June 25, 2013

राजनीति चालू आहे - - - - - - mangopeople


अपडेट - आज की राजनीति  और हालात  पर बनाया गया एक सही कार्टून 




                                           ये सवाल करना की उत्तराखंड त्रासदी पर किसने पहले राजनीति शुरू की बिलकुल वैसा है है जैसा की ये पूछना की दुनिया में पहले मुर्गी आई या अंडा , शुरू जिसने भी की किन्तु उसे आगे बढ़ाने का काम दोनों ही मुख्य राष्ट्रीय राजनीतिक दल मिल कर कर रहे है , और जोरो शोरो से कर रहे है  । जवाबी हमलो की तरह बचाव कार्य किये जा रहे है और दान के बछिए के भी दांत गिने जा रहे है , मनमोहन सोनिया ने हवाई दौरा कर जनता पर उपकार किया , प्रधानमंत्री ने ये घोषणा करने से पहले की कितने हेलीकाफ्टर , डाक्टर प्रशासन के लोग बचाव कार्य में लगाये गए है ये घोषणा पहले की की उत्तराखंड के कितने हजार करोड़ की सहायता इस त्रासदी के लिए दी गई है , तो क्या अब इन पैसे से हेलीकाफ्टर ख़रीदे जायेंगे और फिर उनसे बचाव कार्य किया जाएगा , हजार करोड़ की घोषणा करना उस समय कितना जरुरी था , वो समय बचे हुई लोगो को बचाने का , घायलों को चिकित्सीय मदद का था न की पुनर्निर्माण का जहा हजारो करोड़ की जरुरत थी , जब लोग ही नहीं बचेंगे तो पुननिर्माण किसके लिए। अब ये सब देख कर बीजेपी के भावी कैसे पीछे रहते मोदी जी भी हवाई सैर कर आये , लेकिन कुछ अलग तो करना था न , खबर आई की हजारो गुजरातियों को जेम्स बांड की तरह बचा कर ले गए उसके लिए पूरा लावा लश्कर ले कर आये थे , सोच में  पड गई की कैसे बचाया होगा हजारो गुजरातियों को , चापर को निचे उतारा होगा और लोगो से पूछा होगा भाई गुजराती हो आओ चापर में बैठ जाओ जो नहीं है वो दूर रहे क्योकि फिलहाल तो हम गुजराती वोटो की कीमत ही अदा कर रहे है जिस दिन गुजरात के बाहर के लोग हमें वोट दे कर भावी से वर्तमान बना देंगे उस दिन उन की सुध ली जाएगी फिलहाल तो मै गुजरात का गुजरातियो के द्वारा गुजरातियों के लिए बना मुख्यमन्त्री हूँ सो सेवा वही तक  । अफसोस वो भूल गए की लोग पहले सेवा देखते है बाद में मेवा देते है , मोदी जी आँखों का विजन बढाइये , ममता जी जैसी हरकत न कीजिये की देश की रेल मंत्री हो कर बंगाल की रेल मंत्री सा व्यवहार करती  । भावी को वर्तमान बनाना है तो ये गुजरात गुजराती की रट छोडिये , क्षेत्रीयता से बाहर आइये अब तो आप को बीजेपी ने केन्द्रीय  राजनीति में घोषित पद दे दिया है , अब भी काहे क्षेत्रीय सोच , वो लावा लश्कर दूसरो  के लिए भी प्रयोग करना था , उस पर से भद्द पिटी की विकास और समृद्धि का गान करने वाले ने केवल २ करोड़ की मदद दी उससे कही ज्यादा तो गरीब यु पी  ने दी २५ करोड़ , तब जा कर होश आया देश की चिंता हुआ और ३ करोड़ दान में दिए और अपने हेलीकाफ्टर से बाकियों की भी मदद की पेशकस की , लीजिये अब उधर से जवाबी राजनीति शुरू हो गई की अब बिना राज्य सरकार की इजाजत कोई भी मदद नहीं करेगा , सब एक ही झंडे के निचे से गुजरेंगे , लगता है ये किस्सा लम्बे समय तक चलता रहेगा हर नहले पर एक दहला पडेगा   ।
                                                                                 
                                          अब हमारे देश में ऐसा तो हो नहीं सकता जब केन्द्रीय राजनितिक दल किसी मुद्दे पर राजनीति  कर रहे हो और कुछ दुसरे पीछे रह जाये अब ये सब देख कर भावी मुख्यमंत्रियों की दूसरी कतार में बैठे क्षेत्रीय क्षत्रप  कैसे पीछे रहते उन्होंने भी अपना पूरा सहयोग देना शुरू कर दिया । सबसे पहले आगे आये है आन्ध्र प्रदेश से चंद्रबाबू नायडू , आरोप लगाया है की तेलगू भाषी तीर्थ यात्रियों के साथ भेद भाव हो रहा है उन्हें बचाया नहीं जा रहा है, उन्हें खाने पीने  के लिए नहीं दिया जा रहा है ( टीवी पर उनके तेलगू बयान को हिंदी में लिखे गए अनुवाद के अनुसार )   । उनसे कुछ सवाल उत्तराखंड में जो बचाव कार्य चल रहा है वो सेना कर रही है , वहा प्रशासन सरकार नाम की कोई चीज मौजूद ही नहीं है ,( जितने बच के लोग आये है सभी ने एक शुर में यही बात कही ) पुलिस तो तब सामने आई जब खबर आई की मंदिर के खजाने के साथ ही बैंक के करोडो रुपये को लुट लिया गया है साथ ही यात्रियों को भी लुटा जा रहा है , तब आचानक से वहा स्थानीय पुलिस प्रकट होने लगी , और लोगो की तलासिया शुरू हो गई , अपने फिक्स पुलिसिया काम में लग गई , बाकि तो आप ज्यादा समझदार है हम क्या कहे ,  तो क्या नायडू जी ये आरोप सेना पर लगा रहे है की वो लोगो को बचाने में भेदभाव कर रही है बचाने से पहले लोगो के क्षेत्र के बारे में पता कर रही है , मुझे लगता है की बोलने से पहले लोगो को एक बार अपने कहे पर विचार कर लेना चाहिए  । ये सुनने के बाद तो ये लग रहा है की यदि कुछ समय बाद ये खबर आये की फला नेता ने आरोप लगाया है की केवल ऊँची जातियों को ही बचाया जा रहा है दलितों पिछडो को नहीं तो भारतीय राजनीति के रूप को देख कर हम में से किसी को भी इन आरोपों पर आश्चर्य नहीं होगा । शुक्र है यहाँ धर्म की बात बिच में नहीं आएगी , और न अल्पसंख्यक आयोग और उनके हितैशी  बिच में आयेंगे , और न साम्प्रदायिकता , हिन्दुवाद जैसी बात आयेगी ,  ऐसे मै सोच रही था पर ऐसा हुआ नहीं आँखे खोलने का काम किया सोसल नेटवर्किंग साईट ने , नेता तो नेता जनता कैसे पीछे रहे , जस राजा तस प्रजा , वो बाते लिख कर और लिंक दे कर उन्हें बढ़ावा नहीं देना चाहती , जिसमे दावा किया गया की हिन्दू तीर्थ स्थलों को जानबूझ  कर नुकशान पहुँचाने के लिए कुछ काम किये गए  । हद है कभी कभी लगता है की लोग कुछ ज्यादा ही दिमाग लगाते है , किन्तु वहा जहा उसकी जरुरत नहीं है ।
                                                         
                                                     कुछ बचे है जिनके पास करने और कहने के लिए कुछ है ही नहीं , और न ही राजनीति  में कुछ ज्यादा बचा है उनके लिए  वो बस यही कह कह कर कि लोगो को लाशो पर राजनीति नहीं करनी चाहिए फुटेज खा रहे है । उत्तराखंड के मुख्यमंत्री और सेना वी आई पी  को वहा आने से मना कर रहे है लेकिन राजनीति  में अपने नंबर बढाने के चक्कर में हर नेता वहा अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे है , जो बेचारे राज्यों के मुख्यमंत्री पहले इसकी जरुरत नहीं समझ रहे थे वो अब एक दुसरे की होड़ में पाला छूने उत्तराखंड जा रहे है और वहा के लिए मुसीबत ही ज्यादा बन रहे है , अच्छा तो ये होता की वो विमान बस आदि भेज कर सेना द्वारा सुरक्षित निकाल कर लाये गए लोगो को उनके घरो तक पहुँचाने का काम करते क्योकि यात्रियों के लिए भी ये काम भी मुश्किल हो रहा है जिनके पास केवल तन के कपडे बचे है वो अपने घरो तक कैसे पहुंचे ये भी कम मुसीबत की बात नहीं है, उनके लिए  ।


चलते चलते 
                  इस पूरी त्रासदी में कितने लोगो की मौत हुई और कितना नुकशान हुआ इस बात का सही सही आंकलन करना असम्भव है और इसके सही आकडे कभी भी सामने नहीं आ पाएंगे , कितनी को मौत नदी के तेज धारा में बह कर हो गई होगी और कितने हजारो फिट खाइयो में गिर कर गुम हो गए होंगे कितने तो उस मलबे ने निचे जिन्दा ही दफ़न हो गए होंगे , न जाने कितनो की लाशे बरामद होंगी और कितने बस लापता की लिस्ट में ही रह जायेंगे , अब समस्या उनके लिए शुरू होगी , जिनके अपने लापता की लिस्ट में होंगे , हमारी लालफीता शाही और व्यवस्था की मार उन पर पड़ेगी , सरकारी मुआवजा मिलने में जो परेशानी होगी तो होगी ही साथ में उन्हें बीमे की रकम जिस पर उनका सीधे हक़ बनता है,  मिलने में भी काफी परेशानी आने वाली है , सबसे पहले तो यही साबित करना होगा की वो केदारनाथ गए भी थे की नहीं जो इन हालातो में एक मुश्किल काम होगा तब जबकि वो जगह ही बर्बाद हो चूका हो जहा होने को साबित करना है , फिर ये साबित करना होगा की वहां उनकी मौत हो गई है , हालत ये है की लोगो को अपनो की लाश वहा खुद छोड़ कर आना पड़ा , उनकी मौत साबित करना तो और मुश्किल होगा जिनकी लाश भी न मिले , जिनके बारे में खुद घरवालो को ही न पता हो , सोच कर अफसोस होता है की उन घरो का क्या होगा जहा घर के कामने वाले एक मात्र सदस्य की मौत हो गई है और मुसीबत के समय के लिए परिवार के लिए कराया गया बीमें की रकम भी नहीं मिले  । दो  ऐसा ही किस्सा मुंबई में आये बाढ़ के समय सुनने को मिला जिसमे लाश नहीं मिल पाने के कारण उसकी मौत को माना ही नहीं गया और कहा गया की सात साल के बाद ही  सरकारी कानून के हिसाब से उसकी मौत की पुष्टि की जाएगी तब तक न तो उन्हें सरकारी मुआवजा मिलेगा न बीमे की रकम ( वो बेचारे माध्यम गरीब तबके से थे सो कोई अच्छा वकील भी न कर सके जो उन्हें कोई मदद दे पाता  ) । यदि पैसे के हिसाब को छोड़ भी दीजिये तो एक भावनात्मक स्थिति कैसी होगी क्या कोई माँ या पत्नी अपनों के लापता होने पर ये मान लेगी की उसके अपनो की मौत हो गई है शायद वो बाकि जिवन इस इंतज़ार में गुजार दे की हो सकता हो की उनकी जान बच गई हो हो सकता है की वो अभी घायल हो और यहाँ आने की स्थिति में न हो, हो सकता है की एक दिन वो लौट आये , उफ़ ये इंतज़ार उस मौत से बत्तर होगी उनके लिए जब उनकी एक आँखे सदा दरवाजे पर होगी ।




अब आप कहेंगे की राजनीति की इतने बाते हो गई और मैंने एक बार भी राहुल गाँधी का नाम तो लिया ही नहीं , राजनीति  कोई ऐसा विषय नहीं है जिसके कोई लिखित सिद्धांत होते हो जिसे पढ़ कर कोई राजनीति  सिख ले , ये बस देखो और सीखो के एक मात्र सिद्धांत पर चलती है , राहुल को भारतीय राजनीति में आये एक दसक से भी ऊपर का समय हो गया है और उन्हें अब तक इतनी राजनीति तो आ ही जानी चाहिए की कब क्या करना, कहना है  और कब सवालो से बड़ी आसानी से बच जाना है किन्तु आज भी उन्हें अपने माँ और कांग्रेसियों के सलाह की जरुरत पड़ती है , उन्हें आगे बढ़ने के लिए कांग्रेस के लोगो को मंच तैयार करना पड़ता है समारोह करना पड़ता है मिडिया के सामने लाना पड़ता है , और मिडिया में खुद ये बयान देना पड़ता है की " हम सभी ये काम राहुल की प्रेरणा से सोनिया जी के नेतृत्व में कर रहे है" भारतीय राजनीति को देखने वाला कोई भी बता सकता है मुझ जैसी आम सी गृहणी भी कि राहुल को ऐसे समय में अपना विदेशी दौरा बिच में छोड़ कर भारत में उपस्थित होना चाहिए था भले वो देहरादून जाते या नहीं , मिडिया में दो लाइन का बयान देना चाहिए था की हम त्रासदी में फंसे लोगो के साथ है उनकी हर सम्भव मदद कर रहे है , ऐसे समय में तो आप बड़ी आसानी से मिडिया के बाकि सवालो को ये कह कर बच सकते है कि   " ये समय राजनीतिक सवालो का  और राजनीति करने का नहीं है " ।