बिटिया को जब भी दूध का ग्लास पकड़ाती हूँ तो , वो चीखती है की ग्लास इतना गर्म है की पकड़ा नहीं जा रहा है , दूध कितना गर्म होगा मै उसे कैसे पी सकती हूँ और मै उन्हें हर बार समझाती हूँ कि ग्लास के गर्म होने से दुध के गर्म होने का अंदाजा उसे नहीं लगाना चाहिए दूध गर्म नहीं है उससे ज्यादा ग्लास गर्म है :) । यही हाल हमारी राजनीतिक पार्टियो के समर्थको का है , नेता जितना नहीं बोलते है उससे कही ज्यादा उनके समर्थक बोल पड़ते है । इधर "आप" विधायक बिन्नी केजरीवाल के घर से मीटिंग छोड़ कर बाहर आये उधर समर्थक चिल्लाना शुरू कर दिए की कल पोल खोलने वाली पार्टी कि ही पोल उनके माननीय नेता जी खोलेंगे , दूसरे दिन मामला सुलटने के बाद बेचारे नेता जी को अपने ही समर्थको की बातो का जवाब नहीं देते बन पड रहा था , केजरीवाल ने अभी शपथ भी नहीं लिया किन्तु उनके समर्थक राम राज्य लाने के सपने दिखाने लगे है , चार राज्यो के बुरी गत करने के बाद कांग्रेस और जीत की रथ पर सवार बीजेपी भी अपनी हार जीत को भूल आगे की राजनीति में लग गई , नए समीकरण तलाशने लग गई किन्तु समर्थक आज भी वही अटके पड़े है और सोशल मिडिया में पानी पी पी कर " आप " को गालिया दे रहे है उसे घेरने का प्रयास कर रहे है । इधर राहुल उनसे कुछ सीखने की बात करते है , अपने नेताओ को "आप" की तरह जनता से जुड़ने की नसीहत देते है ,कांग्रेस उसे समर्थन दे रही है तो उधर कुछ उसके ही खिलाफ मोर्चे ले कर निकल रहे है और गिन गिन कर उनके वादे याद दिला उन्हें पूरा होने के लिए असम्भव बता रहे है । सही भी है जब ६६ सालो में हम नहीं कर पाये तो ये क्या करेंगे, किन्तु वो नहीं कर पाएंगे उस बात पर भी पूरा विश्वास नहीं है , डर में है कि सच में पञ्च साल में पूरा न कर दे इसलिए पञ्च साल का भी समय देने को तैयार नहीं है कहते है की सब ६ महीने में ही कर के दिखा दीजिये नहीं तो आप फेल है। बीजेपी के शीर्ष नेता कब के विवादित मुद्दो को ठन्डे बक्से में डाल कर भूल गई है किन्तु समर्थको को उसका भान भी नहीं है , मोदी कहते है देवालय से पहले शौचालय , सही बात है देवालय जैसे मुद्दो से कही ज्यादा जरुरी हर घर तक विकास शिक्षा और प्राथमिक जरुरतो को पूरा करना है , नेता जानते है कि दिल्ली की कुर्सी का रास्ता विकास की रोड से जाता है सभी को ले कर चलने से मंजिल मिलती है ,न की किसी एक समुदाय को लेकर बोलने से ,आखिर वो इतने शीर्ष पर अपनी उसी काबलियत और बुद्धि से पहुंचे है कि कब क्या बोलना है और कब किन मुद्दो को गायब कर देना है , वो तो जम्मू भी जाते है तो कश्मीरी पंडितो पर एक लाईन भी नहीं बोलते है किन्तु समर्थक ये सब समझते ही नहीं है और ऐसी ऐसी बाते बाहर बोलते है उनसे उम्मीद करते है कि बेचारे नेता की छवि लाख चाहने प्रयास करने के बाद भी नहीं बदल पाती है । नेता वही सही और सफल है जो समय के साथ बदले और जनता के इच्छानुसार मुद्दे उठाये, कहते है की काठ की हांड़ी बार बार नहीं चढ़ती है , मझा नेता बार बार एक ही संवेदनशील और भावनात्मक मुद्दो को नहीं उठाता है । अब देखिये जिस मनरेगा ने गरीबो की भलाई वाली स्कीम ने यु पी ए को दूसरी बार चुनाव जिताया , वही दूसरी गरीबो की स्कीम भोजन का अधिकार और कैश ट्रांसफर उसे चार राज्यो में जीत क्या सम्मान जनक सीट भी नहीं दिला सकी , उसका भ्रष्टाचार सब स्कीम पर भारी पड़ा। बीजेपी भी जानती है की उसकी हिंदूवादी छवि न कभी उसे सरकार दिला पाई है और न आगे दिला पायेगी , वो उसे सीटे तो दिला सकती है किन्तु सत्ता नहीं , सही समय पर उसने अडवाणी को किनारे किया और वाजपेयी को आगे , मोदी ने सही समय पर सिखा और अपनी छवि विकास पुरुष की बना ली । किन्तु समर्थक राजनीति की इन हकीकतो को समझते नहीं है और उसी पुराणी छवि को पकड़ कर अपने ही नेता को मुसीबतो में डालते रहते है ।
सोसल मिडिया हो या अन्य जगह दिल्ली और " आप " को लेकर ऐसी ऐसी राजनीतिक चालो का वर्णन है कि समझ नहीं आ रहा है की शिकारी कौन है और शिकार कौन , लगा बीजेपी सरकार बनाएगी किन्तु उसने " आप" की नैतिकता वाली चाल चल दी और गेंद " आप" के पाले में इस उम्मीद में डाल दी कि वो तो सरकार बनाएंगे नहीं ६ महीने विधान सभा स्थगित हो जायेगी फिर लोकसभा चुनावो के बाद कांग्रेसियो की अंतरात्मा जगा कर सरकार बना ली जायेगी , लगे हाथ कांग्रेस ने भी समर्थन इस उम्मीद में दे दिया कि वो तो लेंगी ही नहीं हम दोनों चचेरे भाई उसे भगोड़ा घोषित कर देंगे और मामला फिलहाल लोकसभा चुनावो तक टाल देंगे और सरकार न बनाने पर "आप " वालो की जम कर खबर लेंगे ताकि वो लोकसभा चुनावो में ज्यादा कुछ न कर पाये , किन्तु हाय रे हाय जो " आप " वाले एक समय फसंते दिख रहे थे उन्होंने ने तो फिर से वोटिंग करा कर सरकार बनाने की ठान ली और अपने वादो को पूरा करने की भी , लो जी अब तो कांग्रेस और बीजेपी दोंनो की ही चाल उलटी पड़ती दिखने लगी , नतीजा दोनों की ही तल्खी और बढ़ गई " आप " के प्रति , बीजेपी के तो मुंह से निवाला चला गया , और अब कांग्रेस को डर है कि पिछले १५ सालो में जो खाया है दिल्ली में वो कही बाहर न आ जाये , जो थोड़ा बाहर आया है उससे तो ये हाल है जब और आयेगा तो आगे क्या होगा । अब दोनों उम्मीद लगाये बैठे है कि उनका तारण हार दिल्ली की बाबू ब्रिगेट करेगी , एक भी फाईल आगे नहीं बढ़ने देगी एक भी काम नहीं होने देगी , किन्तु उनकी इस उम्मीद पर भी तुषारपात होता दिख रहा है , अब खबर या अफवाहे जो भी आ रही है कि बाबू ब्रिगेट तो खुद ही अपनी जान बचाने में लगी है , कोई फाईले फड़वा रहा है तो कोई ट्रांसफर ले रहा है तो कोई आफिस में ताले लगा कर काम कर रहा है । एक हंसी मुझे तब आई थी जब टीवी चैनलो में मैंने अपने जीवन में पहली बार ( शायद दुसरो ने भी ) कांग्रेस और बीजेपी को गलबहिये करते एक दूसरे की पीठ थपथपाते और एक दूसरे की हा में हां मिलाते देखा लोकपाल के मुद्दे पर वो भी खुलम खुल्ला , चोरी छुपे तो दोनों ये करती ही आई थी , दूसरी हंसी अब आ रही है इस बाबू ब्रिगेट का हाल देख कर , मुझे कमल हासन की फ़िल्म इन्डियन याद आ रही है जिसमे वृद्ध स्वतंत्रता सेनानी बने थे और रिश्वतखोरो को सजा देते है उनका डर सब में इतना हो जाता है कि उनके जाने के बाद भी दूसरे लोग उनके जैसी बेल्ट पहन कर ही लोगो को डरा देते है ।
समझ नहीं आता की अरविन्द से लोगो को इतना डर और चिढ क्यों है क्यों उनकी पार्टी बनाने से दोनों बड़ी पार्टिया इतनी खीजे हुई है , शरद पवार , राजठाकरे , देवगौड़ा , जगन मोहन , येदुरप्पा , कल्याण सिंह , उमा भारती जैसे न जाने कितने लोगो ने पार्टी तोड़ कर या नई राजनीतिक दलो को खड़ा किया , सभी ने किसी न किसी का वोट काटा और राजनीति में अपने लिए जगह बनाई या हार कर ख़त्म हो गए , उनके लिए ये तल्खी कभी भी इन दो बड़ी पार्टियो ने नहीं दिखाई जो वो आज "आप " के लिए दिखा रही है । शायद ये पहला मौका है जब उन्हें लग रहा है कि " आप " राजनीति में उनके बनाये नियमो के तहत नहीं काम कर रही है , लोकतंत्र का जो रूप उन्होंने आज तक जनता में फैला दिया था जिसमे से लोक ही गायब है " आप " फिर से उस लोकतंत्र में लोक को सामिल करके उनका खेल बिगाड़ रही है , वो राजनीति करने के तरीके को बदल रही है , वो आम लोगो में अपने अधिकारो के प्रति जागने की जो भावना बैठा रही है वो आगे उन्हें परेशान करने वाले है , वो उनमे से ही एक नहीं है , जो सत्ता पैसे ताकत के लिए हर तरीके से समझौते कर लेती है , ये जिद्दी लोगो का वो गुट है जो सच में कुछ बदलने का ठान के आई है । इतना विश्वास तो खुद मुझे भी नहीं है "आप " पार्टी पर ,मै मानती हूँ कि अरविन्द और उनके आस पास के कुछ लोग बदलाव के मकसद से काम कर रहे है जिसमे सत्ता का लालच नहीं है , क्योकि वो खुद एक बड़ा पद जो काफी ताकतवर होता है को छोड़ कर आये है और जमीनी रूप से काफी काम किया है कित्नु जिस बदलाव की वो बात कर रहे है वो ये काम अकेले नहीं कर सकते है , समग्र विकाश के लिए और ऐसे लोग की फौज वो कहा से लायेंगे , उनकी पार्टी में लगभग सभी नए है जिनमे से कई तो सता की ताकत को कभी महसूस ही नहीं किया है , वो उसे त्यागते हुए कैसे अपनाएंगे । इसके लिए तो भारतीयो का डी एन ए ही बदलना पडेगा जो भ्रटाचार का नमक खा खा कर उसका आदि हो गया है :)) ।
राजनीति के इस बिसात में राजनीतिज्ञो और बाबू के बाद नंबर आएगा आम लोगो का जो कटिया डाल कर बिजली लेते है , मीटर में गड़बड़ी करके बिल कम करते है , ट्रैफिक रूल नहीं मानते है , जो पुरे कागजात न होने के बाद भी चाहते है कि कुछ ले दे कर उनका काम हो जाये , जो सरकारी दफ्तरों की लम्बी लाइनो से बचने के लिए दलालो का सहारा लेते है , जो घर बैठे ही ड्राइविंग लाइसेंस ले लेना चाहते है , जो अपने घरो में अवैध निर्माण करते है , पानी का गलत कनेक्शन लेते है आदि आदि क्या वो आम आदमी सुधरने के लिए तैयार है , कही ऐसा न हो जो आम आदमी वोट दे कर अरविन्द को उस गद्दी पर बैठाया है वही उनकी कड़ाई से उब कर खुद ही उन्हें गद्दी से उतार दे या ये हो सकता है कि आम आदमी ने पिछले ६६ वर्षो से जो गलती की है , उसे फिर से न दोहराए , इन दलो को फिर से अपने मुद्दो से भागने न दे, जो सुधर गए है उन्हें बिगड़ने न दे , अपने नेताओ पर नजर रखे , अपने अधिकारो के प्रति सजग रहे , सिर्फ वोट डी कर पञ्च साल के लिए अपने हाथ न कटा ले , अपने नेताओ से सवाल करता रहे और लोकतंत्र से फिर से लोक को गायब होने का मौका न दे । तो लोगो से निवेदन है कि अपना दिल और दिमाग खुला रखे राजनीति को राजनीति की तरह ही ले सही को सही ओए गलत को गलत कहे ।
चलते चलते
कुछ्महिनो पहले एक ब्लॉग पर पढा की सभी न्यूज चैनल हिन्दू विरोधी है और बीजेपी की खबर नहीं दिखाते है , मैंने भी अपनी गन्दी आदत के अनुसार वहा टिप्पणी दे दिया की भाई कोई भी तीज त्यौहार हो या ग्रह नक्षत्र की गड़बड़ी हिंदी न्यूज चैनलो तो इन्ही खबरो से भरेपड़े है , १५ अगस्त को जब आँख खुली और टीवी खोला तो एक बार तो मै कन्फ्यूज ही हूँ गई लगा की मै कोमा से बाहर आई हूँ , मोदी जी प्रधानमत्री बन गए है और भाषण दे रहे है हर न्यूज चैनल पर भाषण सीधा आ रहा था , वो कही रैली करे और उसका सीधा प्रसारण ये चैनल न करे से तो सम्भव ही नहीं है और कितना प्रसारण चाहते है । भाई साहब नाराज हो गए कह दिया कि मुझे हिन्दू धर्म छोड़ देना चाहिए हिन्दू होने के लायक नहीं हूँ , और तो और मै देश द्रोही हूँ गद्दार हूँ , तब से दुखी थी की कोई मोदी समर्थक मिल जाये और मुझे राष्ट्रभक्ति का सटिफिकेट दे दे नहीं तो कम से कम हिन्दू होने का तो देदे मै दोनों से निकल बाहर हो गई हूँ किन्तु वो मिल नहीं रहा था , कारण आज पता चला कि मै तो कामरेड हूँ ;-) अपने लिए ये सम्बोधन सुन कर अच्छा लगा गर्व सा हुआ बिटिया कई बार पूछ चुकी है कि मै बड़ी हो कर क्या बनूँगी क्या बताऊ उन्हें कि कुछ नहीं बनी बस उसकी मम्मी भर हूँ , अब कह सकती हूँ कि मै कामरेड बन गई :) वैसे हद है यार दुनिया की खबर लेने के चक्कर में मुझे ये भी नहीं पता चला की मै कब से नारीवादी के साथ कामरेड भी बन गई । ब्लॉग जगत में आ कर बहुत सारे तत्व ज्ञान अपने बारे में पता चल रहा है , पता नहीं अब तक कैसे जी रही थी । निवेदन है की बताये की ये कामरेड किस धर्म जाति और देश का निवासी होता है , अपने बारे में इतनी तो जानकारी हो :))))
नोट :-चलते चलते की बात अपने ऊपर यु ही किये गए टिप्पणी को हँसने हँसाने के लिए मजाक में लिखी गई है उसे कटाक्ष का गम्भीरता से न ले , ऐसा मेरी सहज बुद्धि कहती है ;-)