एक है श्रीमान सुरेश त्रिवेणी उन्होंने एक फिल्म बनाई है "तुम्हारी सुलु " चोर राम ( लिखना तो चोट्टा चाहती थी पर वो गाली टाइप हो जाती ना ) ने कहानी चुरा कर एक फिल्म बना दी और न ही जिनकी कहानी चुराई है उन्हें कोई रॉयल्टी दी और न ही क्रेडिट दिया है | कहानी भी किसी एक से नहीं कई अलग अलग जगह से चुराई है और किसी का भी नाम देने तक की जरुरत नहीं समझी है | उन्होंने मुंबई जैसे बड़े शहरों में रह रही मुझे जैसी ;) खुशमिजाज और अपनी मर्जी और अपने तरीके से जीवन जी रही महिलाओ के जीवन से छोटी छोटी सच्ची कहानियां चुराई है और फिल्म बना दी लेकिन एक पैसे का क्रेडिट न दिया है , बड़ी ज्यादती है | फिल्म देखते कई बार वो इतनी अपनी लगती है कि मुंह से निकल जाता है अरे कम्बख्त ने मेरा किस्सा चुरा कर फिल्म बना दी है , अरे ये वाला किस्सा तो मेरी दोस्त का है ,मतलब की बस हद ही है | कोई ट्रेजडी क्वीन नहीं , कोई बड़े बड़े सपने नहीं , कुछ कर गुजरेंगे का कोई तूफानी जज़्बा नहीं , सिंपल स्वीट सी लाइफ और सिंपल सी इच्छाए | खुशमिजाज औरत , खुराफाती औरत , कुछ भी कर सकने का आत्मविश्वास वाली औरत , छोटी छोटी खुशियों का बड़ा सेलिब्रेशन करने वाली औरत | सबसे ज्यादा शुक्र है कि पति बड़ा रियल सा और सामान्य सा है , शुक्र है कि उन्होंने पति को पत्नी के जीवन का "विलेन" नहीं बनाया है शुक्र है कि उन्होंने पति की भूमिका के साथ कोई अत्याचार नहीं किया है | इस फिल्म को सिर्फ किसी स्त्री की कहानी मत सोचिये ,उन्होने बड़े शहरों में रह रहे पति पत्नी के बदलते रिश्तो को दिखाया है , दिखाया है बड़े शहरों में परिवारों में गृहणी की भूमिका , सोच उसके प्रति पति के नजरिये में बहुत बदलाव आया है और पत्नी का भी पति के प्रति वो ,आप , सुनो जी , तम्हे जैसा ठीक लगे वाला , मेरी दुनियां तेरे बिना कुछ नहीं टाईप से बहुत बदल गया है | फिल्म में तो लव मैरिज है किन्तु असल जीवन में बहुत सारे अरेंज मैरिज भी अब एक तरफे प्रेम और समर्पण पर नहीं टिके है |
पति विलेन नहीं है लेकिन पत्नी के अचानक काम करने से उसके इतर खुशियो से थोड़ी जलन में जो प्रतिक्रिया है वो बड़ी वास्तविक सी है | एक सीन में मन किया जोरदार ताली बजाउ ,पति अपनी पत्नी को काम करने से रोकने के लिए कहता है उसे बेटी चाहिए और उसने उसका नाम तक सोच लिया है उनका पहले से ही १० -१२ साल का बच्चा है | बिलकुल यही मेरी पड़ोसन के साथ हुआ था वो ग्रहणी थी मुझे जॉब करता देख उनकी भी इच्छा हुई और जैसे ही ये पति को बोला पति के अंदर दूसरे बच्चे की इच्छा जाग गई थी और तीन महीने बाद प्रेग्नेंट होने की खुशखबरी भी | बड़ा ही कॉमन सा फंडा है महिलाओ को काम पर जाने से रोकने का उन्हें बच्चो में फंसा कर रखो | वैसे फिल्म में उसे पत्नी के काम करने से नहीं आरजे वाले काम से परेशानी है और उसका भी एक कारण है , वो आप फिल्म देखेंगे तभी समझेंगे | पति के ये कहने पर विद्या हँस कर पति को चिढ़ाती है मजाक उड़ाती है कि इस उमर में बेटी के दादा जी लगोगे | ( मेरे पतिदेव ऐसा कहते तो मेरी प्रतिक्रिया भी यही होती ) लेकिन वो विद्या पर कोई दबाव नहीं डालता अपनी तरफ से बस एक ट्राई मारता है और ऐसी बातो को सुलझे रिश्ते ऐसे ही हलके में उड़ा देते है | विद्या का एक मायके का परिवार भी है जो उनके १२ वि फेल होने पर पर बार बार ताने भी देता है और उनके लिए फ़िक्र भी करता है | परिवार उन्हें पहले काम करने के लिए फिर काम छोड़ने के लिए कहता है | एक बार उनकी बहन कहती है काम छोड़ दे वरना बाद में पछ्तायेगी फिर रोते हुए हमारे पास आयेगी , विद्या गुस्से में पलट कर बोलती है हां आउंगी बिलकुल आउंगी तुमलोग परिवार हो मेरे | हाय राम ये भी मेरा डायलॉग है , जब किसीने एक बार कहा कि भाई के विवाह के बाद बहनो को अपने घर से दुरी बना लेनी चाहिए , मैंने यही कहा फिर परिवार के होने का मतलब क्या है , यदि उसमे एक दूसरे का ख्याल न रखा जाये | एक बेटा है उनका अंत में दिखाता है कि कैसे बच्चे घर में हो रही सारी बातो को समझते है और हम उन्हें बस बच्चा ही समझते रह जाते है | फिल्म का अंत जिस पॉजिटिव नोट पर होता है वो बड़ा कमाल है , नहीं नहीं आखरी सीन नहीं वो तो फ़िल्मी है , जब लगता है कि एक स्टोरी एक सैड एंड पर ख़त्म होगी तभी उसकी खुशमिजाजी वापस आना बड़ा सही और वास्तविक लगता है |
जब मुंह से निकले क्या एक्टिंग की है कमाल है तो वो बड़ी बात नहीं है , बड़ी बात तो वो है जब ये बोला जाये , क्या ये एक्टिंग कर रही थी | विद्या और उनके पति की भूमिका निभा रहे मानव कौल दोनों ने इतनी सहज एक्टिंग की है कि आप को ये नहीं लगता कि किसी एक्टिंग को देख रहे है | जरा भी लाऊड नहीं इसके लिए डॉयरेक्टर भी तारीफ के काबिल है उन्हें अच्छे से पता था कि सुलु को किस रूप में पर्दे पर दिखाना है और विद्या का बेस्ट चुनाव उन्होंने किया मानव कौल का भी | एक रिव्यू फिल्म देखने बाद पढ़ी "फिल्म के कुछ सीन आप को गुदगुदाएंगे" कम्बख्त उस सीन में मै बगल वाली खाली सीट पर गिर गिर कर हँसे जा रही थी , पहली बार हँसने के कारण मेरे इतने आँसू गिरने लगे की शर्ट की बाहे गीली हो गई , क्यकि पर्स से टिशू या रुमाल निकालने के चक्कर में मै सीन मिस नहीं करना चाहती थी , क्योकि उसमे से एक खुराफात तो मै भी करती हूँ और पहली बार फिल्म देखते पतिदेव को मिस किया ये फिल्म दिखाने उन्हें क्यों नहीं लाई | यदि आप खुराफाती , कुछ नया करते रहने वाले नहीं है या छोटे शहरों से है तो आप को ये फिल्म समझ नहीं आयेगी | एक सीन में तो नेहा धूपिया भी आश्चर्य से पूछती है क्या तुम अपने हसबैंड से ऐसे बाते करती हो , तो फिल्म तो किसी किसी लिए है |
नोट :- वैसे त्रिवेणी जी आप को बता दू खुराफाती होने के लिए १२ वि में दंडी मार या या बैकबेंचर होने की जरुरत नहीं है , वो फर्स्ट बेंचर भी हो सकते है |
#tumharisulu
फिल्म देखने के लिए उत्सुकता जगा दी आपने
ReplyDeleteआप सभी सुधीजनों को "एकलव्य" का प्रणाम व अभिनन्दन। आप सभी से आदरपूर्वक अनुरोध है कि 'पांच लिंकों का आनंद' के अगले विशेषांक हेतु अपनी अथवा अपने पसंद के किसी भी रचनाकार की रचनाओं का लिंक हमें आगामी रविवार(दिनांक ०३ दिसंबर २०१७ ) तक प्रेषित करें। आप हमें ई -मेल इस पते पर करें dhruvsinghvns@gmail.com
ReplyDeleteहमारा प्रयास आपको एक उचित मंच उपलब्ध कराना !
तो आइये एक कारवां बनायें। एक मंच,सशक्त मंच ! सादर
बाबा रे! फ़िल्म देखने के लिए जिज्ञासु हो उठी हूँ मैं, आपकी कलम ने उकसाने का काम गज़ब ही किया है!
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