September 08, 2018

पहले स्वयं को जाँच ले की हम कितने प्राकृतिक कर्म करतें हैं --------mangopeople






                                                                नहाने  के बाद चेहरे के रूखेपन और खिचाव को दूर करने के लिए क्रीम लगाते ख्याल आया कहीं कोई अप्राकृतिक कर्म तो नहीं कर रही | अब प्रकृति ने रूखी त्वचा दी है तो उसे वैसे ही स्वीकार कर लेना चाहिए काहे क्रीम तेल लगा उसकी प्रकृति बदलने की चेष्टा की जाए | अक्सर लोगों को अभिनेत्रियों को ताने मारतें देखा सुना की उनकी सुंदरता प्राकृतिक नहीं है | खुद के बारे में सोचू तो लगता है अपना भी कितनी प्राकृतिक बचा हुआ है | रूखेपन से बचने के लिए तो बचपन से क्रीम तेल उबटन और न जाने क्या क्या का प्रयोग करती रही , अब तो जमाना हो गया झुर्रियो से बचने की क्रीम लगाते , पार्लर जा कर शरीर की कितनी की प्रकृति आम लोग बदल आते है | इन सब को प्राकृतिक माने या अप्राकृतिक | हम तो अपने शरीर पर प्रकृति की मार भी नहीं सह पाते धुप बारिश ठंड सबसे बचने के हजारो तरीके अपनाते है क्या ये अप्राकृतिक नहीं है | 
                   

                                                         प्रकृति ने तो मादा को बनाया ही इस लिए है की वो बच्चे को जन्म देती रहे और जीवन चक्र चलता रहे और हम है की प्रकृति  के इस क्रिया को रोक अप्राकृतिक कर्म किये जा रहे है | प्रकृति के अनुसार तो बच्चे जन्म देने की शक्ति आते ही ,  इंसानी रूप के लिए १२ से १५ की आयु में इस कार्य की शुरुआत कर देनी चाहिए लेकिन इंसानी बस्ती में आज इस प्राकृतिक काम को अप्राकृतिक घोसित किया जा चूका है | प्रकृति तो मादा को ये भी निर्देशित करती है की वो केवल शक्तिशाली जीवन जीने के संघर्षो का सामना करने लायक बच्चो को जन्म दे जिसके लिए उसे सबसे शक्तिशाली नर का ही साथ लेना चाहिए  | कमजोरो को तो ऐसे ही अपनी वंश बेल को बढ़ाये बिना ही मर जाने के लिए प्रकृति कहती है | लेकिन आज कमजोर से कमजोर इंसानी नर अपनी वंश बेल बढ़ा कमजोरो को जन्म देने की आप्रकृतिक कार्य कर रहे है | हम ऐसा कर पा रहें हैं क्योंकि हमने बीमारियों और मृत्यु जैसे प्राकृतिक चीजों को कुछ हद तक अपने नियंत्रण में कर पहले ही अप्राकृतिक काम कर दिया है | 

                                
                                                    प्रकृति तो कहती है बीमार पड़े तो उसे अपने आप प्राकृतिक रूप से उसे ठीक होने दो | प्रकृति का सच्चा स्वरुप जंगल में बीमार पड़ने पर क्या कोई जाता है अस्पताल , खाता है कोई दवा नहीं ना | अस्पताल और दवा भी प्राकृतिक नहीं है | अगर कुछ प्राकृतिक है तो वो है जन्म और मृत्यु बस , लेकिन कितने इसको स्वीकार कर पाते है | बीमारिया से बचने के लिए दुनियाँ जहान के ईलाज दवाये सभी तो भागते है अप्राकृतिक कर्म की ओर | हम इंसानो की फितरत है हमारे लिए वही सही होता है जो हम करते है दुसरो का किया हर कर्म हमें अप्राकृतिक ही लगता है | 


6 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 09/09/2018 की बुलेटिन, पुलिस और पत्नी में समानताऐं “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. निमंत्रण विशेष :

    हमारे कल के ( साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक 'सोमवार' १० सितंबर २०१८ ) अतिथि रचनाकारआदरणीय "विश्वमोहन'' जी जिनकी इस विशेष रचना 'साहित्यिक-डाकजनी' के आह्वाहन पर इस वैचारिक मंथन भरे अंक का सृजन संभव हो सका।

    यह वैचारिक मंथन हम सभी ब्लॉगजगत के रचनाकारों हेतु अतिआवश्यक है। मेरा आपसब से आग्रह है कि उक्त तिथि पर मंच पर आएं और अपने अनमोल विचार हिंदी साहित्य जगत के उत्थान हेतु रखें !

    'लोकतंत्र' संवाद मंच साहित्य जगत के ऐसे तमाम सजग व्यक्तित्व को कोटि-कोटि नमन करता है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  3. सही कहा आपने। इनसान शुरू से ही प्रकृति को अपने हिसाब से ढालता आ रहा है। कई चीजें हैं जो प्राकृतिक नहीं होता फिर भी हम करते हैं। बस वो हमारे सोच के अनुरूप होती है तो उससे हमे परेशानी नहीं होती। जिससे होने लगती है उसे अप्राकृतिक कहकर उसका विरोध करने लगते हैं। काफी रोचक बिंदु उठाएं हैं।

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