June 22, 2018

तेरे प्यार का पंचनामा -------mangopeople






                                                                           डिस्कवरी पर कुछ समय पहले एक कार्यक्रम देखा , एक लड़की अपना लिंग बदल  लड़का बनना चाह रही थी | वैज्ञानिको ने उसके साथ कुछ मनोवैज्ञानिक रिसर्च के तहत उसके दिमागी परिवर्तन को जांचा | जब लड़की थी तो उसे कुछ तस्वीरें दिखाई गई | तस्वीरों को उसने  अपने दिमाग का केवल  पांच प्रतिशत ( ५ % )  ही खर्च कर पहचान लिया | तस्वीरों में ख़ास ये था की वो भावनाओं के साथ थी जैसे खिलखिलाता बच्चा , शांत सा बूढ़ा , मुस्कुराती लड़की , उदास सी महिला कुछ इस तरह की ही तस्वीरें थे | बस टेस्टोस्टेरोन के इंजेक्शन   के पुरे डोज के बाद  लड़का बन गई अंदर से तो बिलकुल उन्ही जैसी तस्वीरों को  पहचानने में उसे अपने दिमाग का पछत्तर ( ७५ % ) प्रतिशत भाग प्रयोग करना पड़ रहा था | चुकी तस्वीरों का विश्लेषण दिमाग अपने हिसाब से करता है अगर तस्वीर बच्चे के हंसने की है तो दिमाग उसे सिर्फ बच्चे की फोटो नहीं पढ़ता उसके भाव को भी  पढ़ता है और इसी में दिमाग ज्यादा प्रयोग हो जाता है |


                                                                  मतलब पुरुष भाव नहीं पढ़ पाते भावनाए नहीं समझ पाते  तो उनका दोष नहीं है ये पुरुष होने का केमिकल लोचा है अगर ऐसा आप सोच रहे है तो पोस्ट फिर से पढ़िए | मैंने नहीं कहा की पुरुष भाव नहीं पढ़ सकते बस दिमाग ज्यादा खर्च करना पड़ता है जो की वो  खर्च करने की जरुरत नहीं समझते और सीधा डायलॉग मार देते है कि इन औरतो को तो समझना मुश्किल है | जो पुरुष  दिमाग शादी के पहले किसी लड़की को पटाने , ताडने , प्रेमिका बनाने , मनाने में तीन सौ प्रतिशत जी हा पुरे तीन सौ प्रतिशत लगा देता है | खुद का डेढ़ सौ प्रतिशत औकात से ज्यादा , फिर उस कमीने दोस्त का पूरा दिमाग  जिससे खुद एक भी लड़की न पटी लेकिन बनता लव गुरु है और पचास प्रतिशत दिमाग उस गधे दोस्त का  जिसके पास असल में दिमाग है ही नहीं लेकिन  इस यज्ञ में वो भी अपनी आहुति देता है  | इस प्रकार तीन सौ प्रतिशत दिमाग लगाने वाला शादी के बाद पछ्त्तर प्रतिशत भी दिमाग खर्च करने को राजी नहीं होता ताकि पत्नी की कही गई बातो के साथ उसके भावनाओं को समझ सके | तो आगे से दिमाग  खर्चिये बचा के रखने पर न ब्याज मिलेगा और न बढ़ेगा |

#तेरेप्यारकापंचनामा


     














                

June 07, 2018

छठवांवेद ---------mangopeople

भाग -१
धार्मिक न होने के कारण धार्मिक किताबो को देखने का नजरिया मेरा बाकियों से अलग है मेरे लिए वो नैतिक शिक्षा देने वाले साहित्य है | किसी और के लिए जो महाभारत कृष्ण की लीला है वह मेरे लिए कृष्ण नामक लेखक द्वारा लिखी गई रचना है  | जो समाज में नैतिक मूल्यों को बढ़ाने , लोगो को सही से आचरण अर्थात धर्म अनुसार आचरण करने की प्रेरणा देने के लिए लिखा गया है | महाभारत की रचना सिर्फ धर्म और धर्म के अनुसार कर्म की महत्ता स्थापित करने के लिए की गई है | एक एक पात्र और एक एक घटना सिर्फ धर्म की समाज को महत्व बताने अर्थात धर्म की स्थापना के लिए है | यहाँ  धर्म का अर्थ हिन्दू मुस्लिम वाले से नहीं है बल्कि सही अच्छे कर्मो से है | कौरवों का १०० भाई होना , क्या संभव है ऐसा होना , नहीं , किन्तु चमत्कारिक रूप से १०० पुत्रो का जन्म होता है | संदेश साफ़ है १०० पुत्रो वाले वंश का भी नाश हो जायेगा यदि वो धर्म पर नहीं चल रहे है | पांच पुत्र ही हो लेकिन वो धर्म पर चले तो वंश का नाम रौशन करते है और १०० पुत्रो वाले अधर्मी वंश का नाश |

                                    अधर्म के साथ जो भी खड़ा होगा वो नष्ट होगा चाहे वो कितना बड़ा धर्मनिष्ठ , वचनपालन करने वाला ,  शूरवीर या अच्छा व्यक्तित्व हो | भीष्म वचन से बंधे अपने कर्तव्यों के नाम पर अधर्म के साथ खड़े हुए , द्रोणाचार्य पुत्र मोह में , कर्ण अपने लिए सम्मान पाने के लिए  , मित्रता का फर्ज और  एहसान का कर्ज चुकाने के लिए अधर्म के साथ खड़े रहे और महारथी होने के बाद सब हारे | यहाँ तक स्वयं भगवान की सेना अधर्मियों के साथ होने के कारण हार गई | कर्ण , भीष्म , द्रोणाचार्य आदि पत्रों की रचना ही इस उद्देश्य से किया गया कि संदेश दूर तक जाए और गहरा जाए | ध्यान दीजिये कि  ये पात्र और कई अन्य अच्छे पात्र जो कौरवो के साथ खड़े है वो सभी समाज के अलग अलग तबके से आये हुए , अलग अलग पदों और भिन्न परिस्थियों से आये हुए दिखाये गए है लेकिन सभी का अंत समान है , क्योंकि वो गलत के साथ खड़े हुए |  कलयुग में भी हम बैठ कर इन पत्रों के साथ सहानभूति जताते कहे कि वाह ये पात्र और  व्यक्तित्व कितना अच्छा था लेकिन ओह ! फिर भी मारे गए | ये ओह ये टिस मनुष्य को याद दिलाती रहे की अधर्मी होना और अधर्म के साथ खड़े होने से आप के सभी गुण बेकार हो जाते है वो अधर्म को जीत नहीं दिला सकते | उनका बुरा अंत हमें याद दिलाये की हमें खड़ा किसके साथ होना है | गलत के साथ खड़े होने के लिए आप कोई बहाना/ कारण नहीं दे सकते है |
                                                     इन पत्रों की रचना ही इस उद्देश्य के लिए किये गए कि मनुष्य समझे की केवल अच्छे होने और शूरवीर होने से कृति यश नहीं मिलता उसका प्रयोग हमेशा सही कार्यो में सहयोग के लिए ही होना चाहिए | मनुष्य के सौ अच्छे कर्म और बुद्धिमत्ता एक गलत काम की छूट नहीं देता है | आप को निरंतर केवल धर्म की राह चलना है चाहे परिस्थिति कुछ भी हो और समाज का व्यवहार आप के प्रति कुछ भी हो या समाज में आप का स्थान कुछ भी हो | ये मान कर चलिए महाभारत के सभी पात्र सिर्फ वही कर सकते थे जो उन्होंने किया इससे इतर वो यदि कुछ कर सकते कहानी की दिशा मोड़ने की जरा भी क्षमता उनमे होती तो वो पात्र  कृष्ण की इस रचना/लीला में कहीं नहीं होते |


#छठवांवेद