February 22, 2013

कितने सक्षम है युवा जीवन साथी चुनने में - - - - - -mangopeople


 नोट --- मुद्दे शायद कई आ गए है इसलिए विचार कही घुले मिले से लेगे तो झेल लीजियेगा


एल आई सी का विज्ञापन " चाचु आप को शादी के लिए कैसी लड़की चाहिए "
चाचू जबाब देते है की लड़की पैसे वाले घर से हो तो एक सपोर्ट मिलेगा , बचत करने वाली हो तो सेविंग होगी जिंदगी अच्छी चलेगी ,  पढ़ी लिखी और सरकारी नौकरी वाली हो तो बुढ़ापे की चिंता न हो । बच्चा कहता है की चाचू ये सब चाहिए तो एल आई सी की फलाना पॉलोसी ले लो और शादी ऐसी लड़की के साथ करो जो तुम्हे प्यार करे । हाल ही में रचना जी ने नारी ब्लॉग पर दो पोस्टे डाली एक में एक गांव से आ कर शहर में बसे एक युवा लडके की है जिसे गांव की अरेंज मैरिज वाली पत्नी नहीं पसंद है , तो दूसरी पोस्ट में युवा लड़की है (जो अब डाक्टर भी है ), जो अपने ९ साल के सम्बन्ध को शादी में न बदल पाने और उसे बिना बताये उसके प्रेमी के किसी और से शादी कर लेने से दुखी है , और अब अपने प्रेमी को सबक सिखाना चाहती है  ।  उस पोस्ट पर मुक्ति जी और रचना जी कहती है की समस्या ये है की आज भी बच्चो को माता पिता अपनी मर्जी का जीवन साथी नहीं चुनने देते है , उन्हें पढ़ने के लिए बाहर भेज देते है किन्तु विवाह का निर्णय खुद करते है , और इस कारण कई बार बेमेल विवाह हो जाता है , पति को पत्नी नहीं पसंद या पत्नी को पति । विवाह के लिए इन युवाओ को मर्जी को जानना चाहिए और उनका विवाह उनकी मर्जी से करना चाहिए ।

                                                    किन्तु सवाल ये है की आज के युवा अपने लिए जीवन साथी चुनने में कितने सक्षम है , जीवन साथी को लेकर उनकी सोच क्या है , क्या पढाई लिखाई करने के बाद उनके कपडे रहने खाने के ढंग के साथ की क्या जीवन साथी को लेकर उनकी सोच भी बदली है ।  विवाह के लिए जीवन साथी के रूप में आज के युवा क्या चाहते है इसकी कुछ बानगी देखिये ( अपनी छोटी बहनों के लिए कितने ही लडके देखे उनसे बात की अपनी बिरादरी से बाहर तक के लडके देखे इसलिए कुछ का निजी अनुभव है और कुछ आस पास के युवाओ से बात की है )

करीब २८  साल का युवा एयरनॉटिक  इंजिनियर ( हेलीकाप्टर के इंजिनियर को यही कहते है न ) जिनको अपने काम के लिए एक हफ्ते मुंबई और एक हफ्ते पुणे में रहना होता है के विचार , जी मुझे पढ़ी लिखी समझदार पत्नी चाहिए ,नहीं मै  उससे नौकरी नहीं कराऊंगा , आप तो टीवी सीरियल में देखा होगा की कैसे नौकरी करने वाली पत्नियों से परेशानी होने लगती है , फिर घर आओ तो घर पर कोई एक कप चाय भी पिलाने वाला न हो तो शादी से क्या फायदा । पत्नी तो मुंबई में ही रहेगी उसे पुना ले कर अप डाउन नहीं करूँगा :)
  तो भैया ये बताओ की पुने में तुमको एक हफ्ते चाय कौन पिलाएगा , क्या वहा के लिए दूसरी पत्नी रखोगे ।


बैंक में नौकरी करने वाला युवा जिसने बाकायदा अखबार में विज्ञापन दिया है , प्रोफेशनल लड़की से विवाह , जी नहीं मुझे भी अपनी पत्नी से नौकरी नहीं करवानी है , तो प्रोफशनल लड़की की बात क्यों कही , जी वो तो इसलिए की लड़की थोडा पढ़ी लिखी हो मुझे घर का आटा दाल न लाना पड़े :)
हे प्रभु घर का सामान लाने के लिए भी किसी प्रोफेशनल डिग्री की जरुरत होती है ।

अपने पिता की दुकान को अपने स्तर का न बताने वाला युवा जो बाहर जा कर मामूली सा डी  डी  पी के काम को ही बड़ा और पढ़ा लिखा काम मानता है , मुझे फलाने की पत्नी ने भी सुन्दर पत्नी चाहिए , चार दोस्तों के बीच ले जाने लायक हो  और दहेज़ भी उससे ज्यादा चाहिए वो तो दो भाई है , जबकि मै  तो इकलौता बेटा हूँ  :)
भाई पत्नी अपने लिए चाहिए या दोस्तों के लिए ।

एक बड़ी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजिनियर,  मै ५ फिट १० इंच का हु तो लड़की कम से कम ५ फिट ६-७  इंच की हो मेरी सेलरी ८ लाख है तो लड़की की कम से कम ७ लाख हो मेरा रंग गेहुआ है पर लड़की बिलकुल गोरी और सुन्दर होनी चाहिए , और खाना उसे केवल भारतीय ही नहीं विदेशी भी आना चाहिए, बिलकुल मेरी टक्कर की हो हम  दोनों चले तो लगे की भाई जोड़ी हो तो ऐसी ।
बंधू इस कद वाली और ७ लाख कमाने वाली लड़की अपने टक्कर के लडके के साथ जिसका कद ६ फिट और कमीई १०-१ 2 लाख होगी उससे करेगी तुमसे क्यों करेगी, उस पर से तुमको खाना भी लिखाएगी बना कर ,एक कुक न रख लेगी अपनी कमाई से , उसे भी तो अपनी जोड़ी लाजवाब बनानी होगी ।


लड़किया भी कम नहीं है , समय बदल गया किन्तु सफ़ेद घोड़े पर मुझे "प्यार" करने वाला मेरा "राजकुमार" आयेगा की मानसिकता अभी भी बहुत सारी लड़कियों के दिमाग से नहीं उतरा है । उत्तर भारत के एक गांव में युवती  बी ए  की पढाई आगे बस घरेलु जीवन जीने की इच्छा जीवन साथी कैसा चाहिए, सीधा जवाब था की कम से कम ३० - ४०  हजार कमाता हो उसके आगे उन्होंने कोई दूसरी बात नहीं कही । इसी तरह की एक और युवती , गोरा लम्बा हैंडसम हो और मुझे खूब प्यार करे । जो पढ़ी लिखी है नौकरी कर रही है , मुझे तो ऐसा पति चाहिए जो पढ़ा लिखा हो खुले दिमाग का आजाद ख्याल रहे,  अकेले रहता हो संयुक्त परिवार नहीं चाहिए , मुझे भी नौकरी करने दे ,  मुझे भी आजादी रहे ।  किन्तु इन्हें ये नहीं पता की पढ़े लिखे होने भर से कोई आजाद ख्याल नहीं हो जाता है और संयुक्त परिवार न भी हो तो भी पति पत्नी को आजादी दे ही दे ये भी जरुरी नहीं है । ( अब आप कह सकते है की लड़को को इतने उदहारण दिए लड़कियों के इतने कम क्यों , जवाब सीधा सा है की लड़कियों से पूछता कौन है की उन्हें कैसा जीवन साथी चाहिए उन्हें बोलने का हक़ ही कहा है , उन्हें पसंद या नापसंद किया जाता है वो किसी को पसंद या नापसंद नहीं करती है विवाह के लिए  , हा  कुछ घरो में ये स्थिति बदली है किन्तु वो संख्या बहुत ही छोटी है ) ये लिस्ट बहुत ही लम्बी है आप लोगो के पास भी इस तरह के उदहारण होंगे ।
                 

                                              आज कल के ज्यादातर ( जो कोई बड़ी डिग्रीधारी है या जो नए नए आधुनिक बने है ) युवा जीवनसाथी के रूप में चाहते क्या है इसे लेकर उनकी समझ थोड़ी उलझी हुई  है , असल में पति और पत्नी कैसे  हो इस बात को लेकर ही उनके मन में गलत धारणाये बनी हुई है , एक घिसी पिटी  सी  सोच, लकीर  है और हर युवा उसी पर चलना चाहता है , की बस मै ही अपना  जीवन साथी चुनुगा तो वो मेरे लिए ठीक होगा नहीं तो दुसरो ने किया या उसमे वो सारी खूबिया  नहीं हुई और कोई भी कमी हुई तो वो विवाह बेमेल है उसमे रहना एक समझौता है । सबसे बुरी हालत उन की है जो अभी अभी आधुनिक बने है , गांवो से पढ़ने शहर में आ गए दो चार साल की पढाई और एक  नौकरी उन्हें अचानक से गलतफहमी में डाल देते है की वो अब आधुनिक हो चुके है , खासकर विवाह के मामले में अब उन्हें उनके पसंद की या कहे उनके स्तर ? की लड़की चाहिए  ।  जबकि वास्तव में दिमागी तौर पर खासकर अपनी पत्नी को लेकर उनकी सोच में जरा भी परिवर्तन नहीं होता है , कुछ तो इस बात को भली प्रकार जानते है और भले शहर में रहे किन्तु भूल कर भी शहर की लड़की से शादी नहीं करते है , कितनो को ही जानती हूँ कहते है बाप रे मुंबई -दिल्ली  की लड़की के साथ शादी कभी नहीं यहाँ की लड़की पत्नी के रूप में हमें नहीं चलेगी , वो अपनी सोच को जानते है और ये भी जानते है की शहरो में पली बढ़ी लड़कियों की सोच को वो पचा नहीं पाएंगे , जबकि कुछ पूरी तरह से गलतफहमी में ही जीते रहते है ।  अब रचना जी ने अपनी पोस्ट में जिस युवक ने अपने बारे में लिखा है उसे ही ले लीजिये हम जिस देश में रहते है वहा किसी लड़की का शराब न पीना उसकी कमी कब से बन गई , जो युवक इतना आधुनिक बन रहा है वही एक रुढ़िवादी पति की तरह अपनी पत्नी को जरा भी सम्मान नहीं दे रहा है उसके अंग्रेजी न जानने भर को वो गावर होने की निशानी बता रहा है ,  क्या वो अपने माता पिता को भी ऐसे शब्दों से नवाजेगा शायद नहीं क्योकि वो कहने को तो आधुनिक बना गया है किन्तु दिमाग में आज भी पत्नी को लेकर वही सोच है कि उसे मेरी कठपुतली होना चाहिए उसे वही करना चाहिए जो मै कहूँ , यहाँ तक की नौकरी भी वही करनी चाहिए जो मेरी मर्जी हो , पत्नी की मर्जी पत्नी की सोच से उसे कोई लेना देना नहीं है पत्नी का अर्थ है वो महिला जो बस आज्ञाकारी गुलाम की तरह अपने पति की हर उम्मीदों पर खरा उतरे , इन सब के आलावा एक पढ़ी लिखी नौकरी कर रही लड़की को खाना बनाना और घर संभालना भी अच्छे से आना चाहिए नौकरी करने के बाद भी ये जिम्मेदारी भी केवल उसी की होगी , यहाँ पर इनकी आधुनिकता उनकी पढाई लिखाई उनका शहरीपन कहा चला जाता है, तब वो आधुनिक पति की तरह उसे अपनी भी जिम्मेदारी नहीं समझते है ।  

                           क्या खुद के पसंद से विवाह करने में कोई परेशानी ही नहीं है , क्या  खुद से अपना जीवन साथी चुनने पर उनकी सभी इच्छाए पूरी हो जाती है , जवाब सीधा सा है नहीं, ऐसा हो ही ये भी जरुरी नहीं है , बिलकुल वैसे ही जैसे अरेंज मैरिज का मतलब बस बेमेल और बच्चो की मर्जी के खिलाफ विवाह ही होता है  ।  ज्यादा क्या कहु आज कल के युवा लिव इन रिलेशन से आजम कर अपना जीवन साथी चुनना चाहते है और नतीजा क्या है , कि  आज लिव इन रिलेशन को भी कोर्ट को घरेलु हिंसा में शामिल करना पड़ा , इतने से ही आप समझ गए होंगे की मै क्या कहना चाह  रही हूँ ।   अब खुद रचना जी के दूसरी पोस्ट को देखिये जिसमे लड़की बता रही है की ९ सालो के संबंधो के बाद भी विवाह नहीं हुआ , लडके ने उसे धोखा दिया , लड़की ने अपनी मर्जी से किसी को अपना जीवन साथी चुन था,  उसका एक ये भी नतीजा हुआ , और ये धोखा दोनों तरफो से होता है । आधुनिकता के नाम पर वो ऐसे संबंधो में आ तो जाते है किन्तु उसके टूटने को वो उसी आधुनिकता के साथ पचा नहीं पाते है , तो बहुत सी जगहों पर ऐसी संबंधो के नाम पर लड़की और लड़का दोनों का शोषण होता है कभी शारीरिक और कभी आर्थिक , और जो रिश्ते विवाह तक पहुँच भी जाते है वह भी विवाह के बाद बिलकुल वैसे ही होते है जैसे किसी अरेंज मैरिज में पति पत्नी के बीच होता है । आप को हजारो जोड़े मिल जायेंगे जो बताएँगे की लव मैरिज में मैरिज के बाद लव पता नहीं कहा गया अब तो बस मैरिज ही बचा है । कारण एक ही है की जीवन साथी को लेकर युवाओ की सोच आज भी वही रुढ़िवादी है , वो भले ही कितने ही आधुनिक हो गए है ।  पति पत्नी के बिच झगड़े तनाव , विवाद , एक दूसरो क नापसंद करना और  तलाक हर तरह के विवाह में होते है ,  वो जो सिर्फ माता पिता की मर्जी से हुए , उसमे भी जो माता पिता और बच्चो दोनों की मर्जी से हुए , उसमे भी जो केवल बच्चो की मर्जी से हुए और उनमे भी जिसमे कई सालो तक लिव इन रिलेशन के बाद विवाह हुए । कोई भी विवाह ऐसा नहीं होता है जिसमे कुछ समझौते न हो , जिसमे दोनों में कोई कमिया न हो , जिसमे किसी मुद्दे पर दोनों के विचार अलग न हो ।  यदि विवाह में दो व्यक्ति है दो इकाई है तो निश्चित रूप से वहा दो तरह की सोच होगी और कभी न कभी वो आपस में टकराएंगी और दोनों को समझौता करना होगा , हा वहा पर नहीं होंगे जहा पर पत्नी को दूसरी इकाई माना ही न जाये ।

                                                कहने का अर्थ ये है की जो युवा और परिवार भी आधुनिक पढ़ा लिखा होने का दंभ भरते है उन्हें पहले अपने जीवन साथी को लेकर अपनी सोच को बदलना होगा , और उसे भी उतना ही आधुनिक बनाना होगा जितना की वो खुद को समझते है , पत्नी को सम्मान देना,  उसके अस्तित्व को स्वीकार करना , उसकी इच्छा मर्जी का भी ध्यान रखना और उसे भी परिवार की बराबरी की इकाई समझना , और खुद से कमतर न समझने की समझ बढानी होगी , पहले किसी बात में सक्षम बनिए फिर कीजिये कोई मांग । मैंने जो कहा वही सत्य नहीं है सभी की अपनी सोच है और अपवाद से दुनिया भरी पड़ी है ।

चलते चलते        
                              दो दिन पहले  एक बच्ची के जन्मदिन में गई वहा कुछ गेम के बाद लडके और लड़कियों की दो टीम बना दी गई और फिर उनके बीच  शारीरिक ताकत के गेम शुरू कर दिया गया , हम सब बेटियों वाली मम्मियो ने कहा ये गलत है लड़किया हार जायेंगी निश्चित रूप से लडके शारीरिक ताकत में उनसे ज्यादा होते है और लड़किया ऐसे गेम खेलना भी पसंद नहीं करती है , उन्हें इसकी आदत नहीं है  , उन्हें चोट लग जाएगी , किन्तु कुछ ही मिनट में हमारी ही बेटियों ने हमें गलत साबित कर दिया ५ में से ४ गेम जित गई । हम सभी अपनी बेटियों को कम आकते है , असल में हम सभी बेटियों को कम आकते है । वो गांव में पढ़ी लिखी है तो आधुनिक नहीं होगी , वो बदल नहीं सकती है , गांव की लड़की शहर में पढ़े लिखे लडके के लिए उपयुक्त पत्नी नहीं है , यदि लड़की को आधुनिक बनाना है तो उसे अपने गांव शहर से दूर जा कर ही पढाई करनी होगी तभी वो आधुनिक बनेगी , उन्हें आधुनिक बनना ही चाहिए , इसलिए की उनका विवाह किसी अच्छे लडके से हो सके , क्यों ऐसा क्यों होना चाहिए , हम क्यों अपनी बेटियों को कम आंक रहे है हम क्यों कहते है की हिंदी मीडियम से पढ़ी लड़की कुछ कर नहीं सकती है,  गांव के घरेलु वातावरण में पली लड़की कुछ कर नहीं सकती है । यदि ये सोच हमारी है तो हम से बड़ा गावर कोई नहीं है । सच कहू तो आज यदि हमारे समाज में शादिया बची है परिवार नाम की कोई चीज बची तो वो इन गांव छोटे शहरो हिंदी मीडियम में पढ़ी लडियो की वजह से है जो आज भी परिवार को बचाने और बनाये रखने की जिम्मेदारी खुद पर ही लेती है , जो जानती है की हमारा पढ़ा लिखा आधुनिक पति,  पत्नी के लिए कैसा गावर , रुढ़िवादी सोच रखता है , जो जानती है की नौकरी के बाद घर भी उसे ही संभालना है , जो जानती है की आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के बाद भी कैसे अपने वजूद को खो के जिना है , कैसे अपनी इच्छाओ , सोच को मार कर केवल पति और परिवार की सोच के हिसाब से जिन है खुद को ढालना है , और सारा जीवन सिखते सिखते बदलते बदलते बिताना है । उन्हें बदलने की कोशिश मत कीजिये क्योकि हमारे समाज की पुरुषवादी सोच पत्नी को लेकर सोच अभी नहीं बदली है , पहले उसे बदलिए बेटिया अपने आप बदल जाएँगी । मै  अपनी बेटी को रोलर स्केट सिखाने जाती थी वहा लड़को की रफ़्तार बड़ी तेज होती थी और लड़किया उस मुकाबले धीमा चलाती थी , लेकिन वो तेज रफ़्तार उन लड़को के बार बार गिर जाने का कारण होता था जबकि लड़किया गिरती नहीं थी इस संतुलन का सम्मान कीजिये उसे कम करके मत दिखाइए  :)


एक नई बात भी पता चली इस विचार विमर्श में की आप तब तक ही युवा है नए ज़माने के है जब तक आप का विवाह नहीं हुआ है ।  विवाह होने और बच्चे होने के बाद आप की आयु कितनी भी हो आप के साथ आप की सोच भी अब युवा नहीं होती है , आप पुराने और रूढ़िवादियो की श्रेणी में आ जाते है और कितनी भी आयु तक आप का विवाह न हो आप युवा ही होते है आज के ज़माने के होते है ।  जैसे ३०-३५ साल की अविवाहित युवती को लोग लड़की और बच्चे दीदी बोलते है और 22 साल में ही माँ बन गई युवती को औरत और बच्चे आंटी कहते है  :)))       
                                                        

February 14, 2013

"दी" इटैलियन जॉब -----------mangopeople

"  इटैलियन जॉब " हालीवुड की की एक प्रसिद्द और हिट फिल्म थी , इसी फिल्म का एक फ्लाप और घटिया संस्करण भारत में भी बना " प्लेयर " बिलकुल भारतीय हिंदी फिल्मो की स्टाईल में गाना बजाना सब था , गाने तो खूब हिट रहे फिल्म के,  किन्तु फिल्म बिलकुल ही फ्लाप हो गई । बहुतो ने इटैलियन जॉब का फ़िल्मी घटिया संस्करण देखा होगा और बहुतो ने नहीं किन्तु अब सभी को एक और इटैलियन जॉब का घटिया भारतीय संस्करण बिना मर्जी के देखना होगा । इटली के एक कंपनी से हेलिकॉप्टर  ख़रीदा गया और अब इटली में हुए एक जाँच से पता चला की भारत को वो   हेलिकॉप्टर  बेचने के लिए यहाँ पर लोगो को घुस दिया गया वो भी तिन सौ करोड़ से ऊपर की रकम , इटली में एक शानदार जाँच हुई और एक  सी इ ओ की गिरफ़्तारी भी हुई चार्जशीट तक बन गई । अब इस शानदार और हिट इटैलियन जांच का एक घटिया और फ्लाप भारतीय जाँच संस्करण हम सभी को जल्द ही देखने को मिलेगा ,जिसमे फिल्म के गाने की तरह घोटाले की चर्चा तो हिट रहेगी  किन्तु फिल्म की तरह जाँच फ्लाप होने वाली है , जिसका नतीजा होगा की कही कोई पैसा नहीं लिया गया , कही पैसा लेने के कोई सबुत नहीं है , हमने सारी जाँच कर ली सारे आरोप झूठे है । यानि पैसा दिया तो गया किन्तु वो लिया नहीं गया , पैसा देने वाले पैसा दे कर फंस गए उन्हें सजा भी संभव है की हो जाये किन्तु पैसा किसने लिया यही बात कभी सामने नहीं आएगा तो सजा की बात सोचना तो दूर की बात है । मजबूरी ये है की फिल्म देखने हम नहीं गए और हमारे पैसे बच गए किन्तु इस बार तो हमारे पैसे भी चले गए और जबरजस्ती हम इस घटिया जाँच संस्करण को देखने के लिए मजबूर है ।
                                   
                                                       जैसा की होना था हर घोटाले की तरह यहाँ भी अपने से पहले के विरोधियो की सरकारों पर दोषारोपण होने लगा और फट से जाँच का जिम्मेदारी सरकारी जाँच विभाग सी बी  आई को दे दी गई , एक साल से इस बारे में सवाल किये जा रहे थे , अखबारों में खबर आ रही थी किन्तु किसी भी जाँच की जरुरत नहीं समझी गई और कहा गया की एक औपचारिक रिपोर्ट मिलने के बाद कार्यवाही की जाएगी जो सरकार  को एक साल तक नहीं मिली , किन्तु वही सरकार आज मिडिया रिपोर्टो के आधार पर तुरंत जाँच के आदेश दे कर अपनी पीठ खुद थपथपा रही है । जबकि हाल तो ये है हमारे यहाँ सी बी आई की जाँच इसलिए नहीं होती की कोई पकड़ा जाये , बल्कि जाँच इसलिए होती है की कोई पकड़ा न जाये , सभी आरोपी  बाइज्जत  बरी हो जाये । कभी कभी ये भी लगता है की तुरंत सी बी आई की जाँच इसलिए बिठा दी जाती है ताकि उस घोटालो से जुड़े कागजात कही किसी और के हाथ न लग जाये , बल्कि जल्द से जल्द घोटालो से जुड़े हर कागजात जाँच के नाम पर इस सरकारी विभाग के पास आ जाये और उससे जुड़े लोगो को बचाया जा सके , यदि वो सरकारी पक्ष का है तो उस पर लगे सभी आरोपों से उसे बरी किया जाये  और यदि विरोधी पक्ष का है तो उससे सौदेबाजी की जाये , ताकि सरकारे आराम से अपना काम करती रहे । इस घोटाले को ही ले लीजिये यदि कोई गड़बड़ी पूर्व की सरकारों की थी तो वर्तमान सरकार को जाँच में क्या तकलीफ थी उसे एक साल पहले ही जाँच के आदेश दे देने थे , किन्तु ऐसा नहीं हुआ क्योकि सभी जानते है की चोर चोर मौसेरे भाई होते है , कितने ही दलों  की सरकारे आई और गई आज तक बोफोर्स घोटाले का कोई नतीजा नहीं निकला , यहाँ तक की वो सरकारे भी कुछ नहीं कर सकी जो इसे मूद्दा बना कर चुनाव लड़ी । ये सारे घोटाले राजनैतिक दलों  के लिए मात्र चुनावी मुद्दा भर होती है उन्हें न किसी जाँच से मतलब है और न किसी आरोपी के पकडे जाने से ।

                                           अन एक नया शगूफा शुरू हो गया है की मिडिया ट्रायल न हो , क्योकि ये  देश की छवि , सेना की छवि , को ख़राब कर रहा है सैनिको का मनोबल गिरेगा और किसी पूर्व  सेनाध्यक्ष से हम इस तरह सवाल नहीं कर सकते है । इसका क्या मतलब है , यही की भाई मिडिया इस बारे में बात न करे इन घोटालो को उजागर न करे , लोग अपना मुंह बंद करके रखे , ताकि जाँच के नाम पर लिपा पोती होती रहे अपने राजनैतिक समीकरण को ठीक किया जा सके , और मामला अदालत तक पहुँच भी गया तो वहा क्या हो रहा है ये बात हम 2 जी घोटाले में देख ही रहे है कि  कैसे सी बी आई के वकील तक घोटालेबाजो से मिल कर काम कर रहे है उन्हें बचाने का काम कर रहे है ।  हमारी सी बी आई तो इतनी भी सक्षम नहीं है की वो ये भी देख सके की खुद उसके ही लोग घोटालेबाजो से मिले हुए है , अभी 2 जी मामले में जिस वकील को हटाया गया है उनके बारे में बाहर के व्यक्ति ने सी बी  आई को जानकारी दी थी,  बातचीत का टेप दिया था , तब जा कर सी बी आई को इस बारे में पता चला था , अब वो उसकी भी जाँच कर रही है ।पूर्व वायु सेनाध्यक्ष कहते है की कोई सीधे मुझे कैसे घुस देने की बात कर सकता है ये सम्भव नहीं है , जबकि अभी हाल में ही एक पूर्व थल सेनाध्यक्ष ने साफ कहा था की एक ट्रक सौदे में उन्हें सीधे सीधे घुस देने की पेशकश की गई थी जब वो पद पर थे और ये बात उन्होंने रक्षा मंत्री तक को बताई थी ,( उसकी भी जाँच हुई थी और उसमे भी कुछ नहीं निकला ) अब किसकी बात को सच माना जाये ।  सेना से  जुड़ा ये कोई पहला घोटाला नहीं है , और न हीं पहला मामला है जिसमे किसी सेना से जुड़े व्यक्ति पर आरोप लग रहा है,  तहलका ने तो एक स्टिंग में दिखा भी दिया था सब कुछ कि कैसे सेना से जुड़े लोग कमीशन खाते है । इसके बाद भी सेना को ले कर इतना ढकाव छुपाव क्यों हो रहा है , बल्कि अब समय आ गया है की अब सेना के अन्दर छुप छुपा कर हो रहे इन कमीशनबाजी को भी बाहर लाया जाये और उसकी भी अच्छे से सफाई की जाये । सेना का मनोबल इसलिए नहीं गिरता है की उससे जुड़े लोगो पर आरोप लग रहे है बल्कि इससे होता है की जहा एक तरफ खबरे आती है की सेना में गोल बारूद , और गोलियों तक की कमी है वहा वी वी आई पी  के सुरक्षा के नाम पर उनके लिए इतने अरबो रुपये के     हेलिकॉप्टर ख़रीदे जा रहे है , उन पर खर्च होने वाली रकम को  घुस ले कर महंगे हथियारो  और कई बार बेकार हथियार को खरीदने में और कभी कभी बिना जरुरत के चीजो को खरीदने में खर्च किये जा रहे है । इसलिए मिडिया ट्रायल के नाम पर लोगो की आवाज को बंद करने का प्रयास सरकारे न करे तो अच्छा है , क्योकि इससे ये आवाजे तो बंद नहीं होगी उलटे सेना की छवि की लोगो की नजर में ख़राब होगी , सरकरो की छवि की तो बात छोड़ ही दीजिये वो तो कभी अच्छी थी ही नहीं । एक उम्मीद लोगो को सेना से है अब उस उम्मीद को सेना न तोड़े तो ही अच्छा होगा , और लोगो को चुप कराने के बजाये  एक बार अपनी साफ सफाई कर ले , सरकारों से तो हम इसकी भी उम्मीद नहीं कर पाते है ।


चलते चलते  

                  कांग्रेस और सरकार के ग्रह नक्षत्र ठीक नहीं चल रहे है , घोटालो के आरोपों से परेसान हो कर उसने क्या क्या नहीं किया , कैश सब्सिडी को गेम चेंजर का नाम दे कर जनता के बिच उतारा, राहुल को कांग्रेस में नंबर दो बनाया , उन्हें प्रधानमंत्री के पद के लिए प्रोजेक्ट किया , मोदी,  साम्प्रदायिकता , हिन्दू आतंकवाद का नाम ले कर चर्चा का रुख मोड़ा , पहले कसाब  और फिर अफजल को फांसी दे कर घोटालो से बड़ी मुश्किल से जनता का ध्यान हटाया था किन्तु वाह रे किस्मत घूम फिर कर फिर एक और घोटाला सामने आ गया और जनता के बिच फिर घोटाला ही मुद्दा बना गया , अब बजट एक मात्र उपाय है उसके लिए चुनावों से पहले जनता के बिच अपनी छवि को ठीक करने के लिए , देखते है की अब बजट कितना लोकलुभावना आता है या फिर एक और घोटाला उसके किये धरे पर पानी फेरने वाला है । वैसे नेताओ में अब पहले वाली काबलियत नहीं रही की घोटाला करो और उसे सामने भी न आने दो ।




February 06, 2013

कुपोषित भावनाओ को चवनप्रास खिलाये ! - - - - - mangopeople

नोट  ---- कमजोर भावनाओ वाले लोग इस लेख को न पढ़े आप की भावनाए आहत हो सकती है ।


टीवी पर आज कल एक सरकारी विज्ञापन आ रहा है ,
पापा पापा स्कुल के बच्चे मुझे बुद्धू कहते है , क्योकि मुझे जल्दी बाते समझ नहीं आती है ।
 क्या आप का बच्चा बातो को देर से समझता है पढाई में कमजोर है , बार बार बीमार पड़ता है तो जरा उसकी सेहत की जाँच कराये आप का बच्चा कुपोषण का शिकार हो सकता है , उसके खानपान पर ध्यान दे और उसे सेहतमंद बनाये ताकि वो बार बार बीमार न पड़े ।
यही विज्ञापन जरा कुछ बड़ो पर लागु करे तो कैसे होगा , क्या आप की भावनाए बार बार आहत होती है किसी फिल्म , पेंटिंग,  किताब, साहित्य को  देख, लड़कियों को नाचते गाते देख, कर उनके कपड़ो को देख तो अपनी भावनाओ  की सेहत की जाँच कराये कही वो कुपोषण का शिकार तो नहीं हो गया है , उसके खानपान पर ध्यान दे उसे इतना  सेहतमंद बनाये की वो थोडा सहनशील बने और दूसरो को भी अपनी बात कहने की आजादी दे , उनके मुंह में प्रतिबंध , फतवे,   धर्म, जाति,  संस्कृति का कपड़ा न ठुसे , आप की भावनाए है तो दूसरो की भी , इसलिए ऐसी हरकते न करे की दुनिया आप को भी बुद्धुओ की क़तार में खड़ा कर दे , और आप को अनदेखा करना शुरू कर दे ।
   
                           धोनी चवनप्रास बेचते हुए कहते है की दो चम्मच की तैयारी रखे दूर बीमारी , सोचती हूँ की क्या बाजार में ऐसा चवनप्रास मिलेगा जो लोगो की भावनाओ की सेहत ठीक कर सके जो बार बार, हर बात पर आहत हो जाती है , वैसे तो हमारे यहाँ जो बच्चा बार बार बीमार पड़ता है बार बार गिरता  पड़ता है तो लोग राय देते है की भाई ऐसे बच्चे को घर से बाहर ही न निकालो जी, जरा सी बात पर रोने लगे बीमार पड  जाये , सोचती हूँ की उन लोगो को भी ऐसी ही राय दी जानी चाहिए कि  जी आप की भावनाए बार बार आहत होती है हो तो अच्छा है की आप बन्दर बन जाये , कौन से, वही गाँधी जी वाले जो न देखता है न सुनता है और न ही फालतू का बोलता है देखेगा सुनेगा नहीं तो बोलेगा भी नहीं , फिर न आप की भावनाए आहत होगी और न कोई बवाल होगा ।
       
                                 किसी को भावनाए आहत है क्योकि इस्लाम धर्म में जन्म लेने वाली लड़कियों ने अपना एक रॉक बैंड  बना लिया "था ",( बोलिए एक साल पुराना बैंड अब "था" बन गया ) और कुछ लोगो का मानना है की इस धर्म में लड़कियों के   ( और वो भी आम सी लड़किया जिन पर इनका बस नियंत्रण बड़ी आसानी से हो सकता है ) संगीत के लिए कोई जगह नहीं है , लड़को और ताकतवर लोगो को , और उन लोगो को इसकी इजाजत है जो ऐसी लोगो की बातो को तवज्जो नहीं देते है , क्योकि मुझे उन लोगो के नाम गिनाने की जरुरत नहीं है जो इस्लाम धर्म में जन्म लेने के बाद भी सारी  उम्र संगीत के साथ ही जिए , आश्चर्य होता है की धर्म के नाम पर लड़कियों के गाने को बैन करने की बात करने वाले उन लोगो के खिलाफ कुछ नहीं कहते है जो खुलेआम उन लड़कियों को फेसबुक पर बलात्कार करने की धमकी देते है , क्या धर्म इस बात की इजाजत देता है की आप लड़कियों को इस तरह की धमकी दे ।  कुछ समय पहले कुछ लोगो को कमल हासन की फिल्म से भी इतराज था , और उस फिल्म को एक राज्य में प्रतिबंधित कर दिया गया जिसे सेंसर बोर्ड ने पास किया था , गई फिल्म देख कर आई और उन लोगो की बुद्धि पर तरस आया जिन्हें इस फिल्म से एतराज था ( हिंदी में फिल्म में कोई भी नया सेंसर नहीं किया गया है वही फिल्म देखी है जो सेंसर बोर्ड ने पास की थी और जिस पर ऐतराज जताया गया था, फिल्म तो बहुत ही शानदार थी  ) समझ नहीं आया की जो तालिबान इस्लाम के नाम पर लोगो को बेफकुफ़ बना कर अपनी निजी स्वार्थो के लिए एक युद्ध लड़ रहा है , वो नमाज पढ़ते फिल्म में नहीं दिखाया जायेगा तो क्या मंदिरों में आरती करते दिखाया जायेगा । फिल्म के खलनायक के साथ ही नायक भी इस्लाम धर्म का ही है , और साफ दिखाया जाता है की सभी मुस्लिम बुरे नहीं होते है , फिल्म में केवल और केवल तालिबानीयो को ही दिखाया गया है कही और के मुस्लिमो का जिक्र तक नहीं है उसमे ,( मेरी आँख और कान और समझ ख़राब हो तो छुट दीजियेगा मुझे ) फिर भी लोगो को किस बात का ऐतराज है , क्यों तालिबानियों को बस इस्लाम से जोड़ कर देखा जा रहा है क्या वो सच में इस्लाम का प्रतिनिधित्व करते है । यही ब्लॉग जगत में पढ़ा जहा कहा गया की मामला कोर्ट में है तो लोगो को बोलना नहीं चाहिए , क्या कोई बताएगा की फिल्म को सेंसर करने का काम कोर्ट में कब से शुरू हुआ , किसी भी फिल्म को सेंसर करने का काम सरकार द्वारा निर्मित बोर्ड का है जब वो एक बार किसी फिल्म को पास कर देती है तो उस पर कोई भी दूसरा व्यक्ति, सरकार बैन नहीं कर सकता है , किसी को आपत्ति है तो वो सेंसर बोर्ड में अपील करेगा न की कोर्ट में , और उस बोर्ड में वो लोग भी शामिल है जो इस्लाम धर्म को मानते है , इसके पहले के एक मामले में कोर्ट ने साफ कहा था की किसी भी फिल्म को सेंसर बोर्ड पास कर देती है तो कोई भी उस पर अपनी तरफ से बैन नहीं लगा सकता है यदि सरकार से कानून व्यवस्था नहीं संभलती है तो सरकार से हट जाये  । अगर हर मामले की सुनवाई कोर्ट को ही करनी है तो बाकि सारी व्यवस्थाओ को बंद कर देना चाहिए और कोर्ट को ही हर मामला सुलझाने के लिए बिठा देना चाहिए । समझ नहीं आता की किसी धर्म की छवि किस कारण ख़राब हो रही है किसी फिल्म , साहित्य , किताब के कारण या धर्म के ऐसे ठेकेदारी के कारण ।
                             
                                                 कल बेंगलोर में एक नया मामला आया , एक युवा पेंटर की कुछ तस्वीरों को आर्ट गैलरी से हटा दिया गया , क्योकि उससे किसी की भावनाए आहत हो रही थी , लगभग सभी पेंटिंग देवी देवताओ की थी जिसमे से एक या दो में उन्हें नग्न दिखाया गया था (आपत्ति करने वालो और खबर के अनुसार ) लो जी , पेंटर ने आज के ज़माने के युवा होने के बाद भी देवी देवताओ को अपना विषय बनाया उनकी अच्छी तस्वीरे बनाई सभी ने सराहा किन्तु कुछ विद्वानों को देवी देवता नहीं दिखे उन्हें बस उनकी नग्नता ही दिखाई दी वो भी मात्र एक या दो में , नजर किसकी ख़राब थी यही सोच रही हूँ , गजब की उनकी भावनाए है , और उससे गजब प्रशासन की तत्परता है , फोन पर मिली धमकी पर उसने तुरंत कार्यवाही की और पेंटिंग हटा ली गई , वैसे बता दो उन पेंटिंग को बनाने वाले ने भी हिन्दू धर्म में ही जन्म लिया है ( मै अंदाजा लगा रही हूँ क्योकि उसका पूरा नाम हिन्दू था ) । कुछ समय पहले कोर्ट में केस गया की एक गाने में राधा के सेक्सी कहा गया है लो जी किसी की भावनाए आहत हो गई , अब क्या किया जाये दुनिया में जितने भी भगवान के नाम रखे आम लोग है उन्हें या तो अपना नाम बदल लेना चाहिए या फिर अपना चरित्र बिलकुल उस भगवान जैसा ही रखना चाहिए नहीं तो लोगो की भावनाए आहत हो जाएँगी और आप पर कोर्ट केस हो सकता है ( मेरा खुद का नाम भगवान सूर्य का पर्यायवाची है , सोचती हूँ की मेरा व्यवहार उन जैसा हो जाये या उन जैसी मै  बन जाओ तो , उफ़ इतनी गर्म मिजाज ) एक बार तो एक समूह कोर्ट गया क्योकि किसी गाने के बोल थे की "कहा राजा भोज कहा गंगू तेली " उनकी भावनाए आहत हो गई उन्हें तेली कहा गया उनका मजाक उड़ाया गया , बेचारा फ़िल्मकार परेशान  बोल जज साहब इस गीत को लिखने वाले को कहा से पकड़ कर लाऊ क्योकि ये तो कहावत है और हमें नहीं पता की कहावत कैसे और किसने बनाई । सालो पहले दीपा मेहता की वाटर फिल्म को लेकर बनारस में जीतनी नौटंकिया  हुए उन सभी की गवाह मै हूँ । फिल्म का विरोध किया गया की फिल्म में दिखाया जा रहा है की बनारस में रह रही हिन्दू विधवाओ का कैसे शारीरिक शोषण किया जाता था ज़माने पहले , ये हिन्दू धर्म को बदनाम करने की साजिस है और ब्ला ब्ला , फिल्म की शूटिंग नहीं हुई ,( हमने तो अपने कॉलेज में अपने छोटे से रिसर्च का विषय ही यही बनया की "वाटर फिल्म और मिडिया की भूमिका" 100 में से 90 मिले बिलकुल सही रिसर्च और रिपोर्टिंग के लिए  ) और कुछ ही महीनो के बाद वहा एक बड़े सेक्स रैकेट का खुलासा हुआ की कैसे वहा पर नारी संरक्षण गृह में पुलिस के द्वारा भेजी गई लड़कियों का शारीरक शोषण हो रहा था उन्हें नेताओ , अधिकारियो के पास भेज जाता था । फिर वो सारे लोग अचानक से गायब हो गए जिनकी भावनाए फिल्म के कारण आहत थी , इस तरह की घटना से किसी की कोई भी भावना आहत नहीं हुई , कोई विरोध नहीं कोई प्रदर्शन नहीं  ।

                                          कोई लड़कियों के कपड़ो , पढ़ने लिखने से आहत है , पर उन्हें तमाम धर्मो  में जन्म लेने वाले उटपटांग  कपडे पहनने और लड़कियों को परेशान करने वाले लड़को और  उन अभिनेताओ से कोई परेशानी नहीं थी जो अपना शरीर बनाते ही इसलिए है ताकि उसे फिल्मो में कपडे उतार कर दिखा सके , कोई पूनम पण्डे और शर्लिन चोपड़ा के नग्नता से परेशान  है , पर उसे उन लोगो से कोई परेशानी नहीं है जो विभिन्न शोशल नेटवर्क पर कहते है की उनका बलात्कार किया जाना चाहिए , और उनके साथ दिल्ली में हुए गैंग रेप जैसा हाल करना चाहिए । अजीब सी भावनाए है लोगो की , जो कमजोर , और उनकी बात मान लेने के लिए मजबूर लोगो को देख कर ही आहत होती है , कमल हासन और उनके जैसे फिल्म निर्माता  मजबूर थे , क्योकि फिल्मो में उनका करोडो रुपया लगा होता है और एक दिन का प्रतिबन्ध उन्हें सड़क पर ला सकता है , कुछ जगहों में फिल्मे रिलीज हुई और दो चार दिन में ही उनकी पायरेटेड सीडी उस बाजार में आ जाएगी जहा फिल्म नहीं रिलीज हुई फिर होती रहे बाद में फिल्म रिलीज ,कौन थियेटर में जा कर उनकी फिल्म देखेगा , किसी फ़िल्मी नायक नायिका , गायक संगीतकार आदि आदि पर किसी का कोई बस नहीं चलता है उनके खिलाफ कही कोई फतवा आदि आदि नहीं पास किया जाता है ,क्योकि उनमे से किसी पर भी इन चीजो का फर्क नहीं होगा , सानिया ने भी अपनी स्कर्ट पर दिए फतवे को कोई तवज्जो नहीं दिया था वैसे ये भी निर्भर है की लोगो का अपना संबंध सरकारों से कैसे है मुंबई में जब शाहरुख़  का विरोध शिवसेना करती है तो पूरी मुंबई पुलिस सड़क पर आ जाती है उनकी फिल्म को ठीक से रिलीज कराने के लिया ,( और यही पुलिस राज ठाकरे और शिवसेना की गुंडा गर्दी से आम लोगो को कोई सुरक्षा नहीं प्रदान कर पाती है ) वही जब मोदी आमिर का विरोध करते है तो किसी की भी हिम्मत उनकी फिल्म गुजरात में रिलीज करने की नहीं होती है , कमल हासन के साथ भी वही हुआ , विरोध करने वाले सरकार में बैठे दल के नजदीकी थे तो लग गया फिल्म पर बैन। जिस तस्लीमा को बड़े आजाद ख्याल आदि आदि के नाम पर वाम सरकार कोलकाता में शरण देती है वही धर्म और वोट की राजनीति  सामने आने पर उन्हें वहा से भगा देती है , जो राजनैतिक दल फ़िदा हुसैन को यहाँ से भगा देती है वो सलमान रुश्दी का स्वागत करती है , और खुद को सबसे बड़ी धर्म निरपेक्ष दल कहने वाला राजनैतिक दल जो सरकार में भी है वो न तो हुसैन को और न ही सलमान रश्दी को न तसलीमा को सुरक्षा दे पाती है ।
   
                                          जिन बुद्धुओ को अभी तक बात समझ नहीं आया उनके लिए , धर्म ,जाति  और संस्कृति   के नाम पर समाज में कई ठेकेदार है जो अपनी निजी फायदे के लिए आम लोगो को उकसाते है की देखो फलाने ने हमारे धर्म के हमारी जाति खिलाफ ये कहा है वो दिखाया है , न जाने क्या लिख दिया है , विरोध विरोध विरोध बैन बैन बैन , तो भैया दिखावे पर न जाये अपनी अक्ल लगाये , पढ़े लिखे है गवारो सा व्यवहार न करे , कोई कह दे की कौवा कान ले गया तो कौवे के पीछे न भागिए अपनी कान टटोलिये,  थोड़े सहनशील बने दूसरो को भी बोलने का अपनी बात कहने का अधिकार दे आप उससे असहमत हो सकते है उसकी आलोचना भी कर सकते है , पर प्रतिबन्ध की मांग करना , या व्यक्ति को निजी रूप से परेशान करने वाला और हानि पहुँचाने वाली हरकत  मत कीजिये , बुद्धू मत बनिए अपनी कुपोषित भावनाओ को सही पोषण दीजिये  ।
                                                       
                                               ब्लॉग  जगत प्रत्यक्ष उदहारण है जहा हम सभी दूसरो की बातो से सहमत न होने पर उनकी आलोचना करते है उनसे अपनी असहमति जताते है , किन्तु किसी को बैन नहीं करते है , हद हुई तो अनदेखा करना शुरू कर देते है समझ जाते है की अब उस तरफ देखना ही नहीं है , बात अगर बस ध्यान खीचने के लिए बेमतलब की होगी तो अपने आप की बंद हो जाएगी । यही बात समाज में भी लागु कीजिये , कोई बात आप को पसंद नहीं आती है तो आप उससे असहमति प्रकट कीजिये उसकी आलोचना कीजिये किन्तु किसी का मुंह बंद करने का प्रयास मत कीजिये ।


चलते चलते 
                 अभी हाल में ही टीवी पर एक फिल्म देखी  इंगलिस विन्गलिस साथ में पतिदेव को भी बिठा लिया , फिल्म के पहले ही दृश्य में दिखाया जाता है की श्री देवी सुबह बिस्तर से उठ कर अपने लिए कॉफ़ी बनाती है फिर अखबार ले कर जैसे ही बैठती है की उनकी सास आ जाती है वो कॉफ़ी और अख़बार छोड़कर उन्हें चाय बना कर देती है फिर वापस कॉफ़ी पिने और अखबार पढ़ने के लिए बैठती है तो पति और बच्चे उठ जाते है वो कॉफ़ी और अखबर छोड़ कर उनके काम में लग जाती है , मैंने पतिदेव से कहा की बताओ क्या समझे क्या दिखाया जा रहा है,  तो बोले की यही की वो खुद कॉफ़ी पी रही है और सास को चाय दे रही है , मै  मुस्कराई और कहा नहीं वो दिखा रही है की एक आम गृहणी आराम से सुबह  एक कप कॉफ़ी नहीं पी  सकती अखबार नहीं पढ़ सकती उसके लिए उसका परिवार उससे ज्यादा महत्व रखता है उनके काम ज्यादा महत्व रखते है उसके आराम और काम से । सोचने लगी की बात बात पर जो आम आदमी मौका परस्तो की बातो में आ कर चीजो का विरोध करने लगता है क्या उसे कलाकार और उसकी कृति की इतनी समझ होती है की वो क्या दिखाना चाह रहा है , क्या कहना चाह  रहा है , शायद नहीं ।


  स्पष्टीकरण ---- लेख किसी की भावनाए आहत करने के लिए नहीं लिखी गई है , बात को समझाने के लिए लिखी गई है फिर भी यदि किसी को भावनाए आहत होती है तो मेरी माने आप की भावना जरुरत से ज्यादा कुपोषित हो गई है , अपनी भावनाओ को आप दो नहीं चार चम्मच चवनप्रास खिलाए, वैसे चवनप्रास मिल जाये तो थोडा मुझे भी दीजियेगा  :)