मुझे लगता है की इस आन्दोलन की सबसे बड़ी सफलता ये है की अब तंत्र को ये बात कुछ हद तक या कह ले मजबूरी में ही ये बात समझ मे आ गई है की जनतंत्र में जन बड़ा है तंत्र नहीं, ये सारा का सारा तंत्र जन, जनता, जनार्दन के लिए है ना की जनता इस तंत्र को चलने के लिए है | तंत्र का निर्माण ही इसी लिए किया गया था की जनता को सहूलियत हो उसका काम व्यवस्थित हो किन्तु धीरे धीरे तंत्र बड़ा होता गया और जनता छोटी, इस आन्दोलन ने किसी भी व्यवस्था को ना तो पलटा है और ना ही कुछ नया किया है उसने तो बस सारी व्यवस्था और चीजो को फिर से सीधा करने का काम किया है जो उलटी हो गई थी | उम्मीद है अब जनता फिर से एक लंबी नीद पर नहीं जाएगी और समय समय पर तंत्र को ये याद दिलाती रहेगी की वो हमारे लिए है ना की हम उसके लिए और तंत्र जनता के लिए कुछ नहीं करेगा तो फिर वहा पर बैठे लोगों को हटा दिया जायेगा या फिर उन्हें ऐसे ही झकझोर कर याद दिलाया जायेगा |
दूसरी सफलता इस बात की है की लोगों को ये लगने लगा था की आज के समय में अहिंसा से बात नहीं बनेगी | अब समय, लोग खास कर युवा इतने बदल गये है इतने उग्र स्वभाव के हो गए है कि अब शायद ही वो अहिंसा की शक्ति को समझे और उसके माध्यम से अपनी कोई बात कहे | हो सकता है की दो या चार दिन के लिए वो अहिंसा का पाठ याद रखे किन्तु जल्द ही अपना धैर्य खो कर हिंसक हो जाये | किन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ तब भी नहीं जब एक बार लगा रहा था की सरकार इस आन्दोलन को कोई महत्व नहीं दे रही है और अहिंसा से किया जा रहा आन्दोलन उसको समझ नहीं आ रहा है | लेकिन शायद हम सभी युवाओ को और खुद को भी गलत आंक रहे थे और उन्होंने हम सभी को गलत साबित कर दिया ना केवल अहिंसक आन्दोलन पर डटे रहे बल्कि आन्दोलन के इतने दिन तक खीचने के बाद भी अपना धैर्य बनाये रखा और मैदान छोड़ कर भागने के बजाये मैदान में डटे रहे |
आम आदमी में इस आन्दोलन को लेकर एक गजब का आत्मविश्वास जगा है , एक समय था जब लगभग हर आम आदमी एक निराशावादी सोच में जकड कर बस यही कहता रहता था की देश का कुछ नहीं हो सकता, हम कभी भी सरकार से कुछ नहीं करा सकते है , सरकारे अपनी मनमानी करती रहेंगी हम उसका कुछ नहीं कर सकते, हम इस व्यवस्था को कभी नहीं बदल सकते है | किन्तु इस आन्दोलन ने दिखाया की यदि आम आदमी करना चाहे तो जरुर बहुत कुछ कर सकता है | एक एक आम आदमी का शायद कोई अस्तित्व ना हो सरकार के लिए किन्तु जब यही आम आदमी एक एक कर लाखो में बदल जाते है और एक सुर में अपनी बात करते है तो सरकारों को ना केवल सुनाई देता है, उसे मजबूर हो कर ही सही काम तो करना ही पड़ता है | अब उम्मीद है की आम आदमी अपनी सोच बदलेगा निराशावादी होने की जगह आशावादी बनेगा अन्ना ने तो कहा है की ६५% भ्रष्टाचार कम होगा पर आम आदमी के लिए तो इतना भी कम नहीं है कि कम से कम कुछ तो कम होगा चाहे चौथाई भाग ही सही कुछ नहीं से कुछ तो भला ही है | बाकि कहने वाले लोग कहते रहे की लोकपाल से पुरा भ्रष्टाचार बंद नहीं होगा, आम आदमी के लिए तो थोड़ी राहत भी बहुत है, हम तो डूबते को भी तिनके का सहारा देने की बात करते है यहाँ तो सहारा तिनके से काफी बड़ा है |
हम सभी कभी ना कभी एक कहानी सुन चके है या अपने बच्चो को कभी सुनाई होगी की कैसे यदि पांचो उंगलिया मिल जाये तो मुठ्ठी बन जाती है और फिर हाथ में ज्यादा ताकत आ जाती है इसे कहते है एकता की शक्ति | पर हम में से ज्यादातर इस कहानी को या तो भूल चुके थे या ये कहे की स्वार्थ पूर्ण राजनीति ने हमें भूलने पर मजबूर कर दिया था | हम बटे थे धर्म को लेकर जातियों को लेकर अपने अपने क्षेत्रवाद भाषावाद को लेकर या राजनीतिक वादों को लेकर किन्तु इस आन्दोलन ने उसे कुछ हद तक ( अफसोस से कहना पड़ रहा है की बस कुछ हद तक, कुछ नेताओ की अपनी निजी नेतागिरी के चक्कर में कुछ अति बुद्धिजीवी टाईप के लोगों के कारण जो धर्म और जाति और वाद को इस आन्दोलन से जोड़ कर अपनी राजनीतिक सोच को पोश रहे थे ) उसे आम आदमी के दिमाग से बाहर निकाल दिया और उसे समझने के लिए मजबूर किया की आप चाहे किसी भी धर्म जाति क्षेत्र या वाद के हो भ्रष्टाचार आप सभी को एक ही रूप में देखता है आप सभी को एक ही तरीके से प्रभावित करता है | भले ही किसानो, मजदूरों, दलितों मुस्लिमो से ये कहा जा रहा था की ये आप की लड़ाई नहीं है ये तो खाये पिये ठसक में रह रहे मध्यम वर्ग की लड़ाई है किन्तु ये बात सिर्फ बरगलाने वाली थी जिन किसानो से उनकी जमीने सस्ते में लेकर सरकारे बिल्डरों को करोडो में बेच कर मुनाफा कमा रही थी क्या वो भ्रष्टाचार नहीं है, किसानो को उनकी फसलो का उचित मूल्य नही दिया जाता किन्तु विदेशो से ब्लैक लिस्डेड कंपनियों से ऐसा सडा गेहू दुगने दामो पर मगा लिया जाता है जो जानवरों के खाने के लायक भी नहीं है क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है , क्या मजदूरो के घर के लिए रखी जमीनों को बेच बड़ी इमारते बनाई जा रहा है क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है क्या मजदूरो को बेरोजगार कर मिले बंद कर वहा बड़े बड़े शापिंग मॉल खड़े करने की नीति भ्रष्टाचार नहीं है , क्या दलितों के नाम पर अल्पसंख्यको के नाम पर हर साल करोडो रूपये की योजनाये बनाई जाती है उसके बाद भी आजदी के ६४ साल के बाद भी उनकी स्थिति में ज्यादा फर्क नहीं आया क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है इसके आलावा रोजमर्रा के जीवन में हो रहे भ्रष्टाचार से सभी रूबरू होते है | समाज का कोई भी ऐसा वर्ग नहीं है जो भ्रष्टाचार से प्रभावित नहीं हो रहा है ये लड़ाई सभी की है किन्तु जानबूझ कर इस आन्दोलन को बार बार ये कह कर झुठलाया गया इसे ख़ारिज करने का प्रयास किया गया की ये दलितों के लिए नहीं है ये अल्पसंख्यको के लिए नहीं है ये किसानी के लिए नहीं है तो ये मजदूरों के लिए नहीं है | फिर भी इन सभी वर्गों से लोग निकल कर बाहर आये और अपनी आवाज सभी के साथ बुलंद की और कई नेताओ और तथाकथित बुद्धिजीवी ? वर्ग को समझाया की अब समाज के किसी भी वर्ग को आप ज्यादा दिनों तक बेफकुफ़ बना कर बाट कर नहीं रख सकते है और एकता से बड़ी कोई शक्ति नहीं होती है |
उम्मीद है की जो लोग इस आन्दोलन से अभी तक इन लोगों के बहकावे के कारण नहीं जुड़े थे वो आगे इस आन्दोलन से जुड़ेंगे और सक्रिय रूप से जुड़ेंगे क्योकि ये आन्दोलन ख़त्म नहीं हुआ है इसे अभी और बहुत आगे जाना है और हम सभी को अपनी ताकत, एकता धैर्य को यु ही बनाये रखना होगा क्योकि जैसे जैसे हमारी जीत होती जाएगी वैसे वैसे आगे की लड़ाई और भी कठिन और मुश्किल होती जाएगी |
एक बात जो अभी तक समझ नहीं आई वो ये की इस आन्दोलन के पीछे आखिर हाथ किसका था ???? और उसे क्या क्या फायदा हुआ ??? एक गुट कह रहा था की इसके पीछे आर आर एस और हिंदूवादी संगठनो का हाथ है, तो लो जी अब बताया जाये की उन्हें क्या फायदा हुआ इससे क्योकि यदि उनका इरादा अपनी राजनीतिक पार्टी को फायदा पहुँचाना होता तो ये आन्दोलन आज नहीं बल्कि अगस्त २०१३ में हो रहा होता चुनावों से ६ महीने पहले या कम से कम उनकी पार्टी बी जे पी बहुत पहले ही इसका साथ दे रही होती ना की इतने हिल हिलावे के बाद | दूसरे भी थे जो कह रहे थे की इसके पीछे कांग्रेस का हाथ बता रहे थे उनके अनुसार ये राहुल की ताजपोशी के लिए था वो तो हुआ नहीं बस एक मामूली से भाषण के सिवा जिसे कांग्रेसियों के अलावा किसी ने भी तवज्जो नहीं दिया , फिर ये भी लगता है की युवराज को कल का प्रधानमंत्री बनने से हम में से कोई भी नहीं रोक सकता है वो तो एक ना एक दिन हो कर रहेगा क्या राहुल एक जनता द्वारा चुने गये प्रधान मंत्री की जगह किसी को हटा कर थोपे गये प्रधानमंत्री के रूप में पहचाना जाना पसंद करेंगे, मुझे तो नहीं लगता है वैसे इस गुट से जवाब आ गया है की अभी नहीं बाद में पता चलेगा की कांग्रेस की कितनी बड़ी चाल थी :))) ठीक है भईया जब आप को उस चाल का पता चले तो हमको भी जरा खबर कीजियेगा और तीसरा हाथ था अमेरिका का :)))))))) अब क्या कहे वहा तो खुद १८ लाख लोगो की बत्ती गुल हो गई है क्रेडिट रेट घटा दिया गया है ( और ऐसा करने के लिए एक भारतीय की बलि भी ले ले गई ) दूसरी आर्थिक मंदी की आहट से डरे पड़े है , बेरोजगारी बढ़ती जा रही है ओबामा अवतार का खुमार उतर रहा है अब वो अपने देश की अराजकता देखे की हमारे देश में अराजकता फैला कर दक्षिण एशिया को अपने लिए एक और मुसीबत बना ले जहा वो पहले ही चीन और पाकिस्तान से परेशान है | मतलब की !! कोई है जो बताएगा की आखिर इस आन्दोलन के पीछे कौन सा और किसका हाथ था |
इस आन्दोलन के पहले कभी सोचा नहीं था की मुझमे भी इस तरह के किसी आन्दोलन में सक्रीय रूप से भागीदारी करने की हिम्मत होगी लेकिन धन्यवाद दूंगी इस आन्दोलन का विरोध करने वालो का खाकर की ब्लॉग जगत के विरोधियो का जिन्होंने मुझमे हिम्मत जगाई की मै कई बार समय निकाल कर धरना स्थल पर गई बल्कि दो बड़ी रैलियों में भी परिवार के साथ गई | वहा का जो माहौल था जो जोश था उसे शब्दों में नहीं कहा जा सकता है उसे तो वही समझ सकता है जो वहा गया | मै अपने पति को एक बार धरने पर ले गई थी अपनी इच्छा से उसके बाद दो बार उन्होंने मुझे बताया की हमारे घर दूर रैलिया है और मुझे ले कर गए ये असर था वहा एक बार जाने का | एक गाना जो ए आर रहमान ने बनाया है हीरो कंपनी के लिए पर मुझे तो लगता है जैसे ये गाना आन्दोलन के लिए ही बनाया गया था जिसे हर आम आदमी गा रहा है | एक बार अपनी आंखे बंद कीजिये और इस गाने को देखिये नहीं बस सुनिये चाहे यहाँ या चाहे अपने टीवी सेट पर |
हम में है हीरो रो रो रो रो रो
हम में है हीरो रो रो रो रो रो
दिल से कहो ये
हम में है हीरो
मिल के कहो ये
हम में है हीरो
हर हिन्दुस्तानी में एक हीरो है |
ये टुटपुंजिये-लतखोर लोग जब कह रहे थे कि इस आंदोलन में अमेरिका का हाथ है तब पीपली लाइव का वो सीन याद आ रहा था जिसमें कि न्यूज एंकर प्रतिशत में बताते हुए कहता है कि - फलां प्रतिशत के लोग मानते हैं कि इस घटना में अमेरिका का हाथ है।
ReplyDeleteकुछ भी हो, यह आंदोलन लंबे समय तक लोगों को याद रहेगा अपनी अहिंसक विशिष्टता और लोगों में पनपी नई उर्जा के लिये।
बेकार की बात में समय नष्ट नहीं करना चाहिए :) अच्छा आलेख सार्थक पोस्ट आभार
ReplyDeleteबहुत ही समग्रता से आपने इस आन्दोलन का विवेचन किया है...सोलह अगस्त को ना ही जनता और ना ही सरकार को ये अनुमान था कि इस तरह लोग इसे समर्थन देंगे और दिन ब दिन उनका उत्साह कमजोर पड़ने की बजाय बढ़ता जाएगा.
ReplyDeleteजैसा कि आपने जिक्र किया है कई जीवन मूल्यों की पुनर्स्थापना हुई है और इन मूल्यों को लेकर लोगो का विश्वास दृढ हुआ है.
बस आशा है कि जनता की सक्रिय भागेदारी यूँ ही बनी रहेगी.
और हाँ, मुझे कहीं से नहीं लगा कि आपने मेरी पोस्ट पढ़ने के बाद ये पोस्ट लिखी है.आपकी पोस्ट अलग अंदाज़ में है.
बहुत ही बढ़िया लिखा है.
"आम आदमी में इस आन्दोलन को लेकर एक गजब का आत्मविश्वास जगा है , एक समय था जब लगभग हर आम आदमी एक निराशावादी सोच में जकड कर बस यही कहता रहता था की देश का कुछ नहीं हो सकता, हम कभी भी सरकार से कुछ नहीं करा सकते है , सरकारे अपनी मनमानी करती रहेंगी हम उसका कुछ नहीं कर सकते, हम इस व्यवस्था को कभी नहीं बदल सकते है |"
ReplyDeleteबिलकुल सही , ये सबसे अच्छी बात हुयी है
इस आन्दोलन में भागीदारी देने के लिए आप बधाई.... Blog Archive में नजर आ रही इस महीने की लेख माला बहुत अच्छी लगी
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
YES WE ARE THE HERO .THANKS
ReplyDeleteNice post .
ReplyDeleteबहरहाल यह बहस तो चलती ही रहेगी।
ब्लॉगर्स मीट वीकली (6) Eid Mubarak में आपका स्वागत है।
इस मुददे पर कुछ पोस्ट्स मीट में भी हैं और हिंदी ब्लॉगिंग गाइड की 31 पोस्ट्स भी हिंदी ब्लॉग जगत को समर्पित की जा रही हैं।
ये भ्रष्टाचार की ही माया है जिसके चलते आजादी के बाद से गरीब और गरीब व अमीर और अमीर होता चला गया है । अण्णा के ये सुधार कार्य वास्तविक रुप से लागू होने पर भ्रष्टाचार की मृत्यु यदि नहीं भी होगी तो भी उसकी कमर तो टूटेगी ही ।
ReplyDeleteयह आंदोलन युवा वर्ग के लिए विशेष महत्व का है क्योंकि इस पीढ़ी ने पहली बार सत्य,अहिंसा और शांति का वह रूप देखा,जिसके बारे में अब तक उन्होंने केवल पढ़ा था।
ReplyDeleteShuruaat to sakaratmak hai.... baki sab waqt batayega... ek nai subah ka aagaz hai ye Aandolan...
ReplyDeleteमैं तो इस उपलब्धि से ही खुश हूँ कि आज हमारी युवा पीढ़ी वन्देमातरम जैसे गीत अपनी मर्जी से झूमते गाते गा रही है जो स्वतःस्फूर्त है , आज उन्होंने गाना शुरू किया है , कल यह उनका स्वभाव हो जाएगा ...
ReplyDeleteसियासी चालों और बोलों को जनता ने ख़ास तवज्जो नहीं दी , बल्कि आम जनता और अच्छी तरह इन्हें समझ पाई ..
सिर्फ कानून का बन जाना काफी नहीं है , हम नागरिकों को भी मेहनत करनी होगी ...
अच्छा आलेख !
अंशुमालाजी, सर्वप्रथम आपको बधाई, सफल आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की। आपने सटीक विश्लेषण किया है। इस आंदोलन के दूरगामी परिणाम होंगे।
ReplyDeleteआंदोलन अपने आप में ऐसा इतिहास बन गया है कि इसकी तुलना किसी अन्य आंदोलन से नही की जा सकेगी. जो असंभव था उसे अन्ना आंदोलन ने संभव कर दिखाया है.
ReplyDeleteहम सबका फ़र्ज बनता है कि अपने अपने तरीके से इस लौ को बुझने ना दे. यह चिंगारी लगी रहे तो मंजिल आ ही आज्येगी. एक सशक्त आलेख के लिये आपको बधाई और इस श्रंखला में और भी लिखती रहे तो यह भी आपका इस आंदोलन में सहयोग माना जायेगा.
रामराम.
हर युग में सोई शक्तियों को जगाने के प्रयत्न अलग तरीके से होते रहे हैं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार कभी जामवंत ने हनुमान जी को उनकी शक्ति की याद दिलाई थी तो कभी कृष्ण ने गीता ज्ञान देकर अर्जुन की शक्तियों को जागृत किया था, इस बार ऐसे सही।
ReplyDeleteआपने अपने स्तर पर जो किया, उससे आपको यकीनन एक संतुष्टि मिल रही होगी। वैसे हम तो मान रहे हैं कि आप वहाँ भी लीड ही कर रही होंगी।
बाई द वे,टिप्पणी बॉक्स के ऊपर जो लिखा है उसके बारे में कुछ शंका है, टिप्पणियाँ तो आने के बाद ही प्रकाशित होती हैं:)
अंशुमाला जी,
ReplyDeleteविलम्ब के लिए खेद.. लोगों के कहने पर तो कान देना ही छोड़ रखा है मैंने.. भीड़ से अलग दिखने का यह उनका विज्ञापन है.. उन्हें पता नहीं कि मैंने देखा है रामलीला मैदान में बिना हथियारों के रैपिड एक्शन फ़ोर्स को.. कभी देखा है ऐसा नज़ारा.. सिपाहियों के हाथों में लाथोयाँ भी नहीं थी.. ५-६० हज़ार की रोजाना भीड़ और बिलकुल नियत्रित और व्यवस्थित..
और इस हीरो के विषय में तो बस यही कह सकता हूँ कि लोग नारे लगा रहे थे कि अन्ना तुम संघर्ष करो/हम तुम्हारे साथ हैं.. अगर वास्तव में उस आदमी को हीरो मानना है तो संघर्ष हमें करना चाहिए, न कि सिर्फ साथ देना..
उम्मीद पर दुनिया कायम है.शुरुआत तो चमत्कारी है.परिणाम भी सकारात्मक हों तो बात बने.
ReplyDeleteबढ़िया आलेख.
आपकी बात से सहमत.भ्रष्टाचार की कुल्हाड़ी जब चलती है तो पेड़ पेड़ में अन्तर नहीं करती. सो जाति, धर्म या वर्ग की बात करना व्यर्थ है.
ReplyDeleteघुघूती बासूती
@ संजय जी
ReplyDeleteइसे ही कहते है की हिंदी में बिंदी का भी बड़ा महत्व है एक शब्द "मेरे" नहीं लिखने से बात का अर्थ ये भी हो गया जो आप ने कहा :)
अवकाश पर जाते समय बस माडरेशन लगा कर जाती हूँ वैसे तो कुछ नहीं लिखती हूँ किन्तु इस बार ये सोच कर लिख दिया कही आन्दोलन का विरोध करने वाले मेरे जाने के बाद कोई विरोधी टिप्पणी दे और उसे प्रकाशित ना देख ये ना सोच ले की हमने विरोधी टिप्पणी दबा दी | और हम जैसे आम आदमी तो ऐसे आन्दोलनों में हिम्मत कर चला जाये उसके लिए बड़ी बात है लीड करना हम जैसे के बस की बात नहीं है मै तो यहाँ बार बार ये सोच कर अपने सक्रियता की बात करती रही शायद कोई दूसरा भी मेरी तरह ही खुद को कमजोर समझ इच्छा होने के बाद भी आन्दोलन में नहीं जाता हो तो मेरी बात सुन कर उसे भी कुछ हिम्मत आ जाये और लोग घर से बाहर निकाल कर कुछ करे अपने ही स्तर पर |
@ सलिल जी
सही कहा की संघर्ष तो हम सभी को करना चाहिए जो हम सभी ने किया होता तो आज ये दिन ही नहीं देखने पड़ते | वैसे हम उस रूप में संघर्ष नहीं कर सकते जैसा को इस आन्दोलन से जुड़ा नेता करता है हम सभी तो बस उसका साथ ही दे सकते है और खुद को बदलने का और व्यवस्था को बदलने का प्रयास भर ही कर सकते है |
अंशुमाला जी,चाहे हमें ठीक वैसा सब कुछ न मिला हो जैसा हमने सोचा था लेकिन ये बात सच है कि इस आंदोलन ने हर भारतीय के अंदर के हीरो को जगा दिया है.जनता सेवक नहीं मालिक है ये बात इतनी बार दोहराई गई कि जनता अब इसे महज नारा न मानकर लोकतंत्र के सही अर्थ को समझ रही है.
ReplyDeleteआपने अपने तरीके से इसमें बहुत अच्छा योगदान दिया.मुझ जैसे लोग जो वैचारिक रूप से तो इस मुहिम के समर्थक थे परंतु उतने एक्टिव नहीं थे उन्हे आपकी सक्रीयता ने बहुत प्रभावित किया.इसके लिए आपका धन्यवाद.इसके बाद में एक रैली और एक सभा में सम्मलित हुआ.यहाँ लोग कह रहे है कि सडक पर उतरने वाला लोग केवल अन्ना के भक्त है और उन्हें इस बिल के बारे में कुछ पता नहीं है(यदि ईमानदारी से कहूँ तो पहले खुद मुझे भी ये ही लग रहा था),वहाँ जाकर पता लगा कि ये बात बिल्कुल गलत है लोग इसके बारे में मोटे तौर पर जानते है और जो नहीं जानते वो जानने की कोशिश कर रहे थे.इसलिए पब्लिक को केवल अंधभक्तों की भीड कह देना गलत होगा.
इस बार आपका अवकाश थोडा लंबा हो गया.वैसे मैंने अंदाजा लगा लिया था आपने वो नोट क्यों लगाया है.
@राजन जी
ReplyDeleteवैसे मै आप के शहर ही घूमने गई थी बड़ी अच्छी जगह लगी :)
अंशुमाला जी,
ReplyDeleteबातों की फ़ुलझडि़याँ छोड़ने की बजाय सामर्थ्यानुसार योगदान करना भी कुछ कम नहीं होता, इसलिये आपने जो भी किया और जितना भी किया, बेहतर किया।
माडरेशन कभी कभी आवश्यक हो जाता है, उसमें कोई दिक्कत नहीं। लेकिन कमेंट करने के बाद लगा कि अवकाश का कारण जाने बिना मजाक करना शायद ठीक न हो, लेकिन तीर कमान से निकल कर माडरेशन में जा चुका था। आशा है अवकाश सुखद रहा होगा।
अंशुमाला जी,
ReplyDeleteतब तो आपका अवकाश ज्यादा लंबा नहीं था.क्योंकि इतना छोटा नहीं है हमारा शहर.बहुत कुछ पक्का देखने से रह गया होगा.इसलिए आपको फिर से जयपुर आना चाहिये... और जयपुर ही क्या राजस्थान में बहुत कुछ देखने लायक है.और आप बता के क्यों नहीं आए?
अगली बार जब भी आएँ तो पहले सूचित जरूर करिएगा.हमारे गरीबखाने में आपका और आपके परिवार का हमेशा स्वागत है.
वैसे आपको तो अच्छा लगा.अनामित्रा भी आई होगी.उम्मीद है उसे भी हमारा शहर पसंद आया होगा:)
देर से पढ़ा लेकिन अच्छा लगा पढ़कर।
ReplyDelete♥
ReplyDeleteआपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और
शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार