जो सरकारी डॉक्टर प्राइवेट न बैठे तो किसी छोटे कस्बे में किसी मरीज का क्या हाल हो सकता है , इससे जुड़ा अपना अनुभव बता रही हूँ | मेरी बेटी ९ महीने की थी जनवरी का पहला सप्ताह था मै अपने ससुराल में थी , जगह गांव नहीं छोटा शहर था | बिटिया के लिए पहली ठंडक थी और उसके लिए अचानक से मौसम में आया बदलाव भी था | नतीजा ६ दिन बाद उसकी तबियत ख़राब हो गई अब पूछा गया की किस डॉक्टर को दिखाया जाये | यहाँ के सरकारी में तो नहीं जाउंगी , पता चला वहा जा कर वो कई दूसरी बीमारियों का संक्रमण ले कर आ जाएगी और निजी में मुझे पूरी आशंका थी की यहाँ ज्यादातर झोलाछाप डॉक्टर मिलेंगे | ननद ने अपने बेटी के डॉक्टर का नाम पता दिया जब पूछा की क्या एमबीबीएस है तो जवाब था पता नहीं | फिर जिठानी ने अपने बच्ची के डॉक्टर का पता देने के लिए डॉक्टर का पर्चा दिया उसको देख कर तो मेरे होश ही उड़ गये | वो एक दवा की दुकान का लेटर हेड था जिसमे डॉक्टर का नाम पता भी नहीं था |
पतिदेव बोले चलो एक बार दिखा देते है , मैंने साफ इंकार कर दिया एक इतनी छोटी से बच्ची के लिए एक ही गलत टेबलेट बहुत होता है ,ऐसे डॉक्टर को कैसे दिखा दू जिसके पर्ची पर उसका नाम तक नहीं है| अंत में मैंने कहा चलो ननद वाले डाक्टर के पास जाते है शायद इन्होने ने न देखा हो वो हो ढंग का डॉक्टर | वह जा कर पता चला उनके कम्पाउंडर तक को नहीं पता की डॉक्टर साहब ने कौन सी डिग्री ली पड़ी है | मेरी हालत ख़राब हो गई अब क्या करेंगे तभी जेठ जी का फोन आया की वही पास में ही सरकारी अस्पताल का पुराना डॉक्टर निजी प्रेक्टिस कर रहा है पिछले साल ही उसका ट्रांसफर हुआ है दसियो साल से बाहर अस्पताल बना कर चला रहे है , तो हफ्ते में तीन दिन अब भी आते है | वहां की भारी भीड़ देख मेरी हालत ख़राब हो गई, लो यहाँ का नजारा तो बिलकुल सरकारी अस्पताल वाला है तभी पड़ोस के लडके मिल गये , क्या हुआ भैया से शुरू हुए और ये तो एमरजेंसी केस है कर के सीधा डॉक्टर के पास ले गये | डॉक्टर साहब रिटायरमेंट की आयु में लगभग आ गए थे और कमाल के थे झट बिटिया के सर पर हाथ रखा और बता दिया हां बुखार तो है, मैंने कहा कम से कम थर्मामीटर तो लगा लीजिये , मैंने चेक कर लिया १०१ डॉ साहब ने जवाब दिया और मुंबई से आये है सुन पर्ची लिख दी , मै समझ गया इसे यहाँ का मौसम सूट नहीं किया है यहाँ मच्छर भी है | इतनी भीड़ में उन्हें और व्यस्त रखना मुझे भी अच्छा नहीं लगा | बाहर आ गई और अपने डॉक्टर को मुंबई फोन किया पूरी हालत बताई और दवा का नाम भी यहाँ पर पति के कॉलेज टाईम में किया एमआरगिरी काम आया , उन्होंने कहा ठीक है दवा दे दो , इतनी दूर से बच्चे ही हालत देखे बिना और कह नहीं पाऊँगी |
लेकिन दूसरे दिन तो बिटिया उलटी भी करना शुरू कर दी डॉक्टर का वो दिन था नहीं कि मिले सब घर में शुरू हो गये इसे अस्पताल में भर्ती करना होगा | मैंने पति से कहा गाडी मंगाइये हम अभी बनारस जा रहे है मेरी बेटी की तबियत सच में बहुत ख़राब हो रही है | वापस से अपने डॉक्टर को फोन किया उन्होंने तुरंत पूछा मलेरिया की दवा में हनी मिला कर पिलाया था की नहीं वो बहुत कड़वी होती है | मैंने कहा मलेरिया लेकिन इसका मलेरिया का चेकअप तो हुआ ही नहीं , वो भी आश्चर्य में बिना चेकअप के डाक्टर ने मलेरिया की दवा कैसे दे दी , उन्हें लगा की चेकअप में के बाद दवा दी गई है और उन्होंने वो दवा बंद कराई और बाकि चालू रखने को कहा | शाम को पता चला बिना नाम वाली पर्ची भी असल में वर्तमान सरकारी बच्चो के डॉक्टर की है जो निजी प्रेक्टिस कर रहा है इसलिए अपना नाम नहीं दे सकता | फिर उसे जा कर दिखाया वो थोड़ा यंग था लगा ये आज कल का पढ़ा होगा ढंग से देखेगा ना की वो बाबा आदम के ज़माने के पढ़े हुए सरकारी डॉक्टर की तरह जो सब को एक ही भेड बकरी की तरह देख रहा था | और वास्तव में उसने अच्छे से बच्ची को चेक किया उसका वजन भी किया , (बिना वजन किये बच्चो को दवा नहीं देते वजन के हिसाब से दवा की मात्रा दी जाती है ) दवाये बदली टेबलेट की जगह बच्चो के सिरप लिखे | बिटिया अगले दिन सुबह तक ठीक ठाक थी | ये हालत एक छोटे शहर की थी किसी गांव की क्या हालत होती होगी जहा सरकरी डॉक्टर भी नहीं मिलता | उस तरफ पहले ध्यान दीजिये योगी जी प्राइवेट प्रेक्टिस बाद में बंद करवाइयेगा , सरकारी अस्पताल के बंद होने के बाद मरीज कहा जाये , थोड़े से पैसे के लालच में ही सही लोगो का कुछ तो इलाज हो रहा है |