- jo bhi ho, hame bas itna samajh aata hai ki ek aam bhartiya ab pahle se behtar jeendagi jee rahi hai:) aur agar aisa hai to kuchh to sarkar ne kiya hi hai..!! hai na ...:) प्रवीण शाह said... . . पर एक बात का जवाब आप ईमानदारी से दीजियेगा... क्या आपको नहीं लगता कि तमाम महंगाई, टैक्स, Government's Apathy आदि आदि के होहल्ले के बावजूद The Great Indian Middle Class के पास भारतीय इतिहास के किसी और दौर के मुकाबले आज ज्यादा स्पेयर पैसा है व वह और बेहतर जीवन जी रहा है।
- मेरी पिछली पोस्ट आह बजट ! वाह बजट ! पर मुकेश जी और प्रवीण शाह जी ने ये टिप्पणिया की थी उन दोनों ही लोगो का कहना था की आज के मिडिल क्लास का आदमी कल से बेहतर जीवन जी रहा है उसके पास कल के मुकाबले ज्यादा पैसा है | दोनों लोग की बात से मै सहमत हूँ किन्तु उस बेहतर जीवन को हमेशा बेहतर बनाये रखने और आज की बढ़ चुकी जरूरतों को संभालने के लिए उसे कितनी मेहनत करनी पड़ रही है वो भी देखनी चाहिए और ऐसा नहीं है की उस पर महंगाई का असर नहीं हो रहा है | बदलते सामाजिक और आर्थिक ढाचे ने उसके लिए कई नई जरुरी जरूरते पैदा कर दी है जिसे वह नजर अंदाज नहीं कर सकता है | आर्थिक उदारवाद और खुले बाजार के दौर ने माध्यम श्रेणी परिवारों को भी सपने देखने और अपनी इच्छाओ को पूरा करने का मौका दिया किन्तु उसने इसकी कीमत भी वसूल ली | इसी का नतीजा है की आज मिडिल क्लास को भी तीन श्रेणियों में बाट दिया गया है अपर मिडिल क्लास, मिडिल मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास | अब मिडिल क्लास में भी अमीरी और गरीबी का फर्क आ गया है | अपर मिडिल क्लास सपने देखता है उसे कर्ज ले कर पूरा करता है और सारा जीवन उस कर्ज को उतारता है | मिडिल मिडिल क्लास सपने देखता है कर्ज ले कर सपने पूरा करता है और अब कर्ज को उतारने में उसकी कमर टूटती जा रही है और जीवन की दूसरी जरूरते कर्ज के भेट चढ़ती जा रही है और तीसरा है लोअर मिडिल क्लास जिसे सपने देखने का हक़ तो मिल गया है किन्तु उनमे से कई वो पूरा ही नहीं कर पा रहा है और सारा जीवन बस उसे पूरा करने के लिए दौड़ लगाने में ही बिता देता है | पर एक सपना तो उसका भी पूरा हो रहा है " हमने संभाल रखा है आप के खास लम्हों को " थैंक्यू रतन टाटा | पहले जो मिडिल क्लास नौकरी के दुसरे दौर में ही अपना घर या गाड़ी का सपना भी नहीं देख सकता था( खासकर बड़े शहरो में छोटे शहरो में लोगो के पास अक्सर पुश्तैनी घर हुआ करते थे ) वो फ़्लैट सिस्टम ( बड़े शहरो में ) और अफोर्डेबल गाडियों तथा आसानी से मिलते घर और गाड़ी के लिए कर्ज ने मिडिल क्लास के सपने को पूरा कर दिया किन्तु आज कुछ तो इस बढ़ती ई एम आई को झेल ले रहे है किन्तु कुछ के बस के बाहर होता जा रहा है | ई एम आई तो हर हाल में भरना ही है अब उसके लिए जीवन की दूसरी जरूरतों में कटौती करनी पड़ रही है तो कही पर पति पत्नी दोनों को ही न चाहते हुए बच्चे छोड़ कोल्हू के बैल की तरह काम में जुटे रहना पड़ रहा है | फिर घर को मेंटेन भी रखना है दुनिया जहान के टैक्स भी भरना है और बढ़ता ईधन का खर्च गाड़ी को कवर चढ़ा कर रखने के लिए या कम प्रयोग करने के लिए मजबूर किये जा रहा है |
- समय के साथ जीवन में कुछ नई जरूरते बढ़ती जा रही है | अब बेचारा मिडिल क्लास वाले का जीवन बेहतर हो गया है वो इलाज के लिए सरकारी अस्पताल में नहीं जाता या वहा की अव्यवस्था और स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता उसे ऐसा करने नही देती | प्राइवेट अस्पताल एक बड़ी बीमारी में एक ही बार में घर के सालो का बजट बिगाड़ देते है | उसके लिए हर साल हम सभी को अपनी और अपने परिवार की नजर उतार कर १० -१५ हजार मेडिकल इंसोरेंस को देना पड़ता है | उस पर से अब निजी अस्पतालों में इलाज को भी सर्विस टैक्स के दायरे में लाया जा रहा है इससे तो इलाज और भी महंगा हो जायेगा जो मुझे नहीं लगता है की बीमे की रकम से भरी जा सकती है | अमिर पर इसका असर नहीं होगा गरीब हर हाल में सरकारी अस्पतालों के भरोसे ही रहेंगे तो इसका ज्यदा असर मिडिल क्लास पर ही पड़ेगा |
- संयुक्त परिवार के प्रचलन अब ख़त्म होता जा रहा है और इसके साथ ही आदमी पर दो नई आर्थिक जिम्मेदारिया आ पड़ी है पहला तो है जीवन बीमा | जीवन तो पहले भी कभी भरोसे के लायक नहीं था पर अपने पीछे संयुक्त परिवार का भरोसा था किन्तु अब अपने परिवार की जिम्मेदारी मरने के बाद भी हमें ही लेनी है | अब मिडिल क्लास अपनी मिडिल क्लास वाली सोच तो छोड़ नहीं सकता सो टर्म इंसोरेंस की जगह रेगुलर इंसोरेंस लेता है ताकि उसकी रकम डूबे नहीं बाद में मेच्योर हो उसे वापस मिल जाये सो एक बड़ी रकम बीमे की किस्ते भरने में चली जाती है और अब सरकार बिमा को भी महंगा करने जा रही है | यदि मरे नहीं जिन्दा रह गए तो रिटायर्मेंट भी देखना है और बुढ़ापा भी तो उसकी जिम्मेदारी भी हमी पर है बच्चो का भरोसा नहीं कर सकते और सरकार की तरफ से कोई सामाजिक सुरक्षा का इतजाम नहीं है , फिर ये कंपनिया भी मजबूर कर देती है " सर उठा कर जियो " लो जी अब प्राइवेट जॉब वालो को एक मोटी रकम पेंशन प्लान में भी डालना है , वो भी इतनी की बुढ़ापे में बढे मेडिकल खर्च और आज की जीवन स्तर भी मेंटेन रहे |
- विज्ञापन देखा है " ये रह १८ साल बाद बंटी, उसकी गाड़ी और उसकी फ़ीस १० लाख रुँपये और फ़ीस की रकम सुन आ गई बाप को हार्ट अटैक " और भविष्य में इस हार्ट अटैक से बचना है तो उसका इंतजाम भी आज ही हमें करना होगा | जब आज की तारीख में स्कुलो की बढ़ती फ़ीस माँ बाप का सरदर्द बनी है, उच्च शिक्षा और बड़े कालेजो की फ़ीस आज ४-५ लाख है तो जरा अंदाजा लगाइए की आज से १५ से २० साल बाद फ़ीस क्या होगी जरा महंगाई का स्तर भी देखते चलियेगा और साथ में ये भी सोचते की तब तक शिक्षा का बाजारीकरण पूरी तरह से हो चूका होगा सरकार शिक्षा के क्षेत्र खास कर उच्च शिक्षा के क्षेत्र से लगभग बाहर होगी देश में निजी और विदेशी शिक्षा संस्थानों की भीड़ होगी जो कमाने के लिए शिक्षा संस्थान खोलेंगे | तो सोचिये की उनकी फ़ीस क्या होगी और उतनी फ़ीस के लिए आज से ही हमें अपनी आज की कमाई का एक बड़ा हिस्सा उसके लिए रखना होगा | भूल जाइये की जैसे हमरे माँ बाप ने हमसे कहा की जो करना है अपने पढाई के बल बूते करो वैसा हम अपने बच्चो से कह पाएंगे | बच्चे कहेंगे की हमें फला कोर्स करना है ( तब तक न जाने कौन कौन से नए नए कोर्स पढाई आ जाएगी ) तो बस करना है भले उसके लिए वो सरकारी सस्ते कालेजो में प्रवेश न पा सके तो पेमेंट सिट भी दिलानी पड़ेगी | क्यों ? एक और नया विज्ञापन नहीं देखा है " की देश में लाखो कालेज है जहा से हर साल लाखो टॉपर बाहर निकालेंगे और फिर वो प्रतियोगिता करेंगे उच्च शिक्षा की कुछ हजार सीटो के लिए सब टापरों को सिट कहा से मिल पायेगी , तो आज से ही प्लान कीजिये "| यानि पेमेंट सिट के लिए भी आज से ही तैयारी कीजिये और जिनके दो या तीन बच्चे है वो खुद ही हिसाब लगा ले | चलिए मान लिया की कुछ लोगो को अपने बच्चो को उच्च शिक्षा नहीं दिलानी है तो उनमे से ज्यादातर को बेटी के विवाह की चिंता होती है | तो वर्त्तमान में हमारे देश में विवाह में लेन देने, रस्मो रिवाज और अन्य समारोहों पर हो रहे खर्च को देखे तो उसके लिए भी उन्हें आज से ही बचत करनी होगी क्योकि भविष्य में ये खर्च भी आज के मुकाबले कई गुना ज्यादा होंगे और ये भी मान कर चलिए की तब तक कोई सामाजिक क्रांति नही आने वाली है जो आप को इन सामजिक खर्चो से बचा ले या आप खुद बचना नहीं चाहेंगे | ये सब तो भविष्य के खर्चे है जिनके लिए हमें आज से बचत करनी है किन्तु सरकार ये सब बचत करने के लिए हमें कितनी छुट देती है सिर्फ एक लाख बीस हजार रुपये वो भी उन जगह इन्वेस्ट करने पर जहा हमारे पैसा ज्यादा नहीं बढ़ने वाले है और जो आज कुछ स्कीम है जो महंगाई की रफ़्तार से हमारे पैसे भी बढ़ा सकती है तो सुना है की उन मदों को अब २०१२ के नए टैक्स कोड प्रणाली लागु होने के बाद हटा दिया जायेगा | यानि आज से १५-२० साल बाद या रिटायर्मेंट के बाद हमें जरुरत लाखो की होगी और हम उसके लिए पैसा इन्वेस्ट कर रहे होंगे उन जगहों पर जहा हमें ८-९% प्रतिशत के दर से ब्याज कुछ बोनस के साथ मिलेगा | चलिए ये मान लेते है कि इनमे से कुछ चीजे चाहे तो कुछ लोग, जो सिर्फ वर्तमान में जीने में विश्वास रखते है, इसे नजर अंदाज ( वैसे करना तो नहीं चाहिए ) कर सकते है , तो आज की जरूरते भी कहा कम है | हमारे बचपन में टीवी फ्रिज जैसी चीजे विलासिता की चीज होती थी आज झोपड़ो में भी मिल जायेंगे | कुछ साल पहले तक कंप्यूटर बस आफिसो में और अमीरों के बच्चो तक सिमित थे अब इनके दर्शन भी आप को हर मध्यम वर्गीय परिवारों में हो जायेगा इस तरह के सामानों से हमारा घर दिन पर दिन भरता जा रहा है और जो हर ८-१० साल बाद बदल जाता है नए ब्रांड नए आधुनिक माडल | कपडे भी अब ब्रांड के नीचे कहा पसंद आते है ब्रांडो की अच्छी फिटिंग और गुणवत्ता के आगे सस्ता तो मन भाता ही नहीं है अब वो भी महंगे कर दिए है सरकार ने ,अब उसे हमारा अच्छा पहनना भी नहीं भा रहा है | कपडे क्या खाने पीने के सजने सवरने सभी चीजो में ब्रांड, अच्छे से अच्छे ब्रांड के नीचे बात ही नहीं होती है | फिर बच्चो को अच्छे से अच्छे स्कुल में डालना है उनकी महँगी फ़ीस भी भरनी है किताब कॉपी का खर्च भी देखना है और स्कुलो के प्रोजेक्ट से लेकर साल भर होने वाले ढेरो चोचलो के खर्चो को भी उठाना है वो भी बिना किसी ना नुकुर के और सरकार जीवन के सबसे महत्वपूर्ण खर्चे के लिए हमें कितनी छुट देती है १२ हजार रुपल्ली की, सरकार ही जानती होगी की आज की तारीख में किस स्कुल की ट्यूशन फ़ीस इतनी है | फिर केवल स्कुल से कहा चलता है टियुशन भी चाहिए जो महानगरो में घंटो और विषयो के हिसाब से चार्ज करते है कुछ बच्चो को तो एक साथ कई ट्यूशन दिलाने पड़ते है | फिर उनके हॉबीकोर्स के खर्चो को हम कैसे भूल सकते है आज सबको आलराउंडर जो बनना है | गया वो जमाना जब दो चार महीने में एक बार हम घूमने के नाम पर किसी मंदिर या रिश्तेदार पहचान वाले के घर चले जाते थे आज तो वीकेंड मनाने का जमाना है हर शनिवार या रविवार घूमने का दिन होता है बच्चे घर में टिक ही नहीं सकते है और बाहर जाना है तो मैक्डी से लेकर पिज्जा वालो का धंधा भी तो हमें ही जमाना है बाहर नहीं भी गए तो क्या हुआ ये तो आपके दरवज्जे तक घंटी बजा कर दे जाते है और बच्चा बच्चा इनको आर्डर देना जनता है | और अब गर्मी की छुट्टिया दादी या नानी के घर नहीं बीतती है माध्यम वर्गीय परिवारों की, उन्हें भी दुनिया जहान देखना है भूल जाइये यात्रा के नाम पर बुढ़ापे में तीर्थ यात्रा के ज़माने को | "ट्रूली एशिया मलेशिया " वाले सपने तो मिडिल क्लास नहीं देख सकता किन्तु " एम पी गजब है सबसे अलग है " या "गो गोवा" वाला विज्ञापन तो उन्हें भी देश देखने की इच्छा तो जगा ही देता है | मिडिल क्लास वाले है पढ़े लिखे है तो चाह कर भी चाइनीज सस्ते खिलौने अपने बच्चो को नहीं दे सकते है हमें पता है वो खतरनाक है तो फिर आ जाइये वही ब्रांडेड महंगे खिलौनों पर | हम मिडिल क्लास वाले अब अपने बच्चो के कम से कम खिलौनों की फरमाइश पूरी करने में ज्यादा ना नुकुर नहीं करते और करना भी नहीं चाहते है | बच्चे और उनकी जरूरते अब हमारे जीवन में पहले के लोगो से कही ज्यादा अहमियत रखते है | मैंने देखा क्रिसमस और बाल दिवस पर एक नामी ब्रांड के खिलौनों की दुकान में इतनी भीड़ थी की लगा जैसे वो खिलौने मुफ्त में बाँट रहे थे सब पैरेंट्स अब बच्चो की जरूरतों के प्रति काफी मुखर हो चुके है | अब किस किस का जिक्र करे लिस्ट तो बहुत लम्बी है | हा ये ठीक है की आज मिडिल क्लास का जीवन पहले से बेहतर है किन्तु इसने उसे उसी बेहतर जीवन की आदत डाल दी है अब वो उससे नीचे नहीं आ सकता है अपनी जरूरते कम नहीं कर सकता है सपने देखना बंद नहीं कर सकता है किन्तु इस बेहतर जीवन का स्तर बनाये रखने के लिए और बढ़ी हुई जरूरतों को पूरा करना दिन पर दिन महंगा होता जा रहा है और इनको पूरा होने में थोड़ी सी भी कसर रह जाये तो वो उसे पहले से ज्यादा सताती है और उसे मजबूर दिखाती है |
दो सवालों के बहाने बहुत सार्थक चिंतन किया है आपने। काफी हद तक सहमत हूँ आपसे। एक आम मध्यमवर्गीय का जीवनस्तर भले ही सुधर गया है पर उसके कंधों पर बोझ भी बहुत बढ़ चुका है।
ReplyDeleteजीवन में दुरुहताएँ तो बढ ही रही हैं और मिडिल क्लास पर ही हमेशा से इसका सर्वाधिक भार रहता आया है ।
ReplyDeleteदिल की बात कह दी आपने।
ReplyDeleteएक पूरी पोस्ट इसी तरह के "शहरी बधुंआ मज़दूरों" पर लिखने की सोची थी,पर आपने काफी कुछ कह दिया।
दरअसल, इस मनमोहनी अर्थ-शास्त्र का सारा खेल ही बाज़ार में पूंजी को क्रत्रिम तरीके से बड़ाकर, मांग को बहुत अधिक कर देना है।
यही हो भी रहा है|शिक्षा के लिये कर्ज, स्वास्थ के लिये कर्ज, गाड़ी और घर के लिये कर्ज, कुल मिलाकर यह सब इतना हो जाता है कि भविष्य की सारी आमदनी एक मध्यम वर्गीय युवा इनकी किश्ते चुकाने में लगा है, फिर रोजमर्रा के खर्चों और स्टेटस मैंटैन करने की खीचंतान में "क़्रेडिट कार्ड" बची खुची, भविष्य की आमदनी भी चाट जाता है। अब ये बेचारा मध्यम वर्गीय युवा ताउम्र सिर्फ काम करेगा, और बिल और किश्ते चुकायेगा! इसके बच्चे भी यही सब करेंगे।
सचमुच, तरक्की हुयी कई गुना!
हो रहा भारत निर्माण! हो रहा भारत निर्माण!
sapne ko hakkikat me badalana..aur fir ek naya sapna dekha...agar ye galat hai to fir....aaj ki parishthiti bhi main samajh lunga sarkar ki galat natije ka hissa hai...!!
ReplyDeletehame yaad hai, ham bachpan me jab gaon me hote the, to apne chacha ke ghar ke chhote mote kaam sirf isliye karte the, taaki ramayan aur cricket match TV pe dekhne ki chhutt mil jaye...agar kisi ke ghar freeez dekh lete the to ghar pe discuss karte the, wo bada aadmi ban gaya hai..par aaj ki tasveer alag hai...TV, Freez aaj ki jarurat hai...aur isko jarurat bana dena...sarkar ke liye ek tareef ki baat honee chahiye...:)
ya fir aap bhi sochtee ho ki ham middle class ...cattle class hi rahen, sleeper me safar karen...aur kisi tarah apni jindagi jeeyen..!
Bade bhaiya (Salil) mujhe arthshastra ka to gyan nahi, par itni samajh hai, beshak kaise bhi sahi...hame apni jindagi ko khushnuma banane ke liye kuchh to karna parega...:)
Thanx anshumala jee..! aapne mere comments ko tawajjo di!
हम्म आज तो हमारे दिल की बात कह दी! हम तो जब इंडिया जाते हैं यही सोच कर हैरान रह जाते हैं कि कितना पैसा है लोगों के पास क्या शिद्दत से खर्च करते हैं...कहाँ से आ रहा है ???सबसे गरीब हम ही नजर आते हैं वहाँ.
ReplyDeleteवाकई वक्त बदला है ,लोगों की जरूरतें बदली है और लाइफ स्टाइल भी.
पर उस सबके पीछे क्या है...अच्छा विश्लेषण किया आपने.
चादर से ज्यादा पैर पसारने वाला हमेशा दुखी रहता है चाहे वा किसी भी क्लास ही क्यो न हो।
ReplyDeleteटीवी,फ्रिज,गाड़ी ....क्या यही फर्क है कैटिल क्लास और एलीट क्लास के बीच ?!
ReplyDeleteजिस गांधीं को हम जानते और मानते हैं वह तो "नीड" (need)की बात करता था, "समरसता" और "समग्र विकास" की बात करता
था।
ये अलग बात है कि आज के "नकली गांधीयों" ने जो व्यवस्था विकसित की है वह ग्रीड (Greed)पर आधारित है।
सवाल यह नहीं है कि आप कौन सा टीवी देख रहें हैं (CRT, TFT, LCD, LED, PLASMA.....) सवाल यह है कि आप क्या देख रहें हैं?
सवाल यह नहीं है कि आप कौन से फ्रिज का पानी पीते है? सवाल यह है कि क्या आपकी "प्यास" बुझती है?
सवाल यह नहीं है कि आप कौन सी गाड़ी से जाते हैं (maruti, BMW , Feraari) सवाल यह है कि आप कहां जाते है?
मध्यवर्ग के ही कुछ लोगों की नवधनाढ्यता के कारण कई बार इस पूरे वर्ग को लेकर भ्रांति पैदा हो जाती है।
ReplyDeleteभला उसकी कमीज़ मेरी कमीज़ से सफेद कैसे... इस टैग लाईन ने सारा इंद्रजाल बुना है उस मिडल क्लास का जिसका शब्दचित्र आपने बुना है.. एक वक़्त था कि यह वर्ग अपनी मैली कमीज़ का बदला उसकी सफेद कमीज़ पर पान थूककर लिया करता था... फिर आए हमारे जैसे कोट टाई लगाए हुए महाजन (बैंकर),जिन्होंने बताया कि थूकना बेकार है तुम्हें भी सफेद कमीज़ दिलवा देंगे हम.. और तब शुरू हुआ खेल ईएमआई का..जीवन में पहला कदम रखते ही वॉलेट में प्लास्टिक के पैसे लिए और उम्र भर सफेद कमीज़ का कर्ज़ चुकाते हुए.. सपने देखने का हक़ सबको है, जितने जी चाहे देखो.. लेकिन एक हक़ीक़त यह भी है चादर छोटी हो तो पैर बाहर निकल ही जाते हैं और आँखें छोटी हों तो सपने... सपनों का साईज़ ज़रा बड़ा हुआ नहीं कि पार्किंग से गाड़ी ग़ायब हो जाती है और घर बच्चा पैदा न होने पर भी तालियों की गूँज सुनाई देने लगती है..
ReplyDeleteबेहद सटीक विष्लेषण किया है आपने स्थितियों का, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
प्रासंगिक विवेचन है...... ना केवल आज बल्कि आने वाले समय के हिसाब भी सोचा जाये तो समस्याएं तो आयेंगीं ही..... हाँ मिडिल क्लास हमेशा ज़्यादा परेशानी झेलता है......
ReplyDelete@ सोमेश जी
ReplyDeleteउसके कंधो पर अपने सपनो का बोझ है जिसे वो फेक भी नहीं सकता |
@ सुशील बाकलीवाल
सही कहा धन्यवाद |
@ चैतन्य जी
आम आदमी को आप ने बिलकुल सही नाम दिया है " शहरी बंधुआ मजदूर " | टीवी ,फ्रिज, गाड़ी ये चीजे कैटिल क्लास और एलीट क्लास के बीच फर्क नहीं करती है ये तो कैटिल क्लास के अन्दर पैदा हुए तीन क्लास में फर्क पैदा करती है |
@ मुकेश जी
एक समय था जब घर के लिए कर्ज महज ७% पर उपलब्ध था फिर बढ़ कर ये १३% तक चला गया क्या ७% पर ई एम आई भरना शुरू करने वाले ने सोचा होगा की एक दिन मेरी यही इ एम आई मेरी कमर तोड़ देगी | सरकर पहले चीजो को बाजार में सस्ता कर झोक देती है आम आदमी को जैसे ही उसकी आदत लगाती है वो उसकी जरुरत बन जाती है उसे बाजार के भरोसे छोड़ देती है उस पर नए टैक्स लगा मिनाफा कमाती है और फिर बाजार भी अपनी कीमत वसूलता है | दोष सरकार के काम चलाऊ त्तकालीन नीतियों के निर्माण में है वो दूरदृष्टि रख नीतिया नहीं बना रही है | आज पैसे की जरुरत है तो सरकार ऐसी नीतिया बनाएगी की लोग ज्यादा बचत करे और कल को जब बाजार ठंडा होने लगेगा तो नीतिया उलट जाएँगी और लोगो को और खर्चे के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा |
आप की और प्रवीन जी की टिपण्णी अपनी बात को शुरू करने के लिए प्रयोग किया है आप ने अन्यथा नहीं लिया इसके लिए धन्यवाद |
@ शिखा जी
ReplyDeleteहा हम बस दिखावे वाले अमिर है |
@ दीपक जी
बिलकुल सही कहा धन्यवाद |
@ कुमार राधारमण जी
हमें क्या नेताओ को भी हो जाती है और महंगाई का कारण भी इसी को बता देते है की लोगो के पास पैसा ज्यादा आ गया है |
@ सलिल जी
बिलकुल सही विश्लेषण किया और ये भी सही कहा की मिडिल क्लास पैर बाहर नहीं निकालता उसकी तो चादर ही छोटी है |
@ ताऊ जी
धन्यवाद |
@ मोनिका जी
बेचारा और कर ही क्या सकता है |
बहुत ही बढ़िया ढंग से आपने चीजों को एक एक कर स्पष्ट करते हुए बयां किया है। दरअसल अब वह जमाना नहीं रहा कि बच्चों को मना कर दो तो वो मान जायें....अब थोड़ा डिफरेंट वे में बच्चों को हैंडल करना पड़ता है....उनके खर्चे उनके नखरे....।
ReplyDeleteऔर जहां तक कर्ज लेकर जीवन को आगे खेंचने की बात है, उसे बुस्ट करने की बात है तो अब ये एक तरह की हमारी संस्कृति में रच बस गया है....अर्थसंसार में रम सा गया है.....कर्ज न लिया जाय....होम लोन न लिया जाय तो टैक्स के नाम कट कुट जाने का डर है.....जरूरत के वक्त पर्सनल लोन न लिया जाय तो अहमक कहलाये जाने का डर है :)
देवानंद की फिल्म 'हम दोनों' में बहुत सही डायलॉग कहा गया था कि - सूखी रोटी की बातें, गरीबी की बातें कवियों और अमीरों को मानसिक सूकून देने वाली बातें हैं....आज गरीबी एक अभिशाप है और उसमें पड़े रहना एक किस्म की हिमाकत।
अब केवल कमाना है कमाना है और सिर्फ कमाना है...यही शायद अब वर्तमान लाइफस्टाईल की डिमांड भी है।
सब कुछ एकदम चाक चौबंद लिखा है आपने, बस वो बारह हजार की छूट ट्यूशन फ़ीस के मद वाली बात अब पुरानी हो चुकी है।
ReplyDeleteकिसी फ़िल्म में कोई डायलाग था कि ’ऒक्सीजन तुम्हें मरने नहीं देगी और (शायद) पानी तुम्हें जीने नहीं देगा’ - हमारा मिडिल क्लास भी ऐसे ही सपने पूरे करने की चाह में रोज मरते मरते जी रहा है। ऊंचा उठने की जद्दोजहद में जो पहले से ऊंचे हैं, उन्हें और ऊंचा उठने के लिये अपने सर, अपने कंधे हम उपलब्ध करवा रहे हैं।
सलिल जी और चैतन्य जी के कमेंट्स के बाद अब कुछ कहने को बचता नहीं है।
यहां जो बात हो रही है वह एक सौ पंद्रह करोड़ में से केवल पच्चीस तीस करोड़ लोगों की बात हो रही है। बाकी लोग तो केवल 20 रूपए रोज पर ही गुजारा कर रहे हैं।
ReplyDeleteयह आपने सही कहा कि अब मिडिल क्लास के अंदर भी क्लास बनी गई हैं।
बहुत ही बढ़िया विवेचन किया है..अंशु जी,
ReplyDeleteमिडिल क्लास के सपने...उनकी जीवनचर्या अब ऐसी होती जा रही है....कि आने वाली पीढ़ियों के लिए चिंता हो रही है. ..पति-पत्नी दोनों चौबीस तास (घंटे) खटेंगे फिर भी पूरा नहीं पड़ेगा...एक घर खरीदने का सपना भी साकार होना मुश्किल.
मिडिल क्लास पर बहुत अच्छी समीक्षा की आप ने,अगर यह मिडिल कलास थोडी मे गुजारा करना सीख जाये तो कितना सुखी हो जाये,हमे तो शुरु से यही सीखाया गया हे कि जितनी चादर हो पेर उतने ही पसारो ज्यादा पसारने से पेर नगें होंगे या चादर ही फ़ट जायेगी, ओर आज की मिडिल क्लास यही कर रही हे.
ReplyDeleteधन्यवाद
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ReplyDelete.
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बाकी तो सब ठीक ही है... कितना भी कमा लें, पैसा रहेगा हमेशा कम ही और जरूरतें हमेशा साधनों से ज्यादा ही... कितने भी पूरे हो जायें कुछ सपने तो रह ही जायेंगे... पर जो चीज मुझे सबसे ज्यादा परेशान करती है वह है हमारे मिडिल क्लास के जीवन मूल्यों का पतन... ईमानदारी, नैतिकता, फेयरप्ले, केयर फॉर द अंडरडॉग आदि आदि जीवन मूल्य व वैचारिक नेतृत्व जो ज्यादातर हमारा मध्य वर्ग प्रदान करता था... वह खत्म हो गया है, सोच में हमारा मध्य वर्ग उच्च वर्ग की सोच की ओर चला गया है... "अपना काम चले बाकी दुनिया जाये भाड़ में" यह सोच बन गई है...
...
सर्विस टैक्स तो यूं भी इन्कम टैक्स देने वालों की ज़ेब पर डाका है. पहले इन्कम टैक्स दो. फिर बची हुई आमदनी से जो भी ख़रीदो, उस पर भी टैक्स दो. लेकिन इस पर कोई एक शब्द नहीं कह रहा.
ReplyDeleteया तो इन्कम टैक्स ख़त्म कर दो भई, या फिर ये सर्विस टैक्स के नाम पर देबारा टैक्स क्यों.
अगर यह मान कर सर्विस टैक्स लगाया जा रहा है कि वे 95% लोग जो इन्कम टैक्स नहीं देते उनसे कुछ तो बसूल किया ही जा सकता है तो फिर क्या यह इन्कम टैक्स देने वालों को घुन की तरह क्यों पीसते हो भई.
@ सतीश जी
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा बच्चे क्या अब हम अपनी इच्छाये भी दबाने में विश्वास नहीं रखते है |
@ संजय जी
@ बस वो बारह हजार की छूट ट्यूशन फ़ीस के मद वाली बात अब पुरानी हो चुकी है।
सब ब्लोगिंग का नतीजा है सारा समय तो यही खाये जात है फिर दिन दुनिया की कोई खबर नहीं रहती है | २० हजार की नई छुट इन्फ्रास्टकचर बांड वाली भी मुझे अब पता चली है सुकर है ३१ के पहले पता चल गई | तो क्या इस मद में छुट और बढ़ गई है या इसे ख़त्म कर दिया गया है | वैसे भी क्या फायदा है सब को तो ८०-C के अन्दर ही रखा है ना |
@ राजेश जी
ये संख्या चाहे कुछ भी हो समस्या तो उनके सामने भी है ही |
@ रश्मि जी
ReplyDeleteबड़े शहरों में तो घर वाकई सपना होता जा रहा है |
@ राज भाटिया जी
अब थोड़े में कोई भी गुजरा नहीं करता है करना भी नहीं चाहिए बस दूसरो का छिनिये मत खुद मेहनत करना सीखे सभी |
@ प्रवीण जी
सही कहा कभी ये सोच उच्च वर्ग की थी अब ये सभी की हो गई है | रही बात
जीवन मूल्यों का पतन की तो इसकी कीमत शायद ही कभी रही हो अब मिडिल क्लास भी समझ गया है इस बात को |
@ काजल जी
बिलकुल सही कहा ईमानदारी से पैसे कमाने की सजा है |
अंशु जी,
ReplyDeleteपहली बात आज शनिवार है...
अब मुद्दे की बात...
सरकार अगर एक हाथ से मिडिल क्लास को कुछ दे रही है तो दस हाथों से उसकी जेब काटने वालों को छूट भी दे रही है...ज़रा गौर से देखिए मिडिल क्लास का लाइफ-स्टाइल कैसे बदला जा रहा है...बच्चे मैक्डॉनल्ड, केएफसी, पिज्जा हट, डोमिनोज़, कोक, पेप्सी के एडिक्ट हो रहे हैं...ब्रैंडेड कपड़ों के अलावा उन्हें कुछ और पसंद नहीं...मल्टीप्लेक्स में फिल्में देखना साधारण शगल है...ज़रा सड़क पर दौड़ने वाली गाड़ियों को देखें, कितनी उनमें से विदेशी कंपनियों के सहयोग से बनाई जा रही हैं...(स्वदेशी अम्बेसडर का दौर बहुत पीछे छूट चुका है)...ये आर्थिक उपनिवेशवाद नहीं तो और कया है...मनमोहनी इकोनॉमिक्स ने ऐसा चश्मा पहन रखा है कि उसे नौ फीसदी विकास दर के सिवा कुछ नहीं दिखता...इसके लिए देश बेशक ईस्ट इंडिया कंपनी वाले दौर में पहुंच जाए...
जय हिंद...
मिडिल क्लास शायद सदैव दोहरी विसंगति में जीता है.
ReplyDeleteyahi jeewan hai shayad....
ReplyDeletewaise ek baat kahoon, pareshaan sab hain chahe wo middle class ho ya upper class....
क्या आप भी अपने आपको इन नेताओं से बेहतर समझते हैं ???
ReplyDeleteआदरणीय अंशुमाला जी , सादर प्रणाम
ReplyDeleteआपके बारे में हमें "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" पर शिखा कौशिक व शालिनी कौशिक जी द्वारा लिखे गए पोस्ट के माध्यम से जानकारी मिली, जिसका लिंक है...... http://www.upkhabar.in/2011/03/jay-ho-part-2.html
इस ब्लॉग की परिकल्पना हमने एक भारतीय ब्लॉग परिवार के रूप में की है. हम चाहते है की इस परिवार से प्रत्येक वह भारतीय जुड़े जिसे अपने देश के प्रति प्रेम, समाज को एक नजरिये से देखने की चाहत, हिन्दू-मुस्लिम न होकर पहले वह भारतीय हो, जिसे खुद को हिन्दुस्तानी कहने पर गर्व हो, जो इंसानियत धर्म को मानता हो. और जो अन्याय, जुल्म की खिलाफत करना जानता हो, जो विवादित बातों से परे हो, जो दूसरी की भावनाओ का सम्मान करना जानता हो.
और इस परिवार में दोस्त, भाई,बहन, माँ, बेटी जैसे मर्यादित रिश्तो का मान रख सके.
धार्मिक विवादों से परे एक ऐसा परिवार जिसमे आत्मिक लगाव हो..........
मैं इस बृहद परिवार का एक छोटा सा सदस्य आपको निमंत्रण देने आया हूँ. आपसे अनुरोध है कि इस परिवार को अपना आशीर्वाद व सहयोग देने के लिए follower व लेखक बन कर हमारा मान बढ़ाएं...साथ ही मार्गदर्शन करें.
आपकी प्रतीक्षा में...........
हरीश सिंह
संस्थापक/संयोजक -- "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" www.upkhabar.in/
अन्शुमालाजी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया विश्लेष्ण किया है हमारे आज के सामाजिक ढांचे का |
ये भी भी तो हो गया है आजकल सिर्फ अपने लिए जीने (खर्च )करने लगा है आज का नव धनाड्य ?बाजार के आधार पर ही उसने अपनी जीवन शली विकसित कर ली है सिवाय अपनी पत्नी और बच्चे की जिम्मेवारी ही उठा पता है समाज से तो वो दूर दूर ही होता जा रहा है |
दोस्तों! अच्छा मत मानो कल होली है.आप सभी पाठकों/ब्लागरों को रंगों की फुहार, रंगों का त्यौहार ! भाईचारे का प्रतीक होली की शकुन्तला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन परिवार की ओर से हार्दिक शुभमानाओं के साथ ही बहुत-बहुत बधाई!
ReplyDeleteआप सभी पाठकों और दोस्तों से हमारी विनम्र अनुरोध के साथ ही इच्छा हैं कि-अगर आपको समय मिले तो कृपया करके मेरे (http://sirfiraa.blogspot.com , http://rksirfiraa.blogspot.com , http://shakuntalapress.blogspot.com , http://mubarakbad.blogspot.com , http://aapkomubarakho.blogspot.com , http://aap-ki-shayari.blogspot.com , http://sachchadost.blogspot.com, http://sach-ka-saamana.blogspot.com , http://corruption-fighters.blogspot.com ) ब्लोगों का भी अवलोकन करें और अपने बहूमूल्य सुझाव व शिकायतें अवश्य भेजकर मेरा मार्गदर्शन करें. आप हमारी या हमारे ब्लोगों की आलोचनात्मक टिप्पणी करके हमारा मार्गदर्शन करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे.हम आपकी आलोचनात्मक टिप्पणी का दिल की गहराईयों से स्वागत करने के साथ ही प्रकाशित करने का आपसे वादा करते हैं
अंशुमाला जी होली के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार को बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं.
ReplyDeleteआपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं
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