अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने गई तो एक अजीब सी दहशत सबके चेहरे पर थी और एक सवाल " कल अपनी बच्ची को स्कूल भेज रही हो क्या मैं तो नही भेज रही हुं " सबके चेहरे पे व्याप्त दहशत की लकीरें और सवालों ने मुझे भी डरा दिया जो अब तक नहीं था | कुछ नहीं होगा का नारा जो मैं अब तक लगा रही थी अब मेरा ही विश्वास उस पर से उठ गया है अब तो लग रहा है की जैसे वास्तव में कुछ होने वाला है | सही स्थिति जानने के लिए जब कोई न्यूज़ चैनल देख रही हुं ( शायद यही मेरी बेवकूफी है ) तो वह और भी डरा रहा है | पूरा देश हाई एलर्ट ,३२ शहर और चार राज्य संवेदनशील घोषित चारों तरफ सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद हो गई है सेना को भी एलर्ट कर दिया गया है कही गड़बड़ी होने पर वहा पर दस मिनट में सुरक्षा कर्मी पहुँच जायेंगे सरकार की अपील की शांति बनाये रखे और ख़ुशियाँ ना मनाये | मानव रहित विमान और मिग भी सुरक्षा के लिए तैनात है वायु सेना और थल सेना दोनों मिल कर काम कर रहे है ये कामनवेल्थ की सुरक्षा से जुड़ीं खबर है पर एक साथ ये खबर दिखाने से पूरा घालमेल हो जा रहा है इतनी सारी ख़बरे सुनने के बाद तो डर और भी बढ़ गया जब सरकार ही माने बैठी है की कुछ होने वाला है तो हम कौन होते है ये सोचने वाले की कुछ नहीं होने वाला है | इस तरह की ख़बरे जब टीवी चैनलों द्वारा सरकारें फैलाती है तो उससे आम आदमी का डर कम नहीं होता है बल्कि उसे और डरा देती है | अरे सरकार को कोई सुरक्षा व्यवस्था करनी है तो वो चुप चाप कर सकती है उसके लिए इतना शोर मचाने की क्या आवश्यकता है | अगर वो ये समझती है कि इस तरह की ख़बरे फैला कर वो किसी दंगाई गुंडे मवाली या गड़बड़ी फ़ैलाने वाले को रोक सकती है या डरा सकती है तो मैं इसको उनका भोलापन ही कहूँगी इन खबरों से दंगाई या गड़बड़ी फ़ैलाने वाले नहीं आम लोग डरते है | उनको तो जो करना है और जब करना है कर ही लेंगे उनको सुरक्षा बलों का डर नहीं होता है जो होता तो शायद दुनिया में कही भी कोई अपराध नहीं होता | इस तरीके से तो आप उनको और सावधान कर रहे है और अपनी रणनीति ठीक से बनाने का मौका दे रहे है वरना ये बताने की जरुरत ही क्या है कि कहा कितने सुरक्षा कर्मी होंगे कहा क्या सुरक्षा व्यवस्था है | सरकार ने तो सीधे कहा दिया है की अंशु जी आप का शहर और राज्य दोनों ही संवेदनशील है अब आप ही बताइए की जब सरकार ही ऐसी बात कहेगी खुले आम तो क्या है मुझ में हिम्मत की अपनी छोटी सी बच्ची को सात किलोमीटर दूर उसके स्कूल भेज दू कल | मैंने तो अपने पति को भी आज हिदायत दे दी की कल यदि जरुरत नहीं है तो आँफिस से छुट्टी ही ले लो या कम से कम उन क्षेत्रो में मत जाना जहा एक समुदाय के ज्यादा लोग रहते है या जहा पर एक राजनीतिक पार्टी का ज्यादा दबदबा है हमारा शहर राज्य दोनों संवेदनशील है | इस संवेदनशील शहर के किसी संवेदन शील इन्सान की संवेदना को कही फैसले से चोट लगी तो पता नहीं वह असंवेदना दिखाते हुए किस किस को कितनी चोट पहुचायेगा |
जो सरकार को आम लोगों की चिंता होती उनके सुरक्षा की चिंता होती तो मीडिया के साथ मिल कर इस तरह की दहशत फैलाने की जगह अपना ख़ुफ़िया तंत्र मजबूत करती उनको काम पर लगाती और अंदर ही अंदर उन लोगों का पता करवाती जो इस तरह के मनसूबे बना रहे है और उन्हें अंजाम तक पहुँचाने से पहले ही पकड़ती | जो कल किसी ने फैसले के बाद ख़ुशियाँ मनानी शुरू कर दी या किसी ने कोई गड़बड़ी की उसके बाद उसे रोकने का क्या फायदा क्योंकि एक बार किसी की की गई ये हरकत और लोगों को भी ऐसा करने का बढ़ावा देगी | आप सिर्फ बल्क एस एम एस भेजने पर रोक लगा कर ये सोच रहे है कि आज की संचार क्रांति के युग में खबरों को फैलने से रोक लेंगे तो ये आप की नादानी ही है |
शायद सरकार को मालूम ही नहीं है कि इस तरह के मामलों से कैसे निपटा जाता है या कही ऐसा तो नहीं की सरकार जानबूझ के ये ख़बरे लोगों में फैला रही है ताकि लोगों का और मीडिया का भी इस समय किसी और मुद्दे से ध्यान हट जाये कामनवेल्थ से जुड़े घपलो की तरफ से | जिस तरह महँगाई के मुद्दे को कामनवेल्थ के घपलो की खबरों ने खा लिया उसी तरह अयोध्या पर आ रहे फैसले के मुद्दे को इस तरह उछालो की लोग घपलो को भूल जाये | इससे अच्छा मामला और क्या होगा जिसमे सरकार कोई पक्ष नहीं है और उससे कोई सवाल भी नहीं करेगा और ना ही उसको घेरेगा और न्यायलय के खिलाफ कोई कुछ बोल नहीं सकता है | जो कही कोई गड़बड़ी हुई भी तो उसमे सरकार का कोई दोष नहीं निकल पायेगा जो बड़ी गड़बड़ी हो गई तो देखा जायेगा पर कम से कम कामनवेल्थ में फसी गर्दन तो बाहर आ जाएगी | वैसे भी हमारी सरकारें फौरी इलाज में विश्वास करती आई है बाद में आये परिणाम से बाद में निपट लेंगे |
वैसे इन सारी सुरक्षा व्यवस्था का क्या मतलब है सरकार के लिए और वो उस पर कितना भरोसा करती है वो कल आये शीला दीक्षित के बयान से जाहिर हो जाता है जब वह बाहर से आये खिलाड़ियों और अधिकारियों को ये कह रही है की यदि उनके समान चोरी हो रहे है तो वो अपने कमरों का दरवाज़ा बंद करके जायेस्वदेशियो को तो इन सब की आदत है |
वैसे आप बताइये की सरकार द्वारा घोषित संवेदनशील राज्य की निवासी मैं कल अपनी बेटी को स्कूल ले जाऊ की नहीं |
September 29, 2010
September 24, 2010
क्या आप इस टेस्ट को पास कर सकते है - - - - - - -mangopeople
एक मजेदार ई मेल पर नजर पड़ी सोचा आप लोगों के साथ शेयर कर लू |
इस टेस्ट को पास करीये मेरी तरफ से शुभकामनये
एक छोटा Neurological टेस्ट
समय २० सेकेण्ड हर एक के लिए
1- नीचे दिए चित्र में c खोजिये पर हा कर्सर का प्रयोग मत कीजिये
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2- आप ने c खोज लिया है तो अब जरा इनमे से 6 खोज कर बताइये पर कर्सर प्रयोग मत कीजिये
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3 - और अब जरा N खोज कर बताइये थोडा मुश्किल है ना
MMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMNM M
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यह मजाक नहीं है यदि आप ने यदि आप ने ये तीन टेस्ट पास कर लिया है तो आप को अपने न्यूरोलाजिस्ट के पास जाने की आवश्यकता नहीं है | Your brain is great and you're far from having a close relationship with Alzheimer.
बधाई हो
हा एक टेस्ट और दीजिये ....
44 th अमेरिकन राष्ट्रपति को ढूंढ़ कर बताइये
चलिए ढूंढ़ लिया बधाई हो आप colour blind भी नहीं है !
To my 'selected' strange-minded friends:
This is weird, but interesting!
If you can raed this, you have a sgtrane mnid too
Can you raed this? Olny 55 plepoe out of 100 can.
I cdnuolt blveiee that I cluod aulaclty uesdnatnrd what I was rdanieg. The phaonmneal pweor of the hmuan mnid, aoccdrnig to a rscheearch at Cmabrigde Uinervtisy, it dseno't mtaetr in what oerdr the ltteres in a word are, the olny iproamtnt tihng is that the frsit and last ltteer be in the rghit pclae. The rset can be a taotl mses and you can still raed it whotuit a pboerlm. This is bcuseae the huamn mnid deos not raed ervey lteter by istlef, but the word as a wlohe. Azanmig huh? Yaeh and I awlyas tghuhot slpeling was ipmorantt!
है ना मजेदार बोलिये कैसा लगा
इस टेस्ट को पास करीये मेरी तरफ से शुभकामनये
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बधाई हो
हा एक टेस्ट और दीजिये ....
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चलिए ढूंढ़ लिया बधाई हो आप colour blind भी नहीं है !
To my 'selected' strange-minded friends:
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है ना मजेदार बोलिये कैसा लगा
September 22, 2010
क्या संस्कारो के नाम पर बच्चो के साथ ये दूरी ठीक है - - - - - - mangopeople
टीवी पर ये खबर देख कर काफी दुख हुआ की बच्चों को स्कूल ले कर जाने वाला कैब ड्राइवर लम्बे समय से बच्चों का रेप कर रहा था और माँ बाप को इस बात की जानकारी ही नहीं हुई की उनके तीन बच्चों के साथ ये सब हो रहा है | माँ को तब पता चला जब उन्होंने बच्चों के शरीर पर इंजेक्शन का निशान देखा | इस बात पर आश्चर्य होता है की तीनों बच्चों में से किसी ने भी इस बात की जानकारी कभी भी अपने घर पर नहीं दी | सोचिये की अक्सर बच्चे अपने साथ होने वाली ज्यादातर घटना अपने घर आ कर बताते है की आज मैं गिर गया मुझे चोट आई मुझे उसने मारा मुझे उसने गाली दी आदि आदि फिर क्या वजह थी की बच्चों ने इतनी बड़ी घटना अपने घर पर नहीं बताई | सिर्फ इस मामले में नहीं कई और मामले में भी छोटे बच्चों के साथ ही कई बार बड़े बच्चे भी अपने साथ होने वाली इस तरह की घटना के बारे में या किसी तरह के शारीरिक शोषण के बारे में अपने घर में बताने से बचते है या तब बताते है जब काफी देर हो चुकी होती है | आखिर इसकी वजह क्या है एक कारण तो ये है की ऐसा करने वाला उनको डरता धमकता है और किसी को ना बताने के लिए कहता है पर इससे बड़ा कारण मुझे लगता है ये है कि भारत में संस्कार के नाम पर खास कर माध्यम और निम्न वर्ग अपने और अपने बच्चों के बीच इस मामले में इतनी मोटी दीवार खड़ा कर लेता है जिसे बच्चे पार नहीं कर पाते है | जैसे ही बच्चों के सेक्स एजुकेशन की बात आती है लोग अपना मुँह बनाने लगते है संस्कारो की दुहाई देने लगते है जिसके अनुसार बच्चों को अपने परिवार से, बड़ों या ये कहे की किसी से भी सेक्स जैसे मुद्दों पर बात नहीं करनी चाहिए और इसे पश्चिमी गन्दगी करार दे देते है | मुझे लगता है की शायद वो ना तो इसका मतलब समझते है और ना इसकी ज़रूरतों को | कई बार तो जब बच्चे इस बारे में बड़ों को बताते है तो उनकी बातो को गंभीरता से लिया ही नहीं जाता है ये सोच लिया जाता है की किसी ने बच्चे से मज़ाक किया होगा और बच्चे ने कुछ गलत ही सोच लिया और कई बार तो उनकी ही गलती निकल दी जाती है खास कर लड़कियों के मामले में जैसे की लड़की ने घर पर आ कर कहा की किसी ने उसी परेशान किया छेड़ा या कमेन्ट पास किया तो सबसे पहले का दिया जाता है की उस तरफ गई ही क्यों ,या कितनी बार कहा है की बे वजह घर से मत निकला करो ,या तुने ही कुछ किया होगा किसी और के साथ तो ये नहीं होता है आदि | इससे होता ये है की अगली बार बच्चे के साथ कुछ होता है तो वो घर पर बताने से डरने लगता है की उसे ही डाट पड़ेगी या सब उसका मज़ाक उड़ायेंगे या उसका घर से निकलना बंद हो जायेगा |
ऐसा नहीं है की हमारी परंपरा में इस तरह के किसी शिक्षा की बात है ही नहीं बच्चों के बड़े होते ही खास कर लड़कियों के मासिक धर्म शुरू होते ही घर की बूढ़ी महिलाएँ बच्ची की माँ से कह देती थी की बच्ची बड़ी हो गई है उसे गलत सही की जानकरी दे दो | ये गलत सही की जानकारी सेक्स एजुकेशन ही होती है पर शायद उतने खुले और बड़े रूप में नहीं पर कुछ जानकरी अपने शरीर में हो रहे परिवर्तन के बारे और इस बारे में की उनको कैसे अपने आप को सुरक्षित रखना है जो काफी सतही होता था | पर आज सिर्फ इतनी जानकारी से काम नहीं बनेगा और ना ही बच्चों के बड़े होने तक रुकने का समय है | अब आप को लगेगा की एक चार पांच साल के बच्चे को इस बारे में कैसे बता सकते है या उसको हम क्या ज्ञान दे सकते है इस बारे में तो मुझे लगता है की सबसे पहले तो अपने बच्चों को बताये उन स्पर्श का अंतर जो आप उसको करते है और जो कोई दूसरा किसी गलत नियत से करता है | वैसे ही जैसे हम उनको बताते है की उसे किसी अजनबी से बात नहीं करनी चाहिए उसके साथ कही नहीं जाना चाहिए और उनकी दी चीजें कभी नहीं खानी चाहिए उसी तरह उन्हें ये बताये की उन्हें भी कभी किसी और को अपना शरीर को हाथ नहीं लगाने देना चाहिए खासकर उनके निजी अंगों को या कोई भी ऐसा करता है तो तुरंत ही आ कर घर पर बताये | इससे कम से कम वो अपने साथ होने वाले किसी दुर्व्यवहार को तुरंत आ कर घर पर बताएगा डरेगा या हिचकेगा नहीं और हम उसे वही रोक सकते है | भारतीय सभ्यता और संस्कार के नाम पर जो बच्चों से इस बारे में दूरी बनाई जा रही है उसे कम से कम इतना तो कम कर देना चाहिए की हमारे बच्चे हमसे कुछ भी कहने या पूछने से डरे नहीं |
मुझे तो लगता है की इस बारे में बच्चों के छोटे छोटे सवालों के जवाब परिवार को ज़रुर देना चाहिए जो अक्सर वो फ़िल्मे टीवी देख कर पूछते है वो भी बिना किसी हिचक के इससे होगा ये की एक तो बच्चे की जिज्ञासा समाप्त हो जाएगी और किसी गलत जगह से कुछ बे मतलब के ज्ञान लेने से बच जायेगा | अगर आप उसके दस में से पांच सवालों के जवाब भी दे देते है तो बाकी पांच सवाल जो उसको समझने लायक नहीं है उसे आप ये कह कर टाल भी सकते है की जब आप बड़े हो जायेंगे तो उनका जवाब समझ पाएंगे तो बच्चा खुद ही शांत हो जायेगा | अब कहने वाले कहेंगे कि देखा ये हमारे संस्कार ना मानने का नतीजा है या धर्म के अनुसार ना चलने का नतीजा है ब्ला ब्ला ब्ला जमाना इसी कारण ख़राब हो गाय है तो मुझे लगता है कि अब इसके लिए हम क्या कर सकते है ये तो ख़राब हो ही चूका है हम इसको तो नहीं सुधार सकते है पर अपने बच्चो की सुरक्षा के लिए जो हमें करना चाहिए और जो हम कर सकते है वो तो करेंगे ही मतलब की उसे तो समझाना ही पड़ेगा की वो कैसे इस ख़राब जमाने में खुद को सुरक्षित रख सकता है भले इसके लिए एक और संस्कार को छोड़ना पड़े |
पर ये सब तो उनके लिए है जो माँ बाप समझदार है जो उनके सवालों के जवाब दे सकते है पर हमारे देश में एक बड़ी संख्या ऐसे माँ बाप की है जो जानते ही नहीं की वो बच्चों को बताये क्या या कम पढ़े लिखे है | इसके लिए तो मुझे लगता है की सरकार और स्कूलों को ही इस बारे में पहल करनी चाहिए पता नहीं वो क्यों इसको शुरू करने में डर रहे है | शायद ये डर भारतीय सभ्यता संस्कृति के रक्षकों का है | मेरा ज्ञान अपनी संस्कृति के बारे में काफी छोटा है मुझे पता ही नहीं था की " काम सूत्र " स्पेनिश में लिखा गया था और " खजुराहो " से ले कर अनेक प्राचीन मंदिर किसी पश्चिमी देश से इम्पोर्ट किये गये थे ..............
नोट -----------मै इस विषय की बड़ी जानकार नहीं हु एक आम और निजी विचार है लेख में और सुधार संभव है आप अपने विचार देकर इसे पूरा कर सकते है |
ऐसा नहीं है की हमारी परंपरा में इस तरह के किसी शिक्षा की बात है ही नहीं बच्चों के बड़े होते ही खास कर लड़कियों के मासिक धर्म शुरू होते ही घर की बूढ़ी महिलाएँ बच्ची की माँ से कह देती थी की बच्ची बड़ी हो गई है उसे गलत सही की जानकरी दे दो | ये गलत सही की जानकारी सेक्स एजुकेशन ही होती है पर शायद उतने खुले और बड़े रूप में नहीं पर कुछ जानकरी अपने शरीर में हो रहे परिवर्तन के बारे और इस बारे में की उनको कैसे अपने आप को सुरक्षित रखना है जो काफी सतही होता था | पर आज सिर्फ इतनी जानकारी से काम नहीं बनेगा और ना ही बच्चों के बड़े होने तक रुकने का समय है | अब आप को लगेगा की एक चार पांच साल के बच्चे को इस बारे में कैसे बता सकते है या उसको हम क्या ज्ञान दे सकते है इस बारे में तो मुझे लगता है की सबसे पहले तो अपने बच्चों को बताये उन स्पर्श का अंतर जो आप उसको करते है और जो कोई दूसरा किसी गलत नियत से करता है | वैसे ही जैसे हम उनको बताते है की उसे किसी अजनबी से बात नहीं करनी चाहिए उसके साथ कही नहीं जाना चाहिए और उनकी दी चीजें कभी नहीं खानी चाहिए उसी तरह उन्हें ये बताये की उन्हें भी कभी किसी और को अपना शरीर को हाथ नहीं लगाने देना चाहिए खासकर उनके निजी अंगों को या कोई भी ऐसा करता है तो तुरंत ही आ कर घर पर बताये | इससे कम से कम वो अपने साथ होने वाले किसी दुर्व्यवहार को तुरंत आ कर घर पर बताएगा डरेगा या हिचकेगा नहीं और हम उसे वही रोक सकते है | भारतीय सभ्यता और संस्कार के नाम पर जो बच्चों से इस बारे में दूरी बनाई जा रही है उसे कम से कम इतना तो कम कर देना चाहिए की हमारे बच्चे हमसे कुछ भी कहने या पूछने से डरे नहीं |
मुझे तो लगता है की इस बारे में बच्चों के छोटे छोटे सवालों के जवाब परिवार को ज़रुर देना चाहिए जो अक्सर वो फ़िल्मे टीवी देख कर पूछते है वो भी बिना किसी हिचक के इससे होगा ये की एक तो बच्चे की जिज्ञासा समाप्त हो जाएगी और किसी गलत जगह से कुछ बे मतलब के ज्ञान लेने से बच जायेगा | अगर आप उसके दस में से पांच सवालों के जवाब भी दे देते है तो बाकी पांच सवाल जो उसको समझने लायक नहीं है उसे आप ये कह कर टाल भी सकते है की जब आप बड़े हो जायेंगे तो उनका जवाब समझ पाएंगे तो बच्चा खुद ही शांत हो जायेगा | अब कहने वाले कहेंगे कि देखा ये हमारे संस्कार ना मानने का नतीजा है या धर्म के अनुसार ना चलने का नतीजा है ब्ला ब्ला ब्ला जमाना इसी कारण ख़राब हो गाय है तो मुझे लगता है कि अब इसके लिए हम क्या कर सकते है ये तो ख़राब हो ही चूका है हम इसको तो नहीं सुधार सकते है पर अपने बच्चो की सुरक्षा के लिए जो हमें करना चाहिए और जो हम कर सकते है वो तो करेंगे ही मतलब की उसे तो समझाना ही पड़ेगा की वो कैसे इस ख़राब जमाने में खुद को सुरक्षित रख सकता है भले इसके लिए एक और संस्कार को छोड़ना पड़े |
पर ये सब तो उनके लिए है जो माँ बाप समझदार है जो उनके सवालों के जवाब दे सकते है पर हमारे देश में एक बड़ी संख्या ऐसे माँ बाप की है जो जानते ही नहीं की वो बच्चों को बताये क्या या कम पढ़े लिखे है | इसके लिए तो मुझे लगता है की सरकार और स्कूलों को ही इस बारे में पहल करनी चाहिए पता नहीं वो क्यों इसको शुरू करने में डर रहे है | शायद ये डर भारतीय सभ्यता संस्कृति के रक्षकों का है | मेरा ज्ञान अपनी संस्कृति के बारे में काफी छोटा है मुझे पता ही नहीं था की " काम सूत्र " स्पेनिश में लिखा गया था और " खजुराहो " से ले कर अनेक प्राचीन मंदिर किसी पश्चिमी देश से इम्पोर्ट किये गये थे ..............
नोट -----------मै इस विषय की बड़ी जानकार नहीं हु एक आम और निजी विचार है लेख में और सुधार संभव है आप अपने विचार देकर इसे पूरा कर सकते है |
September 18, 2010
कही आपकी श्रद्धा किसी की मुसीबत ना बन जाये - - - - - - - mangopeople
सात वार और नौ त्यौहारों के हमारा देश में हर तीज त्यौहार को मनाने का उत्साह एक जैसा ही होता है क्या होली क्या गणपति पूजा क्या दुर्गा पूजा और क्या दीवाली सभी त्यौहार बड़े धूम धाम और बड़े शोर गुल जी हा शोर गुल के साथ मनाया जाता है बिना इस बात की फ़िक्र करे की इससे किसी और को परेशानी हो सकती है | पूजा पंडालो में बजता तेज संगीत हो या मूर्तियों के आगमन और विसर्जन के समय बजता ढोल नगाड़ा या पटाखों का शोर या घंटो सड़क पर नाच नाच कर उसको जाम करना हो सब कुछ बिना किसी चिंता बिना किसी फ़िक्र के दिल खोल कर बजाया और किया जाता है | एक सामान्य आदमी तो इसे श्रद्धा के कारण सह भी ले पर उनका क्या जो बीमार हो जिनकी परीक्षाये हो जिनसे दस दस दिन तक रोज सुबह शाम ये शोर ना बर्दाश्त होता हो जो चैन से सोना चाह रहे हो या जिसके पास श्रद्धा ना हो या किसी और धर्म का हो | अभी हाल ही में मैंने समाचार पत्रों में पढ़ा की किसी ने इस बात पर फतवा लिया है की क्या रोजा रखने वालो को सुबह बार बार मस्जिद से अजान लगा कर जगाना सही है क्योंकि इससे बीमार लोगों बच्चों और दूसरे धर्म के लोगों को परेशानी होती है | फतवा दिया गया की हा ये गलत है | फतवे के बाद भी क्या इस बात को सभी ने माना, नही | जब लोग कोर्ट के दिए आदेश को भी हर जायज़ - नाजायज तरीके से तोड़ने की कोशिश करते है उससे बचने की कोशिश करते है तो किसी और की वो क्या बात सुनेंगे | फिर कोर्ट ने ये तो कह दिया की रात दस बजे के बाद गाना बजाना मना है और उसके आदेश के कारण दस बजते ही सारे बड़े बड़े स्पीकर बंद हो जाते है पर जो सुबह आठ बजे से बारह बजे तक और शाम को चार बजे से दस बजे तक इन भोपुओ से तेज संगीत बजाय जाता है उसको कैसे रोका जाये और रात दस बजे के बाद विसर्जन के लिए जाती मूर्तियों के साथ होने वाले शोर को कैसे रोका जाये | उस पर से वो कभी कभी तो एक ही जगह रुक कर घंटो नाचना शुरु कर देते है बिना ये सोचे की उनके ऐसा करने से उनके पीछे हजारों लोग जाम में फस जा रहे है जिनमे से कुछ लोग ज़रुरी काम से जा रहे होंगे या कोई बीमार अस्पताल जा रहा होगा | इसी तरह होली के हुड़दंग और दीवाली के पटाखे भी लोगों को परेशान करते है | जब होली के कुछ दिन पहले से ही घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है मुंबई दिल्ली जैसे शहरों में तो नहीं पर उत्तर भारत के छोटे शहरों में कोई भरोसा नहीं होता की कब कौन कहा से आप के ऊपर रंग डाल दे और आप के कपड़े ख़राब होने के बाद कह दे की बुरा न मानो होली है | सबसे ज्यादा मुसीबत लड़कियों और महिलाओ को होती है रंगों के साथ ही हुड़दंगियो से | उसी तरह दसहरे के बाद से दीवाली बीतने के चार दिन बाद तक पटाखों का शोर कान के परदे फाड़ता रहता है |
कुछ लोग यह भी कहते है कि "जी ये तो साल का त्यौहार है कौन सा रोज रोज आने वाला है दो चार दस दिन उत्सव मना भी लिया तो किसी को क्या परेशानी है" | तो मैं आप को सिर्फ अपनी परेशानी बताती हुं | जन्माष्टमी के एक महीने पहले से ही गोविन्दाओ की टोली तेज तेज गाने बजा कर अभ्यास करती रही जन्माष्टमी बीता फिर गणपति आ गया अब इसमे भी गये बारह दिन भजन सुनते फिर तुरंत ही नवरात्रि आ जाएगी फिर दस दिन गये देवी भजन सुनते या डांडिया पंडालो में बजते फ़िल्मी गानों को, फिर पंद्रह दिन बाद ही पटाखे बजने शुरु हो जायेंगे क्योंकि दीवाली पास होगी और दीवाली के चार दिन बाद तक ये पटाखे बजते रहेंगे | साल का त्यौहार बस एक दो दिन का उत्साह के नाम पर मैं पूरे चार महीने जुलाई अगस्त से अक्तूबर नवंबर तक ये सब हर साल झेलती हुं | एक स्वस्थ , सामान्य इन्सान होने के कारण ये सब झेल लेती हुं पर जो बूढ़े है बच्चे है बीमार है उनका हाल क्या होता होगा |
क्या भगवान के प्रति श्रद्धा दिखाने या कोई उत्सव या त्यौहार मनाने का बस यही तरीका है | क्या हम थोड़ा और अनुशासित हो कर अपने तीज त्यौहार नहीं मना सकते है | मैं ये नहीं कहती की होली पर रंग ना खेला जाये पर इसे होली को एक दिन और अपने करीबियों तक ही सीमित किया जा सकता है जो नहीं चाहते या जो आप से अजनबी है उन्हें रंगने की जरुरत ही क्या है | क्या दीवाली पर तेज आवाज़ के पटाखे बजाने ज़रुरी है हम रोशनी वाले कम आवाज़ वाले पटाखे बजा कर और दो दिन पटाखे बजा कर भी दीवाली मना सकते है उसके मजे ले सकते है | पूजा पंडालो में इतना तेज और देर तक संगीत बजाने की जरुरत ही क्या है | पूजा पंडालो का मजा तो उसे देखने आये लोगों के उत्साह से है ना की तेज बजते भजनों से | ये भी नहीं कह सकते है की तेज बजते भजन पंडालो के होने की सूचना देता है पंडाल तो खुद में इतने बड़े होते है की कोई भी उसे देख सकता है फिर लाईटो की सजावट तो खुद ही इस उत्साह में बढ़ोतरी करता है | मुंबई में हर साल मैं विसर्जनविसर्जन के दौरान भी देख चुकी हुं | ये श्रद्धा का कौन सा रूप है क्या ये सही है | निश्चित रूप से हमें अपने अराध्य के विसर्जन के समय हमें ख़ुशियाँ मनानी चाहिए पर इसके लिए सारे रास्ते नाचने की क्या आवश्यकता है ये काम हम पंडाल के पास और फिर विसर्जन स्थल के पास भी कर सकते है या फिर चलते हुए करके |
मुझे याद है की जब मैं छोटी थी तो मुझे भी पटाखे जलाना अच्छा लगता था आवाज़ जितनी तेज होती मजा उतनी ही ज्यादा आता था पर बड़े होने के बाद दूसरों की परेशानी देख कर और इससे होने वाले शोर को देख कर वो सब बुरा लगने लगा और पटाखे जलाने बंद कर दिया अब आप कब बड़े होंगे |
कुछ लोग यह भी कहते है कि "जी ये तो साल का त्यौहार है कौन सा रोज रोज आने वाला है दो चार दस दिन उत्सव मना भी लिया तो किसी को क्या परेशानी है" | तो मैं आप को सिर्फ अपनी परेशानी बताती हुं | जन्माष्टमी के एक महीने पहले से ही गोविन्दाओ की टोली तेज तेज गाने बजा कर अभ्यास करती रही जन्माष्टमी बीता फिर गणपति आ गया अब इसमे भी गये बारह दिन भजन सुनते फिर तुरंत ही नवरात्रि आ जाएगी फिर दस दिन गये देवी भजन सुनते या डांडिया पंडालो में बजते फ़िल्मी गानों को, फिर पंद्रह दिन बाद ही पटाखे बजने शुरु हो जायेंगे क्योंकि दीवाली पास होगी और दीवाली के चार दिन बाद तक ये पटाखे बजते रहेंगे | साल का त्यौहार बस एक दो दिन का उत्साह के नाम पर मैं पूरे चार महीने जुलाई अगस्त से अक्तूबर नवंबर तक ये सब हर साल झेलती हुं | एक स्वस्थ , सामान्य इन्सान होने के कारण ये सब झेल लेती हुं पर जो बूढ़े है बच्चे है बीमार है उनका हाल क्या होता होगा |
क्या भगवान के प्रति श्रद्धा दिखाने या कोई उत्सव या त्यौहार मनाने का बस यही तरीका है | क्या हम थोड़ा और अनुशासित हो कर अपने तीज त्यौहार नहीं मना सकते है | मैं ये नहीं कहती की होली पर रंग ना खेला जाये पर इसे होली को एक दिन और अपने करीबियों तक ही सीमित किया जा सकता है जो नहीं चाहते या जो आप से अजनबी है उन्हें रंगने की जरुरत ही क्या है | क्या दीवाली पर तेज आवाज़ के पटाखे बजाने ज़रुरी है हम रोशनी वाले कम आवाज़ वाले पटाखे बजा कर और दो दिन पटाखे बजा कर भी दीवाली मना सकते है उसके मजे ले सकते है | पूजा पंडालो में इतना तेज और देर तक संगीत बजाने की जरुरत ही क्या है | पूजा पंडालो का मजा तो उसे देखने आये लोगों के उत्साह से है ना की तेज बजते भजनों से | ये भी नहीं कह सकते है की तेज बजते भजन पंडालो के होने की सूचना देता है पंडाल तो खुद में इतने बड़े होते है की कोई भी उसे देख सकता है फिर लाईटो की सजावट तो खुद ही इस उत्साह में बढ़ोतरी करता है | मुंबई में हर साल मैं विसर्जनविसर्जन के दौरान भी देख चुकी हुं | ये श्रद्धा का कौन सा रूप है क्या ये सही है | निश्चित रूप से हमें अपने अराध्य के विसर्जन के समय हमें ख़ुशियाँ मनानी चाहिए पर इसके लिए सारे रास्ते नाचने की क्या आवश्यकता है ये काम हम पंडाल के पास और फिर विसर्जन स्थल के पास भी कर सकते है या फिर चलते हुए करके |
मुझे याद है की जब मैं छोटी थी तो मुझे भी पटाखे जलाना अच्छा लगता था आवाज़ जितनी तेज होती मजा उतनी ही ज्यादा आता था पर बड़े होने के बाद दूसरों की परेशानी देख कर और इससे होने वाले शोर को देख कर वो सब बुरा लगने लगा और पटाखे जलाने बंद कर दिया अब आप कब बड़े होंगे |
September 14, 2010
आप को क्या लगता है की जुगाड़ सिर्फ भारत का आम आदमी ही करता है जरा इनको देखिये
Gotta feed the baby AND do the laundry? No problem-o! |
No spoon? No problem-o! |
Seatbelt broken? No problem-o! |
New TV too big for the old cabinet? No problem-o! |
Cables falling behind the desk? No problem-o! |
No bottle opener? No problem-o! |
Fuse burnt out? No problem-o! |
Car stereo stolen? No problem-o! |
Can't afford a real GPS? No problem-o! |
No ice chest? No problem-o! |
Can't read the ATM screen? No problem-o! |
Exhaust pipe dragging? No problem-o! |
Car can't be ordered with the "Woody" option? No problem-o! |
Desk overloaded? No problem-o! |
Tires worm out? No problem-o! Might be a little hard to steer. |
Display rack falling over? No problem-o! |
What the? |
Wiper motor burned out? No problem-o! |
Electric stove broken & can't heat coffee? No problem-o! |
Satellite go out in the rain? No problem-o! |
Car imported from the wrong country? No problem-o! |
Bookshelf cracking under the weight? No problem-o! |
Out of diapers? No problem-o! |
September 09, 2010
अल्लाह ने कहा मेरे बंदे ज्यादा मुर्ख है भगवान ने कहा मेरे भक्त ज्यादा मुर्ख है बोलो कौन सही है_- - - - - - mangopeople
अल्लाह अपने पीसी को देख कर जोर जोर से हसे जा रहे थे भगवान से रहा नहीं गया बोले यार क्यों इतने जोर से हसे जा रहे हो मुझे भी बताओ मैं भी थोड़ा हस लू अल्लाह ने कहा ये देखो इस ब्लॉग में क्या लिखा है लिखते है की आओ ईद पर अल्लाह से दुआ करे की फैसला हमारे पक्ष में हो और उस ज़मीन पर अल्लाह का घर हम बनाये बोलो अब मेरे इतने बुरे दिन आ गये है की जो हमारे दिए घर में रह रहा है वो हमारे लिए कैपेन कर रहा है मुझ पर विश्वास करने वाला ये कितना मुर्ख है तो भगवान ने कहा मुझ पर विश्वास करने वाला भी कम नहीं है कह रहा था की यदि उस ज़मीन पर मेरे लिए घर बनने का ठेका उसे नहीं मिला तो वो सड़क पर हजारों लोगों को लेकर उतरेगा और आन्दोलन करेगा कमबख्त पीछे मुड़ कर भी नहीं देख रहा है की उसके पीछे तो कोई है ही नहीं | अल्लाह ने कहा मेरे बंदे ज्यादा मुर्ख है मैंने तो उनसे कहा की मुझे याद करना है तो कही भी एक दिशा की और मुँह करके मुझे याद कर लेना काफी है पर वो अड़े है की वो मुझे याद करेंगे तो उसी एक जगह पर भगवान ने कहा नहीं मित्र मेरे भक्तो की मुरखता के आगे तेरे कुछ भी नहीं है मैंने तो कहा था की मैं तो हर दिशा में हुं कण कण में हुं तुम्हारे अंदर भी हुं जहा चाहो जब चाहो जिस अवस्था में चाहो मुझे याद कर सकते हो पर वो भी अड़ा बैठा है की मैं तो पुजूंगा तुमको तो उसी ज़मीन पर | फिर अल्लाह ने कहा नहीं दोस्त मेरे वाले ज्यादा बेवकूफ़ है मैंने तो यहाँ से एक को भेजा था वो वहा जा कर दो बन गये दोनों ही मुझे मानते है पर एक दूसरे के दुश्मन बन बैठे है एक दूसरे को ही मार रहे है हद तो तब हो गई जब एक तरफ उनके ही भाई बंधु बाढ़ में बहे जा रहे है बजाय उनके मदद करने के ये कमबख्त लगे है दूसरी तरफ एक दूसरे को मारने में | भगवान ने कहा नहीं मेरे भाई मेरे वाले ज्यादा गधे है मैंने भी उनको एक बना कर भेजा था इन्होंने अपने को इतने हिस्सों में बाट लिया है की मुझसे तो गिना भी नहीं जा रहा है जात के नाम पर क्षेत्र के नाम पर भाषा के नाम पर और पता नहीं किस किस नाम पर और लगे है एक दूसरे को नीचा दिखने एक दूसरे की टाँग खींचने एक दूसरे को मारने और भगाने में अब मैं इनका क्या करूँ | अल्लाह ने कहा असल में बंधु ये सब के सब जाहिल और गावर है इनको क्या पता है हमने भी एक बड़ी कंपनी की तरह बाजार में कई तरह के साबुन उतर रखे है ताकि सभी अपनी सहूलियत के हिसाब से हमारी ही कंम्पनी का साबुन प्रयोग करे ग्राहक कही और ना जाये भगवान ने कहा हा यार जिसे दिन में पांच बार नहाने का शौक है उसके लिए अलग साबुन जो दिन में एक बार रोज नहाये उसके लिए अलग साबुन और जो हफ्ते में बस एक बार नहाने में विश्वास रखता है उसके लिए अलग साबुन और ये नालायक एक ही कंपनी के प्रोडक्ट को कह रहे है की मेरी कंपनी का साबुन तुम्हारे कंपनी के साबुन से ज्यादा अच्छा है क्या आपने इनको हमारे प्रोडक्ट का विज्ञापन करने का कांट्रेक्ट दिया है क्या ? नहीं मेरे भाई जान अल्लाह ने कहा हमारा दिमाग ख़राब है क्या की मैं ऐसा करो जिनको ये भी नहीं मालूम की सभी साबुन में एक ही चीज मिली है और सब के सब साबुन एक ही काम करता है वो है उनके बदन पर जमी गन्दगी साफ करना हर साबुन को हमी दोनों ने मिल कर बनाया है बस नाम अलग अलग दे दिए है भला मैं उनको ऐसा कोई कांट्रेक्ट क्यों दूँगा | भगवान ने कहा वही तो मेरे साथी हमने जब इन नमाकुलो को बनाया था इनकी अच्छी संरचना को देख कर इनको इंसानियत रूपी एक सुन्दर मजबूत और खास खाल दी थी ताकि ये दूसरे प्राणियों से अलग लगे और इनके लिए खास साबुन भी बनाया ताकि ये उस खास खाल की देखभाल अच्छे से कर सके उस पर कोई मैल न बैठने दे उसे हमेशा चमकदार बनाये रखे पर सब के सब साबुन को लेकर उसका विज्ञापन करने में लगे है की मेरा साबुन तुम्हारे साबुन से ज्यादा अच्छा है इससे तन का मैल अच्छे से साफ होगा पर खुद अपने खाल की मैल उससे साफ नहीं कर रहे है | सही कहा महोदय आपने अल्लाह बोले ये सब के सब नहाने का नाटक करते है उस साबुन से नहाते नहीं है देखिये इनकी खाल कितनी गंदी हो गई है मैल की एक इतनी मोटी परत चढ़ चुकी है की हमारी दी खाल अब तो दिखाई भी नहीं दे रही है | तभी तो ये भी हमारे बनाये बाकी जीवों जानवरों की तरह हो गये है चलो जब इनमें से कुछ को इस खाल की जरुरत है नहीं है तो निकल देते है उनके शरीर से ये खाल और पहना देते है जानवरों की खाल उसी के लायक है सब नालायक | नहीं नहीं ऐसा मत करियेगा भगवान ने कहा ये जंगल में गये तो वहा भी दंगल करेंगे ये तो बड़े खतरनाक हो गये है | तो किया क्या जाये मेरे प्रियवर अल्लाह ने कहा | जानशीन हमें तो कुछ और करना होगा भगवान ने कहा ऐसा करते है की जिन लोगों की खाल पर मैल ज्यादा है उनकी खाल निकल कर उनको जानवरों की खाल पहना कर ये बताते है की तुम्हारी पुरानी खाल कितनी अच्छी थी पर तुमने उसकी कदर नहीं की अब भोगो जिनकी खाल पर थोड़ी मैल है उन्हें साफ करने की वार्निग दे कर और जो ये खाल पहले ही उतर चुके है पर कपड़े से अपना शरीर ढक कर मानव होने का फर्जीवाड़ा कर रहे है उसको तो हम सीधे अपने पास ही बुला लेते है उसका हिसाब किताब तो हम लोग यही करते है | राम राम भगवान कसम एक बार वो हमारे हाथ आये मैं फिर उसे बताता हुं अल्लाह ने कहा | तौबा तौबा अल्लाह कसम भगवान ने कहा उसे एक बार मेरे हाथ आने दो मैं उसे और जोर का बताता हुं |
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अब आप मुझे क्यों ढूँढ रहे है मैं तो जा रही हुं अपनीखाल साफ करने देख रही हुं इस पर भी मैल चढ़ गई है पर परेशानी ये है की मैं तो इस कम्पनी पर विश्वास ही नहीं करती हुं तो उसका साबुन कैसे प्रयोग करूँ कही रिएक्शन कर गया तो सो जा रही हुं हॉकिंग बाबा की शरण में वो कह रहे थे की ये पूरी कंपनी ही फ़र्ज़ी है उन्ही से पूछती हुं की क्या हमारे लिए कोई साबुन उनके पास है |
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अब आप मुझे क्यों ढूँढ रहे है मैं तो जा रही हुं अपनीखाल साफ करने देख रही हुं इस पर भी मैल चढ़ गई है पर परेशानी ये है की मैं तो इस कम्पनी पर विश्वास ही नहीं करती हुं तो उसका साबुन कैसे प्रयोग करूँ कही रिएक्शन कर गया तो सो जा रही हुं हॉकिंग बाबा की शरण में वो कह रहे थे की ये पूरी कंपनी ही फ़र्ज़ी है उन्ही से पूछती हुं की क्या हमारे लिए कोई साबुन उनके पास है |
September 04, 2010
नई दिल्ली की राजधानी क्या है ? क्या आप के टीचर ने आप को बताया है - - - - - - mangopeople
नई दिल्ली की राजधानी क्या है ?---------- जवाब दीजिए नहीं पता तो जवाब सुनिये चादनीचौक ,पुरानी दिल्ली ,नोएडा ,गुड़गाँव चौक गये ये जवाब है यूपी के गावों के प्राथमिक विद्यालयों में तैनात कुछ शिक्षकों के अब सोचिये की जब टीचर का ज्ञान इतना बढ़िया है तो वो बच्चों को क्या ज्ञान दे रहें होंगे | आप इस बात का संतोष मत करीये की आप का बच्चा तो अंग्रेजी मीडियम के प्राइवेट स्कूल में या किसी कान्वेंट में पढ़ रहा है | जरा पता कीजिए की स्कूल में शिक्षकों की शैक्षिक योग्यता क्या है कही आधे से ज्यादा कम शैक्षिक योग्यता के साथ बस टमप्रेरी जाब पर तो नहीं है | चलिए यदि ऐसा नहीं है तो क्या वो आप के बच्चों को ज्ञान दे रहे है या सिर्फ कोर्स पूरा करा रहे है | जानना मुश्किल नहीं है बस अपने बच्चे से कोर्स के बाहर से कोई सामान्य ज्ञान की बात पूछ लीजिये जवाब मिल जायेगा की बच्चा स्कूल में क्या पढ़ रहा है |
आज के नंबरों की गला काट स्पर्धा की हम सब आलोचना करते है और इसको आज की शिक्षा व्यवस्था का दोष मनाते है पर क्या वास्तव में ऐसा है | असल में ये व्यवस्था गुरु से टीचर बने इस वर्ग का कारनामा है | ये व्यवस्था उन टीचरों की देन है जिनका अपना ज्ञान कोर्स की किताब से आगे नहीं था पर वो टीचर बन गये क्योंकि ये सबसे आरामदायक , सबसे ज्यादा छुट्टियों वाला महिलाओ के लिए सबसे सुरक्षित ( ज्यादातर लोग ऐसा मानते है ) सुविधाजनक प्रोफेशन है | अब जब खुद इनका ज्ञान कम था तो वो बच्चों को क्या बताते सो इन्होंने एक काम किया की बच्चों का सारा ध्यान सिर्फ कोर्स की किताबों को पढ़ने और अच्छे नंबरों तक सीमित कर दिया | माँ बाप स्कूल प्रशासन सभी खुश हो गये की हमारे बच्चे अच्छे नंबर ला रहे है पर किसी ने भी इस बात को जानने का प्रयास नहीं किया की बच्चों को क्या ज्ञान दिया जा रहा है वो क्या सीख रहे है | टीचर खुश की चलो की अब बच्चे भी हमसे कोई ऐसा सवाल नहीं करेंगे जो हमें नहीं पता होगा | बच्चे भी खुश की चलो की अब कुछ समझने की जरुरत नहीं है बस रटो और अच्छे नंबर लाओ काम हो गया | अब यही नंबरों की दौड़ गला काट स्पर्धा में बदल गई तो लगे है हम सब उसकी बुराई करने में |
हद तो तब हो गई की जब टीचरों ने अपना लक्ष्य सिर्फ कोर्स को पूरा कराने तक ही सीमित कर लिया अब तो उनको इस बात से भी मतलब नहीं रहा की जो वो पढ़ा रहे है वो बच्चों को समझ में भी आ रहा है या नहीं उन्होंने ने अपने हिसाब से किताब को ख़त्म किया और उनकी ज़िम्मेदारी ख़त्म हो गई बाकी बच्चे जाने और उनके माँ बाप जाने | इसके अलावा वो ये भी चाहते है की बच्चा वैसे ही याद रखे और सवालों को हल करे जैसा की उन्होंने बताया है | आप कभी अपने बच्चे को टीचर के बताये तरीके से अलग तरीके से गणित के सवाल हल करके भेज दे फिर देखे की टीचर की प्रतिक्रिया क्या होती है | उनका जवाब होगा "क्या मैंने जो बताया है वो तुमको समझ में नहीं आया " खुद को ज्यादा होशियार समझते हो अपना दिमाग लगने की जरुरत नहीं है " " हा ये सही है पर मैंने जो तरीका बताया है वो ज्यादा आसान है " " नहीं मेरे तरीके से करो तभी ज्यादा नंबर आयेंगे " लीजिये जी इनमें से कोई जवाब सुनने के बाद तो किसी विद्यार्थी में हिम्मत नहीं होगी की टीचर के बताये तरीके के अलावा कोई तरीका अपना ले | कई बार तो टीचर कोर्स के विषय को भी अपनी सुविधानुसार पढ़ाते है | में आप को अपना एक अनुभव बताती हुं हम जब ११ में थे तो हमारी होम साइंस की टीचर ने महिलाओ के शारीरिक संरचना के पाठ को ये कहते हुए नहीं बढ़ाया की ये परीक्षा में नहीं आएगा इसे मत पढ़िए उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया की ये सब बेकार का पाठ है जबकि हम सब बच्चे नहीं थे और हम गर्ल्स स्कूल में थे तो भी उन्होंने इंकार कर दिया क्योंकि वो उसे पढ़ाने में असहज महसूस कर रही थी | इसी तरह जब मैं पत्रकारिता का कोर्स कर रही थी तो हमारे एक टीचर जो अपना सारा ज्ञान सारा समय अपने सारे सोर्स स्वार्थ भाव से विद्यापीठ की राजनिती में खर्च करते थे एक दिन वो गलती से हमारी क्लास में आ गये ( पूरे साल उन्होंने जितने क्लास हमारे लिए उसे उंगलियों पर गिना जा सकता था ) से एक सवाल पूछ बैठी जो था तो हमारे कोर्स से संबंधित पर व्यवहारिक ज्ञान से था ना कि किताब से तो उनका जवाब था की जो परीक्षा के लिए जरूरी है वो पढ़ा लीजिये ऐसे ज्ञान के लिए तो पूरी उम्र पड़ी है | इतना अच्छा ज्ञान पा कर तो हम धन्य ही हो गये और हमें अपने पढ़ने का असली लक्ष्य मिल गया उस दिन |
पर आप को बताओ की कई ऐसे भी टीचर है जो वास्तव में कोर्स के उन हिस्सों को नहीं पढ़ाते है जिनमे से परीक्षाओ में सवाल नहीं आते है या बहुत कम आते है | अब क्या कहा जाये ऐसे टीचरों को वो अपने स्वार्थो के लिए बच्चों के ज्ञान उनकी सोच उनके आत्मविश्वास उनके भविष्य और देश के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे है | ऐसे ही शिक्षकों ने हमारे देश के गुरु शिष्य परंपरा को ख़त्म कर दिया है अध्यापन को सिर्फ एक प्रोफेसन बना कर रख दिया है जिसका ख़ामियाज़ा हम सभी को भुगतना पड़ रहा है |
एक अच्छा टीचर गुरु किसी बच्चे के जीवन में कितने बदलाव ला सकता है हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते है एक चाणक्य जैसे गुरु ने चन्द्र गुप्त जैसे सामान्य से इन्सान को हमारे इतिहास में एक उच्च स्थान दिला दिया ऐसे हजारों उदाहरण हमारी सभ्यता में है | अच्छा टीचर ना केवल छात्रों को ज्ञान देता है साथ ही उनको भविष्य की राह दिखता है उसमे एक नई सोच पैदा करता है उनका आत्मविश्वास बढ़ता है | आज मैं अपने ऐसे ही एक टीचर को प्रणाम कर रही हुं जिनके कारण मुझमे इतना आत्मविश्वास आया | डाक्टर मुनमुन मजुमदार जे एन यू से गोल्ड मेडिलिस्ट ग्रेजुएशन में हमारी पोलटिक्स की टीचर जिन्होंने पहली बार हमें बताया की स्कूल कॉलेज में पढ़ाई का अर्थ सिर्फ कोर्स ख़त्म करना और परीक्षा में अच्छे नंबर लाना ही नहीं होता है उससे कही ज्यादा है उन्होंने हमेशा कोर्स के साथ ही राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय राजनिती के बार में हमें इतना ज्ञान दिया की उससे ना केवल हमारी जानकारी बढ़ी हमारा आत्मविश्वास बढ़ा और वो ज्ञान आज भी हमारे प्रोफेशन में काफी काम आता है साथ ही एक इच्छा जागृत की ज्यादा से ज्यादा जानकारी पाने की | ऐसे सभी गुरुओं टीचरों का हमारा नमन: |
आज के नंबरों की गला काट स्पर्धा की हम सब आलोचना करते है और इसको आज की शिक्षा व्यवस्था का दोष मनाते है पर क्या वास्तव में ऐसा है | असल में ये व्यवस्था गुरु से टीचर बने इस वर्ग का कारनामा है | ये व्यवस्था उन टीचरों की देन है जिनका अपना ज्ञान कोर्स की किताब से आगे नहीं था पर वो टीचर बन गये क्योंकि ये सबसे आरामदायक , सबसे ज्यादा छुट्टियों वाला महिलाओ के लिए सबसे सुरक्षित ( ज्यादातर लोग ऐसा मानते है ) सुविधाजनक प्रोफेशन है | अब जब खुद इनका ज्ञान कम था तो वो बच्चों को क्या बताते सो इन्होंने एक काम किया की बच्चों का सारा ध्यान सिर्फ कोर्स की किताबों को पढ़ने और अच्छे नंबरों तक सीमित कर दिया | माँ बाप स्कूल प्रशासन सभी खुश हो गये की हमारे बच्चे अच्छे नंबर ला रहे है पर किसी ने भी इस बात को जानने का प्रयास नहीं किया की बच्चों को क्या ज्ञान दिया जा रहा है वो क्या सीख रहे है | टीचर खुश की चलो की अब बच्चे भी हमसे कोई ऐसा सवाल नहीं करेंगे जो हमें नहीं पता होगा | बच्चे भी खुश की चलो की अब कुछ समझने की जरुरत नहीं है बस रटो और अच्छे नंबर लाओ काम हो गया | अब यही नंबरों की दौड़ गला काट स्पर्धा में बदल गई तो लगे है हम सब उसकी बुराई करने में |
हद तो तब हो गई की जब टीचरों ने अपना लक्ष्य सिर्फ कोर्स को पूरा कराने तक ही सीमित कर लिया अब तो उनको इस बात से भी मतलब नहीं रहा की जो वो पढ़ा रहे है वो बच्चों को समझ में भी आ रहा है या नहीं उन्होंने ने अपने हिसाब से किताब को ख़त्म किया और उनकी ज़िम्मेदारी ख़त्म हो गई बाकी बच्चे जाने और उनके माँ बाप जाने | इसके अलावा वो ये भी चाहते है की बच्चा वैसे ही याद रखे और सवालों को हल करे जैसा की उन्होंने बताया है | आप कभी अपने बच्चे को टीचर के बताये तरीके से अलग तरीके से गणित के सवाल हल करके भेज दे फिर देखे की टीचर की प्रतिक्रिया क्या होती है | उनका जवाब होगा "क्या मैंने जो बताया है वो तुमको समझ में नहीं आया " खुद को ज्यादा होशियार समझते हो अपना दिमाग लगने की जरुरत नहीं है " " हा ये सही है पर मैंने जो तरीका बताया है वो ज्यादा आसान है " " नहीं मेरे तरीके से करो तभी ज्यादा नंबर आयेंगे " लीजिये जी इनमें से कोई जवाब सुनने के बाद तो किसी विद्यार्थी में हिम्मत नहीं होगी की टीचर के बताये तरीके के अलावा कोई तरीका अपना ले | कई बार तो टीचर कोर्स के विषय को भी अपनी सुविधानुसार पढ़ाते है | में आप को अपना एक अनुभव बताती हुं हम जब ११ में थे तो हमारी होम साइंस की टीचर ने महिलाओ के शारीरिक संरचना के पाठ को ये कहते हुए नहीं बढ़ाया की ये परीक्षा में नहीं आएगा इसे मत पढ़िए उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया की ये सब बेकार का पाठ है जबकि हम सब बच्चे नहीं थे और हम गर्ल्स स्कूल में थे तो भी उन्होंने इंकार कर दिया क्योंकि वो उसे पढ़ाने में असहज महसूस कर रही थी | इसी तरह जब मैं पत्रकारिता का कोर्स कर रही थी तो हमारे एक टीचर जो अपना सारा ज्ञान सारा समय अपने सारे सोर्स स्वार्थ भाव से विद्यापीठ की राजनिती में खर्च करते थे एक दिन वो गलती से हमारी क्लास में आ गये ( पूरे साल उन्होंने जितने क्लास हमारे लिए उसे उंगलियों पर गिना जा सकता था ) से एक सवाल पूछ बैठी जो था तो हमारे कोर्स से संबंधित पर व्यवहारिक ज्ञान से था ना कि किताब से तो उनका जवाब था की जो परीक्षा के लिए जरूरी है वो पढ़ा लीजिये ऐसे ज्ञान के लिए तो पूरी उम्र पड़ी है | इतना अच्छा ज्ञान पा कर तो हम धन्य ही हो गये और हमें अपने पढ़ने का असली लक्ष्य मिल गया उस दिन |
पर आप को बताओ की कई ऐसे भी टीचर है जो वास्तव में कोर्स के उन हिस्सों को नहीं पढ़ाते है जिनमे से परीक्षाओ में सवाल नहीं आते है या बहुत कम आते है | अब क्या कहा जाये ऐसे टीचरों को वो अपने स्वार्थो के लिए बच्चों के ज्ञान उनकी सोच उनके आत्मविश्वास उनके भविष्य और देश के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे है | ऐसे ही शिक्षकों ने हमारे देश के गुरु शिष्य परंपरा को ख़त्म कर दिया है अध्यापन को सिर्फ एक प्रोफेसन बना कर रख दिया है जिसका ख़ामियाज़ा हम सभी को भुगतना पड़ रहा है |
एक अच्छा टीचर गुरु किसी बच्चे के जीवन में कितने बदलाव ला सकता है हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते है एक चाणक्य जैसे गुरु ने चन्द्र गुप्त जैसे सामान्य से इन्सान को हमारे इतिहास में एक उच्च स्थान दिला दिया ऐसे हजारों उदाहरण हमारी सभ्यता में है | अच्छा टीचर ना केवल छात्रों को ज्ञान देता है साथ ही उनको भविष्य की राह दिखता है उसमे एक नई सोच पैदा करता है उनका आत्मविश्वास बढ़ता है | आज मैं अपने ऐसे ही एक टीचर को प्रणाम कर रही हुं जिनके कारण मुझमे इतना आत्मविश्वास आया | डाक्टर मुनमुन मजुमदार जे एन यू से गोल्ड मेडिलिस्ट ग्रेजुएशन में हमारी पोलटिक्स की टीचर जिन्होंने पहली बार हमें बताया की स्कूल कॉलेज में पढ़ाई का अर्थ सिर्फ कोर्स ख़त्म करना और परीक्षा में अच्छे नंबर लाना ही नहीं होता है उससे कही ज्यादा है उन्होंने हमेशा कोर्स के साथ ही राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय राजनिती के बार में हमें इतना ज्ञान दिया की उससे ना केवल हमारी जानकारी बढ़ी हमारा आत्मविश्वास बढ़ा और वो ज्ञान आज भी हमारे प्रोफेशन में काफी काम आता है साथ ही एक इच्छा जागृत की ज्यादा से ज्यादा जानकारी पाने की | ऐसे सभी गुरुओं टीचरों का हमारा नमन: |