कल बिटिया रानी को रावण दहन दिखाने ले गई थी ( मुंबई में जिस जगह गई थी वह बस रावण दहन ही होता है कुम्भकरण और मेघनाथ का नहीं ) तो उसने बड़े से रावण को देखते ही पूछा ये रावण इतना बड़ा क्यों है ,
मैंने कहा रावण बहुत बड़ा था इसलिए
तो क्या राम जी भी इतने ही बड़े है
नहीं राम जी तो छोटे से ही है
तो फिर वो इतने बड़े रावण को कैसे मारेंगे ,
वही तो ये इतना बड़ा है फिर भी छोटे से राम जी इसे मार देंगे क्योकि ये बैड मैन है और राम जी अच्छे है ।
हम भूल जाते है की हम ने ही अपनी कमजोरियों से इस बुराई को धीरे धीरे बड़ा किया है और हम जरा सी हिम्मत करके धीरे धीरे ही इसे ख़त्म कर सकते है ये जरुरी नहीं है की कोई एक नायक ही आ कर इसे एक बार में ही समूल नष्ट करे, कई लोग हर तरफ से मिल कर हर तरीके से इस ख़त्म करने की शुरुआत कर सकते है , जरुरी ये है की हम उनकी सहायता करे न की ये कहे की लो जी इससे तो बुराई पूरी तरह से ख़त्म न होगी कुछ प्रतिशत ही ख़त्म होगी तो हम इसका साथ नहीं देंगे या इसकी हमें जरुरत नहीं है । न ख़त्म होने और बढ़ते जाने से अच्छा है की कुछ ही सही वो ख़त्म होना तो शुरू हो, जिस तरह वो धीरे धीरे बढा था और हमें पता नहीं चला उसी तरह वो धीरे धीरे ख़त्म भी होगा और उसे पता नहीं चलेगा । वैसे तो जरुरत इस बात की है की बुराई को बढ़ने ही न दिया जाये और बढ़ गई है तो उसकी महिमा मंडन न किया जाये , वो कितना बड़ा हो गया है उसे ख़त्म करने में बहुत समय लगगा जैसी बातो से हिम्मत हारने की जगह , ये सोचे की. हा समय लगेगा किन्तु वो एक दिन ख़त्म होगा , जब हम उसकी शुरुआत आज से करेंगे और खुद करेंगे किसी नायक का इंतजार नहीं करेंगे , जब बुराई का कुछ अंश हमारे अन्दर है तो उस नायक का भी कुछ अंश हमारे ही अन्दर है , जब हम उसे नायक को अपने अन्दर से निकाल कर बाहर लायेंगे तो बाहर की बुराई के साथ अपने आप हमारे अन्दर की बुराई भी ख़त्म हो जाएगी और हमें पता भी नहीं चलेगा ।
मैंने कहा रावण बहुत बड़ा था इसलिए
तो क्या राम जी भी इतने ही बड़े है
नहीं राम जी तो छोटे से ही है
तो फिर वो इतने बड़े रावण को कैसे मारेंगे ,
वही तो ये इतना बड़ा है फिर भी छोटे से राम जी इसे मार देंगे क्योकि ये बैड मैन है और राम जी अच्छे है ।
ये जवाब तो बिटिया के लिए था किन्तु वास्तव में सोचे तो रावण को इतना बड़ा क्यों बनाया जाता है , शायद इसलिए की छोटे से राम जी उसे मार कर बड़े दिखे । असल में अच्छाई को ज्यादा ताकतवर और बड़ा दिखाने के लिए हम पहले बुराई को और बड़ा और बड़ा बनाते है उसके बड़े होने का महिमा मंडन करते है ताकि उसे मारने वाली अच्छाई और बड़ी दिखे और लगे की अंत में जित हर हाल में सच्चाई की होती है भले ही बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हो । हमारा नायक तभी अच्छा और बड़ा दिखता है जब की उसके सामने खलनायक भी उतना ही बड़ा और खतरनाक हो , खलनायक जितना बड़ा होगा हमारा नायक उतना ही बड़ा हिम्मती, ताकतवर दिखेगा , और इसके लिए पहले खलनायक के बुरे कामो की खूब चर्चा की जाती है उसे बुरे से बुरा बनाया जाता है और साथ में ये भी दिखाया जाता है की आम से दिख रहे लोग उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते है , उसे ख़त्म करने के लिए तो किसी खास को ही आना होगा , एक नायक ही उसे ख़त्म कर सकता है कोई आम इन्सान नहीं , आम इन्सान बस नायक की सहायता भर कर सकता है, वो भी छोटी सी जिसका कोई महत्व न होगा , उसे ख़त्म करने का सारा क्रेडिट बस नायक को ही जायेगा । यदि खलनायक बड़ा न हो तो नायक भी बड़ा नहीं दिखता है , खनायक जितना खूंखार होगा हमारा नायक उसे मारने के बाद उतना ही बड़ा दिखेगा । किन्तु अपने नायक को बड़ा बनाते बनाते हम भूल जाते है की हम इस चक्कर में बुराई को भी बड़ा बनाते जा रहे है , और आज हम ने बुराई को इतना बड़ा बना दिया है की वो आम इन्सान के द्वारा ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है या ये कहे की उस बुराई का बड़ा होना आम इन्सान की हिम्मत तोड़ दे रहा है की वो उसे ख़त्म कर सकता है , नतीजा की अब फिर से आज की बुराइयों को ख़त्म करने के लिए भगवान के अवतार लेने का एक नायक का इंतजार किया जा रहा है, और नायक भी कैसा, वो जिसमे कोई भी बुराई न हो बिलकुल पाक साफ पवित्र आत्मा । ये बात धीरे धीरे घर कर गई है की किसी भी बुराई को ख़त्म करने का काम बस किसी खास को किसी नायक को ही करना है आम आदमी इसे नहीं कर सकता है , दुसरे कोई भी बुराई एक बार में ही नायक समूल नष्ट करेगा, तब तक हम सभी को बैठ कर उस नायक का इंतजार करना है , और यदि कोई व्यक्ति आ कर उस बुराई को धीरे धीरे ख़त्म करने का प्रयास करेगा तो सबसे पहले हम उसकी परीक्षा लेंगे और देखेंगे की उसमे नायक वाले सारे तत्व है की नहीं , यदि उसमे राई बराबर भी बुराई है और वो कोई पवित्र आत्म न हुई तो वो हमारा नायक नहीं बना सकता है , कोई आम आदमी आगे आ कर बुराई को ख़त्म करने का प्रयास शुरू नहीं कर सकता है , ये सब कम बस भगवान के अवतारी व्यक्तियों का ही काम है आम इन्सान के बस की बात नहीं है , क्यों . क्योकि हमने नायक होने के भी मानक बड़े बना दिए है जिसमे शायद ही कोई फिट हो , ज्यादातर को तो हम उस ढांचे में अनफिट करार दे बाहर कर देते है , और उसकी कोई सहायता नहीं करते है , जबकि कोई भी नायक बिना सहायता के अकेले अपने दम पर खलनायक को ख़त्म नहीं करता है ।
हम भूल जाते है की हम ने ही अपनी कमजोरियों से इस बुराई को धीरे धीरे बड़ा किया है और हम जरा सी हिम्मत करके धीरे धीरे ही इसे ख़त्म कर सकते है ये जरुरी नहीं है की कोई एक नायक ही आ कर इसे एक बार में ही समूल नष्ट करे, कई लोग हर तरफ से मिल कर हर तरीके से इस ख़त्म करने की शुरुआत कर सकते है , जरुरी ये है की हम उनकी सहायता करे न की ये कहे की लो जी इससे तो बुराई पूरी तरह से ख़त्म न होगी कुछ प्रतिशत ही ख़त्म होगी तो हम इसका साथ नहीं देंगे या इसकी हमें जरुरत नहीं है । न ख़त्म होने और बढ़ते जाने से अच्छा है की कुछ ही सही वो ख़त्म होना तो शुरू हो, जिस तरह वो धीरे धीरे बढा था और हमें पता नहीं चला उसी तरह वो धीरे धीरे ख़त्म भी होगा और उसे पता नहीं चलेगा । वैसे तो जरुरत इस बात की है की बुराई को बढ़ने ही न दिया जाये और बढ़ गई है तो उसकी महिमा मंडन न किया जाये , वो कितना बड़ा हो गया है उसे ख़त्म करने में बहुत समय लगगा जैसी बातो से हिम्मत हारने की जगह , ये सोचे की. हा समय लगेगा किन्तु वो एक दिन ख़त्म होगा , जब हम उसकी शुरुआत आज से करेंगे और खुद करेंगे किसी नायक का इंतजार नहीं करेंगे , जब बुराई का कुछ अंश हमारे अन्दर है तो उस नायक का भी कुछ अंश हमारे ही अन्दर है , जब हम उसे नायक को अपने अन्दर से निकाल कर बाहर लायेंगे तो बाहर की बुराई के साथ अपने आप हमारे अन्दर की बुराई भी ख़त्म हो जाएगी और हमें पता भी नहीं चलेगा ।