tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post5912847580073333620..comments2024-01-31T15:22:21.672+05:30Comments on mangopeople: आत्मा, पुनर्जन्म और भगवान क्या आप वास्तव में इन पर विश्वास करते है एक बार क्रास चेक कीजिये - - - - mangopeopleanshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comBlogger30125tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-23372242197623892922010-12-21T22:06:28.031+05:302010-12-21T22:06:28.031+05:30भगवान इंसान की ख़ूबसूरत कल्पना है...हर युग में आदम...भगवान इंसान की ख़ूबसूरत कल्पना है...हर युग में आदमी ने अपने ही हिसाब से भगवान की व्याख्या की है... अगर कुछ सच है तो वो क़ुदरत है...नेचर...पंचतत्व.. अग्नि, जल, वायु, आकाश, धरती..ये सब मिलकर दुनिया की किसी भी ताक़त से बढ़े हैं, साइंस से बढ़े हैं... असल मायने में क़ुदरत ही सर्वशक्तिमान है..<br /><br />बाकी दुनिया इकॉनॉमिक्स के डिमांड एंड सप्लाई के रूल पर कायम है...अगर लोग बढ़ेंगे, संसाधन घटेंगे तो क़ुदरत भी रूख उसी हिसाब से बदलेगी... जो आज हम सब देख रहे हैं....धरती भी इसी वजह से नष्ट होगी...आख़िर एक दिन ऐसा आएगा जब लेने वाले हाथ तो कई होंगे मगर क़ुदरत के पासे देने के लिए कुछ नहीं होगा...भगवान नहीं असल जो है, वो इंसान है और उसके साथ उसका ज्ञान है..Puneet Bhardwajhttp://www.teer-e-nazar.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-9329969243711353082010-10-22T19:54:28.686+05:302010-10-22T19:54:28.686+05:30अंशुमाला जी,
अपने सुख चैन के लिये लोग दूसरों का सु...अंशुमाला जी,<br />अपने सुख चैन के लिये लोग दूसरों का सुख चैन तक छीन लेते हैं, आपने तो एक पोस्ट ही निकाली है। इसमें कैसा स्पष्टीकरण? वैसे भी आज के समय का मूलमंत्र - टैंशन लेने का नहीं, देने का:)<br />सवाल उठाना कहीं से गलत नहीं मानता, मैं खुद उल्टे सीधे सवाल करता ही रहता हूँ, आपने कम से कम एक ज्वलंत सवाल तो उठाया।<br />पोस्ट भी पढ़ी और सभी कमेंट्स भी, अपने को तो अच्छा ही लगा। हाँ, हो सोचने के लिये आपने कहा, लाख नॉन-प्रैक्टिकल होने के बावजूद ऐसे ख्वाब मैं नहीं देख पाता। आप सोचिये, राम,कृष्ण, गौतम, नानक, यीशु, मोहम्मद जब इस दुनिया को नहीं बदल सके तो हम और आप किस.....। अपने हाथ में है, खुद को बदलना, वो कोशिश हम कर सकते हैं। खैर, लेटेस्ट पोस्ट रैंक एक पर देखना अच्छा लगा, आप कहेंगी कोई फ़र्क नहीं पड़ता, फ़र्क तां पैंदा है जी। हा हा हा<br />उस्ताद जी का इस पोस्ट पर कोई जिक्र नहीं करूंगा, :)संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-15249267115032502452010-10-22T16:38:52.732+05:302010-10-22T16:38:52.732+05:30@संजय जी
लोग अपने सुख चैन के लिए क्या नहीं क...@संजय जी<br /><br /> लोग अपने सुख चैन के लिए क्या नहीं करते है मैंने तो बस एक पोस्ट ही लिखी थी | आप की गैरहाजरी में ब्लॉग जगत में आत्मा , परमात्मा , पुनर्जन्म छाया हुआ था खूब लिखा गया वो भी गूढ़ और क्लिष्ट भाषा में एक लेख को जब तक समझते टिप्पणी देते तब तक दूसरा पोस्ट आ जाता और उन सब पर भारी भारी टिप्पणिया सब जगह सबको खूब पढ़ा पढ़-2 कर दिमाग में इतनी हलचल हो गई और ऐसे सवाल उठने लगे की सुख चैन गायब हो गया जानते है ब्लगिंग बड़ी बुरी चीज है जब तक सब कुछ उगल नहीं देते चैन नहीं मिलता | दूसरो की पोस्ट पर इतना कुछ तो उगलना मुश्किल था सो खुद ही एक पोस्ट लगनी पड़ी ताकि चैन से जी सके | :)<br /><br />मै खुद किसी की आस्था पर सवाल नहीं उठाती हु क्योकि जानती हु की आस्था तर्कों पर नहीं बनते है ( पिछले ४-५ दिनों में कम से कम ६-७ बार यही बात कई जगह लिख चुकी हु ) मैंने सवाल बस इतना उठाया था कि लोग अपनी ही आस्था पर भरोसा क्यों नहीं करते है उसे थोडा और मजबूत करे | <br /><br />@क्या आवश्यक है हमारे लिए ? इनको प्रश्न मानना या इसको उत्तर समझ कर आत्मा जगाना !<br /><br /> ये रतुल जी कि टिप्पणी है असल में मै यही करना चाह रही थी | सोचिये की सभी को भगवान आत्मा सभी पर पूरा विश्वास हो तो दुनिया में सारे बुरे काम ही बंद हो जायेंगे | दुनिया कितनी अच्छी बन जाएगी समस्या दुख रहित |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-22098060674055550612010-10-21T02:09:15.143+05:302010-10-21T02:09:15.143+05:30नमस्ते जी,
पहले कभी नमस्ते करने की जरूरत नहीं समझी...नमस्ते जी,<br />पहले कभी नमस्ते करने की जरूरत नहीं समझी, आज लगा कि पहले नमस्ते करना ठीक रहेगा। बड़े गुस्से में पोस्ट लिखी लगती है।<br />आपकी बताई कहानी, उठाये गये सवाल और दिये गये तर्क सब ठीक हैं। आपने पूछा है इसलिये बता रहे हैं कि हम इन चीजों पर विश्वास करते हैं। इतना जरूर है कि औरों को अपनी राय मानने के लिये मजबूर नहीं करते और ऐसा ही व्यवहार दूसरों से चाहते हैं।<br />इस दुनिया में अगर नकारात्मक प्रवॄत्ति के लोग हैं तो सकारात्मक प्रवृत्ति के लोग भी है, इसीलिये ये दुनिया है, कोई स्वर्ग या नरक नहीं।<br />एक बात तो ये है कि भगवान, आत्मा. अंतरात्मा जैसी चीजों का मतलब सब के लिये एक जैसा नहीं है। ये सच है कि हममें से अधिकांश लोगों ने भगवान को एक हाकिम मान लिया है, जिससे डरते भी हैं, रिश्वत भी चढ़ाते हैं, खुश भी रखना चाहते हैं(मूल में अपना स्वार्थ ही है)।<br />आपने कहा कि आज तक कोई ऐसा नहीं देखा जो भगवान से डरकर गलत काम न करता हो, ये आपका अनुभव है। अंशुमाला जी, मैंने आजतक समुद्र नहीं देखा,आल्प्स पर्वत नहीं देखा और बहुत कुछ नहीं देखा, लेकिन ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है। इसका मतलब ये न समझियेगा कि ये चीजें हैं नहीं।<br />रीढ़विहीन लोगों से तो बीस तीस साल बाद क्या, आज भी ये संसार पटा पढ़ा है।<br />विषय बहुत पेचीदा है और ऊपर विज्ञजन बहुत कुछ कह चुके हैं, हमने अपनी बेसिरपैर की हाँकनी थी, हाँक ली। अब चलते हैं नहीं तो फ़िर पोस्ट का पोट लिखा जायेगा।<br />आपसे असहमति सिर्फ़ दस प्रतिशत है, बाकी नब्बे प्रतिशत आपकी भावनाओं का समर्थन ही करते हैं हम. इतनी बोल्डली नहीं कहना आता बस।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-56564229172576786372010-10-20T08:30:13.022+05:302010-10-20T08:30:13.022+05:30...जो लोगों के गलत काम करने की रफ़्तार है उसे देखते......जो लोगों के गलत काम करने की रफ़्तार है उसे देखते हुए तो लगता है की आगे के बीस तीस साल बाद धरती पर रीड विहीन जीवो की संख्या सबसे ज्यादा होगी |...<br /><br />purntaya sahmat hun. <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-27717251360182510272010-10-19T23:24:32.379+05:302010-10-19T23:24:32.379+05:30@ विचार जी
असल में तो जवाब तो अपने आप को ही द...@ विचार जी<br /><br /> असल में तो जवाब तो अपने आप को ही देना है और वहा कोई चाह कर भी बेईमानी नहीं कर सकता है |<br /><br /><br />@कोरल जी<br /><br /> वैज्ञानिक बात छोडिये ये तो आम बात है पर इसका भी जवाब किसी के पास नहीं है |<br /><br /><br />@ राज भाटिया जी <br /><br /> चलेंगे जरुर पर उस दिन जब वहा जाने के साथ ही वापस आने का भी रास्ता होगा | अभी तो हम दोनों को काफी ब्लोगिंग करनी है |:)<br /><br /><br />@ अभिषेक जी <br /><br /> ये तो हमारे चरित्र पर निर्भर है की हम किसी बात को सकारात्मक लेते है या नकारात्मक | आप को ये पोस्ट नकारात्मक लगती ही जबकि मुझे सकारात्मक लगा रही है | इसे पढ़ कर कम से कम हम अपने विश्वास के बारे में एक बार फिर से गंभीर चिन्न्तन कर सकते है |<br /><br /><br />@ मोनिका जी <br /><br /> बिल्कूल सही कहा धन्यवाद |<br /><br /><br />@ काजल कुमार जी<br /><br /> जैसे की आपने कहा की पहले के शब्द कोष में था ये शब्द अब शायद गायब हो गया है |<br /><br /><br />@ रतुल जी <br />@क्या आवश्यक है हमारे लिए ? इनको प्रश्न मानना या या इसको उत्तर समझ कर आत्मा जगाना|<br /><br /> आप बिल्कूल पोस्ट की मूल बात को समझ गये है | धन्यवादanshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-4799427126339271102010-10-19T23:06:20.344+05:302010-10-19T23:06:20.344+05:30क्या फायदा है उत्तर देने का? जो मानते भी हैं वो कह...क्या फायदा है उत्तर देने का? जो मानते भी हैं वो कहाँ सुनते है अपनी आत्मा की ? जो मानना चाह भी रहे है तो अब उनकी आत्मा ही मर चुकी है..!ऐसे में किस प्रश्न को प्रश्न समझा जाए? क्या आवश्यक है हमारे लिए ? इनको प्रश्न मानना या या इसको उत्तर समझ कर आत्मा जगाना ! सच तो यह है की हारे हुए हैं हम ...और बहला रहे है इन बातो से अपने आप को !!!Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/18040300579084795571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-35657859075447883432010-10-19T22:53:27.478+05:302010-10-19T22:53:27.478+05:30पहले के शब्दकोष के एक शब्द था...सब्र.पहले के शब्दकोष के एक शब्द था...सब्र.Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-11838711542650290182010-10-19T22:51:16.851+05:302010-10-19T22:51:16.851+05:30विचारणीय बात है... आपकी यह बात बहुत अच्छी लगी की ...विचारणीय बात है... आपकी यह बात बहुत अच्छी लगी की गलत काम करने में ईश्वर का भय नहीं और कुछ गलत हो जाए तो सारा कुछ ईश्वर की मर्ज़ी पर ..... इस विषय में भी इन्सान की स्वार्थी प्रवृत्ति ही पता चलती है..... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-30662561910384900632010-10-19T21:25:25.993+05:302010-10-19T21:25:25.993+05:30क्या हमें सिर्फ नकारात्क चिंतन ही करना चाहिए .हर च...क्या हमें सिर्फ नकारात्क चिंतन ही करना चाहिए .हर चीज के दो पक्ष होते है . यहाँ पर तो सिर्फ नकारात्मक चिन्तन कर पोस्ट लिखी गयी है . <br />@अन्सुमाला जी , नकारात्मक तो आप को दिखा पर क्या सकारात्मक पक्ष है ही नही ?<br />आस्तिक हो या नास्तिक सब कुछ चरित्र पर ही निर्भर करता है .अतः ये प्रश्न ही व्यर्थ है की भगवान को मानने वाले ऐसा क्यों करते है .ABHISHEK MISHRAhttps://www.blogger.com/profile/08988588441157737049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-2898935574641574452010-10-19T20:21:12.281+05:302010-10-19T20:21:12.281+05:30अन्शुमालाजी,बहस करने की कोई बात नही चलो दोनो मिल क...अन्शुमालाजी,बहस करने की कोई बात नही चलो दोनो मिल कर चलते हे भगवान के पास, फ़िर दुध का दुध पानी का पानी.....राज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-711666896717655392010-10-19T19:19:37.655+05:302010-10-19T19:19:37.655+05:30बेहतरीन विचारोत्तेजक पोस्ट है ...
मेरे जेहन में भ...बेहतरीन विचारोत्तेजक पोस्ट है ... <br />मेरे जेहन में भी ऐसी ही बातें, ऐसे ही सवाल उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं ... <br />विज्ञान के नियमों से वाकिफ होने की वजह से ऐसी बातें जिनका कोई वैज्ञानिक तथा तार्किक आधार न हो, पर यकीन करना थोडा कठिन है ...Coralhttps://www.blogger.com/profile/18360367288330292186noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-3889740265953668442010-10-19T19:09:37.844+05:302010-10-19T19:09:37.844+05:30अरे भाई अगर इतने खतरनाक सवालों का जवाब देना पड़ा त...अरे भाई अगर इतने खतरनाक सवालों का जवाब देना पड़ा तो मैं तो ब्लॉग्गिंग करना ही छोड़ दूंगा. <br /><br />कुछ आसान सी बात पूछे और कहें अगर हमने अपनी गिरेहबान में झाँक लिया तो हम लोग अपनी नज़रों में ही गिर जायेंगे और भगवान भी उठा नहीं पायेगा....VICHAAR SHOONYAhttps://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-86904705381237047952010-10-19T17:54:18.976+05:302010-10-19T17:54:18.976+05:30@राजन जी
सही कहा ईश्वर के नाम पर मनोवैज्ञान...@राजन जी <br /><br /> सही कहा ईश्वर के नाम पर मनोवैज्ञानिक भय कायम रखने की जरूरत नहीं है ऐसी बातो से केवल अनपढ़ गरीब ही भयभीत होता है कोई और नहीं |<br /><br /><br />@ सैल जी <br /><br />@नास्तिक हो हकिक़त में नास्तिक होते हैं ... पर आज तक मैंने ऐसे आस्तिक नहीं देखा जो सच में आस्तिक हो ...<br /><br /> आप की बात से सहमत हु मै भी यही कहना चाह रही थी |<br /><br /><br />@ महक जी <br /><br /> धन्यवाद <br /><br /> <br /><br />@ सुज्ञ जी <br /><br /> दो तीन दिनों से ब्लॉग जगत में यही ज्ञान गंगा बह रही है सोचा इतना ज्ञान लेने के बाद कुछ अपने विचार भी कह देना चाहिएanshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-10423247035585671852010-10-19T17:32:59.010+05:302010-10-19T17:32:59.010+05:30अंशुमाला जी
चलो इस चर्चा के बहाने आपके सात्विक विच...अंशुमाला जी<br />चलो इस चर्चा के बहाने आपके सात्विक विचारों से तो अवगत हुए।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-23178363095353322302010-10-19T17:25:27.562+05:302010-10-19T17:25:27.562+05:30मै अपने क्या किसी भी धर्म को ख़ारिज नहीं करती हु पर...मै अपने क्या किसी भी धर्म को ख़ारिज नहीं करती हु पर हा मै आँख मूंद कर उसकी हर बात को नहीं मानती हु | और पूरी कोशिश करती हु कि इस मामले में चुप रहू पर जब कोई अपने हिसाब से धर्म की उल जलूल व्याख्या करने लगे अपनी बेमतलब की बात को धर्म से जोड़ने लगे अपनी बात को साबित करने के लिए धर्म और धार्मिक पुस्तकों की अपने हिसाब से व्याख्या करने लगे तो उसका एक हद तक विरोध करती हु |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-87499224944611655982010-10-19T17:18:25.025+05:302010-10-19T17:18:25.025+05:30@सुज्ञ जी
सबसे पहले आप को स्पष्ट कर दू की मैंने...@सुज्ञ जी <br /><br /> सबसे पहले आप को स्पष्ट कर दू की मैंने धर्म या धर्म शास्त्र या भगवान या आत्मा या किसी की श्रद्धा किसी पर सवाल नहीं उठाये है | मेरा मानना है इन चीजो पर विश्वास का तर्क से कोई सम्बन्ध नहीं है ये तर्क के आधार पर नहीं बनती है | मेरा सिर्फ इतना कहना है कि जो लोग ये कहते है कि ये सभी चीजे है और हम पूर्ण रूप से उस पर विश्वास करते है तो <br /><br />१ - लोग गलत काम करते समय भगवान से डरते क्यों नहीं है वह हर जगह है और सब देख रहा है |<br /><br />२- आत्मा नहीं मरती है मै आत्मा को दूसरे रूप में लेती हु हमारे अन्दर कि इंसानियत ही हमारी आत्मा है और सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए दूसरो को मार देने तक का काम करने के बाद भी हम आराम से जीते है तो मै नहीं मानती कि उस व्यक्ति के पास आत्मा नाम की चीज बची होती है |<br />३- पुनर्जन्म में लोगों का विश्वास है सभी कहते है की हमारे कर्म ही इस बात का निर्धारण करेगा की हम अगले जन्म में क्या बनेगे तो क्या समझा जाये की जो लोग गलत कर रहे है पाप कर रहे है ( ऐसा तो सभी कर रहे है ) क्या उन्हें अगले जन्म में रीड विहीन जीव बनने का कोई डर नहीं है यदि नहीं है तो फिर कैसे माने की वो इन चीजो में वास्तव में विश्वास कर रहे है |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-30839679943486865672010-10-19T16:59:13.107+05:302010-10-19T16:59:13.107+05:30अन्शुमालाजी,
दोनो ही धूर्त है
एक वो जो धर्म के न...अन्शुमालाजी,<br />दोनो ही धूर्त है <br /><br />एक वो जो धर्म के नाम धंधा (अपना पूर्वाग्रह) चलाए हुए है।<br /><br />दूसरे वो जो रोज़ी (अपनी विचारधारा) के लिये धर्म से ही इन्कार किये हुए है।<br />धर्म को सीरे से खारिज करने वाले धूर्त,<br />दूसरों की गंदगी कुरेदने वाली यह विचारधारा धर्मशास्त्रों को पूरा कूडा ही मानती है।<br /><br />ईश्वर या धर्म की मान्यता बढे तो, तो इनकी 'रोज़ी' पर लात पडती है।<br /><br />एक मात्र आत्मा है या नहिं प्रश्न पर तो विज्ञान संचार के प्रयास मिट्टी में जा पड़ते हैं।<br />यह'क्रूरता के सहभोजी' अपने स्वादेंद्रिय की तृप्ती के लिये, हिंसक लोगों को आदर देकर, उनके संग मांसाहार में लिप्त हो जाते है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-34126606368154290612010-10-19T16:57:47.493+05:302010-10-19T16:57:47.493+05:30@अंशुमाला जी ,आपकी इस पोस्ट को नमन करने का जी चाहत...@अंशुमाला जी ,आपकी इस पोस्ट को नमन करने का जी चाहता है,बिलकुल हू-ब-हू यही प्रश्न या विचार मेरे मन में भी उठते हैं ,आपकी सभी बातों से सहमत हूँ<br /><br />महकMahakhttps://www.blogger.com/profile/11844015265293418272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-56706106657085937112010-10-19T16:55:26.211+05:302010-10-19T16:55:26.211+05:30@ सुज्ञ जी
@कई प्रश्न हमेशा अनुत्तरित रहते है
...@ सुज्ञ जी <br /><br />@कई प्रश्न हमेशा अनुत्तरित रहते है <br /><br /> सही कहा आपने इस लिए तो इन के होने ना होने पर सवाल नहीं उठाया है सवाल ये है कि आप का इन पर विश्वास कैसा है | क्या आप वास्तव में इन चीजो पर विश्वास करते है या सिर्फ सुविधानुसार मानते है और ख़ारिज कर देते है | मेरे समझ से महा मुर्ख उन्हें कह सकते है जो अपने विश्वास को तो श्रद्धा की श्रेणी में रखते है और दूसरे के विश्वास को अंधश्रद्धा की श्रेणी में<br /><br /> <br /><br />@ majaal ji <br /><br /> मेरा सवाल उन्ही से था जो इसके होने का दावा करते है और इस पर विश्वास करते है | वैसे मैंने ऐसे कई लोगों को देखा है जो सालो से बीमार है बूढ़े हो चुके है जीवन के सुख भोग चुके है फिर भी मरना नहीं चाहते है और जीना चाहते है पता नहीं क्यों भगवान पर विश्वास करते है पर उसके पास जाना नहीं चाहते है | <br /><br /> <br /><br />@ भूसन जी <br /><br /> ये आप और हम कहते है पर इस पर भरोसा करने वाले नहीं |<br /><br /> <br /><br />@ देबू जी <br /><br /> मतलब वही हुआ की उस पर विश्वास करना या ना करना जो फायदे का सौदा है वही ठीक है | <br /><br /> <br /><br />@प्रवीण जी <br /><br />@भगवान के मामले में फिलहाल संशयवादी या अज्ञेयवादी कहलाना चाहूँगा।<br /><br /> नास्तिक से सीधे संशयवादी लगता है की मेरी टिप्पणी जो कल की पोस्ट पर दी थी सही होने जा रही है चीजे बदल रही है | ये बदलाव दूसरो के विचारो के कारण है या स्वं का अनुभव | :)<br /><br />पर इस अंतर्विरोध को कोई मानता नहीं है सब कहते है जी हम को तो पूरा विश्वास है पर अन्दर ही अन्दर खुद भी शंकित रहते है | और ये SCUM OF SOCIETY वाली बात बिलकुल सही है | सामने ही ९ दिन पूजा पंडाल लगा था और रात भर जागरण करने वाले पंडाल में बैठ कर जुआ खेलते थे और बगल में बोतल होती थी पुरे ९ दिन यही होते मैंने देखा |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-17423195149166667062010-10-19T16:51:05.868+05:302010-10-19T16:51:05.868+05:30नास्तिक हो हकिक़त में नास्तिक होते हैं ... पर आज त...नास्तिक हो हकिक़त में नास्तिक होते हैं ... पर आज तक मैंने ऐसे आस्तिक नहीं देखा जो सच में आस्तिक हो ...<br />आत्मा-परमात्मा, भाग्य, पुनर्जन्म ... इत्यादि में विश्वास करने वाले बहुत हैं पर धर्म, भगवान, अल्लाह, GOD, में विश्वास करने वाला कोई नहीं है ...<br />अगर कोई कहता है कि वो विश्वास करता है तो यह एक झूठ है .. जो वो दुसरे से और खुद से बोल रहा है ...Indranil Bhattacharjee ........."सैल"https://www.blogger.com/profile/01082708936301730526noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-60106187086970849502010-10-19T16:49:28.346+05:302010-10-19T16:49:28.346+05:30मैँ आत्मा परमात्मा या पुनर्जन्म पर विश्वास नहीं कर...मैँ आत्मा परमात्मा या पुनर्जन्म पर विश्वास नहीं करता ।और न ये मानता हूँ कि बुरे कर्मों से बचने के लिये आज के समय में ईश्वर के नाम पर मनोवैज्ञानिक भय कायम रखने की जरूरत हैं।बल्कि इसकी वजह से कई दूसरी तरह की समस्याऐं उत्पन्न हो जाती हैं ।मैं धर्म को एक निजी आस्था का मुद्दा मानता हूँ यदि इसके नाम पर हर गलत बात को सही न ठहराया जाए। पर ऐसा होता कहाँ हैं?राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-50641684974462653452010-10-19T16:10:50.298+05:302010-10-19T16:10:50.298+05:30.
.
.
मैंने चैक किया और पाया...
*** आत्मा और पुन....<br />.<br />.<br /><br />मैंने चैक किया और पाया...<br /><br />*** आत्मा और पुनर्जन्म पर तो कतई विश्वास नहीं करता मैं...<br /><br />*** भगवान के मामले में फिलहाल संशयवादी या अज्ञेयवादी कहलाना चाहूँगा।<br /><br /><br />आपने आलेख के शुरू में जो कहानी सुनाई है वह लोगों के अंतर्विरोधों को खुल कर एक्सपोज करती है... वैसे तो कहा जायेगा कि यह धर्म ही है जिसने अनर्थ होने से रोका हुआ है... पर ऊपरवाले पर इतना विश्वास करने वाला वह आदमी खुद कुछ गलत करते हुऐ न जाने कैसे यह मान लेता है... कि इस समय ऊपरवाले का ध्यान कहीं और है...<br /><br />एक बात और, जो ९९% मामलों में आप सत्य पायेंगी... वह यह है कि धर्म से जुड़े किसी सार्वजनिक आयोजन में यदि आप जायें तो आप पायेंगी कि उस आयोजन के अगुवों में ९०% से अधिक वह लोग हैं जिन्हें आप बिना किसी अपराधभाव के बेहिचक SCUM OF SOCIETY कह सकती हैं।<br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-6245998537178314602010-10-19T15:39:21.352+05:302010-10-19T15:39:21.352+05:301-आत्मा नश्वर नहिं, सही कहते है आत्मा अजर-अमर है।
...1-आत्मा नश्वर नहिं, सही कहते है आत्मा अजर-अमर है।<br />2-नष्ट या घात होती है प्राणों की, जो आत्मा से जुडे होते है।<br />3-आत्मा अनंत है,अनंत आत्माएं मोक्ष गई और अनंत जन्म-मृत्यु के चक्र में है।<br />4-एक शरीर के छूटते ही आत्मा दूसरा शरीर धारण कर लेती है।<br />84 लाख योनियां है, और अनंत सुक्षम जीवराशी भी है,अतः जनसंख्या का प्रश्न बेमानी है।<br />5-शुभ आत्माओं का निरंतर पवित्रता विकास होता रहेगा, कर्म-सत्ता यह प्रबंध करती रहेगी। बेहतर गुणवत्ता की कक्षाएं होती है।<br />6-आत्माओं का कोई नामरूप धर्म नहिं होता, वस्तूत: जिसे हम धर्म कह्ते है वह आत्मा का निज-स्वभाव ही है। इसी लिये कोई व्यक्ती हिंसाप्रधान धर्म में जन्म लेकर भी, स्वभावत: अहिंसक हो सकता है। और कोई अहिंसा प्रधान धर्म में जन्म लेकर भी 'क्रूरता का सहभोजी' सम्भव है। अर्थार्त अपने परिवेश से पृथक भी हम देखते है।<br />7- हां, प्रत्येक व्यक्ति से उसकी आत्मा संवाद करती है,'मैं कौन हूं', 'क्या मैं एक आत्मा हूं' आदि प्रश्न भी उस आत्मा के ही होते है।<br />8- चेतना, ज्ञान और दर्शन आत्मा के ही गुण है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-83485088757698367102010-10-19T15:15:31.422+05:302010-10-19T15:15:31.422+05:30भगवान तो है और हर जगह है पर अपने स्वार्थ का पर्दा ...भगवान तो है और हर जगह है पर अपने स्वार्थ का पर्दा आँखों पर इस तरह का पड़ा है की हम को वो दिखाई ही नहीं देता है और हम आराम से अपने सभी अच्छे बुरे काम करते चले जाते है | आप ने सही कहा है कि हम सभी अपनी आत्मा को खुद ही मारते है और रोज मारते है अपने स्वार्थो के लिए | पुनर्जन्म में तो मेरा विश्वास नहीं है |debu jainhttps://www.blogger.com/profile/09208094930199659775noreply@blogger.com