मार्च आने वाला है सब लगे है अपना अपना टैक्स चुराने उप्स बचाने में कैसे कितना टैक्स बचा ले | नौकरी पेशा वालो में ज्यादातर तो पहले ही अपना अपना इंतजाम कर चुके है लेकिन अपना काम धंधा करने वाले और नौकरी के अलावा साईड इनकम वाले पैसे ठिकाने लगने में लगे हुए है | मुझे लगता है की वो लोग बेफकुफी करते है, टैक्स बचाना ( चुराना ) कोई एक या दो महीने का काम नहीं है ये तो पूरे साल चलने वाली सतत गतिविधि है जो निरंतर चलते रहनी चाहिए ना की फ़रवरी में आ कर हड़बड़ी करनी चाहिए | टैक्स बचाऊ मौसम में मेरा एक प्रकाशित लेख फिर से प्रकाशित कर रही हूं कुछ संसोधनो के साथ ताकि जो बेचारा आम आदमी अब तक ये ना कर सका हो उसे कुछ उपाय पता चले अपने करो को बचाने के |
बस बजट आने वाला है सभी की निगाहे बजट का बाट जो रही है जैसे की कोई जादू हो जायेगा और रातो रात महंगाई ख़त्म हो जाएगी जबकि दादा ने खुद कह दिया है की उनके पास कोई जादुई चिराग नहीं है जो मंहगाई कम कर दे फिर भी हम भारतीय हमेशा चमत्कार की आस लगाये बैठे रहते है | वैसे आम आदमी को मुझे नहीं लगाता है की कुछ मिलेगा पर हा इस बार कुछ ऐसा भी नहीं होने वाला है जिससे उसकी जेब ढिली होने की संभावना हो , नहीं जी प्रणव दादा को हमारी फिकर नहीं है जी उन्हें तो अपने राज्य में होने वाले चुनावों की फिकर है इसलिए लगता है की दादा और दीदी दोनों इस बार अपने अपने बजट में आम आदमी को कमर तो नहीं तोड़ेंगे | अच्छा हो यदि हर साल मई जून में किसी न किसी राज्य में चुनाव हो इस तरह महगाई के बीच बजट में किसी चीज का दाम बढ़ाने से पहले दस हजार बार सोचेंगे हमारे वित्त मंत्री लोग | अब बेचारे आम आदमी का क्या होगा एक तो पहले से ही महगाई की मार से मरे जा रहा था उस पर से पेट्रोलियम पदार्थो के दाम लगातार बढने से तो हर चीज के दाम और बढाने का दुकानदारो को वजह मिल जाता है (वैसे उन्हें दाम बढाने के लिए किसी वजह की जरुरत नहीं है) | सही कहा गया है कि आम आदमी की कोई सुध नहीं लेता है | अब देखीये न प्रणव दा ने पिछले साल कहने के लिये तो आय कर में राहत दी है पर ये राहत मिल किसको रही है उन्हें जो ज्यादा कमाते है | साल के तीन लाख तक कमाने वाले को कोई फायदा ही नहीं है जिसे असल में इस राहत की जरुरत थी पर राहत मिल किसे रही है जो इससे ज्यादा और ज्यादा कमा रहा है | कहने के लिये तो ये आम बजट होता है पर आम आदमी से इसका कोई मतलब ही नहीं होता है |
आयकर विभाग कहता है की विकास के लिये हमें आयकर और हर तरह का कर भरना चाहिए , विकास के लिये पैसे की जरुरत है ( तो विकास के घरवालो से मागो ना ) इसलिये हमारी जेब काटी जा रही है सीधे से नहीं पीछे से | अरे लेना है तो उन उद्यियोगपतियों से मागो जो फोर्ड पत्रिका के रईसों कि सूची में दिन पर दिन ऊपर चढ़ते जा रहें है, पुरे विश्व में बड़ी बड़ी कंपनिया खरीद रहे है, हम तो राशन की दुकान से राशन भी नहीं खरीद पा रहे है | वो सब तो लाखो खर्च करके(सी ए को देकर) करोडो अरबो बचा लेते है पर एक नौकरीपेशा आम आदमी की तो ये हालत है कि पहले टैक्स कटता है फिर वेतन हाथ में आती है | वो चोरी कर करके दिन पर दिन और अमीर बनते जा रहे है और हम टैक्स भर भर कर आम आदमी ( आम आदमी का मतलब ही है गरीब बेचारा) बनते जा रहे है |
ऊपरवाला जनता है जो हमने एक ढ़ेले कि टैक्स चोरी की हो, अब जब ऊपरवाले का नाम लिया है तो थोड़ी ईमानदारी बरतनी चाहिए हा एक दो बार थोडा सा टैक्स बचाया है देखीये मै पहले ही कह दे रही हु की टैक्स बचाया है चोरी नहीं की है अरे भाई जहा से गहने खरीदे थे वो हमारे परचित है हम सात पुस्तो से वहा से गहने खरीद रहे है इस नाते उन्होंने सलाह दिया कि क्यों बेकार में पक्का रसीद बनवा रही है टैक्स देना पडेगा कच्चा रसीद बनवाइये टैक्स बच जायेगा तो हमने टैक्स बचा लिया इसमे कौन से बड़ी बात है कौन से हमने रईसों की तरह लाखो करोडो के गहने ख़रीदे थे , सरकार का ज्यादा कुछ नहीं गया |
देखीये एक हाथ से जो थोडा बचाया वो दुसरे हाथ से भरवा भी दिया गाँव में पिताजी ने नया मकान खरीदा पुरे बीस लाख का और रजिस्ट्री कराने लगे सिर्फ पांच लाख की मैंने सीधा विरोध किया ये भी कोई बात हुई बीस का मकान और सिर्फ पांच की दिखा रहे है इतना टैक्स की चोरी ठीक नहीं है कम से कम छ: लाख तो दिखाइए ही, पड़ोस का घर भी इतने में ही गया है इससे कम दिखाया तो फंस जायेगे जितना बचाया है उससे ज्यादा चले जायेगे | देखीये कई बार क्या होता है की टैक्स बचाना मजबूरी हो जाती है अब जब पिता जी ने घर लिया है तो उसके लिए फर्नीचर वगैरा तो लेना ही पड़ेगा भैया ने सीधा कह दिया की पापा चुप चाप फर्नीचर लीजिये और घर चलिए रसीद पुर्जा के चक्कर में मत पड़िए बेकार में ऐट वैट भरना पड़ जायेगा फिर टैक्स ही भरते रहियेगा क्योकि फिर कुछ और खरीदने के लिए पैसा ही नहीं बचेगा | बात तो वह सही कह रहा है अब इस मजबूरी को तो सरकार को समझाना ही चाहिए |
देखा हम तो फिर भी भले लोग है जितना हो सके टैक्स भरते रहते है (क्या करे मजबूरी है वेतन टैक्स काट कर ही मिलता है ) नहीं तो लोग टैक्स बचाने (चुराने) के लिए क्या नहीं करते | अब हमारे पड़ोसी को ही ले लीजिये एन जी ओ चलाते है कोई ऐसा वैसा एन जी ओ नहीं है बाकायदा सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है | काफी अच्छी इनकम होती है और काम कुछ नहीं करना पड़ता है बस लोगों के सफ़ेद को काला करते है (ताकि दिखाई न दे) लोगों से दान लेते है और दो प्रतिशत काट के बाकि पैसे वापस कर देते है | सुना है कभी कभी कुछ भलाई का काम भी करते है कुछ गरीब बच्चो को पढ़ा देते है या गरीब महिलाओ को कुछ सिलाई वगैरा भी सिखा देते है | हमसे भी कितनी बार कहा की भाई साहब क्या खामखाह में वेतन से इतना टैक्स कटवा देते है आखीर हम और हमारी संस्था किस काम आयेगी | पर मैंने साफ मना कर दिया की "मुझे इन चीजो में बिलकुल भी विश्वास नहीं है हम तो पुरा कर भरेंगे " मैने उनकी संस्था को कोई दान नहीं दिया | पड़ोसी है उनका क्या भरोसा पड़ोसियों का काम ही जलना होता है क्या पता पैसे ले और वापस ही न करे तो, जितना टैक्स बचेगा नहीं उससे ज्यादा चला जायेगा | मै तो कोई दूसरा ज्यादा विश्वसनीय संस्था खोज रही हु जहा पैसे वापस मिलाने की गारंटी हो |
हम जो भी काम करते है सोच समझ कर करते है और पहले ही कर लेते है ई नहीं की बाद में अफसोस हो की ये पहले ही क्यों नहीं किया | मेरे पति ने तो हमारा घर ही हमारे नाम पर लिया एक तो माहिला के नाम घर लेने पर ही कुछ कर में छुट मिल गई फिर हमारे उन्होंने कहा की घर तुम्हारे नाम रहा तो सारे जिंदगी तुम्हारे किरायेदार के रूप में रहूँगा और जो तुम्हे किराया दूंगा उस पर कर की बचत हो जाएगी | मेरे वो दूसरो की तरह नहीं है की खुद को किरायदार बताये और अपने मकान मालिक पत्नी,माँ या पिताजी को किराए का पैसा न दे महीने की पहली तारीख को मेरे बैंक खाते में किराया जमा कर देते है अजी उन्ही पैसो से तो घर चलता है |
हम पत्नियों पर पतियों को किसी अन्य मामले में विश्वास और हमारा ख्याल हो न हो पर उनकी साइड इनकम और इनवेस्टमेंट हमारे ही नाम होती है हमारा भविष्य सुरक्षित रखने के लिये (इसे ऐसे पढ़े अपने इंवेस्टमेंट से होने वाली इन्कम को सुरक्षित करने के लिए ) चाहे शेयर बाजार में पैसा लगाना हो या कोई बड़ी रकम फिक्सडिपोसिद करना हो या फिर कोई जमीन जायदाद खरीदना हो सारे इन्वेस्टमेंट घर गृहस्थी में सारा जीवन गुजार देने वाली हम पत्नियों के नाम ही होता है | इस तरह शेयर बाजार में बढ़ा पैसा और मिलनेवाला ब्याज उनकी आय में नहीं जुड़ता है और न ही उस पर कर देना पड़ता है जरुरत हुई तो हमारे नाम भी रिटर्न फाइल कर दिया जाता है कुछ छोटा मोटा काम दिखा कर, पर आय उतनी ही दिखाई जाती है कि कर न भरना पड़े |
अब सौ करोड़ से ऊपर की आबादी में से यदि एक हम कुछ टैक्स बचा भी लेते है तो क्या फर्क पड़ने वाला है | यदि एक बड़े घड़े में एक बूंद पानी हम न डाले तो कोई बड़ा फर्क नहीं होने वाला है | कहते है की देश के विकाश के लिये पैसे चाहिए अरे भाई जितना देते है उसमे ही कितना विकाश कर लिया है | बिजली सड़क पानी कौन सी हमारी समस्या हल हो गई है इन सब चीजो का हाल बेहाल है | ज्यादा दे भी दिया तो कोई भी फायदा नहीं होने वाला है सब नेताओ के भ्रष्टाचार के भेट चढ़ जायेगा | इससे अच्छा है इन पैसो से कुछ अपना विकाश किया जाये , देश के विकाश के लिए पैसे देने के लिए तो पुरा देश पड़ा है |
अंशुमाला जी!
ReplyDeleteअभी इसी महीने इनकम टैक्स का नोटिस मिला है मुझे और जो बकाया राशि डिमाण्ड की गई है,वो अगर सच है तो जिस स्लैब में मैं आता हूँ, उसके मुताबिक मैंने सरकार से आधी तनख्वाह छिपा ली ऊप्प्स चुरा ली!एक नौकरी पेशा आदमी जिसकी सारी सैलेरी पूरनमासी के चाँद की तरह समाप्त हो जाती है 15 दिनों में उसने आधी तनख्वाह छिपा ली!!उलझा हूँ.. जो करोड़ों डकारगये उन्हें न्यायप्रक्रिया पर भरोसा है और मैं किसपर भरोसा करूँ!! राम जाने!!
सलिल जी
ReplyDeleteयदि आप मुंबई के होते तो मै आप को उस आफिसर का नाम भी बता देती जिसने आप को नोटिस भेजा है | कुछ समय पहले हमारे पास भी ऐसा ही नोटिस आया था, टैक्स भरने की रकम देख कर हाथ पैर फुल गये , भाग कर सी ए के पास गये तो उसने बताया की ये मुंबई आये नये आफिसर का कमाल है और कइयो को उसने गलत नोटिस भेज दिया है तब जा कर जान में जान आई | पर हा कुछ समय के लिए ही नोटिस ने हमें भी आम आदमी से खास बना दिया था अचानक से हमारी आय दुगना बता कर |
विकास और उसके घरवालों की बात सबसे बढ़िया लगी। सच बात है, करे कोई और भरे कोई।
ReplyDeleteहमें तो बजट ही सबसे बड़ा व्यंग्य लगता है। मैंगोपीपल की बात कम होती है, न के बराबर, कारें इतनी सस्ती, ब्रांडेड चीजें इतनी सस्ती और ऐसी ही सब बातें।
चुनाव तो चलते ही रहने चाहियें, हर साल होने चाहियें(बस मेरी ड्यूटी नहीं लगनी चाहिये)। सीरियसली, अगर चुनाव प्रक्रिया को सरल बनाया जा सके तो हर साल-दो साल में चुनाव होए चाहियें। अभी तक इन सरकारों का आजमाया हुआ फ़ार्मूला रहा है, चुनाव वाले साल में लोक लुभावना बजट और फ़िर आने वाले चार साल तक अगली पिछली सब कसर पूरी।
टैक्स बचाने के तरीके अगले वित्तीय वर्ष से जरूर इस्तेमाल में लायेंगे। धनबाद रखे रहिये।
अफ़वाह....हवाई जहाज सस्ते होंगे.
ReplyDeleteतो बच्चों को ऊपर ज्यादा जहाज दिखा ज़्यादा मजा मिलने का भी चांस बनता है. गरीब को ज़्यादा जहाज तो देखने को तो मिलेंगे पर खर्चा कुछ भी नहीं :)
टेक्स वहा चोरी होता हे जहां शासक अच्छॆ ओर ईमान दार हो जब राजा ही चोर हो तो कोई केसे नही टेक्स बचायेगा? क्योकि जो टेक्स हम भुगतान करेगे वो टेक्स क्या देश के काम आता हे? अच्छी सडके बनती हे उन से, या नोटो के हार ओर स्विसं बेक मे रखने के काम आता हे?
ReplyDeleteजहां शासक अच्छॆ ओर ईमान दार *ना* हो, भुल सुधार कर ले
ReplyDeleteसच्चाई को सुन्दर ढंग से प्रस्तुत करने अंदाज सराहनीय है।
ReplyDeleteये देश है वीर जवानों का ...
ReplyDeleteअरेरेरे ये आप क्या कर रही है, क्यो गरीब आदमियो के कपडे उतारने पर आमादा है। सरकार से थोडा सा टैक्स क्या बचा लिया उप्स चुरा लिया आपने तो लम्बा चौडा भाषण ही दे डाला।
ReplyDeleteजाओ जी नही देते टैक्स क्या कर लोगो
(अभी मेरी इन्कम टैक्स के दायरे से बाहर है)
शुभकामनाये
एक संस्था है जिसे ८० जी में छूट इसीलिए नहीं मिलती कि वे खर्च नहीं करते !
ReplyDeleteइनकम टेक्स विभाग कहता है कि दान लो और अधिकांश खर्च कर दो तब छूट मिलेगी ! ट्रस्ट ईमानदारी से चलाये ही नहीं जा सकते !
व्यवस्था पर बढ़िया व्यंग्य ! शुभकामनायें !
अंशुमाला जी लगता है आप सच में इमानदारी से पूरा टैक्स भरती हैं :) भिगो भिगो कर मारा है ..वैसे एक नौकरीपेशा के पास पूरा टैक्स भरने के सिवा चारा भी क्या है..
ReplyDeleteआप इस जरा से इन्कम टैक्स से हलकान हो रहीं हैं, मधय्म वर्ग जो सेल्स टैक्स,सर्विस टैक्स, सुविधा शुल्क आदि पूरे साल किस्तों में देता रहता है उसका क्या? मुद्रास्फीति 10% से उपर है, आपके सेविंग के पैसे पर 3.5% का ब्याज मिल रहा है और एफ.डी. पर 7% ब्याज, सीधा मतलब है जो आपकी बचत है उसे भी सरकार 6.5% और और 3% की दर से चुपचाप साफ चाट रही है।
ReplyDeleteजबकि किसी भी प्रोजेक्ट में कारपोरेट जगत की IRR 24% से कम कहीं नहीं है।
इस सबके इतर नरेगा और 20 रुपये रोज कमाने वाले, "गरीबी रेखा के नीचे वाले भारतीयों" के लिये तो खैर ज़िन्दगी ही टैक्स है।
असलियत यही है और मेरी समझ से यही रहेगी. कुछ करने की हमारी इच्छाशक्ति ही नही है. चलने दिजिये जैसे भी चले, आखिर MMS जी भी आज प्रेस वार्ता में कह ही गये कि कुछ मजबूरियां भी होती हैं सब कुछ चुपचाप देखने की.:)
ReplyDeleteरामराम.
टैक्स जैसे विषय पर व्यंग लिख कर आपने दर्शा दिया कि आप बड़ी हिम्मती महिला हैं और विकट स्थितियों का हँसते हँसाते सामना कर सकती हैं.
ReplyDeleteजनवरी-फ़रवरी इसी सब जोड़ घटाव में गुज़रता जाता है।
ReplyDelete@ संजय जी
ReplyDeleteहर साल दो साल पर चुनाव क्या जुल्म कर रहे है पांच साल में होते है तो इतने पैसो की बर्बादी होती है हर दो साल पर हुए तो कितनी होगी | मेरे कहने का अर्थ था की किसी ना किसी राज्य में चुनावों का समय हो | और ये सही है नाम आम बजट पर आम आदमी को कोई बात ही नहीं होती |
@ काजल जी
वो दिन भी दूर नहीं जब अनाज महंगे और गाड़ी से लेकर हवाई जहाज सस्ते में मिलेंगे |
@ राज भाटिया जी
हा जी जस राजा तस प्रजा |
@ दिनेश जी
धन्यवाद |
@ अनुराग जी
धन्यवाद |
@ दीपक जी
ReplyDeleteयही तो एक दायरा है जहा ज्यादातर आम आदमी रहना चाहता है हर साल बजट में आम आदमी बस इसी बात का इंतजार करता है की हमारा दायरा और बढ़े और हम अपना पैर और फैला सके कब तक मोड़ कर जीते रहेंगे |
@ सतीश जी
बेकार की संस्था होगी सारे खर्च भी तो कागज पर ही दिखाए जाते है वो ये भी नहीं कर पाती है | अब तो दो चार बाबा लोग भी कर छुट देने का झूठा दावा कर भक्तो से दान ले लेते है |
@ शिखा जी
ईमानदारी से कहूँ तो जितना टैक्स बचा सकती हूँ बचा लेती हूँ | और नौकरी पेशा वाले को क्या कहूँ उनकी तो आय कर पहले काट जाता है आय बाद में होती है |
@ चैतन्य जी
आम आदमी तो हर उस जगह से हलकान होता है जहा पैसे देने पड़ते है | और आम आदमी इतना भी बेफकुफ़ नहीं है जो सब टैक्स भरता चले जहा तक बच सकता है पक्की रसीद पुर्जा से बचता चलता है | आज तो आकडे फिर भी ठीक हो रहे है कुछ बैंको के ब्याज बढाने से कुछ मुद्रा स्फीति कम होने से पर कुछ साल भर पहले तक तो और भी बुरी स्थिति थी जब महगाई दर १२% की और ब्याज दर सिर्फ ६% तक ही था | क्या करे आखिर बेचारो को स्विस बैंक में अपना खाता मेंटेन करने के लिए हमारे पैसे पर हाथ डालना पड़ता है |
@ ताऊ जी
ReplyDeleteवाह MMS नया नामकरण बेचारे मन्नू जी क्या करे वो तो सभी को कहते रहे पर कोई उनकी सुनता ही नहीं |
@ दीप जी
कहते है जब दर्द हद से गुजर जाये तो दवा बन जाती है आम आदमी की यही हालात है अब तो उसे हर बात में हंसी आती है दुःख नहीं होता घोटाले हो या काला धन या भ्रष्टाचार सब पर व्यंग्य कस कर उसका मजाक उड़ कर हँस लेता है और बेचारा कर ही क्या सकता है |
@ मनोज जी
धन्यवाद |
गज़ब का विश्लेषण कर डाला अबकी बार तो आपने.....
ReplyDeleteतो विकास के घर वालों से ...............ज़बदस्त बन पड़ा :))))))))))
खैर आपका यह व्यंग हमारे सिस्टम की अफसोसजनक हकीकत है.....
जितना देते है उसमे ही कितना विकाश कर लिया है | बिजली सड़क पानी कौन सी हमारी समस्या हल हो गई है इन सब चीजो का हाल बेहाल है |
ReplyDeleteसच..सबसे ज्यादा नाराज़गी इसी बात से होती है...
बढ़िया व्यंग्य लिखा है..हमेशा की तरह
हां, मेरा भी आशय जटिलताओं से व अत्यधिक खर्चे से मुक्ति दोनों से ही है। हर साल विधानसभा चुनाव तो किसी न किसी राज्य में होते ही हैं, उनसे दूसरे राज्य बहुत ज्यदा प्रभावित नहीं हो पाते।
ReplyDeleteहमने भी देखा है लोगों को टैक्स बचाने के लिए तिकड़म करते हुए. बुरा तो लगता है पर किस किसे समझाएं और कौन समझेगा? बहुत अच्छा और साफगोई से भरा लेख है.
ReplyDeleteबढिया है.
ReplyDelete@ मोनिका जी
ReplyDeleteधन्यवाद |
@ रश्मि जी
कितना विकास कर लिया है ? ये अब पूछने की बात है स्विस और जर्मन बैंको से पूछिये की हमारे पैसो से कितनो का विकास हो चूका है |
@ संजय जी
उन पांच बड़े राज्यों को ले ले जहा पर केंद्र की सरकार चलाने वाले राजनितिक दल की सरकार नहीं है पर हो सकती है उन पाचों में से हर साल एक का चुनाव जून में हो फिर देखिये कैसे हर साल लोक लुभावनी बजट बनता है :)
@ सोमेश जी
बेचारा आम आदमी करे भी तो लाख तिकड़म के बाद भी ज्यादा कुछ नहीं बचा पता है |
@ वंदना जी
धन्यवाद |
फॉर्ब्स....
ReplyDeleteफॉर्ब्स पत्रिका जारी करती है रईसों की सूची.
वैसे लेख बहुत काम का लगा :)
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