मुंबई में एक अच्छी आदत हैं यहां बड़ी संख्या में लोग बस ट्रेन आदि में बुजुर्गों को तुरंत अपनी सीट दे देतें हैं | लेकिन कभी कोई गर्भवती महिला और बुजुर्ग दोनों आ जाए तो लोग गर्भवती महिला को सीट पहले देतें हैं बुजुर्ग मुकाबले | परिस्थितियां बदलते ही हमारी प्राथमिकताए बदल जाती हैं | अब यदि गर्भवती महिला के साथ कोई ऐसा आ जाये जो अपाहिज हो खड़ा ना हो सके तो व्यक्ति एक कदम और आगे बढ़ता हैं और अपनी सीट एक को दे दूसरे यात्री को भी अपनी सीट देने के लिए कहता हैं | कभी कभी बढ़िया तालमेल भी हो जाता हैं , बुजर्ग भी हैं और छोटा बच्चा गोद में लिए महिला तो बुजुर्ग को सीट दे कर बच्चा उसकी गोद में दे दिया जाता हैं |
हमारी एक मित्र एक एनजीओ में हैं जो गरीब कैंसर पीड़ित बच्चों का मुफ्त इलाज कराती हैं | कैंसर का इलाज मंहगा भी हैं और लंबा चलने वाला भी | इजाज के साथ महीनो पीड़ित के साथ उसके माता पिता के भी रहने खाने पीनी की व्यवस्था भी संस्था अपने यहाँ करती हैं | किसी भी संस्था के पास इतने संसाधन नहीं होते कि हर किसी को ये सुविधा दे सके इसलिए उन्हें चुनाव करना पड़ता हैं | वो उन्ही बच्चों की मदद करती हैं जिनके कैंसर से बचने की संभावना कम से कम साठ प्रतिशत हो , उससे कम वालों को , वो नहीं लेती हैं |
इसका कारण जहां सिमित संसाधनों का सही जगह उपयोग करना हैं वही उनका कहना हैं जब संस्था में बहुत प्रयास के बाद और कई बार माता पिता की लापरवाही , जिसमे वो इलाज बीच में छोड़ कर चले जाते हैं और फिर वापस आतें हैं के कारण किसी बच्चे की मौत हो जाती हैं तो बाकी बच्चों और परिवारो मेंउसका बुरा असर होता हैं वो बहुत निराश हो जातें हैं | एक मौत के बाद सभी की फिर से कॉउंसलिंग करनी पड़ती हैं |
अब देख रहीं हूँ जब से इटली में कोरोना को लेकर बुजुर्गों के इलाज में बाकियों से कम ध्यान देने की खबर आई हैं लोग उस समाज , देश , सरकार , संस्कृति को भला बुरा कह रहें हैं | बिलकुल गलत सोच और रवैया हैं इटली के लिए लोगों का |
जब परिस्थितियां बहुत ख़राब हो और संसाधन बहुत सिमित तो हमें इस तरह की प्राथमिकताए तय करना मजबूरी भी होती हैं और जरुरी भी | सिमित संसाधनों का प्रयोग पहले उनके लिए करना पड़ता हैं जिनके बचने की संभावना ज्यादा हो | 80 साल से ऊपर के उन बुजुर्गों की बात की जा रही हैं जिन्हे कोरोना के पहले ही अनेक तरीके की शारीरिक समस्याएं हैं | कोरोना होने के बाद ये इतनी बढ़ जा रहीं हैं कि हर बुजुर्ग को अपने सहायता और समस्याओं के लिए एक नर्स और डॉक्टर की जरुरत हैं | ऐसे समय पर जब हजारों लोग एक साथ बीमार हो तो क्या किसी एक मरीज के लिए ऐसी व्यवस्था की जा सकती हैं और इसके बाद भी उसके बचने की संभावना बहुत कम हैं |
बाढ़ आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय महिलाओं बच्चों बुजुर्गों को पहले बचाया जाता हैं | क्या आजतक हमने इस पर सवाल उठाया हैं कि क्या किसी हट्टे कट्टे पुरुष की जान कम कीमती होती हैं जो उसे प्राथमिकता नहीं दी जाती | यहाँ पर देखा जाता हैं कौन ज्यादा लम्बे समय तक दुबारा लौट कर आने तक खुद को बचा कर रख सकता हैं | लेकिन यही अगर नाव पलट जाए तो प्राथमिकता बदल जाती हैं जो पहले सामने आता हैं पहले उसे बचाया जाता हैं बिना किसी भेदभाव के , तब स्त्री पुरुष बच्चा नहीं देखा जाता |
इसलिए किसी भी समाज , संस्कृति देश आदि को कुछ कहने से पहले सभी परिस्थितियों को व्यावहारिक रूप से सोच समझ लेना चाहिए | हमारे समाज में कौन हैं जो अपने 80 के ऊपर के बुजुर्ग को बचाने के लिए अपने जवान या छोटे बच्चों को कुर्बान करेगा ऐसी खराब स्थिति में | बेहतर हैं अपने बुजुर्गों की देखभाल अभी ही कीजिये और उन्हें जितना हो सके घर में रखिये आसपास की साफ़ सफाई पर ध्यान दीजिये | हम इटली के मुकाबले काफी गरीब देश हैं , हमारे संसाधन उनसे भी कम हैं |
हमारी एक मित्र एक एनजीओ में हैं जो गरीब कैंसर पीड़ित बच्चों का मुफ्त इलाज कराती हैं | कैंसर का इलाज मंहगा भी हैं और लंबा चलने वाला भी | इजाज के साथ महीनो पीड़ित के साथ उसके माता पिता के भी रहने खाने पीनी की व्यवस्था भी संस्था अपने यहाँ करती हैं | किसी भी संस्था के पास इतने संसाधन नहीं होते कि हर किसी को ये सुविधा दे सके इसलिए उन्हें चुनाव करना पड़ता हैं | वो उन्ही बच्चों की मदद करती हैं जिनके कैंसर से बचने की संभावना कम से कम साठ प्रतिशत हो , उससे कम वालों को , वो नहीं लेती हैं |
इसका कारण जहां सिमित संसाधनों का सही जगह उपयोग करना हैं वही उनका कहना हैं जब संस्था में बहुत प्रयास के बाद और कई बार माता पिता की लापरवाही , जिसमे वो इलाज बीच में छोड़ कर चले जाते हैं और फिर वापस आतें हैं के कारण किसी बच्चे की मौत हो जाती हैं तो बाकी बच्चों और परिवारो मेंउसका बुरा असर होता हैं वो बहुत निराश हो जातें हैं | एक मौत के बाद सभी की फिर से कॉउंसलिंग करनी पड़ती हैं |
अब देख रहीं हूँ जब से इटली में कोरोना को लेकर बुजुर्गों के इलाज में बाकियों से कम ध्यान देने की खबर आई हैं लोग उस समाज , देश , सरकार , संस्कृति को भला बुरा कह रहें हैं | बिलकुल गलत सोच और रवैया हैं इटली के लिए लोगों का |
जब परिस्थितियां बहुत ख़राब हो और संसाधन बहुत सिमित तो हमें इस तरह की प्राथमिकताए तय करना मजबूरी भी होती हैं और जरुरी भी | सिमित संसाधनों का प्रयोग पहले उनके लिए करना पड़ता हैं जिनके बचने की संभावना ज्यादा हो | 80 साल से ऊपर के उन बुजुर्गों की बात की जा रही हैं जिन्हे कोरोना के पहले ही अनेक तरीके की शारीरिक समस्याएं हैं | कोरोना होने के बाद ये इतनी बढ़ जा रहीं हैं कि हर बुजुर्ग को अपने सहायता और समस्याओं के लिए एक नर्स और डॉक्टर की जरुरत हैं | ऐसे समय पर जब हजारों लोग एक साथ बीमार हो तो क्या किसी एक मरीज के लिए ऐसी व्यवस्था की जा सकती हैं और इसके बाद भी उसके बचने की संभावना बहुत कम हैं |
बाढ़ आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय महिलाओं बच्चों बुजुर्गों को पहले बचाया जाता हैं | क्या आजतक हमने इस पर सवाल उठाया हैं कि क्या किसी हट्टे कट्टे पुरुष की जान कम कीमती होती हैं जो उसे प्राथमिकता नहीं दी जाती | यहाँ पर देखा जाता हैं कौन ज्यादा लम्बे समय तक दुबारा लौट कर आने तक खुद को बचा कर रख सकता हैं | लेकिन यही अगर नाव पलट जाए तो प्राथमिकता बदल जाती हैं जो पहले सामने आता हैं पहले उसे बचाया जाता हैं बिना किसी भेदभाव के , तब स्त्री पुरुष बच्चा नहीं देखा जाता |
इसलिए किसी भी समाज , संस्कृति देश आदि को कुछ कहने से पहले सभी परिस्थितियों को व्यावहारिक रूप से सोच समझ लेना चाहिए | हमारे समाज में कौन हैं जो अपने 80 के ऊपर के बुजुर्ग को बचाने के लिए अपने जवान या छोटे बच्चों को कुर्बान करेगा ऐसी खराब स्थिति में | बेहतर हैं अपने बुजुर्गों की देखभाल अभी ही कीजिये और उन्हें जितना हो सके घर में रखिये आसपास की साफ़ सफाई पर ध्यान दीजिये | हम इटली के मुकाबले काफी गरीब देश हैं , हमारे संसाधन उनसे भी कम हैं |