स्पष्टिकरण :- ये किसी आर्थिक जानकर के विचार नहीं है एक आम आदमी एक आम गृहणी के आम से विचार है जिसका वो आचार यहाँ सुखाने के लिए डाल रही है सो बाद में आचार खट्टे है की शिकायत न करे आम के आचार को विचार कर खाये | मसाले में कोई तकनीकि कमी दिखाई दे तो अवश्य बताये |
सुबह का अख़बार उठाया इस उम्मीद के साथ की जैसे पहले बजट के दुसरे दिन अखबारों की पहला समाचार होता था कि क्या क्या चीजे सस्ती हुई और क्या क्या चीजे महँगी, किन्तु अखबार में ये मुख्य समाचार नहीं था | याद होगा पहले एक पूरी लिस्ट होती थी जिसमे सस्ते हुए और मंहगे ही सामानों के नाम होते थे पर काफी समय से अब ये परम्परा बंद हो गई है | अब बजट को तकनीकि रूप से ऐसा बनाया जाता है की अब पहले की तरह आम आदमी पर इसका सीधे प्रभाव बजट के बाद ज्यादा नहीं पड़ता है और आम आदमी भी बजट की तरफ उतना टक टकी लगाये नहीं देखता है | अब बजट बजट न हो कर तकनीकी खेल ज्यादा हो गया है जिससे आम आदमी को अंग्रेजी में ( तकनीकि रूप से ) बेफकुफ़ बनाया जाता है |
अब जैसे रेल बजट को ही ले लीजिये अगर यु पी ए के आठ सालो की बात करे तो ये खूब प्रचारित करवाया जाता है की टिकटों के दाम नहीं बढे पर क्या वास्तव में ऐसा है, नहीं; इसे बड़ी चालाकी से उन्होंने ऐसे किया की जो दिखाई नहीं देता है | जैसे कई मेल ट्रेनों को एक्सप्रेस घोषित कर दिया जाता है न सुविधाए बढ़ी न ही ट्रेन की गति पर इस एक्सप्रेस के नाम पर टिकटों में २० रुपये का तकनीकि इजाफा कर दिया गया जिसका पता आम आदमी को टिकट खरीदते समय चलता है | रिटर्न टिकट लेने पर अब हमको १० रुपये ज्यादा देना होता है तत्काल कोटे के नाम पर सामान्य टिकटों को महंगे दामो पर बेचा जाता है जबकि होना ये चाहिए की इसके लिए अलग से डिब्बे जोड़े जाये | इसे कहते है तकनीकि खेल कि प्रचारित तो ये किया की दाम नहीं बढ़ाये किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है |
यही हाल आम बजट का भी है | कहने के लिए ये साल भर के लिए सरकार का लेखा जोखा है किन्तु वास्तव में अब कितनी चीजे सरकार के हाथ में रह गई है या ये कहे की खुद कितनी चीजे उसने अपने हाथ में रखी है सब कुछ उसने तो भगवन भरोसे ( बाजार भरोसे ) छोड़ दिया है | तो अब उसके बजट का कोई ज्यादा मतलब भी नहीं रह गया है कुछ एक चीजो को छोड़ दे तो | अब पहले की तरह आर्थिक नीतिया बजट पेश होने तक नहीं रोकी जाती समय और जरुरत के अनुसार साल के बीच बीच में कुछ आर्थिक निर्णय सरकार लेती रहती है | यही कारण है की बजट का अब बाजार पर भी उतना असर नहीं होता है की एका एक सभी सामान सस्ते हो गए या सामानों का दाम रातो रात बढ़ गया ,हा शेयर बाजार भले एक दिन कुछ ऊपर निचे होने की परम्परा निभाता है किन्तु वो भी अब परम्परा भर ही रह गई है |
क्योकि अब चाहे पेट्रोल के दाम हो या अनाज, टीवी, फ्रिज आदि आदि किसी का भी दाम बढ़ने और घटने के लिए बजट का इंतजार नहीं किया जाता अब ये सब अंतराष्ट्रीय बाजार, भारतीय बाजार, उपभोक्ता की जरूरते आदि पर निर्भर हो गया है | अब पेट्रोल के दाम ही ले लीजिये पिछले दो साल में बजट तो दो बार पेश हुए किन्तु इनके दाम सात बार बढ़ा दिया गया, जबकि कभी ये केवल बजट में ही बढाया या घटाया जाता था | याद है बजट के दो दिन पहले से ही लोग अपनी गाडियों की टंकी फुल कराने लगते थे और कुछ महा चालक पेट्रोल पंप वाले तो बजट के एक दिन पहले बंद रखते थे क्योकि ये तो निश्चित ही होता था की दाम बढ़ेंगे और वो पुराने सस्ते ख़रीदे मॉल को बजट के दुसरे दिन मंहगे दाम पर बेचते थे , क्योकि बाकि चीजो के दाम भले बाद में बढ़ते थे किन्तु पेट्रोलियम पदार्थो के दाम आधी रात से ही लागु हो जाता था और यदि मेरी यादास्त सही है तो पहले बजट आज की तरह सुबह नहीं शाम को पेश किया जाता था यानी बजट पेश होने के कुछ ही घंटो बाद दाम बढ़ जाते थे |
बजट के दुसरे दिन चाय पान की दुकानों पर वो जमघट और गहन चिन्तन मनन की किसके दाम बढ़ने से किसको क्या फायदा नुकसान हो रहा है और किसके घटने पर आम जनता को फायदा | लोग अपनी अपनी जरूरतों के हिसाब से बजट को अच्छा और बुरा कहते थे | महिलाओ के सबसे ज्यादा चिंता अपने गैस सिलेंडर के दाम की होती थी | पर कुछ चीजे तय होती थी जैसे की टीवी फ्रिज आदि के दाम लगभग हर बजट में कम होते थे और आम आदमी कहता की इसके दाम कम करने से क्या फायदा क्योकि ये चीजे तब सबकी जरुरत नहीं होती थी मतलब एक बार घर में टीवी या फ्रिज आ गया तो बीस साल की छुट्टी मानिये कितने भी ख़राब हो जाये ठोक पीट मैकेनिक के यहाँ भेज भेज कर चलाया या घिसा जाता था | पर अब तो पूछिये मत ख़राब होने तो दूर की बात अब तो ज्यादा पुरना होते ही या कोई नया माडल बाजार में आते ही लोग इन सामानों को बदल डालते है |
बजट में पहले सबसे दुखी होते थे पीने वाले क्योकि हर बजट के बाद उनके पैग का दाम बढ़ जाता था , बाकि लोग इससे खुश होते थे, हा हा और बढ़ाना चाहिए शराब सिगरेट आदि के दाम इन पर और टैक्स लगाना चाहिए ताकि पीने वाले पीना छोड़ दे | लेकिन न तो सरकार ने टैक्स बढ़ाना छोड़ा न पीने वालो ने पीना छोड़ा | सरकार इन पर टैक्स लगा कर जो पैसा कमाती है वो शराब सिगरेट को न पीने की हिदायत देने वाले विज्ञापनों, इससे होने वाले कैंसर आदि बीमारियों के इलाज और इन्हें पी पी कर गरीब हो चुके लोगो को सब्सिडी दे कर अनाज आदि देने और पी कर गाड़ी चलाने वाले से होने वाली दुर्घटनाओ पर खर्च कर देती है |
चलिए हम लोग भी खुश हो लेते है सरकार ने हमें साल का २०६० रुपये का यानि महीने का १७१ रु का फायदा (????) पहुँचाया है क्या करे इसका मारे ख़ुशी के पार्टी कर ले , या पता चला है कि पेट्रोलियम पदार्थो के दाम फिर से २-४ रु तक बढ़ने वाले है यानी महीने के ५०० रु के लिए , सरकारी अस्पताल तो हमारे जाने लायक नहीं है प्राइवेट महंगे कर दिया तो उसके लिए, सब्जी और अनाज के दाम अब भी कम नहीं हुए महीने के १००० रु के लिए , दूध के दाम अभी फिर से तीन रु बढ़ गए महीने के ९० रु के लिए आदि आदि आदि पर खर्चने के लिए बचा लू | सरकार खुद कह रही है की अगले साल महंगाई दर ८.५% रहेगी और टैक्स में छुट कितना दे रही है पता नहीं सरकार क्या हिसाब किताब लगाती है | वैसे तो हमारे ये भी नहीं बचने वाले है साल का वेतन बढ़ोतरी जो होगा तो उसके बाद तो हमारी तरफ और टैक्स ही निकलेगा | वैसे सरकार से ज्याद उम्मीद थी नहीं क्योकि जिस सरकार का मुखिया ये कहे की महंगाई है ही नहीं वो तो बस मिडिया का प्रोपेगेंडा है और हमारे वित्त मंत्री सब भगवान भरोसे छोड़ कर ये कहे की उनके पास अल्लाद्दीन का चिराग नहीं है जो महंगाई कम कर दे तो वो क्या कर सकते है |