था कितना दंगा हुआ था । यही तो समस्या है की लोगो की यादास्त बड़ी कमजोर है इसलिए महान समझदार लोगो को आगे आ कर बताना पड़ता है लोगो को याद करना पड़ता है  । जब दिग्विजय सिंह एक दिन पहले मोदी के बयान से बम को जोड़ सकते है तो दुसरे भी  इसका कनेक्शन अपने मतलब की चीज से जोड़ दे तो कौन सा आश्चर्य की बात है और हा एक तीसरी कटेगरी भी है जो फिर से विदेशी हाथ , पकिस्तानी हाथ पैर आदि आदि का जानकारी देगा ।


                                          तो इंतज़ार कीजिये की देश की एजेंसिया जो सांप जाने के बाद लकीर पीटने की आदि हो चुकी है किसकी सूचना को ज्यादा पुख्ता मान कर किस तरह के ( रंग )  लोगो को पकड़ती है और सजा , नहीं नहीं सजा की बात न ही की जाये तो अच्छा है क्योकि वो भी यहाँ भगवान भरोसे ही होता है सारी दुनिया के सामने आतंकवादी हरकत करने वाले और फांसी की सजा की घोषणा होने के बाद भी उसे मारने के लिए भी भगवान को ऊपर दे डेंगू की बीमारी भेजनी पड़ती है , और निचे वालो को गुप्त फांसी का नाटक करके अपनी फंसी जान बचानी पड़ती है ।
                                         

                                              बिच में मरने कटने के लिए हम लल्लू , वैसाख नन्दक लोग है , जिनके जान माल की कोई कीमत नहीं है,  हम जब तक जिन्दा है तो वोट है नहीं तो मरने पर मुआवजा बन जाते है ,( हमारे टैक्स में दिए पैसे हमें ही दे कर मुआवजा कहते है )  हम आम जनता नेताओ के लिए जीता जागता चलता फिरता ए टी एम मशीने है , जो समय समय पर कभी वोट देता है कभी भ्रष्टाचार कर पैसा कमाने का मौका । तो चलती फिरती ए टी एम मशीने कोई मरा नहीं अभी तक इस नए नवेले बम विस्फोट में इसी बात की ख़ुशी मनाइये , अभी तक है जिन्दा है तो शुक्र मनाइये , फालतू के काम की जगह जरुरी काम निपटाइये  ,क्योकि अब भगवान् उसे पूरी करने का मौका आगे आप को दे न दे , इसलिए कप्यूटर पर समय बर्बाद न करके परिवार के साथ कुछ समय बिताइये ।




चलते चलते 

                      एक राजा साहब शिकार करते हुए जंगल में खो गए साथ में उनकी कानी उंगली भी चाकू से कट कर अलग हो गई ,साथ में मंत्री था , बोल जो होता है अच्छे के लिए होता है राजा को गुस्सा आया उसने मंत्री को सूखे कुए में धकेल दिया आगे बढ़ा तभी जंगलियो ने उसे पकड़ कर उसकी बलि देनी चाही लेकिन उसकी कटी  उनगलि देख छोड़ दिया की वो पूरा नहीं है , राजा भाग कर वापस आया मंत्री को कुए से निकला मंत्री ने कहा  देखा मैंने सही कहा था कि जो होता है अच्छे के लिए होता है  आप की उंगली कट कर अच्छा हुआ नहीं तो वो आप की बलि  दे देते , मुझे क़ुए  में ढकेल अच्छा किया नहीं तो आप की जगह मेरी बलि दे देते , अच्छा हुआ जंगल में खो गए तो पता चला की हमारे राज्य में ऐसे अशिक्षित लोग भी जिन्हें शिक्षा की जरुरत है , इसलिए जो होता है अच्छे के लिए होता है  । तो दिल बहलाने के लिए उसे बेफकुफ़ बनाने के लिए दुनिया  ये कहानी अच्छी है , चुपचाप आँखे बंद कर बस यही दोहराइए की जो होता है अच्छे के लिए होता है , ऑल  इज वेल,  ऑल इज  वेल :)


अपडेट - -- --- अपने रंग रंगीले देश की बात करते हुई इतने रंग के आतंकवाद की बात की एक रंग भूल गई थी  वो है नीला रंग ।  बम ब्लास्ट हुआ दूर वहा बिहार में वहा पर आर जे डी , बी जे पी  ने बेमतलब का बंद बुलाया तो भी बात समझ आती है वहा की विपक्षी पार्टी है ये उनका हक़ काम अधिकार है की ऐसे बेमतलब के काम करे किन्तु यहाँ मुंबई में बंद  हद हो गई,  आर पी आई नाम की एक दलित पार्टी जिसके मुखिया अठावले है जिन्होंने मांग की है की उन्हें महाराष्ट्र का उप मुख्यमंत्री बनाया जाय उनके सिट की संख्या शायद दहाई आकडा भी नहीं छूती है , अब आप समझ लीजिये , पहले कांग्रेस के साथ है अब शिवसेना गठबंधन में है उनके कार्यकर्ता मुंबई में दुकाने बंद करा रहे है नील रंग का झंडा लिए आम्बेडकर के नाम के खाने वालो को अब बुद्ध और बौद्ध धर्म में भी अपनी रोटी राजनीति दिख रही है , वैसे मुझे जानकारी नहीं है की बौद्ध धर्म कब से दलितों के साथ जुड़ गया केवल इसलिए की एक बड़ी संख्या में दलितों ने बौद्ध धर्म अपनाया है , लीजिये एक और कोण , ये हमला दलितों पर है  ।






July 05, 2013

हमारे पैसे फिर भ्रष्टाचार के भेट चढ़ेंगे --------------- mangopeople



खाद्य सुरक्षा बिल को लेकर दुनिया जहान के आरोप प्रत्यारोप राजनितिक दलों द्वारा एक दुसरे पर लगाया जा रहा है  ,
 अभी तक सो रहे थे क्या ९ साल क्या किया ।
चुनावों के समय इसकी याद क्यों आई ।
ये खाद्य सुरक्षा बिल नहीं वोट सुरक्षा बिल है
ये गेम चेंजर योजना का एक और गेम है ।
इस गेम के बल पर हम २०१४ क्या १९ का भी चुनाव जित जायेंगे ।
अध्यादेश क्यों लाया जा रहा है ।
संसद में बहस क्यों नहीं हो रही है ।
विरोधी संसद चलने नहीं दे रहे है ।
आदि आदि न जाने कितने ही आरोपों को आप सुना चुके होंगे , यहाँ मै राजनितिक दलों  के आरोपों की नहीं बल्कि आप आदमी की बात करने वाली हूँ   । इसमे कोई दो राय नहीं है की जब देश में लोग भूख से मर रहे हो बच्चे कुपोषित हो तो ये सरकारों की जिम्मेदारी बनती है की वो इसे रोके और कम से कम लोगो को भूख से मरने जैसी हालातो को बदले । जब देश में अनाजो का इतना भण्डार है की वो खुले में पड़े सड रहे है तो उन्हें गरीबो को दे देने में कोई बुराई नहीं है और ये एक अच्छी योजना है । एक अच्छी योजना होने के बाद भी मै इस बिल का विरोध करती हूँ और मुझे इसका विरोध करने का हक़ भी है , क्योकि इस योजना को लागु करने के लिए सरकार ने कोई भी अन्य आय के साधनों को ईजाद नहीं किया है , न तो यहाँ कोयला खदानों , और न ही २ जी ३ जी स्पैक्ट्रम को बेच कर मिले पैसे से और न ही विदेशो और देश से मिले काले धन से और न ही अपने नीजि खर्चो में कटौती करके  इस योजना को चलाने वाली है , ये योजना उन्ही पैसो से चलेगी जो हम और आप टैक्स के रूप में सरकार को देते है ताकि वो हमें सुविधा दे सके , जो हमें मिलती नहीं है । इस लिहाज से जब कोई योजना हमारे दिए पैसो से चल रही है , तो हम देखे की उस योजना का क्रियान्वयन ठीक से हो और योजना अपने काम में सफल हो  ।
     
                                                       पीछे मुड़ कर देखे तो हमारे देश में भुखमरी और कुपोषण होना ही नहीं चाहिए था , सरकार मनरेगा योजना ( वो भी हमारे ही पैसो से चलता है ) के तहत गरीबो को साल में सौ दिन रोजगार की गारंटी देती है उसके बाद भी गरीब भूख से मर रहे है क्यों , बच्चो को स्कुलो में एक समय का मुफ्त खाना मिलता है मिड डे मिल के तहत , उसके बाद भी बच्चे कुपोषित है क्यों , आगनवाड़ी के तहत गर्भवती महिलाओ को भी खाने के लिए पैसे मिलते है फिर भी कुपोषित बच्चो का जन्म और कुपोषित माँ है और जच्चे और बच्चो की मौत का आकडा कम नहीं हो रहा है क्यों , साफ है की योजनाओ को ठीक से लागु नहीं किया जा रहा है , सारा पैसा भ्रष्टाचार की भेट चढ़ रहा है  । इस बात को खुद नेता मंत्री भी जानते है और मानते है,  राजीव ने भी कहा की १ रु निचे आते आते १५ पैसा बन जाता है और दो दशक के बाद उनका बेटा कहता है की १ रु निचे आते आते १० पैसा बन जाता है , दो दशको में ५ पैसा और भ्रष्टाचार की भेट चढ़ गया , समस्या को माना तो गया किन्तु उसे ठीक करने का,  व्यवस्था को सुधारने का कोई भी काम नहीं किया गया ।  यहा कांग्रेस हाय हाय का नारा लगाने की जरुरत नहीं है पिछले दो दशको में देश में हर पार्टी ने राज किया है किसे ने भी इस काम को नहीं किया है,  सभी के राज में एक एक पैसे का भ्रष्टाचार बढ़ा ही है और इसे बढाने में सभी ने बराबर का योगदान दिया है इसलिए यहाँ मै "सरकारे या सरकारों " लिखे रही हूँ और दोष किसी एक का नहीं पूरी राजनीतिक व्यवस्था का है ।
     
                                                  दूसरी समस्या है राशन के वितरण की , सरकारी राशन वितरण की जो व्यवस्था हमारे पास पहले से है वो दुनिया के सबसे बेकार और भ्रष्ट व्यवस्था में से एक है जो पहले की योजनाओ को ही ठीक से नहीं चला रहा है ।  सरकारी राशन की दुकानों पर आने वाला ज्यादातर राशन खुले बाजार में बेच दिया जाता है , आम गरीब लोगो तक उसकी पहुँच नहीं हो पाती है,  तो भूख से मर रहे लोगो तक उसकी पहुँच कैसे होगी  । नहीं मै  आप के मोहल्ले के राशन क दूकान की बात नहीं कर रही हूँ , वहा कोई भुखमरी का शिकार नहीं हो रहा है , मै उन सुदूर गांवो आदिवासी इलाको की बात कर रही हूँ जहा सरकारी राशन की दूकान वाला माई बाप जैसे व्यवहार करता है , छोटे शहरों में तो फिर भी लोग लड़ झगड़ कर दबाव बना कर अपनी जरुरत का राशन सस्ते में सरकारी राशन की दुकानो से ले लेते है , किन्तु ये सब कुछ छोटे छोटे गांवो में आदिवासी इलाको में नहीं हो पाता है , वो पूरी तरह से उस व्यक्ति के दया पर निर्भर होते है जिसके हाथ में अनाज वितरण का काम होता है  । बिना पुरानी सड़ चुकी व्यवस्था को ठीक किये आप भूखो तक खाना कैसे पहुंचा पाएंगे ।
          
                                                                    तीसरा मुद्दा है की लोगो का चयन कैसे होगा , ये कैसे तय होगा की किन लोगो को इसके तहत अनाज दिया जाये , जिस आधार कार्ड की बात आप कर रहे है , उस तक भिखारियों , सड़क पर रहने वाले , खानाबदोशो , अनाथ बेघरो , और दूर बिहड़ो में बसे गांवो और जंगलो में रह रहे आदिवासियों की पहुँच नहीं है , उन्हें तो ये भी पता नहीं होता की सरकारों की कोई ऐसी योजनाए है , वो उसका फायदा उठा सकते है , आधार कार्ड जैसी भी की चीज है ,  ये बनता कहा है और इसके लिए जरुरी कागजात कहा से लाये । सड़क पर भीख मांगने वाले और घूम घूम कर बंजारों की तरह रहने वाले कहा से कैसे और किस आधार पर अपना आधार कार्ड बनवायेगा । यहाँ भी भ्रष्टाचार व्याप्त है , बी पी एल कार्ड हो या मनरेगा का जॉब कार्ड हो इस तरह के सभी कार्ड धड़ल्ले से गलत लोगो के बनाये जाते है , या जिनके पास अधिकार होता है वो खुद झूठे कार्ड बनवा कर उसके फायदे खुद लेता है  । यही कारण है की सही लोगो तक सरकारी मदद नहीं पहुंच पाती है और हर रोज एक नए योजना का निर्माण किरना पड़ता है किन्तु हालत नहीं बदलते है ।
               
                                                           २००९ से सरकार इस पर काम कर रही है बात कर रही है किन्तु आभी तक कुछ जरुरी मुद्दों पर उसने ध्यान ही नहीं दिया जो इस योजना को ठीक से और चलाते रहने के लिए जरुरी था , सबसे पहले की इस योजना को चलाने के लिए पैसे कहा से आयेंगे अभी तो पैसे आवंटित कर दिए गए किन्तु ये कब तक चलेंगे उसके बाद इस योजना के लिए कोई आय का साधन निर्धारित नहीं किया गया है , नतीजा कुछ साल बाद पता चले की बढ़ता बजट घाटा , सरकारी खर्चो में कटौती , सब्सिडी में कटौती आदि आदि के नाम पर सबसे पहले इस तरह को योजनाओ को ही बंद कर दिया जाये , अनाज आज भी गोदामों के न होने के कारण खुले में सड़ रहा है , उस आनाज को बचाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की , इस तरह की योजनाओ को चलाने के लिए आनाज का उत्पादन भी बढ़ना चाहिए उसके लिए भी कोई व्यवस्था नहीं है , फिर वही होगा की विदेशो से महंगे दामो में सड़े  हुए अनाज दुनिया में ब्लैकलिस्टेड हो चुके कंपनियों से मंगा कर एक और घोटालो की योजना है , ये सब नहीं किया क्यों की पहले ही मन बना लिया है की ये सब चुनावों तक रहेगा फिर इस व्यवस्था को भी कैश पैसे देने में बदल दिया जाएगा , ये लो कैश पैसा अब इससे खाना खाओ या दारू में उडाओ हमें क्या , पैसा कैश लो और वोट हमें दो , और यही कारण है की संसद का सत्र सामने होने के बाद भी अध्यादेश लाया जा रहा है ताकि इस योजना को बाद में कैश के रूप में बदलने के प्रावधानों को संसद में बदला  न जा सके । भला हो कुछ टीवी कार्यक्रमों का जिससे हम आम लोगो को पता चलता है की हो क्या रहा है , कल बताया गया की यदि इस बिल को संसद में रख कर बहस कराया गया तो इस बिल में संसोधन की मांग हो सकती है और सरकार को मजबूरी में उसमे संसोधन करना पड़  सकता है ताकि बिल पास हो सके किन्तु यदि वो अध्यादेश लाती है और उसके बाद संसद में इस पर बहस करा कर पास करती है तब इस बिल में कोई भी संसोधन नहीं हो सकता है उसे वैसे ही पास करना होगा , और सरकार नहीं चाहती है की बाद में इस योजना को अनाज के बदले कैश देने की बात को बदला जाये, क्योकि उसे भूखो को खाना देने में कोई रूचि नहीं है वो बस किसी भी तरह इसे लागु कर वोट बैंक अपनी तरफ करना चाहती है ।  सरकारों का मतलब वोट तक है,  होना भी चाहिए वो सारे काम ही वोट के लिए करते है , राजनितिक दल है तो राजनीति ही करंगे इसमे कोई बुराई नहीं है  किन्तु जिन पैसो से आज अनाज खरीद कर गरीबो को दिया जाएगा ओर भविष्य में जो पैसे कैश दिए जायेंगे , वो हमारी मेहनत के होंगे हमारे दिए टैक्स के पैसे के होंगे इसलिए माननीय नेतागढ़ आप लोगो की इस योजना को ठीक से लागू करने की इच्छाशक्ति न होने के कारण मै इस योजना का विरोध करती हूँ और साफ मना करती हूँ की मेरे पैसो को एक और भ्रष्टाचार की भेट न चढ़ाये , जिस दिन लोगो को भूख से न मरने देने की इच्छाशक्ति आ जाएगी और सच में जमीनी रूप से योजना को ठीक से लागू करनी की सोच आ जाएगी उस दिन के लिए हमारे पैसे आप के पास सुरक्षित पड़े रहे तो ही अच्छा  ।

चलते चलते             
                                      क्या सरकारे, क्या नेता क्या आम लोग जब पैसो की बात आती है तो सभी एक हो कर उसे लुटने में लग जाते है , गरीबो के लिए मदद के नाम पर आम लोगो ने भी धंधा चला रखा है की अब तो एक पैसा भी दान देने की इच्छा नहीं होती है । केदारनाथ त्रासदी के बाद साधुओ ने मंदिर लुटा , आम खच्चर वालो और स्थानीय लोगो ने यात्रियों को लुटा,  वहा व्यवस्था करने के नाम पर सरकारी अधिकारी पहले ही सरकारी खजाना लुट चुके थे , त्रासदी के बाद नेता ने प्रचार लुटा , फिर राहत के नाम पर सरकारी खजानों की लुट शुरू हुई और आगे और होती रहेगी ,  किन्तु इसमे भी आम लोग पीछे नहीं रहे , अभी फेसबुक पर कुछ लोग सामने आये है जिन्होंने बाकायदा एयरफोर्स का लोगो लगा कर आम लोगो से दान देने की गुजारिश कर दी बाकायदा एकाउंट नंबर भी दिये गए , सेना की शिकायत पर उस पेज को बंद कर दिया गया जल्द वो पकडे भी जायेंगे , एक बेटा पकड़ा गया जिसके पिता ७ साल से गायब दे और उसने कहा की हाल में केदारनाथ से गायब हुए ,  , इतने दिनों बाद इलाहबाद में एक एक कर गंगा से  १५ लोगो के शव मिलने की खबर आ रही है जिसके लिए दावा किया जा रहा है की वो केदारनाथ से बह कर आये है , अभी और न जाने कितने जिन्दा लोगो और कितने पहले से मरे लोगो के केदारनाथ से गायब होने की खबरे आएँगी , और कुछ "बदनशीब" बैठ कर घरो में मातम मना रहे है की उन्होंने भी अपने माता पिता को चार धाम की यात्रा पर केदारनाथ ...............










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पहले ही .क्यों नहीं भेज दिया । 




June 25, 2013

राजनीति चालू आहे - - - - - - mangopeople


अपडेट - आज की राजनीति  और हालात  पर बनाया गया एक सही कार्टून 




                                           ये सवाल करना की उत्तराखंड त्रासदी पर किसने पहले राजनीति शुरू की बिलकुल वैसा है है जैसा की ये पूछना की दुनिया में पहले मुर्गी आई या अंडा , शुरू जिसने भी की किन्तु उसे आगे बढ़ाने का काम दोनों ही मुख्य राष्ट्रीय राजनीतिक दल मिल कर कर रहे है , और जोरो शोरो से कर रहे है  । जवाबी हमलो की तरह बचाव कार्य किये जा रहे है और दान के बछिए के भी दांत गिने जा रहे है , मनमोहन सोनिया ने हवाई दौरा कर जनता पर उपकार किया , प्रधानमंत्री ने ये घोषणा करने से पहले की कितने हेलीकाफ्टर , डाक्टर प्रशासन के लोग बचाव कार्य में लगाये गए है ये घोषणा पहले की की उत्तराखंड के कितने हजार करोड़ की सहायता इस त्रासदी के लिए दी गई है , तो क्या अब इन पैसे से हेलीकाफ्टर ख़रीदे जायेंगे और फिर उनसे बचाव कार्य किया जाएगा , हजार करोड़ की घोषणा करना उस समय कितना जरुरी था , वो समय बचे हुई लोगो को बचाने का , घायलों को चिकित्सीय मदद का था न की पुनर्निर्माण का जहा हजारो करोड़ की जरुरत थी , जब लोग ही नहीं बचेंगे तो पुननिर्माण किसके लिए। अब ये सब देख कर बीजेपी के भावी कैसे पीछे रहते मोदी जी भी हवाई सैर कर आये , लेकिन कुछ अलग तो करना था न , खबर आई की हजारो गुजरातियों को जेम्स बांड की तरह बचा कर ले गए उसके लिए पूरा लावा लश्कर ले कर आये थे , सोच में  पड गई की कैसे बचाया होगा हजारो गुजरातियों को , चापर को निचे उतारा होगा और लोगो से पूछा होगा भाई गुजराती हो आओ चापर में बैठ जाओ जो नहीं है वो दूर रहे क्योकि फिलहाल तो हम गुजराती वोटो की कीमत ही अदा कर रहे है जिस दिन गुजरात के बाहर के लोग हमें वोट दे कर भावी से वर्तमान बना देंगे उस दिन उन की सुध ली जाएगी फिलहाल तो मै गुजरात का गुजरातियो के द्वारा गुजरातियों के लिए बना मुख्यमन्त्री हूँ सो सेवा वही तक  । अफसोस वो भूल गए की लोग पहले सेवा देखते है बाद में मेवा देते है , मोदी जी आँखों का विजन बढाइये , ममता जी जैसी हरकत न कीजिये की देश की रेल मंत्री हो कर बंगाल की रेल मंत्री सा व्यवहार करती  । भावी को वर्तमान बनाना है तो ये गुजरात गुजराती की रट छोडिये , क्षेत्रीयता से बाहर आइये अब तो आप को बीजेपी ने केन्द्रीय  राजनीति में घोषित पद दे दिया है , अब भी काहे क्षेत्रीय सोच , वो लावा लश्कर दूसरो  के लिए भी प्रयोग करना था , उस पर से भद्द पिटी की विकास और समृद्धि का गान करने वाले ने केवल २ करोड़ की मदद दी उससे कही ज्यादा तो गरीब यु पी  ने दी २५ करोड़ , तब जा कर होश आया देश की चिंता हुआ और ३ करोड़ दान में दिए और अपने हेलीकाफ्टर से बाकियों की भी मदद की पेशकस की , लीजिये अब उधर से जवाबी राजनीति शुरू हो गई की अब बिना राज्य सरकार की इजाजत कोई भी मदद नहीं करेगा , सब एक ही झंडे के निचे से गुजरेंगे , लगता है ये किस्सा लम्बे समय तक चलता रहेगा हर नहले पर एक दहला पडेगा   ।
                                                                                 
                                          अब हमारे देश में ऐसा तो हो नहीं सकता जब केन्द्रीय राजनितिक दल किसी मुद्दे पर राजनीति  कर रहे हो और कुछ दुसरे पीछे रह जाये अब ये सब देख कर भावी मुख्यमंत्रियों की दूसरी कतार में बैठे क्षेत्रीय क्षत्रप  कैसे पीछे रहते उन्होंने भी अपना पूरा सहयोग देना शुरू कर दिया । सबसे पहले आगे आये है आन्ध्र प्रदेश से चंद्रबाबू नायडू , आरोप लगाया है की तेलगू भाषी तीर्थ यात्रियों के साथ भेद भाव हो रहा है उन्हें बचाया नहीं जा रहा है, उन्हें खाने पीने  के लिए नहीं दिया जा रहा है ( टीवी पर उनके तेलगू बयान को हिंदी में लिखे गए अनुवाद के अनुसार )   । उनसे कुछ सवाल उत्तराखंड में जो बचाव कार्य चल रहा है वो सेना कर रही है , वहा प्रशासन सरकार नाम की कोई चीज मौजूद ही नहीं है ,( जितने बच के लोग आये है सभी ने एक शुर में यही बात कही ) पुलिस तो तब सामने आई जब खबर आई की मंदिर के खजाने के साथ ही बैंक के करोडो रुपये को लुट लिया गया है साथ ही यात्रियों को भी लुटा जा रहा है , तब आचानक से वहा स्थानीय पुलिस प्रकट होने लगी , और लोगो की तलासिया शुरू हो गई , अपने फिक्स पुलिसिया काम में लग गई , बाकि तो आप ज्यादा समझदार है हम क्या कहे ,  तो क्या नायडू जी ये आरोप सेना पर लगा रहे है की वो लोगो को बचाने में भेदभाव कर रही है बचाने से पहले लोगो के क्षेत्र के बारे में पता कर रही है , मुझे लगता है की बोलने से पहले लोगो को एक बार अपने कहे पर विचार कर लेना चाहिए  । ये सुनने के बाद तो ये लग रहा है की यदि कुछ समय बाद ये खबर आये की फला नेता ने आरोप लगाया है की केवल ऊँची जातियों को ही बचाया जा रहा है दलितों पिछडो को नहीं तो भारतीय राजनीति के रूप को देख कर हम में से किसी को भी इन आरोपों पर आश्चर्य नहीं होगा । शुक्र है यहाँ धर्म की बात बिच में नहीं आएगी , और न अल्पसंख्यक आयोग और उनके हितैशी  बिच में आयेंगे , और न साम्प्रदायिकता , हिन्दुवाद जैसी बात आयेगी ,  ऐसे मै सोच रही था पर ऐसा हुआ नहीं आँखे खोलने का काम किया सोसल नेटवर्किंग साईट ने , नेता तो नेता जनता कैसे पीछे रहे , जस राजा तस प्रजा , वो बाते लिख कर और लिंक दे कर उन्हें बढ़ावा नहीं देना चाहती , जिसमे दावा किया गया की हिन्दू तीर्थ स्थलों को जानबूझ  कर नुकशान पहुँचाने के लिए कुछ काम किये गए  । हद है कभी कभी लगता है की लोग कुछ ज्यादा ही दिमाग लगाते है , किन्तु वहा जहा उसकी जरुरत नहीं है ।
                                                         
                                                     कुछ बचे है जिनके पास करने और कहने के लिए कुछ है ही नहीं , और न ही राजनीति  में कुछ ज्यादा बचा है उनके लिए  वो बस यही कह कह कर कि लोगो को लाशो पर राजनीति नहीं करनी चाहिए फुटेज खा रहे है । उत्तराखंड के मुख्यमंत्री और सेना वी आई पी  को वहा आने से मना कर रहे है लेकिन राजनीति  में अपने नंबर बढाने के चक्कर में हर नेता वहा अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे है , जो बेचारे राज्यों के मुख्यमंत्री पहले इसकी जरुरत नहीं समझ रहे थे वो अब एक दुसरे की होड़ में पाला छूने उत्तराखंड जा रहे है और वहा के लिए मुसीबत ही ज्यादा बन रहे है , अच्छा तो ये होता की वो विमान बस आदि भेज कर सेना द्वारा सुरक्षित निकाल कर लाये गए लोगो को उनके घरो तक पहुँचाने का काम करते क्योकि यात्रियों के लिए भी ये काम भी मुश्किल हो रहा है जिनके पास केवल तन के कपडे बचे है वो अपने घरो तक कैसे पहुंचे ये भी कम मुसीबत की बात नहीं है, उनके लिए  ।


चलते चलते 
                  इस पूरी त्रासदी में कितने लोगो की मौत हुई और कितना नुकशान हुआ इस बात का सही सही आंकलन करना असम्भव है और इसके सही आकडे कभी भी सामने नहीं आ पाएंगे , कितनी को मौत नदी के तेज धारा में बह कर हो गई होगी और कितने हजारो फिट खाइयो में गिर कर गुम हो गए होंगे कितने तो उस मलबे ने निचे जिन्दा ही दफ़न हो गए होंगे , न जाने कितनो की लाशे बरामद होंगी और कितने बस लापता की लिस्ट में ही रह जायेंगे , अब समस्या उनके लिए शुरू होगी , जिनके अपने लापता की लिस्ट में होंगे , हमारी लालफीता शाही और व्यवस्था की मार उन पर पड़ेगी , सरकारी मुआवजा मिलने में जो परेशानी होगी तो होगी ही साथ में उन्हें बीमे की रकम जिस पर उनका सीधे हक़ बनता है,  मिलने में भी काफी परेशानी आने वाली है , सबसे पहले तो यही साबित करना होगा की वो केदारनाथ गए भी थे की नहीं जो इन हालातो में एक मुश्किल काम होगा तब जबकि वो जगह ही बर्बाद हो चूका हो जहा होने को साबित करना है , फिर ये साबित करना होगा की वहां उनकी मौत हो गई है , हालत ये है की लोगो को अपनो की लाश वहा खुद छोड़ कर आना पड़ा , उनकी मौत साबित करना तो और मुश्किल होगा जिनकी लाश भी न मिले , जिनके बारे में खुद घरवालो को ही न पता हो , सोच कर अफसोस होता है की उन घरो का क्या होगा जहा घर के कामने वाले एक मात्र सदस्य की मौत हो गई है और मुसीबत के समय के लिए परिवार के लिए कराया गया बीमें की रकम भी नहीं मिले  । दो  ऐसा ही किस्सा मुंबई में आये बाढ़ के समय सुनने को मिला जिसमे लाश नहीं मिल पाने के कारण उसकी मौत को माना ही नहीं गया और कहा गया की सात साल के बाद ही  सरकारी कानून के हिसाब से उसकी मौत की पुष्टि की जाएगी तब तक न तो उन्हें सरकारी मुआवजा मिलेगा न बीमे की रकम ( वो बेचारे माध्यम गरीब तबके से थे सो कोई अच्छा वकील भी न कर सके जो उन्हें कोई मदद दे पाता  ) । यदि पैसे के हिसाब को छोड़ भी दीजिये तो एक भावनात्मक स्थिति कैसी होगी क्या कोई माँ या पत्नी अपनों के लापता होने पर ये मान लेगी की उसके अपनो की मौत हो गई है शायद वो बाकि जिवन इस इंतज़ार में गुजार दे की हो सकता हो की उनकी जान बच गई हो हो सकता है की वो अभी घायल हो और यहाँ आने की स्थिति में न हो, हो सकता है की एक दिन वो लौट आये , उफ़ ये इंतज़ार उस मौत से बत्तर होगी उनके लिए जब उनकी एक आँखे सदा दरवाजे पर होगी ।




अब आप कहेंगे की राजनीति की इतने बाते हो गई और मैंने एक बार भी राहुल गाँधी का नाम तो लिया ही नहीं , राजनीति  कोई ऐसा विषय नहीं है जिसके कोई लिखित सिद्धांत होते हो जिसे पढ़ कर कोई राजनीति  सिख ले , ये बस देखो और सीखो के एक मात्र सिद्धांत पर चलती है , राहुल को भारतीय राजनीति में आये एक दसक से भी ऊपर का समय हो गया है और उन्हें अब तक इतनी राजनीति तो आ ही जानी चाहिए की कब क्या करना, कहना है  और कब सवालो से बड़ी आसानी से बच जाना है किन्तु आज भी उन्हें अपने माँ और कांग्रेसियों के सलाह की जरुरत पड़ती है , उन्हें आगे बढ़ने के लिए कांग्रेस के लोगो को मंच तैयार करना पड़ता है समारोह करना पड़ता है मिडिया के सामने लाना पड़ता है , और मिडिया में खुद ये बयान देना पड़ता है की " हम सभी ये काम राहुल की प्रेरणा से सोनिया जी के नेतृत्व में कर रहे है" भारतीय राजनीति को देखने वाला कोई भी बता सकता है मुझ जैसी आम सी गृहणी भी कि राहुल को ऐसे समय में अपना विदेशी दौरा बिच में छोड़ कर भारत में उपस्थित होना चाहिए था भले वो देहरादून जाते या नहीं , मिडिया में दो लाइन का बयान देना चाहिए था की हम त्रासदी में फंसे लोगो के साथ है उनकी हर सम्भव मदद कर रहे है , ऐसे समय में तो आप बड़ी आसानी से मिडिया के बाकि सवालो को ये कह कर बच सकते है कि   " ये समय राजनीतिक सवालो का  और राजनीति करने का नहीं है " ।


February 22, 2013

कितने सक्षम है युवा जीवन साथी चुनने में - - - - - -mangopeople


 नोट --- मुद्दे शायद कई आ गए है इसलिए विचार कही घुले मिले से लेगे तो झेल लीजियेगा


एल आई सी का विज्ञापन " चाचु आप को शादी के लिए कैसी लड़की चाहिए "
चाचू जबाब देते है की लड़की पैसे वाले घर से हो तो एक सपोर्ट मिलेगा , बचत करने वाली हो तो सेविंग होगी जिंदगी अच्छी चलेगी ,  पढ़ी लिखी और सरकारी नौकरी वाली हो तो बुढ़ापे की चिंता न हो । बच्चा कहता है की चाचू ये सब चाहिए तो एल आई सी की फलाना पॉलोसी ले लो और शादी ऐसी लड़की के साथ करो जो तुम्हे प्यार करे । हाल ही में रचना जी ने नारी ब्लॉग पर दो पोस्टे डाली एक में एक गांव से आ कर शहर में बसे एक युवा लडके की है जिसे गांव की अरेंज मैरिज वाली पत्नी नहीं पसंद है , तो दूसरी पोस्ट में युवा लड़की है (जो अब डाक्टर भी है ), जो अपने ९ साल के सम्बन्ध को शादी में न बदल पाने और उसे बिना बताये उसके प्रेमी के किसी और से शादी कर लेने से दुखी है , और अब अपने प्रेमी को सबक सिखाना चाहती है  ।  उस पोस्ट पर मुक्ति जी और रचना जी कहती है की समस्या ये है की आज भी बच्चो को माता पिता अपनी मर्जी का जीवन साथी नहीं चुनने देते है , उन्हें पढ़ने के लिए बाहर भेज देते है किन्तु विवाह का निर्णय खुद करते है , और इस कारण कई बार बेमेल विवाह हो जाता है , पति को पत्नी नहीं पसंद या पत्नी को पति । विवाह के लिए इन युवाओ को मर्जी को जानना चाहिए और उनका विवाह उनकी मर्जी से करना चाहिए ।

                                                    किन्तु सवाल ये है की आज के युवा अपने लिए जीवन साथी चुनने में कितने सक्षम है , जीवन साथी को लेकर उनकी सोच क्या है , क्या पढाई लिखाई करने के बाद उनके कपडे रहने खाने के ढंग के साथ की क्या जीवन साथी को लेकर उनकी सोच भी बदली है ।  विवाह के लिए जीवन साथी के रूप में आज के युवा क्या चाहते है इसकी कुछ बानगी देखिये ( अपनी छोटी बहनों के लिए कितने ही लडके देखे उनसे बात की अपनी बिरादरी से बाहर तक के लडके देखे इसलिए कुछ का निजी अनुभव है और कुछ आस पास के युवाओ से बात की है )

करीब २८  साल का युवा एयरनॉटिक  इंजिनियर ( हेलीकाप्टर के इंजिनियर को यही कहते है न ) जिनको अपने काम के लिए एक हफ्ते मुंबई और एक हफ्ते पुणे में रहना होता है के विचार , जी मुझे पढ़ी लिखी समझदार पत्नी चाहिए ,नहीं मै  उससे नौकरी नहीं कराऊंगा , आप तो टीवी सीरियल में देखा होगा की कैसे नौकरी करने वाली पत्नियों से परेशानी होने लगती है , फिर घर आओ तो घर पर कोई एक कप चाय भी पिलाने वाला न हो तो शादी से क्या फायदा । पत्नी तो मुंबई में ही रहेगी उसे पुना ले कर अप डाउन नहीं करूँगा :)
  तो भैया ये बताओ की पुने में तुमको एक हफ्ते चाय कौन पिलाएगा , क्या वहा के लिए दूसरी पत्नी रखोगे ।


बैंक में नौकरी करने वाला युवा जिसने बाकायदा अखबार में विज्ञापन दिया है , प्रोफेशनल लड़की से विवाह , जी नहीं मुझे भी अपनी पत्नी से नौकरी नहीं करवानी है , तो प्रोफशनल लड़की की बात क्यों कही , जी वो तो इसलिए की लड़की थोडा पढ़ी लिखी हो मुझे घर का आटा दाल न लाना पड़े :)
हे प्रभु घर का सामान लाने के लिए भी किसी प्रोफेशनल डिग्री की जरुरत होती है ।

अपने पिता की दुकान को अपने स्तर का न बताने वाला युवा जो बाहर जा कर मामूली सा डी  डी  पी के काम को ही बड़ा और पढ़ा लिखा काम मानता है , मुझे फलाने की पत्नी ने भी सुन्दर पत्नी चाहिए , चार दोस्तों के बीच ले जाने लायक हो  और दहेज़ भी उससे ज्यादा चाहिए वो तो दो भाई है , जबकि मै  तो इकलौता बेटा हूँ  :)
भाई पत्नी अपने लिए चाहिए या दोस्तों के लिए ।

एक बड़ी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजिनियर,  मै ५ फिट १० इंच का हु तो लड़की कम से कम ५ फिट ६-७  इंच की हो मेरी सेलरी ८ लाख है तो लड़की की कम से कम ७ लाख हो मेरा रंग गेहुआ है पर लड़की बिलकुल गोरी और सुन्दर होनी चाहिए , और खाना उसे केवल भारतीय ही नहीं विदेशी भी आना चाहिए, बिलकुल मेरी टक्कर की हो हम  दोनों चले तो लगे की भाई जोड़ी हो तो ऐसी ।
बंधू इस कद वाली और ७ लाख कमाने वाली लड़की अपने टक्कर के लडके के साथ जिसका कद ६ फिट और कमीई १०-१ 2 लाख होगी उससे करेगी तुमसे क्यों करेगी, उस पर से तुमको खाना भी लिखाएगी बना कर ,एक कुक न रख लेगी अपनी कमाई से , उसे भी तो अपनी जोड़ी लाजवाब बनानी होगी ।


लड़किया भी कम नहीं है , समय बदल गया किन्तु सफ़ेद घोड़े पर मुझे "प्यार" करने वाला मेरा "राजकुमार" आयेगा की मानसिकता अभी भी बहुत सारी लड़कियों के दिमाग से नहीं उतरा है । उत्तर भारत के एक गांव में युवती  बी ए  की पढाई आगे बस घरेलु जीवन जीने की इच्छा जीवन साथी कैसा चाहिए, सीधा जवाब था की कम से कम ३० - ४०  हजार कमाता हो उसके आगे उन्होंने कोई दूसरी बात नहीं कही । इसी तरह की एक और युवती , गोरा लम्बा हैंडसम हो और मुझे खूब प्यार करे । जो पढ़ी लिखी है नौकरी कर रही है , मुझे तो ऐसा पति चाहिए जो पढ़ा लिखा हो खुले दिमाग का आजाद ख्याल रहे,  अकेले रहता हो संयुक्त परिवार नहीं चाहिए , मुझे भी नौकरी करने दे ,  मुझे भी आजादी रहे ।  किन्तु इन्हें ये नहीं पता की पढ़े लिखे होने भर से कोई आजाद ख्याल नहीं हो जाता है और संयुक्त परिवार न भी हो तो भी पति पत्नी को आजादी दे ही दे ये भी जरुरी नहीं है । ( अब आप कह सकते है की लड़को को इतने उदहारण दिए लड़कियों के इतने कम क्यों , जवाब सीधा सा है की लड़कियों से पूछता कौन है की उन्हें कैसा जीवन साथी चाहिए उन्हें बोलने का हक़ ही कहा है , उन्हें पसंद या नापसंद किया जाता है वो किसी को पसंद या नापसंद नहीं करती है विवाह के लिए  , हा  कुछ घरो में ये स्थिति बदली है किन्तु वो संख्या बहुत ही छोटी है ) ये लिस्ट बहुत ही लम्बी है आप लोगो के पास भी इस तरह के उदहारण होंगे ।
                 

                                              आज कल के ज्यादातर ( जो कोई बड़ी डिग्रीधारी है या जो नए नए आधुनिक बने है ) युवा जीवनसाथी के रूप में चाहते क्या है इसे लेकर उनकी समझ थोड़ी उलझी हुई  है , असल में पति और पत्नी कैसे  हो इस बात को लेकर ही उनके मन में गलत धारणाये बनी हुई है , एक घिसी पिटी  सी  सोच, लकीर  है और हर युवा उसी पर चलना चाहता है , की बस मै ही अपना  जीवन साथी चुनुगा तो वो मेरे लिए ठीक होगा नहीं तो दुसरो ने किया या उसमे वो सारी खूबिया  नहीं हुई और कोई भी कमी हुई तो वो विवाह बेमेल है उसमे रहना एक समझौता है । सबसे बुरी हालत उन की है जो अभी अभी आधुनिक बने है , गांवो से पढ़ने शहर में आ गए दो चार साल की पढाई और एक  नौकरी उन्हें अचानक से गलतफहमी में डाल देते है की वो अब आधुनिक हो चुके है , खासकर विवाह के मामले में अब उन्हें उनके पसंद की या कहे उनके स्तर ? की लड़की चाहिए  ।  जबकि वास्तव में दिमागी तौर पर खासकर अपनी पत्नी को लेकर उनकी सोच में जरा भी परिवर्तन नहीं होता है , कुछ तो इस बात को भली प्रकार जानते है और भले शहर में रहे किन्तु भूल कर भी शहर की लड़की से शादी नहीं करते है , कितनो को ही जानती हूँ कहते है बाप रे मुंबई -दिल्ली  की लड़की के साथ शादी कभी नहीं यहाँ की लड़की पत्नी के रूप में हमें नहीं चलेगी , वो अपनी सोच को जानते है और ये भी जानते है की शहरो में पली बढ़ी लड़कियों की सोच को वो पचा नहीं पाएंगे , जबकि कुछ पूरी तरह से गलतफहमी में ही जीते रहते है ।  अब रचना जी ने अपनी पोस्ट में जिस युवक ने अपने बारे में लिखा है उसे ही ले लीजिये हम जिस देश में रहते है वहा किसी लड़की का शराब न पीना उसकी कमी कब से बन गई , जो युवक इतना आधुनिक बन रहा है वही एक रुढ़िवादी पति की तरह अपनी पत्नी को जरा भी सम्मान नहीं दे रहा है उसके अंग्रेजी न जानने भर को वो गावर होने की निशानी बता रहा है ,  क्या वो अपने माता पिता को भी ऐसे शब्दों से नवाजेगा शायद नहीं क्योकि वो कहने को तो आधुनिक बना गया है किन्तु दिमाग में आज भी पत्नी को लेकर वही सोच है कि उसे मेरी कठपुतली होना चाहिए उसे वही करना चाहिए जो मै कहूँ , यहाँ तक की नौकरी भी वही करनी चाहिए जो मेरी मर्जी हो , पत्नी की मर्जी पत्नी की सोच से उसे कोई लेना देना नहीं है पत्नी का अर्थ है वो महिला जो बस आज्ञाकारी गुलाम की तरह अपने पति की हर उम्मीदों पर खरा उतरे , इन सब के आलावा एक पढ़ी लिखी नौकरी कर रही लड़की को खाना बनाना और घर संभालना भी अच्छे से आना चाहिए नौकरी करने के बाद भी ये जिम्मेदारी भी केवल उसी की होगी , यहाँ पर इनकी आधुनिकता उनकी पढाई लिखाई उनका शहरीपन कहा चला जाता है, तब वो आधुनिक पति की तरह उसे अपनी भी जिम्मेदारी नहीं समझते है ।  

                           क्या खुद के पसंद से विवाह करने में कोई परेशानी ही नहीं है , क्या  खुद से अपना जीवन साथी चुनने पर उनकी सभी इच्छाए पूरी हो जाती है , जवाब सीधा सा है नहीं, ऐसा हो ही ये भी जरुरी नहीं है , बिलकुल वैसे ही जैसे अरेंज मैरिज का मतलब बस बेमेल और बच्चो की मर्जी के खिलाफ विवाह ही होता है  ।  ज्यादा क्या कहु आज कल के युवा लिव इन रिलेशन से आजम कर अपना जीवन साथी चुनना चाहते है और नतीजा क्या है , कि  आज लिव इन रिलेशन को भी कोर्ट को घरेलु हिंसा में शामिल करना पड़ा , इतने से ही आप समझ गए होंगे की मै क्या कहना चाह  रही हूँ ।   अब खुद रचना जी के दूसरी पोस्ट को देखिये जिसमे लड़की बता रही है की ९ सालो के संबंधो के बाद भी विवाह नहीं हुआ , लडके ने उसे धोखा दिया , लड़की ने अपनी मर्जी से किसी को अपना जीवन साथी चुन था,  उसका एक ये भी नतीजा हुआ , और ये धोखा दोनों तरफो से होता है । आधुनिकता के नाम पर वो ऐसे संबंधो में आ तो जाते है किन्तु उसके टूटने को वो उसी आधुनिकता के साथ पचा नहीं पाते है , तो बहुत सी जगहों पर ऐसी संबंधो के नाम पर लड़की और लड़का दोनों का शोषण होता है कभी शारीरिक और कभी आर्थिक , और जो रिश्ते विवाह तक पहुँच भी जाते है वह भी विवाह के बाद बिलकुल वैसे ही होते है जैसे किसी अरेंज मैरिज में पति पत्नी के बीच होता है । आप को हजारो जोड़े मिल जायेंगे जो बताएँगे की लव मैरिज में मैरिज के बाद लव पता नहीं कहा गया अब तो बस मैरिज ही बचा है । कारण एक ही है की जीवन साथी को लेकर युवाओ की सोच आज भी वही रुढ़िवादी है , वो भले ही कितने ही आधुनिक हो गए है ।  पति पत्नी के बिच झगड़े तनाव , विवाद , एक दूसरो क नापसंद करना और  तलाक हर तरह के विवाह में होते है ,  वो जो सिर्फ माता पिता की मर्जी से हुए , उसमे भी जो माता पिता और बच्चो दोनों की मर्जी से हुए , उसमे भी जो केवल बच्चो की मर्जी से हुए और उनमे भी जिसमे कई सालो तक लिव इन रिलेशन के बाद विवाह हुए । कोई भी विवाह ऐसा नहीं होता है जिसमे कुछ समझौते न हो , जिसमे दोनों में कोई कमिया न हो , जिसमे किसी मुद्दे पर दोनों के विचार अलग न हो ।  यदि विवाह में दो व्यक्ति है दो इकाई है तो निश्चित रूप से वहा दो तरह की सोच होगी और कभी न कभी वो आपस में टकराएंगी और दोनों को समझौता करना होगा , हा वहा पर नहीं होंगे जहा पर पत्नी को दूसरी इकाई माना ही न जाये ।

                                                कहने का अर्थ ये है की जो युवा और परिवार भी आधुनिक पढ़ा लिखा होने का दंभ भरते है उन्हें पहले अपने जीवन साथी को लेकर अपनी सोच को बदलना होगा , और उसे भी उतना ही आधुनिक बनाना होगा जितना की वो खुद को समझते है , पत्नी को सम्मान देना,  उसके अस्तित्व को स्वीकार करना , उसकी इच्छा मर्जी का भी ध्यान रखना और उसे भी परिवार की बराबरी की इकाई समझना , और खुद से कमतर न समझने की समझ बढानी होगी , पहले किसी बात में सक्षम बनिए फिर कीजिये कोई मांग । मैंने जो कहा वही सत्य नहीं है सभी की अपनी सोच है और अपवाद से दुनिया भरी पड़ी है ।

चलते चलते        
                              दो दिन पहले  एक बच्ची के जन्मदिन में गई वहा कुछ गेम के बाद लडके और लड़कियों की दो टीम बना दी गई और फिर उनके बीच  शारीरिक ताकत के गेम शुरू कर दिया गया , हम सब बेटियों वाली मम्मियो ने कहा ये गलत है लड़किया हार जायेंगी निश्चित रूप से लडके शारीरिक ताकत में उनसे ज्यादा होते है और लड़किया ऐसे गेम खेलना भी पसंद नहीं करती है , उन्हें इसकी आदत नहीं है  , उन्हें चोट लग जाएगी , किन्तु कुछ ही मिनट में हमारी ही बेटियों ने हमें गलत साबित कर दिया ५ में से ४ गेम जित गई । हम सभी अपनी बेटियों को कम आकते है , असल में हम सभी बेटियों को कम आकते है । वो गांव में पढ़ी लिखी है तो आधुनिक नहीं होगी , वो बदल नहीं सकती है , गांव की लड़की शहर में पढ़े लिखे लडके के लिए उपयुक्त पत्नी नहीं है , यदि लड़की को आधुनिक बनाना है तो उसे अपने गांव शहर से दूर जा कर ही पढाई करनी होगी तभी वो आधुनिक बनेगी , उन्हें आधुनिक बनना ही चाहिए , इसलिए की उनका विवाह किसी अच्छे लडके से हो सके , क्यों ऐसा क्यों होना चाहिए , हम क्यों अपनी बेटियों को कम आंक रहे है हम क्यों कहते है की हिंदी मीडियम से पढ़ी लड़की कुछ कर नहीं सकती है,  गांव के घरेलु वातावरण में पली लड़की कुछ कर नहीं सकती है । यदि ये सोच हमारी है तो हम से बड़ा गावर कोई नहीं है । सच कहू तो आज यदि हमारे समाज में शादिया बची है परिवार नाम की कोई चीज बची तो वो इन गांव छोटे शहरो हिंदी मीडियम में पढ़ी लडियो की वजह से है जो आज भी परिवार को बचाने और बनाये रखने की जिम्मेदारी खुद पर ही लेती है , जो जानती है की हमारा पढ़ा लिखा आधुनिक पति,  पत्नी के लिए कैसा गावर , रुढ़िवादी सोच रखता है , जो जानती है की नौकरी के बाद घर भी उसे ही संभालना है , जो जानती है की आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के बाद भी कैसे अपने वजूद को खो के जिना है , कैसे अपनी इच्छाओ , सोच को मार कर केवल पति और परिवार की सोच के हिसाब से जिन है खुद को ढालना है , और सारा जीवन सिखते सिखते बदलते बदलते बिताना है । उन्हें बदलने की कोशिश मत कीजिये क्योकि हमारे समाज की पुरुषवादी सोच पत्नी को लेकर सोच अभी नहीं बदली है , पहले उसे बदलिए बेटिया अपने आप बदल जाएँगी । मै  अपनी बेटी को रोलर स्केट सिखाने जाती थी वहा लड़को की रफ़्तार बड़ी तेज होती थी और लड़किया उस मुकाबले धीमा चलाती थी , लेकिन वो तेज रफ़्तार उन लड़को के बार बार गिर जाने का कारण होता था जबकि लड़किया गिरती नहीं थी इस संतुलन का सम्मान कीजिये उसे कम करके मत दिखाइए  :)


एक नई बात भी पता चली इस विचार विमर्श में की आप तब तक ही युवा है नए ज़माने के है जब तक आप का विवाह नहीं हुआ है ।  विवाह होने और बच्चे होने के बाद आप की आयु कितनी भी हो आप के साथ आप की सोच भी अब युवा नहीं होती है , आप पुराने और रूढ़िवादियो की श्रेणी में आ जाते है और कितनी भी आयु तक आप का विवाह न हो आप युवा ही होते है आज के ज़माने के होते है ।  जैसे ३०-३५ साल की अविवाहित युवती को लोग लड़की और बच्चे दीदी बोलते है और 22 साल में ही माँ बन गई युवती को औरत और बच्चे आंटी कहते है  :)))       
                                                        

February 14, 2013

"दी" इटैलियन जॉब -----------mangopeople

"  इटैलियन जॉब " हालीवुड की की एक प्रसिद्द और हिट फिल्म थी , इसी फिल्म का एक फ्लाप और घटिया संस्करण भारत में भी बना " प्लेयर " बिलकुल भारतीय हिंदी फिल्मो की स्टाईल में गाना बजाना सब था , गाने तो खूब हिट रहे फिल्म के,  किन्तु फिल्म बिलकुल ही फ्लाप हो गई । बहुतो ने इटैलियन जॉब का फ़िल्मी घटिया संस्करण देखा होगा और बहुतो ने नहीं किन्तु अब सभी को एक और इटैलियन जॉब का घटिया भारतीय संस्करण बिना मर्जी के देखना होगा । इटली के एक कंपनी से हेलिकॉप्टर  ख़रीदा गया और अब इटली में हुए एक जाँच से पता चला की भारत को वो   हेलिकॉप्टर  बेचने के लिए यहाँ पर लोगो को घुस दिया गया वो भी तिन सौ करोड़ से ऊपर की रकम , इटली में एक शानदार जाँच हुई और एक  सी इ ओ की गिरफ़्तारी भी हुई चार्जशीट तक बन गई । अब इस शानदार और हिट इटैलियन जांच का एक घटिया और फ्लाप भारतीय जाँच संस्करण हम सभी को जल्द ही देखने को मिलेगा ,जिसमे फिल्म के गाने की तरह घोटाले की चर्चा तो हिट रहेगी  किन्तु फिल्म की तरह जाँच फ्लाप होने वाली है , जिसका नतीजा होगा की कही कोई पैसा नहीं लिया गया , कही पैसा लेने के कोई सबुत नहीं है , हमने सारी जाँच कर ली सारे आरोप झूठे है । यानि पैसा दिया तो गया किन्तु वो लिया नहीं गया , पैसा देने वाले पैसा दे कर फंस गए उन्हें सजा भी संभव है की हो जाये किन्तु पैसा किसने लिया यही बात कभी सामने नहीं आएगा तो सजा की बात सोचना तो दूर की बात है । मजबूरी ये है की फिल्म देखने हम नहीं गए और हमारे पैसे बच गए किन्तु इस बार तो हमारे पैसे भी चले गए और जबरजस्ती हम इस घटिया जाँच संस्करण को देखने के लिए मजबूर है ।
                                   
                                                       जैसा की होना था हर घोटाले की तरह यहाँ भी अपने से पहले के विरोधियो की सरकारों पर दोषारोपण होने लगा और फट से जाँच का जिम्मेदारी सरकारी जाँच विभाग सी बी  आई को दे दी गई , एक साल से इस बारे में सवाल किये जा रहे थे , अखबारों में खबर आ रही थी किन्तु किसी भी जाँच की जरुरत नहीं समझी गई और कहा गया की एक औपचारिक रिपोर्ट मिलने के बाद कार्यवाही की जाएगी जो सरकार  को एक साल तक नहीं मिली , किन्तु वही सरकार आज मिडिया रिपोर्टो के आधार पर तुरंत जाँच के आदेश दे कर अपनी पीठ खुद थपथपा रही है । जबकि हाल तो ये है हमारे यहाँ सी बी आई की जाँच इसलिए नहीं होती की कोई पकड़ा जाये , बल्कि जाँच इसलिए होती है की कोई पकड़ा न जाये , सभी आरोपी  बाइज्जत  बरी हो जाये । कभी कभी ये भी लगता है की तुरंत सी बी आई की जाँच इसलिए बिठा दी जाती है ताकि उस घोटालो से जुड़े कागजात कही किसी और के हाथ न लग जाये , बल्कि जल्द से जल्द घोटालो से जुड़े हर कागजात जाँच के नाम पर इस सरकारी विभाग के पास आ जाये और उससे जुड़े लोगो को बचाया जा सके , यदि वो सरकारी पक्ष का है तो उस पर लगे सभी आरोपों से उसे बरी किया जाये  और यदि विरोधी पक्ष का है तो उससे सौदेबाजी की जाये , ताकि सरकारे आराम से अपना काम करती रहे । इस घोटाले को ही ले लीजिये यदि कोई गड़बड़ी पूर्व की सरकारों की थी तो वर्तमान सरकार को जाँच में क्या तकलीफ थी उसे एक साल पहले ही जाँच के आदेश दे देने थे , किन्तु ऐसा नहीं हुआ क्योकि सभी जानते है की चोर चोर मौसेरे भाई होते है , कितने ही दलों  की सरकारे आई और गई आज तक बोफोर्स घोटाले का कोई नतीजा नहीं निकला , यहाँ तक की वो सरकारे भी कुछ नहीं कर सकी जो इसे मूद्दा बना कर चुनाव लड़ी । ये सारे घोटाले राजनैतिक दलों  के लिए मात्र चुनावी मुद्दा भर होती है उन्हें न किसी जाँच से मतलब है और न किसी आरोपी के पकडे जाने से ।

                                           अन एक नया शगूफा शुरू हो गया है की मिडिया ट्रायल न हो , क्योकि ये  देश की छवि , सेना की छवि , को ख़राब कर रहा है सैनिको का मनोबल गिरेगा और किसी पूर्व  सेनाध्यक्ष से हम इस तरह सवाल नहीं कर सकते है । इसका क्या मतलब है , यही की भाई मिडिया इस बारे में बात न करे इन घोटालो को उजागर न करे , लोग अपना मुंह बंद करके रखे , ताकि जाँच के नाम पर लिपा पोती होती रहे अपने राजनैतिक समीकरण को ठीक किया जा सके , और मामला अदालत तक पहुँच भी गया तो वहा क्या हो रहा है ये बात हम 2 जी घोटाले में देख ही रहे है कि  कैसे सी बी आई के वकील तक घोटालेबाजो से मिल कर काम कर रहे है उन्हें बचाने का काम कर रहे है ।  हमारी सी बी आई तो इतनी भी सक्षम नहीं है की वो ये भी देख सके की खुद उसके ही लोग घोटालेबाजो से मिले हुए है , अभी 2 जी मामले में जिस वकील को हटाया गया है उनके बारे में बाहर के व्यक्ति ने सी बी  आई को जानकारी दी थी,  बातचीत का टेप दिया था , तब जा कर सी बी आई को इस बारे में पता चला था , अब वो उसकी भी जाँच कर रही है ।पूर्व वायु सेनाध्यक्ष कहते है की कोई सीधे मुझे कैसे घुस देने की बात कर सकता है ये सम्भव नहीं है , जबकि अभी हाल में ही एक पूर्व थल सेनाध्यक्ष ने साफ कहा था की एक ट्रक सौदे में उन्हें सीधे सीधे घुस देने की पेशकश की गई थी जब वो पद पर थे और ये बात उन्होंने रक्षा मंत्री तक को बताई थी ,( उसकी भी जाँच हुई थी और उसमे भी कुछ नहीं निकला ) अब किसकी बात को सच माना जाये ।  सेना से  जुड़ा ये कोई पहला घोटाला नहीं है , और न हीं पहला मामला है जिसमे किसी सेना से जुड़े व्यक्ति पर आरोप लग रहा है,  तहलका ने तो एक स्टिंग में दिखा भी दिया था सब कुछ कि कैसे सेना से जुड़े लोग कमीशन खाते है । इसके बाद भी सेना को ले कर इतना ढकाव छुपाव क्यों हो रहा है , बल्कि अब समय आ गया है की अब सेना के अन्दर छुप छुपा कर हो रहे इन कमीशनबाजी को भी बाहर लाया जाये और उसकी भी अच्छे से सफाई की जाये । सेना का मनोबल इसलिए नहीं गिरता है की उससे जुड़े लोगो पर आरोप लग रहे है बल्कि इससे होता है की जहा एक तरफ खबरे आती है की सेना में गोल बारूद , और गोलियों तक की कमी है वहा वी वी आई पी  के सुरक्षा के नाम पर उनके लिए इतने अरबो रुपये के     हेलिकॉप्टर ख़रीदे जा रहे है , उन पर खर्च होने वाली रकम को  घुस ले कर महंगे हथियारो  और कई बार बेकार हथियार को खरीदने में और कभी कभी बिना जरुरत के चीजो को खरीदने में खर्च किये जा रहे है । इसलिए मिडिया ट्रायल के नाम पर लोगो की आवाज को बंद करने का प्रयास सरकारे न करे तो अच्छा है , क्योकि इससे ये आवाजे तो बंद नहीं होगी उलटे सेना की छवि की लोगो की नजर में ख़राब होगी , सरकरो की छवि की तो बात छोड़ ही दीजिये वो तो कभी अच्छी थी ही नहीं । एक उम्मीद लोगो को सेना से है अब उस उम्मीद को सेना न तोड़े तो ही अच्छा होगा , और लोगो को चुप कराने के बजाये  एक बार अपनी साफ सफाई कर ले , सरकारों से तो हम इसकी भी उम्मीद नहीं कर पाते है ।


चलते चलते  

                  कांग्रेस और सरकार के ग्रह नक्षत्र ठीक नहीं चल रहे है , घोटालो के आरोपों से परेसान हो कर उसने क्या क्या नहीं किया , कैश सब्सिडी को गेम चेंजर का नाम दे कर जनता के बिच उतारा, राहुल को कांग्रेस में नंबर दो बनाया , उन्हें प्रधानमंत्री के पद के लिए प्रोजेक्ट किया , मोदी,  साम्प्रदायिकता , हिन्दू आतंकवाद का नाम ले कर चर्चा का रुख मोड़ा , पहले कसाब  और फिर अफजल को फांसी दे कर घोटालो से बड़ी मुश्किल से जनता का ध्यान हटाया था किन्तु वाह रे किस्मत घूम फिर कर फिर एक और घोटाला सामने आ गया और जनता के बिच फिर घोटाला ही मुद्दा बना गया , अब बजट एक मात्र उपाय है उसके लिए चुनावों से पहले जनता के बिच अपनी छवि को ठीक करने के लिए , देखते है की अब बजट कितना लोकलुभावना आता है या फिर एक और घोटाला उसके किये धरे पर पानी फेरने वाला है । वैसे नेताओ में अब पहले वाली काबलियत नहीं रही की घोटाला करो और उसे सामने भी न आने दो ।




February 06, 2013

कुपोषित भावनाओ को चवनप्रास खिलाये ! - - - - - mangopeople

नोट  ---- कमजोर भावनाओ वाले लोग इस लेख को न पढ़े आप की भावनाए आहत हो सकती है ।


टीवी पर आज कल एक सरकारी विज्ञापन आ रहा है ,
पापा पापा स्कुल के बच्चे मुझे बुद्धू कहते है , क्योकि मुझे जल्दी बाते समझ नहीं आती है ।
 क्या आप का बच्चा बातो को देर से समझता है पढाई में कमजोर है , बार बार बीमार पड़ता है तो जरा उसकी सेहत की जाँच कराये आप का बच्चा कुपोषण का शिकार हो सकता है , उसके खानपान पर ध्यान दे और उसे सेहतमंद बनाये ताकि वो बार बार बीमार न पड़े ।
यही विज्ञापन जरा कुछ बड़ो पर लागु करे तो कैसे होगा , क्या आप की भावनाए बार बार आहत होती है किसी फिल्म , पेंटिंग,  किताब, साहित्य को  देख, लड़कियों को नाचते गाते देख, कर उनके कपड़ो को देख तो अपनी भावनाओ  की सेहत की जाँच कराये कही वो कुपोषण का शिकार तो नहीं हो गया है , उसके खानपान पर ध्यान दे उसे इतना  सेहतमंद बनाये की वो थोडा सहनशील बने और दूसरो को भी अपनी बात कहने की आजादी दे , उनके मुंह में प्रतिबंध , फतवे,   धर्म, जाति,  संस्कृति का कपड़ा न ठुसे , आप की भावनाए है तो दूसरो की भी , इसलिए ऐसी हरकते न करे की दुनिया आप को भी बुद्धुओ की क़तार में खड़ा कर दे , और आप को अनदेखा करना शुरू कर दे ।
   
                           धोनी चवनप्रास बेचते हुए कहते है की दो चम्मच की तैयारी रखे दूर बीमारी , सोचती हूँ की क्या बाजार में ऐसा चवनप्रास मिलेगा जो लोगो की भावनाओ की सेहत ठीक कर सके जो बार बार, हर बात पर आहत हो जाती है , वैसे तो हमारे यहाँ जो बच्चा बार बार बीमार पड़ता है बार बार गिरता  पड़ता है तो लोग राय देते है की भाई ऐसे बच्चे को घर से बाहर ही न निकालो जी, जरा सी बात पर रोने लगे बीमार पड  जाये , सोचती हूँ की उन लोगो को भी ऐसी ही राय दी जानी चाहिए कि  जी आप की भावनाए बार बार आहत होती है हो तो अच्छा है की आप बन्दर बन जाये , कौन से, वही गाँधी जी वाले जो न देखता है न सुनता है और न ही फालतू का बोलता है देखेगा सुनेगा नहीं तो बोलेगा भी नहीं , फिर न आप की भावनाए आहत होगी और न कोई बवाल होगा ।
       
                                 किसी को भावनाए आहत है क्योकि इस्लाम धर्म में जन्म लेने वाली लड़कियों ने अपना एक रॉक बैंड  बना लिया "था ",( बोलिए एक साल पुराना बैंड अब "था" बन गया ) और कुछ लोगो का मानना है की इस धर्म में लड़कियों के   ( और वो भी आम सी लड़किया जिन पर इनका बस नियंत्रण बड़ी आसानी से हो सकता है ) संगीत के लिए कोई जगह नहीं है , लड़को और ताकतवर लोगो को , और उन लोगो को इसकी इजाजत है जो ऐसी लोगो की बातो को तवज्जो नहीं देते है , क्योकि मुझे उन लोगो के नाम गिनाने की जरुरत नहीं है जो इस्लाम धर्म में जन्म लेने के बाद भी सारी  उम्र संगीत के साथ ही जिए , आश्चर्य होता है की धर्म के नाम पर लड़कियों के गाने को बैन करने की बात करने वाले उन लोगो के खिलाफ कुछ नहीं कहते है जो खुलेआम उन लड़कियों को फेसबुक पर बलात्कार करने की धमकी देते है , क्या धर्म इस बात की इजाजत देता है की आप लड़कियों को इस तरह की धमकी दे ।  कुछ समय पहले कुछ लोगो को कमल हासन की फिल्म से भी इतराज था , और उस फिल्म को एक राज्य में प्रतिबंधित कर दिया गया जिसे सेंसर बोर्ड ने पास किया था , गई फिल्म देख कर आई और उन लोगो की बुद्धि पर तरस आया जिन्हें इस फिल्म से एतराज था ( हिंदी में फिल्म में कोई भी नया सेंसर नहीं किया गया है वही फिल्म देखी है जो सेंसर बोर्ड ने पास की थी और जिस पर ऐतराज जताया गया था, फिल्म तो बहुत ही शानदार थी  ) समझ नहीं आया की जो तालिबान इस्लाम के नाम पर लोगो को बेफकुफ़ बना कर अपनी निजी स्वार्थो के लिए एक युद्ध लड़ रहा है , वो नमाज पढ़ते फिल्म में नहीं दिखाया जायेगा तो क्या मंदिरों में आरती करते दिखाया जायेगा । फिल्म के खलनायक के साथ ही नायक भी इस्लाम धर्म का ही है , और साफ दिखाया जाता है की सभी मुस्लिम बुरे नहीं होते है , फिल्म में केवल और केवल तालिबानीयो को ही दिखाया गया है कही और के मुस्लिमो का जिक्र तक नहीं है उसमे ,( मेरी आँख और कान और समझ ख़राब हो तो छुट दीजियेगा मुझे ) फिर भी लोगो को किस बात का ऐतराज है , क्यों तालिबानियों को बस इस्लाम से जोड़ कर देखा जा रहा है क्या वो सच में इस्लाम का प्रतिनिधित्व करते है । यही ब्लॉग जगत में पढ़ा जहा कहा गया की मामला कोर्ट में है तो लोगो को बोलना नहीं चाहिए , क्या कोई बताएगा की फिल्म को सेंसर करने का काम कोर्ट में कब से शुरू हुआ , किसी भी फिल्म को सेंसर करने का काम सरकार द्वारा निर्मित बोर्ड का है जब वो एक बार किसी फिल्म को पास कर देती है तो उस पर कोई भी दूसरा व्यक्ति, सरकार बैन नहीं कर सकता है , किसी को आपत्ति है तो वो सेंसर बोर्ड में अपील करेगा न की कोर्ट में , और उस बोर्ड में वो लोग भी शामिल है जो इस्लाम धर्म को मानते है , इसके पहले के एक मामले में कोर्ट ने साफ कहा था की किसी भी फिल्म को सेंसर बोर्ड पास कर देती है तो कोई भी उस पर अपनी तरफ से बैन नहीं लगा सकता है यदि सरकार से कानून व्यवस्था नहीं संभलती है तो सरकार से हट जाये  । अगर हर मामले की सुनवाई कोर्ट को ही करनी है तो बाकि सारी व्यवस्थाओ को बंद कर देना चाहिए और कोर्ट को ही हर मामला सुलझाने के लिए बिठा देना चाहिए । समझ नहीं आता की किसी धर्म की छवि किस कारण ख़राब हो रही है किसी फिल्म , साहित्य , किताब के कारण या धर्म के ऐसे ठेकेदारी के कारण ।
                             
                                                 कल बेंगलोर में एक नया मामला आया , एक युवा पेंटर की कुछ तस्वीरों को आर्ट गैलरी से हटा दिया गया , क्योकि उससे किसी की भावनाए आहत हो रही थी , लगभग सभी पेंटिंग देवी देवताओ की थी जिसमे से एक या दो में उन्हें नग्न दिखाया गया था (आपत्ति करने वालो और खबर के अनुसार ) लो जी , पेंटर ने आज के ज़माने के युवा होने के बाद भी देवी देवताओ को अपना विषय बनाया उनकी अच्छी तस्वीरे बनाई सभी ने सराहा किन्तु कुछ विद्वानों को देवी देवता नहीं दिखे उन्हें बस उनकी नग्नता ही दिखाई दी वो भी मात्र एक या दो में , नजर किसकी ख़राब थी यही सोच रही हूँ , गजब की उनकी भावनाए है , और उससे गजब प्रशासन की तत्परता है , फोन पर मिली धमकी पर उसने तुरंत कार्यवाही की और पेंटिंग हटा ली गई , वैसे बता दो उन पेंटिंग को बनाने वाले ने भी हिन्दू धर्म में ही जन्म लिया है ( मै अंदाजा लगा रही हूँ क्योकि उसका पूरा नाम हिन्दू था ) । कुछ समय पहले कोर्ट में केस गया की एक गाने में राधा के सेक्सी कहा गया है लो जी किसी की भावनाए आहत हो गई , अब क्या किया जाये दुनिया में जितने भी भगवान के नाम रखे आम लोग है उन्हें या तो अपना नाम बदल लेना चाहिए या फिर अपना चरित्र बिलकुल उस भगवान जैसा ही रखना चाहिए नहीं तो लोगो की भावनाए आहत हो जाएँगी और आप पर कोर्ट केस हो सकता है ( मेरा खुद का नाम भगवान सूर्य का पर्यायवाची है , सोचती हूँ की मेरा व्यवहार उन जैसा हो जाये या उन जैसी मै  बन जाओ तो , उफ़ इतनी गर्म मिजाज ) एक बार तो एक समूह कोर्ट गया क्योकि किसी गाने के बोल थे की "कहा राजा भोज कहा गंगू तेली " उनकी भावनाए आहत हो गई उन्हें तेली कहा गया उनका मजाक उड़ाया गया , बेचारा फ़िल्मकार परेशान  बोल जज साहब इस गीत को लिखने वाले को कहा से पकड़ कर लाऊ क्योकि ये तो कहावत है और हमें नहीं पता की कहावत कैसे और किसने बनाई । सालो पहले दीपा मेहता की वाटर फिल्म को लेकर बनारस में जीतनी नौटंकिया  हुए उन सभी की गवाह मै हूँ । फिल्म का विरोध किया गया की फिल्म में दिखाया जा रहा है की बनारस में रह रही हिन्दू विधवाओ का कैसे शारीरिक शोषण किया जाता था ज़माने पहले , ये हिन्दू धर्म को बदनाम करने की साजिस है और ब्ला ब्ला , फिल्म की शूटिंग नहीं हुई ,( हमने तो अपने कॉलेज में अपने छोटे से रिसर्च का विषय ही यही बनया की "वाटर फिल्म और मिडिया की भूमिका" 100 में से 90 मिले बिलकुल सही रिसर्च और रिपोर्टिंग के लिए  ) और कुछ ही महीनो के बाद वहा एक बड़े सेक्स रैकेट का खुलासा हुआ की कैसे वहा पर नारी संरक्षण गृह में पुलिस के द्वारा भेजी गई लड़कियों का शारीरक शोषण हो रहा था उन्हें नेताओ , अधिकारियो के पास भेज जाता था । फिर वो सारे लोग अचानक से गायब हो गए जिनकी भावनाए फिल्म के कारण आहत थी , इस तरह की घटना से किसी की कोई भी भावना आहत नहीं हुई , कोई विरोध नहीं कोई प्रदर्शन नहीं  ।

                                          कोई लड़कियों के कपड़ो , पढ़ने लिखने से आहत है , पर उन्हें तमाम धर्मो  में जन्म लेने वाले उटपटांग  कपडे पहनने और लड़कियों को परेशान करने वाले लड़को और  उन अभिनेताओ से कोई परेशानी नहीं थी जो अपना शरीर बनाते ही इसलिए है ताकि उसे फिल्मो में कपडे उतार कर दिखा सके , कोई पूनम पण्डे और शर्लिन चोपड़ा के नग्नता से परेशान  है , पर उसे उन लोगो से कोई परेशानी नहीं है जो विभिन्न शोशल नेटवर्क पर कहते है की उनका बलात्कार किया जाना चाहिए , और उनके साथ दिल्ली में हुए गैंग रेप जैसा हाल करना चाहिए । अजीब सी भावनाए है लोगो की , जो कमजोर , और उनकी बात मान लेने के लिए मजबूर लोगो को देख कर ही आहत होती है , कमल हासन और उनके जैसे फिल्म निर्माता  मजबूर थे , क्योकि फिल्मो में उनका करोडो रुपया लगा होता है और एक दिन का प्रतिबन्ध उन्हें सड़क पर ला सकता है , कुछ जगहों में फिल्मे रिलीज हुई और दो चार दिन में ही उनकी पायरेटेड सीडी उस बाजार में आ जाएगी जहा फिल्म नहीं रिलीज हुई फिर होती रहे बाद में फिल्म रिलीज ,कौन थियेटर में जा कर उनकी फिल्म देखेगा , किसी फ़िल्मी नायक नायिका , गायक संगीतकार आदि आदि पर किसी का कोई बस नहीं चलता है उनके खिलाफ कही कोई फतवा आदि आदि नहीं पास किया जाता है ,क्योकि उनमे से किसी पर भी इन चीजो का फर्क नहीं होगा , सानिया ने भी अपनी स्कर्ट पर दिए फतवे को कोई तवज्जो नहीं दिया था वैसे ये भी निर्भर है की लोगो का अपना संबंध सरकारों से कैसे है मुंबई में जब शाहरुख़  का विरोध शिवसेना करती है तो पूरी मुंबई पुलिस सड़क पर आ जाती है उनकी फिल्म को ठीक से रिलीज कराने के लिया ,( और यही पुलिस राज ठाकरे और शिवसेना की गुंडा गर्दी से आम लोगो को कोई सुरक्षा नहीं प्रदान कर पाती है ) वही जब मोदी आमिर का विरोध करते है तो किसी की भी हिम्मत उनकी फिल्म गुजरात में रिलीज करने की नहीं होती है , कमल हासन के साथ भी वही हुआ , विरोध करने वाले सरकार में बैठे दल के नजदीकी थे तो लग गया फिल्म पर बैन। जिस तस्लीमा को बड़े आजाद ख्याल आदि आदि के नाम पर वाम सरकार कोलकाता में शरण देती है वही धर्म और वोट की राजनीति  सामने आने पर उन्हें वहा से भगा देती है , जो राजनैतिक दल फ़िदा हुसैन को यहाँ से भगा देती है वो सलमान रुश्दी का स्वागत करती है , और खुद को सबसे बड़ी धर्म निरपेक्ष दल कहने वाला राजनैतिक दल जो सरकार में भी है वो न तो हुसैन को और न ही सलमान रश्दी को न तसलीमा को सुरक्षा दे पाती है ।
   
                                          जिन बुद्धुओ को अभी तक बात समझ नहीं आया उनके लिए , धर्म ,जाति  और संस्कृति   के नाम पर समाज में कई ठेकेदार है जो अपनी निजी फायदे के लिए आम लोगो को उकसाते है की देखो फलाने ने हमारे धर्म के हमारी जाति खिलाफ ये कहा है वो दिखाया है , न जाने क्या लिख दिया है , विरोध विरोध विरोध बैन बैन बैन , तो भैया दिखावे पर न जाये अपनी अक्ल लगाये , पढ़े लिखे है गवारो सा व्यवहार न करे , कोई कह दे की कौवा कान ले गया तो कौवे के पीछे न भागिए अपनी कान टटोलिये,  थोड़े सहनशील बने दूसरो को भी बोलने का अपनी बात कहने का अधिकार दे आप उससे असहमत हो सकते है उसकी आलोचना भी कर सकते है , पर प्रतिबन्ध की मांग करना , या व्यक्ति को निजी रूप से परेशान करने वाला और हानि पहुँचाने वाली हरकत  मत कीजिये , बुद्धू मत बनिए अपनी कुपोषित भावनाओ को सही पोषण दीजिये  ।
                                                       
                                               ब्लॉग  जगत प्रत्यक्ष उदहारण है जहा हम सभी दूसरो की बातो से सहमत न होने पर उनकी आलोचना करते है उनसे अपनी असहमति जताते है , किन्तु किसी को बैन नहीं करते है , हद हुई तो अनदेखा करना शुरू कर देते है समझ जाते है की अब उस तरफ देखना ही नहीं है , बात अगर बस ध्यान खीचने के लिए बेमतलब की होगी तो अपने आप की बंद हो जाएगी । यही बात समाज में भी लागु कीजिये , कोई बात आप को पसंद नहीं आती है तो आप उससे असहमति प्रकट कीजिये उसकी आलोचना कीजिये किन्तु किसी का मुंह बंद करने का प्रयास मत कीजिये ।


चलते चलते 
                 अभी हाल में ही टीवी पर एक फिल्म देखी  इंगलिस विन्गलिस साथ में पतिदेव को भी बिठा लिया , फिल्म के पहले ही दृश्य में दिखाया जाता है की श्री देवी सुबह बिस्तर से उठ कर अपने लिए कॉफ़ी बनाती है फिर अखबार ले कर जैसे ही बैठती है की उनकी सास आ जाती है वो कॉफ़ी और अख़बार छोड़कर उन्हें चाय बना कर देती है फिर वापस कॉफ़ी पिने और अखबार पढ़ने के लिए बैठती है तो पति और बच्चे उठ जाते है वो कॉफ़ी और अखबर छोड़ कर उनके काम में लग जाती है , मैंने पतिदेव से कहा की बताओ क्या समझे क्या दिखाया जा रहा है,  तो बोले की यही की वो खुद कॉफ़ी पी रही है और सास को चाय दे रही है , मै  मुस्कराई और कहा नहीं वो दिखा रही है की एक आम गृहणी आराम से सुबह  एक कप कॉफ़ी नहीं पी  सकती अखबार नहीं पढ़ सकती उसके लिए उसका परिवार उससे ज्यादा महत्व रखता है उनके काम ज्यादा महत्व रखते है उसके आराम और काम से । सोचने लगी की बात बात पर जो आम आदमी मौका परस्तो की बातो में आ कर चीजो का विरोध करने लगता है क्या उसे कलाकार और उसकी कृति की इतनी समझ होती है की वो क्या दिखाना चाह रहा है , क्या कहना चाह  रहा है , शायद नहीं ।


  स्पष्टीकरण ---- लेख किसी की भावनाए आहत करने के लिए नहीं लिखी गई है , बात को समझाने के लिए लिखी गई है फिर भी यदि किसी को भावनाए आहत होती है तो मेरी माने आप की भावना जरुरत से ज्यादा कुपोषित हो गई है , अपनी भावनाओ को आप दो नहीं चार चम्मच चवनप्रास खिलाए, वैसे चवनप्रास मिल जाये तो थोडा मुझे भी दीजियेगा  :)