January 14, 2011
साली है तो गाली है - गाली पुराण - - - - - - - -mangopeople
रानी मुखर्जी की नई फिल्म का गाना तो सुना होगा " साली रे " जी हा गाने की शुरुआत गाली से होती है | ये कोई पहला गाना नहीं है जिसमे गाली का प्रयोग हुआ है इसके पहले " बुलशिट बुलशिट" गाना आया था उसके पहले तो "कमीने" नाम से गाना क्या पूरी फिल्म ही बन गई थी, ये भी नई बात नहीं थी काफी साल पहले शाहरुख इश्क को कमीना कह चुके थे | किसी ज़माने में रहे होंगे ये सब गाली पर आज के समय में ये कोई गाली नहीं रह गई है | भ्रष्टाचार की तरह हमने भी इन शब्दों को एक आम शब्द की तरह बाइज्जत अपना लिया है आत्मसात कर लिया है |
इस तरह की गालिया देने वालो से आप कहे की ये गाली है तो वो आप पर हंस कर कहेंगे क्या यार ये गाली नहीं तेरे लिए मेरा प्यार है ( भगवन बचाये ऐसे प्यार भरे शब्दों से ) | जी हा समय के साथ इसी तरह शब्दों के मतलब बदलने लगते है ये केवल भारत में नहीं है | कही पढ़ा था कि अंग्रेजी का शब्द " नाइस " को जब बनाया गया था तो उसका अर्थ बेफकुफ़ होता था जो समय के साथ बदल गया | अब इसे भारत के परिपेक्ष में सोचिये कि हमारे पोता पोती आयेंगे और जब हम उन्हें कोई उपहार देंगे और वो धन्यवाद के तौर पर कहेंगे " साले दादा जी साली दादी जी थैंक्यू आप लोग सच में कमीने लोग है हमारा कितना ख्याल रखते है " उफ़ सुन कर कितनी कोफ़्त होगी हम लोगो को, पर तब तक तो हमारे पास इसको सुनने के अलावा कोई चारा ही नहीं होगा |
ऐसा नहीं है की ये बदलाव एक तरफ़ा है कुछ अच्छे शब्द भी गाली बना दिए गए जैसे कि "साला" ,"साली" , क्योकि सोचिये तो ये एक रिश्ते का नाम है किन्तु कैसे धीरे धीरे गाली बन गया | जीजा तो गाली ना हुआ साला साली गाली बन गये | ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे आज नारी की आजादी और उसके लिए कुछ करने वाली नारियो को "नारीवादी " इस तरह कहा जाता है जैसे की ये कोई गाली हो वैसे ही जैसे कुछ लोगों के लिए "कम्युनिष्ट" होना गाली हो गई " साला एक नंबर का कम्युनिष्टि है " | सोचिये तो एक समय कम्युनिष्ट से जुड़ना मतलब समाज के सबसे गरीब लाचार लोगों से जुड़ना उनके लिए काम करना समाज में समानता की बात करना था पर आज वो गाली बना गया वही हाल "नारीवाद" शब्द का हो रहा है |
इसी तरह कुछ और रिश्ते है जो किसी किसी के लिए गाली जैसे होते है | जैसे हमारे यहाँ एक कहावत है " गरीब की लुगाई ( पत्नी) सबकी भौजाई" मतलब की गरीब की पत्नी को पूरा मोहल्ला, गांव भाभी ही कहता है, चाहे मर्दों की उम्र कुछ भी हो | भाभी का रिश्ता हंसी मजाक का होता है और कुछ लोग इस हंसी मजाक में कोई सीमा का बंधन रखना पसंद नहीं करते है और ऐसे लोग मेहरी से लेकर धोबन को भी भाभी ही कहेंगे खास कर उन महिलाओ को भाभी कहते है जो इनकी बातो का कोई विरोध ना कर सके और करे तो ये बड़ी आसानी से ये कह कर निकल ले कि अरे वो तो भाभी के नाते मजाक कर रहे थे | जब ऐसे लोग किसी को भाभी कहे तो वो गाली की तरह ही होता है |
मेरी एक मित्र है उनकी भी एक विशेष गाली है मर्दों के लिए "मर्द कही के" जैसे "कुत्ते कही के" , "कमीने कही के" उसी तरह ये भी है "मर्द कही के" | उनसे पूछा ये कौन सी गाली है तो बोली " ये बताने की जरुरुत तो नहीं है की ज्यादातर मर्दों की महिलाओ को लेकर क्या गन्दी घटिया सोच होती है उस पर पति बन जाये तो गलतियों बुराइयों का एक पुरा पिटारा बन जाते है अब रोज रोज एक एक बुराई को क्या गिनाना सारी महिलाए जानती है, सो एक शब्द में कह दो "मर्द कही के" यानि तुम दुनिया के सारी बुराइयों के मिश्रण हो | :))))) सॉलिड वेज गाली है मैंने भी सिख ली है | :))))
कुछ लोग गालिया कितने सम्मान के साथ देते है की सामने वाले को लगता ही नहीं की गाली दी उसका एक नमूना बताती हु | एक परिचित के घर गई उनके बेटी ने घर में घुसते ही अपने भाई से कहा " D.O.G. साहब आप किससे पूछ कर मेरी घडी लगा कर गए थे " जवाब मिला " मैडम P.I.G. आप भी तो मेरी टी-शर्ट पहनती है " | मुझे लगा की ये बच्चे शायद किसी पोस्ट का नाम ले रहे है जैसे I.A.S. या P.C.S अक्सर बच्चे बड़े हो कर जो बनना चाहते है तो बचपन से हम उन्हें उसी नाम से चिढाने के लिए बुलाते है जैसे डाक्टर साहब , वकील साहब उसी तरह ये भी है | मैंने उनकी माता जी की तरफ देखा तो वो बेचारी थोड़ी शर्मिंदा सी बोली अरे बच्चे भी ना कुछ भी बोलते है मुझे भी इनका गाली देना पसंद नहीं है | जब उन्होंने गाली शब्द कहा तब पता चला की अरे बाप रे ये तो कुत्ते सूअर की गाली दी जा रही थी | हे प्रभु गाली वो भी इतने सम्मान और प्यार के साथ, भाई वाह |
हमारे यहाँ गाली देने की सख्त मनाई थी महिलाए देती नहीं थी बच्चो की हिम्मत नहीं हो सकती थी और घर के पुरुष( दादा जी को छोड़ कर वो बराबर देते थे) घर में किसी के सामने कभी गाली नहीं देते थे ( पता तो नहीं पर बाहर जरुर देते होंगे )| यानि गाली देना हम लोगो के लिए एक बड़ा पाप कर्म था लेकिन हमारा बड़ा कजन एक नंबर का शैतान था उसकी शरारते तो वही सब लड़को वाली थी | एक दिन हम लोगो के पास आया हम और मेरी चचेरी बहन उस समय काफी छोटे थे बोला की मै अंग्रजी के तीन शब्द बोलूँगा तुम दोनों में जो उसका अर्थ जल्दी से हिंदी में बताएगा वो जीत जायेगा तीनो का अर्थ जल्दी से जोड़ कर बोलना है चलो बताओ की ग्रीन मैगो मच का क्या मतलब हुआ मैंने फटा फट बता दिया हरा आम जादा अब इन तीनो को मिला का जल्दी बोलिए, गाली बनती है "हरामजादा" | अरे बाप रे इतना बोलना था की उसने चिढाना शुरू कर दिया की गाली दी गाली दी और हम बेचारे चिल्लाये जा रही थी नहीं नहीं हमने गाली नहीं दी वो हँसे जा रहा था और हम दोनों रुआंसी होती जा रहे थे |
कुछ गालिया या कहे भारत में ज्यादा प्रचलित गालिया ऐसी है जो हम सभी लोगो को नहीं दे सकते है लेकिन लोग इस बात की परवाह नहीं करके मुक्त कंठ से सभी को एक सुर में वो गाली दे देते है बिना इस बात की परवाह किये की वो उलट कर उन्हें ही लग रही है | कई बार देखा है की माँ बाप अपने ही बच्चे को "हरामजादे" की गाली दे देते है | मुझे समझ नहीं आता की वो क्या सोच कर ये गाली अपने बच्चे को दे रहे है ये गाली तो उनको पड़ रही है खासकर जब महिलाये ये गाली अपने बच्चे को दे | ये तो बिल्कुल वैसा ही है जैसे कोई बाप अपने बच्चे को उल्लू के पठ्ठे या शैतान की औलाद की गाली दे | मुंबई में मेरी एक रिश्तेदार को आदत थी ये गाली देने की अपने ही बच्चे को, एक दिन मुझसे नहीं रहा गया और मैंने उनसे पूछ ही लिया की आप जो कह रही है क्या आप को उसका मतलब पता है, फिर क्या था "हरामजादे" का अर्थ सन्दर्भ सहित व्याख्या कर दी उनके सामने फिर उनको खीचा की इसके पापा तो आफिस गये है डैडी कहा है ???? बेचारी हे हे हे करने के अलावा कुछ कर नहीं सकी और सही व्याख्या करने के लिए बीस में से दस नंबर मिल गये मतलब की गाली तो उनकी छुटी नहीं ये अच्छी आदते इतनी जल्दी नहीं छूटती है, हा मेरे सामने रहने पर वो अब गाली नहीं देती है |
उसी तरह जब लोग दिल खोल कर अपने ही भाई बहन को माँ बहन की गाली देते है तो समझ नहीं आता की वो क्या कर रहे है | उन सब को सुन कर तो यही लगता है की असल में लोग गालियों का मतलब जानते ही नहीं बस उसे निरर्थक बक देते है क्योकि वो गाली है | निरर्थक क्यों , क्योकि मैंने देखा है की जिन लोगों को इस तरह की गालियों से सजाया जा रहा है सुनने वालो में ज्यादातर को कोई फर्क ही नहीं पड़ता है यदि वो कमजोर तबके के है तो वो उसे चुपचप सुन लेते है नहीं तो बदले में वैसी ही गालियों से जवाबी हमला कर देते है , दोनों बकते है सुनते है और फर्क किसे भी नहीं पड़ता है | असल में जिन्हें गालियों से फर्क पड़ता है उन्हें इतनी बड़ी गाली देने की जरुरत ही नहीं पड़ती है | आप ने उन्हें बेफकुफ़ ,पागल इडियट कह दिया, तो वो या तो उतने में ही सुधर जायेंगे या फिर इतने में ही इतनी हाय तौबा मचाएंगे की इससे आगे की या बड़ी गाली देने की हिम्मत ही आप की नहीं होगी | दूसरे जिन्हें इस तरह की गाली खाने की आदत नहीं होती वो तो गाली देने वालो से पहले ही दूर भाग जाते है या उनके मुहं नहीं लगते है | एक छोटी गाली भी उनको इज्जत उतारू लगती है और अपनी इज्जत अपने हाथ |
इन गालियों के सन्दर्भ में एक काम था जो मै कभी नही करना चाहती थी और ना ही कभी किया था वो ब्लॉग जगत ने करवा दिया | वो काम था गालियों को बाकायदा लिखा हुआ पढ़ना | एक बार लिखा पढ़ा लिया था उसके बाद समझ गई थी की सार्वजनिक टायलेट और दिवालो पर लिखा हुआ ये उच्च कोटि का साहित्य हम जैसो को पढ़ने के लिए नहीं है | इसलिए कही कुछ लिखा देखा तो तुरंत नजर घुमा लिया ताकि गलती से भी पढ़ा ना लू | लेकिन ब्लॉग पर तो हम पढ़ने के लिए ही आये थे तो यहाँ कैसे बचते बाकायदा साफ साफ अच्छे से लिखा, हिंदी के लगभग सभी उच्च कोटि की सभी महान गलिया यहाँ पढ़ा ली | क्या करे ये आशा नहीं थी की यहाँ ये भी पढ़ने को मिलेगा और टिप्पणियों को पढ़ते पढ़ते उन्हें भी पढ़ गये | जैसे गालियों को सुनने के बाद कहा जाता है कि " छि छि कितनी गन्दी गाली बोली घर जा कर कान धोने पड़ेंगे " वैसे ही यहाँ पढ़ने के बाद तो आँख कान मुहँ तीनो ही धोना पड़ गया | अभी तक कुछ गालिया ऐसी थी जो लोगो को बोलते तो सुना था पर वो ठीक से समझ नहीं आती थी की आखिर बोला क्या, वो यहाँ पर बाकायदा पढ़ने के बाद समझ में आ गई | कुछ लोग तो बाकायदा उन गालियों को सजा कर अब भी अपने पोस्ट पर रखे हुए है जैसे वीरता के कोई तमगे हो |
चलते चलते
चलते चलते पोस्ट से जुड़ा एक चुटकुला सुने मेरा नहीं है सुना है | बुरा है पर कभी कभी ऐसी बुरी चीजे सुन कर भी हंसी आ ही जाती है |
एक बार एक अमेरिकी एक जापानी और एक पंजाबी बैठे थे | अमेरिकी ने कहा की हमारे यहाँ बिल्डिंगे इतनी ऊँची है की छत पर चढ़ कर i love u चिल्लाओ तो वो शब्द घूम कर छ बार वापस आती है इस पर जापानी ने कहा की ये तो कुछ भी नहीं है हमारे यहाँ तो बिल्डिंगे इतनी ऊँची है की छत से i love u चिल्लाओ तो वो आठ बार वापस आती है | इस पर पंजाबी ने कहा ये तो कुछ भी नहीं है हमारे यहाँ पंजाब में छत पर जा कर एक बार चिल्लाओ तो शब्द बदल कर दस बार वापस आते है | इस पर अमेरिकी और जापानी ने कहा क्या ये कैसे होता है उस पर पंजाबी बोला बस छत पर जा कर एक बार चिल्लाओ " माँ की " तो दस छतो से शब्द बदल कर वापस आते है "भेंण की "|
अपडेट - - - -
स्पष्टिकरण --- अभी अभी पढ़ा की ब्लॉग जगत में फिर से किसी पोस्टो पर गाली गलौज की गई है तो मै स्पष्ट कर दू की इस पोस्ट की सम्बन्ध किसी भी पोस्ट से नहीं है और ना ही किसी पोस्ट को पढ़ने के बाद लिखा गया है | अत: पाठक मेरी पोस्ट को किसी और प्रकरण से जोड़ कर ना देखे | मेरी ये पोस्ट पहले से लिखी गई थी प्रकाशित अभी हुई है जिसका जिक्र मैंने शिखा जी के पोस्ट पर यहाँ टिप्पणी के रूप में किया है |
अपडेट - - - - यदि आप को गाली पर कोई गंभीर लेख पढ़ना है तो http://hastakshep.com/?p=१२८४ इस लिंक पर जाये जो प्रवीण शाह जी ने दिया है | प्रवीण जी धन्यवाद |
और कल इस पोस्ट का पार्ट -२ पढ़ना नहीं भूलियेगा |
समाप्त
अच्छे शब्द भी गालियों में रूढ हो जाते है. एक शब्द बिहारी अब ऐसा ही है
ReplyDeleteशानदार गाली विश्लेषण है।
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उतरायाण: मकर सक्रांति, लोहड़ी, और पोंगल पर बधाई, धान्य समृद्धि की शुभकामनाएँ॥
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बिल्कुल कुछ अजीब ही है यह गाली गणित.... समय के साथ कुछ अमर्यादित शब्द आम बोलचाल का हिस्सा बन गए है........ जो बहुत चुभता है..... पता नहीं आने वाले समय में क्या होगा....
ReplyDeleteग्रीन मेंगो मच पेटर्न पर अच्छा खासा सर्वेक्षण । उत्तम...
ReplyDeleteek gaali aapko bhi de dun kya...........??
ReplyDelete"ek number ke blogger ho aap!!!!!"
:P:D
पंजाबी बोला बस छत पर जा कर एक बार चिल्लाओ " माँ की " तो दस छतो से शब्द बदल कर वापस आते है "भेंण की "|
aapke is post ko ham kritharth hue.......:D
क्या कहें ..वक्त-वक्त की बात है ...समय और स्थिति के अनुसार शब्दों के अर्थ परिवर्तित होते रहे हैं ..परन्तु जान बुझ कर निरर्थक शब्दों का प्रयोग ..हमारी मनिकता का परिचायक है ....शुक्रिया आपका इस विश्लेषण के लिए
ReplyDeleteबहुत सुंदर गाली पुराण लगा जी, वेसे फ़िल्मो मे ओर टी वी पर यह गाली एक फ़ेशन बन गया हे, इस<ई लिये हम ने इन्हे देखना बंद कर दिया हे,
ReplyDeleteलोहड़ी, मकर संक्रान्ति पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई
ओर आप को एक ओर बधाई:)
धन्य हो गये जी सन्दर्भ सहित व्याख्या पढ़के। अब हम तो क्या कहें हम खुद ही दागी हैं शायद इस मामले मे।
ReplyDeleteएक सच्ची घटना बता रहा हूँ, दो लड़के आपस में लड़ रहे थे और एक दूसरे की माँ-बहन की इज्जत कर रहे थे। मैंने उन दोनों से कहा कि तुम्हारा आपस का झगड़ा है आपस में निबटा लो, माँ-बहनें तो बेचारी घर में बैठी हैं और गालियाँ खा रही हैं। लड़के समझ गये थे, बल्कि लड़ाई भी बंद कर दी उन्होंने।
गाली-गलौज के पीछे परिवार के संस्कार ही एकमात्र कारक नहीं हैं। बहुत बार बाहर की संगति, देखादेखी और अज्ञानता के चलते भी लोग ये कर गुजरते हैं। लेकिन अगर कोई अपनी आदत बरकरार रखता है तो जरूर उसके संस्कारों को दोष दे सकते हैं।
चलते-चलते मस्त लगा। पंजाब में हैं, सो कल ही ट्राई करते हैं:)
वैसे ऐसा ही एक भागते-भागते हमारे पास भी है, लेकिन हम इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाते। आप घोषित नारीवादी हैं, आपको छूट है:))
:) :) सच में पुराण लिख डाला है ..बहुत इजाफा हुआ ज्ञान में आभार.:).
ReplyDeleteअंशु जी आपने विश्लेषण खूब किया है। पर इस सबके पीछे सामाजिक,मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं,वह आप जानती हैं। कुछ लोग गाली इसलिए देते हैं ताकि सामने वाले को नीचा दिखा सकें,अपमानित कर सकें। तो कुछ लोग गाली इसलिए देते है कि वे अपना गुस्सा,निराशा,हताशा और गुबार निकाल सकें। अगर वे ये न करें तो पता नहीं क्या और कर बैठेंगे। आप सच मानिए कि अगर गालियां न हों तो रोज मारकाट होती है वह कहीं दस गुना बढ़
ReplyDeleteजाएगी। क्योंकि कितने झगड़े तो केवल गालियों से ही निपट जाते हैं वहां गोलियों की बारी आती ही नहीं है।
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वेसै आपकी एक गाली हमें भी अच्छी लगी, 'मर्द कहीं के'। पर सवाल यह है कि गाली 'पति कहीं के' क्यों नहीं है।
बहुत आधुनिकीकरण हो रहा है भाषाओं का... जब छोटे थे तो रे, बे, यही बोलने के लिए हिम्मत जुटानी पड़ती थी... अब तो अजीब ही दौर है...
ReplyDelete'मर्द कहीं के' ये जुमला हमलोग भी अपने पुरुष मित्रों को चिढाने के लिए अक्सर कहते थे. मेरे ख्याल से सभी गालियाँ बुरी नहीं होतीं. मैं यहाँ भी वही कहना चाहूँगी, जो अनूप जी के ब्लॉग पर कहा था, " गालियाँ किसी भी लोक-संस्कृति का हिस्सा होती हैं और देशज भाषा की गालियाँ तो तत्कालीन समाज की जीवन्तता की द्योतक… लेकिन गालियों का औरतों पर केंद्रित होना निश्चित ही निंदनीय और कुत्सित मानसिकता का परिचायक है.
ReplyDeleteशेष बाद में…"
ये सम्मान सहित गाली का किस्सा भी खूब रहा....आजकल के बच्चे भी क्या-क्या तरीके ढूंढ लेते हैं, अपने मन की करने की.
ReplyDeleteगाली पुराण के लिए काफी मेहनत की है आपने इसके लिए आप बधाई की पात्र है। पहली बार गालियो का इतना विशलेषण पढा है।
ReplyDeleteचलते चलते मस्त लगा।
galiyon men parivarik shabdavali ka prayog aaj kal aam ho gaya hai. vaise yah sochne ki bat hai ...
ReplyDeleteहमारे देखे तो गालियों का एक मकसद होता है - गधा , उल्लू का पट्ठा आदि छोटे स्तर की गालियाँ , अपशब्द न हो कर एक अभिव्यक्ति ही है, की सामने वाला मूर्ख है, बड़े स्तर की गालियाँ भी शाब्दिक रूप से देखा जाए तो गालियाँ न हो कर अभिव्यक्ति ही मालूम होती है, शायद उसके पीछे छुपी की भावना के कारण उनको गाली कहा जाता है, वर्ना तार्किक रूप से तो हमें जितनी भी गालियों की जानकारी है, उनमे गाली जैसा तो कम में ही दिखाई देता है ...
ReplyDeleteखैर, हमें अपना पुराण नहीं सुनना, आपकी पोस्ट की तबीयत के हिसाब से ही सब गली देने लगें तो वो इतनी बुरी न रह जाएं, आखिर में तो भावना ही मायने रखती है ... लिखते रहिये ....
नायक-नायिका के संवादों में हिंसा की पहली झलक,संभवतः,तेजाब में देखी गई थी। अब गीत भी इनसे अछूते नहीं रहे।
ReplyDeleteमुझे तो पोस्ट के अंत में चुटकुले पर भी रस मिला :)
ReplyDeleteवाह जी वाह! आपका गाली पुराण तो बढ़िया रहा... लेकिन हलके फुल्के अंदाज़ में काफी गहरी बातें कहीं हैं आपने...
ReplyDeleteमेरा अपना यही अनुभव रहा है कि भारत के ही किसी एक हिस्से में एक गाली गाली के तौर पर ली जाती है तो वही गाली किसी और हिस्से में प्यार के तौर पर.. कोई बिहार में जाकर अगर किसी को 'भैन' वाली गाली दे दे तो मैं शर्त लगा कर कह सकता हूँ कि अगर सामने वाला व्यक्ति सक्षम है तो पक्के से जमकर धुलाई कर देगा या फिर खून ही कर डालेगा, मगर दिल्ली और NCR वाले हिस्सों में 'प्यार' का लफ्ज माना जाता है..
ReplyDeleteकुछ बातें श्री M.Verma जी से भी कहनी है "अगर बिहारी गाली का रूप बन चुका है तो मुझे जरूर यह गाली दें, मैं इससे गौरवान्वित महसूस करता हूँ.. कुछ-कुछ वैसे ही जैसे पंजाब एवं हरियाणा के कुछ हिस्सों में चमार जाती का एक समर्थ वर्ग खुद को 'चमारा' कहलाने में गौरवान्वित महसूस करते हैं.. सिर्फ मैं ही नहीं, मेरे सभी समर्थ बिहारी मित्र भी ऐसा ही सोचते हैं.."
मेरे इस कमेंट को किसी प्रकार का जस्टिफिकेशन ना समझा जाए.. जहाँ तक मेरी बात है तो अमूमन गालियाँ नहीं देता हूँ..
sundar..suvicharit...aalekh...badhai.
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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अंशुमाला जी,
बेहद सामयिक व जरूरी आलेख...
सवाल उठता है हिन्दी समाज इतना गाली क्यों देता है ? क्या हम गालियों से मुक्त समाज नहीं बना सकते ? वे कौन सी सांस्कृतिक बाधाएं हैं जो हमें गालियों से मुक्त नहीं होने देतीं ? प्रेमचंद ने लिखा है ‘हर जाति का बोलचाल का ढ़ंग उसकी नैतिक स्थिति का पता देता है। अगर इस दृष्टि से देखा जाए तो हिन्दुस्तान सारी दुनिया की तमाम जातियों में सबसे नीचे नजर आएगा। बोलचाल की गंभीरता और सुथरापन जाति की महानता और उसकी नैतिक पवित्रता को व्यक्त करती है और बदजवानी नैतिक अंधकार और जाति के पतन का पक्का प्रमाण है। जितने गन्दे शब्द हमारी जबान से निकलते हैं शायद ही किसी सभ्य जाति की ज़बान से निकलते हों।’
आम तौर पर हिन्दी में पढ़े लिखे लोगों से लेकर अनपढ़ लोगों तक गालियों का खूब चलन है। कुछ के लिए आदत है। कुछ के लिए धाक जमाने,रौब गांठने का औजार हैं गालियां। पुलिस वाले तो सरेआम गालियों में ही संप्रेषित करते हैं। गालियों के इस असभ्य संसार को हम तरह-तरह से वैध बनाने की कोशिश भी करते हैं। कायदे से हमें अश्लील भाषा के खिलाफ दृढ़ और अनवरत संघर्ष आरंभ करना चाहिए। यह काम सौंदर्यबोध के साथ -साथ शैक्षिक दृष्टि से भी जरूरी है। इससे हम भावी पीढ़ी को बचा सकेंगे। गालियों के प्रयोग के खिलाफ हमें खुली निर्मम बहस चलानी चाहिए। बगैर बहस के गालियां पीछा छोड़ने वाली नहीं हैं। बहस से ही दिमागी परतों की धुलाई होती है।
गालियों पर एक बहुत अच्छा आलेख देखने के लिये उपरोक्त पैराग्राफ पर क्लिक करें...
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गलिओं पे एक बेहतरीन लेख़. गलिओं का मज़ा? गाली दो खुद जान जाओ.....
ReplyDeleteअंशुमाला जी! जहाँ एक के बाद एक पोस्टें गालियों पर लिखी जा रही हैं,वहाँ हम तो ये दावा कर सकते हैं कि यह काम हमने महीनों पहले अंजाम दए दिया था. लिंक बिखेर कर ना जाएँ कि हिदायत है दोस्तों की लिहाजा लिंक देते हाथ काँपते हैं.
ReplyDeleteग्रीन मैंगो वाली बात पर तो मेरी बिटिया ने हँसकर कहा कि ये तो मैंने थर्ड स्टैंडर्ड में सुनी थी... भाई हम ही बैक्वर्ड निकले..खैर आपने तो गालियों जो माँ बहन एक कर दी, लिहाजा हम सिर झुकाकर निकल जाते हैं... हाज़िरी लगा लेना आप हमारी!
आज फुरसत से आपकी कुछ पुरानी पोस्टों को पढ़ रहा था कि ये गाली पुराण दिख गई...बढ़िया हल्की फुल्की पोस्ट है।
ReplyDeleteजहां तक गालियों की बात है तो मैं इतना जानता हूं कि गालीयों को सुनकर आप अंदाजा लगा सकती हैं कि उस समाज के लोगों का आर्थिक जीवन कैसा होगा, रहन सहन कैसा होगा, उनके सामाजिक रिश्तेदारियां कितनी रूढ़ होगीं...बहुत कुछ।
गाँवों में तो अक्सर हाथ चमका चमका कर महिलाएं झगड़ा करेंगी और साथ ही साथ काम भी करते जाएंगी, बर्तन मांजेगी, बच्चों के नाक पोछेंगी...सब चलता रहेगा और शाम तक फिर इकट्ठी दिखेंगी :)
और ये मर्द कहीं के वाला जुमला स्त्रियों के लिये भी बोला जाता है, बस केवल शब्द बदल जाते हैं...मसलन कोई मर्द रोने लगे तो लोग कह बैठते हैं - क्या लड़कियों की की तरह रोता है / क्या औरतों की तरह बिहेव करता है :)
मस्त पोस्ट है।