November 29, 2022

दृश्यम 2- फिल्म समीक्षा



जिन लोगो को गांधी और उनकी जयंती से समस्या है उनके लिए सलाह है कि दृश्यम थ्री फोर के प्रड्यूसर बन जाये ।  कुछ सालो बाद दो और तीन अक्टूबर का जिक्र आते लोगो को ये फिल्म पहले याद आयेगी ना की गाँधी जयंती । 

इस फिल्म की टिकट रविवार के लिए मिलना आसान नही है पता था लेकिन लोग सोशल मीडिया पर फिल्म के रहस्य खोले जा रहे थे तो मजबूरी मे टिकट खरीदना पड़ा । हमने कहा ज्यादा से ज्यादा क्या ही होगा गर्दन दुखेगी  इतने आगे की सीट पर , इस फिल्म के लिए सह लेगें थोड़ा । 

घर बैठ कर न्यूजीलैंड का मौसम का हाल देखते हुए समय बिताने से तो अच्छा ही है । एकदम कार्नर की सीट मिली लेकिन ऐसी फिल्म जो  स्क्रिन से नजर हटाने ना दे उसमे कार्नर सीट पर बैठ कर रोमांस की कौन सोचेगा । तब तो और भी नही जब फिल्म का सुबह का शो भी हाउसफुल हो । 

भाई साहब फिल्म की तो बात ही क्या करे । अब आप ये सोचिये कि एक सस्पेंस वाली फिल्म की मूल कहानी दर्शक को पहले से पता है । एक हत्यारा है और  पुलिस को उसे पकड़ना है । वो बस ये देखने आया है कि फिल्मकार ने उसे बनाया कैसा है । उसके बाद भी अंत मे फिल्म की पूरी टीम दर्शक को चकित करके वाह , गजब , तालियाँ वाला रिएक्शन निकलवा लेती है । 

  कहानी फिर से शुरू कैसे होगी ,  ऐसी फिल्म के दूसरे पार्ट मे दिखायेगें क्या का जवाब पहले ही दृश्य मे उस  मिल जाता है  । फिल्म एकदम वही से शुरू होती जंहा खत्म हुयी थी । 

सबसे मजेदार ये है कि पहले ही दृश्य मे फिल्म दर्शकों को एक सुबूत दे देती है और उन्हे जासूस बनने के लिए मजबूर कर देती है । दर्शक सोचता है कि पुलिस से ज्यादा सुबूत उसके पास है पहले वो केस हल कर लेगी  । 
आखिर सालो साल सीआईडी और एकता के डेलीसोप मे बहुओ को जासूसी करते  देखने के बाद  इतना असर तो आता ही है ।  लेकिन दर्शक जो सोचता है बाद मे पता चलता है कहानी उससे अलग है । इससे दर्शक का रोमांच और बढ़ जाता है । 

पता नही क्यो लोग फिल्म के पहले हिस्से को धीमा बोल रहे है  मुझे तो बिल्कुल नही लगा । बल्कि इंटरवल होने पर लगा कि अरे फिल्म आधी हो भी गयी । क्योकि अंत मे पता चलता है उन एक एक दृश्य का क्या मतलब था । पहला हिस्सा ध्यान से देखा हो तब अंत मे रहस्य खुलने पर आप कहते है अच्छा तो वो ये था , तो उसका मतलब ये था । 

फिल्म अच्छी बनी उसके लिए पूरी टीम प्रयास दिखता है।  कहानी अच्छी  , उस पर लिखा स्क्रीनप्ले अच्छा ,  निर्दशन अच्छा , फिर अभिनय अच्छा अंत मे एडिटिंग अच्छी। कहानी के लिए श्रेय हिन्दी मलयालम दोनो वर्जन को जाता है । दक्षिण का रीमेक बनाना हो तो ऐसा बनाना चाहिए।  

"परिवार के लिए सबकुछ करूंगा" वाली फिल्म मे "अपने तो अपने होते है" वाला मेलोड्रामा इमोशन की भरमार नही है , जबरदस्ती का रोमांस और  गाना बजाना नही है और ना ही डर जाने और बहुत स्मार्ट होने की ओवर एक्टिंग।  

अक्सर किसी फिल्म का दूसरा भाग पहले भाग से कमतर होता है लेकिन मुझे ये फिल्म पहले भाग से बीस ही लगती है । मै अपराधियों के हिरोकरण वाली फिल्मे नही देखती , वो पसंद नही । लेकिन विजय सालगांवकर अपराधी नही है भाई , ऐसे के साथ तो मै भी ऐसा ही करती , ऐसा मैने बिटिया को समझाया जब वो कहने लगी विजय गलत है । 

November 23, 2022

पापा की परी

 बिटियां सातवीं मे थी जब उनकी पाॅकेट मनी शुरू किया ।  बड़े अरमान कि चलो अब पैसा बचाना खर्चना मैनेज करना सीखेंगी । लेकिन कुल अरमानो पर उनके पापा जी ने पानी फेर दिया ।

 पापा जी जब नीचे कुछ लेने जाते या ऑफिस से आते फोन करते तो फर्माइश कर देतीं पापा मेरे लिए ये ले आना वो ले आना । हम कहते पाॅकेट मनी मिली है उससे ले आओ , तो कहतीं पापा ले आओ मै पैसे  दे दूंगी । अब आप लोग ही अंदाजा लगा लो कि पापा चॉकलेट चिप्स ला कर उनसे पैसे लेतें ।

बचा खुचा एक साल  बाद लाॅकडाउन ले बिता । ना बाहर जाना आना ना बाहर का खाना पीना । सब ऑनलाइन आ रहा था तो उनके जरुरत का सामान भी हम मंगा देते । पैसे तो उनके सारे बस दोस्तो को गिफ्ट मे खर्च होते । लाॅकडाउन के बाद भी पापा ना सुधरे ना बिटियां पैसे मैनेज करना सीखी । 

पापा की परी का कुछ अलग ही मतलब ये आजकल के पापा लोग निकालते है । जब वैन से स्कूल जाती थी तब उनका बैग नुक्कड़ तक पापा उठा कर ले जाते थे । हम चिल्लाते नौवी मे आ गयी तुम क्यो बैग उठा रहे हो उसको लेकर जाने दो । लेकिन मेरी कौन सुनता है । 

लगभग सब पापा लोगो की यही हालत है । रोज सुबह देखते है बेटा छोटा है तो बैग मम्मी पापा लेते बस स्टाॅप तक लेकिन बड़े होते बेटे अपना बैग खुद  उठाना शुरू कर देते । लेकिन बेटियां बड़ी हो गयी है पर स्कूल बैग पापा लोग ले जा रहे है । 

सातवीं तक तो पापा जी उन्हे जुते मोजे तक पहनाते थे । रोज सुबह उठने मे नाटक करती और देर होने लगती स्कूल के लिए।  वो नाश्ता कर रही होती मै बाल बना रही होती तो बोलती पापा जूते पहना दो नही तो वैन छूट जायेगी । 

हमारे लाख मना करने के बाद भी कि तुम ऐसे ही करते रहे तो ये  जिम्मेदार कैसे बनेगी सीखेगी कैसे ।  लेकिन पापा जी लोगो को इससे मतलब ही क्या है । नतीजा बिटियां उलटा पापा को बोलती पापा पहना दो नही तो तुम्हे ही स्कूल तक छोड़ने जाना होगा। अब स्कूल  पापा छोड़ने जाते है और बिल्डिंग के नीचे तक भी बैग पापा ले जाते है । हमारी कोई ना सुनता ना समझता । 

अभी दशहरे को एक पड़ोसी अपने बेटे के साथ मिलकर उसकी नयी बुलट धो चमका रहे थे । दशहरे पर अपनी गाड़ी साफ कर उस पर माला चढ़ाने का रिवाज है यहां । तभी पतिदेव ने दिखाया देखो चौथी मंजिल वाले की  बेटी ने जाॅब शुरू किया है तो उसके पापा ने स्कूटी दिलाया है लेकिन वो स्कूटी पिता जी अकेले धो रहे थे । 

हमने कहा ये क्या बात हुयी जब बेटा अपना बुलेट साफ कर रहा है तो बेटी स्कूटी साफ करने क्यो नही आयी । ये सच है कि अपनी कार साफ करने हम कभी नही गये लेकिन स्कूटी साफ करने पानी लेकर हमी जाते और ये भी देखते कि लोग मुझे ऐसा करता देख अजीब नजर से देख रहें ।

पापा की परी का मतलब बेटी को सपोर्ट करना होना चाहिए उसका बैसाखी बन अपाहिज ना बनाइये । जब स्कूटी या कोई भी गाड़ी दिला रहे है तो उससे जुड़ी जिम्मेदारी भी उसे दिजिए और उससे जुड़ी जानकारी भी । ताकि कोई छोटी मोटी समस्या आने पर उसे ठीक कर सके कोई  डिसीजन ले सके  ना कि मदद के लिए दूसरो का मुंह ताके। 

इतने सालो से अपनी कार हो या स्कूटी सर्विस सेंटर लेकर गयी पर रेयरली ही कोई लड़की महिला वहां आती थी । स्कूटी का तो कितनी ही बार रंग देख समझ आ जाता लड़की या महिला की है पर लेकर पुरुष आया है । कई बार लोग फोन करके पुछते है कि और क्या क्या समस्या बताया था । 

ऐसी ऐसी महिलाओ लड़कियो से मीली हूं जिन्हे अपनी कार मे ईधन खत्म होने का इन्डीकेटर समझ नही आया या किक करके स्कूटी स्टार्ट कैसे करना है ये पता नही होता । टायर बदलना तो बहुत दूर की बात है । 

हमारा पालन पोषण एक मातृसत्तात्मक परिवार मे हुआ है । जहां हम लोगो को राजकुमारियों की तरह नजाकत से कतई ना पाला गया । बेटियां लक्ष्मी होती उनसे पैर नही छुआते जैसे चोचले हमारे घर कभी हुए नही । पैर छुना बड़ो के अभीवादन का तरिका है तो बेटी वो क्यो नही करेगी । 

जब पितृसत्ता मे बेटे नाजुक नही मजबूत बनाये जाते है आगे के संघर्ष,  नेतृत्व के लिए  तैयार किये जाते है । तो मातृ सत्ता वाले परिवार मे भी हम बेटियां को शुरू से जिम्मेदार और मजबूत बनाया गया । हम लोग अपने अंदर बाहर के काम के लिए कभी घर के पुरूषो पर निर्भर ना रहे । यहां तक कि भारी सामान को उठाने के लिए भी हम लोग कभी भाई लोगो का मुंह ना देखते । 

किसी के चिढ़ाने , टांग खिचने , गिरने पर रोना ना शुरू करते बल्कि मुंह तोड़ जवाब देते । कोई लड़का परेशान कर रहा जैसी समस्याएं हम लोगो को कभी घर लेकर आने की जरूरत ना पड़ी । पढ़ाई क्या करना है कैरियर क्या चुनना से जुड़ी काम खुद ही किये । पापा लोगो को तो ये भी पता नही होता कि हम लोग किस क्लास मे है । 

पर आजकल के नये नये पापा लोग परी बना बना बिटिया लोगो का भविष्य ही डांवाडोल कर रहे है । यही हर जरूरी अनुभव जिम्मेदारी से दूर रहने वाली बेटिया अकेले पढ़ने जाॅब करने जायेगी तो परेशान होगीं या गलत निर्णय लेती जायेगी ।  कैरियर मे भी और जीवन मे भी । 

तो ऐसा है पापा जी लोग्स अपनी अपनी परियों को बचपन से ही कल के गलाकाट प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार किजिए।  किसी ट्रोलिंग का जवाब देने लायक मजबूत बनाइये । मुसीबतों और असफलताओं से लड़ना सिखाइये। सही निर्णय लेना जिम्मेदारी उठाना सिखाइएये । योद्धा बनाइये नाजुक सी परी ना बनाइये । 

November 18, 2022

लक्ष्यभेदी पोस्ट

 राजू पढने मे बहुत होशियार था । लेकिन वो अपने पिता के जुआ खेलने की आदत से घर मे हो रही तमाम दिक्कतों से परेशान रहता था । एक दिन मास्टर साहब ने दीवाली पर निबंध लिखने के लिए कहा । उसने लिखा दीवाली हमारा एक प्रमुख त्यौहार है । इस दिन हम घर को दीये से सजाते है । लेकिन  कुछ लोग इस दिन जुआ खेलते है । जुआ खेलना एक खराब बात है । जुआ  खेलने से घर बर्बाद होते है  । घर मे आर्थिक तंगी आ जाती है ----- । आगे पूरा जुआ पर निबंध था । 

मास्टर जी ने कहा बढ़ियां है । फिर एक दिन होली पर निबंध लिखने को कहा गया । राजू ने लिखा , होली हमारा प्रमुख त्यौहार है । उस दिन हम रंग खेलते है । लेकिन  कुछ लोग इस दिन जुआ खेलते है । जुआ खेलना एक खराब बात है । जुआ  खेलने से घर बर्बाद होते है  । घर मे आर्थिक तंगी आ जाती है ----- । 

मास्टर जी ने कहा ये क्या बला है । फिर उन्होने होशियार दिखाते कहा तु पेड़ पर निबंध लिख। राजू ने लिखा , पेड़ हमारे लिए बहुत जरूरी है । पेड़ से हमे ऑक्सीजन मिलता है । लेकिन कुछ लोग पेड़ के नीचे बैठ कर  जुआ खेलते है । जुआ खेलना एक खराब बात है । जुआ  खेलने से घर बर्बाद होते है  । घर मे आर्थिक तंगी आ जाती है ----- । 

बस ऐसे ही आज सबके पास पहले से ही दोषी , अपराधी कौन है का जवाब तैयार है अपनी अपनी सोच , वाद और विचारधारा के हिसाब से । फिर कोई भी मुद्दा , अपराध,  खबर सामने आने दिजिए । दो लाइन के बाद उनका लेकिन आयेगा और हर बार  दोषी अपराधी उसी को साबित करेगे जिसे वो साबित करना चाह रहे है , नेता , सरकार,  विपक्ष, ये धर्म वो धर्म वाले ,समाज ,पुरुष , स्त्री ,बुजुर्ग,  युवा पीढ़ी,  माता पिता आदि इत्यादि।

आप लाख दलीले , तर्क दिजिए किन्तु आप ठीक कह रहे/रही है के बाद एक लेकिन आयेगा और वही जुआ पर निबंध शुरू हो जायेगा । 

राजू गाय पर निबंध लिखो । राजू , गाय एक पालतू जानवर है गाय हमे दूध देती है । लेकिन कुछ लोग गाय का दूध बेच कर उन पैसो से  जुआ खेलते है । जुआ खेलना एक खराब बात है । जुआ  खेलने से घर बर्बाद होते है  । घर मे आर्थिक तंगी आ जाती है ----- । 

राजू पर्यावरण पर निबंध लिखो । राजू , स्वच्छ पर्यावरण बहुत जरूरी है ।  हमे पर्यावरण का संरक्षण करना चाहिए  लेकिन -------

November 17, 2022

प्रेम का ये कैसा खौफनाक अंत

 दो खतरनाक खबरे दो दिन मे सुनी जो पहले प्रेम फिर हत्या मे बदल गयी। पहली घटना पाकिस्तान की है जहां एक माँ ने अपनी नाबालिग बेटी के हत्यारे पति को पन्द्रह साल बाद पकड़वाया । पन्द्रह साल की बेटी अपने ट्यूशन टीचर के साथ भाग गयी । माँ बाप इज्जत के डर से पुलिस मे खबर नही की ।

 बेटी ने कभी संपर्क नही किया लेकिन दस साल बाद माँ ने लड़के से संपर्क किया । कई बार फोन करने के बाद भी बेटी से जब बात नही हो पायी तो माँ अकेले उस शहर चली गयी जहां ट्यूशन टीचर ने अपने होने की बात की थी । शहर के हर स्कूल के चक्कर लगाती रही और  एक दिन वो मिल गया । पहले वो उन्हे टरकाता रहा फिर  जब भाग गया तब माँ ने पुलिस मे खबर की और वो पकड़ा गया । 

तब पता चला कि उसने पन्द्रह साल पहले ही लड़की की हत्या कर दी थी गला दबाकर और फिर उसके टुकड़े कर कुर्बानी के जानवरो के कुड़े मे मिला दिया । 

वो तलाकशुदा दो बच्चो का पिता था और  घर से भागते समय उसके बच्चे भी साथ थे । उसी बच्चो को लेकर झगड़ा हुआ और लड़की की हत्या कर दी गयी । अब माँ सोच रही है कि तभी इज्जत की परवाह ना करके पुलिस मे रिपोर्ट कर देती तो शायद बेटी जिन्दा मिल जाती । 

दूसरी कल दिल्ली वाली खबर । लड़के के साथ पहले से ही मारपीट हो रही थी और लड़की माँ के पास वापस मुंबई भी लौट गयी थी । माँ बाप ने वापस ना लौटने के लिए समझाया भी लेकिन लड़के के माफी मांगने पर लड़की लौट गयी और नतीज उसकी हत्या । 

पहली खबर में दक्षिण एशिया की एक खराब सच्चाई है जिसमे इज्जत के नाम पर या तो घरवाले ही लड़की को मार देते है या उनके भागने पर उनकी कोई खोजखबर नही लेते । इन लड़कियों मे से बहुतो की इस तरह हत्या भी होती है और उन्हे वैश्यावृति के लिए बेच  भी दिया जाता है । 

नेपाल बंग्लादेश से लेकर छत्तीसगढ,  झारखंड और  बिहार बंगाल के गरीब इलाको से प्रेम जाल मे फंसा कर बड़ी संख्या मे लड़कियो को घर से भगा कर लाया जाता है और बेच दिया जाता है । ज्यादातर केस मे ना तो उनके भागने पर पुलिस रिपोर्ट होती है और ना परिवार कभी खोजने या संपर्क करने की कोशिश  करता है । 

करीब आठ दस साल पहले दिल्ली मे एक बड़े सैक्स रैकेट का खुलासा हुआ था । उसमे एक लड़कि मुंबई मे रह रहे सेना के एक बड़े अधिकारी की बेटी निकली । ब्वॉयफ्रेंड के साथ परिवार की मर्ज़ी के खिलाफ भाग कर दिल्ली आ गयी और यहां आते ही उसे पता चला कि जिस घर मे रह रही है असल मे वहां वो कैद है । लड़का उसे बेच कर भाग चुका है । नशीले पदार्थ और मारपीट से धंधे मे डाल दिया गया शर्म के मारे उसने फिर कभी परिवार से संपर्क की कोशिश ही नही की । फिर दिल्ली पुलिस ने उसके पिता के घर भेजा । 

और भगायी गयी खासकर कम आयु की लड़कियो कि हत्या और आत्महत्या पुराना अपराध है । भागने के कुछ समय बाद ही प्रेम का भूत भी उतरता है तब समझ आता कि प्रेम नही उमर का असर था बस। एक दूसरे की असली सच्चाई भी सामने आती है और आटे दाल का भाव भी पता चलता । परिवार संपर्क मे रहता है तो बात संभल जाती है । कितनी ही लड़किया वापस भी आती हैं । लेकिन परिवार से परवाह ना दिखायी और  लड़का जरा सा दुष्ट प्रवृति का हुआ तो अपराध होते देर ना होती । 

 किसी भी माँ बाप को कभी भी अपने बच्चो को ऐसे नही छोड़ना चाहिए । भले कल को रिश्ता ना रखे लेकिन उनकी सही सलामती की खबर लेते रहे पुलिस की सहायता ले या किसी और की । ताकि कल को कोई अफसोस ना हो कि बेटी की सही समय पर खोज खबर क्यो ना ली ।  

दूसरा किस्सा आज की आधुनिकता के दौड़ मे शामिल लड़कियों की आधुनिकता कि कलई खोलती है । हम अब तक सवाल करते रहे है कि पत्नी मारपीट कर रहे पति के साथ क्यो रही है । समाज  के बंधन को तोड़े और विवाह से अलग हो जाये । 

लेकिन  ये तो समझ के परे है कि आप लिव-इन रिलेशन मे मारपीट की शिकार है फिर भी आप ना केवल उसके साथ रह रही है बल्कि विवाह भी उसी के साथ करना चाहती है। क्यो आखिर क्यो ऐसा करना चाहती है । 

 यहां कौन सा सामाजिक बंधन था जिसे लड़की तोड़कर निकल नही सकती थी । जिस  दिन पहला थप्पड़ पड़ा उसी दिन समझ जाना चाहिए था कि व्यक्ति सही नही है रिश्ता रखने के लिए  । जिस दिन ये सब दुबारा तीबारा हुआ  समझ जाना चाहिए वो अपराधी प्रवृति का है ।

ये किस तरह की आधुनिकता थी जिसमे उन्हे टिंडर और मैरिज डाट काॅम का फर्क समझ ना आ रहा था । जिसमे ये समझ ना आ रहा था कि जब एक बार लड़के ने शादी के लिए ना कह दिया तो वो कभी आपसे शादी नही करना चाहता । वो सिर्फ अपनी जरूरतो के लिए आपसे जुड़ा है रिश्तो के प्रति गंभीर नही है ।

समस्या ये है कि ऊपर से आधुनिक बन गये है लेकिन अंदर से भारतीयपना गया नही है । झूल रहे है बीच मे , ना इधर के है ना उधर के है  । ऐप से  डेटिंग करना शुरू कर दिया लेकिन समझदारी से ब्रेकअप करना नही आया । ये समझ नही आया डेटिंग करना , लिव-इन शादी की गारंटी नही होती । ये समझ नही आता कि सामने वाला सिर्फ आपका फायदा उठा रहा है वो आपके साथ गंभीर नही है । 

बाकि लास्ट मे दो बाते पहली ये प्रेम मे हत्या और फायदा उठाना कुछ लड़को के साथ भी हो रहा है और  दूसरी लव जेहाद की पागलपंथी से बाहर आइये और हर खबर को जरा ध्यान से देखीये । ये सब हर जाति , धर्म, वर्ग मे हो रहा है और  आये दिन हो रहा है । अपनी राजनैतिक सोच के हिसाब से बस आप लोग किसी खास खबर पर हल्ला मचाते है बाकि पर चुप रह जाते है । माॅब लिचिंग की तरह एक सामाजिक अपराध बनता जा रहा है । 

बच्चो से बात किजिए और  इस बारे मे समझाना शुरू किजिए।  लोगो को पहचानना सीखाईये और  सबसे जरूरी व्यवहारिक बनना और दिमाग प्रयोग करना सीखाईये । ना प्रेम खत्म हुआ है और  प्रेम  विवाह मे कोई  समस्या है ।