June 25, 2013

राजनीति चालू आहे - - - - - - mangopeople


अपडेट - आज की राजनीति  और हालात  पर बनाया गया एक सही कार्टून 




                                           ये सवाल करना की उत्तराखंड त्रासदी पर किसने पहले राजनीति शुरू की बिलकुल वैसा है है जैसा की ये पूछना की दुनिया में पहले मुर्गी आई या अंडा , शुरू जिसने भी की किन्तु उसे आगे बढ़ाने का काम दोनों ही मुख्य राष्ट्रीय राजनीतिक दल मिल कर कर रहे है , और जोरो शोरो से कर रहे है  । जवाबी हमलो की तरह बचाव कार्य किये जा रहे है और दान के बछिए के भी दांत गिने जा रहे है , मनमोहन सोनिया ने हवाई दौरा कर जनता पर उपकार किया , प्रधानमंत्री ने ये घोषणा करने से पहले की कितने हेलीकाफ्टर , डाक्टर प्रशासन के लोग बचाव कार्य में लगाये गए है ये घोषणा पहले की की उत्तराखंड के कितने हजार करोड़ की सहायता इस त्रासदी के लिए दी गई है , तो क्या अब इन पैसे से हेलीकाफ्टर ख़रीदे जायेंगे और फिर उनसे बचाव कार्य किया जाएगा , हजार करोड़ की घोषणा करना उस समय कितना जरुरी था , वो समय बचे हुई लोगो को बचाने का , घायलों को चिकित्सीय मदद का था न की पुनर्निर्माण का जहा हजारो करोड़ की जरुरत थी , जब लोग ही नहीं बचेंगे तो पुननिर्माण किसके लिए। अब ये सब देख कर बीजेपी के भावी कैसे पीछे रहते मोदी जी भी हवाई सैर कर आये , लेकिन कुछ अलग तो करना था न , खबर आई की हजारो गुजरातियों को जेम्स बांड की तरह बचा कर ले गए उसके लिए पूरा लावा लश्कर ले कर आये थे , सोच में  पड गई की कैसे बचाया होगा हजारो गुजरातियों को , चापर को निचे उतारा होगा और लोगो से पूछा होगा भाई गुजराती हो आओ चापर में बैठ जाओ जो नहीं है वो दूर रहे क्योकि फिलहाल तो हम गुजराती वोटो की कीमत ही अदा कर रहे है जिस दिन गुजरात के बाहर के लोग हमें वोट दे कर भावी से वर्तमान बना देंगे उस दिन उन की सुध ली जाएगी फिलहाल तो मै गुजरात का गुजरातियो के द्वारा गुजरातियों के लिए बना मुख्यमन्त्री हूँ सो सेवा वही तक  । अफसोस वो भूल गए की लोग पहले सेवा देखते है बाद में मेवा देते है , मोदी जी आँखों का विजन बढाइये , ममता जी जैसी हरकत न कीजिये की देश की रेल मंत्री हो कर बंगाल की रेल मंत्री सा व्यवहार करती  । भावी को वर्तमान बनाना है तो ये गुजरात गुजराती की रट छोडिये , क्षेत्रीयता से बाहर आइये अब तो आप को बीजेपी ने केन्द्रीय  राजनीति में घोषित पद दे दिया है , अब भी काहे क्षेत्रीय सोच , वो लावा लश्कर दूसरो  के लिए भी प्रयोग करना था , उस पर से भद्द पिटी की विकास और समृद्धि का गान करने वाले ने केवल २ करोड़ की मदद दी उससे कही ज्यादा तो गरीब यु पी  ने दी २५ करोड़ , तब जा कर होश आया देश की चिंता हुआ और ३ करोड़ दान में दिए और अपने हेलीकाफ्टर से बाकियों की भी मदद की पेशकस की , लीजिये अब उधर से जवाबी राजनीति शुरू हो गई की अब बिना राज्य सरकार की इजाजत कोई भी मदद नहीं करेगा , सब एक ही झंडे के निचे से गुजरेंगे , लगता है ये किस्सा लम्बे समय तक चलता रहेगा हर नहले पर एक दहला पडेगा   ।
                                                                                 
                                          अब हमारे देश में ऐसा तो हो नहीं सकता जब केन्द्रीय राजनितिक दल किसी मुद्दे पर राजनीति  कर रहे हो और कुछ दुसरे पीछे रह जाये अब ये सब देख कर भावी मुख्यमंत्रियों की दूसरी कतार में बैठे क्षेत्रीय क्षत्रप  कैसे पीछे रहते उन्होंने भी अपना पूरा सहयोग देना शुरू कर दिया । सबसे पहले आगे आये है आन्ध्र प्रदेश से चंद्रबाबू नायडू , आरोप लगाया है की तेलगू भाषी तीर्थ यात्रियों के साथ भेद भाव हो रहा है उन्हें बचाया नहीं जा रहा है, उन्हें खाने पीने  के लिए नहीं दिया जा रहा है ( टीवी पर उनके तेलगू बयान को हिंदी में लिखे गए अनुवाद के अनुसार )   । उनसे कुछ सवाल उत्तराखंड में जो बचाव कार्य चल रहा है वो सेना कर रही है , वहा प्रशासन सरकार नाम की कोई चीज मौजूद ही नहीं है ,( जितने बच के लोग आये है सभी ने एक शुर में यही बात कही ) पुलिस तो तब सामने आई जब खबर आई की मंदिर के खजाने के साथ ही बैंक के करोडो रुपये को लुट लिया गया है साथ ही यात्रियों को भी लुटा जा रहा है , तब आचानक से वहा स्थानीय पुलिस प्रकट होने लगी , और लोगो की तलासिया शुरू हो गई , अपने फिक्स पुलिसिया काम में लग गई , बाकि तो आप ज्यादा समझदार है हम क्या कहे ,  तो क्या नायडू जी ये आरोप सेना पर लगा रहे है की वो लोगो को बचाने में भेदभाव कर रही है बचाने से पहले लोगो के क्षेत्र के बारे में पता कर रही है , मुझे लगता है की बोलने से पहले लोगो को एक बार अपने कहे पर विचार कर लेना चाहिए  । ये सुनने के बाद तो ये लग रहा है की यदि कुछ समय बाद ये खबर आये की फला नेता ने आरोप लगाया है की केवल ऊँची जातियों को ही बचाया जा रहा है दलितों पिछडो को नहीं तो भारतीय राजनीति के रूप को देख कर हम में से किसी को भी इन आरोपों पर आश्चर्य नहीं होगा । शुक्र है यहाँ धर्म की बात बिच में नहीं आएगी , और न अल्पसंख्यक आयोग और उनके हितैशी  बिच में आयेंगे , और न साम्प्रदायिकता , हिन्दुवाद जैसी बात आयेगी ,  ऐसे मै सोच रही था पर ऐसा हुआ नहीं आँखे खोलने का काम किया सोसल नेटवर्किंग साईट ने , नेता तो नेता जनता कैसे पीछे रहे , जस राजा तस प्रजा , वो बाते लिख कर और लिंक दे कर उन्हें बढ़ावा नहीं देना चाहती , जिसमे दावा किया गया की हिन्दू तीर्थ स्थलों को जानबूझ  कर नुकशान पहुँचाने के लिए कुछ काम किये गए  । हद है कभी कभी लगता है की लोग कुछ ज्यादा ही दिमाग लगाते है , किन्तु वहा जहा उसकी जरुरत नहीं है ।
                                                         
                                                     कुछ बचे है जिनके पास करने और कहने के लिए कुछ है ही नहीं , और न ही राजनीति  में कुछ ज्यादा बचा है उनके लिए  वो बस यही कह कह कर कि लोगो को लाशो पर राजनीति नहीं करनी चाहिए फुटेज खा रहे है । उत्तराखंड के मुख्यमंत्री और सेना वी आई पी  को वहा आने से मना कर रहे है लेकिन राजनीति  में अपने नंबर बढाने के चक्कर में हर नेता वहा अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे है , जो बेचारे राज्यों के मुख्यमंत्री पहले इसकी जरुरत नहीं समझ रहे थे वो अब एक दुसरे की होड़ में पाला छूने उत्तराखंड जा रहे है और वहा के लिए मुसीबत ही ज्यादा बन रहे है , अच्छा तो ये होता की वो विमान बस आदि भेज कर सेना द्वारा सुरक्षित निकाल कर लाये गए लोगो को उनके घरो तक पहुँचाने का काम करते क्योकि यात्रियों के लिए भी ये काम भी मुश्किल हो रहा है जिनके पास केवल तन के कपडे बचे है वो अपने घरो तक कैसे पहुंचे ये भी कम मुसीबत की बात नहीं है, उनके लिए  ।


चलते चलते 
                  इस पूरी त्रासदी में कितने लोगो की मौत हुई और कितना नुकशान हुआ इस बात का सही सही आंकलन करना असम्भव है और इसके सही आकडे कभी भी सामने नहीं आ पाएंगे , कितनी को मौत नदी के तेज धारा में बह कर हो गई होगी और कितने हजारो फिट खाइयो में गिर कर गुम हो गए होंगे कितने तो उस मलबे ने निचे जिन्दा ही दफ़न हो गए होंगे , न जाने कितनो की लाशे बरामद होंगी और कितने बस लापता की लिस्ट में ही रह जायेंगे , अब समस्या उनके लिए शुरू होगी , जिनके अपने लापता की लिस्ट में होंगे , हमारी लालफीता शाही और व्यवस्था की मार उन पर पड़ेगी , सरकारी मुआवजा मिलने में जो परेशानी होगी तो होगी ही साथ में उन्हें बीमे की रकम जिस पर उनका सीधे हक़ बनता है,  मिलने में भी काफी परेशानी आने वाली है , सबसे पहले तो यही साबित करना होगा की वो केदारनाथ गए भी थे की नहीं जो इन हालातो में एक मुश्किल काम होगा तब जबकि वो जगह ही बर्बाद हो चूका हो जहा होने को साबित करना है , फिर ये साबित करना होगा की वहां उनकी मौत हो गई है , हालत ये है की लोगो को अपनो की लाश वहा खुद छोड़ कर आना पड़ा , उनकी मौत साबित करना तो और मुश्किल होगा जिनकी लाश भी न मिले , जिनके बारे में खुद घरवालो को ही न पता हो , सोच कर अफसोस होता है की उन घरो का क्या होगा जहा घर के कामने वाले एक मात्र सदस्य की मौत हो गई है और मुसीबत के समय के लिए परिवार के लिए कराया गया बीमें की रकम भी नहीं मिले  । दो  ऐसा ही किस्सा मुंबई में आये बाढ़ के समय सुनने को मिला जिसमे लाश नहीं मिल पाने के कारण उसकी मौत को माना ही नहीं गया और कहा गया की सात साल के बाद ही  सरकारी कानून के हिसाब से उसकी मौत की पुष्टि की जाएगी तब तक न तो उन्हें सरकारी मुआवजा मिलेगा न बीमे की रकम ( वो बेचारे माध्यम गरीब तबके से थे सो कोई अच्छा वकील भी न कर सके जो उन्हें कोई मदद दे पाता  ) । यदि पैसे के हिसाब को छोड़ भी दीजिये तो एक भावनात्मक स्थिति कैसी होगी क्या कोई माँ या पत्नी अपनों के लापता होने पर ये मान लेगी की उसके अपनो की मौत हो गई है शायद वो बाकि जिवन इस इंतज़ार में गुजार दे की हो सकता हो की उनकी जान बच गई हो हो सकता है की वो अभी घायल हो और यहाँ आने की स्थिति में न हो, हो सकता है की एक दिन वो लौट आये , उफ़ ये इंतज़ार उस मौत से बत्तर होगी उनके लिए जब उनकी एक आँखे सदा दरवाजे पर होगी ।




अब आप कहेंगे की राजनीति की इतने बाते हो गई और मैंने एक बार भी राहुल गाँधी का नाम तो लिया ही नहीं , राजनीति  कोई ऐसा विषय नहीं है जिसके कोई लिखित सिद्धांत होते हो जिसे पढ़ कर कोई राजनीति  सिख ले , ये बस देखो और सीखो के एक मात्र सिद्धांत पर चलती है , राहुल को भारतीय राजनीति में आये एक दसक से भी ऊपर का समय हो गया है और उन्हें अब तक इतनी राजनीति तो आ ही जानी चाहिए की कब क्या करना, कहना है  और कब सवालो से बड़ी आसानी से बच जाना है किन्तु आज भी उन्हें अपने माँ और कांग्रेसियों के सलाह की जरुरत पड़ती है , उन्हें आगे बढ़ने के लिए कांग्रेस के लोगो को मंच तैयार करना पड़ता है समारोह करना पड़ता है मिडिया के सामने लाना पड़ता है , और मिडिया में खुद ये बयान देना पड़ता है की " हम सभी ये काम राहुल की प्रेरणा से सोनिया जी के नेतृत्व में कर रहे है" भारतीय राजनीति को देखने वाला कोई भी बता सकता है मुझ जैसी आम सी गृहणी भी कि राहुल को ऐसे समय में अपना विदेशी दौरा बिच में छोड़ कर भारत में उपस्थित होना चाहिए था भले वो देहरादून जाते या नहीं , मिडिया में दो लाइन का बयान देना चाहिए था की हम त्रासदी में फंसे लोगो के साथ है उनकी हर सम्भव मदद कर रहे है , ऐसे समय में तो आप बड़ी आसानी से मिडिया के बाकि सवालो को ये कह कर बच सकते है कि   " ये समय राजनीतिक सवालो का  और राजनीति करने का नहीं है " ।


43 comments:

  1. .सच्चाई को शब्दों में बखूबी उतारा है आपने आभार मोदी व् मीडिया -उत्तराखंड त्रासदी से भी बड़ी आपदा
    आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

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  2. ऐसी क्षुद्र मानसिकता है लोगो की कि शर्म आती है, वहाँ सेना के जवान अपनी नींद, भूख,प्यास भुला कर इतने मुश्किल हालातों में लोगों को बचाने का काम कर रहे है और हमारे नेता प्रदेश और भाषा का खेल खेल रहे हैं,पर नया क्या है, उन्हें इसके सिवा कुछ आता ही नहीं और सीखने को तैयार भी नहीं.

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    1. ये खबर सुन कर और भी दुःख हुआ की सेना के कुछ जवानों की जान भी चली गई लोगो को बचाने में , किन्तु वहा भी उन्हें मदद देने के नाम पर राजनीति शुरू हो गई , क्या मदद करते समय चीख चीख कर दुनिया को बताना जरुरी होता है ।

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  3. घटिया राजनितिक सोच नें जनता के घावों पर नमक छिड़का है !!

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    1. वो हमेशा यही करते है ।

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  4. चाहे कोई भी राजनैतिक दल हो या उसके कर्ता धर्ता, सभी एक ही थैली के चट्टे बेट्टे हैं. नरेंद्र मोदी का यह व्यवहार बताता है कि अभी वो क्षेत्रिय दायरे से बाहर नही निकल पा रहे हैं, उनके इस व्यवहार से तो यही संदेश जायेगा कि वो भी रेलमंत्रियों की तरह, (खुदा-ना-खास्ता PM बन गये तो) सिर्फ़ गुजरातियों के ही प्रधानमंत्री होंगे और उनके लिये ही काम करेंगे. मोदी को यहां राष्ट्रीय सोच अपनाना चाहिये थी.

    कांग्रेस का हाल तो और भी बुरा है. जब राहत सामग्री को भी हरी झंडी का इंतजार करना होता है तो अब क्या बच गया? सबको सामने आने वाला चुनाव दिखाई दे रहा है, पर जनता इसे याद रखे तो सबक सिखा सकती है. सुंदर, सटीक और संतुलित आलेख.

    रामराम.

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    1. दोनों भावी प्रधानमंत्रियो का ये हाल है अब तो देश का भविष्य भी भगवान के ही भरोषे है ।

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    2. ये देश भगवान भरोसे ही चल रहा है.:(

      रामराम.

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  5. चलते चलते में आपने जिस सवाल को उठाया है वो यकिनन बहुत ही दुखदायी साबित होगा. बीमा कंपनियां तो किसी भी तरह अपना पिंड छुडाना चाहेंगी. और सात साल वाला फ़ंडा ही अपनायेगी.

    इस विषय में सरकार को चाहिये कि उचित नीति अपनाते हुये गरीब के दर्द को समझे. जो चले गये वो नही आयेंगे पर जिन आश्रितों को वो पीछे छोड गये हैं, उनकी मदद इस मामले में अवश्य होनी चाहिये.

    वैसे आपके दिल में इस समय यह बहुत ही सही समस्या आई है जो यकिनन बहुत ही पेचिदा है.

    रामराम.

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    1. तकनीक का सहारा ले कर भी कुछ मदद की जा सकती है जैसे मोबाइल के आखरी लोकेशन से भी व्यक्ति के कही मौजूद होने का सबुत हो सकता है, किन्तु धंधा करने बैठी कंपनिया क्या ये सब मानेगी । बनारस में मेरी पड़ोसी का दो साल का बच्चा घर के बाहर से खो गया था मैंने देखा की कैसे उसकी माँ सब काम ख़त्म कर दरवाजे पर आ कर सारा दिन उदास बैठे रहती थी , पुरे एक साल तक जब तक की उसके ससुराल वालो ने उसे पागल घोषित कर घर से नहीं निकाल दिया , उसे देख कर बहुत दुःख होता था । अभी तो हमें अंदाजा नहीं है की इस त्रासदी से कितने बच्चो महिलाओ का भविष्य हमेसा के लिए ख़राब हो जाएगा :(

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    2. बिल्कुल सही उदाहरण दिया आपने, यह बहुत ही कष्टदायक है. यदि सरकार चाहे तो बहुत कुछ किया सकता है अन्यथा बाकी पीछे बची जिंदगियों की हालत बहुत खराब होने वाली है.

      रामराम.

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    3. एक एन जी ओ के बारे में पता चला जो उत्तराखंड के त्रासदी वाली जगहों पर जाने का प्रयास कर रहा है , एन जी ओ त्रासदी के बाद अनाथ बेघर हुए बच्चो और महिलाओ को बचाने का प्रयास करता है उसका कहना है की ऐसी हर त्रासदी के बाद ऐसी महिओ और बच्चो की खरीद खारोख्त बढ़ जाती है या कुछ गलत लोग ऐसी जगहों पर जा कर अनाथ बच्चो और महिलाओ को गलत धंधे में ले कर आते है , वो ये देखती है की अनाथ बच्चे महिलाए और अपाहिज पुरुष और वृद्ध भी सही जगहों पर जाये , गलत लोगो के हाथ न लगे । इनके बारे में पहले भी सुन रखा था, लगा की एक त्रासदी मौकापरस्तो के लिए कितने तरीके से फायदे लाता है , चाहे वो राजनीति करे या इस तरह का काम ।

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    4. LIC ने क्लेम सैटल करने के अपने नियमों में रिलेक्सेशन दी है, जख्मों पर कुछ मरहम तो लग पायेगा।

      http://www.licindia.in/pages/floods_uttarakhand.pdf


      http://www.stockwatch.in/lic-open-special-camp-office-uttarakhand-settle-claims-210116

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    5. हा सूना है की आपना एक दफ्तर भी खोला है वहा किन्तु जो मामले सीधे साधे है उनके लिए न , जिनके न होने का कोई सबूत ही न हो उनका क्या होगा , और उनका क्या जहा बस बच्चे ही बचे या जहा पूरा का पूरा घर ही बह गया पॉलिसी के पेपर तक नहीं है कोई पहचान पत्र भी नहीं फिर , पता चला कोई धोखेबाज किसी और का पैसा ले गया । कही पढ़ा की बीमा कंपनियों को लोगो से ज्यादा चिंता उन थर्मल पवार प्रोजेक्ट की है जिनका बीमा उनके यहाँ कराया गया था कही उनमें बाढ़ के कारण कोई खराबी हुई तो , लोगू को तो वो फिर भी निपट लेंगे पर पवार प्रोजेक्ट में तो काफी पैसा चला जाएगा उनका ।

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  6. राहुल बाबा के बारे में क्या कहें? बच्चा हमेशा ही बच्चा रहता है, बच्चे को ताऊ बनने के लिये बहुत मेहनत करनी होगी.:)

    रामराम

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    1. एक दशक के बाद भी बच्चे के बड़े होने की कोई संभावना नहीं दिख रही है ।

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    2. वैसे तो पूत के पांव पलने में ही दिखाई दे जाते हैं. ऐसा बच्चा बडा होकर भी क्या कर लेगा?

      रामराम.

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  7. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन काश हर घर मे एक सैनिक हो - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद ।

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  8. राजनीति का जितना घिनोना और बेशर्म रूप हमारे यहाँ दिखाई देता है, शायद ही कहीं और दिखाई देता है .

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    1. राजनीति कही भी हो हर जगह उसका यही रूप सामने आता है ।

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  9. .
    .
    .
    अंशुमाला जी,

    किसी भी समाज का सही चरित्र आपदा के समय सामने आता है, और इस आपदा के दौरान जो बर्ताव रहा है राजनीतिक दलों, मीडिया, मंदिर कमेटी, धर्म-पुरोधाओं, प्रशासन आदि आदि यहाँ तक कि खुद आपदा के शिकार लोगों का भी, उसे देख गर्व करने के लिये कुछ नहीं रह जाता...
    और हाँ, पोस्ट शीर्षक से mangopeople का e कहाँ गया ?


    ...

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    1. सही कहा आप ने साधुओ ने ही मंदिर का खजाना लुट लिया , जो यात्री वहा के लोगो दुकानदारो के कमाई का जरिया थे उन्हें ही लुटा , अब तो भारत के महाशक्ति होने , आई टी हब होने जैसी बाते मजाक लग रही है जब आपदा में फंसे लोग भूख तक से मर गए क्योकि उन तक खाना भी नहीं पहुंचाया जा सका , तो काहे की महाशक्ति । गलती की तरफ ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद ।

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  10. अफसोसजनक हालात हैं ...... आम लोगों की जान जाती है और यहाँ इनका अलग खेल चलता रहता है ....

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    1. उन्हें त्रासदी में भी वोट और पैसे नजर आते है ।

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  11. कितनी मासूमियत से तो अपने देर से आने के कारण बताये ,आप कन्विंस नहीं हो पाई :)
    टीवी पर इनके वादविवाद के समय टीवी तोड़ देने का मन करता है :(
    पर कुसूर इनका नहीं है, ये जानते हैं कि वोट देते समय हम सब भूल जाते हैं!

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    1. कभी कभी लगता है की ये सब करते हुई इन्हें जरा भी शर्म नहीं आती है क्या वास्तव में ये जनता को इतने बेवकूफ समझते है ।

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  12. कल सुबह मेरी एक सहकर्मी की दादीजी की वहीं पर मृत्यु हो गई।वे आईसीयू में थी।अंकल आँटी अभी भी वहाँ एडमिट हैं लेकिन वे खतरे से बाहर हैं।तीनों को ही सेना के जवानों ने बड़ी मुश्किल से बचाया था।आज जब उनके घर गये तो उनके भाई ने बताया कि उनकी दादीजी की मृत्यु किसी चोट की वजह से नहीं बल्कि सदमे की वजह से हुई है।वहाँ लाशों और चीख पुकार को वे सहन न कर सकी।अस्पताल की हालत खराब है आईसीयू तो जनरल वार्ड से भी गया गुजरा हो गया है।मैं मानता हूँ कि एक बार अचानक से विपदा आ जाए तो अवयवस्था हो सकती है।लेकिन अब तो कई दिन हो गए हैं।कम से कम अब तो हालात सुधरने चाहिए वर्ना इतने लोग बाढ़ में नहीं मरे होंगे जितने अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ जाएंगें।

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    1. अव्यवस्था तो होगी ही जो पैसा लोगो को राहत पहुँचाने में खर्च करना था उनसे अब अखबारों में दो दिन विज्ञापन दिए जाते है क्योकि पहले दिन गलती से नेताओ की मुस्कराती फोटो लग गई थी , अभी अभी टीवी पर भी उत्तराखंड की सरकर का गुणगान करता विज्ञापन देखा है , ये सब अब बर्दास्त के बाहर जा रहा है , जब तक हम कुछ नहीं करेंगे ये सब बर्बादी ऐसी ही चलती रहेगी ।

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  13. अंशुमाला जी,
    क्या आपको पता है कि सुनामी त्रासदी के बाद एक आपदा नियंत्रण विभाग भी बनाया गया था? आपका पता नहीं पर मुझे तो अभी पता चला है।पता नहीं ये लोग ऐसे विभाग बनाकर करते क्या हैं।कभी कोई मीटिंग भी होती है या नहीं।अब कल हो सकता है विशेष तौर पर बाढ और लैंड स्लाइडिंग नियण्त्रण के लिए एक और विभाग बना दिया जाए।फिर उसे बजट आवंटित किया जाएगा और फिर वही बंदरबाँट शुरू हो जाएगी।आज तो राहत कार्यों का क्रेडिट लेने के लिए हाथापाई भी हो गई।किसी आपदा या दुर्घटना के बाद कुछ बाते होती ही है जैसे राहुल गाँधी का कुछ समय गायब रहना,दिग्गि सिंह के ऊटपटांग बयान,राहत पैकेजों की घोषणा,लूटपाट की खबरें,क्रिकेट टीम द्वारा जीत पीडितों को समर्पित(!) करना।और राजनीति तो खैर होती ही है।यानी कुछ भी अलग नहीं हो रहा।नेताओं की हरकतें तो बचाव कार्यों में लगे लोगों का भी मनोबल तोड़ती हैं।अच्छा है कि कम से कम सैनिकों का हौसला बढ़ाने का काम खुद सैन्य अधिकारी ही कर रहे हैं।

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    1. हा जानती हूँ एक विभाग बना था जिसकी आज तक एक भी मीटिंग नहीं हुई है , जब नियत ही ख़राब हो तो हजार विभाग भी कुछ नहीं करने वाले है ।

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  14. कार्टून अपडेट बहुत बढिया लगा, लगता है कार्टूनिस्ट ने सारी सच्चाई खोल कर रखदी. ये किनका बनाया हुआ है?

    रामराम.

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    1. कार्टून के ऊपर उनका लिंक दिया है , कार्टून पर भी उनका नाम और इ मेल आईडी है ।

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  15. कभी जनसत्ता में एक आर्टिकल पढ़ा था कि बाढ़ के शुरुआती दिनों में लखनऊ, पटना सचिवालयों में बाढ़ संबंधित ठेकेदारों के जाने पहचाने चेहरे दिखने शुरू हो जाते थे। हम लोग कितना ही व्यथित हो लें, ऐसी अपदायें कुछ नीच लोगों के लिये उत्सव से कम नहीं होतीं।
    प्रधानमंत्री जी और सोनिया जी या दूसरे नेताओं के हवाई दौरे ने राहत कार्य में क्या तेजी लाई होगी, मैं समझ नहीं पाया। कुछ करने की जगह देखने-दिखने के अवसर ही होते हैं ये दौरे। हर कोई अपनी रोटियाँ सेंकने में लगा है।

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    1. नेताओ को क्या कहे जब हम खुद किसी को दोष या तारीफ करते है समय अपने निजी विचारो से ऊपर नहीं उठ पाते है , जिन्ही पसंद नहीं करते उनके नाम फटाफट लिख देते है और बाकियों को आदि आदि में जोड़ देते है क्यों :(

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    2. किसी की तारीफ़ या दोष अपने निजी विचारों के अनुसार ही बताये जाने चाहियें न कि औरों की राय से या रंग-रूप\पद से।

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  16. शायद किसी को पता ना चला हो इसलिए जानकारी के लिए बताना चाहूँगा कि मोदी द्वारा सिर्फ गुजरातियों को बचाने की न्यूज पर टाइम्स ऑफ़ इंडिया का स्पष्ठीकरण आ गया है .. आश्चर्य इस बात का है की इस तरह की अजीब न्यूज पर यकीन कैसे कर लिया जाता है और अगर कर भी लिया तो सवाल उठता है ये नयी जानकारी मिलने के बाद अगला कदम क्या उठाया जाएगा , माफ़ी या मीडिया की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाया जाएगा या फिर दोनों ?

    सही जानकारी देते किसी कमेन्ट का काफी इन्तजार करने के बाद ये कमेन्ट कर रहा हूँ ..आशा है इसे अन्यथा नहीं लिया जाएगा


    http://epaper.timesofindia.com/Default/Scripting/ArticleWin.asp?From=Archive&Source=Page&Skin=TOINEW&BaseHref=CAP%2F2013%2F07%2F14&PageLabel=11&EntityId=Ar01106&ViewMode=HTML

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    1. गौरव जी,
      मुझे इस बारे में बहुत पहले ही पता था।हालाँकि ये खबर शुरूआत में द हिन्दू में आई थी।लेकिन बाद में ये भी पता चल गया कि मोदी ने ऐसा कोई दावा कभी किया ही नहीं।मैं इस पोस्ट पर कमेंट मेँ ये कहना चाहता था लेकिन इससे पहले ये देखना जरूरी समझा कि क्या मोदी ने खुद इस खबर का खंडन किया है क्योंकि ये उनका भी फर्ज बनता है।पर मुझे उनके खंडन के संबंध में कोई खबर नहीं दिखी।

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    2. मित्र राजन,
      मैं इस पर थोड़ा सा भिन्न मत रखता हूँ , मोदी इसका खंडन करें या ना करें ये उनकी अपनी स्वतंत्रता होनी चाहिए ये स्टोरी आनंद सूनदास (टाइम्स ऑफ़ इंडिया से) की है अतः उनका या टाइम्स ऑफ़ इंडिया का पूरा फर्ज बनता है इस पर स्पष्टीकरण दें (मोदी या किसी और का नहीं, वैसे भी मोदी पर हर रोज कोई नयी स्टोरी होती है)

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    3. गौरव जी
      सभी को अब तक ये बात पता चल गई है , किन्तु उस पर सफाई तब दी गई जब इस बात की आलोचना होने लगी की उन्होंने ऐसा क्यों किया, जब तक बात उनके सुपर हीरो बनाने की थी सब चुप थे , जैसा की राजन जी ने कहा कि खुद मोदी जी ने एक बार भी इस बात का खंडन नहीं किया , जब पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह तक सफाई दे रहे है कि मोदी जी ने मुझसे कहा की उन्होंने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है , तो क्या मोदी इतने बड़े हो गए है की अपने लिए गलत बात के प्रचार का खंडन नहीं कर सकते है , ये कोई गुजरात दंगो का मुद्दा तो था नहीं जिस पर वो अपनी सहूलियत के हिसाब से बोलेंगे , जब आप गलत बात के लिए चुप रहेंगे तो आप की छवि ऐसे ही बनेगी , ये खबर गलत हो तो भी उनका गुजरात राग तो अब मुझे भी अति लगने लगा है , आम लोगो के किये का श्रेय भी वो अब खुद ही लेने लगे है , सभी को याद रखना चाहिए की अति कभी भी अच्छी नहीं होती है |

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    4. अंशुमाला जी,

      आपको गुजरात राग अति लगता है लेकिन उस मोदी राग का क्या जो मीडिया दिन रात अलापता है ...खैर, आपके अपने विचार और निष्कर्ष हो सकते हैं । मुझे चर्चा में इस तथ्य ( सत्य ) को रखना जरूरी लगा सो रख दिया । मित्र राजन की बात का पर पहले ही प्रतिक्रिया दे चुका हूँ ।

      एक आम आदमी तथ्यों के मामले में मीडिया पर ही ज्यादा भरोसा करता है . अगर मीडिया ही तथ्यों को गलत तरीके से पेश करता है तो पहले प्रश्न चिन्ह उसी पर लगना चाहिए ...इस बारे में शायद मैं और कुछ भी कह पता लेकिन अभी समय की कमीं के चलते यह संभव नहीं हो पा रहा |

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    5. गौरव जी,
      कम से कम मैंने तो मीडिया का बचाव इस मामले में बिल्कुल नहीं किया है।निश्चित रूप से पहले प्रश्न उस पर ही लगना चाहिए लेकिन मैं कह रहा हूँ कि इससे मोदी बेकसूर साबित नहीं हो जाते।यदि मोदी ने पहले ही स्पष्टीकरण दे दिया होता तो सभी केवल मीडिया की ही आलोचना कर रहे होते।वैसे भी ये मामला केवल राजनीतिक नहीं था।ऐसी त्रासदी के समय कोई आधारहीन खबर उडती है तो उसका तुरंत विरोध करना चाहिए।हाँ मीडिया भी दोषी है।अभी तक अंग्रेजी अखबारों में ये बीमारी नहीं थी पर अब लगता है उन्हें भी हो गई है।

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