August 29, 2020
यहाँ निष्पक्ष कोई नहीं ------mangopeople
August 28, 2020
विद्यार्थियों का हित किसमे -------mangopeople
August 26, 2020
मास्क अब जीवन का हिस्सा हैं -------mangopeople
दुनियां और देश के बाकि हिस्सों का हाल मार्च में जो भी था लेकिन मुंबई में मास्क की कमी कभी नहीं रही | मार्च में यहाँ फुटपाथों पर 30 ,50 , १०० रुपये तक के मास्क के ढेर लगे थे , अब भी लगे हैं | वो अलग बात हैं कि वो थ्री लेयर नहीं थे और जरुरत के मुताबिक भी , लेकिन मास्क थे | इसलिए कोई कम से कम तब और अब मास्क ना मिलने का बहाना मार कर मास्क पहनने से इंकार नहीं कर सकता हैं | |
पुरुष तो एक मात्र कृष्ण हैं बाकी तो सब गोपियाँ ---------mangopeople
वो तुम थे कृष्ण जिसने बताया कि माँ होने के लिए किसी बच्चे का लालन पालन कहीं बड़ा होता हैं उसको जन्म देने से | तुमने बताया कि स्त्री मात्र जन्म देने से माँ का दर्जा नहीं पाती , वो सभी स्त्रियां जो किसी भी बच्चे को अपना संतान मान लेती हैं वो माँ हो जाती हैं | वो तुम ही तो थे जिसने ब्रज की हर गोपी से दुलार पा उस भ्रम को भी तोड़ा कि हर माँ अपनी संतान से ज्यादा किसी और बच्चे को प्रेम नहीं करती |
वो तुम थे कृष्ण जिसने राधा से प्रेम कर बताया किसी स्त्री पुरुष के बीच का प्रेम अपवित्र नहीं होता और विवाह के बिना प्रेम अधूरा भी नहीं होता | प्रेम तो अपने आप में सम्पूर्ण हैं , उसका जीवन में होना ही हमें पूर्ण कर देता हैं |
वो तुम थे कृष्ण जिसने द्रौपती से अपनी मित्रता निभा बताया बताया कि एक स्त्री पुरुष कहीं अच्छे मित्र हो सकते हैं | जीवन में जब अपने ही हमें हार जाते हैं तो सखा ही संकट में याद आतें हैं | तुम जैसे सखा से अच्छा, जीवन का मार्ग दर्शक कौन हो सकता हैं |
वो तुम थे कृष्ण जिसने विवाह के लिए बहन शुभद्रा की इच्छा को सर्वोपरि रखा परिवार के इच्छाओं के आगे और समाज की मर्यादाओं को तोड़ने में उसका साथ दिया | तुमने बताया द्रौपती , शुभद्रा , रूपमणि को कि स्वयंबर का अर्थ पिता भाई की पसंद में से किस एक वर को चुनना नहीं होता | स्वयंवर का अर्थ हैं स्वयं की इच्छा से एक वर चुनना |
वो तुम थे कृष्ण जिसने उन हजारों स्त्रियों को एक बार में अपना लिया जिन्हे समाज ने सिर्फ इसलिए त्याग दिया था क्योकि किसी दुष्ट पुरुष ने अपनी इच्छाओं के लिए उनका हरण कर लिया था | तुमने ही तो समाज की उन रूढ़ियों को तोडा जिसमे पुरुषों के किये अपराधों की सजा निर्दोष स्त्रियों को दिया जाता था |
वो तुम्हारी ही भक्ति और प्रेम था कृष्ण जिसने मीरा को संसार की बेड़ियों को तोड़ने का साहस दिया , जिसमे किसी स्त्री को पारिवारिक जिम्मेदारी को छोड़ भक्ति , संन्यास की भी इजाज़त नहीं होती |
राधा और यशोदा का जीवन जी लिया अब अगर कभी कुछ होने इच्छा हुई तो मैं तुम ( कृष्ण ) हो जाना चाहूंगी |
August 23, 2020
काबलियत ही आगे बढ़ायेगी --------mangopeople
बिटिया कोई छः सात साल की रही होंगी , उनके स्कूल के एक कार्यक्रम में उन्हें मराठी डांस के लिए चुन लिया गया | अभी तक वो स्कूल के कार्यक्रमों में कुछ बोलने के लिए ही भाग लेती पहली बार शौक में डांस में भाग ले रही थी | हफ्ते भर बाद एक दिन घर आ कर बोली आज वाइस प्रिंसपल हमारे डांस की प्रेक्टिस देखने आयी थी और मुझे देख कर बोली कितनी क्यूट गर्ल हैं इसे पीछे क्यों खड़ा किया हैं इसे आगे खड़ा करों |
March 18, 2020
बुजुर्ग , कोरोना और इटली की प्राथमिकताएं --------mangopeople
हमारी एक मित्र एक एनजीओ में हैं जो गरीब कैंसर पीड़ित बच्चों का मुफ्त इलाज कराती हैं | कैंसर का इलाज मंहगा भी हैं और लंबा चलने वाला भी | इजाज के साथ महीनो पीड़ित के साथ उसके माता पिता के भी रहने खाने पीनी की व्यवस्था भी संस्था अपने यहाँ करती हैं | किसी भी संस्था के पास इतने संसाधन नहीं होते कि हर किसी को ये सुविधा दे सके इसलिए उन्हें चुनाव करना पड़ता हैं | वो उन्ही बच्चों की मदद करती हैं जिनके कैंसर से बचने की संभावना कम से कम साठ प्रतिशत हो , उससे कम वालों को , वो नहीं लेती हैं |
इसका कारण जहां सिमित संसाधनों का सही जगह उपयोग करना हैं वही उनका कहना हैं जब संस्था में बहुत प्रयास के बाद और कई बार माता पिता की लापरवाही , जिसमे वो इलाज बीच में छोड़ कर चले जाते हैं और फिर वापस आतें हैं के कारण किसी बच्चे की मौत हो जाती हैं तो बाकी बच्चों और परिवारो मेंउसका बुरा असर होता हैं वो बहुत निराश हो जातें हैं | एक मौत के बाद सभी की फिर से कॉउंसलिंग करनी पड़ती हैं |
अब देख रहीं हूँ जब से इटली में कोरोना को लेकर बुजुर्गों के इलाज में बाकियों से कम ध्यान देने की खबर आई हैं लोग उस समाज , देश , सरकार , संस्कृति को भला बुरा कह रहें हैं | बिलकुल गलत सोच और रवैया हैं इटली के लिए लोगों का |
जब परिस्थितियां बहुत ख़राब हो और संसाधन बहुत सिमित तो हमें इस तरह की प्राथमिकताए तय करना मजबूरी भी होती हैं और जरुरी भी | सिमित संसाधनों का प्रयोग पहले उनके लिए करना पड़ता हैं जिनके बचने की संभावना ज्यादा हो | 80 साल से ऊपर के उन बुजुर्गों की बात की जा रही हैं जिन्हे कोरोना के पहले ही अनेक तरीके की शारीरिक समस्याएं हैं | कोरोना होने के बाद ये इतनी बढ़ जा रहीं हैं कि हर बुजुर्ग को अपने सहायता और समस्याओं के लिए एक नर्स और डॉक्टर की जरुरत हैं | ऐसे समय पर जब हजारों लोग एक साथ बीमार हो तो क्या किसी एक मरीज के लिए ऐसी व्यवस्था की जा सकती हैं और इसके बाद भी उसके बचने की संभावना बहुत कम हैं |
बाढ़ आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय महिलाओं बच्चों बुजुर्गों को पहले बचाया जाता हैं | क्या आजतक हमने इस पर सवाल उठाया हैं कि क्या किसी हट्टे कट्टे पुरुष की जान कम कीमती होती हैं जो उसे प्राथमिकता नहीं दी जाती | यहाँ पर देखा जाता हैं कौन ज्यादा लम्बे समय तक दुबारा लौट कर आने तक खुद को बचा कर रख सकता हैं | लेकिन यही अगर नाव पलट जाए तो प्राथमिकता बदल जाती हैं जो पहले सामने आता हैं पहले उसे बचाया जाता हैं बिना किसी भेदभाव के , तब स्त्री पुरुष बच्चा नहीं देखा जाता |
इसलिए किसी भी समाज , संस्कृति देश आदि को कुछ कहने से पहले सभी परिस्थितियों को व्यावहारिक रूप से सोच समझ लेना चाहिए | हमारे समाज में कौन हैं जो अपने 80 के ऊपर के बुजुर्ग को बचाने के लिए अपने जवान या छोटे बच्चों को कुर्बान करेगा ऐसी खराब स्थिति में | बेहतर हैं अपने बुजुर्गों की देखभाल अभी ही कीजिये और उन्हें जितना हो सके घर में रखिये आसपास की साफ़ सफाई पर ध्यान दीजिये | हम इटली के मुकाबले काफी गरीब देश हैं , हमारे संसाधन उनसे भी कम हैं |
January 20, 2020
वो बस आपको थका रहें हैं -----mangopeople
सुरक्षात्मक खेलना सही ना होता क्योकि लाख बचाव के बाद भी एक एकाध मुक्का लग ही जाना था | तय हुआ आक्रामक खेल का जवाब और आक्रमक हो कर देना होगा | मैच शुरू हुआ और ताबड़तोड़ हमला शुरू कर दिया गया , लेकिन ये क्या हुआ जो बॉक्सर अभी तक आक्रमक था वो अचानक बचाव की मुद्रा में आ गया | वो मारने के बजाय खुद को बचाने में ही व्यस्त था |
नए खिलाड़ी का और उत्साह बड़ा और उसने और हमला तेज कर दिया | अब तो उसने बचाव की जगह अपने प्रतिद्वंदी से दूर भागना शुरू कर दिया | वो एक भी हमला नहीं कर पा रहा था | नए खिलाड़ी को जीत की उम्मीद दिखने लगी | अब वो उसकी तरफ भाग भाग कर हमला कर रहा था | उसके मुक्के लग नहीं रहें थे नामी खिलाड़ी को क्योकि वो सिर्फ बचाव में व्यस्त था लेकिन नया खलाड़ी उम्मीद कर रहा था प्रयास करते करते मार ही लेगा |
मैच ख़त्म होने में कुछ ही समय था कि नामी खिलाड़ी रुका ध्यान केंद्रित किया और एक जोरदार मुक्का अपने प्रतिद्वंदी को दे दिया | नया खिलाड़ी हमला कर कर के और उसके पीछे भाग भाग कर इतना थक चुका था कि उस एक मात्र प्रहार का बचाव भी ना कर सका और नॉक आउट | लोगों ने नामी खिलाडी के उस चालाकी की खूब तारीफ की कि कैसे उसने पहले खिलाडी को खूब थकाया , छकाया और फिर आखिर में एक पंच में मैच जीत लिया | नए खिलाड़ी के समर्थक भी उसे कोसने लगे इतना हमला किया , क्या फायदा एक भी ढंग का मार ना सका , बेकार था वो |
CAA और NRC को लेकर भी कुछ ऐसा ही मैच चल रहा हैं | अभी तक NRC को संसद में पेश तक नहीं किया गया हैं यहां तक कि उस पर कैबिनेट में चर्चा तक नहीं हुई हैं | मोदी ने सही कहा था उसकी चर्चा तक नहीं हुई हैं | किसी भी बिल को संसद में रखने के पहले केबिनेट में चर्चा की जाती हैं वहां से मंजूरी मिलने के बाद संसद में पेश होता है , बहस होती हैं , पास होता हैं फिर कहीं जा कर कानून बनता हैं | किसी के घोषणापत्र में होने और गृहमंत्री का संसद या बाहर कहना की कानून बनेगा इस पर, का कोई महत्व नहीं होता हैं | ऐसी घोषणाएँ तो मंदिर वही बनाएंगे जैसा भी हुआ था लेकिन संसद और सरकार कुछ नहीं कर पाई | निर्णय उसी कोर्ट से आया जहां से उसका आना तय था , लेकिन नारों का प्रयोग कर उसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया गया |
NRC आएगा की घोषणा बार बार लगातार करके लोगों में उसका खौफ पैदा किया गया | जानबूझ कर CAA के साथ ये सब किया गया और क्रोनोलॉजी भी संमझायी गई ताकि लोग आक्रमक हो विरोध करे उन कानूनों का जिसमे से एक उन पर लागु ही नहीं होता और दूसरा तो अभी तक बना ही नहीं |
ऐसे किसी भी कानून को आप कोर्ट में चैलेंज नहीं कर सकतें जो अभी तक बना ही नहीं | आप विरोध करते रहिये कोई उस पर ध्यान भी नहीं देगा | क्या किसी ने भी देखा की शाहीन बाग़ और उसके जैसे दूसरे आंदोलनों को रोकने के लिए किसी भी प्रकार की दिलचस्पी सरकार ने दिखाई हो | अब कोर्ट के कहने पर खानापूर्ति की जा रही हैं और आगे भी जो किया जाएगा वो सब कोर्ट के नाम पर और आम लोगों के परेशानी के नाम पर किया जाएगा |
सरकार की मंसा इसे और लंबा खींचने की हैं ताकि आम जनता सड़क बंद होने रोज रोज के विरोध प्रदर्शन से इतनी परेशान हो जाए कि वो धीरे धीरे आंदोलनकारियों के खिलाफ हो जाए | विरोध करने वाले के अव्यवस्थित होने , कानून का पालन ना करने , हिंसक होने जैसी मान्यताएं समाज में पहले से प्रचलित हैं , ऐसा विरोध उन्ही मान्यताओं को और पुख्ता करेगा | उन आम लोगों में जो राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं लेते , जो मात्र वोटर हैं , वो NRC का विरोध करने वालों के खिलाफ होतें जायेंगे ये सोच कर कि जो कानून बना ही नहीं उसका विरोध क्यों हो रहा हैं अभी से | जबकि दूसरा कानून उन पर लागू ही नहीं होता हैं | सरकार के समर्थक तो पहले ही उनके विरोध में हैं |
सरकार विरोध करने वालों को सिर्फ थका रही हैं और इस बात का इंतज़ार कर रही हैं कि कब आप बेवजह का , समय से पहले वार कर कर के थक कर पस्त जाए , उस दिन वो अपना पंच मारेगी | विरोध कर और उसका कोई नतीजा , असर ना निकला देख कर विरोध करने वाले भी , जिस दिन कानून आयेगा , उस दिन सिर्फ निराश हताश हो कर कागजों के लिए दौड़ भाग करेंगे विरोध नहीं | और आज का विरोध उन लाखों करोड़ों को उनके खिलाफ कर चुका होगा जो शायद कानून लागू होने के समय उनका साथ देने के लिए सड़क पर आ सकते थे , क्योकि परेशानियां तो उस कानून से उन्हें भी होंगी | लेकिन तब तक ये विरोध एक धार्मिक रंग ले चुका होगा , जनता के लिए परेशानी का कारण हो चूका होगा और विरोध करने वालों में शायद निराशा भर चुका होगा |