February 22, 2013

कितने सक्षम है युवा जीवन साथी चुनने में - - - - - -mangopeople


 नोट --- मुद्दे शायद कई आ गए है इसलिए विचार कही घुले मिले से लेगे तो झेल लीजियेगा


एल आई सी का विज्ञापन " चाचु आप को शादी के लिए कैसी लड़की चाहिए "
चाचू जबाब देते है की लड़की पैसे वाले घर से हो तो एक सपोर्ट मिलेगा , बचत करने वाली हो तो सेविंग होगी जिंदगी अच्छी चलेगी ,  पढ़ी लिखी और सरकारी नौकरी वाली हो तो बुढ़ापे की चिंता न हो । बच्चा कहता है की चाचू ये सब चाहिए तो एल आई सी की फलाना पॉलोसी ले लो और शादी ऐसी लड़की के साथ करो जो तुम्हे प्यार करे । हाल ही में रचना जी ने नारी ब्लॉग पर दो पोस्टे डाली एक में एक गांव से आ कर शहर में बसे एक युवा लडके की है जिसे गांव की अरेंज मैरिज वाली पत्नी नहीं पसंद है , तो दूसरी पोस्ट में युवा लड़की है (जो अब डाक्टर भी है ), जो अपने ९ साल के सम्बन्ध को शादी में न बदल पाने और उसे बिना बताये उसके प्रेमी के किसी और से शादी कर लेने से दुखी है , और अब अपने प्रेमी को सबक सिखाना चाहती है  ।  उस पोस्ट पर मुक्ति जी और रचना जी कहती है की समस्या ये है की आज भी बच्चो को माता पिता अपनी मर्जी का जीवन साथी नहीं चुनने देते है , उन्हें पढ़ने के लिए बाहर भेज देते है किन्तु विवाह का निर्णय खुद करते है , और इस कारण कई बार बेमेल विवाह हो जाता है , पति को पत्नी नहीं पसंद या पत्नी को पति । विवाह के लिए इन युवाओ को मर्जी को जानना चाहिए और उनका विवाह उनकी मर्जी से करना चाहिए ।

                                                    किन्तु सवाल ये है की आज के युवा अपने लिए जीवन साथी चुनने में कितने सक्षम है , जीवन साथी को लेकर उनकी सोच क्या है , क्या पढाई लिखाई करने के बाद उनके कपडे रहने खाने के ढंग के साथ की क्या जीवन साथी को लेकर उनकी सोच भी बदली है ।  विवाह के लिए जीवन साथी के रूप में आज के युवा क्या चाहते है इसकी कुछ बानगी देखिये ( अपनी छोटी बहनों के लिए कितने ही लडके देखे उनसे बात की अपनी बिरादरी से बाहर तक के लडके देखे इसलिए कुछ का निजी अनुभव है और कुछ आस पास के युवाओ से बात की है )

करीब २८  साल का युवा एयरनॉटिक  इंजिनियर ( हेलीकाप्टर के इंजिनियर को यही कहते है न ) जिनको अपने काम के लिए एक हफ्ते मुंबई और एक हफ्ते पुणे में रहना होता है के विचार , जी मुझे पढ़ी लिखी समझदार पत्नी चाहिए ,नहीं मै  उससे नौकरी नहीं कराऊंगा , आप तो टीवी सीरियल में देखा होगा की कैसे नौकरी करने वाली पत्नियों से परेशानी होने लगती है , फिर घर आओ तो घर पर कोई एक कप चाय भी पिलाने वाला न हो तो शादी से क्या फायदा । पत्नी तो मुंबई में ही रहेगी उसे पुना ले कर अप डाउन नहीं करूँगा :)
  तो भैया ये बताओ की पुने में तुमको एक हफ्ते चाय कौन पिलाएगा , क्या वहा के लिए दूसरी पत्नी रखोगे ।


बैंक में नौकरी करने वाला युवा जिसने बाकायदा अखबार में विज्ञापन दिया है , प्रोफेशनल लड़की से विवाह , जी नहीं मुझे भी अपनी पत्नी से नौकरी नहीं करवानी है , तो प्रोफशनल लड़की की बात क्यों कही , जी वो तो इसलिए की लड़की थोडा पढ़ी लिखी हो मुझे घर का आटा दाल न लाना पड़े :)
हे प्रभु घर का सामान लाने के लिए भी किसी प्रोफेशनल डिग्री की जरुरत होती है ।

अपने पिता की दुकान को अपने स्तर का न बताने वाला युवा जो बाहर जा कर मामूली सा डी  डी  पी के काम को ही बड़ा और पढ़ा लिखा काम मानता है , मुझे फलाने की पत्नी ने भी सुन्दर पत्नी चाहिए , चार दोस्तों के बीच ले जाने लायक हो  और दहेज़ भी उससे ज्यादा चाहिए वो तो दो भाई है , जबकि मै  तो इकलौता बेटा हूँ  :)
भाई पत्नी अपने लिए चाहिए या दोस्तों के लिए ।

एक बड़ी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजिनियर,  मै ५ फिट १० इंच का हु तो लड़की कम से कम ५ फिट ६-७  इंच की हो मेरी सेलरी ८ लाख है तो लड़की की कम से कम ७ लाख हो मेरा रंग गेहुआ है पर लड़की बिलकुल गोरी और सुन्दर होनी चाहिए , और खाना उसे केवल भारतीय ही नहीं विदेशी भी आना चाहिए, बिलकुल मेरी टक्कर की हो हम  दोनों चले तो लगे की भाई जोड़ी हो तो ऐसी ।
बंधू इस कद वाली और ७ लाख कमाने वाली लड़की अपने टक्कर के लडके के साथ जिसका कद ६ फिट और कमीई १०-१ 2 लाख होगी उससे करेगी तुमसे क्यों करेगी, उस पर से तुमको खाना भी लिखाएगी बना कर ,एक कुक न रख लेगी अपनी कमाई से , उसे भी तो अपनी जोड़ी लाजवाब बनानी होगी ।


लड़किया भी कम नहीं है , समय बदल गया किन्तु सफ़ेद घोड़े पर मुझे "प्यार" करने वाला मेरा "राजकुमार" आयेगा की मानसिकता अभी भी बहुत सारी लड़कियों के दिमाग से नहीं उतरा है । उत्तर भारत के एक गांव में युवती  बी ए  की पढाई आगे बस घरेलु जीवन जीने की इच्छा जीवन साथी कैसा चाहिए, सीधा जवाब था की कम से कम ३० - ४०  हजार कमाता हो उसके आगे उन्होंने कोई दूसरी बात नहीं कही । इसी तरह की एक और युवती , गोरा लम्बा हैंडसम हो और मुझे खूब प्यार करे । जो पढ़ी लिखी है नौकरी कर रही है , मुझे तो ऐसा पति चाहिए जो पढ़ा लिखा हो खुले दिमाग का आजाद ख्याल रहे,  अकेले रहता हो संयुक्त परिवार नहीं चाहिए , मुझे भी नौकरी करने दे ,  मुझे भी आजादी रहे ।  किन्तु इन्हें ये नहीं पता की पढ़े लिखे होने भर से कोई आजाद ख्याल नहीं हो जाता है और संयुक्त परिवार न भी हो तो भी पति पत्नी को आजादी दे ही दे ये भी जरुरी नहीं है । ( अब आप कह सकते है की लड़को को इतने उदहारण दिए लड़कियों के इतने कम क्यों , जवाब सीधा सा है की लड़कियों से पूछता कौन है की उन्हें कैसा जीवन साथी चाहिए उन्हें बोलने का हक़ ही कहा है , उन्हें पसंद या नापसंद किया जाता है वो किसी को पसंद या नापसंद नहीं करती है विवाह के लिए  , हा  कुछ घरो में ये स्थिति बदली है किन्तु वो संख्या बहुत ही छोटी है ) ये लिस्ट बहुत ही लम्बी है आप लोगो के पास भी इस तरह के उदहारण होंगे ।
                 

                                              आज कल के ज्यादातर ( जो कोई बड़ी डिग्रीधारी है या जो नए नए आधुनिक बने है ) युवा जीवनसाथी के रूप में चाहते क्या है इसे लेकर उनकी समझ थोड़ी उलझी हुई  है , असल में पति और पत्नी कैसे  हो इस बात को लेकर ही उनके मन में गलत धारणाये बनी हुई है , एक घिसी पिटी  सी  सोच, लकीर  है और हर युवा उसी पर चलना चाहता है , की बस मै ही अपना  जीवन साथी चुनुगा तो वो मेरे लिए ठीक होगा नहीं तो दुसरो ने किया या उसमे वो सारी खूबिया  नहीं हुई और कोई भी कमी हुई तो वो विवाह बेमेल है उसमे रहना एक समझौता है । सबसे बुरी हालत उन की है जो अभी अभी आधुनिक बने है , गांवो से पढ़ने शहर में आ गए दो चार साल की पढाई और एक  नौकरी उन्हें अचानक से गलतफहमी में डाल देते है की वो अब आधुनिक हो चुके है , खासकर विवाह के मामले में अब उन्हें उनके पसंद की या कहे उनके स्तर ? की लड़की चाहिए  ।  जबकि वास्तव में दिमागी तौर पर खासकर अपनी पत्नी को लेकर उनकी सोच में जरा भी परिवर्तन नहीं होता है , कुछ तो इस बात को भली प्रकार जानते है और भले शहर में रहे किन्तु भूल कर भी शहर की लड़की से शादी नहीं करते है , कितनो को ही जानती हूँ कहते है बाप रे मुंबई -दिल्ली  की लड़की के साथ शादी कभी नहीं यहाँ की लड़की पत्नी के रूप में हमें नहीं चलेगी , वो अपनी सोच को जानते है और ये भी जानते है की शहरो में पली बढ़ी लड़कियों की सोच को वो पचा नहीं पाएंगे , जबकि कुछ पूरी तरह से गलतफहमी में ही जीते रहते है ।  अब रचना जी ने अपनी पोस्ट में जिस युवक ने अपने बारे में लिखा है उसे ही ले लीजिये हम जिस देश में रहते है वहा किसी लड़की का शराब न पीना उसकी कमी कब से बन गई , जो युवक इतना आधुनिक बन रहा है वही एक रुढ़िवादी पति की तरह अपनी पत्नी को जरा भी सम्मान नहीं दे रहा है उसके अंग्रेजी न जानने भर को वो गावर होने की निशानी बता रहा है ,  क्या वो अपने माता पिता को भी ऐसे शब्दों से नवाजेगा शायद नहीं क्योकि वो कहने को तो आधुनिक बना गया है किन्तु दिमाग में आज भी पत्नी को लेकर वही सोच है कि उसे मेरी कठपुतली होना चाहिए उसे वही करना चाहिए जो मै कहूँ , यहाँ तक की नौकरी भी वही करनी चाहिए जो मेरी मर्जी हो , पत्नी की मर्जी पत्नी की सोच से उसे कोई लेना देना नहीं है पत्नी का अर्थ है वो महिला जो बस आज्ञाकारी गुलाम की तरह अपने पति की हर उम्मीदों पर खरा उतरे , इन सब के आलावा एक पढ़ी लिखी नौकरी कर रही लड़की को खाना बनाना और घर संभालना भी अच्छे से आना चाहिए नौकरी करने के बाद भी ये जिम्मेदारी भी केवल उसी की होगी , यहाँ पर इनकी आधुनिकता उनकी पढाई लिखाई उनका शहरीपन कहा चला जाता है, तब वो आधुनिक पति की तरह उसे अपनी भी जिम्मेदारी नहीं समझते है ।  

                           क्या खुद के पसंद से विवाह करने में कोई परेशानी ही नहीं है , क्या  खुद से अपना जीवन साथी चुनने पर उनकी सभी इच्छाए पूरी हो जाती है , जवाब सीधा सा है नहीं, ऐसा हो ही ये भी जरुरी नहीं है , बिलकुल वैसे ही जैसे अरेंज मैरिज का मतलब बस बेमेल और बच्चो की मर्जी के खिलाफ विवाह ही होता है  ।  ज्यादा क्या कहु आज कल के युवा लिव इन रिलेशन से आजम कर अपना जीवन साथी चुनना चाहते है और नतीजा क्या है , कि  आज लिव इन रिलेशन को भी कोर्ट को घरेलु हिंसा में शामिल करना पड़ा , इतने से ही आप समझ गए होंगे की मै क्या कहना चाह  रही हूँ ।   अब खुद रचना जी के दूसरी पोस्ट को देखिये जिसमे लड़की बता रही है की ९ सालो के संबंधो के बाद भी विवाह नहीं हुआ , लडके ने उसे धोखा दिया , लड़की ने अपनी मर्जी से किसी को अपना जीवन साथी चुन था,  उसका एक ये भी नतीजा हुआ , और ये धोखा दोनों तरफो से होता है । आधुनिकता के नाम पर वो ऐसे संबंधो में आ तो जाते है किन्तु उसके टूटने को वो उसी आधुनिकता के साथ पचा नहीं पाते है , तो बहुत सी जगहों पर ऐसी संबंधो के नाम पर लड़की और लड़का दोनों का शोषण होता है कभी शारीरिक और कभी आर्थिक , और जो रिश्ते विवाह तक पहुँच भी जाते है वह भी विवाह के बाद बिलकुल वैसे ही होते है जैसे किसी अरेंज मैरिज में पति पत्नी के बीच होता है । आप को हजारो जोड़े मिल जायेंगे जो बताएँगे की लव मैरिज में मैरिज के बाद लव पता नहीं कहा गया अब तो बस मैरिज ही बचा है । कारण एक ही है की जीवन साथी को लेकर युवाओ की सोच आज भी वही रुढ़िवादी है , वो भले ही कितने ही आधुनिक हो गए है ।  पति पत्नी के बिच झगड़े तनाव , विवाद , एक दूसरो क नापसंद करना और  तलाक हर तरह के विवाह में होते है ,  वो जो सिर्फ माता पिता की मर्जी से हुए , उसमे भी जो माता पिता और बच्चो दोनों की मर्जी से हुए , उसमे भी जो केवल बच्चो की मर्जी से हुए और उनमे भी जिसमे कई सालो तक लिव इन रिलेशन के बाद विवाह हुए । कोई भी विवाह ऐसा नहीं होता है जिसमे कुछ समझौते न हो , जिसमे दोनों में कोई कमिया न हो , जिसमे किसी मुद्दे पर दोनों के विचार अलग न हो ।  यदि विवाह में दो व्यक्ति है दो इकाई है तो निश्चित रूप से वहा दो तरह की सोच होगी और कभी न कभी वो आपस में टकराएंगी और दोनों को समझौता करना होगा , हा वहा पर नहीं होंगे जहा पर पत्नी को दूसरी इकाई माना ही न जाये ।

                                                कहने का अर्थ ये है की जो युवा और परिवार भी आधुनिक पढ़ा लिखा होने का दंभ भरते है उन्हें पहले अपने जीवन साथी को लेकर अपनी सोच को बदलना होगा , और उसे भी उतना ही आधुनिक बनाना होगा जितना की वो खुद को समझते है , पत्नी को सम्मान देना,  उसके अस्तित्व को स्वीकार करना , उसकी इच्छा मर्जी का भी ध्यान रखना और उसे भी परिवार की बराबरी की इकाई समझना , और खुद से कमतर न समझने की समझ बढानी होगी , पहले किसी बात में सक्षम बनिए फिर कीजिये कोई मांग । मैंने जो कहा वही सत्य नहीं है सभी की अपनी सोच है और अपवाद से दुनिया भरी पड़ी है ।

चलते चलते        
                              दो दिन पहले  एक बच्ची के जन्मदिन में गई वहा कुछ गेम के बाद लडके और लड़कियों की दो टीम बना दी गई और फिर उनके बीच  शारीरिक ताकत के गेम शुरू कर दिया गया , हम सब बेटियों वाली मम्मियो ने कहा ये गलत है लड़किया हार जायेंगी निश्चित रूप से लडके शारीरिक ताकत में उनसे ज्यादा होते है और लड़किया ऐसे गेम खेलना भी पसंद नहीं करती है , उन्हें इसकी आदत नहीं है  , उन्हें चोट लग जाएगी , किन्तु कुछ ही मिनट में हमारी ही बेटियों ने हमें गलत साबित कर दिया ५ में से ४ गेम जित गई । हम सभी अपनी बेटियों को कम आकते है , असल में हम सभी बेटियों को कम आकते है । वो गांव में पढ़ी लिखी है तो आधुनिक नहीं होगी , वो बदल नहीं सकती है , गांव की लड़की शहर में पढ़े लिखे लडके के लिए उपयुक्त पत्नी नहीं है , यदि लड़की को आधुनिक बनाना है तो उसे अपने गांव शहर से दूर जा कर ही पढाई करनी होगी तभी वो आधुनिक बनेगी , उन्हें आधुनिक बनना ही चाहिए , इसलिए की उनका विवाह किसी अच्छे लडके से हो सके , क्यों ऐसा क्यों होना चाहिए , हम क्यों अपनी बेटियों को कम आंक रहे है हम क्यों कहते है की हिंदी मीडियम से पढ़ी लड़की कुछ कर नहीं सकती है,  गांव के घरेलु वातावरण में पली लड़की कुछ कर नहीं सकती है । यदि ये सोच हमारी है तो हम से बड़ा गावर कोई नहीं है । सच कहू तो आज यदि हमारे समाज में शादिया बची है परिवार नाम की कोई चीज बची तो वो इन गांव छोटे शहरो हिंदी मीडियम में पढ़ी लडियो की वजह से है जो आज भी परिवार को बचाने और बनाये रखने की जिम्मेदारी खुद पर ही लेती है , जो जानती है की हमारा पढ़ा लिखा आधुनिक पति,  पत्नी के लिए कैसा गावर , रुढ़िवादी सोच रखता है , जो जानती है की नौकरी के बाद घर भी उसे ही संभालना है , जो जानती है की आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के बाद भी कैसे अपने वजूद को खो के जिना है , कैसे अपनी इच्छाओ , सोच को मार कर केवल पति और परिवार की सोच के हिसाब से जिन है खुद को ढालना है , और सारा जीवन सिखते सिखते बदलते बदलते बिताना है । उन्हें बदलने की कोशिश मत कीजिये क्योकि हमारे समाज की पुरुषवादी सोच पत्नी को लेकर सोच अभी नहीं बदली है , पहले उसे बदलिए बेटिया अपने आप बदल जाएँगी । मै  अपनी बेटी को रोलर स्केट सिखाने जाती थी वहा लड़को की रफ़्तार बड़ी तेज होती थी और लड़किया उस मुकाबले धीमा चलाती थी , लेकिन वो तेज रफ़्तार उन लड़को के बार बार गिर जाने का कारण होता था जबकि लड़किया गिरती नहीं थी इस संतुलन का सम्मान कीजिये उसे कम करके मत दिखाइए  :)


एक नई बात भी पता चली इस विचार विमर्श में की आप तब तक ही युवा है नए ज़माने के है जब तक आप का विवाह नहीं हुआ है ।  विवाह होने और बच्चे होने के बाद आप की आयु कितनी भी हो आप के साथ आप की सोच भी अब युवा नहीं होती है , आप पुराने और रूढ़िवादियो की श्रेणी में आ जाते है और कितनी भी आयु तक आप का विवाह न हो आप युवा ही होते है आज के ज़माने के होते है ।  जैसे ३०-३५ साल की अविवाहित युवती को लोग लड़की और बच्चे दीदी बोलते है और 22 साल में ही माँ बन गई युवती को औरत और बच्चे आंटी कहते है  :)))       
                                                        

62 comments:

  1. जैसा की मैं अक्सर कहती हूँ , विवाह अपनी अपनी पसंद से हो , या माता-पिता की , बिना सामंजस्य के नहीं निभ सकता है क्योंकि कोई परफेक्ट नहीं है , कहीं न कही समझौता करना ही होता है हर रिश्ते में ...युवा जब तक विचारों में यह परिपक्वता नहीं अपनाएंगे , मुश्किल होगी , आप आधुनिक हो या पुरातन पंथी .

    अविवाहित युवा ही कहलाते हैं , रोचक है :)

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    1. बिलकुल मै भी यही कहना चाहती हूँ , परिपक्वता विवाह के लिए जरुरी है ।

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  2. ऐसी लड़की चाहिए या ऐसा लड़का चाहिए,इस तरह की कोई अपेक्षा रखी ही क्यूँ जाए .
    एक बड़ी अच्छी पंक्ति है
    Expectations are disappointments under construction..
    जितनी बड़ी अपेक्षा होगी ,निराशा भी उतनी ही ज्यादा होगी .

    दोष तो हमारी व्यवस्था का है ही, लड़के भी माता -पिता के सामने मुहँ नहीं खोल पाते, कई बार माता-पिता ने जमीन- जायदाद- जेवर बेचकर उन्हें पढ़ाया होता है. नहीं भी तो ये अक्सर कह जाते हैं,' हमने अपने शौक मारकर इतना खर्च कर तुम्हे पढ़ाया '.और लड़के अपनी शादी का सार भार उनपर छोड़ ( easy way out )कर्ज उतारने की सोचते हैं . जबकि दहेज़ के भरोसे क्यूँ अपने बल-बूते पर कमा कर माता-पिता की इच्छाएं पूरी करनी चाहिए .

    अब लडकियां भी सफ़ेद घोड़े पर सवार राजकुमार के ख्वाब भले ही न देखें पर अगर वे नौकरी करती हैं तो ये शर्त जरूर रख देती हैं, 'लड़का इसी शहर का होना चाहिए, ताकि मुझे नौकरी न छोडनी पड़े और उसकी सैलरी इतनी तो होनी ही चाहिए '

    मुसीबत माता-पिता के सर ही आती है,इन सबसे अच्छा तो ये ही है कि प्रेम विवाह को बढ़ावा दिया जाये.
    शादी के बाद मुश्किलें उस विवाह में भी आनेवाली हैं, पर कम से कम माता-पिता तो बरी हो जायेंगे और लड़के/लड़की को शिकायत का कोई हक़ तो नहीं रहेगा .
    विवाह की सफलता का मूलमंत्र तो आपसी सामंजस्य और समझौता ही है. पर वो दोनों तरफ से होनी चाहिए अब तक तो ज्यादातर लडकियां ही करती आयी हैं, अब जरा लड़के भी कोशिश करें

    चलते -चलते जोरदार है खासकर वो स्केटिंग पर संतुलन वाला उदाहरण :).

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    1. दी, मुझे भी यही लगता है कि विवाह की सफलता तभी संभव है जब आपसी सामंजस्य हो. लेकिन ये तभी संभव है जबकि कुछ बातें तो एक-दूसरे से मिलती जुलती हों. और इसका सबसे अच्छा तरीका यही है कि हम लड़के-लड़की को एक जैसे ढंग से पालें-पोसें.
      मेरे ख़याल से समस्या की जड़ ही लड़का-लड़की के पालन-पोषण में भेदभाव है. जब हम लड़का-लड़की को अलग-अलग ढंग से पालेंगे तब उनकी सोच में अंतर तो होगा ही. नहीं तो मेरे हिसाब से दोनों की एक ही माँग होनी चाहिए कि "उनका जीवनसाथी उनके जैसी सोच वाला हो" और चीज़ें उतना मायने नहीं रखतीं.
      मेरा मुख्य ज़ोर इसी बात पर था कि "जीवनसाथी को एक जैसी सोच वाला" होना चाहिए. इस बात को माँ-बाप को भी ध्यान रखना चाहिए और लड़का-लड़की को भी.
      मैं ये नहीं मानती कि लव मैरिज हमेशा सफल होती है, लेकिन वह असफल भी हो तो दोनों इसके लिए खुद ज़िम्मेदार होते हैं.

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    2. मुक्ति ,
      तुम्हारी बात सही है, फिर भी यही कहूँगी कि बिलकुल एक जैसे वातावरण में पले दो लोग भी कभी एक जैसे नहीं होते. अपने घर का ही उदहारण दे दूँ . अपने दोनों बेटों का एक जैसा पालन-पोषण किया है .
      एक ही स्कूल, एक ही जूनियर कॉलेज में गए दोनों .पर रुचियाँ, स्वभाव बिलकुल अलग हैं . बल्कि उनकी पसंद आपस में ज़रा भी नहीं मिलती, खाने-पीने, कपड़े , किताबें-संगीत-सिनेमा सब में पसंद अलग है,उनकी . ऐसा ही एक जैसे माहौल में पले , लड़के/लड़कियों के साथ भी हो सकता है.
      बल्कि प्रेम विवाह में तो रुचियाँ, पसंद एक जैसे होते हैं तभी दोस्ती होती है और वो प्रेम में परिणत होता है. फिर भी कई बार विवाह सफल नहीं होते.
      और अब माता -पिता इतना ख्याल तो रखते ही हैं कि फौरेन रिटर्न बेटे की शादी एकदम किसी ठेठ देहात में रहने वाली लड़की से ना कर दें .
      (जैसा उस लड़के की शादी भी बी.ए., बी.एड. की हुई, लड़की से की गयी थी )

      इसलिए मूलमंत्र सामंजस्य ही है. आपस में एक दुसरे की रुचियाँ अपनाएँ , एक दुसरे की पसंद का ख्याल रखें . सम्मान करें .

      @दोनों की एक ही माँग होनी चाहिए कि "उनका जीवनसाथी उनके जैसी सोच वाला हो"
      कोई मांग ही क्यूँ हो, क्यूंकि एक जैसी सोच वाले मिलने वाले मुश्किल हैं . इसलिए जैसा भी जीवनसाथी हो ,एडजस्ट करना ही पड़ेगा .

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    3. ये भी जोड़ दूँ, कि एडजस्टमेंट मेरे घर में भी है, दोनों बेटे एक दूसरे के कपडे भी पहनते हैं {भले ही मजबूरी में (अपनी शर्ट प्रेस न हो ) या शैतानी से } .
      एक साथ फ़िल्में भी देखते हैं . घर में कभी लिरिक्स बेस्ड अंग्रेजी संगीत बजता है ,कभी इंस्ट्रूमेंट बेस्ड तो कभी रफ़ी लता के नगमे और जगजीत सिंह की ग़ज़ल .सबको एक दुसरे की पसंद सुननी ही पड़ती है :)

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    4. रश्मि जी

      कई बार माता पिता बड़े दबंग टाइप के होते है वहा बच्चे डर के मुंह न खोले तो समझ में आता है किन्तु कई बार ये लगता है की कई युवा विवाह को ही गंभीरता से नहीं लेते है जिससे हो रही है हो जाये और बाद में देखी जाएगी का रवैया या फिर उनका अपना ही डरपोक व्यवहार या फिर मोटे दहेज़ का लालच भी इसका कारण होता है । उनसे ज्यादा लड़की का जिवन बर्बाद होता है जिसे सारा जीवन पति से सम्मान नहीं मिलता है और वो उसके लायक नहीं है का ताना भी सुनना पड़ता है । हम जिस समाज में रहते है वहा एक जूमला प्रसिद्द है जोरू का गुलाम , क्या पति का गुलाम शब्द सुना है , पत्नी की सही से सही बात को लेना भी कमजोरी मानी जाती है , इसी से हम अंदाजा लगा सकते है की किसी विवाह में पत्नी की क्या स्थिति होती है , और समझौता किसे करना पड़ता है ।

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    5. मुक्ति जी

      मै यहाँ ये बिलकुल नहीं कह रही हूँ की जिनका विवाह हो रहा है उनकी सहमती नहीं होनी चाहिए , किन्तु जैसा मै चाहता \चाहती हूँ बिलकुल वैसा ही जीवन साथी मिले तभी ठीक नहीं तो बाकि बेमेल है और उसके साथ रहना एक समझौता है ये रवैया गलत है , मैंने साफ लिखा है की विवाह कैसा भी हो कभी ना कभी किसी न किसी मुद्दे पर समझौता तो करना ही पड़ेगा और आज के युवा इस बात को नहीं समझ रहे है , एक तरह से वो अपनी न सहने की और पति होने के गुरुर में अपनाए जा सकने वाली बातो को भी स्वीकारने से इंकार कर देते है , जो गलत है । मै सहमत हूँ की बेटा और बेटी दोनों को एक जैसा ही पालन चाहिए किन्तु उसके बाद भी दोनों की सोच एक जैसी हो ये जरुरी नहीं है , क्या एक ही घर में पल रहे दो भाईयो या दो बहनों की सोच एक जैसी होती है नहीं होती , तो किसी स्त्री या पुरुष की सोच एक जैसी हो हर मुद्दे पे ये तो सम्भव ही नहीं है जैसे की स्त्री लगभग हर मुद्दे पर दिमाग के साथ दिल भी लगाती है जबकि ज्यादातर पुरुष ऐसा नहीं करते है , हम कुछ मुद्दों पर एक जैसा सोच सकते है हर मुद्दे पर नहीं और जब हम किसी विवाह में होते है तो मुद्दे , और परिस्थितिया हमारे सामने सरप्राइज की तरह आते है और और फिर हमें उन पर अपने विचार रखने होते है तब यदि विचार मेल नहीं खाए तो क्या कहेंगी दोनों को रास्ते अलग कर लेना चाहिए । हर तरह की शदिया सफल होती है और असफल भी , फर्क ये है की अरेंज मैरिज में हम बड़ी आसानी से दोष दूसरो पर डाल देते है , जबकि जरुरी नहीं है की उसका कारण परिवार ही हो कई बार उसका कारण उनका आपना व्यवहार होता है , जिसे वो बड़ी आसानी से छुपा लेते है ।



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    6. रश्मि जी

      वाह वाह क्या बात कही है , संगीत वाली ।

      कैटरीना ने आज एक ट्विट किया है " जिंदगी आईपॉड की तरह नहीं है कि आप अपने पसंदीदा गाना सुना सके । यह तो रेडियो के जैसी है , ट्यून कीजिये और जो आता है उसे सुनते रहिये । " विवाह भी रेडियो जैसा ही है हर बार आप के पसंद का ही गाना बजे ये जरुरी नहीं है , यदि सिर्फ अपने ही पसंद का गाना सुनना है तो उसे ऑन ही मत कीजिये , या फिर अपनी पसंद के साथ ही दूसरो के पसंद के गानों को भी सुनने की क्षमता रखिये , अच्छे गाने के साथ बुरे गाने की झेलने होंगे , हर बुरे गाने पर रेडियो बंद करने की सोचेंगे तो रेडियो ख़राब हो जायेगा , दोष आप का है रेडियो का नहीं ।

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    7. रश्मि जी
      लीजिये मुक्ति जी को आप का दिया जवाब नहीं देखा और सेम बात मैंने भी लिख दी :)

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    8. rashmi jee aapne bahut hi badhiya likha he ....or dusri bat ki shadee/jeevan sathi bhagwan decide karte he ...reeshte upper hi bana diye jate he ,,,,yaha to ye dekha jata he ki kon keetna nibha pa sakta he..

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  3. .एक एक बात सही कही है आपने .सराहनीय अभिव्यक्ति सही आज़ादी की इनमे थोड़ी अक्ल भर दे . आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते

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  4. सहमत हूँ मैं. हालाँकि इस बात की पक्षधर मैं भी हूँ कि हर एक को विवाह का अधिकार उसकी अपनी पसंद से मिलना चाहिए. परन्तु वहीँ सच यह भी है कि आजकल के अधिकाँश युवा खुद क्या चाहते हैं ये भी उन्हें नहीं पता. उन्हें दसों उंगलिया घी में और सिर कढाई में चाहिए और शायद इतने पर भी संतुष्ट न हों. आपके सॉफ्टवेयर इंजिनियर वाला उदाहरण मेरा भी देखा हुआ है. हाल तो यह है कि अब एक शहर के विभिन्न इलाकों तक पर चोइस है ..की इस इलाके की न हो, छोटे शहर की न हो.

    @अविवाहित युवा ही कहलाते हैं ...:):).

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    1. विवाह किसी के भी पसंद की हो पति - पत्नी कभी भी एक दुसरे से संतुष्ट नहीं होते है , दो व्यक्ति एक जैसे नहीं हो सकते है कही न कही आप को समझौता तो करना ही होगा ।

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  5. अंशुमाला जी,
    आपकी पोस्ट ने लगभग सब कुछ कह दिया है ..
    इतने सारे पोस्ट्स, इसी विषय में पढ़ कर कुछ विचार आये थे मन में, सोचा था इसे पोस्ट बना कर डालूंगी, लेकिन सच पढ़ना लोगों को पसंद नहीं। आपकी पोस्ट पर डाल रही हूँ, बुरा मत मानियेगा।

    आज 'बूढ़े बच्चे' पैदा हो रहे हैं, यहाँ बूढ़े का तात्पर्य सिर्फ बूढ़ी मानसिकता से है, वर्ना कितने ऐसे बुजुर्गों से मिल चुकी हूँ, जिनके ख़यालात सलामी के हक़दार होते हैं। आज के युवा न घर के हैं न घाट के, एक तरफ़ तो वो श्रवण कुमार बनने का नाटक करते हैं, दूसरी तरफ़ भावनात्मक हिंसा पर उतर आते हैं ...महा-कंफ्युसड जेनेरेशन ये ...नए पैकेज में वही पुरानी सोच, यही है आज का युवा वर्ग ...!

    आज मैं क़सम खाती हूँ,
    अपने पुरुषार्थ, मनुष्यत्व, और व्यक्तिव को
    सर्वाधिक मूल्यवान बनाऊँगी,
    अपनी अस्मिता को बचाऊँगी,
    अपने सपनों पर अब फूल-चन्दन नहीं चढ़ाऊँगी,
    बस उनको सम्मान दिलवाऊँगी ,
    अब जो भी कदम होंगे
    वो मेरे अपने होंगे,
    किसी के इशारे या हुकुम से अब नहीं रखे जाएँगे,
    मैं जो भी चाहूँगी, जिसे भी चाहूँगी,
    वो मेरी अपनी चाहत होगी,
    मेरी अपनी कमाई से मिलेगी मुझे आज़ादी
    अपनी इच्छाएं मैं खुद उपजाऊँगी,
    आज मैंने पत्थर से अपनी काँच की चूड़ीयाँ,
    तोड़ दीं हैं,
    और कानों के बुँदे उतार दिए हैं,
    जिनसे बाँध कर जंजीर, मुझे इधर-उधर
    घुमाया जाता है।
    नहीं जीना मुझे, किसी पालतू जानवर की,
    खाल ओढ़ कर ....

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    1. @ महा-कंफ्युसड जेनेरेशन ये ...नए पैकेज में वही पुरानी सोच, यही है आज का युवा वर्ग ...!

      बिलकुल सहमत ! जिस सोच से उन्हें फायदा होगा वही वो अपनाते है तब आधुनिकता तेल लेने चली जाती है । कविता बहुत ही अच्छी है मेरी पोस्ट पर देने में मुझे कोई बुरा नहीं लगा किन्तु इतनी अच्छी कविता को और ज्यादा पाठक मिलने चाहिए आप अपने ब्लॉग पर भी दे तो ज्यादा से ज्यादा लोगो तक ये सन्देश पहुंचे ।

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  6. http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2010/08/blog-post_29.html?showComment=1283120475566#c4810260165844610081

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  7. अदा और अंशुमाला
    ये क्या नयी पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी की बात आप ने शुरू कर दी


    समस्या नयी या पुरानी पीढ़ी की नहीं हैं
    समस्या व्यवस्था से जुड़ी हैं

    "आज की पीढ़ी " कह कर हर पीढ़ी अपने से अगली पीढ़ी पर "व्यवस्था में सुधार लाने का जिम्मा " डाल कर अलग हो जाती हैं

    अदा की पोस्ट पर अक्सर उनके बच्चो का जिक्र रहता हैं जो एक तरह से व्यस्क हो चुके हैं तो क्या अदा पुरानी पीढ़ी की हैं ? मुझे नहीं लगता
    वहीँ अंशुमाला की बेटी ६ वर्ष के आस पास की हैं , तो क्या अंशुमाला पुराणी पीढ़ी की हैं

    क्या हैं नयी पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी इत्यादि केवल और केवल समस्या को पिंग पांग की बॉल को इधर से उधर डालना
    वो अदा कहते हैं ना
    the ball is your court

    हर नयी पीढ़ी बदलाव चाहती हैं पर पुरानी को लगता हैं उनको ज्यादा समझ और तजुर्बा हैं
    बात विवाह और तलक की नहीं हैं बात हैं की विवाह करने , ना करने का निर्णय व्यक्ति विशेष का ही होना चाहिये , जीवन साथी का चुनाव किसी भी भावनात्मक दबाव से नहीं करवाना चाहिये
    विवाह के बाद "छले गए " जैसी भावना तब ही आती हैं क्युकी जिनका विवाह हैं पूरा निर्णय उनका नहीं होता

    इस पोस्ट में एक लिंक और जुड़ सकता था जो अजीत जी की पोस्ट थी जहां कुल वधु और बेटे की पत्नी पर चर्चा हुई थी

    चलिये फिर आती हूँ कमेंट्स पढ़ने

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    1. रचना जी



      @अंशुमाला की बेटी ६ वर्ष के आस पास की हैं , तो क्या अंशुमाला पुराणी पीढ़ी की हैं ( ये मेरी पोस्ट पर लिखा है )

      @ सबने उसको कहा वो अपनी पत्नी को के साथ निभाने की बात सोचे उसको सुधारे इत्यादि इत्यादि , क्युकी यही एक सोची समझी व्यवस्था हैं जो आज की पीढ़ी की विवशता जैसी हो गयी हैं । मुक्ति नयी पीढ़ी की हैं और उनको लगता हैं ये समस्या व्यापक हैं लेकिन समाधान उतना आसान नहीं हैं जितना लग रहा हैं ।

      ये आप ने नारी ब्लॉग की पोस्ट पर लिखा है मुझे संबोधित करते हुए , मुझे लगा की आप मुझे पुरानी पीढ़ी का कह रही है , हा मै मुक्ति जी से आयु में बड़ी हूँ और अरेंज मैरिज वाली हूँ किन्तु ऐसा मुझे लगता है की मेरी सोच आज के ज़माने की है जिसे आप पीढ़ी कह रही है , और हमने जो समाधान दिया है वो आज की सोच के हिसाब से कहा था , हम में से किसी ने भी नहीं कहा जैसी है वैसी ही पत्नी को स्वीकार करो । खैर पोस्ट में मेरे कहने का तात्पर्य ये है जिसे आज सभी युवा नई पीढ़ी का कह रहे है असल में उनकी सोच पत्नी को लेकर उतनी आधुनिक नहीं है जैसा की वो दिखाने का प्रयास कर रहे है , मैंने उदहारण भी दिए है । मैंने पीढ़ी की बात नहीं की है और न ही किसी पर इसकी जिम्मदारी डाली है मैंने एक जगह लिखा भी है की युवा के साथ ही अपने आप को आधुनिक कहने वाले परिवार भी अपनी सोच बदले , मैंने भी व्यवस्था बदलने की बात कही है और मैंने ये कही नहीं कहा है की विवाह किसकी मर्जी से होना चाहिए , मैंने कहा है की विवाह किसी की भी मर्जी से हो उसमे समझौते तो होते है , आप को अपने मन का ही जिवन मिले जीने के लिए ये जरुरी नहीं है ।

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    2. @ विवाह के बाद "छले गए " जैसी भावना तब ही आती हैं क्युकी जिनका विवाह हैं पूरा निर्णय उनका नहीं होता ।

      एक बड़ा आम सा चुटकुला है की पत्नी और कोई स्मार्ट गैजेट घर लाने के बाद लगता है की कुछ दिन रुक जाते तो और अच्छा माडल मील जाता । आप की पोस्ट पर प्रवीण शाह जी ने इसका सही जवाब दिया है की ये बस एक घटिया बहाना है , ऐसे लोग अपनी मर्जी से विवाह करने के बाद कहते है की तुम्हारे बारे में पहले ये जानता तो तुमसे विवाह ही नहीं करता ।

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    3. मुझे लगा की आप मुझे पुरानी पीढ़ी का कह रही है
      nahin mae kisi ko bhi purani peedhi yaa naii peedhi kaa nahin keh rahii

      maene to aap aur adaa dono ke liyae kehaa haen prashansuchak tarikae sae "ki kyaa aap purani peedhi ki haen ?? yaani meri nazar me nahin haen is liyae aap ko abhi nayii peedhi ityadi ki baat ko nahin kehna chahiyae

      yae meri soch haen ki peedhi kewal badalti haen , nayii purani nahin hotii

      shaayad mae apni baat sahii tarikae sae nahin keh payii so kshma

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    4. रचना जी

      शायद मै अपनी बात आप को समझा नहीं सकी , हा आप ने मेरी पोस्ट में प्रश्नवाचक ही लिखा है किन्तु जो मैने दूसरा उदहारण लिखा है वो आप में अपनी पोस्ट में लिखा था , जिसमे आप ये कहने का प्रयास कर रही है कि चुकी ये समस्या आज के युवाओ की है और हम सभी का विवाह पहले ही हो चूका है सो हम समस्या को नहीं समझ रहे है जबकि मुक्ति आज के ज़माने की है ( शायद आप उनके अविवाहित होने की और इशारा कर रही है ) इसलिए वो समस्या को सही से समझ रही है और मै अपने पोस्ट में यही बताना छह रही हूँ जिनका विवाह नहीं हुआ है जो विवाह करने जा रहे है जरा उनकी एक पुरातन सोच तो देखिये समस्या इसको भी बदलने की है । मै भी बात सोच की ही कर रही हूँ की कहने के लिए तो वो आज की पीढ़ी के है किन्तु सोच पुरानी है जो हर व्यक्ति में है। हमें यदि आप ने पुरानी पीढ़ी का कहा भी दिया तो ये कोई इशु नहीं है हा वो तो हो ही जाते है विवाह के बाद आप की सोच बदलती तो है ही अब हमरे पास इतने सालो का अनुभव भी है जो बताता है की जीवन और विवाह सिर्फ सोच से नहीं चलती है ।

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    5. अंशुमाला
      आप विवाहित हैं और मै अविवाहित हम दोनों की सोच में कुछ ना कुछ व्यावहारिक अंतर अवश्य होगा . लेकिन मै उस अंतर की बात नहीं कह रही थी
      मैने कहा था "मुक्ति नयी पीढ़ी की हैं और उनको लगता हैं ये समस्या व्यापक हैं लेकिन समाधान उतना आसान नहीं हैं जितना लग रहा हैं .

      यानी आज की पीढ़ी जो अविवाहित हैं वो या मान रही हैं की जिस व्यवस्था का वो हिस्सा हैं उसमे जिस प्रकार से विवाह किये जाते हैं वो सही तरीका नहीं हैं .
      आप खुद एक बार कहीं कह चुकी हैं अपने भाई की शादी को लेकर की आप लेन देन के विरुद्ध होकर भी उस समय आवाज नहीं उठा सकी .

      यानी एक नयी पीढ़ी की आप { इसको पर्सनल ना ले क्युकीडिस्कशन हैं} अपने समय मे चाहे वो अपना विवाह हो या भाई का किसी और का आवाज नहीं उठा पायी क्युकी "किसी ना किसी के रुष्ट होने का डर था , सम्बन्ध खराब होने का डर था , बदमज़गी का डर था यानी आपने "विद्रोह " नहीं किया जब करना था
      आज आप उस उस लडके से विद्रोह करने की कामना रखती हैं की उसने सही समय पर मना नहीं किया , वो सही समय पर किसको मना करता ?? और कैसे ? मेरा प्रश्न यही हैं की क्यूँ बच्चो की पसंद ना पसंद को दर किनार करके उनके विवाह को अंजाम दिया जाता हैं और उनसे निभाने की जाती हैं .

      ये समस्या व्यापक हो चली हैं

      अपनी जगह पर मै किसी भी शादी में कोई लेन देन नहीं करती , ना तो मै कभी किसी भी बहूँ से पैर छुआई के शगुन के ५१ रूपए लेती हूँ , ना उसको मुह दिखाई के लिये शगुन देती हूँ . बाकी अवसरों पर भी मै उन सब बातो से अलग रहती हूँ जिन बातो का मै सार्वजनिक रूप से विरोध और निंदा करती हूँ .
      बहुत से कहते हैं तुमने विवाह नहीं किया , तुमको कोई फरक नहीं पड़ेगा , हम तो घर गिरस्थी वाले हैं , हमे तो दुनिया जहां से निभा कर चलना हैं , सब रीति रिवाज हम नहीं करेगे तो हमारे यहाँ कौन करेगा . मेरा जवाब { जो मै देती नहीं } इसीलिये तो मै अविवाहित हूँ क्युकी हमारे समाज में विवाह करना कम्प्रोमिज़े करना होता हैं " अपनी सोच से "
      हर स्त्री मानती हैं कन्या दान गलत प्रथा हैं पर अपने समय में नहीं बोलती हैं और उसके बाद सोचती हैं नयी पीढ़ी की लडकियां विद्रोह करेगी , ये नयी पीढ़ी हैं कहां ??? हर किसी को दहेज़ गलत लगता हैं लेकिन अपने समय में बहुत कम इस लेन देन का विरोध कर पाते हैं .

      वो 50 रूपए भी अगर कोई लड़की वालो से लेता हैं तो गलत हैं क्युकी इसलिये मिले हैं की दूसरा लडके वाला हैं

      नयी पीढ़ी और पुराणी पीढ़ी का विवाद हैं ही नहीं बात हैं अपने अपने समय में व्यवस्था को बदलने की ना की आने वालो पर इसको बदलने का जिम्मा डालने की

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    6. मुझे लगता है की मै अपनी बात ठीक से समझा नहीं पा रही हूँ फिर से पायस करती हूँ ।



      @ यानी आज की पीढ़ी जो अविवाहित हैं वो या मान रही हैं की जिस व्यवस्था का वो हिस्सा हैं उसमे जिस प्रकार से विवाह किये जाते हैं वो सही तरीका नहीं हैं .

      और मै आप को उसी पीढ़ी का उदहारण दे कर बता रही हूँ की ये पीढ़ी बड़ी चालाकी से अपने फायदे के लिए कभी परम्परागत विवाह को बेकार कहती है तो कभी उससे जुड़े अपने फायदे को देख कर उसे अपना लेती है , जैसे पत्नी नौकरी वाले के साथ की गृह कार्य दक्ष भी चाहिए क्यों भाई घर का काम करने के लिए पत्नी क्यों बाध्य है आप खुद क्यों नहीं कर सकते है , और पत्नी आप की पसंद की ही नौकरी क्यों करे उसकी मर्जी नहीं है ।



      @ आप खुद एक बार कहीं कह चुकी हैं अपने भाई की शादी को लेकर की आप लेन देन के विरुद्ध होकर भी उस समय आवाज नहीं उठा सकी .

      आप उस चैट को फिर से पढ़िए मैंने कहा था की छोटे छोटे लेन देन भी दहेज़ ही है इस बात को उन्हें समझा पाना भी मुश्किल होता है । एक बार दिव्या जी के पोस्ट में मैंने कहा था की किसी लड़की का ये कहना की वो बिना दहेज के विवाह करेगी मुश्किल है , फिर उससे कोई विवाह ही नहीं करेगा और बात केवल उस तक नहीं है विवाह नहीं किया तो उसकी छोटी बहनों का विवाह नहीं होगा ये उसकी समस्या है , हा एक बहन के नाते मै ये प्रयास जरुर करुँगी की मेरे भाई का विवाह हो तो उसमे कोई लेना देना न हो । मेरे भाई की शादी सिर्फ ६ महीने पहले ही हुई है , हम सभी बहनों ने इतना साफ मना किया था दहेज़ न लेने का और अपने माता पिता को समझाया था की उन्होंने तो कई बार लड़की वालो को पहले ही ये बात कह दी और लोग हमें शक की नजर से देखने लगे की हम ऐसा क्यों कहा रहे है की हमें दहेज़ नहीं चाहिए क्या लडके में कोई खराबी है । फिर भी हम जमीनी हकीकत से वाकिफ है की यदि मेरे पिता ने दहेज़ में एक रु भी नहीं लिए तो उसका एक कारण ये भी था कि उसका विरोध उतना ही मेरे भाई ने भी किया था , सिर्फ हमारे कहने से कुछ नहीं होने वाला था । यही कारण है की मै बार बार कहती हूँ की विरोध लड़को को ही करना होगा लड़कियों के कहने से ज्यादा फर्क नहीं होने वाला है ।

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    7. @ यानी एक नयी पीढ़ी की आप { इसको पर्सनल ना ले क्युकीडिस्कशन हैं} अपने समय मे चाहे वो अपना विवाह हो या भाई का किसी और का आवाज नहीं उठा पायी क्युकी "किसी ना किसी के रुष्ट होने का डर था , सम्बन्ध खराब होने का डर था , बदमज़गी का डर था यानी आपने "विद्रोह " नहीं किया जब करना था ।

      अगर आज मै ये कह रही हूँ की उस लडके को विरोध करना चाहिए था तो इस कारण कह रही हूँ क्योकि आज से करीब ११ साल पहले बनारस जैसे छोटे शहर में एक बड़े ही पारम्परिक मध्यमवर्गीय बनिया परिवार की हिंदी मीडियम वाली बेटी इंकार कर सकती है तो अपनी पसंद बता सकती है अपने संयुक्त परिवार से पंगा ले सकती है । क्योकि मेरे लक्ष्मण जैसे पिता की पसंद भी मेरी ही तरह थी किन्तु वो संयुक्त परिवार में उतना खुल कर बोल नहीं सकते थे और उन्होंने मुझे ही आगे बढा दिया और मैंने मुंह खोल कर आराम से कहा दिया , यहाँ तक की मुझे लोगो को ये बताना पड़ा एक समय की मेरा किसी से कोई अफेयर नहीं है शादी तो मै आप लोगो के पसंद के लडके से ही करुँगी , तो आज के ज़माने का एक लड़का ये कैसे नहीं कर सकता है । चुप रहना मुझे नहीं आता है और मेरा ये ब्लॉग मेरा पूरा परिवार, संयुक्त परिवार के कुछ लोग भी पढ़ते है वो आप को इस बात की गवाही दे सकते है । उसे छोडिये मेरे पति से सीधा साधा शांत और दूसरो की बात मान लेना वाला व्यक्ति मैंने नहीं देखा खुद उन्होंने एक अन्य लड़की को इंकार करके अपनी माँ जैसे बहन को नाराज कर मुझे पसंद किया था ( इसके कारण हमरी सगाई ६ महीने तक लटकी रही ) फिर मै कैसे मानु की अपनी पत्नी को छोड़ने की बात करने वाला , पत्नी को शराब पिलाने वाला , नौकरी करवाने वाला लड़का कैसे अपने माता पिता के सामने मुंह नहीं खोल पाया , जरुर उसको कोई फायदा हो रहा था उस विवाह से इसलिए उसने बाकि चीजो से मुंह मोड़ लिया और जब वो फायदा यानि दहेज़ उसे नहीं मिला तो उसे लड़की में सारी खराबी नजर आने लगी । वो कायर , लालची डरपोक दो........ है , और विवाह के समय चुप रहने वाले और बाद पत्नी में खराबी निकाल कर उन्हें छोड़ने की बात करने वाले भी ऐसे ही है ।

      @ मेरा प्रश्न यही हैं की क्यूँ बच्चो की पसंद ना पसंद को दर किनार करके उनके विवाह को अंजाम दिया जाता हैं और उनसे निभाने की जाती हैं .

      यदि आप चुप रहेंगे तो उसका खामियाजा भी आप को ही भरना होगा , जैसे आप कहती है की स्त्रियों को बोलना चाहिए उसी तरह विवाह के समय लड़को को भी खुद ही बोलना चाहिए ये उसका दोष दूसरो पर नहीं मढ़ सकते है ।

      @ ना उसको मुह दिखाई के लिये शगुन देती हूँ

      ये मै देती हूँ और मैंने अपने भाई और उसकी पत्नी को कहा था की कल को तुम दोनों मुझे कोई उपहार डोज तो मै जरुर लुंगी तुम्हारे पिता से क्यों लूँ ।

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    8. @क्युकी हमारे समाज में विवाह करना कम्प्रोमिज़े करना होता हैं " अपनी सोच से "

      रचना जी ये कम हर रिश्ते में करना होता है बहुत से मुद्दे होंगे जहा आप की और आप के माँ की सोच मेल नहीं खाती होगी किन्तु फिर भी अपनी सोच एक किनारे रखा कर कभी आप को उनकी तो कभी उन्हें आप की बात सुननी पड़ती होगी , मननी पड़ती होगी , आप अपने बिजनेस भी केवल और केवल अपनी ही सोच के हिसाब से नहीं चला पाती होंगी कही न कही आप को समझौता तो करना ही होता होगा, समझौता तो हर रिश्ते में है । हां आप से सहमत हूँ की जिन्हें लगता है की वो ऐसा नहीं कर सकते है या उन्हें विवाह से जुडी दूसरी चीजो से परेशानी है तो वो न करे विवाह उनकी अपनी मर्जी किन्तु विवाह के बाद कोई भी ये नहीं कह सकता है की मुझे समझौता मंजूर नहीं है ।

      जहा तक बात मेरे नई पीढ़ी की है तो मै बता दूँ की अभी आप लिव इन रिलेशन विवाह से पहले सेक्स विवाह के बाहर अफेयर जैसे मुद्दों पर बात करेंगी तो मुझसे ज्यादा पुरातनपंथी कोई नहीं होगा , किन्तु वो बस मेरे लिए होगा मै वो सोच अपनी बेटी तक पर लागु नहीं करुँगी , उसका अपना जीवन होगा उसकी अपनी सोच होगी वैसे ही बाकियों की है ।

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    9. अपने बिजनेस भी केवल और केवल अपनी ही सोच के हिसाब से नहीं चला पाती होंगी कही न कही आप को समझौता तो करना ही होता होगा,
      nahin anshumala mae samjhotaa nahin kartii , agr business kae liyae bhi karnaa ho to bhi nahin , vyaktigat karna ho to bhi nahin

      aur mae samjhotaa shabd har jagah kewal aur kewal "values" kae sandarbh me hi istmaal kar rahii hun


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    10. रचना जी

      मैंने पोस्ट उनके लिए लिखी है जो विवाह तो करना चाहते है किन्तु कोई समझौता नहीं , हर समझौता पत्नी से ही चाहते है, मैंने कहा है की उन्हें अपनी सोच बदलनी चाहिए , जिन्हें ये मंजूर नहीं है उन्हें विवाह ही नहीं करनी चाहिए । मुझे लगता है सही मुल्य , जीवन के सिद्धांत आदर्श आदि आदि वही है जो समय के साथ बदले, जो नहीं बदलते है वो रुढ़िवादी हो जाते है ( इसे अपने अविवाहित होने के सन्दर्भ में न ले, एक हिबत हर सन्दर्भ में लागू नहीं होती है ) लोगो ने भारतीय समाज के मुल्य, आदर्श बदले तभी आज स्त्री पढ़ लिख रही है नौकरी कर रही है , जहा लोग अपने उन पुरातन आदर्शो को लेकर कट्टरता दिखा रहे है वह पर महिलाओ , दलितों , कमजोरो का बुरा हाल है । आदर्श सिद्धांत परिस्थितियों को देख कर बनते है जब समय और परिस्थिति ही बदल जाये उन्हें भी बदलना होता है । अब देखिये " नारी " ब्लॉग बना है केवल नारी के लिए किन्तु आप ने उस पर एक पुरुष की समस्या को रखा केवल उसकी ही समस्या की बात की आप ने एक बार भी उस स्त्री और उसके जीवन के बारे में बात नहीं की जो उससे ज्यादा पीड़ित थी और जिसकी कोई भी गलती नहीं थी , जब की हम सब उसके बारे में ही बात करते रहे और आप एक पुरुष का पक्ष लेती रही , भले एक सामाजिक समस्या के कारण , असल में तो नारी ब्लॉग को उस लड़की के बारे में बात करना चाहिए था की कैसे एक निर्दोर्ष लड़की का जिवन एक सामाजिक समस्या के कारण बर्बाद हो रहा है । दुसरे आप ने अपनी एक टिपण्णी में हमारे निजी चैट का जिक्र किया, जिस रचना जी को मै जानती हूँ उन्हें इस बात से जरा भी फर्क नहीं पड़ना चाहिए था , किन्तु आप ने , हमारी एक जैसी सोच , हमारे तथा कथित बहन होने , हमारे अच्छे संबंधो के कारण :) मुझसे कहा की मै चाहु तो वो टिपण्णी हटा दू , आप को पता भी नही चला किन्तु आप ने अपनी सोच मुल्य से समझौता कर लिया , क्योकि आप को उस समय वही सही लगा । ऐसे ही हर रश्ते में हम ये करते है और मै बस ये कह रही हूँ की ये काम केवल स्त्री ही क्यों करे पुरुष को भी करना चाहिए ।

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  8. http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2009/02/blog-post_03.html?showComment=1233639300000#c7071495675439616946

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  9. "लड़कियों से पूछता कौन है की उन्हें कैसा जीवन साथी चाहिए उन्हें बोलने का हक़ ही कहा है,"

    आपने जो कुछ भी लिखा है वह बहुत ही सहज रूप से सब कुछ कह देता है, यदि सीधी भाषा में कहें तो आज भी मानसिकता "मीठा मीठा गप, कडवा कडवा थू" वाली ही है. राम जाने कब बदलाव आयेगा.

    रामराम.

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    1. जीवन साथी को उसकी अच्छाई के साथ ही उसकी बुरईयो को भी स्वीकार करना चाहिए ।

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  10. Marriage is already an irrelevant institution. Earlier, among various things, it was meant to give structure to society, it was a tool to regulate sexual promiscuity and sex related crimes, keeping youth sexually contented. All over history, barring last some decades, most youth got married as soon as they gain sexual maturity. Obsolete.

    Now it retains mostly one role, forming a two person team, to bring up new generation -- full-stop.

    Now when population is such a big problem, and sex is no taboo, society and administration must discourage marriage. Women will mainly benefit from commitment free society, freedom over their bodies, freedom from traditional gander role, all the time for career, self improvement and oneself.

    It will help economy also, regions with highest number of committed bachelors consistently register negative population growth rate (Japan, Germany, North Europe). And when youth will have no family to provide for and to spend time with, they will single-minded focus on their work and mission. Agreed, in a marriage-less society loneliness will be a big problem, but this is also good. In one way, lonely people consume more and save less, thereby pumping more money into economy, in other, they will form temporary relationships for companionship, off course child-free, no-strings-attached and can be abandoned any time. This will solve many social problems. So, seriously society is very slow to change, but now time is ripe to discourage marriages.

    Single people are most dedicated, austere and honest(viz. Modi, Kalam, Vajpayee and Mamta).

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    1. errata: committed bachelors --------------> read lifelong bachelors

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    2. Yaa right !! What an ultimate solution ! Dream of a perfect society ! Rather perfect 'string less society', no marriages, no kids, no responsibilities, only dedicated bachelors/spinsters contributing to the economy of our country. So that, in another 40-50 years time, we will be witnessing, so called DEVELOPED but good for nothing OLD FAT India. No babies, no real home, no real partners, only loads of next generation Baby-boomers running around looking for old age homes, registering themselves for their own cremation, hardly finding any time to cherish their own magnificent healthy economy, then opening immigration offices all over the country, requesting Bangladesh, Nepal, Bhutan etc to come and produce babies to give helping hands to helpless old generation, because by that time our people will be done with their own fertility powers. But no worries, we will have enough Modis, kalams, Mamtas and Annas to hold our heads high.

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    3. I notice a bitter sarcasm here.

      I only mentioned discouraging marriage, never banning it.

      There will be lots and lots of average minded youth who will gravitate towards marriage. Like you see, sex before marriage is discouraged, crimes are discouraged, unethical businesses are discouraged etc etc but such things happen big time. What is natural and wired into brain is going to happen, howsoever you discourage it. Like greed, lust, love, compassion, herd mentality are hardwired into our brain, so is tendency to produce offspring.

      So by discouraging marriages, only population growth will be checked. And people will never stop having families or offspring.

      And tell me, you talk of real home, real partner, babbies et al. In society, how many couples do not resent each other, how many are really satisfied from their spouses or how many children are getting optimum care? Batter get unemotional and look at hard facts.

      Look at Israel, worldwide jewish population is less then one crore, but they dominate the world. India is virtually a hell, we need a major social sugary, a social revolution.

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    4. विवेक जी

      मै ये मान कर चल रही हूँ की आप भारत, भारतीय समजा और संस्कृति को समझते होंगे । महिलाए कभी भी इस तरह की स्वतंत्रता नहीं चाहती है जहा संबंधो में कोई कमिटमेंट या वफादारी न हो या जो स्थाई न हो , वो बस इतना चाहती है की हर रिश्ते में उन्हें सामान दर्ज मिले किसी भी रिश्ते में उनके भी उतने ही अधिकार हो जितने की किसी पुरुष को , और उनकी भावनत्मक जरूरतों को भी समझा जाये , और कैरियर विवाह को वो संतुलन तो बना ही लेती है बस अपनी जिम्मेदारी बढ़ने पर वो पति से बराबर का सहयोग भर मांग रही है , विवाह और उससे जुडी जिम्मेदारियों से भाग नहीं रही है इसलिए आप का ये कहना की विवाह का ख़त्म होना महिलाओ के लिए फायदेमंद है मै ऐसा नहीं समझती हूँ , उन्हें नुकशान ज्यादा होगा ।

      दूसरी बात की अविवाहित व्यक्ति अपने काम और मिशन के लिए ज्यादा फोकस होगा और आर्थिक रूप से तरक्की होगी तो ये भी गलत है किसी भी समाज में परिवार, व्यक्ति को और ज्यादा पैसे कमाने आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है और परिवार की जिम्मेदारी और उनका भावनात्मक सहयोग उसे और ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करता है हर दिन उसे तैयार करता है , हा ये सही है की कुछ लोग अपने मिशन के लिए इतना फोकस होते है की वो विवाह नहीं करते है किन्तु इसका ये मतलब नहीं है की विवाह न करने से हर व्यक्ति अपने काम के प्रति फोकस हो जायेगा , रतन टाटा ने विवाह नहीं कर टाटा कंपनी को कितन आगे बाढा दिया, किन्तु विवाह और बच्चे वाले उद्योगपति उनके मुकाबले कही ज्यादा है जिन्होंने अपनी कंपनिया भी काफी बढाई है । हमारे यहाँ एक कहावत है की आगे पुत ( पुत्र आदि नहीं है ) न पीछे पगहां ( पत्नी नहीं ) तो तुमको कुछ भी काम करने और जमा करने की क्या जरुरत है । माना जाता है की जब कोई जिम्मेदारी ही नहीं है केवल अपने लिए ही जीना है तो ज्यादा काम करने की जरुरत ही क्या है और ज्यादातर लोग ऐसा ही सोचते है , और फिर खाली दिमाग शैतान का घर , अपराध और बढ़ेंगे । इसलिए विवाह करना है या नहीं ये हर एक व्यक्ति की अपनी निजी सोच होती है ये उस पर निर्भर करता है विवाह को हत्तोसाहित करने की जरुरत नहीं है ।

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    5. और हा आप विवाह को जनसंख्या से कुछ ज्यादा ही जोड़ रहे है जनसंख्या रोकने के लिए कुछ लोगो को ( जो दो से ज्यादा बच्चो को जन्म दे रहे है ) समझदार बनाना उसका उपाय है विवाह रोकना नहीं क्योकि आज शहरो में लोग दो क्या एक ही बच्चे को जन्म दे रहे है ।

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    6. You mean to say, people like us, who got into marriages, are AVERAGE MINDED people ?? If this is what you think then I am really sorry to say, we all are product of AVERAGE MINDED Psyche, including yourself. Good and bad things will happen as long as this earth will revolve around the sun, it is up to us, as an individual how much good er or badder we can be, that will impact the society.

      I think keeping check on the population has started before hand, look at the nucleus families of nowadays , mom-dad and one or two kids.
      People are not happy with their marriage or their kids because we take for granted to miracle happen around us, and when the miracles aren't perfect, we start complaining, forgetting one thing, WE DID NOT DO OUR JOBS RIGHT....!!
      One crore Israelis dominate the world ?? I don't think so, they dominate the Palestine only. They have got soft corner in the hearts of Western society, because of 'Jerusalem'. May be they are very shrewed business people, may be they are better equipped to save their own country, but they are not leaders of this world.

      Yes India needs a social revolution. but that will NOT happen by banning or discouraging the Marriage institution, free sex, live-in-relations. This will only come when each and every Indian will follow his good heart.

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    7. I respect your views. And my opinion is, whatever happening in first world (US, Europe, Japan, Russia) will happen in India too. History attests this.

      For instance, India was never a meat consuming region, now not only our newer generations consume meat, we are major exporters. Same with liquors, for men it is no taboo now, and contemporary urban women are fallowing the suit. Earlier these two and others (divorce rates, vulgarity on media, lifestyle diseases, depression to name a few) were considered purely western phenomena. Now they have gripped India. Times Changed really fast.

      Trend is that western psyche is becoming atheistic, individualistic and prefers to remain single for life. Till now these are first world problems, but I can see India will fallow the suit in few decades. What is happening in the first world today, will happen in India tomorrow. Weather one likes or not. My or your choice doesn't matters a bit. What is destined will happen, and what is not will not --- que sera sera.

      Within a decade or two social structure will change so drastically that the social issues you have been raising will become obsolete in no time. You will find that a section of Indian youth is atheist, and has no intention to marry. Then you will fondly remember, how good things were in early decades of 21st century, seriously.

      PS: Jews control world finance including all major federal banks including our own RBI. They control world media, defence and armament industry, energy industry, Major think tanks, worlds major universities. What else is required to dominate the world?

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    8. May be this is what will happen, may be this world will become a true global village, may be we will become global citizens, may be there will be no religion left, may there will be globalization of culture, and that will be CULTURE of Convenience.

      May be what we want and what we wish will hold no water. That does not mean we stop trying. May be a day will come when these events will be the most natural events in our society. May be my grand children will be practicing the same. But don't you think, future is not looking that great ! You yourself said, becoming copy cats of first World will bring divorce rates up, vulgarity on media, lifestyle diseases, depression. Still you think we should proudly and with open arm embrace these changes, when we are witnessing the consequences of these changes first hand ?? Don't you think we are lucky to have tonnes of opportunities to learn from others mistakes and not to take that root ?? This is not the time to give up. You are talking about social revolution, and I think this will be best revolution that ever happened in India, so let's join our hands to save our social values. Lets do this in our own little ways. We Indians are blessed people, we have best of both worlds in our hands. It will be really stupid of us to loose one of them.

      And about those billionaire Israelis, who are holding world economy as ransom, are Israel born Americans.

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  11. इसमें कोई दो राय नहीं कि अपनी पसंद की शादी में भी समझौते तो करने ही होते हैं | समस्या यह कि इन समझौतों का बोझ हमेशा लड़कियों पर ही रहा है | लडके ये स्वीकार नहीं कर पाते | एक बात समझ में कम आती है वो यह अपनी पसंद से विवाह करने वाले युवा शादी निभा क्यूँ नहीं पाते.....उनकी सक्षमता वहां क्यूँ नहीं दिखती ..... खूंटे से छुड़ाने कि तरह लव मरीज का रिश्ता तोड़कर माता पिता के पास आकर रोते हैं ....ऐसे अनगिनत मामले देखे भी हैं और सुने भी

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    1. जी हा मैंने भी अपने आस पास देखा है लव मैरिज फेल होने के बाद परिवार के पास आ जाते है फिर से विवाह कराने के लिए । वैसे ऐसा नहीं है की हर लव मैरिज असफल ही होती है , जहा समझदारी होगी वह हर तरह के विवाह सफल होंगे ।

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  12. यह सच है कि दो नावों पर पैर रखकर चल रही है आजकी पीढ़ी। आधुनिक भी चाहिए और परम्‍परावादी भी। आधुनिक इसलिए कि उसे वह अधिक आनन्‍द दे सके और परम्‍परावादी इसलिए कि परिवार और समाज में उसे सम्‍मान मिल सके। माता-पिता द्वारा किए गए विवाह में बहुत सारे दृष्टिकोण होते हैं, जबकि युवाओं के द्वारा किए गए चुनाव में सीमित दृष्टिकोण होते है। लेकिन अब समाज की सोच बदल रही है और लड़की से भी उतना ही पूछा जाता है जितना लड़के से। मेरा दृष्टिकोण तो यह है कि विवाह लड़के-लड़की की पसन्‍द का हो तो ही अच्‍छा है, बस यह देखना चाहिए कि कहीं भावना में बहकर कोई गलत निर्णय तो नहीं कर रहे हैं। इसी में सभी की खुशी रहती है नहीं तो दोषारोपण होता ही रहता है। वैसे भी अब मानसिकता बदल रही है परिवार में बहु तो आ नहीं रही है केवल पत्‍नी ही आती है तो फिर पसन्‍द पति की ही हो तो ज्‍यादा अच्‍छा है।

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    1. पत्नी किसी भी की पसंद क्यों न हो संतुष्टि कहा है सभी को शिकायत है , क्योकि सभी को बस पत्नी के रूप में एक अपनी बात मानने वाला रोबट चाहिए जो काम तो सब आप की मर्जी का करे और जवाब कुछ न दे ।

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  13. मुझे लगता है कि आपने हमारी बात को ठीक से समझा नहीं अंशुमाला जी. हम न ही लव मैरिज की बात कर रहे थे, न ही उस लड़के की तरफदारी कर रहे थे और न ही लड़की के गंवार होने की बात कह रहे थे. हमारा कहना सिर्फ इतना सा था कि समस्या सिर्फ एक पीढ़ी, लड़की-लड़का या लड़की के घरवालों या लड़के के घरवालों की नहीं है. समस्या यह है कि बच्चों की शादी करते समय उनकी पसन्द पूछी जाय. मैंने अपने भाई की शादी का उदाहरण भी दिया था. उसे खुद से लड़की नहीं ढूंढनी था और न ही उसे कोई महानगरीय लड़की चाहिए थी. बस उसकी एक पसंद थी और जो लड़की उसमें फिट बैठी, उससे शादी के लिए उसने हाँ, कर दी. इसी तरह लड़की से भी उनकी पसंद पूछी जाय. चाहती तो सभी लड़कियाँ ज्यादा कमाने वाला लड़का या लड़के सुन्दर-गृहकार्य दक्ष लड़कियाँ, लेकिन इसके आलावा उन्हें कैसे गुणों वाली लड़की चाहिए, इसे पूछना ज़रूरी है...ऐसा इसलिए कि लड़का या लड़की मानसिक रूप से तैयार हो सकें.

    आपने अपने आस-पास के उदाहरण दिए हैं. मैं आपको यहीं ब्लॉगजगत और अपने दोस्तों के उदाहरण देती हूँ, जो बेहद समझदार हैं. उनके कोई रूमानी ख़्वाब नहीं है- सीधी-सादी सी माँग है कि कम से कम उनका जीवनसाथी उनके जैसी सोच वाला हो. इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है?

    मैंने और रचना जी ने यह भी नहीं कहा था कि लड़कियों को महानगर भेजकर ही पढ़ाया जाय, लेकिन उन्हें पढ़ाया तो जाय. मैं खुद एक बेहद छोटे कस्बाई शहर से हूँ. मैं ऐसा क्यों मानूँगी कि छोटे शहरों या हिन्दी मीडियम से पढ़ी लड़कियाँ स्मार्ट नहीं होतीं?

    मैं सिर्फ इतना कह रही थी कि समस्या इतनी छोटी नहीं कि उसे आप नयी पीढ़ी या लड़के पर छोड़कर उसका समाधान ढूँढने की कोशिश करें. समस्या बहुत बड़ी है. और उसका समाधान सोच बदलकर ही होगा. जब तक लोग अपने बेटों को बाहर पढ़ने भेजते रहेंगे और लड़कियों को उनके व्यक्तित्व के विकास से वंचित रखेंगे, ये समस्या बनी रहेगी. समस्या तब सुधरेगी जब लड़कियों को ये समझाया जाय कि उनकी ज़िंदगी सिर्फ एक 'सफ़ेद घोड़े पर आने वाले राजकुमार' तक सीमित नहीं है. जब लड़कों को यह कहकर पाला जाएगा कि लड़कियों का काम सिर्फ घर सँभालना नहीं है. वो और भी बहुत कुछ कर सकती हैं. जब तक सोच नहीं बदलेगी.

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    1. मुक्ति जी

      मै यहाँ लव मैरिज अरेंज मैरिज का पक्ष नहीं ले रही हूँ मै यहाँ बात हर तरह के विवाह में लोगो की मानसिकता की कर रही हूँ । जो लड़का अपने को आधुनिक कह रहा है वो पत्नी को लेकर कितना आधुनिक है उसकी सोच पत्नी को लेकर इतना पुरातन पंथी क्यों है की २८ साल की लड़की को ढंग से खाना बनाना भी नहीं आता है , क्यों हर लड़की विवाह के समय पाक कला में पारंगत हो ऐसा कहा का रुल है और मुझे टीचर की नौकरी पसंद नहीं है तो उसकी मर्जी का क्या होगा , लडके को पता था की लड़की बी एड है तो इसका क्या मतलबी होता है । जी लड़का इतना कमजोर निकल की अपने माँ पिता के सामने अपनी बात नहीं कहा सका वो आज पत्नी को भला बुरा कह रहा है उसके साथ ठीक से रहा नहीं रहा है उसका जीवन नर्क बना रहा है क्या अंग्रेजी पढाई लिखी ओर आधुनिकता आप को ये नहीं समझा रहा है की आप के व्यव्हार से आप की पत्नी का जीवन नर्क हो रहा है आप उसे तिल तील कर मार रहे है ।

      मेरे भाई ने भी कहा था की तुम लोग लड़की पसंद कर लो मुझे कोई परेशानी नहीं है पसंद उसने बता दी और मैंने घर में सभी को कह दिया की निर्णय तो उसे ही करने दो वो इस जिम्मेदारी से क्यों भाग रहा है कल को कुछ भी हुआ तो वो हम पर दोषरोपण करेगा :)

      वैसे भी हम कैसे किसी लड़की को घंटे दो घंटे बात करके समझ सकते है ये सम्भव नहीं है , कल को परिस्थिति अलग होती है व्यक्ति का व्यवहार बदलता है , उसकी आदते धीरे धीरे सामने आती है आप को उन सभी को स्वीकार करना होगा।

      सोच तो किसी किसी मुद्दे पर ही मिल सकती है न हर मुद्दे पर तो नहीं फिर उसे क्या कहेंगे बेमेल विवाह ।

      नहीं मै इस बात का विरोध करती हूँ की कीसी भी लड़की में ये परिवर्तन सिर्फ इसलिए लाया जाये क्योकि उसका विवाह करना है , मुझे ये बात पसंद नहीं आती है । जब मेरे विवाह की बात होने लगी तो आचानक से पुरे घर को लगने लगा की मेरे दांत कुछ टेढ़े है उसे सीधा करवा देना चाहिए , और मैंने साफ मना कर दिया की मै ये किसी भी कीमत पर नहीं करूंगी , अगर पहले कहा होता मेरे लिए कहा होता तो मै करवा लेती, मुझे बदला जाये सुन्दर बनाया जाये क्योकि लडके को पसंद आये ये मुझे मंजूर नहीं है जिसे पसंद करना होगा ऐसे ही करेगा नहीं तो न करे , और मुझे भी ऐसे व्यक्ति से विवाह नहीं करना है जो बस इसलिए मुझे न पसंद कर दे क्योकि मेरे दांत टेढ़े है :)



      हा व्यवस्था को तो बदलना ही है तभी तो मै कह रही हूँ की लड़को को अपने पत्नी को लेकर भी सोच बदलनी होगी , नौकरी भी करवाना है और गृहकार्य दक्ष भी चाहिए ये क्या मतलब है । बाकि सभी की अपनी मर्जी की वो विवाह करे न करे अपनी पसंद से करे या माँ बाप की मर्जी से किन्तु पहले चुप रहे और बाद में पत्नी पर धौंस न जमाये ।

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  14. एक १८-२० साल का युवा परिपक्व हो होता है ... समझ आ जाती है उसे ... ओर फिर जिसे समझ नहीं आनी होती उसे तो पूरी जिन्दी नहीं आती .... न सिर्फ शादी बल्कि हर रिश्ते में समझोता करना होता है जो आपसी समझ से करना जरूरी है ... जहाँ तक विवाह की बात है वो प्रेम विवाह हो या माता पिता द्वारा निश्चित विवाह ... सभी बातें आपस में खुल के करना जरूरी है आज के समय में ...

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    1. ये बात ही युवाओ को समझ आनि चाहिए ।

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  15. अंशुमाला जी,मुद्दे और विचार सभी के घुल मिल गए हैं इसलिए मैं भी इस पर आई अभी तक की दो तीन पोस्ट्स पर कुछ नहीं कह रहा हूँ।टिप्पणी से बात नहीं बनेगी।पक्का नहीं कह सकता पर कोशिश करूँगा कि समय मिलने पर एक पोस्ट लिख सकूँ।इस बात में हमारे विचार अलग अलग हो सकते हैं कि आज के युवा कितने बदले या नहीं बदले वो कितने समझदार है या नहीं है।जीवनसाथी को लेकर उनकी सोच स्पष्ट है या नहीं या कोई दबाव में आता है या ये केवल बहाना है।या दबाव में आ गए तो वो कापुरुष है या नहीं।पर मुझे यहाँ लोगों के विचार पढ़ लगता है कि मैं खुद अभी तक बहुत कम युवा मित्रों से मिला हूँ।खैर जैसा आपने कहा अनुभव सबके अलग हो सकते हैं।पर इस बात में कोई मतभिन्नता नहीं कि यदि किसी भी परिस्थिति में एक बार विवाह हो गया तो इसमें आप अपने साथी को दोष नहीं दे सकते।उसके साथ खराब व्यवहार जरूर कायरता कहलाएगा।थोडा समझौता करना पड़ता है वैसे कुछ दिनों बाद ये समझौता भी नहीं रह जाता क्योंकि तब तक पति पत्नी एक दूसरे के अनुसार अपने आप ढल जाते हैं।इसके लिए कोई प्रयास नहीं करना पड़ता पर धैर्य रखना पडता हैं।

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    1. @ थोडा समझौता करना पड़ता है वैसे कुछ दिनों बाद ये समझौता भी नहीं रह जाता क्योंकि तब तक पति पत्नी एक दूसरे के अनुसार अपने आप ढल जाते हैं।

      बिलकुल सहमत यही बात मैंने ऊपर रचना जी को दी आखरी टिपण्णी में कही है की हमें पता ही नहीं चलता है । दुसरे जो मैंने कहा है वो हर युवा पर लागू नहीं है बहुत से युवा है जो पत्नियों को बराबर का समझाते है स्त्री को काफी सम्मान देते है ।

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  16. अपने बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य, फ़ाईनेंस जैसी आधारभूत बातों पर सक्षम, समर्थ बनाया जाये और जिम्मेदारी लेना-निभाना सिखा सकें तो मेरे विचार में सिर्फ़ जीवनसाथी चुनने की ही नहीं बल्कि बहुत सी समस्याओं का समाधान कुछ आसान हो जायेगा। खुद को या किसी और को सक्षम बनाने की बात से संतोष मिलता है क्योंकि ऐसा करके ही हम कोई समाधान खोज सकते हैं।
    बहुत सी फ़ील्डस ऐसी हैं जिनमें अब तक प्राय: एक वर्ग का एकाधिकार रहा है। बदलते समय में बहुत कुछ बदल रहा है, धीरे-धीरे बदलाव को देखने के और महसूस करने के हम अभ्यस्त हो रहे हैं।

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    1. शिक्षा संस्कार आदि में बच्चो में फर्क न करे चाहे लड़का हो या लड़की तो अपने आप की कई समस्याए सुलझ जाएँगी और पोस्ट उन्ही के लिए लिखी है जो बदल नहीं रहे है ।

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  17. बहुत खूब सार्धक
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ ! सादर
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये
    कृपया मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे

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  18. पहले पहल तो पोस्ट की लम्बाई देखकर डर गया था अतः टिप्पणियों से शुरुवात की और टिप्पणियां पढ़ने के के बाद पोस्ट पढ़ी। पोस्ट और उसके बाद विचारों का आदान प्रदान लाज़वाब है ।

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  19. अच्छी पोस्ट लिखी है आपने
    अंशुमाला जी !
    एक समाजोपयोगी आवश्यक विषय पर इतना समय देना
    घर-परिवार और समाज के प्रति दायित्व निर्वहन की आपकी भावना का साक्षात प्रमाण है ।

    मेरा कहना है की -
    गृहस्थी में प्रवेश करते हुए और गृहस्थी बसा कर भी फ़ायदा तलाशने वालों को विवाह करना ही नहीं चाहिए ...
    त्याग और समर्पण की समझ और सामर्थ्य नहीं है तो कोई किसी के जीवन और घर को नर्क न बनाए !!
    मेरी एक रचना की दो पंक्तियां
    घर-परिवार है साक्षात् स्वर्ग ; स्वर्ग यह
    त्याग श्रद्धा स्नेह सहयोग से सजाइए !
    ईर्ष्या जलन द्वेष डाह चालबाजियों से
    निंदा शक़ बैर से , माहौल न बिगाड़िए !


    आपको सपरिवार होली की बहुत बहुत बधाई !
    हार्दिक शुभकामनाओं मंगलकामनाओं सहित…

    -राजेन्द्र स्वर्णकार


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  20. आप को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!!

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  21. बडा अच्छा लगा आपका ये लेख अंशुमाला जी , आपने विषय भी काफी ज्वलंत उठाया है ।

    आपसी सहयोग, एक दूसरे की बात सुनने और समझने की क्षमता और चार कदम आगे बढ कर सांमजस्य बिठाने की तयारी हो तो विवाह सफल होगा ही । सपने देखना बुरा नही है पर उसमें भी बचपना नही परिपक्वता आवश्यक है, समझौता तो हमें हर कदम पर करना ही होता है हम करते ही हैं अपने परिवार में दोस्तों के सात, नोकरी की जगह पर, फिर पति से क्यूं नही ।

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  22. Read this and if possible express your thoughts

    http://www.families.com/blog/the-feminism-lie

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