वैसे तो गिरे हुए लोगो से ज्यादा वास्ता तो रखना नहीं चाहिए, ऐसे लोगो से दुरी ही भली , लेकिन जब गिरी हुई हरकत करके गिरने वाला आप का बीपी हो तो मजबूरन न चाहते हुए भी उस गिरे हुए को उठाने के लिए खुद ही प्रयत्न करना पड़ता है | पहले उठाने के लिए तकनीकी मदद ली गई लेकिन कहते है गिर को उठाना इतना आसान नहीं होता डीप शिप , आराम वाराम , दवा और दवा ( दारू अभी बाकि है ) सब नाकाम | फिर दिमाग में आया मर्ज जेहनी लगता है , खून में उबाल की जरुरत है | इसके पहले की घर वाला बंदा गिरे हुए बीपी को मेरे उमर से जोड़ हमें बुढ़ापे का ताना मारे , उस पर ही खूब चिल पो कर खून का उबाल दिखा दिया गया | लेकिन गिरी हुई बीपी को कोई जोश न आया वो वही निचे धरातल में पड़ी रही | उसने भी सोचा होगा अरे छोडो ये तो रोज का है कुछ और प्रयत्न करो | तुरंत ही सोशल मिडिया का रुख कर देश दुनिया की चिंता कर सरकार को कोस नया प्रयत्न किया वो भी बेकार गया , वो अब भी भाव खाये वही पड़ी रही | २६ जनवरी के देशभक्ति गीतों का भी उस पर कोई असर न हुआ , महिला जाबांजो की वही "पहली बार" परेड में आना जैसे नारी सशक्तिकरण वाले जुमले भी काम न आये | फिर उसे ही लानते दी कि ऐसी गिरी हुई हरकते कर तू असल में मेरी नजरो में गिर रही है , ज्यादा गिरी तो मै भी परवाह न करुँगी , पड़ी रहना जहां पड़ी है | लेकिन वो ढीढ की तरह वही पड़ी रही , आखिर बीपी भी तो मेरी थी , मेरी ही जैसी , फालतू की बातो पर ध्यान ही न देना |
हिंदूवादीयो के वॉल के चक्कर लगाये अपने अंदर के हिन्दू को जगाने के लिए , वामपंथियों के भी लगाये ताकि देश संविधान धर्मनिरपेक्षता आदि के संकट में होने पर खून में उबाल आये | लेकिन पता चला गया , उसी दिन पता चल गया अंदर खून नहीं पानी बह रहा है कोई उबाल न आया | फिर अचानक एक लेखक साहित्यकार टाइप पर नखरे गई देखा नाराज थे/थी की सम्मान हुआ लेकिन ठीक से न हुआ | तब क्या था बिना मेन्टोस के दिमाग की बत्ती जली | क्यों न बीपी तुझमे लेखक होने के भ्रम पैदा किया जाए , तुझे ऊपर लाने के लिये थोड़ा ईगो मालिस की जरुरत है , थोड़ी झूठी प्रसंसा की चाहत है , तू खुद दो चार लाइनों की तारीफों में उफान मारती ऊपर आजायेगी और स्वयं को महान घोषित कर देगी | तो हे बीपी तू महान है तू महानतम है , तू गिरी हुई नहीं है असल में तू अच्छे लेखक की तरह गहराई से चिंतन मनन कर रही है | लेकिन अब और चिंतन मनन मत कर इससे ज्यादा चिंतन मनन किया तो तेरा लिखा इन दो कौड़ी के पाठको को समझ न आयेगा | वो तेरे महान लेखन को समझ नहीं पायेंगे और अपनी नासमझी छुपाने के लिए , बहुत सुन्दर प्रस्तुति , वाह खूब लिखा , गहरी बात , निशब्द हु जैसा लिख निकल लेंगे | इसलिए तुझे इतना गहरा चिंतन करने की आवश्यकता नहीं है | अब उठ जाग और ऊपर आ देख तेरे लेखन के बगैर कैसे हर जगह सन्नाटा पसरा है , कही कोई क्रांति न हो रही , देश रसातल में जा रहा , साहित्य ख़त्म हो रहा | ऐसा न हो तू बस गहराई में चिंतन करती रहा जाये और कोई और कुछ भी लिख पुरस्कार ले जाये और तू बस आज कल के पुरस्कारों में पारदर्शिता नहीं पर भाषण देती रह जाये | तो उठ जाग ऊपर आ , ये देश, समाज साहित्य सब तेरे भरोसे ही रुके पड़े है , अब नखरे न दिखा थोड़ी अपनी गति बढ़ा |
बढ़िया रहा....!
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteआज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की १९५० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, बजट, बेचैन आत्मा और १९५० वीं ब्लॉग-बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
धन्यवाद |
DeleteIts such a wonderful post, keep writing
ReplyDeletepublish your line in book form with Hindi Book Publisher India
धन्यवाद |
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