कहते है की दुनिया में सबसे ज्यादा अंदर से दुखी सबसे बड़ा हंसोडा होता है बाहर से वो भले हँसता मुस्कराता दिखता है पर अंदर बहुत दुःख घुटन भरा होता है और जब वो घुटन अपनों को द्वारा हो तो कष्ट कुछ और भी बढ़ जाता है | कुछ ऐसा ही था मेरे भी साथ, आज भले ही हर बात पर एक मज़ाक करती टिप्पणी और उसके साथ इस्माइली लगा देती हूँ किंतु ब्लॉग में आने के पहले ऐसा नहीं था | जीवन में वो कुछ भी नहीं था जो मैंने जीवन से चाह था, जिस तरह के परिवार से मैं आई थी, ससुराल पति उससे कही ज्यादा विपरीत थे, ऐसा नहीं था की विवाह के पहले कुछ मालूम ही नहीं था, ससुराल के परिवार के बारे में जानकर कुछ तो अंदाजा था और ये समझौता तो अपनी ख़ुशी से मैंने ही किया था | किंतु कहते है ना की समझौता तो समझौता ही होता है अपनी ख़ुशी से किया जाये या मज़बूरी में वो मन में कही ना कही सालता ज़रुर है | जीवन के सात कीमती साल मैंने बस कस्मसाते हुए गुजार दिए | आज व्यंग्य करती मज़ाक करती अंशुमाला को देख कर आप में से शायद ही किसी को कभी इस बात का अंदाजा हुआ हो की मैं अंदर से कितनी दुखी और परेशान थी |
इन सब की शुरुआत तो विवाह के छ सात दिन बाद ही हो गया था जब पति देव की असलियत मेरे सामने आ गई ( वो अलग बात है की सदा उनकी बुराईयो को छुपा उनकी अच्छाई ही सब जगह कही है ) हमारी छोटी सी बहस को मैंने जब झगड़े का रूप दे दिया पर पति देव तो बस चार बार मुझे जवाब देने के बाद एक दम से- - - -- -- - - ---- - - -- - -- - - - - - चुप ही हो गए और मेरी बात मान कर कहा की अब इसे यही खत्म करो, उनका ये व्यवहार मेरे लिए ये किसी आघात से कम नहीं था, मैंने कहा की क्या बस इतना ही क्या आप को झगड़ा करना नहीं आता तो उन्होंने साफ मना कर दिया नहीं मुझे नहीं आता | आप तो अंदाजा भी नहीं लगा सकते की उस समय मुझ पर क्या गुज़री , विवाह के पहले ही पता था की मेरी सास नहीं है दिल को मना लिया की चलो झगड़ा करने और मोहल्ले भर में किसी और की बुराई बढ़िया लुंगी , ननदे जिठानी मुझसे दूर रहती थी तो क्या जब फोन पर बाते होंगी या कभी मिले तो उन्हें ताने मार लिया करुँगी कभी व्यंग्य बाण चला लिया करुँगी , रोज न सही कभी कभी ही सही, पर पति तो पास होगा झगड़ा तो हर दूसरे दिन कर खाना पचा लिया करुँगी , पर मेरी फूटी किस्मत की पति देव को झगड़ा ही नहीं करने आता था , हद तो तब हो गई जब मेरे सटायर , व्यंग्य तक पर प्यार से मुस्करा देते थे, हाय ! तब पता चला की इन्हें तो ये भी समझ नहीं आता है, मुझे ही ये बताना पड़ता है की अजी मैंने आप पर ताना कसा है सटायर मारा है, तो कहने लगे अच्छा मुझे तो पता ही नहीं चला | बोलो अब ऐसे लोगो के साथ जीना भी कोई जीना है बंधुओं | ये सब यही ख़त्म नहीं हुआ दर्द तब और बढ़ गया जब इमारत की सभी महिलाओ ने अपनी सास ननद निंदा समूह से मुझे दो महीने में ही बाहर निकाल दिया कहने लगी की ये नहीं चलेगा की हमारे ससुराल वालो की बुराई खूब रस ले ले कर सुनो और अपनी कुछ भी न कहो | जीवन बिना झगड़े , बिना किसी का मज़ाक, व्यंग्य किये , बिना सटायर, बातों को उलटा बोले चल सकता है | अरे इन सब के बिना भी जीना कोई जीना था और वो भी मेरे जैसी लड़की ( अरे तब मैं तो लड़की ही थी ना, वैसे भी आप क्या जाने इस उम्र में खुद के लिए लड़की लिखा जाना कितना सुहाता है ) के लिए जो उस परिवार से आई थी जहा बिना किसी भेद भाव , रंग रूप जाति पाति धर्म रिश्ता देखे सभी का एक सुर में मज़ाक उड़ाया जाता है सभी मिल कर किसी किसी की टाँग खीचते है | बचपन से ये देखती आई थी, ये सब तो मेरे खून में था सोचा था बड़ी हो विवाह होगा तो अपने घर के ये महान काम को और आगे ले जाउंगी दूर दूर तक फैलाऊँगी , किंतु सब ख़त्म हो गया |
पर कहते है ना भगवान के घर देर और अंधेर दोनों ही है, मेरी जोड़ी ऐसे व्यक्ति के साथ बना कर अंधेर करने वाले भगवान ने भी देर से ही सही मुझे इस घुटन से आज़ादी दिला दी और एक दिन मेरा परिचय हिंदी ब्लॉग जगत से करा दी | लगा जैसे कोई अपना सा मिल गया, यही है वो जिसको मुझे वर्षो से इंतजार था | हर तरफ लोगो के भड़ास बिखरे पड़े थे , मेरी तरह ही घुटे हुए लोगो की घुटन खुल कर बाहर आ रही थी , हर तरफ झगड़े विवाद चल रहा था | लगा जैसे मेरा ही परिवार, मेरा ही शहर यहाँ हो, वही खुद को सभी से समझदार समझना , वही सारी बुद्धि का ठेका खुद लेकर बैठे होने का दावा करना , वही दूसरों पर व्यंग्य कसना , वही किसी की टाँग खिचाई करना, वही मिल कर किसी एक का मज़ाक उड़ाना ,नहा धो कर किसी के पीछे पड़ जाना , वही बस अपनी ही हर बात पर अड़े रहना , वही हर बात पर बहस करना , वही ताने कसना और ये कहना की हम महिलाओ की बड़ी इज़्ज़त करते है बस वो महिलाएँ मेरे घर की हो बाकी बाहर की महिलाओ को हम महिलाओ की गिनती में नहीं रखते है यदि वो हमारे खिलाफ या कहे की वो बोलने की भी हिम्मत करेंगी तो उनकी तो हम बीप बीप बीप ( श्री श्री अमिताभ बच्चन के मुख कमलो से लिए गए शब्द जहा आप अपने स्तर और स्वभाव जानकारी के अनुसार अपनी पसंद की गाली जोड़ कर पढ़ सकते है ) कर देंगे | धनभाग हमारे की हम हिंदी ब्लॉग जगत से जुड़े यहाँ आकर जिन जिन गलियों को हमने लिपि बध रूप में पढ़ा और अपने गालियों का ज्ञान बढाया वो कही और संभव नहीं था | क्या है की बचपन तो बनारस में गुजरा जहा परिवार में तो कोई गाली नहीं देता था किंतु आस पास सभी के मुख मंडल से प्रेम पूर्वक जो गाली रूपी पुष्प गिरते थे वो ठीक से समझ नहीं आते थे एक तो बिलकुल ठेठ भाषा की समस्या आती दूसरे उच्च स्वर में शुरू हुई गाली पता नहीं क्यों बाद में निम्न स्वर में आ जाती थी, जिससे गाली आधी की समझ आती थी यही कारण था की हमारा गाली ज्ञान उतना अच्छा नहीं था | किंतु भला हो हमारे ब्लॉग जगत का जहा बाक़ायदा हर शब्दों का अच्छे से पढ़ने का मौका मिला बल्कि कई नई गलियों का भी ज्ञान हुआ धन्यवाद ब्लॉग जगत | उसके बाद जो कलम ( असल में तो उंगलिया चली कहते तो कलम ही है ना ) चली की पूछो ही मत | कभी प्रवचन तो कभी जहर बुझे व्यंग्य के तीर , तो कभी लंबी लंबी हाकना पोस्ट तो पोस्ट टिप्पणियों की लम्बाई भी लंबी , तो कभी तीखे सटायर , तो कभी किसी की हर बात की ही आलोचना करते रहना हा कहे तब भी ना कहे तब भी , और लोगो को टिप्पणी देने का ऐसा चस्का लगा की पोस्ट भी लिखने की सुध नहीं रहती कभी कभी | ज्यादातर लोग तो मुझे टिप्पणीकार के रूप में ही जानते होंगे बजाये एक ब्लॉगर के | टिप्पणियों का अपना मजा है जा कर किसी के अच्छे खासे लेख का बेडा गर्क कर दो, मेरे आने के पहले जिस पोस्ट में सब आप से सहमत है लिख कर जा चुके हो वह टिप्पणी में ऐसी बात लिख मारो की सब लेखक को छोड़ मुझे से ही सहमत हो कर चले जाये और लेखक जल भुन जाये , या लेख का दिशा ही बदल दो कोई नई बात लिख कर की लोग पोस्ट के बजाये टिप्पणी पर ही वाह वाह कर बैठे , या पोस्ट पर ऐसा विवाद खड़ा कर दो टिप्पणी दे कर की लेखक भी बार बार सोचे की आखिर विवाद हुआ क्यों था , जहा दिखे की पोस्ट लिखने वाला खुद को ज्यादा विद्वान समझ रहा है वहा पर कई पोस्ट पर विपरीत बाते लिख अपनी विद्वानिता झाड़ देती हूँ की बेचारे ब्लॉगर को अंत में मुझे विद्वान मान अपना पिंड छोड़ने के लिए कहना पड़ जाये और जहा पर ब्लॉगर की बड़ी बड़ी उच्च कोटि की हिंदी समझ ना आये तो टिप्पणी भी ऐसे कर दे की जब बात में मई खुद ही पढ़ो तो खुद ही समझ ना आये की आखिर इसका मतलब क्या है | मतलब ये की जीवन में जो करने की इच्छा थी सब यहाँ पूरा होने लगा |
यहाँ आ कर मेरे मन को जो सुख चैन मिला वो सात सालों की घुटन को कुछ ही समय में भुला दिया | अब बुराई करने के लिए किसी सास की जरुरत नहीं इतने ब्लॉगर और उनकी करनी( पोस्ट ) है की आप बुराई करते करते थक जाये, पर ना तो ब्लॉगर खत्म होंगे ना बुराई करने के लिए पोस्टे, खुद का विषय सोचने की जरुरत ही नहीं है बस दूसरे की पोस्टो की बुराई लेकर बैठ जाइये देखिये कैसा पाठक खींचा चला आता है आप के पास निंदा रस का रस और बढ़ाने ले लिए , ताने कसने व्यंग्य बाण चलाने के लिए ननद , जिठानी की या नीचा दिखने के लिए किसी गरीब रिश्तेदार की जरुरत नहीं है लोगो के पोस्टो का विषय ही काफी है किसी का भी मज़ाक उड़ाने के लिए और नीचा दिखने के लिए हिंदी का ज्ञान ही काफी है | वर्तनी से लेकर भाषा अलंकार समास आदि आदि जो मिले उसी की धज्जी उड़ा दे अच्छी खासी पोस्ट को हिंदी का निम्न स्तर की लेख बता दे और आगे बढे और ब्लॉगर को हिंदी ब्लॉग जगत का कलंक भी बताने से ना चुके , और जलने के लिए किसी पड़ोसी की जरुरत नहीं है, हाय उसके ब्लॉग पर मेरे ब्लॉग से ज्यादा टिप्पणियाँ कैसे आती है , फलाने ब्लॉगर तो बस उन्ही को टिप्पणी करते है हमें नहीं , अजी वो महिला है ना इसलिए , अरे नहीं ये तो टिप्पणीकार ही फ़र्ज़ी है आदि इत्यादि |
यहाँ आ कर मेरे मन को जो सुख चैन मिला वो सात सालों की घुटन को कुछ ही समय में भुला दिया | अब बुराई करने के लिए किसी सास की जरुरत नहीं इतने ब्लॉगर और उनकी करनी( पोस्ट ) है की आप बुराई करते करते थक जाये, पर ना तो ब्लॉगर खत्म होंगे ना बुराई करने के लिए पोस्टे, खुद का विषय सोचने की जरुरत ही नहीं है बस दूसरे की पोस्टो की बुराई लेकर बैठ जाइये देखिये कैसा पाठक खींचा चला आता है आप के पास निंदा रस का रस और बढ़ाने ले लिए , ताने कसने व्यंग्य बाण चलाने के लिए ननद , जिठानी की या नीचा दिखने के लिए किसी गरीब रिश्तेदार की जरुरत नहीं है लोगो के पोस्टो का विषय ही काफी है किसी का भी मज़ाक उड़ाने के लिए और नीचा दिखने के लिए हिंदी का ज्ञान ही काफी है | वर्तनी से लेकर भाषा अलंकार समास आदि आदि जो मिले उसी की धज्जी उड़ा दे अच्छी खासी पोस्ट को हिंदी का निम्न स्तर की लेख बता दे और आगे बढे और ब्लॉगर को हिंदी ब्लॉग जगत का कलंक भी बताने से ना चुके , और जलने के लिए किसी पड़ोसी की जरुरत नहीं है, हाय उसके ब्लॉग पर मेरे ब्लॉग से ज्यादा टिप्पणियाँ कैसे आती है , फलाने ब्लॉगर तो बस उन्ही को टिप्पणी करते है हमें नहीं , अजी वो महिला है ना इसलिए , अरे नहीं ये तो टिप्पणीकार ही फ़र्ज़ी है आदि इत्यादि |
हिंदी ब्लॉग जगत को देख कर लगा की जैसे ये बस मेरे जैसो के लिए ही तो बना है जो जीवन में सपने तो कई देखते है पर करते कुछ नहीं है , बाते बड़ी बड़ी और काम एक भी नहीं, जो ज़मीन पर कुछ करने के बजाये बस लोगो के सामने लंबी लंबी फेंकने में उस्ताद होते है | काहे की जो काम करता है वो तो मैदान में जा कर लड़ा रहा होता है अपना सपना पूरा कर रहा होता है ना, उसके पास दूसरों को सुनाने के लिए ना इतना कुछ होता है और ना ही इतना समय होता है बकबकाने के लिए |तो भाइयों और बहनों , जैसे की हर धार्मिक कथा के अंत में कहा जाता है, की जैसे ब्लॉग मैया हमारा दुख दूर की हमें घुटन से आज़ादी दिलाई वैसे ही ब्लॉग मैया सभी का बेडा पार करे सभी को सुख चैन दे और सारा धन धान्य हमरे घरे भेज दे |
ये सब आज क्यों ?
क्या आज मेरे ब्लॉग का साल पूरा हुआ है ? अरे नहीं जी वो तो कब का हो गया ,
तो क्या सौ वी दोसौवी पोस्ट है ? लंबी लंबी उबाऊ टिप्पणी लिखने से फ़ुरसत मिले तब तो सौ पोस्ट लिखे |
क्या ब्लॉग छोड़ कर जा रही है, और टंकी पर चढने वाली है ? अरे मालूम है की कोई टंकी से उतारने ना आएगा उलटा टंकी के नीचे लगा सीढ़ी भी हटा देंगे की कही उससे उतर कर वापस ब्लॉग जगत में ना आ जाये |
तो फिर ??
जी आज मेरा हैप्पी वाला बड्डे है , सोचा पिछली बार आप लोगो से तोहफे की मांग की थी पर किसी ने ( राजेश जी की एक कविता को छोड़ ) कुछ नहीं दिया था ,एक सौ एक रुपये की तरह एक टिपण्णी थमा कर १००० रुपये वाली प्लेट का खाना खा के चल दिए थे !! हूं :))) | किंतु उसके बाद एक साल में लगा की लोगो ने कितना कुछ दिया है मुझे हिंदी ब्लॉग जगत का प्लेटफॉर्म दिया बकबकाने के लिए , टिपियाने और अपनी भड़ास निकालने के लिए कितनी पोस्टे दी , मेरी पोस्टो पर आ कर मेरी हर उल जलूल लेखनी की वाह वाही की क्या ये किसी तोहफे से कम है तो सोचा इस जन्मदिन पर आप सब के दिए तोहफे के लिए आप सभी का धन्यवाद कर दू |
तो हिंदी ब्लॉग जगत मुझे मेरे घुटन भरे जीवन से बाहर निकालने के लिए धन्यवाद !!!!!!
अब मेरे जन्मदिन पर आये है तो केक का हक़ तो बनता है आप लोगो का |
अब मेरे जन्मदिन पर आये है तो केक का हक़ तो बनता है आप लोगो का |