November 18, 2013

खेल, सचिन , राजनीति और भारतरत्न - - - - -mangopeople

 


कुछ खबरे

१- सचिन को राज्य सभा के लिए चुना गया ।
२- "सचिन मौजूदा ५ राज्यो के चुनावो में , कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार करेंगे " - कांग्रेस के कई बड़े नेता ।
३- सचिन का किसी भी चुनाव प्रचार में आने से इंकार ।
४- राजीव शुक्ला ने कहा की सोनिया जी ने सचिन को राज्यसभा के लिए चुना ।
५- २६ जनवरी २०१४ को सचिन को भारतरत्न देने की  सम्भावना ।
६- रिटायमेंट के साथ ही सचिन को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा ।

इस खबरो से आप को अंदाजा लग ही गया होगा की मामला क्या है

नहीं समझ आया दो और खबर

७ - लता जी ने मोदी की  तारीफ की
८- कांग्रेसी नेता ने लता जी से भारत रत्न वापस करने के लिए कहा  ।

इन खबरो के बाद कांग्रेस हाय हाय के नारे लगाने वालो के लिए भी दो खबर

९- अमर्त्य सेन ने मोदी को अयोग्य कहा
१० - बी जे पी नेता ने अमर्त्य सेन से भारतरत्न वापस लेने की बात कही ।


                                            लो जी भारत रत्न भारत सरकार की  नहीं कांग्रेस और बी जे पी की निजी बपौती है , जिसे वो देना चाहे दे और लेने वाला उनका गढ़ गुलाम हुआ जो आगे से उनकी स्तुति वंदना के सिवा और कुछ नहीं बोल सकता है , उनके खिलाफ और उनके विरोधी के पक्ष में तो बिलकुल भी नहीं । जीतनी जल्दबाजी सचिन को भारत रत्न देने की कि गई उससे तो साफ लगता है की २०१४ के चुनावो से पहली ये दे कर सचिन से उसकी कीमत मांगी जायेगी और क्या , ये बताने की जरुरत नहीं है । बिना सचिन से पूछे उनकी इजाजत लिए जिस तरह कांग्रेसी नेता कैमरो पर सचिन के अपने पक्ष में चुनाव प्रचार करने की बात कह रहे थे उससे साफ था कि , सचिन को राज्य सभा का सदस्य बना कर उन पर जैसे अहसान किया गया था और अब उसकी कीमत मांगी गई थी । जैसे सचिन ने कांग्रेस के राज्य सभा की सदस्य बनने की बात मान कर कांग्रेस की सदस्यता स्वीकार कर ली हो , जब बात नहीं बनी तो कीमत और बढ़ा दी गई , और  उसके पहले बताया गया सार्वजनिक रूप से कि कैसे राज्यसभा के लिए सोनिया जी ने सचिन का नाम सुझा कर उन पर एहसान किया , जैसे वो तो इस काबिल नहीं थे  । मुझे तो नहीं लगता की सचिन के पुरे कैरियर में कही भी राज्यसभा की  सदस्यता या भारतरत्न के बिना अधूरे थे , ये दो चीज उनके जीवन में नहीं होते तो भी उनके जीवन ,मान सम्मान , उपलब्धियों में , उनके चाहने वालो के प्यार में और उनके खले के मुरीद लोगो को एक रत्ती का भी कोई फर्क पड़ता,  । यदि भारत रत्न दिए जाने के नियमो में बदलाव किया किया गया तो ये उन पर एहसान नहीं था,  ये तो उनका खेल था , उनकी खेल की दुनिया में उपलब्धि थी जिसने ऐसा करने के लिए सरकार को मजबूर किया ।  वैसे दावे से तो ये नहीं कह सकती क्या पता यु पी  ए ने काफी पहले ही इस राजनीतिक लाभ को समझा हो और उसके तहत ही ये बदलाव किये गए हो ताकि चुनावी मौसम में कुछ फायदा इस से उठाया जा सके या सचिन को अपने पाले में लाया जा सके या कम से कम लता  जी की तरह विपक्ष की बढ़ाई  करने से तो रोक ही लिया जाये :)) । जब खेलो को भी भारत रत्न के पैमाने में शामिल करने की बात हुई तब से ही ये मुद्दा छाया था की पहले किस खिलाडी को भारत रत्न दिया जाये क्रिकेट के मौजूदा महान खिलाडी सचिन को या  फिर हाकी के जादूगर ध्यान चंद को  अंत में सब इस बात पर सहमत हुए कि जब दिया जाये तो दोनों को एक साथ ही दे दिया जाये बात बराबर की विवाद ख़त्म , किन्तु अब जब नाम सामने आये तो वहा ध्यानचंद का नाम ही नहीं था , कारण क्या ध्यान चंद को पुरुस्कार देने से कोई फायदा था , कोई चुनावी माइलेज मिल रहा था , क्या वो चुनावो में कांग्रेस के पक्ष में चुनाव प्रचार कर सकते थे , जवाब नहीं नहीं नहीं तो फिर काहे का पुरस्कार  ।  हम सभी जानते है की सरकारी पुरस्कारो और पदो  का वितरण कैसे और क्यों होता है और उसका पैमाना क्या होता है , भारत रत्न भी उससे अछूता नहीं है , इसमे भी राजनीतिक माइलेज के लिए खास लोगो को देने का आरोप लगता रहा है , और इसमे कोई भी राजनीतिक दल पीछे नहीं है , अब बी जे पी भी कांग्रेस की बुराई करते हुए खुद कांग्रेसगिरी पर उतर आई और कहा दिया कि जब हमारी सरकार आएगी तो अटल जी को सम्मान दिया जायेगा । जैसे भारतरत्न पुरस्कार न हुआ अंधे के हाथ लगी रेवड़ी हो गई ।


                             मामला केवल उस राजनीति तक नहीं सिमित है , उस राजनीति में जहा मामला सचिन को अपने लपेटे में ले लेने का , उन्हें पदो पर बिठा देने का , अपने पाले में ले लेने का है वही ,खेल की  राजनीति , खेल में हो रही राजनीति , खेल में हो रही पदो की राजनीति , खिलाड़ियो के चुनावो की  राजनीति आदि आदि से उन्हें दूर रखने का भी है । सोचिये कल्पना कीजिये जरा,  सचिन बी सी सी आई में आ जाये तो , राम राम राम श्रीनिवासन का क्या होगा,  पवार साहब का क्या होगा , खेल , खिलाडी से हो रही राजनीति का क्या होगा , खिलाड़ियो के चुनाव का क्या होगा , बी सी सी आई में आ रहे अरबो रुपये का क्या होगा , आई पी एल के नाम पर बी सी सी आई में बैठे लोग जो अरबो कमा रहे है पीछे से उसका क्या होगा , और टीमो के मालिक सट्टा लगा कर , खिलाड़ियो को भरमा कर जो कमा रहे है उसका क्या होगा । दृश्य बड़ा भयानक है , उससे तो अच्छा है कि सचिन को सीढी  से ऊपर चढ़ा दो और फिर नीचे से सीढ़ी हटा दो , भाई अब तुम बहुत ऊपर चले गए है ये छोट मोटे काम हम छोटे मोटे लोगो पर छोड़ दो । जैसे राजीनीति में किसी नेता को सक्रिय राजनीति से भगाने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति का ऊँचा पद दे दिया जाता है । खेल का भला होगा , किन्तु आज खेल और खिलाड़ियो के ठेकेदारो का क्या होगा उनकी तो दूकान बंद हो जायेगी , जो आज तक कहते रहे की भारतीय टीम भारत के लिए नहीं बी सी सी आई के लिए खेलती है , वो भारत की  नहीं बी सी सी आई की टीम है , जिन्होंने बी सी सी आई को हर पारदर्शिता से दूर रखा , उसके हर काम को गोपनीय बना दिया । , क्या होगा यदि सचिन वहा चले जाये ।

                                                  पर ऐसा कुछ नहीं होगा और होना भी नहीं चाहिए मै  कभी नहीं चाहूंगी की  सचिन आपनी सकरात्मक ऊर्जा इस गन्दी , घटिया गिरी हुई राजनीति में व्यर्थ करे ,जहा उन्हें कभी कुछ करने ही न दिया जाये और वो सारा समय व्यवस्था में फैली गन्दगी को ही साफ करने में बिता दे , एक ऐसी गन्दगी का ढेर जो उनके कद से भी बड़ा है जो उन्हें भी डूबा देगा जिसका कोई छोर नहीं है ,  अच्छा हो वो पहले के जैसे ही इन सब से दूर रहे , और अपनी ऊर्जा अपने ही जैसे महान खिलाड़ियो के निर्माण में लगाये , जो न केवल खेल में बल्कि व्यक्तित्व में भी उनकी उपलब्धियों और महानता को छुए और अपने खेल से लोगो को इतना मजबूर कर दे कि कोई उनके साथ कोई राजनीति , क्षेत्रवाद या भेदभाव न कर सके । किन्तु इस राजनीति से दूर रहना भी उनके लिए बहुत आसान नहीं होगा , सोचिये की सुप्रीमो के फरमान को अनसुना करने का क्या अंजाम होगा , अमिताभ से लेकर खेमका तक सैकड़ो उदाहरण पड़े है जब आप सरकारो की  बात नहीं मानते है  या उनके विरुद्ध जाते है , या दूसरे पीला में जाते है, तो आप के साथ क्या क्या हो सकता है , सारी  महानता उपलब्धिया धरी कि धरी रहा जाती है , वैसे भी हैम अपने महान लोगो को लाइम लाइट से जाते ही भुला देने में माहिर है ।

                                     सचिन ने अपने जीवन में कई मुश्किल दौर देखे है और उससे बहादुरी से बाहर भी आये है बिना अपनी गरिमा को गिराए , अब सचिन के लिए अपने जीवन का एक सबसे मुश्किल दौर देखना है और हम देखेंगे की सचिन उसे कितनी बहादुरी नम्रता और अपनी गरिमा को कायम रखते हुए सुलझाते है । और नेताओ से अपील की कृपया करके अपने फायदे के लिए देश के बड़े सम्मानो , पुरस्कारो और महान हस्तियों को इस्तेमाल न करे आप की तो कोई गरिमा नहीं है कम से कम उसकी गरिमा का तो ख्याल रखे ।


चलते चलते 

                     जब कालेज में थी तो मित्र ने कहा कि सचिन पर कुछ लिखो मैंने जवाब दिया मै कभी भी सचिन पर कुछ भी नहीं लिखूंगी , कारण ये कि एक तो उन पर बहुत कुछ लिखा गया है अब कुछ बाकि नहीं है लिखने के लिए , दूसरे जिस जगह वो है उसके लायक मेरे पास शब्द नहीं है , तीसरे कुछ चीजे बस महसूस करने के लिए होती है थोड़ी निजी टाइप भावना, सब कुछ शब्दो में लिख पाना और लिखा देना जरुरी नहीं है । पता न था की  एक दिन सचिन और राजनीति के कॉकटेल पर लिखूंगी , उफ़ ये राजनीति क्या न करवा दे । 

मुझे बड़ी खीज होती थी हमेसा जब लोग सचिन से हर बार सेंचुरी की उम्मीद करते थे ,उससे कम की तो बात ही नहीं होती थी , आखरी पारी में भी वही उम्मीद , लोग हद कर देते है । उनकी बिदाई वाले दिन फेसबुक पर लिखा कि  "  चलो सचिन आज से आप आजाद है १२१ करोड़ उम्मीदो से , उम्मीद है आप अब हजारो सचिन का निर्माण करेंगे देश के लिए "  लो फिर से सचिन से एक और उम्मीद :))) सच में हम सब कितने एक जैसे है । 














14 comments:

  1. एग्जैक्टली...मेरा भी सचिन पर लिखने का कोई इरादा नहीं था . सचिन से ज्यादा मैं द्रविड़ की फैन थी/हूँ .पर इतना हंगामा देख एक के बाद एक पांच फेसबुक स्टेटस लिख गयी और लम्बी चौड़ी बहस भी हुई वहाँ .कोई उन्हें पेप्सी बेचने वाला कह रहा है...कोई कह रहा है भगवान टी.वी. पर सामान बेच रहे हैं...कोई कह रहा है देश के लिए अब तक कुछ नहीं किया...भारत रत्न मिल गया, अब तो कुछ करो .सचिन को यह सब अपने अच्छे खेल के बदौलत मिला. उन्होंने न खुद को कभी भगवान कहलाने की इच्छा जाहिर की न ही कोई सम्मान लेने की .अगर लोगों का ये पागलपन है उनके प्रति तो लोगों को उनमें एक हीरो नज़र आता है जो छोटे कद का होते हुए भी गज़ब का आत्मविश्वासी, निडर , अपनी लगन/मेहनत से आगे बढनेवाला ,और सब कुछ पाकर भी विनम्र और विवादों से दूर रहनेवाला है. वो सबकुछ है सचिन में जो लोग खुद में देखना चाहते हैं. और सचिन कोई भगवान नहीं इसलिए उनमें आम इंसान वाली कमजोरियां भी हैं पर लोग माइक्रोक्सोप लेकर उन कमजोरियों को ही बढ़ा-चढ़ा कर बस उसपर ही बात करना चाहते हैं.
    पुरस्कारों के पीछे की राजनीति किसे नहीं पता . इन अवार्ड्स के पीछे इतनी राजनीति है कि ये अवार्ड न सचिन के लिए न ध्यानचंद के लिए न हमारे हज़ारों वैज्ञानिकों/लेखकों /कलाकारों /समाजसेवकों के लिए कोई मायने रखते हैं...वैसे तो वक़्त ही बतायेगा कि आगे सचिन क्या करते हैं पर उनके अब तक के जीवन को देखते हुए ,इतना विश्वास तो है कि वे किसी राजनितिक पार्टी के दबाव में नहीं आएंगे .आखिर बाल ठाकरे ने भी जब उन्हें ,'मी मराठी आहे' कहने का आग्रह किया था तो उन्होंने ये कहकर कि 'मैं भारतीय हूँ' उन्हें टका सा जबाब दे दिया था .

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  2. अब तो मुझे भी लग रहा है की ब्लॉग के लिए समय नहीं मिल पाता फेसबुक के लिए थोडा तो मिल ही जाता है मुझे भी मंडली में शामिल हो जाना चाहिए , कुछ तो दिमागी खुराक मिल ही जायेगी ।

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  3. अंशुमाला जी,आपकी खबर अधूरी है।देश में कांग्रेस भाजपा के समर्थक ही थोड़े है भई ।आप लाल गिरोह को तो भूल ही गई।जो लोग अमर्त्य सेन मामले में अभिव्यक्ति की आजादी का राग आलाप रहे थे वही लोग लता ताई के मामले में खुद ही लगभग चंदन मित्रा ही बन बैठे।खैर बात सचिन की ही चली है तो इसमें कोई दोराय नहीं कि भारत रत्न देने में राजनीति तो शामिल है ही।लेकिन मुझे नहीं लगता कि देश के मतदाता खासकर ग्रामीण लोग इन सब बातों से प्रभावित होती।फेसबुक पर ही चुनाव लड़ा तो बात अलग थी वर्ना शाईनिंग इंडिया का हाल सबको पता ही है।खैर अब सब जनता के ही हाथ है।

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  5. हमारी मम्मी को क्रिकेट वैसे तो बिल्कुल पसंद नहीं।लेकिन जब भी मैच चल रहा होता बस वे सचिन के बारे में ही पूछा करती और सचिन के शतक से चूक जाने पर उन्हें बहुत दुख होता।टीवी पर उनके सन्यास की खबरें देख वे भावुक हो गई।मुझे खुद लगता है सचिन का व्यक्तित्व और उससे बढ़कर उनकी तकनीक उन्हें सबसे अलग करती है।जितने प्यारे प्यारे शॉट्स सचिन के पास थे उतने शायद ही किसीके पास हों।ऐसी कोई बॉल नहीं जिसे सचिन नहीं खेलना जानते।मेक्ग्राथ के अलावा कोई बॉलर उनका कभी कोई तोड नहीं ढूँढ पाया।हालाँकि मैं इस बात से सहमत नहीं कि सबसे बडे मैच जिताऊ खिलाडी सचिन हैं क्योंकि इस श्रेणी में द्रविड गांगुली और कप्तान के रूप में धोनी उनसे भी आगे हैं लेकिन फिर भी सचिन वाली बैटिंग स्टाईल किसीके पास नहीं ।कभी उनके एक प्रशंसक के पास तख्ती पर लिखा था "जब सचिन बैटिंग कर रहे हों तो आप कोई भी अपराध कर सकते है क्योंकि भगवान भी उस समय सब कुछ भूल उनकी बैटिंग देख रहा होता है"।

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  6. चलिए सीधे आपकी पोस्ट से संबंधित नहीं पर दो खबरें मैं भी जोड़ देता हूँ एक तो ये कि लता जी ने अपनी बहन उषा मंगेशकर के लिए पद्म पुरस्कार की सिफारिश की(ये बात आरटीआई के जरिये पता चली पर यदि लता जी खुद ही यह सार्वजनिक कर देती तो शायद इतना बुरा नहीं लगता)।और दूसरी खबर यह कि सचिन के साथ जिन वैज्ञानिक राव साहब को भारत रत्न की घोषणा हुई उन्होंने एक लेख चोरी कर साईंस जर्नल में छपवा दिया था बाद में पकडे भी गये ।और इसके लिए उन्होने खुद माफी भी माँगी थी।वैसे अब उम्मीद खत्म हो चुकी है पर अब भी यह खबर झूठ निकले तो मुझे बहुत खुशी होगी ।

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  7. ऐसे राजनीतिक खेल सम्मान का मान ही कम कर देते हैं ..... हर बार ऐसा ही कुछ होता है ....

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  8. राजनीति जो ना कराये वो थोडा, अक्सर गुड गोबर हो ही जाता है.

    रामराम.

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  9. राजनीति में जो न हो . सचिन , लता इन पुरस्कारों से कही बहुत ऊपर हैं , रहें -- यही कामना है !

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  10. Mere liye to yahi sukhad anubhav hai ki varshon baad aapke TEWAR dekhne ko mile.. Bahut hi balanced baat kahi hai.. Mobile se likhte huye zyada nahin likh sakta.. Mauka mila to dobara kahunga..

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  11. पुरस्कार\सम्मान राजनीति से अछूते नहीं होते और किसे और कब ये दिया जाना है, ये निर्णय किसके हाथ में रहता है ये सब जानते हैं। अपने हित के लिये साम,दाम,दंड, भेद नीतियों का पालन सत्ता करती ही रही है। देखते हैं कि इस खेल में सचिन कैसा खेलते हैं।

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  12. देखने लायक होगा कि सचिन इस नए खेल में कैसा रुख अपनाते हैं !

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