November 27, 2013

पुरुषो का कोई चरित्र नहीं होता है ? - - - - -mangopeople

                                 


                                                            तेजपाल के बयान के बाद एक सवाल मन में उठा रहा है कि,  क्या पुरुषो का कोई चरित्र नहीं होता है । तेजपाल के ऊपर रेप के आरोप लगने के बाद उन्होंने अपने बचाव में ये घटिया दलील दी कि , हा जो लड़की कह रही है वो हुआ किन्तु जो भी हुआ वो सहमति से हुआ । सोचती हूँ की  हम किस तरह के समाज में रह रहे है जहा एक विवाहित पुरुष अपने से आधी आयु की लड़की , अपनी बेटी की मित्र और अपने मित्र की बेटी के साथ एक सार्वजनिक जगह पर इस तरह के सम्बन्ध बनाने को कितने आराम से स्वीकार कर रहा है , किस उम्मीद में की उसके इस बयान पर समाज उसके चरित्र पर कोई उंगलिया नहीं उठाएगा , उसे अपराधी नहीं माना जायेगा , नैतिकता के सवाल नहीं खड़े कियी जायेंगे और समाज में वो,  ये स्वीकार करने के बाद भी उसी तरह स्वीकारा जायेगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं है , क्योकि वो पुरुष है । क्या पुरुषो का कोई चरित्र ही नहीं होता मतलब चरित्र जैसी चीजे क्या उनसे जुडी हुई नहीं है ये मात्र महिलाओ के एक अंग जैसा है , जो पुरुषो में नहीं पाया जाता । अब कल्पना कीजिये की  कोई स्त्री इस बात को स्वीकारे तो समाज का क्या रवैया होगा , लोगो की सोच क्या होगी , हमारे भाषायी किताबो में ऐसी महिलाओ के लिए शब्दो की कमी नहीं है और आज से नहीं हमेसा से है , जबकि पुरुषो के लिए ये एक तरह का सामाजिक मान्यता प्राप्त सम्बन्ध जैसे है , जिसके कारण हर दूसरा आरोपी पुरुष यौन शोषण , बलात्कार के आरोप लगते ही ये घटिया दलील देने लगता है की दोनों के बिच जो हुआ वो सहमति से हुआ , यदि सामाजिक रूप से ऐसे सम्बन्धो को लेकर पुरुषो को ये छूट न मिली होती तो ऐस दलील देने से पहले भी आरोपी हजार बार सोचते ।


                                  अरुंधति राय का लेख पढ़ा जिसमे वो कहती है कि मै  अभी तक चुप थी क्योकि क्योकि एक गिरते हुए मित्र पर क्या वार करना , किन्तु अब जिस तरीके से लड़की पर फांसीवादीयो से मिल कर साजिश  करने , और सब कुछ सहमति से होने की बात कर दूसरी बार उस का रेप किया जा रहा है , तो अब चुप रहना मुश्किल है , और अब समय है की सच के साथ खड़ा हुआ जाये । मै  उनकी बात से सहमत हूँ  , ऐसे मामलो में पीड़ित के लिए शिकायत करने के बाद  दर्द , परेशानी और समस्याओ का एक नया और उससे भी बड़ा दौर शुरू होता है , जो उसने पहले सहा है और जिससे लड़ना ज्यादा कठिन होता है , जब पीड़ित के ही चरित्र पर उंगलिया उठाई जाने लगती है और आरोपी के सहयोगी ज्यादा सक्रिय हो जाते है , आरोपी को बचाने के लिए , इसलिए जरुरी है की ऐसे समय में चुप रह कर मौन सहयोग की जगह हम  सभी को खुल कर पीड़ित के पक्ष में खड़ा होना चाहिए , ताकि उसे भी लगे की एक ताकतवर और अमिर आरोपी के मुकाबले में उसे जन सहयोग मिला है , समाज में भी लोग है जो उस पर विश्वास  करते है और उसके साथ खड़े है ,ताकि उसकी हिम्मत न टूटे और वो आगे अपनी लड़ाई लड़ सके । मामला कोर्ट में है जांच हो रही है इसलिए इस पर क्या कहे जैसे बेकार के बहाने बनाने की जरुरत नहीं है , खुद तेजपाल की  स्वीकृति और एक के बाद एक तहलका से अलग होते कर्मचारियो की बढती लिस्ट खुद सच को बया कर रही है ।

                                                 इस केस से एक विचार और मन में आया है कि अक्सर हम कहते है कि जीतनी ज्यादा महिलाए लडकिया काम करने के लिए बाहर आयेंगी वो उतनी ज्यादा ही सुरक्षित होती जाएँगी  , समाज की लडकियो के प्रति सोच बदलेगी , पीड़ित लडकियो  की  ताकत बनेगी और दूसरे लडकियो में भी आत्मविश्वास पैदा करेंगी ,  अब तो ये सोच गलत सी लगती है ।  पीड़ित ने न्याय के लिए जिस सोमा चौधरी से शिकायत की वो एक बार भी उसके पक्ष में खड़ा होना तो दूर उन्होंने सच को ठीक से जानने का प्रयास और कोई भी उचित कार्यवाही ही नहीं की ,  बल्कि मामले को दबाने और लीपा पोती का प्रयास किया , वो चाहती तो किसी का भी पक्ष लिए बिना तटस्थ रह कर कमिटी बना जाँच उसके हाथ में दे देती किन्तु उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया और अपने मित्र ,गॉडफादर को बचाने के प्रयास करने लगी । इस प्रकरण से क्या समझा जाये  की भले ही स्त्री कितनी भी स्वतंत्र को जाये उंचाइयो को छू ले वो पुरुष सत्ता से टकराने से डरती है , उसके प्रभाव से बाहर नहीं आ पाती है  या उसका व्यवहार भी उन्ही आम घरेलु स्त्रियो सा होता है जो अपने बेटे, भाई ,पिता ,पति के बड़े से बड़े गलतियों को छुपाने का उसे बचाने का प्रयास करती है या उसका व्यवहार भी अन्य सामान्य लोगो की तरह होता है जो हर हाल में अपने अपनो का करीबियों का ही साथ देते है चाहे वो कितने भी गलत हो , या उनका व्यवहार उस समाज की तरह ही है जो हमेसा लडकियो को ही दोष देता है जो लडकियो को ऐसे मामले में चुप रहने, ज्यादा न बोलने और जो मिला उसमे ही संतुष्ट रहने की सलाह देता है । अब सोचिये की सोमा ने जो व्यवहार किया है उससे लड़किया का आत्मविश्वास कम नहीं होगा , जब उन्हें लगेगा की एक स्त्री हो कर भी वो किसी अन्य स्त्री की परेशानी उसके आरोपो की गम्भीरता को नहीं समझा उसको सच नहीं माना , क्या अब कोई भी लड़की अपने आफिस या कही भी यदि इस तरह की परेशानी से गुजरती है तो क्या वो कभी भी अपने महिला बाँस , महिला अधिकारी या अन्य महिला से इस बात की शिकायत करने की हिम्मत कर पायेगी ।शोमा ने इस प्रकरण में बहुत ही गलत उदाहरण सामने रखा है और वो भी तब जब उनके न जाने कितने ही इंटरव्यू हम देख चुके है जिसमे वो लडकियो के यौन शोषण , बलात्कार , छेड़छाड़ के खिलाफ बोलते हुए और उनके सुरक्षा की बात करती नजर आ चुकी है , यहा तक की वो उस सम्मलेन में भी इस विषय पर विचार विमर्स कर रही थी जहा पर लड़की के साथ ये सब हुआ ।

                                                              कुल मिला कर इस प्रकरण से समाज और लोगो के खोखलेपन को और उजागर ही किया है , बताया है की नैतिकता की बड़ी बड़ी बाते करने भर से कोई चरित्रवान नहीं हो जाता है , समाज का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहा लडकिया सुरक्षित है , समाज में किसी भी वर्ग की लड़की इस तरह के अपराध से सुरक्षित नहीं  है , अब वो समय आ गया है जब लडकियो को किसी भी व्यक्ति पर भरोषा नहीं करना चाहिए और अब जरुरत ये है की लडकिया  बिना किसी शर्म , लिहाज से इतनी जोर से प्रतिरोध  करे,  ऐसे कृत्य को न कहे की किसी भी व्यक्ति की हिम्मत आगे बढ़ने की न हो , वरना आप के हलके शब्द उसकी आयु और सम्बन्धो का लिहाज और आप की शर्म आरोपी को बाद में उसे आप की सहमति का नाम देने में देर नहीं लगेगी ।


चलते चलते 
               
                 पति ने पूछा ऐसे प्रकरणो में लडकिया जोरदार तरीके से तुरंत ही विरोध क्यों नहीं करती उसे पिट दे, उसकी आँख नाक फोड़ दे  , टीवी पर महाभारत आ रहा था , मैंने कहा की पांडवो के साथ क्या क्या नहीं हुआ कितना अपमान सहना  पड़ा किन्तु उसके बाद भी युद्ध भूमि में अर्जुन कमजोर पड  गए अपनो के सामने , एक लड़की के लिए ऐसी हरकत बहुत ही डराने वाला होता है और तब तो डर और भी बढ़ जता है जब सामने कोई अपना , कोई परचित या ऐसा व्यक्ति हो जिससे आप इस चीज की उम्मीद ही न करे , फिर उनके प्रति लिहाज और उसकी और आप की इज्जत और  इस बात का डर की कोई भी आप की बात का विश्वास नहीं करेगा की आप का अपना ही कोई आप के साथ ये कर सकता है या ये व्यक्ति आप के साथ ऐसा कर सकता है , साथ ही अपराधी की बड़ी आयु , आप का उससे सम्बन्ध और समाज में उसकी हैसियत भी प्रतिरोध को प्रतिक्रिया को प्रभावित करता है , किसी अनजान के प्रति हम जल्दी आक्रमक हो सकते है जबकि जानने वाले के प्रति हम आक्रमक नहीं हो पाते है ।   आरुषि केस में एक नौकर को अपनी बेटी के कमरे में देख कर जो आक्रमकता पिता तलवार ने दिखाई वही प्रतिक्रिया वो तब नहीं दे पाते यदि उसकी जगहा उनकी भतीजा , भांजा या परचित या संबंधी जैसा कोई होता , यहाँ तक की बेटी की जगह बेटे के कमरे में नौकरानी को देखते तब भी उनकी ये प्रतिक्रिया न होती , इसमे सम्बन्धो का लिहाज भी है , समाज का डर भी और स्त्री, पुरुष बेटी , बेटी  के बिच का फर्क भी ।                                   












                                             

                                                 

November 18, 2013

खेल, सचिन , राजनीति और भारतरत्न - - - - -mangopeople

 


कुछ खबरे

१- सचिन को राज्य सभा के लिए चुना गया ।
२- "सचिन मौजूदा ५ राज्यो के चुनावो में , कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार करेंगे " - कांग्रेस के कई बड़े नेता ।
३- सचिन का किसी भी चुनाव प्रचार में आने से इंकार ।
४- राजीव शुक्ला ने कहा की सोनिया जी ने सचिन को राज्यसभा के लिए चुना ।
५- २६ जनवरी २०१४ को सचिन को भारतरत्न देने की  सम्भावना ।
६- रिटायमेंट के साथ ही सचिन को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा ।

इस खबरो से आप को अंदाजा लग ही गया होगा की मामला क्या है

नहीं समझ आया दो और खबर

७ - लता जी ने मोदी की  तारीफ की
८- कांग्रेसी नेता ने लता जी से भारत रत्न वापस करने के लिए कहा  ।

इन खबरो के बाद कांग्रेस हाय हाय के नारे लगाने वालो के लिए भी दो खबर

९- अमर्त्य सेन ने मोदी को अयोग्य कहा
१० - बी जे पी नेता ने अमर्त्य सेन से भारतरत्न वापस लेने की बात कही ।


                                            लो जी भारत रत्न भारत सरकार की  नहीं कांग्रेस और बी जे पी की निजी बपौती है , जिसे वो देना चाहे दे और लेने वाला उनका गढ़ गुलाम हुआ जो आगे से उनकी स्तुति वंदना के सिवा और कुछ नहीं बोल सकता है , उनके खिलाफ और उनके विरोधी के पक्ष में तो बिलकुल भी नहीं । जीतनी जल्दबाजी सचिन को भारत रत्न देने की कि गई उससे तो साफ लगता है की २०१४ के चुनावो से पहली ये दे कर सचिन से उसकी कीमत मांगी जायेगी और क्या , ये बताने की जरुरत नहीं है । बिना सचिन से पूछे उनकी इजाजत लिए जिस तरह कांग्रेसी नेता कैमरो पर सचिन के अपने पक्ष में चुनाव प्रचार करने की बात कह रहे थे उससे साफ था कि , सचिन को राज्य सभा का सदस्य बना कर उन पर जैसे अहसान किया गया था और अब उसकी कीमत मांगी गई थी । जैसे सचिन ने कांग्रेस के राज्य सभा की सदस्य बनने की बात मान कर कांग्रेस की सदस्यता स्वीकार कर ली हो , जब बात नहीं बनी तो कीमत और बढ़ा दी गई , और  उसके पहले बताया गया सार्वजनिक रूप से कि कैसे राज्यसभा के लिए सोनिया जी ने सचिन का नाम सुझा कर उन पर एहसान किया , जैसे वो तो इस काबिल नहीं थे  । मुझे तो नहीं लगता की सचिन के पुरे कैरियर में कही भी राज्यसभा की  सदस्यता या भारतरत्न के बिना अधूरे थे , ये दो चीज उनके जीवन में नहीं होते तो भी उनके जीवन ,मान सम्मान , उपलब्धियों में , उनके चाहने वालो के प्यार में और उनके खले के मुरीद लोगो को एक रत्ती का भी कोई फर्क पड़ता,  । यदि भारत रत्न दिए जाने के नियमो में बदलाव किया किया गया तो ये उन पर एहसान नहीं था,  ये तो उनका खेल था , उनकी खेल की दुनिया में उपलब्धि थी जिसने ऐसा करने के लिए सरकार को मजबूर किया ।  वैसे दावे से तो ये नहीं कह सकती क्या पता यु पी  ए ने काफी पहले ही इस राजनीतिक लाभ को समझा हो और उसके तहत ही ये बदलाव किये गए हो ताकि चुनावी मौसम में कुछ फायदा इस से उठाया जा सके या सचिन को अपने पाले में लाया जा सके या कम से कम लता  जी की तरह विपक्ष की बढ़ाई  करने से तो रोक ही लिया जाये :)) । जब खेलो को भी भारत रत्न के पैमाने में शामिल करने की बात हुई तब से ही ये मुद्दा छाया था की पहले किस खिलाडी को भारत रत्न दिया जाये क्रिकेट के मौजूदा महान खिलाडी सचिन को या  फिर हाकी के जादूगर ध्यान चंद को  अंत में सब इस बात पर सहमत हुए कि जब दिया जाये तो दोनों को एक साथ ही दे दिया जाये बात बराबर की विवाद ख़त्म , किन्तु अब जब नाम सामने आये तो वहा ध्यानचंद का नाम ही नहीं था , कारण क्या ध्यान चंद को पुरुस्कार देने से कोई फायदा था , कोई चुनावी माइलेज मिल रहा था , क्या वो चुनावो में कांग्रेस के पक्ष में चुनाव प्रचार कर सकते थे , जवाब नहीं नहीं नहीं तो फिर काहे का पुरस्कार  ।  हम सभी जानते है की सरकारी पुरस्कारो और पदो  का वितरण कैसे और क्यों होता है और उसका पैमाना क्या होता है , भारत रत्न भी उससे अछूता नहीं है , इसमे भी राजनीतिक माइलेज के लिए खास लोगो को देने का आरोप लगता रहा है , और इसमे कोई भी राजनीतिक दल पीछे नहीं है , अब बी जे पी भी कांग्रेस की बुराई करते हुए खुद कांग्रेसगिरी पर उतर आई और कहा दिया कि जब हमारी सरकार आएगी तो अटल जी को सम्मान दिया जायेगा । जैसे भारतरत्न पुरस्कार न हुआ अंधे के हाथ लगी रेवड़ी हो गई ।


                             मामला केवल उस राजनीति तक नहीं सिमित है , उस राजनीति में जहा मामला सचिन को अपने लपेटे में ले लेने का , उन्हें पदो पर बिठा देने का , अपने पाले में ले लेने का है वही ,खेल की  राजनीति , खेल में हो रही राजनीति , खेल में हो रही पदो की राजनीति , खिलाड़ियो के चुनावो की  राजनीति आदि आदि से उन्हें दूर रखने का भी है । सोचिये कल्पना कीजिये जरा,  सचिन बी सी सी आई में आ जाये तो , राम राम राम श्रीनिवासन का क्या होगा,  पवार साहब का क्या होगा , खेल , खिलाडी से हो रही राजनीति का क्या होगा , खिलाड़ियो के चुनाव का क्या होगा , बी सी सी आई में आ रहे अरबो रुपये का क्या होगा , आई पी एल के नाम पर बी सी सी आई में बैठे लोग जो अरबो कमा रहे है पीछे से उसका क्या होगा , और टीमो के मालिक सट्टा लगा कर , खिलाड़ियो को भरमा कर जो कमा रहे है उसका क्या होगा । दृश्य बड़ा भयानक है , उससे तो अच्छा है कि सचिन को सीढी  से ऊपर चढ़ा दो और फिर नीचे से सीढ़ी हटा दो , भाई अब तुम बहुत ऊपर चले गए है ये छोट मोटे काम हम छोटे मोटे लोगो पर छोड़ दो । जैसे राजीनीति में किसी नेता को सक्रिय राजनीति से भगाने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति का ऊँचा पद दे दिया जाता है । खेल का भला होगा , किन्तु आज खेल और खिलाड़ियो के ठेकेदारो का क्या होगा उनकी तो दूकान बंद हो जायेगी , जो आज तक कहते रहे की भारतीय टीम भारत के लिए नहीं बी सी सी आई के लिए खेलती है , वो भारत की  नहीं बी सी सी आई की टीम है , जिन्होंने बी सी सी आई को हर पारदर्शिता से दूर रखा , उसके हर काम को गोपनीय बना दिया । , क्या होगा यदि सचिन वहा चले जाये ।

                                                  पर ऐसा कुछ नहीं होगा और होना भी नहीं चाहिए मै  कभी नहीं चाहूंगी की  सचिन आपनी सकरात्मक ऊर्जा इस गन्दी , घटिया गिरी हुई राजनीति में व्यर्थ करे ,जहा उन्हें कभी कुछ करने ही न दिया जाये और वो सारा समय व्यवस्था में फैली गन्दगी को ही साफ करने में बिता दे , एक ऐसी गन्दगी का ढेर जो उनके कद से भी बड़ा है जो उन्हें भी डूबा देगा जिसका कोई छोर नहीं है ,  अच्छा हो वो पहले के जैसे ही इन सब से दूर रहे , और अपनी ऊर्जा अपने ही जैसे महान खिलाड़ियो के निर्माण में लगाये , जो न केवल खेल में बल्कि व्यक्तित्व में भी उनकी उपलब्धियों और महानता को छुए और अपने खेल से लोगो को इतना मजबूर कर दे कि कोई उनके साथ कोई राजनीति , क्षेत्रवाद या भेदभाव न कर सके । किन्तु इस राजनीति से दूर रहना भी उनके लिए बहुत आसान नहीं होगा , सोचिये की सुप्रीमो के फरमान को अनसुना करने का क्या अंजाम होगा , अमिताभ से लेकर खेमका तक सैकड़ो उदाहरण पड़े है जब आप सरकारो की  बात नहीं मानते है  या उनके विरुद्ध जाते है , या दूसरे पीला में जाते है, तो आप के साथ क्या क्या हो सकता है , सारी  महानता उपलब्धिया धरी कि धरी रहा जाती है , वैसे भी हैम अपने महान लोगो को लाइम लाइट से जाते ही भुला देने में माहिर है ।

                                     सचिन ने अपने जीवन में कई मुश्किल दौर देखे है और उससे बहादुरी से बाहर भी आये है बिना अपनी गरिमा को गिराए , अब सचिन के लिए अपने जीवन का एक सबसे मुश्किल दौर देखना है और हम देखेंगे की सचिन उसे कितनी बहादुरी नम्रता और अपनी गरिमा को कायम रखते हुए सुलझाते है । और नेताओ से अपील की कृपया करके अपने फायदे के लिए देश के बड़े सम्मानो , पुरस्कारो और महान हस्तियों को इस्तेमाल न करे आप की तो कोई गरिमा नहीं है कम से कम उसकी गरिमा का तो ख्याल रखे ।


चलते चलते 

                     जब कालेज में थी तो मित्र ने कहा कि सचिन पर कुछ लिखो मैंने जवाब दिया मै कभी भी सचिन पर कुछ भी नहीं लिखूंगी , कारण ये कि एक तो उन पर बहुत कुछ लिखा गया है अब कुछ बाकि नहीं है लिखने के लिए , दूसरे जिस जगह वो है उसके लायक मेरे पास शब्द नहीं है , तीसरे कुछ चीजे बस महसूस करने के लिए होती है थोड़ी निजी टाइप भावना, सब कुछ शब्दो में लिख पाना और लिखा देना जरुरी नहीं है । पता न था की  एक दिन सचिन और राजनीति के कॉकटेल पर लिखूंगी , उफ़ ये राजनीति क्या न करवा दे । 

मुझे बड़ी खीज होती थी हमेसा जब लोग सचिन से हर बार सेंचुरी की उम्मीद करते थे ,उससे कम की तो बात ही नहीं होती थी , आखरी पारी में भी वही उम्मीद , लोग हद कर देते है । उनकी बिदाई वाले दिन फेसबुक पर लिखा कि  "  चलो सचिन आज से आप आजाद है १२१ करोड़ उम्मीदो से , उम्मीद है आप अब हजारो सचिन का निर्माण करेंगे देश के लिए "  लो फिर से सचिन से एक और उम्मीद :))) सच में हम सब कितने एक जैसे है ।