October 03, 2011

सूचना क्रांति के इस दौर में एक अलग तरह का उपवास - - - - - - -mangopeople



खाना खाता लड़का :- आज से मेरा उपवास है |
दूसरा व्यक्ति :- ये कैसा उपवास तुम तो खाना खा रहे हो |
लड़का :-ये उपवास आज के ज़माने का है , टीवी मोबाईल फेसबुक ब्लॉग ट्विटर नेट सब बंद सब से उपवास |

                                                        कुछ समय पहले जब ये चुटकुला पढ़ कर मुस्कराई थी तो ये नहीं सोचा था की जल्द ही ये उपवास मुझे भी ज़बरदस्ती लेना पड़ेगा | सूचना क्रांति के जिस दौर में हम जी रहे है उसमे हमें आदत हो गई है हर पल किसी न किसी सूचना खबर  को सुनने की या ये जानने की दुनिया में कहा क्या घट रहा है और यदि कुछ खास हो रहा हो तो पल पल की  खबरों तक पहुँचने की ललक और बढ़ जाती है |  इस  दौर में यदि हम सूचना के सभी मध्यम से अचानक से कट जाये तो जीवन कितना दुस्कर हो जायेगा,  यदि आप किसी काम में व्यस्त है तब तो ठीक है किंतु यदि करने के लिए कुछ खास नहीं है तो  कितना ख़ालीपन आ जाता है जीवन में ये अभी हाल ही में एहसास हुआ |
                                   अन्ना का उपवास ख़त्म होते ही परिवार समेत घूमने के लिए निकल गई और घूमने के दौरान न तो इतना समय होता है और न ही घूमने के बाद होटल आने पर इतनी शक्ति और इच्छा की देखा जाये की बाकी दिन दुनिया में क्या हो रहा है,  तो सूचनाओं से भी एक तरह की छुट्टी ही थी क्योंकि किसी से ज़रुरी होने पर ही फोन किया जाता है और टेलीग्राम की तरह कम से कम शब्दों या ये कहे की समय में बात ख़त्म कर ली जाती है ( कई बार तो बार बार यही कहने में ही कितना समय निकल जाता है की अभी मैं बाहर हूँ रोमिंग पर हूँ आ कर बात करती हूँ विस्तार में ) जब ये हाल हो  तो तो नेट से किसी तरह के जुड़ाव का सवाल ही कहा होता है | घूम कर जब हर तरह की खबरों की भूख लिया घर आ कर टीवी आन किया तो पता चला की वो तो सो रहा है और फिलहाल उठने का उसका कोई मूड नहीं है | अखबार उठाया और  टाइम्स ऑफ़ इंडिया की खुरचन नव भारत टाइम्स को  पढ़ कर ही संतोष किया गया |    दूसरा नंबर फोन का था , वहा भी कई दिनों से अच्छे से ( अच्छे से का मतलब कम से कम २०- २५ मिनट ) बात नहीं हुई थी , तो घर से भी काफी सूचनाये खबरों की उम्मीद थी जो वही रोमिंग वाले चक्कर के कारण नहीं पता चल रही थी |  वहा फोन किया तो पता चला की हमारे मोबाईल ने अपने नाम के अनुरूप काम कर रहा था "मेरा टेलीफ़ोन नहीं लगता" MTNL  सो नहीं लगा  | अब सूचना और सहारे के लिए नेट बचा था ब्लॉग जगत से जुड़ने के लिए खबरों के लिए और घर से भी जुड़ने के लिए चैट पर तो घंटो बाते हो जाती है चैट से बहनों  से सैकेंड हैण्ड खबर से संतोष करना पड़ा साथ ही वहा पहले से ही एक मेल पड़ा था की दो दिन बाद नेट में समस्या आ सकती है क्योंकि कंपनी अप ग्रेट का काम करने वाली है सो अग्रिम खेद है | इस बिच इंटरनेट आता जाता रहा टीवी वाला भी आता और बताता रहा की ये ख़राब है वो ख़राब है और फोन पर हर रोज दो तीन बार कॉल आता पर पूछा जाता की आप की शिकायत दूर हो गई पर शिकायत दूर नहीं हुई |
                                          पर इस बिच एक बात का चिन्तन हुआ की आखिर पहले लोग खबरों से कैसे जुड़े रहते थे दूर रह रहे अपनों की खबर उन्हें कैसे लगती थी, फोन तो किसी किसी के ही घर होता था और पत्र तो हाल चाल जानने का ज़रिया था किंतु जब तुरंत कोई खबर पहुँचानी हो तब , तब लोग किन साधनों का उपयोग करते थे | कुछ लोग पड़ोसियों का फोन नंबर आपात काल के लिए अपनों को दे कर रखते थे ( हमारे घर बहुतों का फोन तब के ज़माने में आता था कुछ को मैसेज पहुंचा दिया जाता था तो कोई कुछ देर बाद फिर से फोन करता हूँ कह अपने परिवार वालो को बुलाने को कहता था | हमरे पड़ोसी की बेटी का विवाह अमेरिका में हुआ था तो उन्हें बुलाना पड़ता था  ) किंतु कभी कभी तो पूरे मोहल्ले में ही कोई फोन नहीं होता था, तब क्या करते थे , क्या तब लोगो में अपनों की हर खबर जानने की इच्छा नहीं होती थी और  या जानने की सुविधा नहीं थी इसलिए वो कुछ कर ही नहीं पाते थे | आज हम भाई बहन सभी एक दूसरे से काफी दूर रहते है दूसरे रिश्तेदारों से भी काफी दूर है किंतु ऐसी कोई भी खबर नहीं है जो हम सभी को पता नहीं होती,  फोन से लगभग हर दिन हम एक दूसरे से जुड़े रहते है बात करते रहते है जिससे कई बार खुद के सभी से दूर होने का एहसास ही नहीं होता है | आज भी पहले की तरह ही मम्मी पापा हम सभी से हर बात के लिए सलाह मशवरा करते है | कभी सोचती हूँ की जो ये सस्ती फोन सुविधा न होती तो शायद हम जैसो का जीना ही मुहाल होता जो अपने अपनों से इतनी दूर रहते है | संभव है की इसी कारण से पहले के ज़माने में बेटियों का विवाह होने के बाद वो अपने घरों से इस तरह से नहीं जुड़ीं रह पाती जैसे की हम है और धीरे धीरे अपने माँ बाप परिवार से दूर हो जाती है | आज घर में किसी विवाह की तैयारी हो रही हो या कोई बीमार हो हमें हर पल की खबर मिलती रहती है , शायद उस ज़माने में बहनों का अपने घर में किसी भी विवाह या दुख की खबर तब मिलती होगी जब उनके पास विवाह का निमंत्रण या तेरही का निमंत्रण मिलता होगा और कई बार तो शायद दूर रहने वाले बेटा बेटी अंत समय में अपने करीबियों को देख भी नहीं पाते होंगे , और छोटी बड़ी ख़ुशियों की तो बात ही क्या की जाये | तुरंत खबर देने के लिए टेलीग्राम होता था जो अक्सर दो चार लाइनों का होता था और शायद उसे बुरे समाचार की निशानी ही तब ज्यादा माना जाता होगा क्योंकि उसे किसी आपात काल में ही भेजा जाने की परंपरा रही थी ( इस बात के लिए तो कितने चुटकुले भी प्रचलित थे )   पर उसका हाल भी तब बहुत अच्छा नही था | मेरे पति ने लगभग तीस साल पहले का अपना अनुभव बताया की उनका आधा परिवार गांव में और आधा मुम्बई में रहता था उनकी माँ की अकस्मात मृत्यु हो गई सुबह उनका दाह संस्कार मुंबई में ही कर दिया गया और बाकी के काम के लिए सभी लोग गांव के लिए उसी दिन दोपहर में निकल गये, जाने से पहले गांव में टेलीग्राम कर दिया गया की माँ के साथ ऐसा हो गया है हम लोग सभी आ रहे है |  २७ घंटे का सफ़र कर जब गांव पहुंचे तो पता चला की तब तक उन लोगो को टेलीग्राम मिला ही नहीं था और गांव में किसी को कुछ भी पता ही नहीं था ,  उनके पहुँचने के आधे घंटे बाद टेलीग्राम वहा आया |  इस तरह की बाते बड़ी कष्टप्रद लगती है और शायद यही कारण है की लोग बेटी का विवाह भले दूर कर देते थे पर बेटों को काम के लिए बाहर नहीं जाने देना चाहते थे | ख़ुशी आदि की खबर तो पत्रों से दिया जाता था जो पहुँचने में कभी कभी महिना भर भी लग जाता था और उसका जवाब आते आते एक और महिना  | करीब नौ साल पहले मेरे मित्र ने मुझे पत्र लिखा तब हम लोग नेट से नहीं जुड़े थे वाराणसी शहर से चला पत्र मुंबई में मुझे एक महीने बाद मिला , तो सोचिये की आज के ज़माने में ये हाल है तो भारतीय डाक व्यवस्था का उस ज़माने में क्या हाल रहा होगा पत्रों के मामले में | एक किस्सा पढ़ा था की अकबर इलाहाबादी की पत्नी बीमार पड़ी पति को पत्र लिखा की तबियत ख़राब थी अब बेहतर महसूस कर रही हूँ जब उन्हें पत्र मिला तो हाल ये था कि उन्हें लिखना पड़ा की " उनके चालीसवे से हम आ रहे है और वो कहते है की बीमार का हाल अच्छा है " | फिर दूर की बात छोडिये आज कल तो देश दुनिया का माहौल इतना ख़राब हो गया है की अपने पास रह रहे लोग की चिंता भी हम उनसे हर दम जोड़े रहती है | विवाह के इन दस सालों में पतिदेव आज भी मुझे हर रोज दोपहर में फोन कर हाल जानते है , पहले मैं यहाँ नई थी इसलिए अब बेटी की चिंता रहती है ,  अब तो ये हाल है की यदि उनका फोन नहीं आता है तो घबरा कर मैं ही फोन मिला कर पूछ लेती हूँ की सब ठीक तो है न फोन नहीं किया ,  आज का असुरक्षित माहौल आप को इतना ही डरा देता है | यहाँ मुंबई में कुछ घटा नहीं की ( अब तो आतंकवादी हमले रोज की बात बनती जा रही है ) हर तरफ से मेरे अपने मित्रों रिश्तेदारों का फोन आना शुरू हो जाता है कई बार उनके भी जिनसे महीनों हो चुके है बात किये , सोचती हूँ की पहले लोग क्या करते थे बाढ़ कोई आपदा आई हो वहा जहा आप के अपने रह रहे है तो आपदा की खबर तो किसी न किसी तरह लग ही जाती थी किंतु लोग अपनों की खबर कैसे लेते थे बाढ़ और भू चाल जैसे हालातों में तो डाक विभाग भी काम नहीं करता था | शायद तब तक खुद उनके वापस आने का इंतजार करने के अलावा लोगो के पास कोई चारा ही नहीं रहा जाता होगा | वैसे कभी कभी ये भी लगता है की  शायद आज का निश्चित माहौल और लोगो से आसानी से बात कर लेने की सुविधा ने हमें और ज्यादा एक दूसरे से जोड़ दिया है | इन आसन सुविधाओं ने हमें अपनों के प्रति ओ ज्यादा फ़िक्र मंद बना दिया है और दूसरों को ये देखने का मौका भी दे देता है की हमारे करीबियों को हमारी कितनी चिंता है |
  इस तरह की घटनाओं में दो तरह से काम होता है है एक तो टीवी है जो हमें दुनिया भर की खबरों से जोड़ रहा है और दूसरे हमारे पास फोन है जिससे हम तुरंत ही अपने करीबियों का हाल चाल जानने के लिए तुरंत उनसे जुड़ जाते है |
 क्रमश:  


16 comments:

  1. बहुत ही अच्‍छा विषय है। हर समस्‍या समय के अनुसार ही रहती है। लेकिन कभी-कभी दूरियां या समाचार की साधन विहीनता कष्‍टकारी भी होती हैं।

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  2. कई बार संचार क्रांति के ये उपकरण बहुत सुकून देते हैं ,
    और कई बार झुंझलाहट ...कभी बच्चों या पति को आने में देर हो जाए तो खुद पर झुंझलाहट भी आती है कि थोड़ी देर इंतज़ार भी तो किया जा सकता था, घर आते ही शिकायत शुरू हो जाती है , अब ड्राईव करे या आपका फोन अटेंड करें :)

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  3. पिछले ३ दिनों से घर का ब्रॉडबैंड नहीं काम कर रहा था.तो जैसेसारे काम ही अटके पड़े थे.अब जिंदगी मुमकिन ही नहीं लगती इनके बिना.

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  4. राजी बेराजी मानना तो पडेगा ही कि असलियत यही है.:)

    रामराम.

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  5. बाहर आने के बाद तो मैं भी शिखा जी की बात से सहमत हूँ एक दिन भी यदि ब्रौडबैंड काम न करे तो सच में हम लोग ऊपर नीचे हो जाते है ऐसा लगता है जैसे दुनिया रुक सी गई है कुछ है ही नहीं करने लिए। वकाइन ज़िंदगी मुमकिन ही नहीं लगती इनके बिना
    बढ़िया आलेख
    समय मिले तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  6. अंशुमाला जी!
    आपका यह उपवास वैसे ही काफी लंबा था... सितम्बर का पूरा महीना निकाल दिया आपने.. अब तो इसके बगैर सच में रहना मुश्किल है.. यहाँ तक कि मैंने एक रोग पाल लिया इसी के कारण... अब तो रोग और मेरे सूचना-क्रान्ति के इस उपकरण के बीच तालमेल बिठा लिया है. एक बड़ी मजेदार बात कल मेरी बेटी ने फेसबुक पर शेयर की.
    आज से १५ साल पहले समोसा ५० पैसे का आता था और फोन की कॉल ७ रुपये की. आज समोसा ७ रुपये का हो गया है और कॉल ५० पैसे की!! कमाल की क्रान्ति!!
    बस इतना लंबा उपवास न पालन किया करें!!

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  7. वैसे तो हम दूसरों को राय देते हैं आदत मत डालो , मगर एक दिन नेट खराब हो जाये तो बस ..

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  8. सलिल जी
    उपवास लम्बा नहीं था उपवास के बाद ब्लॉग पर कुछ ज्यादा ही मसालेदार और कही कही कड़वा खाना खा लिया था :)
    वो सब खा कर उस समय डकराना ( मतलब पोस्ट देना ) एक और मसलेदार पोस्ट बना कुछ और लोगों का हाजमा ख़राब करने से अच्छा था की चुपचाप बैठ कर जो खाया है उसे पचा लिया जाये और कड़वे को यहाँ वहा थूक दिया टिप्पणी के रूप में | और समोसे और कॉल रेट वाली बात बिल्कुल सही है , समोसा हम खाते नहीं और कम कॉल रेट का खूब फायदा उठाते है |

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  9. इसीलिए,सूचना के क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में जो हुआ है,उसे क्रांति कहा गया है। इसी के बूते ब्लॉग जगत है और हमारा-आपका साथ भी।

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  10. बात तो सही कही है...अब इनके बगैर गुजारा मुश्किल है..पर कहीं ...दूर वाले नज़दीक आ गए हैं..तो नज़दीक वाले दूर भी हो गए हैं...सात समुन्दर पार बैठे दोस्त-रिश्तेदार की हर खबर होती है ...पर पड़ोस में क्या घट रहा है..ये पता नहीं होता..

    और पुराने जमाने वाले लोग जानते ही नहीं थे कि इतनी जल्दी खबर ली-दी जा सकती है...इसलिए कुछ मिस ही नहीं करते होंगे.

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  11. अब तो ये हाल की १५-२० मिनट यदि मोबाइल की घंटी न बजी तो चैक करना पड़ता है की मोबाइल ठीक भी है या नहीं

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  12. सूचना के ये संसाधन आवश्यक हैं, मगर वाकई इनपर निर्भरता की आदत को नियंत्रित करने की भी जरुरत है. नेट एडिक्शन तो शायद हमें भी होता जा रहा है. आपने व्यावहारिक संस्मरण बांटे हैं.

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  13. सही कहा आप ने.... सूचना के ये संसाधन आवश्यक हैं, मगर इनपर निर्भरता की आदत को नियंत्रित करने की भी जरुरत है. नेट एडिक्शन तो शायद हमें भी होता जा रहा है. ..सटीक आलेख..

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  14. हर दौर में आदमी की हुकिंग बदलती रही है अब भूख सूचना की है .सूचना बाकी सब पर हावी है .सूचनावान सबसे महान .रोजमर्रा की ज़िन्दगी से रु -बा -रु अच्छी पोस्ट .

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  15. काश सलिल वर्मा जी (चला बिहरी) जितनी कोमेंट्स मैं भी सोच कर लिख पाया...


    बकिया अच्छा मेरी कमेंट्स सलिल भाई से उधार ली हुई माने जाए.

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  16. सूचना क्रांति से लाभ अधिक हुआ है। नुकसान हुआ है तो इसका कारण हमारा इसे नशे की तरह इस्तेमाल करना है।

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