विचारधारा के इस कथित झगड़े में फायदा सरकार और विपक्ष के आलावा आजकल अपराधियों को भी हो रहा है | कोई नीजि दुश्मनी हो, खुन्नस हो ,चर्चा में आना हो , अपनी राजनीति चमकानी हो या कोई नीजि पूर्वाग्रह हो | अपराधी आराम से अपने अपराध को विचारधारा का चोला पहना अपराध कर लेता है और एक तबका खड़ा हो जाता है उसके बचाव में | कोई उसके कृत्य को सिर्फ अपराध मानता ही नहीं , सभी उसको एक वाद से जोड़ देते है और उसके तहत ही उसके अपराध पर चर्चा करते है | जो अपराध राज्य सरकारों के लिए कानून व्यवस्था का मसला बनना चाहिए था वो विचारधारा के नाम पर हुए झगड़े बन , सरकारों को भी फायदा देते है | सरकार भी ऐसे आरोपों और चर्चा को बढ़ावा देती है ताकि वो जिम्मेदारी से बच सके | कोई उससे ये न पूछे की राज्य की सुरक्षा व्यवस्था कानून की जिम्मेदारी उसकी है और ये चूक कैसे हुई | तब तो सरकारों के लिए और आसान हो जाता है जब किसी अपराध को विपक्ष की सोच से जोड़ दिया जाता है | फिर तो उसके लिए सुनहरा मौका होता है कि वो उसे और जोरदार ढंग से प्रचारित करे जिसके किसी की भी उंगली उसके शासन की तरफ न उठे | इसमें विपक्ष भी बराबरी का योगदान देता है , वो भी उसे अपराध न मान कानून व्यवस्था का मसला नहीं उठाती | वह भी समयानुसार सिर्फ विचारधारा का नाम ही दे अपने लिए वोट का इंतजाम करती है | विचारधारा उसकी सोच से मिलती हो तो अपराध का बचाव नहीं तो सरकार की सोच पर हल्ला |
मामला अख़लाक़ का हो या अंकित का असल में तो इन्हे मात्र एक अपराध की नजर से देख राज्य सरकारों पर सवाल करना चाहिए कि राज्य में कानून का कितना राज है और अपराधियों पर कितना अंकुश | सवाल पुलिस विभाग से पूछा जाना चाहिए कि वो क्या कर रही है | ये मसले यदि अपराध की नजर से देखे जाते और सही सवाल समाज और विपक्ष की तरफ से उठाये जाते तो कोई भी तबका अपराधियों के साथ खड़ा न होता और न ही उसके बचाव में कुछ कह पाता | उसकी जाँच भी बिना किसी दबाव के सही तरीके से होती और सही अपराधी भी पकड़े जाते | ये विचारधारा का ही झगड़ा है कि कई बार अपराध कोई और कर जाता है और विचारधारा का नाम दे उसका रुख कही और मोड़ दिया जाता है जिससे जाँच करने वाली एजेंसिया भी दबाव में आ कर या दबाव में गलत दिशा में अपराधियों को खोजने लगती है और असल हत्यारा आराम से बाहर घूम रहा होता है | एक आरटीआई कार्यकर्ता की हत्या के मामले में ये दिख भी चुका है कि लोगो ने उनकी हत्या को इतना ज्यादा एक सोच से जोड़ दिया की पुलिस को उनके करीबी हत्यारो को भी पकड़ने में समय लग गया | ये आज की तथकथित विचारधारा ही है कि समाज एक अपराधी के साथ खड़ा हो जाता है या अपराध को लेकर अगर मगर करता है और इस स्थिति के लिए समाज के दोनों ही तबके बराबर के जिम्मेदार है |