बहुत समय पहले की बात है एक बार एक पति ने अपने मरने का नाटक किया ताकि देख सके रुदाली बुला कर रोने का दावा करने वाली पत्नी कितना रोती है । पत्नी ने पति के मरते ही रुदाली बुला ली तय हुआ दो मक्के की रोटी और दो रुपये पर रुदाली रोयेगी । रुदाली ने सर्त रखी कि चूल्हे पर मक्के की रोटी लगा दी जाये उसके पकने तक रो लेगी । पत्नी ने रोटी लगा दी और दोनों ने रोना शुरू कर दिया पत्नी ने रोना शुरू किया कि हाय रुदाली उसके दो समय की रोटी ले जा रही है , एक तो कमाने वाला पति मर गया उस पर से दो रूपये और गये । रुदाली ने रोना शुरू कि हाय रोटियां तो ये देख नहीं रही कही जल गई तो खाने लायक भी न रहेगी पैसे देने से पहले इतना रो रही है पता नहीं पैसे मुझे देगी भी नहीं । कुछ देर दोनों अपना रोना रोती रही मरने का नाटक कर रहा पति झुंझुला कर उठ बैठा , बोला मरा तो मैं हूँ और मेरे लिए कोई रो ही नहीं रहा है , दोनों के दोनों अपने लिए रो रहे है ।
कल एक सैनिक ने सीमा पर अपने खाने पिने के ख़राब हालातो के बारे में एक वीडियो पोस्ट की। मंशा हालात सुधारने की रही होगी , सरकार तक वहां हो रही धांधलियों की खबर देने की रही होगी । किन्तु यहाँ मोदी भक्त और मोदी विरोधी रुदालियाँ अपना रोना ले कर बैठ गई । एक सीमा पर सैनिको को ख़राब खाने की सप्लाई के लिए सीधा प्रधानमंत्री और सरकार को ही दोषी बना रहा है दूसरा पिछले ७० सालो का हिसाब दे सैनिक के अगले पिछले का पोस्मार्टम कर रहे है । उन दोनों को सैनिक उसके बुरे हालातो , उसकी समस्या से अब कोई मतलब ही नहीं है । एक मोदी और सरकार को जिम्मेदार बता कर उसे गालियां दे रहा है और दूसरा बेमतलब के तर्क दे कर उन्हें बचा रहा है । सैनिको की समस्याओ पर चर्चा कौन करेगा , उनके लिए बेहतर हालातो के बारे में कौन आवाज उठाएगा , फिलहाल कोई नहीं , क्योकि सोशल मिडिया की सभी रुटे सीधे जा कर राजनीति के चौराहे पर मिलती है , और हर समस्या को बस एक ही नजर और सोच से देखा जाता है , इसलिए सभी लाईने उसी में व्यस्त है ।
ये कोई पहली बार नहीं है , सूना है कि युद्ध के दौरान सैनिको की बंदूके जाम हो गई थी , सूना है की एक रक्षा मंत्री को अफसरों को धमकी देनी पड़ी थी कि यदि सैनिको के लिए बर्फ पर चलने वाली गाड़ियों की फाईल तुरंत पास नहीं किया गया तो उन अफसरों को सियाचिन के सीमा पर भेज दिया जायेगा , सूना है सैनिको के लिए जो ताबूत ख़रीदा गया उसमे भी घोटाले हुए , सूना है मैडल लेने के लिए कुछ बड़े अफसरों ने फर्जी बहादुरी दिखाई , सुना है हथियारों की और सैनिको के लिए लिए जा रहे साजो सामानों पर सेना के अंदर भी कमीशन लिया जाता है , सुना है की तलाशी के नाम पर लोगो को लुटा भी गया है , सूना है सैनिको की विधवाओ के लिए बनी इमारतों में से सैनिको को ही बेदखल कर दिया गया । सुना है सैनिको के मदद के लिए बने एक फंड में पैसे न के बराबर आये , सोशल मिडिया में जवानों की विरता की कसमे खाने वाले और जवानों के नाम पर सरकारो को कोसने वाले किसी ने भी पैसा वहा नहीं भेजा । बहुत कुछ सुना है , पर चर्चा नहीं होती क्योकि इस समय देश में दो ही पंथ और पंथी है , पागलपंथी और घटियापंथी । रोओ रुदालियों अपना अपना रोना रोओ ।
ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप को विश्व हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं |
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "१० जनवरी - विश्व हिन्दी दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
मेरा ब्लॉग शामिल करने के लिए धन्यवाद
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