tag:blogger.com,1999:blog-90188268003925739522024-03-19T15:55:35.036+05:30mangopeopleमेरा देश महान सौ में से निन्यानबे बईमानanshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comBlogger371125tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-14080811437019551912024-01-29T16:24:00.000+05:302024-01-29T16:24:02.950+05:30नायक भेदा <p> नायिकाओं के अनेक भेद पढ़े होंगें आज जरा नायको के भेद भी पढ़िये और देखिये की आप किस श्रेणी मे आतें हैं । </p><p>तो अलग अलग लोगों ने नायकों के अलग अलग भेद बतायें हैं । सबसे पहले भरतमुनि के नाट्यशास्त्र के अनुसार चार भेद हैं । </p><p>धीरोद्धत - ऐसा नायक जो वीर, सज्जन, गम्भीर, सुख दुख मे विचलित ना होने वाला , क्षमावान , अहंकारहीन दृढव्रती सर्वगुणसंपन्न उच्च चरित्र वाला हो जैसे की राजा राम । </p><p>तो आगे बढ़े आप मे से कोई ऐसा नही है । </p><p>धीर ललित - ललित शब्द से ही स्पष्ट होगा कि नायक कला प्रेमी होगा । वीर होने के साथ साथ सोलह कलाओं मे निपुण । मृदु स्वभाव वाला गीत संगीत का वो प्रेमी जो स्वयम मे खुश रहता हो जैसे कृष्ण। </p><p>तो खुद को कृष्ण समझने की सोच से बाहर आओं । आप सब उसके हजारवें अंश के आसपास भी ना हो। चलो अब आप आम लोगों की बात करतें हैं । </p><p>धारोदत्त - यह वीर तो होता है लेकिन साथ मे उग्र भी । बलशाली, अहंकारी, ईर्ष्यालु, आत्मप्रसंसक , चंचल प्रवृति वाला जो छल कपट करता हो । </p><p>धीर प्रशान्त - सामान्य गुणों वाला सामान्य आदमी , जो त्यागी और शान्त चित्त वाला हो । </p><p>इसका अलावा भी सरल तरीके के उन्होने तीन भेद बतायें हैं । </p><p>उत्तम- सर्वगुणसंपन्न , विवेकवान गरीबो का रक्षक , गंभीर व्यवहार वाला </p><p>मध्यम- वह जो विज्ञान और संस्कृति दोनो का ज्ञानी हो और लोग, समाज को समझ व्यवहार करे । </p><p>अधम- जिसे बात करने का ढंग आवे ना , कम दिमाग वाला जो बस शारीरिक सुख को महत्व देता हो । </p><p>अग्निपुराण मे नायक के भेद बस श्रृंगार रस का भाव मे अर्थात स्त्री के साथ उसके संबंध के आधार पर किया गया है । </p><p>अनुकूल- सबसे श्रेष्ठ नायक जो पत्नी के अलावा अन्य स्त्री की तरफ आँख उठा कर भी नही देखता । बाकियों से दूर ही रहता है । </p><p>षठ- अपनी पत्नी को ठगने वाला । पत्नी को अपने प्रेम के भ्रम मे रख अन्य स्त्री से भी संबंध रखने वाला ।</p><p>दक्षिण - यह नायक एक दो नही बहुत सारी स्त्रियों से संबंध रखता है। </p><p>धृष्ट - निर्लज्ज नायक दुनिया समाज की परवाह ना करके सबके सामने ही प्रेमालाप करता है । </p><p>अग्नीपुराण मे इसी को प्रतिनायक जेष्ठ मध्य अधम भी कहा गया है । </p><p>राजा भोज ने अपनी अलग अलग पुस्तक मे अलग अलग आधार पर नायको के भेद बतायें हैं । सरस्वतीकंठाभरण मे नाटक के आधार पर नायकों का भेद किया है </p><p>नायक , प्रतिनायक , उपनायक , द्विय नायक । इन सबके चरित्र के आधार पर सात्विक, राजस और तमस का वर्गीकरण किया है । </p><p>श्रृंगारप्रकाश मे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के आधार पर </p><p>धोरोद्वत - धर्म को महत्व देने वाला </p><p>धीर ललित- काम को महत्व देने वाला </p><p>धीरोदत्त - अर्थ ( धन) को महत्व देने वाला </p><p>धीर प्रशान्त- मोक्ष चाहने वाला । </p><p>भानुदत्त ने रसमंजरी मे बिल्कुल अलग वर्गीकरण दिया है । ये भी स्त्रियों से संबंधों के आधार पर है । </p><p>पति - अनुकूल, दक्षिण, षठ , धृष्ठ जो ऊपर चार हैं </p><p>उपपति - वो जो दूसरे नायक की पत्नी अर्थात विवाहित महिला से संबंध रख उप पति बने । इसके दो प्रकार है </p><p>पहला वचन चतुर - जो मीठी मीठी बोल दूसरी स्त्रियों को बर्गला ले ।</p><p>दूसरा क्रिया चतुर- जो अपने काम और "काम" से स्त्रियों को अपना बना ले , अपने प्रेम मे पड़वा ले । </p><p>वैशिक - जो नायक वैश्यानुरक्त हो । </p><p>उन्होने बाद मे प्रोषित नाम के नायक का भी जिक्र किया है । ज्यादातर लेखक इसी भेद को स्वीकार करते हैं । माना जाता है अग्निपुराण ने भी यहीं से नायक भेद लिया है । </p><p>रूप गोस्वामी ने उज्जवलनीलमणि मे कहा है कि भाई नायक तो बस एक ही है और वो हैं कृष्ण। </p><p>तो कृष्ण रूपक नायक को छोड़ पुरूष रूपी गोपियों देख लो की तुम सब किस श्रेणी के नायक हो और किसी स्त्री के जीवन मे नायक हो भी । कही किसी के जीवन के खलनायक तो नही हो । </p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-3731759309611012862024-01-24T13:11:00.005+05:302024-01-24T13:11:54.726+05:30स्त्री द्वेषी समाज <p> अरे उस घर की बेटी से शादी की बात मत चलाइये उस घर मे वैधव्य विधवा होना लिखा है । जब एक पढ़े लिखे समझदार दिल्ली मे केन्द्रीय विभाग मे उँचे पोस्ट पर बैठे रिश्तेदार ने ये कहा तो थोड़ा अजीब लगा। </p><p>वो ऐसे स्त्री पुरुष या किसी तरह का भेदभाव करने वाले रूढ़िवादी सोच के भी नही थें इसलिए उनकी बात और अजीब लगी । मैने पूछा ऐसा क्यों बोल रहें है । </p><p>तो कहतें है उस घर मे चार स्त्रियां रहतीं हैं जिसमे से तीन विधवा हैं । मैने कहा कौन कौन तो बोलते है एक दादी हैं दूसरी मां तीसरी चाची । सब कम आयु मे ही विधवा हुयीं । </p><p>मैने पूछा कोई बुआ और बेटी नही है । तो कहतीं है दो बुआ है एक की शादी यहां एक की वहां हुयी है । बड़ी बेटी की यहां हुयी है ये छोटी बेटी है । इसके एक बड़ा भाई है एक छोटा और चाची को भी एक लड़का ही हैं । </p><p>हमने कहा विधवा लोगों मे कोई घर की बेटी है तो कहतें है नही । तब हमने कहा फिर तो वैधव्य जैसा कुछ है तो घर के बहुओ मे है बेटी मे नही । बेटियां कहा विधवा है घर मे । </p><p>इस हिसाब से तो उस घर मे अपनी बेटी नही ब्याहनी चाहिए क्योंकि उस घर के पुरुषों की आयु छोटी है या उनका रहन सहन ऐसा है लोग मर रहें है या खानदानी बीमारी से मरे जा रहें हैं । बेटियां तो मजे से है तो किसी के बेटे को नुकसान नही होने वाला है उनके बेटियों से । </p><p>फिर ऐसी बात उनके घर की बेटी के बारे मे क्यों फैलाई जा रही है ये तो सही नही है । ये सुन वो भी सोच मे पड़ गयें और बाकि लोगों ने भी कहा हां ये तो ठीक ही बात है । </p><p>फिर हमने पुछा पुरूषो की मौत हुयी कैसे तो बोलतें हैं इस बारे मे जानकारी नही है । हमने कहा अचानक से कैंसर जैसी कोई बिमारी हो गयी , किसी का एक्सीडेंट हो गया जैसा कुछ हुआ तो उसे अकाल मृत्यु कह सकते है । फिर उस घर के लड़को से ब्याह से बचने का भी सोचा जा सकता है ( ऐसा अंधविश्वास पालना )</p><p>लेकिन खानदानी बिमारी है , रहन सहन सही नही है तो इसका तो इलाज हो सकता है और लाइफ स्टाइल मेंटेन कर जल्दी मौत से बचा जा सकता है । तो लड़के भी कोई खराब नही हुए उस घर के। </p><p>लेकिन ये सब सुन लगा कि वाकई दुनिया क्या इतनी ज्यादा स्त्री द्वेषी विचार रखती है कि बेटों की गलती ,मौत को बेटियों पर अपसगुन के रूप मे थोप दिया जाये उन्हे बदनाम कर दिया जाये । </p><p>या ये सब कुछ दुष्ट रिश्तेदारों , जानने वालों की जलन , कुंठा , दुश्मनी का नतीज है जो जानबूझ कर किसी परिवार , स्त्री के प्रति ये सब समाज मे फैलाया जाता है । </p><p>और लोग जैसे आज सोशल मीडिया पर सब कुछ बिना सोचे समझे फारवर्ड करते जातें हैं वैसे ही सदियों से ऐसी बातें किसी से सुनतें हैं खासकर स्त्रियों को लेकर तो उस पर ज्यादा विचार नही करते और उसे सच मान आगे बढ़ा देतें हैं , कह देतें हैं । </p><p>अगली बार कोई किसी स्त्री के बारे मे कुछ कहे तो कही बात ध्यान से सुन एक बार खुद सोचियेगा कि ये सच भी है या नही। फिर कोई राय बनायेगा या किसी को आगे कहियेगा । </p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-53801409279213824402024-01-19T16:25:00.002+05:302024-01-19T16:25:48.474+05:30सही वक्त <p> सही समय पर सही जगह होना कई बार ना केवल आपका जीवन बदल सकता है बल्कि आने वाली पीढ़ी को भी बेहतर जीवन दे सकता है । तमाम संजोग मिल कर जीवन को कुछ का कुछ बना सकतें हैं । </p><p>इतने साल से अपने पचहत्तर साल से ज्यादा के पड़ोसी के घर की दिवार पर टंगें सेना के मैडल और पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी से मैडल लेते फोटो देख रही थी । लेकिन उसके पीछे की पूरी कहानी को सुनने का मौका अब जा कर मिला । </p><p>हमारे पड़ोसी महाराष्ट्र के ही एक बहुत ही गरीब गांव और परिवार से थें । नौवी या दसवीं देने के बाद वो छुट्टियों मे पहली बार मुंबई एक रिश्तेदार के पास आयें । साथ मे गांव के दो और गरीब साथी थें । </p><p>रिश्तेदार के बड़े बेटे के साथ घुमने गेटवे गयें तो देखा वहां सेना भर्ती का कैंप लगा है । वो सन था 1962, चीन से युद्ध छिड़ चुका था । उसके कारण ऐसे सीधी भर्ती सैनिको की हो रही थी । </p><p>रिश्तेदार के बेटे ने कहा चलो हम सब भी ट्राई करते हैं । गांव से आये दो लड़को मे से एक जो बड़ी आयु का था उसने जाने से इंकार कर दिया । बाकि बचे तीन लड़के शारीरिक नाप जोक के लिए चले गयें । नाप जोक मे गांव से आया दूसरा लड़के का भी चयन नही हो पाया । </p><p>इनका और रिश्तेदार के बेटे का हो गया । आगे बढ़ कर जब नाम पता आयु पूछा गया तो रिश्तेदार तो अट्ठारह का था लेकिन ये तो बस सोलह के थें । </p><p>मुझे किस्सा बताते वो बड़े आदर से उस ऑफिसर का नाम ले कहतें है कि उसने कहा शरीर मे दमखम है तुम्हारे उमर अट्ठारह लिख दूं । तो मैने तुरंत ही खुशी खुशी हां कर दिया । </p><p>साथ मे उस ऑफिसर का बहुत धन्यवाद करते दुआ देतें कहतें है कि उसने ये राय दे कर मेरा जीवन बदल दिया । वरना अपने उजाड़ से गांव मे खेती किसानी करता गरीबी का जीवन जी रहा होता आज ।</p><p>फिर आगे परिवार भी उसी अभाव मे जीता जैसे आज भी उनके साथ वाले वो दो लड़के गांव मे अभी भी जी रहें हैं । फक्र से बतातें हैं कि अपने गांव का पहला लड़का था जिसने किसी भी सरकारी नौकरी मे जगह पायी थी । पूरे गांव ने उन्हे कंधे पर उठा लिया था जब सबको उनके चयन का पता चला था । </p><p>उसके बीस साल बाद तक भी कोई गांव से किसी अच्छे काम पर नही लग पाया था । नब्बे के दशक मे आ कर एक दो लड़कों का सरकारी नौकरी लगना शुरू हुआ। आज भी गांव मे बहुत गरीबी है और खेती एकमात्र आजीविका । </p><p>62 और 65 के युद्ध मे तो जाने का मौका उन्हे नही मिला लेकिन 71 के युद्ध मे उनको फ्रंट पर जाने का तार जब मिला तो वो छुट्टी पर गांव मे थे और अगले दिन उनकी शादी थी । </p><p>उन्होनें बिना शादी किये जाने का मन बना लिया था लेकिन रिश्तेदार घर वाले बोले कल सुबह शादी करके फिर जाओ । सुबह शादी किया और पत्नी के चेहरे की बस एक झलक देखी और ड्यूटी के लिए निकल गये । </p><p>मुस्कराते हुए बताने लगे आज जीवित हूँ तो पत्नी के भाग्य से । शायद शादी किये बिना जाता तो मर जाता लेकिन पत्नी के भाग्य मे अच्छा जीवन लिखा था तो मै बच गया । मुझे कुछ हो जाता तो गांव वाले पत्नी को नाम देतें ( दुर्भावना से उसे कोसते , उसे अशुभ मानते)</p><p>दो गोलियां लगी मुझे उस युद्ध मे एक यहां सीने के ऊपर कंधे पर । ये कहते वो साथ ही अपने शर्ट का बटन खोल हम दोनो को कंधे का निशान दिखाने लगें । शायद किसी सैनिक के लिए ऐसे निशान किसी मैडल से बड़े होतें हैं । </p><p>साथ मे गर्व से बताते हैं कि सामने से लगी पर पीठ मे अटक गयी । जैसे कहना चाह रहें हो कि सीने पर गोली खायी थी भागते बचने के प्रयास मे पीठ पर नही । </p><p>दूसरी पैर मे टखने के पास वो निशान भी पैंट को ऊपर कर दिखातें हैं । बोला पूरे टाइम होश मे था अस्पताल आने तक । फिर उधर जा कर बेहोश हुआ तो पता नही कब उठा । जब उठा तब तक गोली निकाल दी थी । </p><p>उसके बाद रिटायर कर दिया गया । पर तब आज के जैसा इतना कुछ सेना से मिलता नही था । बस थोड़ा बहुत ही मिला नाम का । ये कहते वो अफसोस सा करतें हैं पर तुरंत ही खुश हो बोलतें हैं अब तो अच्छा है बहुत कुछ मिलता है । </p><p>बहुत बाद मे कई सालों बाद उन्हे राज्य सरकार की तरफ से किसी स्किम मे कुर्ला बाजार मे एक दुकान दी गयी । लेकिन बुरा समय ऐसा कि कुछ महीन बाद ही मुंबई मे दंगे हो गयें । दिसंबर 1992 के बाद वाले दंगें । </p><p>पूरा बाजार जला दिया गया साथ उनकी दुकान भी जला दी गयी । जलाने वाले हिन्दू ही थें लेकिन इलाका मुस्लमानों का था और जिसे दुकान किराये पर दी थी वो मुसलमान था । </p><p>फिर उसके बाद ना कभी वो बाजार बना दूबारा ना कभी दुकान मिली। आज भी वैसे ही खंडहर बना पड़ा है । कहतें हैं अब मुंबई में सब जगह सब बन रहा है मेरे जीते जी वो भी बन जाये तो छोटी बेटी के नाम कर दूं वो । मर गया तो फिर नही मिलेगा । </p><p>दो बेटियों एक बेटे कि शादी हो गयी है बेटा भी साफ्टवेयर इंजीनियर है । बेटियां भी बैंक मे काम करतीं है लेकिन छोटी बेटी ने अभी तक शादी नही की है । बेटे के अलग होने के बाद वही साथ रहती है । </p><p>बेटे को एक फ्लैट रहने के लिए दे दिया है या ये कहें उसने ले लिया है । इस फ्लैट मे बेटी के साथ रहतें है । एक और फ्लैट किराये पर दिया है । उसका किराया और पेंशन पर उनका गुजारा आराम से होता है । बेटी एक हास्पिटल मे काम करती है वो अपने खर्चे खुद उठा लेती है।</p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-63211695799314005592024-01-09T16:37:00.001+05:302024-01-09T16:37:01.950+05:30असल पहचान का संघर्ष <p> बहुत पहले बंगाल मे रहने वाले वो सब बंगाली थें । उनमे से कुछ ही हिन्दू थे तो कुछ ही मुसलमान थे । बकिया सब तो बंगाली ही थें । </p><p>फिर अंग्रजों ने उन्हें दो भागो मे बाट बंगाली हिन्दू और बंगाली मुसलमान बना दिया । वो गलिमत माने कि बंगाली होने की पहचान नही छीनी गयी । </p><p>लेकिन जब देश आजाद हुआ तो बंगाली के साथ मुसलमान होने के कारण उन्हे पूर्वी पाकिस्तान बना दिया गया । धीरे धीरे उनसे उनकी बंगाली पहचान छीनी जाने लगी । उनकी बोली भाषा , खानपान, रहन सहन , परंपरायें , रीतिरिवाज आदि सब अलग थीं पश्चिम पाकिस्तान से । </p><p>उन पर पाकिस्तानी मुसलमान होना थोपा जाने लगा । तब उन्हे समझ आया की वो बंगाली पहले है और मुसलमान बाद मे । वो अपने बंगाली पहचान के लिए लड़े और जीते । बंगाली पहचान के साथ देश बना और फिर वो बरसो बरस बंगाली ही रहे । </p><p>फिर दुनियां मे कट्टरवाद पनपा , इस्लाम के नाम पर बहुत कुछ दुनिया मे होने लगा । बंगाली के साथ मुसलमान होने पर असर उन तक आने लगा । वो जो सदा ही सिर्फ मुसलमान थें उनके बीच उन्होनें अपना सर उठाना शुरू किया और लोगो को कट्टरता के साथ सिर्फ मुसलमान बनाना शुरू किया । </p><p>और एक बार फिर संघर्ष शुरू हुआ बंगाली और मुस्लिम पहचान को लेकर। उनका समाज देश आज भी कट्टरवादियों कि बढ़ती संख्या से लड़ रहा है । अपनी बंगाली पहचान को बचाने का प्रयास कर रहा है।</p><p> इसी संघर्ष के साथ बंग्लादेश मे चुनाव हुए । वहां पाकिस्तान परस्त बढ़ रही इस्लामिक कट्टरता के साथ साथ चीन की घुसपैठ हमारे लिए एक बढ़ा सरदर्द है और चिन्ता का विषय है और ढकोसलेबाज पश्चिम और अमेरिकन को लोकतंत्र की । </p><p>अब देखेंगें कि भविष्य मे इस त्रिकोणीय मुकाबले मे कौन जीतता है और कौन किसके साथ जाता है ।</p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-72452135440897045942023-12-11T17:57:00.004+05:302023-12-11T17:57:56.925+05:30जालसाजों से सतर्क और सावधान रहें <p>अपने अनुभव , खासकर पैसे के लिए फ्रॉड करने का प्रयास वाले, यहां साझा करना कितना जरूरी और अच्छा है आज की पोस्ट इसी पर है। </p><p>कुछ महिनो पहले एक मित्र ने पोस्ट शेयर करते बताया कि कैसे उनके किराये पर घर देने का विज्ञापन ऑनलाइन देने पर एक स्कैमर ने उन्हे काॅल किया और खुद को सशस्त्र सेना बल का बताते ये कहने लगा कि उसका ट्रांसफर हुआ है अभी। </p><p>उसे तुरंत आते ही परिवार के लिए घर चाहिए। इसलिए वो सीधा पैसे देने को तैयार है । बस उसे अपना पेटीएम का नंबर दे दें । अपना विश्वास बनवाने के लिए वो एक नंबर दे रहा था अपने सीनियर का बोलकर । </p><p>कल बिल्कुल यही मेरे साथ भी हुआ। सुबह ही जिस साइट पर विज्ञापन दिया शाम को उसका नाम लेते एक व्यक्ति का फोन आया । </p><p>सिस्टर आपका विज्ञापन देखा आपका घर मुझे पसंद आया है । मै लेना चाहता हूं। हमने कहा अभी आप कहां रहतें है । इस पर बोलता है जम्मू। हमने कहा इतनी दूर से यहां । </p><p>तो जवाब दिया मै जम्मू मे सशस्त्र बल मे काम करता हूं । उसका इतना बोलना था कि हमे पहले ही पढ़ी हुयी पोस्ट याद आ गयी । समझ आ गया कि फ्राॅडिया है । वो आगे बोलते जा रहा था । </p><p>सिस्टर मेरा ना आपके शहर में ट्रांसफर हो गया है । मेरी पत्नी और एक पांच साल की बेटी है । सिस्टर क्या आप फैमली वाले को घर देंगीं । </p><p>बहुत सालों से अरमान था कि कोई ऐसा स्कैमर हमे फोन करे और हम उसे चरायें कुछ घंटा येड़ा बने रह कर । लेकिन कमबख्त ने फोन बहुत गलत टाइम पर किया था । </p><p>हम घर से बाहर निकल रहें थें बिटिया के जरूरी काम से । टाइम पर पहुंचना था और बकवास करने का टाइम उस समय नही था । </p><p>सो जब वो अपनी बात कह कर चुप हुआ तो आगे की उसकी कहानी हमने खुद ही उसे सुना दी कि अब मेरे हां करने पर तुम मेरा पेटीएम नंबर मांगोगे । </p><p>मुझे विश्वास दिलाने के लिए अपने सीनियर का नंबर दोगे और फोन करके वेरीफिकेशन के लिए बोलोगें । पागलों कितने दिन तक तुम लोग यही सब करते रहोगे । सबको अपने जैसा बेवकूफ समझा है क्या । बंद करो ये सब करना । </p><p>आगे हम कुछ बोलते गरियातें उसने फोन ही काट दिया । अब सोच रहें है ऑनलाइन साइबर सेल मे शिकायत कर दें । सभी लोग शिकायत करेगें नंबर देगें तो शायद पुलिस कोई कार्रवाई भी करे । </p><p>वैसे नंबर ये था उसका 8926061572</p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-88274090373511621152023-12-08T16:09:00.000+05:302023-12-08T16:09:19.598+05:30गर्भनाल से जुड़े बच्चें<p> करीब चार पांच साल पहले की बात है। मुंबई के एक लगभग पचास वर्षीय पति पुलिस स्टेशन मे रिपोर्ट लिखाता है कि दो दिन से उसकी पत्नी घर वापस नही आयी फोन भी ना उठा रही । साथ मे कार भी लेकर गयी है </p><p>दो दिन बाद कार पुलिस को वेस्टन घाट पर खायी की तरफ लुढ़की मिल जाती है । लेकिन उसमे कोई रहता नही । लोग समझें हैं कि या तो महिला खायी मे गिर गयी या फिर बच कर बाहर आयी हो और किसी अस्पताल मे हो । </p><p>पुलिस आसपास के अस्पताल में पता करती है लेकिन कोई नही मिलता । अब पुलिस को पति पर शक हो जाता है और उसका फोन टेप होने लगता है । बस दस दिन बाद ही पुलिस पति को पकड़ लेती हैं क्योंकि उसके फोन पर उसी दिन सुबह उसकी पत्नी का फोन आया था । </p><p>तो माजरा ये था कि चालीस बयालीस की पत्नी का कोई पच्चीस छब्बीस साल के युवक से अफेयर शुरू हो जाता है । वास्तव मे पति पत्नी बेटे के कारण साथ रह रहे थें उनका आपसी रिश्ता बहुत साल पहले ही खत्म हो गया था । </p><p>जब पति को अफेयर के बारे मे पता चला तो उसने पत्नी को लड़के के साथ चले जाने को कहा । लेकिन समस्या थी कि इससे बारहवीं पास कर चुका बेटे के दिल मे और समाज मे माँ की क्या छवी बनेगी। </p><p>फिर दोनो पति पत्नी ने तय किया कि इस तरह पत्नी को मरा साबित कर देगें । वो आराम से लड़के के साथ किसी दूसरे राज्य मे जा कर रहेगी और पति बेटे से कुछ साल संपर्क नही करेगी । </p><p> अब सोचिये इतना सब तय होंने के बाद भी केवल दस ही दिनों मे पत्नी ने पति को फोन क्यों किया होगा । उसने ये पुछने के लिए फोन किया था कि बेटे का इंजिनियरिंग काॅलेज से काॅल लेटर आया था पति एडमिशन कराना भूल तो नही गया है ना । </p><p>मैने ये खबर पढ़ी तो मुझे बहुत हँसी आयी । मैने कहा कुछ पिता और पति घर से बाहर काम पर जाते ही भुल जातें की मेरे बीबी बच्चे भी हैं । कुछ दोस्तो के साथ गोवा के चार दिन के टूर पर भूल जातें हैं की बाल बच्चेदार हैं । थाईलैंड घुमने गयें अधेड़ तो अपनी ऊमर भूल जाते हैं । </p><p> लेकिन एक महिला शायद दुनियां की सब चीज छोड़ दे भूल जायें लेकिन अपने बच्चो की फिक्र करना नही छोड़ सकती उसे भूल नही सकती । भले उसे कल्पनाओं से परे की चीज मिल गयी हों सुखी जीवन मिल गया हो ।</p><p>अब सुन रहीं हूं पाकिस्तान गयीं अंजु अपने बच्चो को लेने वापस आयीं हैं । इसके पहले पाकिस्तान की सीमा ने ज्यादा समझदारी दिखायी थी । जब बिना बच्चों के नेपाल आयीं तब भारत नही आयीं । वापस पाकिस्तान जा कर अपने बच्चों को लेकर भारत आयीं । </p><p>सीमा को पता था कि बच्चो को छोड़ा तो उनसे कभी मिल ना पायेगीं । अंजु ये गलतीं कर चुकि अब उनके बच्चे उन्हे ना मिलने वाले कभी भी। अब बाकि जीवन उन्हे इस दुख के साथ ही जीना होगा । </p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-21383172159385981762023-12-07T16:01:00.005+05:302023-12-07T16:04:14.676+05:30तीसरी कसम <p> </p><p>केला बेचती ललीता पवार और उसे खरीदते राजकपूर मे मोल चाल करते हुज्जत चल रही है । ललीता पवार कहतीं है दो आने मे तीन केले दूंगी और राजकपूर कहतें है तीन आने मे दो केले लूंगा । </p><p>थोड़ी देर बहस करने के बाद ललीता पवार को समझ आता हैं कि सामने वाला तो उनके फायदे की बात बोल रहा है । जीवन मे एकबार हम भी ललीता पवार वाली गलती कर चुकें हैं । </p><p>बनारस से कजन की शादी के अगले दिन ट्रेन से मुंबई लौट रहें थें । साथ मे कोई तीन चार साल को बीटिया भी थीं । हमारी मिडिल बर्थ थी तो तय था कि दिन मे तो सीट शायद ही खुले । </p><p>नीचे के बर्थ वाले आये नही थें हम शादी के जागे बैठे बैठे उंघ रहें थे बिटिया मोबाइल मे व्यस्त थीं । उनके जागते हम सो भी नही सकते थे और फिर पता नही कब नीचे के बर्थ वाला आ जाये । </p><p>कुछ घन्टो बाद एक आदमी करीब छ फिट का अपने छ सात साल के बच्चे के साथ सीट पर आया और आते ही बोला सीट खाली किजिए।</p><p> हमने कहा दिन का समय है हमारी मीडिल बर्थ है तो लिजिए हम किनारे हो जाते है आप बैठिये । तो कहता है आप पूरी सीट खाली किजिए पूरी सीट हमारी है । मेरे बेटे को सोना है । </p><p>इतना छोटा सा उसका बच्चा था हमने कहा हम एकदम किनारे बैठ जातें है आपका बच्चा आराम से एक तरफ सो सकता है । इस पर वो एकदम ही बत्तमीजी पर उतर आया और तेज आवाज मे बोलने लगा। </p><p>बोला देखने मे आप तो पढ़ी लिखी लग रही है आपको समझ नही आ रहा है कि सीट मेरी है । मै बच्चे को सुलाने जा रहा हूं उसके पैर से आपको चोट लगेगा तो मै नही जानता । </p><p>हमे भी गुस्सा आने लगा लेकिन अपनी बिटिया को भी देखा तो वो जरा सा परेशान हो रहीं थी इस बहस से । </p><p>फिर हम खुद भी जानते थें कि ट्रेन मे ऐसे कभी भी किसी से बहस भी नही करनी चाहिए। पता नही सामने कौन किस तरह का है । लेकिन अब करूं भी क्या । बिटिया को लेकर मीडिल बर्थ पर बैठना एक मुश्किल काम था । </p><p>बस वही पल था जब बिना मैन्टोस खाये दिमाग की बत्ती जली । हमने कहा एक मीनट ये हम का फालतू का बहस कर रहें हैं इस बन्दे से ये तो हमारे फायदे की बात कर रहा है । </p><p>हमे इस समय मीडिल बर्थ पर बैठना नही है हम तो आराम से उस पर सो सकते हैं । नीचे के बर्थ पर तो इसलिए नही सो रहें थें कि बिटिया कहीं उतर कर कहीं चली ना जायें । </p><p> हम तो तीन रात के जगे उंघ रहे थें हमे तो घंटो की नींद ही चाहिए और मिडिल बर्थ से तो बिटिया के कहीं उतर के जाने का सवाल ही नही है । तो हम घंटो बेखटक सो सकते है । </p><p>फिर हमने धाड़ से बर्थ खोला चादर बिछाया और सो गयें । एक डेढ़ घंटा बिटिया मोबाइल पर विडियो गेम खेलने के बाद , शादी की थकीं वो भी थीं तो वो भी सो गयी । </p><p>कोई तीन चार बजे के सोये शाम को सात बजे हम उठें तो वो और उनका बच्चा दोनो जाग रहे थें । असल मे उनका बच्चा सोया ही नही। </p><p>बीच बीच मे जितनी बार भी आधी अधूरी आँख खुली तो हमे सुनायी दे रहा था कि वो बैठे बैठे कहानी सुना सुना बच्चे को सुलाने की कोशिश कर रहें थें । लेकिन छ सात साल का लड़का ट्रेन मे आ कर कहीं सोने वाला है । वो सोया ही नही । </p><p>अब आप अंदाजा लगाइये छ फिट का आदमी नीचे के बर्थ मे किस तरह झूक कर इतने घंटे बैठा होगा । क्योकि बच्चा तो पापा बिस्किट, पापा पानी , पापा सूसू किया पड़ा था तो वो लेट सकते नही थें उसके साथ। </p><p>सात बजे हमारी जैसे ही आँख खुली थोड़ी देर बाद वो खड़े हुए हमसे नजरे मिली । बस मुंह खोलने ही वालें थें कि हम पलट कर दूसरी तरफ चेहरा कर फिर जानबूझ कर सो गये । </p><p>उसके बाद साढें आठ के करीब नींद खुली । हमे जागता देख तपाक से बोलें कि आप चाहें तो बर्थ बंद करके नीचे आ जायें । हमने ना मे सर हिला दिया । </p><p>अब वो हमसे बहस भी कर चुकें थें और तब हमारी बिटिया भी सो रही थीं । तो हमसे रिक्वेस्ट करने तक का मुंह ना था उनका । </p><p> सबसे मजेदार बात ये थीं कि पूरे बोगी मे सब घोड़ा बेच मुर्दों की तरह चादर डाल सो रहें थें । क्योंकि सब शादी से ही लौट रहें थे सबकी मेंहदी आलता यही बता रहा था । </p><p>एक भी सीट खाली नही थी कि वो बैठ सकें । बच्चा उनका बैठा था और वो ठीक से बैठ भी नही पा रहे थें । कभी खड़े होते कभी उकता कर बाहर चले जाते । हम लेटे लेटे मस्त अपना मोबाइल देख रहें थें ।</p><p>साढें नौ बजे हमारी बिटिया जागी बोली मम्मी कुछ खाने को दो । वो फट से खड़े हो गये । सोचा कि अब तो हम नीचे उतरेगें और सीट बंद करेगें । </p><p>वहीं ऊपर टंगें हमारे झोला से हमने बिस्किट केक और चिप्स निकाला और आराम से मोबाइल देखते खाने लगा नीचे उतरे ही नही । अब उनको पता चल गया था कि कितनी दुष्ट महिला से उन्होने फालतू की बहसबाजी की थी । </p><p>यही बात वो रिक्वेस्ट मे कहतें या साइड मे अपने बच्चे को सुला देतें तो हम से बाद मे सीट खोल नीचे आने को भी कह सकतें थें ताकि वो आराम से बैठ सकें । लेकिन बहस और खराब व्यवहार से हमारे अंदर के रावण के दर्शन कर लिए उन्होने । </p><p>करीब साढ़े दस बजे रात को उनका स्टेशन आया और वो उतरने की तैयारी करने लगा तो हम बड़े मजे से उनके सामने नीचे ऊतरे सीट नीचे किया और बिटिया को बोला मजा आया ना बाबू । अब हम लोग आराम से नीचे बैठेगें चलो हमारी नींद भी पूरी हो गयी । </p><p>उसी दिन हमने तीसरी कसम खायी कि आज के बाद कभी किसी से फालतू की हुज्जत नही करेगें । पहले ध्यान से सुनेंगें कि सामने वाला क्या कह रहा है । कहीं हमारे ही फायदे की बात तो ना कह रहा है । </p><p>सामने वाला दो आने मे तीन केले लेने की जगह तीन आने मे दो ही केला लेना चाहता है तो यही सही । </p><p>#तीसरीकसम </p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-3994083972213829852023-11-27T11:50:00.002+05:302023-11-27T11:50:50.521+05:30इस मांसाहार से कैसे बचें <p> हैल्लो फ्रेंडस दुख के साथ बताने पड़ रहा है कि आज से खुद को शाकाहारी होने की लिस्ट से बाहर निकाल रहें हैं 😔</p><p>बहुत साल पहले एक दम ताजा बढ़ियां दिख रहा टमाटर काटें तो अंदर ढोले बिलबिला रहें थें । तब का दिन है और आज का टमाटर चाहे उबालना हो पकाना भूनना बिना चार टुकड़ा काटे, देखे गैस पर ना चढ़ातें । </p><p>कल टमाटर काटे तो देखा बस एक काला सा बीज था अंदर । वो हिस्सा काट कर फेक दिया । फिर लगा चश्मा लगा कर एक बार देखते है सारे बीज को हटा । टमाटर के सारे बीज हटाया तो अंदर मेहीन मेहीन सफेद वाले किड़े के बच्चे । </p><p>इतने मेहीन थें कि रेंगते नही तो चश्मे के बाद भी देखना संभव ना था । ये देखते पूरे शरीर के रोयें गिनगिना गया । लगा बीज को हटा कर तो टमाटर कभी चेक ही ना किया अब तक कितनो को खा चुके होगें। </p><p>जन्मदिन पर बिटिया मेरी लिए कुछ खास बना रहीं थीं बकायदा मैदा डाल कर बनाया । अगले दिन वही नया खरीद कर लाया मैदा हमने थाली मे पलटा तो उसमे भी ढोले । </p><p>ये सोच कि कल ही इस मैदो को खाया है माँ बेटी को तो उलटी आने लगी । एक बार तो सोचे जा कर बनियें का खून कर देतें है ऐसा मैदा देने के लिए। फिर लगा दिवाली , मैच के बीच कहां कोर्ट कचहरी के चक्कर मे फसेंगें तो जाने देतें हैं । </p><p>वैसे बचपन मे एक बार चीटी का स्वाद भी ले चुकें है । हमारे यहां तीज पर गुजिया बनता था कंडाल भर। हफ्तो उसे खाया जाता । जब कोई बच्चा लेते समय ढक्कन ठीक से बंद करना भूल जाता तो चिटियों की पार्टी हो जाती । </p><p>चिटियां एक छोटा छेद कर गुजिया के अंदर घुस जाती और बाहर से पता ही ना चलता । हमने गुजिया निकाल कर खाया और अचानक से कुछ तेज खट्टा सा स्वाद आया । </p><p>हमने जैसे ही ये बात सबको बतायी दोनो दादा लोग हमको चिढ़ा चिढ़ा बताने लगे वो खट्टी चीज चीटी थी । हमने गुजिया फोड़ी और उसमे से दो तीन जिन्दा चिटियां निकल कर भागी । </p><p>गुजिया हम तुरंत ही प्लेट मे वापस रख दिये । जिसे झाड़ फूक छोटका दादा खा गये । तब का दिन है और आज का गुजिया देखते हमे खट्टी चीटी का स्वाद मुंह मे आ जाता है और तीसरे दिन के बाद उसको ना खातें । </p><p>अब हाल मे हुए एक के बाद एक हुए घटना से लग रहा है कि अब क्या ही अपने आपको शाकाहारी कहें 🙄</p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-82024814191821039152023-11-18T13:50:00.003+05:302023-11-18T13:50:59.895+05:30जस्ट शट अप<p> </p><p>विश्व कप के अपने पहले ही मैच मे पांच विकेट लेने के बाद जब मोहम्मद शमी प्रेस कांप्रेंस मे आयें तो एक पत्रकार ने पूछा की पिछले चार मैच मे आपको टीम मे नही लिया गया था तब आपको कैसा लग रहा था । </p><p>शमी बोले अच्छा लग रहा था क्योंकि अपनी टीम जीत रही थी । चाहे मै टीम मे था या नही था टीम जीत रही थी और अपनी टीम को जीतते देखना अच्छा ही लगता है । </p><p>तीन मैच खेलने और चौदह विकेट लेने के बाद एक बार फिर मैच के बाद कमेंटेटर पूछने लगे कि एक चार सौ विकेट ( टेस्ट वनडे मिला कर ) लेने वाला बेंच पर बैठा था चार मैचो तक तो क्या सोच रहें थें । </p><p>बोले मेरे साथ छ सौ विकेट लेने वाला ( अश्विन) भी बेंच पर बैठा था । मुझे लेने के लिए टीम से किसी छ सौ विकेट लेने वाले को निकाला जाता तब मेरा नंबर आता । इस समय भारत के पास प्रतिभान खिलाड़ियों की कमी नही है । तो किसी ना किसी बड़े खिलाड़ी को बेंच पर तो बैठना ही पड़ेगा । </p><p>अफसोस की बात है कि शमी के उन फर्जी फैन और खुद को फैन होने का दावा करने वालों को समझ नही आ रही हैं जो खुद शमी ने पहले ही कह दी है । </p><p>हर मैच के बाद मुंह उठाये चले आतें हैं कि पहले चार मैच मे क्यों नही लिया । तुम लोग अपना सड़ा सा मुँह बंद क्यों नही कर लेते । </p><p><br /></p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-25062077398077264892023-11-17T19:22:00.002+05:302023-11-17T19:22:13.561+05:30क्रिकेट की गाॅसिप सोशल मीडिया वाली <p> फिल्मी गाॅसिप बहुत सुना होगा आज क्रिकेट की गाॅसिप सुनाती हूँ । </p><p>खिलाड़ियों के चौके छक्को या आउट करने पर स्टैंड मे बैठी उनकी पत्नियों को दिखाना लाज़मी है । शुभमन के चौके छक्के पर सारा को दिखाना भी एक बार समझ आता है । लेकिन श्रेयश अय्यर के शाॅट पर स्टैंड मे बैठी धनश्री को दिखाना , कुछ ज्यादा गाॅसिप हो गया । </p><p>जिन्हे नही पता है उनके लिए धनश्री अपने चहल की पत्नी है । वो एक अच्छी डांसर है और यूट्यूब आदि पर बहुत प्रसिद्ध भी । ये प्रसिद्धी चहल से मिलने से पहले से उनके पास है । वो चहल और कई दूसरे खिलाड़ियों के साथ भी डांस विडियों बनाती रहतीं हैं । </p><p>लेकिन सोशल मीडिया वाले छपरियों की बाई आँख उस दिन फड़कने लगी जिस दिन उन्होने अय्यर के साथ अपना डांस विडियो जारी किया क्योंकि उसमे साथ मे चहल नही थे । बाकि खिलाड़ियों के साथ विडियों बनाते चहल अक्सर साथ होते थें । </p><p>कुछ ही दिनो बाद धनश्री ने अपनी सहेलियों के साथ एक सेल्फी पोस्ट की । वो किसी के घर के अंदर की थी और उस फोटो मे पीछे किनारे पर अय्यर भी जाते हुए दिख रहें थें । अब तो छपरियों की दोनो आंख फड़कने लगी कि अय्यर वहां क्या कर रहें हैं । </p><p>दिनेश कार्तिक और उनकी पहली पत्नी का किस्सा पहले से ही वायरल हो चुका था और वो सबके दिमाग मे था । लोग इन दोनो को लेकर चटर पटर कर कुछ कुछ पकाने लगें । </p><p>लेकिन इसके बाद हुआ उससे बड़ी चीज । धनश्री ने अपनी खिड़की से बाहर सामने कि बिल्डिंग की एक फोटो पोस्ट की । कुछ ही देर बाद अय्यर ने भी उसी तरह की मिलती जुलती फोटो पोस्ट कर दी । </p><p>इसके बाद तो भाई साहब भुचाल आ गया सोशल मीडिया पर । ठुकरा के मेरा प्यार अंजाम देखेगी , मुझे छोड़ कर जो तुम जाओगें , अच्छा सिला दिया तुने मेरे प्यार का टाइप मीम सीम बनने लगे तीनो को लेकर । </p><p>अपनी बहन पत्नी बेटी को किसी और पुरूष से मुस्करा कर बात करना भी भी बर्दास्त ना करने वाले समाज से उम्मीद भी क्या कर सकते हैं । </p><p>खैर असल बात ये थी कि धनश्री और अय्यर की बहन सहेलियां हैं और दोनो का एक दूसरे के घर आना जाना भी । तो धनश्री अय्यर को दोनो तरफ से जानती हैं ।</p><p> घर की किसी फोटो मे अय्यर का आ जाना या साथ मे डांस विडियो बनाना एक सामान्य बात है । बाकि बिल्डिंग वाली फोटो के समय अय्यर देश मे ही नही थें । </p><p>ये सब तो सोशल मीडिया की पागलपंथी थी उस पर क्या ही बोलना। लेकिन दो मैचों के दौरान धनश्री चहल के साथ मैच देखने आयीं थी और अय्यर के चौके छक्को पर कैमरामैन उन्हे दिखा रहा था ।जिसमे कल का भी मैच था । मतलब कुछ भी । </p><p>पिछले मैच के बाद एक अखबार की हेडलाइन थी कि श्रेयस के इतने लंबे छक्के से डर कर भागीं धनश्री । असल मे उसका छक्का स्टेडियम की छत से टकरा कर वहां गिरा जहां सभी खिलाडियों की पत्नियां बैठी थीं । उसमे रोहित की पत्नी भी थीं लेकिन नाम धनश्री का लिखा गया । </p><p>अभी कल कोई कमेंटेटर या कोई पत्रकार कोई बड़ा नाम था जिसने कहां हां हमे पता है कि श्रेयश एक बहुत अच्छे डांसर है । </p><p>बात कहां की कहां पहुचते जा रही है । उम्मीद है तीनो समझदार हैं और ये सब सम्भाल लेगें । छपरियों को कुछ नया मिल जायेगा वो ये सब भूल उस तरफ मुड़ जायेगें । </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p> </p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-84214802649376080632023-10-30T18:53:00.002+05:302023-10-30T18:53:59.085+05:30सत्तर घंटे काम - कम या ज्यादा <div><br /></div><div>1- ज्यादा समय नही हुआ जब आईटी कंपनियों का टाॅप मैनेजमेंट इस बात की शिकायत कर रहा था कि उसके यहां काम करने वाले ऑफिस से जाने के बाद और वीकेंड पर कहीं और भी काम कर रहें है जो नैतिक रूप से सही नही है।</div><div><br /></div><div>तब लोग उन पर भड़क गयें कि ऑफिस के बाद हम कही और काम करे इससे आपको क्या । हमे ज्यादा पैसा कमाने का मौका मिल रहा है तो आपको क्या । </div><div><br /></div><div>अब वही जनता अब हफ्ते के सत्तर घंटे काम करके अपनी प्रोडक्टीविटि बढ़ाने ग्रोथ बढ़ाने की बात पर भड़का हुआ है । हमे लगा लोग पैसा बढ़ाने की बात करेगें पिछली बार की तरह पर लोग इस बार कह रहें हैं कि हम काम क्यों करे इतना देर । </div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>2- हम बिजनेस वाले परिवार से आते है । हमने तो बिना छुट्टी ,संडे ,होली , दिवाली अपने घर या बोले तो हर बिजनेस , दुकान वाले को इससे भी ज्यादा काम करते हमेशा देखा है और देख रहें है ।</div><div><br /></div><div> इसमे तो कुछ भी अनोखा और नया नही हैं । सब मान कर चलतें हैं ज्यादा पैसे कमाने के लिए अपने मन की करने के लिए इतना काम और मेहनत तो करना ही पड़ेगा । कभी इसके लिए शिकायत करते किसी को नही देखा है । </div><div><br /></div><div>3-हर नौकरीपेशा महिला सालों साल से ऑफिस घर बच्चे की तीन तीन फुल टाइम जिम्मेदारियां संभालते इससे कहीं ज्यादा समय काम करते बिताती है । कभी कोई उसकी तरफ देखता तक नही कोई बवाल नही होता कोई सवाल नही करता ।</div><div><br /></div><div>और आज वही नौकरी पेशा , घर के अंदर आँखे बंद किया पुरूष सिर्फ बात कहने भर से ऐसे भड़क गयें हैं कि जैसे कोई ऐसी बात कह दी गयी हो जो इस धरा पर हो ही नही रहा था । </div><div><br /></div><div>4- वो किस्सा सुना है जब आदमी भीखारी से कहता है कि भाई इसकी जगह काम करो तो ज्यादा पैसा कमा पाओगे । एक घर गाडिय़ा, इज्जत होगी , परिवार और तुम खुश होगे । तो भीखारी कहता है तो खुश होने के लिए काम करने की क्या जरुरत है मै तो ऐसे भी खुश हूँ। </div><div><br /></div><div>अपने गांव छोटे शहरो और आसपास के उन बहुत सारे लोगों को याद किजिए जो आपसे बहुत पीछे छुट गयें और आप अपनी मेहनत के बल पर उनसे कितना आगे बढ़ गयें । वो लोग जिनसे आप कहतें रहें कि भाई कुछ मेहनत कर लो , पढ़ लो , दिमाग लगा लो , ढंग का काम कर ले और वो आपकी बात अनसुना कर कहते रहें उनके लिए उतना ही बहुत है । </div><div><br /></div><div>किस तरह देखते हैं आप उनका और खुद को , अपने और उनके जीवन का अंतर समझ आ रहा है । जब वो कहतें है कि वो अपनी स्थिति से खुश हैं तो आपको वो सच लगता है । </div><div><br /></div><div>5- जितना मुझे समझ आया युवाओं को प्रोत्साहित किया गया है कि बस पहली सफलता के बाद वही रूक मत जाओ । युवा हो जोश है यही समय है और मेहनत करों और अपनी ग्रोथ को अभी ही तेजी से बढ़ा लो । </div><div><br /></div><div>ये प्रोत्साहन भी ऐसे व्यक्तित्व से है जिसने खुद ये करके दिखाया हैं । लेकिन अंकिल जी लोग भड़क गये हैं । भाई आप काहें अपना बीपी बढ़ा रहें हैं ऑफिस हाॅवर बढ़ाने की बात नही हुयी है । </div><div><br /></div><div>6- बहुत से युवा बड़े शहरों मे काम करने जातें हैं । कुछ का सपना कुछ साल की नौकरी से पैसा जुटा आगे पढ़ाई करने का , कुछ को अपने खर्च के बाद पैसा घर भी भेजना होता है । कुछ को अपना लोन भी चुकाना है ,कुछ को आईफोन जैसी विलासितापूर्ण जीवन जीना है । </div><div><br /></div><div> बड़े शहरों मे ना उनका कोई अपना होता है ना ऑफिस के बाद कुछ करने को उन सबको कहूंगी कि पैसे की बात करो पैसे की । काम सत्तर कर लेगें घंटे के हिसाब से पेमेंट भी करो । </div><div><br /></div><div>बाकि बांतें और भी बहुत है पर अभी ही बहुत कह दिया है तो बस करतें हैं । </div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-78194546056835408852023-10-17T12:31:00.002+05:302023-10-17T12:31:20.468+05:30रिश्ते और उसके सम्बोधन <p> मुंबई आयी तो ससुराल की एक मजेदार बात पता चली कि मेरे चाचा ससुर के बच्चे अपने पापा को चाचा कहतें हैं । शुरू मे उन लोगों से बात करते बहुत कन्फ्यूजन होता था । लगा गांव से चाचा आयें हैं उनकी बात हो रही है । </p><p>बाद मे पता चला मेरे ससुर बड़े थे उनके बड़े बच्चे चाचा कहते उन्हे देख चाचा के बच्चे भी उन्हे चाचा ही कहने लगें । </p><p>ऐसी ही बनारस मे मेरी एक मित्र अपनी मम्मी को बाजी कहतीं थीं । बचपन से वो नानी के घर रहतीं थीं । उनकी मम्मी सबसे बड़ी, सात छोटे भाई बहन वो सब उन्हे बाजी बुलातें मेरी दोस्त भी वही सीख गयी और उन्हे किसी ने मना भी नही किया । </p><p>हम लोग तो दो तीन सालों तक यही समझते रहें कि वो अपनी बड़ी बहन की बात करतीं रही थीं । तब लगता वाह इसकी बड़ी बहन तो बहुत अच्छी है इसके सारे काम करती है । </p><p>इसी तरह हमारे बचपन मे एक किरायेदार रहते थी उनके बच्चे उन्हे बहु बुलातें थे। शुरू मे लगा कि शायद इनके गांव इलाके मे ऐसा बुलाया जाता होगा । </p><p>फिर एक दिन जब गाँव से उनके ससुर आयें वो भी बहु कहने लगे उन्हे तब पता चला कि उनकी तरफ कुछ ऐसा पुकारा नही जाता । </p><p>वास्तव मे उनके बड़े संयुक्त परिवार मे वो सबसे छोटी बहु थीं । पूरा घर ही उन्हे बहु कहता था तो जेठ जेठानी के बच्चो से लेकर उनके अपने बच्चे भी उन्हें बहु ही पुकारने लगें । </p><p>मेरी नानी मेरे सबसे छोटी मौसी के दोनो बेटो पर बहुत गुस्सा करतीं थीं क्योंकि दोनो अपने दादाजी को नाना बुलातें थें । </p><p>असल मे उन दोनो से बड़ी उनकी एक बुआ की बेटी थी जो उनके साथ रहती थी । वो नाना जी बुलाती तो उन दोनो ने भी सीख लिया । </p><p>जब छोटी मौसी की शादी हुयी थी तो नाना गुजर चुके थे । इसलिए नानी गुस्सा करती कि अपने दादा को नाना बोल कर इस उमर मे मेरा रिश्ता उनसे खराब कर रहे हो 😂😂</p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-4001885874711959662023-10-09T17:08:00.002+05:302023-10-09T17:08:40.540+05:30सर्वे और तथ्य <p> किसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान के किये सर्वे तकनीकि रूप से कितने गलत हो सकते है वो इस सर्वे को देख कर समझा जा सकता है । </p><p>हाल मे ही एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान ने अपने सर्वे मे बताया कि स्कूली शिक्षा के स्तर मे भारत सबसे नीचे से दूसरे पायदान पर है । उसके अनुसार भारत के ग्रामीण इलाके के दूसरी तीसरी कक्षा के छात्र ठीक से किताब मे लिखा पढ़ नही पा रहे थे और दो और दो चार जैसे जोड़ घटाना भी नही कर पा रहे थें । </p><p>ये खबर पढ पर ज्यादातर शहरी भारतीय भी इससे सहमत हो जायेंगें और सरकारी शिक्षा के स्तर को कोसने लगेंगे कि हमारे बच्चे तो दूसरी तीसरी तक फर्राटेदार किताबे पढ़तें है । गणित मे कहीं आगे के प्रश्न हल करने लगते हैं ये बच्चे कैसे नही कर पा रहे हैं । </p><p>पर ज्यादातर लोग इस बात को भूल जाते हैं कि शहरी मध्यम और उच्च वर्गीय बच्चा दो से ढाई साल की आयु मे प्लेग्रूप फिर नर्सरी , एलकेजी , यूकेजी के तीन साल के बाद पहली फिर दूसरी तीसरी कक्षा मे जाता है । </p><p>दूसरी से तीसरी कक्षा तक उसकी स्कूलिंग के पांच से छः साल हो चुके होते हैं । प्लेग्रूप मे वो अक्षरो को बोलना , नर्सरी मे पढ़ना लिखना उसके बाद शब्दो को जोड़ कर पढ़ना आदि सीख लेता है । तब पांच छः साल बाद फर्राटेदार रिडिंग करता है । </p><p>जबकि सरकारी स्कूल जाने वाले बच्चे खासकर ग्रामीण इलाके के बच्चे छः से सात साल की आयु मे पहली बार स्कूल जाते है पहली क्लास मे जहां उन्हे अक्षर ज्ञान दिया जाता है । </p><p>अब आप सोचिये पहली क्लास मे अक्षर और अंक बोलना सिखने वाला बच्चा दूसरी क्लास या तीसरी मे भी धाराप्रवाह पढ़ कैसे सकता है । </p><p>पांच से छः साल स्कूलिंग किये बच्चो का मुकाबला क्या दो या तीन साल स्कूल गये बच्चो से किया जा सकता है । उसकी भी पांच या छः साल की स्कूलिंग हो जाये फिर उसके स्तर को देखा जाना चाहिए। </p><p><br /></p><p>ये ठीक है कि आज भी सरकारी खासकर ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों मे पढाई का स्तर ठीक नही है । अध्यापक छात्र की संख्या कम , वो अनियमित है ,अध्यापको का ठीक से प्रशिक्षित ना होना , बीच मे स्कूल छोड़ देना जैसी हजारो समस्याएं है । लेकिन वो दूसरा विषय और समस्या है । </p><p>शहरों के सरकारी स्कूल की स्थिति इतनी भी खराब नही है । हमारे समय के ना जाने कितने लोग सरकारी स्कूलों से पढ़ कर ही आये हैं । बनारस जैसे शहर मे स्कूल, अध्यापक, पढाई सब अच्छे थे उस जमाने मे भी । आज मुंबई जैसे बड़े शहर मे तो सरकारी स्कूलों मे कहीं कहीं क्लास मे प्रोजेक्टर आदि भी लगे हैं। दिल्ली मे भी स्कूल अच्छी हालत मे हैं ।</p><p>ऐसे सर्वे आदि मे यदि गलत जगह या इरादे के साथ से सैंपल लिया जायेगा तो ऐसे सर्वे कभी सही नही हो सकते हैं । </p><p>ज्यादा समय की बात नही है जब अपना पड़ोसी पाकिस्तान एक सर्वे के अनुसार हैप्पीनेस इंडेक्स मे हमसे ऊपर था और पेट्रोल के दाम हमसे कम । पर आज उसकी स्थिति ये है कि वहां के नागरिक हर हाल मे वहां से भागने की सोच रहे हैं । </p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-48649393922018528922023-10-06T21:04:00.002+05:302023-10-06T21:04:30.409+05:30नकरातमकता से बचें <p>दुनियां के कुछ क्रिकेट स्टेडियम मे दर्शको के बैठने की क्षमता । गुगल के अनुसार </p><p>मेलबर्न आस्ट्रेलिया 100000</p><p>लार्ड इंग्लैंड 31180 </p><p>पर्थ आस्ट्रेलिया 61266</p><p>एडिलेड ओवल आस्ट्रेलिया 53583</p><p>सिडनी 80000</p><p>ईडन पार्क न्यूजीलैंड 42000</p><p>प्रेमादासा और महेन्द्रा राजपक्षे श्रीलंका 42000 और 40000</p><p>बाकि पचास हजार से ऊपर वाले सब भारत मे है और दुनियां के बाकी क्रिकेट मैदान की क्षमता पचास हजार से कम दर्शकों की है । </p><p>कल अहमदाबाद मे खेले गये विश्व कप के पहले मैच मे साढ़े सैतालिस हजार लोग आये थे । वो भी सप्ताह के बीच यानी कामकाजी समय मे इसलिए शायद दर्शक धीरे धीरे मैदान मे आये , अपना काम जल्दी खत्म कर । दुनियां के ज्यादातर मैदान इतने दर्शकों के साथ पूरा या लगभग भरा होता । </p><p>फिर समझ ना आ रहा है लोग ये सवाल क्यों कर रहें है कि पहले मैच मे दर्शक कहां हैं । भाई अहमदाबाद स्टेडियम की क्षमता एक लाख बत्तीस हजार की है । उसे पूरा भरने के लिए भारत का मैच होना चाहिए। </p><p>कल की दो टीमो मे से एक भी भारत क्या एशियाई टीम भी नही थी उसके बाद भी इतनी बड़ी संख्या मे दर्शक ना केवल मौजूद थे बल्कि ज्यादातर न्यूजीलैंड को सपोर्ट भी कर रहे थे । शायद मेरी ही तरह पिछले विश्व कप के फाइनल मे जिस तरह न्यूजीलैंड को हारा घोषित किया गया उसके कारण । </p><p>कम से कम क्रिकेट के विश्व कप मे भी मेजबान और भारत तथा पाकिस्तान के मैचों के अलावा ज्यादातर मैदान खाली ही रहता है । फुटबॉल की तरह लाखो दर्शक टीम के साथ आयोजित देश नही जाते । </p><p>कौन है ये लोग कहां से आते हैं । इतनी निगेटिवीटि के साथ कैसे जीते है । हर बात मे बुराई खोज लेना हर बात मे राजनीति डाल देना कैसे कर लेते हो आप लोग । चैन से सो और खा भी नही पाते होंगे ये लोग । </p><p>जो पत्रकार क्रिकेट का क भी नही जानते जिनको ये भी नही पता की एक टीम मे खिलाड़ी कितने होते है वो भी दर्शकों को संख्या पर सवाल बस इसलिए कर रहे है ताकि अमित शाह के बेटे जय शाह को गरिया सकें । </p><p>माने हद है भाई तुम लोगों क्रिकेट को बख्श दो अपनी गंदी राजनीति और नकारात्मक सोच से । </p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-9623046801253355102023-10-04T15:47:00.000+05:302023-10-04T15:47:24.810+05:30दवाओं के सहारे जीवन <p> </p><p>कल रात इमारत मे किसी की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गयी । 65 के करीब थें । कुछ साल पहले मुंह के कैंसर से पीड़ित थें पर अब उससे छुटकारा पा चुकें थे । </p><p>बस दो दिन से अपने हाई बीपी की दवा नही खा रहें थें और बीपी बढ़ गया था । कल शाम ही बीपी नापा तो वो बहुत हाई निकला । </p><p>घर आये पड़ोसी से इस बात का अफसोस भी जाहिर किया कि दवा नही खाया तो देखो कितना बीपी बढ़ गया है । कुछ समय बाद ही जब घर मे अकेले थे तो शायद हार्ट अटैक आया और बच नही पायें । </p><p>इन्होनें तो दो दिन दवा नही खाया था । दो साल पहले हमारे फ्लोर के एक बुजुर्ग तो बस रात मे दवा नही खाया और अगली सुबह गुजर गयें। </p><p> उन्हे बहुत सारी समस्याएं थी , दवा खा खा कर तंग आ गये थे । उस रात जिद्द पकड़ ली कि अब से दवा नही खायेंगे जब मौत आनी है आ जाये । पत्नी बेटे से इस बात को लेकर झगड़ा भी हो गया । </p><p>अगली सुबह ही तबियत बिगड़ गयी अस्पताल ले जाने के लिए बिल्डिंग के बाहर निकलते ही मौत हो गयी । </p><p>हमारी अपनी छोटी चाची पचास से भी कम आयु मे पैरालाइसिस के अटैक का शिकार हो गयी बस दो तीन दिन दवा छोड़ने पर । हाई ब्लडप्रेशर और और पैरालाइसिस उनका फैमली इतिहास था । </p><p>यही कारण था कि चाचा उनकी दवा का हमेशा ध्यान रखते थे । भाई दूज पर मायके गयी और दवा को लेकर लापरवाही बरत दी । तीन दिन बाद घर आयी तो दवा फिर से ले लिया था लेकिन शरीर के लिए देर हो चुका था । </p><p>मंदिर मे सुबह पूजा करते गिर गयी । वो तो चाचा को फैमली हिस्ट्री उनकी पता थी तो तुरंत समझ गये । सीधा स्पेशलिस्ट हास्पिटल गये और डाॅक्टर को खुद बता दिया कि पैरालाइसिस का अटैक है । </p><p>समय से इलाज मिल गया और लंबी फिजियो थेरपी से धीरे धीरे इतना रिकवर कर लिया कि आराम से चल फिर सकती है घर और अपना काम कर लेती है । लेकिन उलटे हाथ से कुछ पकड़ नही सकतीं और कहीं भी अकेले नही जाने दिया जाता है । </p><p>अब आधा दर्जन दवा चार पांच सालों से रोज खा रहीं । कुछ कुछ महीनों मे हाथ पैर मे अकड़न और दर्द की समस्या अलग से । </p><p>एक महीने पहले मेरी कामवाली अचानक स्टेशन पर चलते हुए एकदम से बेहोश हो कर पटरियों पर गिर गयी । बहुत ज्यादा चोट आ गयी थी एक महीना लगा उसे ठीक होने मे । </p><p>डाॅक्टर ने बताया सुगर बहुत ज्यादा हाई हो गया था । उसे अपनी बीमारी के बारे मे पता ही नही था । वो तो शुक्र था कोई ट्रेन नही आ रही थी और लोगो ने उसे तुरंत पटरी से हटाया । </p><p>दो दिन से काम पर आ रही है मैने उसे ढेर सारी हिदायते दी । परहेज को लेकर और दवा के प्रति लापरवाही ना करने को लेकर। </p><p>तो भाई दवाओं और स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही जरा भी ना बरते । अपने लिए नही तो अपने अपनों का सोचें । ठीक है मौत तो जब आनी है तब आयेगी ही लेकिन ये सोच कर कोई बीच सड़क से चलना या नदी मे छलांग तो नही लगाता ना । </p><p>तो ख्याल रखिये अपना भी और अपने अपनो का भी । </p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-49909405014041999292023-10-01T16:19:00.001+05:302023-10-01T16:19:41.813+05:30इस अधर्म को कौन रोके <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8pAnVKeUcqVkWHexxmR-5fiIk-ZwNfW9MG2WeZDzuvySIznvEJ25zoOjHyYTM5b1FppuarhQXixsdWBwIk-2vuJ5UCzlfkJyLBGO1-pvZ3P-Fdf3AOEXgjIGZDE2UhydcrY3-TWyKVPKYNDO52zyMOQzJ6aSegtOC_ICwk5W9TpSWQ9rqslWV_ZsrPJlF/s1040/IMG-20230930-WA0001.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1040" data-original-width="780" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8pAnVKeUcqVkWHexxmR-5fiIk-ZwNfW9MG2WeZDzuvySIznvEJ25zoOjHyYTM5b1FppuarhQXixsdWBwIk-2vuJ5UCzlfkJyLBGO1-pvZ3P-Fdf3AOEXgjIGZDE2UhydcrY3-TWyKVPKYNDO52zyMOQzJ6aSegtOC_ICwk5W9TpSWQ9rqslWV_ZsrPJlF/s320/IMG-20230930-WA0001.jpg" width="240" /></a></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3M2Mp3KkfzJQeWjUrDHHvkOBQ-1leomyZQa_Un21VaOc4cRn_Bncs5VjsGySykng5dWOTUFCfE2H-uPXXOMvkuFvHKpV1nT8UbSfQ2BTRXw-U-WX-RSxlRrnJzADNhHMv8j8YGa9V5eI_Mxi7J0K2b4BCUCgwfQOOZ8uMT9HONMKwhxlUV1w5u0yiWGmI/s1040/IMG-20230930-WA0002.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1040" data-original-width="780" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3M2Mp3KkfzJQeWjUrDHHvkOBQ-1leomyZQa_Un21VaOc4cRn_Bncs5VjsGySykng5dWOTUFCfE2H-uPXXOMvkuFvHKpV1nT8UbSfQ2BTRXw-U-WX-RSxlRrnJzADNhHMv8j8YGa9V5eI_Mxi7J0K2b4BCUCgwfQOOZ8uMT9HONMKwhxlUV1w5u0yiWGmI/s320/IMG-20230930-WA0002.jpg" width="240" /></a></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUS0r8OQF66Yp6UIUM9K3jCNCl0jJy2Ym1V0ydJ7yldqAFtqGPKqoXnemL-r809LVMyuEKnTZgW9rUiWoqkqTVvoFOvIvymJmks0pslm3IHp9mjQt4fkDtqPluqR4t7k_JyCSo5UTghtMmn2v_wRBA_ETV-JAPf9uIGZd954nhtABeF9MiAOTC0HflFtcP/s1040/IMG-20230930-WA0003.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1040" data-original-width="780" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUS0r8OQF66Yp6UIUM9K3jCNCl0jJy2Ym1V0ydJ7yldqAFtqGPKqoXnemL-r809LVMyuEKnTZgW9rUiWoqkqTVvoFOvIvymJmks0pslm3IHp9mjQt4fkDtqPluqR4t7k_JyCSo5UTghtMmn2v_wRBA_ETV-JAPf9uIGZd954nhtABeF9MiAOTC0HflFtcP/s320/IMG-20230930-WA0003.jpg" width="240" /></a></div><br />अपने देवता के साथ ऐसा व्यवहार करने का महान कार्य अपना हिन्दू उर्फ सनातन धर्म ही कर सकता है । तस्वीरे देखिये, जिस गणपति को दस दिन भक्तिभाव से पूजा और रोते खुश होते नाचते गाते विदा किया । उसे किस दुर्दशा मे समुद्र किनारे छोड़ आये हैं । <div><br /></div><div>कल बिटिया बीच की सफाई के लिए गयी थीं जो दृश्य देखा वो उनसे भी बर्दास्त नही हो रहा था । गन्दगी की पराकाष्ठा देख बहुत दुखी हुयी और देवता की मूर्तियों की ऐसी हालत कि ईश्वर मे विश्वास ना होने के बाद भी उन्हे आश्चर्य रूपी दुख हो रहा था ।</div><div><br /></div><div>समुद्र अपने पास कुछ ना रखता सब लौटा देता है नतिजा विसर्जन के दूसरे दिन मुर्तियां रेत पर टुटी फूटी खराब हालत मे पड़ी थी । बड़ी मूर्तियों को जेसीबी मशीन से तोड़ा जा रहा था ताकि उन्हे आसानी से निस्तारण किया जा सके। </div><div><br /></div><div>ये देख उनकी एक मित्र तो रोने लगी क्योंकि उसके घर गणपति आये थे और एक दिन पहले वो विसर्जन के लिए आयी थी । गणपति से उसकी श्रद्धा प्रेम के कारण ये सब उसके लिए असहनीय हो रहा था । </div><div><br /></div><div>सालों से पर्यावरण प्रेमी से लेकर समझदार वर्ग कहता आ रहा है कि मूर्तियों का आकार छोटा किया जाये और उन्हे मिट्टी से बनाया जाये । लेकिन श्रृद्धा कम बाजारवाद मे डूबे पूजा पंडाल इसको मानने को तैयार नही होते है । बीस से चालीस फिट ऊंची मूर्तियां बनायी जाती हैं । </div><div><br /></div><div>यही सारे मंडल तब चुपचाप सरकारी फरमान को मान रहे थें जब कोविड के कारण मूर्ति का आकार सिर्फ पांच फिट निर्धारित था । लेकिन उसके बाद सब अपने ढर्रे पर वापस आ गया । </div><div><br /></div><div>जिस धर्म के मानने वाले ही जब ऐसा व्यवहार अपने ही देवता की मूर्ति से करे तो उस धर्म को क्या किसी और से खतरा हो सकता है । </div><div><br /></div><div>खैर हम अ-धार्मिक लोगों का क्या बिटिया सब पूजनियों को कचरे की तरह साफ करने का सहयोग कर घर आ गयीं । </div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-23649308030732472932023-09-29T15:28:00.000+05:302023-09-29T15:28:05.401+05:30तीसरी कसम <p><br /></p><p> जब सी फेस पर टहलने जाती थी तो इनसे मिलती थी । चारो पैरो मे इनके जूतें से हर किसी की नजर इन पर उठ ही जाती । अपनी नौकरानी के साथ आते बस एक दिन ही अपने मालिक के साथ इन्हे देखा ।</p><p> नौकरानी भी टहलाने के बजाये एक बेंच पर बैठ कर मोबाइल चलाती और ये उसके बगल मे बैठे आते जाते अपनी नस्ल वालों को देख बीच बीच मे भौंक लेतें । </p><p>एक दिन देखा अपने से चार पांच गुना बड़े पर भौके जा रहें है । बदले मे उसने भी भौकना शुरू किया । इन्हे गुस्सा आ गया ये बेंच से कुद पड़ें और तेज से भौकने लगे । शुक्र है कि बेल्ट मे थे तो उसके पास तक नही जा सके , थोड़े दूर से ही चिल्लाते रहें । </p><p>बड़े वाले के साथ उसके मालिक थे दो यंग लड़का लड़की । दोनो आगे जाने के बजाये एक सुरक्षित दूरी पर अपने कुत्ते का बेल्ट पकड़ खड़े हो इस दृश्य का मजा लिये जा रहें है ।</p><p>अब छुटकु के नौकरानी को गुस्सा आ गया । उसके शान्ती से मोबाइल देखने में खलल पड़ रहा था । वो भी गुस्से से उठी अपने छुटकु को गोद मे उठाया और आगे चली गयी । </p><p><br /></p><p>हम पीछे से आते हुए ये सब देख रहे थें । इतने मे देखा कि अच्छे खासे भरे बदन की नौकरानी का कुर्ता उनके पृष्ठ भाग मे फंस गया है । सोचा जल्दी से आगे बढ़ कर उसे बता देतीं हूं । छुटकु के चक्कर मे मेरी कई बार उससे बात हुयी थी । </p><p>फिर सोचा कि बतायें की ना बतायें क्योकि एक विडियो मे देखा था कि किसी लड़की के ब्रा की पट्टी दिखे तो आंटी बन कर उसे टोकना नही है । दिख रहा है तो दिखने देना चाहिए उसे बताना रूढ़ीवादी सोच और आंटीगीरी है । </p><p>समझ ना आ रहा था कि यही नियम कुर्ते के पृष्ठ भाग मे फंसने पर लागू होगा की नही । फिर लगा आगे जा रही महिला लड़की नही मेरी उमर की आंटी ही है तो हमारे जमाने वाली है । निश्चित रूप से ये चाहेगी मेरी ही तरह कि इसे कपड़े को ठीक करने के लिए बता दिया जाये । </p><p>इतना सोचते विचारते हम उसके पास तक आ गये थें । तो हमने कहा रिस्क ले लेते है अब आंटी की ऊमर मे आ कर आंटीगीरी तो की ही जा सकती है । </p><p>तो उसे बताने के लिए उसके पास तक गयें कि धीरे से बोल दूंगी ताकि कोई और ना सुने । अपने कान से इयरफोन भी निकाल दिया ताकि बातचीत कान बंद होने के कारण तेज से ना हो और वो धन्यवाद कहे तो मै मुस्कराहट के साथ जवाब भी दे दूं । उसे ना लगे कि नौकरानी है तो मैने भाव ना दिया । </p><p>उसके पास गयी और धीरे से कहा अपना कुर्ता ठीक कर लो । उसने मेरी तरफ देखा नाक सिकोड़े , भौवे ऊपर कर बुरा सा मुँह बनाते बोली " मै क्यों अपना कुत्ता ठीक करूं वो अपना कुत्ता ठीक करे । उनका कुत्ता ज्यादा भौक रहा था । वो टहल रहे थें आगे क्यों नही गये ----</p><p>पहले तो हम हक्का बक्का हुए फिर बात समझ आ गयी कि उसने कुछ का कुछ सुना है । उसे बीच मे टोकते हमने कहा कि मै कुत्ते नही कुर्ते की बात कर रही थी । </p><p>लोग अपनी दुनियां , सोच , विचारों और समस्याओं मे उलझे रहते हैं । इतने मे आप उन्हे जा कर कुछ कहें तो वो सुनते वो है जिसमे वो उलझे हैं या जो वो सुनना चाहते है । नतिजा सही बात समझे बिना आप पर भौकना शुरू कर देते है । </p><p>उसी दिन हमने अपनी तीसरी कसम खायी कि आज के बाद किसी के ब्रा की पट्टी दिखे , किसी का चेन खुला हो या किसी का कुर्ता गलत जगह फंस गया हो हम अब किसी को ना बतायेंगे ।</p><p> पहली और दूसरी कसम फिर कभी बताते हैं । </p><p>#तीसरीकसम </p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-86325387595949582042022-12-07T19:16:00.002+05:302022-12-07T19:16:39.129+05:30लैंगिक भेदभाव <p><br /></p><p> हाल ही मे <span face="Mukta, sans-serif" style="background-color: white; font-size: 18px; text-align: justify;">न्यूजीलैंड की पीएम जैसिंडा अर्डर्न और फिनलैंड की पीएम सना मरीन से एक संयुक्त प्रेस कांप्रेंस मे एक पत्रकार पूछ बैठा कि लोग कह रहे है कि आप दोनो इसलिए मिली क्योकि आप दोनो हमउम्र है और दोनो एक जैसा सोचती है । इस तरह के सवाल पर दोनो महिला पीएम हैरान हो गयी ।</span></p><p><span face="Mukta, sans-serif" style="background-color: white; font-size: 18px; text-align: justify;">अर्डर्न ने उलटा पत्रकार से सवाल किया कि क्या ओबामा और जाॅन , न्यूजीलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री , जब मिले थे तब भी ये सवाल हुआ था कि वो हमउम्र है इसलिए मिल रहे है । हम इसलिए मिले है क्योंकि हम दो देशो के प्रधानमंत्री है । </span></p><p><span face="Mukta, sans-serif" style="background-color: white; font-size: 18px; text-align: justify;">ये नया नही है जब महिलाओ के साथ चाहे वो किसी भी पद पर हो उनके साथ लैंगिक भेदभाव किया जाता है उनकी बातो को गम्भीरता से नही लिया जाता और उनके स्त्री होने को उनके पद और कार्य से अलग नही किया जाता और ये सब लगभग दुनियां के हर कोने मे हो रहा है । </span></p><p><span face="Mukta, sans-serif" style="background-color: white; font-size: 18px; text-align: justify;">सालो पहले जब पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी भारत आयी थी तो यहां कि मिडिया उनके पर्स, कपड़ो , सुंदरता पर बात ज्यादा कर रहा था बजाये विदेश नीति के । जबकि शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि किसी दूसरे देश से पुरुष मंत्री के सूट शर्ट जूतो पर उनके ब्रांड पर चर्चा हुयी हो । काम दोनो एक ही कर रहें है । </span></p><p><span face="Mukta, sans-serif" style="background-color: white; font-size: 18px; text-align: justify;"><br /></span></p><p><span face="Mukta, sans-serif" style="background-color: white; font-size: 18px; text-align: justify;">सिर्फ राजनीति ही नही लगभग हर क्षेत्र की यही हालत है । याद होगा पत्रकार राजदीप सरदेसाई सानिया मिर्जा से पूछ बैठे थे कि आप सेटेल कब होंगी । सानिया ने पलट कर जवाब दिया ग्रैंड स्लैम जीत लिया , डबल मे रैकिंग नंबर वन हो </span><span style="background-color: white; font-size: 18px; text-align: justify;">गयी , दस साल से ज्यादा से खेल रही हूँ, शादी हो गयी अब और कितना सेटेल होना है । </span><span style="background-color: white; font-size: 18px; text-align: justify;">वास्तव मे पत्रकार महोदय पुछना चाह रहें थे कि वो बच्चे कब पैदा करेंगी । </span></p><p>आप ही सोचिए कोई महिला शादी के बाद बिना बच्च पैदा किये कैसे सेटेल कहला सकती है । जबकि आपने कभी नही सुना होगा कि किसी पुरुष खिलाड़ी से ये पूछा गया हो कि आप बच्चे कब पैदा करेगे या सेटेल कब होंगे । </p><p>महिलाओ के साथ लैंगिक भेदभाव मे उनकी बातो को गम्भीरता से ना लेना , उनकी शादी-ब्याह, बच्चे की हर समय चर्चा के बाद नंबर आता है उनका चरित्र हरण करना । </p><p>किसी महिला पत्रकार की पत्रकारिता पसंद नही आयी तो कार्टूनिस्ट ने उनकी वर्जीनिटी पर सवाल वाला कार्टून बना दिया । पुरुष पत्रकार को रीढविहिन कहा जाता है उसके वर्जीनिटी, चरित्र पर सवाल नही किये जाते । रीढविहिन कहना उसके कार्य पर प्रहार है लेकिन स्त्री की बात आते ही हमला कार्य पर नही उसके चरित्र उसके स्त्री होने पर किया जाता है । </p><p>आम जीवन मे हर आम आदमी ये भेदभाव रोज करता है । हम सड़क पर रोज सैकड़ो लोगो को खराब ड्राइविंग करते दुर्घटना होते देखते है लेकिन दो चार महिने मे एक बार भी किसी महिला को खराब ड्राइविंग करते किसी पुरुष ने देखा । फटाफट उसका विडियों फोटो लेकर वायरल किया जाता है या पोस्ट लिख कर उपहास उड़ाया जाता है । रोज सैकड़ो पुरूषो को खराब ड्राइविंग करते देखने की बात भूल जाते सब । </p><p>सड़क दुर्घटनाओ के आकड़े निकाल कर देख लिजिए दुर्घटना करने वाले सब पुरुष ही होगें महिलाए नाम मात्र की होगीं । लेकिन कहा ये जायेगा कि महिलाएं खराब ड्राइविंग करती है । मजेदार बात ये है कि ये कहने वाले पुरूष उस मौलाना पर हँसेगें जिसने महिला पायलट होने के कारण विमान मे सफर करने से इंकार कर दिया था । जबकि दोनो ही जगह एक ही स्तर की बात हो रही है । </p><p>बचपन से सिखाया पढ़ाया गया है कि महिलाए अक्षम है कमतर है । घरो मे लोगों के जुबान पर रहता है हर छोटी बात पर , अरे तुम औरतों से हो क्या सकता है , तुम लेडिज को कुछ आता भी है । वही बाहर भी आ जाता है किसी महिला को कुछ करते देखते । वो उसके काम पर कमेंट करने की जगह उसके महिला होने पर कमेंट करने लगते है । </p><p>और ये सब सिर्फ कम पढे लिखे लोग , छोटे शहरो के लोग , पुरुषवादी सोच रखने वाले ही नही सब करते है । पढे लिखे समझदार भी , फेमिनिस्ट सोच रखने वाले भी । कभी कोई जानबूझकर कर करता है तो कभी आदत है , तो कभी अनजाने मे कर देते है । कुछ टोकने पर इस लैंगिक भेदभाव को समझ जाते है और कुछ समझाने पर भी नही समझते । आप किस वर्ग मे है खुद सोच लिजिए। </p><p>वैसे एक खास प्रकार का लैंगिक भेदभाव पुरूषो के साथ भी होता है इस पर भी कभी बात करेंगे । </p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-80444269312908451392022-11-29T10:40:00.000+05:302022-11-29T10:40:04.023+05:30दृश्यम 2- फिल्म समीक्षा <div><br /></div><div><br /></div>जिन लोगो को गांधी और उनकी जयंती से समस्या है उनके लिए सलाह है कि दृश्यम थ्री फोर के प्रड्यूसर बन जाये । कुछ सालो बाद दो और तीन अक्टूबर का जिक्र आते लोगो को ये फिल्म पहले याद आयेगी ना की गाँधी जयंती । <div><br /></div><div>इस फिल्म की टिकट रविवार के लिए मिलना आसान नही है पता था लेकिन लोग सोशल मीडिया पर फिल्म के रहस्य खोले जा रहे थे तो मजबूरी मे टिकट खरीदना पड़ा । हमने कहा ज्यादा से ज्यादा क्या ही होगा गर्दन दुखेगी इतने आगे की सीट पर , इस फिल्म के लिए सह लेगें थोड़ा । </div><div><br /></div><div>घर बैठ कर न्यूजीलैंड का मौसम का हाल देखते हुए समय बिताने से तो अच्छा ही है । एकदम कार्नर की सीट मिली लेकिन ऐसी फिल्म जो स्क्रिन से नजर हटाने ना दे उसमे कार्नर सीट पर बैठ कर रोमांस की कौन सोचेगा । तब तो और भी नही जब फिल्म का सुबह का शो भी हाउसफुल हो । </div><div><br /></div><div>भाई साहब फिल्म की तो बात ही क्या करे । अब आप ये सोचिये कि एक सस्पेंस वाली फिल्म की मूल कहानी दर्शक को पहले से पता है । एक हत्यारा है और पुलिस को उसे पकड़ना है । वो बस ये देखने आया है कि फिल्मकार ने उसे बनाया कैसा है । उसके बाद भी अंत मे फिल्म की पूरी टीम दर्शक को चकित करके वाह , गजब , तालियाँ वाला रिएक्शन निकलवा लेती है । </div><div><br /></div><div> कहानी फिर से शुरू कैसे होगी , ऐसी फिल्म के दूसरे पार्ट मे दिखायेगें क्या का जवाब पहले ही दृश्य मे उस मिल जाता है । फिल्म एकदम वही से शुरू होती जंहा खत्म हुयी थी । </div><div><br /></div><div>सबसे मजेदार ये है कि पहले ही दृश्य मे फिल्म दर्शकों को एक सुबूत दे देती है और उन्हे जासूस बनने के लिए मजबूर कर देती है । दर्शक सोचता है कि पुलिस से ज्यादा सुबूत उसके पास है पहले वो केस हल कर लेगी । </div><div>आखिर सालो साल सीआईडी और एकता के डेलीसोप मे बहुओ को जासूसी करते देखने के बाद इतना असर तो आता ही है । लेकिन दर्शक जो सोचता है बाद मे पता चलता है कहानी उससे अलग है । इससे दर्शक का रोमांच और बढ़ जाता है । </div><div><br /></div><div>पता नही क्यो लोग फिल्म के पहले हिस्से को धीमा बोल रहे है मुझे तो बिल्कुल नही लगा । बल्कि इंटरवल होने पर लगा कि अरे फिल्म आधी हो भी गयी । क्योकि अंत मे पता चलता है उन एक एक दृश्य का क्या मतलब था । पहला हिस्सा ध्यान से देखा हो तब अंत मे रहस्य खुलने पर आप कहते है अच्छा तो वो ये था , तो उसका मतलब ये था । </div><div><br /></div><div>फिल्म अच्छी बनी उसके लिए पूरी टीम प्रयास दिखता है। कहानी अच्छी , उस पर लिखा स्क्रीनप्ले अच्छा , निर्दशन अच्छा , फिर अभिनय अच्छा अंत मे एडिटिंग अच्छी। कहानी के लिए श्रेय हिन्दी मलयालम दोनो वर्जन को जाता है । दक्षिण का रीमेक बनाना हो तो ऐसा बनाना चाहिए। </div><div><br /></div><div>"परिवार के लिए सबकुछ करूंगा" वाली फिल्म मे "अपने तो अपने होते है" वाला मेलोड्रामा इमोशन की भरमार नही है , जबरदस्ती का रोमांस और गाना बजाना नही है और ना ही डर जाने और बहुत स्मार्ट होने की ओवर एक्टिंग। </div><div><br /></div><div>अक्सर किसी फिल्म का दूसरा भाग पहले भाग से कमतर होता है लेकिन मुझे ये फिल्म पहले भाग से बीस ही लगती है । मै अपराधियों के हिरोकरण वाली फिल्मे नही देखती , वो पसंद नही । लेकिन विजय सालगांवकर अपराधी नही है भाई , ऐसे के साथ तो मै भी ऐसा ही करती , ऐसा मैने बिटिया को समझाया जब वो कहने लगी विजय गलत है । </div><div><br /></div>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-75469645163601327672022-11-23T19:24:00.002+05:302022-11-23T19:24:27.643+05:30पापा की परी<p> बिटियां सातवीं मे थी जब उनकी पाॅकेट मनी शुरू किया । बड़े अरमान कि चलो अब पैसा बचाना खर्चना मैनेज करना सीखेंगी । लेकिन कुल अरमानो पर उनके पापा जी ने पानी फेर दिया ।</p><p> पापा जी जब नीचे कुछ लेने जाते या ऑफिस से आते फोन करते तो फर्माइश कर देतीं पापा मेरे लिए ये ले आना वो ले आना । हम कहते पाॅकेट मनी मिली है उससे ले आओ , तो कहतीं पापा ले आओ मै पैसे दे दूंगी । अब आप लोग ही अंदाजा लगा लो कि पापा चॉकलेट चिप्स ला कर उनसे पैसे लेतें ।</p><p>बचा खुचा एक साल बाद लाॅकडाउन ले बिता । ना बाहर जाना आना ना बाहर का खाना पीना । सब ऑनलाइन आ रहा था तो उनके जरुरत का सामान भी हम मंगा देते । पैसे तो उनके सारे बस दोस्तो को गिफ्ट मे खर्च होते । लाॅकडाउन के बाद भी पापा ना सुधरे ना बिटियां पैसे मैनेज करना सीखी । </p><p>पापा की परी का कुछ अलग ही मतलब ये आजकल के पापा लोग निकालते है । जब वैन से स्कूल जाती थी तब उनका बैग नुक्कड़ तक पापा उठा कर ले जाते थे । हम चिल्लाते नौवी मे आ गयी तुम क्यो बैग उठा रहे हो उसको लेकर जाने दो । लेकिन मेरी कौन सुनता है । </p><p>लगभग सब पापा लोगो की यही हालत है । रोज सुबह देखते है बेटा छोटा है तो बैग मम्मी पापा लेते बस स्टाॅप तक लेकिन बड़े होते बेटे अपना बैग खुद उठाना शुरू कर देते । लेकिन बेटियां बड़ी हो गयी है पर स्कूल बैग पापा लोग ले जा रहे है । </p><p>सातवीं तक तो पापा जी उन्हे जुते मोजे तक पहनाते थे । रोज सुबह उठने मे नाटक करती और देर होने लगती स्कूल के लिए। वो नाश्ता कर रही होती मै बाल बना रही होती तो बोलती पापा जूते पहना दो नही तो वैन छूट जायेगी । </p><p>हमारे लाख मना करने के बाद भी कि तुम ऐसे ही करते रहे तो ये जिम्मेदार कैसे बनेगी सीखेगी कैसे । लेकिन पापा जी लोगो को इससे मतलब ही क्या है । नतीजा बिटियां उलटा पापा को बोलती पापा पहना दो नही तो तुम्हे ही स्कूल तक छोड़ने जाना होगा। अब स्कूल पापा छोड़ने जाते है और बिल्डिंग के नीचे तक भी बैग पापा ले जाते है । हमारी कोई ना सुनता ना समझता । </p><p>अभी दशहरे को एक पड़ोसी अपने बेटे के साथ मिलकर उसकी नयी बुलट धो चमका रहे थे । दशहरे पर अपनी गाड़ी साफ कर उस पर माला चढ़ाने का रिवाज है यहां । तभी पतिदेव ने दिखाया देखो चौथी मंजिल वाले की बेटी ने जाॅब शुरू किया है तो उसके पापा ने स्कूटी दिलाया है लेकिन वो स्कूटी पिता जी अकेले धो रहे थे । </p><p>हमने कहा ये क्या बात हुयी जब बेटा अपना बुलेट साफ कर रहा है तो बेटी स्कूटी साफ करने क्यो नही आयी । ये सच है कि अपनी कार साफ करने हम कभी नही गये लेकिन स्कूटी साफ करने पानी लेकर हमी जाते और ये भी देखते कि लोग मुझे ऐसा करता देख अजीब नजर से देख रहें ।</p><p>पापा की परी का मतलब बेटी को सपोर्ट करना होना चाहिए उसका बैसाखी बन अपाहिज ना बनाइये । जब स्कूटी या कोई भी गाड़ी दिला रहे है तो उससे जुड़ी जिम्मेदारी भी उसे दिजिए और उससे जुड़ी जानकारी भी । ताकि कोई छोटी मोटी समस्या आने पर उसे ठीक कर सके कोई डिसीजन ले सके ना कि मदद के लिए दूसरो का मुंह ताके। </p><p>इतने सालो से अपनी कार हो या स्कूटी सर्विस सेंटर लेकर गयी पर रेयरली ही कोई लड़की महिला वहां आती थी । स्कूटी का तो कितनी ही बार रंग देख समझ आ जाता लड़की या महिला की है पर लेकर पुरुष आया है । कई बार लोग फोन करके पुछते है कि और क्या क्या समस्या बताया था । </p><p>ऐसी ऐसी महिलाओ लड़कियो से मीली हूं जिन्हे अपनी कार मे ईधन खत्म होने का इन्डीकेटर समझ नही आया या किक करके स्कूटी स्टार्ट कैसे करना है ये पता नही होता । टायर बदलना तो बहुत दूर की बात है । </p><p>हमारा पालन पोषण एक मातृसत्तात्मक परिवार मे हुआ है । जहां हम लोगो को राजकुमारियों की तरह नजाकत से कतई ना पाला गया । बेटियां लक्ष्मी होती उनसे पैर नही छुआते जैसे चोचले हमारे घर कभी हुए नही । पैर छुना बड़ो के अभीवादन का तरिका है तो बेटी वो क्यो नही करेगी । </p><p>जब पितृसत्ता मे बेटे नाजुक नही मजबूत बनाये जाते है आगे के संघर्ष, नेतृत्व के लिए तैयार किये जाते है । तो मातृ सत्ता वाले परिवार मे भी हम बेटियां को शुरू से जिम्मेदार और मजबूत बनाया गया । हम लोग अपने अंदर बाहर के काम के लिए कभी घर के पुरूषो पर निर्भर ना रहे । यहां तक कि भारी सामान को उठाने के लिए भी हम लोग कभी भाई लोगो का मुंह ना देखते । </p><p>किसी के चिढ़ाने , टांग खिचने , गिरने पर रोना ना शुरू करते बल्कि मुंह तोड़ जवाब देते । कोई लड़का परेशान कर रहा जैसी समस्याएं हम लोगो को कभी घर लेकर आने की जरूरत ना पड़ी । पढ़ाई क्या करना है कैरियर क्या चुनना से जुड़ी काम खुद ही किये । पापा लोगो को तो ये भी पता नही होता कि हम लोग किस क्लास मे है । </p><p>पर आजकल के नये नये पापा लोग परी बना बना बिटिया लोगो का भविष्य ही डांवाडोल कर रहे है । यही हर जरूरी अनुभव जिम्मेदारी से दूर रहने वाली बेटिया अकेले पढ़ने जाॅब करने जायेगी तो परेशान होगीं या गलत निर्णय लेती जायेगी । कैरियर मे भी और जीवन मे भी । </p><p>तो ऐसा है पापा जी लोग्स अपनी अपनी परियों को बचपन से ही कल के गलाकाट प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार किजिए। किसी ट्रोलिंग का जवाब देने लायक मजबूत बनाइये । मुसीबतों और असफलताओं से लड़ना सिखाइये। सही निर्णय लेना जिम्मेदारी उठाना सिखाइएये । योद्धा बनाइये नाजुक सी परी ना बनाइये । </p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-9606305600151459242022-11-18T20:39:00.004+05:302022-11-18T20:39:55.786+05:30लक्ष्यभेदी पोस्ट <p> राजू पढने मे बहुत होशियार था । लेकिन वो अपने पिता के जुआ खेलने की आदत से घर मे हो रही तमाम दिक्कतों से परेशान रहता था । एक दिन मास्टर साहब ने दीवाली पर निबंध लिखने के लिए कहा । उसने लिखा दीवाली हमारा एक प्रमुख त्यौहार है । इस दिन हम घर को दीये से सजाते है । लेकिन कुछ लोग इस दिन जुआ खेलते है । जुआ खेलना एक खराब बात है । जुआ खेलने से घर बर्बाद होते है । घर मे आर्थिक तंगी आ जाती है ----- । आगे पूरा जुआ पर निबंध था । </p><p>मास्टर जी ने कहा बढ़ियां है । फिर एक दिन होली पर निबंध लिखने को कहा गया । राजू ने लिखा , होली हमारा प्रमुख त्यौहार है । उस दिन हम रंग खेलते है । लेकिन कुछ लोग इस दिन जुआ खेलते है । जुआ खेलना एक खराब बात है । जुआ खेलने से घर बर्बाद होते है । घर मे आर्थिक तंगी आ जाती है ----- । </p><p>मास्टर जी ने कहा ये क्या बला है । फिर उन्होने होशियार दिखाते कहा तु पेड़ पर निबंध लिख। राजू ने लिखा , पेड़ हमारे लिए बहुत जरूरी है । पेड़ से हमे ऑक्सीजन मिलता है । लेकिन कुछ लोग पेड़ के नीचे बैठ कर जुआ खेलते है । जुआ खेलना एक खराब बात है । जुआ खेलने से घर बर्बाद होते है । घर मे आर्थिक तंगी आ जाती है ----- । </p><p>बस ऐसे ही आज सबके पास पहले से ही दोषी , अपराधी कौन है का जवाब तैयार है अपनी अपनी सोच , वाद और विचारधारा के हिसाब से । फिर कोई भी मुद्दा , अपराध, खबर सामने आने दिजिए । दो लाइन के बाद उनका लेकिन आयेगा और हर बार दोषी अपराधी उसी को साबित करेगे जिसे वो साबित करना चाह रहे है , नेता , सरकार, विपक्ष, ये धर्म वो धर्म वाले ,समाज ,पुरुष , स्त्री ,बुजुर्ग, युवा पीढ़ी, माता पिता आदि इत्यादि।</p><p>आप लाख दलीले , तर्क दिजिए किन्तु आप ठीक कह रहे/रही है के बाद एक लेकिन आयेगा और वही जुआ पर निबंध शुरू हो जायेगा । </p><p>राजू गाय पर निबंध लिखो । राजू , गाय एक पालतू जानवर है गाय हमे दूध देती है । लेकिन कुछ लोग गाय का दूध बेच कर उन पैसो से जुआ खेलते है । जुआ खेलना एक खराब बात है । जुआ खेलने से घर बर्बाद होते है । घर मे आर्थिक तंगी आ जाती है ----- । </p><p>राजू पर्यावरण पर निबंध लिखो । राजू , स्वच्छ पर्यावरण बहुत जरूरी है । हमे पर्यावरण का संरक्षण करना चाहिए लेकिन -------</p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-81414520010315891112022-11-17T18:38:00.005+05:302022-11-17T18:38:46.088+05:30प्रेम का ये कैसा खौफनाक अंत <p> दो खतरनाक खबरे दो दिन मे सुनी जो पहले प्रेम फिर हत्या मे बदल गयी। पहली घटना पाकिस्तान की है जहां एक माँ ने अपनी नाबालिग बेटी के हत्यारे पति को पन्द्रह साल बाद पकड़वाया । पन्द्रह साल की बेटी अपने ट्यूशन टीचर के साथ भाग गयी । माँ बाप इज्जत के डर से पुलिस मे खबर नही की ।</p><p> बेटी ने कभी संपर्क नही किया लेकिन दस साल बाद माँ ने लड़के से संपर्क किया । कई बार फोन करने के बाद भी बेटी से जब बात नही हो पायी तो माँ अकेले उस शहर चली गयी जहां ट्यूशन टीचर ने अपने होने की बात की थी । शहर के हर स्कूल के चक्कर लगाती रही और एक दिन वो मिल गया । पहले वो उन्हे टरकाता रहा फिर जब भाग गया तब माँ ने पुलिस मे खबर की और वो पकड़ा गया । </p><p>तब पता चला कि उसने पन्द्रह साल पहले ही लड़की की हत्या कर दी थी गला दबाकर और फिर उसके टुकड़े कर कुर्बानी के जानवरो के कुड़े मे मिला दिया । </p><p>वो तलाकशुदा दो बच्चो का पिता था और घर से भागते समय उसके बच्चे भी साथ थे । उसी बच्चो को लेकर झगड़ा हुआ और लड़की की हत्या कर दी गयी । अब माँ सोच रही है कि तभी इज्जत की परवाह ना करके पुलिस मे रिपोर्ट कर देती तो शायद बेटी जिन्दा मिल जाती । </p><p>दूसरी कल दिल्ली वाली खबर । लड़के के साथ पहले से ही मारपीट हो रही थी और लड़की माँ के पास वापस मुंबई भी लौट गयी थी । माँ बाप ने वापस ना लौटने के लिए समझाया भी लेकिन लड़के के माफी मांगने पर लड़की लौट गयी और नतीज उसकी हत्या । </p><p>पहली खबर में दक्षिण एशिया की एक खराब सच्चाई है जिसमे इज्जत के नाम पर या तो घरवाले ही लड़की को मार देते है या उनके भागने पर उनकी कोई खोजखबर नही लेते । इन लड़कियों मे से बहुतो की इस तरह हत्या भी होती है और उन्हे वैश्यावृति के लिए बेच भी दिया जाता है । </p><p>नेपाल बंग्लादेश से लेकर छत्तीसगढ, झारखंड और बिहार बंगाल के गरीब इलाको से प्रेम जाल मे फंसा कर बड़ी संख्या मे लड़कियो को घर से भगा कर लाया जाता है और बेच दिया जाता है । ज्यादातर केस मे ना तो उनके भागने पर पुलिस रिपोर्ट होती है और ना परिवार कभी खोजने या संपर्क करने की कोशिश करता है । </p><p>करीब आठ दस साल पहले दिल्ली मे एक बड़े सैक्स रैकेट का खुलासा हुआ था । उसमे एक लड़कि मुंबई मे रह रहे सेना के एक बड़े अधिकारी की बेटी निकली । ब्वॉयफ्रेंड के साथ परिवार की मर्ज़ी के खिलाफ भाग कर दिल्ली आ गयी और यहां आते ही उसे पता चला कि जिस घर मे रह रही है असल मे वहां वो कैद है । लड़का उसे बेच कर भाग चुका है । नशीले पदार्थ और मारपीट से धंधे मे डाल दिया गया शर्म के मारे उसने फिर कभी परिवार से संपर्क की कोशिश ही नही की । फिर दिल्ली पुलिस ने उसके पिता के घर भेजा । </p><p>और भगायी गयी खासकर कम आयु की लड़कियो कि हत्या और आत्महत्या पुराना अपराध है । भागने के कुछ समय बाद ही प्रेम का भूत भी उतरता है तब समझ आता कि प्रेम नही उमर का असर था बस। एक दूसरे की असली सच्चाई भी सामने आती है और आटे दाल का भाव भी पता चलता । परिवार संपर्क मे रहता है तो बात संभल जाती है । कितनी ही लड़किया वापस भी आती हैं । लेकिन परिवार से परवाह ना दिखायी और लड़का जरा सा दुष्ट प्रवृति का हुआ तो अपराध होते देर ना होती । </p><p> किसी भी माँ बाप को कभी भी अपने बच्चो को ऐसे नही छोड़ना चाहिए । भले कल को रिश्ता ना रखे लेकिन उनकी सही सलामती की खबर लेते रहे पुलिस की सहायता ले या किसी और की । ताकि कल को कोई अफसोस ना हो कि बेटी की सही समय पर खोज खबर क्यो ना ली । </p><p>दूसरा किस्सा आज की आधुनिकता के दौड़ मे शामिल लड़कियों की आधुनिकता कि कलई खोलती है । हम अब तक सवाल करते रहे है कि पत्नी मारपीट कर रहे पति के साथ क्यो रही है । समाज के बंधन को तोड़े और विवाह से अलग हो जाये । </p><p>लेकिन ये तो समझ के परे है कि आप लिव-इन रिलेशन मे मारपीट की शिकार है फिर भी आप ना केवल उसके साथ रह रही है बल्कि विवाह भी उसी के साथ करना चाहती है। क्यो आखिर क्यो ऐसा करना चाहती है । </p><p> यहां कौन सा सामाजिक बंधन था जिसे लड़की तोड़कर निकल नही सकती थी । जिस दिन पहला थप्पड़ पड़ा उसी दिन समझ जाना चाहिए था कि व्यक्ति सही नही है रिश्ता रखने के लिए । जिस दिन ये सब दुबारा तीबारा हुआ समझ जाना चाहिए वो अपराधी प्रवृति का है ।</p><p>ये किस तरह की आधुनिकता थी जिसमे उन्हे टिंडर और मैरिज डाट काॅम का फर्क समझ ना आ रहा था । जिसमे ये समझ ना आ रहा था कि जब एक बार लड़के ने शादी के लिए ना कह दिया तो वो कभी आपसे शादी नही करना चाहता । वो सिर्फ अपनी जरूरतो के लिए आपसे जुड़ा है रिश्तो के प्रति गंभीर नही है ।</p><p>समस्या ये है कि ऊपर से आधुनिक बन गये है लेकिन अंदर से भारतीयपना गया नही है । झूल रहे है बीच मे , ना इधर के है ना उधर के है । ऐप से डेटिंग करना शुरू कर दिया लेकिन समझदारी से ब्रेकअप करना नही आया । ये समझ नही आया डेटिंग करना , लिव-इन शादी की गारंटी नही होती । ये समझ नही आता कि सामने वाला सिर्फ आपका फायदा उठा रहा है वो आपके साथ गंभीर नही है । </p><p>बाकि लास्ट मे दो बाते पहली ये प्रेम मे हत्या और फायदा उठाना कुछ लड़को के साथ भी हो रहा है और दूसरी लव जेहाद की पागलपंथी से बाहर आइये और हर खबर को जरा ध्यान से देखीये । ये सब हर जाति , धर्म, वर्ग मे हो रहा है और आये दिन हो रहा है । अपनी राजनैतिक सोच के हिसाब से बस आप लोग किसी खास खबर पर हल्ला मचाते है बाकि पर चुप रह जाते है । माॅब लिचिंग की तरह एक सामाजिक अपराध बनता जा रहा है । </p><p>बच्चो से बात किजिए और इस बारे मे समझाना शुरू किजिए। लोगो को पहचानना सीखाईये और सबसे जरूरी व्यवहारिक बनना और दिमाग प्रयोग करना सीखाईये । ना प्रेम खत्म हुआ है और प्रेम विवाह मे कोई समस्या है । </p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-26796677110638036292022-09-19T17:29:00.005+05:302022-09-19T17:42:21.841+05:30पितृपक्ष पितर और मुंबई के कौवें<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLlqqfVJ3HjxqRdE4g6RX2dGz_ctq5g0FfO5C1P9ebsIFDKbnMDQIRrCGnB55nvawqXyKrT6LXGAEyHc4E5etrFQd0zJgR2T35P-ldYh94BWHaQNTIz9b89-8Rp7qyrA3V6KNvZ6bzU_GXjTFpyCDXxy81itjl6-d4U-g08J48fqu-4q0gSZs2GGly8g/s960/IMG_20200320_172757.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="720" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLlqqfVJ3HjxqRdE4g6RX2dGz_ctq5g0FfO5C1P9ebsIFDKbnMDQIRrCGnB55nvawqXyKrT6LXGAEyHc4E5etrFQd0zJgR2T35P-ldYh94BWHaQNTIz9b89-8Rp7qyrA3V6KNvZ6bzU_GXjTFpyCDXxy81itjl6-d4U-g08J48fqu-4q0gSZs2GGly8g/s320/IMG_20200320_172757.jpg" width="240" /></a></div><br /> शायद मुंबई ऐसी जगह है जहां पितृपक्ष मनाने की जरुरत नही है क्योंकि यहां सालभर लोग अपने पितृ रूपी कौवों को खाना खिलाते है । जैसे बाकि जगहो पर गली मे घुमते गाय , कुत्ता , कबूतर आदि कोई एक घर पकड़ लेते है और रोज वहां आ कर खाना खाते है ऐसे ही मुंबई मे कौवे किसी घर की खिड़की पकड़ लेते है और रोज आ कर खाना मांगते है । घर वालो को बकायदा आवाज दे कर बुलाते है और उस घर के लोग रोज उन्हे कुछ खाने को भी देते है । <p></p><p> हमारे पड़ोसी के रसोई की खिड़की पर भी आते है । जब कोई नही रहता और आवाज देने पर भी नही आता तो वहां रखा कोई बर्तन चोच से पकड़ कर से नीचे गिरा देते है । एक बार कांच का ग्लास उनका ऐसे ही तोड़ दिया नीचे गिरा कर । हमारे घर भी आते थे बिटिया दो चार बार खाना दे दी तो रोज का नियम बना लिया । अगर हम ड्राइंग रूम मे ना दिखे या आवाज देने पर ना आये तो समझ जाता बेडरूम मे है और उसकी खिड़की पर आ कर कान खाना शुरू कर देता । </p><p> लेकिन खाने के नखरे है भाई खाली रोटी दे दो तो ऐसा रिएक्शन देते की पूछो मत । एक बार उसके आने पर रोटी दे दिया , काश की उस दिन विडियो निकालती तो आप लोग हँसते उसे देख कर । रोटी का टुकड़ा देख बिल्कुल 🙄 वाला रिएक्शन था उसका । फिर चोच से उठा कर पटका और कौव कौव चिल्ला जैसे मुझे चार बाते सुना रहा हो । हमने रोटी उठा कर फिर ऊपर रख दिया और बोला खाना है तो खाओ वरना जाओ और कुछ नही है । फिर पानी मे डुबा कर एक बार खाता फिर मुझे देख दो कौव कौव सुनाता और फिर खाता 😄</p><p> मांस मछली के बाद इनको भुजिया सेव पसंद है । मांस तो हमारे यहां मिलता नही , सेव के बारे मे बाप बिटिया को जैसे ही पता चला , किलोभर आया भुजिया सेव दोनो जने पन्द्रह दिन मे इनको खिला दिये । बस उसी दिन इनको घर निकाला मिल गया । </p><p> दुष्ट तो कितने थे आपलोग ही देख लिजिए । पंक्षियों के लिए पानी रखती और बाद मे देखती कि वो गिरा हुआ है । लगा ग्रील के वजह से गिर जाता होगा फिर एक दिन खुद देखा पानी पीया महराज ने और चोच से पकड़ कर डब्बा गिरा दिया पानी का जानबूझकर। उस दिन मै फोटो ले रही थी तो सबूत के साथ रंगे चोच पकड़े गये । फिर हमने इस फोटो का प्रयोग किया पतिदेव को सुनाने के लिए , देख रहे हो ना तुम्हारे पितर लोग क्या क्या कर रहे है । खुद की चिंता है उन्हे बाकियो की नही 😂😂😂</p><p>दुष्टई यहां नही रूकी चिड़िया के दानो के लिए लटकाये फिडर को चोच से हिला हिला उसका दाना नीचे गिरा देता था । बाहर पानी रखा तो अपना खाना ला कर उसमे डूबा कर उसको गंदा कर देता । कौवों को खाना छुपाने की आदत है । कहीं से अतिरिक्त खाना पाता तो हमारे गमले या उसके नीचे छुपा जाता कुछ दिन तो हमने कुछ ना कहा फिर मांस मच्छी हड्डी ला कर छुपाना शुरू किया तब हमने इनका खाना वहां से फेकना शुरू किया । कौवे वैसे भी बहुत समझदार होते है दो बार मे ही समझ गये कि जगह सुरक्षित नही तो बंद कर दिया । </p><p><br /></p><p> लेकिन कल तो हद ही हो गयी छोटे गमले मे सफेद पत्थर रखे थे पता नही शायद जुकाम था इनको सो महक ना आयी इनको और अंडा समझ कर चोच से उठा ले गये । एक तो नीचे गिरा दिया शायद दूसरा हमारी ही दूसरी खिड़की के नीचे पड़ा देखा । कम से कम तीस चालीस ग्राम का एक पत्थर था और चार पांच फिट दूर दूसरी खिड़क पर हमे दिखा । कल फिर पतिदेव को सुनाया पितृपक्ष चल रहा है तुम्हारे पितरों को लगा होगा तुमने उनके लिए अंडे रखे है दावत के लिए । तुम्हारी ही तरह है सबके सब , अंडे और पत्थर का फर्क ना समझ आ रहा । देखो कही उनको कोरोना तो ना हो गया महक ना आ रही होगी । उनका किया तुम भुगतो निकालो वहां से मेरा पत्थर 😂😂😂</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpphLlBCgFfP0e630nxJ-C06dNzNIs5bNsDuxLT-Idq0NI_yJG9KRdF_xzn5oUtHL6K_GaBnWfTiKR2fswxQryhhtJ7XM-sFh7SwgUjStylKVHRjGyML09iUvUfEcem5pE7E3HiSBEFofU8z4KnRx5vufRh-ondbWKNzoaYynEMvWrkY4BpRLgN2ReNQ/s4000/20220918_162140.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="4000" data-original-width="3000" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpphLlBCgFfP0e630nxJ-C06dNzNIs5bNsDuxLT-Idq0NI_yJG9KRdF_xzn5oUtHL6K_GaBnWfTiKR2fswxQryhhtJ7XM-sFh7SwgUjStylKVHRjGyML09iUvUfEcem5pE7E3HiSBEFofU8z4KnRx5vufRh-ondbWKNzoaYynEMvWrkY4BpRLgN2ReNQ/s320/20220918_162140.jpg" width="240" /></a></div><br /><p><br /></p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9018826800392573952.post-29325781044231587902022-08-15T08:24:00.000+05:302022-08-15T08:24:03.695+05:30प्रतिकात्मक देश भक्ति से आगे एक समय था जब हर किसी को झंडा फहराने का अधिकार नही था । ये साल का दो सरकारी कार्यक्रम और क्रिकेट मैच के समय मैदान ती सीमित था । झंडे के प्रति इतनी संवेदनशीलता होती और साथ मे इतने नियम कानून , मान अपमान की पूछिये मत । <div><br /></div><div>तब अमेरिकन को देख कर लगता ये तो अपने झंडे का पजामा बिकनी तक पहन लेते इनके झंडे का अपमान ना होता ,ये संवेदनशील नही होते उसके प्रति। ये और इनका झंडा तो सबसे ताकतवर है फिर ऐसा क्यो है । लेकिन अच्छा लगता कि झंडे पर सबका अधिकार है ।</div><div><br /></div><div>फिर वो समय भी आया जब हम सब को भी तीरंगा फहराने हाथ मे ले कर चलने का अधिकार मिला । आप सभी को भी याद होगा क्या उत्साह था उस समय आम लोगो मे । हर घर तीरंगा तब भी था और स्वतः था । लेकिन देश के प्रति कोई कर्तव्य याद हो ना हो झंडे के प्रति बहुत सारे लोगो की संवेदनशीलता बनी रही और वो इसके मान अपमान कोड कंडक्ट आदि को लेकर विरोध नाराजगी दिखाते रहे । </div><div><br /></div><div>शुरू मे मुझे भी लगता था फिर धीरे धीरे लगा झंडे के प्रति प्रतिकात्मक संवेदनशीलता , प्रतिकात्मक देशभक्ति से आगे की सोचना चाहिए। ब्याह के बाद कोई दस साल तक साल मे दो बार अपने घर मे झंडा जो लगाती थी वो बंद कर दिया । </div><div><br /></div><div>देश के नियम कानून ना मान रहे । देश को बढ़ाने मे कोई सहयोग ना कर रहे तो इन सब प्रतिकात्मक देशभक्ति का कोई मतलब नही है । झंडा लगाइये राष्ट्रीय पर्व धूमधाम से मनाइये लेकिन साथ मे खुद को और आगे आने वाली पीढ़ी को असली देशभक्ति भी सीखिये और सिखाये । बस झंडे फहराने तक सीमित मत रहिये । तभी इन सब का कोई अर्थ है वरना बस छुट्टी का दिन है मौज मस्ती आराम मे निकल जाना है । </div><div><br /></div><div>बकिया झंडे पर सबका बराबर का अधिकार है क्या ऊंची अट्टालिका और क्या हमारा कबूतर खाना । उनका भी झंडा ऊँचा रहे और हमारा भी लहराता फहराता ऊँचा रहे । </div><div><br /></div><div>अब बिटिया ने अपने घर मे फिर से शुरू किया है झंडा लगाना देखते है ये हवा बस इस साल का देखा देखी है या आगे भी याद रहता उन्हे । <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjwNimiVOZds0TPsGaxC65P910UgkFse7g2pfqwEJeseXu5sZtowtnhtpFiFcYw_UC3oWzfbV5rN9PrSDJT29lNpXqmSmqqk3fmDvE3n44E1-0XKHPaWwTvfPhRmxx1N-HmsU4KZ96X_qQEwB7R3D1X-V0_11Ue-YAe6qLgfWYuMEs3jBVfw0nX98wGVw/s4000/20220815_075543.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="4000" data-original-width="3000" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjwNimiVOZds0TPsGaxC65P910UgkFse7g2pfqwEJeseXu5sZtowtnhtpFiFcYw_UC3oWzfbV5rN9PrSDJT29lNpXqmSmqqk3fmDvE3n44E1-0XKHPaWwTvfPhRmxx1N-HmsU4KZ96X_qQEwB7R3D1X-V0_11Ue-YAe6qLgfWYuMEs3jBVfw0nX98wGVw/s320/20220815_075543.jpg" width="240" /></a></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9OX75V5cniLaOqAzU93OUECGLz3JgqrOPSy8fvZNVxwrBsLBPyx-SyUMjdeIcLY6jPaQHzMfVVLjxWhQzZLs7I70W4IGt9zutmCU8H_WJK2eDHAjbcIqeYlS9JSCpQJh7uetucAhaFC7KWiCOOlzb-_dAyRQa2OeGEtfqQOwovU1QrLKa31OgQf6Udg/s4000/20220805_175103.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="4000" data-original-width="3000" height="320" 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देना चाहिए। रोज रोज खुद खा कर उसे खत्म नही करना चाहिए। मठरी सेव नमकीन आदि तो खत्म कर दिये गये लेकिन पापड़ और चावल धर दिये गये खास के लिए । </p><p> मुंबई के मौसम से अनजान बस महिना डेढ़ महीने बाद ही पापड़ मे फंगस लग गया और चावल मे घुन । मायके से आयी एक एक चीज कैसे दिल के करीब होती है ये सब स्त्रियां ही समझ सकती है । पापड़ और चावल की हालत देख इतना दुख हुआ कि समझ लिजिए बस रोये भर नही । </p><p> उस दिन पतिदेव ने समझाया कि मुंबई मे बारिश मे अनाज ऐसे ही खराब होते है या तो ज्यादा खरीदो मत या फ्रिज मे रखो । वो दिन है और आज का दिन बारिश आते ही फ्रिज अलमारी बन जाती है यहां । जैसे जैसे पता चलता गया , खराब होने या किड़े लगने के बाद , कि ये भी खराब हो सकता है सब फ्रिज मे जाता गया । </p><p> मूंग , राजमा , उरद, रवा , मैदा, काॅफी , मूंगफली और ना जाने क्या क्या । जब बिटिया हुयी तो घर मे नमकीन बिस्किट ज्यादा आना शुरू हुआ । उसके लिए अलग से खास एयर टाइट डब्बे आदि खरीदे गये । यहां तो ये हालत है खाने के साथ दो मूंग के पापड़ लेकर बैठते है दूसरे वाले का नंबर आते वो मुलायम हो लटकना शुरू हो जाता है बारिश के इस मौसम मे । </p><p> अब वो खास डब्बे खराब हो गये तो बिस्किट का पैकेट तभी खुलता है जब तीनो साथ घर मे हो ताकि एक ही बार मे उसे खत्म कर दिया जाये । घ॔टे भर मे ही वो मेहरा जाता है । चिप्स कुरकुरे के पैकेट लेते समय चेक किया जाता है हवा जरा भी कम ना हो उसमे , नही तो अंदर सब मेहराया मिलेगा । </p><p> नमकीन का वही पैकेट लिया जाता है जिसमे बंद करने के लिए जिपर हो भले बड़ा पैकेट लेना पड़े । क्योकि डब्बे भी उन्हे सुरक्षित नही रख पाते । बाकि बरसात मे मौसम चटर पटर खाने की इच्छा जाग्रीत कर डायटिंग की वाट लगवाता है वो अलग मुसीबत है । यहां तो चार महीने बरसात होती वो भी लगातार । खुद पर काबू कर भी लो तो बाकि दो ना मानते । </p>anshumalahttp://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com0