June 30, 2022

समय पर बीमारी की पहचान है जरूरी

हफ्ते भर पहले छोटी बहन के बॉस के पंद्रह वर्षीय बेटे की ब्लड कैंसर से मौत हो गयी | दो साल पहले ही कैंसर के बारे में पता चला बाकी तमाम इलाज के बाद इस अप्रैल उसका आखिरी इलाज के रूप में बोनमैरो ट्रांसप्लांट हुआ था | रक्षा बंधन पर घर आते ही इंफेक्शन हुआ और मौत हो गयी | 

कैंसर और दूसरी तमाम जानलेवा बीमारियों में ज्यादातर मौत इस कारण होता हैं कि बिमारी का पता ही देर से चलता हैं | मेरे चाचा ससुर को भी उन्नीस साल पहले ब्लड कैंसर हुआ थे लेकिन वो पहले  चरण में ही पकड़ा गया , नतीजा वो कैंसर से ठीक भी हो गए  और आज भी जीवित हैं | बस निमोनिया के इलाज के लिए अस्पताल में उस समय भर्ती हुए थे और कोई ख़ास समस्या नहीं थी |  लेकिन डॉक्टर ने शरीर के अंदुरुनी लक्षणों को देखते उनकी जाँच कराई और बीमारी का पता चल गया | 


जानलेवा क्या कई बार सामान्य बीमारियों को समझने में भी डॉक्टर को सालों लग जाते हैं |  मेरी मौसी को पैर में दर्द रहता था और बार बार बुखार आता था | साल बीत गया डॉक्टर समझ ही नहीं पा रहें थे कि क्या हुआ है | एक डॉक्टर ने कह दिया कि घुटने जाम हो रहें हैं सुबह टहलना शुरू कीजिये | 

वो तो शुक्र हैं मेरी वजह से अनजाने में उनकी बिमारी का पता चल गया |  अपनी एक मित्र को दिखाने एक  हड्डी के डॉक्टर के पास गयी थी | वहां  एक बारह साल की बच्ची आयी थी जिसका पैर के फोड़े का ऑपरेशन होना था | ऊपर से एकदम सामान्य दिख रहा था पैर , फोड़ा उसकी हड्डियों में था | उसे देख मैने मौसी  को उसी डॉक्टर को दिखाने के  लिए कहा , तब पता चला मौसी को बोन टीबी हैं | देरी का नतीजा ये हुआ कि तब तक उनकी आधी हड्डी गल चुकी थी | सालभर इलाज के बाद वो ठीक हो गयी | 


कई बार ऐसा भी होता हैं कि समस्या कहीं और होती हैं और लक्षण कुछ और ही दिखाई देते हैं | ऐसे में अनुभवी या उस विषय का विशेषज्ञ ही बिमारी पकड़ पाता हैं | जिस मित्र को लेकर हड्डी के डॉक्टर के पास गयी थी उन्हें बाइस तेईस की उम्र में जोड़ो का दर्द हो रहा था | इलाज के बाद जोड़ो का दर्द ठीक हुआ तो फिर पता चला पीलिया हो गया हैं लिवर में समस्या आ गयी हैं | 


एकदिन वो अपनी बहन को लेकर दांत के डॉक्टर के पास गयी तार लगवाने । वो खुद भी एक साल से दांतों में तार लगवाई हुयी थी लेकिन दूसरे  डॉक्टर से |  उस डॉक्टर ने जब इन्हे बोलते देखा तो उसे कुछ ठीक नहीं लगा बोली पहले आपके तार की जाँच करती हूँ | जाँच करते ही उसने पूछा क्या तुम्हे जोड़ो का दर्द और लिवर में समस्या हैं | मित्र के हां में जवाब देते उसने बताया ये सब तुम्हारे गलत तरीके से दांतों में तार लगाए जाने के कारण हैं | तार को इतना ज्यादा टाइट  किया गया हैं कि तुम्हारे पुरे मसूड़े हिल गए हैं | अभी इसका इलाज नहीं हुआ तो इसके बाद तुम्हारे  किडनी और दिल पर इसका असर होता | तीन चार घंटे का उनका ऑपरेशन करके मसूड़ों को सेट किया गया और वो ठीक हुयी | 


सोचिये दांतों में गलत तरीके से लगा तार पूरे शरीर के जरूरी अंगो पर असर डाल सकता हैं कोई  कभी सोच भी नहीं सकता था | जमाने पहले मेरी मम्मी के दिल की धड़कने इतनी बढ़ गयी थी कि पास खड़ा आदमी सुन ले | घर में लोग हार्ट के डॉक्टर के पास चक्कर लगाते रहें महीनो तक , अंत में एक सरकारी डॉक्टर ने पकड़ा की उन्हें थायराइड हैं | 

उस जमाने में माइग्रेन आज की तरह आमबात नहीं होती थी | मेरे मम्मी की सर दर्द पर डॉक्टरों ने उन्हें प्रयोगशाला का चूहा बना दिया था | जिस डॉक्टर को जो समझ आता वही इलाज दवा शुरू कर देता | यहाँ तक की मम्मी को मनोचिकित्सक  के पास भी ले गए पापा और वो गधा , तुम्हे सास से परेशानी हैं , क्या तुम्हे पति परेशान करते  सवालों पर ही अटका रहा | दवा के नाम  पर शरीर और दिमाग को सुस्त  करने वाली गोली दे देता | उससे मम्मी और ज्यादा बीमार महसूस करती | 


आसपास ना जाने कितने लोगों को देखा हैं जिनकी बिमारी बड़ी हो गयी या बहुत ज्यादा दर्द , परेशानी  झेला क्योकि बिमारी ही किसी डॉक्टर को समझ नहीं आ रही थी |   सही समय पर सही बीमारी और  उसका  सही इलाज मिल जाए तो ना जाने कितने लोगों की जान बच जाए | 

June 29, 2022

धूर विरोधियों का एक होना


रूस युक्रन  युद्ध  एक ऐसा मामला था जीसने देश के अंदर ही नही देश के बाहर के धूर विरोधियो को एक ही तरफ साथ खड़ा कर दिया । जिसकी कल्पना भी हाल के समय मे कोई  नही ईर सकता था । 

 जब खबर देखी की यूक्रेन और रूस मामले में भारत पाकिस्तान  संयुक्त राष्ट्र में एक लाइन पर आ गए तो इस खबर ने दिमाग के डायबिटीज को इतना बढ़ाया की बस लगा अब तो सीधा भगवान से मुलाक़ात होगी | मतलब समझ रहे हो आप दोनों जानी दुश्मन एक मुद्दे पर सहमत हो गए दोनों एक ही पक्ष की तरफ खड़े हो गए | जो देश कल तक अमेरिकी सैनिक अड्डा बना हुआ था जिसके सैनिक भाड़े के लड़ाकों की तरह अमेरिका से पैसे लेकर उसका युद्ध लड़  रहें थे वो ना केवल हमारे दोस्त रसिया का दोस्त बन गया बल्कि अपने दोस्त  अमेरिक के दुश्मन रूस का दोस्त  बन गया   |   


मुझे शुरू से दिमागी डायबिटीज हैं ज्यादा मीठी मीठी बातें और प्रेम मोहब्बत ना बर्दास्त होती | दिमाग का शुगर लेवल बढ़ जाता इससे | बताइये किसने सोचा था कि दुनियां में ये दिन भी आएगा जब अपने वामपंथी और दक्षिणपंथी किसी मुद्दे पर एक जैसा  राग अलापेंगे | मतलब एकाध वामपंथी साम्यवादी रूस को भले गलती से  तानाशाह बोल दे लेकिन अंदर से तो यही मनाते हैं ना कि रूस चीन का  इकबाल दुनियां में बुलंद हो | वो दिन भी आये जब वामपंथियों का भारत समेत दुनियां पर राज हो | 


वो रूस के साथ खड़े हो तो समझ में भी आये लेकिन अपने दक्षिणपंथी उनको ढ़ेला भर की समझ नहीं हैं रूस यूक्रेन मामले की , जो कुछ महीने पहले तक चचा ट्रंप की जीत के लिए दुआ मांग रहे थे अमेरिकी बने पड़े थे वो रूस के पक्ष में खड़े हो गये | बस इसलिए की  भारत सॉरी मोदी ने रूस के खिलाफ वोट नहीं किया । तो बस अंधभक्त पुतिन काका के भी भक्त बन गए | रात दिन वामपंथियों को गरियाने वाले एक वामपंथी देश के साथ खड़े हो गये | 


दक्षिणपंथी वामपंथी का ये भरत  मिलाप क्या कम था जो हिंदूवादी मुस्लिमवादी दोनों कट्टर भी एक हो गए | मुस्लिमत्व में डूबे मौलानाओ को भी कहाँ पता था कि दुनियां के नक़्शे में यूक्रेन रूस कहाँ हैं लेकिन वो भी रूस के साथ खड़े हो गए क्यों , क्योकि जब अमेरिका और उसके यार फलीस्तीन , इराक , सीरिया , अफगानिस्तान पर हमला किये तो किसी ने उन्हें नहीं रोका  था | फिर अमेरिका का दुश्मन रूस हमारा दोस्त हुआ  | हम भी उसके साथ खड़े होंगे उसके हमले को जायज बताएँगे भले यूक्रेन में रहने वाले लाखो मुस्लिम मारे जाए बेघर हो कर शरणार्थी बन उसी पश्चिमी देश में भागे जिसके खिलाफ वो रूस के साथ खड़े हैं  | 


बताओ इतना मीठा किसको हजम होता  | अगर इस  तरह सभी एकमत को लड़ाई झगड़ा नफरत छोड़ देंगे तो जिंदगी , सोशल मिडिया का स्वाद ना खराब हो जायेगा | मैं कह रहीं हूँ कुछ ना रखा इस प्रेम मोहब्बत में जीवन का असली मजा लड़ाई झगड़े और नफ़रत से जहर उगलने में हैं | वो शुरू करो तो इस सोशल मिडिया के होने का कोई मतलब हैं वरना क्या फायदा ऐसे प्लेटफार्म का जहाँ अपने अंदर का गुस्सा नाराजगी फ्रस्टेशन भी जहर के रूप में उगल ना सके | 

अब जा कर लोगो ने जीवन से मिठास  गायब की और फिर  जहर उगला शुरू कर दंगा फसाद किया । अब  सब सामान्य  लग रहा है । 

June 28, 2022

कहानी घर घर की


मुंबई  मे हमारी एक मारवाड़ी मित्र है । उनका संयुक्त  परिवार  मे रह रहे अपने देवर देवरानी से ३६ का आंकड़ा  था  । कारण भी बड़ा गजब है ।  


बताती है अपने प्रेम विवाह  के बाद  ससुराल आयी तो समझ मे आया घर मे और रिश्तेदारो मे उनके पति के बजाये देवर को जरुरत  से ज्यादा भाव दिया जाता है । 


वजह है वो बचपन से ज्यादा प्रतिभावान था उनके पति के मुकाबले । पति एलएलबी कर चाचा के नामी फर्म से जुड़े  लेकिन  देवर सीए बन उससे तीन गुना ज्यादा कमाता । पति का बहुत  सामाजिक  मिलनसार  होना और देवर  के एक नंबर  के स्वार्थी होने का कोई  फर्क  किसी को नही था । 


इनका विवाह के छ महीने बाद  ही देवर की  भी लव मैरिज  हुयी । वो बस छ महीने मे  पुरानी हो गयी और  देवरानी नयी नवेली का भाव  पाने लगी । उस पर से एक नामी स्कूल  मे टीचर थी तो उसकी भी कमायी अच्छी । जबकि हमारी मित्र शादी के बाद  काम छोड़ दी । 


शादी के बाद  वो दोनो हनीमून  पर बीस दिन  के लंबे टूर पर यूरोप गये जबकि हमारी मित्र हनीमून पर मालद्वीप ( उनके हिसाब  से  छोटी बेकार  जगह ) गयी थी वो भी सिर्फ  हफ्तेभर  के लिए  ।  बीस दिन  बाद  लौटी तो गुजरात  अपने गांव  गये रस्मो के लिए  तो नयी नवेली का आवभगत  तब तक चलता रहा । 


उसके बाद  घर आयी और  शादी के बस डेढ़ महीने बाद  ही देवरानी खुशखबरी सुना दी । हमारी मित्र  ये सुन शाॅक  उसके बाद  दुःख  , चिंता फिर  डिप्रेशन  की स्टेज तक की यात्रा कर आयी । उनके हिसाब  से हम दोनो घर के बड़े  थे शादी भी हमारी पहले हुयी थी । बहु भी पहले हम थे , हिसाब  से बच्चा  भी हमे पहले देना था । वो पति पत्नी  ने तय भी किया था कि एक साल  से ज्यादा देर नही करेंगे  । लेकिन  बाजी देवर देवरानी मार ले  गये । अभी तक उन दोनो का पहले वाला ही आवभगत खत्म ना हुआ  था उस दिन से दूसरा वाला भी उनका शुरू हो गया । 


बताती है मैने पुरी प्लानिंग  की थी कि अपनी पहली शादी की सालगिरह  पर सेकेंड  हनीमून  पर किसी अच्छी  जगह जायेंगे  फिर  घरवालों को खुशखबरी देगे । जिन्हे नही पता है उन्हे बता दू कि ब्याह हुआ  और  कोई  परिवार  की प्लानिंग नही की बस ऐवे ही प्रेगनेंट  हो गये अब आधुनिक  कपल ऐसा ना करता । 


बकायदा सेकेंड  हनीमून  प्लान  किया जाता है बच्चे  के जनम का समय तय किया जाता है फिर  खुशखबरी दी जाती है । बोलती है उन्हे तो विश्वास  ना हुआ  इतने पढ़े  लिखे दोनो इतनी जल्दी बच्चे की प्लानिंग  कर लेगे । 


फिर  भी उन्होंने  हार नही मानी और  पति को मनाने प्लान  करते  और  उसका रिजल्ट  आते चार महीने का अंतर आ गया । जब घर मे ये खबर सुनाया तो  उतना खुश कोई नही हुआ  । पहले पोता पोती होने की खबर अलग ही बात होती है । दूसरे मे वो बात नही रह जाती है । बल्कि  सास को एक बार  ये लगा की दो दो प्रेगनेंट  बहु कैसे संभालेगी  , दूसरी  वाली को थोड़ा  रूक जाना चाहिए  था । 


खैर देवरानी को बेटी हुयी सभी लोग खुब खुश हुए  । खुब धूमधाम  से पार्टी हुयी । पहली पोती के नाम पर खुब उसका लाड होने लगा । लेकिन  मित्र  के ऊपर  दबाव  बढ़ गया कि भाई  सबको एक ही बच्चा करना है तो अब घर मे एक भाई से बेटी तो आ गयी अब तुम बेटा कर दो तो परिवार  पूरा हो । 


मित्र  को अपनी जगह वापस पाने का उपाय  भी यही लगा कि बेटा हो जाये तो वो अपना ऊंचा स्थान  फिर  पा जायेगी । घर मे उनको कुछ  तो भाव  मिलेगा । चार महीने बाद  उनको भी बेटी ही हो गयी । 


अब जैसा की अपना भारतीय  समाज है पहली बेटी खुशी खुशी स्वीकार  होती है लेकिन  परिवार  मे दूसरी बेटी .... हा ठीक है कोई  बात  नही बेटी है लेकिन  बेटा होता तो अच्छा  होता वाला भाव सबके मन मे था । उनके बेटी होने की पार्टी भी बड़ी  नही रखी गयी कि अभी चार  महीने पहले ही तो सब हुआ है अब दुबारा की क्या जरुरत  है । पहले जन्मदिन  पर कर लेगे । 


ये सब यही नही रूका , पहला बैठना पहला चलना , दौड़ना  , बोलना बतियाना सब देवरानी की बेटी के साथ  ही होता रहा । अब उनके पास  एक माँ का दिल आ चुका था । उनका दर्द बढ़ता गया की उनकी बेटी से कम लाड हो रहा है और देवर देवरानी से दुश्मनी बढ़ती गयी  । 


दोनो लोग दस बारह साल दुश्मनो की तरह साथ  रहे फिर  पिता के गुजरते देवर अपना हिस्सा  ले माँ को इन लोगो के पास  छोड़ अलग हो गया । 


आलिया की प्रेग्नेंसी  पर दीपिका  कैटरीना पर मीम देख ये सब याद  आ गया 😂😂



फूड डिटेक्टिव

एक सेठ जी  सुस्ती ,कमजोरी ,थकान , भूख ना लगने  आदि  तमाम समस्या के साथ वैद्य जी के पास पहुंचे | वैद्य जी बोले दवा तो दूंगा लेकिन बड़े नियम और परहेज के साथ दो महीना खाना होगा | तमाम समस्या से परेशान सेठ जी मान गए | 


बोले पहली पुड़िया रोज सुबह दो किलोमीटर दूर स्थिति नदी पर पैदल जा कर सूरज उगते देखते खाना होगा | दूसरी पुड़िया नाश्ते में फलों के साथ खाना होगा  | तीसरी पुड़िया दोपहर ठीक एक बजे सादा खाना खाने के बाद खाना होगा | तीसरी शाम सात बजे हल्के खाने के साथ घंटे भर बाद एक पुड़िया गर्म दूध मेवे के साथ और उसके एक घंटे बाद सोना |  दो महीने में सेठ जी भले चंगे हो गए और वैद्य जी की दवा के गुणगान लगे | सेठ की ठीक कैसे हुए आप समझ ही गए होंगे | 


 एक कार्यक्रम देखा था फ़ूड डिडेक्टिव | उसमे  बता रहें थे कॉर्न फ्लैक्स बनाने वाली कम्पनियाँ कॉर्न अर्थात भुट्टों के दानो का छिलका निकाल देते हैं अर्थात उसका फाइबर  | फिर वो उसमे से उसका वो ऊपरी हिस्सा निकाल देते हैं जिसमे की आयरन होता हैं | अंगूर को गुच्छे से तोड़ते हैं तो देखते होंगे हरे रंग का एक रेशा डाली में लगा रह जाता हैं बिलकुल वैसे ही भुट्टे में भी  होता हैं जिसमे सारी कृपा अर्थात आयरन होता हैं | उसे निकाल देते हैं क्योंकि वो कॉर्न फ्लैक्स को खट्टा और ख़राब कर देता है |  बचा गया गुदा रूपी बस कार्बोहाइटेड जो हम कॉर्न फ्लैक्स में खाते हैं | 


फिर आयरन कहाँ से आता हैं उसमे |  आपने यूट्यूब पर बहुत से वीडियों देखें होंगे जिसमे लोग दिखाते हैं कि कॉर्न फ्लैक्स में इतना आयरन हैं कि चुम्बक से खींचा चला आ रहा  हैं | कभी सोचा हैं पालक ,सेब आदि में भी आयरन होता हैं वो तो चुम्बक से नहीं चिपकता फिर कॉर्न फ्लैक्स के आयरन में इतना क्या ख़ास हैं | जी हां सही अंदाजा लगा रहें हैं उसमे खाने योग्य लोहे का चुरा  मिलाया जाता हैं | 


ये कार्यक्रम देखते हमने कॉर्न फ्लैक्स मंगाना छोड़ दिया था लेकिन लॉकडाउन ने रसोई से इतना जी उबीया दिया कि  वापस से इसे मंगाना शुरू किया | कम से कम कोई सुबह तो ऐसी हो जब आँख खुलते नाश्ते में क्या बनेगा की टेंशन ना हो | बाकि उसे सेहतमंद बनाने के लिए वैद्य जी का तरीका तो हैं ही   दूध , फल , मेवा | 

June 27, 2022

फ्यूजन या कंफ्यूजन

 दो अलग तरह के खानो को मिला कर कुछ नया बनाना या पारंपरिक खानो को अलग रूप  देने में कभी कभी वो फ्यूजन नहीं कंफ्यूजन ज्यादा लगता हैं | अपनी कहूं तो मैं इडली को सांभर की कटोरी में डाल कर खाती हूँ , चम्मच में सांभर  से तर इडली सांभर के साथ मुंह में जाती  हैं | | अब आसक्रीम स्टिक वाली  इडली आ गयी है अब इसे  सांभर की कटोरी में डूबा कर खायेंगे तो वो स्वाद आने से रहा   | 

 वही चाइनीज खाने को  ले लीजिये तो यहाँ उसको इतना चटपटा बना कर भारतीयकरण कर दिया गया हैं कि हम लोगों को वही भाता हैं | असली चाइनीज खाना तो हमें अच्छा ही ना लगे और चीनियों का भारत में बना चाइनीज खाना ना बर्दास्त हो |  

 शुरू में मुंबई आयी तो मुझे यहाँ की सांभर और डोसा के अंदर का मसाला पसंद ही नहीं आता | बनारस का अपना चटपटा स्वाद होता हैं । यहाँ तो लगता सांभर में चीनी मिला दी हैं और डोसे में मसाला आलू की जगह आलू का सादा चोखा भर दिया हैं | धीरे धीरे यहाँ के स्वाद की आदत लगी जिसमे मराठी तीखापन और गुजराती मीठापन आपस में घुला मिला हैं | लेकिन स्प्रिंग डोसा , मैसूर डोसा , पावभाजी डोसा , चिप्स डोसा , चॉकलेट डोसा आदि कभी नहीं भाया | डोसा तो अपने पारंपरिक रूप में ही सही लगा | 


मैं अपने घर में बनाये पिज्जा में पिज्जा सॉस के साथ कभी कभी सेजवान चटनी भी डाल देतीं थी शुरू में | लगता कितना सादा बेस्वाद हैं चटनी से तो मजा आया उसमे | बाद में चीज  आदि दो तीन तरह का मिक्स करना शरू किया बाजार में मिलने वाले दो तीन तरह के हर्ब डालना शुरू किया तब जा कर कुछ  स्वाद आना शुरू हुआ | लेकिन सेजवान चटनी वाला फ्यूजन भी मजेदार था | 


समोसे में आलू के अलावा किसी चीज की कल्पना भी नहीं कर सकते थे लेकिन मुंबई में चाइनीज समोसा पहली बार में ही भा गया | उसमे  मैदे को पतला बेलते हैं भरने के लिए चाइनीज में पड़ने वाली सब्जियां होती हैं और उन्हें तलने से पहले मैदे के पतले से घोल में डूबा का  फिर तलते हैं | नतीजा वो बहुत कुरकुरा क्रंची बनता हैं खस्ता होने की जगह  | वैसे भूलना नहीं चाहिए कि भारत में जब समोसा आया था तो  उसमे कीमा भरा जाता था , उसमे आलू तो हमने भरना शुरू किया था | 


अभी गणपति पर ठोकवा बनाया था हमारे यहाँ तो उस पर कोई डिजाइन नहीं बनाते हैं लेकिन बिहारी ठोकवे में डिजायन देखती थी तो इसबार मैंने भी कुछ ट्राई किया | फिर लगा क्या वही पारंपरिक डिजाइन बनाये कुछ और गणित के रेखाचित्र बनाते हैं | अगली बार पहले से तैयारी रखूंगी तो कुछ फूलपत्ती बनाउंगी | बिटिया गणेश जी बनाकर डाल दी | एक पर पहाड़ नदी वाला सीनरी भी बनायीं थी | 


मतलब कभी कदार खाने के साथ  कुछ  नये प्रयोग  करते रहना चाहिए  क्या पता कब कुछ  नया स्वाद  हाथ  लग जाये । 


June 26, 2022

कुछ नया सीखना और हमारा पूर्वाग्रह

 जब भरतनाट्यम कॉलेज जाना शुरू किया तो कुछ महीने बाद ही एक पारसी महिला भी वहां सीखने आई ,  मुझे सुन कर आश्चर्य हुआ ये क्या और कैसे सीखेंगी | क्योकि किसी कॉलेज में सिर्फ डांस करना नहीं सिखाया जाता बल्कि ढेर सारा ग्रंथीय ज्ञान भी दिया जाता हैं |  बच्चो की बात  और होती है पहले से कोई  भावना नही होती है तो वो सभी चीजे आसानी से सीख लेते है ।


 लेकिन  बड़े  होने पर पहले से भरा ज्ञान और  सोच हमारे कुछ  नया सीखने के आड़े आता है । तो पता था कि मुंबई जैसे जगह में पले  बढे के लिए यह एक मुश्किल काम होगा | थोड़ा बहुत संस्कृत पढ़े हम लोग के लिए संस्कृत के सैकड़ों श्लोकों को याद करना और समझना ही मुश्किल हो रहा हैं इनके लिए तो और भी मुश्किल होगा |

एक  सवाल अपने कॉलेज में अपने मैम से भी किया , ये तो धार्मिक कहानियों को भी नहीं जानती ये कैसे कृष्ण, राधा , शिव  आदि भगवानों के भावों को कैसे पकड़ेंगी उनकी कहानियों पर  कैसे नृत्य करेंगी |मेरी चिंता सही साबित हुए और उनके लिए उन श्लोको को पढ़ना तक मुश्किल  था | 

फिर वो भाषा को लेकर सवाल करने लगती ऐसा क्यों हैं वैसा क्यों हैं , इतने लंबे शब्द क्यों हैं , सारे शब्द एक साथ क्यों लिखे हैं आदि आदि | एक बार मैंने भी टोका आप इंग्लिस  को लेकर भी ऐसे ही सवाल करतीं थी कि कोई शब्द साइलेंट क्यों हैं या उनका उच्चारण अलग अलग जगह अलग अलग क्यों हैं , तो वो बड़ा तगड़ा बुरा मान गई |  कई बार फिजूल की टिप्पणियां वो धार्मिक चीजों पर कर जाती | मात्र एक महीने में ही उन्होंने आना बंद कर दिया |


ऐसा नहीं था कि वो दूसरे धर्म के होने के कारण नहीं कर पाई | हमारे कॉलेज में एक केरल की ईसाई  विद्यार्थी भी थी | वो बचपन से ही भरतनाट्यम सीख रहीं  थी केरल में ही अपने गुरु से  लेकिन उनके पास डिग्री नहीं थी | विवाह के बाद मुंबई आ कर वो दूसरे शैली का भरतनाट्यम सीखीं ताकि डिग्री ले सकें और पांच साल में बी ए और एम ए करके निकली |

हिन्दू ना होने के बाद भी हिन्दू धार्मिक चीजों को लेकर उनकी जानकारी ठीक ठाक थी  और वो कभी कोई बेकार के सवाल भी नहीं करती | साफ था उनको बचपन से ये सब सीखा दिया था उनके गुरु ने , क्योकि दक्षिण भारत में किया जाने वाला भरतनाट्यम पूरी तरीके से धार्मिक होता हैं | कॉलेज आ कर उन्होंने वेद , पुराण , रामायण , महाभारत को कोर्स में भी पढ़ा |

 लेकिन उनका सारा ज्ञान किताबी और सुनी गई बातों से था ना उनका विश्वास उनमे था और ना वो उसके पीछे के आध्यात्म और भावों को महसूस कर सकती थी | यही कारण हैं कि वो इन पर किसी भी तरह की चर्चा में भाग नहीं लेती थी | लेकिन  उन्हे जो आना चाहिए  था वो बहुत  अच्छे से आता था और  वो था भरतनाट्यम।  

June 25, 2022

विदेशी विद्यार्थी या कुछ और

मुंबई आने के बाद करीब 2003- 4 में कलीना यूनिवर्सिटी में राजनीतिशास्त्र से एम ए में प्रवेश ले लिया ताकि मुंबई में अकेले आने जाने और शहर को देख समझ सकूँ | पहला दिन कॉलेज का सबके परिचय का दिन था | एक व्यक्ति उसका नाम और उसका परिचय ने क्लास में सभी को चौका दिया | वैसे उसके देखते ही सब पहले ही चौक गए थे | 


उसका कहना था वो अमेरिकी सेना में कमांडर हैं  और भारत में अध्ययन के लिए दो साल के लिए यहाँ आया हैं  | आपको इतने पर ही हँसी  आ रही होगी | फिर पता चला उसके साथ उसकी पत्नी और दो बेटे भी साथ आये थे भारत और सोचिये रहते कहाँ थे वो,  होटल ताज वो भी कोलाबा  गेटवे वाले ताज में | 


उसे छोड़ कर क्लास में सभी का  मोबाईल साइलेंट पर रहता था | उसी का नतीजा था कि जब एक बार गेटवे और झावेरी बाजार में बम ब्लास्ट हुआ तो क्लास में बैठे बैठे हमें इसकी जानकारी मिली क्योकि उसकी पत्नी का फोन आया और वो सबसे पहले घबराया हुआ भागा | वैसे उसे दिन सभी को तुरंत छुट्टी दे दी गयी थी | 


वो केवल भारतीय संविधान के क्लास में आता जो सबके लिए अनिवार्य था बाकी क्लास मेरे उससे मैच नहीं करते थे | संविधान वाले प्रोफ़ेसर भी बहुत अच्छे थे,  लेक्चर के समय वो जितना हो सके विद्यार्थियों को उसमे शामिल करते उन्हें बोलने का मौका देते | उस क्लास में वो क्लास टॉपरों के निशाने पर रहता था ,  जिसमे ज्यादातर लड़कियां थी | उसकी आदत थी वो जब मौका मिलता अमेरिका की बढ़ाई करने लगता और भारत को नीचा दिखाने का प्रयास करता |  लडकिया तार्किक और तथ्यों के साथ उसका जवाब देतीं तो ज्यादातर उसकी बोलती बंद हो जाती |  


दो चार मुद्दे तो मुझे आज भी याद हैं | जब उसने भारत में वर्गभेद और दलितों के मुद्दों को उठाया तो जवाब में काले अमरीकन से भेदभाव  , गुलाम प्रथा की याद दिलायी गयी | बताया गया वर्गभेद हर समाज में होता हैं और हर  देश उस ख़त्म करने ले लिए  काम करता हैं | हमने तो उन्हें बराबरी पर लाने के लिए आरक्षण भी दिया हैं तुम्हारे संविधान में कालों को बराबरी पर लाने के  लिए क्या हैं | उनके हमारे आजाद  हुए समय का अंतर और गुलामी ख़त्म होने कालों को मतदान का अधिकार का  अंतर और ना जाने क्या क्या | बहुत कुछ याद दिलाया गया उसे | 


एक बार उसने कहा अमेरिका ने दुनिया को रिपब्लिक अर्थात गणतंत्र होना दिया हैं  | लड़कियों ने फाटक से जवाब दिया भारत उस जमाने में गणतंत्र था जब अमेरिका का नामो निशान नहीं था और ये भारत के लिखित और प्रमाणित इतिहास में हैं | जिन्हे नहीं पता उनके लिए भारत का लिखित और प्रमाणित इतिहास सिकंदर के भारत आने  से शुरू होता  हैं |  उसके पहले का इतिहास लिखित नहीं हैं , अब लिखा नहीं गया  या नष्ट हो गया या कर दिया गया ब्ला ब्ला पर आप खुद अपने में बहस कर लीजिये मेरा आज का विषय नहीं हैं | भारत के प्रमाणित  इतिहास में गणतंत्र राज्य पांचाल मल्ल विदेह आदि थे | वैसे उन्होंने भी चाणक्य की कोई ख़ास  मदद नहीं की सिकंदर के आक्रमण के समय | 


खैर वो इस बहस में इसलिए हार जाता था क्योकि ना तो वो ज्यादा जानकार था और ना वो यहां पढ़ने आया था | सबको पता था वो यहाँ जासूसी करने आया था |  बाकि प्रोफेसर जिस क्लास में वो नहीं होता उस पर खुल कर बोलते थे | मुंबई यूनिवर्सिटी में और मुंबई में  विज्ञानं और उससे जुड़े बहुत सारे विषय में गोपनीय रिसर्च होते हैं | ज्यादातर को शक था वो उनकी ही जानकारी के लिए आया था | मतलब वो डायरेक्ट उसमे खुद नहीं घुसने वाला था उसका काम वहां पहुँच सकने वालों से जानपहचान और दोस्ती करना और उस माध्यम से काम करना रहा होगा , ऐसा सब अंदाजा लगाते थे | वैसे ऐसी राय देने वालों में मैं भी थी | 

June 24, 2022

खबर या प्रचार

 एक संपादक जी के पास एक आदमी  आ कर बताता हैं कि उसके मोहल्ले में एक डांस बार खुला हैं जो निहायत ही अश्लील हैं , आप उसके खिलाफ कुछ अपने अख़बार में लिखिए | संपादक जी अगले दिन खुद उस बार को देखने ( इसे मजे लेने पढ़िए ) जाते हैं और  खूब विस्तार से अखबार में प्रकाशित करतें हैं कि वह बार कहाँ हैं और कितना अश्लील हैं |

दो दिन बाद वही आदमी मिठाई ला कर संपादक जी को खिलाता हैं | संपादक जी पूछते हैं बार बंद हो गया ,तो वो जवाब देता हैं क्यों बंद होगा आपने उसकी अश्लीलता का वर्णन इतने विस्तार से लिखा था कि वहां जबरजस्त भीड़ बढ़ गई और मैं तो उसी बार का मालिक हूँ |
पच्चीस साल  से भी ज्यादा पुराना ये किस्सा हैं लेकिन आज भी प्रासंगिग  हैं | खबर ऐसी बनी की अखबार और बार दोनों का काम हो गया |


सेक्स , हिंसक सेक्स , रेप वीडियों , बच्चों के पॉर्न  आदि बेचने वाले ये घिनौने साईट अपना दर्शक वर्ग बढ़ाने के लिए क्या कर सकते हैं मुझे बताने की आवश्यकता नहीं हैं |

तो अगली बार  जब आप किसी खबरिया साइट पर किसी घटना के बाद ये खबर पढ़े की भला पाॅर्न साइट पर लोग फला बलात्कार के विडियो खोज रहे है , या वो साइट  बता रहा है कि भारतीय लोग इस उस तरह के पाॅर्न कम ज्यादा देखते है या इतने लाख करोड़  लोग रोज ये सब देख रहे है । तो समझ जाइयेगा की वहां वास्तव  मे एक दूसरे के  टीआरपी,  व्यू और व्यूअर्स बढ़ाने के काम के अलावा कुछ  नही हो रहा है । 

ये संपादकों को सोचना हैं की वो खबर देने के नाम पर इसमें कितना और कैसे  सहयोग कर रहें हैं इसको प्रचारित करने में | 



June 23, 2022

जयपुरी चुनरी और लहरिया साड़ी

जब ब्याह हो रहा था तो फूफा जी की पोस्टिंग राजस्थान में थी | बुआ वहां  से कॉटन सिल्क का चुनरी प्रिंट का पीच कलर का एक सूट लायी थी मेरे लिए | उसका रंग डिजाइन और कपडे की सॉफ्टनेस इतनी अच्छी थी कि वो मेरी फेवरेट बनी | 


उसके ख़राब होने के बाद सोचा कभी राजस्थान गयी तो दो तीन ऐसे सूट ले आऊँगी | लेकिन जब सालों बाद जयपुर गयी तो छोटी सी बिटिया की तबियत ख़राब हो गयी , बाजार जाने का समय और हिम्मत ना हुआ |  उसके बाद जयपुर की लहरिया वाली चुन्नी भी  बड़ी पसंद आयी | 

चुनरी डिजाइन पहले से पसंद था तो सिल्क की दो दो साड़ियां थी शादी के समय की  | एक लाल चुनरी बनारस वाली जिसको पहनते बाप बेटी  जय माता दी बोलने लगते उस चक्कर में उसे छोड़ दिया  | दूसरी ससुराल से चढ़ी हरे आंचल वाली लाल चुनरी । जो  ससुराल वाली थी वो ज्यादा पहना भी नही और फट गयी | 


बीस साल की शादी में ब्याह  के बाद आजतक सिर्फ एक साड़ी खरीदी थी भाई की शादी में |  अब शादी वाली कई साड़ियां कटवा के सूट , लहंगा और गाउन बनवा लिया तो बहुत दिनों  से एक साड़ी और चुनरी वाला एक जयपुरी सूट सलवार खरीदने का सोच रही हूँ लेकिन खरीद ही नहीं पा रही हूँ | तो मन की इच्छा वही कही दबी पड़ी है । इसका कारण  ये भी है कि साड़ी  और  सूट बहुत  कम ही पहन रही हूँ  तो लगता है शौक मा खरीद  तो लू और एक दो बार  पहन भी लू लेकिन  उसके बाद  वो बस आलमारी मे बस ऐसे ही टंगी  रहेगी । 

June 22, 2022

चूहे को जुकाम है

चूहे को जुकाम हैं ,  नहीं कोई बाल कविता नहीं हैं  सच में चूहे को जुकाम हुआ था तभी मेरी तुलसी दो दिन में सफाचट कर गया | पहले भी नयी  लगी तुलसी  खा जाता था तो  कुछ दिन तक तुलसी  रात में कमरे में रख लेती थी  | ठीक ठाक बड़ी हो गयी थी तो उन्हें बाहर ही ग्रिल में छोड़ दिया  | फिर एक दिन अचानक देखा ऊपरी भाग  गायब हैं | उस दिन से फिर रात में कमरे में रखना शुरू किया | पर एक दिन फिर भूल गयी और पूरी तुलसी जी चूहे के पेट में समा गयी | 

तुलसी जी का जाना तो उतना दुखदायी नहीं था उससे ज्यादा कष्टकारी था मेरा मनीप्लांट को गमले से काट देना | दस पंद्रह फिट तक हो चूका घना मनीप्लांट एकदम गमले से पूरा का पूरा काट गया | जड़ से ही काट जाता तो कुछ बचता ही नहीं था | पहली बार जब काटा तो एकदम रोना ही आ गया था | उसके बाद चार गमलो में धीरे धीरे लगा दिया कि एक तरफ से काटे  कुछ तो बचा रहे | 


छः महीने पहले भी काट गया था तो सारे लंबी डालियों को पानी में छोटा छोटा करके लगा दिया | चार महीने में उन सब में अच्छा जड़ आ गया तो वापस गमले में लगा दिया   | अब उसने फिर तुलसी जी के साथ मनी प्लांट काट दिया | बस ऐसी ही हरकते मेरा पशुप्रेम समाप्त कर देती और फिर केक रख कर दो चार चूहों का हैप्पी बर्थडे करवा देतीं हूँ | कायदे में रहो तो किसी को कोई हानि ना हो लेकिन बेकायदा हरकत पर अहिंसक व्यक्ति भी अहिंसा त्याग देता ।

एक चूहे महाराज किसी और के हिंसा के शिकार हुए थे और मेरे गमले में सुस्त से पड़े थे  इनकी ये हालत देखते बाहर से कौवो ने इन पर आक्रमण कर दिया | हमलों के जवाब में भागा  भी नहीं जा रहा था उनसे | जीवे जीव आहार प्रकृति का नियम हैं लेकिन फिर भी देखा ना गया तो कौवो को भगा दिया लेकिन सुबह तक इनका भी काम तमाम ही हुआ | 

June 21, 2022

सारी नसीहत रोक बस स्त्री पर

जमाना  बड़ा ख़राब हैं , लड़कियों के लिए बाहर निकलना सुरक्षित नहीं हैं  बेहतर हैं रात में लड़कियां ,  महिलाएँ घरो में रहें बाहर ना निकले  | पुरुष उन्हें बाहर परेशान करते हैं तो लड़कियां स्कूल कॉलेज भी ना जाये | लडकिया खजाने की तरह हैं उन्हें तिजोरी में बंद करके रखे | लड़कियां पर्दा करे , घुघंट करे , बुर्का पहने तभी वो लोगों की बुरी नज़रों से सुरक्षित हैं | 


ये सब कितना अलग हैं , उससे जो कुछ  समय  पहले पढ़े लिखे , समझदार , उदारवादी , स्त्री विमर्श करने वाले , नारीवादियों द्वारा सुल्ली , बुल्ली बाई कांड के बाद कहा जा रहा हैं कि सोशल मिडिया पर लड़कियां महिलाऐं अपनी तस्वीरें ना लगाए , अपनी फोटो यहाँ  लगाना खतरनाक हैं | लोग महिलाओं की तस्वीरों का गलत उपयोग  कर सकते हैं |  महिलाऐं लड़कियां खुद  को सोशल मिडिया पर सिमित रखे , अपनी  तस्वीरें पोस्ट पब्लिक ना करे | 


ये सब नसीहत महिलाओं को ही देना , उन्ही को सिमित और छुपने के लिए कहना उन्हें दंड देने जैसा नहीं हैं क्या  | अपराध पुरुष करे और सजा नसीहतें महिलाओं को दिया जाए ये कौन सा आधुनिक सोच हैं भाई | वास्तव में ये उसी पुरातनपंथी सोच का एक हिस्सा हैं तो  बलात्कार जैसे पुरुष के अपराध को , स्त्री की इज्जत मान सम्मान के लूट जाने से जोड़ देता हैं | 


आप एक बार सोच कर देखिये की अगर  पुरुषो की फोटो लगा कर कहा जाता की गधे हैं , जागोला हैं , कुत्ते हैं आओ इनकी बोली लगाओ तो क्या इसे पुरुषो की  इज्जत से जोड़ कर देख फोटो ना लगाने की नसीहत दी जाती | क्या ये कहा जाता कि पुरुषो का चीरहरण  किया गया |  एक मशहूर कार्टूनिस्ट ने इसे महिलाओं के ऑनलाइन चीरहरण से जोड़ दिया |


 कोई घटिया बद दिमाग पुरुष , समूह , किसी  विचारधारा के लोग  किसी महिला के लिए कुछ सोच ले , सार्वजनिक रूप से कुछ कह दे तो क्या  इतने भर से किसी महिला का सम्मान चला जाता हैं वो भरे बाजार नग्न होने जैसा हैं |  किसी का सम्मान उसके अपने  ख़राब बुरे कृत्य से जाता हैं किसी और के  उस पर कीचड़ उछालने या घटिया सोच से नहीं | 


कोई भी समाज हो  , वर्ग हो स्त्री के खिलाफ होने वाले अपराध पर उसे पीड़ित की जगह अपराधी बनाने की ही सोच रखता हैं |  पहले ये जानकर किया जाता था अब जाने अनजाने में पढ़े लिखे भी करते हैं और रूढ़िवादियों को मौका मिल जाता हैं | 


वास्तव में ये  बुल्ली सुल्ली बाई कांड एक गंभीर अपराध था जिसके खिलाफ पहली बार में ही सख्त कार्यवाही किये जाने की जरुरत थी | पहली बार में ही सायबर सेल  और कोर्ट में इसके खिलाफ शिकायत की जाती तो ऐसे अपराध दुबारा  नही होते उन्हे होने से रोका जा सकता था । 


June 20, 2022

आस्था की परख

 

शेल्डन सिर्फ नौ साल में ही हाई स्कूल में पढ़ने वाला  तेज बुद्धि का  विशेष बच्चा हैं |  विज्ञानं पढ़ने वाला शेल्डन ईश्वर में विश्वास नहीं रखता लेकिन उसकी माँ एक बहुत ही धार्मिक महिला हैं | जब  उनके करीबी की सोलह साल की बेटी की दुर्घटना में मृत्यु हो जाती हैं तो उनका विश्वास ईश्वर से कुछ हिल जाता हैं | 


पहले वो घर में ही प्रार्थन की जगह बना और ज्यादा ईश्वर की आराधना में लग जाती हैं ताकि ईश्वर के प्रति उनक आस्था और मजबूत हो लेकिन कुछ काम नहीं बनता | वो इस मौत को गॉड प्लान अर्थात ईश्वर की मर्जी और लीला कहती हैं लेकिन खुद उन्हें उस बात पर यकीन नहीं होता हैं | उसके बाद जब उस दुःखी माँ को सांत्वना का कार्ड भेजते रिवाज के अनुसार ये लिखना चाहती हैं कि चिंता न करो कि मृत आत्मा यहाँ से बेहतर जगह अर्थात ईश्वर के पास हैं तो उनके हाथ कांप जाते हैं और वो ये नहीं लिख पाती |  कहतीं हैं भला एक बच्चे के लिए अपने माँ बाप के साथ पास  से बेहतर जगह और कौन सी हो सकती हैं , ईश्वर की जगह भी नहीं  | 


ये टूटती आस्था उन्हें तोड़ने लगती हैं और वो बहुत दुःखी हो जाती हैं और हर तरह की प्रार्थना छोड़ देतीं हैं | शेल्डन के लिए उसकी माँ ही दुनियां में सब कुछ हैं क्योकि उसके तेज बुद्धि उसे बाकियों का दुश्मन बना चुकी हैं | उसे माँ का दुःख देखा नहीं जाता और उन्हें सांत्वना देने के लिए उनके ईश्वर में विश्वास को फिर से बनाने का प्रयास करता हैं | 


कहता हैं आपने कभी सोचा हैं अगर इस यूनिवर्स में ग्रेविटी अगर एक प्रतिशत भी कम होती तो हम अंतरिक्ष में बिखरे कण से ज्यादा कुछ नहीं होते | यदि ग्रेवेटी एक प्रतिशत ज्यादा होती तो दुनिया एक ठोस पत्थर होती जीवन नहीं | सब कुछ इतना सही और परफेक्ट हैं कि लगता हैं जैसे किसी रचनाकार ने ही इसको बनाया हैं | ईश्वर में आस्थाहीन अपने बच्चे के इस प्रयास से माँ अपने प्रति उसके  प्यार की गहराई को  महसूस कर आराम पाती हैं | 


ईश्वर में आस्थावान कई बार जीवन में घट रही घटनाओ के कारण   ईश्वर के प्रति अपने विश्वास को टटोलता हैं या उससे दूर होता हैं लेकिन अंत में उसे  नशे की तरह वापस अपना लेता हैं क्योकि उसके बाहर उसे राहत नहीं मिलती |  ईश्वर में  आस्था सुविधानुसार होती हैं | खुद झूठ बोल रहें , पाप कर रहें , लोगों को धोखा दे रहें , लोगों के साथ गलत कर रहें हैं तो कण कण में रहने वाला सबके कर्मो का हिसाब रखने वाला , सबको हर समय देखने वाला ईश्वर गायब हो जाता हैं | नरक ,जहन्नुम का द्वारा , ईश्वर या क़यामत के दिन की सजा ,अगला जनम ख़राब होना सब भूल जाता हैं | 


क्योकि ईश्वर आस्थावानों के दिमाग में होता हैं जब अपना लाभ , फायदा , धन लालच हो तो दिमाग तुरंत ईश्वर वाला कमरा बंद कर देता हैं और बिना डर लोग हर तरह का पाप करते हैं | बाकि सामान्य दिनों में ईश्वर फिर सबको सब जगह दिखने लगते हैं | सोचिये कि सभी आस्थावान वास्तव में अपने अपने ईश्वर में पूरा विश्वास रखते तो ये दुनिया स्वर्ग से कम ना होती  पाप , गलत , अपराध  से मुक्त होती | इस दुनियां में इतना दुःख ,  दर्द , अभाव , अपराध  इसलिए ही हैं क्योकि लोगों को ईश्वर में ठीक से पक्का विश्वास नहीं हैं | 


वैसे जाते जाते शेल्डन के उस तर्क का भी जवाब दे दूँ की दुनियां को जीवन जीने लायक सही परफेक्ट बनने में लाखो साल लगे हैं ये कुछ दिनों का काम नहीं हैं  | बिंग बैंग से जल और वनस्पति  आने तक , पहले अमीबा से डायनासोर आने तक और जानवर से इंसान बनने का सफर लाखो करोड़ो सालों का हैं | यदि कोई रचनाकार होता तो ये दुनिया छः , आठ , दस दिन में वैसे ही बनती जैसा कि विभिन्न धार्मिक पुरस्तकों में वर्णित हैं | 

June 19, 2022

भेड़ बकरियों से हम सब


लॉकडाउन के बाद जब शराब की दुकाने खुलने की घोषणा हुयी तो एक शराबी ,  पत्रकारों से दुःखी   हो कर कहता हैं कि नौ बजे दूकान खुलने वाली हैं पौने नौ बज गए पुलिस प्रशासन कोई अभी तक इस शराब के दुकान के पास व्यवस्था बनाने लाइन लगवाने नहीं आया |  सरकार नकारा हैं उसे हमारी कोई चिंता नहीं हैं | 


और बहुत सारे इंटरव्यू आम लोगों के देखे जो कहते हैं कि हम मास्क नहीं पहनेंगे , हम दूसरे लोगों से शारीरिक दुरी भी नहीं रखेंगे , हम लॉकडाउन का पालन भी नहीं करेंगे | ये काम तो सरकार का हैं  कि वो देखे कि कोरोना बिमारी ना फैले और  उचित इलाज मिले | 


एक  अच्छे नागरिक बन लाइन लगा सामान लेने ,  मामूली से नियम जो हमारी सुरक्षा के लिए बने  हैं उनका पालन करने की सोच भी हम नहीं रखते और चाहते हैं कि ये सारे काम भी सरकार हमें डंडा मार कर करवाए | हम भेड़ बकरियों सा व्यवहार करते हैं और चाहते हैं की सरकारे हमें हांक कर सब काम करवाए फिर कहते हैं कि सरकार जनता को कुछ  समझती ही नहीं | 


लोगों को अपनी जान की परवाह नहीं होती और उम्मीद करती हैं कि सरकारे उनकी जान की परवाह करे | 2020 मे  अक्टूबर-नवंबर त्यौहारों और शादी के सीजन  में लोगों ने  बिमारी से बेपरवाह हो कर खूब नियमो की  धज्जियाँ उड़ाई |  बाजारों , शादियों , पंचायत चुनावों , राज्य के चुनावी रैलियों , कुंभ और धार्मिक आयोजन आदि में लापरवाह हो कर भीड़ जमा की | 


मास्क पहने और हाथ धोने जैसे मामूली  नियमो को भी अनदेखा  किया  | दूसरी लहर  की चेतावनी को अफवाह बताया , दूसरे देशो से फिर से बीमारी  फैलने की आ रही की खबरों को नजर अंदाज किया नतीजा 2021 अप्रैल मई तक सबने देखा | 

काश बाजार , घूमने फिरने , शादियों में , धार्मिक आयोजन , चुनावी रैलियों और भीड़ भरी आदि जगहों पर मजे के लिए जाने से पहले ,  दूसरी  लहर की चेतावनी को नजरअंदाज करने से पहले बस  एक बार सबने 2020 अप्रैल मई वाले पोस्ट,  स्टेटस को  सोशल मिडिया  पर खंगाला होता तो 2021 वाले दूसरी भयंकर लहर के खौफनाक हालातो मौतो से बच सकते थे। 

इस कोरोना से भविष्य  के लिए  कुछ सीखा समझा तो ठीक नहीं तो भेड़ बकरियों को  वैसे भी फर्क नहीं पड़ता | 

#फ्लैशबैक 



 






June 18, 2022

हम सीखते सुधरते नही

कुछ  महिन  पहले मुंबई की जिस 60 मंजिला  बिल्डिंग में आग लगी वो मेरे बिल्डिंग से दो तीन बिल्डिंग बाद ही हैं | पतिदेव बस ऑफिस के लिए निकले ही थे कि फोन किया की  खिड़की से बाहर देखो कितनी भयानक आग लगी हैं | खिड़की के बाहर देखा तो   सब ब्रिज पर खड़े अपना अपना मोबाईल लिए फोटो वीडियों बना रहें थे दुर्घटना का | हमारे पतिदेव क्यों पीछे रहते चुकी आज टैक्सी में बैठे थे तो  झट से वीडियों कॉल लगा मुझे लाइव दिखाने लगे | हमने डपट कर फोन रखवा दिया | 


हम लोग ज्यादा चिंतित नहीं थे इस दुर्घटना के लिए क्योकि बिल्डिंग को तैयार हुए भले दस साल हो गया था लेकिन इतनी बड़ी जगह में एक्का दुक्का लोग ही रहते थे | अब कह नहीं सकते कि फ़्लैट बिका नहीं था या सबके काले पैसे  संपत्ति में निवेश में वहां ज्यादा लगे था तो रहने वाले कम थे  | यही कारण हैं कि आग पर बहुत जल्दी काबू पा लिया गया क्योकि लगभग सभी फ़्लैट खाली ही रहे होगे | दुर्भाग्य ही कहें की एक व्यक्ति की आग से बचने के चक्कर में गिर कर हो  मौत गयी | मृत व्यक्ति या तो फ़्लैट की देखभाल करने वाला नौकर रहा होगा या इंटीरियर का काम चल रहा होगा तो कारीगर रहा होगा | 


इतनी बड़ी आग देख मुझे आश्चर्य हुआ की आग से बचाव के लिए  इसमें अच्छे खासे सिस्टम लगे थे फिर आग इतनी बड़ी कैसे हो गयी | दस साल पहले इसका विज्ञापन पतिदेव के मित्र की विज्ञापन कंपनी ने ही बनाया था तो पता चला तब इसमें तीन या चार बीएचके के फ़्लैट की कीमत करीब बारह करोड़ से शुरू हैं | ख़ास जैन लोगों के लिए बिल्डिंग तैयार की गयी हैं इसलिए आर्टिफिसियल घास लगाए गए हैं | 

आग से बचाव के लिए भी दुनियां जहान का सिस्टम लगा था | लेकिन अब पता चल रहा हैं कि सिस्टम काम ही नहीं कर रहा था | सोचिये लाखो रुपये इन महंगे इमारतों की मेंटेनेंस के लिए फ़्लैट मालिकों से वसूला जाता हैं और इनकी ये हालत हैं | आम  इमारतों में तो कोई सिस्टम ही नहीं होता हैं तो उनकी क्या हालत होगी | 


कुछ साल पहले जब मंत्रालय में आग लगी थी तो फायर ब्रिगेड वाले बड़े सक्रीय हुए थे और लगभग हर ईमारत का निरिक्षण किया गया था | हमारी बिल्डिंग की निर्देश दिया गया था कि सीढ़ियों पर बने जालीदार बाहरी दिवार को तोड़वा कर लोहे के ग्रिल लगवाओ और जिसमे खुलने  वाली खिड़की हो | ताकि आग लगने पर लोगों को  बाहर निकालने में आसानी हो और धुंआ भी आसानी से बाहर  निकले ताकि लोगों का सीढ़ियों  से उतरते समय दम ना घुटे | 


हमारी बिल्डिंग ने ये काम  तुरंत कर दिया लेकिन उन खिड़कियों पर ताला लगा रहता हैं | एक बार मैंने टोका की इनमे ताले लगे हैं तो क्या फायदा किसी को एमरजेंसी में बाहर निकलना होगा तो पहले ताला तोड़ेगा अपने सर से फिर निकलेगा | तो कहते हैं तोड़ने की क्या जरुरत हैं पांचवी मंजिल वाले के पास चाभी हैं उससे मांग कर खोल लेगा | अब बताइये इस महान रिप्लायी का कोई जवाब हैं | 

हमने थोड़ी देर इस मूर्खता पर बहस कि की आदमी आग लगने या अन्य दुर्घटना पर नीचे जा कर बाहर निकलने का प्रयास करेगा  या ईमारत में और ऊपर जा कर और समय बर्बाद करके खुद को और खतरे में डालेगा | मूर्खो से वैसे भी बहस करना बेकार हैं हमने भी मन ही मन कहा मरो मूर्खो हमें क्या हैं | हमने तो अपने घर में ही खुलने वाली खिड़की लगा रखी हैं दूसरी मंजिल से कूद भी गए तो बचने के चांस हैं  | जो ग्रिल वाले जेल में पड़े हैं और   कूदने पर मरने वाली स्थिति में हैं वो समझे | 

June 17, 2022

इलेक्ट्रॉनिक कचरा


हर साल दिवाली की सफाई में ढेर सारा इलेक्ट्रॉनिक कचरा घर में पड़ा मिलता है  | एक लगभग बारह साल पुराना डीवीडी प्लेयर हैं |  आज के ज़माने में किस काम का , बरसो से बिना चले ऐसे ही पड़ा हैं पता नहीं क्यों | एक डिजिटल स्टिल और एक वीडियों कैमरा पड़ा हैं |  डिजिटल कैमरा तो उन्नीस साल पुराना हैं वीडियों वाला तेरह चौदह साल पुराना हैं | मोबाइल में अच्छे कैमरे आने के बाद वो दोनों बेकार पड़े हैं | 


एक तेरह साल पुराना डेस्कटॉप भी हैं | चार साल से पतिदेव का पुराना लैपटॉप प्रयोग कर रही हूँ तो डेस्कटॉप बंद पड़ा हैं , बस प्रिंटर से जुड़ा हैं तो प्रिंट निकालते समय चालू होता हैं | कई बार सोचा कि उसे किसी अनाथाश्रम में दे दूँ पास में ही  लडको का आश्रम हैं वहां देने का सोचा लेकिन सुरक्षा कारणों से उसे देने में हीचक होने लगी |  जब पता चला  डिलीट की गयी चीजे भी हासिल कर सकते  हैं कंप्यूटर से तो थोड़ा डर लगा | 


ना कोई ऐसी वैसी चीज ना हैं उसमे लेकिन बैंक अकाउंट , मेल और सोशल मिडिया एकाउंट , फोटो , परिवार से चैट , मेरा बिजनेस काम से जुडी चीजे  आदि बहुत सारी  चीजे उसमे थी कुछ समय पहले तक | पता नहीं कौन उसका क्या फायदा उठाये तो वो भी ऐसे ही पड़ा हैं | 


पुराना  केबल का सेटअप बॉक्स मिला  | केबल वाले ने हजार रुपये ले कर ख़राब सेटअप बॉक्स के बदले दिया फिर महीने भर बाद ही फ्लैट स्क्रीन एचडी टीवी ले लिया तो सादा सेटअप बॉक्स बेकार हो गया | जब केबल वाले को वापस लेने को बोला तो कहता हैं दो सौ रुपये दूंगा बस , हमने कहा कम से कम पांच सौ दो  , वापस किसी को हजार में दोगे तुम पांच सौ का फायदा बहुत हैं लेकिन वो माना नहीं | हमने कहा नहीं देंगे भाग जाओ दो सौ रुपये हमारे लिए कुछ नहीं हैं लेकिन तीन सौ के लालच में तुम पांच सौ भी गवाओगे और एक ग्राहक भी | उसे भगा के डिस लगवा लिया | 


अब डिस और उसका सेटअप बॉक्स भी कचरे के रूप में पड़ा हैं क्योकि  रिचार्ज ही नहीं करा रहें हैं |  भाई ने अमेजॉन स्टिक देने को बोला हैं अगर टीवी में लगा तो ठीक नहीं तो टीवी भी कचरा बनेगा क्योकि अब उसे कोई देखता नहीं ओटीटी लैपटॉप पर चलता हैं |  लैपटॉप भी सात साल पुराना हैं और कई बार ख़राब हो चूका हैं जब तक बनवाकर चल रहा हैं चलता रहेगा फिर वो भी कचरा ,जो किसी को देने वाली नहीं | 


तीन मोबाईल मिले एक पूरा ख़राब और बाकि दो सही  हैं बस आज के जरुरत के हिसाब का स्टोरेज और बैटरी नहीं हैं वो भी किसी को देने वाली नहीं  |  चेक कीजिये आपके घरों में भी इस इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल क्रांति ने ढेर सारा इलेक्ट्रॉनिक कचरा भरा होगा जो ना रखते बन रहा ना फेकते | 

June 16, 2022

ओटीटी सीरीज मॉर्डर्न लव

कहते हैं किसी किताब के कवर से किताब को जज नहीं करना चाहिए  वैसे ही किसी सीरीज के  नाम से सीरीज को जज नहीं करना चाहिए | अमेज़न  पर आ रहा मॉर्डर्न लव इसी बात को साबित करता हैं  | नाम से यही लगता हैं जैसे आज के ज़माने के किसी लव स्टोरी की बात होगी लेकिन देखने पर पता चलता हैं ये वास्तव मे इंसानी रिश्तों इंसानो के बीच हर तरह के प्यार को दिखाता हैं | 


हर एपिसोड में अलग अलग कहानियों को दिखाया गया हैं और पहली ही कड़ी में ये हमारी उस धारणा को तोड़ देता हैं जो नाम के कारण हमारे दिल  दिमाग में होता हैं | पहली कहानी एक  ईमारत मे रह रही एक युवा लड़की और इमारतके दरबान के बीच के अनकहे से पिता पुत्री जैसा या गार्जियन जो भी समझिये के प्रेम को दिखाता हैं |   

युवा प्रेमकहानी भी हैं और वृद्धावस्था में हुआ प्रेम और विवाह भी हैं | एक कहानी गे कपल और उन्हें अपना बच्चा देने वाली गर्भवती लड़की के बीच रिश्तो पर हैं तो एक कहानी विवाह बचाने के लिए संघर्ष कर रहे जोड़े की भी हैं | दो कहानियां मिलने और बिछड़ने का एक ऐसा किस्सा दिखाती हैं कि अंत में ओह निकल जाए | एक कहानी ऑफिस में काम कर रहे दो अलग उम्र के लोगों के बीच  रिश्तो को लेकर गलतफहमी पर हैं | दोस्ती और  प्रेम की गलतफहमी में जी रहे कॉलेज के दोस्तों की भी कहानी  हैं |  एक कहानी में डिप्रेशन से जूझती लड़की को बाहर निकालने कोई   प्रेमी नहीं कोई और आता हैं  |


दूसरे सीजन की पहली  कहानियां दो बस दिल ही छू लेती हैं |    दूसरे विवाह में खुशहाल जीवन जी रही महिला का पहले पति के लिए  बचा प्रेम हैं | तो दूसरी कहानी हमारी लॉकडाउन की यादे ताजा कर देती हैं जिसमे  पहले  लॉकडाउन के समय उपजा प्रेम फिर उससे बिछड़ना और फिर लॉकडाउन के बीच ना मिल पाने का दुःख |  

दोनों सीज़न  आठ आठ एपिसोड का हैं ,  हिंदी सबटाइटल के साथ |   निर्माता के दावेके अनुसार ये सभी कहानियां सच्ची हैं और हमें तो  सब अच्छी लगी | कुछ हल्का फुलका देखना हो जो एक ही एपिसोड में ख़त्म हो जाये आगे के लिए रुकना ना पड़े , जो दिल दिमाग  को तनाव और दुःख ना दे कर सकून दे तो देख सकते हैं ये सीरीज | 

#देखासुना 









June 15, 2022

कोरोना वैक्सीन और भ्रष्टाचार


कोरोना काल  मे कोरोना वैक्सीन के साथ इतना बड़ा भ्रष्टाचार हो रहा था  कि विश्वास करना मुश्किल हो गया  |  सरकारी के साथ ही  नीजि अस्पतालों और ऑफिसेस में होने वाले वैक्सीनेशन सेंटर पर भी ये बड़ी  मात्रा में हो रहा था  | 


जब वैक्सीन का पहला डोज लिया था तो उस समय ध्यान नहीं दिया और पूछा भी नहीं लेकिन  दूसरा डोज लेने के बाद नर्स से इस बारे में  पूछा तो वो अजीब सी नज़रों से मुझे देखने लगी | 


 मैंने कहाँ मैंने बिना रोये वैक्सीन लगवा  हैं तो मेरा चॉकलेट कहाँ हैं |  नर्स ने ना  कोई जवाब दिया और ना चॉकलेट ही दिया | बचपन से देख रही हूँ , अपने नहीं बिटिया के बचपन से , कि वैक्सीन लगवाने के पहले डॉक्टर बोलती हैं रोना मत , अगर रोये नहीं तो चॉकलेट मिलेगी | जबकि उसके रोने के बाद भी चॉकलेट या कोई  गिफ्ट जैसे महकने वाला इरेजर , स्टाइल्स पैंसिल अगैरा वगैरा मिल ही जाती थी उसे | 


यहाँ तो हम जरा भी नहीं रोये और चॉकलेट पर भी  मान जाने वाले थे लेकिन कुछ मिला नहीं   मतलब नथिंग |  कौन खा  गया हमारे हिस्से की चॉकलेट , नेशन वांट टू नो |  ना माया मिली ना राम , ना खुदा ही मिला ना विसाले ए  सनम वाली हालत हो गयी अपनी | रोये भी नहीं और चॉकलेट भी  ना मिली इससे अच्छा तो भुक्का फाड़ के रो ही लेते | दो चार दस तो जरूर वैक्सीन सेंटर से भाग जाते कसम से  अगर रोना शुरू करती वैक्सीन लगते  | 


इस भ्रष्टाचार  से इतने तंग आये की जब सरकार  ने कहा तीसरा बूस्टर  डोज लगवा लिजिए  तो हमने कहा जब चॉकलेट  मिलनी नही तो काहे लगवाये , सो जाने  ही दिया । 

#फ्लैशबैक 




June 14, 2022

रणथम्बौर की सैर और टाइगर का इंतजार



नसुरुद्दीन शाह की एक फिल्म थी जिसमे वो विदेश से  आये लोगों  को खुद को एक रॉयल फैमली से बता कर लुटते थे | उन्हें रात में जंगल में ले जा कर भूसा भरे बाघ को असली बता दिखाते थे | एक नौकर हाथ से पूंछ हिलाता था और अँधेरे में सब उसे ही असली मान उत्साहित हो जाते थे | 


बीते दिवाली  हम भी टाइगर देखने रणथम्बौर  गये थे । जंगल में इंट्री भी किसी जुरासिक पार्क की फिल्म जैसा हुआ लेकिन ना टाइगर दिखा न उसकी पूंछ | कहने को सबसे वीआईपी जोन , जोन थ्री में गए थे लेकिन सौ सवा सौ लोगों ( जितना उस जोन मे लोगों में लोगों को जाने की इजाज़त  थी ) में से किसी का तो बैड लक इतना अच्छा था कि टाइगर हमारे नहीं बगल के चार नंबर जोन में लोगों को दिखायी दिया | 

झील के एक तरफ हम थे दूसरी तरफ दूसरे जोन के लोग   | उधर से उत्साहित लोगों की आवाज झाड़ियों से आती रही कि उन्हें  टाइगर दिख रहा हैं |  हम लोग घंटो वही दम साधे बैठे रहें की अब इस तरफ आएगा अब आएगा लेकिन उस दिन टाइगर का मूड ही नहीं था हम लोगों  को दर्शन देने का सो वो आया ही नहीं | 



वैसे मुझे लगातार शक होता रहा कहीं झाडियोंमे रिकार्डिंग बजा कर हमें टाइगर होने का भ्रम तो नहीं दिया गया कि देखो टाइगर वही हैं उधर के लोगों को दिख रहा हैं बस आप को नहीं | खैर टाइगर ना दिखा तो हम लोगों ने वहां के चिड़िया चुनमुन को देख और खिला कर ही काम चला लिया | 

अगले दिन चंबल नदी गए एक और खूंखार पानी के जीव मगरमच्छ देखने , उसके प्रकृति वातावरण में | छोटे भाई की पत्नी को जब पता चला हम स्टीमर से उस नदी में जायेंगे जो मगरमच्छो और घड़ियालों से भरा हैं तो डर  के मारे  उसने जाने से ही मना कर दिया पहले | फिर मैंने उसे चिढ़ाना शुरू किया खून भरी  माँग देखी है ना | 


मगरमच्छो ने अपने प्रदर्शन दिखाने में कोई अगर मगर नहीं किया | अपने सुस्ताने से लेकर मजबूत जबड़े फ़ैलाने और नजदीक जाने पर  हिलडुल कर पानी में उतर कर सारे करतब ठीक से दिखाए | बस उन्हें शिकार करते और  खाते नहीं देखा  ,जबकि नदी के पानी में हाथ डाल डाल कर हमने कई बार चारा उन्हें दिखाया था | अपने देशी थे ना हॉलीवुड वाले ब्रीड के नहीं थे जो नाव पलट पलट इंसानो शिकार करते | 


टाइगर ना देखने का मलाल तो कम ना हुआ लेकिन ये भी लगा चलो खाली हाथ तो नहीं आये कुछ  तो देख ही लिया | 





June 13, 2022

मार्डन लव और लॉकडाउन

जगह आयरलैंड में एक बड़े शहर से छोटे  शहर जा रही एक ट्रेन हैं | समय 2020 का हैं जब दुनियां में कोरोना का आगमन हुआ था और सभी जगह पहला दो हफ्ते का लॉकडाउन लगना शुरू हुआ था | ट्रेन से  लड़की लॉकडाउन के कारण कॉलेज से अपना सारा सामान ले  माँ के घर जा रही है | उसे सफर केलिए एक अच्छे सहयात्री की तलाश हैं | 

एक लड़का आता हैं जो लॉकडाउन के कारण अपने भाई के घर जा रहा हैं | कुछ देर बाद दोनों में बातचीत शुरू हो जाती हैं | लड़की बताती हैं वह मध्यकालीन इतिहास पढ़ रही हैं और लड़का एक विज्ञापन कंपनी के टेक विभाग में हैं |  दोनों एक दूसरे की बातों को फिर एकदूसरे को पसंद करने लगते हैं | 


लड़का कहता हैं उसे हर शुरू की गयी चीजों का अंत करना पसंद हैं चीजों को उसके  परिणाम तक पहुँचने अच्छा लगता हैं |  जबकि लड़की कहती हैं उसे चीजे बीच में ही छोड़ देने की आदत किसी चीज का अंत  करने की क्या जरुरत हैं | 

लम्बे सफर के बाद जब वो स्टेशन पर उतरते हैं तो लड़का तय करता हैं  कि वो एक दूसरे का फोन नंबर या पता नहीं लेंगे बल्कि दो हफ्ते बाद जब लॉकडाउन ख़त्म होगा तो इसी स्टेशन पर मिलेंगे और एक ही ट्रेन से लौटेंगे |  तब तक पता चल जायेगा कि वो एक दूसरे कोलेकर गंभीर हैं कि नहीं | 


लड़की माँ के घर आ कर जब  सारा किस्सा सुनाती हैं तो माँ बहुत उत्साहित होती हैं और उसे लडके के बारे में गम्भीरता से सोचने के लिए कहती हैं जबकि लड़की अपने  स्वभाव के अनुसार थोड़ी उदासीन हैं | लडके के घर उलटा होता हैं उसका बड़ा भाई उसे लड़की   के प्रति हत्तोसाहित करता हैं की तुम ज्यादा सोच  का उसके प्यार  में मत पड़ो ,  पता चला वो दो हफ्ते बाद नहीं आयी तो  तुम्हारा दिल टूट जायेगा | 


दो हफ्ते बीतने के दो दिन पहले ही दोनों को पता चलता हैं कि लॉकडाउन दो हफ्ते के लिए और बढ़ गया हैं | लड़का ये सुन चिंतित  हैं कि अब वो लड़की से कैसे मिलेगा स्टेशन कैसे जायेगा | वो नहीं जा पायेगा और लड़की आ कर लौट गयी तो | उधर लड़की पहले ही सोच लेती हैं ये  तो होना ही था अब हम नहीं मिल पायेंगे तो छोड़ो मिलने की बात | 


लड़की की माँ उसके इस निराशावादी रुख से नाराज हो उसे बढ़ावा देती है कि कैसे भी करके स्टेशन जाए | उसने तो पूरे मोहल्ले को ये बात बता शर्त  भी लगा ली हैं कि लड़का स्टेशन जरूर आएगा | लड़की कहती हैं वो नहीं आयेगा फिर फिजूल की झंझट दुःखी होने वाला काम क्यों किया जाये | इधर लड़का अपने भाई को मनाता हैं कि स्टेशन जाने के लिए अपनी कार दे दे क्योकि शहर में कोई ही गाड़ी नहीं चल रही हैं | 



भाई कार नहीं देता क्योकि उसे पुलिस द्वारा पकड़े जाने का डर हैं और ऑर्डर घर से सिर्फ दो किलोमीटर तक जाने का हैं | लड़का भाई की साईकिल ले कर निकल जाता हैं लेकिन रास्ते में पुलिस रोक देती हैं | पहले वो झूठ बोलता हैं कि पास की बिल्डिंग में ही रहता हैं बस स्टेशन तक जा रहा हैं लेकिन जब महिला पुलिस उसे आगे जाने के लिए मना  कर घर जाने के लिए कहती    है  तो वो उसे सारा किस्सा स्टेशन जाने का सूना देता हैं | 


पुलिस अब उसे और डांटती हैं कहती हैं स्टेशन पर कोई ट्रेन नहीं चल  रही हैं वो घर जाए क्योकि लड़की भी इस सुरक्षा के बीच , चाहेगी भी तो स्टेशन नहीं आ पायेगी | लड़का निराश हो घर आता हैं और लड़की भी अपने साईकिल से घर  वापस आ जाती हैं | मोहल्ले के लोग इस तरह निराश आता देख समझ जाते हैं वो लड़के से मिल नहीं पायी | 


लड़की को चीजों का अंत करना नहीं आता इसलिए वो वापस अपने काम और पढाई में लग जाती हैं जबकि माँ फिर से कहती हैं बस इतना ही तुम उसे भूल जाओगी | उधर लड़का अब भी छोड़ने को तैयार नहीं हैं और वो फोन नंबर ना लेने पर अफसोस करते ट्रेन में उससे हुयी बात को याद करता हैं | तभी उसे याद आता हैं लड़की फोन पर आपने सामान ले जाने के लिए गाड़ी वाले को अपने घर का पता बताती हैं | 


बहुत याद करने पर लडक को उसकी कालोनी मोहल्ले का नाम याद आ जाता हैं | और कहानी वहां ख़त्म होती हैं जब लड़का लड़की के मोहल्ले के मुहाने पहुँच कर  सुकून  की साँस लेता हैं |  


मॉर्डन लव का ये एपिसोड एक प्यारी प्रेम कहानी के साथ लॉकडाउन की यादे भी ताजा कर देती  हैं | बिलकुल फ्लैशबैक में ले गया जैसे  | कैसे सुनसान सड़के होती थी , कैसे लॉकडाउन पर सब घर भाग रहें थे , कैसे इस खाली समय को सब इधर उधर के काम  करके बिता रहें थे  तो कैसे बहुत से लोगों के लिए घर जेल बन गया था  | जहाँ 2020 का लॉकडाउन डर के बीच मजेदार गुजरा तो 2021 ने डर और दहशत ने सभी को अंदर से झंकझोर दिया । 


#फ्लैशबैक   













June 12, 2022

ज़िन्दगी की ड्रेजिडियत



  सुबह टहलने के लिए जब निकलती तब पतिदेव जागते और थोड़ी देर बाद में मेरे साथ टहलने पार्क में आते | अक्सर पार्क के दरवाजे पर  रुके रहते जब मैं चक्कर लगाते वहां तक पहुंचती तब मेरे साथ चलते | लेकिन दो चक्कर साथ लगाने के बाद जल्दी जल्दी चल कर मुझसे आगे निकल जाते | 


एक दिन उन्हें बिल्डिंग  से निकलते मैंने पार्क से ही देख लिया | सोचा आज इन्हे मजा चखाती हूँ रोज जल्दी जल्दी चल कर आगे चले जाते हैं आज इन्हे मैं तेज टहलाती हूँ | अपनी रफ़्तार इतनी बढ़ाई कि उनके पार्क के दरवाजे से अंदर आने के जस्ट पहले  पार्क के दरवाजे से आगे बढ़ जाऊ बिना उन्हें देखे  | मुझे तुरंत ही आगे बढ़ा देख  मेरे साथ चलने के लिए  तेज तेज  कदम चलेंगे | 

एकदम यही हुआ भी लेकिन हमने बात और बढ़ाई और अपन चलने की रफ़्तार उसके बाद भी तेज ही रखी  ताकि  कुछ देर और ज़रा  भागें वो  | आध पार्क पार करने के बाद मैंने महसूस किया की  पीछे पतिदेव अपनी रफ़्तार और बढ़ा रहें हैं | 

वापस दरवाजे के पास आते ही वो लगभग भागते मेरे पास आये | कंधे पर हाथ रख हांफते हुए धीरे से मेरे कान में कहा  तुमने टीशर्ट उलटी पहनी हैं | स्यापा अब क्या ही बताऊ की कितना दिमाग खराब हुआ | सोये हुए बाप बेटी को परेशानी ना हो इसके लिए  बिना लाइट जलाये कपडे बदलती हूँ और बाल बनाती हूँ बस वही गड़बड़ी हो गयी थी | 


मैंने कहा पहले ही आवाज दे कर रोककर नहीं  बोल सकते थे | तो बोले अरे मैंने भी तभी देखा जब एकदम तुम्हारे पास आया तुम तो आज भागे जा रही थी  | मैंने कहा ये बात थी और  मैं कब से सोच रही थी कि वो दोनों लड़कियां मास्क पहन कर टहलने के कारण मुझे बार बार देख रही हैं  | 

#लाइफकेस्यापास
#ज़िन्दगीकीड्रेजिडियत   






June 11, 2022

मैकाले की शिक्षा पद्धति

      बात पिछले साल मार्च अप्रैल में कोरोना कोहराम के बीच ऑक्सीजन के मारामारी के समय की  हैं |  बिहार के  एक छोटे   से जिले के डीएम बिजली विभाग से हुए विवाद के कारण एक बंद पड़े एक छोटे से कमर्शियल आक्सीजन प्लांट  का  विभाग  से समझौता करवा के वहां की बिजली सप्लाई शुरू करवाते हैं | ताकि किसी तरह थोड़े ही मात्रा में ऑक्सीजन  मरीजों को   मिले | 


वही नोयडा और गुणगांव जैसी जगहों में बड़े अस्पताल में लगे ऑक्सीजन प्लांट एनओसी ना मिलने    के कारण शुरू नहीं हुए थे | वो उस  भयानक ऑक्सीजन की जरुरत के समय भी बंद ही पड़े रहें क्योकि किसी अधिकारी को इस बात का ना ख्याल आया ना उनकी समझ कि एनओसी की कार्यवाही को तुरंत पूरा करवा कर प्लांट को शुरू करवाया जाए |  


कोरोना के इलाज के तौर पर रेमडेसिविर   नामक इंजेक्शन के लिए लोगों को कई दिन  लम्बी लम्बी लाइने लगानी पड़ी | लोगों को कई गुना दाम में उसे काले बाजार से खरीदना पड़ा | लेकिन जब भारत सरकार ने उसके बाहर भेजने पर रोक लगा दी तो किसी राज्य ,जिला , मंत्रालय के किसी भी  अधिकारी को इतनी समझ नहीं आयी कि तुरंत उसको बाहर  भेजने वाले से संपर्क कर  वहां से इंजेक्शन खरीद लिया जाये | 


हफ्तों तक उनके पास  लाखो की संख्या में इंजेक्शन यु ही पड़े रहें | हां ये जरूर हुआ कि नेताओ मंत्रियो के कहने पर वहां रेड डालने की नौटंकी  कर उसे बरामद दिखाया गया जबकि उन्हें रखने का वैध अधिकार मालिकों के  पास था और उनसे पहले ही ख़रीदा जा सकता था |  


सरकारी नौकरियों के लिए रट्टा मार कठिन परीक्षाएं पास करने वाले किसी सरकारी अधिकारी के  दिमाग में ये क्यों नहीं आया कि प्राइवेट पार्टियों द्वारा बाहर से मंगाये जा रहे   पोर्टेबल ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर पर नजर रखी जाये और उन्हें   तुरंत उचित   दामों पर लोगों को उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाए | 


आजके डिजिटल युग में इन सब चीजों के बारे में पता करना और नजर रखना कोई मुश्किल काम नहीं था | 


ये सारे परिणाम हैं आजादी के बाद अब तक मिल रही मैकाले की शिक्षा पद्धति का | जिसमे खुद के विवेक का  प्रयोग करने की जगह ऐसे लोगों को तैयार किया जाता हैं जो सरकारों की मालिकों की हर तरह की नीतियों का जमीन पर पालन करवाये , उनके आदेशों अक्षरश पालन करे और जरुरत पड़ने पर सरकारों और मालिकों का बचाव करे | 



ये शिक्षा पद्धति लोगों  को अपना विवेक प्रयोग कर खुद निर्णय लेने और आगे बढ़ कर काम करने की समझ नहीं देता |  जो कुछ लोग आगे बढ़ कर काम करते हैं ये खुद उनकी योग्यता क्षमता होती हैं | आम दिनों में हम आयदिन ऐसे सरकारी कर्मचारीयों को झेलते हैं  जो बेमतलब के सरकारी  नियमो में बधे मूर्खतापूर्ण बाते करते हैं और  व्यवहारिकता को नजर अंदाज करते हैं | लेकिन संकट विपत्ति के समय ये व्यवहार संकट विपत्ति  को और बढ़ा फैला देता हैं साथ में जानलेवा भी बना देता हैं | 


#फ्लैशबैक 

June 10, 2022

लाइफ के स्यापास

कोई दस ग्यारह बरस की रही होंगी मैं , बिलकुल सुबह का समय था और हल्की हल्की  ठंड पड़ना शुरू हो गयी थी | समझिये इतनी  ठंड की पानी करंट मारना शुरू कर चूका था ,  हाफ स्वेटर के बिना काम ना चलने वाला था और रजाईयां ओढ़ी  जाने लगी थी |  


एक सुबह मम्मी रजाई खींच मुझे आवाज दिया कि जल्दी से जा कर ब्रेड ले कर आओ पापा को जाना हैं | वो  समय पापा के काम का सीजन होता और वो सुबह सात आठ तक निकल जाते ,  नाश्ता मिले ना मिले उसकी कोई चिंता नहीं | इसलिए अपने चार भाई बहनो में सबसे बड़ी मुझे पता था उठ कर तो तुरंत मुझे जाना ही हैं | 


दूकान घर के ठीक सामने था |  हमारा घर फिर बाद में दो ढाई फिट की गली और फिर दूकान |  मम्मी लोग तो अपने चबूतरे से ही सामान ले लेती थी लेकिन हम बच्चो को गेट से बाहर निकल दूकान तक जाना होता था | मतलब बस ब्रश करके चले जाना था सो  ब्रश किया लेकिन पानी करंट  मारने लगा था तो बस  गीले अँगुलियों से  आँखे साफ़ कर लिया गया और चेहरे के बाकी हिस्सों को करंट से बचा लिया गया | 

गर्दन से ऊपर के घुंघराले बालों को झाड़ना ना झाड़ना बराबर था और सच कहा जाए तो उस समय हम सब बाहर जाते समय कैसे दिख रहें हैं कि कोई चिंता भी नहीं करते थे  सो बाल झाड़े भी नहीं गए | नाइट सूट लग्जरी , फ़िल्मी फैशन से ज्यादा जीवन में अहमियत नहीं रखता था | जिन कपड़ों को नहाने के बाद पहने होते उसी में सो जाते और सुबह उठ कर बाहर सामान लेने भी | 


बाहर निकली तो देखा सामने वाली दूकान बंद हैं |  ठंड शुरू होते दुकाने देर से खुलने लगी थी | तो सोचा सड़क तक चले जाते हैं ब्रेड चाय वाली दुकाने वहां तो खुल ही जाती हैं | सड़क चार मकानों बाद ही था इतनी सुबह गली में कोई था भी नहीं | गली की नुक्कड़ पर एक सब्जी वाला दूकान लगाता था उस समय वो दूकान लगा रहा था | उसकी नजर मुझसे मिली और उसने एक हास्य व्यंग्यात्मक टाइप मुस्कान मेरी तरफ फेंकी | 


उसका वो मुस्कुराना था कि मेरे चेहरे का रंग उड़ गया , मतलब काटो तो खून नहीं समझिये होश फाख्ता वख्ता जैसा कुछ होता हैं वो हो गया हमारा | क्योकि हमें याद आया कि पिछली रात हम भाई बहन जब खेल रहें थे तब मैंने  काले स्केच पेन से अपने चेहरे पर  मूँछे बनायीं थी | सुबह ब्रश करते समय मैंने तो बस आँखे धुली थी चेहरा नहीं तो  मूँछे अब भी मेरे नाक के नीचे विराजमान  होगा स्यापा  | 


गुस्सा आया कि जैसे हर बार मम्मी का साल ओढ़ कर निकल जाती थी आज वो क्यों नहीं किया | साल होता तो उससे आराम से छुपा लेती अपनी  मूँछे   बेकार में स्वेटर डाला | घर जा कर वापस आने का समय नहीं था पापा निकल जायेंगे तो मम्मी से डांट अलग पड़ेगी | 


फिर हमने एक  हथेलियों का मुठ्ठी बनाया और उसे नाक के नीचे ऐसे रखा जैसे बहुत ठण्ड लगने पर हम करते हैं | साथ में शुक्र भी मनाया कि रात में रामलीला नहीं खेल रही थी वरना दोनों गालों तक गया रावणी मूँछ मेरे दोनों हाथे से भी ना छुपता और तब सब्जीवाला मुस्कराने के बजाये ठहाके मारता  | मैंने छोटा सा हिटलरी मतलब चार्ली चैपलिन वाला मूँछ बनाया था जो एक मुठ्ठी से छुप गया | 


मुंह छुपाते ब्रेड  ला कर मम्मी को देते गुस्सा किया तुमने बताया क्यों नहीं मुझे कि मेरे चेहरे पर मूँछे हैं | मम्मी हँसते बोली हम तो जगा कर तुमको चले आयें तुमको देखे ही कहाँ |  लेकिन हफ्ता दो हफ्ता हम उस गली से सड़क पर गए नहीं  ताकि सब्जीवाले से  सामना ना हो | 



June 07, 2022

बच्चो का टिफिन , माँ की मुसीबत

जब भारतीय भोजन विकसित हो रहें थे तब शायद उन्हें उस ख़ास  परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ता होगा जिसका आज की महिलाओं को सामना करना पड़ता हैं | यही कारण हैं कि ज्यादातर भारतीय भोजन के तैयारी और उन्हें बनने में समय लगता हैं | कुछ झटपट बन जाए जिसके लिए पहले से तैयारी ना करना पड़े जो ठंडा होने के बाद भी अच्छा लगे ऐसी भोजन श्रृंखला बहुत कम हैं | 


लेकिन आवश्यकता आविष्कार की जननी  हैं सो महिलाओं ने सुबह छः सात बजे स्कूल जा रहें बच्चो के लिए भारतीय खानो में बहुत से परिवर्तन किये और उन्हें नया रूप रंग दे दिया | मेरा अंदाजा हैं आज के बच्चे चावल के  इडली और डोसा से ज्यादा रवा इडली और डोसा अपने टिफिन में ले  जाते होंगे | 


रवा के साथ सोडा को पीछे छोड़ते हुए इनो ने लगभग एंजल जैसा काम भारतीय महिलाओं  के लिए किया हैं | वो घंटो की तैयारी को मिनटों में पूरा कर देता हैं | पास्ता नूडल सैंडविच जैसे विदेशी भोजन भी घरों में  झटपट तैयार हो जाने के कारण ज्यादा घुसे हैं | 


बड़े काम पर जाते हैं तो वो नाश्ता करके दोपहर का खाना  ले जाते हैं जबकि सुबह छः सात बजे स्कूल निकलने वाले बच्चे बहुत हल्का फुल्का या कभी कभी तो बिलकुल खाली पेट ही निकलते हैं टिफिन में नाश्ता ले कर | इसलिए ज्यादातर वह बहुत  भारी , बहुत मसालेदार , या ठंडा होने पर ना अच्छा लगने वाले भोजन की जगह नाश्ते में खाने लायक हल्का फुलका ही खाना चाहते हैं | 


हम लोगों ने तो सारा जीवन पराठे अचार या सब्जी ही टिफिन में पाया हैं लेकिन आज के बच्चे शायद ही ये सब खाना चाहे | फिर इसका कारण ये भी हैं हम दस से चार के  स्कूल जाते थे और दोपहर का भोजन  स्कूल में करते थे भरपेट पराठा सब्जी |  हमारे बच्चे ब्रेकफास्ट स्कूल में करते हैं लंच तो घर पर करते हैं | उस पर से पसंद का कुछ ना दो तो टिफिन वैसा ही घर वापस आ जाता हैं कि खाने का टाइम नहीं मिला | 


मैं कभी अपना कुकरी शो करुँगी तो उसका नाम आई हेट किचन होगा और उसमे दुनिया भर के वो सारे  डिश बनाये जायेंगे जो बहुत आसानी से बिना टिटिम्मा के फटाफट  बन जाए | बता रहीं हूँ बहुत हिट शो होगा  | अकेले काम या कॉलेज जा रही बच्चो की फौज तैयार हो रही हैं जिन्हे ऐसे ही भोजन की तलाश हैं |


June 06, 2022

शरीर अलग मर्ज अलग इलाज अलग

 कुछ साल पहले एक लेख पढ़ा था कि वैज्ञानिको की एक संस्था ने मांग की हैं कि अब मनुष्य के शरीर का सामान्य तापमान 98.6 से कम करके 97. 7-8  कर देना चाहिए | इसके पीछे उनका तर्क था कि अब दुनियाँ में वेक्सिनेशन , साफ सुथरा खाना पीना  , अच्छा पोषण आदि  इतना बढ़ गया कि अब शरीर को वायरस आदि से बचाने के लिए अपना सामान्य  तापमान पहले की तरह नहीं रखना पड़ता हैं उससे कम रखता हैं  | 


मैं तब ही उनकी बात से सहमत थी या ये कहिये कि बहुत पहले से ऐसे किसी रिसर्च के होने का इंतजार कर रही थी | आप अगर थर्मामीटर में अपना तापमान चेक करेंगे  तो बहुतों का सामान्य तापमान  98 से नीचे होगा | मेरा भी सामान्य तापमान हमेसा से  97. 7 के आस पास रहता हैं जबकि शरीर छूने पर वो बहुत गर्म होता हैं |  लेकिन समस्या ये नहीं है , समस्या ये हैं कि 98.6 का मतलब मेरे लिए हरारत जैसा होता हैं | एक सामान्य सोच लगाइये तो 98.6 का मतलब हुआ  मेरे सामान्य तापमान से लगभगएक डिग्री ज्यादा | 


सामान्य लोग 98.6 के ऊपर तापमान जाने पर तबियत ख़राब होना महसूस करने लगते हैं और 99 पर दवा ले लेते हैं | जबकि मुझे 98 से ऊपर पहुंचते ही तबियत के गड़बड़ होने का अहसास हो जाता हैं लेकिन चूँकि थर्मामीटर गवाही नहीं देता तो कोई मानता नहीं | 99 तक पहुंचने तक तो मेरी हालत ख़राब हो चुकी होती हैं और लोग कहते हैं बस जरा सी हरारत ही तो हैं | 


पहले मैं 99  दवा नहीं लेती थी लेकिन बिटिया के होने के बाद शरीर 98 के बाद ही  जवाब दे जाता था | थकान और बदन दर्द से कुछ करने की हिम्मत ना होती  और हम बिना बताये चुपचाप दवा ले लेते थे | अभी हाल में ही डॉक्टर हॉउस देख रही थी उसमे भी एक केस का जिक्र किया गया जिसम महिला का सामान्य तापमान 97 से भी  नीचे रहता था और 98.6  का मतलब  बुखार | 


सभी का शरीर अलग होता हैं और उसकी प्रतिक्रिया भी बाकियों से अलग होती हैं जबकि डॉक्टर कई बार वही भेड़चाल में सभी को एक जैसा ही इलाज देने लगते हैं | ये कोई पहला मामला नहीं हैं जब मेरा शरीर दूसरों मुकाबले  थोड़ा अलग निकला | गर्भावस्था के पहले तीन महीने डॉक्टरों के भरोसे के कारण  बहुत ही बुरे गुजरे | चक्कर उलटी को पहले तो वो सामान्य बताती रहीं | 


मेरे 70 - 100  के बीपी को भी सामान्य बताती रही कि भारत में तो महिलाओं का बीपी ऐसे में ऐसा ही होता हैं | जब तीसरे महीने में भी ये सब बंद नहीं हुआ और मैं बीपी को लेकर बहुत जोर देने लगी तो एक फिजिसियन से जाँच करवाई | उसने पैर हाथ गर्दन सभी जगह की नाड़ी चेक करके सामान्य घोषित किया फिर ब्लड में सॉल्ट लेवल आदि भी जाँच में सामान्य निकला | जब सब ने हाथ खड़े कर दिए तो मैंने अपनी मम्मी से बात की जिन्हे हमेसा से लो बीपी से ऐसे ही परेशान होते देखा था | फिर उनके बताये उपाय से मैं ठीक हुयी | 


June 05, 2022

फेक प्रोफ़ाइल से बच कर रहें

फेक प्रोफ़ाइल कई तरह की होती हैं | 

 एक भाई साहब ने मुझे फेसबुक पर मित्रता निमंत्रण भेजा | जर्मनी में ह्रदय रोग के डॉक्टर हैं और पूरे जर्मनी में इनको मित्रता के  लिए सोशल मिडिया पर कोई नहीं मिला और मुझे मित्र निवेदन भेज दिए हैं | इनके हजारो मित्रो में ज्यादातर अफ़्रीकी और दो चार  भारतीय लोग ही दिख रहें हैं |  ये किसी अफ़्रीकी देश में  बना फर्जी प्रोफ़ाइल हो सकता हैं | जो  लॉटरी  जीताने या चाचा की संपत्ति दान करने जैसे कांड के लिए बना होगा | 

इसके पहले एक ब्रिटिश एयरवेज मे पायलट का भी मित्र निवेदन आया था | उनके मित्र लिस्ट में राम प्रसाद , सुनीता देवी जैसे नाम थे , वो भारतीय फर्जी प्रोफ़ाइल रहा होगा |  वहां भी उधार पैसे , चैट करके ब्लैकमेल  या बस मजे लेने के लिए बनाया गया होगा |  


प्रियाएंजेल की पोल तो खुल चुकी लेकिन आज भी ऐसे सैकड़ों प्रोफ़ाइल हैं और लोग मुर्ख भी बन रहें हैं और कांड भी हो रहें हैं | लेकिन इन सब मे सबसे खतरनाक कुछ ख़ास तरह के फर्जी प्रोफ़ाइल हैं जिनका मकसद कहीं बड़ा और डरावना  हैं |  

कुछ एक साल पुरानी बात हैं जब पूर्व सैनिको ने साइबर अपराध में एक बड़ी शिकायत की कि सोशल मिडिया पर सेना के खिलाफ लोगों को भड़काने वाले पोस्ट वायरल हो रहें हैं उनकी तुरंत जाँच की जाए | उन मैसेज में कहा जा रहा था कि भारतीय सेना और सुरक्षा से जुड़े तमाम विभागों से मुस्लिमो को हटाया जाए | यदि उन्हें रखा जा रहा हैं तो रखते समय उनकी ख़ास तरह की जाँच हो या उनकी  महत्पूर्ण जगहों पर पोस्टिंग ना हो  आदि इत्यादि  | 

जनता से कहा जा रहा था अगर पुलिस सेना का कोई मुस्लिम कर्मचारी हैं तो उसकी ना सुनी जाए उस पर नजर रखा जाए | इसके आलावा कई झूठी खबरे जैसे मुस्लिम सैनिको ने सेना में अपने ग्रुप के ख़ास नारे  नहीं लगाये या उन्होंने अपने धार्मिक नारे लगाये ऐसे ही ना जाने कितने ही बकवास लिखे जा रहें हैं और आम लोग उसे फारवर्ड भी कर रहें हैं बिना सोचे समझे | 

ये वो समय था जब मुस्लिमो के दूकान से कुछ मत लो उनको घर मत बेचो जैसे मूर्खता पूर्ण आवाहन कुछ जाने मारे प्रोफ़ाइल से किये जा रहें थे | 


जब जाँच हुयी तो पता चला हिंदूवादी और  हिंदुत्व की बड़ी बड़ी बाते करने वाले ऐसे   ज्यादातर प्रोफ़ाइल पाकिस्तान और दुबई से चल रहें थे | जी हां ये हिन्दू नाम और हिंदुत्व की बाते करने वाले   फर्जी प्रोफ़ाइल वहां से बने थे जिनका मकसद  हिन्दुओ को पोस्ट लिख कर और मुस्लिमो को उन पोस्ट के स्क्रीन शॉट ले कर एक दूसरे के ख़िलाफ़ भड़काना था  |  


बहुत सारे असली प्रोफ़ाइल वाले बिना सोचे मूर्खता करते बस धर्म के नाम पर इन बातों से सहमती भी जताते रहें थे  बल्कि और बढ़ चढ़ कर बाते करते रहें | एक जन ने तो कश्मीर में आतंकवादियों के हाथो मारे गए एक कश्मीरी मुस्लिम   पुलिस ऑफिसर को मैडल देने तक पर आपत्ति कर दी | 


ये सब बस देश के बाहर से नहीं अंदर से भी होता हैं | अभी हाल में ही किसान आंदोलन के समय उन फर्जी प्रोफ़ाइल को पकड़ा गया जो खालिस्तान समर्थको के नाम पर बनाया गया और उन पर ऐसी पोस्ट डाली गयी कि लगे किसान आंदोलन असल में खालिस्तान समर्थको द्वारा चलाया जा रहा हैं | फिर उन्ही प्रोफ़ाइल के स्क्रीन शॉट  लेकर लोगों को किसान आंदोलन के खिलाफ झूठे तरीके से भड़काया गया |  

स्क्रीन शॉट का अपना फंडा हैं | किसी  फर्जी प्रोफ़ाइल पर  उटपटांग कुछ भी लिख दिया जायेगा एक दूसरे समुदाय धर्म या जाति या सरकार के खिलाफ समर्थन में  फिर उसका स्क्रीन शॉट  लोग सब जगह दिखाते रहेंगे , देखो उसके खिलाफ  या समर्थन  में क्या जा बोल रहा हैं | कोई नहीं देखने जायेगा कि बोलने वाला कौन हैं , सच हैं फर्जी हैं और उस एक के कथन को कितने लोग समर्थन दे रहें हैं , एक व्यक्ति बहुतो का या एक समुदाय धर्म का प्रतिनिधित्व कैसे कर सकता हैं , सब गरियाना और मजाक उड़ाना शुरू  कर देंगे | 


आगे से किसी स्क्रीन शॉट पर प्रतिक्रिया देते समय इस बात का ख्याल रखियेगा कि फर्जी फोटोशॉप के आलावा स्क्रीन शॉट में इस तरह के तमाम झूठ भी शामिल होते हैं | स्क्रीन शॉट सारी और असली सच्चाइयां नहीं  दिखाता | 




आपको ऐसे फर्जी प्रोफ़ाइल मिल जायेंगे जो हिन्दू या मुस्लिम नाम के साथ होंगे लेकिन  वो अपने धर्म की बुराई करेंगे लेकिन दुसरो के धर्म की अच्छाइयां गिनाते रहेंगे |  उसमे सरकार का समर्थन और विरोध भी शामिल होता हैं |  ये सब तो कई बार बस लाइक कमेंट के लिए होता हैं | 

भारतीय मुस्लिम बनके कई बाहर से ऑपरेट होने वाले  प्रोफ़ाइल भी मिलेंगे  जिसमे दिन रात ये बताया जाता हैं कि देश में मुस्लिमो पर कितना अत्याचार   हो रहा हैं | हर घटना को मुस्लिम हिन्दू वाली नजर से देखा जाता हैं और उनकी बातों को कई जाने माने भारतीय  मुस्लिम और तथाकथित धर्म निरपेक्ष लोग सहमती जताते भी दिख जाते हैं |  


मेरे खुद के बहुत सारे सोशल मिडिया वाले मित्र ऐसी फर्जी प्रोफाइलों के ना केवल मित्र लिस्ट में हैं बल्कि बाकायदा उन्हें पढ़ते हैं उनका समर्थन करते हैं | लेफ्ट वाले राइट वाले , भक्त , कमभक्त  सब  अपने अपने मतलब से इन फर्जी प्रोफ़ाइल को बढ़ावा देते रहते हैं इस तरह से | जबकि उनमे से  बहुतों को पता होता हैं कि प्रोफ़ाइल फर्जी हैं |  

June 04, 2022

शादी और नोबेल पीस प्राइज

प्राइम पर आ रहे सीरीज मॉडर्न लव मुंबई के एक एपिसोड में नायिका लतिका कहती हैं कि शादी के बीस साल साथ गुजारने के बाद खुद को नोबेल पीस प्राइज देना चाहिए | तो हमने खुद को दे लिया नोबेल पीस प्राइज | उसके हिसाब से  शादी वाले दिन लोगों को कोन्ग्रेच्युलेशन , ब्लेस यु  काहे कह रहें हैं कौन सा तीर मारा हैं  बेस्ट ऑफ़ लक कहना चाहिए क्योकि खेल तो अभी शुरू हुआ हैं | 


कोन्ग्रेच्युलेशन तो पहली सालगिरह पर करना  चाहिए वो तब ही कहने लायक हैं | वास्तव में तो हर शादी की सालगिरह किसी युद्ध जीतने  से कम नहीं हैं और हर बार उन्हें वॉर मैडल मिलना चाहिए | जब बीस साल गुजर जाए तो नोबेल पीस प्राइज देना चाहिए खुद को | 

पति जब अपनी गलती नादानी पर हँसते कहता हैं कि तुम तो मुझसे प्यार करती हो ,तो कहती हैं  लेकिन वो हर साल थोड़ा थोड़ा कम हो रहा हैं | 


बस इसी प्यार को ख़त्म हो जाने की इंतज़ार में जीवन निकल जाता हैं लेकिन वो कभी ख़त्म नहीं होता | जब तक प्यार का एक कतरा भी अंदर बचा होता हैं तो साथ बना रहता हैं | तमाम परेशानियों शिकायतों झगडे लड़ाइयों  के बाद भी ये अंदर बचा प्यार ही होता हैं जो  साथ रहने का कारण  बना होता हैं | 


कभी कभी अपनी इच्छाएं , अपनी जरूरते पूरा ना होना वक्त पर साथ खड़ा ना होना खलता हैं लेकिन उसे पूरी करने की कोशिश करता व्यक्ति उम्मीदे ख़त्म होने नहीं देता | कोशिशे एक दूसरे को खुश  रखने की  एक दूसरे की जरूरतों को , एक दूसरे को  समझने की | भले ये कोशिशे सफल ना हो कभी कभी लेकिन उनको करते रहना ही काफी होता हैं साथ बनाये रखने के लिए | 


June 03, 2022

वैवाहिक बलात्कार - सूत ना कपास जुलाहों में लट्ठम लट्ठा

सूत  ना कपास जुलाहों में लट्ठम लट्ठा  | वैवाहिक बलात्कार  पर अभी कानून बनने की सोच भी दूर दूर तक नहीं हैं और यहाँ पुरुषो मे ऐसी खलबली मची हैं जैसे कल कानून बना और परसो इनकी पत्नियां इन्हे जेल डलवा देंगी | कितनी बार लोगों को कहा कि पत्नी से बना कर रखो उनके साथ  प्रेम से रहें लेकिन लोग सुनते नहीं | अब देखिये उन सबका कितना बुरा हाल हैं | शायद पत्नी के प्रति किये खुद के  गलत काम सबको याद आ रहें हैं और उनके परिणाम भी | 


चलिए ये तो मजाक की बात रही लेकिन वास्तव में ये कानून बन भी गया तो जमीन  पर क्या इसका कोई भी असर दिखाई देगा | घरेलू हिंसा कानून से  समाज में पत्नियों के प्रति हो रही शारीरिक और मानसिक हिंसा पर कितनी रोक लगी उसकी वास्तविकता हम देख ही रहे हैं | 


आज भी ज्यादातर मामले पुलिस के पास शिकायत के रूप में पहुंचते ही नहीं हैं और ना उनकी कोई काउंसलिंग होती हैं | ये तब हैं जब इस कानून में पहली दूसरी बार में सजा का कोई प्रावधान नहीं हैं |  सजा का प्रावधान इसलिए ही नहीं रखा गया क्योकि सभी को पता था तब एक भी स्त्री पुलिस में शिकायत के लिए नहीं  आयेगी | हमारी पारिवारिक संरचना और सामाजिक सोच ऐसी हैं कि पत्नी  के प्रति पति या ससुराल का हिंसक व्यवहार विवाह के एक  अंग  के रूप में सामाजिक मान्यता के साथ सबको स्वीकार हैं | 


जो समाज हिंसक पति और ससुराल वालों को दो गलियां दे कर स्त्री को ही बर्दास्त करने की सीख देता हैं उस समाज में वैवाहिक बलात्कार जैसी चीज का तो अस्तित्व ही नहीं माना जाता | जिस कानून में पति को सजा का प्रावधान की बात की  जा रही हैं उस कानून का कितनी पत्नियाँ उपयोग करेंगी जिनका अपना और बच्चो  जीवन पति पर ही निर्भर हैं | 


तमिलनाडु में अपनी ही बेटी के  बलात्कार के केस में सजा काट रहे पिता को छुड़ाने के लिए बच्ची की माँ , अपराधी की पत्नी कोर्ट को दस सालकी सजा पूरी करने के बाद छोड़ देने की अपील करती हैं | किसको लगता हैं  ये पत्नियां अपने पति के ख़राब व्यवहार  के लिए कोर्ट जायेंगी | 


जिस समाज में सामान्य बलात्कार को नेतागण लडके हैं गलती हो जाती हैं कह कर छोटा बना देते हैं उस समाज में वैवाहिक बलात्कार शब्द सिर्फ एक मजाक का मुद्दा हैं | जिस देश  में दिल्ली पुलिस महकमा एक स्टिंग ऑपरेशन में  कहता हैं इज्जतदार लडकिया बलात्कार के बाद चुपचाप घर बैठ जाती हैं और पुलिस स्टेशन शिकायत के लिए आती हैं वो असल मे झूठी और ब्लैकमेलर हैं और पैसे की लिए आती हैं | देश का ऐसा पुलिस महकमा वैवाहिक बलात्कार की शिकायत लिख लेगा | 


जिस देश की न्याय व्यवस्था कहती हैं कि पति को शारीरिक संबंध बनाने से  रोकना पति के प्रति क्रूरता हैं वो वैवाहिक बलात्कारों के केस में न्याय करेगा | जिस देश के न्याय व्यवस्था में क्रूरतम तरीके किये बलात्कारों पर सजा देने में बरसो लग जाते हैं | जिन आदालतों अस्सी प्रतिशत से ज्यादा बलात्कार के अपराधी सजा ही नहीं पाते जो बाइज्जत बरी हो जाते हैं | आप खाली कल्पना करो कि वैवाहिक बलात्कार के केस का क्या अंजाम होगा वहां पर | 


घरेलु हिंसा पर एक विज्ञापन आता हैं घंटी बजाओ मतलब किसी पडोसी आदि के घर से स्त्री के पीटे जाने का शोर आ रहा हैं तो घंटी बजा कर उसकी मदद करने का प्रयास कीजिये | पता नहीं कितने लोगो ने अपने किसी पडोसी या जानने वाली महिलाओं की मदद ऐसे की हैं लेकिन कानून के जानकार पुरुष उस तर्ज कह  रहें हैं कि आपका  पडोसी आपकी शिकायत करके आपको अपनी ही पत्नी के बलात्कार के केस में जेल मे डलवा देंगे , इस कानून के बनने के बाद | 


अब कानून की जानकार तो नहीं हूँ जरा बताइये कि कितने कानून में ये प्रावधान हैं कि पीड़ित और उसके करीबी परिवार के अलावा कोई तीसरा व्यक्ति जिसका मामले से कोई संबंध ही नहीं हैं आपके खिलाफ  पुलिस में चला जाएगा बल्कि कोर्ट में आपको सजा भी दिलवा देगा | इस तरह की कल्पनाए करके इस कानून के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा हैं | 


वास्तव में जब इस कानून की बात हुयी तो बातचीत का मुद्दा , चर्चा का  विषय ये  होना चाहिए था कि विवाह में बेडरुम के अंदर स्त्री की कितनी चलती हैं | उसकी इच्छा को कितना सम्मान दिया जाता हैं | उसकी जरूरतों , सोच कष्ट आदि का कितना ख्याल रखा जाता हैं | उसकी जगह चर्चा हैं विवाह संस्थान खतरे में हैं पुरुष खतरे में हैं | घूमफिर के बात  पुरुष  पर शुरू होती हैं  ख़त्म भी क्योकि किसी विवाहमे स्त्री होती ही कहाँ हैं | 


मैं खुद इस कानून के खिलाफ हूँ हमारे समाज देश के लिए ये कानून भद्दे मजाक से ज्यादा कुछ नहीं होगा | कानून की किताब में शो ऑफ़  से ज्यादा कुछ हैसियत न होगी इसकी कि देखो समानता के  लिए हमारे पास ये एक और कानून हैं  | जब अपराधी और पीड़ित दोनों तय करके बैठे हैं कि कोई अपराध होता ही नहीं तो आप सजा किसको दिलायेंगे |  

June 02, 2022

सेक्युलिरिज़्म के आगे फेमिनिज्म शहीद


मैं कोई  तेरह चौदह बरस की रही होंगी जब एक दिन   हमारे घर काम करना शुरू कि महिला बोली कि उसकी बेटी की शादी होने वाली हैं उसे  छुटटी  लेनी होगी  | उसकी बेटी की आयु मुश्किल से पंद्रह सोलह साल की थी | हमारे अंदर का क्रन्तिकारी जागा और मैंने उसे बाल विवाह नहीं करना चाहिए का भाषण दे ये भी कह दिया अगर उसने अपने बेटी की शादी की तो मैं पुलिस को फोन कर दूंगी | 


उसे बात  एकदम समझ में आ गयी और तीन दिन बाद अपने पैसे ले कर उसने हमारे घर का  काम छोड़ दिया | मम्मी मुझे समझाने लगी कि वो गरीब लोग हैं जिन घरो में किराए पर रहते हैं वहां बहुत से लोग रहते हैं | इन्हे डर होता हैं कि  अपनी लड़की अकेले छोड़ कर आते हैं कोई बहला फुसला कर या जबरस्ती ,धोखे से उसके साथ कुछ कर दिया तो बदनामी भी होगी और लड़की की शादी भी नहीं हो पायेगी | इसलिए जल्दी शादी करके बोझा जैसे बेटियों को बिदा कर देते हैं | कितना कमजोर और फालतू का तर्क हैं ना ये किसी बाल विवाह के लिए |


  आज तीन दशक के बाद पढ़े लिखे और खुद को फेमिनिस्ट कहने वाले लोग   बुर्के के समर्थन में ऐसे ही तर्क दे रहे हैं  कि   वो गरीब,  पिछड़े इलाको , रूढ़िवादी समाज से आती हैं इसलिए उनके बुर्के पहनने की मांग को मान लिया जाए वरना उनकी पढाई छुड़वा दी जायेगी | कोई रूढ़वादी और उस वर्ग का व्यक्ति ऐसे तर्क देता तो एक बार हजम भी हो जाता लेकिन पढ़े लिखे फेमिनिस्ट कहे तो आश्चर्य होता  हैं | 


इस तरह देश में दो कानून बन जाए हर जगह गरीब , पिछड़े  और रूढ़िवादी समाज को उसकी मर्जी से काम करने की छूट दे दी जाये और उसी गर्त में उसे पड़ा   रहने दिया जाए | 


 ज्यादा समय  नहीं  हुआ जब पारंपरिक राजस्थानी वेशभूषा में घूँघट  किये एक दो स्त्रियों  की फोटो वायरल थी | जिसके साथ लिखा गया था कि फलाने जिला में ऑफिसर हैं या जिलाजज हैं लेकिन इतना पढ़ने लिखने के बाद भी अपनी परंपरा नहीं छोड़ी और आज भी घूँघट करती हैं | गर्व हैं हमें ऐसी स्त्रियों पर |  पता नहीं वो फोटो कितनी सच्ची थी लेकिन समाज में   हमें हर वर्ग से एक दो उदहारण मिल ही जाते हैं घूँघट और बुर्के हिजाब में | 


  ये सब करके रूढ़िवादी समाज दो तरफ़ा काम करता हैं  | एक वर्ग  पढ़ लिख रही स्त्रियों के सामने उदाहरण  रखता हैं कि कितना भी पढ़ लिख कुछ बन जाओ तुम्हे भी हर हालत में इन रूढ़ियों का पालन करना हैं इससे बाहर निकलने का प्रयास भी ना करना | अपनी  पढाई लिखाई अफसरी घर के बाहर छोड़ कर आना , घर में तुम वही हो जो समाज ने स्त्री के लिए तय किया हैं |  


दूसरा वर्ग   उन स्त्रियों की पढाई लिखाई करने कुछ बनने  से कोई प्रेरणा नहीं लेता अपने बच्चियों को काम करने या उच्च शिक्षा लेने नहीं देता लेकिन  बाकी स्त्री वर्ग को ये उदाहरण जरूर देता हैं कि देखो वो इतनी पढ़ी लिखी अधिकारी हो कर भी  घूँघट करती हैं बुर्क़ा , हिज़ाब पहनती हैं  और तुम उनसे कमतर हो कर भी आधुनिक बन ये सब छोड़ना चाहती हो | 


 जब पढ़ी लिखी फेमिनिस्ट कहलाने वाले खासकर स्त्रियां बुर्के के समर्थन में ऐसे तर्क देने लगती हैं तो रूढ़वादी , कट्टर समाज उन्हें उदाहरण बना कर पेश करता हैं और उसका हौसला बुलंद होता हैं कि वो सही है | फिर शुरू होता हैं अपनी कट्टरता और स्त्री दमन का एक और चक्र |  


सेक्युलर दिखने की ऐसी भी  क्या चाहत कि फेमिनिस्टो ने  अपना फेमिनिज़्म  शहीद कर दिया | जो वामपंथी हैं उनकी राजनैतिक मजबूरी हैं लेकिन बाकी लोगो की क्या मजबूरी हैं |  बुर्के हिज़ाब पर कुछ कहने के बजाये मौन ही धर लेते/लेती तो ज्यादा बेहतर होता | उनके धर्मनिरपेक्ष होने पर दाग भी ना लगता और नारीवाद भी बचा रहता | 

June 01, 2022

बिल्लियां पोसा नहीं मानती


हर साल गली में कोई ना कोई बिल्ली  का अनाथ बच्चा बिल्डिंग के दरवाजे पर आ कर रहने लगता हैं और बिल्डिंग के बच्चे उसे गोद  ले लेते हैं | इस साल के बच्चे का नाम  हमारी बिटिया ने लियो रखा हैं लेकिन मोहल्ले भर के बाकी बच्चो ने अपने अपने नाम रखे हैं तो वो  साहब किसी भी नाम को कोई भाव नहीं देते | भाई साहब मेल हैं लेकिन लाख कोशिश के  बाद भी दिमाग बिल्ली होने के कारण फीमेल का ही संकेत देता हैं | 


बचपन से इनकी  कहानी बड़ी दर्दभरी हैं | इनकी माता जी इनको हमारी बिल्डिंग के दरवज्जे पर छोड़ चली गयी थी , ऐसा बच्चो को मानना हैं  |  बिल्डिंग के बच्चे इन्हे पाल रहें थे लेकिन एक दिन एक स्कूटर वाले ने इनके ऊपर स्कूटर चढ़ा दिया या धक्का मार दिया |  


हमारी बिल्डिंग में  रहने वाली लड़कियां इन्हे अस्पताल ले गयी चार दिन भर्ती थे | मुझे पहले बताया गया कि स्कूटर पैर पर चढ़ा था फिर पता चला कि इनके पेट की कोई नस दब गयी हैं जिससे बाकी जीवन इनके खाने का विशेष ख्याल रखना होगा और लम्बे समय तक  खाना पचाने के लिए दवा  देनी होगी |  उसके बाद पता चला कि इनकी रीढ़ की हड्डी में भी समस्या हैं पता नहीं ये चल फिर कैसे लेता हैं | 


उन लड़कियां के पास पहले से ही  पालतू बिल्ली हैं सो उनके घर में तो जगह इन्हे नहीं  मिली लेकिन उन लोगों ने रोज कैट फ़ूड भिंगो के और दवा देना जारी रखा |  हमारी बिटिया भी इनके लिए खाना और एक बेल्ट मंगा ली | तर्क ये था कि हम लोग गले में बेल्ट पहना देंगे तो दूसरी बिल्डिंग के बच्चे इसे चुरा कर नहीं ले जायेंगे | 


हमने सावधान किया कि स्ट्रीट कैट हैं कोने अतरे में घुसती हैं ऊपर चढ़ती हैं किसी जगह बेल्ट फंसा तो बेचारी को फांसी लग जायेगी | फिर मुझे आश्वस्त किया गया स्पेशल बेल्ट हैं जो जरा सा खिंचते ही खुल जायेगा | नतीज रात को इन्हे बेल्ट पहनाया गया और अगली सुबह गायब हो गया इनके गले से  | 

अब ठीक ठाक हैं रोज पार्क में कबूतरों  का शिकार करने आते हैं |  हमारी बिटिया ने  इन्हे झूले पर सरकना भी सीखा दिया हैं | जब घर पर खेलने के लिए लाती तो ये कपडे से खूब खेलते | फिर बिटिया बाजार से फर ला इन्हे खेलने के लिए छड़ी बना दी | लेकिन ये इतना नाख़ून मारते हैं कि बिटिया पकड़ने में डरती थी  और जब वो नहलाना शुरू करती तो ये डर कर भागते थे | 


अब बड़े हो गए हैं तो बिटिया को भाव नहीं देते | अब खान खुद  खोज लेते हैं तो बिटिया का लाया खाना भी पड़ा हुआ हैं | धोबी के यहाँ किसी और बिल्ली ने तीन और बच्चे दिए हैं अब सबका रुख  भी बदल गया हैं |