सेठ जी की दुकान में चोरी हो गई सेठ जी परेशान जाँच कराई तो पता चला की चोर तो दुकान के कर्मचारी ही निकले जो रात में आ कर दुकान से सामान चोरी कर गए थे पता चला की इस काम में सभी कर्मचारी लगे थे सिवाए एक के वो था दुकान का चौकीदार | सेठ जी ने उसे बुला कर पूछा की तुम्हारे रहते चोरी कैसे हो गई | चौकीदार बोला जी ईमानदारी तो मेरे खून में है इसी कारण तो आप ने मुझे दुकान का चौकीदार बनाया था | मैंने देखा की ये लोग दुकान से चोरी कर रहे है मैंने इन्हें ऐसा न करने को कहा भी पर ये नहीं माने और फिर मुझे लगा की अपनी ही दुकान है ये ज्यादा नहीं चुरायेंगे पर मै इमानदार बना रहा दुकान मेरे सामने खुली पड़ी थी पर मैंने उसमे से एक पैसा हाथ नहीं लगाया ये मेरी ईमानदारी का सबूत है आप जितना दोषी मुझे समझ रहे है उतना मै हूँ नहीं |
अब ये बताइए की इस तरह की ईमानदारी को आप किस श्रेणी में रखेंगे , ऐसे ईमानदार चौकीदार का क्या किया जाये क्या हमें ऐसे साफ सुथरे चरित्र वाले व्यक्ति को फिर से चौकीदार बना कर अपने देश की बागडोर सौप देनी चाहिए | देश के प्रधान मंत्री के बारे में बार बार ये कहा जाता है की वो काफी ईमानदार है साफ सुथरी छवि वाले है योग्य है , पर ऐसी ईमानदारी का क्या फायदा की वो भले खुद न कुछ गलत करे पर दूसरो को करता देख चुप रहे घोटाले होते रहे और वो इसे गठबंधन की मजबूरी बताते रहे | देश का प्रधान मंत्री जिस को पुरे देश की खबर होनी चाहिए वो ये कहे की उसे तो पता ही नहीं की उसके मंत्री इतनी बड़ी गड़बड़ी कर रहे है | जिस के नेतृत्व में देश को काम करना चाहिए वो ये कहे की उसने तो कहा था पर उसके मंत्रियो ने उसकी बात सुनी ही नहीं तो वो क्या करे | मंत्री मंडल का निर्माण करना प्रधान मंत्री का विशेषाधिकार होता है वो अपने टीम का चुनाव कर देश पर साशन करता है और वो ये कहे की कौन मंत्री बनेगा ये वो तय नहीं कर सकता है और गठबंधन की राजनीती की मजबूरी गिनाये की उसे तो हर हल में दूसरो का सुनना है तो आप क्या कहेंगे, क्या देश को ऐसे प्रधानमंत्री के भरोसे होना चाहिए | क्या उस व्यक्ति को ईमानदार कहा जा सकता है जो भले खुद कोई गलत काम न करे पर सब होता देखता रहे | कम से कम मै इसे ईमानदारी की श्रेणी में नहीं रखती हूँ और मनमोहन सिंह को उतना ईमानदार नहीं मानती जितना की उनके लिए प्रचारित किया जाता है |
ये बात सभी जानते है की यदि आज मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री की गद्दी पर है तो उसकी वजह उनका सीधा साधा, ईमानदार होना, चुपचाप हुकुम के गुलाम की तरह काम करना , षडयंत्र ,गद्दी, जमीनी और तिकड़म की राजनिति से उनका दूर होना है, उनका योग्य होना नहीं क्योकि उनकी योग्यता सिर्फ आर्थिक मामलों में है जो देश के वित्त मंत्री बनने (?) की योग्यता है प्रधानमंत्री की नहीं | देश को चलाने के लिए जिस मजबूती ,कूटनीति और शातिर दिमाग की जरुरत है वो मनमोहन सिंह के पास नहीं है वो योग्यता कांग्रेस में कई दुसरे नेताओ के पास थी पर उन्हें सत्ता नहीं सौपी गई क्योकि किंग मेकर को एक ऐसे व्यक्ति की जरुरत थी जो कठपुतली की तरह उनके इशारो पर काम करे और युवराज के परिपक्त होने तक ही उसे संभाले उनके लिए एक साफ सुथरा काँटों से रहित रास्ता बनाये, ना की कुछ समय बाद गद्दी को हथिया ले | अपनी पहली पारी में वो उनकी उम्मीदों पर पूरी तरह खरे उतरे और ईनाम के तौर पर उन्हें दूसरी पारी भी खेलने के लिए दे दी गई | ये इनाम कठपुतली बने रहने के लिए दी गई थी ना की कोई अच्छा काम करने के बदले |
कल जिस प्रधानमंत्री को अमेरिका से परमाणु समझौते के मुद्दे पर गढ़बंधन को तोड़ने में कोई हिचक नहीं थी आज वही प्रधानमंत्री एक भ्रष्ट व्यक्ति को फिर से मंत्री बनाने पर सफाई देते है की ये गठबंधन की मजबूरी है मंत्री बनाना उनके हाथ में नहीं था | गठबंधन की राजनीति में कुछ मजबूरिय होती है सभी जानते है किन्तु ये सरकार बचाने और बनाने की मजबुरिया इतनी बड़ी भी नहीं होती की उन्हें देश हित से ऊपर रख कर जानबूझ कर एक ऐसे व्यक्ति को मंत्री बना दिया जाये जो पहले की देश को लाखो करोड़ का चुना लगा चूका हो और अपनी तिजोरिया भर चूका हो | प्रधानमंत्री का ये बयान तो ये दरशाता है की कल को वो जेल में बंद किसी अपराधी को भी मंत्री बनाने से नहीं हिचकेंगे बस उनकी सरकार बननी चाहिए | क्या ये ईमानदारी है अपने हित के लिए देश हित को भुला देने ईमानदारी है | इसको छोडिये कामनवेल्थ गेम्स में जो घोटाले हो रहे थे उन्हें नहीं रोक पाना और सब पता लगने के बाद भी कलमाड़ी को उनके पद से नहीं हटाने की क्या मज़बूरी थी यहाँ तो कोई गठबंधन की मज़बूरी नहीं थी फिर उन्हें हटाने में इतना समय क्यों ले लिया गया |
२- जी घोटाले पर वो कहते है उन्हें कुछ पता ही नहीं की राजा इतनी बड़ी गड़बड़ी कर रहे है | क्या ये सही है की देश के प्रधानमत्री को अपने मंत्रियो के कारनामे ही पता नहीं है जबकि ऐसे लोगो की कोई कमी नहीं है जो ये बात साबित कर चुके है की इस गड़बड़ी की शिकायत तुरंत ही प्रधानमंत्री को कर दी गई थी | आर्थिक मामलों के महान जानकर(?) हमारे प्रधानमंत्री ये नहीं जानते की मंहगाई कैसे काबू में किया जाये किसानो की आत्महत्याए कैसे रोकी जाये | ये मामले सिर्फ कृषि मंत्री के जिम्मे नहीं है (वैसे वो अपनी तरफ से पूरा प्रयास कर रहे थे और अपने बयानों से मंहगाई को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे ) ये सीधे सरकार की नीति से सम्बंधित है जिसके लिए प्रधानमंत्री जिम्मेदार है , पर आर्थिक मामलों के जानकर प्रधनमंत्री ने किया क्या कुछ भी नहीं सिवाए कोरे आश्वासनों के जो कभी पुरे नहीं हुए |
अब इसे देश की विडम्बना ना कहे तो क्या कहे जब देश का प्रधनमंत्री सबसे ईमानदार है तभी देश में घोटालो की लाइन लगी है एक घोटाले की खबर ख़त्म नहीं होती दूसरी सामने आ जाती है अब इसरो से जुड़ा घोटाला सामने आ गया है कहा जा रहा है की डील तो हुई थी किन्तु उसे लागु नहीं किया गया था इसलिए इसे घोटाला नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे "घेलुवा" | ये सब देख कर तो यही कहना होगा की भगवान बचाए ऐसे ईमानदार प्रधानमंत्री से जिसके रहते इतने घोटाले हो रहे है और ईमानदारी का लेबल नहीं उतरता | जिस तरह कभी अटल जी एन डी ए के मुखौटा भर थे आज उसी तरह मनमोहन सिंह भी यु पी ए के मुखौटा बन गए है |चलते चलते
सरकार विपक्ष के जेपीसी जाँच की मांग को नहीं मान रही है आप को क्या लगता है क्यों ?
उसे सच सामने आने का डर है |
वो विपक्ष के आगे झुकाना नहीं चाहता |
वो विपक्ष के हाथ अपने अपराध का सबूत नहीं देना चाहता |
नहीं जी ये बात नहीं है इसके पीछे एक अंधविश्वास है कि जिस भी सरकार ने जेपीसी की मांग मानी है अगली बार उसकी सरकार चली गई है | अब तक दो बार जेपीसी बनी है और उसे बनाने वाली सरकारे चली गई है | जिसमे एक बार तो खुद कांग्रेस की ही सरकार थी जब राजीव ने लगभग ४५ दिनों के हंगामे के बाद बोफोर्स पर जेपीसी बनाने की मांग मान ली थी और उसके बाद क्या हुआ सब जानते है | अब सुनने में आ रह है कि बजट सत्र में ये मांग मान ली जाएगी तो क्या मनमोहन सिंह के दिन पुरे होने वाले है .........
तो क्या मनमोहन सिंह के दिन पुरे होने वाले है ......... एक न एक दिन सबके दिन पुरे होने ही हैं,... पर बिडम्बना तो यह है कि जनता एक को झेलती है तो दूसरी बार दूसरा को सिंहासन पर बिठा लेती हैं...
ReplyDelete...जागो इंडिया जागो !
बहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति ...
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (19.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
मुझ पर कोई इल्जाम ना आए, मेरी छवि साफ-सुथरी बनी रहे चाहे देश का बेड़ा गर्क हो जाए।
ReplyDeleteपर श्रीमान स्वच्छ इतिहास कभी माफ नहीं करता।
छवि को सुधारने के नाम पर प्रेस कॉनफ्रेंस भी बुलवा ली जिसमें सवाल पहले सए बाँट दिये गये और जिसने उससे बाहर पूछने की कोशिश की उसे डाँटकर चुप करा दिया गया कि तुम इंटेरोगेशन करने आए हो...सही बात भी है सिलेबस से बाहर के सवाल पूछने का हक़ ही क्या था उसका, बाकी चुप थे ना! आज तो विपक्ष के बड़े नेता ने भी माफी माँग ली.. सब मंचीय अभिनय कला के माहिर हैं!! कौन ईमानदार कौन बेईमान!!
ReplyDeleteदेश की गददी पर काठ का उल्लू बैठा है
ReplyDeleteजाने कब इससे छुटकारा मिलेगा
बहुत सही एवं करारा व्यंग्य । बहुत खूब।
ReplyDeleteयार इसे हटाओ
ReplyDeleteदेश हित से सर्वोपरि कोई नहीं चाहे वो प्रधानमंत्री क्यों न हो। ये लोकतंत्र है जनता सब देख रही है। मनमोहन सिंह जी चाहे किसी भी मीडिया के सामने अपने आप को बेकसुर और लाचार बताए पर सच तो यही है कि उन्होंने देशवासियों के लिए कुछ नहीं किया। देशवासियों के लिए सबसे पहले कपड़ा रोटी और मकान आता है उसके बाद ही कुछ और। लोग जल्द ही अपना हिसाब मागेंगें।
ReplyDeleteraajniti mein imaandari ki paribhasha hi alag hai..:)
ReplyDeleteराजा को लिखी चिठ्ठी के अलावा कोई तर्क नहीं हालाँकी इससे भी उनकी कमजोरी ही पता चलती है.महँगाई दर को कभी साढे पाँच की दर पे रोकने का वायदा कर रहे थे अब सात फीसदी का.वहीं ये भी कह जाते है कि विकास दर को बनाये रखने के लिये महँगाई दर को झेलना ही पडेगा.भ्रष्टाचार पर गठबंधन को मजबूरी बता रहे वहीं पूछे जाने पर यह भी कह गये कि गठबंधन में कोई दरार नही वह मजबूत और प्रतिबद्द बना हुआ है(तो फिर कैसी मजबूरी?).यार प्रधानमंत्री जी किसी बात पर तो टिका कीजिये.हालाँकि स्पेक्ट्रम मामले मे उन्होने वित्त मंत्रालय की मंजूरी होना भी बताया ये जरुर एक नई बात कर गये. वैसे इस तरह की प्रेस कांफ्रेस होते रहनी चाहिये (ताकि देश की जनता का मनोरंजन होता रहे).और अंशुमाला जी,आपकी पिछली पोस्ट भी पढी.अच्छे से समझाया है आपने सरल भाषा में.
ReplyDeleteकिन्तु ये सरकार बचाने और बनाने की मजबुरिया इतनी बड़ी भी नहीं होती की उन्हें देश हित से ऊपर रख कर जानबूझ कर एक ऐसे व्यक्ति को मंत्री बना दिया जाये जो पहले की देश को लाखो करोड़ का चुना लगा चूका हो
ReplyDeleteबिलकुल सच कहा आपने ...इस मामले पर बहुत चर्चाएँ हो रही हैं ..पर सौ बात कि एक बात तो यही है .
और वैसे भी खुद कोई चोरी बेशक न करे पर चोरों कि हिमायत करने वाला या अपराध होते देख भी उसे रोकने की कोशिश न करने वाला भी उतना ही दोषी होता है.
gist of the post - "घेलुवा"
ReplyDeleteहा हा हा।
एक साधारण से आफ़िस में अगर इंचार्ज यह दलील दे कि वो तो ईमानदार है, उसके मातहत गड़बड़ कर रहे हैं तो इसमें उसका कोई कसूर नहीं। वो तो नामंजूर हो जायेगी कि फ़िर आप क्या कर रहे थे?
ये दलील कोई मायने नहीं रखती।
दिनोंदिन धार पैनी हो रही है आपकी कलम की, शुभकामनायें।
@ कविता जी
ReplyDeleteसही कहा अब जनता को ही जागना होगा |
@ सत्यम जी
चर्चा मंच में मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद |
@ गगन शर्मा जी
इतिहास क्या इन्हें वर्तमान की परवाह नहीं है |
@ चैतन्य जी
बिल्कुल यही दिख रहा था जो पत्रकार दुसरे नेताओ खुद प्रधानमंत्री की धज्जिया उड़ा देते थे वो वहा अच्छे बच्चे की तरह आसन से सवाल पूछ रहे थे और इतने बड़े मौके पर एक टीवी चैनल की कर्ताधर्ता जो क्रिकेट से जुड़े एक कांग्रेसी नेता पूर्व पत्रकार की पत्नी है क्रिकेट टीम के लिए शुभकामना सन्देश माग रही थी उनका फेवरेट खिलाडी पूछ रही थी | पूरी प्रेस कांफ्रेंस पर ही सक होता है मैच फिक्सिंग का |
अडवानी क्या पूरी बीजेपी सठियाई लगती है मैडम जी ने पत्र लिख कह दिया की उनका कोई एकाउंट नहीं है तो उन्होंने भी फटाफट पत्र के जवाब में पत्र लिख खेद जाता दियाकी अच्छा मैडम जी आप इतनी पाक साफ थी हमें पता ही नहीं था खेद है | देश की ऐसी सरकार और विपक्ष पर हम सब भारतीयों को खेद है |
अपना अपना सोंचने का ढंग है ..
ReplyDeleteकुछ इधर की कुछ उधर की
शारीरिक संबंधों को सहमती देनी
जौनपुर शिराज़ ए हिंद भाग १
यह इस देश की मजबूरी है कि यहाँ की जनता लुभावने नारों के झांसे में आकर बार-बार कांग्रेस को सत्ता सौंप देती है। देश में इतनी प्रतिभा होने के बाद भी आज देश वो मुकाम हासिल नहीं कर पाया जो उसे करना चाहिए था। इस देश को चन्द नौकरशाह चला रहे हैं। मनमोहन सिंह को तो इतनी बात पता है कि मुझे कैसा व्यवहार करना चाहिए जिससे मैं प्रधानमंत्री बना रहूँ। राजनैतिक बौद्धिक प्रतिभा आज कांग्रेस के किस नेता में है कोई बताए। सारे ही नौकरशाहों द्वारा लिखित भाषणों को पढ़ते हैं तभी तो विदेश मंत्री दूसरा ही भाषण पढ़ जाते हैं। जब भी कांग्रेस अपराधों में घिरती है तो बस उसे भाजपा का बदनाम करने के लिए या तो अयोध्या दिखायी देता है या फिर गुजरात। जिससे जनता भी भ्रमित होती है और इन डाकुओं को दूध का धुला मानकर फिर वोट दे देती है।
ReplyDeleteइसके पीछे एक अंधविश्वास है कि जिस भी सरकार ने जेपीसी की मांग मानी है अगली बार उसकी सरकार चली गई है |
ReplyDeleteओह अब बात समझ आई. ये तो ताऊ MMS के लिये बहुत बुरी खबर है.
रामराम.
महोदाया ये "मध्यम मार्गी" ईमानदारी है जो "भ्रष्ट" और" नॉन - भ्रष्ट" दोनों का समर्थन पाती है पर फायदा भ्रष्टों को ही पहुँचाती है. अब ये बात उन लोगों को समझनी होगी जो भ्रष्ट नहीं हैं. ( ध्यान दे लोगों की तीन श्रेणियां होती हैं भ्रष्ट, नॉन-भ्रष्ट और ईमानदार. )
ReplyDeleteनेताओं में सब चोर चोर मौसेरे भाई हैं ....मनमोहन सिंह जी कि इमानदारी से देश का कोई भला नहीं हो रहा ...वो कुछ कर ही नहीं सकते तो प्रधान मंत्री कि कुर्सी पर एक तोता बैठा देना चाहिए ..जो वही बोलता रहे जो कॉंग्रेस की आलाकमान कहें ...बेकार प्रधानमंत्री जी का व्यय उठा रही है सरकार ....
ReplyDeletekoi bhi doshi ho........lekin hamare pass option nahi hai...aur ye manmohni sarkar sayad auro se behtar hai..aur rahegi..:)
ReplyDeleteसरकार बने रहने के प्रति आस्था, हम देशवासियों से अधिक सांसदों की होती है, चाहे वे किसी दल के हों.
ReplyDeleteहम तो आपकी पोस्ट के जवाब में अपना ही शेर सुनायेंगे...सुनिए के न सुनिए...
ReplyDeleteहो न लिजलिजा बिना रीढ़ का, है यही दुआ ऐ मेरे खुदा
दे वतन को ऐसा तू रहनुमा, जो दिलेर और दबंग हो
नीरज
@ दीपक जी
ReplyDeleteदेश की गद्दी नहीं हर साख पर उल्लू बैठा है |
@ दिनेश जी
धन्यवाद
@ राज भाटिया जी
हमारे बस में नहीं है उसके लिए अगले चुनाव तक इंतजार करना होगा |
@ एहसास जी
लोग हिसाब तो मांग ही रहे है पर उनके पास देने के लिए कुछ है ही नहीं ढंग की सफाई भी नहीं |
@ शेखर जी
सही कहा |
@ राजन जी
ReplyDeleteजितने भी आर्थिक मामलों के जानकर होते है वो केवल आकड़ो की बात करते है धरातल की नहीं | सही कहा उनके प्रेस कांफ्रेंस का भी सब मजाक ही बना रहे है | पिछली पोस्ट को याद रखियेगा भविष्य में काम आएगा :)
@ शिखा जी
खुद उन्होंने भी कह दिया की मै दोषी तो हूँ पर उतना नहीं जितना लोग समझ रहे है अब इतना और उतना का पैमाना कोई समझाए |
@ संजय जी
एक फिल्म में अमजद खान सेनापति बने थे जो जनता पर अत्याचार करता है जितेन्द्र उसके खिलाफ बोलते है और उसके सैनिको से लड़ने लगते है डरपोक खान अपनी तलवार को किनारे खड़ा हो कर पैना करवाने का बहाना बनता है पैना करने वाला बार बार कहता है की तलवार पैनी हो गई तो वह कहता है की और पैनी करो काफी नहीं है ताकि उसे लड़ना न पड़े अंत में सबको हरा कर जितेन्द्र खुद उसके पास आ जाते है तो डर कर वो अपनी तलवार पैना करने वाले से छीन कर जितेन्द्र पर तान देते है लेकिन पैना करते करते तलवार तब तक घिस कर छोटा सा चाकू बन चूका होता है :)))
@ मासूम जी
धन्यवाद |
@ अजित जी
जनता ने तो दूसरो को भी आजमा लिया है पर यहाँ तो कोई भी ठीक नहीं है | और हद तो तब होती है जब नेता नौकरशाहों के लिखे भाषण को यु एन जैसी जगह पर भी देने से पहले एक बार पढ़ते भी नहीं है और बाद में गलती मानाने के बजाये बेवकूफी वाले लिपा पोती |
@ ताऊ जी
ReplyDeleteनहीं जी केवल MMS के लिए ही नहीं पुरे यु पी ए के लिए बुरी खबर है |
@ दीप जी
यानि ये तो तय है की ईमानदार तो नहीं ही है |
@ संगीता जी
नहीं संगीता जी खर्च कैसा उनके बारे में तो प्रचारित है की वो बहुत ही सादा जीवन जीते है |
@ मुकेश जी
लाखो करोड़ के घोटाले होने के बाद भी आप यही मानते है |
@ राजेश जी
आप से सहमत हूँ इसमे पक्ष और विपक्ष दोनों के संसद शामिल है |
@ नीरज जी
आज की तारीख में कोई ऐसा मिलेगा कहा |
ये तो शुरू से ही ज्ञातव्य है कि मनमोहन सिंह एक रिमोट हैं...कंट्रोल किसी और के हाथ में है.
ReplyDeleteवे कमजोर हैं...ईमानदार हैं...सिर्फ हाँ में हाँ मिलना जानते हैं...इसीलिए इस पद पर हैं.
जिसे लोगो ने सोनिया गांधी का त्याग समझा...वह एक सोची-समझी हुई चाल थी...जब तक बेटा राजनीति के दांव-पेंच सीख रहा है, गरीबों की झोंपड़ी में नाश्ता कर अपनी इमेज बना रहा है.. ...एक स्टॉप गैप अरेजमेंट की तरह, मनमोहन सिंह इस पद पर अपने दिन काट रहे हैं.
कोई दूसरा प्रधानमन्त्री होता...तब भी क्या बदल जाना था....तब भी ये सारे घोटाले होते..फर्क बस ये होता कि वो दबंग आवाज़ में इनकार कर...इसे ढकने की कोशिश करते.
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ReplyDelete.
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अंशुमाला जी,
जब से आपका यह आलेख पढ़ा, कमेंट करना चाह रहा था पर न जाने क्यों मोबाईल से कमेंट हो ही नहीं पाया, लैपटॉप तक अब पहुंच पाया हूँ...
सबसे पहले तो संजय जी के इस आकलन से सहमत कि आपकी कलम की धार दिनोंदिन तेज-तीखी होती जा रही है, ऐसे ही लिख अलख जगाती रहें... कुछ तो असर होगा ही...
मेरी खुद की बनाई एक थ्योरी है कि भारत में सत्ता-प्रतिष्ठानों के सर्वोच्च पदों पर 'यसमैन' ही पहुंच पाते हैं... हमारे प्रधानमंत्री भी रिजर्वबैंक के गवर्नर के पद को शोभित कर चुके हैं।
आपने एकदम सही किया है मुखौटा नोंच के... सही बात है,भारत जैसे महा देश के प्रधानमंत्री को 'मिट्टी का माधो' तो नहीं ही होना चाहिये... घोटाले-दर-घोटाले, अगर नहीं रोक सकते तो किसी ऐसे को मौका दो, जो यह सब रोक सके... एक और बात जो मुझे ज्यादा चिंतित कर रही है वह यह है कि इस महालूट में सब शामिल हैं... हमारे नेता, अफसर, मीडिया के बड़े-बड़े नाम और अब तो टाटा व अम्बानी जैसे सम्मानित बिजनेस घराने भी... एक 'बनाना-रिपबल्किक' बनने की ओर बढ़ रहे हैं हमलोग... :(
...
अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाडना तो शर्मनाक ही है| नीरज जी के शेर के बाद एक खस्ता शेर अपना भी:
ReplyDeleteछोडो यह आर्तनाद मत करो दय्या दय्या
मानो खुद को सिंह बनो मत बूढ़ी गय्या
यह व्यंग्य नहीं सच्चाई को वयां करती रचना , बधाई
ReplyDeleteसत्तासुख की मज़बूरियां!
ReplyDeleteachha dhoye hain jee.....unhe apni chamak yahan jaroor dekhna chahiye..........
ReplyDeletesadar.
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ReplyDeleteaap to desh hi hila dengi.
ReplyDeleteशायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
ReplyDeleteसूचनार्थ