हर नागरिक को झंडा फहराने की आजादी मिलने के बाद आम आदमी अब ज्यादा झंडे से जुड़ा दिखता है आज रास्ते से गुजरते समय आधे से ज्यादा लोगों के सिने पर झंडा लगा दिखा और रास्ते में चल रहे लगभग सभी बच्चे के हाथ में छोटे छोटे झंडे इस दिन को बच्चो से भी जोड़ रहे थे इन बच्चो में हमारी बिटिया भी थी हाथ में झंडे को झुलाती चली आ रही थी तो लगा जब उन्हें ये दिलाया है तो उससे जुडी कुछ जिम्मेदारिया भी बताते चले सो उन्हें कहा की कभी भी अपने तिरंगे को जमीन से छूने नहीं देते है और ना ही उसे कभी नीचे करते है उसे हमेसा ऊपर की और रखते है | बिटिया ने कहा की ये करना बैड मैनर्स होता है मम्मी, मैंने जवाब हा में दिया तो उन्होंने तुरंत तिरंगे वाला हाथ ऊपर कर लिया |
हमें याद है की हमारे बचपन में हमें इस तरह तिरंगे को हाथ में लेने की आजादी नहीं थी और ना ही हमें कोई देश के बारे में बताने वाला था देश को लेकर जो विचार बने वो अपनी समझ से बने | जो देखा सुना उसी के आधार पर अपने दिमाग से देश के लिए एक विचार बना लिया | ऐसे ही अपने देश के लिए भी मन में भी बचपन में एक विचार बना की हमारा देश दुनिया में सबसे अलग है सबसे ज्यादा गर्व करने के लायक | जितने अलग अलग तरह के लोग विभिन्न संस्कृति, परम्परा, खान पान, भाषा बोली के लोग यहाँ मिल जुल कर रहते है वो और किसी भी देश में नहीं होगा | ये विचार यु ही नहीं बना इस के पीछे की वजह थी हमारे " दूरदर्शन " के वो धारावाहिक जिसमे दिखाया जाता था की कैसे एक ही ईमारत में पंजाबी, मद्रासी ( उस समय हम लोगों के लिए हर दक्षिण भारतीय मद्रासी ही होता था ) बंगाली मराठी मुस्लिम ईसाई सब साथ में रहते है और बड़े ही प्यार से मिलजुल कर रहते है हर मुसीबत में एक दूसरे का साथ देते है | क्या करे बच्चे थे उन्हें देख कर लगता था की ये भले ये नकली है पर वास्तव में सब लोग ऐसे ही रहते होंगे | अब बनारस में तो इतने तरीके के लोगों से सामना होता नहीं था ये पता था की हा मुंबई में ये कहानिया बनती है वहा ये सब ऐसे ही मिल कर रहते होंगे |
बचपन में ये भ्रम बना गया और विवाह के बाद मुंबई आने तक ये अपने देश पर अतिरिक्त गर्व की भावना बनी रही | अब भ्रम है तो एक ना एक दिन तो उसे टूटना ही था और मुंबई आते ही वो टूटने लगा | बड़े होने के साथ मुंबई में हो रही राजनीति से तो परिचित होने लगे थे पर ये भरोसा था की ये सब बस राजनीति तक ही सिमित होगा | लेकिन भला हो मुंबई वालो का जो उन्होंने ये वाला भ्रम ज्यादा दिनों तक नहीं बने रहने दिया और ये ये भ्रम जल्द ही तोड़ दिया की ये सब बस राजनीति है | यहाँ आने पर पता चला की कैसे हमारे देश के अन्दर ही कितने देश पल रहे है सभी का अपना देश है और सभी के दिलो में एक दूसरे के लिए कितना द्वेष नफरत भरा पड़ा है खुद को दूसरो से श्रेष्ठ समझने की नाजीवादी सोच भी यहाँ पल रही है | कोई अपनी विपन्नता के लिए दूसरो को दोष मढ़ा रहा है तो कोई अपनी सम्मपनता का दुश्मन किसी को बता रहा है , कोई किसी को फूटी आँख भी नहीं सुहाता | अपने देश के अन्दर ही लोगों के साथ परायो जैसा व्यवहार किया जा रहा है देश के एक हिस्से के लोगों को दूसरे हिस्से में रहने की आजदी नहीं है उन्हें वहा से भगाया जाता है | बाजार हर जगह हावी है तो यहाँ भी है बाजार में आते ही सब एक दुसरे से बिल्कुल धंधे से जुड़ जाते है पर धंधा ख़त्म होते ही ये मिल कर काम करने की गांठ भी खुल जाती है |
ऐसा नहीं है की यहाँ तलवार ले कर एक दूसरे को मारने पर उतारू है लोग यहाँ भी लोग वैसे ही रहते है जैसे देश के दूसरे हिस्से में , सभी पड़ोसी जानने वाले एक दूसरे के यहाँ आते जाते है दोस्ती बनाते है मिलते जुलते है वैसे ही यहाँ भी करते है किन्तु एक दूसरे के लिए मन में एक गांठ बना कर चलते है | यहाँ पर आप से मिलने पर आप के नाम पूछने के बाद दूसरा सवाल ये होता है की तुम्हारा गांव कहा है मतलब आप अपना गांव बताइये ताकि वो जान सके की आप देश के किस हिस्से से आये है और आप के लिए किस तरह की ग्रंथि मन में बनाई जाये | देश के अलग अलग लोगों के लिए अलग अलग तरह की सोच है और सम्मान देने का स्तर भी है यहाँ सभी को समान रूप से सम्मान नहीं दिया जाता है आप को इज्जत की नजर से देख जाये या घुसपैठिये की नजर से ये आप के जड़ो पर निर्भर होगा | ये सब केवल मुंबई में नहीं हो रहा है ये सब देश के लभग सभी हिस्से में हो रहा है और हर लगभग हर जगह के लोगों की सोच ऐसे ही बनी हुई है या बनती जा रही है | ये सब कुछ केवल राजनीति की देन नहीं है और ना ही केवल उनके द्वारा मन में भरा गया है | असल में ये बिज तो हम सभी के दिल की गहराई में हमेसा से था , उन्होंने तो बस उसे खाद पानी दे कर बड़ा किया है और हमने उन्हें खाद पानी देने की छुट और मौका दोनों दिया है | वैसे भी ये राजनीति आज की नहीं है ये तो देश के आजाद होने के बाद दो देश के रूप में सामने आया फिर देश के अन्दर राज्यों की सीमा खीचने की वजह बना | ऐसा नहीं है कि अब ये सब देखने के बाद देश के लिए सम्मान नहीं रहा या हम देश पर शर्मिंदा है पर हा वह जो बचपन में अतिरिक्त गर्व वाली भावना थी वो चली गई |
कभी कभी लगता है कि आखिर देश का मतलब लोग क्या लगाते है आखिर देश का मतलब लोग समझते क्या है, क्या लोगों के लिए देश का मतलब सिर्फ जमीन के एक खास टुकडे से है | कभी तो लगता है कि हम केवल जमीन के टुकडे से प्यार करते है और उसे ही देश मानते है यहाँ रह रहे लोगों को हम देश कि गिनती से नहीं रखते है और ये प्यार भी किस जमीन के टुकडे से, उस जमीन के टुकडे से जिसके बारे में हमें बचपन में ही भ्रम बना दिया जाता है कि ये हमारा है उस टुकडे को भी जो कभी हमारा था ही नहीं और ना कभी भविष्य में होगा और उस टुकडे को भी जो कब का हमारे हाथ से जा चूका है और कभी वापस नहीं मिलने वाला है | बस उसे तो कागजो पर लकीर खीच खीच कर हमारा बना दिया गया है | हमारे देश के जमीन के एक खास टुकडे से हमें कितना प्यार है , कितना प्यार है हमें उससे हम अपना सब कुछ गवा देंगे उसके लिए मर मिटेंगे पर उस टुकडे को देश से अलग नहीं होने देंगे सच्चा देश प्रेम है हमारा, और वहा के लोग निकाल फेको उन सभी को जो हमसे हमारे जमीन का टुकड़ा छिनना चाहते है निकाल फेको उन सब को जिनकी वजह से वो हमारे हाथ से जा सकता है मार डालो उन सब को चाहे जो भी हो कश्मीरी हो, नक्सली हो, बरगलाये भटके नौजवान हो, उपेक्षा के शिकार दलित आदिवासी हो जो ईसाई बनते जा रहे हो और हम उनकी बढाती संख्या से बड़े परेशान है तो सभी को मार डालो या देश से निकाल दो , क्यों ? क्योकि हमारे देश की परिभाषा में लोग नहीं आते है बस जमीन का टुकड़ा आता है और देश प्रेम के नाम पर हम बस उसे ही प्यार करते है |
चलते चलते
एक बार एक किसान ( किस्से में तो पंजाब का किसान है पर यहाँ सिर्फ किसान ही काफी है ) अपनी गरीबी कर्ज से परेशान हो कर चढ़ गया पानी की टंकी पर धर्मेन्द्र की तरह सुसाइड करने के लिए, अब माँ आई बोली, बेटा नीचे आ जा तू मर गया तो मेरा क्या होगा मेरा बुढ़ापा ख़राब हो जायेगा, बेटा बोला नहीं आऊंगा, फिर पत्नी आई बोली तुम चले गये तो मेरा क्या होगा जीवन कैसे कटेगा, वो बोला नहीं आऊंगा, फिर बच्चे आये बोले पिता जी आप चले गये तो हमारा क्या होगा हमारा तो पुरा जीवन ख़राब हो जायेगा, फिर भी किसान उतरने को तैयार नहीं हुआ बोला नहीं जीना है जीवन से उब गया हु परेशान हो चूका हु | तभी एक पड़ोसी आ कर बोला जल्दी नीचे आ अभी तू मरा नहीं और तेरे जमीन पर तेरे चचेरे भाई हल चला रहे है | किसान आग बबूला हो कर जल्दी जल्दी नीचे आने लगा और गुस्से में बोला माँ लाठी निकाल मै अभी नीचे आ कर एक एक को मजा चखाता हूँ |