16 अगस्त से एक बार फिर अन्ना हजारे लोकपाल बिल को लेकर अनशन पर जाने वाले है किन्तु आज परिस्थितिया वैसी नहीं है जैसी की उनके पहले अनशन के समय थी | तब उन्हें और उनकी टीम को बिल्कुल भी ये अंदाजा नहीं था की उनके आन्दोलन को जनता और मीडिया में इस स्तर तक समर्थन मिलेगा | उन्हें मिला समर्थन उनकी उम्मीदों से परे था और सरकार के भी, इसलिए सरकार भी जल्द ही दबाव में आ गई और फौरी तौर पर इस आन्दोलन से निपटने के लिए बिल बनाने की कमेटी में सिविल सोसायटी के लोगो को शामिल कर लिया किन्तु उसका अंत कैसा होगा ये सरकार को मालूम था, और अंत में हुआ भी वही सरकार ने लोकपाल बिल को जोकपाल बना कर संसद में रख दिया अब अन्ना हजारे और उनकी टीम इसे उनके और जनता के साथ धोखा बता कर एक बार फिर से इस पर आन्दोलन शुरू करना चाह रही है और 16 अगस्त से अन्ना हजारे ने फिर से अनशन पर जाने की घोषणा कर दी है |
किन्तु अब सवाल ये है कि क्या इस बार भी उन्हें जनता खास कर पढ़े लिखे सुविधाभोगी माध्यम वर्ग से वही समर्थन मिलेगा जो उन्हें पिछली बार मिला था | सवाल उठना लाजमी है क्योकि इस बार जनता से उम्मीदे ज्यादा है और आज की परिस्थिति पहले से काफी अलग है | पिछली बार जनता ने जोश में और बिना किसी परिणाम को सोचे सड़को पर उतर कर एस एम एस कैपेनो सोसल साईटों आदि से इस आन्दोलन को खूब समर्थन दिया था किन्तु इस बार इस माध्यम वर्ग को पता है की सरकार किसी आन्दोलन को कुचलने के लिए क्या कर सकती है और किस हद तक जा सकती है | बाबा रामदेव के आन्दोलन का सरकार ने क्या हाल किया और आज भी बाबा रामदेव और उनके सहयोगियों का क्या हाल कर रही है उसी से पता चलता है की सरकारे कैसे काम करती है | अब इन सब को देखते हुए लगता है की क्या इस बार पढ़ा लिखा तबका और युवा इस अन्दोलन से उसी तरह जुड़ेगा जैसे इसके पहले जुड़ा था |
९० के दशक में इस माध्यम वर्ग ने अपने सपूतो को इसी तरह के एक आन्दोलन में जलते हुए और मरते हुए देखा था तभी से इनकी रुहे भी किसी आन्दोलन के नाम पर कांप जाती है | सड़क पर किये जा रहे आन्दोलन से कम से कम आम आदमी तो दूर ही रहता था | एक दशक बाद जा कर उसे होश आया की ये भ्रष्टाचार तो हमारे सर के ऊपर तक चला गया है यदि अब इसके खिलाफ नहीं बोले तो ये हम को ही ले डूबेगा | अन्ना की टीम ने लोगो को अपनी बात कहने अपना आक्रोश सामने लाने का मंच दे दिया और लोगो ने उसका उपयोग भी किया किन्तु सभी ये सब करते रहे क्योकि उन्हें सरकार की तरफ से कोई भय नहीं था क्योकि तब तक सरकार ने इस तरह के आन्दोलन को कुचलने का कोई काम नहीं किया था | सिविल सोसायटी को लोकपाल बिल बनाने की कमिटी में शामिल करने को ही सभी ने अपनी जीत मान ली और आन्दोलन को यही सम्पन्न भी मान लिया | किन्तु जब यही लोगों ने टीवी पर बाबा रामदेव के आन्दोलन का हाल देखा सरकारी ज्यादती देखी तो उनके होश उड़ गये , तब इन्हें समझ आया की सरकार किसी आन्दोलन को कुचलने के लिए किसी हद तक जा सकती है और क्या क्या कर सकती है उसके लिए आम आदमी और उसके मुद्दे उसके सवाल कोई मायने नहीं रखेते है | जब सरकारे अपने पर आती है तो इसी तरह सत्ता की ताकत का दुरुपयोग करती है | अब अन्ना हजारे फिर से आन्दोलन करने जा रहे है और इस बार सरकार ने पहले ही दर्शा दिया है की उसे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है सरकार से बाहर सरकारी टट्टू लोगों को डराने के लिए ये भी बता रहे है की हर आन्दोलन का वही हाल होगा जो रामदेव के आन्दोलन का हुआ | अब माध्यम वर्ग को पता है की इस बार पहले वाली बात नहीं है इस बार यदि बाहर निकले तो पुलिसिया ज्यादती का शिकार भी होना होगा और डंडे खाने की नौबत भी आ सकती है |
ऐसा नहीं है की सरकार ने बस युही रामदेव के आन्दोलन को इस तरह कुचल दिया वो चाहती तो बड़े आराम से अन्ना हजारे की तरह बाबा को भी योग शिविर के आड़ में अनशन करने की इजाजत नहीं देती लोगों को वहा आने से ही रोकती और इस आन्दोलन को होने ही नहीं देती | किन्तु उसने ये सब होने दिया क्योकि उसकी मंसा तो एक तीर से दो निशाने लगाने की थी उसने सभी टीवी कैमरो मीडिया के सामने उन लोगों पर लाठी चार्ज किया लोगों का मारा कम उन्हें घसीटा ज्यादा उसका उद्देश्य लोगों को वहा से भगाने से पहले अच्छे से उनकी इज्जत कैमरों के सामने उतारने की थी | सरकार को अच्छे से पता था की ये सब मीडिया रिकार्ड कर रही है और उसे देश के लाखो लोग टीवी पर देखेंगे और वो चाहती भी यही थी की लोग देखे ओर समझ जाये की सरकार क्या क्या कर सकती है | वो आन्दोलन तो सफलता पूर्वक कुचल दिया गया पर वहा जो किया गया उसका दूसरा निशाना था उन चीजो के देख रहा माध्यम वर्ग जो हमेसा ही अपनी इज्जत को लेकर बड़ा सतर्क रहता है जो आन्दोलन तो कर सकता है पर लाठी नहीं खा सकता सड़क पर घसीटा जाना या पुलिस द्वारा गलिया देना उसे बर्दास्त नहीं होगा वो कभी नहीं बर्दास्त करेगा की उसके घर के युवा या महिलाए या वो खुद इस तरह के आन्दोलन में जाये जहा पर ये सब होने की संभावना है |
सरकार का तीर निशाने पर लगा पहले से ही डरपोक रहा माध्यम वर्ग और भी डर गया और पुरा माध्यम वर्ग सहमा डरा हुआ इधर उधर मुँह छुपा रहा है बहाने तलाश रहा है अन्ना की टीम से ही सवाल पूछ रहा है की आप इससे ज्यादा और क्या चाहते है, सरकार ने तो काफी कुछ दे दिया, आप लोकपाल के नाम पर एक और सत्ता खड़ी कर रहे है ,आप इतना ईमानदार व्यक्ति लोकपाल के लिए कहा से लायेंगे , आप संसद का अपमान कर रहे है, ये लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है, आप सरकार गिराने का प्रयास कर रहे है, आप देश को अस्थिर कर रहे है ,आप खुद को संसद से सर्वोच्च क्यों मान रहे है, देश में संसद ही सर्वोच्च है उसकी बात हम सभी को मान लेनी चाहिए आदि आदि आदि | सिविल सोसायटी वालो पर भी सवाल खड़े किया जाना लगा और रामदेव के आन्दोलन को तो सरकार ने पहले ही सांप्रदायिक घोषित कर उसकी हवा निकाल दी थी | सरकार ने बड़ी चालाकी से अपने एक कांटे से दूसरे कांटे को निकालने का काम किया |
बेचारा माध्यम वर्ग भी क्या करे वो शुरू से ही डरपोक रहा है उसे खुद के कामने खाने और इज्जत की दुहाई दे कर चुप रहने और दूसरो को भी चुप रहने की सलाह देने की आदत है और सरकार ने भी उसकी इसी आदत का खूब फायदा उठाया और उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया | अब वो खुद को दिलासा भी दे रहा है की उसने तो आन्दोलन को सफल बना दिया था और सरकार से अपनी बात भी मनवा ली थी अब वहा गए लोग अपनी बात नहीं मनवा सके तो हम क्या कर सकते है | इस बात को अन्ना हजारे की टीम भी अच्छे से समझ रही है इसलिए पहले कोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई की उसके आन्दोलन में सरकार वो सब ना कर सके जो रामदेव के आन्दोलन में किया ताकि लोगो में कुछ विश्वास पैदा हो लोगो का डर कम हो साथ ही अब जगह जगह जा कर लोगो को फिर से जोड़ने का प्रयास भी किया जा रहा है जो पहले इस तरह नहीं किया गया था | पर दूसरी तरफ सरकार और उनकी टीम भी लोगो को डराने के लिए उन्हें हतोस्साहित करने के लिए रोज नये नये बयान जारी कर रही है कभी ये कहती है की उनके आन्दोलन का भी वही हाल होगा जो रामदेव का हुआ, कभी कहती है की करते रहे आन्दोलन हमें कोई चिंता नहीं है, तो कभी कानून व्यवस्था प्रशासन का नाम लेकर जंतर मंतर पर अनशन की इजाजत ही नहीं दे रही है | किन्तु अन्ना की टीम भी लगी है सरकार से दो दो हाथ करने के लिए |
कोई भी क्रांति बड़ा बदलाव या सरकार से उसकी मर्जी के खिलाफ उससे कोई काम करवाना आसान नहीं होता है और ये काम दो या चार दिन में संभव नहीं है इसके लिए पूरे समाज को उठ कर आगे आना होता है और एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ती है और कई बार सरकारी ज्यादती का शिकार भी होना पड़ता है | जब कोई समाज इन सब के लिए तैयार होगा तभी वो किसी बदलाव को क्रांति को ला सकता है , नहीं तो छोटे छोटे आन्दोलन विरोधो को सरकारे कभी तव्वजो नहीं देती है और नहीं किसी खास व्यक्ति समूह की सुनती है ,अन्ना तो गाँधीवादी भर है आज के समय में स्वयम गाँधी जी भी आ कर अकेले सरकार से कुछ कहते तो वो उन्हें भी बरगलाने के सिवा कुछ नहीं करती | अब तो १६ अगस्त के बाद ही पता चलेगा की परम्परागत भारतीय माध्यम वर्ग किसी बदलाव को लाने को तैयार है की नहीं , उसमे क्रांति लाने की ताकत है की नहीं , उसने अपने डरपोक प्रकृति को छोड़ा है की नहीं |
९० के दशक में इस माध्यम वर्ग ने अपने सपूतो को इसी तरह के एक आन्दोलन में जलते हुए और मरते हुए देखा था तभी से इनकी रुहे भी किसी आन्दोलन के नाम पर कांप जाती है | सड़क पर किये जा रहे आन्दोलन से कम से कम आम आदमी तो दूर ही रहता था | एक दशक बाद जा कर उसे होश आया की ये भ्रष्टाचार तो हमारे सर के ऊपर तक चला गया है यदि अब इसके खिलाफ नहीं बोले तो ये हम को ही ले डूबेगा | अन्ना की टीम ने लोगो को अपनी बात कहने अपना आक्रोश सामने लाने का मंच दे दिया और लोगो ने उसका उपयोग भी किया किन्तु सभी ये सब करते रहे क्योकि उन्हें सरकार की तरफ से कोई भय नहीं था क्योकि तब तक सरकार ने इस तरह के आन्दोलन को कुचलने का कोई काम नहीं किया था | सिविल सोसायटी को लोकपाल बिल बनाने की कमिटी में शामिल करने को ही सभी ने अपनी जीत मान ली और आन्दोलन को यही सम्पन्न भी मान लिया | किन्तु जब यही लोगों ने टीवी पर बाबा रामदेव के आन्दोलन का हाल देखा सरकारी ज्यादती देखी तो उनके होश उड़ गये , तब इन्हें समझ आया की सरकार किसी आन्दोलन को कुचलने के लिए किसी हद तक जा सकती है और क्या क्या कर सकती है उसके लिए आम आदमी और उसके मुद्दे उसके सवाल कोई मायने नहीं रखेते है | जब सरकारे अपने पर आती है तो इसी तरह सत्ता की ताकत का दुरुपयोग करती है | अब अन्ना हजारे फिर से आन्दोलन करने जा रहे है और इस बार सरकार ने पहले ही दर्शा दिया है की उसे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है सरकार से बाहर सरकारी टट्टू लोगों को डराने के लिए ये भी बता रहे है की हर आन्दोलन का वही हाल होगा जो रामदेव के आन्दोलन का हुआ | अब माध्यम वर्ग को पता है की इस बार पहले वाली बात नहीं है इस बार यदि बाहर निकले तो पुलिसिया ज्यादती का शिकार भी होना होगा और डंडे खाने की नौबत भी आ सकती है |
बेचारा माध्यम वर्ग भी क्या करे वो शुरू से ही डरपोक रहा है उसे खुद के कामने खाने और इज्जत की दुहाई दे कर चुप रहने और दूसरो को भी चुप रहने की सलाह देने की आदत है और सरकार ने भी उसकी इसी आदत का खूब फायदा उठाया और उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया | अब वो खुद को दिलासा भी दे रहा है की उसने तो आन्दोलन को सफल बना दिया था और सरकार से अपनी बात भी मनवा ली थी अब वहा गए लोग अपनी बात नहीं मनवा सके तो हम क्या कर सकते है | इस बात को अन्ना हजारे की टीम भी अच्छे से समझ रही है इसलिए पहले कोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई की उसके आन्दोलन में सरकार वो सब ना कर सके जो रामदेव के आन्दोलन में किया ताकि लोगो में कुछ विश्वास पैदा हो लोगो का डर कम हो साथ ही अब जगह जगह जा कर लोगो को फिर से जोड़ने का प्रयास भी किया जा रहा है जो पहले इस तरह नहीं किया गया था | पर दूसरी तरफ सरकार और उनकी टीम भी लोगो को डराने के लिए उन्हें हतोस्साहित करने के लिए रोज नये नये बयान जारी कर रही है कभी ये कहती है की उनके आन्दोलन का भी वही हाल होगा जो रामदेव का हुआ, कभी कहती है की करते रहे आन्दोलन हमें कोई चिंता नहीं है, तो कभी कानून व्यवस्था प्रशासन का नाम लेकर जंतर मंतर पर अनशन की इजाजत ही नहीं दे रही है | किन्तु अन्ना की टीम भी लगी है सरकार से दो दो हाथ करने के लिए |
कोई भी क्रांति बड़ा बदलाव या सरकार से उसकी मर्जी के खिलाफ उससे कोई काम करवाना आसान नहीं होता है और ये काम दो या चार दिन में संभव नहीं है इसके लिए पूरे समाज को उठ कर आगे आना होता है और एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ती है और कई बार सरकारी ज्यादती का शिकार भी होना पड़ता है | जब कोई समाज इन सब के लिए तैयार होगा तभी वो किसी बदलाव को क्रांति को ला सकता है , नहीं तो छोटे छोटे आन्दोलन विरोधो को सरकारे कभी तव्वजो नहीं देती है और नहीं किसी खास व्यक्ति समूह की सुनती है ,अन्ना तो गाँधीवादी भर है आज के समय में स्वयम गाँधी जी भी आ कर अकेले सरकार से कुछ कहते तो वो उन्हें भी बरगलाने के सिवा कुछ नहीं करती | अब तो १६ अगस्त के बाद ही पता चलेगा की परम्परागत भारतीय माध्यम वर्ग किसी बदलाव को लाने को तैयार है की नहीं , उसमे क्रांति लाने की ताकत है की नहीं , उसने अपने डरपोक प्रकृति को छोड़ा है की नहीं |
waiting
ReplyDeleteपता नहीं , इस पोस्ट पर आने वाली टिप्पणियों का इन्तजार है
ReplyDeleteमुझे तो लगता है नहीं, क्योंकि ये मध्यवर्ग भी किसी न किसी तरीके से इस भ्रष्टाचार में शामिल ही रहता है।
ReplyDelete------
ब्लॉग के लिए ज़रूरी चीजें!
क्या भारतीयों तक पहुँचेगी यह नई चेतना ?
हम भी कर रहे हैं इन्तजार !
ReplyDeleteBhrasht Janta kaise bhrashtachaar ke viruddh andolan karegi???
ReplyDeleteprateeksha hai.....
ReplyDeleteडरपोक तो हमेशा घर में दुबका रहता है।
ReplyDeleteसरकार से बाहर सरकारी टट्टू लोगों को डराने के लिए ये भी बता रहे है की हर आन्दोलन का वही हाल होगा जो रामदेव के आन्दोलन का हुआ | अब मध्यम वर्ग को पता है की इस बार पहले वाली बात नहीं है इस बार यदि बाहर निकले तो पुलिसिया ज्यादती का शिकार भी होना होगा और डंडे खाने की नौबत भी आ सकती है |
ReplyDeleteआपकी चिंताएं जायज हैं, पर ये मत भूलिये कि सारा दारोमदार मध्यम वर्ग पर ही है, एक और तबका भी है जो किसी वर्ग में नही आता और इस बिना वर्ग के तबके के मुठ्ठी भर लोग वो काम कर जायेंगे कि इतिहास उन्हें याद रखेगा. अब आप ये मान लिजिये कि पानी सर से ऊपर जा चुका है और विज्ञान सम्मत बात यह है कि पानी के अंदर सर डालकर आक्सीजन के सहारे कोई कब तक जिंदा रहेगा? आखिर आक्सीजन सिलेंडर की क्षमता होती है.
रामराम
अंशुमाला जी!
ReplyDeleteआपके प्रश्न के उत्तर के पूर्व एक सच्ची घटना बताना चाहूँगा.. इलाहाबाद में हमारी कॉलोनी में एक बूढा पागल आदमी हर आने जाने वाले को रोक कर पूछता था कि मेरे बेटे को देखा है तुमने. कल तक वही इंसान रेलवे की नौकरी करता था. उसका बेटा ऐसे ही एक आंदोलन में भाग लेने गया था जिसका आह्वान करने वाले नेता "बंदी" बना लिए गए थी आंदोलन की जगह से ३०० कि.मी. दूर बिलकुल हिफाज़त के साथ.. आंदोलन समाप्त हुआ और वो लड़का जो बूढ़े बाप की लाठी था, कभी लौट के नहीं आया!
मैंने अन्ना का जमकर समर्थन किया और करता हूँ.. उनके पिछले अभियान को हर दिन कवर किया. लेकिन क्या इस बात का जवाब दिल पर हाथ रखकर कोइ दे पाएगा कि मैं आंदोलन में भाग लेने जाऊं और मेरी पत्नी सारी उम्र माथे पर बिंदी सजाये मेरी राह देखती रहे!! सवाल स्वार्थपूर्ण है, मगर कटु है!! और ये भी जानता हूँ कि यह कायरता है और हल भी नहीं!!
ताऊ आखिर आम आदमी तभी होश में क्यों आता है जब पानी सर के ऊपर चला जाता है यदि उसके पहले ही ये सब होने से रोक ले तो उसका भी भला होगा |
ReplyDeleteसलिल जी
आप से सहमत हूँ की जान है तो जहान है इस आन्दोलन में किसी को कुछ गंभीर हो जाये तो ये बड़ा ही दुखद होगा किन्तु आम आदमी तो एक लाठी क्या पुलिस का धकियाया जाना भी बर्दास्त नहीं कर सकता और बदलाव की चाहत रखता है | फिर सरकार की धमकियों से डर कर कुछ होने के पहले ही मैदान में ना उतरना तो सरकारों को और भी निरंकुश बना देगी उनका हौसला तो और बढ़ जायेगा फिर उसका क्या करेंगे ? फिर माध्यम वर्ग की समझ और चीजो की जानकारी कब काम आयेगी क्या सरकार अन्ना के साथ जुड़े पढ़े लिखे समझदार माध्यम वर्ग के साथ वही कर सकती है जो उसने बाबा के समर्थको के साथ किया ?
आपकी पोस्ट झकझोर रही है।
ReplyDeleteमुझे दो बातें कहनी हैं-
ReplyDeleteपहली तो यह कि मुझे लगता है अन्ना और उनकी टीम मध्यमवर्ग का ही 'प्रतिनिधित्व' कर रही है। इसलिए भारतीय मध्यवर्ग को डरपोक कहना एक तरह से उनका अपमान करना ही है।
दूसरी बात सरकार ने एक बिल संसद में पेश किया है,वह क्या है और उस पर संसद में बैठे हमारे 'प्रतिनिधि' किस तरह विचार करते हैं यह देखना चाहिए।
कुछ नहीं होने वाला ...... अन्ना भी खुद ही उलझ गए हैं की क्या करें और क्या नहीं......
ReplyDeleteयह बात सोहल आने सत्य है कि भारतीय जनमानस इतना साहसी नहीं है, और यह भी सत्य है कि वह डरा हुआ है। कांग्रेस की कुटनीति का शिकार भी आम जनता होने लगी है। लेकिन जनता की आवाज कभी भी दबायी नहीं जा सकती। हो सकता है आज आंदोलन सफल ना हो लेकिन एक बात जनता के समक्ष आ गयी है कि इस देश में दो कानून हैं एक जनता के लिए और दूसरा राजा अर्थात राजनेता और नौकरशाही के लिए। अभी तक तो जनता भ्रम में जी रही थी कि सभी के लिए कानून समान है। अंकुर फूट गया है, कभी न कभी पेड़ बनेगा ही। सरकार भूल गयी है कि यह लोकतंत्र है राजाशाही नहीं कि हमेशा की लिए जनता ने इन्हें पट्टा लिख दिया है। आज सरकार नहीं चेती तो दो साल बाद परिवर्तन होगा।
ReplyDeleteमध्यम वर्ग की बात का उत्तर तो सलिल जी की टिप्पणी में है, निम्न वर्ग बेचारा दो जून की रोटी का जुगाड करे या परिवर्तन की बात? रह गया उच्च वर्ग तो वह आटे में घाटा क्यों उठाये? बाबा नागार्जुन के शब्दों में - बाकी रह गया अण्डा!
ReplyDeleteपढ़ी लिखी जनता तो सिर्फ अपना गुस्सा कंप्यूटर और ब्लॉग पर दिखा सकती हैं, क्योंकि वो मध्यम हैं, अपना भला और बुरा सोच सकती हैं, कि पुलिश के डंडे से घायल हो जाने के बाद उसके घर का खर्च कौन उठाएगा. दंगे कि चपेट में आ करके अपनी जान क्यों गवाई जाये. उस से अच्छा हैं दूर रहो.
ReplyDeleteलेकिन गरीब तबके के लोग सिर्फ उतना ही कमा पाते हैं जितना कि पेट भर सके. दंगे में मारे गये तो मुआवजा मिल जायेगा. भीड़ बढ़ाने के लिए सबसे पहले येही वर्ग आता हैं, चाहे किसी नेता का समर्थन हो या विरोध.
अग्रेजो ने देश छोड़ा , लेकिन उस समय सिर्फ गरीब वर्ग ही नहीं बल्कि समाज के सभी वर्गों ने साथ दिया. जब तक सभी वर्ग के लोग आगे नहीं आयेंगे तब तक कुछ नहीं होगा.
कांग्रेस का हाल गब्बर वाला हो गया है...
ReplyDeleteशोले का एक डॉयलॉग था...याद रखो अगर तुम्हें गब्बर के ताप से कोई बचा सकता है तो वो है खुद गब्बर...
गब्बर की तरह ही कांग्रेस को उसका दंभ ले डूबेगा...आज नहीं तो कल...मेरी इस बात को अंडरलाइन कर लें...
कांग्रेस इसी तरह अभिमानी बनी रही तो जनता किसी दूसरी पार्टी को जिताने के लिए नहीं कांग्रेस को हराने के लिए वोट करेगी...
(अन्ना और रामदेव की तुलना बेमानी है, अन्ना के आंदोलन को सरकार से भी ज़्यादा नुकसान रामदेव ने पहुंचाया है, ये मेरी निजी राय है)
जय हिंद...
जनता सामने आये न आये अगले चुनाव में दूध का दूध और पानी का पानी कर देगी .राम देव और अन्ना जी समादर्नीय हैं सबके लिए .संतों के सम्मान बनके , उनसे मार्ग दार्शन लेने की इस देश में परम्परा रही है जहां चुनाव अभियान मंदिरों से शुरु होता है वहां संतों और अन्नाओं का अपमान चुनावी वोट मिसायल बन उभरेगा सरकारी बिजूकों के खिलाफ चिरकुटों के खिलाफ जो मंत्री और प्रधान -मंत्री कहलातें हैं .आप निराश न होवें .http://veerubhai1947.blogspot.com/
ReplyDeleteसोमवार, ८ अगस्त २०११
What the Yuck: Can PMS change your boob size?
@ राजेश जी
ReplyDeleteयही तो मै कह रही हूं वो हमारा प्रतिनिधित्व कर रहे है वो हम सब के लिए ही लड़ रहे है किन्तु हम सब उनका कितना साथ दे पा रहे है या देना चाह रहे है | दूसरी बात संसद से क्या उम्मीद करे वहा तो सब चोर चोर मौसेरे भाई है जब बिल ही सही नहीं रखा गया है तो बहस भी आधी अधूरी बात पर ही होगा |
@ अजित जी
दो साल बाद जो आएंगे तो क्या वो हमारी बाते उन लेगे क्या वो एक सही लोकपाल बिल ला देंगे वो तो बस हमरी दी ताकत का फिर से पाने लिए फायदा उठाएंगे |
@ अनुराग जी
इसीलिए तो माध्यम वर्ग को ही आगे आना होगा ये लड़ाई उसी की है |
@ तारकेश्वर गिरी जी
ये सही है की सभी को आगे आना होगा किसी भी बदलाव के लिए पर बात जिस मुद्दे पर हो रही है वहा तो माध्यम वर्ग को ही आना होगा | आप ने गरीबो की जान की कीमत क्यों लगा दी उसके परिवार के लिए भी वो उतना ही कीमती है जितना की हमारे घर के लिए हम है जब हम डंडे नहीं खा सकते तो गरीब को क्यों कहे खाने के लिए सब अपने अपने घर सुरक्षित बैठे रहे |
@ खुशदीप जी
ReplyDeleteसहमत हूं की सरकार आज ना मानी तो नतीजा चुनाव में देख लेगी किन्तु क्या तब तक जनता को ये सब याद होगा क्या तब वोट देते समय लोग राजनितिक दलों की चुनावी गणित में नहीं फसेंगे |
रामदेव और अन्ना के आन्दोलन में कोई समनाता नहीं है सहमत हूं मै भी यही कह रही हूं की सरकार ने तो जनबुझा कर वो आन्दोलन होने दिया ताकि वो एक छोटे आन्दोलन से एक बड़े आन्दोलन को डरा सके दूसरे उस आन्दोलन को भी बड़ा ना बनने देने के लिए भी उसने जनबुझा कर उसे सांप्रदायिक घोषित किया ताकि ज्यादा लोग उससे ना जुड़े | मै मानती हूं की सिर्फ भगवा पहन लेने से कोई सांप्रदायिक नहीं हो जाता है |
अंशुमाला जी,मुझे तो लगता है चार जून वाली कार्रवाही से लोगों में डर नहीं बल्कि सरकार के खिलाफ गुस्सा ज्यादा पनपा था.लेकिन इसके बाद रामदेव का जल्दी टूट जाना लोगों का मनोबल तोड गया.वैसे भी भारतीय जनता संतों में बहुत विश्वास रखती है.रही सही कसर बालकृष्ण प्रकरण ने पूरी कर दी.भ्रष्टाचार व सरकार के खिलाफ माहौल को बरकरार रखने में मीडिया भी असफल रहा.जनता के आक्रोश को बढावा देने के बजाए मीडिया ने अन्ना को ही घेरना शुरु कर दिया अब तो अन्ना भी थके हुए लग रहे है.भारतीयों में व्यक्ति पूजा की प्रवृति भी होती है.जो व्यक्ति उन्हें लीड कर रहा होता है उसे वो भगवाग मानकर उनमें श्रद्धा सी रखने लगते है.और इसीकी वजह से प्रतिकूल परिस्थितियों में भी साथ देने आ ही जाते हैं इसके अलावा भ्रष्टाचार और महँगाई से परेशानी तो एक वजह है ही.लाठी खाकर भी विरोध करने की पूर्व में भी छोटी बडी मिसालें रही है पर इसके लिऐ जनता की भावनाओं में उबाल लाना पडता है लेकिन अभी ये काम न लीडर कर पा रहे हैं न मीडिया.पर फिर भी मुझे लगता है आने वाला समय सरकार के लिऐ कठिन होने वाला है.अंशुमाला जी,मुझे तो लगता है चार जून वाली कार्रवाही से लोगों में डर नहीं बल्कि सरकार के खिलाफ गुस्सा ज्यादा पनपा था.लेकिन इसके बाद रामदेव का जल्दी टूट जाना लोगों का मनोबल तोड गया.वैसे भी भारतीय जनता संतों में बहुत विश्वास रखती है.रही सही कसर बालकृष्ण प्रकरण ने पूरी कर दी.भ्रष्टाचार व सरकार के खिलाफ माहौल को बरकरार रखने में मीडिया भी असफल रहा.जनता के आक्रोश को बढावा देने के बजाए मीडिया ने अन्ना को ही घेरना शुरु कर दिया अब तो अन्ना भी थके हुए लग रहे है.भारतीयों में व्यक्ति पूजा की प्रवृति भी होती है.जो व्यक्ति उन्हें लीड कर रहा होता है उसे वो भगवाग मानकर उनमें श्रद्धा सी रखने लगते है.और इसीकी वजह से प्रतिकूल परिस्थितियों में भी साथ देने आ ही जाते हैं इसके अलावा भ्रष्टाचार और महँगाई से परेशानी तो एक वजह है ही.लाठी खाकर भी विरोध करने की पूर्व में भी छोटी बडी मिसालें रही है पर इसके लिऐ जनता की भावनाओं में उबाल लाना पडता है लेकिन अभी ये काम न लीडर कर पा रहे हैं न मीडिया.पर फिर भी मुझे लगता है आने वाला समय सरकार के लिऐ कठिन होने वाला है.
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ReplyDeleteछोटे-मोटे समूहों के समर्थन से इस आन्दोलन को कोई दिशा नहीं मिल पाएगी...जबतक व्यापक जन-समूह ना उमड़ पड़े....पर मध्यम वर्ग अपनी छोटी-छोटी जरूरतों की आपूर्ति में ही इतना उलझा हुआ है...कि इस आन्दोलन में कितना भाग ले पायेगा...कहा नहीं जा सकता..
ReplyDelete@ राजन जी
ReplyDeleteरामदेव के टूटने से मुझे नहीं लगता की ज्यादा फर्क पड़ा है उससे ज्यादा तो पुलिस के डंडे का पड़ा है फिर मीडिया को क्या दोष देना वो जनहित का काम थोड़े ही करने के लिए बैठी है |
अंशुमाला जी आम आदमी के मन में रामदेव की जो छवि है उसे ध्यान में रखकर मैंने कहा था.ऐसे बाबाओं या बाबा टाईप के लोगों को जनता किसी अवतारी पुरुष से कम नहीं समझती.उनके समर्थन में जुटने वाली भीड ऐसी ही थी.बाबा रामदेव ने अपनी लच्छेदार बातों से एक दिन में ही ऐसा माहौल बना दिया मानो कोई अभूतपूर्व क्रांति होने वाली है जिसके लिए अन्ना को चार गुना ज्यादा मेहनत करनी पडी थी.खुद सरकार भी वहाँ बढती भीड को देखकर घबरा गई.इसलिए रातोंरात ये कार्रवाही की गई.लेकिन लोगों के बीच निराशा तब फैली जब बाबा का अनशन समय से पहले टूट गया जबकि लोगों को लग रहा था कि वो सरकार को झुकाकर रहेंगे.इसलिए एक निराशावादी माहौल बन गया था लोगों को लगा कि अब वो कुछ भी करके सरकार पर दबाव नहीं बना सकते.इसके अलावा अन्ना के आंदोलन से आम आदमी के न जुड पाने का एक कारण वो भी है जो रश्मि जी ने बताया.लेकिन डर को मैं इसका कारण नहीं मान पा रहा हूँ वो बिल्कुल अलग चीज है.हाँ लोग थोडे सचेत जरुर हो गये है.अन्ना के साथ दिल्ली जाने वालों में अब शायद पहले की तरह बच्चे और बुजुर्ग नहीं होंगे और लोग रात में घोडे बेचकर नहीं सोएंगे,तो इतना तो होना भी चाहिए.और मीडिया से हम इतनी उम्मीद तो कर ही सकते है कि वो सकारात्मक न सही कम से कम नकारात्मक खबरें व बहस तो न चलाएँ.
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