July 31, 2022

जरुरतमंद अलग मदद का तरीका अलग

कई बार सिर्फ पैसो की मदद जरूरतमंद के कोई काम नहीं आती |उन्हे पैसो के साथ उसे कैसे सही तरिके से प्रयोग  करे ये बताने वाले की भी जरूरत होती है । जैसे हम सभी को बबा का ढाबा वाले बाबा  की घटना याद होगी । उन्हे क्राउड फंडिंग से करीब पैतालीस लाख से ऊपर की मदद मिली थी | दो ढेर चालक लोगों ने खुद को उनका वकील और मैनेजर बता पहले तो उन्हें मदद करने वालों के खिलाफ भड़काया | उस समय वो करना उनके लिए आसान भी रहा होगा क्योकि बहुत ज्यादा पैसा आने के कारण बाबा का बैंक अकाउंट  सील हो गया था और वो पैसे निकल नहीं पा रहे थे  |  


दिसंबर में उन्हें रेस्टुरेंट खुलवा दिया जो लाख रुपये महीने के खर्च के कारण फ़रवरी में ही बंद हो गया | इस बीच उन दोनों ने कितने पैसे खुद खाये कोई नहीं जानता | बाबा अपने ढाबे पर वापस हैं लेकिन गालीमत हैं कि अभी भी उनके पास उन्नीस लाख रूपये बचे हैं | 


 जो आयु बाबा की थी उसको देखते तो उनके लिए नया बिजनेस खोलना मूर्खता से ज्यादा कुछ नहीं था और  वो भी रेस्टुरेंट जैसा बिजनेस इस कोरोना और लॉकडाउन में | उसकी जगह उनके ढाबे पर और सुविधा उन्हें दे दी जाती या बैठ कर उसी दुकान पर  बेचने के लिए सामान भर दिए जाते तो उनकी आयु देखते बेहतर था | 


पैसे की जगह लोग उनकी कमाई फिक्स करने के लिए  कहीं किसी ऑफिस , हॉस्टल में टिफिन सर्विस शुरू करवा देने जैसी मदद करते तो इतने ज्यादा  पैसे के बिना भी उनकी मदद हो जाती | कई बार लगता हैं इतने पैसे में तो कई गरीबो की मदद हो सकती थी | कई परिवारों का जीवन इस पैसे से सुधर सकता था लेकिन मदद के लगभग 20 लाख रूपये बर्बाद कर दिया गया या लूट लिया गया | 

मैंने सुना हैं कौन बनेगा करोड़पति में भी पैसे जीतने के बाद लोगों को आर्थिक सलाह दिया जाता हैं | मुझे याद हैं अक्षय कुमार ने भी सैनिको के लिए एक एप्प बनाया था जिसमे लोग सीधे सैनिको के अकाउंट  में पैसे डाल सकते थे लेकिन उसमे एक सैनिक को पांच लाख रुपये मिलते ही वो अपने आप उस एप्प से हट जाता और लोग किसी दूसरे सैनिक की भी मदद कर पाते | 


इस तरह किसी एक को ढेर सारी मदद और किसी को कुछ भी नहीं जैसी समस्या से बचा जा सकता हैं | कोई विश्वसनीय संस्था ऐसे एप्प बना असली जरुरतमंदो को उससे जोड़ क्राउड फंडिंग का सही इस्तेमाल कर सकती हैं | साथ में उन जरूरतमंदों को पैसे का सही प्रयोग कर असल मदद कर सकती हैं | 


वैसे इस पुरे प्रकरण में बहुत से घटिया लोग ऐसे भी थे जिन्होंने भले चवन्नी की भी मदद बाबा क्या जीवन में किसी गरीब की ना की होगी लेकिन बाबा और उनके जैसे को गरियाने में सबसे आगे होते हैं , बिना सारी वास्तविकता को समझे जाने |  

July 30, 2022

ऑनलाइन वर्क के अपने मजे थे

जब कोरोना की वजह से दुनियाभर  मे लाॅकडाउन  लगा था तो ये कंपनियों के लिए  भी कम मुसीबत  नही था । बहुत सारी कंपनियों के कुछ काम लॉकडाउन में  सिर्फ घर बैठे  नहीं हो सकता था  या बहुत कम काम होता था  | तो ऐसे समय में कंपनियां बैठे कर्मचारियों के लिए ऑन लाइन  ट्रेनिंग सेशन , वेबिनार आदि इत्यादि करवा रही थी  |

इसमें विशेषज्ञों को भी बुलाया जाता है |  कंपनी समय , पैसा आदि खर्च करती हैं कि जब काम शुरू हो तो कर्मचारी ऊर्जा से भरे   और अच्छे से ट्रेंड रहें अपने काम को समझे | लेकिन वास्तव में  होता कुछ  और था | 

एई दिन पतिदेव के ऑफिस में भी  जूनियर के लिए ट्रेनिंग सेशन था ऑनलाइन | ट्रेनिंग देने वाली लड़की बंगलौर की कन्नड़ उसकी हिंदी अच्छी नहीं और इधर जूनियर की अंग्रेजी अच्छी नहीं | तो पतिदेव भी अपनी इच्छा से अक्सर उस ट्रेनिंग से जुड़े रहते हैं ताकि कुछ समझ ना आये तो उन्हें बाद में  बता सके अपनी टीम को  | 


एकदिन ऐसे ही मीटिंग में पतिदेव जुड़े थे , कैमरा उनका बंद ही रहता हैं | मुझे पहले ही कह दिया की   ढाई तीन घंटे डिस्टर्ब नहीं करना मुझे  | हम भी सामने  सोफे पर अपने लैपटॉप लिए धंसे थे | घंटे भर बाद जब पतिदेव पर नजर गयी तो वो बड़े आराम से पीछे दिवार पे सर  टिकाये   कान में कनखजूरा ठुसे  आँख बंद कर कुर्सी पर पड़े हैं   | 


पहले लगा आँख बंद करके सुन रहें होंगे लेकिन जब मेरे उठने पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुयी तो समझ आया ये तो सो गए हैं | हमने चुपके से बिटिया को बुलाया और उनके इस हालत में फोटो खिचवाई ,  वीडियों भी बनवाया  वरना  तो  आँख खोलते कहेंगे कि सो नहीं रहा था आँख बंद करके सुन रहा था | 


इतनी गहरी नींद में  थे कि बिटिया ने आवाज दी फिर भी नींद नहीं खुला फिर उन्हें हिलाडुला कर जगाया गया | तब से   जैसे ही वो ऐसे किसी मीटिंग  में  आँख बंद कर सुनते हम तकिया थमा देतें  कि डिस्टर्ब नहीं करेंगे आराम से सो लो काहें मीटिंग का बहाना मार रहे हो | साथ में ये वाला गाना भी गाते " मैं गाऊं तुम सो जाओ सुख सपने में खो जाओ ------

#फ्रॉम_होमवर्क 

July 29, 2022

दुःख पीड़ा और बुद्ध

बचपन में बुद्ध को पढ़ते लगा , ये क्या तुक हुआ कि बच्चे को दुःख और पीड़ा से दूर रखो  ताकि भविष्य में वो संत ना बन जाए | अंत में वो बड़े होने पर सब  देख ही लिए और बड़े होने और ज्यादा  विचारणीय बुद्धि होने के कारण उस पर इतना विचार किये कि सब त्याग ही दिया | बचपन  से देखते रहते तो हमारी तरह सहज रहते इन सबसे | उनके परिवार ने गलत डिसीजन लिया  था | 


सालों बाद ये विचार बदल गया जब अपनी तीन साल की बिटिया का जन्मदिन एक अनाथाश्रम में मानने गए | आगे की पंक्ति में वहां सारे मेंटली चैलेन्ज बच्चे बैठे थे जिनमे से सभी के चेहरे और उनकी भाव भंगिमा बाकी बच्चो से अलग थी | एक बच्ची को तो   जन्म से सिर्फ एक आँख थी | बिटिया उन्हें ही ध्यान से देखती रहीं और घर आते पूछने लगी वो बच्चे ऐसे क्यों थे | 


उस दिन लगा बुद्ध का परिवार सही था हम अपने बच्चो को दुनिया का दुःख -दर्द , बीमारी , पीड़ा , समस्या बता कर दुखी नहीं करना चाहते | वो अभी उन सबसे दूर रहें तो बेहतर |  बस उस दिन तय हुआ अब हर जन्मदिन पर उनके पापा वहां जा कर फल बिस्किट पैसे दे कर आ जायेंगे  बिटिया नहीं जाएँगी |  


समय फिर बदला एक दिन बिटिया की एक पुरानी छोटी हो चुकी और उनकी फेवरेट फ्रॉक कामवाली को उनके सामने देने लगी | चार साल की बिटिया वो समझ नहीं पायी और उसके सामने ही अपनी फ्रॉक पकड़ रोने लगी कि मेरी हैं उन्हें क्यों दे रही  हो | उस समय किसी तरह उसे चुप करा दिया बाद में उन्हें समझाया कि जो हमारे प्रयोग की चीज नहीं हैं उन्हें उन लोगों  दे देना चाहिए जिनको उसकी जरुरत हैं लेकिन उनके पास नहीं हैं  | ना चाहते हुए भी गरीबी आभाव के बारे में बताना पड़ा |   हमारी  बात इतना ज्यादा समझ गयी कि एक दिन बोल पड़ी मेरा टूथब्रश फेको  मत उसे किसी को दे दो | फिर  एक और लेक्चर उस दिन देना पड़ा उन्हें  | 


छः साल की हुयी तो एक दिन स्कूल से आ कर बोली मेरी पुरानी कहानियों की किताब दे दो हमें डोनेट करना हैं | स्कूल में बड़े अच्छे से केयरिंग और शेयरिंग को समझाया गया था उन्हें , वो आ कर हमें समझाने लगी |  उसके बाद कैंसर पेशेंट के लिए कार्ड बनाना , चिल्ड्रन डे और दिवाली पर बनाये गए क्राफ्ट , सजावटी कंदील आदि भी कही जरुरतमंदो को स्कूल से भेजा गया और बच्चो को प्रोत्साहित किया गया | 

 छठी और सातवीं की उम्र तक बहुत कुछ समझ और सीख गयी थी | इस बीच वो किस्सा भी हुआ जो लिख चुकीं हूँ  जिसमे वो भूखे बच्चे को देख अपने खाना छोड़ने की आदत छोड़ी | 


आठवे जन्मदिन पर तय हुआ वो फिर से अपने जन्मदिन पर आश्रम जायेगी | इस बार हम एक बालिका आश्रम गए जहाँ बस लड़कियां रहती थी | जन्मदिन मना कर बाहर आये तो बोली ये लड़कियां हॉस्टल ( ये अंदाजा उन्होंने खुद लगा लिया ) में क्यों हैं अब तो गर्मी की छुट्टियां हैं अपने घर क्यों नहीं गयी | हमने सहज ही कह दिया इनके माँ बाप नहीं हैं ये यही रहती हैं इनका कोई दूसरा घर नहीं हैं | 

पूरी बात कहते कहते अपनी गलती समझ आ गयी थी वो अभी तक गरीबी समझती थी लेकिन अनाथ होना नहीं | ये बात उनका दिल तोड़ने वाली थी कि दुनियां में कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जिनके माँ बाप और घर नहीं होते | वो आँखों में ढेर सारे आसूँ लिए हमारे सामने खड़ी थी | उस समय तो मैंने उन्हें बहला दिया कि लोग इन्हे गोद ले लेते हैं एक दिन इन्हे माँ बाप और घर मिल जाता हैं |  

घर आ कर इस बार विस्तार से एक दिन  बात किया  कि हम दुनियां में हो रही बहुत सारी चीजे को नहीं रोक सकते ये वो होती ही रहेंगी  | हम जो कर सकते हैं वो ये कि अपनी तरफ से जो हो सके उनकी मदद करें | लेकिन हम मदद भी सबकी नहीं कर सकते | इसलिए ये सब बहुत ख़राब हैं का अफसोस करने की जगह अपने हिस्से   का सहयोग करते रहन चाहिए | 


 जल्द ही बिटिया सबसे सहज हो गयी | उसके बाद भी बहुत सारी सच्चाइयां सामने आयी और उनके सवाल भी हुए लेकिन वो दुःख जताने की जगह इन्हे दूर कैसे करे हम क्या कर सकते हैं जैसा था | उस दिन बिटिया को नहीं सीख हमें मिली कि दुनियां की सच्चाइयों से हम कब तक बच्चो को बचायेंगे हमें उन सच्चाइयों को दिखाने समझाने का नजरियां बदलना चाहिए | 

उस दिन तय हुआ कि बुद्ध का परिवार गलत था | उन्हें दुःख पीड़ा बीमारी से दूर रखने जगह अगर उन्हें दूर करने में  अपने हिस्से का सहयोग कैसे करे का सीख देता तो वो अपनी शक्ति और  धन का त्याग करने की जगह उसका उपयोग लोगों की मदद में करते |  हां बस हम सब तब बुद्ध को वैसे याद नहीं करते जैसे आज करते हैं , शायद उन्हें जानते भी नहीं | 

July 28, 2022

योग भगाये रोग

                  बीबीसी अर्थ पर कार्यक्रम आता था " बिलीव मी आई एम ए डॉक्टर " | इसमें डॉक्टरों की एक टीम थी जो चिकित्सा के लिए आम लोगो  में और इंटरनेट पर जो प्रचलित मान्यताएं थी उन्हें विज्ञानं की कसौटी पर परख कर बताता था कि वो सही हैं या गलत | 

                 एक एपिसोड में वो मोनोपॉज से जुडी समस्या को दिखा रहें थे | एक घरेलु महिला थी जो बता रहीं थी कि उन्हें दिन में कई कई बार शरीर के अचानक बहुत गर्म हो जाने के दौरे जैसे आते थे  | इसमें उनको अचानक से बहुत गर्मी महसूस होती थी उनका चेहरा एकदम लाल हो जाता हैं । भयानक बेचैनी घबराहट  महसूस करती हैं और किसी काम में उस समय मन नहीं लगता | ये एक दिन में छः से सात बार तक आता था | 


                 एक दूसरा महिलाओं का समूह भी था , उन्हें भी वही समस्या थी | वो बताने लगी कभी मीटिंग के समय तो कभी बॉस या कलीग से बात करते या किसी के साथ काम करते जब ऐसा होता हैं तो उन्हें बड़ी शर्मिंदगी महसूस होता हैं | उन्हें लगता हैं अब हमारा चेहरा लाल हो रहा होगा , सभी लोग हमें ही देख रहें होंगे , पता नहीं लोग क्या सोच रहें होंगे | इससे बेचैनी घबराहट बढ़ जाती हैं फिर ना काम ढंग से हो पाता हैं ना प्रजेंटेशन दे पाते हैं | 


              महिलाओ का ये समूह इलाज के लिए एक संस्था से जुड़ा था | जब कार्यक्रम से जुड़ी डॉक्टर वहां गयी तो एक ब्रिटिश महिला उन्हें लम्बी साँस लेने , ध्यान लगाने जैसी बाते बता रही थी | डॉक्टर तुरंत कमरे से बाहर आ गयी | बोली एक बड़ी शारीरिक समस्या के लिए ये किस तरह का इलाज बताया जा रहा हैं ये मुझे सही नहीं लग रहा हैं | ये इलाज एक मानसिक बीमारी का हो सकता हैं लेकिन  किसी शारीरिक बीमारी का नहीं | 


              दूसरी अकेली महिला एक स्पेशलिस्ट के पास जाती हैं जो कई सालो से इस समस्या पर रिसर्च कर रही हैं | वो बताती हैं कि हमने वो जींस खोज लिया हैं जो शरीर में इस तरह के बदलाव करता हैं | अब उस जींस का प्रभाव काम करने के लिए हमने एक दवा भी बना ली हैं जो इन्हे दे कर देखा जायेगा | उसने सारे तकनीकी जानकारी उन डॉक्टर को दी | 


            महिला दो या तीन सप्ताह तक दवा लेती हैं | टीवी कार्यक्रम की डॉक्टर फिर उनके पास जाती हैं , दवा का असर और उनका हालचाल जानने | वो बताती हैं दवा ने काम किया हैं और जो दौरे उन्हें पहले दिन में बहुत बार आते थे वो अब बस दो या तीन बार ही आते हैं जिन्हे वो बर्दास्त कर लेती हैं | पहली बार वो अपना हाल बताते रो दी थी , दूसरी बार वो मुस्कुरा रही थी | 


             अब डॉक्टर दूसरी महिला समूह के पास जाती हैं | वो महिलाऐं मुस्कुरा नहीं खिलखिला रही थी | वो बोली हमारी तो सारी  समस्या ही ख़त्म हो गयी हम कितने समय से इससे जूझ रहें थे | अब जीवन में कितना शांति और सुकून हैं | डॉक्टर ने पूछा क्या आपको वो दौरे अब नहीं आतें | बोली  जैसे ही हमें लगता हैं कि गर्मी लगना शुरू हो रहा हैं | हम शांत होते हैं कुछ सेकेण्ड आँखे बंद कर लंबी साँस खींचते और छोड़ते हैं और सब कुछ ठीक हो जाता हैं | अब तो हम ये ध्यान भी नहीं देते कि कौन हमें देख रहा हैं और कौन नहीं | हम अपने कर रहें काम पर फोकस करते हैं | जिसे जो समझना देखना हैं समझे हमें किसी की परवाह नहीं | अब तो धीरे धीरे हमें पता भी नहीं चलता की कब शरीर गर्म हो रहा हैं दौरा आया हैं | डॉक्टर मुंह बाए उन्हें आश्चर्य से सिर्फ देखती रहती हैं , उसे समझ ही नही आता की इलाज हुआ कैसे | डॉक्टर की कोई टिप्पणी इस इलाज पर नहीं होती | 


             जो मुझे लगता हैं - पहली महिला घरलू थी जबकि महिलाओं का समूह कामकाजी था | जीतनी समस्या उन्हें शारीरिक थी उससे ज्यादा समस्या उन्हें मानसिक थी , लोग देख रहें हैं , काम प्रभावित हो रहा हैं | तनाव बहुत बार समस्याओं को और बढ़ाता चलता हैं | कुछ शारीरिक समस्याएं जो हॉर्मोन्स के परिवर्तन के साथ होते हैं उनमे से कुछ को मानसिक नियंत्रण से ठीक किया जा सकता हैं  या सहने लायक बनाया जा सकता हैं , जो भी  |


                सभी को  पता हैं दुःख और तनाव में भी शरीर में बहुत से एंजाइम्स निकलते हैं जो शरीर को और नुकशान पहुंचाते हैं | वो महिला ध्यान और और प्राणायाम द्वारा यही करना सीखा रही थी | कार्यक्रम ब्रिटेन में बना था उसमे सभी स्वेत महिलाऐं ही थी | एक भी भारतीय नहीं यहाँ तक की प्राणायाम सिखाने वाली महिला भी नहीं | 

वैसे योग दिवस के बाद योग पर बात करने से पाप तो नहीं लगता ना | 


#योग_निरोग 

July 27, 2022

हम छोटी लकीरो वाले अब बड़े लकीर है

कई बार आप को बच्चो की नजर में अच्छे माता पिता बनने के लिए कुछ नहीं करना पड़ता , बस आप के आस पास की छोटी लकीरे अपने आप ही आप की छोटी लकीर को भी बड़ा बना देती हैं | बिटिया ने बताया उसकी एक सहेली व्रत नहीं रखना चाहती लेकिन उसके घर वाले जबरजस्ती उससे व्रत करवाते हैं | नतीजा उसे जब बहुत भूख लगती हैं तो वो छूप कर कुछ खा लेती हैं | वो जैन हैं और उनके व्रत में कुछ नहीं खाया जाता गर्म पानी के सिवा |



कुछ साल पहले मेरे भी होश उड़ गए थे जब मैंने सुना उनकी एक दूसरी आठ साल की सहेली लगातार आठ दिन का व्रत किया | मतलब एक बूंद खाना नहीं बस गर्म पानी और उस व्रत में भी वो शुरू के दो दिन स्कूल आयी थी | वो वाली मित्र पूजा पाठ करती हैं तो वो अब भी अपनी इच्छा से व्रत करती हैं तो उसमे बिटिया को समस्या नहीं हैं |


एक दिन बिटिया की ये बताते आँखे भर आयी थी कि पीरियड में उनकी कई सहेलियों के साथ अछूतो जैसा व्यवहार उनके घरवाले करते हैं | ये विश्वास करना मुश्किल था लेकिन मुंबई जैसी जगहों में पढे लिखे घरवाले पीरियड में बच्ची को एक गद्दा चादर और एक थाली कटोरी दे कर कमरे के एक कोने की जमीन पर सिमित कर देतें हैं | घर का कोई भी सदस्य उन्हें छूता नहीं हैं और उनकी थाली में खाना भी दूर से गिराया जाता हैं भिखारियों की तरह |


एक बार उनकी एक सहेली जिसे क्लोरीन से एलर्जी हैं उसे टॉयलेट क्लीनर से इंफेक्शन हो गया उसके जांघों में छाले पड़ गए और चुकी उसे उस समय पीरियड था इसलिए किसी ने उसकी देखभाल नहीं की । वो दो दिन तक दर्द से रोती रही | तब उसके संयुक्त परिवार में उसकी मम्मी नहीं थी वो गांव गयी थी | एक दूसरी सहेली तो परिवार और दोस्तों साथ शहर से बाहर घूमने गयी थी | वहां जब उसे अचानक पीरियड़ आ गए तो सब उसे उस अनजान बंगलो में अकेले छोड़ कर घूमने चले गए और ऐसा दो दिन हुआ |


बिटिया बता रही थी कि उनकी एक और सहेली के चचेरे भाई बहन को खाना बनाना सिखाया जा रहा हैं | बहन को इसलिए ताकि शादी के बाद काम आये और भाई को इस लिए क्योकि वो विदेश पढने जा रहा हैं तो उसे वहां काम आये | बहन की भी इच्छा बाहर पढने की हैं लेकिन ग्रेजुएशन के बाद उसके लिए लड़का देखा जा रहा हैं | बिटिया की सहेली अभी से दुखी हैं कि भविष्य में उसके साथ भी ये होगा |


उनकी एक सहेली मैक्डी में खाना नहीं खा सकती क्योकि मैक्डी में चर्बी से खाना तला जाता हैं वाली खबर पर अब भी उसकी मम्मी भरोसा करती हैं | जबकि दूसरे फास्टफूड ब्रांड में खाना खा सकती हैं क्योकि उसकी ऐसी कोई खबर बाहर नहीं आयी हैं | किसी को आलू चिप्स की मनाही हैं तो किसी को कुरकुरे की, बच्चे सब चोरी छुए खाते हैं | और ना जाने कितनी ही छोटी लकीरे और उनके किस्से हैं हमारे आस पास जिन्हे सुना सुना हमारी बिटिया कहती हैं थैंक गॉड कि तुम लोग मेरे मम्मी पापा हो | ये हाल मुंबई की बच्चियों के हैं कुछ ख़ास विषयों पर ,किसी छोटे शहर गांव में क्या कहूं |

July 26, 2022

ये हैं असली खतरों के खिलाडी

                   सरकारी काम की रफ़्तार कैसी होती हैं और कैसे संसाधनों की बर्बादी होती हैं ये हम सब जानते है |हमारे यहां जून जुलाई  तक गटर की सफाई मरम्मत आदि का काम चलता रहता है । हमरी ही बिल्डिंग के आगे  नये गटर बनाने का काम शुरू हुआ और  उसके लिए एक बहुत बड़ा गढ्ढा खोदा गया । बरसात  आने तक काम पूरा नही हुआ और वो  गड्ढा बरसाती पानी से लबालब भर गया । 


                      हिसाब से गटर बनाने का काम तो  बहुत पहले शुरू हो कर मई में ही बंद हो जाना चाहिए था | देर से शुरू हुआ तो उसके बाद भी जून के पहले हफ्ते में तेज बारिश की चेतावनी मौसम विभाग पहले ही दे चुका था और बरसात जोर शोर से हुयी भी | गड्डे को भरने का काम भी जून के पहले हफ्ते में ही कर देना चाहिए था लेकिन वो भी नहीं हुआ | गड्ढे को भरने की शुरुआत रात के साढ़े बारह बजे  हुआ जब एक मजदूर ने किनारे पर रखे  मलबे को पानी भरे गड्ढे में गिराया | इतने जोर की आवाज से सब जग गए किसी अनहोनी की आशंका में | बाहर देखा तो एक मात्र मजदूर तब छोटे बोर में भर के रखे मलबे को उठा कर पानी में फेक रहा था एक एक करके |

             इस गड्ढा भराई  के काम में  छपाक गुडुप छपाक गुडुप की आवाज एक तो सोने नहीं दे रही थी उस पर से ये लग रहा था कहीं वो शराब पी कर तो इतने रात में काम करने नहीं आया हैं | इतने गहरे पानी से भरे गड्ढे के मुहाने फिसलन कीचड़ में जैसे वो खड़ा था मुझे तो आँख बंद करते उसके गिर कर उसमे डूब जाने के ख्याल  ही बार बार डरा रहें थे | इतने से मलबे से होना कुछ था नहीं और हुआ भी नहीं | 


           अगले दिन एक नए डर का सामना हुआ | एक ट्रक भरा मलबा सीधे उस गढ्ढे में उलटा जा रहा था बिना ये सोचे कि पानी की पाइप और बिजली की तारे पानी के अंदर बिलकुल  बीच में हवा में लटक रही हैं | उन पर मलबा सीधा गिरा और वो टूटी तो नयी मुसीबत  आएगी | लेकिन असली खतरों के खिलाड़ी इन बातों की परवाह नहीं करते कि बिजली की तारे टूटी तो गड्ढे के पानी में करेंट आ सकता हैं | हमें तो लगा रहा था जैसे फ़ाइनल डेसटीनेसन फिल्म की शूटिंग देख रहें हो | हम और बिटिया ऊपर से आगे की कहानी के अंदाजे लगाते रहें | 


                अगले तीन दिन एक दो ट्रक आते और फिल्म की शूटिंग चलती रही जबकि एक ही दिन में ये सारा काम हो सकता था  | हम लोग घर पर सभी चीजे सुबह की चार्ज करके रख लेते और पानी भी स्टोर कर लेते | अंततः भगवान भरोसे वाला काम बिना किसी अनहोनी के समाप्त हुआ | गिट्टी डाल फुटपाथ वाली टाइल्स डाल दी गयी | बचे हुए काम के लिए गटर की बड़ी बड़ी पाइप किनारे रखी हुयी हैं | बरसात जाने के बाद इसे फिर से खोदा जायेगा फिर से इस काम को पूरा करने  में महीनो लगेंगे और लागत कितनी बढ़ेगी आप खुद ही अंदाजा लगा लीजिये | 

               वैसे आम लोग भी कम खतरों के खिलाड़ी नहीं हैं | वो गड्ढा बस मलबे से भरा ही था और पानी अभी भी उसके ऊपर थोड़ा था रात में कोई आ कर वही पर अपनी कार खड़ी कर गया और दो तीन बाइक भी | ये सब तब हुआ जब घाटकोपर  में उस कार के पानी वाले गढ्ढे में कूद कर आत्महत्या करने का वीडियों हर जगह फ़ैल चुका था |  हमारा देश सच में राम भरोसे ही चल रहा हैं |

July 25, 2022

इस ईमानदारी का क्या करू अचार डालू

                                          बात कोरोना काल के समय की हैं जब बच्चो के ऑनलाइन क्लास के साथ टेस्ट और परीक्षाएं भी ऑनलाइन हो रही थी | हर बार परीक्षाओ और टेस्ट लेने तरीका बदल जाता था | बिटिया के यूनिट टेस्ट हो रहें थे  | क्लास ख़त्म होने के बाद टेस्ट के लिए  पेपर आ जाते थे  व्हाट्सप्प पर |  फिर जब बच्चो का मन करे जैसा मन करे उसका जवाब लिखे | शाम छः बजे टीचर उसके जवाब भी  भेज देती हैं बच्चे उन्ही जवाबो से अपने जवाब मिला कर खुद को ही नंबर दे कर वो पेज टीचर को एप्प पर भेज देतें थे  | वास्तव में ये पढाई से ज्यादा बच्चो  की ईमानदारी का टेस्ट था  और इसमें कौन पास हुआ और कौन फेल ये बच्चे के सिवा और कोई नहीं जानता | सोचिये ऐसे परीक्षा में कितने बच्चे ईमानदारी से जवाब लिखते होंगे | 

                                           पिछले साल टीचर एप्प पर चार सवाल भेजती और कुछ समय देती उनके जवाब लिखने के लिए  फिर दूसरे सवाल भेजती | बच्चो को तुरंत की जवाबो का पेज टीचर को भेजना पड़ता फिर वो उन्हें चेक कर नंबर देती थी | हम  इस पर ज्यादा कुछ कह नहीं सकते स्कूल को क्योकि पिछले दो सालो से तो ज्यादातर महाराष्ट्र बोर्ड के स्कूलों में टेस्ट परीक्षाएं कुछ भी नहीं लिए गए | सभी बच्चो को ऐसे ही आगे की कक्षा में प्रमोट कर दिया गया | ये स्कूल कहेंगे शुक्र मनाइये कि हम किसी भी तरह की परीक्षा ले तो रहें हैं | 


                                         कोई और समय होता तो बिटिया को कहती जितना आता हैं उतना लिख दो ईमानदारी से नौवीं के नंबरों की क्या परवाह करना | लेकिन 2020 में जिस तरह से दसवीं और बारहवीं के बच्चो को उनके पिछले परीक्षाओ और उसके नम्बरो के आधार पर पास किया गया हैं उसे देखते हुए ये नंबर ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं | अब तो हर यूनिट टेस्ट बोर्ड के बराबर लग रहा हैं |  तब लगता था कि  क्या पता 2023 तक भी स्कूल खुलेंगे या नहीं और तब भी बोर्ड होगा की नहीं | 


                                         बात केवल बोर्ड की परीक्षाओं तक होता तो भी उसे नजरअंदाज किया जा सकता था लेकिन मुंबई में दसवीं तक ही स्कूल होते हैं उसके बाद कॉलेज में एडमिशन लेना होता हैं  जो की मैरिट पर होता हैं अर्थात दसवीं के रिजल्ट के आधार पर , कोई प्रवेश परीक्षा नहीं | अब अंदाजा लगाइये दसवीं का रिजल्ट और उसके नंबर कितना महत्व रखने लगते हैं |  बच्चो का भविष्य आगे बेहतर कॉलेज सब इस पर निर्भर हो जाता हैं | जो  अच्छे कॉलेज के सीट अभी तक 90 -85 % तक जाते हैं वो शायद 95 -96 % प्रतिशत पर ही तब भरने लगे क्योकि कोरोना मैय्या की कृपा से और थोड़ी बेईमानी से प्राप्त ढेरों नंबर पाए कम योग्य बच्चो  की संख्या बहुत ज्यादा होगी | फिर हमारी बिटिया के ईमानदारी से  85 से 90 % पाए नंबर किसी काम के ना हो |  


                                     धर्म संकट हैं बड़ा खुद के लिए  और डर भी कि कहीं ईमानदार बच्चे भी दबाव में ईमानदारी का रास्ता छोड़ ना दे |  खुद के मेहनत पर चाहे जैसे भी नंबर आये एक बार सब बच्चे  स्वीकार कर लेते हैं लेकिन खुद से कम बुद्धि वाले और कम पढ़ने वाले बच्चो को जब खुद से ज्यादा  नंबर आये तो ये बर्दास्त करना मुश्किल होता हैं बच्चो के लिए  शायद किसी के  लिए भी | 

July 24, 2022

ओटीटी सीरीज

अगर कुछ सस्पेंस , एक्शन और थ्रिलिंग देखने में रुची हो तो अमेज़न पर हाना  (Hanna)  देख सकते हैं | चुकी कहानी में सस्पेंस हैं तो कहानी यहाँ नहीं बताई जा सकती हैं | कहानी के बारे में कुछ भी कहना कहानी के रहस्य को बताने जैसा होगा  |  बस  इतना कहा जा सकता हैं कि दुनिया के ताकतवर देश और उनमे रहने वाले ताकतवर प्रभावशाली लोग अपनी सत्ता और पावर को बनाये रखने के लिए किस तरह के रहस्मयी प्रोग्राम चलाते हैं | इस तरह के प्रोग्राम चलाने के लिए सभी देशो के ताकतवर लोग एक दूसरे क साथ देते हैं और एक होते हैं | 


इनमे काम करने वाले भी ये जानते हुए भी कि वो गलत कर रहें हैं फिर भी चुप रहते हैं क्योकि उन्हें पता होता  हैं कि वो उन प्रभावशाली लोगों का कुछ बिगाड़  नहीं सकते हैं |  वो बदल भी जाए तो  भी वो ज्यादा कुछ कर नहीं सकते हैं क्योकि फिर उनकी ही जान पर बन आती हैं  |  दुनियाँ के सामने ऐसे प्रोग्राम  आ जाए या आ जाने का डर हो तो उन्हें बंद करने का नाटक किया जाता हैं जबकि वास्तव में वो कभी बंद नहीं होते या दूसरे तरीको से उन्हें शुरू कर दिया जाता हैं | 


हिंदी सब टाइटल के साथ इसका तीसरा और संभवतः फ़ाइनल  सीजन आ  चूका हैं | पहला और दूसरा सीज़न आठ आठ एपिसोड का है और तीसरा छः एपिसोड का हैं |  वैसे इसी नाम और पहले सीजन की कहानी पर 2011 में फिल्म भी बन चुकी हैं | 





July 23, 2022

योग - आसन

 आसन अर्थात बैठने की आरामदायक मुद्रा , अवस्था आदि | अन्य भारतीय दर्शन की तरह  पतंजलि के योग सूत्र का भी  अंतिम ध्येय मोक्ष था | उसके लिए मन को अन्य विकारों से दूर करके ध्यान अवस्था में घंटो बैठना होता था | पतंजलि के योग में आसन का अर्थ हैं कि आप ध्यान में बैठने के लिए  एक आरामदायक मुद्रा का चयन कर लीजिये और उसका अभ्यास कीजिये | 

वास्तव में पतंजलि का योग शरीर के स्वास्थ की जगह मन के स्वास्थ की बात ज्यादा करता हैं | हमारे शरीर के अस्वस्थ होने का कारण हमारी आंच इन्द्रिय हैं यदि उन इन्द्रियों को नियंत्रित  कर ले तो शरीर स्वस्थ ही रहेगा | जो मन  मस्तिष्क,  बुरे विचारों , ईर्ष्या , बदला , दुसरो के अपमान , संग्रह की प्रवृत्ति आदि से भरा हुआ हैं  तो उस मन मस्तिष्क का शरीर कभी स्वस्थ नहीं रहेगा | भले उसे सेहतमंद  रखने के लिए आप कितना भी आसन योग कर लीजिये | 

शुरुआत मन को शुद्ध और सेहतमंद करने से कीजिये शरीर अपने आप रोग मुक्त ही रहेगा ।


उम्मीद है योग दिवस के अलावा योग की बात करने पर पाप नही लगता होगा ।

#योग_निरोग 

July 22, 2022

पापा की परी

बिटिया चार पांच  साल की रही होंगी स्कूल से मिला  होमवर्क करने के लिए कहा तो नाराज हो गयी , उन्हें खेलने जाना था | गुस्से में कहतीं हैं मुझे कितना कम समय खेलने का मिलता हैं और तुम लोग कितनी ज्यादा देर खेलते हो | मैं स्कूल चली जाती हूँ तो तुम दोनों ( मम्मी पापा ) आराम से आपस में खेलते हो | मैं स्कूल से आती तो मेरे साथ खेलने की जगह मुझे फिर से पढ़ने के लिए बोलते हो | 

उस दिन बिटिया को पता चला कि जब वो स्कूल से आती हैं तो पापा अपने दोस्तों के साथ बाहर खेलने नहीं गए होते हैं | वो भी उनकी तरह स्कूल जाते हैं और उनको बिटिया से ज्यादा होमवर्क मिलता हैं जो उन्हें लैपटॉप पर करना पड़ता हैं | उनको मैम  नहीं सर पढ़ाते हैं जो बहुत स्ट्रीक हैं | 

एक दिन अपने पापा को ज्यादा देर काम करते देख बोली ,  पापा मम्मी को बोलो वो तुम्हे दूसरे स्कूल में डाल दे इस स्कूल में तुम्हे बहुत ज्यादा होमवर्क मिल रहा हैं | इस तरह तो तुम्हे कभी खेलने का टाइ ही नहीं मिलेगा | 

July 21, 2022

हर सरकार से सही सवाल करते रहिये

 गडकरी ने बयान दिया कि अगले पांच साल मे पेट्रोल  देश मे बैन हो जायेगा  इस बयान से हम मे से ज्यादातर ये अंदाजा लगा लेते है कि वो इलेक्ट्रिक वाहनो के आने को बात कर रहे है । चुकी वो एक नेता और मंत्री है तो पांच साल जैसे जुमले कहना उनकी प्रोफेशनल मजबूरी है । हमे पता है कि आगे बीस साल भी पेट्रोल बंद होने को संभावना नही है । 

लेकिन किसी बड़े पत्रकार की इस फोटो पर कुछ ऐसी टिप्पणी हो कि हमे पंख लग जायेगे हम उड़ कर जाने लगेगे , तो आश्चर्य होता है । क्या पत्रकार को ये समझ नही आ रहा है कि वो इलेक्ट्रिक वाहन की बात कर रहे है । नतिजा सैकड़ो लोग बस इस पर गड़करी और  सरकार का मजाक उड़ाने के चक्कर मे जरूरी सवाल पुछना , उठाना पीछे छोड़ देते है । 

सवाल  होना चाहिए  था कि जिस तरह एक के बाद  एक इलेक्ट्रिक  वाहनो मे आग लगने की घटना हो रही है क्या वो सुरक्षित है । क्या ऐसी दुर्घटनाएं और इतनी ज्यादा किमत उसे आम आदमी की इतनी पसंद  बना पायेगा कि पेट्रोल बंद हो जाये । 

एक अखबार  की कटिंग देखी जिसमे इंदौर नगर निगम इन वाहनो के चार्जिंग पर टैक्स  लगाने की बात  कर रही थी तो क्या पुरे देश मे ऐसा हुआ तो ये वाहन महंगे नही पड़गे।  इसके अलावा सर्विस सेंटर की संख्या, लंबी दूरी की यात्रा मे चार्जिंग पांइट की व्यवस्था , लोकल मैकेनिक को ट्रेनिंग की व्यवस्था ताकि मरम्मत  के लिए ग्राहक कंपनियो की बंधक ना बने आदि इत्यादि अनेक सवालो को चुटकुलेबाजी और  सिर्फ सरकार की आलोचना के नाम पर भुला  दिया गया । 

कई बार जरूरी सवाल उठने पर उसे दबा भी दिया जाता है फिजूल के सवालो के आगे । जैसे  अशोक स्तंभ के अनावरण और पूजा पर पहले तो सही सवाल उठे कि संसद भवन से जुड़े किसी मामले मे नेतृत्व सभा अध्यक्ष को करना चाहिए ना कि परधानमंत्री को । संसद सरकार की नही सांसदो की होती है इसलिए इसमे विपक्षी दलो को आमंत्रित करना चाहिए था । 

सरकार या बीजेपी जो करती आ रही है उसे देखते पूजा पर आपत्ति और सेक्यूलर देश वाली बात उनके पिच पर खेलने जैसा था । उन्होंने ये सब किया ही इसलिए था कि देश फिर से उन्ही मुद्दो मे उलझे जो उनके वोटबैंक को जागृत रखे । वरना नीव पूजा के बाद  सीधा गृह प्रवेश  की पूजा होती है ,  तल्ला बनने पर  , हर सजावट की पूजा का कोई प्रावधान हमे तो याद नही आ रहा । 


वैसे उनकी तैयारी भी उसी पर थी । टीवी चैनलो पर उनके प्रवक्ता सबसे पहले इसी मुद्दे पर कुद रहे थे ,पूजा जरूरी है  हमारे देश की सभ्यता संस्कृति और ब्ला ब्ला । 

लेकिन दोपहर बाद जिस सवाल पर लोगो ने अपना समय और उर्जा दी वो था शेर का मुंह,  उसके एक्सप्रेशन । सच मे , वाकई ये इस मामले मे सबसे जरूरी सवाल था । संसद की सर्वोच्चता, सरकार  का उस पर हावी होने का प्रयास आदि सब बेकार  के सवाल हो गये ।

मोदी के आठ साल के कार्यकाले मे हजारो मुद्द है जब जरूरी सवाल पीछे छोड़ दिये गये और बेकार, फिजूल के सवाल पर बहस किया गया । बार बार हर बार सरकार उनके पिच और मुद्दो पर लोग उलझे रहे और उनकी मंसा पूरी करते रहे । 

इसलिए अगली बार अपना दिमाग  लगाये गम्भीर ,तकनीकि, जरूरी सवाल उठाये । सही व्यक्ति के सामने उठाये । सरकार किसी भी दल की हो और कहीं की भी हो सबसे सवाल करे तब उसका कोई  मतलब है । वरना चिल्लाते रहिये कि सवाल  किजिए उसका होगा कुछ नही । 

July 20, 2022

सही सवाल किजिए और सही व्यक्ति से किजिए

 जमाने पहले इंदिरा गाँधी बनारस गयी थी । उस दौरे मे उन्होने स्थानीय पत्रकारो से बातचीत की या प्रेस कांप्रेंस जैसा कुछ कर रही थी । इतने मे एक स्थानी नया नवेला पत्रकार उनसे पुछता है कि ये गौदोलिया चौराहे पर कुड़ा घर बना है इसके लिए  आप क्या करने वाली है । इंदिरा गाँधी और  दिल्ली  से उनके साथ आये नेता अगल बगल झांकने लगे । मतलब ये क्या मामला है भाई , जो देश की प्रधानमंत्री से इस पर सवाल  किया जा रहा है । स्थानीय  कुड़ाघर हटाने के लिए किससे सवाल करना चाहिए, ये उस नवेले पत्रकार  को नही पता था । 

ये खबर संभव है कि गुगल  करने पर आप लोगो को ना मिले , पुरानी है और मामूली है । एक दूसरी खबर बताती हूँ जो बस नौ दस साल पुरानी है और जिसकी खबर विडिओ भी आप को मिल जायेगा । 


तब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण थे । उन्होंने जनता से मिलने का एक कार्यक्रम मुंबई  मे रखा । नही नही ये यूपी बिहार या बाकी जगहों की तरह जनता दरबार  जैसा नही था , जहां बेचारी सी निरीह जनता अपने जन सेवको के सामने रोते गिड़गिड़ाते अपनी व्यथा कहती है । और राजा साहब बिना ध्यान  से सुने उसके हाथ से अप्लिकेशन ले कर अपने पीए की तरफ बढ़ा कर अपने कर्तव्यो की इतिश्री कर लेते है । 

बकायदा दक्षिण मुंबई के सबसे पाॅस इलाके के एसी  ऑडिटोरियम मे कार्यक्रम रखा गया । वहा पहुँचने वाला तबका पढ़ा लिखा और पैसे से भरपूर लोग थे । सबको बारी बारी सवालो के लिए माइक दिया जा रहा था और मुख्यमंत्री जवाब दे रहे थे । अब जरा सुनिये की लोग सवाल क्या कर रहे थे , हमारे इलाके मे मच्छरों का प्रकोप बढ़ रहा है आप क्या कर रहे है , कुड़ा , सफाई,  ट्रैफिक,  सड़क पर गटर के ऊपर नीचे ढक्कनो से समस्या है आदि इत्यादि । 


बेचारे मुख्यमंत्री यही जवाब देते रहे कि ये नगरपालिका यानी बीएमसी का अधिकार क्षेत्र  है मेरा नही आप वहां शिकायत किजिए । वो कांग्रेस से थे बीएमसी मे सालो साल से  विपक्षी शिवसेना का कब्जा था । इसलिए वो आश्वासन भी नही दे सकते थे । 

लोग कहते है इतिहास  पढ़िये , सरकारो से सवाल किजिए  । हम कहते है गड़े मुर्दो के बारे मे पढ़ने से कुछ नही होगा नागरिक  शास्त्र  पढ़ना और  ठीक से पढ़ना अनिवार्य किजिए  । इससे जनता कम से  कम सही सवाल  करना और सही व्यक्ति से सवाल करना सीखेगी । अगर जनता का सवाल  ही गलत है या जवाब  गलत व्यक्ति से मांगेगा तो उसे कुछ हासिल नही होगा । तो गुगल किजिए और देखिए की किस सरकार  का क्या काम है किसका अधिकार क्षेत्र क्या है । तब समझ पायेगे कि कौन से सवाल  मेयर , नगरपालिका से करने है कौन  से मुख्यमंत्री , राज्य सरकार से और कौन से प्रधानमंत्री , केंद्र  सरकार  से । 

वैसे बता दूं सरकारे बहुत  चालाक होती है । जैसे मुंबई मे जनता से बातचीत  मे  सवालो के लिए  उस वर्ग  को चुनती है जो राज्य  सरकार के अधिकार क्षेत्र मे आने वाले शिक्षा और स्वास्थ्य का प्रयोग  ही नही करती और दक्षिण  मुंबई  मे सड़क, बिजली ,पानी की समस्या वैसे भी नही होती । 

तो अपने खुद का दिमाग  प्रयोग  करना शुरू किजिए, सही सवाल  करना शुरू किजिए, और  सही व्यक्ति से करना शुरू किजिए। आजकल के पत्रकार और सोशल मिडिया वाले सेलीब्रेटी , क्रान्तिकारी  चुटकुलो और विरोध  के नाम पर सही सवालो को खा जा रहे है । इसका उदाहरण कल दूँगी विस्तार से | 

July 19, 2022

वैक्सीन को दौड़ाता भुतहा पेड़

 

पंचायत सीरीज एक  में गांव में अफवाह हैं कि एक भुतहा पेड़ रात  में लोगों को दौड़ता हैं | एक के बाद एक लोग  कहते  हैं सरसर , फरफर , धड़धड़ की आवाजे आयी और हम लोग भग लिए | किसी ने भी डर के मारे पीछे मुड़ कर नहीं देखा कि क्या सच में पेड़ दौड़ा रहा हैं या नहीं | पता चलता हैं चौदह साल पहले विज्ञानं के मास्टर जी को पहली बार दौड़ाया था | 

मास्टर जी बोलते हैं हमने देखा था पेड़ हवा में था और हमारी ओर चला आ रहा था | लेकिन धमकी मिलने पर बोलते हैं उस रात पहली बार नशा किये थे तो ऐसा दिखा |  डर के मारे गांव भागे तो जो पहले मिला उसे बता दिया | सुबह जब नशा उतरा  तब तक बात पुरे गांव में फ़ैल चुकी थी | नौकरी जाने के डर से फिर किसी को सच नहीं बताया | 

आज सरकार ने वैक्सीन की बूस्टर डोज सबके लिए फ्री कर दी है और बड़ी संख्या मे लोग उसे लगवाने भी जा रहे है लेकिन  जब देश दुनिया मे कोरोना को रोकने के लिए वैक्सीन  पहली बार आया तो उसी के साथ ढेर सारी अफवाहे भी आयी इसको लेकर। उस समय देश के किसी भी  हिस्से के गांव में चले जाते तो एक कहानी सुनने को मिलेती कि हमारे गांव में वैक्सीन लगवा कर दू जने मर गए , हम नहीं लगवाएंगे | सबके पास यही किस्सा होता| आप एक बार नाम पता पूछते  कि बताइये कौन वैक्सीन लगवा के मरा हैं , कब मरा , कहाँ वैक्सीन लगवाया , आधार नंबर दीजिये ,  कैसे पता की वैक्सीन से मरा तो शायद ही किसी के पास लोगों का नाम पता या कोई जानकारी होती |  


उस समय एक खबर सुनी हमारे मामी के समधी भी वैक्सीन से मर गए इसलिए मामी और उनका परिवार वैक्सीन नहीं लगवायेगा | कैसे मरे सुनिये , उनके कहे अनुसार वैक्सीन लगवाने गए थे उसी समय अस्पताल में मंत्री जी आये | बहुत भीड़ आयी साथ में,  उसी में उन्हें चक्कर आया ,  गिरे और मर गए | वैक्सीन की वजह से मरे हम लोग नहीं लगवायेंगे |  अब बोलिये क्या बोलेंगे , ये तो हमारे ही घर का किस्सा हैं | 


वैक्सीन लगते ही किसी को तुरंत सुरक्षा नहीं मिलती थी  , सावधानी उसके बाद भी रखनी होती ही थी | अब दो दिन बाद कोरोना हो जाए और उससे भी मौत होगी तो ठीकरा वैक्सीन के मत्थे जाता | पहले की बीमारी , हार्ट अटैक  बुढ़ापे की बीमारियां आदि से भी मौत हुयी तो रसीद वैक्सीन के नाम ही कटती |  

 

मरना अकेले अफवाह नहीं था एक समुदाय में ये , बच्चे पैदा करने से रोकने के लिए हैं , वाली अफवाह के बारे मे भी सबको पता ही होगा  | इन्ही अफवाहों के वजह से पिछली बार पोलियों अभियान को भी बहुत लंबे समय तक चलाना पड़ा था | जबकि वो बहुत पहले ही ख़त्म हो सकता था और पैसा संसाधन किसी और काम में लग सकता था |  


वैक्सीन के बाद होने वाले बुखार और मामूली प्रभाव को भी बढ़ा चढ़ा कर बताया और डराया जा रहा था | गांवो की ये समस्या अकेले नहीं थी  वहां लोग जाँच कराने और इलाज के लिए प्रशिक्षत डॉक्टर तक के पास नहीं जा रहें हैं | अफसोस की बात हैं कुछ लोग इन सबका बचाव कर रहें थे कि  वो कम पढ़े लिखे , जल्दी अफवाहों में आने वाले हैं , बेचारे गरीब हैं , समझ नहीं हैं , सरकारी तंत्र से डरते हैं  आदि इत्यादि हैं | 


इस तरह का बचाव बिलकुल वैसा ही था जासे माँए अपने लाडलो की  शरारत , गलतियों आदि पर पर्दा डालने के लिए करती हैं , छोटा हैं , बच्चा हैं , अभी समझ नहीं हैं  जाने दो | एक लिमिट के बाद जब खुद के साथ दूसरों की जान पर भी बन आये तो बच्चो के साथ फिर सख्ती करनी पड़ती हैं | जरा सख्ती से उन्हें समझाना पड़ता हैं चाहे जिस भाषा में वो समझे | यही देख कर तब सबको संजय गाँधी और नसबंदी की खूब याद आ रही थी | 

शहर वाले अफवाहबाज बड़े चालाक थे/हैं | लाइक कमेंट और खुद को बड़का विद्वान साबित करने को बोलेंते कि वैक्सीन मत  लगवाओ साजिस हैं और चुपचाप खुद लगवा लिए | उनके शहरी समर्थक भी ऑफिस , ट्रेन ,प्लेन,  मॉल आदि में प्रवेश के लिए वैक्सीन अनिवार्य होते ही लगवा लिए | फंसें और मरें गांव वाले | 


उस समय बहुत लगा  जिनका संपर्क जुड़ाव अब भी गांवों से हैं थोड़ा तो प्रयास करते तो समस्या आसानी से हल होता | प्यार से समझाइये या डरा कर या खुद वैक्सीन लगवा के फोटो भेज कर , किसी भी तरह समझाया जा सकता था और बहुत सारे लोगो ने इसका प्रयास भी किया |  शायद यही वजह रही कि हम हम तीसरी लहर , लंबा लॉकडाउन , और घरों में कैद जीवन से बचे | वैसे कुछ चैनल बार बार इसे अंधविश्वास क्यों बोल रहें हथे |   जबकि उन्हे इसे ये अफवाह बोलना चाहिए  था अन्धविश्वास नहीं | 

July 18, 2022

स्त्रियां रिटायर नही होती

 दो दिन  पहले  रिटायर्मेंट ले चुकी अपनी फैमिली  डॉक्टर के पास  उनके घर गयी । सुबह  सुबह  घर पहुंची तो वो रसोई  मे सब्जी बना रही थी । देखकर  लगा रिटायर्मेंट शब्द  स्त्रियों के लिए  नही बना है । 

अपने प्रोफेशन से तो रिटायर्मेंट  ले लिया लेकिन  ये अवैतनिक  काम घर गृहस्थी से कभी उनको छुट्टी नही मिलती । सत्तर  साल से ज्यादा की आयु  हो चुकी  है लेकिन गृहस्थी रसोई  अब भी उनकी जिम्मेदारी और कर्तव्यों मे है । 


संभव है कि काम वाली हो और उस दिन  ना आयी हो तो भी उस दिन  के लिए  ही सही सारे काम की ज़िम्मेदारी हर घर मे स्त्रियों की ही होती है । उनके पति भी डॉक्टर  ही थे लेकिन  बहुत  पहले ही उन्होंने भी काम से विदाई  ले ली थी । पैरो मे कुछ  समस्या हो गयी थी उन्हे । 

मेरे पड़ोस मे जो परिवार  रहता है वहां भी वही हाल है । पति नेवी मे थे जमाने पहले रिटायर हो गये लेकिन  सत्तर  साल से भी ज्यादा की पत्नी ही घर के सारे काम करती है । दो बेटियों एक बेटे  की शादी हो गयी सबकी अलग अपनी गृहस्थी है । 


छोटी बेटी साथ रहती है लेकिन  वो सुबह आठ बजे ही अपनी नौकरी पर निकल जाती है और  रात सात आठ तक आती है । इस बीच  खाना बनाने से लेकर  बाजार  से सामान लाने आदि सारे घर का काम वो खुद  ही करती है । बेटी से थोड़ा-बहुत  ही मदद मिल पाती होगी । 

हम तो अपना सोच रहे है हमारा क्या होगा । हम तो पतिदेव  से कहते तुम्हारा तो बढ़ियां है साठ मे नौकरी से छुट्टी मिल जायेगी फिर  मन है तो कुछ  करो नही तो आराम करो । लेकिन  मेरे रिटायर्मेंट  की तो कोई  डेट ही नही है । 

July 17, 2022

कोरोना ने भविष्य की टाइम लाइन ही बदल दी हैं |

सुपर हीरो फ्लैश को टाइम ट्रैवेल  की  शक्ति मिल जाती है |  पास्ट में जाकर कुछ बदलने के दुष्परिणामों को जानते हुए भी वो भावनाओं में बह पर पास्ट में जा कर उसके  बचपन में माँ की हुयी हत्या , जिसके झूठे आरोप में उसके पिता को आजीवन जेल मे गुजरना पड़ता हैं , को रोक देता हैं | 


जब वर्तमान में वापस आता हैं तो सबकुछ बदल चुका होता हैं | उसके माता पिता तो उसके साथ होते हैं लेकिन उसकी प्रेमिका उसी पहचानती तक नहीं | पहले के जीवन में पिता की तरह उसे पालने वाला भी उसे नहीं जानता और वो  एक शराबी का जीवन जी रहा होता हैं क्योंकि फ्लैस के पालने के दौरान ही वो बदला था पहले |  आस पास सब कुछ   बदल जाता हैं कुछ भी पास्ट बदलने के पहले जैसा अब नहीं रह जाता | 

कोरोना ना होता तो बिटिया  अपने हाउस  की स्पोर्ट्स कैप्टन होती | अपने हाउस में वो हमेशा से सबसे ज्यादा खेलों में भाग लेती और  मैडल जीतती थी तो उनका कैप्टन बनना तय था  |  पिछले साल और इस साल वो अपने मैडल की संख्या बढ़ा सकती थी लेकिन ये सब नहीं हो सका कोरोना के कारण | 

कोई बच्ची हाउस की तो कोई स्कूल की कैप्टन बनती तो   कोई क्लास का मॉनिटर बन कर ही अपनी लीडरशिप दिखाता | बहुत सारे बच्चे तो अपने पहले  मैडल से ही महरूम हैं पिछले दो सालों से | ना जाने कितने बच्चे खेलो में अपना कैरियर बना सकते थे , स्पोर्ट्स को पसंद करना शुरू कर सकते थे लेकिन वो सब बंद रहा कोरोना काल मे  | 


ना जाने कितने बच्चे अपने पहले स्कूल पिकनिक , स्कूल ट्रिप पर नहीं जा सके | कितनो का आत्मविश्वास बढ़ता हैं इससे , परिवार के बिना खुद को संभालना सीखते हैं | ना जाने कितने ही बच्चो की हॉबी ही डेवलप नहीं हो सकी | कोई डिबेट में भाग लेता तो कोई कला प्रतियोगिता में , कोई जुडो कराटे में जाता तो कोई योग जिम्नास्टिक में और कोई डांस करने मे | लेकिन ये सब कुछ ना हो रहा हैं स्कूल जाने के ना जाने कितने अदृश्य से फायदे होते हैं उन सब से दूर रहे सारे बच्चे | 


हमारी भांजी अद्रिका बोली फ्रेंड्सीप डे पर बैंड बांधने के लिए कोई फ्रेंड्स ही नहीं हैं उनके पास | अंदाजा भी हैं कि ना जाने कितने बच्चे  अपना पहला दोस्त ही नहीं बना सके कोरोना के कारण | कितने बच्चो के फ्रेंड उनके बेस्ट फ्रेंड नहीं बन सके हैं | दोस्तों के साथ की जाने वाली कितनी मस्तियों , शरारतों , हँसी मजाक के आभाव में जी रहें हैं बेचारे बच्चे | 

 बचपन स्कूल की सुखद यादे होती हैं और लाखो बच्चे ये यादे बना ही नहीं पाये| इस कोरोना ने भविष्य की टाइम लाइन बिलकुल बदल दी हैं | वास्तव में जैसा होना चाहिए अब हमारा भविष्य वैसा होगा नहीं | 





July 16, 2022

चश्मिश होने मे भी कोई खराबी नही है

सबसे पहले उन सभी की हर गाजर कड़वी निकले जिन्होंने मेरे गाजर के हलवे को नजर लगा हमें चश्मिश बनाया | 

 खैर चार पंडितो को कुंडली दिखाकर कुल छः पंडितो ने मुहर्त निकाला तो  जा कर हमारे चश्मा का गृह प्रवेश हुआ |   दूकान  में जा कर हमने साफ़ कहा जो सबसे सस्ता हैं वो दिखाओ | रीडिंग चश्मा हैं उसे नाक पर पहनना हैं  तो महंगा ले कर क्या फायदा | छः सौ रुपये का  पहला ही चश्मा हमें दाम देखते पसंद आ गया | 


पतिदेव ने कहा दूसरा भी देख लो हो सकता हैं दूसरा  ज्यादा अच्छा लगे | हमने कहा दूसरा देख कर क्या फायदा नाक पर पड़ा चश्मा कैसा भी हो वो कार्टून ही बनायेगा | ज्यादा पैसा दे कर कार्टून बनने की  क्या जरूरत हैं  | तो बोले प्रोग्रेसिव  वाला ले लो ठीक से पहन पाओगी और अच्छा भी लगेगा | पता चला वो चश्मा तो  तीन हजार से ऊपर का हैं | 


 हमने कहा ऐसा हैं कि दिखने में  अच्छा तो हमें आज तक पार्लर भी ना बना सके ये चश्मा क्या बनायेगा तो जाने दो  | बोले एक बार ट्राई तो करो | हमने कहा हमें पता हैं वो आँखों तक गया तो इस सस्ते वाले से अच्छा ही दिखेगा , इतना अच्छा दिखेगा कि ये सस्ता वाला  उसके सामने इतना बुरा दिखेगा कि लेने का मन ही नहीं करेगा | फालतू में ट्राई करने के चक्कर में ढाई तीन हजार और  खर्चा हो जायेगा | 


खैर नया नया आया चश्मा बहुत इज्जत पा रहा हैं | बाद में तो वो भी  यहाँ वहां फेका और फिर जरुरत पड़ने पर खोजा जायेगा |हो सकता है भविष्य  मे वो चुटकुला भी दोहराये जिसमे लोग चश्मा सर पर रख यहां वहां खोजते है । 

वैसे तो चश्मे वाले ने कहा  की लगातार  पहनेगी तो एक दिन इसकी जरूरत  नही होगी नंबर  ठीक  हो जाता है । आम लोग  ये कह डराते है कि एक बार  चश्मा पहनना शुरू किया तो वो कभी नही उतरता उलटा नंबर  बढ़ जायेगा।  


सच इन दोनो के बीच  है । चश्मा लगने के बाद  वो कभी नही उतरता । यदि बढ़ते आयु के कारण  लगा है तब  तो कतई नही । लगातार  लगाने से नंबर  जल्दी नही बढ़ता और उसे लगाने से इतना आराम मिलता है सुविधाजनक लगता है कुछ  पढ़ना की व्यक्ति खुद  ही नही छोड़न  चाहता उसे । 

July 15, 2022

मुंबई की बारिश

बिटिया पहली  या दूसरी क्लास  मे रही होंगी जब एक दिन स्कूटी से  उन्हे स्कूल  से लेकर  घर वापस आ रही थी  । उनके याद मे पहली बार  मुंबई  मे इतनी बारिश  हुई  थी कि सड़को पर पानी जमा हो गया था । 

बारिश  बंद हो चुकि थी लेकिन  कही कही पानी जमा था । स्कूटी से चलते हुए उन्हे  जमा पानी देख मजा आ रहा था । एक जगह इतना पानी जमा था कि हम दोनो माँ बेटी अपने पैर ऊपर कर लिए  । स्कुटी पर पैर  रखने वाली जगह पानी आ गया था । बिटिया का एक्साइटमेंट और  बढ़ गया । 

आगे जा कर थोड़ा पानी कम हुआ  तभी सामने से एक बाइक पानी उड़ाते गयी , उनको और मजा आया । बोली मम्मी  तुम भी तेज स्कूटी चला कर पानी उड़ाओ बहुत  मजा आयेगा । 


हम मना कर दिये की अगल बगल जाते लोगो पर पानी जायेगा ये अच्छी बात  नही है । थोड़ा आगे जाते ही सड़क पर कोई  नही था । बोली अब करो करो अब कोई  नही है । हमने कहा चलो कोई  हर्ज़ नही है । 

स्कूटी तेज किया दोनी तरफ पानी उड़ने लगा और वो खिलखिला खिलखिला हँसते बोलती जा रही थी और  तेज और तेज। बस कुछ  ही आगे बढ़े  होंगे कि सामने से तेज रफ्तार  कार आती दिखी । भविष्य  हमे साफ दिख गया । भागने छुपने के लिए  ना हमारे पास  जगह थी और  ना समय ।

 कार हमारे बगल से गुजरी ढ़ेर सारा पानी उड़ाते और  हम दोनो को भिंगो आगे चली गयी । बिटिया तो रेनकोट पहनी थी बस नीचे भींगी लेकिन  हम पूरे।  ये देख बोलती है कार वाले को ध्यान  से गाड़ी  चलानी चाहिए  था ना । फिर  हम बोले उसमे भी कोई  बच्चा  रहा होगा तुम्हारी तरह , जिसे उड़ते हुए  पानी का मजा लेना होगा  । 

#मुंबईकीबारिश 

July 14, 2022

बिटियानामा

जब नौवीं में थी  बिटिया तो  हिन्दी अटक कर  पढ़ती थी | स्कूल में बाकायदा टीचर खड़ा कर पढवाती थी तो कुछ ठीक था लेकिन पिछले दो साल से तो स्कूल ही बंद थे  नतीजा हिंदी रीडिंग स्कूल में बिलकुल  बंद हो गया  | 

हम घर में  पढाते समय पढ़ने को बोलते तो बड़े आराम से गलत सलत लापरवाही से पढ़ देतीं की मम्मी सही कर ही देगी | स्कूल तो हैं नहीं कि गलत पढने पर क्लास में सब हँसने लगे और बेइज्जती हो जाये | 


जब परीक्षाएँ शुरू हुयी तो मैंने कहाँ सब पहले ही पढ़ा चुकें हैं , तुम्हे सब मामूल ही हैं ,  बस पाठ एक बार फिर से पढ़ लो खुद से तो रिवीजन हो जायेगा सब कुछ  | तो कहती हैं मैं पढुंगी तो बहुत टाइम लग जायेगा सब पढने में ,  प्लिस  तुम पढ़ कर सुना  दो तो जल्दी काम हो जायेगा | 


हमने डांट लगायी कि हम ये नहीं करने वाले हैं | खुद से पढों तो शब्दों को ध्यान से देख पाओगी और उसे ठीक से लिखना भी सीखोगी | थोड़ी देर बहसबाजी और मेरे इंकार के बाद चली गयी अपने कमरे में | कुछ देर बाद जब मैं  कमरे में गयी तो देखा गूगल उनके लिए पाठ पढ़ रहा हैं | पाठ की फोटो चींख  गूगल से पढवा कर सुन रहीं थी 🤦‍♀️



July 13, 2022

टीचर से असहमति का अधिकार

 पतिदेव का एक मित्र मैथ में बहुत अच्छा था | एक दिन स्कूल में मैथ के टीचर को बोल दिया की उसका तरीका टीचर के मुकाबले  ज्यादा आसान हैं | टीचर ने पुरे क्लास के सामने उसे इतना कुटा कि आज से दो चार साल पहले जब उस टीचर की  मौत हुई तो ग्रुप में उसने नमन भी ना लिखा | 


पिछले साल आठवीं में बिटिया के मैथ के सर  को बीच में अचानक बदल दिया गया तो सब बहुत दुखी हुए क्योकि बदले में जो टीचर आ रही थी वो अच्छा नहीं पढ़ाती थी | एक दिन ऑनलाइन क्लास मे किसी ने मैथ समझ नहीं आने पर डिसलाइक का बटन दबा दिया | फिर क्या था उसका देखा देखी सबने वही शुरू कर दिया | थोड़ी देर बाद जब टीचर की नजर पड़ी तो उन्होंने बड़ी शांति से कहा वो चैप्टर दुबारा पढ़ा देंगी |


बिटिया के स्कूल टीचरों का ये व्यवहार नया नहीं था ऐसे मामले को पहले भी वो बड़े आराम से लेती थी  | जब सामान्य दिनों में पहले भूगोल की एक  क्लास में एक लड़की ने कह दिया था मैंम बहुत बोरिंग हैं नींद आ रही हैं | तो जवाब में टीचर ने कहा चलो थोड़ा देर कुछ और इंट्रेस्टिंग बाते करते हैं फिर पढ़ायेंगे क्योकि  वास्तव में भूगोल बोरिंग होता है |  


हमारे समय में हम किसी टीचर से ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद भी नहीं कर सकते  थे |  ज्यादातर अध्यापक ऐसी बातो को अपने ईगो पर ले लेते हैं | वो ये बात नहीं समझते कि क्लास में जब चालीस से ज्यादा  छात्र हैं तो उनके समझने की क्षमता अलग अलग हो सकती हैं | क्लास में बताया पढ़ाया किसी के लिए आसान तो किसी के लिए मुश्किल हो सकता हैं | 

 टीचर से असहमत होने का हर बार अर्थ ये नहीं होता कि टीचर गलत हैं |  बच्चे को ना समझ आया तो वो आपके बताये पढ़ाये से असहमत ( समझ ना आया , पसंद नहीं आया , ठीक से नहीं पढ़ाया , बेकार पढ़ाते/ती जैसा कुछ भी )  हो संकता हैं | ये अच्छे शिक्षक की जिम्मेदारी की वो क्लास के कमजोर बच्चो को भी समझने लायक पढ़ा सके | स्मार्ट बुद्धिमान छात्रों को तो कोई भी पढ़ा सकता हैं | 


कुछ समय पहले मित्र लिस्ट में से एक टीचर ने अपना अनुभव लिखा कि कैसे उनके बनाये पीपीटी को सभी ने पसंद किया लेकिन एक बच्चे ने उसे डिस लाइक किया था | उन्हें इसका दुःख हुआ और उन्होंने उस बच्चे को भविष्य का ट्रोलर कह दिया | उनके डिसलाइक पर दुःख जताने पर बच्चे ने डिसलाइक वापस ले लिया | मेरे लिए ये आश्चर्य की बात थी कि एक डिसलाइक पर नाराज होने वाली टीचर के सामने अपनी असहमति कैसे दर्ज करूँ , तो हमारी तो हिम्मत ही ना हुयी वहां कुछ कहने की ।  आज अपनी दिवार पर लिख दिया उम्मीद है सभी लोग पढ़ लेंगे | 


मुझे तो लगा उन्होंने भविष्य में सच कहने वाले , विरोध की एक आवाज को आज ही दबा दिया | बिना ये पूछे कि असहमति किस बात पर थी ,समस्या क्या थी |  अब वो बच्चा  या तो  भविष्य में सबकी तरह हां में हां मिलाएगा भले वो बातों से सहमत हो या ना हो या विरोध करने की जगह मौन रहेगा |  

#क्लास_चालू_आहे 

July 12, 2022

पेट्रोल के दाम और किस किस से तुलना

पेट्रोल डिजल के बढ़ते दामो का सरकार  समर्थको ने उसका बचाव करते किन किन चीजो से उसकी तुलना की उस पर मेरी एक टिप्पणी । 

किसी ने कहा सौ के ऊपर  हो चुका पेट्रोल और  डीजल की औकात मल्टीप्लेक्स मे मिलने वाले दो ,  ढाई सौ  के पॉपकॉर्न से कम हैं | 

सही हैं भैय्या की पॉपकॉर्न की कीमत पेट्रोलिम पदार्थो से ज्यादा हैं लेकिन उसकी इतनी औकात नहीं हैं कि वो अपने साथ साथ फल साग सब्जी अनाज दूध आदि सबके माल ढुलाई का  दाम बढ़ा कर  महंगाई बढ़ा दे | बहुत हुआ तो वो बस अपना दाम बढ़ा कर खुद को ख़रीदे जाने वाले की जेब ढीली करावा दे | लेकिन पेट्रोलियम पदार्थ तो उसे  ना खरीदने वाले के भी जेब हलकी करवा दे रहा हैं |  पेट्रोल डीजल अपने साथ साथ सबके दाम पर प्रभाव डालने की औकात रखते हैं | 


पॉपकॉर्न तो भाई जिसकी मर्जी वो ख़रीदे , नहीं तो हमारे जैसे बिना उसके फिल्म देखे । वैसे भी  थियेटर में  कौन रोज जा रहा हैं | लेकिन पेट्रोल तो ना चाहते भी रोज भरवाना पड़ता,  काहे की पब्लिक ट्रांसपोर्ट बंद हैं या कोरोना के डर से उसमे सफर की हिम्मत नहीं हैं | जो घर बैठे काम कर रहा वो भी महंगा राशन खरीद उसकी बढती  कीमत का हिस्सा अदा कर रहा | तो ऐसा हैं कि पेट्रोलियम पदार्थो और पॉपकॉर्न के बीच औकात का कोई मुकाबला ही नहीं हैं | 

कोई बोला इतने सालों में जमीन शेयर और सोना का भी भाव इतना बढ़ा तो कोई समस्या नहीं तो  पेट्रोल डीजल  का दाम बढ़ने पर इतना शोर काहें | भाई कितने लोग की हैसियत हैं जो शेयर , जमीन या सोना में निवेश करते हैं | जो निवेश करते उनको वैसे भी पेट्रोल के बढे दाम से ज्यादा फर्क  नहीं पड़ रहा | लेकिन जिन्होंने निवेश ना किया उन्हें बढ़ती महंगाई से फर्क पड़ रहा हैं | अब क्या चाह रहे हो कि लोग  घर में गहनों के रूप में रखा सोना बेच बढे दाम का फायदा उठाये और उस पैसे से घर चलाये | वैसे बता दूँ संपत्ति का भाव दो साल से बढ़ा नहीं घटा ही हैं और इन सब का पिछले कुछ साल उतने  प्रतिशत दाम नहीं बढ़ा हैं जितना प्रतिशत  पेट्रोल डीजल के भाव बढ़ा हैं | 


एक जने तो महानता की सारी पराकाष्ठा पार कर कह दिये  कि एक सौ बीस या डेढ़ सौ रूपया का कंडोम बिकता हैं किसी को परशानी ना हैं काहे कि उसका विज्ञापन  सनी लियोनी करती हैं | तो मुकेश भाई को पेट्रोल का विज्ञापन भी उन्ही से करवाना चाहिए लोगों को आपत्ति ना होगी महंगा पेट्रोल खरीद लेंगे | 

सबसे पहले कंडोम वाले भैय्या धन्यवाद हमारी तरफ से कि ब्याह के बीस साल होने जा रहें और हमें अब पता चला की घर में आ रही एक चीज का  हमे कोई हिसाब किताब ना पता  हैं | अब पूछताछ किये तो सारा हिसाब किताब पता चल गया  | 

बस हमारे पतिदेव से बच कर रहे पता नहीं काहे वो हिसाब किताब लेने पर हत्थे से उखड पूछने लगे पहले नाम पता बताओ उस आदमी का जो इस तरह का बकवास करने की क्षमता रखता हैं | हमने कहा का करोगे उसके वो हाथ काट दोगे जिससे ये बकवास लिखा । तो बोलते हैं ये सब लिखने वाले के हाथ नहीं गर्दन काट दिए जाते हैं देवसेना ,  जय माहेष्मती !  


तो  ऐसा हैं देख लो कंडोम वाले भैय्या की तुमको क्या करना हैं | काहे की ठीक से हिसाब किताब लगाने के लिए हम बाकी  के  लोगों के कंडोम खर्च की भी जानकारी लेनी होगी और जो बहुतों की पत्नियां इस खर्चे का हिसाब किताब अपने पतियों से लेने लगी तो हो सकता हैं पूरी बाहुबलियों की  सेना तुम्हारे खोजबीन में लग जाए और ये तुम्हारी आखिरी बकवास साबित हो जाए | 


लोगों को तुम्हारे पुरुष होने पर शक हैं उनके हिसाब से कोई पुरुष कितना भी बकवास करे लेकिन इस स्तर की तुलना ना करेगा , कोई तो समस्या हैं तुमको  |  या फिर तुम बहुत बड़े दिलजले हो जो सबके घर में आग लगाने पर तुला हैं | या ब्रम्हचारी होंगे , या परंपरावादी जो इसका उपयोग ना करता , वरना इन दोनों की खर्चो की तुलना करना  , मतलब अब क्या कहें | 


फिर भी मोटा मोटी सामान्य ज्ञान ,  विज्ञान ,सामाजिक विज्ञान ,पुरुष की क्षमता , जनसँख्या आदि इत्यादि सबका जोड़ घटा गुणा भाग करे तो भी डेढ़ सौ का डेढ़ लीटर पेट्रोल एक दिन में भी खर्च हो सकता हैं और दो या चार दिन में भी खर्च हो सकता हैं  | डेढ़ सौ का दस कंडोम एक दो या चार दिनमे खर्च ----------   देख लो सब कोई अपना अपना इस पर हमसे कुछ ना कहा जा रहा | 

July 11, 2022

धर्म प्रचार या धर्म परिवर्तन

वेटिकन से दो धर्म प्रचारकों को अफ्रीका के घने जंगलों में आदिवासियों को धर्म का ज्ञान देने के लिए भेजा गया | दो चार महीने बाद वेटिकन से वहां चिट्ठी भेजा गया कि कैसा चल रहा हैं | जवाब आया दोनों बहुत टेस्टी थे दो और भेजो |  दशकों तक हम इसे चुटकुला समझते रहें लेकिन ये  बाद में सच निकला | 

दो तीन साल पहले अपने अंडमान में एक ऐसा ही धर्म प्रचारक गैरकानूनी तरीके से आदिवासियों के द्वीप में घुस गया | उसे नाव से पहुंचाने वाले को गिरफ्तार कर लिया गया तुरंत ही लेकिन उस महाशय की भालो से खुदी लाश समुन्द्र के किनारे से उठाने में टाइम लगा सरकार को | 

मुंबई के बाहर पामबीच रोड से एक बार  जा रही थी ,  समुन्द्र के किनारे किनारे सब मछुआरों के घर थे | सबके आँगन/घर का बाहरी एरिया में तुलसी वाला ओटा ( तुलसी का पौधा लगाने का ख़ास डिजाइन का गमला ) रखा था |   लेकिन सब में तुलसी नहीं मदर मेरी की मूर्ति या क्रॉस लगा था | मजेदार बात ये थी की उस पर भी फूलो की माला चढ़ाई गयी थी और दिया रखने के ताखे पर मोमबत्ती जल रही थी | संस्कार पुराने और भगवान नया | 


बहन करीब पंद्रह साल पहले मुंबई के एक फैशन हॉउस में काम कर रही थी वहां चार और लोग थे जिसमे से तीन ईसाई थे | एक दिन जो सबसे सीनियर महिला थी वो अपने धर्म और अपने के बारे में बड़ी बड़ी बातें करने लगी | जैसे कि वो असली ईसाई थी और सीधा अंग्रेजों की वशंज | अब अंग्रेजो के वंशज तो शकल सूरत से कुछ तो पता देंगे ही अपना | 


बहन ने पास बैठे दूसरे लडके से पूछा लिया तुम कन्वर्टेड हो या तुम भी | उसने तपाक से कह दिया इंडियन में 99 परसेंट कन्वर्टेड ही हैं और उसमे से भी 95 परसेंट छोटी जाति या आदिवासी हैं | सीनियर मैडम भड़क गयी इस बात पर | कन्वर्टेड कहलाना उनके इज्जत शान के लिखाफ था |   नतीजा महीने भर बाद हमारी बहन की नौकरी से छुट्टी हो गयी |  दो तीन महीने ही उसे काम करते वहां हुआ था और सीनियर मैडम बीस साल से थी | उन्होंने जो भी उटपटांग आरोप लगाये उसे माना गया बहन की ना सुनी गयी | खैर बहन को तुरंत दूसरी जॉब मिल गयी | 


उस दिन पता चला कि धर्म बदलने वालों कि धर्म बदलने के उदेश्य की पूर्ति वहां भी नहीं हो रही हैं जिसके चाह में सबसे ज्यादा   ये धर्मपरिवर्तन होते हैं वो हैं इज्जत ,सम्मान,  बराबरी का दर्जा |  यही हालत मुंबई में बौद्ध धर्म अपनाने वालों का भी हैं | धर्म बदलने  के बाद भी समाज में उनका स्थान दलित पिछड़े वाला ही हैं | 


कोरोना के शुरूआती समय में मैंने अपने एक दूर के रिश्तेदार के मौत की बात बताई थी वो भी ईसाई बन चुके थे | किसी जमाने में यूपी से आये शायद गरीबी में पैसे के लिए धर्म बदल लिया लेकिन सोच नहीं | बेटे का ब्याह ना केवल हिन्दू धर्म मे किया बल्कि अपनी ही जाति सरनेम में किया | हल्दी तेल घर पर हुआ और ब्याह चर्च में | रहन सहन सोच खानपान सब वही पुराना | 


कुछ ही साल पहले पतिदेव का एक पुराना जूनियर कनवर्ट हुआ था  | अपने किडनी के ऑपरेशन के लिए उसे पैसे चाहिए थे | एक लाख मिल रहा था हो गया कन्वर्ट | बस अब दिवाली के साथ क्रिसमस भी मनाता हैं | पतिदेव को इस बारे में तब पता चला जब एक और व्यक्ति को पत्नी के इलाज के लिए पैसे चाहिए था तो उसने उसे भी पैसे पाने का ये आसान रास्ता बताया |  


खुद हमें एक बार दो लड़कियां चौपाटी पर मिल गयी थी | हम , मम्मी और बिटिया तीनो थे | आते ही , वो आ कर विश्व कल्याण करेगा , शुरू की साथ में एक बुकलेट था जबरजस्ती हाथ पकड़ कर थमाने लगी | मैं और मम्मी मना किये जा रहें थे लेकिन गजब ढीट थी , जाने को तैयार ही नहीं | जब बिटिया के सर पर हाथ रख कर बच्ची का भविष्य उज्जवल होगा करने लगी तो हमें ही वहां से आगे बढ़ना पड़ा | 

 बचपन में हमारे स्कूल के बाहर कई दिनों तक ऐसे बुकलेट बांटे थे | उसमे भगवान ईसामसी की कहानियां और महानता की गाथा थी |  दूसरे दिन कुछ लड़कियां  बताने लगी भगवान जी की किताब थी हमने घर के मंदिर में रख दी हैं | बाकियों ने कहानी की किताब की तरह पढ़ कर फेंक दी | 

July 10, 2022

बिटियानामा - जीतने का दबाव

 बिटिया करीब साढ़े  तीन साल  की थी जब नर्सरी स्कूल  का स्पोर्ट्स  डे आया । उस समय सभी बच्चे को    खेल मे भाग लेना अनिवार्य  था । एक दिन घर आ कर बतायी कि आज रेस की प्रैक्टिस  थी और  वो सभी बच्चो से बहुत  ही आगे थी । 

कहती है मम्मी  मै तो बड़े  आराम से जीत गयी देखना स्पोर्ट्स  डे पर गोल्ड  मैडल लाउंगी । फिर  बड़े अफसोस से मुंह  लटकाते बोलती है पिछली बार  मै मैडल नही जीत पायी थी ना लेकिन  इस बार  पक्का मैडल जीतने वाली हूँ  । इस बार  मै सबसे तेज दौड़ने  वाली हूँ  । 

ये सुन हम एक बार  तो शाॅक हो गये । हुआ  ये कि जब ये प्ले स्कूल  मे थी तो वहां भी स्पोर्ट्स डे हुआ  ।  उस समय ये बस ढाई साल की थी । टीचर हम लोगो को बुला कर बोली ये बच्चो के बीच प्रतियोगिता नही है , कोई  मैडल नही दिया जायेगा । इसलिए  आपलोग इसे गम्भीरता से ना ले ये बस बच्चो  के मजे के लिए  है । 

हम लोग भी इससे सहमत  थे कि अभी बच्चो को इन सब से बचाना चाहिए।  स्पोर्ट्स  डे आया सारे इवेंट  होने लगे फिर  हमारी बिटिया का भी नंबर  आया । रेस मे वो दौड़ने की बस एक्टिंग  कर रही थी दौड़ नही रही थी । 

बिटिया हमेशा से फिजिकली बाकी बच्चो  से ज्यादा एक्टिव  थी और दौड़त   भी बहुत  तेज थी । वहां उन्हे इतना धीरे दौड़त  देख हम दोनो को भी आश्चर्य  हुआ  । बिटिया चौथे नंबर  पर आयी । हम लोगो ने उस समय अफसोस  नही किया बस ताली बजाया । 


लेकिन  कुछ  ही देर के बाद  जोर  का अफसोस  होने लगा क्योंकि  बच्चो को पोडियम पर चढ़ा कर  मैडल दिया जाने लगा । ऐसा लगने लगा जैसे हमारे साथ  धोखा हुआ  हो । बाकि बच्चो को देख हमे पता था कि हमारी बिटिया इससे कही ज्यादा तेज दौड़ती है । अगर अपने हिसाब  से दौड़ती तो पहला स्थान  पा मैडल लाती । 


मैदान  से बिटिया जब हम लोगो के पास  आयी तो हम लोग पुछने लगे कि तुम इतना धीरे क्यो दौड़ी तो बोलती है टीचर ने कहा था कि तेज नही दौड़न  है स्लो  दौड़ो वरना तुम गिर  जाओगी और  तुम्हे चोट लग जायेगी । हमने पुछा सबस  कहा तो कहती है जो बच्चे फ़र्स्ट  आये है उन्हे छोड़ सबसे कहा । 

फिर  हम सबने ध्यान  दिया तीन हिट हुए थे और  तीनो मे वो बच्चे ही जीते थे जो स्कूल  संचालन  करने वाली के फ्रेंड  के बच्चे  थे । हम सबको इस पर बड़ा गुस्सा आया की कुछ खास बच्चो को जीता कर मैडल देने के लिए  इतना झूठ और  फरेब किया गया । 


वो मामूली प्ले स्कूल  नही था ब्राड और  नामी था । उसकी स्कूल  फीस बाकी स्कूल  से डबल थी । वहां इतने छोटे बच्चो के साथ  ये सब हो रहा था । खैर हमने बस एक बार  और वो भी उस दिन ही बिटिया से कहा अरे तुम्हे तेज दौड़न  चाहिए  था तुम्हे मैडल मिलता । 

उस दिन के बाद  घर मे और बिटिया से  इस बारे मे कभी  कोई  बात  नही हुयी । हा हम बाकि मम्मीयो  ने आपस मे जरुर इस पर खूब  बात की  बाद  मे । 

लेकिन  हमारी बिटिया ये सब एक साल  बाद  तक याद रखी और मैडल जीतने का खुद से तय भी कर लिया । ये सब ढाई  और तीन साल  के उम्र  की बात  है । 


हम उस दिन आश्चर्य  मे थे कि आजकल  के बच्चे  इन सब को लेकर  कितने गम्भीर  है । हम लोगो को तो ये बाते याद भी ना रहती और  ना जीतने मैडल के लिए  गम्भीर  होते । ये तो अभी से  खुद  से अपने आप पर कितना प्रेशर  ले रहे है । 


आज दसवीं मे है और  कई  बार  हमे उन्हे प्रेशर  ना लेने के लिए  समझाना पड़ता है । इनकी सहेलियां क्लास  , स्कूल  टाॅपर है वो इनसे भी आगे है । सबकी मम्मीयां मिलती है तो इसी बात  पर चिंतित  होती है ये बच्चे कितना प्रेशर  ले रहे है तनाव  मे है जबकि  हमारी तरफ से बच्चे फ्री  है ।

लोग कहते है माँ बाप  बच्चो  पर नंबरो के लिए दबाव  बनाते है लेकिन  एक सच ये भी हो कि आजकल  बड़ी संख्या मे बच्चे खुद  भी अपने पर दबाव  लेते है।  उन्हे   खुद  को साबित  करना है   टीचर  के सामने माँ बाप  परिवार  सबके सामने ।

July 09, 2022

तीर्थयात्रा को पर्यटन ना बनाये


                          बद्रीनाथ हादसा के  दो साल बाद हमारी माता जी हमसे  इच्छा व्यक्त की कि उन्हें भी बद्रीनाथ केदारनाथ जाना हैं |  हमने कहा क्यों जीवन से मन ऊब गया हैं क्या , जो वहां जाने का सोच रही हो | तो कहती हैं कुछ हो भी गया तो क्या हुआ सारी जिम्मेदारियां हमने पूरी कर दी हैं सारे बच्चे सेटेल हो गए हैं , अब करना ही क्या हैं | हमने कहा समस्या इसमें नहीं हैं | मतलब जा रही हो बस खायी में गिरी तो सबकुछ साफ हैं कोई शंका नहीं हैं ,  सीधा मौत क्लियर हैं | लेकिन दो साल पहले वाला हादसा हो जाए तो मिलोगी  भी नहीं शायद ,  पता चला  बह बहा कर कही दूर चली गयी  | फिर दिल दिमाग मानेगा ही नहीं कि सच में कुछ हो गया | फिर मुझे और भाई को दौड़ कर वहां जाना होगा तुम लोगों को खोजने खाजने  | शायद महीनो खोजना पड़े | पता नहीं किस किस शहर जगह खोजने जाना पड़े | 


                             सरकारी के हिसाब से तो सात साल बाद मरा मान लिया जायेगा लेकिन हमें तो सारी जिंदगी इंतज़ार रहेगा शायद कहीं बच गयी हो शायद कही घायल मिल गयी हो शायद कभी घर वापस आ जाओ | सारी जिंदगी लगेगा  सब खतरों को जानते जाने ही क्यों दिया | चार रिश्तेदार भी पीछे बात करेंगे कि जाने ही क्यों दिया , चिंता ही नहीं हैं बच्चो को | हमारे देश में तीरथ (तीर्थ )  की कमी हैं क्या , सोमनाथ  चली जाओ , तिरुपति रामेश्वरम गंगा सागर जहाँ जाना हैं चली जाओ | मैदानी इलाके सुरक्षित और सुविधा वाले आरामदायक हैं | 


                              हम हमेशा से जानते हैं लोगों से बात करते समय हमेशा उनकी भाषा में बात करनी चाहिए , वो भाषा जो उन्हें समझ में आये | अपनी बात अपनी भाषा में कही तो सामने वाला कभी न समझने वाला | सो हमारी माता जी भी समझ गयी और कुछ बोला नहीं | हफ्ते भर बार एक रिश्तेदार गए थे वो आ कर  वहां के अव्यवस्था का कहानी बताने लगे कि हादसे के बाद  सब कुछ ठीक नहीं हुआ हैं यात्रा बहुत कष्टदायक रही | तो माता जी शुक्र मनाने लगी कि चलो हमने जाने की गलती नहीं की | 


                               हिन्दू धर्म हो या दुनियां का कोई भी धर्म हो तीर्थ यात्रा करने का समय सभी जगह एक ही बताया हैं | सारी जिम्मेदारियां निभाने के बाद बुढ़ापे में | तब यात्रायें कठिन होती थी सुविधा ना के बराबर इसलिए जीवन समाप्त होने का खतरा ज्यादा था | इसलिए कहा जाता कि जिम्मेदारियां निभा लो अपनी सारी ताकि कुछ हो भी जाए तो पीछे छूटे लोगो का और लोगों को कोई अफसोस तकलीफ ना हो | एक और भाव था वो था जब इस लोक में आने के बाद जो कर्तव्य  मिले थे वो पूरा कर लिया तो भक्ति में अच्छे से लीन हुआ जा सकता हैं | दिल दिमाग में ईश्वर के अलावा जीवन की  कोई चिंता , दुःख  पीड़ा ना रहें | तमाम जिम्मेदारियों कामो चिंताओं से भरे दिल दिमाग में ईश्वर नहीं हो सकते | 


                              लेकिन अब तीर्थ यात्रा पर्यटन , पिकनिक , ट्रैकिंग , मजा , सोशल मिडिया पर किया जाने वाला दिखावा , और खुद को सबसे बड़ा धार्मिक , हिन्दू दिखाने की नौटंकी आदि बन गया हैं | बाकि जगह तो ठीक हैं लेकिन पहाड़ो पर लोगों की ये आदते पहाड़ का दम  घोट रही हैं उन पर बोझा बन रही हैं | पहाड़ और पानी की यात्राएं कभी भरोसे की नहीं होती और प्रकृति  के क्रोध के आगे  बड़ी से बड़ी व्यवस्था  बेकार होती हैं | सरकारे अपनी कमाई बढ़ाने के लिए बेतहाशा लोगों को वहां आने दे रही हैं | आने वाले लोगो की संख्या पर कोई नियंत्रण नहीं हैं असल में वो लगाना ही नहीं चाहते | लोगो के दुबारा यात्रा और संख्या नियंत्रण  के नियम को कड़ाई से लागु  करके जान के नुकशान को कम तो किया ही जा सकता हैं | 


                                बकियाँ हमारे बनारस में कहावत हैं कि मन चंगा तो कठौती में गंगा | ज्यादा शिव जी के दर्शन की इच्छा हैं तो काशी से रामेश्वरम तक हैं शिव जी जाओ कर लो दर्शन | सब एक ही शिव हैं कहीं भी दर्शन करो बस अपना मन चंगा रखो | सोच रही हूँ किसी माँ बाप का कोई इकलौती संतान , या छोटे नाबालिग बच्चो के  माता पिता , किसी असहाय का सहारा , कोई पति  या पत्नी इस हादसे का शिकार हुए होंगे तो उनकी असमय की गयी ये तीर्थ यात्रा उनकी आत्मा को मोक्ष देगी या पीछे छूट गए लोगों को पुण्य देगी |

लेबर कानून और प्राइवेट नौकरी

                                  एक जुलाई  से  कोई  लेबर कानून  लागू हुआ है जिसमे  काम के घंटे  आठ से बढ़ा कर बारह तक किया जा सकता है कंपनियों द्वारा।  हमे आश्चर्य  इस बात  पर है कि प्राइवेट  कंपनियों मे काम  के घंटे आठ  थे ही कब । हम तो अपने घर मे बंदे को दस से बारह घंटे ही काम करते देख रहे है जमाने से । आस पास  जितने भी नीजि कंपनियों मे काम  कर रहे है लोग उन सबका भी यही हाल है । दस घंटे से कम शायद ही कोई  काम करता हो । थोड़ा-बहुत  जो रात के समय और इतवार  को आराम मिलता था उसमे इस लाॅकडाउन मे चले वर्क फ्राम होम ने सेंध
लगा दी । 


                               अब तो ये हालत है कि कोई  कभी भी फोन कर देता है ना दिन रात का फर्क  है और  ना छुट्टियों का । लेकिन  ये सब कंपनीज  के कारण  नही बल्कि लोगो के काम करने की आदत की वजह से है । जब तक ऑफिस  जाना होता था तो लोगो कि मजबूरी होती थी कि काम ऑफिस  मे ही खत्म  किया जाये लेकिन  लाॅकडाउन  ने आदत खराब  ईर दी । कुछ लोग  निशाचर होते है दिन मे देर ती सोते है और  देर रात  काम  करते है । अब अकेले का काम हो तो करो किसने रोका है लेकिन  काम के बीच  मे दूसरो की भी जरूरत  होती है तो लगा दिया फोन बिना इस फिक्र  के कि बाकि लोग  सो रहे होगे या छुट्टी मे परिवार  के साथ  होगे । 


                                  हम लोग दस साढ़े  दस तक सोने वाले लेकिन  कुछ  लोग ग्यारह  बारह बजे भी फोन की घंटी बजा देंगे  । शुरू मे तो पतिदेव  फोन उठा लेते थे अरे जरूरी काम होगा , उसका काम अटक जायेगा बोल के । बाद मे मैने डांटना शुरू किया फोन लेते रहोगे तो लोग ऐसे ही अपनी सुविधानुसार  काम करेगें और  तुम्हे  परेशान  करेगे । फोन लेना बंद  कर दो तो झक मार के लोग समय से काम करेंगे । बाद मे पतिदेव  ने यही करना शुरू किया तब लोगो की आदत सुधरी ।


                                  कजन बता रही थी कि उसके  ऑफिस  मे तो  किसी कि पत्नी ने एच आर को फोन  कर इस बात  की शिकायत  कर दी थी कि लोग  देर रात या छुट्टी  के दिन  फोन कर परेशान  करते है ये सब तुरंत  बंद  किया जाये । पूरे ऑफिस के लोगो  को मेल पहुँच  गया फिर  लोग उसे दिन मे भी फोन लगाने मे डरने लगे । 
हमने पतिदेव को ये बात  बताते कहा कि देख लो हम कितने तो अच्छे है ऐसा ख्याल  भी हमको नही आया 😂😂।


                              आठ घंटे का ऑफिस  तो बस सरकारी कर्मचारियों के लिए होता है । मै बिटिया को एक क्लास  ले जाती थी जिसके बगल मे ही एमटीएनएल  का ऑफिस  था । बिटिया का क्लास पांच बजे शाम  शुरू होता था । पांच  बजके एक मिनट होता था और एमटीएनएल के गेट से भीड़ का रेला निकलता था । हम सोचते थे ये लोग दरवाजे पर ही खड़े हो कर पांच  बजने का इंतज़ार  करते होंगे । वरना पर्स टिफिन  पेन संभालते सीढी लिफ्ट  से आते कुछ  तो समय जाता । इनके लिए  आठ घंटा ऑफिस  टाइम होता होगा काम  का नही । बस किसी तरह ऑफिस  मे आठ घंटा गुजारो और  निकल लो काम तो पहले ही बंद कर देते होगे । 

July 08, 2022

अफगानिस्तान को लेकर कुछ फन फैक्ट 2

अफगानिस्तान  मे जब तालिबान  की दुबारा वापसी हुयी थी तब वहां के हालातो पर फेसबुक  पर लिखा था । उस समय की हुयी आशंकाएं आज सच हो रही है तो ये सब याद  आ रहा है 

फन फैक्ट 4 

अफगानिस्तान में आये बदलाव का असर  फिल्मो पर भी पडेगा , नहीं नहीं हम अफ़ग़ानिस्तान की फ़िल्म निर्देशक सहरा करीमी के  ख़त की बात नहीं कर रहें हैं |  वैसे उन्होंने सभी  उदारवादी प्रगतिशील  फिल्म वालों से अपनी पोस्ट शेयर करके मदद की अपील कि थी देखना होगा कितनी सोशल मिडिया वीरांगना अभिनेत्रियों ने उनकी पोस्ट शेयर किया हैं   | हम यहाँ बात कर रहें हैं हिंदी फिल्म उद्योग की | 


अब उरी जैसी फिल्मे शायद ना  बन पाये | संभव हैं कि भारत ही उस तरह की सर्जिकल स्ट्राइक ना कर पाए  क्योकि अब आतंकवादी प्रशिक्षण केंद्र शायद अफगानिस्तान शिफ्ट हो जाये | खुले बड़े मैदानों में , बिना किसी रोकटोक के , बिना किसी स्टेलाइट के निगरानी या सर्जिकल स्ट्राइक के डर के खुल कर भारत विरोधी आतंकवाद को प्रशिक्षित किया जा सकता हैं | 


हा ये हो सकता हैं कि टाइगर 3 -4 में सलमान  या बागी वाले असली टाइगर  या अपने नए भारत कुमार अक्षय अफगानिस्तान में मिशन पर जाते दिखे | उड़ता पंजाब की सीक्वल आ सकती है क्योकि अब सस्ता , अच्छा और  भरपूर माल की आपूर्ति सीधा अफगानिस्तान से होगी  | 

मुंबई हमलों पर बनी फिल्मो के भी कई रूप आ सकते हैं | 


एयर लिफ्ट की भी सीक्वल आ सकती है  उसका  भयानक डरावना ट्रेलर तो सभी ने कल टीवी पर देख ही लिया होगा | 


वैसे अफगानिस्तान के हालातों से हमें ज्यादा चिंता करने की जरुरत नहीं हैं | ये उनका आपसी मामला हैं हमें अंतराष्ट्रीय मुद्दों पर ज्यादा नहीं बोलना चाहिए |  हम पर उसका कोई असर नहीं होगा बस हमारी हिंदी फिल्मो पर होगा | 

फन फैक्ट 5

नया भारत , नया पाकिस्तान वाले चुटकुले ख़त्म भी ना हुआ था कि अब नया तालिबान भी आ गया | ये "नया" तो संक्रामक बीमारी हो गया ,फैलता जा रहा हैं ।

फन  फैक्ट 6 


कोई भी समाज, देश , सरकार जो धर्म और किसी धार्मिक पुस्तक के आधार पर चलती हो वो कभी आधुनिक सोच की नहीं बन सकती | आधुनिकता शानदार इमारतों , आधुनिक मशीनों , चमचमाती सडको , आर्थिक समृद्धि और  तकनीक के उपयोग आदि को नहीं कहते हैं | 


आधुनिकता बाहरी दिखावे से नहीं अंदुरुनी सोच और जमीनी व्यवहार को कहते हैं | किसी देश समाज में प्रत्येक व्यक्ति को कितने मौलिक ,मानवीय अधिकार मिले हैं , जनता को कितनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हैं , अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्ग की तरह समाज,  सरकार का व्यवहार ,  महिलाओं की स्वतंत्रता , समाज में वर्ग , धर्म , लिंग भेद के बिना  सभी को प्राप्त  समानता , न्याय व्यवस्था का रूप आदि उसके आधुनिक और पुरातनपंथी रूढ़िवादी होने को दिखाता हैं | 


दुनियां में धर्म के आधार पर चलने वाला पहले से स्थिर कोई भी  देश आधुनिकता अर्थात मार्डन सोच की परिभाषा को छूता भी नहीं हैं | इसलिए धर्म को अफीम कहने वालों का  ये कहना कि धर्म के आधार पर सत्ता   पाने का  प्रयास करता  तालिबान , सत्ता की स्थिरता  पाने के बाद धीरे धीरे आधुनिक सोच को बनायेगी निहायत ही फनी सोच हैं | 

और हिन्दू राष्ट्र का सपना देखने वाले भी ये बात समझ ले जितना जल्दी अच्छा होगा | धर्म और आधुनिकता दो विपरीत चीजे हैं दोनों एक साथ नहीं रह सकती | 


फन फैक्ट 7 

लोग कितने तथ्यहीन बातें करते हैं और  बिना पूरी जानकारी के आरोप लगाने लगते हैं | लोग बोल रहें हैं कि  अफगानिस्तान के मुस्लिम जनता को मुस्लिम देश शरण क्यों नहीं दे रहें है | जबकि सारी दुनियां देख चुकी हैं कि इसके पहले पाकिस्तान में मुशर्रफ़ के कहर से बचाने के लिए नवाज शरीफ को सऊदी ने और अब अफगानिस्तान के राष्ट्रपति गनी को यूएई ने शरण दिया हैं | कौन कहता हैं कि मुस्लिम देश शरणार्थियों को शरण नहीं देते | बस शरणार्थियों के पास डॉलर भरे चार गाड़ियां और हवाई जहाज  होने चाहिए | 

फन फैक्ट कैसे लगे हमें जरूर बताइये और हमसे जुड़े रहें 

#फनफैक्ट

#funfact


July 07, 2022

अफगानिस्तान से जुड़े कुछ फन फैक्ट

अफगानिस्तान  मे जब तालिबान  की दुबारा वापसी हुयी थी तब वहां के हालातो पर फेसबुक  पर बहुत कुछ लिखा था । उस समय की हुयी आशंकाएं आज सच हो रही है तो ये सब याद  आ रहा है ।


फन फैक्ट  

आप विश्वास करेंगे हमारी लेफ्ट और राइट आँखे किसी एक ही चीज और घटना को अलग अलग तरीके से देखती हैं और लेफ्ट और राइट दिमाग उसी  घटना का अलग अलग तरीके से विश्लेषण करता हैं | विश्वास नहीं हो रहा हैं तो उदाहरण दे देतीं हूँ | 

उन दिनी  हमारी राइट आँखे और दिमाग कुछ मासूम अफगानी बच्चो की फोटो दिखा कर हमें बता रहा हैं कैसे मासूम  बच्चो को , निर्दोष लोगों को तालिबानी गोलियों से उड़ा दे रहें हैं और छोटी बच्चियों को अपनी यौन दासी बना रहें हैं | ये सब देख कर  राइट दिमाग और दिल में बहुत दर्द हो रहा हैं जबकि लेफ्ट आई को कुछ दिख ही नहीं रहा हैं | 


लेकिन ज्यादा समय नहीं हुआ जब हमारी लेफ्ट आई और दिमाग ऐसे ही मासूम बच्चों और लोगों की फोटो वायरल कर  दिखा रहा था कि फलीस्तीनी मासूम बच्चो और लोगों पर कैसे इजराइल बम गिरा कर उन्हें घायल कर रहा उन्हें मार रहा हैं | जबकि उसी समय पर इजरायल में दागे जा रहें हमास के रॉकेट उन्हें नहीं दिख रहें थे |  बिलकुल उसी समय में हमारी राइट आँखों को मासूम बच्चे नहीं दिख रहें थे वो सिर्फ हमास के  रॉकेट देख पा रहा था |  उस समय लेफ्ट दिल और दिमाग में दर्द ज्यादा हो रहा था | 


हैं ना मजेदार फैन फैक्ट | तो ऐसे ही मजेदार फन फैक्ट को जानने के लिए अपनी राइट और लेफ्ट आँखों को सही फ्रीक्वेंसी पर ट्यून करे और हमसे आज जुड़े रहें | 


फन फैक्ट 2 

आप बैंक में हैं वहां डकैत घुस जाते हैं  | प्राइवेट सक्युरेटी वाले भाग जाते हैं बैंक का कायर चौकीदार आत्मसमर्पण कर देता हैं | डकैत कहता हैं अपना रूपया पैसा हमारे हवाले करो  | आप उसका विरोध नहीं करते और अपना या  बैंक का    पैसा उसको दे  देते हैं अपनी मर्जी से  तो वास्तव में ये डकैती नहीं हैं | असल में  आपने डकैतों का सहयोग किया हैं  क्योकि  आप चाहते थे कि डैकत आये और डकैती हो | इसकी निशानी हैं कि आपने विरोध नहीं किया | क्या कहा डकैत के हाथ में हथियार था और आप डर कर चुप थे | 


एक बार आप अपना लेफ्ट  दिमाग बंद कीजिये फिर ना आपको बंदूक दिखेगी ना हथियार ना उनका डर |  सबकुछ शांति और अच्छे से होते दिखेगा  जैसे अब लेफ्टियों और कुछ ख़ास लोगों  को अफगानिस्तान में तालिबान का आना वहां के लोगों की अपनी मर्जी लग रहा हैं | उनके हिसाब से लोग विरोध में नारे  नहीं लगा रहें हैं तो ये आम  लोगों द्वारा  उनका स्वागत करना  हैं | 

उन्हें निहत्थे लोग और हथियारबंद तालिबान नहीं दिख रहें हैं | उन्हें ये नहीं दिख रहा कि जब आपकी सुरक्षा में लगे लोग भाग जाये या अपने हथियार रख आत्मसमर्पण कर दे तो निहत्थे लोगों का चुप रहना मर्जी नहीं   मजबुरी और डर होता हैं | जब लोग तालिबान का क्रूर चेहरा पहले देख चुके हैं तो घर में बंद रहना या एयरपोर्ट में जबरजस्ती घुस कर किसी भी हवाई जहाज में जबरजस्ती बैठ कर वहां से भाग जाना चाहेंगे ना कि विरोध में मरने के लिए नारे लगायेंगे | विरोध की उम्मीद उन आमलोगों से क्या करे जहाँ की सेना पुलिस ही कायर निकले | 


फन फैक्ट 3 

कुछ मजेदार चुटकुले हँस हँस के पेट दुःख जाये तो मेरी गलती नहीं | 


1 - ट्रंप खुद मजाक के पात्र थे जाते जाते दक्षिण एशिया को पिछले एक दशक का  सबसे मजेदार हिलेरियस  शब्द दे गये  -----गुड तालिबान

2 - अफगानिस्तान के राष्ट्रपति गनी भी कम नहीं , भागने से पहले अपने देश को एक चुटकुला सुना कर गए कि वो जनता की जान बचाने के लिए भाग रहें हैं और अब जनता की सुरक्षा तालिबान की जिम्मेदारी हैं | ये सुन कर अभी भी वहां के लोगों की  हँसी नहीं रुक रही | 

3 - लोग कितने अंधविश्वासी होते हैं वो संयुक्त राष्ट्र जैसी चीजों के होने पर विश्वास करते हैं | 


4 -जिन्हे कल तक भारत में सरकार विरोधी आंदोलनों में लोगों की चुप्पी से परेशानी थी | जो लोगों को बोल रहें थे कि आज चुप रहें तो कल तुम्हारी बारी होगी उन्हें अब परेशानी हैं कि लोग तालिबान पर क्यों बोल रहें हैं |


5 - जिन्हे कल तक भारत के किसान आंदोलन पर रेहाना , मिया खलीफा , ग्रेटा थनबर्ग के टिप्पणी से कोई समस्या नहीं थी अब उन्हें समस्या हैं कि भारत के लोग अंतराष्ट्रीय मामले में क्यों बोल रहें हैं | 

6 -कल तक जो पानी पी पी के मुसलमानो को बस उनके मुस्लिम होने के कारण भर से गलियां दिये जा रहें थे वो बचारे आज अचानक अफगानी मुस्लिमो के सगे बन कर उनकी चिंता में दुबले हुए जा रहें हैं |

7 -ये वाला सबसे मजेदार हैं | तालिबानी प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने बीबीसी के रिपोर्टर से कहा कि  महिलाओं के बिना पिता भाई या पति के साथ अकेले घर से निकलने पर धार्मिक पुलिस द्वारा ना  पहले के तालिबान राज में पीटा गया और ना आगे पीटा जायेगा |  

बहुत सारे फनी चुटकुलों की बारिश हो रही हैं चारो  तरफ से और मजेदार चुटकुलों के लिए हमसे जुड़े रहें | 



July 06, 2022

कल के दोहे आज की व्याख्या

दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करे ना कोय 

जो सुख में सुमिरन करें तो दुःख काहें  को होये 


सन्दर्भ सहित व्याख्या 

कवि यहाँ ये कहना चाहता हैं कि वजन  बढ़ने पर कैलोरी की चिंता सब करते हैं लेकिन जब  वजन कम रहता हैं तो कैलोरी की चिंता कोई नहीं करता और जम कर खाता हैं  | जो वजन कम रहते ही चटोरी जबान पर नियंत्रण रखा जाए कैलोरी  की चिंता की जाए तो मोटापा किसी को आये ही नहीं | 


तो जब वजन कम  हो तभी खान-पान जबान  पर नियंत्रण  रखना चाहिए  ताकि कल को ना वजन बढ़े और  ना उसको कम करने के लिए  जिम डायटिंग  वाले अत्याचार  सहना पड़े और सेहत भी ठीक  रहे । बढ़ा वजन शरीर  को बिमारियों का घर बनाता है और  डाॅक्टर  की कमाई बढ़ाता है ।    


 







July 05, 2022

सोलह हजार पत्नियों से संभोग वाले कृष्ण


भरतनाट्य कॉलेज में पुणे से एक संस्कृत और पुराणों की जानकर हमें पुराणों के बारे में पढ़ाने आती थीं | वो और उनके पति पुणे आर्कियोलॉजिस्ट विभाग में काम करते थे | उन्होंने एक बात हमें कहीं कि इतिहास उसे कहतें हैं जिसमे पुस्तकों  में लिखे के साथ उससे जुड़े भौतिक प्रमाण  भी हमें मिले | 

धार्मिक ग्रंथो के कोई भौतिक प्रमाण हमें नहीं मिलते तो भी उसे बिलकुल ख़ारिज नहीं कर सकते हैं उन्हें साहित्य के नजर से देखा और पढ़ा जाना चाहिए | पुराना साहित्य हमे कभी कभी उस समय काल का   समाजिक , प्रशासनिक व्यवस्था और समाज में महिलाओं , सभी वर्गो आदि की क्या स्थिति थी उसमे बारे में बताते हैं | 


जब एक  ख़राब  नजरियें से  ये कहा जाता हैं कि कृष्ण की सोलह हजार पत्नियां थी या इतने स्त्रियों से उन्होंने संभोग किया था तो ये थोड़ा अजीब लगता हैं | जिन धार्मिक  ग्रंथो  में सोलह हजार रानियों का जिक्र हैं वहां उससे जुडी कथा भी हैं कि कैसे भौमासुर ने सोलह हजार राजकुमारियों का अपहरण करके रखा उनकी  बलि देने के लिए और कृष्ण ने उसका वध करके सभी को मुक्त किया था | 

चूँकि किसी  भी पुरुष , देव राक्षस द्वारा हरण की गयी स्त्री को  तब समाज स्वीकार नहीं करता था तो ऐसे समय में किसी स्त्री के पास दो ही रास्ते होते थे या तो हरण करने वाला या उससे बचाने वाला ही उससे विवाह कर ले या वो आत्महत्या कर ले | 

महाभारत में भीष्म द्वारा हरण की गयी अम्बा को जब भीष्म , विचित्रवीर्य और उनके प्रेमी शाल्व भी नहीं अपनाते तो वो आत्महत्या ही करती हैं क्योकि समाज में उनके लिए कोई जगह नहीं होती हैं | जिस समय काल में ये ग्रन्थ लिखे गए थे उस समय के लिए ये कोई बहुत अजीब बात नहीं थी | वैसे आज भी हम जिस समाज में रहते हैं वहां भी घर से भागी या भगायी या अपहरण का शिकार हुयी लड़कियों , स्त्रियों को वापस आने पर बहुत सम्मान से नहीं देखा जाता तो उस समय की बात ही क्या करें | 


कृष्ण का उन सोलह हजार स्त्रियों से विवाह सिर्फ उनके समाज द्वारा अपनाये जाने के लिए किया  था ना कि उन्हें अपनी पत्नी बना का उनसे संभोग करने और परिवार बनाने करने की इच्छा से किया गया कृत था  |  ये बिलकुल वैसा ही जैसे कृष्ण के रासलीला को एक गलत सोच नजरियें से लोग प्रयोग करते हैं |  मुझे नहीं पता कि किस ग्रन्थ में ये लिखा हैं कि कृष्ण अपनी सभी सोलह हजार से ज्यादा रानियों के साथ संबंध बनाये थे | 


एक लाख साठ  हजार से ज्यादा बच्चे भी उसी गलत जोड़ घटाने का परिणाम हैं | ग्रंथो में उनकी आठ पटरानियों के बारे में वर्णित हैं कि उन सभी को दस पुत्र और एक पुत्री हुयी | बस इसी बात को ग्यारह गुणा सोलह हजार करके इतने संतानो की कल्पना कर ली गयी हैं | 


सोलह हजार स्त्रियों से संभोग और एक लाख साठ हजार से ज्यादा बच्चे मतलब ये कुछ ज्यादा ही कल्पना की उड़ान नहीं हो गयी | ठीक हैं वो पुरुष नहीं महा पुरुष थे लेकिन फिर भी ऐसा कुछ बोलने से पहले सोचना चाहिए लोगों को |  पुरुषों  की  क्षमताओं को लेकर कुछ ज्यादा ही ऊँची उड़ान ले लेते लोग  या असल में ये उनकी फैंटेसी हैं | 

July 04, 2022

दिल तो बच्चा है जी



उमर जीतनी  भी हो गर बच्चा बनने का मौका मिले तो कभी नहीं छोड़ना चाहिए और ऐसी खुराफातें करने से हम कब पीछे हटने वाले थे | जमाने से ट्रैम्पोलिन पर  दुनियां जहान के लोगों को कूदते फांदते और करतब करते देख देख मन में वो सब तो बहुत बार  कर चुकी थी असलियत में करने का मौका अब मिला | 

वैसे तो करने के लिए बहुत कुछ सोचा था लेकिन टिकट खरीदते ही उसने पहले चेतावनी यही दी कि जो स्टंट नहीं आते तो मत कीजियेगा | बस इसी के चक्कर में थोड़ा लिहाज कर लिया  वरना अरमान तो बहुत कुछ करने के थे | शुरुआत तो दो चार जंप के बाद गिर जाने से हुयी लेकिन एक बार रिदम बन गया तो फिर तो कहना ही क्या | 

हम होस्ट से पूछते रहें कि ये स्टंट कैसे होगा वो  स्टंट कैसे होगा ओबामा की औलादे यू कैन डु इट कह कह कर हमें बताते , उकसाते रहें और हम करते चले | फिर एडवांस वाले पर जा कर पूछा फ्लिप कैसे होगा | उसने बताया और हमने फ्रंट वाला पहली बार में ही ऐसे किया जिसकी उम्मीद हमें और बच्चो किसी को नहीं थी | बैक वाले के बारे में पूछा ही नहीं पता था अपने बस का नहीं | 
 

आठ दस फिट की ऊंचाई से उलटा फ्री फॉल एक बार करेंगे तो आपको समझ आयेगा की एक दूसरे पर ट्रस्ट एक्सरसाइज में इसे क्यों करवाते है | ये फ्रंट जंप से अलग और ज्यादा मजेदार होता हैं | इसमें आप सामने देखते नहीं हैं गिरते हुए और जानते हैं संभलने के लिए आपके पास मौका नहीं होगा बचता हैं बस थोड़ा सा डर और भरोसा | 

उसके बाद हम पहुंचे उस जंप पर जिसमे आपने कई बार देखा होगा लोग ऊँचे प्लेटफार्म  से पीठ के बल गिरते हैं और बाउंस हो कर वापस उसी प्लेटफार्म पर खड़े हो जाते हैं | होस्ट ने हमें , औकात में अरमान पालो  आंटी , वाली नजर से देखा और बोला कि जिस जवान छोरे को ये करता देख इंस्पायर हो रही हो ना आंटी , वो दो महीने से प्रैक्टिस कर रहा हैं तब कर पा रहा हैं | काहें गर्दन तोड़वा के अंकिल पर बोझा बनना चाहती हो ( ये बात उसने मैम कह कर विनम्रता से कही लेकिन हमें पता हैं उसके दिमाग में वही चल रहा था जो मैंने लिखा ) 


लेकिन उसने सही सलाह दी थी क्योकि सब करके के बाद शरीर का पुर्जा पुर्जा , पूरा अस्थि पंजर ऐसा खड़खड़ाया की पूछिए मत | दूसरे   पूरा दिन तो उठना बैठना भयंकर तकलीफदेह हो गया तीसरे दिन भी दर्द बना हुआ था   | जिस गर्दन और घुटनो को लेकर चिंता थी उसे तो कुछ नहीं हुआ लेकिन बाकि शरीर ने साफ कह दिया बहन उमर पचपन और शरीर  बचपन नहीं चलेगा अब जरा हफ्ता दस दिन बैठो शांति से |  


नोट - ये करने का सारा क्रेडिट बिटिया को ( ऐसा उसने लिखने के लिए बोला हैं ) 







 



July 03, 2022

मुंबई और सेलिब्रेटी को देखना


कुछ समय पहले बात चली मुंबई में सेलिब्रिटी लोगों से मुलाकात की तो अपना भी पहला अनुभव याद आ गया | मुंबई में जब ब्याह हुआ तो ना तो मुंबई का कोई क्रेज था और ना किसी हीरो हीरोइन का | फिल्मे ना के बराबर देखते थे लेकिन क्रिकेट और क्रिकेटर अपने पसंदीदा थे | 
 
शादी के कोई एक साल होने जा रहा  था  पतिदेव एक दिन  फैशन स्ट्रीट ले गए |  हम लोग टहल ही रहे थे कि सड़क के किनारे खूब भीड़ लगी दिखी | मेरे भीड़ का कारण पूछने पर पतिदेव ने कहा कोई एक्टर होगा उसी को देखने के लिए भीड़ लगी होगी | हम दोनों को कोई  रूचि  नहीं थी तो  हम बेपरवाही से आगे बढ़ने लगे | 

जैसे ही भीड़ के करीब पहुंची किसी ने किसी को बताया कोई क्रिकेटर हैं ,  हमारे कान खड़े हो गए एकदम | उस समय बिलकुल  भीड़ के बगल में थे तुरंत भीड़ में से  दो को लेफ्ट धक्का मारा दो को राइट धक्का मारा और घुस गए  | पीछे से बेचारे पतिदेव अरे अरे करते रह गए | 

सामने सफ़ेद रंग की कोई तो महँगी सी गाडी थी और गाड़ी के डिग्गी में अपना क्रिकेट किट रखते जहीर खान थे  |  सामने ही बॉम्बे जिमखाना था वो शायद प्रैक्टिस करके बाहर आये थे |  गाड़ी पर हाथ धरे मैं बिलकुल मुंह खोले उन्हें निहारे जा रही थी | दिमाग में दो बाते आयी आइला  ये तो जहीर हैं और ये कितना गोरा हैं टीवी पर इतना गोरा तो नहीं दिखता | 2002 या 3 की बात हैं मोबाईल में कैमरे होते नहीं थे तो कोई भी फोटो नहीं ले रहा था बस उन्हें चुपचाप निहार ही रहा था | फिर वो खुद ड्राइविंग सीट पर बैठे और चले गए | 

आज याद करती हूँ तो याद आ रहा   हैं  आगे की सीट पर एक और खिलाडी उन्ही की तरह सफ़ेद कपड़ों में बैठा था | उस पर मैंने ध्यान भी नहीं दिया शायद उस समय उस खिलाडी का राष्ट्रिय टीम में चयन नहीं हुआ होगा तो पहचान नहीं पायी होंगी | लेकिन क्या पता कौन था हो सकता हैं बाद में  बड़ा खिलाडी बन गया हो | 


वैसे एक साल बाद वानखेड़े स्टियम में मैच देखने गयी तो लगभग सभी भारतीय खिलाडियों को नजदीक से देखा | वो भी एक मजेदार किस्सा हैं उस पर भी कभी लिखूंगी | 




July 02, 2022

अंधविश्वास या वैज्ञानिक दृष्टिकोण चुनाव आपका है




जब हमें बिटिया होने वाली थी तो अपने देशी मान्यता के अनुसार हमारी माता जी ने पहले ही पता करने का प्रयास किया कि बेटा होगा या बेटी | इसमें होता ये हैं कि हर  दिवाली में हमारे यहाँ काजल पारा जाता हैं | इसमें पूजा करने के बाद दीया  जला कर उसके ऊपर मिटटी का घंटी तिरछा करके  रख दिया  जाता हैं | घंटी की छत पर ढेर साला कालिख या काजल जमा हो जाता हैं फिर उसे घर में सभी सदस्यों को हर दिवाली लगाया जाता हैं | 


जब घर में बच्चे होने वाले हो तो घंटी को हटाया नहीं जाता , रात भर जलते दीये के साथ छोड़ दिया जाता हैं  | नवंबर दिवाली पर  किया गया टोटका मुझे दिखाने के लिए अप्रैल तक  रखा गया था और बेटी होने के बाद मुझे दिखाया गया की देखो कैसे हमें पहले ही पता था कि बेटी होने वाली हैं | 


मुझे भी बड़ी उत्सुकता हुयी की देखूं ऐसा क्या निशानी हैं कि पता चले की बेटी ही होगी | उस घंटी  को देखते ही मेरा  मुंह खुला का खुला रह गया और आँखे फटी की फटी रह गयी |   उस घंटी में अच्छे खासे मोटे  कालिख की परत  से वजाइना , स्त्री योनी  बना था | मुझे खुद अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि वास्तव में वही बना हैं जो मुझे दिख रहा हैं | सोचने लगी ये कैसे संभव हैं , क्या वजह हैं की काजल ऐसे जमा हुआ  | 


पूरा दिन उसे बार बार देखने और सोचने  के बाद समझ आया की ये कैसे बना होगा | दीये की लौ के ऊपरी भाग पर  उंगली रखेंगे तो लौ वहां से दो भागो में बट जाएगा बस यही चीज हुआ था | हुआ ये होगा कि जब दीये पर घंटी रखी गयी तो उसकी लौ घंटी   की छत से टकरा कर दो भागो में बट कर रातभर जलती रही  होगी  और काजल घंटी की छत पर जमा होने की जगह दो अलग दिशा में जमा होने लगा दो पहाड़ नुमा ढलान के साथ | चुकी बीच में लौ थी तो बीच का हिस्सा एक लकीर जैसा एकदम साफ़ था | 


जैसे ही मैंने ये सोचा अचानक से वो वजाइना सा दिखना  बंद हो गया ,  बस काजल के दो पहाड़नुमा ढेर दिखने लगे |  पहले उसका वजाइना सा दिखना भी एक तरह से पहले से बना माइंडसेट , पूर्वाग्रह जैसा था | उसे दिखाने से पहले मुझे कहा गया कि एक ऐसी चीज देखने वाली हूँ जिससे लड़की और लड़का होने का पता चलेगा | अब सोचिये इस माइंडसेट के साथ हम कुछ देखेंगे तो चीजे अपने हिसाब से ही दिखेंगी | जैसे आम चूसना सामान्य शब्द हैं लेकिन कोई बोल दे ये शब्द अश्लील हैं तो हमें वही समझ आने लगता हैं |


घंटी में क्या बनेगा काजल कैसे जमा होगा ये सब कुछ इस बात पर निर्भर हैं कि दीया और घंटी  कितना बड़ा था , उसमे तेल कितना था , बत्ती कितनी बड़ी थी  , दीये पर  घंटी कैसे रखा गया  था , जैसे कुछ लोग जलते दीये के चारो तरफ कुछ  दीया उलटा कर रखते हैं और उसके सहारे घंटी को और ऊँचा रखते हैं | इसतरह ढेर साला काजल जमा कर उसमे घी या तेल मिला सालभर के लिए काजल जमा कर लेते थे  | 

सामने दिख रही चीजों को लेकर सवाल करेंगे तो जवाब खुद बा खुद मिलेगा लेकिन अगर आँखों और दिमाग  पर अन्धविश्वास का पर्दा पड़ा हो तो हम सवाल करना छोड़ कर जो दिख रहा हैं उसी पर सहज विश्वास करने लगते हैं |


  वैसे मुझे भी पता था कि मुझे बेटी ही होगी वो भी बिलकुल वैज्ञानिक तरीके से | हमने एक बड़ा वैज्ञानिक सर्वे पढ़ा था जिसके अनुसार खूबसूरत स्त्रियों को पहले बेटी ही होती हैं | तो हमें तो बेटी होते अपना पता चल गया बाकी  जिनको पहले बेटे हुए हैं वो अपनी खूबसूरती को  शक की  नजर से देखें 😉










   

July 01, 2022

देशी खान-पान और आज का मोटापा



लोग कहते हैं कि पहले के जमाने में तो लोग खूब दूध दही घी मक्खन खाते थे फिर भी मोटे नहीं होते थे | घी मक्खन और भारतीय तले खाना खाने से मोटा होने की बात एक मिथ हैं | ये कहते लोग भूल जाते हैं कि पहले के लोग शारीरिक श्रम भी आज से कई गुना ज्यादा करते थे | आठ दस कोस पैदल चले जाते थे घर से बाहर निकलते स्कूटी गाड़ी में नहीं बैठते थे ,  ना मिक्सी  था ना गैस चूल्हा और न वाशिंग मशीन | सभी का खाया पीया शारीरिक मेहनत में जल जाता था , जो कि अब नहीं होता | 

खाना पान वही पुराना और लाइफ स्टाइल आधुनिक वाली , ये समस्या हैं मोटापे की | स्वस्थ रहना हैं तो या तो पुराना खानपान बदलिए या आधुनिक कम शारीरिक मेहनत वाली लाइफ स्टाइल | 
अगर दोनो का तालमेल भी बीठा ले तो भी शरीर  को स्वस्थ  रख सकते है ।

आज सबका काम ऐसा है कि शारीरिक  मेहनत कम है कुछ  जगहो पर तो बिल्कुल  नही है । ऐसे मे नियमित  कसरत की आदत डालनी चाहिए  । रोज रोज चटर पटर खाने की जगह हफ्ते मे बस एक या दो दिन उसके लिए  रखे । रोज के खाने मे सलाद फल को शामिल  करे और  भोजन संतुलित  करे । जिम से बेहतर  है किसक न्यूट्रिशियन से मिल  कर अपने लिए  एक डायट चार्ट बनवा ले और  उसे नियमित  प्रयोग  करे ।