August 29, 2020

यहाँ निष्पक्ष कोई नहीं ------mangopeople





                                    जिस एनडीटीवी पर रविश कहते हैं , जब टीआरपी की होड़ में सभी सिर्फ सुशांत केस को दिखा रहें हैं तो हम आपको असली खबर दिखा रहें हैं | उसी चैनल पर इस पंद्रह अगस्त के जय जवान में 2017 में सुशांत के साथ वाले एपिसोड दिखाते हैं | ये ठीक हैं इस साल नया नहीं बना होगा लेकिन 2018-19 वाला एपिसोड भी दिखा  सकते थे , लेकिन  टीआरपी की चाहत सभी को होती हैं  | 

                                   फिर कहा जाता हैं कि मिडिया ट्रायल हो रहा हैं केस कोर्ट में हैं उसे ही ट्रायल करने दीजिये  और उसके बाद रिया का इंटरव्यू दिखाते हैं | किसी एक पक्ष के बयान को सहानभूति पूर्वक इंटरव्यू दिखाना मिडिया ट्रायल नहीं हैं क्या , आप दोनों पक्षों का कुछ  भी ना दिखाते सिर्फ इससे जुड़े खबर से मतलब रखते तो बेहतर होता | 

                                 वो कहतें हैं कि मीडिया एक तरफा खबर दिखा रहा हैं बकवास कर रहा हैं रहा हैं जबरजस्ती खुद ही फैसले सूना रहा हैं और फिर मनोरंजन भारती कहते हैं वो कौन सी ताकतें हैं जो रिया को इस केस में फंसाने का प्रयास कर रही हैं | किसी एक पक्ष को कोर्ट के पहले अपराधी बता देना गलत हैं तो किसी को निर्दोष मासूम बता देना भी उतना ही गलत हैं | ये चैनल भी इस केस में वही गलती कर रहें हैं जो बाकि के चैनल | 

                                एनडीटीवी को निष्पक्ष भी दिखना हैं और एक का पक्ष भी लेना हैं ऐसा कैसा चलेगा भैय्या | हम जैसे दर्शक मिडिया ट्रायल खिलाफ हैं और  बकवास खबरों , बयानों और आरोपों के भी इसलिए ही एनडीटी देखते हैं | लेकिन वहां भी  आरोपी पक्ष को सहानभूति से और निर्दोष बताया जायेगा   तो ये भी नहीं चलेगा | चैनल को तय कर लेना चाहिए कि उसे निष्पक्ष रहना हैं या एक पक्ष में जाना हैं , जो भी करना हैं खुल कर करों , दोनों हाथो में लड्डू लेने का  प्रयास ना करो | ताकि हम निर्णय कर सके की इस केस में मामले में हम तुमको देखना भी बंद कर दे | 

August 28, 2020

विद्यार्थियों का हित किसमे -------mangopeople

 

 

                                      कितने लोगों को लगता हैं कि चार महीने बाद कोरोना चला जायेगा और सब कुछ इतना सामान्य हो जायेगा कि स्कूल खोल दिए जायेंगे | शायद दुनियां के सबसे   आशावादी व्यक्ति को भी ऐसा नहीं लगता होगा , बल्कि तब तक शायद हालत आज से भी ज्यादा  ख़राब हो जाये | 

                                     फिर किस आधार पर ये कहा जा रहा  हैं कि JEE NEET की प्रवेश परीक्षाएं चार महीने के लिए टाल दिया जाये | चार महीने टालने की बात असल में बस एक बहाना हैं उसके बाद फिर ऐसा ही विरोध होगा क्योकि हालत इससे भी ख़राब होंगे | फिर कहा जायेगा जब इससे बेहतर हालत में परीक्षायें टाल दी  गई तब अब क्यों कराया जा रहा हैं | ये मान कर चलिए परीक्षाये टालने का अर्थ हैं इस  पूरे  सत्र को  ख़त्म करना | तो इससे बेहतर होगा कि जो लोग कोरोना के डर से या किसी अन्य कारण से परीक्षा नहीं देना चाहते वो ना दे और अगले साल इसके लिए प्रयास करे और जो देना चाहतें हैं उन्हें देने दिया जाये | 

 
                                    सबसे पहले तो प्रवेश परीक्षा देने वालों को बच्चा कहना बंद कीजिये वो सभी अठारह साल से ऊपर के बालिग युवा हैं और उनमे से ज्यादातर पांच महीनो से घरों ,में कैद नहीं हैं और वैसे ही बाहर निकल कर अपने काम कर रहें हैं जैसे अन्य लोग | 

                                  इस साल की प्रवेश परीक्षा रद्द होने अर्थ  उन सभी मेहनती विद्यार्थियों की मेहनत तैयारी पर पानी फेर देना हैं जो परीक्षा देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं और देना चाहतें हैं | उन सामान्य घरों के  विद्यार्थियों के साथ भी अन्याय हैं जिन्होंने बड़ी मुश्किल से कोचिंग सेंटरों की फ़ीस भरके तैयारी की हैं और अब दुबारा एक साल के लिए कोचिंग की फ़ीस नहीं भर सकते और घर पर रह कर पढाई पर फोकस करना उस तरह संभव नहीं हैं | 

                                 उन लड़कियों के साथ भी अन्याय  हैं जो बड़ी मुश्किल से अपने घर वालों को मना पाती हैं इंजीनियरिंग और मेडिकल में प्रवेश के लिए और उन्हें बस एक या दो वर्ष  मिलते हैं ऐसी प्रवेश परीक्षाओं को देने और उनमे चुने जाने की |  उसके बाद बीए बीएससी करो और फिर शादी | उन लडको के साथ भी अन्याय हैं जो अपने पिता के काम दुकान बिजनेस  आदि से अलग कुछ करना चाहते हैं और उन्हें भी सिर्फ एक दो साल ही मौका मिलता हैं | फिर उन्हें भी दूकान , खेती और बिजनेस में लगा दिया जाता हैं |  

                               उन विद्यार्थियों के साथ भी जो अगले साल परीक्षा देने की अधिकतम आयु पार कर लेंगे | उन सामान्य विद्यार्थियों के साथ तो घोर अन्याय हैं जिन्हे अगले साथ दुगने प्रतियोगियों के साथ मुकाबला करना होगा और अच्छे  नंबर लाने के बाद भी प्रवेश नहीं मिल पायेगा | क्योकि सीट उतनी ही होगी और दावेदार हर साल से दुगने | उन विद्यार्थियों के साथ भी अन्याय हैं जिन्होंने पिछले साल डेंटल और आयुर्वेद आदि में प्रवेश को छोड़ एक बार फिर से एमबीबीएस के लिए  तैयारी की थी | उन गरीब और मिडिल क्लास के बच्चों के साथ भी जो बेहतर नंबर ला  सरकारी संस्थान या अपने मनचाहे कॉलेज आदि में प्रवेश की सोच रहें हैं | क्योकि अगले साथ दुगने प्रतियोगी में वो प्रवेश तो  पा जायेंगे लेकिन फिर ख़राब या महंगे प्राइवेट कॉलेजों में प्रवेश लेने के लिए फ़ीस और इच्छा नहीं  होगी | इस तरह के अनेक विद्यार्थी हैं जो परीक्षाये टालने से नुकशान में होंगे | 


                            जो ईमानदारी से विद्यार्थियों के हित का सोचता तो वो बेहतर सुविधाओं  की मांग करता ,  ज्यादा से ज्यादा सेंटर बनाने की मांग करता | छोटे छोटे शहरों में सेंटर बनाने की मांग करता या गांवों से विद्यार्थियों को सेंटर तक ले जाने लाने के लिए वाहनों को इंतजाम की बात करता | दूर दराज से आ रहें अभिवावको के रहने का इंतजाम  मांगता | दूसरे देशों में जैसे JEE की ऑनलाइन परीक्षाएं दूतावासों में हो रही हैं वैसे ही NEET की परीक्षाओं के लिए भी  उन देशो के दूतावासों में परीक्षाओं की   मांग करता | 

                            लेकिन यहाँ मिडिया कोटा वाले कोचिंग माफियाओ को बुला   कर उनसे पूछ रहा हैं कि बताइये प्रवेश परीक्षा होनी चाहिए की नहीं | वो तो कहेगा ही कि परीक्षाये ना हो ,  सुविधा संपन्न वर्ग का युवा एक साल बाद दूसरे साल भी उसके यहाँ कोचिंग करने आएगा और फ़ीस भरेगा | अपने सुपर 30 कोचिंग वाले माफिया कहते हैं कि बच्चा लोग मास्क लगा कर परीक्षा कैसे देंगे उनको साँस नहीं आएगी उनका दिमाग काम नहीं करेगा | तीन महीने होने जा रहा हैं अनलॉक हुए कितने लोगों का दिमाग काम नहीं कर रहा हैं मास्क लगाने के बाद बताये जरा और कितने युवाओं ने मास्क का मुंह नहीं देखा होगा अभी तक | 






August 26, 2020

मास्क अब जीवन का हिस्सा हैं -------mangopeople

                                   दुनियां और देश के बाकि हिस्सों का हाल मार्च में जो भी था लेकिन मुंबई में मास्क की कमी कभी नहीं रही | मार्च में यहाँ फुटपाथों पर 30 ,50 , १०० रुपये तक के मास्क के ढेर लगे थे , अब भी लगे हैं |  वो अलग बात हैं कि वो थ्री लेयर नहीं थे  और  जरुरत के मुताबिक भी ,  लेकिन मास्क थे | इसलिए कोई कम से कम तब और अब मास्क ना मिलने का बहाना मार कर मास्क पहनने से इंकार नहीं कर सकता हैं | | 


                                   सड़क वाले मास्क के साथ समस्या ये हैं कि एक तो केवल एक लेयर का हैं , दूसरे कई जगह कपड़ा होजरी का हैं जो जल्दी पानी सोख दूसरी तरफ पहुंचा देता हैं | कई मास्क का साइज इतना छोटा हैं कि वो दोनों होठो और नाक के दोनों छेदों को एक साथ मुश्किल से ढँक पा रहा हैं ,  ऐसे मास्क किसी काम के नहीं हैं | कुछ मास्क बाहर से सिलाई कर चोंच की तरह  ऐसा आकार दे  हैं कि वो चेहरे  पर फिट नहीं बैठता और बोलने के समय बार बार नीचे गिर जाता हैं |  कुछ मास्क आयातकार कपड़ा  भर हैं उसमे चेहरे के बनावट के हिसाब से चुन्नट या आकार नहीं दिया गया हैं ,  नतीजा उन्हें बार बार सही जगह पर रखने के लिए हाथ लगाना पड़ता हैं | 

                                 हमारे पास हरा वाला तीन मास्क दस साल पुराना पड़ा था H1N1 के समय का |  उसके  घर में  होने की जानकारी भी हमें नहीं  थी ,  संजोग से पिछली दिवाली की  सफाई में दिखा और फिर भी उसे फेका नहीं | शायद भविष्य  दिख गया था कि इसकी जरुरत पड़ने वाली हैं ,  शुरू में तो उसने ही साथ दिया | 

                               लॉकडाउन  खुलने के बाद अब तो घर में दो बड़े ब्रांड के चार मास्क आ गये हैं ,  तीन वैन हुसैन का हैं और एक जॉकी का | जिसमे से तीन तो तीन लेयर का  हैं लेकिन एक दो लेयर का भी ले लिया था | शुरू में एक लेयर वाले हरे मास्क से भी  कभी कभी मेरी साँस फूलने लगती थी , लगा पता नहीं तीन लेयर वाला पहन भी पाऊँगी की नहीं | वो साँस फूलना शायद मास्क की आदत ना होने और ज्यादा समय तक चलना फिरना ना होने के बाद चलने से हुआ था , जो बाद में नहीं हुआ |  अच्छे ब्रांड  और लोकल में यही फर्क होता हैं कि उन्हें जरूरतों और परेशानियों को समझ कर बनाया जाता हैं | उनकी डिजाइन भी चेहरे के अनुसार होती हैं ,  सभी तरह के लोगों के  लिए फिट हो  और जिस तरह के सुरक्षा की जरुरत हो उसके हिसाब से बनाया जाता हैं | 

                               मास्क का बाजार आज कितना बड़ा बन चूका हैं इसका अंदाजा आप इस बात से ही लगा लीजिये कि अकेले वाइल्डक्राफ़्ट ने लगभग ढाई सौ करोड़ का बिजनेस  अभी तक कर लिया हैं | उसने आपदा को बिलकुल सही समय पर अवसर में बदल दिया | लॉकडाउन खुलने के बिलकुल पहले उसने ना केवल टीवी पर जोरदार विज्ञापन  देना शुरू किया बल्कि ये भी सुनिश्चित किया कि लोगों को हर जगह वो आसान से उपलब्ध हो | बाकि कंपनियों ने मास्क की तैयारी देर से की , विज्ञापन नहीं दिया और बाजार में लोगों को आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाया , नतीजा  पिछड़ गये | 

                              आप किसी मेडिकल स्टोर पर जाइये आपको जॉकी , वैन हुसैन , पीटर  इग्लैंड जैसे ब्रांड के मास्क कम और लोकल ज्यादा मिलेगें | रिटेलर दूकानदार को एक  एन 95  लोकल मास्क 85 से 90 रुपये में मिलते हैं जिसे वो दो से ढाई सौ से बेचता हैं ,  आप रिटेलर की मार्जिन  देखिये कितनी ज्यादा हैं | जबकि बड़े ब्रांड अपनी अकड़ में होते हैं वो अपने उत्पाद पर वैसे भी ज्यादा कमीशन नहीं देते लेकिन उपभोक्ता में  उन ब्रांड की मांग ज्यादा होती हैं तो दूकानदार को भी  उन उत्पाद को कम मार्जिन के बाद भी रखना होता हैं | मास्क में वो बात नहीं बनी , लोगों में ब्रांड को लेकर वो उत्साह नहीं था और बहुत  सारे लोगों को तो पता ही नहीं हैं कि ये कंपनियां भी मास्क बना रही हैं | इसलिए ये ब्रांड ऑनलाइन ही ज्यादा मिल रहें हैं क्योकि ज्यादातर दुकानदारों को उसमे ज्यादा फायदा नहीं मिल रहा और वो उन्हें रखने से ही इंकार कर दे रहें हैं | 

                             मैंने बहुत सारे लोगों को देखा जो एक बार प्रयोग करने के बाद फेक देने वाले नील मास्क को भी महीनो से बार बार पहन रहें हैं , बेकार हैं ऐसे मास्क | आप भी अगर किसी मास्क को ले रहें हैं तो एक बार ध्यान से उन पर लिखे निर्देशों को भी पढियेगा | उन पर उनको धोने के तरीके से लेकर कितनी बार उनका प्रयोग कर सकते हैं का भी निर्देश लिखा हुआ हैं | कोई भी मास्क अनंत काल तक पहनने के लिए नहीं बना हैं  , बार बार धोने से उनकी गुणवत्ता ख़राब होती जाती हैं और वो जरुरत के हिसाब से आपको सुरक्षा नहीं दे पाएंगे | इसलिए निर्देशों को ध्यान से पढ़ कर अपने मास्क को बदल दे | मुझे लगता हैं रोज काम पर जाने वालों को निश्चित रूप से अपने मास्क बदल देने चाहिए अब और बाकी लोग भी अपने मास्क चेक कर बदलना शुरू कर देना चाहिए | सभी को समझ लेना चाहिए कि मास्क अब हमारी जिंदगी का एक जरुरी हिस्सा बन चुका हैं और अभी लंबे समय तक ये हम सभी के जीवन में रहेगा तो अपने शॉपिंग लिस्ट में बार बार शामिल कर लीजिये | 



पुरुष तो एक मात्र कृष्ण हैं बाकी तो सब गोपियाँ ---------mangopeople



                                            वो तुम थे कृष्ण  जिसने बताया कि माँ होने के लिए किसी  बच्चे का लालन  पालन कहीं बड़ा होता हैं उसको जन्म देने  से | तुमने बताया कि स्त्री मात्र  जन्म देने से माँ का दर्जा नहीं पाती ,  वो सभी स्त्रियां जो  किसी भी बच्चे को अपना संतान मान लेती हैं वो माँ हो जाती हैं | वो तुम ही तो थे जिसने ब्रज की हर गोपी से दुलार पा उस भ्रम को भी तोड़ा कि हर माँ  अपनी संतान  से ज्यादा किसी और बच्चे  को प्रेम नहीं करती  | 

                                           वो तुम थे कृष्ण  जिसने राधा से प्रेम कर बताया किसी स्त्री पुरुष के बीच का प्रेम अपवित्र नहीं होता  और विवाह के बिना प्रेम अधूरा भी नहीं होता | प्रेम तो अपने आप में सम्पूर्ण हैं , उसका जीवन में होना ही  हमें पूर्ण कर देता हैं | 

                                          वो तुम थे कृष्ण  जिसने द्रौपती से अपनी मित्रता निभा बताया बताया कि एक स्त्री पुरुष कहीं अच्छे मित्र  हो सकते हैं | जीवन में जब अपने ही हमें हार जाते हैं तो सखा ही संकट में याद आतें हैं | तुम जैसे सखा से अच्छा,  जीवन का मार्ग दर्शक कौन हो सकता हैं | 

                                         वो तुम थे कृष्ण जिसने विवाह के लिए बहन  शुभद्रा की इच्छा को सर्वोपरि रखा परिवार के इच्छाओं के आगे और समाज की मर्यादाओं को तोड़ने में उसका साथ दिया  | तुमने बताया द्रौपती , शुभद्रा , रूपमणि को कि स्वयंबर का अर्थ  पिता भाई की पसंद  में से किस एक वर को चुनना नहीं होता | स्वयंवर का अर्थ हैं स्वयं की इच्छा से एक वर चुनना | 

                                       वो तुम थे कृष्ण जिसने उन हजारों स्त्रियों को एक बार में अपना लिया जिन्हे समाज ने  सिर्फ इसलिए त्याग दिया था क्योकि किसी दुष्ट पुरुष ने अपनी इच्छाओं के लिए उनका हरण कर लिया था | तुमने ही तो समाज की उन रूढ़ियों को तोडा जिसमे पुरुषों के किये अपराधों की सजा निर्दोष स्त्रियों को दिया जाता था | 

                                      वो तुम्हारी ही  भक्ति और प्रेम था कृष्ण जिसने मीरा को संसार की बेड़ियों को तोड़ने का साहस दिया , जिसमे  किसी स्त्री को पारिवारिक जिम्मेदारी को छोड़ भक्ति , संन्यास की भी इजाज़त नहीं होती | 

 राधा और यशोदा का जीवन जी लिया अब अगर कभी कुछ होने इच्छा हुई तो मैं तुम ( कृष्ण ) हो  जाना चाहूंगी | 


August 23, 2020

काबलियत ही आगे बढ़ायेगी --------mangopeople


                                  बिटिया कोई  छः सात साल  की रही होंगी , उनके स्कूल  के एक कार्यक्रम में उन्हें मराठी डांस के लिए चुन लिया गया |  अभी तक वो स्कूल के  कार्यक्रमों में कुछ बोलने के लिए ही भाग लेती पहली बार शौक में डांस में भाग ले रही थी | हफ्ते भर बाद एक दिन घर आ कर बोली आज वाइस प्रिंसपल हमारे डांस की प्रेक्टिस  देखने आयी थी और मुझे देख कर बोली कितनी क्यूट गर्ल हैं इसे पीछे क्यों खड़ा किया हैं इसे आगे खड़ा करों | 


                                ये बता वो बहुत खुश थी लेकिन मुझे अजीब लगा क्योकि मैंने देख और सुन रखा था डांस में लोगों की क्यूटनेस को ज़रा भी भाव नहीं दिया जाता जो सबसे अच्छा डांस करता हैं सबसे आगे वही होता हैं | वो  एक प्रसिद्द  मराठी गाने पर डांस करने वाली थी मैंने तुरंत गूगल से सर्च कर उस गाने को लगा उन्हें अपना डांस दिखाने के लिए कहा | उनका डांस देख हमने तो अपना माथा ही ठोक लिया वो डांस के नाम पर पीटी कर रही थी | खैर उस दिन से हमने उनके डांस में थोड़ा सुधार करवाना शुरू  कर दिया और डांस में थोड़ा लचक लाने का प्रयास   किया | कार्यक्रम के दिन सभी टीचर ने भी कहा कि उन्होंने थोड़ा बेहतर डांस किया था उससे जो वो स्कूल में सीख रही थी | 


                              कई साल बीत गये और फिर एक  बार उन्होंने स्कूल के वार्षिक सामारोह में भाग लिया | कार्यक्रम बड़ा होता हैं इसलिए बाहर से कोरियोग्राफर भुलाया गया था कुछ आठ दस युवा लडके लड़कियां थे | थीम डिस्को था और ये लोग जिस गाने पर डांस करने वाले थे वो सैटरडे नाईट फीवर  का था | हमने पूछा किस लाइन में हो डांस के ,तो बोलती हैं तीसरी | हमने उन्हें फिर डांस दिखाने के लिए कहा इस बार भी उन्होंने डांस के नाम   पर पीटी ही दिखाया | 


                             असल में वार्षिक समारोह में बहुत कम बच्चे ही भाग लेते हैं क्योकि स्कूल के बाद भी रुकना पड़ता हैं और  क्लास पढाई छोड़ भी प्रैक्टिस करनी पड़ती हैं  | इसलिए जिन बच्चों ने भी भाग लेने की हामी भरी उन्हें ही  लेना पड़ता हैं | हमने सोचा कोरियोग्राफर पर हजारों रूपये खर्च किये हैं ड्रेस पर भी सैकड़ो रुपये खर्च हो रहें हैं और दो तीन मिनट के डांस में हमारी छुटकी सी बिटिया तीसरी लाइन में रहीं तो हमें दिखायी भी नहीं देंगी | उस दिन से उनकी घर पर भी प्रेक्टिस शुरू करवाई और वो तीसरी से किसी तरह दूसरी लाइन में ही आ पायी | खैर कार्यक्रम बहुत अच्छा  था और दूसरी लाईन में भी हमने कहा चलो पैसे वसूल हुये  | 


                          असल जीवन में भी हमें बहुत लोग मिलते हैं जो क्यूटनेस , सुंदरता , सरनेम , पहुँच , किसके बेटा/बेटी हो आदि से प्रभावित हो कर लोगों को मौका दे देंतें हैं , किसी क्षेत्र आदि में प्रवेश करना आसान बना देते हैं , संघर्ष को कम या ख़त्म कर देते हैं | लेकिन जब जीवन में प्रोफेशनल लोगों से पाला पड़ता हैं तो योग्यता ही देखी जाती हैं , बाकी सब धरा रह जाता हैं | अपने काम में आगे बढ़ते रहने के लिए , सफलता की नयी ऊचाँइयाँ छूने के लिए टिके रहने के लिए काबलियत ही काम आती हैं और कुछ नहीं चलता | संभव हो जितनी  योग्यता अपने बच्चो को दे सकते हैं वो उन्हें बचपन से दीजिये | जीवन में शॉर्टकट और गलत लोगों का साथ से मिली सफलता ज्यादा लंबी नहीं होती | 

#क्याबनोगीबिटिया 

March 18, 2020

बुजुर्ग , कोरोना और इटली की प्राथमिकताएं --------mangopeople

मुंबई में एक अच्छी आदत हैं यहां बड़ी संख्या में लोग बस ट्रेन आदि में बुजुर्गों को तुरंत अपनी सीट दे देतें हैं | लेकिन कभी कोई गर्भवती महिला और बुजुर्ग दोनों आ जाए तो लोग गर्भवती महिला को सीट पहले देतें हैं बुजुर्ग  मुकाबले |  परिस्थितियां बदलते ही हमारी प्राथमिकताए बदल जाती हैं | अब यदि गर्भवती महिला के साथ कोई ऐसा आ जाये जो अपाहिज  हो खड़ा ना हो सके तो व्यक्ति  एक कदम और आगे बढ़ता  हैं और अपनी सीट एक को दे दूसरे यात्री को भी अपनी सीट  देने के लिए कहता हैं | कभी कभी बढ़िया तालमेल भी हो जाता हैं , बुजर्ग भी हैं और छोटा बच्चा गोद में लिए महिला तो बुजुर्ग को सीट दे कर बच्चा उसकी गोद में दे दिया जाता  हैं |
हमारी एक मित्र एक एनजीओ में हैं जो गरीब कैंसर पीड़ित बच्चों का मुफ्त इलाज कराती हैं | कैंसर का इलाज मंहगा भी हैं और लंबा चलने वाला भी | इजाज के साथ महीनो  पीड़ित के साथ उसके माता पिता के भी रहने खाने पीनी की व्यवस्था भी संस्था अपने यहाँ करती हैं |  किसी भी संस्था के पास इतने संसाधन नहीं होते कि हर किसी  को ये सुविधा दे सके इसलिए उन्हें चुनाव करना पड़ता हैं | वो उन्ही बच्चों की मदद करती हैं जिनके कैंसर से  बचने की संभावना कम से कम साठ प्रतिशत हो , उससे कम वालों को , वो नहीं लेती हैं |
इसका कारण  जहां सिमित संसाधनों का सही जगह उपयोग करना हैं वही उनका कहना हैं जब संस्था में बहुत प्रयास के बाद और कई बार माता पिता की लापरवाही , जिसमे वो इलाज बीच में छोड़  कर चले जाते हैं और फिर वापस आतें हैं  के कारण किसी बच्चे की मौत हो जाती  हैं तो बाकी बच्चों और परिवारो मेंउसका बुरा असर होता हैं वो  बहुत निराश हो जातें हैं | एक मौत के बाद सभी की फिर से कॉउंसलिंग करनी पड़ती हैं |
अब देख रहीं हूँ जब से इटली में कोरोना को लेकर बुजुर्गों के इलाज में बाकियों से कम ध्यान देने की खबर आई हैं लोग उस समाज , देश , सरकार , संस्कृति को भला बुरा कह रहें हैं | बिलकुल गलत सोच और रवैया हैं इटली के लिए लोगों का |
जब  परिस्थितियां बहुत  ख़राब हो और संसाधन बहुत सिमित तो हमें इस तरह की प्राथमिकताए तय करना मजबूरी भी होती हैं और जरुरी भी | सिमित संसाधनों का प्रयोग पहले उनके लिए करना पड़ता हैं जिनके बचने की संभावना ज्यादा हो | 80 साल से ऊपर के उन बुजुर्गों की बात की जा रही हैं जिन्हे कोरोना के पहले ही अनेक तरीके की शारीरिक समस्याएं हैं | कोरोना होने के बाद ये इतनी बढ़ जा रहीं हैं कि हर बुजुर्ग को अपने सहायता और समस्याओं के लिए एक  नर्स  और  डॉक्टर की जरुरत हैं | ऐसे समय पर जब हजारों लोग एक साथ बीमार हो तो क्या किसी एक मरीज  के लिए ऐसी व्यवस्था की जा सकती हैं और इसके बाद भी उसके बचने की संभावना बहुत कम हैं |
बाढ़ आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय महिलाओं बच्चों बुजुर्गों को पहले बचाया जाता हैं | क्या आजतक हमने इस पर सवाल उठाया हैं कि क्या किसी हट्टे कट्टे पुरुष की जान कम कीमती होती हैं जो उसे प्राथमिकता नहीं दी जाती | यहाँ पर देखा जाता हैं कौन ज्यादा लम्बे समय तक  दुबारा लौट कर आने तक खुद को बचा कर रख सकता हैं | लेकिन यही अगर नाव पलट जाए तो प्राथमिकता बदल जाती हैं जो पहले सामने आता हैं पहले उसे बचाया जाता हैं बिना किसी भेदभाव के ,  तब स्त्री पुरुष बच्चा नहीं देखा जाता |
इसलिए किसी भी समाज ,  संस्कृति देश आदि को कुछ कहने से पहले सभी परिस्थितियों को  व्यावहारिक रूप से सोच समझ लेना चाहिए | हमारे समाज में कौन हैं जो अपने 80 के ऊपर के  बुजुर्ग को बचाने के  लिए अपने जवान या छोटे बच्चों  को कुर्बान करेगा ऐसी खराब स्थिति में  | बेहतर हैं  अपने बुजुर्गों की देखभाल अभी ही कीजिये और उन्हें जितना हो सके घर में रखिये आसपास की साफ़ सफाई पर ध्यान दीजिये | हम इटली के मुकाबले काफी गरीब देश हैं , हमारे संसाधन उनसे भी कम हैं | 

January 20, 2020

वो बस आपको थका रहें हैं -----mangopeople

बॉक्सिंग के फ़ाइनल मैच की तैयारी नए खिलाडी को एक ऐसे बॉक्सर के खिलाफ करनी थी जो बहुत आक्रमक था अपने प्रतिद्वंदियों के प्रति | उसकी भाव भंगिमा उससे भी ज्यादा आक्रमक थी | मैच होने से पहले ज्यादा चिल्लाता और उसके बाद भी |
 सुरक्षात्मक खेलना सही ना होता क्योकि लाख बचाव के बाद भी एक एकाध मुक्का  लग ही जाना था | तय हुआ आक्रामक खेल का जवाब और आक्रमक हो कर देना होगा | मैच शुरू हुआ और ताबड़तोड़ हमला शुरू कर दिया गया , लेकिन ये क्या हुआ जो बॉक्सर अभी तक आक्रमक था वो अचानक बचाव की मुद्रा में आ गया | वो मारने के बजाय खुद को बचाने में ही व्यस्त था |
नए खिलाड़ी का और उत्साह बड़ा और उसने और हमला तेज कर दिया | अब तो उसने बचाव की जगह  अपने प्रतिद्वंदी से दूर भागना शुरू कर दिया | वो एक भी हमला नहीं कर पा रहा था | नए खिलाड़ी को जीत की उम्मीद दिखने लगी | अब वो उसकी तरफ भाग भाग कर हमला  कर रहा था | उसके मुक्के लग नहीं रहें थे नामी खिलाड़ी को क्योकि वो सिर्फ बचाव में व्यस्त था लेकिन नया खलाड़ी उम्मीद कर रहा था प्रयास करते करते मार ही लेगा |
मैच ख़त्म होने में कुछ ही समय था कि नामी खिलाड़ी रुका ध्यान केंद्रित किया और एक जोरदार मुक्का अपने प्रतिद्वंदी को दे दिया | नया खिलाड़ी हमला कर कर के और उसके पीछे भाग भाग कर इतना थक चुका था कि उस एक मात्र प्रहार का बचाव भी ना कर सका और नॉक आउट | लोगों ने नामी खिलाडी के उस चालाकी की खूब तारीफ की कि कैसे उसने पहले खिलाडी को खूब  थकाया , छकाया और फिर आखिर में एक पंच में मैच जीत लिया | नए खिलाड़ी के समर्थक भी उसे कोसने लगे इतना हमला किया , क्या फायदा एक भी ढंग का मार ना सका , बेकार था वो |

CAA और NRC को लेकर भी कुछ ऐसा ही मैच चल रहा हैं | अभी तक NRC को संसद में पेश तक नहीं किया गया हैं यहां तक कि उस पर कैबिनेट में चर्चा तक नहीं हुई हैं |  मोदी ने सही कहा था उसकी चर्चा तक नहीं हुई हैं | किसी भी बिल को संसद में रखने के पहले केबिनेट में चर्चा की जाती हैं वहां से मंजूरी मिलने के बाद संसद में पेश होता है , बहस होती हैं , पास होता हैं फिर कहीं जा कर कानून बनता हैं | किसी के घोषणापत्र में होने और गृहमंत्री का संसद या बाहर कहना की कानून बनेगा इस पर,  का कोई महत्व नहीं होता हैं | ऐसी घोषणाएँ तो मंदिर वही बनाएंगे जैसा भी हुआ था लेकिन संसद और सरकार कुछ नहीं कर पाई |  निर्णय उसी कोर्ट से आया जहां से उसका आना तय था , लेकिन नारों का प्रयोग कर उसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया गया |
   NRC आएगा की घोषणा बार बार लगातार करके लोगों में उसका खौफ पैदा किया गया | जानबूझ कर CAA के साथ ये सब किया गया और क्रोनोलॉजी भी संमझायी गई ताकि लोग आक्रमक हो विरोध करे उन कानूनों का जिसमे से एक उन पर लागु ही नहीं होता और दूसरा तो अभी तक बना ही नहीं |
ऐसे किसी भी कानून को आप कोर्ट में चैलेंज नहीं कर सकतें जो अभी तक बना ही नहीं | आप विरोध करते रहिये कोई उस पर ध्यान भी नहीं देगा | क्या किसी ने भी देखा की शाहीन बाग़ और उसके जैसे दूसरे आंदोलनों को रोकने के लिए किसी भी प्रकार की दिलचस्पी सरकार ने दिखाई हो | अब कोर्ट के कहने पर खानापूर्ति की जा रही हैं और आगे भी जो किया जाएगा वो सब कोर्ट के नाम पर और आम लोगों के परेशानी के नाम पर किया जाएगा |
सरकार की मंसा इसे और लंबा खींचने की हैं ताकि आम जनता सड़क बंद होने रोज रोज के विरोध प्रदर्शन से इतनी परेशान हो जाए कि वो धीरे धीरे आंदोलनकारियों के खिलाफ हो जाए | विरोध करने वाले के अव्यवस्थित होने , कानून का पालन ना करने , हिंसक होने जैसी मान्यताएं समाज में पहले से प्रचलित हैं , ऐसा विरोध उन्ही मान्यताओं को और पुख्ता करेगा | उन आम लोगों में जो राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं लेते , जो  मात्र वोटर हैं ,  वो  NRC का विरोध करने वालों के खिलाफ होतें जायेंगे ये सोच कर कि जो कानून बना ही नहीं उसका विरोध क्यों हो रहा हैं अभी से | जबकि दूसरा कानून उन पर लागू ही नहीं  होता हैं | सरकार के समर्थक तो पहले ही उनके विरोध में हैं |
सरकार विरोध करने वालों को सिर्फ थका रही हैं और इस बात का इंतज़ार कर रही हैं कि कब आप बेवजह का , समय से पहले वार कर कर के थक कर पस्त जाए , उस दिन वो अपना पंच मारेगी | विरोध कर और  उसका कोई नतीजा , असर ना निकला देख कर विरोध करने वाले भी , जिस दिन कानून आयेगा , उस दिन  सिर्फ निराश हताश हो कर कागजों के लिए दौड़ भाग करेंगे विरोध नहीं | और आज का विरोध उन लाखों करोड़ों को उनके खिलाफ कर चुका होगा जो शायद कानून लागू होने के समय उनका साथ देने के लिए सड़क पर आ सकते थे , क्योकि परेशानियां तो उस कानून से उन्हें भी होंगी | लेकिन तब तक ये विरोध एक धार्मिक रंग ले चुका होगा , जनता के लिए परेशानी का कारण हो चूका होगा और विरोध करने वालों में शायद निराशा भर चुका होगा |