July 17, 2012

क्या माँ दुर्गा और काली के रूप को आप हिंसक मानते है - - - - - - -mangopeople

                  इस पोस्ट को हिंसा को बढ़ावा देने के रूप में न देखे किन्तु जरुरत पड़ने पर अपनी रक्षा में किसी पर हमला करने को मै हिंसा नहीं मानती हूँ |
                                    कबीर दास अपने एक दोहे में कहते है की दुनिया की सोच बड़ी उलटी होती है जो घटनी है उसे बढ़नी कहती है और जो चलती है उसे गाड़ी | मै इससे बिलकुल सहमत हूँ इसलिए पिछली पोस्ट उलटी लिखी थी ताकि लोग सीधी बात को समझ सके किन्तु लोगो की सोच भी बड़ी अजीब होती है, वो मान कर चलते है की सोचेंगे समझेंगे तो हम वही जो हम चाहते है आप चाहे सीधा लिखे या उलटा , सो आज सीधी बात करते है | आज भी बात  गुवाहाटी कांड की करुँगी पिछली पोस्ट पर ही उसे जारी लिखा था जान रही थी की हम किसी भी प्रकार से इस तरह की घटनाओ का विरोध करे किन्तु समाज में एक जो पुरुवादी सोच  ( पुरुषवादी सोच जब लिख जाता है तो बात बस पुरुष की नहीं पूरे समाज की होती है जिसमे हर वर्ग और लिंग के लोग शामिल है )  है हम उसे नहीं बदल सकते है  इसलिए जरुरी है की हम लड़कियों की सुरक्षा के लिए उठाये जा रहे कदमो की भी बात करे | ( अब ठीक है ना संजय जी )  पहले उन कदमो की बात करते है जो आम तौर पर एक परम्परावादी समाज किसी लड़की की सुरक्षा के लिए चाहता है | रात में आप घर से बाहर न निकालिये , सुन शान इलाको में आप मत जाइये , ऐसी जगहों पर आप कभी भी अकेले न जाये भरोसेमंद पुरुष को साथ रखे , इस तरह के कपडे न पहने जो लड़को को भड़काऊ लगे उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित करे , ( यदि मुझेसे कोई उपाय छुट गये हो तो याद दिला दे ) किन्तु ये उपाय भी कारगर नहीं है क्योकि  इस तरह की घटाने दिन के उजाले में भी होती है , लड़कियों को राह चलते रास्ते में गाड़ी में खीच लेना , या मुंबई में बिलकुल एक व्यस्त सड़क के बीच बने पुलिस केबिन में पुलिस वाले द्वारा बलत्कार जैसी घटनाओ के बारे में सभी ने सुना होगा | भीड़ भाड़ इलाको में तो और भी ज्यादा छेड़छाड़ की घटनाये होती है बसों में ट्रेनों में भीड़ भरे बाजार में  , पुरुषो को साथ रहने से कोई फायदा होगा कह नहीं सकते कुछ महीने पहले इस तरह की ही एक घटना में दो लडकिय अपने पुरुष मित्रो के साथ रात में घूम रही थी कुछ लोगो ने उन्हें छेड़ने लगे , उनके पुरुष मित्रो ने उसका विरोध किया तो वो और साथी ले आये और उन दोनों लड़को पर हमला कर दिया जिसमे से एक लडके की मौत हो गई और दूसरे की बड़ी मुश्किल से जान बची , इस तरह की घटनाये हर तरह की महिलाओ के साथ होता है चाहे उसने सलवार कमीज पहन रखी हो साड़ी पहनी हो या बुर्के में ही क्यों न हो सभी जगह होती है , कई बार हमें सुना है की गांवो में दबंगों ने महिला को निर्वस्त्र कर घुमाया , मुझे नहीं लगता है की उसने कोई भड़काऊ कपडे पहन रखे हो वहा भी वही महिला को अपमानित करने का सबसे आसान तरीका अपनाया जाता है उसे इस तरह सार्वजनिक जगहों पर निर्वस्त्र करना |  ये सभव नहीं है की लड़किया घर से बाहर निकले ही नहीं स्कुल कालेज बहुत सी जरुरी जगहों के लिए उन्हें हर हाल में घर से तो निकलना ही पड़ेगा | हा यदि आप इन कारणों से भी लड़की को घर से नहीं निकलना देना चाहते है तो उसके आगे मै कुछ नहीं कह सकती हूँ |  इसलिए जरुरी है की लड़कियों को इतना शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाया जाये की वो किसी अन्य से मदद मांगने और ऐसा कर रहे दुष्टों से माँ बहन की दुहाई देने की जगह खुद ऐसी परिस्थितयो से निपट सके कुछ हद तक उसे रोक सके उसका सामना कर सके |
                                                                                                    शारीरिक रूपों से लड़कियों को मजबूत बनाने के साथ साथ जरुरी है की लड़कियों को मानसिक रूप से भी मजबूत बनाया जाये | हम जिस देश में रहते है वहा नारी के साथ एक पवित्रता वाला कांसेप्ट चलता है मतलब की आप का शारीर ही आप का सब कुछ है किसी ने गलत इरादे से आप पर हाथ भी रख दिया तो आप अपवित्र हो जाएँगी | अब आप कहेंगे की इसमे क्या गलत है क्या हम किसी को भी कही भी हाथ लगाने दे | जो लड़किया है नारी है वो इस बात को अच्छे से जानती है जो नहीं है उनके लिए बताते है पहली बात की लड़कियों को उनके शारीर को ले कर इतना संवेदनशील बना दिया जाता है और समाज में तुम्हारे साथ ये हो सकता है वो हो सकता हा जैसी चीजो से इतना डरा दिया जाता है की किसी ने जरा सा गलत हाथ लगाया नहीं या कुछ भद्दी टिपण्णी की नहीं कि उनकी हिम्मत जवाब दे जाती है ,शरीर डर से कापने लगता है दिमाग काम करना बंद कर देता है , मन में विरोध की जगह डर की भावना घर कर जाती है,  इसने मुझे गलत छू लिया या अब ये मेरे साथ और गलत कर देगा , अब मै घर वालो को क्या बताउंगी ,  इस मानसिक स्थिति में तो कोई भी इन्सान सामने वाले का मुकाबला नहीं कर सकता है फिर किसी लड़की से क्या उम्मीद करे जो शारीरिक रूप से ज्यादातर ऐसा करने वालो से कमजोर होती है | हालत ये है की पुरुष क्या किसी महिला का भी मुकाबला करने की हालत में कई बार लड़किया नहीं होती है | महीने भर पहले की बात है लोकल ट्रेन से जा रही थी भीड़ कम थी और मेरा स्टेशन आने वाला था मै दरवाजे पर ही खड़ी थी साथ में कोई १४-१५ साल की चार लड़किया भी खड़ी थी शायद टियुशन जा रही थी उनके कंधो पर बैग था,  दो मेरे आगे थी तभी पीछे से खड़ी एक लड़की ने शरारत में धीरे से मेरे बगल से हाथ डाला और आगे खड़ी लड़की के कंधे पर थपकी दे झट हाथ पीछे कर लिया आगे वाली लड़की मुड़ी और मुझे देखने लगी मैंने  कुछ नहीं कहा उसने कुछ सेकेण्ड के लिए मुझे देखा और मारे डर के मम्मी मम्मी करने लगी उसका चेहरा बिलकुल डर गया और वो कस कर अपने बगल में खड़ी सहेली से लिपट गई, मुझे देख कर आश्चर्य हुआ की वो किस बात से डर रही है | मैंने कहा तुम क्यों डर रही हो उसकी सहेली ने भी पूछ तो उसने मराठी में कहा की इन्होने मुझे कंधे पर थपकी दी पीछे खड़ी उसकी सहेलियों ने हंसते हुए कहा की अरे वो तो मैंने किया था , मैंने उससे कहा की इसमे डरने की क्या बात है यदि मैंने ही तुमको थपकी दी उसकी सहेलिय भी इस बात पर उसे चिढाने लगी इतने में मेरा स्टेशन आ गया और मै उतर गई | मुझे आश्चर्य हो रह था की एक लड़की किसी महिला के थपकी देने भर से इतना डर जा रही है यदि मेरी जगह कोई पुरुष होता तो इसकी क्या हालत होती | विश्वास कीजिये हमारे देश की ज्यादातर आम लड़किया इस तरह की ही डरपोक होती है , हम उन्हें डरपोक बना देते है वो कई बार सामान्य सी परिस्थिति का भी का सामना नहीं कर पाती है तो किसी मुश्लिक परिस्थिति का क्या करेंगी | लड़को से दूर रहो वो ऐसे होते है वो वैसे होते है वो कुछ भी करेंगे तो उनका तो कुछ नहीं बिगड़ेगा हा तुम्हारी बेइज्जती जरुर हो जाएगी जैसी बात उन्हें लड़को से हर समय डरने की प्रेरणा दे देते है | फिर जब कभी भी उनके सामने इस तरह की घटना होती है तो वो पहले ही मान लेती है की वो मुकाबला कर ही नहीं सकती है वो उसे रोक नहीं सकती है अब ये सामने वाले के ऊपर है की वो हमारे साथ क्या करेगा
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                                                                              दूसरी बात है घर की इज्जत वाली, गुवाहाटी कांड हो या इस तरह का कोई अन्य कांड में मैंने देखा की लड़की उन लड़को से मुकाबला करने की जगह बस अपना चेहरा कैमरे में दिखाए जाने से बचाती है ,  वही दुनिया ने चेहरा देख लिया की तुम्हरे साथ क्या हुआ है तो तुम्हारा क्या होगा तुम्हारे माँ बाप की इज्जत चली जाएगी इसलिए जरुरी है की अपना चेहरा न दिखाओ भले तुम्हारे साथ कुछ भी हो जाये अपनी पहचान छुपाओ न की उनसे कोई मुकाबला करो पहली प्राथमिकता तुम्हारी यही है | ये ठीक है की इस तरह किसी भीड़ से एक अकेली लड़की का मुकाबला करना बड़ा मुस्किल काम है किन्तु बिलकुल ही आत्म समर्पण कर देना भी ठीक नहीं है | हम सदा अपनी बेटियों को शांत शौम्या नजरे नीचे कर सह कर घर चले आने की शिक्षा देते है | हम कभी उन्हें ये नहीं कहते है की किसी भी संकट के समय में जरुरत पड़े तो अपनी रक्षा में हमला करने से मत चुको,  हम कभी भी उनमे ये विश्वास क्यों नहीं पैदा करते है की वो स्वयं भी किसी घटना से निपटने में सक्षम है कम से कम किसी अपने या मददगार के आने तक उस घटना का सामना कर सकती है उसे रोक सकती है उसका मुकाबला कर सकती है और ये सब करके वो कुछ भी गलत नहीं कर रही है और उनका परिवार उनके खुद की रक्षा के लिए उठाये गये किसी भी कदमे उनके साथ है | इसलिए जरुरी है की लड़कियों को ऐसी घटनाओ के बाद ये न बताये की देखो ऐसे कपडे पहनने से ऐसे रात में निकालने से या इस जगह जाने से तुम्हारे साथ ये हो सकता है , ये कह कर उन्हें डराए नहीं उन्हें डरपोक न बनाये बल्कि उनमे विश्वास पैदा करे उससे  ये कहे की ऐसी स्थिति आने पर कभी भी डरो मत मुकाबला करो , जरुरत पड़ने पर हमला करो , क्योकि इस भीड़ में ज्यादातर भीड़ बहादुर होते है जो भीड़ की शक्ल में तो बड़े बहादुर बनते है किन्तु अकेले में इनकी इतनी हिम्मत भी नहीं होती है की वो एक चूहे को भी मार सके,  ज्यादातर बन्दर घुड़की दने वाले होते है जो सामने वाले ही हिम्मत जांचते है यदि आप पीछे जाते  तो उनकी हिम्मत बढ़ती है और जब आप हिम्मत से आगे बढ़ते है तो वो पीछे हट जाते है | मानसिक रूप से मजबूर बने घबराए या हडबडाये नहीं हर किसी के पास मोबाईल होता है तुरंत पुलिस को या जो सबसे करीब है उसे कॉल करके बुलाये और जरुरत पड़े तो अपनी आत्म रक्षा में तुरंत हमला बोल दे ( जब आप के पास वहा से भाग जाने का विकल्प न हो तब , जब आप ऐसे लोगो से घिर जाये तब )   किसी पर भी जो भी आप के हाथ में आये उसी से ऐसे समय पर हमला कर दे  आप का पर्स,  पेन, बालो के काटे से लेकर सड़क पर पड़ा पत्थर भी आप का हथियार बन सकता है | जब मै छोटी थी तो मेरे चाचा हम लोगो से एक बात बोलते थे (सभी के लिए)  की जब कभी भी कई लोग तुम पर हमला करे तो सभी से मुकाबला करने की जगह थोडा ध्यान दो और उनमे से जो सबसे कमजोर या डरपोक दिखे बस उसे पकड़ो और बेतहाशा धोना शुरू कर दो,  यहाँ पर सभी आप की ताकत देखना चाहते है पर ये नहीं देखते है की ताकत किसके खिलाफ प्रयोग किया जा रहा है उस कमजोर को जब आप बिना दाये बाये देखे कही भी पिटते है तो वो आप से डरता है और उस समय आप ताकतवर दिखते हो और ऐसे भीड़ के साथ बहादुरी दिखाने वाले डर जाते है और फिर उन्हें समझ में आता है की उसके बाद उनका नंबर भी लग सकता है ( आप ने देखा होगा दो चार मजनू लड़कियों को छेड़ते है जैसे ही लड़की पलट कर किसी एक को पकड़ती है बाकि वहा से भाग जाने में ही अपनी भलाई समझते है तब तो और भी जब लड़किया भी झुण्ड में हो )
                          
                           यहाँ पर शारीरिक मजबूती के साथ ही मानसिक मजबूती काम आती है जब आप इस बात की परवाह न करे की आप को कौन कहा मार रहा है पिट रहा है या आप के किस अंग को छू रहा है तो आप उस स्थिति से मुकाबला करने के लिए ज्यादा तैयार होते है | किन्तु होता क्या है की लड़किया कुछ भी हो जाये मुकाबला करने की जगह अपने चहरे या नीजि अंगो को छुए जाने से बचाने में लगी होती है जबकि ऐसा करने वाला आप के साथ ये करने की जिद पर आ जाये तो आप उसे बहुत मुश्लिक से ही रोक पाएंगी और जब वो भीड़ की शक्ल में हो तो शायद ये आप के लिए नामुमकिन हो जाता है , अच्छा हो अपने दोनों हाथो का प्रयोग उस पर हमला करने उसे पीटने में लगाये क्योकि दोनो ही स्थिति में आप अपने आप को छुए जाने को रोक नहीं सकती है जब आप मुकाबला नहीं करेंगी तो ये सब आप के साथ तब तक होता रहेगा जब तक वो चाहेंगे या जब तक कोई अन्य आप को आ कर वहा न बचाए जबकि जब आप मुकाबला करेंगी तो आप जल्दी से उस बुरी स्थिति से बाहर आ सकती है  | मुकाबला करने के लिए जरुरी ये भी है की हम पहले से ही अपनी बेटियों को कोमलान्गनी बनाने के बजाये थोडा शारीरिक रूप से भी मजबूत बनाये उन्हें अपनी सुरक्षा के आत्म रक्षा ट्रेनिग भी दिलवा दे बिलकुल वैसे ही जैसे आज भी लाखो लोग अपने बेटियों के पढ़ाने लिखाने से  लेकर सिलाई कटाई के स्कुलो में भेज देते है ताकि बुरे समय में काम आये | तो फिर किसी ऐसी संकट में अपनी रक्षा करने की ट्रेनिग क्यों न उन्हें दी जाये वो उसका कितना प्रयोग करती है या नहीं ये तो बाद की बात है किन्तु ऐसी कोई भी प्रशिक्षण उनमे आत्म विश्वास तो पैदा कर ही देगा | ये कभी न सोचे की आप के साथ या आप के घर की महिलाओ के साथ ये नहीं हो सकता है इस तरह की घटाने या इससे मिलती जुलती घटाने कभी भी कही भी किसी के साथ भी हो सकता है इसलिए ऐसे प्रशिक्षण केवल बेटियों के लिए नहीं उनकी माँ को भी दिया जाना चाहिए ( जब मै १२ वि में थी तो मै ताई- क्वांडू सीखती थी हमारे साथ एक १२ साल की लड़की और उसकी माँ भी सीखने आती थी )  जरुरी नहीं है की ये छेड़ छड कर रहे व्यक्ति के ऊपर ही काम आये चेन, पर्स खीच कर भाग रहे उच्चके को या घर में घुसे लुटेरे से बचने के भी काम आ सकता है आप हर समय अपने घर की महिलाओ के साथ उनकी सुरक्षा के लिए मौजूद नहीं हो सकते है | ये जरुरी नहीं है की इतना कुछ सीखने के बाद भी आप सुरक्षित हो ही जाएँगी किन्तु जितने उपायों से हम अपनी रक्षा कर सकते है उतनी तो हमें सिख ही लेनी चाहिए संभव है की आप से साथ घटी हटाना में अपराधी के पास कोई खतरनाक हथियार हो और आप कुछ न कर सके | जब लोग हथिहर बंद हो कर हमला करे तो फिर मै यही कह सकती हूँ की तब तो प्रेरणा लेने के लिए हमारे पास दो महिलाए है हरियाणा की है जिन्हें आप सब ने आमिर के शो सत्यमे जयते में देखा होगा, तब तो यही कहूँगी की जब समाज के पुरुषो की हिम्मत इतनी बढ़ जाये तो हम सभी को भी एक आटोमेटिक ............ के लाइसेंस के लिए आवेदन कर देना चाहिए |
बहुत सारे उपाय है इन जैसी घटनाओ से खुद को बचाने के लिए सभी दे , देखिये रश्मि जी ने भी एक उपाय सहशिक्षा का दिया है पता नहीं लडके इससे कितने सुधरेंगे और लड़कियों को समझेंगे पर ये कह सकती हूँ की लड़किया कम से कम लड़को से डरना उन्हें खुद से ज्यादा ताकतवर या काबिल होने की गलतफहमी से जरुर बाहर आजायेगी और किस तरह के लड़को को किस तरह से हैंडल करना है ये तो सिख ही जाएँगी |

चलते चलते

 मै धार्मिक महिला नहीं हूँ इस कारण मै देवी देवताओ को उस रूप में नहीं देखती जीस रूप में कोई अन्य देखता है यही कारण है की मै देवी देवताओ को एक सामाजिक जरुरत के कारण समाज द्वारा बनया गया मानती हूँ | इसी के तहत मै ये भी सोचती हूँ की जब संसार में पहले से ही देवी लक्ष्मी , सरस्वती के रूप में नारी के शांत रूप और सती तथा पार्वती के रूप में शक्ति रूप मौजूद था तो क्या कारण था की देवी दुर्गा का निर्माण किया गया  | संभव है की समाज ने इस बात की जरुरत समझी हो की नारी को और भी शक्तिशाली और थोडा हिंसक रूप में दिखाया जाये जिससे ये बात स्थापित हो सके की समाज की रक्षा या खुद की रक्षा के लिए नारी को अपना शौम्य, शांता ,संस्कारी, अहिंसक रूप त्याग देने की जरुरत महसूस हो तो वो आसानी से ये कर सके और समाज उसे मान्यता दे सके साथ ही बुरे लोग नारी से भी डर सके | फिर ये भी लगता है की जब दुर्गा जी पहले से ही मौजूद थी तो उनसे भी वीभत्स और रक्त पीने वाली काली का निर्माण क्यों किया गया शायद इस रूप में ये दर्शाना था की दुष्टों को जड़ से ख़त्म किया जाये , इस बार तो उनका संहार हो ही किन्तु इस तरह हो की वो दुबारा जन्म ही न ले सके,  दुष्टों दानवों का सम्पूर्ण विनाश करने की शक्ति भी नारी को दी गई शायद कारण ये रहा हो की जन्म देने वाली ही उसे जड़ से ख़त्म कर सकती है , ऐसे दुष्टों का दुबारा जन्म वो ही रोक सकती है साथ की दुर्गा जी के साथ माँ, ममता और दया का जो एक अंश बचा था उसे काली के रूप में बिलकुल भी ख़त्म कर दिया जाये या बहुत कम कर दिया जाये | यही कारण है की कई बार संकट के समय दुष्ट लोगो से खुद को और अपने परिवार को बचाने के लिए नारी से दुर्गा या काली का रूप धारण करने का आवाह्न किया जाता है और इसे कही से भी गलत और हिंसक नहीं माना जाता है | मुझे नहीं लगता है की कोई भी व्यक्ति  दुर्गा या काली के रूप में दानवों दुष्टों के विनाश को और समाज दुनिया को बचाने के लिए किये गये संहार को हिंसक मानता होगा | अब ये समाज को तय करना है की क्या वो हर नारी को दुर्गा या उससे भी वीभत्स काली के रूप में बदलने के लिए मजबूर करे या नहीं | ये एक आम महिला की आम सी नीजि राय और सोच है आप इससे विपरीत विचार भी रख सकते है |

50 comments:

  1. समाधान के रूप में स्त्रियों की शारीरिक और मानसिक मजबूती पर ध्यान देना होगा . बाकी तो मैंने अपनी पोस्ट में लिखा ही है !

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    1. समर्थन के लिए धन्यवाद !

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  2. एक घटना दे रही हूँ
    १९८८ में जब नौकरी कर रही थी लगभग १.५ सफ़र कर के वो भी डी टी सी से ऑफिस पहुचती थी , ऑफिस टाइम पर रश वैसे ही होता हैं . सीट कभी नहीं मिलती थी
    एक दिन एक लड़की जो शायद १६ -१७ साल की थी , खड़ी थी और एक लड़का उसके पीछे था , लड़की ही हाईट से उसकी हाईट इतनी ज्यादा थी उसका मुह सीधा लड़की के बालो और सिर पर था और वो लगातार वहाँ अपने होठ रगड़ रहा था , लड़की आगे पीछे हटने की कोशिश कर रही थी , लेकिन बात वही की वाही
    ४५ सवारी की कैपसिटी वाली बस में ७५ सवारी आम बात होती हैं यानी ७३ देखने वाले और १ ड्राईवर और कंडक्टर भी सब मौन दर्शक
    दो तीन मिनट तक मै सोचती रही की मुझे क्या करना हैं , छोडो , फिर नहीं रहा गया और मैने ड्राइवर से कहा बस थाने की तरफ मोड़ लो . आ ई टी ओ पुल से राईट को ,
    सन्नाटा हो गया एक दम से , ड्राइवर बोला क्यूँ मैडम
    मैने कहा दिखता नहीं हैं ये लड़का उसको तंग कर रहा हैं और ये तुम्हारी ड्यूटी हैं अगर नहीं रोक सकते तो गाड़ी तो वहाँ ले ही चल सकते हो जहाँ मै इसको उतार कर इसकी धुनाई तो करवा ही सकती हूँ
    ड्राईवर के बस घुमाने से पहले ही वो जल्दी से चलती बस से उतर गया
    उस लड़की से मैने कहा तुम को बोलना चाहिये था , वो बस थैंक्स कह कर चुप हो गयी .
    मै भी उस समय २८ साल की ही थी
    हम डर कर कुछ नहीं करसकते और गलत को सह कर तो बिलकुल नहीं
    आज नारी पर ऐसा ही कुछ दिया हैं देख लेना

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    1. हर मामले में मैंने ये बात कही है की जब हम पहली बार में ही विरोध कर देते है तो लोगों की हिम्मत नहीं बढ़ती है किन्तु हमें पहली शिक्षा सहने की दी जाती है |

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    2. रचना जी,
      आपका स्टेंड सही था / सही है !

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  3. जब गुवाहाटी वाला समाचार मैं देख रही थी..तो सोच रही थी ये लड़की किसी लड़के के हाथ पर इतने जोर से दाँत क्यूँ नहीं गड़ा देती कि उसका मांस ही निकल आए...पर फिर सोचा...हमारे लिए अपने ड्राइंग रूम में बैठ कर ऐसा सोचना आसान है...उस लड़की के तो होश गुम होंगे.
    पर अब कैसी भी स्थिति हो...लड़कियों को अपने होशो हवास सलामत रखने होंगें...और ऐसी स्थितियों से निबटने के लिए तैयार रहना होगा. ...
    लडकियाँ 'पेपर स्प्रे'....'आलपीन' रखती हैं अपने पर्स में...पर उनका प्रयोग करने की प्रत्युत्पन्नमति और साहस भी होना चाहिए.
    शारीरिक मजबूती के साथ मानसिक मजबूती भी अनिवार्य है.

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    1. स्प्रे जैसी बहुत सी चीजे बाजार में उपलब्ध है बड़े बूढ़े तो मिर्ची पाउडर रखने की भी सलाह देते है किन्तु इन सब के लिए जरुरी है की लड़किया घबराए नहीं और मानसिक रूप से मजबूत रहे |

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  4. शुक्रिया मेरे पोस्ट का जिक्र करने और उसमे निहित भाव को समझने का.

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    1. मै खुद भी ऐसा ही सोचती हूं |

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  5. बाजये एक दूसरे पर दोषारोपण या आरोप प्रत्यारोप मढ़ने के यदि लोग स्त्रियों की शारीरिक और मानसिक मजबूती पर ध्यान दें और उसे समझ कर अपनी निजी ज़िंदगी में भी स्थान दें तभी कुछ हो सकता है। सहमत हूँ आपकी इस बात से। सार्थक चिंतन एवं विचारणीय आलेख।

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    1. समर्थन के लिए धन्यवाद !

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  6. baat soch ki hain.... agar koi vyakti glass ko aadha khali sochta hain to usse glass aadha khali hi dikhega...or jo aadha bhara sochta hain usse aadha bhara hi dikhega....but bahut kum long hi honge jo sochenge ki..."glass ko aadha bharna baki hain"...

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    1. वाह वाह वाह क्या बात कही है ! वहा नहीं समझ पाई थी, अब समझ में आ गई :)

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  7. अंशु माला जी आप ne एक एक बात सही लिखी है kintu pichhla आलेख aapne jis tarah likha हमें पसंद नहीं आया क्योंकि गंभीर विषय vyangya के नहीं balki seedhe seedhe जवाब के लायक hote हैं .vaise इस आलेख के लिए सभी लड़कियों की ओर से आभार .समझें हम.

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    1. ये पोस्ट पसंद आई धन्यवाद ! उसे व्यंग नहीं सटायर कहते है | ये एक तरह से इस तरह सोचने वालो को बताया जाता है की उनकी सोच कितनी गलत है ऐसा सोचने वालो पर ताने मारे जाते है | आप नेट पर सटायर के सही अर्थो के देखे तो आप को वो गलत नहीं लगेगा |

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  8. Mai'n bhi ladkiyo'n ke sharirik aur mansik taur par mazboot honey ka pakshdhar hoo'n...

    Mardo ki gulami se chhutkara pana avashyak hai...

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    1. धन्यवाद ! सभी ऐसा सोचे तो समस्या ही ख़त्म हो जाये |

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  9. हम सरस्वती के उपासक जरूर हैं... लेकिन कालीचरण या कालीदास कहलाने भी गौरव की अनुभूति करते हैं.

    पूरा आलेख पढ़ा ... समस्या के साथ समाधान भी दिये ... ये बहुत जरूरी है.

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    1. धन्यवाद ! किन्तु ये नहीं बताया की समाधान सही है या गलत |

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    2. shakti ka antim roop 'kali' hi hai......"guruji" ke taraf se hum sahmat ho rahe hain.....


      pranam.

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  10. जरुरत मानसिक तौर पर स्त्रियों को मजबूत करने की है जिससे उनमें सामना करने की हिम्मत तो हो.
    सार्थक आलेख.

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    1. सबसे जरुरी बात यही है की वो सामना करना सीखे |

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  11. Mahilaon ko mansik roopse balwatee ban jane kee zaroorat ye baat to bilkul theek hai.....lekin samajh me nahee aata ki aisee ghatnaon pe upaay kya ho sakta hai....Mahabharat ke zamane se sun rahen hain inke bareme...

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    1. सबसे आसान उपाय है अपनी रक्षा का बीड़ा खुद उठाये किसी और के सहारे ना बैठे रहे इतनी सशक्त बने की किसी की हिम्मत क्या सोच भी ना हो आप की चिर हरण करने की |

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  12. Replies
    1. पुन्य कमाना शुरू कर देना चाहिए अब महिलाओ को |

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  13. विचारणीय हैं ये समाधान .....जो हुआ उससे कहीं ज्यादा इस बात पर विचार करना ज़रूरी है कि अगर आगे कोई किसी के साथ ऐसी हिमाकत करने की सोचे भी तो उसे कड़ा जवाब मिले ..... तभी कुत्सित मानसिकता वाले लोगों को सबक मिलेगा....

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    1. जो कर रहे है उन्हें तो सबक मिलेगा ही जो ऐसा सोच रहे है वो भी डरेंगे |

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  14. बिलकुल ठीक है अंशुमाला जी|
    धार्मिक चरित्रों की तो बात ही छोडिये, एक आम नागरिक को भी सेल्फ डिफेन्स का अधिकार है| अपनी रक्षा के लिए और दूसरों की रक्षा के लिए भी यदि मजबूरी में हिंसा का सहारा लेना पड़े तो वो कोई अपराध या बुरी बात नहीं है, हमारा आपका अधिकार है|
    परम्परागत समाज के द्वारा सुझाए जाने वाले उपाय बेशक लोगों को रुचे नहीं, लेकिन जब तक हम एक सभी और क़ानूनपसंद समाज नहीं बन जाते, अपने स्तर से ये उपाय सावधानी के तौर पर अपनाए जाने चाहिए, मेरा ऐसा मानना है| हर काम में लड़कों की बराबरी करने से कौन सा पुरस्कार मिलता है, मैं नहीं समझ पाया|
    हम सबको, विशेष तौर पर महिलाओं को एक नो-नोंनसेन्स एप्रोच जागृत करनी होगी| कम से कम शहरों में ये सब इतना मुश्किल नहीं है, जहां छेड़खानी जैसी चीजें भी बहुत देखने को मिलती हैं वहीं इसके जवाब में लड़कियों के सशक्त प्रतिरोध के मामले भी दीखते हैं और ऐसे बहुत से मामलों में पहली प्रतिक्रया में ही माफी मांगते और उसी लड़की को माँ-बहन मानते लड़के भी देखे हैं| जहां चुप रहकर प्रश्रय दिया जाता है, वहाँ छिछोरों की हिम्मत बढ़ती ही है|
    अपने आप में कोई एक उपाय सौ प्रतिशत कारगर नहीं है|उदाहरण के लिए डीपीएस MMS स्कैंडल किसी boys only school का रिज़ल्ट नहीं था| बार-हंगामे और rave parties में शिरकत करने वाले सभी boys only schools ke पढ़े हुए नहीं होते| मैं खुद सिर्फ दो साल छोड़कर हमेशा को-एड में पढ़ा हूँ, आज भी किसी स्त्री से मैं एकदम पहली बार में सहज नहीं हो पाता| मेरी बहन की सहेलियां घर में आती थीं तो मैं भी हमेशा वहाँ से इधर उधर खिसक जाया करता था, इसे क्या कहेंगी?
    लड़कियों\महिलाओं को शारीरिक\मानसिक रूप से सशक्त और मजबूत होना ही चाहिए| एक छोटी बच्ची या एक वृद्ध महिला पर यान हमला उसके कपड़ों के कम ज्यादा होने के कारण नहीं होता, इसलिए होता है क्योंकि वो एक आसान शिकार सिद्ध होती है| और जब तक एक असहाय सुरक्षित नहीं है, तब तक दो चार प्रतिशत के बहुत शक्तिशाली होने से कोई क्रान्ति नहीं आने वाली|

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    1. धन्यवाद की आत्मरक्षा के लिए किये हिंसा को आप बुरा नहीं मानते है |
      जो परम्परागत उपाय है उन का ध्यान सभी लड़किया रखती ही है किन्तु जब ये कहा जाये की इन उपायों का कड़ाई से पालन करो मतलब की बाहर ही मत निकालो, तो ये संभव नहीं है | लड़किया रात में अकेले और इस तरह की जगह बस यु ही नहीं जाती है , पर कोई ये कहे की नहीं किसी भी काम के लिए ना जाओ यो गलत है , जिम्मेदार लोगों ने तो महिला पत्रकार के भी रात में बाहर निकलने पर टोक दिया था | हम सभी भी यही कहते है की चुप रह कर सहना कई बार समाधान नहीं होता है समाधान विरोध करना होता है | हा मानती हूं की सहशिक्षा में भी कुछ दूसरी समस्याए है और ये भी सही है की सभी लडके लड़कियों से खुल जाये संभव नहीं है , इसलिए तो मैंने लिखा है की पता नहीं लडके कितने सुधरेंगे किन्तु लड़कियों को कुछ तो फायदा होगा ,वैसे वहा पढ़े लडके उन कुंठाओ से तो भरे नहीं होते होंगे जिसका प्रदर्शन हम कई रूपों में कई बार देखते है | मैंने भी यही कहा है की बेटी ही क्यों माँ को भी आत्मरक्षा के लिए प्रशिक्षण लेना चाहिए |

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    2. सह-शिक्षा की बात मैने अपनी पोस्ट में की थी तो कुछ बातें सपष्ट करनी लाज़मी हैं...मैने कहीं नहीं कहा कि यह उपाय सौ प्रतिशत कारगर है बल्कि यह कहा था कि..."अगर बचपन से ही ये सह शिक्षा वाले स्कूल में पढ़ें तो ऐसे व्यवहारों पर काफी हद तक रोक लग सकती है. " काफी हद तक का आशय शत-प्रतिशत नहीं होता

      डीपीएस MMS स्कैंडल ..जरूर एक को-एड स्कूल में हुआ..पर क्या समाज में और कहीं MMS स्कैंडल नहीं हुए??

      बार-हंगामे और rave parties का ईव-टीजींग या को-एड स्कूल या only girls /boys स्कूल से कोई लेना देना नहीं होता...यह एक बिलकुल अलग तरह की अलग वर्ग की समस्या है.

      मैने यह कहीं नहीं कहा कि को-एड में पढ़ने वाले सारे लड़के सुच्चरित्र और आदर्श होते हैं...और only boys स्कूल में पढ़ने वाले सारे के सारे इव- टीज़र्स ..लेकिन हाँ , जैसा अंशुमाला जी आपने भी कहा..."को-एड में पढ़े लडके उन कुंठाओ से तो भरे नहीं होते होंगे जिसका प्रदर्शन हम कई रूपों में कई बार देखते है"

      समस्याएं तो को-एड स्कूल में भी हँ..और मैने पोस्ट में लिखा भी है..." सह-शिक्षा में थोड़ी बहुत अनचाही घटनाएं भी घट सकती हैं. किशोर होते लड़के/लड़कियों का एक दूसरे के प्रति सहज आकर्षण. पर यह तो बिना को-एड स्कूल में पढ़े भी संभव है. मोहल्ले में...कॉलोनी में भी इतने बंधन के बावजूद प्रेम-कथाएं परवान चढ़ती रहती हैं. वैसे ही को-एड स्कूल में भी इक्का-दुक्का घटनाएं ही ऐसी होती हैं. ऐसा नहीं होता कि को-एड स्कूल के सारे लड़के-लड़की एक दूसरे के प्रेम में पड़ जाते हैं. बल्कि एक दूसरे के प्रति दोस्ताना भाव ज्यादा रहता है. "

      संकोची..अंतरमुखी-बहिर्मुखी होना कुछ लोगों के अन्तर्निहित स्वभाव होते हैं..जो किसी भी माहौल में नहीं बदलते और आज से बीस-पच्चीस वर्ष पहले..छोटे शहरों कस्बों में जो को-एड स्कूल होते थे ..क्या वहाँ लड़के/लड़कियों का इंटरैक्शन होता था?

      वहाँ लड़कियों की अलग बेंच होती थी...वे आपस में ही मिलती-जुलती बातें करती थीं. लड़कों से नाम-मात्र की पुस्तकों के आदान-प्रदान से सम्बंधित ही बातचीत होती थी या वो भी नहीं. यहाँ तक कि जो लड़के-लडकियाँ पड़ोसी होते थे...घर पर बातें करते थे...वे भी स्कूल में बात नहीं करते थे. ऐसा नहीं होता था कि खाली पीरियड में या लंच-टाइम में पूरे क्लास में ही छोटे-छोटे ग्रुप बना कर स्टुडेंट्स बैठे हैं...जिन ग्रुप में लडकियाँ और लड़के दोनों शामिल हों. (होप, अब ये सब बदल गया हो ) तो फिर संकोच कहाँ से टूटता??
      और उन दिनों तो लड़के/लड़कियों का आपस में बातें नहीं करना...दूर रहना...कोई मेल-जोल नहीं रखना...अच्छाई का प्रतीक..तारीफ़ के काबिल माना जाता था .

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  15. शायद पब्लिश नहीं हो पाया,

    बिलकुल ठीक है अंशुमाला जी|
    धार्मिक चरित्रों की तो बात ही छोडिये, एक आम नागरिक को भी सेल्फ डिफेन्स का अधिकार है| अपनी रक्षा के लिए और दूसरों की रक्षा के लिए भी यदि मजबूरी में हिंसा का सहारा लेना पड़े तो वो कोई अपराध या बुरी बात नहीं है, हमारा आपका अधिकार है|
    परम्परागत समाज के द्वारा सुझाए जाने वाले उपाय बेशक लोगों को रुचे नहीं, लेकिन जब तक हम एक सभी और क़ानूनपसंद समाज नहीं बन जाते, अपने स्तर से ये उपाय सावधानी के तौर पर अपनाए जाने चाहिए, मेरा ऐसा मानना है| हर काम में लड़कों की बराबरी करने से कौन सा पुरस्कार मिलता है, मैं नहीं समझ पाया|
    हम सबको, विशेष तौर पर महिलाओं को एक नो-नोंनसेन्स एप्रोच जागृत करनी होगी| कम से कम शहरों में ये सब इतना मुश्किल नहीं है, जहां छेड़खानी जैसी चीजें भी बहुत देखने को मिलती हैं वहीं इसके जवाब में लड़कियों के सशक्त प्रतिरोध के मामले भी दीखते हैं और ऐसे बहुत से मामलों में पहली प्रतिक्रया में ही माफी मांगते और उसी लड़की को माँ-बहन मानते लड़के भी देखे हैं| जहां चुप रहकर प्रश्रय दिया जाता है, वहाँ छिछोरों की हिम्मत बढ़ती ही है|
    अपने आप में कोई एक उपाय सौ प्रतिशत कारगर नहीं है|उदाहरण के लिए डीपीएस MMS स्कैंडल किसी boys only school का रिज़ल्ट नहीं था| बार-हंगामे और rave parties में शिरकत करने वाले सभी boys only schools ke पढ़े हुए नहीं होते| मैं खुद सिर्फ दो साल छोड़कर हमेशा को-एड में पढ़ा हूँ, आज भी किसी स्त्री से मैं एकदम पहली बार में सहज नहीं हो पाता| मेरी बहन की सहेलियां घर में आती थीं तो मैं भी हमेशा वहाँ से इधर उधर खिसक जाया करता था, इसे क्या कहेंगी?
    लड़कियों\महिलाओं को शारीरिक\मानसिक रूप से सशक्त और मजबूत होना ही चाहिए| एक छोटी बच्ची या एक वृद्ध महिला पर यान हमला उसके कपड़ों के कम ज्यादा होने के कारण नहीं होता, इसलिए होता है क्योंकि वो एक आसान शिकार सिद्ध होती है| और जब तक एक असहाय सुरक्षित नहीं है, तब तक दो चार प्रतिशत के बहुत शक्तिशाली होने से कोई क्रान्ति नहीं आने वाली|

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  16. सच तो यह है कि आज हमें बहुत अच्‍छा बने रहने की आदत पड़ गयी है। हम सोचते है कि हमारी रक्षा करने का काम पुलिस का है लेकिन स्‍वयं भी रक्षा करनी होती है यह नहीं समझते हैं। मैं तो ऐसे कॉलेज में पढ़ी हूं जहां मैं अकेली लड़की थी शेष 300 लड़के थे। शिक्षक ही छात्रों को उकसाते थे, तंग करने के लिए। कुछ दिनों तक तो मैंने देखा की माजरा क्‍या है, घर से भी उम्‍मीद लगायी कि कोई मदद करेगा। लेकिन फिर स्‍वयं ने ही ताल ठोक ली। अभी भी मेरे किस्‍से सुनाये जाते हैं। इसलिए लड़कियों को भी शक्तिमान होना होगा।

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    1. लड़किया सदा ये मान कर चलती है की उनकी रक्षा किसी और को करनी है वो खुद नहीं कर सकती है , उम्मीद है की आप की बात से सभी लड़किया प्रेरणा लेंगी |

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    2. @smt.Ajit Gupta आप के किस्से हम सुनना चाहेंगे

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    3. शोभाजी, निश्चित रूप से पोस्‍ट लिखने का प्रयास रहेगा।

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  17. मां दुर्गा और काली ने तो स्वयं अविवश देवताओं को बचाया है. अगर आत्मविश्वास परिपूर्ण हो तो कोई भी स्थिति अपने अंदर समायी दुर्गा रूप को स्मरण करके की जा सकती है.

    रामराम.

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    1. ताऊ जी,
      आपकी टीप में 'अविवश देवताओं' पढूं या 'विवश देवताओं' ?

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    2. ताऊ जी
      यही आत्मविश्वास ही तो नहीं है लड़कियों में उसे ही बढ़ना होगा |
      अली जी
      टंकण त्रुटी है मुझसे भी बहुत होती है :)

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  18. अंशुमाला जी,
    अपना एक ख्वाब है कि जब जो चाहे, जहां चाहे, जिस वक़्त चाहे, निर्विघ्न आ जा सके / घूम सके! देखें ये कब पूरा होगा ?

    ये बात सही है कि छेड़छाड़ के मामले रोकने का कोई परफेक्ट एक उपाय नहीं है, रश्मि जी ने सह शिक्षा कहा, आपने प्रतिरक्षा और मैं चाहता हूं, कड़ा कानून जो फ़ौरन राहत दे, छेड़छाड़ करने वाले बन्दों के मन में दहशत भर दे! आपने प्रतिरक्षा की हिंसा को उचित माना है सो इस बिंदु पर आपसे मैं भी सहमत हूं क्योंकि यह तात्कालिक उपचार है! सुझाव सिर्फ ये है कि इसे(प्रतिरक्षा को)कानून का समर्थन भी मिलना चाहिये वर्ना लड़कियों की ज़िन्दगी कोर्ट कचहरी के चक्कर में यूं भी नरक बना दी जाती है!

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    1. अली जी
      कड़ा कानून तो देश की हर समस्या का हल है , किन्तु अपने देश में तो हम इसकी जल्द उम्मीद नहीं कर सकते है | कड़ा कानून , बेटो को संस्कार आदि उपाय तो है किन्तु इसमे हम दूसरो से उम्मीद करते है कुछ उपाय लडकियों को खुद भी करने चाहिए , और ये सब तब कारगर होगा जब लड़किया खुद प्रतिरोध करे और कानून के पास जाने की हिम्मत दिखाए |

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  19. अंशुमाला जी,
    लड़कियों को सशक्त न करने की प्रथा कोई अपने आप घटी घटना नहीं है यह समाज की एक सोची समझी लड़कियों व स्त्रियों को वश में रखने की तरकीब है। स्त्री पुरुष से कम बलशाली है किन्तु सारे पुरुष भी बराबर बलशाली नहीं होते। एक मरियल लड़के को भी बचपन से शेर बनने को कहा जाता है। घी, दूध, अंडे, टॉनिक से लेकर कसरत, कुश्ती, जूडो कराते सभी उपाय किए जाते हैं उसे सशक्त बनाने के। जबकि एक लम्बी चौड़ी लड़की को भी कभी हाथ नहीं उठाने दिया जाता। उसे यही बताया जाता है कि भाई बहनों से लड़ाई में भी हाथ उठाना स्त्रियोचित व्यवहार नहीं है।
    यदि ऐसा सिखाया नहीं जाएगा तो यदि दुर्भाग्य से उसकी ससुराल में पिटाई हो या पति ही उसे पीटे तो क्या वह भी पलटवार न कर देगी? इसलिए पलटवार को बेहयाई और मार खाने को स्त्रियोचित गुण व लज्जा कहा जाता है। और यह लज्जा और अबला होना ही स्त्री का गहना माना जाता है।
    बात केवल अपने घर की बेटी की नहीं थी। यदि मैं अपनी बेटी को जुझारू बनाऊँगी तो क्या मेरी बहू के मायके वाले नहीं बनाएँगे? यूँ तो पितृसत्ता डगमगा जाती। सो स्त्रियों को भीरू बनाने से ही समाज व संस्कृति पुराने व तथाकथित व्यवस्थित तरीके से चल सकती थी।
    खैर, अब हमें स्त्री को आत्मरक्षा तो सिखानी ही होगी। स्त्री को एक दूसरे की सहायता करना भी सीखना होगा। अब वह सब करने से डरते, बचते, प्रार्थना करते कि पुरुष के अन्दर का जानवर न जागे तो जीना असंभव है। हाँ यदि चारदिवारी में कैद हो जीने को जीना कहते हैं तो अलग बात है।
    घुघूती बासूती

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    1. घुघूती जी
      यदि सुरक्षित रहना है तो हर पहल हमें ही करनी होगी |

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  20. @ ali जी,

    गल्ती की तरफ़ ध्यान दिलाने के लिये आभारी हूं, लिखना तो "विवश" ही चाहता था पर बुढापे में ये कमबख्त की बोर्ड धोखा दे गया.:)

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  21. महिलाएं शारीरिक तौर पर पुरुषों से कमजोर हैं,यह स्वीकार किया जाना चाहिए। किंतु,यह कहने का अर्थ यह नहीं है कि पुरुषों को बदतमीजी का अधिकार है अथवा इस कारण महिलाओं को सहम कर जीना चाहिए। दुर्गा और काली की तरह बदला लेने के कई मामले हम फिल्मों में भी देखते रहे हैं। मगर ज़िंदगी की मुसीबतें असली होती हैं। उन्ही् से निपटने के लिए,दिल्ली पुलिस महिलाओं को आत्मरक्षा के गुर मुफ्त में सिखाती है। यद्यपि ऐसी वारदात बड़ी जगहों पर ज्यादा होती हैं,मैं समझता हूं कि देश भर की महिलाओं के लिए ऐसा प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए।

    पुलिस सुधार देश की एक बड़ी आवश्यकता है जिस ओर समुचित ध्यानाकर्षण नहीं हुआ है। क़ानून व्यवस्था की स्थिति लचर होने के चलते ही अपराधियों का मनोबल बढ़ता जाता है।

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    1. पुलिस सुधार, कड़ा कानून तो देश की हर समस्या का हल है |

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  22. http://kuchmerinazarse.blogspot.in/2012/07/blog-post_19.html

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  23. नीचे आपका नाम , ब्लॉग लिंक सब है ... और लोग जानते हैं कि इस ब्लॉग पर मैं दूसरे लोगों की शानदार रचना ही डालती हूँ

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    1. रश्मि जी
      हा मैंने वो देखा, इसलिए लिखा था की "स्पष्ट रूप से" | मुझे बस वहा आई टिप्पणी को पढ़ कर ऐसा लगा इसलिए कहा और कोई बात नहीं है |

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  24. अगर देश का कानून कड़ा और न्‍याय प्रदान करने वाला हो, तो आधी से ज्‍यादा समस्‍याएं तो खुदबखुद सुलझ जाएं।

    ............
    International Bloggers Conference!

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