May 28, 2010

भगवान इस बेटे की पुकारा पर ध्यान दीजो "अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो "

 माँ बाप की उपेक्षा का शिकार एक बेटे का माँ बाप के नाम पत्र  
 माँ पिता जी
              मैं ये बचपन से देखता आ रहा हुं इस ज़्यादती को, माँ पिताजी आप दोनों ही के लिए ही आप की बेटी ही हमेशा ज्यादा लाडली रही और मैं हमेशा से आप लोगों के लिए ज्यादा महत्व नहीं रखता था अपनी बेटियों की आप सब ने हर चीज से रक्षा की उसे हर समय आराम दिया और मुझे कभी आराम से रहने नहीं दिया युही खुले सांड की तरह छोड़ दिया सब कुछ करने के लिए |
 बचपन में ही हमें शहर के टॉप के अंग्रेजी मीडियम स्कूल में डाल दिया और कहा की खूब पढ़ो तुम्हें हर तरह की सुविधा यहाँ मिलेगी जरुरत हुआ तो कोचिंग भी करा देंगे हम पर हर तरह का प्रेशर कि पढ़ाई तो हर हाल में करनी ही है और कोशिश कीजिये कि नंबर भी अच्छे आये कभी हमारा कोर्स देखा था कितना कठिन था वहा तो पास होने के लाले रहते थे तो अच्छे नंबर लाते कैसे और अपनी बेटियों को डाल देते है किसी सरकारी हिंदी मीडियम में या किसी मामूली से अंग्रेजी स्कूल में जहा पर उन पर कोई प्रेसर ही नहीं होता उनसे कहा गया था कि बस पास हो जाओ बहुत है उन्हें तो कोचिग भी नहीं करना होता था  देखो कैसे वो स्कूल के बाद ही फ्री हो जाती थी और हमें स्कूल के बाद कोचिग  भी जाना पड़ता था एक जगह की पढ़ाई समझ में नहीं आती अब दो जगह की कैसे करे | काश हमें भी किसी मामूली स्कूल में डाल दिया होता तो मौज़ का जीवन जी रहे होते आप कि बेटी कि तरह |
               पिता जी बेटियों से इतना प्यार की उनसे कहते है की यदि फेल हुई तो पढ़ाई बंद हो जाएगी पर कभी हमसे नहीं कहा ऐसा एक बार हमसे कहते, दो साल में दसवी और दो साल में बारहवीं पास किया हर बार सोचा की चलो इस साल फेल होने पर आप मेरा स्कूल बंद करा देंगे पर मेरे सारे अरमानो पर आप ने पानी फेर दिया कभी मेरी पढ़ाई नहीं बंद कराई फेटते रहे उसी में मुझको क्योंकि आप को मुझसे प्यार है ही  नहीं जलते थे हमारी आज़ादी से | मेरे खिलाफ साज़िश की बेटी के टॉप करने पर भी उसे मेडिकल में दाख़िला नहीं लेन दिया कहा इतना मुश्किल कोर्स कर पायेगी बेकार में उसके दिमाग़ पर बोझ बढ़ेगा और पैसे भी खर्च होगें नाहक पर मेरा एडमिशन इंजीनियरिग में डोनेशन दे कर करा दिया एक बार भी मेरे बारे में नहीं सोचा की मैं इतनी मुश्किल पढ़ाई कैसे करूँगा पूरे दस लाख डोनेशन दे दिया बेटी के फ़ीस के पैसे नहीं थी तो मेरे डोनेशन के लिए कहा से लाये बेटी को आराम देने और मेरे आराम को हराम करने की साज़िश रची आप सबने  |
                        हर समय बेटी की परवाह उसे हिदायत दी गई कि कॉलेज से सीधे घर आना सूरज ढलने के बाद कभी घर से बाहर नहीं रहना जमाना बहुत ख़राब है कही कोई ऊँच नीच हो गई तो, कभी वो पाच मिनट भी देर से आई तो उसकी फ़िक्र में मरे जाते थे आप दोनों, घर आते ही उससे पचास सवाल किया जाता था की देर कैसे हो गई और मुझे तो कभी घर पर आने जाने के लिए कोई हिदायत नहीं दी क्योंकि मेरे सुरक्षा की कोई चिंता ही नहीं थी आप सब को | मैं देर रात घर आता था क्या मेरे लिए जमाना ख़राब नहीं था क्या मेरे साथ कुछ  बुरा नहीं हो सकता पर आप लोगों को इससे क्या मैं चाहे कितनी भी रात में घर आऊ मुझसे कोई सवाल नहीं किया गया |
                क्या मजाल की कोई आप की बेटी के बारे में कुछ उलटा सीधा कह दे आप लोग बिलकुल ही बर्दाश्त नहीं कर पाते थे एक बार कोई लोफर आवारा उस पर फब्बतिया कस के उसे छेड़ दिया और किसी ने आप को इसकी खबर कर दी ( हा मोहल्ले वालो को भी सबकी बेटियों का ही ज्यादा ख्याल रहता है ) तुरंत ही बेटी का घर से निकलना बंद करा दिया कॉलेज जाना बंद करा दिया पूरा स्नातक घर से पढ़ कर किया यहाँ तक की परीक्षा दिलाने के लिए आप खुद जाते थे उसका बाडीगार्ड बन कर और माँ घर में उसकी बाडीगार्ड बन कर रहती थी उसकी सुरक्षा को ले कर आप सब इतने चिंतित है पर कभी मेरी चिंता करते आप को नहीं देखा कितनी बार लोग आ कर मेरे बारे में शिकायत कर गये की मैं कॉलेज में  आवारागर्दी करता हुं लड़ाई झगड़ा करता हुं यहाँ तक की एक रात जेल भी गुजार आया पर मेरा कॉलेज जाना बंद नहीं कराया मेरी सुरक्षा की चिंता होगी तब ना | 
                    हम बच्चे से बड़े हो गये पर आप लोगों का प्यार चिंता परवाह आपकी बिटिया की तरफ और बढ़ता गया और मेरी तरफ से लापरवाह होते गये |  बिटिया रानी ने स्नातक में भी टॉप किया और बड़ी कंम्पनी से जॉब के आफर भी आ गये पर आप लोगों ने साफ मन कर दिया की तुमको काम करने की जरुरत नहीं है क्यों इन सब झमेले में पड़ती हो नौकरी  करना बेमतलब की सरदर्दी है टेंशन है तुम इन सब में मत पड़ो शादी ब्याह करके सुख चैन से घर पर रहो | पर जब मेरी बारी आई तो मेरे सुख चैन के बारे में नहीं सोचा घुस दे कर मेरी सरकारी नौकरी लगवा दी अरे आप ने अपनी सरकारी नौकरी से इतना तो कमा ही लिया है की सात तो नहीं पर कम से कम मैं और मेरी चार पुश्ते तो सुख चैन से बैठ कर खा ही सकती थी पर नहीं आप ने डाल दिया इस झमेले में आप जानते भी की एक एक ठेकेदार से पैसे निकलवाने के लिए कितनी भाग दौड़ करनी पड़ती है |
              विवाह करते समय भी जिससे चाहा उससे उसका विवाह कर दिया उससे पूछने कि भी जरुरत नहीं समझी और मेरे सामने लड़कियों कि लाइन लगा दी मैं बेचारा कितना कन्फियुज हो गया था कि किससे विवाह करूँ  और शादी के बाद बेटी को पूरी आज़ादी दे दी कि बेटी अब तुम्हारा ससुराल ही तुम्हारा घर है अब हम तुम्हारी लाइफ में कोई इंटर फेयरेंस नहीं करेंगे अब सारे सुख दुख तुम खुद ही हैंडिल करो अब हम तुम्हारे लिए परे हो गये पर मुझे नहीं दी आज़ादी आज भी मेरे जीवन में हर तरह का दखल देते है क्यों माँ पिता जी आखिर आप लोग ऐसा क्यों करते रहे | क्या मै आप का अपना नहीं था |
                  मुझे लगता है कि ऐसा सिर्फ मेरे ही साथ नहीं होता है भारत में ज्यादातर बेटों के साथ यही ज्यादतिया होती है उन सभी को इसी तरह उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है | बेटियों को आराम देने के लिए उनकी सुरक्षा के लिए सब कुछ किया जाता है पर हम सब के लिए कुछा भी नहीं | देखिये ना आज भी स्कुलो में लड़कियों कि संख्या लड़कों से कम है आज भी ज्यादातर शिक्षा बोर्डो के दसवी बारहवीं में लड़कियाँ ज्यादा संख्या में पास होती है उसके बाद भी ऊँच शिक्षा में उनकी संख्या कम होती जाती है | लगभग चौदह हजार बच्चे आई आई टी में पास होते है पर उनमें लगभग डेढ़ हजार ही लड़कियाँ है  स्कूल कॉलेज में टॉप करने वाली लड़कियों कि संख्या बढती जा रही है पर आज भी नौकरियों में उनका प्रतिशत दहाई से भी कम है और ऊँचे पदों पर तो मुश्किल से एक दो प्रतिशत है एक बहुत बड़ी संख्या में  लड़कियाँ आज भी प्रोफेशनल कोर्स करने के बाद भी नौकरी नहीं करती है या सेवा नहीं देती इनमें डाक्टर और इंजीनियर भी है या कुछ करती है तो शादी के बाद छोड़ देती है क्यों ? क्योंकि वो सब अपने घर वालो कि लाडली है उनके आराम सुरक्षा के लिए उन्हें सारे झमेलों से बचाने के लिए ये सब किया जाता है | इस लिए आज मैं भी भगवान से ये प्रार्थना करता हुं कि हे भगवान मुझे भी ऐसे ही आराम और चैन का जीवन सबका लाडला बन कर जीना है इस लिए "अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो "|

नोट ---यदि किसी बेटे को इसी तरह कि किसी और ज्यादतियों का सामना करना पड़ा हो जो मेरे साथ नहीं हुआ है तो वो मुझसे यहाँ पर अपना दुख दर्द बाट सकते है |

                                                       माँ बाप के फ़िक्र और चिंता का प्यासा
                                                             एक मासूम बेटा

May 15, 2010

लोकतंत्र और प्रजातंत्र में क्या अंतर है बताये इन पढ़े लिखे बेरोजगारों को

क्यों भईया नोट्स तो पूरे छ: दिए थे पेपर में पांच तो आये थे फिर चार क्यों किया, जब फसा चार तो चार ही न करते, क्यों ये लोकतंत्र वाला क्यों नहीं किया, अरे लोकतंत्र कहा आया था वो तो प्रजातंत्र आया था | ये सवाल जवाब आज से सालों पहले मेरे और मेरे चचेरे बड़े भाई के बीच की थी जब हम दोनों बी ए का पेपर साथ में दे रहे थे (दो साल लगातार बारहवीं में फेल हो कर बड़े भईया मेरे बराबर आ गये थे ) दोनों के कॉलेज बी एच यू से जुड़े थे और हमारे विषय एक थे इसलिए मैं उनको अपने नोट्स(फर्रिया तो बच्चे बनाते है)  देते थी जो वो परीक्षा में बाक़ायदा सामने रख कर टिपा करते थे( इसी अच्छी सुविधा के कारण भईया जैसे सारे लड़के उस कॉलेज में एडमिशन लेते थे ) उनका ज्ञान कितना था अब तक तो आप समझ चुके होंगे | असली झटका मुझे तब लगा जब हमारे नतीजे आये उस लोकतंत्र प्रजातंत्र वाले विषय में उनके नंबर मेरे बराबर थे और बाकी विषयों में मुझसे ज्यादा ( इस वजह से उस समय मुझे मेरे संयुक्त परिवार में मज़ाक का पात्र बनना पड़ा और मुझे आज तक नहीं पता चला की उनके नंबर मुझसे ज्यादा कैसे आये ) वो अलग बात है की अगले साल तक उस ख्यातिमान (कुख्यात ) कॉलेज की प्रसिद्धि बी एच यू तक चली गई और वो परिक्षाए अपने यहाँ कराने लगा और पहला पेपर देने गये भाई साहब जब उपकुलपति को गनर के साथ खुद परीक्षा हाल में टहलते देख तो सादी कापी जमा कर भाग खड़े हुए | ये किस्सा मुझे अचानक कल याद आया जब मेरे एक मित्र ने बताया की उनके पास एक लड़का आया था काम मागने के लिए अपने एम ए और बी एड की डिग्री की काफी देर तक शान दिखता रहा फिर जब मैंने उससे कैलकुलेटर दे कर कहा की जरा प्रतिशत निकाल कर दिखाए तो उन जनाब को कंप्यूटर के ज़माने में भी कैलकुलेटर तक प्रयोग करना नहीं आ रहा था उलटा मुझसे पूछने लगे की काम क्या करना है पहले ये बताईये जब बताया गया की आप को दुकानों  में जा कर माल का आडर लाना है तो बिफर पड़ा की मैंने इतनी बड़ी बड़ी डिग्रिया इस तरह का छोटा काम करने के लिए नहीं ली है और चला गया |
               देश में आज इस तरह के पढ़े लिखे बेरोजगारों की पूरी फौज खड़ी है | जिन्हें अपनी डिग्रियों( बेमतलब की )  और ज्ञान ( जो की किताबी है ) को लेकर एक अजीब तरीके की खुशफहमी है जैसे की उन्होंने बहुत बड़ा तीर मार लिया हो  | यदि इन लोगों से पूछा जाये की वो क्या सोच कर एम ए, बी एड यहाँ तक की पी एच डी कर रहे थे या क्या सोच कर विषय का चयन किया था उनके विषयों का आगे क्या स्कोप है  तो इनके पास कोई जवाब नहीं होगा वो खुद नहीं जानते तो बताएँगे क्या  ( अब ये कैसे कहे की पढ़ाई तो बस बहाना था मकसद तो मित्रों के साथ तफ़री करते रहने का था और इससे सरल कोई और विषय ही नहीं था ) | इनमें भी कुछ ऐसे है जो नकल मार कर या अपनी जगह किसी और से परीक्षा दिला कर या अन्य किसी भी तरीके से डिग्रिया पा जाते है और खुद को डिग्री धारी होने की गलतफहमी में जीते है | इस प्रकार के डिग्रीधारियो को कम से कम इस बात का एहसास होता है (भले कुछ धक्के खाने के बाद ) की उसको जो काम मिले कर लेना चाहिए क्योंकि उसके हाथ में जो डिग्री है उसका मोल ज्यादा कुछ नहीं है बल्कि इनमें से कुछ तो अपनी व्यवहारिक दिमाग के बल पर ज्यादा अच्छा काम पा भी लेते है और उसमे प्रगति भी करते है | दूसरे वो होते है जो रट रट कर डिग्री पा लेते है और खुद को पढ़े लिखे होने की खुशफहमी में जीते है | मुसीबत इन्ही पर ज्यादा आती है क्योंकि किताबों में लिखी किताबी बातों के अलावा इनको कोई भी व्यवहारिक ज्ञान नहीं होता है | जिस सवाल का जवाब इनको नहीं आता उसका सीधा सा जवाब देते है जी ये हमारे कोर्स के बाहर का है | इनसे ज्यादा व्यवहारिक ज्ञान और जानकारियाँ किसी भी बड़े शहर के दसवी के क्षात्रो को होती है |  इनकी डिग्रिया स्टील की राड बन कर इनके रीढ़ की हड्डी में घुस जाती है इसी कारण इनकी गर्दन हमेशा अकड़ी रहती है और नाक ऊँची और उस ऊँचाई से इन्हे हर काम छोटा दिखाई देता है | हर वक्त इनका यही रोना रहता है की इतनी पढ़ाई लिखाई क्या ऐसा छोटा काम करने के लिए की, सालों तक बेरोजगार पड़े रहेंगे पर हर काम को छोटे बड़े के पैमाने में तौलते रहेंगे | साथ ही इस ज्ञान पर तुनक ये की पहली नौकरी भी बीस बाईस हजार से कम की नहीं करेंगे | अब आप बताईये की इन डिग्री धारी अनपढ़ बेरोजगारों का क्या किया जाये | तीसरे तरीके के वो बेरोजगार है जो शायद सबसे ज्यादा बदकिस्मत होते है  बारहवीं या स्नातक के बाद प्रोफेशनल कोर्स के महत्व को समझाते हुए किसी प्रोफेशनल कोर्स में दाख़िला ले लेते है पर दाख़िला लेते समय संस्थान की पृष्ठभूमि का पता नहीं लगाते है | आज कल के समय में प्रोफेशनल कोर्सो के महत्व को सभी जानते है और युवाओं में इनके प्रति आकर्षण को भी इसी कारण अब हर गली मोहल्ले की नुक्कड़ पर हर तरह के व्यावसायिक विषयों में डिग्री डिप्लोमा देने का दावा करने वाले संस्थान कुकरमत्तो की तरह उग आये है | इनमें से ज्यादातर संस्थान फ़र्ज़ी होते है और उनकी डिग्री डिप्लोमा भी, कुछ तो ऐसे है जो किसी अन्य नामी संस्थान ( जिससे जुड़े होने का दावा करते है ) के सेलेबसटीचरों और कुछ आधे अधूरे इन्फ्रास्टकचर द्वारा पूरा कराते है पर कुछ के पास तो ये सब भी नहीं होता है | वैसे बता दे की ऐसे संस्थानों की भी कोई कमी नहीं है जो पूरी तरह से वैध है और कई तरह के प्रोफेशनल कोर्स भी चलते है पर उनके पास भी न तो अच्छे टीचर है और न ही किसी तरह का इन्फ्रास्टकचर यहाँ तक की उनके पास ढंग का सेलेबस भी नहीं है | यहाँ से पढ़े युवाओं को अपने कोर्स की आधी अधूरी जानकारी फ़र्ज़ी डिग्रियों का पता तब चलता है जब वो नौकरी की तलाश में बाहर आते है या दूसरे अच्छे संस्थानों के विद्धायार्थियो से मिलते है पर तब तक काफी देर हो चूकि होती है | इनकी गलती ये होती है की ये ऐसे संस्थानों में दाख़िला लेने से पहले उसके बारे  में कुछ  भी पता नहीं करते है और उनके दावों को सच मान लेते है तो कई बार अच्छे संस्थानों में दाख़िला नहीं मिलने से या इन जगहों पर फ़ीस कम होने की वजह से भी लोग ऐसे फ़र्ज़ीवाडे के चक्कर में फस जाते है | इनमें से कुछ तो अपने निजी योग्यता के बल पर कुछ अच्छी नौकरी पा लेते है और ऊपर भी बढ़ते है पर जिनके पास वो नहीं होता है या तो अच्छी नौकरी की तलाश में भटकते रहते है या फिर उसी लाइन में मज़बूरी में निचले स्तर पर काम करते है जो उनकी उम्मीद और चाहत से काफी कम होता है | ये बेचारे भी सारी जिंदगी खुद को बेरोजगार समझ कर हमेशा दूसरे अच्छे कम की खोज में लगे रहते है | ये बेचारे तो सहानुभूति के पात्र होते है पहले वाले अपनी योग्यता अनुसार कोई न कोई कम पा जाते है पर ये बीच वाले जो काफी पढ़े लिखे होने की ग़लतफहमी में जीते है वो हमेशा बेरोजगारों की फौज में सिर्फ इज़ाफा ही करते है और सारी जिंदगी बेरोजगार ही बने रहते है | अब ऐसे लोगों को उनकी हक़ीकत कैसे बताया जाये ये आप ही बताए |
 

May 08, 2010

भगवान में विश्वास श्रद्धा और भूतो में विश्वास अन्धविश्वास क्यों

सुबह अखबार में एक खबर छपी थी कि एक बेचारा बेरोजगार युवक नौकरी जाने के बाद परेशान हो कर तंत्र  मंत्र से सब कुछ ठीक करने का दावा करने वाले बाबा के चक्कर में पड़ कर ठगा गया | नौकरी तो बेचारे की पहले ही गई थी अब अन्धविश्वास के चक्कर में पड़ कर पचास हजार का कर्ज भी लाद बैठा | पढ़ कर बेचारे के लिए दुख हुआ पर एक सवाल भी मन में उठा की भारत में या ये कहे की पूरे विश्व में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो भूत प्रेत तंत्र मंत्र  जादू टोना जैसी चीजों पर विश्वास करते है पर हम सभी बड़े आराम से उनके विश्वास को अन्धविश्वास करार देते है जबकि कोई यदि भगवान पर विश्वास करता है तो उसे श्रद्धा का दर्जा दे देते है | क्यों भगवान में विश्वास को श्रद्धा और भूतो, तंत्र मंत्र जादू टोना आदि में विश्वास को अन्धविश्वास की श्रेणी में डाल दिया जाता है | दोनों के विश्वास में आखिर फर्क क्या है जब भगवान है तो शैतान भी हो सकता है | जब भगवान के भक्त हो सकते है तो शैतान के क्यों नहीं दोनों के विश्वास को दो अलग रूपों में क्यों देखा जाता है श्रद्धा तो आखिर श्रद्धा होती है वो किसी के प्रति हो सकती है फिर उसमे फर्क क्यों | मुझे लगता है की ना तो किसी ने  भगवान को देखा है और न ही भूतो को, हा भूतो को देखने का दावा काफी लोगों ने किया है पर आज तक भगवान को देखने का दावा किसी ने भी खुल कर नहीं किया है(हा खुद ही भगवान होने का दावा कइयों ने किया है) | उसके बाद भी कहा जाता है की भूत वुत कुछ नहीं होता पर भगवान होता है क्यों | एक बात और है भूतो में विश्वास करने वालो का विश्वास भगवान में विश्वास करने वालो से ज्यादा पक्का होता है क्योंकि भूत प्रेत के डर से हमने लोगों को डरते देखा है लोग कुछ खास जगहों और कुछ खास काम करने से बचते है यदि उनसे ये कह दिया जाये की ऐसा करने से शैतान नाराज़ हो जायेगा या भूत प्रेत आप का बुरा कर देंगे जबकि आज तक भगवान से किसी को मैंने डरते नहीं देखा है जिसकी जो इच्छा होती है करता है | कहने को तो कहा जाता है की कोई बुरा काम मत करो झूठ मत बोलो चोरी मत करो दूसरों का बुरा मत करो भगवान देख रहा है वो तुमको दंड देगा पर आज तक मैंने भगवान के डर से लोगों को ये सारे काम बंद करते नहीं देखा है लोग कभी भी भगवान से नहीं डरते है क्योंकि वो कहने के लिए तो भगवान के होने का विश्वास करते है पर मन ही मन जानते है की जो इच्छा है करो जब ईश्वर होगा तब ना कोई दंड मिलेगा| आप तर्क दे सकते है की भूत प्रेत के नाम पर लोगों को ठगा जाता है तो क्या भगवान के नाम पर लोगों को नहीं ठगा जाता है आप परेशान है फला भगवान की पूजा करा लो ज्यादा पैसे नहीं लगेंगे दुख दूर हो जायेंगे बेटी का विवाह नहीं हो रहा है बेटी को बोलो फला देवी का व्रत जाप करे रोज मंदिर जा कर दूध फल चढ़ाये जल्द विवाह हो जायेगा बेटा नहीं हो रहा है फला मंदिर में सोने की छत्र चढ़ाने की मन्नत मान लो वहा सबकी मन्नते पूरी हो जाती है | क्या इस तरह की बाते करके लोगों को नहीं ठगा जाता है अरे बेटी को विवाह एक दिन तो होना ही है भले पूजा करने के सालों बाद हो पर यही कहेंगे की देखा देवी की कृपा से विवाह हो गया ऐसे मामलों में हम क्यों नहीं मानते की उसे ठगा गया | सोचिये दुनिया में ईश्वर पर भरोसा करने वालो की संख्या कितनी ज्यादा है हर इन्सान को कोई न कोई परेशानी होती है और उसी परेशानीयो  से उबरने के लिए वह भगवान के पास जाता है और उनसे मदद मागता है मन्नते मागता है या जिसके जीवन में परेशानी नहीं है वो आगे भी किसी परेशानी से बचने की दुआ मागता है क्या सबकी दुआ कबूल हो जाती है क्या उन सभी की परेशानियाँ दूर हो जाती है या जिनके जीवन में कोई परेशानी नहीं है उनको कभी मुसीबतें नहीं घेरती मुश्किल से कुछ लोगों की मुसीबतें ही टलती है ( वजह कुछ और भी हो सकती है ) फिर भी हम उनमें से किसी से नहीं कहते है की क्यों बार बार भगवान के पास जाते हो जब कोई फायदा नहीं हो रहा है या ये सब फ़ालतू की चीजें है इन्हें मत करो जबकि यदि कोई  अपनी मुसीबतों से बचने के लिए जादू टोना तंत्र मंत्र या भूत प्रेत के चक्कर में पड़ता है  तो एक तो हम इन चीजों में विश्वास करने वालो को पहले ही अंधविश्वासी करार देते है और जब एक बार में उसकी मुसीबत नहीं टलती तो उसे समझाने लगाते है की तुम्हें ठगा जा रहा है इन चीजों से कुछ नहीं होगा एक बार धोखा खा गये हो अब दोबारा क्यों जा रही हो | वाह भाई भगवान में विश्वास श्रद्धा और भूतो में विश्वास अन्धविश्वास |
                   ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो भगवान और (शैतान) जादू टोना तंत्र मंत्र भूत प्रेत सभी में समान रूप से भरोसा करते है और ऐसे मंदिरों और मज़ारो की भी कोई कमी नहीं है जहा ये दोनों चीजें एक साथ होती है | जबकि कहा ये  जाता है की जहा भगवान का वास होता है वहा भूत प्रेत और शैतान जैसी चीजें फटकती भी नहीं | कुछ इस तरह के लोग भी होते है जो भगवान में विश्वास करते है शैतान को पूजते नहीं पर उनसे डरते है ऐसे लोगों से ये कह दिया जाये की तुम पर जो मुसीबत आई है वो किसी ने जादू टोना किया है तो वो तुरंत उस पर भरोसा कर लेते है और भगवान की शरण में चले जाते है जब भगवान में विश्वास है तो शैतान से क्या डरना | दूसरे वो होते है जो भगवान भगवान और मंदिरों के बीच भी फर्क करते ऐसे लोग चारों धाम की यात्रा कर लेते है सिद्धि विनायक और सिर्डी भी दर्शन कर आते है पर अपने जीवन में कभी भी घर की नुक्कड़ पर बने मंदिर में न तो कभी जाते है और न वहा से गुजरते  समय कभी सर झुकाते है उनके अनुसार भगवान सिर्फ बड़े भव्य आलीशान और नामी मंदिरों में ही विराजते है या फिर सारी शक्ति और सिद्धि सिर्फ कुछ प्रसिद्ध और खास देवी देवताओं में ही होती है किसी गाँव कुचे की किसी देवी देवता में नहीं इसलिए सबकी पूजा करने की आवश्यकता नहीं है | इसके अलावा एक और टाईप के भक्त भी होते है जिनके समय जरुरत और फैशन के मुताबिक इष्ट देवता बदलते रहते है |
                     मुझे तो लगता है की दुनिया में भूत प्रेत जादू टोना तंत्र मंत्र के नाम पर जितने लोग ठगे जाते है उनसे कही ज्यादा लोग रोज भगवान के नाम पर ठगे जाते है | जितना धन लोग इन बाबाओ के चक्कर में बर्बाद करते है उससे ज्यादा  धन की बर्बादी वो मंदिरों और पंडितो के ऊपर करते है | ज्यादातर लोगों का भगवान में विश्वास सिर्फ एक दिखावा भर होता है यदि उनका विश्वास सच्चा होता तो कोई बुरा काम करने से पहले वो सौ बार सोचते भगवान की मार से डरते पर ऐसा नहीं है | सभी बस इस लिए विश्वास करते है ताकि अपनी अकर्मठता और अपनी नाकामयाबी का बोझ भगवान पर डाल कर ये कह सके की भगवान की यही मर्ज़ी थी हम क्या करे |
नोट --- जिन लोगों की भावनाएँ हर बात पर ठेस खा जाती है ऐसे कमजोर भावनाओं वाले इस लेख को न पढ़े  


May 07, 2010

क्या कोई निरुपमा की मौत के लिए जिम्मेदार मूल कारण पर गौर करेगा

निरुपमा के मुद्दे को ले कर ब्लॉग जगत दो धड़ो में बट गया है एक धड़े का मानना है कि उसकी हत्या उसके परिवार ने कि है और वो ही इसके लिए जिम्मेदार है तो दूसरा धड़ा भी ये मान रहा है कि उसकी हत्या भले ही उसके परिवार ने कि है पर वह  निरुपमा के चरित्र पर उँगली उठा कर जिम्मेदार उसे मान रहा है | पर मुझे लगता है कि चाहे उसकी हत्या की गई हो या उसने आत्महत्या की हो इसके लिए ज्यादा जिम्मेदार हम और आप है जो मिल कर समाज को बनाते है | ब्लॉग जगत में कितने लोग होंगे जो निरुपमा और उसके परिवार को जानते होंगे या इस घटना कि पूरी सच्चाई को जानते होंगे पर हम सब ने अपनी तरफ से एक कहानी बना ली कोई उसके माँ बाप को कोसने लगा तो कोई उसके चरित्र का चिर फाड़  करने लगा क्या हक़ है हमें ये सब करने का | सोचिये कि उसकी मौत के बाद हम सब जैसे लोग जो खुद को पढ़े लिखे की श्रेणी में रखते है उसके चरित्र पर इतना कीचड़ उछाल रहे है तो यदि वो जीवित होती तो उसके रिश्तेदार और जान पहचान वाले तो उसका और उसके परिवार का जीना ही मुश्किल कर देते | समाज का यही वो रवैया है जिसने आनर किलिग़ जैसी प्रथा को जन्म दिया है | एक सवाल उनसे जो निरुपमा पर सवाल उठा कर इस हत्या (यदि हुई है तो ) को कही न कही जस्टिफाई कर रहे है या उसके परिवार के जुर्म को ( यदि उन्होने किया है तो ) कम आकाने की कोशिश कर रहे है | क्या किसी बेटी का विवाह पूर्व गर्भवती हो जाना इतना बड़ा जुर्म है की उसकी हत्या कर दी जाए यदि ये इतना बड़ा पाप है तो इस पाप में बराबर का भागीदार उसका प्रेमी भी है तो क्या उसकी भी हत्या कर दी जाए क्या आप उस हत्या को भी इसी तरह सही ठहराने का प्रयास करेंगे | सोचिये की जब समाज के ये तथाकथित विद्वान लोगों का ये हाल है तो एक आम जात पात की रुढियो में लिपटे समाज के लोगों की क्या प्रतिक्रिया होगी | हमारी यही सोच परिवारों को बेटियों की हत्या करने तक क्रूर बना देता है और लड़कियों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर देता है |
                    जो लोग ये मानते है की निरुपमा की हत्या सिर्फ उसके गर्भवती होने के कारण किया गया तो वो सभी इस सारी घटना के मूल कारण को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश कर रहे है | जो परिवार उसकी  हत्या करने (यदि उन्होंने किया है तो ) की हिम्मत दिखा सकता है तो वो बड़े आराम से उसका गर्भपात भी करा सकता था लेकिन ऐसा नहीं किया गया क्योंकि मुख्य समस्या जात पात और बड़ी जात छोटी जात का था जो निरुपमा के जीवित रहते ख़त्म होने वाली नहीं थी इसलिए उसको मार दिया गया | समस्या थी कि ऊँची जात की बेटी ने एक छोटे जात के लड़के से विवाह करना चाहा | एक तो लड़का दूसरी जात का था उस पर से छोटी जात का | मैं दावे से कह सकती हुं कि यदि लड़का समान जात का या लड़की से बड़ी जात का होता तो परिवार कि आपत्ति इतनी बड़ी नहीं होती कि उसकी हत्या कर दी जाए और शायद थोड़े ना नकुर के बाद परिवार राजी भी हो जाता |  पर इस समस्या की तरफ किसी की नजर ही नहीं पड़ रही है सब लगे हुए है अपना अपना नज़रिया थोपने में या ये कहे की बच रहे है इस पर लिखने से क्योंकि लिखे क्या हम सभी तो जकडे है इस बुराई से तो दूसरों को क्या उपदेश दे | यदि इसके पक्ष में लिख दिया तो हर जगह थू थू होगी समझदार और विद्वान होने का तमगा छीन जायेगा | विरोध में लिखे क्या जब दिमाग में ऐसा कोई विचार ही नहीं है | इस लिए लगे है सब बड़ी सफाई से मुख्य मुद्दे को किनारे कर एक दूसरी ही समस्या खड़ी कर उस पर बहस करने में | कोई नारी का झंडा उठाये है तो कोई युवाओं कि आज़ादी का रोना रो रहा है तो कोई समाज में गिरती नैतिकता कि दुहाई दे रहा है |
                यदि कोई परिवार इस जात पात को किनारे कर अपनी बेटी की खुशी के लिए अंतर्जातीय विवाह कर भी दे तो उनके प्रति लोगों का व्यवहार भी बड़ा अजीब होता है | सबसे पहले तो लोग ये कहना शुरू करते है कि "वो तो काफी कमजोर निकला जो बेटी के आगे हार मान गया हम होते तो अपनी बेटी को दो हाथ लगा कर उसका विवाह अपनी मर्ज़ी से कर देते " या फिर "ये सब तो वो दहेज़ बचाने के लिए कर रहे है अपनी जात में करते तो काफी दहेज़ देना पड़ता लड़की ने दूसरे जात में लड़का पसंद कर लिया और बाप का सारा दहेज़ बच गया " या फिर उस परिवार से ऐसे बात करते कि जैसी उनकी बेटी कि मौत हो गई है " क्या किया जाए आज कल जमाना ही ऐसा है बच्चों के आगे किसी का बस नहीं चलता " या "आज कल के बच्चे तो माँ बाप को कही मुँह दिखने लायक ही नहीं छोड़ते अब आप की बाकी दो बेटियों कि शादी में बड़ी परेशानी आएगी " | बेचारे परिवार को ऐसी बाते सुन कर अपने फैसले पर अफ़सोस होने लगता है जो हिम्मत वो इस बुराई से लड़ने के लिए बनाये होते है लोग उसे ही तोड़ देते है | क्यों नहीं हम ऐसे लोगों के पास जा कर ये कहते है कि" आप ने इस जात पात कि बुराई को तोड़ कर अच्छा काम किया " या "आप ने समाज कि इस बुराई से लड़ने कि अच्छी हिम्मत दिखाई समाज को आप से प्रेरणा लेनी चाहिए " या "आप काफी समझदार है जो आप ने अपने बच्चों के लिए जीवन साथी चुनते समय उनकी जात की जगह उनकी योग्यता देखी"| इन शब्दों से उन्हें लगेगा कि उन्होंने जो किया वो गलत नहीं था और उन्हें समाज में शर्मिंदा होने कि जरुरत नहीं है और दूसरों को भी ऐसा करने कि हिम्मत आयेगी |
नहीं रखा हम अपनी ही जाती में विवाह को जोर देते है भले ही वह बे मेल विवाह हो | निरुपमा कि मौत ने समाज में तेजी से उठ रहे एक समस्या कि तरफ हमारा ध्यान खींचा है अच्छा हो हम उस पर गम्मभिरता  से सोचे और उससे ज्यादा ज़मीनी रूप से कुछ करे नहीं तो ऐसी घटाने समाज में आम होते देर नहीं लगेगी | जरूरी नहीं कि तब वो सारी घटाने हमारी और मीडिया कि नजर में आये  पर वो समाज को ज़रुर पिछड़ा बनाती रहेंगी और हमारे आप की प्रगति में बाधक बनेगी |

May 04, 2010

ये कसाब कौन है ?

कसाब कौन कसाब ? अरे वही २६/११ वाला आमिर अजमल कसाब, अब ये २६/११ क्या है, अरे भाई  मुंबई में ताज ओबराय पर जो आतंकवादी हमला हुआ था, हाँ हाँ याद आया टीवी पर एक बार देखा था दीदी हा तो ये कसाब कौन है, वही जो जिन्दा आतंकवादी पकड़ा गया था, अच्छा | ये वार्तालाप करीब सात महीने पहले की है और बात कर रही थी दिल्ली के एक २२ साल के युवा से जो कसाब और २६/११ दोनों को या तो भूल चूका था या ये कहे की उसे पता ही नहीं था | इस ब्लॉग को पढ़ने वाले को लगेगा की ऐसा कैसे हो सकता है हमें तो एक एक बात की खबर भी है और याद भी है (तो मै आप जैसे निठल्लो की बात नहीं कर रही जो खबरे पढ़ने और सुनाने का बेकार सा काम करते है )  कोई दूसरा इतनी जल्दी वो सब कैसे भूल सकता है | ये तो हमारे टीवी चैनल और अखबार वालो के लिए डूब मरने वाली बात होगी जो एक संवाददाता को बस ये देखने के लिए काम पर लगाये रखते है की वो कैसे हँसा कैसे रोया कैसे बोला क्या खाया क्या पिया | पर वो सब बेकार गया क्योकि हमेसा एम टीवी और वी टीवी देखने वाला और अखबार का केवल सप्लीमेंट्री पेज पढ़ने वाला युवा के टीवी रिमोट में न्यूज़ चैनल का बटन ही नहीं होता | पर बात बस युवाओ की नहीं है मुंबई से बाहर जा कर और न्यूज़ चैनल न देखने वालो से जरा इस बारे में पूछिए शायद ही अब किसी को याद होगा २६/११,  उनका सीधा सा जवाब होगा कि किस किस हमले को याद रखे ये तो भारत के लिए आम बात होती जा रही है अमेरिका की तरह ९/११ थोड़े ही है की एक हमले के बाद दूसरा हुआ ही नहीं सो लोग एक तारीख को हमेसा याद रखते है अब हम किस किस तारीख को याद रखे मुंबई याद रखे की दिल्ली, अहमदाबाद, बनारस, सूरत, पूना अरे किस किस शहर को याद रखे | बात तो सही है कि किस किस तारीख को याद रखे और क्यों याद रखे क्या याद रखने से हमारा कुछ भला हो जायेगा जिन लीगो को याद है और एक एक खबर की जानकारी है उससे उनका क्या भला हो गया | असल में जिसे याद रखना चाहिए वो तो उसे कब का भूल चुके है हमारी सरकारे हमारे मंत्रिगढ़ हमारी पुलिस हमारी सुरक्षा एजेंसिया | यदि हमारी सरकारे चाहे केंद्र कि या राज्यों की आतंरिक सुरक्षा, सुरक्षा एजेंसियों की आधुनिक ट्रेनिग और ख़ुफ़िया जानकारियों  को ले कर सतर्क होती तो न तो दंतेवाडा जैसे हादसे होते और न हीं माधुरी जैसे गद्दार को पकड़ने में इतनी देर होती | हम सब ने भी याद रख कर कौन सा तीर मार लिया क्योकि जो याद रखना चाहिए था वो हमने याद ही नही रखा सतर्क रहना सरकार से सवाल करना और उसे इस मसाले पर सोने न देना | पर इसमे से एक काम भी हमने नहीं किया यदि हमें तारीख और घटाने याद है तो वो भी न्यूज़ चैनलों की कृपा से | हममे से कितने लोग है जो आज भी लावारिस सामानों अनजान संदिग्ध लोगों के प्रति सतर्क है | मै आप को मुंबई के अपने सोसायटी की बात बताती हु हमारी बिल्डिंग में गाड़ी पार्किंग नहीं है चूँकि दो चार बिल्डिंगो के बाद रास्ता बंद है इस लिए सभी की कार रास्ते में कही भी खड़ी रहती है जिसमे से आधी से ज्यादा कार किसकी है इस बात की किसी को जानकारी नहीं है और न ही कोई ये जानने की कोशिश करता है की कोई अजनबी अपनी गाड़ी यहाँ क्यों खड़ी करके जा रहा है | लोकल ट्रेनों में आज भी लोग सीट के नीचे रखे सामान को देखा कर ये पूछने की जहमत नहीं उठाते की ये किसका है (क्योंकी  लोग अपना सामान ऊपर बने रैक पर रखते है ) यदि पुरे डब्बे में वो अकेले है तो भी यही मानते है की कोई अपना सामान भूल कर चला गया होगा पर वह उसकी जानकारी भी पुलिस को नहीं देते है | यदि कभी आप भूल कर पुछ ले कि ये सामान किसका है तो लोग आप की तरफ हँस कर ऐसे देखने लगते है की आप को लगेगा की आप ने कौन सी बेवकूफी की बात पूछ ली है और आप को खुद पर ही शर्म आने लगेगी | यही हाल पूरी मुंबई का या ये कहे पुरे देश का है यदि अमेरिका में भी लोगों का यही रवैया होता तो आज हम सभी टीवी पर टाइम्स स्क्वायर में हुए धमाके की खबर को देख रहे होते | वहा पर आतंकवादियों द्वारा कार बम रखने के बाद भी लोगों की सतर्कता ने उस हमले को नाकाम कर दिया | हमें सरकार से सवाल करना था की वो लोगों की सुरक्षा के लिए क्या कर रही है पर हम सभी खुद गेटवे पर मोमबत्ती जला कर अपने घरो में जा कर सो गये | कुछ दिनो तक खबरे आती रही की इतने करोड़ की फला सुरक्षा उपकरण खरीदी गई  इतने करोड़ की फला उपकरण , फला फला स्टेसन पर मेटल डिडेक्टर लग गये या सी सी  टीवी कैमरा लग गया हम सब खुश हो गये चलो कुछ  हो रहा है हम सब संतुष्ट हुए और सब भूल गये | इस कदर भूल गये की उसके बाद होने वाले चुनावों में सुरक्षा व्यवस्था कोई मुद्दा ही नहीं रहा | हमने कभी सवाल नहीं किया की करोडो में ख़रीदे गये सुरक्षा उपकरण क्या काम कर रहे है स्टेसनो पर लगे मेटल डिडेक्टर अब क्यों नहीं काम कर रहे है क्या वो कभी ठीक होगे क्या सी सी  टीवी ठीक  से काम कर रहे है क्या उनकी कोई मानेट्रिंग हो रही है या हम सब को बस हाथी के दात दिखा कर बेवकूफ बनाया जा रहा है | हा सवाल तो लोगों ने उठाये पर उलटे कि स्टेसनो पर क्यों मेटल डिडेक्टर लगाये गये है उससे हम सभी को परेशानी होती है क्यों हर जगह चेकिंग हो रही है हमें परेशानी हो रही है क्यों नाकेबंदी कर के गाडियों की जाँच हो रही है हमें देर होती है क्यों केरायदारो का वेरिफिकेसन करवाया जा रहा है हमें परेशानी हो रही है क्यों कसाब को जिन्दा पकड़ा अब उसकी सुरक्षा कारण रास्ते बंद  है हमें परेशानी हो रही है हमारी ही सुरक्षा के लिए होने वाली हर जाँच हमारे लिए परेशानी है यहाँ तक की अमेरिका में जब शाहरुख खान की तलाशी ( यदि उनके कहे को सच्च माने तो ) पर भी हम हो हल्ला मचाने लगाते है | ये सारी बाद सिर्फ मुंबई के लिए  नहीं है पुरे देश में यही हो रहा है हर जगह लोगों का यही रवैया है | तो जब हम ही अपनी सुरक्षा को लेकर गंम्भीर नहीं है और हम खुद सो रहे है तो हम सरकार को क्या जगायेंगे | जो आम आदमी को सबसे अच्छे से करने आता है वो उसने किया सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को भला बुरा कहना |
      अब तो कसाब दोषी साबित हो गया है कल परसों में उसे बिना किसी संदेह के फाँसी की सजा भी सुना दी जाएगी | लेकिन अभी इतनी जल्दी उसे फाँसी पर चढ़ाया नहीं जायेगा क्योकि जब अभी तक अफजल को फाँसी पर नहीं चढ़ाया गया क्योकि उसका नंबर २७ है तब तो कसाब का नंबर काफी बाद में आएगा | तब तक उसकी जान की सुरक्षा के लिए करोडो खर्च होंगे ताकि जिस दिन उसका नबर आये पुलिस उसे फाँसी पर चढ़ा कर उसको मार सके | तब तक तो न्यूज़ चैनल वाले भी उसे भूल जायेंगे और हम सभी भी और शायद तब तक कोई और हमला या कोई और कसाब हमारे लिए कोई नई याद और टीस ले कर आ चूका हो |