तेजपाल के बयान के बाद एक सवाल मन में उठा रहा है कि, क्या पुरुषो का कोई चरित्र नहीं होता है । तेजपाल के ऊपर रेप के आरोप लगने के बाद उन्होंने अपने बचाव में ये घटिया दलील दी कि , हा जो लड़की कह रही है वो हुआ किन्तु जो भी हुआ वो सहमति से हुआ । सोचती हूँ की हम किस तरह के समाज में रह रहे है जहा एक विवाहित पुरुष अपने से आधी आयु की लड़की , अपनी बेटी की मित्र और अपने मित्र की बेटी के साथ एक सार्वजनिक जगह पर इस तरह के सम्बन्ध बनाने को कितने आराम से स्वीकार कर रहा है , किस उम्मीद में की उसके इस बयान पर समाज उसके चरित्र पर कोई उंगलिया नहीं उठाएगा , उसे अपराधी नहीं माना जायेगा , नैतिकता के सवाल नहीं खड़े कियी जायेंगे और समाज में वो, ये स्वीकार करने के बाद भी उसी तरह स्वीकारा जायेगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं है , क्योकि वो पुरुष है । क्या पुरुषो का कोई चरित्र ही नहीं होता मतलब चरित्र जैसी चीजे क्या उनसे जुडी हुई नहीं है ये मात्र महिलाओ के एक अंग जैसा है , जो पुरुषो में नहीं पाया जाता । अब कल्पना कीजिये की कोई स्त्री इस बात को स्वीकारे तो समाज का क्या रवैया होगा , लोगो की सोच क्या होगी , हमारे भाषायी किताबो में ऐसी महिलाओ के लिए शब्दो की कमी नहीं है और आज से नहीं हमेसा से है , जबकि पुरुषो के लिए ये एक तरह का सामाजिक मान्यता प्राप्त सम्बन्ध जैसे है , जिसके कारण हर दूसरा आरोपी पुरुष यौन शोषण , बलात्कार के आरोप लगते ही ये घटिया दलील देने लगता है की दोनों के बिच जो हुआ वो सहमति से हुआ , यदि सामाजिक रूप से ऐसे सम्बन्धो को लेकर पुरुषो को ये छूट न मिली होती तो ऐस दलील देने से पहले भी आरोपी हजार बार सोचते ।
अरुंधति राय का लेख पढ़ा जिसमे वो कहती है कि मै अभी तक चुप थी क्योकि क्योकि एक गिरते हुए मित्र पर क्या वार करना , किन्तु अब जिस तरीके से लड़की पर फांसीवादीयो से मिल कर साजिश करने , और सब कुछ सहमति से होने की बात कर दूसरी बार उस का रेप किया जा रहा है , तो अब चुप रहना मुश्किल है , और अब समय है की सच के साथ खड़ा हुआ जाये । मै उनकी बात से सहमत हूँ , ऐसे मामलो में पीड़ित के लिए शिकायत करने के बाद दर्द , परेशानी और समस्याओ का एक नया और उससे भी बड़ा दौर शुरू होता है , जो उसने पहले सहा है और जिससे लड़ना ज्यादा कठिन होता है , जब पीड़ित के ही चरित्र पर उंगलिया उठाई जाने लगती है और आरोपी के सहयोगी ज्यादा सक्रिय हो जाते है , आरोपी को बचाने के लिए , इसलिए जरुरी है की ऐसे समय में चुप रह कर मौन सहयोग की जगह हम सभी को खुल कर पीड़ित के पक्ष में खड़ा होना चाहिए , ताकि उसे भी लगे की एक ताकतवर और अमिर आरोपी के मुकाबले में उसे जन सहयोग मिला है , समाज में भी लोग है जो उस पर विश्वास करते है और उसके साथ खड़े है ,ताकि उसकी हिम्मत न टूटे और वो आगे अपनी लड़ाई लड़ सके । मामला कोर्ट में है जांच हो रही है इसलिए इस पर क्या कहे जैसे बेकार के बहाने बनाने की जरुरत नहीं है , खुद तेजपाल की स्वीकृति और एक के बाद एक तहलका से अलग होते कर्मचारियो की बढती लिस्ट खुद सच को बया कर रही है ।
इस केस से एक विचार और मन में आया है कि अक्सर हम कहते है कि जीतनी ज्यादा महिलाए लडकिया काम करने के लिए बाहर आयेंगी वो उतनी ज्यादा ही सुरक्षित होती जाएँगी , समाज की लडकियो के प्रति सोच बदलेगी , पीड़ित लडकियो की ताकत बनेगी और दूसरे लडकियो में भी आत्मविश्वास पैदा करेंगी , अब तो ये सोच गलत सी लगती है । पीड़ित ने न्याय के लिए जिस सोमा चौधरी से शिकायत की वो एक बार भी उसके पक्ष में खड़ा होना तो दूर उन्होंने सच को ठीक से जानने का प्रयास और कोई भी उचित कार्यवाही ही नहीं की , बल्कि मामले को दबाने और लीपा पोती का प्रयास किया , वो चाहती तो किसी का भी पक्ष लिए बिना तटस्थ रह कर कमिटी बना जाँच उसके हाथ में दे देती किन्तु उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया और अपने मित्र ,गॉडफादर को बचाने के प्रयास करने लगी । इस प्रकरण से क्या समझा जाये की भले ही स्त्री कितनी भी स्वतंत्र को जाये उंचाइयो को छू ले वो पुरुष सत्ता से टकराने से डरती है , उसके प्रभाव से बाहर नहीं आ पाती है या उसका व्यवहार भी उन्ही आम घरेलु स्त्रियो सा होता है जो अपने बेटे, भाई ,पिता ,पति के बड़े से बड़े गलतियों को छुपाने का उसे बचाने का प्रयास करती है या उसका व्यवहार भी अन्य सामान्य लोगो की तरह होता है जो हर हाल में अपने अपनो का करीबियों का ही साथ देते है चाहे वो कितने भी गलत हो , या उनका व्यवहार उस समाज की तरह ही है जो हमेसा लडकियो को ही दोष देता है जो लडकियो को ऐसे मामले में चुप रहने, ज्यादा न बोलने और जो मिला उसमे ही संतुष्ट रहने की सलाह देता है । अब सोचिये की सोमा ने जो व्यवहार किया है उससे लड़किया का आत्मविश्वास कम नहीं होगा , जब उन्हें लगेगा की एक स्त्री हो कर भी वो किसी अन्य स्त्री की परेशानी उसके आरोपो की गम्भीरता को नहीं समझा उसको सच नहीं माना , क्या अब कोई भी लड़की अपने आफिस या कही भी यदि इस तरह की परेशानी से गुजरती है तो क्या वो कभी भी अपने महिला बाँस , महिला अधिकारी या अन्य महिला से इस बात की शिकायत करने की हिम्मत कर पायेगी ।शोमा ने इस प्रकरण में बहुत ही गलत उदाहरण सामने रखा है और वो भी तब जब उनके न जाने कितने ही इंटरव्यू हम देख चुके है जिसमे वो लडकियो के यौन शोषण , बलात्कार , छेड़छाड़ के खिलाफ बोलते हुए और उनके सुरक्षा की बात करती नजर आ चुकी है , यहा तक की वो उस सम्मलेन में भी इस विषय पर विचार विमर्स कर रही थी जहा पर लड़की के साथ ये सब हुआ ।
कुल मिला कर इस प्रकरण से समाज और लोगो के खोखलेपन को और उजागर ही किया है , बताया है की नैतिकता की बड़ी बड़ी बाते करने भर से कोई चरित्रवान नहीं हो जाता है , समाज का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहा लडकिया सुरक्षित है , समाज में किसी भी वर्ग की लड़की इस तरह के अपराध से सुरक्षित नहीं है , अब वो समय आ गया है जब लडकियो को किसी भी व्यक्ति पर भरोषा नहीं करना चाहिए और अब जरुरत ये है की लडकिया बिना किसी शर्म , लिहाज से इतनी जोर से प्रतिरोध करे, ऐसे कृत्य को न कहे की किसी भी व्यक्ति की हिम्मत आगे बढ़ने की न हो , वरना आप के हलके शब्द उसकी आयु और सम्बन्धो का लिहाज और आप की शर्म आरोपी को बाद में उसे आप की सहमति का नाम देने में देर नहीं लगेगी ।
चलते चलते
पति ने पूछा ऐसे प्रकरणो में लडकिया जोरदार तरीके से तुरंत ही विरोध क्यों नहीं करती उसे पिट दे, उसकी आँख नाक फोड़ दे , टीवी पर महाभारत आ रहा था , मैंने कहा की पांडवो के साथ क्या क्या नहीं हुआ कितना अपमान सहना पड़ा किन्तु उसके बाद भी युद्ध भूमि में अर्जुन कमजोर पड गए अपनो के सामने , एक लड़की के लिए ऐसी हरकत बहुत ही डराने वाला होता है और तब तो डर और भी बढ़ जता है जब सामने कोई अपना , कोई परचित या ऐसा व्यक्ति हो जिससे आप इस चीज की उम्मीद ही न करे , फिर उनके प्रति लिहाज और उसकी और आप की इज्जत और इस बात का डर की कोई भी आप की बात का विश्वास नहीं करेगा की आप का अपना ही कोई आप के साथ ये कर सकता है या ये व्यक्ति आप के साथ ऐसा कर सकता है , साथ ही अपराधी की बड़ी आयु , आप का उससे सम्बन्ध और समाज में उसकी हैसियत भी प्रतिरोध को प्रतिक्रिया को प्रभावित करता है , किसी अनजान के प्रति हम जल्दी आक्रमक हो सकते है जबकि जानने वाले के प्रति हम आक्रमक नहीं हो पाते है । आरुषि केस में एक नौकर को अपनी बेटी के कमरे में देख कर जो आक्रमकता पिता तलवार ने दिखाई वही प्रतिक्रिया वो तब नहीं दे पाते यदि उसकी जगहा उनकी भतीजा , भांजा या परचित या संबंधी जैसा कोई होता , यहाँ तक की बेटी की जगह बेटे के कमरे में नौकरानी को देखते तब भी उनकी ये प्रतिक्रिया न होती , इसमे सम्बन्धो का लिहाज भी है , समाज का डर भी और स्त्री, पुरुष बेटी , बेटी के बिच का फर्क भी ।