December 27, 2013

चाय से ज्यादा केतली गर्म - - - - - -mangopeople




                                                                                बिटिया को जब भी दूध का ग्लास पकड़ाती हूँ तो , वो चीखती है की ग्लास इतना गर्म है की पकड़ा नहीं जा रहा है , दूध कितना गर्म होगा मै  उसे कैसे पी सकती हूँ और मै  उन्हें हर बार समझाती हूँ कि ग्लास के गर्म होने से दुध के गर्म होने का अंदाजा उसे नहीं लगाना चाहिए दूध गर्म नहीं है उससे ज्यादा ग्लास गर्म है :) । यही हाल हमारी राजनीतिक पार्टियो के समर्थको का है , नेता जितना नहीं बोलते है उससे कही ज्यादा उनके समर्थक बोल पड़ते है । इधर "आप" विधायक बिन्नी केजरीवाल के घर से मीटिंग छोड़ कर बाहर आये उधर समर्थक चिल्लाना शुरू कर दिए की कल पोल खोलने वाली पार्टी कि ही पोल उनके माननीय नेता जी खोलेंगे , दूसरे दिन मामला सुलटने के बाद बेचारे नेता जी को अपने ही समर्थको की बातो का जवाब नहीं देते बन पड रहा था , केजरीवाल ने अभी शपथ भी नहीं लिया किन्तु उनके समर्थक राम राज्य लाने के सपने दिखाने लगे है , चार राज्यो के  बुरी गत करने के बाद कांग्रेस और जीत की रथ पर सवार बीजेपी भी अपनी हार जीत  को भूल आगे की राजनीति में लग गई , नए समीकरण तलाशने लग गई किन्तु समर्थक आज भी वही अटके पड़े है और सोशल मिडिया में पानी पी पी कर " आप " को गालिया दे रहे है उसे घेरने का प्रयास कर रहे है । इधर राहुल उनसे कुछ सीखने की बात करते है , अपने नेताओ को "आप" की तरह जनता से जुड़ने की नसीहत देते है ,कांग्रेस उसे समर्थन दे रही है तो उधर कुछ उसके ही खिलाफ मोर्चे ले कर निकल रहे है और गिन गिन कर उनके वादे याद  दिला उन्हें पूरा होने के लिए असम्भव बता रहे है । सही भी है जब ६६ सालो में हम नहीं कर पाये तो ये क्या करेंगे, किन्तु वो नहीं कर पाएंगे उस बात पर भी पूरा विश्वास नहीं है , डर में है कि सच में पञ्च साल में पूरा न कर दे इसलिए पञ्च साल का भी समय देने को तैयार नहीं है कहते है की सब ६ महीने में ही कर के दिखा दीजिये नहीं तो आप फेल है। बीजेपी के शीर्ष नेता कब के विवादित मुद्दो को ठन्डे बक्से में डाल कर भूल गई है किन्तु समर्थको को उसका भान भी नहीं है , मोदी कहते है देवालय से पहले शौचालय , सही बात है देवालय जैसे मुद्दो से कही ज्यादा जरुरी हर घर तक विकास शिक्षा और प्राथमिक जरुरतो को पूरा करना है , नेता जानते है कि दिल्ली की कुर्सी का रास्ता विकास की रोड से जाता है सभी को ले कर चलने से मंजिल मिलती है ,न की किसी एक समुदाय को लेकर बोलने से ,आखिर वो इतने शीर्ष पर अपनी उसी काबलियत और बुद्धि से पहुंचे है  कि  कब क्या बोलना है और कब किन मुद्दो को गायब कर देना है ,  वो तो जम्मू भी जाते है तो कश्मीरी पंडितो पर एक लाईन भी नहीं बोलते है किन्तु समर्थक ये सब समझते ही नहीं है और ऐसी ऐसी बाते बाहर बोलते है उनसे उम्मीद करते है कि बेचारे नेता की छवि लाख चाहने प्रयास करने के बाद भी नहीं बदल पाती है । नेता वही सही और सफल है जो समय के साथ बदले और जनता के इच्छानुसार मुद्दे उठाये, कहते है की काठ की हांड़ी बार बार नहीं चढ़ती है , मझा नेता बार बार एक ही संवेदनशील और भावनात्मक मुद्दो को नहीं उठाता है ।  अब देखिये जिस मनरेगा ने गरीबो की भलाई वाली स्कीम ने यु पी ए को दूसरी बार चुनाव जिताया , वही दूसरी गरीबो की स्कीम भोजन का अधिकार और कैश ट्रांसफर उसे चार राज्यो में जीत क्या सम्मान जनक सीट भी नहीं दिला सकी , उसका भ्रष्टाचार सब स्कीम पर भारी पड़ा। बीजेपी भी जानती है की उसकी हिंदूवादी छवि न कभी उसे सरकार दिला पाई है और न आगे दिला पायेगी , वो उसे सीटे तो दिला सकती है किन्तु सत्ता नहीं , सही समय पर उसने अडवाणी को किनारे किया और वाजपेयी को आगे , मोदी ने सही समय पर सिखा और अपनी छवि विकास पुरुष की बना ली । किन्तु समर्थक राजनीति की इन हकीकतो को समझते नहीं है और उसी पुराणी छवि को पकड़ कर अपने ही नेता को मुसीबतो में डालते रहते है ।

                                               सोसल मिडिया हो या अन्य जगह दिल्ली और " आप " को लेकर ऐसी ऐसी राजनीतिक चालो का वर्णन है कि समझ नहीं आ रहा है की शिकारी कौन है और शिकार कौन , लगा बीजेपी सरकार बनाएगी किन्तु उसने " आप" की नैतिकता वाली चाल चल दी और गेंद " आप" के पाले में इस उम्मीद में डाल दी कि वो तो सरकार बनाएंगे नहीं ६ महीने विधान सभा स्थगित हो जायेगी फिर लोकसभा चुनावो के बाद कांग्रेसियो की अंतरात्मा जगा कर सरकार बना ली जायेगी  , लगे हाथ कांग्रेस ने भी समर्थन इस उम्मीद में दे दिया कि वो तो लेंगी ही नहीं हम दोनों चचेरे भाई उसे भगोड़ा घोषित कर देंगे और मामला फिलहाल लोकसभा चुनावो तक टाल देंगे और सरकार न बनाने पर "आप " वालो की जम कर खबर लेंगे ताकि वो लोकसभा चुनावो में ज्यादा कुछ न कर पाये , किन्तु हाय रे हाय जो " आप " वाले एक समय फसंते दिख रहे थे उन्होंने ने तो फिर से वोटिंग करा कर सरकार बनाने की ठान ली और अपने वादो को पूरा करने की भी , लो जी अब तो कांग्रेस और बीजेपी दोंनो की ही चाल उलटी पड़ती दिखने लगी , नतीजा दोनों की ही तल्खी और बढ़ गई " आप " के प्रति , बीजेपी के तो मुंह से निवाला चला गया , और अब कांग्रेस को डर है कि पिछले १५ सालो में जो खाया है दिल्ली में वो कही बाहर न आ जाये , जो थोड़ा बाहर आया है उससे तो ये हाल है जब और आयेगा तो आगे क्या होगा । अब दोनों उम्मीद लगाये बैठे है कि उनका तारण हार दिल्ली की बाबू ब्रिगेट करेगी , एक भी फाईल आगे नहीं बढ़ने देगी एक भी काम नहीं होने देगी , किन्तु उनकी इस उम्मीद पर भी तुषारपात होता दिख रहा है , अब खबर या अफवाहे जो भी आ रही है कि बाबू ब्रिगेट तो खुद ही अपनी जान बचाने में लगी है , कोई फाईले फड़वा रहा है तो कोई ट्रांसफर ले रहा है तो कोई आफिस में ताले लगा कर काम कर रहा है । एक हंसी मुझे तब आई थी जब टीवी चैनलो में मैंने अपने जीवन में पहली बार ( शायद दुसरो ने भी ) कांग्रेस और बीजेपी को गलबहिये करते एक दूसरे की पीठ थपथपाते और एक दूसरे की हा में हां मिलाते देखा लोकपाल के मुद्दे पर वो भी खुलम खुल्ला , चोरी छुपे तो दोनों ये करती ही आई थी , दूसरी हंसी अब आ रही है इस बाबू ब्रिगेट का हाल देख कर , मुझे कमल हासन की फ़िल्म इन्डियन याद आ रही है जिसमे वृद्ध स्वतंत्रता सेनानी बने थे और रिश्वतखोरो को सजा देते है उनका डर सब में इतना हो जाता है कि उनके जाने के बाद भी दूसरे लोग उनके जैसी बेल्ट पहन कर ही लोगो को डरा देते है ।


                                                                समझ नहीं आता की अरविन्द से लोगो को इतना डर और चिढ क्यों है क्यों उनकी पार्टी बनाने से दोनों बड़ी पार्टिया इतनी खीजे हुई है , शरद पवार , राजठाकरे , देवगौड़ा , जगन मोहन , येदुरप्पा , कल्याण सिंह , उमा भारती जैसे न जाने कितने लोगो ने पार्टी तोड़ कर या नई राजनीतिक दलो को खड़ा किया , सभी ने किसी न किसी का वोट काटा और राजनीति में अपने लिए जगह बनाई या हार कर ख़त्म हो गए , उनके लिए ये तल्खी कभी भी इन दो बड़ी पार्टियो ने नहीं दिखाई जो वो आज "आप " के लिए दिखा रही है । शायद ये पहला मौका है जब उन्हें लग रहा है कि " आप " राजनीति में उनके बनाये नियमो के तहत नहीं काम कर रही है , लोकतंत्र का जो रूप उन्होंने आज तक जनता में फैला दिया था  जिसमे से लोक ही गायब है " आप " फिर से उस लोकतंत्र में लोक को सामिल करके उनका खेल बिगाड़ रही है , वो राजनीति करने के तरीके को बदल रही है , वो आम लोगो में अपने अधिकारो के प्रति जागने की जो भावना बैठा रही है वो आगे उन्हें परेशान करने वाले है , वो उनमे से ही एक नहीं है , जो सत्ता पैसे ताकत के लिए हर तरीके से समझौते कर लेती है , ये जिद्दी लोगो का वो गुट है जो सच में कुछ बदलने का ठान के आई है । इतना विश्वास तो खुद मुझे भी नहीं है "आप " पार्टी पर ,मै  मानती हूँ कि अरविन्द और उनके आस पास के कुछ लोग बदलाव के मकसद से काम कर रहे है जिसमे सत्ता का लालच नहीं है , क्योकि वो खुद एक बड़ा पद जो काफी ताकतवर होता है को छोड़ कर आये है और जमीनी रूप से काफी काम किया है कित्नु जिस बदलाव की वो बात कर रहे है वो ये काम अकेले नहीं कर सकते है , समग्र विकाश के लिए और ऐसे लोग की फौज वो कहा से लायेंगे , उनकी पार्टी में लगभग सभी नए है जिनमे से कई तो सता की ताकत को कभी महसूस ही नहीं किया है , वो उसे त्यागते हुए कैसे अपनाएंगे । इसके लिए तो भारतीयो का डी एन ए ही बदलना पडेगा जो भ्रटाचार का नमक खा खा कर उसका आदि हो गया है :)) ।

                                            राजनीति के इस बिसात में राजनीतिज्ञो और बाबू के बाद नंबर आएगा आम लोगो का जो कटिया डाल कर बिजली लेते है , मीटर में गड़बड़ी करके बिल कम करते है , ट्रैफिक रूल नहीं मानते है ,  जो पुरे कागजात न होने के बाद भी चाहते है कि कुछ ले दे कर उनका काम हो जाये , जो सरकारी दफ्तरों की लम्बी लाइनो से बचने के लिए दलालो का सहारा लेते है , जो घर बैठे ही ड्राइविंग लाइसेंस ले लेना चाहते है , जो अपने घरो में अवैध निर्माण करते है , पानी का गलत कनेक्शन लेते है आदि आदि क्या वो आम आदमी सुधरने के लिए तैयार है , कही ऐसा न हो जो आम आदमी वोट दे कर अरविन्द को उस गद्दी पर बैठाया है वही उनकी कड़ाई से उब कर खुद ही उन्हें गद्दी से उतार दे या ये हो सकता है कि आम आदमी ने पिछले ६६ वर्षो से जो गलती की है , उसे फिर से न दोहराए , इन दलो को फिर से अपने मुद्दो से भागने न दे,  जो सुधर गए है उन्हें बिगड़ने न दे , अपने नेताओ पर नजर रखे , अपने अधिकारो के प्रति सजग रहे , सिर्फ वोट डी कर पञ्च साल के लिए अपने हाथ न कटा ले , अपने नेताओ से सवाल करता रहे और लोकतंत्र से फिर से लोक को गायब होने का मौका न दे । तो लोगो से निवेदन है कि अपना दिल और दिमाग खुला रखे राजनीति को राजनीति की तरह ही ले सही को सही ओए गलत को गलत कहे ।


चलते चलते

               कुछ्महिनो पहले एक ब्लॉग पर पढा की सभी न्यूज चैनल हिन्दू विरोधी है और बीजेपी की खबर नहीं दिखाते है , मैंने भी अपनी गन्दी आदत के अनुसार वहा टिप्पणी दे दिया की भाई कोई भी तीज त्यौहार हो या ग्रह नक्षत्र की गड़बड़ी हिंदी न्यूज चैनलो तो इन्ही खबरो से भरेपड़े है , १५ अगस्त को जब आँख खुली और टीवी खोला तो एक बार तो मै कन्फ्यूज ही हूँ गई लगा की मै  कोमा से बाहर आई हूँ , मोदी जी प्रधानमत्री बन गए है और भाषण दे रहे है हर न्यूज चैनल पर  भाषण सीधा आ रहा था , वो कही रैली करे और उसका सीधा प्रसारण ये चैनल न करे से तो सम्भव ही नहीं है और कितना प्रसारण चाहते है । भाई साहब नाराज हो गए कह दिया कि मुझे हिन्दू धर्म छोड़ देना चाहिए हिन्दू होने के लायक नहीं हूँ , और तो और मै  देश द्रोही हूँ गद्दार हूँ , तब से दुखी थी की कोई मोदी समर्थक मिल जाये और मुझे राष्ट्रभक्ति का सटिफिकेट दे दे नहीं तो कम से कम हिन्दू होने का तो देदे मै  दोनों से निकल बाहर हो गई हूँ किन्तु वो मिल नहीं रहा था , कारण आज पता चला कि मै तो कामरेड हूँ ;-) अपने लिए ये सम्बोधन सुन कर अच्छा लगा गर्व सा हुआ बिटिया कई बार पूछ चुकी है कि मै बड़ी हो कर क्या बनूँगी क्या बताऊ उन्हें कि कुछ नहीं बनी बस उसकी मम्मी भर हूँ , अब कह सकती हूँ कि मै कामरेड बन गई :) वैसे हद है यार दुनिया की खबर लेने के चक्कर में मुझे ये भी नहीं पता चला की मै  कब से नारीवादी के साथ कामरेड भी बन गई । ब्लॉग जगत में आ कर बहुत सारे तत्व ज्ञान अपने बारे में पता चल रहा है , पता नहीं अब तक कैसे जी रही थी । निवेदन है की बताये की ये कामरेड किस धर्म जाति और देश का निवासी होता है , अपने बारे में इतनी तो  जानकारी हो :))))


नोट :-चलते चलते की बात अपने ऊपर यु ही किये गए टिप्पणी को हँसने हँसाने के लिए मजाक में लिखी गई है उसे कटाक्ष का गम्भीरता से न ले , ऐसा मेरी सहज बुद्धि कहती है ;-)

                                       





December 10, 2013

रणनीति या मौके की नजाकत - - - - -mangopeople



                                        शायद ये हमारे भारतीय राजनीति  का ऐतिहासिक समय  है ,जो न तो आजादी के बाद से आज तक आया है और न ही आगे के ६०० सालो तक आयगा जब दो राजनीतिक  दल कुर्सी और सत्ता खुद लेने के लिए नहीं बल्कि उसे न लेने के लिए बहस कर रहे  है , ये शायद पहला मौका है जब  राजनीतिक  दल पक्ष की  जगह विपक्ष में बैठने के लिए लड़ रहे है , शायद ये पहला मौका है जब पक्ष में कोई है ही नहीं और विपक्ष के लिए दो दो पार्टिया खड़ी है । किन्तु जिस तरह इस संसार में कुछ भी स्थाई नहीं है उसी तरह ये समय काल और व्यवहार भी स्थाई नहीं है , निश्चित रूप से इस त्याग के पीछे ६ महीने बाद होने वाला लोकसभा चुनाव है , जिसमे सभी साफ सुथरे दिखाई देना चाहते है ,साथ में एक  डर और भी है , भले सीडी और स्टिंग के किंग जेल में है किन्तु उनके अर्जुन एकलव्य जैसे शिष्य बाहर है क्या पता सामने वाला बिकने की  जगह   सीडी बना रहा है , आखिर अभी लोकसभा चुनाव भी तो जीतने  है , जहा कांग्रेस को बी जे पी के खिलाफ कुछ ऐसे ही सबुत चाहिए जैसे एक बार उनके पास छत्तीसगड़ में अजित जोगी के खिलाफ था , और "आप" को भी बीजेपी के लिए वैसे ही अभियान चला कर जितना है जैसा उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ जीता है , भ्रष्टाचार के आरोप लगा कर । सो बीजेपी भी फूंक फूंक कर कदम रख रही है और एक राज्य में सरकार बनाने ,जो अंततः उसकी ही होने वाली है ,के  लिए वो अपने उस खेल में पानी नहीं फेरना चाहती है जो वो देश में सरकार बनाने के लिए खले रही है । ये बात " आप " भी जानती है सो वो भी चुचाप तमाशा देख रही है और अति उत्साहित मिडिया की जमात  की तरह व्यवहार नहीं कर रही है । इन दोनों के सामने कुछ साल पहले के बिहार राज्य का उदहारण भी है की कैसे त्रिशंकु विधान सभा को रात के २ बजे भंग किया गया और नितीश की सरकार नहीं बनने दी गई और परिणाम स्वरुप हुए चुनावो में नितीश को प्रचंड बहुमत मिल गया । मजेदार स्थिति है दोनों ही बड़ी पार्टी एक ही दाव खेल रही है , देखना होगा अंत में जीत किसके हाथ लगेगी , यदि दुबारा चुनाव हुए तो । "आप " चुप है कि जब एक साल में यहाँ आ गए तो ६ महीने और बिना किसी जिम्मेदारी ( सरकार चलाने ) के वो अपना सारा समय और ऊर्जा लोकसभा के चुनावो की  तैयारी और  दूसरे राज्यो में अपनी पहुंच को बढाने के लिए कर सकते है , और बीजेपी ये दिखाने की सोच रही है की देखिये कांग्रेस के विकल्प के लिए हम सही है सच्चे ईमानदार तीसरे विकल्प की  जरुरत ही क्या है ।

                                               " आप " इतने कम समय में दिल्ली में जो जगह बनाने में कामयाब रही है उसके लिए बधाई के पात्र किन्तु याद रखिये की सत्ता के बाहर रह कर सिद्धांतो और उसूलो की बात करना आसान है किन्तु जब सत्ता हाथ में आ जाये तो उस ताकत के साथ अपना व्यवहार सामान्य रखना आसान नहीं होता है , ये सत्ता की ताकत कइयो को अपने नशे के लपेटे में ले लेती है , और ये शुरू भी हो गया , जब उनके एक विधायक ने शानदार विजय जुलुस निकाल दिया ( जहा उनका हांरे कांग्रेसी विधायक से झगड़ा भी हो गया और उन पर हारे विधायक की पत्नी से छेड़छाड़ का केस भी दर्ज हो गया  ) हा बाद में मनीष सिसोदिया ने उन्हें ऐसा न करने के लिए कह दिया , किन्तु " आप " को ये बात ध्यान में रखनी होगी की हम सभी के खून में पारम्परिक  राजनीतिक दलो  ने ऐसी बातो को भर दिया है की हम उन आडम्बरो और ताकत प्रदर्शन को भी लोकतंत्र का हिस्सा मानने लगे है । अब उनके ऊपर और जिम्मेदारी आ गई है की खुद को आम आदमी कहने वाले और अब खास बन चुके ये लोग अपना व्यवहार भी आम आदमी जैसा ही रखे और उसी नैतिक मूल्यो और सिद्धांतो की बात पर कायम रहे , जिसके दम पर वो यहाँ आये है । कुछ को छोड़ दे तो आम भारतीय इस व्यवस्था परिवर्तन और सरकारो के बदले व्यवहार के लिए तैयार है ,गेंद अब उनके पाले में है , निभा ले गए तो बड़े बन जायेंगे नहीं निभा पाये तो उनका हाल भी बाकि विकल्प बन कर उभरी तीसरी शक्तियो जैसा ही होगा । वैसे " आप " की जीत ने पुराने राजनीतिक दलो पर ये दबाव तो बना ही दिया की भ्रष्टाचारी , बाहुबली और अपराधियो को टिकट देना अब उनके लिए आसान नहीं होगा और उन्हें चुनावो में साफ सुथरी छवि वाले उम्मीदवारो को खड़ा करना होगा । देखते है की कितने राजनीतिक दल इस सबक को सिखते है ।
                                                                 

                                  बीजेपी दुखी है वो तिन राज्यो में चुनाव जीत गई उसके बाद भी मिडिया का फोकस उन पर न हो कर आम आदमी पार्टी की तरफ है , दुखी होना लाजमी है , मोदी को मीडिया का सारा एटेंशन लेनी की आदत हो गई थी अब उसका फोकस बदलना दुखी कर रहा है , और डर भी पैदा कर रहा है की कही जो लहर ,हवा चलने की बात वो अपने लिए कर रहे थे , वो कही किसी और की तरफ से न बहने लगे । डरना भी चाहिए , क्योकि वो भी कांग्रेस का विकल्प बन कर , बदलाव की बात कर और खुद को डिफरेंट कह कर इस राजनीतिक मैदान में कूदे थे , और आज स्थिति ये है कि उनका भी कांग्रेसीकरण हो गया है , नतीजा आज फिर उन्ही बातो को कह कर कोई और भी मैदान में है जो उनका खेल बुरी तरह बिगाड़ सकता है । वो तो सोच बैठे थे की बिल्ली के भाग से छीका टुटा और लोकपाल आंदोलन में बढ़ चढ़ कर अपने लोगो को हिस्सा लेनी दिया उसे कांग्रेस विरोधी  आंदोलन बनाया , किन्तु पता न था कि एक दिन वही आंदोलन उनके खिलाफ भी चला  जायेगा ,बीजेपी के लिए तो ये भष्मासुर जैसा हो गया । वैसे चाहे तो वो अभी से सबक सिख सकती है वैसे उसने प्रयास भी शुरू कर दिया था , और दिल्ली  में हर्षवर्धन जैसे साफ दिखने वाले व्यक्ति को अपना मुख्यमंत्री घोषित करके लेकिन देर से , अब ये देरी उसे लोकसभा के चुनावो में नहीं करनी चाहिए और कम से कम तब तक के लिए ये अपने कांग्रेसी चोले को उतार कर उससे अलग दिखना शुरू कर देना चाहिए ताकि दोनों को एक ही तराजू में न तौला जा सके ।

                                                 कांग्रेस तो निश्चित रूप से इस समय शॉक की स्थिति में है और उसके लिए अब बहुत देर भी हो चुकी है न केवल ६ महीने बाद होने वाले आम चुनावो के लिए बल्कि उसके बाद होने वाले कुछ अन्य राज्य के चुनावो के लिए भी जहा उसकी ही सरकार है । ये ठीक है की आत्मविश्वास बनाये रखने के लिए हम सभी सामने खड़ी चुनौती को अनदेखा करते है और दिखाते है की कुछ है ही नहीं किन्तु सच में ऐसा नहीं मान बैठते है , यही पर कांग्रेस ने गलती कर दी उसने तो कहने के साथ ही ये मान भी लिया था की मोदी और अरविंद उसके लिए कुछ है ही नहीं , ये अहंकार उसे ले डूबा और आगे भी ले डूबेगा ये तय है । राहुल आज भी सिख ही रहे है , हद हो गई अब वो साल पहले बनी पार्टी से भी सिख रहे है, उनका ये रवैया उन्हें भी ले डूबेगा और जल्द ही कांग्रेसी प्रियंका प्रियंका के नारे लगाते दिखेंगे , अच्छा हो वो जल्द सिख कर उसे आजमाना शुरू करे और पुराने घाघ कांग्रेसियो को रिटायर करके कमान पूरी तरह से अपने हाथ में ले ताकि जो वो कहते है उसे अपनी पार्टी में लागु करवाने में उन्हें कोई परेशानी न हो और हर बार कांग्रेस के विकल्प के रूप में न कोई उभरे और न उसे राजनैतिक वनवास पर जाना पड़े। अच्छा होगा की २०१४ -१९ को छोड़ उन्हें अब २०२४ की तैयारी करनी चाहिए , कांग्रेस इससे ज्यादा सत्ता से दूर नहीं रहती है और हर बार की तरह पलट कर वापस आएगी , यदि बीजेपी ने खुद से कांग्रेस को बाहर नहीं निकाला , यदि अरविंद अपने सिद्धांतो पर नहीं टिके रहे तो ।


                      व्यक्ति पूजा शायद इंसानी स्वभाव है जिसे हम कभी भी नहीं बदल सकते है , आजादी से आज तक हम यही करते रहे है , हमेसा एक चहरे के पीछे भागते है , वैसे ये चलन हमारे देश तक ही सिमित नहीं है हाल हर जगह का यही है ।  चाहे नेहरु ,इन्दिरा हो या वाजपेयी ,मोदी या  जेपी और अब अरविंद , हम  अपने ढरे पर चल रहे है । ईमानदारी से हम बता सकते है की वोट उम्मीदवारो को नहीं अरविंद , शिवराज, वसुंधरा , रमन , मोदी और चुनाव चिन्हो को पड़े । हम  लोकतंत्र के उस मौजूदा रूप के लिए नहीं बने है जो इस समय देश में लागु है । इसे देखते हुई लगता है कि वाकई समय आ गया है की इस बात पर विचार किया जाये कि क्यों न जनता अपने प्रतिनिधियो के साथ ही अपने  प्रधानमत्री या मुख्यमंत्री का चुनाव  खुद ही करे न कि उसके चुने प्रतिनीधि जो की वास्तव में भी करते नहीं है , चुने गए प्रतिनीधि सदन के नेता का चुनाव करेंगे जैसी बाते केवल संविधान में लिखा भर है असल में क्या होता है ये हम सभी को पता है । जब जनता नेता और चुनाव चिन्हो को ही वोट देती है तो उसे ही ये अधिकार मिलना चाहिए की वही सीधे अपना सर्वोच्च नेता क्यों न चुने जैसे कई अन्य देशो में चुना जाता है , कम से कम आज दिल्ली में जैसी हालत है वो तो न होगी , चुनाव के बाद ही दूसरे चुनावो की बात होने लगी एक सरकार तो बन ही जायेगी और देश को उसके पसंद का नेता मिलेगा ।

                                   कहते है की एक झूठ बार बार बोला जाये तो वही सच बन जाता है , वही हाल हम भारतीयो का है । जोड़ तोड़, खरीद फरोख्त , दल बदल , मौका परस्ती , हर हाल में सत्ता की चाहते, उसूल सिद्धांत नैतिकता बेमतलब  और राजनीति में सब जायज है जैसी बाते हम इतना देखते आ रहे है की अब  हमें वो सब भी लोकतंत्र का ही एक हिस्सा लगने लगा है । आज कितने ही आराम से हम सब और मिडिया भी खुले आम ये बाते कर रहे है की कोई भी किसी से भी समर्थन ले ले कोई किसी को भी खरीद ले और सरकार बना ले , " आप " और बीजेपी  पार्टी की नैतिकता वाली बात तो हमें हजम ही नहीं हो रही है और लोग साफ कह रहे है कि ये क्या बकवास है चुपचाप सरकार बनाओ जो भी समर्थन दे , ये तो हाल है अपने देश का और बात करते है राजनैतिक व्यवस्था को बदलने की ।

चलते चलते 

                      बीजेपी को सरकार नहीं बनानी है उसे विपक्ष में बैठना है " आप " को भी सरकार नहीं बनानी है उसे भी विपक्ष में ही बैठना है और कांग्रेस सोच रही है कि  कम्बखत दोनों को विपक्ष में ही बैठना था तो मेरी सरकार ही क्या बुरी थी , मेरा ये हाल क्यों किया ।